Saturday, November 25, 2023

मिडिया ने इन तीन बड़ी खबरों को जनता को क्यों नहीं बताया ?

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26 November 2023

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🚩इलेक्ट्रॉनिक व प्रिंट मीडिया की समाज में काफी महत्त्वपूर्ण भूमिका है । मीडिया को लोकतांत्रिक व्यवस्था का चौथा स्तंभ भी कहा गया है क्योंकि इसकी जिम्मेदारी देश और लोगों की समस्याओं को सामने लाने के साथ-साथ सरकार के कामकाज पर नजर रखना भी है, लेकिन आज पैसे और टीआरपी की अंधी दौड़ में एक तरफा झूठी खबरों को दिखाकर अपनी विश्वसनीयता खो रही है। इसके कारण आज समाज का हर वर्ग मीडिया की आलोचना जरूर करता है।


🚩दिपावली पर ऐसी तीन खबरे है जो जनता को बताना इसलिए जरूरी था की मिडिया ने उनके खिलाफ महीनो तक झूठी खबरें चलाई थी जब उनके कार्य की प्रशंसा वाली खबरें सामने होते हुए भी जनता को नही बताई इससे साफ होता है की मिडिया झूठी खबरें ही परोसती है? अथवा पैसा के लालच वाली ही खबरे चलाती है? अथवा केवल टीआरपी वाली खबरें ही चलाती है?


🚩आइए आज आपको तीन बड़ी खबरें बताते है जो मीडिया ने कही नही दिखाई।


🚩पहली खबर


🚩दिपावली पर्व पर सभी देशवासी अपने परिजनों के साथ दिवाली की खुशियां मना रहे थे लेकिन कुछ ऐसे लोग थे जो गरीब और आदिवासियों के बीच जाकर दीवाली मना रहे थे उनके घर जाकर मिठाई, बर्तन, कपड़े, पैसे और जीवन उपयोगी सामग्री का वितरण कर रहे थे और यह एक जगह पर नही लेकिन देश के सैंकड़ों जगह पर ये महान सेवा कार्य चल रहा था और ये कार्य ओर कोई नही बल्कि हिन्दू संत श्री आशारामजी बापू के संस्था और उनके अनुयायी कर रहे थे जो जेल जाने से पहले संत आशाराम बापू 60 साल तक यही सेवाकार्य कर रहे थे। देशभर में इस सेवाकार्य में लाखों गरीब और आदिवासी लाभाविन्त हुए लेकिन मीडिया ने इस खबर को कही नही दिखाई।


🚩दुसरी खबर


🚩दीपावली पर्व पर संत श्री आशारामजी आश्रम मोटेरा अहमदाबाद में 12 नवंबर से 18 नवंबर 2023 तक बच्चों को दिव्य संस्कार देने के लिए 7 दिवसीय एक विद्यार्थी शिविर का आयोजन किया था; उसमें हजारों बच्चे आए थे और उन बच्चो को योग, प्राणायाम, ध्यान, माता सरस्वती के मंत्रजप, सात्विक भोजन करवाया जाता है और उनको उच्च संस्कार दिए जाते हैं जिससे राष्ट्र और बच्चों का भविष्य उज्ज्वल बने। लेकिन इस खबर को भी नही दिखाया गया।


🚩तीसरी खबर


🚩संत श्री आशारामजी आश्रम द्वारा बताया गया कि बापू आसारामजी के मार्गदर्शन के अनुसार आश्रम, समितियाँ, युवा सेवा संघ, महिला मंडल एवं उनके असंख्य शिष्यों द्वारा उनके निर्देशानुसार गोपाष्टमी पर्व पर हर साल देशभर में विशाल स्तर पर मनाया जाता है ।


🚩इस साल भी आश्रम, समितियों, युवा सेवा संघ, महिला उत्थान मंडल एवं बापू आसारामजी के असंख्य शिष्यों द्वारा गोपाष्टमी पर्व पर गौशालाओं के अलावा गाँव-गाँव जाकर गायों का पूजन करके पुष्टिवर्धक लड्डू खिलाया गया और अनुदान दिया गया और गौ-रक्षा यात्राएँ निकालकर लोगों को गौ-रक्षा एवं गौसेवा के लिए प्रेरित किया गया ।


🚩बापू आसारामजी आश्रम द्वारा बताया गया कि बापू आसारामजी ने कत्लखाने जाती हजारों गायों को बचाकर भारतभर में अनेक गौशालाएं खोली हैं और वहां हजारों ऐसी गायें हैं जो दूध नहीं देती हैं फिर भी उनका पालन-पोषण व्‍यवस्थित ढंग से किया जाता है ।


🚩मीडिया ने संत आशाराम बापू के खिलाफ अनेक झूठी कहानियां बनाकर दिखाई, लेकिन गरीबों, आदिवासियों, बच्चों और गौमाता के लिए इतने बड़े सेवाकार्य चल हुए लेकिन उससे संबंधित एक लाइन भी मीडिया में नहीं दिखाई दी इसलिए जनता मीडिया को बिकाऊ मीडिया कहने लगी है।


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Friday, November 24, 2023

सिख के नौवें गुरु ने हिंदू धर्म बचाने के लिए जो कार्य किया कभी नही भूल पाएंगे

25 November 2023

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🚩गुरु तेग बहादुर और औरंगजेब के बीच की तकरार निजी ना होकर धार्मिक थी, जिसकी शुरुआत तब हुई जब औरंगजेब लगातार कश्मीरी हिंदुओं के इस्लाम में धर्मांतरण के लिए नरसंहार कर रहा था और कश्मीरी हिंदुओं का समूह अपनी रक्षा के लिए गुरु तेग बहादुर जी से मिलने पहुँचा था।


🚩90 के दशक में कश्मीरी हिंदुओं पर अनेक अत्याचार हुए। धर्मान्धों के आतंक से ऋषि कश्यप की धरती अपवित्र हुई थी, लेकिन यह पहली बार नही था जब धरती के स्वर्ग कहलाने वाले कश्मीर में ऐसा हो रहा था।


🚩मुग़ल शासक औरंगजेब के शासनकाल के दौरान कश्मीरी हिंदुओं को जबरदस्ती मुसलमान बनाया जा रहा था।


🚩जो कश्मीरी हिंदु मना करता उसे मार दिया जाता, महिलाओं का बलात्कार कर दिया जाता, घरों को आग लगा दिया जाता था। तब एक व्यक्ति थे, जिन्होंने इसका कड़ा विरोध किया था, वो थे "त्याग मल।"


🚩यह त्याग मल और कोई नहीं बल्कि सिख धर्म के नौवें गुरु गुरु तेग बहादुर जी थे। तब गुरु तेग बहादुर जी ने अपना शीश कटा लिया था लेकिन शीश कभी झुकने नहीं दिया।


🚩गुरु तेग बहादुर का जन्म 1621 में अमृतसर में हुआ था। मात्र 14 वर्ष की आयु में करतारपुर की जंग के दौरान मुग़लों के खिलाफ अदम्य साहस दिखाने की वजह से उन्हें 'तेग बहादुर' का नाम मिला था। 1664 में वो सिखों के नौवें गुरु के रूप में चुने गए।


🚩गुरु तेग बहादुर और औरंगजेब के बीच की तकरार निजी ना होकर धार्मिक थी, जिसकी शुरुआत तब हुई जब औरंगजेब लगातार कश्मीरी हिंदुओं के इस्लाम में धर्मांतरण के लिए नरसंहार कर रहा था और कश्मीरी हिंदुओं का समूह अपनी रक्षा के लिए गुरु तेग बहादुर जी से मिलने पहुँचा था।


🚩गुरु तेग बहादुर जी ने उन्हें अपनी गिहबानी में ले लिया। गुरु तेग बहादुर ने कश्मीरी हिंदुओं के लिए पूरा सुरक्षा चक्र बनाया था। इसी बात से औरंगजेब तिलमिला उठा। गुरु तेग बहादुर अपने 3 शिष्यों के साथ जुलाई 1675 में आनंदपुर से दिल्ली जा रहे थे, तभी उनके शिष्यों सहित उन्हें मुग़ल सेना ने गिरफ्तार कर लिया था।


🚩गिरफ्तार करने के बाद उन्हें 4 महीनों तक अलग-अलग कारावास में बंदी बनाकर रखा, जिसके बाद 2 नवंबर 1675 में उन्हें दिल्ली में औरंगजेब के समक्ष लाया गया। औरंगजेब ने उन्हें भरी सभा में लोभ-लालच देकर मुसलमान बनने को कहा जिसे गुरु तेग बहादुर ने अपने साहस का परिचय देते हुए साफ ठुकरा दिया।


🚩औरंगजेब ने इसके बाद उन्हें "इस्लाम और मौत" में से एक को चुनने को कहा जिसके बाद भी गुरु तेग़ बहादुर अपने निर्णय से टस से मस नहीं हुए।


🚩इन सब के बाद गुरु तेग बहादुर को डराने के लिए उनके 3 कश्मीरी हिंदु शिष्यों के सर धड़ से अलग कर दिए गए, गिरफ्तार किए गए भाई मति दास के शरीर के दो टुकड़े कर दिए गए, दूसरे भाई दयाल दास को खौलते तेल की कढ़ाई में जिंदा फेंकवा दिया वहीं तीसरे भाई सति दास को ज़िंदा जला दिया गया। इन सब के बाद भी गुरु तेग बहादुर ने इस्लाम नहीं स्वीकार किया।


🚩जब यह सब देखने के बाद भी गुरु तेग बहादुर ने इस्लाम नहीं स्वीकार किया तो औरंगजेब ने 24 नवंबर को उनका सर कलम करने का आदेश दिया। दिल्ली में ही मुग़ल शासक औरंगजेब के आदेश पर गुरु तेग बहादुर के सर को कलम किया गया।


🚩"हिन्द दी चादर" के नाम से प्रख्यात गुरु तेग बहादुर जी का शीश जिस जगह गिरा था, आज वहाँ उनके नाम पर "शीशगंज गुरुद्वारा" के नाम से गुरुद्वारा स्थित है।


🚩सनातन धर्म की रक्षा के लिए, अपने कश्मीरी हिंदु भाइयों के लिए बलिदान देने वाले वो शख़्स जो करतारपुर के संघर्ष के बाद त्याग मल से तेग बहादुर बने, ऐसे ही अनगिनत बलिदानों से आज भारत टिका हुआ है।


🚩भारत की मिट्टी को आक्रांताओं को से बचाने के लिए ना जाने कितनों ने अपने रक्त से इसको सींचा है। इसका सम्मान कीजिए, इस पर गर्व कीजिए कि आपके पूर्वजों ने किसी आक्रान्ता के सामने गर्दन नहीं झुकाया, किसी आक्रांता के सामने आपके लोगों ने मरना स्वीकार किया लेकिन खुद को बेचना नहीं।


🚩गुरु श्री तेग बहादुर जी के बलिदान पर देश और इस देश के सभी लोग उनके सदैव ऋणी रहेंगे ।


🚩सनातन धर्म की रक्षा के लिए भारत के महान वीर योद्धाओ ने अपने जीवन में अनेकों संघर्ष किए , यहां तक कि अपने जीवन की राष्ट्र की रक्षा के लिए आहुति भी दी,ऐसे महान वीर योद्धाओ को हमे याद रखना चाहिए और हमे भी धर्म और देश की रक्षा संघर्ष करना चाहिए।


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Thursday, November 23, 2023

चांदी के वर्क वाली मिठाई या अन्य मिठाई एवं चॉकलेट खाने से पहले सच जान ले.......

24 November 2023

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🚩हिन्दू त्यौहार में मिठाईयां खूब खाई जाती हैं, उसमें भी मेहमानों को आकर्षित करने के लिए चांदी के वर्क वाली मिठाईयां ख़रीद के खाई जाती हैं और खिलाई जाती हैं।


🚩देशभर में दीपावली की धूम मची है, उसमे भी वर्क वाली मिठाईयों का खूब उपयोग किया जा रहा है, लेकिन ये मिठाई खाने जैसी है कि नहीं, क्या भगवान को वर्क वाली मिठाई का भोग लगाना उचित है या नहीं, ये जानना बेहद जरूरी है।

कुछ साल पहले मेनका गांधी ने मीडिया को बताया कि मिठाई व पान ही नहीं सेब जैसे फल को आकर्षक बनाने के लिए उनके ऊपर जो चांदी का वर्क लगाया जाता है वह मांसाहार की श्रेणी में आता है।


🚩उनका कहना है कि यह वर्क जिंदा बैलों का कत्ल कर उनकी आंत के सहारे तैयार किया जाता है । वर्क लगी मिठाइयों के बढ़ते आकर्षण के कारण प्रति वर्ष हजारों गौवंशीय पशुओं की हत्या की जाती है।


🚩उन्होंने बताया कि गौवंशीय पशु की आंत से बनी वर्क में चांदी, एल्यूमिनियम अथवा उस जैसी धातु का बड़ा टुकड़ा डाला जाता है । फिर उसे लकड़ी के हथौड़े से पीट कर पतला करके आकार दिया जाता है ।


🚩बैल की आंत पीटते रहने से फटती नहीं है । चांदी के वर्क के चक्कर में कुछ लोग एल्यूमिनियम भी बेच देते हैं।


🚩मेनका गाँधी का कहना है कि इस कारोबार से जुड़े लोग प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से पशु हत्या, गाय की हत्या में भी संलिप्त कहे जा सकते हैं । 'पांच साल पहले इंडियन एयरलाइंस ने यह महसूस किया कि चांदी वर्क मांसाहार है, और अपने कैटरर को विमान में परोसी जाने वाली मिठाइयों पर वर्क न लगाने के निर्देश दिए थे । साथ ही पत्र भेज कर बैल की आंतों के सहारे तैयार कराए जाने वाले वर्क पर रोक लगाने को कहा था ।



🚩चॉकलेट का अधिक सेवनः हृदयरोग को आमंत्रण


🚩क्या आप जानते हैं कि चॉकलेट में कई ऐसी चीजें भी हैं जो शरीर को धीरे-धीरे रोगी बना सकती है ? प्राप्त जानकारी के अनुसार चॉकलेट का सेवन मधुमेह एवं हृदयरोग को उत्पन्न होने में सहाय करता है तथा शारीरिक चुस्ती को भी कम कर देता है। यदि यह कह दिया जाये कि चॉकलेट एक मीठा जहर है तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।


🚩कुछ चॉकलेटों में इथाइल एमीन नामक कार्बनिक यौगिक होता है जो शरीर में पहुँचकर रक्तवाहिनियों की आंतरिक सतह पर स्थित तंत्रिकाओं को उदीप्त करता है। इससे हृदयरोग पैदा होते हैं।


🚩हृदयरोग विशेषज्ञों का मानना है कि चॉकलेट के सेवन से तंत्रिकाएँ उदीप्त होने से डी.एन.ए. जीन्स सक्रिय होते हैं जिससे हृदय की धड़कने बढ़ जाती हैं। चॉकलेट के माध्यम से शरीर में प्रवेश करने वाले रसायन पूरी तरह पच जाने तक अपना दुष्प्रभाव छोड़ते रहते हैं। अधिकांश चॉकलेटों के निर्माण में प्रयुक्त होने वाली निकेल धातु हृदयरोगों को बढ़ाती है।


🚩इसके अलावा चॉकलेट के अधिक प्रयोग से दाँतों में कीड़ा लगना, पायरिया, दाँतों का टेढ़ा होना, मुख में छाले होना, स्वरभंग, गले में सूजन व जलन, पेट में कीड़े होना, मूत्र में जलन आदि अनेक रोग पैदा हो जाते हैं।

वैसे भी शरीर स्वास्थ्य एवं आहार के नियमों के आधार पर किसी व्यक्ति को चॉकलेट की कोई आवश्यकता नहीं है।


🚩'मिठाई की दुकान अर्थात् यमदूत का घर'


🚩आचार्य सुश्रुत ने कहा हैः 'भैंस का दूध पचने में अति भारी, अतिशय अभिष्यंदी होने से रसवाही स्रोतों को कफ से अवरूद्ध करने वाला एवं जठराग्नि का नाश करने वाला है !' यदि भैंस का दूध इतना नुकसान कर सकता है तो उसका मावा जठराग्नि का कितना भयंकर नाश करता होगा? मावे के लिए शास्त्र में किलाटक शब्द का उपयोग किया गया है, जो भारी होने के कारण भूख मिटा देता है।


🚩जब मावा, पीयूष, छेना (तक्रपिंड), क्षीरशाक, दही आदि से मिठाई बनाने के लिए उनमें शक्कर मिलायी जाती है, तब तो वे और भी ज्यादा कफ करने वाले, पचने में भारी एवं अभिष्यंदी बन जाते हैं। पाचन में अत्यंत भारी ऐसी मिठाइयाँ खाने से कब्जियत एवं मंदाग्नि होती हैं जो सब रोगों का मूल है। इसका योग्य उपचार न किया जाय तो ज्वर आता है एवं ज्वर को दबाया जाय अथवा गलत चिकित्सा हो जाय तो रक्तपित्त, रक्तवात, त्वचा के रोग, पांडुरोग, रक्त का कैंसर, मधुमेह, कोलेस्ट्रोल बढ़ने से हृदयरोग आदि रोग होते हैं। कफ बढ़ने से खाँसी, दमा, क्षयरोग जैसे रोग होते हैं। मंदाग्नि होने से सातवीं धातु (वीर्य)  कैसे बन सकती है? अतः अंत में नपुंसकता आ जाती है!


🚩आज का विज्ञान भी कहता है कि 'बौद्धिक कार्य करने वाले व्यक्ति के लिए दिन के दौरान भोजन में केवल 40 से 50 ग्राम वसा (चरबी) पर्याप्त है और कठिन श्रम करने वाले के लिए 90 ग्राम। इतनी वसा तो सामान्य भोजन में लिये जाने वाले घी, तेल, मक्खन, गेहूँ, चावल, दूध आदि में ही मिल जाती है। इसके अलावा मिठाई खाने से कोलेस्ट्रोल बढ़ता है। धमनियों की जकड़न बढ़ती है, नाड़ियाँ मोटी होती जाती हैं। दूसरी ओर रक्त में चरबी की मात्रा बढ़ती है और वह इन नाड़ियों में जाती है। जब तक नाड़ियों में कोमलता होती है तब तक वे फैलकर इस चरबी को जाने के लिए रास्ता देती है। परंतु जब वे कड़क हो जाती हैं, उनकी फैलने की सीमा पूरी हो जाती है तब वह चरबी वहीं रुक जाती है और हृदयरोग को जन्म देती है।'


🚩मिठाई में अनेक प्रकार की दूसरी ऐसी चीजें भी मिलायी जाती हैं, जो घृणा उत्पन्न करें। शक्कर अथवा बूरे में कॉस्टिक सोडा अथवा चोंक का चूरा भी मिलाया जाता है जिसके सेवन से आँतों में छाले पड़ जाते हैं। प्रत्येक मिठाई में प्रायः कृत्रिम (एनेलिन) रंग मिलाये जाते हैं जिसके कारण कैंसर जैसे रोग उत्पन्न होते हैं।


🚩जलेबी में कृत्रिम पीला रंग (मेटालीन यलो) मिलाया जाता है, जो हानिकारक है। लोग उसमें टॉफी, खराब मैदा अथवा घटिया किस्म का गुड़ भी मिलाते हैं। उसे जिन आयस्टोन एवं पेराफील से ढका जाता है, वे भी हानिकारक हैं। उसी प्रकार मिठाईयों को मोहक दिखाने वाले चाँदी के वर्क एल्यूमीनियम फॉइल में से बने होते हैं एवं उनमें जो केसर डाला जाता है, वह तो केसर के बदले भुट्टे के रेशे में मुर्गी का खून भी हो सकता है !!


🚩आधुनिक विदेशी मिठाईयों में पीपरमेंट, गोले, चॉकलेट, बिस्कुट, लालीपॉप, केक, टॉफी, जेम्स, जेलीज, ब्रेड आदि में घटिया किस्म का मैदा, सफेद खड़ी, प्लास्टर ऑफ पेरिस, बाजरी अथवा अन्य अनाज का बिगड़ा हुआ आटा मिलाया जाता है। अच्छे केक में भी अण्डे का पाउडर मिलाकर बनावटी मक्खन, घटिया किस्म के शक्कर एवं जहरीले सुगंधित पदार्थ मिलाये जाते हैं। नानखटाई में इमली के बीज के आटे का उपयोग होता है। कन्फेक्शनरी में फ्रेंच चॉक, ग्लकोज का बिगड़ा हुआ सीरप एवं सामान्य रंग अथवा एसेन्स मिलाये जाते हैं। बिस्कुट बनाने के उपयोग में आने वाले आकर्षक जहरी रंग हानिकारक होते हैं।


🚩इस प्रकार, ऐसी मिठाइयाँ वस्तुतः मिठाई न होते हुए बल, बुद्धि और स्वास्थ्यनाशक, रोगकारक एवं तमस बढ़ानेवाली साबित होती है।


🚩मिठाइयों का शौक कुप्रवृत्तियों का कारण एवं परिणाम है। डॉ. ब्लोच लिखते हैं कि मिठाई का शौक जल्दी कुप्रवृत्तियों की ओर प्रेरित करता है। जो बालक मिठाई के ज्यादा शौकीन होते हैं उनके पतन की ज्यादा संभावना रहती है और वे दूसरे बालकों की अपेक्षा हस्तमैथुन जैसे कुकर्मों की ओर जल्दी खिंच जाते हैं।


🚩स्वामी विवेकानंद ने भी कहा हैः

''मिठाई (कंदोई) की दुकान साक्षात यमदूत का घर है।''


🚩जैसे, खमीर लाकर बनाये गये इडली-डोसे आदि खाने में तो स्वादिष्ट लगते हैं परंतु स्वास्थ्य के लिए अत्यंत हानिकारक होते हैं, इसी प्रकार मावे एवं दूध को फाड़कर बने पनीर से बनायी गयी मिठाइयाँ लगती तो मीठी हैं पर होती हैं जहर के समान। मिठाई खाने से लीवर और आँतों की भयंकर असाध्य बीमारियाँ होती हैं। अतः ऐसी मिठाइयों से आप भी बचें, औरों को भी बचायें।


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Wednesday, November 22, 2023

पुत्र प्राप्ति एवं अमिट पुण्यों को देने वाले भीष्म पंचक व्रत के महत्व को जानिए....

23 November 2023

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🚩भीष्म पंचक व्रत का हिन्दू धर्म में बड़ा ही महत्त्व है। पुराणों तथा हिन्दू धर्मग्रंथों में कार्तिक माह में ‘भीष्म पंचक’ व्रत का विशेष महत्त्व कहा गया है।


🚩 इस साल यह व्रत 23 नवम्बर 2023 से 27 नवम्बर 2023 तक रहेगा ।


🚩इस व्रत में कार्तिक माह की देवउठनी एकादशी से कार्तिक माह की देव पूर्णिमा तक व्रती को अन्न का त्याग करना होता है एवं फल और दूध पर रहना होता है और 5 दिन तक भीष्म पितामह को अर्घ्य देना होता हैं।


🚩 सदाचारी एवं संयमी व्यक्ति ही जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफलता प्राप्त कर सकता है । सुखी-सम्मानित रहना हो, तब भी ब्रह्मचर्य की जरूरत है और उत्तम स्वास्थ्य व लम्बी आयु चाहिए, तब भी ब्रह्मचर्य की जरूरत है ।


🚩 माँ गंगा के पुत्र भीष्म पितामह पूर्व जन्म में वसु थे । अपने पिता की इच्छा पूर्ति के लिए आजन्म अखण्ड ब्रह्मचर्य के पालन का दृढ संकल्प करने के कारण पिता की तरफ से उनको इच्छा मृत्यु का वरदान मिला था।


🚩 कार्तिक शुक्ल एकादशी से पूनम तक का व्रत ‘भीष्मपंचक व्रत कहलाता है । जो इस व्रत का पालन करता है, उसके द्वारा सब प्रकार के शुभ कृत्यों का पालन हो जाता है । यह महापुण्यमय व्रत महापातकों का नाश करनेवाला है । निःसंतान व्यक्ति पत्नीसहित इस प्रकार का व्रत करे तो उसे संतान की प्राप्ति होती है ।


🚩 भीष्मपंचक व्रत कथा:-


🚩कार्तिक एकादशी के दिन बाणों की शय्या पर पड़े हुए भीष्मजी ने जल की याचना की थी । तब अर्जुन ने संकल्प कर भूमि पर बाण मारा तो गंगाजी की धार निकली और भीष्मजी के मुँह में आयी । उनकी प्यास मिटी और तन-मन-प्राण संतुष्ट हुए । इसलिए इस दिन को भगवान श्रीकृष्ण ने पर्व के रूप में घोषित करते हुए कहा कि ‘आज से लेकर पूर्णिमा तक जो अघ्र्यदान से भीष्मजी को तृप्त करेगा और इस भीष्मपंचक व्रत का पालन करेगा, उस पर मेरी सहज प्रसन्नता होगी ।


🚩 इसी संदर्भ में एक और कथा है…


🚩महाभारत का युद्ध समाप्त होने पर जिस समय भीष्म पितामह सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा में शरशैया पर शयन कर रहे थे। तक भगवान कृष्ण पाँचो पांडवों को साथ लेकर उनके पास गये थे। ठीक अवसर मानकर युधिष्ठर ने भीष्म पितामह से उपदेश देने का आग्रह किया। भीष्म जी ने पाँच दिनों तक राज धर्म ,वर्णधर्म मोक्षधर्म आदि पर उपदेश दिया था । उनका उपदेश सुनकर श्रीकृष्ण सन्तुष्ट हुए और बोले, ”पितामह! आपने शुक्ल एकादशी से पूर्णिमा तक पाँच दिनों में जो धर्ममय उपदेश दिया है उससे मुझे बड़ी प्रसन्नता हुई है। मैं इसकी स्मृति में आपके नाम पर भीष्म पंचक व्रत स्थापित करता हूँ । जो लोग इसे करेंगे वे जीवन भर विविध सुख भोगकर अन्त में मोक्ष प्राप्त करेंगे।


🚩भीष्म पंचक व्रत में क्या करना चाहिए ?


🚩 इन पाँच दिनों में निम्न मंत्र से भीष्मजी के लिए तर्पण करना चाहिए ।


सत्यव्रताय शुचये गांगेयाय महात्मने ।भीष्मायैतद् ददाम्यघ्र्यमाजन्मब्रह्मचारिणे ।।



🚩‘आजन्म ब्रह्मचर्य का पालन करनेवाले परम पवित्र, सत्य-व्रतपरायण गंगानंदन महात्मा भीष्म को मैं यह अर्घ्य देता हूँ ।(स्कंद पुराण, वैष्णव खंड, कार्तिक माहात्म्य)


🚩अर्घ्य के जल में थोडा-सा कुमकुम, केवड़ा, पुष्प और पंचामृत (गाय का दूध, दही, घी, शहद और शक्कर) मिला हो तो अच्छा है, नहीं तो जैसे भी दे सकें । ‘मेरा ब्रह्मचर्य दृढ रहे, संयम दृढ़ रहे, मैं कामविकार से बचूँ… – ऐसी प्रार्थना करें ।


🚩इन पाँच दिनों में अन्न का त्याग करें । कंदमूल, फल, दूध अथवा हविष्य (विहित सात्त्विक आहार जो यज्ञ के दिनों में किया जाता है) लें ।


🚩इन दिनों में पंचगव्य (गाय का दूध, दही, घी, गोझरण व गोबर-रस का मिश्रण) का सेवन लाभदायी है ।


🚩पानी में थोड़ा-सा गोझरण डालकर स्नान करें तो वह रोग-दोषनाशक तथा पापनाशक माना जाता है ।


🚩इन दिनों में ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए ।


🚩जो नीचे लिखे मंत्र से भीष्मजी के लिए अर्घ्यदान करता है, वह मोक्ष का भागी होता है :वैयाघ्रपदगोत्राय सांकृतप्रवराय च । अपुत्राय ददाम्येतदुदकं भीष्मवर्मणे ।।वसूनामवताराय शन्तनोरात्मजाय च । अघ्र्यं ददामि भीष्माय आजन्मब्रह्मचारिणे ।।


🚩जिनका व्याघ्रपद गोत्र और सांकृत प्रवर है, उन पुत्ररहित भीष्मवर्मा को मैं यह जल देता हूँ । वसुओं के अवतार, शान्तनु के पुत्र, आजन्म ब्रह्मचारी भीष्म को मैं अर्घ्य देता हूँ ।


🚩 इस व्रत का प्रथम दिन देवउठी एकादशी है l इस दिन भगवान नारायण जागते हैं l इस कारण इस दिन निम्न मंत्र का उच्चारण करके भगवान को जगाना चाहिए :-उत्तिष्ठोत्तिष्ठ गोविन्द उत्तिष्ठ गरुडध्वज l उत्तिष्ठ कमलाकान्त त्रैलोक्यमन्गलं कुरु ll


🚩‘हे गोविन्द ! उठिए, उठिए , हे गरुड़ध्वज ! उठिए, हे कमलाकांत ! निद्रा का त्याग कर तीनों लोकों का मंगल कीजिये l’ (साभार : संत श्री आशारामजी आश्रम द्वारा ऋषि प्रसाद पत्रिका)


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Tuesday, November 21, 2023

तूलसी विवाह कब से शुरू हुआ ? इस दिन क्या करे ? जिससे माँ लक्ष्मी की कृपा हमेंशा बनी रहे ? जानिए:-

22 November 2023

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🚩तुलसी विवाह उत्सव 23 नवम्बर से 27 नवम्बर 2023


🚩देवउठनी एकादशी का दिन तुलसी विवाह के रूप में मनाया जाता है।


🙏🏻जो मनुष्य मेरे शालिग्राम रूप के साथ तुलसी विवाह करेगा,उसे इस लोक और परलोक में यश प्राप्त होगा। - भगवान विष्णु 


🚩तुलसी के दर्शन मात्र से स्वर्ण दान का पुण्य मिलता है,तुलसी जहाँ रहती वहाँ माँ लक्ष्मी की विशेष कृपा होती हैं।


🚩तुलसी को मां लक्ष्मी के समान माना गया है। ऐसा कहा जाता है कि अगर कार्तिक के महीने में तुलसी का पौधा आपने घर में लगा लिया और उसकी लक्ष्मी स्वरूप में पूजा की, तो मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं। ऐसे घर मे तुलसी को मां लक्ष्मी के समान माना गया है। ऐसा भी कहा जाता है कि अगर कार्तिक के महीने में तुलसी का पौधा आपने घर में लगा लिया और उसका पूजन अर्चन किया तो ऐसे घर में कभी भी धन की कमी नहीं होती। मां लक्ष्मी की कृपा हमेशा बनी रहती है। विशेषकर कार्तिक माह में तुलसी का महत्व और भी बढ़ जाता है।


🚩कार्तिक के महीने में अगर आप महीने भर कार्तिक स्नान कर रहै हैं, तो आपको तुलसी जी का भी विशेष पूजन करना चाहिए। कहा जाता है कि तुलसी विवाह के दिन व्रत करने से जन्म और जन्म के पूर्व के पापों से मुक्ति मिल जाती है। कार्तिक मास की एकादशी को तुलसी विवाह का त्यौहार बेहद शुभ माना जाता है। तुलसी को विष्णुप्रिया नाम से भी जाना जाता है।


🚩अमिट पुण्यों के फल को देने वाला व्रत भीष्म पंचक व्रत इस साल 23 नवम्बर से 27 नवम्बर 2023 तक रहेगा। भीष्म पंचक के प्रथम दिन 23 नवम्बर 2023 को देवउठनी एकादशी हैं, इस दिन भगवान नारायण जागते हैं, इस कारण निम्न मंत्र से का उच्चारण करके भगवान को जगाना चाहिए:-उत्तिष्ठो उत्तिष्ठ गोविंदो, उत्तिष्ठो गरुड़ध्वज। उत्तिष्ठो कमलाकांत, जगताम मंगलम कुरु।। अर्थात : हे गोविंद! उठिए , हे गरुड़ध्वज! उठिए , हे कमलाकांत ! निंद्रा का त्याग कर तीनों लोकों का मंगल कीजिए।


🚩देवउठनी एकादशी के दिन संध्या के समय भगवान विष्णु की कपूर आरती करने से अकाल मृत्यु, एक्सीडेंट आदि के भय से सुरक्षा होती हैं।


🚩तुलसी विवाह की कथा:-


🚩एक बार शिव ने अपने तेज को समुद्र में फैंक दिया था। उससे एक महातेजस्वी बालक ने जन्म लिया। यह बालक आगे चलकर जालंधर के नाम से पराक्रमी दैत्य राजा बना। इसकी राजधानी का नाम जालंधर नगरी था।


🚩दैत्यराज कालनेमी की कन्या वृंदा का विवाह जालंधर से हुआ। जालंधर महाराक्षस था। अपनी सत्ता के मद में चूर उसने माता लक्ष्मी को पाने की कामना से युद्ध किया, परंतु समुद्र से ही उत्पन्न होने के कारण माता लक्ष्मी ने उसे अपने भाई के रूप में स्वीकार किया। वहाँ से पराजित होकर वह देवी पार्वती को पाने की लालसा से कैलाश पर्वत पर गया।


🚩भगवान देवाधिदेव शिव का ही रूप धर कर माता पार्वती के समीप गया, परंतु माँ ने अपने योगबल से उसे तुरंत पहचान लिया तथा वहाँ से अंतर्ध्यान हो गईं। देवी पार्वती ने क्रुद्ध होकर सारा वृतांत भगवान विष्णु को सुनाया। जालंधर की पत्नी वृंदा अत्यन्त पतिव्रता स्त्री थी। उसी के पतिव्रत धर्म की शक्ति से जालंधर न तो मारा जाता था और न ही पराजित होता था। इसीलिए जालंधर का नाश करने के लिए वृंदा के पतिव्रत धर्म को भंग करना बहुत आवश्यक था।


🚩इसी कारण भगवान विष्णु ऋषि का वेश धारण कर वन में जा पहुँचे, जहाँ वृंदा अकेली भ्रमण कर रही थीं। भगवान के साथ दो मायावी राक्षस भी थे, जिन्हें देखकर वृंदा भयभीत हो गईं। ऋषि ने वृंदा के सामने पल में दोनों को भस्म कर दिया। उनकी शक्ति देखकर वृंदा ने कैलाश पर्वत पर महादेव के साथ युद्ध कर रहे अपने पति जालंधर के बारे में पूछा। ऋषि ने अपने माया जाल से दो वानर प्रकट किए। एक वानर के हाथ में जालंधर का सिर था तथा दूसरे के हाथ में धड़। अपने पति की यह दशा देखकर वृंदा मूर्छित हो कर गिर पड़ीं। होश में आने पर उन्होंने ऋषि रूपी भगवान से विनती की कि वह उसके पति को जीवित करें।


🚩भगवान ने अपनी माया से पुन: जालंधर का सिर धड़ से जोड़ दिया, परंतु स्वयं भी वह उसी शरीर में प्रवेश कर गए। वृंदा को इस छल का तनिक भी आभास न हुआ। जालंधर बने भगवान के साथ वृंदा पतिव्रता का व्यवहार करने लगी, जिससे उसका सतीत्व भंग हो गया। ऐसा होते ही वृंदा का पति जालंधर युद्ध में हार गया।


🚩इस सारी लीला का जब वृंदा को पता चला, तो उसने क्रुद्ध होकर भगवान विष्णु को ह्रदयहीन शिला होने का श्राप दे दिया। अपने भक्त के श्राप को भगवान विष्णु ने स्वीकार किया और शालिग्राम पत्थर बन गये। सृष्टि के पालनकर्ता के पत्थर बन जाने से ब्रम्हांड में असंतुलन की स्थिति हो गई। यह देखकर सभी देवी देवताओ ने वृंदा से प्रार्थना की वह भगवान् विष्णु को श्राप मुक्त कर दे।


🚩वृंदा ने भगवान विष्णु को श्राप मुक्त कर स्वयं आत्मदाह कर लिया। जहाँ वृंदा भस्म हुईं, वहाँ तुलसी का पौधा उगा। भगवान विष्णु ने वृंदा से कहा: हे वृंदा। तुम अपने सतीत्व के कारण मुझे लक्ष्मी से भी अधिक प्रिय हो गई हो। अब तुम तुलसी के रूप में सदा मेरे साथ रहोगी। तब से हर साल कार्तिक महीने के देव-उठावनी एकादशी का दिन तुलसी विवाह के रूप में मनाया जाता है। जो मनुष्य भी मेरे शालिग्राम रूप के साथ तुलसी का विवाह करेगा,उसे इस लोक और परलोक में विपुल यश प्राप्त होगा।


🚩उसी दैत्य जालंधर की यह भूमि जलंधर नाम से विख्यात है। सती वृंदा का मंदिर मोहल्ला कोट किशनचंद में स्थित है। कहते हैं कि इस स्थान पर एक प्राचीन गुफा भी थी, जो सीधी हरिद्वार तक जाती थी। सच्चे मन से 40 दिन तक सती वृंदा देवी के मंदिर में पूजा करने से सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं।


🚩जिस घर में तुलसी होती हैं, वहाँ यम के दूत भी असमय नहीं जा सकते। मृत्यु के समय जिसके प्राण मंजरी रहित तुलसी और गंगा जल मुख में रखकर निकल जाते हैं, वह पापों से मुक्त होकर वैकुंठ धाम को प्राप्त होता है। जो मनुष्य तुलसी व आंवलों की छाया में अपने पितरों का श्राद्ध करता है, उसके पितर मोक्ष को प्राप्त हो जाते हैं।


🚩तुलसी के दर्शन मात्र से स्वर्ण दान का पुण्य मिलता है,तुलसी जहाँ रहती वहाँ माँ लक्ष्मी की विशेष कृपा होती हैं, देवउठनी एकादशी के दिन जो शाम को संध्या के समय भगवान विष्णु की आरती करता हैं, उन्हें एक्सिडेंट आदि से सुरक्षा होती है। तुलसी से वास्तु दोष दूर होते हैं ,तुलसी के 1 पत्ते के सेवन से भी कई बीमारियों से सुरक्षा मिलती है,तुलसी की हवा से भी सूक्ष्म कीटाणुओं से रक्षा होती है,इसलिए हर घर में तुलसी होना चाहिए,संत श्री आशारामजी बापू आश्रमों द्वारा घर घर तुलसी लगाओ अभियान भी चलाया जाता हैं।बापूजी के साधकों द्वारा देशभर में 25 दिसम्बर को तुलसी पूजन दिवस भी मनाया जाता हैं।


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Monday, November 20, 2023

गोपाष्टमी पर ही गांधी परिवार की मौत क्यों हुई ? नेता के मुकरने के बाद संतों का श्राप ?

21  November 2023

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🚩1965 में भारत के लाखों संतों ने गोहत्याबंदी और गोरक्षा पर कानून बनाने के लिए एक बहुत बड़ा आंदोलन चलाया गया था। 1966 में अपनी इसी मांग को लेकर सभी संतों ने दिल्ली में एक बहुत बड़ी रैली निकाली। उस वक्त प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी थीं। गांधीवादी बड़े नेताओं में विनोबा भावे थे। विनोबाजी का आशीर्वाद लेकर लाखों साधु-संतों ने करपात्रीजी महाराज के नेतृत्व में बहुत बड़ा जुलूस निकाला।

 

🚩इंदिरा गांधी स्वामी करपात्रीजी और विनोबाजी को बहुत मानती थीं। इंदिरा गांधी के लिए उस समय चुनाव सामने थे। कहते हैं कि इंदिरा गांधी ने करपात्रीजी महाराज से आशीर्वाद लेने के बाद वादा किया था कि चुनाव जीतने के बाद गाय के सारे कत्लखाने बंद हो जाएंगे, जो अंग्रेजों के समय से चल रहे हैं।

 

🚩इंदिरा गांधी चुनाव जीत गईं। ऐसे में स्वामी करपात्री महाराज को लगा था कि इंदिरा गांधी मेरी बात अवश्य मानेंगी। उन्होंने एक दिन इंदिरा गांधी को याद दिलाया कि आपने वादा किया था कि संसद में गोहत्या पर आप कानून लाएंगी। लेकिन कई दिनों तक इंदिरा गांधी उनकी इस बात को टालती रहीं। ऐसे में करपात्रीजी को आंदोलन का रास्ता अपनाना पड़ा।

 

🚩 संपूर्ण घटनाक्रम :

 

🚩करपात्रीजी महाराज शंकराचार्य के समकक्ष देश के मान्य संत थे। करपात्री महाराज के शिष्यों अनुसार जब उनका धैर्य चुक गया तो उन्होंने कहा कि गोरक्षा तो होनी ही चाहिए। इस पर तो कानून बनना ही चाहिए। लाखों साधु-संतों ने उनके साथ कहा कि यदि सरकार गोरक्षा का कानून पारित करने का कोई ठोस आश्वासन नहीं देती है, तो हम संसद को चारों ओर से घेर लेंगे। फिर न तो कोई अंदर जा पाएगा और न बाहर आ पाएगा। 

 

🚩संतों ने 7 नवंबर 1966 को संसद भवन के सामने धरना शुरू कर दिया। इस धरने में मुख्य संतों के नाम इस प्रकार हैं- शंकराचार्य निरंजन देव तीर्थ, स्वामी करपात्रीजी महाराज और रामचन्द्र वीर। रामचन्द्र वीर तो आमरण अनशन पर बैठ गए थे।

 

🚩गोरक्षा महाभियान समिति के संचालक व सनातनी करपात्रीजी महाराज ने चांदनी चौक स्थित आर्य समाज मंदिर से अपना सत्याग्रह आरंभ किया। करपात्रीजी महाराज के नेतृत्व में जगन्नाथपुरी, ज्योतिष पीठ व द्वारका पीठ के शंकराचार्य, वल्लभ संप्रदाय की सातों पीठों के पीठाधिपति, रामानुज संप्रदाय, माधव संप्रदाय, रामानंदाचार्य, आर्य समाज, नाथ संप्रदाय, जैन, बौद्ध व सिख समाज के प्रतिनिधि, सिखों के निहंग व हजारों की संख्या में मौजूद नागा साधुओं को पं. लक्ष्मीनारायणजी चंदन तिलक लगाकर विदा कर रहे थे। लाल किला मैदान से आरंभ होकर नई सड़क व चावड़ी बाजार से होते हुए पटेल चौक के पास से संसद भवन पहुंचने के लिए इस विशाल जुलूस ने पैदल चलना आरंभ किया। रास्ते में अपने घरों से लोग फूलों की वर्षा कर रहे थे। हर गली फूलों का बिछौना बन गई थी।

 

🚩कहते हैं कि नई दिल्ली का पूरा इलाका लोगों की भीड़ से भरा था। संसद गेट से लेकर चांदनी चौक तक सिर ही सिर दिखाई दे रहे थे। लाखों लोगों की भीड़ जुटी थी जिसमें 10 से 20 हजार तो केवल महिलाएं ही शामिल थीं। हजारों संत थे और हजारों गोरक्षक थे। सभी संसद की ओर कूच कर रहे थे। 

 

🚩कहते हैं कि दोपहर 1 बजे जुलूस संसद भवन पर पहुंच गया और संत समाज के संबोधन का सिलसिला शुरू हुआ। करीब 3 बजे का समय होगा, जब आर्य समाज के स्वामी रामेश्वरानंद भाषण देने के लिए खड़े हुए। स्वामी रामेश्वरानंद ने कहा कि यह सरकार बहरी है। यह गोहत्या को रोकने के लिए कोई भी ठोस कदम नहीं उठाएगी। इसे झकझोरना होगा। मैं यहां उपस्थित सभी लोगों से आह्वान करता हूं कि सभी संसद के अंदर घुस जाओ और सारे सांसदों को खींच-खींचकर बाहर ले आओ, तभी गोहत्याबंदी कानून बन सकेगा।

 

🚩कहा जाता है कि जब इंदिरा गांधी को यह सूचना मिली तो उन्होंने निहत्थे करपात्री महाराज और संतों पर गोली चलाने के आदेश दे दिए। पुलिसकर्मी पहले से ही लाठी-बंदूक के साथ तैनात थे। पुलिस ने लाठी और अश्रुगैस चलाना शुरू कर दिया। भीड़ और आक्रामक हो गई। इतने में अंदर से गोली चलाने का आदेश हुआ और पुलिस ने संतों और गोरक्षकों की भीड़ पर अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी। संसद के सामने की पूरी सड़क खून से लाल हो गई। लोग मर रहे थे, एक-दूसरे के शरीर पर गिर रहे थे और पुलिस की गोलीबारी जारी थी। माना जाता है कि एक नहीं, उस गोलीकांड में सैकड़ों साधु और गोरक्षक मर गए। दिल्ली में कर्फ्यू लगा दिया गया। संचार माध्यमों को सेंसर कर दिया गया और हजारों संतों को तिहाड़ की जेल में ठूंस दिया गया।

 

🚩गुलजारी लाल नंदा का इस्तीफा : इस हत्याकांड से क्षुब्ध होकर तत्कालीन गृहमंत्री गुलजारीलाल नंदा ने अपना त्यागपत्र दे दिया और इस कांड के लिए खुद एवं सरकार को जिम्मेदार बताया। इधर, संत रामचन्द्र वीर अनशन पर डटे रहे, जो 166 दिनों के बाद समाप्त हुआ था। देश के इतने बड़े घटनाक्रम को किसी भी राष्ट्रीय अखबार ने छापने की हिम्मत नहीं दिखाई। यह खबर सिर्फ मासिक पत्रिका ‘आर्यावर्त’ और ‘केसरी’ में छपी थी। कुछ दिन बाद गोरखपुर से छपने वाली मासिक पत्रिका ‘कल्याण’ ने अपने गौ अंक विशेषांक में विस्तारपूर्वक इस घटना का वर्णन किया था।

 

🚩करपात्रीजी का श्राप : इस घटना के बाद स्वामी करपात्रीजी के शिष्य बताते हैं कि करपात्रीजी ने इंदिरा गांधी को श्राप दे दिया कि जिस तरह से इंदिरा गांधी ने संतों और गोरक्षकों पर अंधाधुंध गोलीबारी करवाकर मारा है, उनका भी हश्र यही होगा। कहते हैं कि संसद के सामने साधुओं की लाशें उठाते हुए करपात्री महाराज ने रोते हुए ये श्राप दिया था।

 

🚩‘कल्याण’ के उसी अंक में इंदिरा को संबोधित करके कहा था- ‘यद्यपि तूने निर्दोष साधुओं की हत्या करवाई है फिर भी मुझे इसका दु:ख नहीं है, लेकिन तूने गौहत्यारों को गायों की हत्या करने की छूट देकर जो पाप किया है, वह क्षमा के योग्य नहीं है। इसलिए मैं आज तुझे श्राप देता हूं कि ‘गोपाष्टमी’ के दिन ही तेरे वंश का नाश होगा। आज मैं कहे देता हूं कि गोपाष्टमी के दिन ही तेरे वंश का भी नाश होगा।’ जब करपात्रीजी ने यह श्राप दिया था तो वहां प्रमुख संत ‘प्रभुदत्त ब्रह्मचारी’ भी मौजूद थे। कहते हैं कि इस कांड के बाद विनोबा भावे और करपात्रीजी अवसाद में चले गए।

 

🚩इसे करपात्रीजी के श्राप से नहीं भी जोड़ें तो भी यह तो सत्य है कि श्रीमती इंदिरा गांधी, उनके पुत्र संजय गांधी और राजीव गांधी की अकाल मौत ही हुई थी। श्रीमती गांधी जहां अपने ही अंगरक्षकों की गोली से मारी गईं, वहीं संजय की एक विमान दुर्घटना में मौत हुई थी, जबकि राजीव गांधी लिट्‍टे द्वारा किए गए धमाके में मारे गए थे। 

 

🚩गोहत्याबंदी का कानून की मांग का इतिहास : स्वाधीन भारत में विनोबाजी ने पूर्ण गोवधबंदी की मांग रखी थी। उसके लिए कानून बनाने का आग्रह नेहरू से किया था। वे अपनी पदयात्रा में यह सवाल उठाते रहे। कुछ राज्यों ने गोवधबंदी के कानून बनाए।

 

🚩इसी बीच हिन्दू महासभा के अध्यक्ष निर्मलचन्द्र चटर्जी (लोकसभा के पूर्व अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी के पिता) ने एक विधेयक 1955 में प्रस्तुत किया था। उस पर जवाहरलाल नेहरू ने लोकसभा में घोषणा की कि ‘मैं गोवधबंदी के विरुद्ध हूं। सदन इस विधेयक को रद्द कर दे। राज्य सरकारों से मेरा अनुरोध है कि ऐसे विधेयक पर न तो विचार करे और न कोई कार्यवाही।’

 

🚩1956 में इस विधेयक को कसाइयों ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। उस पर 1960 में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया। धीरे-धीरे समय निकलता जा रहा था। लोगों को लगा कि अपनी सरकार अंग्रेजों की राह पर है। वह आश्वासन देती रही और गोवध एवं गोवंश का नाश का होता गया। इसके बाद 1965-66 में प्रभुदत्त ब्रह्मचारी स्वामी करपात्रीजी और देश के तमाम संतों ने इसे आंदोलन का रूप दे दिया। गोरक्षा का अभियान शुरू हुआ। देशभर के संत एकजुट होने लगे। लाखों लोग और संत सड़कों पर आने लगे। इस आंदोलन को देखकर राजनीतिज्ञ लोगों के मन में भय व्याप्त होने लगा।

 

🚩इसकी गंभीरता को समझते हुए सबसे पहले लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को 21 सितंबर 1966 को पत्र लिखा। उन्होंने लिखा कि ‘गोवध बंदी’ के लिए लंबे समय से चल रहे आंदोलन के बारे में आप जानती ही हैं। संसद के पिछले सत्र में भी यह मुद्दा सामने आया था। और जहां तक मेरा सवाल है, मैं यह समझ नहीं पाता कि भारत जैसे एक हिन्दू बहुल देश में, जहां गलत हो या सही, गोवध के विरुद्ध ऐसा तीव्र जन-संवेग है, गोवध पर कानूनन प्रतिबंध क्यों नहीं लगाया जा सकता?’

 

🚩इंदिरा गांधी ने जयप्रकाश नारायण की यह सलाह नहीं मानी। परिणाम यह हुआ कि सर्वदलीय गोरक्षा महाभियान ने दिल्ली में विराट प्रदर्शन किया। दिल्ली के इतिहास का वह सबसे बड़ा प्रदर्शन था। तब प्रभुदत्त ब्रह्मचारी, पुरी के शंकराचार्य निरंजन देव तीर्थ ने गोरक्षा के लिए प्रदर्शनकारियों पर पुलिस जुल्म के विरोध में और गोवधबंदी की मांग के लिए 20 नवंबर 1966 को अनशन प्रारंभ कर दिया। वे गिरफ्तार किए गए। प्रभुदत्त ब्रह्मचारी का अनशन 30 जनवरी 1967 तक चला। 73वें दिन डॉ. राममनोहर लोहिया ने अनशन तुड़वाया। अगले दिन पुरी के शंकराचार्य ने भी अनशन तोड़ा। उसी समय जैन संत मुनि सुशील कुमार ने भी लंबा अनशन किया था।

 

🚩12 अप्रैल 1978 को डॉ. रामजी सिंह ने एक निजी विधेयक रखा जिसमें संविधान की धारा 48 के निर्देश पर अमल के लिए कानून बनाने की मांग थी। 21 अप्रैल 1979 को विनोबा भावे ने अनशन शुरू कर दिया। 5 दिन बाद प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने कानून बनाने का आश्वासन दिया और विनोबा ने उपवास तोड़ा। 10 मई 1979 को एक संविधान संशोधन विधेयक पेश किया गया, जो लोकसभा के विघटित होने के कारण अपने आप समाप्त हो गया।

 

🚩इंदिरा गांधी के दोबारा शासन में आने के बाद 1981 में पवनार में गोसेवा सम्मेलन हुआ। उसके निर्णयानुसार 30 जनवरी 1982 की सुबह विनोबा ने उपवास रखकर गोरक्षा के लिए सौम्य सत्याग्रह की शुरुआत की। वह सत्याग्रह 18 साल तक चलता रहा। आज भी गोवध पर केंद्र सरकार किसी भी तरह का कानून नहीं ला पाई है। गोरक्षकों का आंदोलन जारी है।

 

 

🚩 कौन थे करपात्रीजी महाराज?

 

🚩स्वामी करपात्रीजी महाराज का मूल नाम हरनारायण ओझा था। वे हिन्दू दशनामी परंपरा के भिक्षु थे। दीक्षा के उपरांत उनका नाम ‘हरीन्द्रनाथ सरस्वती’ था किंतु वे ‘करपात्री’ नाम से ही प्रसिद्ध थे, क्योंकि वे अपनी अंजुली का उपयोग खाने के बर्तन की तरह करते थे। वे ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य स्वामी ब्रह्मानंद सरस्वती के शिष्य थे। धर्मशास्त्रों में इनकी अद्वितीय एवं अतुलनीय विद्वता को देखते हुए इन्हें ‘धर्मसम्राट’ की उपाधि प्रदान की गई।

 

🚩अखिल भारतीय राम राज्य परिषद भारत की एक परंपरावादी हिन्दू पार्टी थी। इसकी स्थापना स्वामी करपात्रीजी ने सन् 1948 में की थी। इस दल ने सन् 1952 के प्रथम लोकसभा चुनाव में 3 सीटें प्राप्त की थीं। सन् 1952, 1957 एवं 1962 के विधानसभा चुनावों में हिन्दी क्षेत्रों (मुख्यत: राजस्थान) में इस दल ने दर्जनों सीटें हासिल की थीं।  स्त्रोत : वेब दुनिया

shorturl.at/oyEG

 

🚩अधिकतर नेता वोट पाने के लिए साधु-संतों के पास जाते हैं, कई वादा भी करते हैं पर जब संतों के आशीर्वाद से चुनाव जीत जाते हैं तब वे अपने वादा भूल जाते है और संतों का अनादर करने लग जाते हैं फिर उनको परिणाम भी भयंकर मिलते हैं। नेताओं को सावधान होना चाहिए आज भी आशाराम बापू जैसे निर्दोष संत जेल में है उनकी रिहाई और गौहत्या पर भी प्रतिबंध लगाना चाहिए ऐसी जनता की मांग हैं।


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सरकार और जनता के नाम आसाराम बापू ने लिखा पत्र....

20 November 2023

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🚩जोधपुर जेल से हिंदु संत आशारामजी बापू ने देशवासियों व सरकार के नाम गाय माता की महत्ता बताकर एक पत्र भेजा हुआ है जिसको पढ़कर हर कोई सराहना कर रहा है । सोशल मीडिया पर काफी वायरल हुआ है आप भी इसे पढ़िए। इसमें इतनी उपयोगी बाते है जिसके कारण गोपाष्टमी के पावन पर्व पर इस पत्र का जन जन तक पहुंचाना चाहिए।

 

🚩पत्र में बापू आशारामजी ने लिखा था कि गौपालक और गौप्रेमी धन्य हो जायेंगे…

 

🚩ध्यान दें…

गोझरण अर्क बनानेवाली संस्थाएँ एवं जो लोग गोमूत्र से फिनायल व खेतों के लिए जंतुनाशक दवाइयाँ बनाते हैं, वे 8 रुपये प्रति लीटर के मूल्य से गोमूत्र ले जाते हैं । गाय 24 घंटे में 7 लीटर मूत्र देती है तो 56 रुपये होते हैं । उसके मूत्र से ही उसका खर्चा आराम से चल सकता है । गाय के गोबर, दूध और उसकी उपस्थिति का फायदा देशवासियों को मिलेगा ही ।

 

🚩ऋषिकेश और देहरादून के बीच आम व लीची का बगीचा है। पहले वह 1लाख 30 हजार रुपये में जाता था, बिल्कुल पक्की व सच्ची बात है । उनको गायें रखने की सलाह दी गयी तो वे 15 गायें, जो दूध नही देती थी, लगभग निःशुल्क ले आये । उस बगीचे का ठेका दूसरे साल 2 लाख 40 हजार रुपये में गया । अब उन्होंने बताया कि गायें उस धरती पर घूमने से, गोमूत्र व गोबर के प्रभाव से अब वह बगीचा 10 लाख रुपये में जाता है । अपने खेतों में गायों का होना पुण्यदायी, परलोक सुधारनेवाला और यहाँ सुख-समृद्धि देनेवाला साबित होगा ।

 

🚩अगर गोमूत्र, गौ-गोबर का खेत-खलिहान में उपयोग हो जाय तो उनसे उत्पन्न अन्न, फल, सब्जियाँ प्रजा का कितना हित करेंगी, कल्पना नहीं कर सकते !!

विदेशी दवाइयों के निमित्त कई हजार करोड़ रुपये विदेशों में जाते हैं और देशवासी उन दवाइयों के दुष्प्रभाव के शिकार हो जाते हैं ।

 

🚩बापू आशारामजी ने पत्र में आगे लिखा कि प्रजा हितैषी जो सरकारें हैं, उन मेरी प्यारी सरकारों को प्यार भरा प्रस्ताव पहुँचाओगे तो मुझे खुशी होगी । मानव व देश का भला चाहने वाले प्रिंट मीडिया व इलेक्ट्रोनिक मीडिया इस बात के प्रचार का पुनीत कार्य करेंगे तो मानव के स्वास्थ्य व समृद्धि की रक्षा करने का पुण्य भी मिलेगा, प्रसन्नता भी मिलेगी व भारत देश की सुहानी सेवा करने वाले मीडिया को देशवासी कितनी ऊँची नजर से देखेंगे और दुआएँ देंगे । उनकी 7-7 पीढ़ियाँ इस सेवाकार्य से सुखी, समृद्ध व सद्गति को प्राप्त होंगी।

 

🚩केमिकल की फिनायल व उसकी दुर्गंध से हवामान दूषित होता है । गौ-फिनायल से आपकी सात्त्विकता, सुवासितता बढ़ेगी ही ।

 

🚩सज्जन सरकारें, प्रजा का हित चाहनेवाली सरकारें मुझे बहुत प्यारी लगती हैं । गौ-गोबर के कंडे से जो धुआँ निकलता है, उससे हानिकारक कीटाणु नष्ट होते हैं । शव के साथ श्मशान तक की यात्रा में मटके में गौ-गोबर के कंडे जलाकर ले जाने की प्रथा के पीछे हमारे दूरद्रष्टा ऋषियों की शव के हानिकारक कीटाणुओं से समाज की सुरक्षा लक्षित है ।

 

🚩अगर गौ-गोबर का 10 ग्राम ताजा रस प्रसूतिवाली महिला को देते हैं तो बिना ऑपरेशन के सुखदायी प्रसूति होती है ।

 

🚩गोधरा (गुज.) के प्रसिद्ध तेल-व्यापारी रेवाचंद मगनानी की बहू के लिए गोधरा व बड़ौदा के डॉक्टरों ने कहा था : ‘‘इनका गर्भ टेढ़ा हो गया है । उसी के कारण शरीर ऐसा हो गया है, वैसा हो गया है… सिजेरियन (ऑपरेशन) ही कराना पड़ेगा ।’’ आखिर अहमदाबाद गये । वहाँ 5 डॉक्टरों ने मिलकर जाँच की और आग्रह किया कि ‘‘जल्दी सिजेरियन के लिए हस्ताक्षर करो; या तो संतान बचेगी या तो माँ, और यदि संतान बचेगी तो वह अर्धविक्षिप्त होगी । अतः सिजेरियन से एक की जान बचा लो ।’’

 

🚩परिवार ने मेरे से सिजेरियन की आज्ञा माँगी । मैंने मना करते हुए गौ-गोबर के रस का प्रयोग बताया । न माँ मरी न संतान मरी और न कोई अर्धविक्षिप्त रहा । प्रत्यक्ष प्रमाण देखना चाहें तो देख सकते हैं । अभी वह लड़की महाविद्यालय में पढ़ती होगी । अच्छे अंक लाती है । माँ भी स्वस्थ है । कई लोग देख के भी आये । कइयों ने उनके अनुभव की विडियो क्लिप भी देखी होगी । गौ-गोबर के रस द्वारा सिजेरियन से बचे हुए कई लोग हैं ।

 

🚩विदेशी जर्सी तथाकथित गायों के दूध आदि से मधुमेह, धमनियों में खून जमना, दिल का दौरा, ऑटिज्म, स्किजोफ्रेनिया (एक प्रकार का मानसिक रोग), मैड काऊ, ब्रुसेलोसिस, मस्तिष्क ज्वर आदि भयंकर बीमारियाँ होने का वैज्ञानिकों द्वारा पर्दाफाश किया गया है । परंतु भारत की देशी गाय के दूध में ऐसे तत्त्व हैं जिनसे एच.आई.वी. संक्रमण, पेप्टिक अल्सर, मोटापा, जोड़ों का दर्द, दमा, स्तन व त्वचा का कैंसर आदि अनेक रोगों से रक्षा होती है । उसमें स्वर्ण-क्षार भी पाये गये हैं । गाय के दूध-घी का पीलापन स्वर्ण-क्षार की पहचान है । लाइलाज व्यक्ति को भी गौ-सान्निध्य व गौसेवा से 6 से 12 महीने में स्वस्थ किया जा सकता है ।

 

🚩पुनः गोमूत्र, गोबर से निर्मित खाद एवं गौ-उपस्थिति का खेतों में सदुपयोग हो ! भारत को भूकम्प की आपदाओं से बचाने के लिए मददगार है गौसेवा !

 

🚩लोग कहते हैं कि ‘आप 8000 गायों का पालन-पोषण करते हैं !’ तो मैं तुरंत कहता हूँ कि ‘वे हमारा पालन-पोषण करती हैं । उन्होंने हमसे नहीं कहा कि हमारा पालन-पोषण करो, हमें सँभालो । हमारी गरज से हम उनकी सेवा करते हैं, सान्निध्य लेते हैं ।’

 

🚩महाभारत (अनुशासन पर्व : 80.3) में महर्षि वसिष्ठजी कहते हैं : ‘‘गाय मेरे आगे रहें । गाय मेरे पीछे भी रहें । गाय मेरे चारों ओर रहें और मैं गायों के बीच में निवास करूँ ।’’

 

🚩हे साधको ! देशवासियों ! सुज्ञ सरकारों ! इस बात पर आप सकारात्मक ढंग से सोचने की कृपा करें ।               

-आप सभीका स्नेही

आशाराम बापू, जोधपुर

(नोट : यह संदेश अगस्त 2016 का है)

 

🚩आपको बता दे कि बापू आशारामजी ने कत्लखानों में जाति हजारों गायों को बचाकर अनेकों गौशाला बनाई उसमें अधिकितर गाये दूध देने वाली नही है फिर भी उनका पालन व्यवस्थित तरीके से किया जता है। और विदेशी कम्पनियों की कमर तोड़ दी थी और लाखों हिंदुओं की घर वापसी करवाकर और आदिवासियों को जीवन उपयोगी सामग्री देकर धर्मांतरण की दुकानें बंद करवा दी थी । 14 फरवरी वेलेंटाइन डे की जगह मातृ-पितृ पूजन दिवस और 25 दिसंबर को क्रिसमस की जगह तुलसी पूजन शुरू करवा दिया । ऐसे अनेकों देश हित के कार्यों हैं जिसके कारण उन्हें फंसाया गया है ।


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