Tuesday, January 2, 2024

भीमा-कोरेगाँव युद्ध को इतिहासकारों ने जबरन जीत में कैसे बदल डाला ?

03 January 2024

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🚩ईस्ट इंडिया कंपनी के कप्तान फ्रांसिस स्टोंटो ने नेतृत्व में 31 अक्टूबर 1817 को रात 8 बजे 500 सिपाही, 300 घुड़सवार, 2 बंदूकों और 24 तोपों के साथ एक सैनिक दस्ता पूना से रवाना हुआ। रातभर चलने के बाद अगले दिन सुबह 10 बजे यह छोटी टुकड़ी भीमा नदी के किनारे पहुँची तो सामने पेशवा बाजीराव के नेतृत्व में 20,000 सैनिकों की मराठा फौज खड़ी थी। इस विशालकाय फौज का उद्देश्य पूना को फिर से स्वतंत्र करवाना था, लेकिन कंपनी के उस दस्ते ने उन्हें रास्ते में ही रोक लिया।


🚩कप्तान स्टोंटो की सेना में ब्रिटिश अधिकारियों के अलावा स्थानीय मुसलमान और दक्कन एवं कोंकण के हिंदू महार शामिल थे। दोनों तरफ के विश्लेषण में पेशवा की तैयारी ज्यादा कुशल और आक्रामक थी, जिसे देखकर कप्तान स्टोंटो ने नदी को पार कर सामने से हमला करने की बजाए पीछे ही रहने का फैसला किया। अपनी सुरक्षा के लिए उसने नदी के उत्तरी छोर पर बसे एक छोटे से गाँव कोरेगाँव को बंधक बनाकर वहाँ अपनी चौकी बना ली।


🚩एक छोटी से चारदीवारी से घिरे कोरेगाँव के पश्चिम में दो मंदिर– बिरोबा और मारुति थे। उत्तर-पश्चिम में रिहाइश थी। बिरोबा को भगवान शिवजी का ही एक रूप माना जाता है और महाराष्ट्र की कई हिन्दू जातियाँ उन्हें अपने कुलदेवता के रूप में पूजती हैं, जबकि मारुति को भगवान हनुमान का पर्याय कहा जाता है जोकि रामायण के प्रमुख पात्र हैं।


🚩खैर, कंपनी के दस्ते ने कोरेगाँव के मकानों की छतों का इस्तेमाल पेशवा की सेना पर नजर रखने लिए किया था। कप्तान स्टोंटो ने अपनी बंदूकों को गाँव के दो छोर- एक सड़क के रास्ते और दूसरी नदी के किनारे पर तैनात कर दी थी। अब वह पेशवा की तरफ से पहले हमले का इंतजार करने लगा। हालाँकि, अभी तक पेशवा ने कंपनी के दस्ते पर कोई हमला नहीं किया, क्योंकि वह 5,000 अतिरिक्त अरबी पैदल सेना का इंतजार कर रहे थे।


🚩जैसे ही वह सैनिक टुकड़ी उनसे जुड़ गई तो पेशवा की सेना ने नदी को पार कर पहले हमला शुरू कर दिया। दोपहर के आसपास पेशवा के 900 सिपाही कोरेगाँव के बाहर पहुँच गए थे (कुछ पुस्तकों में इनकी संख्या 1,800 तक बताई गई है)। दोपहर तक दोनों मंदिरों को पेशवा ने वापस अपने कब्जे में ले लिया था। शाम होने तक नदी के किनारे वाली एक बंदूक और 24 तोपों में से 11 को मराठा सेना ने नष्ट कर दिया था।


🚩हालाँकि, ब्रिटिश सरकार द्वारा साल 1910 में प्रकाशित ‘मराठा एंड पिंडारी वॉर’ में कंपनी के नुकसान के दूसरे आँकडे पेश किए हैं। पुस्तक के अनुसार 24 तोपों में से 12 को नष्ट/मार और 8 को घायल कर दिया था (पृष्ठ 57)। मराठा सेना ने विंगगेट, स्वांसटन, पेट्टीसन और कानेला नाम के 4 कंपनी अधिकारियों को भी मार डाला था। हमला इतना तीव्र था कि परिस्थितियों को देखते हुए कप्तान स्टोंटो से बची हुई टुकड़ी ने आत्मसमर्पण की गुहार लगाई। इस सुझाव को कप्तान स्टोंटो ने स्वीकार कर लिया और वर्तमान कर्नाटक के सिरुर गाँव की तरफ भाग गया।


🚩कप्तान स्टोंटो के पीछे हटने के निर्णय के बावजूद भी ब्रिटिश इतिहासकारों ने उसकी तारीफ की है। लड़ाई के चार साल बाद ईस्ट इंडिया कंपनी ने कप्तान स्टोंटो और उसकी सेना के नाम कोरेगाँव में एक स्तंभ बनवा दिया। कुछ सालों बाद, यानी 25 जून, 1825 को कप्तान फ्रांसिस स्टोंटो मर गया और उसे समुद्र में दफना दिया गया। ईस्ट इंडिया कंपनी और मराठा सेना के इस टकराव के कई ऐसे पहलू है जिनका तथ्यात्मक विश्लेषण करना जरूरी है।


🚩पहली बात– महारों की मराठाओं से कोई निजी दुश्मनी नहीं थी। यह लड़ाई कंपनी और मराठा सेना के बीच में लड़ी गई थी जिसमें महारों ने कंपनी का साथ दिया। यह जाति पहले फ़्राँस के भारतीय अभियानों में भी उन्हें अपनी सैन्य सहायता दे चुकी थी। दूसरी बात- किसी भी इतिहास की पुस्तक में स्पष्ट तौर पर मराठा सेना की हार का कोई जिक्र नहीं है। सभी स्थानों पर कप्तान स्टोंटो द्वारा स्वयं की जान बचाने का उल्लेख है, जिसे ‘डिफेन्स ऑफ़ कोरेगाँव’ के नाम से संबोधित किया गया है।


🚩बाद के सालों में, इस टकराव को भीमा-कोरेगाँव युद्ध के नाम पर अंग्रेजों की मराठा सेना पर जीत में जबरन परिवर्तित कर दिया गया, जिसे रचने वाले खुद ब्रिटिश इतिहासकार थे। जिसमें रोपर लेथब्रिज द्वारा लिखित ‘हिस्ट्री ऑफ़ इंडिया’ (1879); ‘द बॉम्बे गज़ेट’ (17 नवम्बर, 1880); जी. यू. पोप द्वारा लिखित ‘लॉन्गमैन्स स्कूल हिस्ट्री ऑफ़ इंडिया’ (1892); आर. एम. बेथाम द्वारा लिखित ‘मराठा एंड डेकखनी मुसलमान’ (1908); जोसिया कोंडर द्वारा लिखित ‘द मॉडर्न ट्रैवलर’ (1918); सी.ए. किनकैड द्वारा लिखित ‘ए हिस्ट्री ऑफ़ मराठा पीपल’ (1925); और रिचर्ड टेम्पल द्वारा लिखित ‘शिवाजी एंड द राइज ऑफ़ द मराठा’ (1953) इत्यादि शामिल थे।


🚩गौर करने वाली बात है कि इन सभी पुस्तकों में एक जैसा ही, बिना किसी परिवर्तन के, ब्रिटिश इतिहास का वर्णन मिलता है। हालाँकि, साल 1894 में अल्दाजी दोश्भई द्वारा लिखित ‘ए हिस्ट्री ऑफ़ गुजरात’ में एक अन्य तथ्य का जिक्र किया गया है। उन्होंने लिखा है कि पेशवा ने कोरेगाँव में ज्यादा देर रुकना ठीक नहीं समझा क्योंकि कप्तान स्टोंटो को पीछे से ब्रिटिश सहायता मिल सकती थी। इसलिए उन्होंने वहाँ से निकलकर दक्षिण की तरफ जाने का फैसला किया। इस समय तक, दक्षिण भारत के कई हिस्सों में ईस्ट इंडिया कंपनी अपनी पकड़ बना चुकी थी। पेशवा चारों तरफ से उनसे घिरे हुए थे और धीरे-धीरे उनके कई दुर्ग जैसे सतारा, रायगढ़ और पुरंदर हाथ से निकल गए थे।


🚩‘मराठा एंड पिंडारी वॉर’ में भी बताया गया है कि जनरल स्मिथ के आने की खबर सुनकर पेशवा की सेना अगले दिन सुबह वहाँ से चली गई थी। कप्तान स्टोंटो को जनरल स्मिथ के कोरेगाँव पहुँचने के समय का सटीक अंदाजा नहीं था। इस बीच, उसके पास हथियारों की कमी हो गई थी, इसलिए वो वहाँ से चला गया। जनरल स्मिथ को 2 जनवरी से 6 जनवरी के बीच कोरेगाँव पहुँचा था लेकिन तब तक मराठा सेना और कंपनी की टुकड़ी वहाँ से रवाना हो गई थी। (पृष्ठ 58)


🚩साल 1923 में प्रत्तुल सी गुप्ता द्वारा लिखित ‘बाजी राव II एंड द ईस्ट इंडिया कंपनी 1796-1818’ में पेशवा की हार का कोई उल्लेख नहीं है। बल्कि उन्होंने कंपनी के नुकसान के आँकड़े पेश किए है। प्रत्तुल सी. गुप्ता ने यह भी लिखा है कि रात के 9 बजे लड़ाई रुक गई थी। (पृष्ठ 179)


🚩यहाँ एक गौर करने वाली बात है कि प्रत्तुल सी. गुप्ता के अनुसार रात्रि को लड़ाई रुकी थी। ‘मराठा एंड पिंडारी वॉर’ के मुताबिक पेशवा की सेना अगले दिन सुबह कोरेगाँव से रवाना हुई थी। इसका मतलब साफ़ है कि कप्तान स्टोंटो रात में ही भाग गया था, जबकि उसे पता था कि उसकी सहायता के लिए जनरल स्मिथ की एक बड़ी फौज उसके पीछे खड़ी थी। हालाँकि, उसके पास अपनी जान बचाने का वक्त भी नहीं था और न ही पर्याप्त हथियार थे।


🚩कोरेगाँव के टकराव का एक अन्य विरोधाभास भी है। वर्तमान में, इस गाँव में कथित ब्रिटिश शौर्य का एक स्तंभ बनाया हुआ है, जिसमें 49 मरने वालों के नाम लिखे गए है। जबकि खुद ब्रिटिश इतिहासकारों जैसे रोपर लेथब्रिज ने साल 1879 (तीसरा संस्करण) में अपनी पुस्तक ‘हिस्ट्री ऑफ़ इंडिया’ में ईस्ट इंडिया कंपनी की तरफ से 79 सैनिकों के मरने अथवा घायल होने की पुष्टि की है (पृष्ठ 191)। दो साल पहले यानी साल 1887 में सी कॉक्स एडमंड द्वारा लिखित ‘ए शोर्ट हिस्ट्री ऑफ़ द बॉम्बे प्रेसीडेंसी’ में कप्तान स्टोंटो के 175 सैनिकों के मारे जाने का उल्लेख है (पृष्ठ 257)।


🚩भीमा-कोरेगाँव का यह टकराव ब्रिटिश क्राउन के लिए कोई बेहद महत्व का नहीं था। अगर ऐसा होता तो ब्रिटिश संसद में इसकी शान में कसीदे पढ़े गए होते। गौर करने वाली बात यह है कि वहाँ न भीमा-कोरेगांव और न ही फ्रांसिस स्टोंटो की कोई खबर है। स्त्रोत ओप इंडिया 


🚩कुछ स्वार्थी नेता भारत को तोड़ते के लिए फूट डालो राज करो वाली अंग्रेजों की नीति के तहत भीमा-कोरेगाँव युद्ध का मुद्दा बनाकर आपस में भिड़ा रहे हैं, उनसे हिन्दुस्तानी सावधान रहें।


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Monday, January 1, 2024

अंग्रेज़ों का नया साल मनाने में हम भूल गए औरंगजेब के पसीने छुड़ाने वाले वीर का बलिदान दिवस...!!

2 January 2024

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🚩भारतवासियों का टीवी, फिल्में, सीरियल, अखबार, पढ़ाई, झूठे इतिहास आदि द्वारा ऐसा ब्रेनवॉश कर दिया गया है,कि जिन अंग्रेज़ों ने भारत को 200 साल गुलाम बनाकर रखा, देशवासियों को प्रताड़ित किया, देश की संपत्ति लूटकर ले गये...आज उन्हीं के नये साल पर बधाई देते/लेते हैं, जश्न मनाते हैं।

लेकिन जिन क्रांतिकारियों ने इन अंग्रेज़ों को भगाने में और मुगलों के साम्राज्य की नींव तक हिलाने में अपने प्राणों की बलि दे दी और आज जिनके कारण हम इस देश में स्वतंत्रता से श्वास ले रहे हैं, ऐसे योद्धाओं को ही हमने भुला दिया !!


🚩भारत माता के ऐसे ही एक वीर सपूत थे गोकुल सिंह, जिन्होंने विशाल मुगल सेना के दांत खट्टे कर दिए थे और औरंगजेब के पसीने छुड़ा दिए थे। उनका आज बलिदान दिवस है। इनका इतिहास पढ़कर आप भी अपने पूर्वजों की वीरता पर गर्व महसूस करेंगे तथा उन विदेशी आक्रांताओं ( मुगलों तथा अंग्रेजों ) की असलियत भली प्रकार से समझ पाएंगे ।


🚩सन् 1666 में मुगल शासक या कहें... कुशासक औरंगजेब के अत्याचारों से हिन्दू जनता त्राहि-त्राहि कर रही थी। मंदिरों को तोड़ा जा रहा था, हिन्दू स्त्रियों की इज्जत लूटकर उन्हें मुस्लिम बनाया जा रहा था।

औरंगजेब और उसके सैनिक पागल हाथी की तरह हिन्दू जनता को मथते हुए आगे बढ़ते जा रहे थे।


🚩हिंदुओं को दबाने के लिए औरंगजेब ने अब्दुन्नवी नामक एक कट्टर मुसलमान को मथुरा का फौजदार नियुक्त किया। अब्दुन्नवी के सैनिकों का एक दस्ता मथुरा जनपद में चारों ओर लगान वसूली करने निकला।


🚩गौरतलब है...

सिनसिनी गाँव के सरदार गोकुल सिंह के आह्वान पर किसानों ने लगान देने से इंकार कर दिया, परतन्त्र भारत के इतिहास में वह पहला “असहयोग आन्दोलन” था।


🚩दिल्ली के सिंहासन के नाक तले धर्मपरायण हिन्दू वीर योद्धा गोकुल सिंह और उनकी किसान सेना ने आतताई औरंगजेब को हिंदुत्व की ताकत का एहसास दिलाया।


🚩मई 1669 में अब्दुन्नवी ने सिहोरा गाँव पर हमला किया। उस समय वीर गोकुल सिंह गाँव में ही थे। भयंकर युद्ध हुआ और इस्लामी शैतान अब्दुन्नवी और उसकी सेना सिहोरा के वीर हिन्दुओं के सामने टिक ना पाई और सारे इस्लामिक पिशाच गाजर-मूली की तरह काट दिए गए।


🚩गोकुल सिंह की सेना में जाट, राजपूत, गुर्जर, यादव, मेव, मीणा इत्यादि सभी जातियों के हिन्दू थे। इस विजय ने मृतप्राय हिन्दू समाज में नए प्राण फूँक दिए थे।


🚩इसके बाद पाँच माह (5 महीनों ) तक भयंकर युद्ध होते रहे। मुगलों की सभी तैयारियां और चुने हुए सेनापति प्रभावहीन और असफल सिद्ध हुए। क्या सैनिक और क्या सेनापति सभी के दिलो-दिमाग पर गोकुलसिंह की वीरता और युद्ध संचालन का आतंक बैठ गया। अंत में सितंबर मास में, बिल्कुल निराश होकर, शफ़ शिक़न खाँ ने गोकुलसिंह के पास संधि-प्रस्ताव भेजा। गोकुल सिंह ने औरंगेजब का प्रस्ताव अस्वीकार करते हुए कहा कि औरंगजेब कौन होता है,हमें माफ़ करने वाला... माफ़ी तो उसे हम हिन्दुओं से मांगनी चाहिए क्योंकि उसने अकारण ही हिन्दू धर्म का बहुत अपमान किया है।


🚩अब औरंगजेब 28 नवम्बर 1669 को दिल्ली से चलकर खुद मथुरा आया गोकुल सिंह से लड़ने के लिए। औरंगजेब ने मथुरा में अपनी छावनी बनाई और अपने सेनापति होशयार खाँ को एक मजबूत एवं विशाल सेना के साथ युद्ध के लिए भेजा।


🚩आगरा शहर का फौजदार होशयार खाँ 1669 सितंबर के अंतिम सप्ताह में अपनी-अपनी सेनाओं के साथ आ पहुंचे। यह विशाल सेना चारों ओर से गोकुलसिंह को घेरते हुए आगे बढ़ने लगी। गोकुलसिंह के विरुद्ध किया गया यह अभियान, उन आक्रमणों की बनिस्पत विशाल स्तर का था, जिसमें बड़े-बड़े राज्यों और वहां के राजाओं के विरुद्ध होते आए थे। इस वीर के पास न तो बड़े-बड़े दुर्ग थे, न अरावली की पहाड़ियाँ और न ही महाराष्ट्र जैसा विविधतापूर्ण भौगोलिक प्रदेश। इन अलाभकारी स्थितियों के बावजूद, उन्होंने जिस धैर्य और रण-चातुर्य के साथ, एक शक्तिशाली साम्राज्य की केंद्रीय शक्ति का सामना करके, बराबरी के परिणाम प्राप्त किए, वह सब अभूतपूर्व है।


🚩औरंगजेब की तोपों, धर्नुधरों, हाथियों से सुसज्जित तीन लाख (3 लाख) सैनिकों की विशाल सेना और गोकुल सिंह के किसानों की बीस हजार (20 हजार) की सेना में भयंकर युद्ध छिड़ गया।

चार दिन तक भयंकर युद्ध चलता रहा और गोकुल सिंह की छोटी सी अवैतनिक सेना अपने बेढ़ंगे व घरेलू हथियारों के बल पर ही अत्याधुनिक हथियारों से सुसज्जित और प्रशिक्षित मुगल सेना पर भारी पड़ रही थी।


🚩भारत के इतिहास में ऐसे युद्ध कम हुए हैं,जहाँ कई प्रकार से बाधित और कमजोर पक्ष इतने शांत निश्चय और अडिग धैर्य के साथ लड़ा हो। हल्दी घाटी के युद्ध का निर्णय कुछ ही घंटों में हो गया था। पानीपत के तीनों युद्ध एक-एक दिन में ही समाप्त हो गए थे, परन्तु वीरवर गोकुलसिंह का युद्ध तीसरे दिन भी चला।


🚩इस लड़ाई में सिर्फ पुरुषों ने ही नहीं, बल्कि उनकी स्त्रियों ने भी पराक्रम दिखाया।


🚩चार दिन के युद्ध के बाद भी जब गोकुल की सेना युद्ध जीतती हुई प्रतीत हो रही थी,तभी हसन अली खान के नेतृत्व में एक नई विशाल मुगलिया टुकड़ी आ गई और इस टुकड़ी के आते ही गोकुल सिंह की सेना हारने लगी। युद्ध में अपनी सेना को हारता देख हजारों हिन्दू नारियाँ जौहर की पवित्र अग्नि में खाक हो गईं।


🚩गोकुल सिंह और उनके ताऊ उदय सिंह को सात हजार साथियों सहित बंदी बनाकर आगरा में औरंगजेब के सामने लाया गया। औरंगजेब ने कहा “जान की खैर चाहते हो तो इस्लाम कबूल कर लो और रसूल के बताए रास्ते पर चलो। बोलो क्या इरादा है...! इस्लाम या मौत ?”


🚩अधिसंख्य धर्म-परायण हिन्दुओं ने एक सुर में कहा- “औरंगजेब, अगर तेरे खुदा और रसूल मोहम्मद का रास्ता वही है,जिस पर तू चल रहा है। तो धिक्कार है तुझे, हमें तेरे रास्ते पर नहीं चलना।"


🚩इतना सुनते ही औरंगजेब के संकेत से गोकुल सिंह की बलशाली भुजा पर जल्लाद का बरछा चला।


🚩गोकुल सिंह ने एक नजर अपने भुजाविहीन रक्तरंजित कंधे पर डाली और फिर पूरे आत्मविश्वास व स्वाभिमान भरे स्वर में दहाड़ते हुए जल्लाद की ओर देखा और कहा दूसरा वार करो।


🚩दूसरा बरछा चलते ही वहाँ खड़ी जनता आर्तनाद कर उठी और फिर गोकुल सिंह के शरीर के एक-एक जोड़ काटे गए। गोकुल सिंह का सिर जब कटकर धरती माता की गोद में गिरा तो मथुरा में केशवरायजी का मंदिर भी भरभराकर गिर गया। यही हाल उदय सिंह और बाकि साथियों का भी किया गया। उनके छोटे- छोटे बच्चों को जबरन मुसलमान बना दिया गया।


🚩1 जनवरी 1670 ईसवी का ही भयानक दिन था वह।


🚩ऐसे अप्रतिम वीर का कोई भी इतिहास नहीं पढ़ाया गया और न ही कहीं कोई सम्मान ही दिया गया। न ही उनके नाम पर कोई विश्वविद्यालय है और न कोई केन्द्रीय या राजकीय परियोजना।

हाय ! कितना एहसान फरामोश, कृतघ्न है हिंदू समाज !??


🚩कैसे वीर हुए इस धरा पर, जिन्होंने धर्म के लिए प्राण न्यौछावर कर दिये, पर इस्लाम नहीं अपनाया।


🚩गोकुलसिंह सिर्फ जाटों के लिए शहीद नहीं हुए थे न उनका राज्य ही किसी ने छीन लिया था, न कोई पेंशन बंद कर दी थी। बल्कि उनके सामने तो अपूर्व शक्तिशाली मुगल-सत्ता, दीनतापूर्वक सन्धि करने की तमन्ना लेकर गिड़गिड़ाई थी।


🚩शर्म आनी चाहिए हमें ! कि हम ऐसे अप्रतिम वीर को कागज़ के ऊपर भी सम्मान नहीं दे सके।


🚩शाही इतिहासकारों ने उनका उल्लेख तक नहीं किया। केवल जाट पुरूष ही नहीं बल्कि उनकी वीरांगनायें भी अपनी ऐतिहासिक दृढ़ता और पारंपरिक शौर्य के साथ उन सेनाओं का सामना करती रहीं।

दुर्भाग्य की बात है, कि भारत की इन वीरांगनाओं और सच्चे सपूतों का कोई उल्लेख शाही टुकड़ों ( मुगलों के ) पर पलने वाले तथाकथित इतिहासकारों ने नहीं किया।


🚩 1669 की क्रान्ति के जननायक, परतंत्र भारत में असहयोग आन्दोलन के जन्मदाता, राष्ट्रधर्म रक्षक वीर गोकुल सिंहजी और उनके सात हजार क्रान्तिकारी साथियों के बलिदान दिवस पर आज 1जनवरी पर उनको शत-शत नमन।


🚩कैसे वीर थे वो अलबेले, कैसी अमर है उनकी कहानी,

     सरदार गोकुल सिंह जी की, आओ याद करें कुर्बानी ।।


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एक देश ऐसा है जहां अंग्रेजों का नहीं केवल हिन्दू कैलेंडर अनुसार मनाया जाता है नया साल...

1 January 2024

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🚩दुनिया के बहुत से देशों ने ग्रेगोरियन कैलेंडर अपनाया है। वे 31 दिसंबर की आधी रात के बाद नया साल मनाते हैं, लेकिन एक ऐसा देश है जो ग्रेगोरियन पद्धति को नहीं बल्कि हिन्दू कैलेंडर( पंचांग )को मानता है।


🚩हिन्दू कैलेंडर विक्रम संवत कैलेंडर का ही प्रचलित नाम है जो भारत में अति प्राचीन काल से चला आ रहा है। 

जब बच्चा पैदा होता है तो पंडित जी द्वारा उसका नामकरण कैलेंडर से नहीं, हिन्दू पंचांग से किया जाता है । ग्रहदोष भी हिन्दू पंचांग से देखे जाते हैं और विवाह में जन्मकुंडली का मिलान भी हिन्दू पंचांग से ही होता है । भारतीय सभी व्रत, त्योहार हिन्दू पंचांग के अनुसार ही आते हैं। मरने के बाद तेरहवाँ भी हिन्दू पंचांग से ही देखा जाता है। मकान का उद्घाटन, जन्मपत्री, स्वास्थ्य रोग और अन्य सभी समस्याओं का निराकरण भी हिन्दू कैलेंडर {पंचांग} से ही होता है।

 

🚩आज़ादी के बाद देश को जब कैलेंडर अपनाने का फैसला करना था, तब प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने ग्रेगोरियन और विक्रम संवत को अपनाया था। 


🚩वहीं नेपाल हमेशा से ही हिन्दू कैलेंडर को मानता चला आ रहा है। वह कभी अंग्रोजों का गुलाम नहीं रहा और इस वजह से वह हमेशा ही पहले से उपयोग में चले आ रहे विक्रम संवत को मानता रहा, जो कि आज भी जारी है। विक्रम संवत , ग्रेगोरियन कैलेंडर से 57 साल आगे चलता है।


🚩नेपाल में कभी अंग्रेजों का शासन नहीं रहा। इसलिए वे कभी भी नेपाल पर अपनी परंपराएं नहीं थोप सके। इसका परिणाम वहाँ उपयोग किया जाने वाला कैलेंडर भी है। नेपाल में विक्रम संवत का आधिकारिक इस्तेमाल 1901 ईस्वी में वहां के राणा वंश ने शुरू किया था। हिन्दू धर्म का यह कैलेंडर भारत के उज्जैनी राज्य में 102 ईसा पूर्व में जन्मे महान शासक सम्राट विक्रमादित्य के नाम पर है।


🚩नेपाल के कैलेंडर अनुसार वहाँ पर नया साल ग्रेगोरियन कैलेंडर के मार्च के अंत या अप्रैल महीने की शुरुआत में चालू होता है। यह कैलेंडर चांद की स्थिति और पृथ्वी द्वारा सूर्य की परिक्रमा के समय पर आधारित होता है। इसे पंचांग भी कहते हैं। इसमें तारीख को तिथि कहते हैं। सप्ताह में सात ही दिन होते हैं और आमतौर पर साल में 12 महीने होते हैं। लेकिन कई बार साल 13 महीने का भी हो जाता है। जब अधिक मास लगता है।


🚩विक्रम संवत की शुरुआत राजा भर्तृहरि ने की थी। विक्रमादित्य उनके छोटे भाई थे। राजा भर्तृहरि ने संन्यास लेकर राज्य विक्रमादित्य को दे दिया था। राजा विक्रमादित्य बहुत ही लोकप्रिय राजा हुए थे। उसके नाम से ही संवत नाम चला और प्रचलित हो गया।


🚩भारतीय संस्कृति का नव संवत् ही नया साल है…. जब ब्रह्माण्ड से लेकर सूर्य चाँद की दिशा, मौसम, नक्षत्र, पौधों की नई पत्तियां, किसान की नई फसल, विद्यार्थी की नई कक्षा, मनुष्य में नया रक्त संचरण आदि परिवर्तन होते हैं , जो विज्ञान आधारित है और चैत्र नवरात्रि का पहला दिन होने के कारण घर, मन्दिर, गली, दुकान सभी जगह पूजा-पाठ व भक्ति का पवित्र वातावरण होता है ।

 

🚩अतः हिन्दुस्तानी अपनी मानसिकता को बदलें। विज्ञान आधारित भारतीय काल गणना को पहचानें और चैत्री शुक्ल पक्ष प्रतिपदा के दिन ही नूतन वर्ष मनायें। 1 जनवरी को केवल कैलेंडर ही बदलें, साल नहीं...


जय हिन्द !!

जय माँ भारती !!


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Saturday, December 30, 2023

भारतवासी अपने ही नूतन वर्ष को क्यों भूल गए ?

31 दिसंबर को क्या करें ?

31 December 2023

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🚩भारतीय संस्कृति के अनुसार चैत्र-प्रतिपदा(गुड़ी पड़वा) ही हिंदुओं के नववर्ष का प्रथम दिन है। किंतु, आज के हिंदू 31 दिसंबर की रात्रि में नववर्ष दिन मनाकर अपने आपको धन्य मानने लगे हैं। आजकल, भारतीय वर्षारंभ दिन चैत्र प्रतिपदा पर एक-दूसरे को शुभकामनाएं देनेवाले हिंदुओं के दर्शन भी दुर्लभ हो गए हैं जबकि 31 दिसंबर की रात्रि में छोटे बालकों से लेकर वृद्ध तक सभी एक-दूसरे को शुभकामना संदेश-पत्र,व्हाट्सएप, टेलीग्राम,इंस्ट्राग्राम, फेसबुक, ट्विटर अथवा प्रत्यक्ष मिलकर हैप्पी न्यू इयर कहते हुए नववर्ष की शुभकामनाएं देते हैं।


🚩चैत्री नूतन वर्ष (गुड़ी पड़वा) के फायदे और 31 दिसंबर के नुकसान


🚩हिंदु धर्म के अनुसार शुभ कार्य का आरंभ ब्रह्ममुहूर्त में उठकर, स्नानादि शुद्धिकर्म के पश्‍चात, स्वच्छ वस्त्र एवं अलंकार धारण कर, धार्मिक विधि-विधान से करना चाहिए। इससे व्यक्ति पर वातावरण की सात्विकता का संस्कार होता है।


🚩31 दिसंबर की रात्रि में किया जानेवाला मद्यपान एवं नाच-गाना, भोगवादी वृत्ति का परिचायक है। इससे हमारा मन भोगी बनेगा। इसी प्रकार, रात्रि का वातावरण तामसी होने से हमारे भीतर तमोगुण बढ़ेगा। इन बातों का ज्ञान न होने के कारण अर्थात धर्मशिक्षा न मिलने के कारण, ऐसे दुराचारों में रुचि लेने वाली आज की युवा पीढी भोगवादी एवं विलासी बनती जा रही है। इस संबंध में इनके अभिभावक भी आनेवाले संकट से अनभिज्ञ दिखाई देते हैं।


🚩ऋण उठाकर 31 दिसंबर मनाते हैं


🚩प्रतिवर्ष दिसंबर माह आरंभ होने पर मराठी तथा स्वयं भारतीय संस्कृति का झूठा अभिमान अनुभव करने वाले परिवारों में चर्चा आरंभ हो जाती है। हमारे बच्चे अंग्रेजी माध्यम में पढते हैं , तो ‘क्रिसमस’ कैसे मनाना है, यह उन्हें पाठशाला में बताया जाता है। अत: हमारे घरों में यह उधारी का त्योहार मनाया जाता है।

इतना ही नहीं स्कूलों में ले जाने के लिए क्रिसमस ट्री सजाने की सामग्री , बच्चों को सांताक्लॉज की टोपी, सफेद दाढ़ी मूंछें, विक, मुखौटा, लाल लंबा कोट, घंटा आदि वस्तुएं बच्चों के गरीब अभिभावक ऋण उठाकर खरीदते हैं।


🚩गोवा में एक प्रसिद्ध आस्थावान ने 25 फीट के अनेक क्रिसमस ट्री को 1 लाख 50 हजार रुपयों में खरीदे हैं। ये सब करनेवालों को एक ही बात बताने की इच्छा है, कि ऐसा कर के हम आंशिक तौर पर धर्मांतित ही तो हो रहे हैं। सनातन धर्म का कोई भी तीज-त्यौहार, व्यक्ति को आध्यात्मिक लाभ हो, इस उद्देश्य से मनाया जाता है! उत्सवों को मनानेवाले, आचार-विचार तथा कृत्यों में कैसे उन्नत हों, यही विचार करके हमारे ऋषि-मुनियों ने सभी व्यवस्थाएं की थीं । अत: सच्चा सुख,शान्ति,समृद्धि ,शक्ति एवं आपसी सौंदर्य बढ़ाने वाले गुड़ीपड़वा’ के दिन ही नववर्ष का स्वागत करना शुभ एवं हितकारी है।


🚩अनैतिक तथा कानून द्रोही कृत्य करके नववर्ष का स्वागत क्यों...!?


🚩वर्तमान में पाश्चात्य प्रथाओं के बढ़ते अंधानुकरण से तथा उनके नियंत्रण में जाने से अपने भारत में भी नववर्ष ‘गुड़ीपड़वा’ की अपेक्षा बडी मात्रा में 31 दिसंबर की रात 12 बजे मनाने की कुप्रथा बढ़ने लगी है। वास्तव में रात के 12 बजे ना रात समाप्त होती है, ना दिन का आरंभ होता है।

अत: विचार कीजिए कि काली अंधेरी आधी रात में नववर्ष भी कैसे आरंभ होगा !? इस समय केवल अंधेरा एवं रज-तम का राज होता है। इस रात को युवकों द्वारा मदिरापान, अन्य नशीले पदार्थों का सेवन व व्यभिचार करने की मात्रा में बढोतरी हुई है।


 🚩युवक-युवतियों का स्वेच्छाचारी आचरण बढ़ा है तथा मदिरापान कर तेज सवारी चलाने से दुर्घटनाओं में बढोतरी हुई है। कुछ स्थानों पर भार नियमन रहते हुए बिजली की झांकी सजाई जाती है, रातभर बड़ी आवाज में पटाखे जला कर प्रदूषण बढ़ाया जाता है तथा कर्ण कर्कश ध्वनिवर्धक लगाकर उनके तालपर अश्लील पद्धति से हाथ-पांव हिलाकर नाच किया जाता है। गंदी गालियां दी जाती हैं तथा लडकियों को छेड़ने की घटना बढ़कर कानून एवं सुव्यवस्था के संदर्भ में गंभीर समस्या उत्पन्न होती है। अंग्रेजी नववर्ष के अवसर पर आरंभ हुई ये घटनाएं फिर सालभर भी बढती ही रहती हैं! इस ख्रिस्ती नए वर्ष ने युवा पीढ़ी को विलासवाद तथा भोगवाद की खाई में धकेल दिया है।


🚩राष्ट्र तथा धर्म प्रेमियों, इन कुप्रथाओं को रोकने हेतु आपको ही आगे आने की आवश्यकता है!


🚩31 दिसंबर को होने वाले अपकारों के कारण अनेक नागरिक, स्त्रियों तथा लड़कियों का घर से बाहर निकलना असंभव हो जाता है। राष्ट्र की युवा पीढी पथभ्रष्ट हो रही है। इसलिए जानकर हिंदू जनजागृति समिति इस विषय में जनजागृति कर पुलिस एवं प्रशासन की सहायता से उपक्रम चला रही है।


🚩ये असामाजिक कार्य रोकने हेतु 31 दिसंबर की रात को प्रमुख तीर्थक्षेत्र, पर्यटनस्थल, गढ़-किलों जैसे ऐतिहासिक तथा सार्वजनिक स्थान पर मदिरापान-धूम्रपान करके पार्टी करने पर प्रतिबंध लगाना अत्यावश्यक है। पुलिस की ओर से गश्तीदल नियुक्त करना, अपकार करनेवाले युवकों को नियंत्रण में लेना, तेज सवारी चलाने वालों पर तुरंत कार्यवाही करना, पटाखों से होनेवाले प्रदूषण के विषय में जनता को जागृत करने जैसे कुछ उपाय करने पर इन अपकारों पर निश्चित ही रोक लगेगी।


🚩अतः आप भी आगे आकर ये अकृत्य रोकने हेतु प्रयास करें। ध्यान रखें, 31 दिसंबर मनाने से आपको उसमें से कुछ भी लाभ तो होता ही नहीं, किंतु सारे ही स्तरों पर, विशेष रूप से अध्यात्मिक स्तर पर बड़ी हानि होती है।


🚩हिंदू जनजागृति समिति के प्रयासों की सहायता करें!


🚩नए वर्ष का आरंभ मंगलदायी हो- इस हेतु शास्त्र-सम्मत भारतीय संस्कृति अनुसार ‘चैत्र शुक्ल प्रतिपदा’ अर्थात ‘गुड़ीपड़वा’ को नववर्षारंभ मनाना नैसर्गिक, ऐतिहासिक तथा अध्यात्मिक दृष्टि से सुविधाजनक तथा लाभदायक है। अत: पाश्चात्य विकृति का अंधानुकरण करने से होनेवाले भारतीय संस्कृति का अधःपतन रोकना, हम सबका ही आद्यकर्तव्य है। राष्ट्राभिमान का पोषण करने तथा अकृत्य रोकने हेतु हिंदू जनजागृति समिति की ओर से आयोजित उपक्रम को जनता से सहयोग की अपेक्षा है। भारतीयों, असामाजिक, अनैतिक तथा धर्मद्रोही कृत्य करके नए वर्ष का स्वागत न करें, यह आपसे विनम्र विनती !


               – श्री. शिवाजी वटकर, समन्वयक, हिंदू जनजागृति समिति


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Friday, December 29, 2023

जिन्होंने बदला धर्म उनको ST से बाहर करो : राँची में हुआ जुटान...

30 December 2023

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🚩डी लिस्टिंग यानी धर्मांतरण कर ईसाई अथवा मुस्लिम बनने वाले जनजातीय समाज के लोगों को अनुसूचित जनजाति (ST) के दायरे से बाहर करने को लेकर देशव्यापी आंदोलन चल रहा है। फरवरी 2024 में जनजातीय समाज के लोग अपनी माँगों के समर्थन में दिल्ली में जुट सकते हैं। 25 dec ईसाइयों के त्योहार क्रिसमस से ठीक पहले 24 दिसंबर 2023 को झारखंड की राजधानी राँची में इकट्ठे हो कर वो अपना इरादा जता चुके हैं।


🚩अनुसूचित जनजाति के लोगों का यह अभियान जनजाति सुरक्षा मंच (JSM) के बैनर तले चल रहा है। टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार इस अभियान को हिंदुवादी संगठनों का भी समर्थन हासिल है। इसी रिपोर्ट में देशभर के जनजातीय समाज के लोगों का दिल्ली में फरवरी में जुटान होने की बात कही गई है। हालाँकि इसकी तारीख अभी तय नहीं हुई है।


🚩जनजातीय समाज के लोगों का कहना है कि धर्मांतरण करने वाले लोग ST का लाभ उठाकर उनके अधिकार को छीन रहे हैं। उनके अनुसार ईसाई बनने वाले ST बीते 75 साल से अनुसूचित जनजाति को मिलने वाले आरक्षण लाभ का 80 फीसदी फायदा उठा रहे हैं। जेएसएम का कहना है कि ईसाइयों अथवा मुस्लिमों का एसटी आरक्षण पर अधिकार नहीं हैं। लेकिन वे जनजातीय समाज के लोगों को मिले संवैधानिक अधिकारों का अतिक्रमण कर रहे हैं।


🚩इन्हीं माँगों के समर्थन में जनजातीय समाज के करीब 5000 लोगों का जुटान गत 24 दिसंबर 2023 को राँची के मोरहाबादी मैदान में हुआ। उलगुलान आदिवासी डीलिस्टिंग नामक इस महारैली का आयोजन JSM की ओर से किया गया था। झारखंड के अलग-अलग हिस्सों से आए अनुसूचित जनजाति समाज के लोगों ने पारंपरिक पोशाकों और तीर-धनुष जैसे पारंपरिक हथियारों के साथ इस रैली में शिरकत की थी।


🚩रैली की अध्यक्षता पूर्व केंद्रीय मंत्री और लोकसभा के पूर्व उपाध्यक्ष करिया मुंडा ने की। उनके अलावा बीजेपी के लोकसभा सांसद सुदर्शन भगत, राज्यसभा सदस्य समीर ओरांव, जेएसएम के राष्ट्रीय संयोजक गणेश राम भगत भी मौजूद थे। करिया मुंडा ने कहा, “झारखंड में ईसाई धर्म अपनाने वाले आदिवासियों का प्रतिशत लगभग 15-20% होगा, लेकिन अगर हम सरकारी नौकरियों और आईएएस सहित प्रथम श्रेणी के अधिकारियों को देखें, तो 80-90% वे हैं जो धर्मांतरित हैं।”


🚩जनजातीय समाज के लोगों की डी-लिस्टिंग की डिमांड नई नहीं है। मुंडा ने बताया कि राँची की तरह ही नागपुर, नासिक, मुंबई जैसे कई जगहों पर इन्हीं माँगों को लेकर जनजातीय समाज के लोगों का जुटान हो चुका है। वहीं जेएसएम के राष्ट्रीय सह संयोजक राजकिशोर हांसदा ने कहा , कि भारतीय संविधान के निर्माताओं ने देश के 700 से अधिक जनजातीय समूहों के अधिकारों की रक्षा के लिए बेहतरीन कोशिशें की थीं, लेकिन ये फायदा मुट्ठी भर उन लोगों को मिल रहा है जो धर्म बदल चुके हैं। जिन्हें चर्च का समर्थन हासिल है।


🚩जनता का कहना है,कि सरकार को भी इस विषय पर ध्यान देना चाहिए,क्योंकि महान विचारक वीर सावरकर धर्मान्तरण को राष्ट्रान्तरण मानते थे। आप कहते थे...

“यदि कोई व्यक्ति धर्मान्तरण करके ईसाई या मुसलमान बन जाता है तो फिर उसकी आस्था भारत में न रहकर उस देश के तीर्थ स्थलों में हो जाती है जहाँ के धर्म में वह आस्था रखता है, इसलिए धर्मान्तरण यानी राष्ट्रान्तरण है। 


🚩इस बात को ध्यान रखते हुए धर्मान्तरण करने वालों को सरकारी सुविधाएं बंद कर देनी चाहिए।


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Thursday, December 28, 2023

जनवरी 1 वाला नया साल मनाने से पहले इस सच को जान लीजिए नही तो होगा पछतावा

29 December 2023

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🚩विदेशी आक्रमणकारियों ने भारत में राज करने के लिए सबसे पहले भारतीय संस्कृति पर कुठाराघात किया जिससे हम अपनी महान दिव्य संस्कृति भूल जाएं और उनकी पाश्चात्य संस्कृति अपना लें जिसके कारण वे भारत में राज कर सकें।


🚩अपनी संस्कृति का ज्ञान न होने के कारण आज हिन्दू भी 31 दिसंबर की रात्रि में एक-दूसरे को हैपी न्यू इयर कहते हुए नववर्ष की शुभकामनाएं देते हैं ।


🚩नववर्ष उत्सव 4000 वर्ष पहले से बेबीलोन में मनाया जाता था। लेकिन उस समय नए वर्ष का ये त्यौहार 21 मार्च को मनाया जाता था जो कि वसंत के आगमन की तिथि (हिन्दुओं का नववर्ष ) भी मानी जाती थी। प्राचीन रोम में भी ये तिथि नव वर्षोत्सव के लिए चुनी गई थी लेकिन रोम के तानाशाह जूलियस सीजर को भारतीय नववर्ष मनाना पसन्द नही आ रहा था इसलिए उसने ईसा पूर्व 45वें वर्ष में जूलियन कैलेंडर की स्थापना की, उस समय विश्व में पहली बार 1 जनवरी को नए वर्ष का उत्सव मनाया गया। ऐसा करने के लिए जूलियस सीजर को पिछला वर्ष, यानि, ईसापूर्व 46 ईस्वी को 445 दिनों का करना पड़ा था । उसके बाद भारतीय नववर्ष के अनुसार छोड़कर ईसाई समुदाय उनके देशों में 1 जनवरी से नववर्ष मनाने लगे ।


🚩भारत देश में अंग्रेजों ने ईस्ट इंडिया कम्पनी की 1757 में स्थापना की । उसके बाद भारत को 190 साल तक गुलाम बनाकर रखा गया। इसमें वो लोग लगे हुए थे जो भारत की ऋषि-मुनियों की प्राचीन सनातन संस्कृति को मिटाने में कार्यरत थे। लॉड मैकाले ने सबसे पहले भारत का इतिहास बदलने का प्रयास किया जिसमें गुरुकुलों में हमारी वैदिक शिक्षण पद्धति को बदला गया ।


🚩भारत का प्राचीन इतिहास बदला गया जिसमें भारतीय अपने मूल इतिहास को भूल गये और अंग्रेजों का गुलाम बनाने वाले इतिहास याद रह गया और आज कई भोले-भाले भारतवासी चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को नववर्ष नही मनाकर 1 जनवरी को ही नववर्ष मनाने लगे ।


🚩हद तो तब हो जाती है जब एक दूसरे को नववर्ष की बधाई भी देने लग जाते हैं। क्या किसी भी ईसाई देशों में हिन्दुओं को हिन्दू नववर्ष की बधाई दी जाती है..??? किसी भी ईसाई देश में हिन्दू नववर्ष नहीं मनाया जाता है फिर भोले भारतवासी उनका नववर्ष क्यों मनाते हैं?


🚩इस साल आने वाला नया वर्ष 2024 अंग्रेजों अर्थात ईसाई धर्म का नया साल है।

हिन्दू धर्म का इस समय विक्रम संवत 2080 चल रहा है। इससे सिद्ध हो गया कि हिन्दू धर्म ही सबसे पुराना धर्म है ।


🚩इस विक्रम संवत से 5000 साल पहले इस धरती पर भगवान विष्णु श्रीकृष्ण के रूप में अवतरित हुए । उनसे लाखों वर्ष पहले भगवान राम, और अन्य अवतार हुए यानि जबसे पृथ्वी का प्रारम्भ हुआ तबसे सनातन (हिन्दू) धर्म है।


🚩कहाँ करोड़ों वर्ष पुराना हमारा सनातन धर्म और कहाँ भारतीय अपनी गरिमा से गिर 2000 साल पुराना नववर्ष मना रहे हैं!


🚩जरा सोचिए….!!!


🚩सीधे-सीधे शब्दों में हिन्दू धर्म ही सब धर्मों की जननी है। यहाँ किसी धर्म का विरोध नहीं है परन्तु सभी भारतवासियों को बताना चाहते हैं कि इंग्लिश कैलेंडर के बदलने से हिन्दू वर्ष नहीं बदलता!


🚩जब बच्चा पैदा होता है तो पंडित जी द्वारा उसका नामकरण कैलेंडर से नहीं हिन्दू पंचांग से किया जाता है । ग्रहदोष भी हिन्दू पंचाग से देखे जाते हैं और विवाह,जन्मकुंडली आदि का मिलान भी हिन्दू पंचाग से ही होता है । सभी व्रत, त्यौहार हिन्दू पंचाग से आते हैं। मरने के बाद तेरहवाँ भी हिन्दू पंचाग से ही देखा जाता है। मकान का उद्घाटन, जन्मपत्री, स्वास्थ्य रोग और अन्य सभी समस्याओं का निराकरण भी हिन्दू कैलेंडर {पंचाग} से ही होता है।


🚩आप जानते हैं कि रामनवमी, जन्माष्टमी, होली, दीपावली, राखी, भाई दूज, करवा चौथ, एकादशी, शिवरात्री, नवरात्रि, दुर्गापूजा सभी विक्रमी संवत कैलेंडर से ही निर्धारित होते हैं | इंग्लिश कैलेंडर में इनका कोई स्थान नहीं होता।


🚩सोचिये! आपके इस सनातन धर्म के जीवन में इंग्लिश नववर्ष या कैलेंडर का स्थान है कहाँ ?


🚩1 जनवरी को क्या नया हो रहा है..????


🚩न ऋतु बदली… न मौसम…न कक्षा बदली…न सत्र….न फसल बदली…न खेती…..न पेड़ पौधों की रंगत…न सूर्य चाँद सितारों की दिशा…. ना ही नक्षत्र…


🚩हाँ, नए साल के नाम पर करोड़ो /अरबों जीवों की हत्या व करोड़ों /अरबों गैलन शराब का पान व रात पर फूहणता अवश्य होगी।


🚩भारतीय संस्कृति का नव संवत् ही नया साल है…. जब ब्रह्माण्ड से लेकर सूर्य चाँद की दिशा, मौसम, फसल, कक्षा, नक्षत्र, पौधों की नई पत्तियां, किसान की नई फसल, विद्यार्थी की नई कक्षा, मनुष्य में नया रक्त संचरण आदि परिवर्तन होते हैं जो विज्ञान आधारित है और चैत्र नवरात्रि का पहला दिन होने के कारण घर, मन्दिर, गली, दुकान सभी जगह पूजा-पाठ व भक्ति का पवित्र वातावरण होता है ।


🚩अतः हिन्दुस्तानी अपनी मानसिकता को बदले, विज्ञान आधारित भारतीय काल गणना को पहचाने और चैत्री शुक्ल पक्ष प्रतिपदा के दिन ही नूतन वर्ष मनाये।


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Wednesday, December 27, 2023

करोड़ो लोगों ने क्रिसमस की जगह तुलसी पूजन दिवस क्यों मनाया !? जानिए


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28 December 2023

🚩अंग्रेजों ने भारत में आकर बड़ी चालाकी से हिन्दू धर्म को मिटाने के लिए अपने आकर्षक और चकाचौंध से भरपूर त्योहारों के सहारे हिन्दू संस्कृति के रीति-रिवाजों और त्योहारों को लगभग हटाकर अपनी पश्चिमी संस्कृति थोपने का कुचक्र रचा। गत वर्षों तक इसका प्रभाव जनमानस पर देखने को मिला, लेकिन आज देश की जनता जागरूक होने लगी है। धीरे-धीरे जनता पश्चिमी संस्कृति को भूल रही है और भारत की दिव्य संस्कृति की तरफ लौट रही है ।


🚩यूरोप आदि देशों में पहले 25 दिसंबर को सूर्यपूजा होती थी लेकिन सूर्यपूजा को खत्म करने के लिए और ईसाईयत का बढ़ावा देने के लिए क्रिसमस- डे शुरू किया।

इस बार पिछली बार से भी दोगुने जोशो-खरोश के साथ देश-विदेश में क्रिसमस की जगह विद्यालयों में, गांवों में, शहरों में, मन्दिरों आदि जगह-जगह पर तुलसी पूजन दिवस मनाया गया ।


🚩आपको बता दें कि केवल भारत में ही नहीं दुबई, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, लंदन आदि कई देशों में भी तुलसी पूजन दिवस मनाया गया। सिर्फ हिन्दू ही नहीं बल्कि मुस्लिम, ईसाई, फारसी लोगों ने भी 25 दिसंबर को तुलसी पूजन दिवस मनाया ।


🚩बता दें कि केवल जमीनी स्तर पर ही नहीं बल्कि ट्वीटर, फेसबुक,इंस्ट्राग्राम, व्हाट्सएप, यूट्यूब आदि सोशल साइट्स पर भी तुलसी पूजन दिवस की धूम मची है ।


🚩गौरतलब है कि 2014 से 25 दिसंबर को तुलसी पूजन हिंदू संत आसाराम बापू ने शुरू करवाया था और उनके करोड़ो अनुयायियों द्वारा जगह-जगह पर मनाना प्रारंभ किया गया । उसके बाद तो 2015 से इस अभियान ने विश्वव्यापी रूप धारण कर लिया और इस बार तो देश-विदेश में अनेक जगहों पर हिन्दू मुस्लिम और अन्य धर्मों के भाई-बहनों ने भी उत्साहित होकर इस दिन को एक पवित्र त्योहार के रूप में मनाया है ।


🚩संत श्री आशारामजी बापू आश्रम द्वारा बताया गया , कि उनके करोड़ों अनुयायियों द्वारा और आम जनता द्वारा विश्वभर के विद्यालयों, महाविद्यालयों और जाहिर जगहों के साथ-साथ करोड़ों घरों में भी तुलसी पूजन त्योहार मनाया जा रहा है ।


🚩ट्वीटर, फेसबुक आदि सोशल साइट्स पर तुलसी पूजन दिवस निमित्त देशभर के स्कूल, कॉलेज, गांवों, शहरों में हुए तुलसी पूजन तथा यात्राओं के साथ हुए तुलसी वितरण के फोटोज़ अपलोड हुए हैं ।


🚩25 दिसम्बर को तुलसी पूजन दिवस की बधाई का ट्वीटर पर टॉप ट्रेंड करता दिखाई दिया।


🚩आम जनता के साथ राष्ट्रवादी नेताओं, पत्रकारों, डॉक्टरों, वकीलों,सरकारी कर्मचारियों, बिजनेसमैन, आदि ने भी ट्वीट करके इस दिन तुलसी पूजन करने का समर्थन किया।


🚩इस प्रकार से अनेकों ट्वीटस हमें देखने को मिली जिसके जरिये लोगों ने बापू आसाराम जी द्वारा प्रेरित तुलसी पूजन दिवस को सराहा भी और इस दिन को हिन्दू संस्कृति अनुसार मनाने का खुद भी आह्वाहन किया तथा औरों को भी प्रेरित किया ।


🚩बापू आसारामजी के अनुयायियों के साथ-साथ अनेक हिन्दू संगठन और देश-विदेश के लोग भी मना रहे थे तुलसी पूजन महापर्व। 


🚩आपको बता दें कि डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी, स्वर्गीय श्री अशोक सिंघल जी और सुदर्शन न्यूज के सुरेश चव्हाणके जी और भी कई बड़ी हस्तियां 25दिसंबर को तुलसी पूजन का न सिर्फ समर्थन करते हैं , बल्कि स्वयं भी तुलसी पूजन विशेषरूप से करते हैं।



🚩आज भले आसारामजी अंतर्राष्ट्रीय षड़यंत्र के तहत जेल में हों, लेकिन आज भी उनके द्वारा प्रेरित उनके अनुयायियों ने हमेशा विदेशी अंधानुकरण का विरोध किया है और हिन्दू संस्कृति के उत्थान के लिए सदैव प्रयासरत रहते हैं। इनके आश्रमों व समितियों द्वारा आयोजित राष्ट्रसेवा के कार्यों की सुवास समाज में देखने को मिलती रहती है। जैसे 14 फरवरी को #मातृ_पितृ_पूजन_दिवस, 25 दिसम्बर तुलसी पूजन दिवस, घर घर गीता पठन,गौ-पूजन, आदिवासी गरीबों में जीवानोपयोगी सामग्री देना व भंडारा, गीता जयंती निमित्त रैलियां, हरि नाम संकीर्तन यात्राएं आदि।


🚩पर मीडिया का कैमरा कभी उस सच्चाई तक नहीं गया। कभी उन सेवाकार्यों तक नहीं गया जिससे समाज का हर वर्ग आज लाभान्वित हो रहा है । अगर आप गौर करेंगे तो मीडिया ने जब भी बापू आशाराम जी के लिए कुछ बोला तो हमेशा समाज में उनकी छवि धूमिल करने का ही प्रयास किया। उनकी ही क्या , हर हिन्दू संत, हर हिन्दू कार्यकर्ता की छवि को धूमिल करने का प्रयास मीडिया द्वारा होता ही आया है !


🚩मीडिया के इस दोगलेपन के पीछे का राज है कि मीडिया विदेशी फंड से चलती है । इसलिए ये समाज को वही दिखाती है जो इसे दिखाने के लिए कहा जाता है । इन्हें सत्य से कुछ लेना-देना नहीं, हर न्यूज के दाम फिक्स होते हैं । ऐसी बिकाऊ मीडिया पर आप यह उम्मीद करेंगे कि वो तुलसी पूजन दिवस समारोह की खबरें दिखाएगी !??

बेशक ! हमारे देश की ( बिकाऊ) इलेक्ट्रॉनिक मीडिया तो क्रिसमस की ही बधाइयाँ देती नज़र आएगी न...


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