Sunday, December 24, 2023

दिसम्बर की 25 तारीख आपके लिए खास क्यों हैं ?




क्रिसमस नही❌


 ‘तुलसी पूजन दिवस' मनाए✅


25 December 2023

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🚩भारत देश ऋषि-मुनियों का देश रहा है, विदेशी आक्रमणकारियों ने भारत में आकर भारतीय दिव्य संस्कृति को खत्म करने के लिये अपनी पश्चिमी संस्कृति को थोपना चाहा, लेकिन भारत में आज भी कई हिन्दू साधु-संत एवं हिन्दूनिष्ठ हैं जो भारत में राष्ट्र विरोधी विदेशी ताकतों से टक्कर लेकर भी समाज उत्थान के लिये भारतीय संस्कृति को बचाने का दिव्य कार्य कर रहे हैं । 


🚩ईसाई धर्म का त्यौहार 25 दिसम्बर से 1 जनवरी के बीच में मनाया जाता है, जिसमें Festival के नाम पर शराब और कबाब का जश्न मनाना, डांस पार्टी आयोजित करके बेशर्मी का प्रदर्शन करना, पशुओं की हत्या करके उसका मांस खाना, सिगरेट, चरस आदि पीना यह सब किया जाता हैं जो कि भारतीय त्यौहारों के विरुद्ध है । ऐसा करना ऋषि-मुनियों की संतानों को शोभा नहीं देता है।


🚩क्रिसमस दिनों में बीते वर्ष की विदाई पर पाश्चात्य अंधानुकरण से नशाखोरी, आत्महत्या आदि की वृद्धि होती जा रही है। तुलसी उत्तम अवसादरोधक एवं उत्साह, स्फूर्ति, सात्त्विकता वर्धक होने से इन दिनों में तुलसी पूजन पर्व मनाना वरदानतुल्य साबित होगा।


🚩धनुर्मास में सभी सकाम कर्म वर्जित होते हैं परंतु भगवत्प्रीत्यर्थ कर्म विशेष फलदायी व प्रसन्नता देने वाले होते हैं। 25 दिसम्बर धनुर्मास के बीच का समय होता है।


🚩विदेशों में भी होती है तुलसी पूजा


🚩मात्र भारत में ही नहीं वरन् विश्व के कई अन्य देशों में भी तुलसी को पूजनीय व शुभ माना गया है। ग्रीस में इस्टर्न चर्च नामक सम्प्रदाय में तुलसी की पूजा होती थी और सेंट बेजिल जयंती के दिन नूतन वर्ष भाग्यशाली हो इस भावना से चढ़ायी गयी तुलसी के प्रसाद को स्त्रियाँ अपने घर ले जाती थीं।


🚩तुलसी पूजन विधि


🚩25 दिसम्बर को स्नानादि के बाद घर के स्वच्छ स्थान पर तुलसी के गमले को जमीन से कुछ ऊँचे स्थान पर रखें। उसमें यह मंत्र बोलते हुए जल चढ़ायें-

महाप्रसादजननी सर्वसौभाग्यवर्धिनि।

आधिव्याधिहरा नित्यं तुलसि त्वां नमोऽस्तुते।।


🚩फिर ‘तुलस्यै नमः’ मंत्र बोलते हुए तिलक करें, अक्षत (चावल) व पुष्प अर्पित करें तथा कुछ प्रसाद चढ़ायें। दीपक जलाकर आरती करें और तुलसीजी की 7, 11, 21, 51 या 111 परिक्रमा करें। उस शुद्ध वातावरण में शांत होके भगवत्प्रार्थना एवं भगवन्नाम या गुरुमंत्र का जप करें। तुलसी के पास बैठकर प्राणायाम करने से बल, बुद्धि और ओज की वृद्धि होती है।तुलसी पत्ते डालकर प्रसाद वितरित करें।


🚩तुलसी के समीप भजन, कीर्तन कर सकते हैं। तुलसी नामाष्टक का पाठ भी पुण्यकारक है। तुलसी पूजन अपने नजदीकी आश्रम, तुलसी वन में अथवा यथानुकूल किसी भी पवित्र स्थान पर कर सकते हैं।

https://youtu.be/aTT-MIBPhoE


🚩आपको बता दे की संत आशारामजी बापू ने 25 दिसम्बर 2014 को ‘तुलसी पूजन दिवस’ मनाना प्रारम्भ करवाया । वर्तमान में इस पर्व की लोकप्रियता विश्वस्तर पर देखी गयी ।


🚩पिछले साल भी उनके करोड़ों लोगों द्वारा 25 दिसंबर को देश-विदेश में बड़ी धूम-धाम से तुलसी पूजन मनाया गया था । जिसमें कई हिन्दू संगठनों और आम जनता ने भी लाभ उठाया था ।


🚩ताजा रिपोर्ट के अनुसार इस साल भी एक महीने से देश-विदेश में क्रिसमस डे की जगह 25 दिसंबर “तुलसी पूजन दिवस” निमित्त घर-घर तुलसी पूजन व वितरण किया जा रहा है ।


🚩हिन्दू संत आशारामजी बापू का कहना है कि तुलसी पूजन से बुद्धिबल, मनोबल, चारित्र्यबल व आरोग्यबल बढ़ता है । मानसिक अवसाद, दुर्व्यसन, आत्महत्या आदि से लोगों की रक्षा होती है और लोगों को भारतीय संस्कृति के इस सूक्ष्म ऋषि-विज्ञान का लाभ मिलता है ।


🚩बापू आशारामजी का कहना है कि तुलसी का स्थान भारतीय संस्कृति में पवित्र और महत्त्वपूर्ण है । तुलसी को माता कहा गया है । यह माँ के समान सभी प्रकार से हमारा रक्षण व पोषण करती है । तुलसी पूजन, सेवन व रोपण से आरोग्य-लाभ, आर्थिक लाभ के साथ ही आध्यात्मिक लाभ भी होते हैं ।


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क्रिसमिस पर मध्य प्रदेश के शिक्षा विभाग ने जो किया , जनता बोली पूरे देश में लागू हो

24 December 2023

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🚩मध्य प्रदेश के शाजापुर जिले में 25 दिसंबर को आने वाले क्रिसमस त्यौहार से पहले एक नया फरमान पेश कर दिया गया है। शिक्षा विभाग ने आदेश दिया है कि ईसाई पर्व के अवसर पर छात्रों को सांता क्लॉज बनाने से पहले प्राइवेट स्कूलों को अभिभावकों से लिखित मंजूरी लेनी होगी।


🚩खबरों का कहना है कि क्रिसमस के खास अवसर पर स्कूलों में होने वाले कार्यक्रमों में स्टूडेंट्स हिस्सा लेने के लिए सांता क्लॉज का रूप धारण कर लेते हैं। लेकिन शाजापुर जिला शिक्षा विभाग ने एक पत्र जारी कर सभी अशासकीय संस्थाओं को निर्देशित कर दिया है कि आगामी समय में प्राइवेट स्कूलों को क्रिसमस त्यौहार पर, छात्रों को सांता क्लॉज की वेशभूषा में ढालने से उनके माता-पिता से लिखित में मंजूरी लेना होगी।


🚩बता दें कि जिला शिक्षा अधिकारी विवेक दुबे के नाम से जारी आदेश में बोला गया है कि यदि कोई स्कूल प्रबंधन बिना माता-पिता की अनुमति के किसी भी बच्चे को सांता क्लॉज की वेशभूषा में कार्यक्रम में हिस्सा दिलाता है, तो संबंधित स्कूल के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जा सकती है। शिक्षा विभाग का यह पत्र जिले के सभी प्राइवेट स्कूलों के लिए जारी किया गया है। इस संबंध में शिक्षा विभाग का बोलना है कि आयोजन में त्यौहार विशेष की वेशभूषा पहनाकर बच्चों को जबरदस्ती बनाया जाता है, जिससे अप्रिय स्थिति का माहौल भी बनता है। इसी के चलते यह आदेश जारी किया गया है।


🚩कुछ नासमझ भारतीय अपने बच्चों को विवेकानंदजी, वीर शिवाजी, महाराणा प्रताप, चन्द्र शेखर आज़ाद के वस्त्र नही पहनाते लेकिन क्रिसमस पर ‘सांता क्लॉज’ के वस्त्र पहनाकर उसे जोकर बना देते है। ऐसा करके हम अपनी सनातन संस्कृति का अपमान कर रहे हैं साथ-साथ अपने बच्चे को मानसिक गुलाम भी बना रहे हैं।


🚩भारत को गुलाम बनाने के लिए अंग्रेज ईसाई पर्व लेकर आए थे लेकिन भारत में पढ़े लिखे लोग बिना कारण का क्रिसमस मनाते हैं ये सब भारतीय संस्कृति को खत्म करके ईसाईकरण करने के लिए भारत में क्रिसमस डे मनाया जाता है। इसलिये भारतवासी सावधान रहें ।


🚩बता दे की क्रिसमस पर लोग जमकर शराब पीते है, नशीले प्रदार्थ का सेवन करते है, पार्टियां करते है इन दिनों में विदेशी कम्पनियों को अरबो रूपये का मुनाफा होता है। आप भी अपनी संपत्ति, स्वास्थ्य और संस्कृति को बचाना चाहते है तो ऐसे क्रिसमस जैसे त्यौहार का बहिष्कार कर सकते है।


🚩आप अपने बच्चों को धर्मप्रेमी व देशभक्तों के वस्त्र पहनाएं और उसदिन प्लाटिक के पेड़ नही लगाए, क्योंकि वह बीमारियां फैलता है,इसलिए उस दिन 24 घण्टे ऑक्सीजन देनेवाली तुलसी माता का पुजन करें।


🚩आपको बता दे कि वर्ष 2014 से देश में सुख, सौहार्द, स्वास्थ्य एवं शांति से जन मानस का जीवन मंगलमय हो इस लोकहितकारी उद्देश्य से हिदू संत आसाराम बापू ने 25 दिसम्बर “तुलसी पूजन दिवस” के रूप में मनाना शुरू करवाया था,जो आज विश्वव्यापी हो गया है।


🚩तुलसी माता के पूजन से मनोबल, चारित्र्यबल एवं आरोग्य बल बढ़ता है, मानसिक अवसाद व आत्महत्या आदि से रक्षा होती है ।


🚩आप भी 25 दिसम्बर को प्लास्टिक के पेड़ पर बल्ब जलाने की बजाय 24 घण्टे ऑक्सीजन देने वाली माता तुलसी का पूजन करें ।


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Friday, December 22, 2023

25 दिसम्बर को ‘तुलसी पूजन दिवस’ मनाने से फायदे ही फायदे

23 December 2023

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🚩तुलसी सम्पूर्ण धरा के लिए वरदान है, अत्यंत उपयोगी औषधि है, मात्र इतना ही नहीं, यह तो मानव जीवन के लिए अमृत है ! यह केवल शरीर स्वास्थ्य की दृष्टि से ही नहीं, अपितु धार्मिक, आध्यात्मिक, पर्यावरणीय एवं वैज्ञानिक आदि विभिन्न दृष्टियों से भी बहुत महत्त्वपूर्ण है।


🚩तुलसी पूजन दिवस 25 दिसम्बर को क्यों मनायें ?


🚩इन दिनों में बीते वर्ष की विदाई पर पाश्चात्य अंधानुकरण से नशाखोरी, आत्महत्या आदि की वृद्धि होती जा रही है। तुलसी उत्तम अवसादरोधक एवं उत्साह, स्फूर्ति, सात्त्विकता वर्धक होने से इन दिनों में यह पर्व मनाना वरदानतुल्य साबित होगा।


🚩कवि ने क्या बताया?


🚩प्लास्टिक के पेड़ के नीचे मोमबत्ती जलाना, ये कैसी आधुनिकता है।

सांता क्लॉज आएंगे उपहार देने, ये कैसी मानसिकता है।।


🚩25 दिसम्बर को यीशु मसीह जन्में, ये भी कहीं नहीं लिखा।

बाईबल के पन्ने भी पलटे, पर उसमें भी नहीं दिखा।।


🚩फिर क्यों व्यर्थ में क्रिसमस के प्रचलन को बढ़ावा दिया गया।

यीशु, सांता क्लॉज का नाम जोड़कर, क्यों दिखावा किया गया।।


🚩प्लास्टिक से बना पेड़, भयंकर बीमारियों को आमंत्रण है।

मोमबत्ती जलने से निकली कार्बन डाइऑक्साइड, फैलाती प्रदूषण है।


🚩क्रिसमस मनाने से आजतक बस, युवावर्ग का ह्रास हुआ।

नशे की तरफ आकर्षित हुए, नैतिकता का सर्वनाश हुआ।।


🚩इसे देख आशारामजी बापू ने ठाना, समाज को बचाना है।

युवावर्ग है देश की नींव, उनको सही मार्ग दिखाना है।।


🚩25 दिसम्बर को करें तुलसी पूजन, यह सुंदर शुरुआत की।

स्वच्छ हो पर्यावरण, संस्कारी हो समाज, सबके भले की बात की।।


🚩तुलसी माता है हरि की प्रिय, तुलसी असाध्य रोग हर लेती है।

वातावरण से प्रदूषक है सोखती, 24 घण्टे ऑक्सिजन देती है।।


🚩जाग मानव! आडम्बर और दिखावे वाली आधुनिकता में मत फंस।

आशाराम बापूजी की सत्प्रेरणा से, 25 दिसम्बर को मनाओ तुलसी पूजन दिवस।। – कवि सुरेन्द्र भाई


🚩क्रिसमिस के दिन शराब आदि नशीले पदार्थ का जमकर सेवन करते है, अश्लीलता भरे गाने गाये जाते हैं, पार्टी करते हैं, महिलाओं से छेड़छाड़ करते हैं जिसके कारण वातावरण अशुद्ध होता है, स्वास्थ्य खराब होता है, पैसे और समय की बर्बादी होती है और आत्महत्याएं बढ़ती है इन सबको रोकने के लिए क्रिसमिस की जगह तुलसी पूजन दिसव मनाना अत्यंत आवश्यक है।


 🚩फ्रेच डॉक्टर विक्टर रेसीन ने कहा है- “तुलसी एक अदभुत औषधि (Wonder Drug) है।


🚩इजरायल में धार्मिक, सामाजिक, वैवाहिक और अन्य मांगलिक अवसरों पर तुलसी द्वारा पूजन कार्य सम्पन्न होते रहे हैं, यहाँ तक कि अंत्येष्टि क्रिया में भी।


🚩विदेशों में भी होती है तुलसी पूजा


🚩मात्र भारत में ही नहीं वरन् विश्व के कई अन्य देशों में भी तुलसी को पूजनीय व शुभ माना गया है। ग्रीस में इस्टर्न चर्च नामक सम्प्रदाय में तुलसी की पूजा होती थी और सेंट बेजिल जयंती के दिन नूतन वर्ष भाग्यशाली हो इस भावना से चढ़ायी गयी तुलसी के प्रसाद को स्त्रियाँ अपने घर ले जाती थीं।


🚩पद्म पुराण के अनुसार


या दृष्टा निखिलाघसंघशमनी स्पृष्टा वपुष्पावनी।

रोगाणामभिवन्दिता निरसनी सिक्तान्तकत्रासिनी।।

प्रत्यासत्तिविधायिनी भगवतः कृष्णस्य संरोपिता।

न्यस्ता तच्चरणे विमुक्तिफलदा तस्यै तुलस्यै नमः।।


🚩जो दर्शन करने पर सारे पाप-समुदाय का नाश कर देती है, स्पर्श करने पर शरीर को पवित्र बनाती है, प्रणाम करने पर रोगों का निवारण करती है, जल से सींचने पर यमराज को भी भय पहुँचाती है, आरोपित करने पर भगवान श्रीकृष्ण के समीप ले जाती है और भगवान के चरणों में चढ़ाने पर मोक्षरूपी फल प्रदान करती है, उस तुलसी देवी को नमस्कार है। (पद्म पुराणः उ.खं. 56.22)


🚩तुलसी माता की अनंत महिमा जानकर आप भी अपने घर आंगन में तुलसी के पौधे जरूर लगाएं और दूसरों को भी प्रेरित करें और हाँ एक बात ध्यान रखें 25 दिसंबर को क्रिसमस नहीं तुलसी पूजन दिवस मनाएं।


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Thursday, December 21, 2023

केवल श्रीमद्भगवद्गीता की ही जयंती क्यों मनाई जाती हैं ?

22 December 2023

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🚩गीता में ऐसा उत्तम और सर्वव्यापी ज्ञान है कि उसकी रचना हुए हजारों वर्ष बीत गए हैं किन्तु उसके बाद उसके समान किसी भी ग्रंथ की रचना नहीं हुई है। 18 अध्याय एवं 700 श्लोकों में रचित तथा भक्ति, ज्ञान, योग एवं निष्कामता आदि से भरपूर यह गीता ग्रन्थ विश्व में एकमात्र ऐसा ग्रन्थ है जिसकी जयंती मनायी जाती है।

इस साल श्रीमद्भगवद्गीता जयंती 22 दिसंबर 2023 को है।


🚩श्रीमद्भगवद्गीता ने किसी मत, पंथ की सराहना या निंदा नहीं की, अपितु मनुष्यमात्र की उन्नति की बात कही है। गीता जीवन का दृष्टिकोण उन्नत बनाने की कला सिखाती है और युद्ध जैसे घोर कर्मों में भी निर्लेप रहने की कला सिखाती है। मरने के बाद नहीं, जीते-जी मुक्ति का स्वाद दिलाती है गीता!


🚩‘गीता’ में 18 अध्याय हैं, 700 श्लोक हैं, 94569 शब्द हैं। विश्व की 578 से भी अधिक भाषाओं में गीता का अनुवाद हो चुका है।


🚩’यह मेरा हृदय है’- ऐसा अगर किसी ग्रंथ के लिए भगवान ने कहा है तो वह गीताजी हैं। ‘गीता मे हृदयं पार्थ।- गीता मेरा हृदय है।’


🚩गीता ने गजब कर दिया- धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे… युद्ध के मैदान को भी धर्मक्षेत्र बना दिया। युद्ध के मैदान में गीता ने योग प्रकटाया। हाथी चिंघाड़ रहे हैं, घोड़े हिनहिना रहे हैं, दोनों सेनाओं के योद्धा प्रतिशोध की आग में तप रहे हैं। किंकर्तव्यविमूढ़ता से उदास बैठे हुए अर्जुन को भगवान श्रीकृष्ण ज्ञान का उपदेश दे रहे हैं।


🚩आजादी के समय स्वतंत्रता सेनानियों को जब फाँसी की सजा दी जाती थी, तब ‘गीता’ के ही श्लोक बोलते हुए वे हँसते-हँसते फाँसी पर लटक जाते थे।


🚩श्री वेदव्यास ने महाभारत में गीता का वर्णन करने के उपरान्त कहा हैः

गीता सुगीता कर्तव्या किमन्यैः शास्त्रविस्तरैः।

या स्वयं पद्मनाभस्य मुखपद्माद्विनिःसृता।।


🚩‘गीता सुगीता करने योग्य है अर्थात् श्री गीता को भली प्रकार पढ़कर अर्थ और भाव सहित अंतःकरण में धारण कर लेना मुख्य कर्तव्य है, जो कि स्वयं श्री पद्मनाभ विष्णु भगवान के मुखारविन्द से निकली हुई है, फिर अन्य शास्त्रों के विस्तार से क्या प्रयोजन है?’


🚩विदेशों में श्री गीता जी का महत्व समझकर स्कूल, कॉलेजों में पढ़ाने लगे हैं, भारत सरकार भी अगर बच्चों एवं देश का भविष्य उज्ज्वल बनाना चाहती है तो सभी स्कूलों, कॉलेजों में गीता अनिवार्य कर देना चाहिए।


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Wednesday, December 20, 2023

निहंग सिखों की घोषणा : ‘हम सनातन के अंग, श्रीराम की आने की खुशी में लगाएँगे लंगर’

21 December 2023

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🚩जनवरी 2024 में अयोध्या में सिख समाज भगवान श्रीराम जी के मंदिर महोत्सव में 2 महीने तक लंगर लगाएगा। इसकी अगुवाई बाबा हरजीत सिंह रसूलपुर करेंगे। बाबा रसूलपुर बाबा फकीर सिंह खालसा की आठवीं पीढ़ी के हैं। बाबा फकीर सिंह खालसा की अगुवाई में निहंग सिखों ने सबसे पहले अयोध्या में बाबरी ढाँचे पर कब्जा किया था। बाबा ने कहा कि सिख समाज भी सनातन का हिस्सा है और उनके पूर्वजों ने इसकी रक्षा के लिए कुर्बानी दी है।


🚩इस दौरान बाबा हरजीत सिंह ने खालिस्तानियों और हिंदू-सिख के बीच दरार पैदा करने वालों को भी करारा जवाब दिया। उन्होंने कहा, “हम पूरी दुनिया को बताना चाहते हैं कि सिख और सनातन एक हैं। जो हमारा देश है, वह अलग नहीं है। जो हमें तोड़ने की बातें कर रहे हैं, उन्हें इसके माध्यम से एक अच्छा मैसेज देना चाह रहे हैं।” उन्होंने आगे, “इस राम मंदिर को मुस्लिमों से जिन्होंने सबसे पहले कब्जा लिया था, वे हमारे पूर्वज थे।”


🚩“हम भी सनातन का हिस्सा”


🚩अयोध्या में लंगर लगाने का निर्णय लेने वाले निहंग सिखों की अगुवाई करने वाले बाबा रसूलपुर ने कहा कि वह अयोध्या में लंगर लगाकर भगवान राम के प्रति अपने पूर्वजों की भक्ति को आगे बढ़ाएँगे। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, बाबा ने कहा, “अब जब 22 जनवरी को भगवान राम की प्राण प्रतिष्ठा की जा रही है तो मैं कैसे पीछे रह सकता हूँ।” उन्होंने कहा कि वह निहंगों के साथ जनवरी 2024 में 2 महीने तक अयोध्या में लंगर चलाएँगे।


🚩मीडिया से बातचीत की शुरुआत बाबा हरजीत सिंह ने ‘वाहे गुरु जी की खालसा, वाहे गुरु जी की फतेह’ और ‘जय श्रीराम’ के साथ की। उन्होंने कहा, “मैं समाज को गुरु तेग बहादुर सिंह की कुर्बानी को याद दिलाना चाहता हूँ। उन्होंने आज के दिन सनातन को बचाने के लिए बलिदान दिया था। उन्होंने चाँदनी चौक पर सनातन को बचाने के लिए शहादत दी।”


🚩बाबा ने आगे कहा, “मैं पूरी दुनिया को बताना चाहता हूँ कि हम भी सनातन का हिस्सा हैं। यही हमारा धर्म है। हम ही वो हैं, जिन्होंने सनातन को बचाया। अयोध्या में श्री रामलला जी 22 जनवरी को पधार रहे हैं। हम सिख और हिंदू भाई इस खुशी को मिलकर मनाएँगे।”


🚩बाबा रसूलपुर ने कहा, “हमारे बुजुर्ग थे जत्थेदार बाबा फकीर सिंह जी खालसा निहंग सिंह रसूलपुर। मैं उनकी विरासत में आठवीं पीढ़ी से हूँ। हम इसकी खुशी में अयोध्या में लंगर लगाने जा रहे हैं। मैं सबको यही बताने की कोशिश कर रहा हूँ कि हम सब साथ हैं।”


🚩बाबा हरजीत सिंह ने कहा, “मेरा किसी भी राजनीतिक दल से कोई संबंध नहीं है और मैं केवल सनातन परंपराओं का वाहक हूँ। निहंगों और सनातन धर्म के बीच सद्भाव बनाए रखने के दौरान मुझे आलोचना का सामना करना पड़ा, क्योंकि एक तरफ मैं अमृतधारी सिख हूँ लेकिन दूसरी तरफ मैं अपने गले में रुद्राक्ष की माला पहनता हूँ”।


🚩30 नवंबर 1858 को निहंगों ने किया था बाबरी पर कब्जा


🚩अयोध्या में राम मंदिर से जुड़े इतिहास के पन्नों में 30 नवंबर 1858 का दिन बेहद खास है। इसी दिन बाबा फकीर सिंह खालसा की अगुवाई में 25 सिख निहंगों ने बाबरी ढाँचे पर कब्जा कर लिया था। उन्होंने कई दिनों तक बाबरी पर कब्जा बनाए रखा था और राम नाम का पाठ किया था। उन्होंने बाबरी ढाँचे पर राम नाम भी लिख दिया।


🚩बाबरी पर गैर-मुस्लिमों के कब्जे का पहला प्रमाण यही है। इसको लेकर अवध के थानेदार शीतल दुबे ने बाबरी के अधिकारी की शिकायत पर 25 निहंग सिखों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की थी। बाबा हरजीत सिंह रसूलपुर ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले में अवध के थानेदार की रिपोर्ट का हवाला दिया गया है।


🚩राम जन्मभूमि पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले की कॉपी के पेज नंबर 164 पर इस एफआईआर का जिक्र है। इसमें कहा गया है कि दो दर्जन निहंग सिखों ने बाबा फकीर सिंह खालसा के नेतृत्व में 30 नवंबर 1858 को बाबरी ढाँचे पर कब्जा कर लिया था और हवन यज्ञ करने के साथ ही दीवारों पर राम नाम लिखा था।


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Tuesday, December 19, 2023

जय भीम जय मीम का नारा लगाने वाले, संत रविदास जी को भी समझ लीजिए

20 December 2023

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🚩आज जय भीम, जय मीम का नारा लगाने वाले दलित भाइयों को आज के कुछ राजनेता कठपुतली के समान प्रयोग कर रहे हैं। यह मानसिक गुलामी का लक्षण है। दलित-मुस्लिम गठजोड़ के रूप में बहकाना भी इसी कड़ी का भाग हैं। आजकल सन्त रविदास जी के अनेक चित्र अंबेडकरवादी संस्थानो मे मिलते हैं। उनपर सन्त रविदास के साथ बोधिसत्व लिखा होता है। अनेक चित्रों मे उन्हे महात्मा बुद्ध के साथ दिखाया गया है। एक स्थान पर दीवार पर महात्मा बुद्ध, और अंबेडकर के मध्य मे सन्त रविदास का चित्र बना कर नीचे लिखा था। 

जिस किताब मे उंच नीच का भेद है,

 उसका नाम वेद है।

जिस किताब मे सब समान हैं,

उसका नाम संविधान है। 


🚩यह एक साजिश है सनातन धर्म के स्तम्भ सन्त रविदास और कबीरदास जैसे महात्माओं को सेक्युलरिज़्म का बुर्का पहनाने की। 


🚩दलित समाज में संत रविदास जी का नाम प्रमुख समाज सुधारकों के रूप में स्मरण किया जाता हैं। आप जाटव या चमार कुल से सम्बंधित माने जाते थे। चमार शब्द चंवर का अपभ्रंश है। 


🚩चर्ममारी राजवंश का उल्लेख महाभारत जैसे प्राचीन भारतीय वांग्मय में मिलता है। प्रसिद्ध विद्वान डॉ विजय सोनकर शास्त्राी ने इस विषय पर गहन शोध कर चर्ममारी राजवंश के इतिहास पर पुस्तक लिखा है। इसी तरह चमार शब्द से मिलते-जुलते शब्द चंवर वंश के क्षत्रियों के बारे में कर्नल टाड ने अपनी पुस्तक ‘राजस्थान का इतिहास’ में लिखा है। चंवर राजवंश का शासन पश्चिमी भारत पर रहा है। इसकी शाखाएं मेवाड़ के प्रतापी सम्राट महाराज बाप्पा रावल के वंश से मिलती हैं। संत रविदास जी महाराज लम्बे समय तक चित्तौड़ के दुर्ग में महाराणा सांगा के गुरू के रूप में रहे हैं। संत रविदास जी महाराज के महान, प्रभावी व्यक्तित्व के कारण बड़ी संख्या में लोग इनके शिष्य बने। आज भी इस क्षेत्रा में बड़ी संख्या में रविदासी पाये जाते हैं। 


🚩उस काल का मुस्लिम सुल्तान सिकंदर लोधी अन्य किसी भी सामान्य मुस्लिम शासक की तरह भारत के हिन्दुओं को मुसलमान बनाने की उधेड़बुन में लगा रहता था। इन सभी आक्रमणकारियों की दृष्टि ग़ाज़ी उपाधि पर रहती थी। सुल्तान सिकंदर लोधी ने संत रविदास जी महाराज मुसलमान बनाने की जुगत में अपने मुल्लाओं को लगाया। जनश्रुति है कि वो मुल्ला संत रविदास जी महाराज से प्रभावित हो कर स्वयं उनके शिष्य बन गए और एक तो रामदास नाम रख कर हिन्दू हो गया। सिकंदर लोदी अपने षड्यंत्रा की यह दुर्गति होने पर चिढ़ गया और उसने संत रविदास जी को बंदी बना लिया और उनके अनुयायियों को हिन्दुओं में सदैव से निषिद्ध खाल उतारने, चमड़ा कमाने, जूते बनाने के काम में लगाया। इसी दुष्ट ने चंवर वंश के क्षत्रियों को अपमानित करने के लिये नाम बिगाड़ कर चमार सम्बोधित किया। चमार शब्द का पहला प्रयोग यहीं से शुरू हुआ। संत रविदास जी महाराज की ये पंक्तियाँ सिकंदर लोधी के अत्याचार का वर्णन करती हैं।


🚩वेद धर्म सबसे बड़ा, अनुपम सच्चा ज्ञान

फिर मैं क्यों छोड़ू, इसे पढ़ लू, झूठ क़ुरान

वेद धर्म छोड़ूँ नहीं कोसिस करो हजार

तिल-तिल काटो चाही गोदो अंग कटार

चंवर वंश के क्षत्रिय संत रविदास जी के बंदी बनाने का समाचार मिलने पर दिल्ली पर चढ़ दौड़े और दिल्लीं की नाकाबंदी कर ली। विवश हो कर सुल्तान सिकंदर लोदी को संत रविदास जी को छोड़ना पड़ा । इस झपट का ज़िक्र इतिहास की पुस्तकों में नहीं है मगर संत रविदास जी के ग्रन्थ रविदास रामायण की यह पंक्तियाँ सत्य उद्घाटित करती हैं।

बादशाह ने वचन उचारा । मत प्यारा इसलाम हमारा ।।

खंडन करै उसे रविदासा । उसे करौ प्राण कौ नाशा ।।

जब तक राम नाम रट लावे । दाना पानी यह नहीं पावे ।।

जब इसलाम धर्म स्वीरकारे । मुख से कलमा आप उचारै ।।

पढे नमाज जभी चितलाई । दाना पानी तब यह पाई ।।


🚩जैसे उस काल में इस्लामिक शासक हिंदुओं को मुसलमान बनाने के लिए हर संभव प्रयास करते रहते थे, वैसे ही आज भी कर रहे हैं। उस काल में दलितों के प्रेरणास्रोत्र संत रविदास सरीखे महान चिंतक थे। जिन्हें अपने प्रान न्योछावर करना स्वीकार था मगर वेदों को त्याग कर क़ुरान पढ़ना स्वीकार नहीं था। 

मगर इसे ठीक विपरीत आज के दलित राजनेता अपने तुच्छ लाभ के  लिए अपने पूर्वजों की संस्कृति और तपस्या की अनदेखी कर रहे हैं।  

 दलित समाज के कुछ राजनेता जिनका काम ही समाज के छोटे-छोटे खंड बाँट कर अपनी दुकान चलाना है अपने हित के लिए हिन्दू समाज के टुकड़े-टुकड़े करने का प्रयास कर रहे हैं। 


🚩आईये डॉ अम्बेडकर की सुने जिन्होंने अनेक प्रलोभन के बाद भी इस्लाम और ईसाइयत को स्वीकार करना स्वीकार नहीं किया। 

(हर हिन्दू राष्ट्रवादी इस लेख को शेयर अवश्य करे जिससे हिन्दू समाज को तोड़ने वालों का षड़यंत्र विफल हो जाये) - डॉ विवेक आर्य


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Monday, December 18, 2023

हिंदुस्तानी होकर 1 जनवरी वाला नववर्ष मानकर कही आप तो ये गलती नही कर रहे हो ?

19 December 2023

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🚩देश में स्वराज्य की मांग जोर पकड़ रही थी। अंग्रेज भयभीत थे, इसलिए उन्होंने नया साल 1930 संयुक्त प्रांत की हर सामाजिक एवं धार्मिक संस्था से मनाने का आदेश जारी किया और साथ ही यह भी धमकी दी कि जो संस्था यह नया साल नहीं मनाएगी उसके सदस्यों को जेल भेज दिया जाएगा।


🚩आपको बता दें कि सृष्टि का जिस दिन निर्माण हुआ था, उस दिन ही चैत्र शुक्लपक्ष प्रतिपदा थी और सनातन हिंदू धर्म में इसी दिन को नूतन वर्ष मनाया जाता है, लेकिन 700 साल तुर्क-मुग़लों और 200 साल अंग्रेजों के गुलाम रहे, जिसके कारण हम अपना नूतन वर्ष भूल गए और अंग्रेजों के नूतन वर्ष मनाने लगे। अंग्रेज गये 76 साल से ऊपर हो गए,लेकिन उनकी शिक्षा की पढ़ाई करने के कारण मानसिक गुलामी अभी नहीं गई, जिसके कारण अपना नूतन वर्ष हमें याद भी नहीं आता है।


🚩जो भारतीय नूतन वर्ष भूल गए हैं और अंग्रेजों वाला नया वर्ष मना रहे हैं, उनके लिए कवि ने अपनी व्यथा प्रकट करते हुए एक कविता लिखी है, आप भी पढ़ लीजिये…



🚩ना सुंदर फूल खिलते हैं, ना वातावरण में महकते हैं।

प्रकृति भी निस्तेज सी लगती, ना ही पक्षी चहकते हैं।।

01 जनवरी नववर्ष से हमें क्या मतलब, क्यों मनायें हम हर्ष ?

हम हैं सनातन संस्कृति परंपरा से, हम क्यों मनाएं ईसाई नववर्ष ?


🚩सबसे पहले ईसाई नववर्ष जूलियस सीजर ने मनवाया।

अंग्रेज़ों ने भारत में आकर इस परंपरा को और चमकाया।।


🚩सनातन संस्कृति से ईसाई नववर्ष का, कोई सरोकार नहीं है।

क्यों हो पाश्चात्य संस्कृति के पीछे अंधे, ये हमारे संस्कार नहीं हैं।।


🚩क्यों हो व्यसनों की तरफ आकर्षित , क्यों पीएं शराब, बियर ?

क्यों करें अपना नैतिक पतन, क्यों बोलें हैप्पी न्यू ईयर ?


🚩ईसाई देशों में खूब बम पटाखे फोड़ेंगे, मीडिया वाले कुछ नहीं कहेंगे।

होली दीवाली में प्रदूषण देखने वाले, देखना इस पर मौन ही रहेंगे।।


🚩वास्तव में ये नववर्ष नहीं है, ये है सनातन संस्कृति पर प्रहार।

समय की मांग है- एकत्र हो, करो ईसाई नववर्ष का बहिष्कार।।


🚩चैत्र मास शुक्लपक्ष प्रतिपदा को, चलो हम नववर्ष मनाएं।

रंगोली बनाएं, दीप जलाएं, घर घर भगवा पताका फहराएं।। – कवि सुरेन्द्र भाई


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