Monday, September 11, 2023

एक पहिये में सब कुछ: विज्ञान और अध्यात्म का मिश्रण

 एक पहिये में सब कुछ: विज्ञान और अध्यात्म का मिश्रण है कोणार्क का चक्र,पूरी पोस्ट अवश्य पढ़ें..........


11 September 2023


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🚩भारत की राजधानी नई दिल्ली में आयोजित G20 समिट के दौरान जहाँ सभी विदेशी राष्ट्राध्यक्षों का स्वागत किया, वहाँ पीछे ओडिशा में स्थित कोणार्क सूर्य मंदिर के चक्र की प्रतिमूर्ति बनी हुई थी। इसने सबका ध्यान अपनी तरफ आकर्षित किया। असल में G20 के जरिए भारत की संस्कृति का भी प्रचार-प्रसार किया और उसके तहत ही ऐसा किया गया था। एक तरह से अब कोणार्क का चक्र, पहिया, अब वैश्विक हो गया है और इसे एक बड़ी पहचान मिली है, सम्मान मिला है।


🚩ऐसे में, आइए हम कोणार्क के सूर्य मंदिर के बारे में जानते हैं। ओडिशा के कोणार्क में स्थित इस मंदिर को पूर्वी गंगवंश के राजा नरसिंहदेव ने 13वीं शताब्दी के मध्य में बनवाया था। इसे इसकी संरचना और कलाकृतियों के लिए जाना जाता है। 19वीं शताब्दी के इतिहासकार जेम्स फ़र्ग्यूशन ने कहा था कि जितने मंदिर शेष भारत में हैं, उससे ज़्यादा अकेले ओडिशा में हैं। कोणार्क के सूर्य मंदिर के ऊपरी हिस्सा अब नहीं है, लेकिन फिर भी इसकी भव्यता कम नहीं हुई है।


🚩कोणार्क नाम के पीछे भी एक कारण है। जहाँ ‘अर्क’ का अर्थ सूर्य है, वहीं ‘कोण’ का मतलब अंग्रेजी वाला एंगल। यूरोप से आने वाले यात्रियों ने इस मंदिर को ‘काला पैगोडा’ कहा था। एशिया में बड़ी-बड़ी धार्मिक संरचनाओं को ‘पैगोडा’ कहा जाता था। कोणार्क में भव्य मंदिर भले ही बाद में बना हो, इसका महत्व पुराणों में भी वर्णित है। ब्रह्म पुराण में लिखा है कि कोणादित्य (कोणार्क) उत्कल (ओडिशा) में भगवान सूर्य के भक्तों के लिए एक पवित्र स्थल है। एक और कहानी है सूर्य उपासना की, जो भविष्य पुराण और साम्ब पुराण में वर्णित है।


🚩सूर्य पूजा की पौराणिक कथा, साम्ब और कुष्ठ रोग


🚩भगवान श्रीकृष्ण और जाम्बवती का एक बेटा था – साम्ब। भगवान श्रीकृष्ण की पत्नियाँ जब स्नान कर रही थीं, तब नारद जी के कहने पर साम्ब वहाँ पहुँच गया था। इस कारण श्रीकृष्ण ने उसे कुष्ठ रोग से ग्रसित होने का श्राप दिया। साम्ब ने स्वयं के निर्दोष होने की बात साबित की, लेकिन श्राप वापस नहीं लिया जा सकता था। अतः, उसे भगवान सूर्य की आराधना करने को कहा गया। सूर्य को चर्मरोग का हरण करने वाला माना जाता है। आज विज्ञान भी मानता है कि सूर्य के प्रकाश से चमड़ी की कई बीमारियों में लाभ हो सकता है।


🚩साम्ब को मित्रवन में चंद्रभागा नदी के तट पर तपस्या करने के लिए कहा गया। 12 वर्षों के बाद सूर्यदेव की कृपा से जब उसकी बीमारी ठीक हुई, तब उसने सूर्य मंदिर बनवाने का निर्णय लिया। हालाँकि, स्थानीय ब्राह्मणों के इनकार के बाद उसने शकद्वीप (ईरान/पर्शिया) से पारसी पुजारियों को लेकर आना पड़ा, जिसे मागी कहते हैं। भगवान सूर्य की तस्वीर में बूट्स देख सकते हैं आप यहाँ, जो मध्य एशियाई निर्माण कला का प्रभाव है। मध्य एशिया से प्रवासी यहाँ पहली शताब्दी में ही आए थे।


🚩साम्ब की तपस्या का जो स्थल है, उसे साम्बपुर के नाम से जाना गया। ये जगह अभी पाकिस्तान में स्थित मुल्तान में है। चंद्रभागा नदी, चेनाब का ही प्राचीन नाम था। वहीं कोणार्क में समुद्र द्वारा बनाया गया एक झील भी है, जिसे ‘चंद्रभागा’ नाम से जाना गया। जगन्नाथपुरी का इतिहास समेटे ओडिशा के प्राचीन ताड़पत्र वाले दस्तावेज ‘मदल पंजी’ में लिखा है कि राजा पुरंदर केसरी ने कोणार्क मंदिर बनवाया। केसरी वंश को हराने वाले गंग वंश ने भी कोणार्क देवता के सामने अपना सिर झुकाया। नरसिंहदेव (1238-64) ने यहाँ भव्य मंदिर बनवाया।


🚩कोणार्क का सूर्य मंदिर: यूरोपियनों ने कहा – ‘ब्लैक पैगोडा’

उनके वंशज भी कोणार्क में पूजा करते रहे। मुकुंदराजा (1569-68) के निधन के बाद यवनों (इस्लामी आक्रांताओं) ने हमला किया और जब वो मंदिर को ध्वस्त करने में सफल नहीं हुए तो ताम्बे के कलश और पद्म-ध्वजा ले गए। गंग राजवंश के ताम्रपत्रों में लिखा है कि नरसिंहदेव ने उषारश्मि (सूर्य) का मंदिर त्रिकोण के कोने में ‘महत (महान) कुटीर’ बनवाया। नरसिंह देव ने अपने बेटे का नाम भी ‘भानु’ रखा था, जो भगवान सूर्य का नाम है। वो भानुदेव कहलाए। बताया जाता है कि इस्लामी आक्रांताओं को हराने के बाद उन्होंने ये भव्य मंदिर बनवाया था।


🚩16वीं शताब्दी तक इस मंदिर की लोकप्रियता कई सीमाओं को पार कर चुकी थी। बंगाल के वैष्णव संत चैतन्य महाप्रभु भी यहाँ पहुँचे थे। वो पुरी भी तीर्थयात्रा के लिए गए थे। अकबर के दरबारी अबुल फज़ल तक ने लिखा है कि कैसे ये इतना भव्य मंदिर है कि जो देखता है वो बस देखता ही रह जाता है। मंदिर का शिखर कैसे गिरा, इस पर अलग-अलग मत हैं। ज्यादातर विद्वानों का मानना है कि इस्लामी आक्रांताओं ने मंदिर को जो नुकसान पहुँचाया था, उस कारण ऐसा हुआ।


🚩जेम्स फ़र्ग्यूशन ने शिखर की ऊँचाई 45.72 मीटर होने का अंदाज़ा लगाया था। मुख्य मंदिर की बात करें तो इसे एक विशाल रथ के रूप में बनवाया गया था, जिसमें 12 चक्के हैं। साथ ही इसमें 7 सजे-धजे घोड़ों को दौड़ते हुए दर्शाया गया है। मंदिर में कई कलाकृतियाँ हैं, जिनमें भगवान सूर्य और अन्य देवी-देवताओं के साथ-साथ नृत्यांगनाओं, पक्षियों और जानवरों तक को दिखाया गया है। शेर, हाथी और घोड़ों की मूर्तियाँ हैं दीवारों में। जिराफ, ऊँट, हिरन, बाघ, सूअर, बन्दर और बैल भी हैं।


🚩कोणर्क मंदिर के पहिये/चक्र: क्या है इसका महत्व


🚩साथ ही नाग और नागकन्याओं को दिखाया गया है, आधा मनुष्य और आधा साँप के रूप में। अब बात करें हैं पहियों, यानी चक्र की। वही चक्र, जिसके सामने G20 नेताओं के साथ प्रधानमंत्री ने हाथ मिलाया, उनका स्वागत किया, तस्वीरें क्लिक करवाईं। कोणार्क के मंदिर में ये पहिये इतने अच्छे से बनाए गए हैं कि रथ में पहियों को जोड़ने के लिए जिस कील का इस्तेमाल होता था, उन्हें भी एकदम सटीक जगह पर लगाया गया है। ये एक विशेष प्रकार की कला है, जो इसे खास बनाता है और इस मंदिर की मुख्य विशेषता है।


🚩इस पहिये की पतली वाली तीलियों में 30 दाने (मनके) बने हुए हैं। साथ ही कमल के फूल की पत्तियाँ बनी हुई हैं। वहीं कुछ पहियों में नृत्य करती हुई आकृतियों को एकदम साम्य में दिखाया गया है। इसके केंद्र में कई कन्याओं की आकृतियाँ हैं, कुछ अन्य आकृतियाँ भी हैं। शिव-पार्वती, बाँसुरी बजाते श्रीकृष्ण, और हाथी पर बैठे एक राजा की भी मूर्ति है जिसके सामने एक समूह खड़ा है। आज यही चक्र भारत की शान बन कर दुनिया के सामने हमारे वैभव और हमारे समृद्ध इतिहास का प्रदर्शन कर रहा है।


🚩इन पहियों का बड़ा महत्व है। इस चक्र में 8 बाहरी और 8 भीतरी तीलियाँ हैं। 12 जोड़े पहिये साल के 12 महीनों का प्रतिनिधित्व करते हैं। साथ ही 8 तीलियाँ दिन के 8 पहर को दिखाती हैं। सूर्य की स्थिति के हिसाब से समय बताने के लिए भी इसका इस्तेमाल किया जाता था। इसे ऐसे तैयार किया गया था कि सूर्य का प्रकाश भी इससे पास हो और जो छाया बनती थी, उसका इस्तेमाल समय देखने के रूप में किया जाता था। पृथ्वी, सूर्य और चन्द्रमा की गतियों को ध्यान में रखते हुए इसे बनाया गया था, एक ‘Sundial’ के रूप में।


🚩कई धार्मिक समारोहों के लिए भी समय की गणना इसका इस्तेमाल कर के की जाती थी। इन पहियों का डायमीटर 9 फ़ीट 9 इंच है। भारत के करेंसी नोट्स पर भी आप कोणार्क के इस चक्र को देख सकते हैं। इसकी 24 तीलियाँ दिन-रात के 24 घंटों को दर्शाते हैं। यानी, खगोलीय और वैज्ञानिक गणनाओं को ध्यान में रखा गया था इस पहिये के निर्माण के समय। ऐसा नहीं कि सिर्फ मूर्तिकारों ने इसे बना दिया। विद्वानों की देखरेख में सारा काम किया गया था। इस पहिये में पूरी प्रकृति है – पशु-पक्षी, नदी-पहाड़, देवी-देवता।


🚩अब आप सोच रहे होंगे कि पहिये की परछाई से समय कैसे पता चलेगा? इसके लिए पहियों के बीच में ऊँगली रखी जाती है और उसकी छाया से समय पता चलता है। 12 पहिये 12 राशियों को भी दिखाते हैं। इसे कानून का पहिया भी कहा जाता है। ये जीवन चक्र के लगातार चलायमान होने को भी दर्शाता है। पतली वाली तीलियाँ डेढ़ घंटे (90 मिनट) के समय को बताती हैं। ये कुछ वैसा ही है, जैसे आजकल हम घड़ी देखते हैं। ये अध्यात्म ही नहीं, बल्कि उसके साथ-साथ विज्ञान का भी मिश्रण है।


🚩गंगवंश के नरसिंहदेव, जिन्होंने कोणार्क में बनवाया सूर्य मंदिर


🚩नरसिंहदेव को नरसिंह भी कहा जाता है। उनके बारे में जिक्र मिलता है कि उनका विजय अभियान दक्षिण भारत तक फैला हुआ था। आंध्र प्रदेश के द्राक्षाश्रम में एक शिलालेख में उन्हें गोदावरी का राजा कहा गया है। ‘मदल पंजी’ में यहाँ तक लिखा है कि उन्होंने 12 वर्ष दक्षिण भारत में गुजारे और रामेश्वरम के सेतुबंध तक पहुँचे। उन्होंने जब गद्दी संभाली थी, तो ओडिशा एक तरफ बंगाल के मुस्लिम शासकों और दूसरी तरफ पूर्वी डेक्कन के काकतीया वंश से लड़ाई में जूझ रहा था।


🚩उनके पिता अनंगभीम-III ने भी गंगवंश की सीमाओं को मुस्लिम आक्रांताओं से बचाने के लिए तैयारियाँ की थीं। हालाँकि, नरसिंहदेव ने इस मामले में आक्रामक नीति अपनाई। सन् 1243 में ओडिशा के सैनिकों ने लक्ष्मणावती (अब का मालदा जिला) में घुस कर मामलुक मुस्लिम शासकों को मजा चखाया। कटासिन में भयंकर लड़ाई हुई, जहाँ जहाँ बड़ी संख्या में इस्लामी आक्रांताओं का संहार किया गया। बंगाल के शासक इज्जुद्दीन तुगरिल तुगान खाँ को वहाँ से भागना पड़ा।


🚩सन् 1245 में नरसिंहदेव की सेना फिर से लक्ष्मणावती पहुँची। तुगान खाँ की राजधानी को घेर लिया गया और उसे दिल्ली और अवध से सहायता के लिए गुहार लगानी पड़ी। जब तक मदद के लिए फ़ौज आती, ओडिशा की सेना मॉनसून के महीने में वापस लौट चुकी थी। इस युद्ध का नायक सेनापति सबंतोर (सामंतराय) को माना जाता है। इसके बाद इख़्तियाउद्दीन उज़बक बंगाल का शासक बनाया गया और वो इस हार का बदला लेना चाहता था। जाजनगर के राय के दामाद सामंतराय ने उसे भी हराया।


🚩गंगवंश के ताम्रपत्र में लिखा है कि इस युद्ध में ओडिशा की ऐसी जीत हुई थी कि गंगा नदी का एक बड़ा हिस्सा मुस्लिम महिलाओं के रोने के कारण उनके आँसुओं के साथ कहने वाले काजल से लाल हो गया था। इस्लामी आक्रांताओं से बचा कर राधा और गौड़ परंपरा के संन्यासियों को भी भुवनेश्वर में जगह दी गई। हावड़ा, हुगली और मेदिनीपुर जैसे बंगाली इलाके नरसिंहदेव के साम्राज्य का हिस्सा बन गए थे। इन्हीं विजय अभियानों ने उन्हें कोणार्क में भव्य मंदिर बनवाने के लिए प्रेरित किया।


🚩नरसिंहदेव ने कई मंदिर बनवाए। उन्होंने बालासोर के रमुना में गोपीनाथ मंदिर बनवाया। उन्होंने कपिलास में महादेव के मंदिर बनवाया। सिम्हाचलम के नरसिंह मंदिर में उन्होंने कई निर्माण कार्य करवाए। सिवाई संतरा को कोणार्क में मंदिर बनवाने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। बताया जाता है कि जब वो परेशान थे, तब एक बूढ़ी महिला ने उन्हें बताया था कि मंदिर बनवाने के लिए नदी के बीच में पत्थर फेंकने से कुछ नहीं होगा, किनारे से निर्माण कार्य शुरू करवाना पड़ेगा।


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Sunday, September 10, 2023

ऐसे रिश्ते विवाह को नष्ट करने का व्यवस्थित डिजाइन.....

लिव इन रिलेशन को लेकर जज ने कहा – ऐसे रिश्ते विवाह को नष्ट करने का व्यवस्थित डिजाइन.....


10 September 2023


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🚩लिव इन रिलेशनशिप के एक मामले में फैसला सुनाते हुए इलाहबाद हाई कोर्ट ने टिप्पणी की। कोर्ट ने कहा कि भारत जैसे देश में मध्यम वर्ग की नैतिकता को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। दरअसल, इलाहाबाद हाई कोर्ट ने लिव-इन रिश्तों की आलोचना की और कहा, “लिव इन विवाह की संस्था को नष्ट करने के लिए एक व्यवस्थित डिजाइन है, जो समाज को अस्थिर करता है और हमारे देश की प्रगति में बाधा डालता है।”


🚩लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, हालिया घटनाक्रम में इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति सिद्धार्थ ने मंगलवार (29 अगस्त , 2023) को अपनी लिव-इन पार्टनर से बलात्कार के आरोपित अदनान को जमानत दे दी। इस मामले में अदालत का फैसला भारतीय समाज में लिव-इन रिलेशनशिप की जटिलताओं और विवाह के महत्व पर प्रकाश डालता है।


🚩आरोपित को जमानत देते हुए, इलाहाबाद हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति सिद्धार्थ ने अपने आदेश में कहा कि “विवाह संस्था किसी व्यक्ति को जो सुरक्षा, सामाजिक स्वीकृति, प्रगति और स्थिरता प्रदान करती है, वह कभी भी लिव-इन रिलेशनशिप द्वारा प्रदान नहीं की जाती है।”


🚩समाज को अस्थिर करने की योजना


🚩कोर्ट के आदेश में जस्टिस सिद्धार्थ ने कहा, “ऊपरी तौर पर, लिव-इन का रिश्ता बहुत आकर्षक लगता है और युवाओं को लुभाता है, लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता है और मध्यमवर्गीय सामाजिक नैतिकता/मानदंड उनके चेहरे पर नजर आने लगते हैं, ऐसे जोड़े को धीरे-धीरे एहसास होता है कि उनके रिश्ते को कोई सामाजिक स्वीकृति नहीं है।”


🚩उन्होंने आगे कहा, “लिव-इन रिलेशनशिप को इस देश में विवाह की संस्था के फेल होने के बाद ही सामान्य माना जाएगा, जैसा कि कई तथाकथित विकसित देशों में होता है जहाँ विवाह की संस्था की रक्षा करना उनके लिए एक बड़ी समस्या बन गई है। हम भविष्य में अपने लिए बड़ी समस्या खड़ी करने की ओर अग्रसर हैं। इस देश में विवाह की संस्था को नष्ट करने और समाज को अस्थिर करने और हमारे देश की प्रगति में बाधा डालने की योजनाबद्ध योजना बनाई गई है।”


🚩टीवी धारावाहिक विवाह संस्था को पहुँचा रहे नुकसान


🚩जज सिद्धार्थ ने यह भी कहा, “आजकल की फिल्में और टीवी धारावाहिक विवाह की संस्था को खत्म करने में योगदान दे रहे हैं। शादीशुदा रिश्ते में पार्टनर से बेवफाई और उन्मुक्त लिव-इन रिलेशनशिप को प्रगतिशील समाज की निशानी के तौर पर दिखाया जा रहा है। युवा ऐसे दर्शन की ओर आकर्षित हो जाते हैं लेकिन इसके दीर्घकालिक परिणामों से अनजान होते हैं।”


🚩लिव इन के बाद महिला का विवाह के लिए पुरुष साथी ढूँढना मुश्किल


🚩अपने आदेश में उन्होंने यह भी कहा, “जहाँ लिव-इन रिलेशनशिप से बाहर आने वाले पुरुषों के लिए शादी या किसी अन्य लिव-इन रिलेशनशिप के लिए महिला साथी ढूँढना मुश्किल नहीं है, वहीं महिलाओं को शादी के लिए पुरुष साथी ढूँढना बहुत मुश्किल है।”


🚩अदालत ने अपने आदेश में कहा, “…सामाजिक मध्यवर्गीय मानदंड, महिला साथी के धर्म की परवाह किए बिना, उसकी सामाजिक स्थिति को फिर से हासिल करने के उसके प्रयासों के खिलाफ हैं।”


🚩वहीं लिव-इन रिलेशनशिप से बाहर आने वाली महिलाओं के बारे में बात करते हुए कोर्ट ने कहा, “अपवादों को छोड़कर, कोई भी परिवार ऐसी महिला को स्वेच्छा से अपने परिवार के सदस्य के रूप में स्वीकार नहीं करता है। अदालतों में ऐसे मामलों की कोई कमी नहीं है, जहाँ पूर्व लिव-इन-रिलेशनशिप की महिला साथी सामाजिक बुरे व्यवहार से तंग आकर आत्महत्या कर लेती है।”


🚩गौरतलब है कि लिव इन मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट द्वारा रेप के आरोपित को जमानत देते हुए की टीवी धारावाहिक , फिल्मों सहित सामाजिक ताने-बाने पर की गई टिप्पणी कई नजीर पेश करती है।


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Saturday, September 9, 2023

विदेश के कई कवि बोले : दुनिया में हिन्दू जैसा दयालु, शांतिपूर्ण, सुखद धर्म कोई भी नहीं है....

09 September 2023 


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🚩हिन्दू धर्म को आज अपमानित किया जा रहा है; पहले तत्कालीन कॉंग्रेस सरकार ने भगवा आतंकवाद नाम दिया तो अब फिर से सनातन हिंदू धर्म को खत्म करने की बात की जा रही है, वास्तव में देखा जाए तो सनातन को खत्म करने की बात करने वाले मुर्ख ही बोला जायेगा क्योंकि सनातन ही इसको बोलते है जो पहले था, अभी है और आगे रहेगा अब इसको खत्म करने की बात करने वाला मुर्ख ही हुआ, धर्म सनातन ही होता है , बाकी मत पंथ डाली पत्ते हैं, सनातन धर्म में ही भगवान श्री राम, श्री कृष्ण आदि प्रकट हुए और रावण कंस जैसे दुष्ट लोग जो सनातन को खत्म करना चाहते थे वोही खत्म हो गए लेकिन सनातन धर्म आज भी अजर अमर हैं।


🚩आइये, आज आपको बताते हैं- हिन्दू धर्म है कितना उदार और महान एवं अरब देश के कवि ने कैसे किया इसका बखान…


🚩सनातन हिन्दू धर्म की आर्य संस्कृति एक दिव्य संस्कृति है। इसमें प्राणिमात्र के हित की भावना है। हिन्दुत्व को साम्प्रदायिक या आतंकवादी अथवा खत्म करने का कहने वालों को यह समझ लेना चाहिए कि हिन्दुत्व अन्य मत-पंथों की तरह मारकाट करके अपनी साम्राज्यवादी लिप्सा की पूर्ति हेतु किसी व्यक्ति विशेष द्वारा निर्मित नहीं है तथा अन्य तथाकथित शांतिस्थापक मतों की तरह हिन्दू धर्म ने यह कभी नहीं कहा कि जो हिन्दू नहीं है उसे देखते ही मार डालो और मंदिरों के अलावा सारे पूजास्थलों को नष्ट कर दो। जो हिन्दू बनेगा उसी का उद्धार होगा, दूसरे का नहीं- ऐसी बेहूदी बातें हिन्दू धर्म एवं समाज ने कभी भी स्वीकार नहीं कीं। फिर भी हिन्दुत्व की बात करने को साम्प्रदायिकता कहना कितना बड़ा पाप है ।


🚩हिन्दुत्व एक व्यवस्था है- मानव में महामानव और महामानव में महेश्वर को प्रगट करने की। यह द्विपादपशु सदृश उच्छृंखल व्यक्ति को देवता बनाने वाली एक महान परम्परा है। ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’ का उद्घोष केवल इसी संस्कृति के द्वारा किया गया है…


🚩विश्व की सबसे प्राचीन सभ्यता भारत में ही मिली है। संसार का सबसे पुराना इतिहास भी यहीं पर उपलब्ध है। हमारे ऋषियों ने उच्छृंखल यूरोपियों के जंगली पूर्वजों को मनुष्यत्व एवं सामाजिक परिवेश प्रदान किया, इस बात के लाखों ऐतिहासिक प्रमाण आज भी उपलब्ध हैं।


🚩यूनान के प्राचीन इतिहास का दावा है कि भारतवासी वहाँ जाकर बसे तथा वहाँ उन्होंने विद्या का खूब प्रचार किया। यूनान के विश्वप्रसिद्ध दर्शनशास्त्र का मूल भारतीय वेदान्त दर्शन ही है।


🚩यूनान के प्रसिद्ध विद्वान एरियन ने लिखा हैः ‘जो लोग भारत से आकर यहाँ बसे थे, वे कैसे थे? वे देवताओं के वंशज थे, उनके पास विपुल सोना था। वे रेशम के दुशाले ओढ़ते थे और बहुमूल्य रत्नों के हार पहनते थे।’


🚩एरियन भारतीयों के ज्ञान, चरित्र एवं उज्ज्वल-तेजस्वी जीवन के कारण उन्हें देवताओं का वंशज कहता है। यहाँ पर उसने भारतीयों के आध्यात्मिक एवं भौतिक विकास को स्पष्ट किया है।


🚩विश्व का आदिग्रंथ ‘ऋग्वेद’ हमारे ऋषियों की ही देन है। संसार की जिस अनादिकालीन व्यवस्था को आज के बुद्धिहीन लोग संप्रदाय की दृष्टि से देखते हैं, उसी व्यवस्था से अध्यात्म का उदय हुआ है। विशुद्ध अध्यात्म विद्या के द्वारा भगवद्प्राप्ति का मार्ग इसी ने बताया जबकि यूरोप और अरब में धर्म के नाम पर हिंसा, लूट, बलात्कार जैसे पाशविक कृत्यों को ही बढ़ावा मिला, यह बात उनके इतिहास एवं धर्मग्रंथों से स्पष्ट हो जाती है।


🚩सैमुअल जानसन के अनुसार, ‘हिन्दू लोग धार्मिक, प्रसन्नचित्त, न्यायप्रिय, सत्यभाषी, दयालु, कृतज्ञ, ईश्वरभक्त तथा भावनाशील होते हैं। ये विशेषताएँ उन्हें सांस्कृतिक विरासत के रूप में मिली हैं।’


🚩यही तो है वह आदर्श जीवनशैली जिसने समस्त संसार को सभ्य बनाया और आज भी विलक्षण आत्ममहिमा की ओर दृष्टि, जीते जी जीवनमुक्ति, शरीर बदलने व जीवन बदलने पर भी अबदल आत्मा की प्राप्ति तथा ऊँचे शाश्वत मूल्यों को बनाये रखने की व्यवस्था इसमें विराजमान है। यदि हिन्दू समाज में कहीं पर इन गुणों का अभाव भी है तो उसका एकमात्र कारण है- धर्मनिरपेक्षता के भूत का कुप्रभाव। जब इस आदर्श सभ्यता को साम्प्रदायिकता का नाम दिया जाने लगा तथा कमजोर मन-बुद्धिवाले लोग इससे सहमत होने लगे तभी इन आदर्शों की हिन्दू समाज में कमी होने लगी और पश्चिमी पशुता ने अपने पैर जमा लिये। यह एक ऐतिहासिक सत्य है कि अन्य किसी भी मत-पंथ के अस्त होने से विश्वमानव की इतनी दुर्गति नहीं हुई जितनी हिन्दू धर्म की आदर्श जीवन-पद्धति को छोड़ देने से हुई।


🚩मोहम्मद साहब से 156 वर्ष पूर्व हुए अरब के जिर्रहम बिन्तोई नामक प्रसिद्ध कवि की एक कविता इस बात का ऐतिहासिक प्रमाण है। भारतीय इतिहास के अनुसार भारत के सम्राट विक्रमादित्य ने सम्पूर्ण अरब को जीतकर अपने साम्राज्य में मिलाया था। सम्राट विक्रमादित्य के शासन से पूर्व और उसके बाद की स्थिति का वर्णन हम वहाँ के विख्यात कवि की रचना में ही देखें तो अच्छा है। अरबी भाषा में लिखी उस कविता का अर्थ इस प्रकार हैः


🚩’वे अत्यन्त भाग्यशाली लोग हैं जो सम्राट विक्रमादित्य के शासनकाल में जन्मे। अपनी प्रजा के कल्याण में रत वह एक कर्तव्यनिष्ठ, दयालु एवं नेक राजा था। किन्तु उस समय खुदा को भूले हुए हम लोग (अरबवासी) इन्द्रिय विषय-वासनाओं में डूबे हुए थे, षड्यंत्र और अत्याचार करना खूब प्रचलित था। हमारे देश को अज्ञान के अंधकार ने घेर रखा था। …अपने ही अज्ञान के कारण हम शांतिपूर्ण और व्यवस्थित जीवन से भटक गये थे। किन्तु शिक्षा का वर्त्तमान ऊषाकाल एवं सुखद सूर्यप्रकाश उस नेक चरित्र सम्राट विक्रम की कृपालुता का परिणाम है। उसका दयामय जीवन विदेशी होने पर भी हमारी उपेक्षा नहीं कर पाया। उसने अपना पवित्र धर्म हम लोगों में फैलाया (धर्म का प्रचार किया धर्मान्तरण नहीं)। उसने अपने देश से विद्वान लोग भेजे जिनकी प्रतिभा सूर्य के प्रकाश सदृश हमारे देश में चमकी। उन विद्वान और दूरद्रष्टा लोगों की दयालुता एवं कृपा से हम फिर एक बार खुदा के अस्तित्व को अनुभव करने लगे और सत्य के मार्ग पर चलने लगे। वे हमें शिक्षा देने के लिए महाराज विक्रमादित्य के आदेश पर ही यहाँ आये थे।’

(संदर्भः भारतीय इतिहास की भयंकर भूलें, पी.एन.ओक)


🚩सम्राट विक्रमादित्य के शासन ने अरब की कायापलट कर दी; हिंसा, षड्यंत्र एवं अत्याचारों की धरा पर स्वर्ग लाकर रख दिया परंतु अरब से आये मुस्लिम शासकों ने भारत में क्या काम किया? अंग्रेजों ने भारत में आकर यहाँ की जनता के साथ कैसा व्यवहार किया? यदि पत्थरदिल व्यक्ति भी उस इतिहास को पढ़े तो वह भी पीड़ा से तड़प उठेगा।


🚩बस, यही तो अंतर है हिन्दुत्व तथा अन्य सम्प्रदायों में। इतना बड़ा अंतर होने पर भी हिन्दुत्व को अन्य सम्प्रदायों के साथ रखा जाना बहुत बड़ी मूर्खता है।

भारतीय संस्कृति के प्रति विश्वभर के महान विद्वान की अगाध श्रद्धा अकारण नहीं रही है। इस संस्कृति की उस आदर्श आचार संहिता ने समस्त वसुधा को आध्यात्मिक एवं भौतिक उन्नति से पूर्ण किया, जिसे हिन्दुत्व के नाम से जाना जाता है।


🚩हिन्दू धर्म का यह पूरा वर्णन नहीं है, इससे भी कई गुणा ज्यादा महिमा है क्योंकि हिन्दू धर्म सनातन धर्म है इसके बारे में संसार की कोई कलम पूरा वर्णन नहीं कर सकती। आखिर में हिन्दू धर्म का श्लोक लिखकर विराम देते हैं-


🚩सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया,

सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दु:खभाग भवेत्।

ॐ शांतिः शांतिः शांतिः।।।


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सनातनी विरोधियों को कानून-पुलिस कुछ नहीं करेगी, हिन्दुओं को ही ये कार्य करना होगा....

08 September 2023


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🚩अब तक आपने ये खबर पढ़ ली ही होगी कि तमिलनाडु के DMK नेता उदयनिधि स्टालिन ने सनातन धर्म को खत्म करने की बात की है। उन्होंने इसे डेंगू-मलेरिया करार दिया। उदयनिधि स्टालिन DMK के प्रथम परिवार से आते हैं। उनके दादा करुणानिधि 1969-2011 के बीच 5 बार राज्य के मुख्यमंत्री रहे। DMK की स्थापना की। आज उदय के पिता और करुणानिधि के बेटे MK स्टालिन राज्य के मुख्यमंत्री हैं। उस सरकार में उदयनिधि युवा एवं खेल मामलों के मंत्री हैं। साथ ही वो DMK की यूथ विंग के सेक्रेटरी भी हैं। अभिनेता भी रहे हैं, अब फिल्म निर्माता हैं।


🚩कुल मिला कर सीधे शब्दों में कहें तो उदयनिधि स्टालिन DMK का भविष्य हैं, 71 वर्ष के हो चुके उनके पिता उन्हें इसके लिए तैयार भी कर रहे हैं। करुणानिधि का साम्राज्य लंबा-चौड़ा है। 50 वर्षों से भी अधिक समय में उन्होंने अपने परिवार को राजनीति से लेकर उद्योग तक में अच्छी तरह सेट किया था। परिवार के लोग सांसद-विधायक से लेकर मुख्यमंत्री और केंद्रीय मंत्री तक रहे हैं। तमिलनाडु का ‘सन ग्रुप’ भी इसी परिवार का है। इसके मालिक दयानिधि मारन, करुणानिधि के भांजे के बेटे हैं।


🚩अगर कोई बड़ा से बड़ा नेता भी इस्लाम या ईसाई मजहब को लेकर कोई बयान दे दे, तो उसे निकालने में कोई भी पार्टी देती नहीं करेगी। लेकिन, इन पार्टियों में सुप्रीमो परिवार के लोग भी हिन्दू धर्म को खुलेआम गालियाँ बकते हैं क्योंकि यही उनके लिए सॉफ्ट टारगेट है और अपने वोट बैंक को एकजुट करने का तरीका भी। अगर दंगे भड़क जाएँ, तो ये नेता उस पर अपनी सियासत की रोटियाँ सेंकेंगे। इसीलिए, हिंसा भी कोई रास्ता नहीं है। हिंसा का रास्ता तो उनका है जिनके खौफ के कारण उनकी जरा सी भी नाराज़गी नहीं मोल ले सकते।


🚩तमिलनाडु की हिन्दू विरोधी द्रविड़ राजनीति का भविष्य उदयनिधि स्टालिन


🚩अब वापस आते हैं उदयनिधि स्टालिन के बयान पर। ये हो सकता है कि उनके बयान को पहली बार राष्ट्रीय चर्चा मिल रही हो, लेकिन द्रविड़ नेताओं द्वारा हिन्दू धर्म को लेकर इस तरह की बयानबाजी नई नहीं है। तमिलनाडु में पेरियार और अन्नादुरई को द्रविड़ राजनीति का जनक माना जाता है। ब्राह्मणों को गाली देकर खुद को लोकप्रिय बनाने वाले पेरियार को भारत की आज़ादी भी पसंद नहीं थी, क्योंकि उसका मानना था कि अंग्रेज ब्राह्मण-बनियों के साथ में सत्ता सौंप कर जा रहे हैं। तभी उसके अनुयायियों ने 15 अगस्त, 1947 को ‘शोक दिवस’ मनाया था।


🚩इतना ही नहीं, उसने दक्षिण भारत को अलग देश की मान्यता देने के लिए भारत को खंडित कर ‘द्रविड़नाडु’ बनाए जाने की माँग भी की थी। वहीं तमिल सिनेमा को पहली बार राजनीतिक प्रोपेगंडा के रूप में इस्तेमाल करने वाले अन्नादुरई भी पेरियार के ही चेले थे, लेकिन अलग देश के मुद्दे पर उनकी अपने ही मेंटर से ठन गई थी। वो तमिलनाडु के सीएम बनने वाले पहले द्रविड़ नेता थे। उनके नाम पर ही अभिनेता MGR ने AIADMK बनाई। द्रविड़ राजनीति का एक अहम हिस्सा हिन्दू विरोध बन गया।


🚩तमिलनाडु में DMK और कॉन्ग्रेस एक साथ मिल कर सरकार चला रही हैं। नए विपक्षी गठबंधन I.N.D.I.A. में भी DMK सुप्रीमो एमके स्टालिन को कोऑर्डिनेशन कमिटी में रखा गया है। नीतीश कुमार जब विपक्षी एकता की पहल कर रहे थे, तब वो चेन्नई भी गए थे उनसे मिलने। इसी तरह उनके जन्मदिन के कार्यक्रम में भोज खाने के लिए बिहार के उप-मुख्यमंत्री व राजद नेता लालू यादव भी मौजूद थे। कॉन्ग्रेस पार्टी ने उदयनिधि स्टालिन के बयान की कोई निंदा नहीं की है। शायद कॉन्ग्रेस की भी यही रणनीति हो।


🚩सनातन धर्म को लेकर मल्लिकार्जुन खड़गे भी कर चुके हैं गलतबयानी


🚩इसकी आशंका इसीलिए भी व्यक्ति की जा सकती है, क्योंकि पार्टी में मल्लिकार्जुन खड़गे को राष्ट्रीय अध्यक्ष की जिम्मेदारी दी गई। खड़गे का एक बयान देखिए, “…और ऐसे मोदीजी को और शक्ति मिलेगी देश में, तो समझो फिर इस देश में सनातन धर्म और RSS की हुकूमत आएगी।” उन्होंने 2018 में कर्नाटक विधानसभा चुनाव के दौरान ये बयान दिया था। मल्लिकार्जुन खड़गे और उनके मंत्री बेटे प्रियांक खुद को बौद्ध धर्म का अनुयायी बताते हैं। खुद को बीआर आंबेडकर का फॉलोवर बताते हैं।


🚩वैसे तो बौद्ध धर्म सनातन का ही एक अंग है, लेकिन आजकल एक ‘नवबौद्धों’ की टोली सामने आई है जो हिन्दू धर्म को गाली देने को ही बौद्ध धर्म मानती है। जबकि रामायण से लेकर हिन्दू पुराणों की अन्य कथाएँ भी बौद्ध धर्म में अलग-अलग रूपों में मिल जाती हैं। मलिकार्जुन खड़गे को इन्हीं ‘नवबौद्धों’ में गिना जा सकता है। खुद राहुल गाँधी के सोशल मीडिया हैंडलों को देख लीजिए, वहाँ आने वाली रामनवमी-जन्माष्टमी की शुभकामनाओं में श्रीराम-श्रीकृष्ण की तस्वीर रहती ही नहीं है। ऐसे में एक हिन्दू विरोधी को पार्टी का कमान देना आश्चर्यजनक नहीं था।


🚩वहीं उदयनिधि स्टालिन की बात करें तो खुद को नास्तिक बताते रहे हैं, लेकिन दिसंबर 2022 में उन्होंने खुद को न सिर्फ ‘गर्वित ईसाई’ करार दिया था बल्कि ये तक कहा था कि संघी ये जान कर जलेंगे। अब वो सनातन धर्म के खात्मे के मंशे से होने वाले कार्यक्रमों में सनातन धर्म को भला-बुरा कह रहे हैं। उनकी पत्नी कीरुतिगा ईसाई हैं। 2020 में उनकी बेटी की तस्वीर भगवान गणेश की प्रतिमा के साथ आ गई थी, जिसके बाद उदयनिधि स्टालिन को सोशल मीडिया पर सफाई देनी पड़ी थी कि वो और उनकी पत्नी नास्तिक हैं।


🚩सोचिए, विशाल संरचनाओं और समृद्ध कलाकृतियों के लिए जाने जाने वाले तमिलनाडु में हिन्दू विरोध की भावना कैसे कूट-कूट कर भर दी गई है। वही तमिलनाडु, जहाँ का तंजावुर मंदिर 80 टन के पत्थर वाले शिखर के कारण लोकप्रिय है। जहाँ रामेश्वरम में श्रीराम ने शिव की पूजा की। जहाँ मीनाक्षी मंदिर देवी के सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक है, जहाँ आदि कुम्बेश्वरर मंदिर चोल साम्राज्य की महिमा की याद दिलाता है। वही तमिलनाडु, जहाँ का राजगोपालस्वामी मंदिर वैष्णव पंथ का एक अहम स्थल के रूप में जाना जाता रहा है।


🚩वो तमिलनाडु, जहाँ चल-पंड्या-पल्लव-चेरा राजाओं ने एक से बढ़ कर एक मंदिर बनवाए और शिव, विष्णु, देवी को अपना इष्ट माना – आखिर वहाँ की स्थिति ऐसी कैसे हो गई? क्या एक प्रकार की साजिश चल रही है कि पूरे देश में लोग हिन्दुओं से घृणा करने लगें, सनातन धर्म को गालियाँ बकने लगे? क्या देश की राजनीति में ये एक ‘नया नॉर्मल’ है, स्थापित किया जा रहा है? अब तक तो यही लगता है। सिर्फ मल्लिकार्जुन खड़गे और उदयनिधि स्टालिन ही नहीं, कुछ और नेताओं को भी देख लीजिए।


🚩सनातन धर्म को गाली देने वाले बयान अब ‘न्यू नॉर्मल’

हाल के दिनों में सबसे ज़्यादा चर्चा में रहने वाले नेताओं में समाजवादी पार्टी के स्वामी प्रसाद मौर्य भी हैं, जिन्होंने तुलसीदास और रामचरितमानस के लिए बार-बार विवादित शब्दावली का इस्तेमाल किया। अब उन्होंने कह दिया है कि हिन्दू नाम का कोई धर्म ही नहीं है, ये ब्राह्मण धर्म है। उन्होंने हिन्दू धर्म को धोखा बता दिया। इसी तरह, बिहार के शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर यादव जो प्रोफेसर होने के बावजूद विधानसभा में शब्दों को ठीक से नहीं बोल पाते, उन्होंने विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में छात्रों के मन में रामचरितमानस को लेकर ज़हर भरा।


🚩विपक्षी बैठक में शामिल होने मुंबई पहुँचीं पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने तिलक लगवाने से इनकार कर दिया। कुछ दिनों पहले उन्होंने नज़रुल इस्लाम को महाभारत का लेखक बताया था। जैसा कि आचार्य प्रमोद कृष्णम् ने कहा है, सच में ऐसा है कि नेताओं में खुद को हिन्दू विरोधी दिखाने की एक होड़ सी लग गई है। शायद विपक्षी गठबंधन का नेता बनने के लिए यही योग्यता तय की गई हो। इसी पैमाने पर नापा जाए सबको। अब देखना ये है कि हिन्दू विरोध का ये क्रम कहाँ जाकर रुकता है।


🚩बात बस इतनी सी है कि सनातन धर्म को लेकर जो-जो बातें कही गईं, इस्लाम या ईसाई के लिए मुँह तक खोल देने पर ईशनिंदा का आरोप लग जाता है। भाजपा नेता नूपुर शर्मा ने उद्धरण भर दे दिया तो राजस्थान के उदयपुर में कन्हैया लाल तेली और महाराष्ट्र के अमरावती में उमेश कोल्हे का ‘सर तन से जुदा’ कर दिया गया। नूपुर शर्मा 1 वर्ष से भी अधिक समय से अपने घर में कैद हैं। पंजाब में ‘बेअदबी’ के आरोप में हत्याएँ हो चुकी हैं। बाइबिल के एक शब्द का कॉमेडी में जिक्र करते पर फराह खान, रवीना टंडन और भारती सिंह जैसी फ़िल्मी हस्तियों को वेटिकन के पादरी से मिल कर माफ़ी माँगनी पड़ी थी।


🚩हिन्दू धर्म की सहिष्णुता का बेजा फायदा उठाया जा रहा है। अगले साल के शुरुआत में राम मंदिर में पान प्रतिष्ठा होनी है और मंदिर का उद्घाटन होना है, ऐसे में देखना है कि नेता इसे किस स्तर तक ले जाते हैं। अब सब हिन्दुओं के ऊपर है। अगर राम मंदिर के लिए देश भर में वैसा माहौल बनता है कि विपक्षी नेता भी कोट के ऊपर जनेऊ पहनने को मजबूर हो जाएँ, तो शायद हो सकता है बयानबाजी का ये दायर थम जाए। लेकिन, उससे पहले ये ‘नया नॉर्मल’ है, इसकी आदत डाल लीजिए। बयानबाजी करने वालों का कद ऐसा है कि उनका कुछ नहीं बिगाड़ा जा सकता फ़िलहाल।


🚩कानून इसीलिए ऐसे नेताओं का कुछ नहीं बिगाड़ सकता क्योंकि हिन्दू धर्म को गाली देना न तो इसकी नज़र में कोई अपराध है और दूसरी बात ये कि इन नेताओं को वकीलों की फ़ौज करने में समय भी नहीं लगता। दूसरा कारण – पैसों और रसूख के मामले में ये इतने प्रभावी हैं कि इनके पीछे हजारों लोग हैं। इसीलिए, कानून-पुलिस नहीं, हिन्दुओं की सामूहिक एकता ही इनकी अप्रासंगिकता का कारण बन सकती है। जो इनके साथ हैं, वो तभी दूर होंगे जब उन्हें लगेगा कि इनकी करतूतें गलत हैं। वरना पुलिस को आदेश यही लोग देते हैं, इनका पुलिस क्या करेगी? - अनुपम कुमार सिंह


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Thursday, September 7, 2023

विश्व के अनेक देशों में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है जन्माष्टमी महापर्व......

07 September 2023 


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🚩भारत के प्रमुख त्योहारों में से एक जन्माष्टमी, सिर्फ भारत में ही नहीं दुनियाभर में मनाई जाती है। नटखट कन्हैया की लीलाओं के चर्चे सिर्फ भारत ही नहीं कई देशों में फैली हुई हैं। विश्व के कई देशों हिंदुओं के इस प्रमुख त्योहार को धूमधाम से मनाया जाता है। साथ ही कई जगह तो माखनचोर कान्हा के भव्य मंदिर भी मौजूद हैं।


🚩जन्माष्टमी पर्व को भगवान श्रीकृष्ण के अवतार के रूप में मनाया जाता है। यह पर्व पूर्ण आस्था एवं श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। जन्माष्टमी को भारत में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी पूरी आस्था व उल्लास से मनाते हैं।


🚩भारत समेत विश्व के कई देशों में कृष्ण भक्त भगवान श्री कृष्ण का जन्मदिन मनाते हैं। हालांकि आपको बता दें कि एक ऐसा भी मुस्लिम बहुल देश है,जहां जन्माष्टमी के दिन देश में अधिकारिक छुट्टी होती है। भारत के पड़ोसी देश बांग्लादेश में जन्माष्टमी के दिन नेशनल हॉलीडे होता है। कृष्ण जन्माष्टमी के दिन पुराने ढाका शहर के ढाकेश्वरी मंदिर में जन्माष्टमी बड़े धूम धाम से मनायी जाती है।


🚩ढाका में इस उत्सव की शुरुआत साल 1902 में हुई थी, लेकिन 1948 में ढाका पाकिस्तान का हिस्सा बनने के बाद इस पर प्रतिबंध लगा दिया गया। हालांकि जब बांग्लादेश पाकिस्तान से आजाद हुआ तो साल 1989 से एक बार फिर यह उत्सव मनाया जाने लगा।


🚩कैरेबियाई देशों में भी रहती है धूम । भारत के बाद जन्माष्टमी का सबसे बड़ा उत्सव कैरेबियाई राष्ट्रों में होता है। कैरेबियाई देश गुयाना, त्रिनानद एंड टोबागो, जमैका और सुरीनाम में जन्माष्टमी का बड़े पैमाने पर जश्न होता है।


🚩नेपाल:

नेपाल में जन्माष्टमी भारत की तरह ही मनाई जाती है। यहां काफी संख्या में लोग इसे मनाते हैं। 


🚩अमेरिका 

अमेरिका में भी जन्माष्टमी विशेष रूप में मनाई जाती है। यहां पर बीसवीं सदी के एक प्रसिद्ध गौडीय वैष्णव गुरु तथा धर्मप्रचारक श्रील भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद ने कृष्ण भक्ति का अनोखा माहौल बनाया था जो आज भी यहां पर देखने को मिलता है। अमेरिका में जन्माष्टमी के दिन सुबह से ही यहां पर कुछ खास मंदिरों में लोगों की भीड़ी होने लगती है। यहां पर यूरेपियन व एशियन लोग रंग बिरंगे कपड़ो को पहनकर जन्माष्टमी पर होने वाले कार्यक्रमों में भाग लेते हैं। भारत की तरह ही यहां भी आधी रात में जन्मोत्सव मनाया जता है और प्रसाद आदि वितरित होता है। प्रसाद में दूध से बने प्रोडक्ट बांटे जाते हैं।


🚩कनाडा:

कनाडा के टोरंटो में भी जन्माष्टमी पर काफी जोश दिखाई देता है। कनाडा में काफी संख्या में भारतीय लोग रहते हैं। जिससे यहां पर भी पूरे रीतिरिवाज के साथ यह त्योहार मनाया जाता है। लोग एक जगह पर इकट्ठा होते हैं। राधा कृष्ण के मंदिरों में लोग श्लोक आदि बोलकर पूजा करते हैं। इसके अलावा यहां पर मंदिरों में रातभर भक्ति से भरे कार्यक्रम आदि होते हैं। जिनमें डांस म्यूजिक आदि का बोलबाला होता है। इसके अलावा लोग घरों में भी इसका कृष्ण जन्म मनाया जाता है। इसके अलावा यहां पर आधी रात में प्रसाद वितरित किया जाता है।


🚩मलेशिया: 

मलेशिया में भी जन्माष्टमी का खास प्रभाव है। यहां पर मुस्लिम कम्यूनिटी होने के बाद भी इसका बड़ा महत्व है। यहां पर लगभग 2 करोड़ दक्षिण भारतीय लोग रहते हैं। जिससे यहां पर कृष्ण भक्ति का विंहगम दृश्य देखने को मिलता है। यहां पर इस त्योहार की चमक कई दिनों तक देखने को मिलती है। रात के समय जन्म मनाने के साथ आरती भजन आदि होते हैं। मंदिर में मौजूद भक्तों को प्रसाद आदि वितरित किया जाता है। प्रसाद में फल, मिठाई के साथ और भी कई स्पेशल चीजे वितरित की जाती हैं।


🚩 सिंगापुर:

जन्माष्टमी का असर सिंगापुर में भी दिखाई देता है। हालांकि यहां भी कई विभिन्न समुदाय और संस्कृति के लोग रहते हैं, लेकिन बावजूद इसके जन्माष्टमी का असर काफी शानदार है। यहां पर मनाए जाने वाले इस त्योहार में भारत की एक विशाल तस्वीर दिखाई है। यहां पर कृ्ष्णा जन्माष्टमी पर झांकी आदि सजाई जाती है। इसके अलावा यहां के मंदिरों में भव्य तरीके से कृष्ण जन्म मनाया जाता है। जन्म के समय मंत्र आदि जपे जाते हैं। इसके बाद आरती और जयकारे लगाए जाते हैं। यहां पर भारत की तरह ही त्योहार का समापन होता है। इस दौरान कई प्रतियोगिताएं भी आयोजित होती है।


🚩पैरिस


 🚩जन्माष्टमी के दिन इस शहर में स्थित राधा पैरिसीसवारा मंदिर में खूब धूमधाम से भगवान श्रीकृष्ण का जन्मदिन मनाया जाता है। यहां व्रत किए हुए भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करते लोग आपको दिख जाएंगे।


🚩न्यूज़ीलैंड 

न्यूज़ीलैंड ऑस्ट्रेलिया के पास स्थित देश है. 'सिटी ऑफ सेल्स' के नाम से मशहूर न्यूज़ीलैंड के शहर ऑकलैंड में भगवान श्रीकृष्ण और राधा का लोकप्रिय मंदिर स्थित है। जन्माष्टमी के दिन इसकी खूबसूरती देखते बनती है। इस दिन मध्यरात्रि में, मंदिर रोशनी, प्रार्थना और भक्ति संगीत के साथ उत्सव में रमा हुआ रहता है। न्यूजीलैंड में रहने वाले सबसे अधिक भारतीय ऑकलैंड शहर में ही रहते हैं।


🚩ऑस्ट्रेलिया में भी धूम-धाम से जन्माष्टमी पर्व मनाया जाता है ।


🚩निर्गुण, निराकार, माया को वश करने वाले, जीवमात्र के परम सुहृद प्रकट हुए, वह पावन दिन ‘जन्माष्टमी है ।


🚩भगवान श्री कृष्ण का साधु पुरुषों का उद्धार तथा दुष्कृत करनेवालों का विनाश करने के लिए अवतार होता है । तमाम परेशानियों के बीच रहकर भी श्रीकृष्ण जैसी मधुरता और चित्त की समता को बनाये रखने का संदेश जन्माष्टमी देती है ।


🚩श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव तब पूर्ण माना जायेगा जब हम उनके सिद्धांतों को जीवन में उतारेगें ।


🚩आज संकल्प करें कि ‘गीता के संदेश आत्मज्ञान के अमृत को हम जीवन मे लायेंगे और विश्व में भी इस का प्रचार करेंगे ।


🚩जन्माष्टमी का व्रत करने से 1000 एकादशी व्रत करने का फल मिलता है और 100 जन्मों के पाप नष्ट हो जाते है ।


🚩जन्माष्टमी की रात्रि को भगवान नाम के जप करने से मंत्र सिद्धि मिलती है।


🚩जप,तप,उपवास और भगवान के नाम का जप ,कीर्तन करके ऐसे पावन पर्व का लाभ सभी को लेना चाहिए। जय श्रीकृष्ण


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पृथ्वी पर अष्टमी को ही श्रीकृष्ण क्यों आए ? जन्माष्टमी व्रत से कितने फायदे होते है ? जानिए....

 06 September 2023

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🚩जब समाज में अव्यवस्था फैलने लगती है, सज्जन लोग पेट भरने में भी कठिनाइयों का सामना करते हैं और दुष्ट लोग शराब-कबाब उड़ाते हैं, कंस, चाणूर, मुष्टिक जैसे दुष्ट बढ़ जाते है और निर्दोष गोप-बाल जैसे लोग अधिक सताए जाते हैं, तब उन सताए जाने व शक्ति और भावना शक्ति उत्कट होती है और सताने वालों के दुष्कर्मों का फल देने के लिए भगवान का अवतार होता है ।

🚩जब-जब पृथ्वी पर पापियों का बोझ बढ़ जाता है, तब-तब पृथ्वी अपना बोझ उतारने के लिए भगवान की शरण में जाती है । कंस आदि दुष्टों के पापकर्म बढ़ जाने पर भी, पापकर्मों के भार से बोझिल पृथ्वी देवताओं के साथ भगवान के पास गई और उसने श्रीहरि से प्रार्थना की, तब भगवान ने कहाः “हे देवताओं ! पृथ्वी के साथ तुम भी आये हो, धरती के भार को हल्का करने की तुम्हारी भी इच्छा है, अतः जाओ, तुम भी वृन्दावन में जाकर गोप-ग्वालों के रूप में अवतरित हो मेरी लीला में सहयोगी बनो । मैं भी समय पाकर वसुदेव-देवकी के यहाँ अवतार लूँगा।”


🚩जन्माष्टमी व्रत से लाभ:-

जन्माष्टमी का व्रत ( 7 सितंबर) को करने से 1000 एकादशी व्रत करने का पुण्य प्राप्त होता है और उसके रोग, शोक, दूर हो जाते हैं।” धर्मराज सावित्री देवी को कहते हैं किः “जन्माष्टमी का व्रत सौ जन्मों के पापों से मुक्ति दिलाने वाला है ।” (ब्रह्मवैवर्त पुराण)

🚩अकाल मृत्यु व गर्भपात से करे रक्षा:-

ʹभविष्य पुराणʹ में लिखा है कि ʹजन्माष्टमी का व्रत अकाल मृत्यु नहीं होने देता है । जो जन्माष्टमी का व्रत करते हैं, उनके घर में गर्भपात नहीं होता । बच्चा ठीक से पेट में रह सकता है और ठीक समय पर बालक का जन्म होता है।ʹ ( स्त्रोत : संत श्री आशारामजी आश्रम द्वारा साहित्य से )

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Wednesday, September 6, 2023

सांसद की मांग देश का नाम इंडिया हटावो भारत रखों....

 05 to  September 2023


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🚩हमारे देश का नाम ' भारत' चक्रवर्ती सम्राट महाराज भरत के नाम पर पड़ा है किन्तु क्या आप यह जानते हैं कि ये भरत कौन थे? निश्चय ही आपका उत्तर होगा 'दुष्यन्त-शकुन्तला के पुत्र', लेकिन यह असत्य है। 

 

🚩यह बात सही है कि दुष्यन्त-शकुन्तला के पुत्र का नाम भी भरत था किन्तु इन भरत के नाम पर इस देश का नाम भरत नहीं रखा गया। इस देश का नाम भारत जिन चक्रवर्ती सम्राट महाराज भरत के नाम पर रखा गया वे ऋषभदेव-जयन्ती के पुत्र थे। ये वही ऋषभदेव हैं जिन्होंने जैन धर्म की नींव रखी। ऋषभदेव महाराज नाभि व मेरूदेवी के पुत्र थे। महाराज नाभि और मेरूदेवी की कोई सन्तान नहीं थी। महाराज नाभि ने पुत्र की कामना से एक यज्ञ किया जिसके फ़लस्वरूप उन्हें ऋषभदेव पुत्र रूप में प्राप्त हुए। 

 

🚩ऋषभदेव का विवाह देवराज इन्द्र की कन्या जयन्ती से हुआ। ऋषभदेव व जयन्ती के सौ पुत्र हुए जिनमें सबसे बड़े पुत्र का नाम 'भरत' था। भरत चक्रवर्ती सम्राट हुए। इन्हीं चक्रवर्ती सम्राट महाराज भरत के नाम पर इस देश का नाम 'भारत' पड़ा। इससे पूर्व इस देश का नाम 'अजनाभवर्ष' या 'अजनाभखण्ड' था क्योंकि महाराज नाभि का एक नाम 'अजनाभ' भी था। 


🚩अजनाभ वर्ष जम्बूद्वीप में स्थित था, जिसके स्वामी महाराज आग्नीध्र थे। आग्नीध्र स्वायम्भुव मनु के पुत्र प्रियव्रत के ज्येष्ठ पुत्र थे। प्रियवत समस्त भू-लोक के स्वामी थे। उनका विवाह प्रजापति विश्वकर्मा की पुत्री बर्हिष्मती से हुआ था। महाराज प्रियव्रत के दस पुत्र व एक कन्या थी। महाराज प्रियव्रत ने अपने सात पुत्रों को सप्त द्वीपों का स्वामी बनाया था, शेष तीन पुत्र बाल-ब्रह्मचारी थे। इनमें आग्नीध्र को जम्बूद्वीप का स्वामी बनाया गया था। श्रीमदभागवत (५/७/३) में कहा है कि-

'अजनाभं नामैतदवर्षभारतमिति यत आरभ्य व्यपदिशन्ति।'  

 

🚩इस बात के पर्याप्त प्रमाण हमें शिलालेख एवं अन्य धर्मंग्रन्थों में भी मिलते हैं। इसका उल्लेख अग्निपुराण, मार्कण्डेय पुराण व भक्तमाल आदि ग्रन्थों में भी मिलता है। अत: दुष्यन्त-शकुन्तला के पुत्र भरत के नाम पर इस देश का नाम 'भारत' होना केवल एक जनश्रुति है सत्य नहीं।


🚩सांसद की मांग इंडिया नही भारत रखिए


🚩राज्यसभा सांसद नरेश बंसल ने माँग की है कि देश का नाम सिर्फ ‘भारत’ रखा जाए और ‘इंडिया’ को हटा दिया जाए। उन्होंने कहा कि संविधान के अनुच्छेद-1 को संशोधित कर के इस पुण्य पावन धरा का नाम केवल ‘भारत’ रखा जाना चाहिए। 


🚩उन्होंने याद दिलाया कि विगत स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले की प्राचीर से राष्ट्र को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद कहा था कि देश को दासता के चिह्नों से मुक्ति दिलाए जाने की आवश्यकता है। बता दें कि प्रधानमंत्री ने ‘5 प्रण’ की बात की थी, जिसमें गुलामी की मानसिकता से देश को मुक्ति दिलाने की बात कही गई थी। नरेश बंसल ने कहा कि औपनिवेशिक सोच से मुक्ति दिलाने की ज़रूरत है और परंपरागत भारतीय मूल्यों और सोच को लागू करने की आवश्यकता है।


🚩नरेश बंसल ने कहा, “आज़ादी के अमृत महोत्सव से देश को एक नई ऊर्जा और प्रेरणा मिली है। गुजरे हुए कल को हम पीछे छोड़ रहे हैं और आने वाले भविष्य में रंग भर रहे हैं। अंग्रेजों के जमाने से चले आ रहे कई कानूनों को बदला गया है। भारतीय बजट की तारीख़ भी बदली गई है, जो अब तक अंग्रेजी नियमों का अनुसरण कर रहा था। नई शिक्षा नीति के तहत युवाओं को विदेशी भाषा से आज़ाद किया जा रहा है। इंडिया गेट पर जॉर्ज पंचम की मूर्ति हटा कर नेताजी बोस की लगाई गई।”


🚩नरेश बंसल ने कहा कि अंग्रेजों ने 250 वर्षों तक भारत पर राज़ किया और देश का नाम बदल कर ‘इंडिया’ रख दिया। उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदानों के कारण राष्ट्र को स्वतंत्रता मिली, और 1950 में भारत का संविधान लिखा तब, तब भी इसे ‘इंडिया दैट इज भारत’ कहा गया। उन्होंने कहा कि अब इसे हटा कर ‘भारत’ करने का समय आ गया है। उन्होंने कहा कि महाराज भरत ने संपूर्ण देश को विस्तार किया और उनके नाम पस ये देश भारत कहलाया।


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