Wednesday, December 27, 2023

जिन्होंने आपका अस्तित्व बचाया, उनके बलिदान को भूलकर क्रिसमिस क्यों मनाने लगे ?

27 December 2023

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🚩क्रिसमस भारत का त्यौहार नहीं है बल्कि 200 साल भारत को गुलाम रखने वाले अंग्रेजो और धर्मांतरण कराने वाले ईसाई मिशनरियों का त्यौहार है फिर भी कुछ ना समज लोग क्रिसमस मनाते है, क्रिसमस मनाने से पहले जान ले कि 20 दिसम्बर से 27 दिसंबर तक क्या हुआ था, और हमें क्या करना चाहिए।


🚩भारत पर मुगल साम्राज्य था। मुग़ल शासक औरंगजेब एक कट्टर मुसलमान था और धर्मांध होकर इस्लाम स्वीकार कराने के लिए उसने हिन्दुओं को अनेक प्रकार के कष्ट दिये। वह सम्पूर्ण भारत को इस्लाम का अनुयायी बनाना चाहता था उसके आदेशों पर अनेकों स्थानों पर मंदिरों को तोडकर मस्जिदें बनायी गयीं , हिन्दुओं पर नाना प्रकार के कर लगाये गये , कोई भी हिन्दू शस्त्र धारण नहीं कर सकता था , घोड़े पर सवारी करना भी हिन्दुओं के लिए वर्जित था। औरंगजेब भारतीय संस्कृति तथा धर्म को जड़मूल से समाप्त कर देना चाहता था। हिन्दुओं में आपसी कलह के कारण जुल्मों का विरोध नहीं हो रहा था। इन्हीं जुल्मों के खिलाफ आवाज उठाई दशम गुरू गोबिन्द सिंह जी ने , जिन्होंने निर्बल हो चुके हिन्दुओं में नया उत्साह और जागृति पैदा करने का मन बना लिया। इसी उद्देश्य को पूरा करने के लिए गुरू गोबिन्द सिंह जी ने 1699 को बैसाखी वाले दिन आनन्दपुर साहिब में खालसा पंथ की स्थापना की।


🚩खालसा पंथ से बौखलाये सरहिंद के सूबेदार वजीर खान और पहाड़ी दोगले हिन्दू राजे एकजुट हो गए और 1704 में गुरू गोबिन्द सिंह जी पर आक्रमण कर दिया। मुगलों ने पहाड़ी नरेशों की सहायता से आनंदपुर के किले को चारों ओर से घेर लिया जहाँ गुरु गोविन्दसिंह जी मौजूद थे, पर मुगल सेना अनेक नरेशों की सहायता से आनंदपुर के किले को चारों ओर से घेर लिया जहाँ गुरु गोविन्दसिंह जी मौजूद थे , पर मुगल सेना अनेक प्रयत्नों के बाद भी किले पर विजय पाने में असफल रही। सिखों ने बड़ी दिलेरी से इनका मुकाबला किया और सात महीने तक आनन्दपुर के किले पर कब्जा नहीं होने दिया हताश होकर औरंगजेब ने गुरुजी को संदेश भेजा और कुरान की कसम खाकर गुरू जी से किला खाली करने के लिए विनती की और कहा कि यदि गुरुगोविन्द सिंह आनंदपुर का किला छोडकर चले जाते हैं तो उनसे युद्ध नहीं किया जायेगा।


🚩गुरुजी को औरंगजेब के कथन पर विश्वास नहीं था, पर फिर भी सिखों से सलाह कर गुरु जी घोडे से सिख – सैनिकों के साथ 20 दिसम्बर 1704 की रात को किला खाली कर बाहर निकले और रोपड़ की और कूच कर गए। जब इस बात का पता मुगलों को लगा तो उन्होंने सारी कसमें तोड़ डाली और गुरू जी पर हमला कर दिया। लड़ते – लड़ते सिख सिरसा नदी पार कर गए और चमकौर की गढ़ी में गुरू जी और उनके दो बड़े साहिबजादों ने मोर्चा संभाला। ये युद्ध अपने आप में खास है क्योंकि 80 हजार मुगलों से केवल 40 सिखों ने मुकाबला किया था। जब सिखों का गोला बारूद खत्म हो गया तो गुरू गोबिन्द सिंह जी ने पांच पांच सिखों का जत्था बनाकर उन्हें मैदाने जंग में भेजा। सिख सैनिक बहुत कम संख्या में थे , फिर भी उन्होंने मुगलों से डटकर मुकाबला किया और मुगल – सेना के हजारों सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया। इस लड़ाई में गुरू जी से इजाजत लेकर बड़े साहिबजादे भी शामिल हो गए। लड़ते लड़ते वो सिरसा नदी पार कर गए और वीरता के साथ लडते हुए 18 वर्षीय अजीतसिंह और 15 वर्षीय जुझारसिंह वीरगति को प्राप्त हो गए।


🚩आनंदपुर छोडते समय ही गुरु गोबिंदसिंह जी का परिवार बिखर गया था। गुरुजी के दोनों छोटे पुत्र जोरावरसिंह तथा फतेहसिंह अपनी दादी माता गुजरी के साथ आनंदपुर छोडकर आगे बढे। जंगलों, पहाडों को पार करते हुए वे एक नगर में पहुंचे, जहाँ कम्मो नामक पानी ढोने वाले एक गरीब मजदूर ने गुरुपुत्रों व माता गुजरी की प्रेमपूर्वक सेवा की। इन सभी के साथ में गंगू नामक एक ब्राम्हण, जो कि गुरु गोबिंदसिंह के पास 22 वर्षों से रसोइए का काम कर रहा था, वो भी आया हुआ था। उसने रात में माता जी की सोने की मोहरों वाली गठरी चोरी कर ली। सुबह जब माता जी ने गठरी के बारे में पूछा तो वो न सिर्फ आग बबूला ही हुआ बल्कि उसने धन के लालच में गुरुमाता व बालकों से विश्वासघात किया और एक कमरे में बाहर से दरवाजा बंद कर उन्हें कैद कर लिया तथा मुगल सैनिकों को इसकी सूचना दे दी। मुगलों ने तुरंत आकर गुरुमाता तथा गुरु पुत्रों को पकड़ कर कारावास में डाल दिया। कारावास में रात भर माता गुजरी बालकों को सिख गुरुओं के त्याग तथा बलिदान की कथाएं सुनाती रहीं। दोनों बालकों ने दादी को आश्वासन दिया कि वे अपने पिता के नाम को ऊँचा करेंगे और किसी भी कीमत पर अपना धर्म नहीं छोडेंगे।


🚩बच्चों को बोला तुम अपना धर्म त्यागकर इस्लाम कबूलकर लो।” दोनों बालक एक साथ बोल उठे – ‘ हमें अपना धर्म प्राणों से भी प्यारा है। हम , उसे अंतिम सांस तक नहीं छोड़ सकते।’ दोंनो बच्चों को जिंदा दीवार में चुन लिया, दोनों बच्चों ने अपने देश-धर्म के लिए वीरगति प्राप्त की।


🚩गुरु साहब ने सिर्फ एक सप्ताह के भीतर यानी 22 दिसम्बर से 27 दिसम्बर के बीच अपने 4 बेटे देश-धर्म की खातिर वीरगति प्राप्त हुए थे।


🚩20 दिसम्बर को श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने परिवार सहित श्री आनंद पुर साहिब का किला छोड़ा।


🚩21 व 22 दिसंबर को गुरु साहिब अपने दोनों बड़े पुत्रों सहित चमकौर के मैदान में पहुंचे और गुरु साहिब की माता और छोटे दोनों साहिबजादों को गंगू नामक ब्राह्मण जो कभी गुरु घर का रसोइया था उन्हें अपने साथ अपने घर ले आया।


🚩चमकौर की जंग शुरू हुई और दुश्मनों से जूझते हुए गुरु साहिब के बड़े साहिबजादे श्री अजीत सिंह और छोटे साहिबजादे श्री जुझार सिंह अन्य साथियों सहित देश-धर्म की रक्षा के लिए वीरगति को प्राप्त हुए।


🚩23 दिसंबर को गुरु साहिब की माता श्री गुजर कौर जी और दोनों छोटे साहिबजादे गंगू ब्राह्मण के द्वारा गहने एवं अन्य सामान चोरी करने के उपरांत तीनों को मुखबरी कर मोरिंडा के चौधरी गनी खान और मनी खान के हाथों गिरफ्तार करवा दिया गया और गुरु साहिब को अन्य साथियों की बात मानते हुए चमकौर छोड़ना पड़ा।


🚩24 दिसंबर को तीनों को सरहिंद पहुंचाया गया और वहां ठंडे बुर्ज में नजरबंद किया गया।


🚩25 और 26 दिसंबर को छोटे साहिबजादों को नवाब वजीर खान की अदालत में पेश किया गया और उन्हें धर्म परिवर्तन करने के लिए लालच दिया गया।


🚩27 दिसंबर को साहिबजादा जोरावर सिंह उम्र महज 8 वर्ष और साहिबजादा फतेह सिंह उम्र महज 6 वर्ष को तमाम जुल्म उपरांत जिंदा दीवार में चिनने उपरांत जिबह (गला रेत) कर शहीद किया गया और खबर सुनते ही माता गुजर कौर ने अपने साँस त्याग दिए।


🚩अब निर्णय आप करो कि भारतवासीयों का धर्मांतरण कराने वाले ईसाई मिशनरियों का त्यौहार क्रिसमस मनाना चाहिए कि हमारे गुरु गोविंद सिंह के परिवार के शहिद दिवस मनाना चाहिए जो देश व धर्म की रक्षा के लिए अपने प्राण भी दे दिया, आप देश व धर्म की रक्षा के लिए प्राण नहीं दे सकते हैं तो कम से कम धर्मांतरण का धंधा करने वालों का त्यौहार मनाना और बच्चों को उनके वस्त्र और टोपी पहनाना तो छोड़ ही सकते हैं।


🚩धर्मांतरण करवाने वाले ईसाईयों का क्रिसमस मनाने की जगह बलिदान दिवस और तुलसी पूजन दिवस मनाना चाहिए जिससे भारतीय संस्कृति की गरिमा बनी रहेगी, स्वास्थ्य बढ़ेगा, वातावरण शुद्ध होगा।


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Monday, December 25, 2023

अटल बिहारी वाजपेयी जी ने आशाराम बापू के बारे में क्या कहा था ?

26 December 2023

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🚩देश-विदेश के आम जनता के साथ साथ कई बड़ी बड़ी हस्तियां भी आशाराम बापू के प्रवचन में जाति थी, आशाराम बापू के प्रवचनों में इतनी भीड़ होने का कारण यह था की उनके हृदय में मानवमात्र के लिये करूणा, दया व प्रेम भरा रहता है । जब भी कोई दिन-हीन उनको अपने दुःख-दर्द की करूणा-गाथा सुनाता है, वे तत्क्षण ही उसका समाधान बता देते हैं ।

भारतीय संस्कृति के उच्चादर्शों का स्थायित्व समाज में सदैव बन ही रहे, इस हेतु बापू सतत क्रियाशील बने रहते हैं । भारत के प्रांत-प्रांत और गाँव-गाँव में भारतीय संस्कृति का अनमोल खजाना बाँटने के लिये वे सदैव घूमा ही करते हैं । समाज के दिशाहीन युवाओं को, पथभृष्ट विद्यार्थियों को एवं लक्ष्यविहीन मानव समुदाय को सन्मार्ग पर प्रेरित करने के लिए अनेक कष्टों व विध्नों का सामना करते हुए भी बापू आशारामजी सतत प्रयत्नशील रहते हैं । वे चाहते है कि कैसे भी करके, मेरे देश के लोग सत्यमार्ग का अनुसरण करते हुए अपनी सुषुप्त शक्तियों को जागृत कर महानता के सर्वोत्कृष्ट शिखर पर आसीन हो जाय और भारत फिर से विश्व गुरु पद पर आसीन हो जाए।


🚩आपको बता दे की तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई ने  संत आशाराम बापू के प्रवचन में जाकर बताया था कि "पूज्य बापूजी के भक्तिरस में डूबे हुए श्रोता भाई-बहनों! मैं यहाँ पर पूज्य बापूजी का अभिनंदन करने आया हूँ.... उनका आशीर्वचन सुनने आया हूँ.... भाषण देने य बकबक करने नहीं आया हूँ। बकबक तो हम करते रहते हैं। बापू जी का जैसा प्रवचन है, कथा-अमृत है, उस तक पहुँचने के लिए बड़ा परिश्रम करना पड़ता है। मैंने पहले उनके दर्शन पानीपत में किये थे। वहाँ पर रात को पानीपत में पुण्य प्रवचन समाप्त होते ही बापूजी कुटीर में जा रहे थे.. तब उन्होंने मुझे बुलाया। मैं भी उनके दर्शन और आशीर्वाद के लिए लालायित था। संत-महात्माओँ के दर्शन तभी होते हैं, उनका सान्निध्य तभी मिलता है जब कोई पुण्य जागृत होता है।


🚩इस जन्म में मैंने कोई पुण्य किया हो इसका मेरे पास कोई हिसाब तो नहीं है किंतु जरुर यह पूर्व जन्म के पुण्यों का फल है जो बापू जी के दर्शन हुए। उस दिन बापूजी ने जो कहा, वह अभी तक मेरे हृदय-पटल पर अंकित हैं। देशभर की परिक्रमा करते हुए जन-जन के मन में अच्छे संस्कार जगाना, यह एक ऐसा परम राष्ट्रीय कर्तव्य है, जिसने हमारे देश को आज तक जीवित रखा है और इसके बल पर हम उज्जवल भविष्य का सपना देख रहे हैं... उस सपने को साकार करने की शक्ति-भक्ति एकत्र कर रहे हैं।


🚩पूज्य बापूजी सारे देश में भ्रमण करके जागरण का शंखनाद कर रहे हैं, सर्वधर्म-समभाव की शिक्षा दे रहे हैं, संस्कार दे रहे हैं तथा अच्छे और बुरे में भेद करना सिखा रहे हैं।


🚩हमारी जो प्राचीन धरोहर थी और हम जिसे लगभग भूलने का पाप कर बैठे थे, बापू जी हमारी आँखों में ज्ञान का अंजन लगाकर उसको फिर से हमारे सामने रख रहे हैं। बापूजी ने कहा कि ईश्वर की कृपा से कण-कण में व्याप्त एक महान शक्ति के प्रभाव से जो कुछ घटित होता है, उसकी छानबीन और उस पर अनुसंधान करना चाहिए।


🚩पूज्य बापूजी ने कहा कि जीवन के व्यापार में से थोड़ा समय निकाल कर सत्संग में आना चाहिए। पूज्य बापूजी उज्जैन में थे तब मेरी जाने की बहुत इच्छा थी लेकिन कहते हैं न, कि दाने-दाने पर खाने वाले की मोहर होती है, वैसे ही संत-दर्शन के लिए भी कोई मुहूर्त होता है। आज यह मुहूर्त आ गया है। यह मेरा क्षेत्र है। पूज्य बापू जी ने चुनाव जीतने का तरीका भी बता दिया है।


🚩आज देश की दशा ठीक नहीं है। बापू जी का प्रवचन सुनकर बड़ा बल मिला है। हाल में हुए लोकसभा अधिवेशन के कारण थोड़ी-बहुत निराशा हुई थी किन्तु रात को लखनऊ में पुण्य प्रवचन सुनते ही वह निराशा भी आज दूर हो गयी। बापू जी ने मानव जीवन के चरम लक्ष्य मुक्ति-शक्ति की प्राप्ति के लिए पुरुषार्थ चतुष्टय, भक्ति के लिए समर्पण की भावना तथा ज्ञान, भक्ति और कर्म तीनों का उल्लेख किया है। भक्ति में अहंकार का कोई स्थान नहीं है। ज्ञान अभिमान पैदा करता है। भक्ति में पूर्ण समर्पण होता है। 13 दिन के शासनकाल के बाद मैंने कहाः "मेरा जो कुछ है, तेरा है।" यह तो बापू जी की कृपा है कि श्रोता को वक्ता बना दिया और वक्ता को नीचे से ऊपर चढ़ा दिया। जहाँ तक ऊपर चढ़ाया है वहाँ तक ऊपर बना रहूँ इसकी चिंता भी बापू जी को करनी पड़ेगी।


🚩राजनीति की राह बड़ी रपटीली है। जब नेता गिरता है तो यह नहीं कहता कि मैं गिर गया बल्कि कहता हैः "हर हर गंगे।" बापू जी का प्रवचन सुनकर बड़ा आनंद आया। मैं लोकसभा का सदस्य होने के नाते अपनी ओर से एवं लखनऊ की जनता की ओर से बापू जी के चरणों में विनम्र होकर नमन करना चाहता हूँ।


🚩उनका आशीर्वाद हमें मिलता रहे, उनके आशीर्वाद से प्रेरणा पाकर बल प्राप्त करके हम कर्तव्य के पथ पर निरन्तर चलते हुए परम वैभव को प्राप्त करें, यही प्रभु से प्रार्थना है।"


🚩आपको बता दे की बापू आशारामजी ने परिवार में सुख-शांति व परस्पर सद्भाव से जीना सिखाया, पारिवारिक झगड़ों से मुक्ति दिलायी, महिलाओं के मार्गदर्शन व सर्वांगीण विकास हेतु देशभर में ‘महिला उत्थान मंडलों’ की स्थापना की तथा नारी उत्थान हेतु कई अभियान चलाये। बापू आसारामजी ने बाल व युवा पीढ़ी में नैतिक एवं आध्यात्मिक मूल्यों के सिंचन हेतु हजारों बाल संस्कार केन्द्रों, युवा सेवा संघों व गुरुकुलों की स्थापना की, आज की युवापीढ़ी को माता पिता का सम्मान सिखाकर वैलेंटाइन के बदले में मातृ-पितृ पूजन दिवस मानना सिखाया । 25 दिसम्बर को संस्कृति की रक्षा के लिए तुलसी पूजन दिवस अभियान एक नई पहल की। केमिकल रंगों से बचा कर प्राकृतिक रंगों से होली खेलने की पहल की, जिससे पानी व स्वास्थ्य की रक्षा हो। व्यसन मुक्ति के अभियान चलाकर करोड़ों लोगों को व्यसन मुक्त कराया। बच्चों, युवाओं व महिलाओं में अच्छे संस्कार के लिए ढेरों अभियान चलाये जाते हैं । World's Religions Parliament, शिकागो अमेरिका में 1993 में स्वामी विवेकानन्दजी के बाद यदि कोई दूसरे संत ने प्रतिनिधित्व किया है तो वे बापू आसारामजी, जिन्होंने हिंदू धर्म का प्रतिनिधित्व कर सनातन संस्कृति का परचम लहराया। इन सेवाकार्यों से देश-विदेश के करोड़ों लोग किसी भी तरह के धर्म- जाति -मत - पंथ -सम्प्रदाय-राज्य व लिंग के हो भेदभाव के बिना लाभान्वित हो रहे हैं ।

यहां तक कि कांग्रेस की सरकार में कोई हिंदुत्व की बात नही कर रहा था उस समय खुल्लेआम लाखों आदिवासियों की घर वापसी करवाई थी, करोड़ों लोगों में सनातन हिंदू धर्म के प्रति आस्था जगाई थी, स्वदेशी प्रोडक्ट खरीदने की गुहार लगाई थी, करोड़ों लोगों के व्यसन मुक्त किए थे इन सभी के कारण उनपर झूठा आरोप लगाकर जेल भिजवाया गया।


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Sunday, December 24, 2023

दिसम्बर की 25 तारीख आपके लिए खास क्यों हैं ?




क्रिसमस नही❌


 ‘तुलसी पूजन दिवस' मनाए✅


25 December 2023

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🚩भारत देश ऋषि-मुनियों का देश रहा है, विदेशी आक्रमणकारियों ने भारत में आकर भारतीय दिव्य संस्कृति को खत्म करने के लिये अपनी पश्चिमी संस्कृति को थोपना चाहा, लेकिन भारत में आज भी कई हिन्दू साधु-संत एवं हिन्दूनिष्ठ हैं जो भारत में राष्ट्र विरोधी विदेशी ताकतों से टक्कर लेकर भी समाज उत्थान के लिये भारतीय संस्कृति को बचाने का दिव्य कार्य कर रहे हैं । 


🚩ईसाई धर्म का त्यौहार 25 दिसम्बर से 1 जनवरी के बीच में मनाया जाता है, जिसमें Festival के नाम पर शराब और कबाब का जश्न मनाना, डांस पार्टी आयोजित करके बेशर्मी का प्रदर्शन करना, पशुओं की हत्या करके उसका मांस खाना, सिगरेट, चरस आदि पीना यह सब किया जाता हैं जो कि भारतीय त्यौहारों के विरुद्ध है । ऐसा करना ऋषि-मुनियों की संतानों को शोभा नहीं देता है।


🚩क्रिसमस दिनों में बीते वर्ष की विदाई पर पाश्चात्य अंधानुकरण से नशाखोरी, आत्महत्या आदि की वृद्धि होती जा रही है। तुलसी उत्तम अवसादरोधक एवं उत्साह, स्फूर्ति, सात्त्विकता वर्धक होने से इन दिनों में तुलसी पूजन पर्व मनाना वरदानतुल्य साबित होगा।


🚩धनुर्मास में सभी सकाम कर्म वर्जित होते हैं परंतु भगवत्प्रीत्यर्थ कर्म विशेष फलदायी व प्रसन्नता देने वाले होते हैं। 25 दिसम्बर धनुर्मास के बीच का समय होता है।


🚩विदेशों में भी होती है तुलसी पूजा


🚩मात्र भारत में ही नहीं वरन् विश्व के कई अन्य देशों में भी तुलसी को पूजनीय व शुभ माना गया है। ग्रीस में इस्टर्न चर्च नामक सम्प्रदाय में तुलसी की पूजा होती थी और सेंट बेजिल जयंती के दिन नूतन वर्ष भाग्यशाली हो इस भावना से चढ़ायी गयी तुलसी के प्रसाद को स्त्रियाँ अपने घर ले जाती थीं।


🚩तुलसी पूजन विधि


🚩25 दिसम्बर को स्नानादि के बाद घर के स्वच्छ स्थान पर तुलसी के गमले को जमीन से कुछ ऊँचे स्थान पर रखें। उसमें यह मंत्र बोलते हुए जल चढ़ायें-

महाप्रसादजननी सर्वसौभाग्यवर्धिनि।

आधिव्याधिहरा नित्यं तुलसि त्वां नमोऽस्तुते।।


🚩फिर ‘तुलस्यै नमः’ मंत्र बोलते हुए तिलक करें, अक्षत (चावल) व पुष्प अर्पित करें तथा कुछ प्रसाद चढ़ायें। दीपक जलाकर आरती करें और तुलसीजी की 7, 11, 21, 51 या 111 परिक्रमा करें। उस शुद्ध वातावरण में शांत होके भगवत्प्रार्थना एवं भगवन्नाम या गुरुमंत्र का जप करें। तुलसी के पास बैठकर प्राणायाम करने से बल, बुद्धि और ओज की वृद्धि होती है।तुलसी पत्ते डालकर प्रसाद वितरित करें।


🚩तुलसी के समीप भजन, कीर्तन कर सकते हैं। तुलसी नामाष्टक का पाठ भी पुण्यकारक है। तुलसी पूजन अपने नजदीकी आश्रम, तुलसी वन में अथवा यथानुकूल किसी भी पवित्र स्थान पर कर सकते हैं।

https://youtu.be/aTT-MIBPhoE


🚩आपको बता दे की संत आशारामजी बापू ने 25 दिसम्बर 2014 को ‘तुलसी पूजन दिवस’ मनाना प्रारम्भ करवाया । वर्तमान में इस पर्व की लोकप्रियता विश्वस्तर पर देखी गयी ।


🚩पिछले साल भी उनके करोड़ों लोगों द्वारा 25 दिसंबर को देश-विदेश में बड़ी धूम-धाम से तुलसी पूजन मनाया गया था । जिसमें कई हिन्दू संगठनों और आम जनता ने भी लाभ उठाया था ।


🚩ताजा रिपोर्ट के अनुसार इस साल भी एक महीने से देश-विदेश में क्रिसमस डे की जगह 25 दिसंबर “तुलसी पूजन दिवस” निमित्त घर-घर तुलसी पूजन व वितरण किया जा रहा है ।


🚩हिन्दू संत आशारामजी बापू का कहना है कि तुलसी पूजन से बुद्धिबल, मनोबल, चारित्र्यबल व आरोग्यबल बढ़ता है । मानसिक अवसाद, दुर्व्यसन, आत्महत्या आदि से लोगों की रक्षा होती है और लोगों को भारतीय संस्कृति के इस सूक्ष्म ऋषि-विज्ञान का लाभ मिलता है ।


🚩बापू आशारामजी का कहना है कि तुलसी का स्थान भारतीय संस्कृति में पवित्र और महत्त्वपूर्ण है । तुलसी को माता कहा गया है । यह माँ के समान सभी प्रकार से हमारा रक्षण व पोषण करती है । तुलसी पूजन, सेवन व रोपण से आरोग्य-लाभ, आर्थिक लाभ के साथ ही आध्यात्मिक लाभ भी होते हैं ।


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क्रिसमिस पर मध्य प्रदेश के शिक्षा विभाग ने जो किया , जनता बोली पूरे देश में लागू हो

24 December 2023

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🚩मध्य प्रदेश के शाजापुर जिले में 25 दिसंबर को आने वाले क्रिसमस त्यौहार से पहले एक नया फरमान पेश कर दिया गया है। शिक्षा विभाग ने आदेश दिया है कि ईसाई पर्व के अवसर पर छात्रों को सांता क्लॉज बनाने से पहले प्राइवेट स्कूलों को अभिभावकों से लिखित मंजूरी लेनी होगी।


🚩खबरों का कहना है कि क्रिसमस के खास अवसर पर स्कूलों में होने वाले कार्यक्रमों में स्टूडेंट्स हिस्सा लेने के लिए सांता क्लॉज का रूप धारण कर लेते हैं। लेकिन शाजापुर जिला शिक्षा विभाग ने एक पत्र जारी कर सभी अशासकीय संस्थाओं को निर्देशित कर दिया है कि आगामी समय में प्राइवेट स्कूलों को क्रिसमस त्यौहार पर, छात्रों को सांता क्लॉज की वेशभूषा में ढालने से उनके माता-पिता से लिखित में मंजूरी लेना होगी।


🚩बता दें कि जिला शिक्षा अधिकारी विवेक दुबे के नाम से जारी आदेश में बोला गया है कि यदि कोई स्कूल प्रबंधन बिना माता-पिता की अनुमति के किसी भी बच्चे को सांता क्लॉज की वेशभूषा में कार्यक्रम में हिस्सा दिलाता है, तो संबंधित स्कूल के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जा सकती है। शिक्षा विभाग का यह पत्र जिले के सभी प्राइवेट स्कूलों के लिए जारी किया गया है। इस संबंध में शिक्षा विभाग का बोलना है कि आयोजन में त्यौहार विशेष की वेशभूषा पहनाकर बच्चों को जबरदस्ती बनाया जाता है, जिससे अप्रिय स्थिति का माहौल भी बनता है। इसी के चलते यह आदेश जारी किया गया है।


🚩कुछ नासमझ भारतीय अपने बच्चों को विवेकानंदजी, वीर शिवाजी, महाराणा प्रताप, चन्द्र शेखर आज़ाद के वस्त्र नही पहनाते लेकिन क्रिसमस पर ‘सांता क्लॉज’ के वस्त्र पहनाकर उसे जोकर बना देते है। ऐसा करके हम अपनी सनातन संस्कृति का अपमान कर रहे हैं साथ-साथ अपने बच्चे को मानसिक गुलाम भी बना रहे हैं।


🚩भारत को गुलाम बनाने के लिए अंग्रेज ईसाई पर्व लेकर आए थे लेकिन भारत में पढ़े लिखे लोग बिना कारण का क्रिसमस मनाते हैं ये सब भारतीय संस्कृति को खत्म करके ईसाईकरण करने के लिए भारत में क्रिसमस डे मनाया जाता है। इसलिये भारतवासी सावधान रहें ।


🚩बता दे की क्रिसमस पर लोग जमकर शराब पीते है, नशीले प्रदार्थ का सेवन करते है, पार्टियां करते है इन दिनों में विदेशी कम्पनियों को अरबो रूपये का मुनाफा होता है। आप भी अपनी संपत्ति, स्वास्थ्य और संस्कृति को बचाना चाहते है तो ऐसे क्रिसमस जैसे त्यौहार का बहिष्कार कर सकते है।


🚩आप अपने बच्चों को धर्मप्रेमी व देशभक्तों के वस्त्र पहनाएं और उसदिन प्लाटिक के पेड़ नही लगाए, क्योंकि वह बीमारियां फैलता है,इसलिए उस दिन 24 घण्टे ऑक्सीजन देनेवाली तुलसी माता का पुजन करें।


🚩आपको बता दे कि वर्ष 2014 से देश में सुख, सौहार्द, स्वास्थ्य एवं शांति से जन मानस का जीवन मंगलमय हो इस लोकहितकारी उद्देश्य से हिदू संत आसाराम बापू ने 25 दिसम्बर “तुलसी पूजन दिवस” के रूप में मनाना शुरू करवाया था,जो आज विश्वव्यापी हो गया है।


🚩तुलसी माता के पूजन से मनोबल, चारित्र्यबल एवं आरोग्य बल बढ़ता है, मानसिक अवसाद व आत्महत्या आदि से रक्षा होती है ।


🚩आप भी 25 दिसम्बर को प्लास्टिक के पेड़ पर बल्ब जलाने की बजाय 24 घण्टे ऑक्सीजन देने वाली माता तुलसी का पूजन करें ।


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Friday, December 22, 2023

25 दिसम्बर को ‘तुलसी पूजन दिवस’ मनाने से फायदे ही फायदे

23 December 2023

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🚩तुलसी सम्पूर्ण धरा के लिए वरदान है, अत्यंत उपयोगी औषधि है, मात्र इतना ही नहीं, यह तो मानव जीवन के लिए अमृत है ! यह केवल शरीर स्वास्थ्य की दृष्टि से ही नहीं, अपितु धार्मिक, आध्यात्मिक, पर्यावरणीय एवं वैज्ञानिक आदि विभिन्न दृष्टियों से भी बहुत महत्त्वपूर्ण है।


🚩तुलसी पूजन दिवस 25 दिसम्बर को क्यों मनायें ?


🚩इन दिनों में बीते वर्ष की विदाई पर पाश्चात्य अंधानुकरण से नशाखोरी, आत्महत्या आदि की वृद्धि होती जा रही है। तुलसी उत्तम अवसादरोधक एवं उत्साह, स्फूर्ति, सात्त्विकता वर्धक होने से इन दिनों में यह पर्व मनाना वरदानतुल्य साबित होगा।


🚩कवि ने क्या बताया?


🚩प्लास्टिक के पेड़ के नीचे मोमबत्ती जलाना, ये कैसी आधुनिकता है।

सांता क्लॉज आएंगे उपहार देने, ये कैसी मानसिकता है।।


🚩25 दिसम्बर को यीशु मसीह जन्में, ये भी कहीं नहीं लिखा।

बाईबल के पन्ने भी पलटे, पर उसमें भी नहीं दिखा।।


🚩फिर क्यों व्यर्थ में क्रिसमस के प्रचलन को बढ़ावा दिया गया।

यीशु, सांता क्लॉज का नाम जोड़कर, क्यों दिखावा किया गया।।


🚩प्लास्टिक से बना पेड़, भयंकर बीमारियों को आमंत्रण है।

मोमबत्ती जलने से निकली कार्बन डाइऑक्साइड, फैलाती प्रदूषण है।


🚩क्रिसमस मनाने से आजतक बस, युवावर्ग का ह्रास हुआ।

नशे की तरफ आकर्षित हुए, नैतिकता का सर्वनाश हुआ।।


🚩इसे देख आशारामजी बापू ने ठाना, समाज को बचाना है।

युवावर्ग है देश की नींव, उनको सही मार्ग दिखाना है।।


🚩25 दिसम्बर को करें तुलसी पूजन, यह सुंदर शुरुआत की।

स्वच्छ हो पर्यावरण, संस्कारी हो समाज, सबके भले की बात की।।


🚩तुलसी माता है हरि की प्रिय, तुलसी असाध्य रोग हर लेती है।

वातावरण से प्रदूषक है सोखती, 24 घण्टे ऑक्सिजन देती है।।


🚩जाग मानव! आडम्बर और दिखावे वाली आधुनिकता में मत फंस।

आशाराम बापूजी की सत्प्रेरणा से, 25 दिसम्बर को मनाओ तुलसी पूजन दिवस।। – कवि सुरेन्द्र भाई


🚩क्रिसमिस के दिन शराब आदि नशीले पदार्थ का जमकर सेवन करते है, अश्लीलता भरे गाने गाये जाते हैं, पार्टी करते हैं, महिलाओं से छेड़छाड़ करते हैं जिसके कारण वातावरण अशुद्ध होता है, स्वास्थ्य खराब होता है, पैसे और समय की बर्बादी होती है और आत्महत्याएं बढ़ती है इन सबको रोकने के लिए क्रिसमिस की जगह तुलसी पूजन दिसव मनाना अत्यंत आवश्यक है।


 🚩फ्रेच डॉक्टर विक्टर रेसीन ने कहा है- “तुलसी एक अदभुत औषधि (Wonder Drug) है।


🚩इजरायल में धार्मिक, सामाजिक, वैवाहिक और अन्य मांगलिक अवसरों पर तुलसी द्वारा पूजन कार्य सम्पन्न होते रहे हैं, यहाँ तक कि अंत्येष्टि क्रिया में भी।


🚩विदेशों में भी होती है तुलसी पूजा


🚩मात्र भारत में ही नहीं वरन् विश्व के कई अन्य देशों में भी तुलसी को पूजनीय व शुभ माना गया है। ग्रीस में इस्टर्न चर्च नामक सम्प्रदाय में तुलसी की पूजा होती थी और सेंट बेजिल जयंती के दिन नूतन वर्ष भाग्यशाली हो इस भावना से चढ़ायी गयी तुलसी के प्रसाद को स्त्रियाँ अपने घर ले जाती थीं।


🚩पद्म पुराण के अनुसार


या दृष्टा निखिलाघसंघशमनी स्पृष्टा वपुष्पावनी।

रोगाणामभिवन्दिता निरसनी सिक्तान्तकत्रासिनी।।

प्रत्यासत्तिविधायिनी भगवतः कृष्णस्य संरोपिता।

न्यस्ता तच्चरणे विमुक्तिफलदा तस्यै तुलस्यै नमः।।


🚩जो दर्शन करने पर सारे पाप-समुदाय का नाश कर देती है, स्पर्श करने पर शरीर को पवित्र बनाती है, प्रणाम करने पर रोगों का निवारण करती है, जल से सींचने पर यमराज को भी भय पहुँचाती है, आरोपित करने पर भगवान श्रीकृष्ण के समीप ले जाती है और भगवान के चरणों में चढ़ाने पर मोक्षरूपी फल प्रदान करती है, उस तुलसी देवी को नमस्कार है। (पद्म पुराणः उ.खं. 56.22)


🚩तुलसी माता की अनंत महिमा जानकर आप भी अपने घर आंगन में तुलसी के पौधे जरूर लगाएं और दूसरों को भी प्रेरित करें और हाँ एक बात ध्यान रखें 25 दिसंबर को क्रिसमस नहीं तुलसी पूजन दिवस मनाएं।


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Thursday, December 21, 2023

केवल श्रीमद्भगवद्गीता की ही जयंती क्यों मनाई जाती हैं ?

22 December 2023

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🚩गीता में ऐसा उत्तम और सर्वव्यापी ज्ञान है कि उसकी रचना हुए हजारों वर्ष बीत गए हैं किन्तु उसके बाद उसके समान किसी भी ग्रंथ की रचना नहीं हुई है। 18 अध्याय एवं 700 श्लोकों में रचित तथा भक्ति, ज्ञान, योग एवं निष्कामता आदि से भरपूर यह गीता ग्रन्थ विश्व में एकमात्र ऐसा ग्रन्थ है जिसकी जयंती मनायी जाती है।

इस साल श्रीमद्भगवद्गीता जयंती 22 दिसंबर 2023 को है।


🚩श्रीमद्भगवद्गीता ने किसी मत, पंथ की सराहना या निंदा नहीं की, अपितु मनुष्यमात्र की उन्नति की बात कही है। गीता जीवन का दृष्टिकोण उन्नत बनाने की कला सिखाती है और युद्ध जैसे घोर कर्मों में भी निर्लेप रहने की कला सिखाती है। मरने के बाद नहीं, जीते-जी मुक्ति का स्वाद दिलाती है गीता!


🚩‘गीता’ में 18 अध्याय हैं, 700 श्लोक हैं, 94569 शब्द हैं। विश्व की 578 से भी अधिक भाषाओं में गीता का अनुवाद हो चुका है।


🚩’यह मेरा हृदय है’- ऐसा अगर किसी ग्रंथ के लिए भगवान ने कहा है तो वह गीताजी हैं। ‘गीता मे हृदयं पार्थ।- गीता मेरा हृदय है।’


🚩गीता ने गजब कर दिया- धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे… युद्ध के मैदान को भी धर्मक्षेत्र बना दिया। युद्ध के मैदान में गीता ने योग प्रकटाया। हाथी चिंघाड़ रहे हैं, घोड़े हिनहिना रहे हैं, दोनों सेनाओं के योद्धा प्रतिशोध की आग में तप रहे हैं। किंकर्तव्यविमूढ़ता से उदास बैठे हुए अर्जुन को भगवान श्रीकृष्ण ज्ञान का उपदेश दे रहे हैं।


🚩आजादी के समय स्वतंत्रता सेनानियों को जब फाँसी की सजा दी जाती थी, तब ‘गीता’ के ही श्लोक बोलते हुए वे हँसते-हँसते फाँसी पर लटक जाते थे।


🚩श्री वेदव्यास ने महाभारत में गीता का वर्णन करने के उपरान्त कहा हैः

गीता सुगीता कर्तव्या किमन्यैः शास्त्रविस्तरैः।

या स्वयं पद्मनाभस्य मुखपद्माद्विनिःसृता।।


🚩‘गीता सुगीता करने योग्य है अर्थात् श्री गीता को भली प्रकार पढ़कर अर्थ और भाव सहित अंतःकरण में धारण कर लेना मुख्य कर्तव्य है, जो कि स्वयं श्री पद्मनाभ विष्णु भगवान के मुखारविन्द से निकली हुई है, फिर अन्य शास्त्रों के विस्तार से क्या प्रयोजन है?’


🚩विदेशों में श्री गीता जी का महत्व समझकर स्कूल, कॉलेजों में पढ़ाने लगे हैं, भारत सरकार भी अगर बच्चों एवं देश का भविष्य उज्ज्वल बनाना चाहती है तो सभी स्कूलों, कॉलेजों में गीता अनिवार्य कर देना चाहिए।


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Wednesday, December 20, 2023

निहंग सिखों की घोषणा : ‘हम सनातन के अंग, श्रीराम की आने की खुशी में लगाएँगे लंगर’

21 December 2023

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🚩जनवरी 2024 में अयोध्या में सिख समाज भगवान श्रीराम जी के मंदिर महोत्सव में 2 महीने तक लंगर लगाएगा। इसकी अगुवाई बाबा हरजीत सिंह रसूलपुर करेंगे। बाबा रसूलपुर बाबा फकीर सिंह खालसा की आठवीं पीढ़ी के हैं। बाबा फकीर सिंह खालसा की अगुवाई में निहंग सिखों ने सबसे पहले अयोध्या में बाबरी ढाँचे पर कब्जा किया था। बाबा ने कहा कि सिख समाज भी सनातन का हिस्सा है और उनके पूर्वजों ने इसकी रक्षा के लिए कुर्बानी दी है।


🚩इस दौरान बाबा हरजीत सिंह ने खालिस्तानियों और हिंदू-सिख के बीच दरार पैदा करने वालों को भी करारा जवाब दिया। उन्होंने कहा, “हम पूरी दुनिया को बताना चाहते हैं कि सिख और सनातन एक हैं। जो हमारा देश है, वह अलग नहीं है। जो हमें तोड़ने की बातें कर रहे हैं, उन्हें इसके माध्यम से एक अच्छा मैसेज देना चाह रहे हैं।” उन्होंने आगे, “इस राम मंदिर को मुस्लिमों से जिन्होंने सबसे पहले कब्जा लिया था, वे हमारे पूर्वज थे।”


🚩“हम भी सनातन का हिस्सा”


🚩अयोध्या में लंगर लगाने का निर्णय लेने वाले निहंग सिखों की अगुवाई करने वाले बाबा रसूलपुर ने कहा कि वह अयोध्या में लंगर लगाकर भगवान राम के प्रति अपने पूर्वजों की भक्ति को आगे बढ़ाएँगे। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, बाबा ने कहा, “अब जब 22 जनवरी को भगवान राम की प्राण प्रतिष्ठा की जा रही है तो मैं कैसे पीछे रह सकता हूँ।” उन्होंने कहा कि वह निहंगों के साथ जनवरी 2024 में 2 महीने तक अयोध्या में लंगर चलाएँगे।


🚩मीडिया से बातचीत की शुरुआत बाबा हरजीत सिंह ने ‘वाहे गुरु जी की खालसा, वाहे गुरु जी की फतेह’ और ‘जय श्रीराम’ के साथ की। उन्होंने कहा, “मैं समाज को गुरु तेग बहादुर सिंह की कुर्बानी को याद दिलाना चाहता हूँ। उन्होंने आज के दिन सनातन को बचाने के लिए बलिदान दिया था। उन्होंने चाँदनी चौक पर सनातन को बचाने के लिए शहादत दी।”


🚩बाबा ने आगे कहा, “मैं पूरी दुनिया को बताना चाहता हूँ कि हम भी सनातन का हिस्सा हैं। यही हमारा धर्म है। हम ही वो हैं, जिन्होंने सनातन को बचाया। अयोध्या में श्री रामलला जी 22 जनवरी को पधार रहे हैं। हम सिख और हिंदू भाई इस खुशी को मिलकर मनाएँगे।”


🚩बाबा रसूलपुर ने कहा, “हमारे बुजुर्ग थे जत्थेदार बाबा फकीर सिंह जी खालसा निहंग सिंह रसूलपुर। मैं उनकी विरासत में आठवीं पीढ़ी से हूँ। हम इसकी खुशी में अयोध्या में लंगर लगाने जा रहे हैं। मैं सबको यही बताने की कोशिश कर रहा हूँ कि हम सब साथ हैं।”


🚩बाबा हरजीत सिंह ने कहा, “मेरा किसी भी राजनीतिक दल से कोई संबंध नहीं है और मैं केवल सनातन परंपराओं का वाहक हूँ। निहंगों और सनातन धर्म के बीच सद्भाव बनाए रखने के दौरान मुझे आलोचना का सामना करना पड़ा, क्योंकि एक तरफ मैं अमृतधारी सिख हूँ लेकिन दूसरी तरफ मैं अपने गले में रुद्राक्ष की माला पहनता हूँ”।


🚩30 नवंबर 1858 को निहंगों ने किया था बाबरी पर कब्जा


🚩अयोध्या में राम मंदिर से जुड़े इतिहास के पन्नों में 30 नवंबर 1858 का दिन बेहद खास है। इसी दिन बाबा फकीर सिंह खालसा की अगुवाई में 25 सिख निहंगों ने बाबरी ढाँचे पर कब्जा कर लिया था। उन्होंने कई दिनों तक बाबरी पर कब्जा बनाए रखा था और राम नाम का पाठ किया था। उन्होंने बाबरी ढाँचे पर राम नाम भी लिख दिया।


🚩बाबरी पर गैर-मुस्लिमों के कब्जे का पहला प्रमाण यही है। इसको लेकर अवध के थानेदार शीतल दुबे ने बाबरी के अधिकारी की शिकायत पर 25 निहंग सिखों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की थी। बाबा हरजीत सिंह रसूलपुर ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले में अवध के थानेदार की रिपोर्ट का हवाला दिया गया है।


🚩राम जन्मभूमि पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले की कॉपी के पेज नंबर 164 पर इस एफआईआर का जिक्र है। इसमें कहा गया है कि दो दर्जन निहंग सिखों ने बाबा फकीर सिंह खालसा के नेतृत्व में 30 नवंबर 1858 को बाबरी ढाँचे पर कब्जा कर लिया था और हवन यज्ञ करने के साथ ही दीवारों पर राम नाम लिखा था।


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