Friday, January 5, 2024

"चिड़ियों से मैं बाज़ लड़ाऊं, सवा लाख से एक लड़ाऊं" अपनी इस उक्ति को गुरू गोविंद सिंह ने कैसे किया साकार ?

5 January 2024

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🚩सिक्ख समुदाय के दसवें धर्म-गुरु गोविंद सिंह जी का जन्म पौष सुदी सप्तमी संवत 1723 को हुआ था । उनका जन्म बिहार के पटना शहर में हुआ था।


🚩उनके पिता गुरू तेग बहादुर की मृत्यु के उपरान्त 11 नवम्बर सन 1675 को वे गुरू बने । वह एक महान योद्धा, कवि, भक्त एवं आध्यात्मिक संत थे।


🚩सन 1699 में बैसाखी के दिन उन्होने खालसा पन्थ की स्थापना की । जो सिक्खों के इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण घटना मानी जाती है।


🚩गुरू गोविन्द सिंह ने सिखों के पवित्र ग्रन्थ गुरु ग्रंथ साहिब को पूरा किया तथा उन्हें गुरु रूप में सुशोभित किया।


🚩उन्होंने मुगलों या उनके सहयोगियों (जैसे, शिवालिक पहाड़ियों के राजा) के साथ 14 युद्ध लड़े । धर्म के लिए समस्त परिवार का बलिदान किया, जिसके लिए उन्हें ‘सरबंसदानी’ भी कहा जाता है । इसके अतिरिक्त जनसाधारण में वे कलंगीधर, दशमेश, बाजांवाले आदि कई नाम, उपनाम व उपाधियों से भी जाने जाते हैं ।


🚩गुरु गोविंद सिंह जो विश्व की बलिदानी परम्परा में अद्वितीय थे, वहीं वे स्वयं एक महान लेखक, मौलिक चिंतक तथा कई भाषाओं के ज्ञाता भी थे। उन्होंने स्वयं कई ग्रंथों की रचना की। वे विद्वानों के संरक्षक थे। उनके दरबार में 52 कवियों तथा लेखकों की उपस्थिति रहती थी, इसीलिए उन्हें ‘संत सिपाही’ भी कहा जाता था। वे भक्ति तथा शक्ति के अद्वितीय संगम थे।


🚩खालसा पंथ की स्थापना :


🚩गुरु गोविंद सिंह जी का नेतृत्व सिक्ख समुदाय के इतिहास में बहुत कुछ नया रंग ले कर आया। उन्होंने सन 1699 में बैसाखी के दिन खालसा जो कि सिक्ख धर्म के विधिवत् दीक्षा प्राप्त अनुयायियों का एक सामूहिक रूप है उसका निर्माण किया।


🚩सिक्ख समुदाय की एक सभा में उन्होंने सबके सामने पूछा – कौन अपने सर का बलिदान देना चाहता है? उसी समय एक स्वयंसेवक इस बात के लिए राजी हो गया और गुरु गोबिंद सिंह उसे तम्बू में ले गए और कुछ देर बाद वापस लौटे एक खून लगे हुए तलवार के साथ। गुरु ने दोबारा उस भीड़ के लोगों से वही सवाल दोबारा पूछा और उसी प्रकार एक और व्यक्ति राजी हुआ और उनके साथ गया पर वे तम्बू से जब बाहर निकले तो खून से सना तलवार उनके हाथ में था। उसी प्रकार पांचवा स्वयंसेवक जब उनके साथ तम्बू के भीतर गया, कुछ देर बाद गुरु गोबिंद सिंह सभी जीवित सेवकों के साथ वापस लौटे और उन्होंने उन्हें पंज प्यारे या पहले खालसा का नाम दिया।


🚩उसके बाद गुरु गोबिंद जी ने एक लोहे का कटोरा लिया और उसमें पानी और चीनी मिला कर दुधारी तलवार से घोल कर अमृत का नाम दिया। पहले 5 खालसा के बनाने के बाद उन्हें छटवां खालसा का नाम दिया गया जिसके बाद उनका नाम गुरु गोबिंद राय से गुरु गोबिंद सिंह रख दिया गया। उन्होंने क शब्द के पांच महत्व खालसा के लिए समझाये और कहा – केश, कंघा, कड़ा, किरपान, कच्छा।


🚩यह कहा जाता है कि गुरु गोबिंद सिंह ने कुल चौदह युद्ध लड़े परन्तु कभी भी किसी पूजा के स्थल के लोगों को ना ही बंदी बनाया ना क्षतिग्रस्त किया।


🚩भंगानी का युद्ध Battle of Bhangani (1688)नादौन का युद्ध


🚩Battle of Nadaun (1691)गुलेर का युद्ध


🚩Battle of Guler (1696)आनंदपुर का पहला युद्ध


🚩First Battle of Anandpur (1700)आनंदपुर साहिब का युद्ध


🚩Battle of Anandpur Sahib (1701) निर्मोहगढ़ का युद्ध


🚩Battle of Nirmohgarh (1702) बसोली का युद्ध


🚩Battle of Basoli (1702) आनंदपुर का युद्ध


🚩Battle of Anandpur (1704) सरसा का युद्ध


🚩Battle of Sarsa (1704) चमकौर का युद्ध


🚩Battle of Chamkaur (1704) मुक्तसर का युद्ध Battle of Muktsar (1705)


🚩परिवार के लोगों की मृत्यु :


🚩कहा जाता है कि सरहिन्द के मुस्लिम गवर्नर ने गुरु गोविंद सिंह की माता और दो पुत्रो॔ को बंदी बना लिया था। जब उनके दोनों पुत्रों ने इस्लाम धर्म को कुबूल करने से मना कर दिया तो उन्हें दीवार में जिन्दा चुनवा दिया गया। अपने पोतों के मृत्यु के दुःख को ना सह सकने के कारण माता गुजरी भी ज्यादा दिन तक जीवित ना रह सकी और जल्द ही उनकी मृत्यु हो गयी। मुगल सेना के साथ युद्ध करते हुए 1704 में उनके दोनों बड़े बेटों ने धीर गति पाई थी।


🚩ज़फ़रनामा :


🚩गुरु गोविंद सिंह ने जब देखा कि मुगल सेना ने धोखे और क्रूरता से उनके पुत्रों की हत्या कर दी है तो हथियार डाल देने के बजाय उन्होंने औरंगजेब को एक ज़फ़रनामा (विजय की चिट्ठी) लिखी, जिसमें उन्होंने औरगंजेब को चेतावनी दी कि तेरा साम्राज्य नष्ट करने के लिए खालसा पंथ तैयार हो गया है।


🚩8 मई सन्‌ 1705 में ‘मुक्तसर’ नामक स्थान पर मुगलों से भयानक युद्ध हुआ, जिसमें गुरुजी की जीत हुई। मुक्तसर को पंजाब में दोबारा गुरु जी ने मिलाया और आदि ग्रन्थ (Aadi Granth) के नए अध्याय को बनाने के लिए खुद को समर्पित कर दिया, जो पांचवें सिख गुरु अर्जुन देव जी द्वारा संकलित किया गया था।


🚩उन्होंने अपने लेखन का एक संग्रह बनाया , जिसको नाम दिया दसम ग्रन्थ Dasam Granth और अपनी स्वयं की आत्मकथा जिसका नाम रखा बिचित्र नाटक ( Bicitra Natak )


🚩अक्टूबर सन्‌ 1706 में गुरुजी दक्षिण में गए जहाँ पर उनको औरंगजेब की मृत्यु का पता लगा। औरंगजेब ने मरते समय एक शिकायत पत्र लिखा था।

हैरानी की बात है, कि जो सब कुछ ( लौकिक संपत्ति,  पुत्र,परिवार ) लुटा चुका था, (गुरुजी) वो फतहनामा लिख रहे थे व जिसके पास सब कुछ था वह शिकस्तनामा लिख रहा है। इसका कारण था सच्चाई। गुरुजी ने युद्ध सदैव अत्याचार के विरुद्ध किए थे न कि अपने निजी लाभ के लिए।


🚩अन्तिम समय :


🚩औरंगजेब की मृत्यु के बाद आपने बहादुरशाह को बादशाह बनाने में मदद की। गुरुजी व बहादुरशाह के संबंध अत्यंत मधुर थे। इन संबंधों को देखकर सरहद का नवाब वजीत खाँ घबरा गया। अतः उसने दो पठान गुरुजी के पीछे लगा दिए। इन पठानों ने गुरुजी पर धोखे से घातक वार किया और 7अक्टूबर, 1708 को गुरुजी (गुरु गोविन्द सिंह जी) नांदेड साहिब में दिव्य ज्योति में लीन हो गए। अंत समय में सिक्खों को गुरु ग्रंथ साहिब को अपना गुरु मानने को कहा व खुद भी माथा टेका। गुरुजी की शहीदी के बाद माधोदास ने, जिसे गुरुजी ने सिक्ख बनाया, बंदासिंह बहादुर नाम दिया था, उन्होंने सरहद पर आक्रमण किया और अत्याचारियों की ईंट से ईंट बजा दी।


🚩गुरु गोविंद सिंह का नारा था : ‘चिड़ियों से मैं बाज़ लड़ाऊं, सवा लाख से एक लड़ाऊं ।


🚩जिनका एक-एक सिपाही मुगलों को धूल चटा देता था, जिनका नाम सुनते ही औरंगजेब के पसीने छूटने लगते थे, उन गुरु गोविंद सिंह जी को प्राणों से प्यारा था धर्म।


🚩धर्म की रक्षा के लिए कुर्बान हो गए , ऐसे गुरु गोविंद सिंह जी को शत्- शत् नमन 


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Wednesday, January 3, 2024

साल 2023 का रिपोर्ट : आज भी जगजाहिर है बॉलीवुड की हिंदू-घृणा

04 January 2024

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🚩सनातन के प्रतीकों का सबसे ज्यादा मजाक कहाँ उड़ाया गया ? हिंदू देवी-देवताओं से जोड़ कर भद्दे और अश्लील/द्विअर्थी संवाद और चुटकुले कहाँ परोसे गए  ?बोलने-बताने-दिखाने-सुनाने की आजादी के नाम पर हिंदुओं को कभी लालची तो कभी क्रूर, कभी चरित्रहीन तो कभी गद्दार किस प्लेटफॉर्म ने बताया ? बिना ज्यादा सोचे एकमात्र उत्तर जो दिमाग में आएगा, वो है – बॉलीवुड।



🚩सोशल मीडिया के दौर में लिखने-बोलने-दिखने का ऑप्शन अब आम जनता के पास भी है। बॉलीवुड के सनातन-विरोधी रवैये पर लोग अब इनकी खाल उतारने लगे हैं। तो क्या ऐसे में मुंबइया फिल्म इंडस्ट्री हिंदुओं को लेकर अपनी घटिया मानसिकता से बाहर आ चुकी है? अभिव्यक्ति की जिस आजादी के नाम पर हिंदू धर्म को नीचा दिखाया जाता है, क्या उसी तरीके से इस्लाम और ईसाई मजहब को लेकर यह इंडस्ट्री कहानियाँ लिख सकती है, उसे पर्दे पर उतारती है? बिना ज्यादा सोचे एकमात्र उत्तर जो दिमाग में आएगा, वो है – नहीं।



🚩बॉलीवुड एक फट्टू इंडस्ट्री है। बॉलीवुड धंधा करने वाली कौम का नाम है। इन लोगों को पता है कि हिंदू को छोड़ कर ये अगर किसी और पर निशाना साधे तो ‘सर तन से जुदा’ निश्चित है, बिजनेस का बेड़ागर्क पक्का है। इसलिए हर बार ये मजाक उड़ाते हैं सनातनी परंपराओं का, हिंदुओं की आस्थाओं का। साल 2023 भी इनके लिए कोई अपवाद नहीं रहा। जब-जब इन्होंने हिंदू प्रतीकों का मजाक उड़ाया, नीचा दिखाया, OpIndia ने उसे खबर की शक्ल दी, प्रकाशित किया। बॉलीवुड की पूरे साल भर की नीच हरकतों को अब एक साथ लेकर आए हैं हम। मकसद स्पष्ट है – जब तक इनकी मानसिकता को तोड़ेंगे नहीं, छोड़ेंगे नहीं!



🚩दिसंबर 2023

बॉलीवुड अभिनेता रणबीर कपूर क्रिसमस के मौके पर केक पर दारू डलवा रहे थे और फिर आग लगाते हुए ‘जय माता दी’ कहते सुनाई पड़े। वीडियो में देख सकते हैं कि रणवीर कपूर जब केक पर शराब डालने के बाद जय माता दी कहते सुनाई पड़ते हैं, तभी उनके परिवार के अन्य लोग भी जय माता दी कहते हैं।


🚩इजरायल और हमास के बीच चल रहे युद्ध के बीच मशहूर गायक लकी अली ने फिलीस्तीन जाने की इच्छा जताई। उन्होंने अपने एक्स अकॉउंट पर लिखा- “इंशाल्लाह मैं फिलीस्तीन जाना चाहता हूँ।” सोशल मीडिया पर इसको लेकर उन्हें जवाब मिला कि इनकी सारी मोहब्बत उम्माह के लिए है। क्योंकि इन्होंने कभी नहीं कहा कि ये भारत के साथ मिल कर पाकिस्तान से लड़ना चाहते हैं। मगर फिलीस्तीन जाने के लिए ये उतावले हैं।


🚩नवंबर 2023

जैसे ही हिन्दू पर्व-त्योहार आते हैं, वैसे ही बॉलीवुड हस्तियाँ ज्ञान देने लगते हैं। दिवाली पर दीया मिर्जा ने वीडियो बना कर कहा – “कुछ ज़्यादा ही पैकेजिंग हो जाती है और काफी कचरा पैदा हो जाता है। इस दिवाली मुझे कुछ मत दीजिए। आप उन संगठनों का समर्थन करें जो पर्यावरण के स्वास्थ्य के लिए काम कर रहे हैं।” आश्चर्य यह कि यही दीया मिर्जा ईद-बकरीद या क्रिसमस पर इस तरह के ज्ञान नहीं देती दिखती हैं।


🚩अक्टूबर 2023

सलमान खान की फिल्म ‘Tiger 3’ का एक गाना है – ‘लेके प्रभु का नाम’। इसमें कैटरीना कैफ सेक्सी कपड़ों में दिख रही हैं। कई अन्य लड़कियाँ भी इसी तरह की ड्रेस में नाचती हैं। गाने के बैकग्राउंड के लिए ‘लिंगनुमा आकृतियों’ का इस्तेमाल किया गया है। इस पर कई लोगों ने सवाल उठाया कि गाने में आखिर ‘प्रभु’ का नाम लेने की बात ही क्यों, इस्लाम के ‘खुदा’ या ‘अल्लाह’ का नाम क्यों नहीं ?


🚩सितंबर 2023

खालिस्तान समर्थक सिंगर शुभनीत सिंह ने इंस्टाग्राम पर एक स्टोरी “पंजाब के लिए प्रार्थना करें” पोस्ट किया। इसमें भारत का बिगड़ा हुआ नक्शा दिखाया गया था। नक्शे से केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर, पंजाब और उत्तर-पूर्वी राज्य गायब थे। यह पोस्ट भारत की संप्रभुता को चुनौती देने और खालिस्तान को बढ़ावा देने की एक कोशिश थी। इस गायक को सोशल मीडिया की ताकत का अहसास कराया गया। कैसे? भारत में इसके शो ‘स्टिल रोलिन इंडिया टूर’ रद्द करके।


🚩गणपति उत्सव के दौरान चप्पल पहन कर पूजा करने पहुँचीं बॉलीवुड डायरेक्टर फराह खान। जब सोशल मीडिया यूजर्स ने सवाल किया तो फर्जी का सफाई पेश करने लगीं।

बॉलीवुड एक्टर आमिर खान की पूर्व बीवी किरण राव का कहना है कि अब गलत मैसेज देने वाली फिल्में भी सैकड़ों करोड़ रुपए कमा रही हैं। ऐसी फिल्मों को कमाई करता देख उन्हें दुख होता है। यह दुख उन्होंने तब जाहिर किया जब ‘द केरल स्टोरी’, ‘गदर 2’, ‘कश्मीर फाइल्स’ जैसी फिल्मों ने रिकॉर्ड तोड़ कमाई की और ‘द वैक्सीन वार’ रिलीज होने वाली थी।


🚩बॉलीवुड एक्टर नसीरुद्दीन शाह ने कहा है कि कश्मीरी पंडितों पर हुए अत्याचार का सच दिखाती फिल्म ‘कश्मीर फाइल्स’ के हिट से वह परेशान हो गए हैं। उन्होंने कहा, “मैंने ‘द केरल स्टोरी’ और ‘गदर 2’ जैसी फिल्में नहीं देखीं। परेशान करने वाली बात यह है कि ‘द कश्मीर फाइल्स’ जैसी फिल्में इतनी लोकप्रिय हैं। ऐसी फिल्में सभी गलत चीजों को सही दिखाते हैं और बिना किसी कारण के अन्य समुदायों को नीचा दिखाते हैं। यह एक खतरनाक प्रवृत्ति है।”


🚩एक्टर प्रकाश राज ने तमिलनाडु के मंत्री और मुख्यमंत्री स्टालिन के बेटे उदयनिधि द्वारा दिए गए हिन्दू विरोधी बयान को दोहराते हुए कहा, “सनातन हिन्दू धर्म डेंगू बुखार की तरह है और इसे मिटाया जाना चाहिए। सनातन का खात्मा जरूरी है।” उन्होंने यह भी कहा कि जो लोग सनातन धर्म को कायम रखने पर आक्रामक तरीके से बोलते हैं, वे हिंदू नहीं हैं।


🚩अगस्त 2023

हिंदुओं के भगवान पर आधारित विवादास्पद फिल्म ‘ओ माय गॉड-2 (OMG-2)’ को सेंसर बोर्ड ने पास कर दिया। हस्तमैथुन, अप्राकृतिक सेक्स, लिंग, शराब, नग्नता के अलावा इस फिल्म में ‘स्त्री की योनि हवन कुंड है’ जैसे डायलॉग भी थे, जिसे सेंसर बोर्ड ने बदलने को कहा।

‘ओ माय गॉड 2 (OMG 2)’ के निर्माताओं को महाकाल मंदिर के पुजारियों ने कानूनी नोटिस भेजा। पुजारियों का कहना है कि ट्रेलर में भगवान शिव को कचौड़ी खरीदते दिखाया गया। महाकाल मंदिर के पुजारी ने कहा कि भगवान शिव ने न सिर्फ कचौड़ी खरीदा बल्कि उनसे कचौरी बेचने वाले को पैसे भी माँगते दिखाया गया। इससे शिव भक्तों की भावनाएँ आहत हुईं।


🚩जुलाई 2023

क्रिस्टोफर नोलन की फिल्म ‘Oppenheimer’ में अभिनेता और अभिनेत्री, दोनों ही बिस्तर पर नंगे हैं। युवती को पूरी तरह न्यूड दिखाया गया है और उसके स्तन पर्दे पर दिख रहे होते हैं। इसी सीन में आगे वो भगवद्गीता का श्लोक पढ़ती है। इसको लेकर सोशल मीडिया पर लोगों ने पूछा कि आखिर भारत में सेंसर बोर्ड ने इस दृश्य को कैसे पास कर दिया ?


🚩 लोगों ने सवाल किया है कि क्या जिस तरह से सेक्स सीन में गीता को दिखाया गया है, वैसे किसी अन्य मजहब की पुस्तक,बाइबल, कुरान  दिखाई जा सकती है ?


🚩हिन्दू धर्म को लेकर कई ऐसी फ़िल्में बनी हैं, जिनमें तरह-तरह के सन्देश दिए जाते हैं। सुधारवादी फ़िल्में बनती हैं और धर्म को लेकर अच्छा-बुरा बताया जाता है। लेकिन इस्लामी आतंकवाद से संबंधित विषय पर फिल्म ’72 हूरें’ बनाने में 11 साल लग गए और तो और जैसे ही ये रिलीज होने आई, वैसे ही धमकियों का दौर शुरू हो गया।

इस्लामी आतंकवाद के चेहरे को उजागर करती फिल्म ’72 हूरें (72 Hoorain)’ को लेकर भोजपुरी एक्ट्रेस सबीहा शेख आपत्ति जताई। उन्होंने कहा है कि ऐसी फिल्में लोगों को मजहबी आधार पर बाँटने के लिए बनाई जाती हैं। उन्होंने कहा, “इस फिल्म में कुरान को गलत तरीके से दिखाया गया है। कुरान किसी की जान लेना नहीं सिखाता।”


🚩जून 2023

अशोक पंडित की फिल्म ’72 हूरें’ को सर्टिफिकेट देने से सेंसर बोर्ड ने इनकार कर दिया था। इससे कुरान का रेफरेंस हटाने को कहा गया था। लोगों ने सवाल किया कि जब भगवान श्रीराम, हनुमान और लक्ष्मण के अलावा माँ सीता को लेकर बनी फिल्म ‘आदिपुरुष’ में देवी-देवताओं को लेकर आपत्तिजनक संवाद और दृश्य पास हो गए, फिर ’72 हूरें’ को लेकर ही क्रिएटिव फ्रीडम का मर्दन क्यों?


🚩भगवान श्रीराम और हनुमान जी को आपत्तिजनक रूप से प्रदर्शित करने के लिए इलाहाबद उच्च न्यायालय ने ‘आदिपुरुष’ फिल्म के निर्माताओं को खरी-खरी सुनाई।


🚩 हाईकोर्ट ने पूछा कि आखिर एक समुदाय की सहिष्णुता के स्तर की बार-बार क्यों परीक्षा ली जा रही है?


🚩2023 की ब्लॉकबस्टर फिल्म ‘The Kerala Story’ को OTT पर खरीददार मिलने में दिक्कत हुई। ये सब तब हुआ, जब इसी साल आई ‘भीड़’ और ‘अफवाह’ जैसी प्रोपेगंडा फ़िल्में सुपर फ्लॉप होने के बावजूद OTT पर तुरंत रिलीज हो गई। ‘The Kerala Story’ में दिखाया गया था कि कैसे एक साजिश के तहत केरल में हिन्दू लड़कियों को निशाना बनाया जाता है और उनसे फँसा कर उनका धर्मांतरण और निकाह कर दिया जाता है।

रामायण पर आधारित फिल्म ‘आदिपुरुष’ के संवाद लेखक मनोज मुंतशिर शुक्ला ने अपने संवाद के बचाव के पीछे खूब तर्क दिया। उन्होंने अपनी गलती को छिपाने के लिए कुछ ऐसे तर्क भी दे डाले, जिसको लेकर लोग उन्हें धर्मद्रोही तक कहने लगे। उन्होंने कहा, “भगवान राम ने अपना पूरा जीवन मानव मूल्यों पर जिया है। उन्होंने कभी चमत्कार नहीं दिखाया। उनकी शक्तियाँ अर्जित की हुई थीं। जैसा उन्होंने कमाई थीं, वैसा हम और आप भी कमा सकते हैं। श्रीराम की कथा की विशेषता यही है।”

फिल्म ‘आदिपुरुष’ के डायलॉग लेखक मनोज मुंतशिर ने दावा किया है कि हनुमान जी भगवान नहीं थे। उन्होंने कहा कि हनुमान जी भगवान नहीं, बल्कि भक्त थे। उन्होंने कहा कि बजरंग बली श्रीराम की तरह बात नहीं करते हैं और हमने उन्हें भगवान बनाया है।

फिल्म ‘आदिपुरुष (Adipurush)’ के डायरेक्टर ओम राउत ने अभिनेत्री कृति सेनन को मंदिर परिसर में विदाई चुम्मा दिया। मंदिर प्रांगण में इस हरकत पर कई लोगों ने आपत्ति जताई। मंदिर प्रांगण में ‘गुडबाय किस’ पर मंदिर के प्रधान पुजारी ने भी आपत्ति जताई। उन्होंने कहा, “यह निंदनीय कृत्य है। आप होटल के कमरे में जाकर यह सब कर सकते हैं। आपका व्यवहार रामायण और देवी सीता का अपमान करने जैसा है।”


🚩मई 2023

The Kerala Story नसीरुद्दीन शाह के लिए एक प्रोपेगेंडा फिल्म है। नसीरुद्दीन ने कहा, “ऐसा लगता है कि हम नाजी जर्मनी की ओर बढ़ रहे हैं, जहाँ हिटलर के समय में फिल्म निर्माताओं को सर्वोच्च नेता हिटलर द्वारा उस समय के फिल्ममेकर्स को ऐसी फिल्में बनाने के लिए कहा जाता था, जिसमें उसकी तारीफ हो और यहूदियों को नीचा दिखाया जाए। ये खतरनाक चलन है।”

अभिनेता से नेता बने कमल हासन ने फिल्म ‘द केरल स्टोरी’ पर निशाना साधा। कमल हासन ने सच्ची घटनाओं पर आधारित फिल्म को प्रोपेगेंडा फिल्म करार दिया। उन्होंने कहा, “सिर्फ ‘सच्ची कहानी’ लिख देना पर्याप्त नहीं होता। कहानी वास्तव में सच होनी चाहिए और ये (फिल्म) सच नहीं है।”

फिल्म ‘द क्रिएटर- सृजनहार’ के खिलाफ बजरंग दल कार्यकर्ताओं ने प्रदर्शन किया। बजरंग दल कार्यकर्ता हिरेन रबारी ने कहा, “यह फिल्म हमारे बच्चों को भारतीय संस्कृति से खुद को अलग करने और लव जिहाद के जाल में फँसने के लिए उकसाती है। फिल्म में युवाओं को माता-पिता से दूर रहकर गैर-धर्म के लोगों के साथ प्यार करने की सीख दी गई है।”


🚩सोनाक्षी सिन्हा और विजय वर्मा की एक वेब सीरीज है ‘दहाड़’। इसमें दिखाया गया है कि ‘ठाकुरों की लड़की’ एक मुस्लिम लड़के के साथ भाग जाती है और हिन्दू संगठन पुलिस के कामकाज में बाधा डालते हैं। हिन्दू कार्यकर्ताओं को उपद्रव करने वाला दिखाया गया है।


🚩हिंदू देवी देवताओं को गाली देकर पैसे कमाने वाले कॉमेडियन मुनव्वर फारूकी को स्टार स्पोर्ट्स पर आईपीएल मैच के दौरान शो होस्ट करने का मौका मिला। स्टार स्पोर्ट्स पर हिंदूफोबिक कॉमेडियन को देखकर सोशल मीडिया यूजर्स भड़क गए। लोग बोले – ‘Jio Cinema’ पर ही देखेंगे।


🚩अप्रैल 2023

‘द कश्मीर फाइल्स’ को जनता का काफी प्यार मिला लेकिन फिल्म के निर्माता अभिषेक अग्रवाल को Filmfare Awards 2023 में आमंत्रित तक नहीं किया गया। जबकि फिल्म को 7 कैटेगरी में नॉमिनेट किया गया था। और तो और, ‘द कश्मीर फाइल्स’ को एक भी अवॉर्ड नहीं दिया गया।

बॉलीवुड सिंगर और संगीतकार एआर रहमान चेन्नई में हुए एक अवॉर्ड शो पहुँचे। साथ में उनकी बीवी भी थी। इस दौरान एआर रहमान को बीवी सायरा बानो से कहते हुए सुना गया, “हिंदी में मत बोलो, तमिल में बोलो।” ये ऐसे लोग हैं जो पूरे देश को जोड़ने के बजाय भाषा के आधार पर तोड़ने में लगे रहते हैं।


🚩रैपर बादशाह (Badshah) की नई एलबम ‘सनक’ के गाने में अश्लील शब्दों के साथ भगवान भोलेनाथ को जोड़ा गया। गाने के लाइन कुछ इस तरह हैं, “कभी सेक्स तो कभी ज्ञान बाँटता फिरूँ, जो भी जलता है उसकी @##@# फाड़ता फिरूँ, भोलेनाथ के साथ मेरी बनती है…।” इसको लेकर उज्जैन के महाकाल मंदिर के पुजारी सहित कई शिव भक्तों ने आपत्ति जताई।


🚩बॉलीवुड सिंगर मकसूद महमूद अली (लकी अली के नाम से मशहूर) ने कहा, ‘ब्राह्मण’ शब्द ‘अब्राहम’ से लिया गया है। अली ने अपने फेसबुक पोस्ट में दावे के साथ कहा, “ब्राह्मण’ नाम ‘ब्रह्मा’ से आया है और ‘ब्रह्मा’ शब्द की उत्पत्ति ‘अब्राम’ से हुई है… जिसे अब्राहम या इब्राहिम से लिया गया है।”


🚩मार्च 2023

बॉलीवुड एक्ट्रेस तापसी पन्नू ने एक फोटोशूट में लाल रंग के डीप-नेक आउटफिट के साथ माँ लक्ष्मी का नेकलेस पहना। इसके साथ उन्होंने कैप्शन में लिखा, “यह लाल रंग मुझे कब छोड़ेगा।” इसे देखकर सोशल मीडिया यूजर्स ने तापसी को आड़े हाथों लेकर कहा – “वल्गर फोटो में माँ लक्ष्मी का हार पहनने पर तुम्हें शर्म आनी चाहिए।”


🚩Netflix पर एक वेब सीरीज है, ‘राणा नायडू’ नाम की। इसमें एक किरदार है हिन्दू साधु का। उसका तकिया कलाम ‘अनंत आनंदम्’ है। ‘विजयवाड़ा महाराज’ नाम का ये किरदार मतलब हिंदू साधु बच्चों का यौन शोषण करने वाला होता है। ये और इसके शिष्य बार-बार ‘अनंत आनंदम्’ बोलते हैं। एक दृश्य में तो ‘विजयवाड़ा महाराज’ को गुप्तांग भी मुँह में लेकर अश्लील हरकतें करते हुए दिखाया गया है।


🚩बॉलीवुड अभिनेत्री शिल्पा शेट्टी ने अपने परिवार के साथ होलिका दहन किया। इसके लिए शिल्पा ने अपने घर के अंदर होलिका दहन में बाँस का इस्तेमाल किया। साथ ही जूते पहनकर पूजा की। इसके बाद सोशल मीडिया यूजर्स ने उनको जमकर खरी-खोटी सुनाई। किसी ने लिखा कि होलिका कभी भी घर के अंदर नहीं जलाई जाती है। तो किसी ने कहा कि हिंदू धर्म में बाँस जलाना वर्जित है।


🚩फरवरी 2023

बॉलीवुड अभिनेता नसीरुद्दीन शाह का कहना है कि अकबर ने कोई अलग मजहब नहीं चलाया। उनके अनुसार इतिहास की किताबों में गलत तथ्य पढ़ाए गए हैं। जबकि ऐसा माना जाता है कि दीन-ए-इलाही के नाम से अकबर ने एक मजहब चलाया था और इसमें इस्लाम का सबसे ज्यादा प्रभाव था।

बॉलीवुड एक्टर नसीरुद्दीन शाह ने कहा कि मुगलों के योगदान को नकारा नहीं जा सकता। उनके अनुसार मुगल लूट-मार करने नहीं, बल्कि बसने आए थे। उन्होंने कहा कि अगर मुगल इतने ही बुरे थे तो उनका विरोध करने वाले लोग मुगलों द्वारा बनाई गई स्मारकों जैसे ताजमहल और लाल किले को गिरा क्यों नहीं देते ?


🚩बॉलीवुड गीतकार जावेद अख्तर फैज़ फेस्टिवल में शामिल होने के लिए पाकिस्तान गए। ये वही फैज अहमद हैं, जिन्होंने लिखा था, “सब ताज उछाले जाएँगे, सब तख्त गिराए जाएँगे। बस नाम रहेगा अल्लाह का।” भारत मे अक्सर देश विरोधी और हिंदू विरोधी प्रोपगेंडा में इस नज्म का प्रयोग किया जाता है।


🚩सोशल मीडिया की ताकत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि 2012 में रिलीज हुई फिल्म में हिंदू-घृणा से भरा सीन था। इसके लिए 2023 में एक्टर को माफी माँगनी पड़ी। ‘कमाल धमाल मालामाल’ नाम की फिल्म में श्रेयस तलपड़े हिंदुओं के पवित्र धार्मिक प्रतीक ॐ पर पैर रखे हुए थे। वीडियो जब वायरल हुआ तो श्रेयस तलपड़े ने माफी माँगी।


🚩जनवरी 2023

‘राजी’ फिल्म हरिंदर सिक्का की किताब ‘कॉलिंग सहमत’ पर बनाई गई थी। किताब में सहमत तिरंगे को पूजती थीं। मगर मेघना ने फिल्म से तिरंगे को ही निकाल दिया और फिल्म में पाकिस्तान के झंडे दिखाए। इसके अलावा फिल्म से राष्ट्रभक्ति के सीन ही हटा दिए गए, भारतीय एजेंट्स पर सवाल खड़ा किया गया और पाकिस्तानी आर्मी को नर्म दिल दिखाया।

हिंदू घृणा से सनी फिल्म मेकर लीना मणिमेकलई ने अपनी डॉक्यूमेंट्री ‘काली’ के पोस्टर में हिंदुओं की आराध्य देवी माँ काली को सिगरेट पीते हुए दिखाया। इतनी घटिया हरकत के बावजूद लीना मणिमेकलई ने कहा कि एक रचनात्मक फिल्म मेकर के रूप में उनका इरादा किसी की धार्मिक भावना को ठेस पहुँचाना नहीं था। इसके खिलाफ कई राज्यों में एफआईआर दर्ज हुई।


🚩शाहरुख़ खान की फिल्म ‘पठान’ के गाने ‘बेशरम रंग’ में दीपिका पादुकोण को भगवा बिकनी में दिखाए जाने के बाद हिन्दू संगठनों ने आपत्ति जताई। इसके बाद मानवी तनेजा नामक एक अभिनेत्री ने वीडियो डाल कर इससे भी घटिया हरकत की। वो वीडियो में ‘भगवा आइसक्रीम’ खाती हुई दिख रही और कह रही, “ये मेरी आइसक्रीम है, इसको मैं चाटूँगी। ये लो भक्त, तुम चाटो। चाटो-चाटो। कोई समस्या है?”


🚩सोनी टीवी ने प्रसिद्ध ‘क्राइम पेट्रोल’ के एक एपिसोड में ‘अहमदाबाद-पुणे मर्डर’ नाम से कार्यक्रम प्रसारित किया। यह एपिसोड श्रद्धा वालकर हत्या का नाट्य रूपांतरण था। लेकिन इस नाट्य रूपांतरण में श्रद्धा और आफताब का धर्म बदलकर दिखाया गया। इसमें श्रद्धा का नाम ईसाई लड़की एना फर्नांडिस रखा गया, जबकि उसकी हत्या करने वाले आफताब का हिंदू नाम मिहिर रखा गया।


🚩जागो हिन्दू जागो ओर अपने सनातन हिन्दू धर्म,साधु-संत ,गीता-रामायण, आश्रम और मंदिरों पर गलत टिप्पणी करने वालों का कड़ा विरोध करो।


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Tuesday, January 2, 2024

भीमा-कोरेगाँव युद्ध को इतिहासकारों ने जबरन जीत में कैसे बदल डाला ?

03 January 2024

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🚩ईस्ट इंडिया कंपनी के कप्तान फ्रांसिस स्टोंटो ने नेतृत्व में 31 अक्टूबर 1817 को रात 8 बजे 500 सिपाही, 300 घुड़सवार, 2 बंदूकों और 24 तोपों के साथ एक सैनिक दस्ता पूना से रवाना हुआ। रातभर चलने के बाद अगले दिन सुबह 10 बजे यह छोटी टुकड़ी भीमा नदी के किनारे पहुँची तो सामने पेशवा बाजीराव के नेतृत्व में 20,000 सैनिकों की मराठा फौज खड़ी थी। इस विशालकाय फौज का उद्देश्य पूना को फिर से स्वतंत्र करवाना था, लेकिन कंपनी के उस दस्ते ने उन्हें रास्ते में ही रोक लिया।


🚩कप्तान स्टोंटो की सेना में ब्रिटिश अधिकारियों के अलावा स्थानीय मुसलमान और दक्कन एवं कोंकण के हिंदू महार शामिल थे। दोनों तरफ के विश्लेषण में पेशवा की तैयारी ज्यादा कुशल और आक्रामक थी, जिसे देखकर कप्तान स्टोंटो ने नदी को पार कर सामने से हमला करने की बजाए पीछे ही रहने का फैसला किया। अपनी सुरक्षा के लिए उसने नदी के उत्तरी छोर पर बसे एक छोटे से गाँव कोरेगाँव को बंधक बनाकर वहाँ अपनी चौकी बना ली।


🚩एक छोटी से चारदीवारी से घिरे कोरेगाँव के पश्चिम में दो मंदिर– बिरोबा और मारुति थे। उत्तर-पश्चिम में रिहाइश थी। बिरोबा को भगवान शिवजी का ही एक रूप माना जाता है और महाराष्ट्र की कई हिन्दू जातियाँ उन्हें अपने कुलदेवता के रूप में पूजती हैं, जबकि मारुति को भगवान हनुमान का पर्याय कहा जाता है जोकि रामायण के प्रमुख पात्र हैं।


🚩खैर, कंपनी के दस्ते ने कोरेगाँव के मकानों की छतों का इस्तेमाल पेशवा की सेना पर नजर रखने लिए किया था। कप्तान स्टोंटो ने अपनी बंदूकों को गाँव के दो छोर- एक सड़क के रास्ते और दूसरी नदी के किनारे पर तैनात कर दी थी। अब वह पेशवा की तरफ से पहले हमले का इंतजार करने लगा। हालाँकि, अभी तक पेशवा ने कंपनी के दस्ते पर कोई हमला नहीं किया, क्योंकि वह 5,000 अतिरिक्त अरबी पैदल सेना का इंतजार कर रहे थे।


🚩जैसे ही वह सैनिक टुकड़ी उनसे जुड़ गई तो पेशवा की सेना ने नदी को पार कर पहले हमला शुरू कर दिया। दोपहर के आसपास पेशवा के 900 सिपाही कोरेगाँव के बाहर पहुँच गए थे (कुछ पुस्तकों में इनकी संख्या 1,800 तक बताई गई है)। दोपहर तक दोनों मंदिरों को पेशवा ने वापस अपने कब्जे में ले लिया था। शाम होने तक नदी के किनारे वाली एक बंदूक और 24 तोपों में से 11 को मराठा सेना ने नष्ट कर दिया था।


🚩हालाँकि, ब्रिटिश सरकार द्वारा साल 1910 में प्रकाशित ‘मराठा एंड पिंडारी वॉर’ में कंपनी के नुकसान के दूसरे आँकडे पेश किए हैं। पुस्तक के अनुसार 24 तोपों में से 12 को नष्ट/मार और 8 को घायल कर दिया था (पृष्ठ 57)। मराठा सेना ने विंगगेट, स्वांसटन, पेट्टीसन और कानेला नाम के 4 कंपनी अधिकारियों को भी मार डाला था। हमला इतना तीव्र था कि परिस्थितियों को देखते हुए कप्तान स्टोंटो से बची हुई टुकड़ी ने आत्मसमर्पण की गुहार लगाई। इस सुझाव को कप्तान स्टोंटो ने स्वीकार कर लिया और वर्तमान कर्नाटक के सिरुर गाँव की तरफ भाग गया।


🚩कप्तान स्टोंटो के पीछे हटने के निर्णय के बावजूद भी ब्रिटिश इतिहासकारों ने उसकी तारीफ की है। लड़ाई के चार साल बाद ईस्ट इंडिया कंपनी ने कप्तान स्टोंटो और उसकी सेना के नाम कोरेगाँव में एक स्तंभ बनवा दिया। कुछ सालों बाद, यानी 25 जून, 1825 को कप्तान फ्रांसिस स्टोंटो मर गया और उसे समुद्र में दफना दिया गया। ईस्ट इंडिया कंपनी और मराठा सेना के इस टकराव के कई ऐसे पहलू है जिनका तथ्यात्मक विश्लेषण करना जरूरी है।


🚩पहली बात– महारों की मराठाओं से कोई निजी दुश्मनी नहीं थी। यह लड़ाई कंपनी और मराठा सेना के बीच में लड़ी गई थी जिसमें महारों ने कंपनी का साथ दिया। यह जाति पहले फ़्राँस के भारतीय अभियानों में भी उन्हें अपनी सैन्य सहायता दे चुकी थी। दूसरी बात- किसी भी इतिहास की पुस्तक में स्पष्ट तौर पर मराठा सेना की हार का कोई जिक्र नहीं है। सभी स्थानों पर कप्तान स्टोंटो द्वारा स्वयं की जान बचाने का उल्लेख है, जिसे ‘डिफेन्स ऑफ़ कोरेगाँव’ के नाम से संबोधित किया गया है।


🚩बाद के सालों में, इस टकराव को भीमा-कोरेगाँव युद्ध के नाम पर अंग्रेजों की मराठा सेना पर जीत में जबरन परिवर्तित कर दिया गया, जिसे रचने वाले खुद ब्रिटिश इतिहासकार थे। जिसमें रोपर लेथब्रिज द्वारा लिखित ‘हिस्ट्री ऑफ़ इंडिया’ (1879); ‘द बॉम्बे गज़ेट’ (17 नवम्बर, 1880); जी. यू. पोप द्वारा लिखित ‘लॉन्गमैन्स स्कूल हिस्ट्री ऑफ़ इंडिया’ (1892); आर. एम. बेथाम द्वारा लिखित ‘मराठा एंड डेकखनी मुसलमान’ (1908); जोसिया कोंडर द्वारा लिखित ‘द मॉडर्न ट्रैवलर’ (1918); सी.ए. किनकैड द्वारा लिखित ‘ए हिस्ट्री ऑफ़ मराठा पीपल’ (1925); और रिचर्ड टेम्पल द्वारा लिखित ‘शिवाजी एंड द राइज ऑफ़ द मराठा’ (1953) इत्यादि शामिल थे।


🚩गौर करने वाली बात है कि इन सभी पुस्तकों में एक जैसा ही, बिना किसी परिवर्तन के, ब्रिटिश इतिहास का वर्णन मिलता है। हालाँकि, साल 1894 में अल्दाजी दोश्भई द्वारा लिखित ‘ए हिस्ट्री ऑफ़ गुजरात’ में एक अन्य तथ्य का जिक्र किया गया है। उन्होंने लिखा है कि पेशवा ने कोरेगाँव में ज्यादा देर रुकना ठीक नहीं समझा क्योंकि कप्तान स्टोंटो को पीछे से ब्रिटिश सहायता मिल सकती थी। इसलिए उन्होंने वहाँ से निकलकर दक्षिण की तरफ जाने का फैसला किया। इस समय तक, दक्षिण भारत के कई हिस्सों में ईस्ट इंडिया कंपनी अपनी पकड़ बना चुकी थी। पेशवा चारों तरफ से उनसे घिरे हुए थे और धीरे-धीरे उनके कई दुर्ग जैसे सतारा, रायगढ़ और पुरंदर हाथ से निकल गए थे।


🚩‘मराठा एंड पिंडारी वॉर’ में भी बताया गया है कि जनरल स्मिथ के आने की खबर सुनकर पेशवा की सेना अगले दिन सुबह वहाँ से चली गई थी। कप्तान स्टोंटो को जनरल स्मिथ के कोरेगाँव पहुँचने के समय का सटीक अंदाजा नहीं था। इस बीच, उसके पास हथियारों की कमी हो गई थी, इसलिए वो वहाँ से चला गया। जनरल स्मिथ को 2 जनवरी से 6 जनवरी के बीच कोरेगाँव पहुँचा था लेकिन तब तक मराठा सेना और कंपनी की टुकड़ी वहाँ से रवाना हो गई थी। (पृष्ठ 58)


🚩साल 1923 में प्रत्तुल सी गुप्ता द्वारा लिखित ‘बाजी राव II एंड द ईस्ट इंडिया कंपनी 1796-1818’ में पेशवा की हार का कोई उल्लेख नहीं है। बल्कि उन्होंने कंपनी के नुकसान के आँकड़े पेश किए है। प्रत्तुल सी. गुप्ता ने यह भी लिखा है कि रात के 9 बजे लड़ाई रुक गई थी। (पृष्ठ 179)


🚩यहाँ एक गौर करने वाली बात है कि प्रत्तुल सी. गुप्ता के अनुसार रात्रि को लड़ाई रुकी थी। ‘मराठा एंड पिंडारी वॉर’ के मुताबिक पेशवा की सेना अगले दिन सुबह कोरेगाँव से रवाना हुई थी। इसका मतलब साफ़ है कि कप्तान स्टोंटो रात में ही भाग गया था, जबकि उसे पता था कि उसकी सहायता के लिए जनरल स्मिथ की एक बड़ी फौज उसके पीछे खड़ी थी। हालाँकि, उसके पास अपनी जान बचाने का वक्त भी नहीं था और न ही पर्याप्त हथियार थे।


🚩कोरेगाँव के टकराव का एक अन्य विरोधाभास भी है। वर्तमान में, इस गाँव में कथित ब्रिटिश शौर्य का एक स्तंभ बनाया हुआ है, जिसमें 49 मरने वालों के नाम लिखे गए है। जबकि खुद ब्रिटिश इतिहासकारों जैसे रोपर लेथब्रिज ने साल 1879 (तीसरा संस्करण) में अपनी पुस्तक ‘हिस्ट्री ऑफ़ इंडिया’ में ईस्ट इंडिया कंपनी की तरफ से 79 सैनिकों के मरने अथवा घायल होने की पुष्टि की है (पृष्ठ 191)। दो साल पहले यानी साल 1887 में सी कॉक्स एडमंड द्वारा लिखित ‘ए शोर्ट हिस्ट्री ऑफ़ द बॉम्बे प्रेसीडेंसी’ में कप्तान स्टोंटो के 175 सैनिकों के मारे जाने का उल्लेख है (पृष्ठ 257)।


🚩भीमा-कोरेगाँव का यह टकराव ब्रिटिश क्राउन के लिए कोई बेहद महत्व का नहीं था। अगर ऐसा होता तो ब्रिटिश संसद में इसकी शान में कसीदे पढ़े गए होते। गौर करने वाली बात यह है कि वहाँ न भीमा-कोरेगांव और न ही फ्रांसिस स्टोंटो की कोई खबर है। स्त्रोत ओप इंडिया 


🚩कुछ स्वार्थी नेता भारत को तोड़ते के लिए फूट डालो राज करो वाली अंग्रेजों की नीति के तहत भीमा-कोरेगाँव युद्ध का मुद्दा बनाकर आपस में भिड़ा रहे हैं, उनसे हिन्दुस्तानी सावधान रहें।


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Monday, January 1, 2024

अंग्रेज़ों का नया साल मनाने में हम भूल गए औरंगजेब के पसीने छुड़ाने वाले वीर का बलिदान दिवस...!!

2 January 2024

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🚩भारतवासियों का टीवी, फिल्में, सीरियल, अखबार, पढ़ाई, झूठे इतिहास आदि द्वारा ऐसा ब्रेनवॉश कर दिया गया है,कि जिन अंग्रेज़ों ने भारत को 200 साल गुलाम बनाकर रखा, देशवासियों को प्रताड़ित किया, देश की संपत्ति लूटकर ले गये...आज उन्हीं के नये साल पर बधाई देते/लेते हैं, जश्न मनाते हैं।

लेकिन जिन क्रांतिकारियों ने इन अंग्रेज़ों को भगाने में और मुगलों के साम्राज्य की नींव तक हिलाने में अपने प्राणों की बलि दे दी और आज जिनके कारण हम इस देश में स्वतंत्रता से श्वास ले रहे हैं, ऐसे योद्धाओं को ही हमने भुला दिया !!


🚩भारत माता के ऐसे ही एक वीर सपूत थे गोकुल सिंह, जिन्होंने विशाल मुगल सेना के दांत खट्टे कर दिए थे और औरंगजेब के पसीने छुड़ा दिए थे। उनका आज बलिदान दिवस है। इनका इतिहास पढ़कर आप भी अपने पूर्वजों की वीरता पर गर्व महसूस करेंगे तथा उन विदेशी आक्रांताओं ( मुगलों तथा अंग्रेजों ) की असलियत भली प्रकार से समझ पाएंगे ।


🚩सन् 1666 में मुगल शासक या कहें... कुशासक औरंगजेब के अत्याचारों से हिन्दू जनता त्राहि-त्राहि कर रही थी। मंदिरों को तोड़ा जा रहा था, हिन्दू स्त्रियों की इज्जत लूटकर उन्हें मुस्लिम बनाया जा रहा था।

औरंगजेब और उसके सैनिक पागल हाथी की तरह हिन्दू जनता को मथते हुए आगे बढ़ते जा रहे थे।


🚩हिंदुओं को दबाने के लिए औरंगजेब ने अब्दुन्नवी नामक एक कट्टर मुसलमान को मथुरा का फौजदार नियुक्त किया। अब्दुन्नवी के सैनिकों का एक दस्ता मथुरा जनपद में चारों ओर लगान वसूली करने निकला।


🚩गौरतलब है...

सिनसिनी गाँव के सरदार गोकुल सिंह के आह्वान पर किसानों ने लगान देने से इंकार कर दिया, परतन्त्र भारत के इतिहास में वह पहला “असहयोग आन्दोलन” था।


🚩दिल्ली के सिंहासन के नाक तले धर्मपरायण हिन्दू वीर योद्धा गोकुल सिंह और उनकी किसान सेना ने आतताई औरंगजेब को हिंदुत्व की ताकत का एहसास दिलाया।


🚩मई 1669 में अब्दुन्नवी ने सिहोरा गाँव पर हमला किया। उस समय वीर गोकुल सिंह गाँव में ही थे। भयंकर युद्ध हुआ और इस्लामी शैतान अब्दुन्नवी और उसकी सेना सिहोरा के वीर हिन्दुओं के सामने टिक ना पाई और सारे इस्लामिक पिशाच गाजर-मूली की तरह काट दिए गए।


🚩गोकुल सिंह की सेना में जाट, राजपूत, गुर्जर, यादव, मेव, मीणा इत्यादि सभी जातियों के हिन्दू थे। इस विजय ने मृतप्राय हिन्दू समाज में नए प्राण फूँक दिए थे।


🚩इसके बाद पाँच माह (5 महीनों ) तक भयंकर युद्ध होते रहे। मुगलों की सभी तैयारियां और चुने हुए सेनापति प्रभावहीन और असफल सिद्ध हुए। क्या सैनिक और क्या सेनापति सभी के दिलो-दिमाग पर गोकुलसिंह की वीरता और युद्ध संचालन का आतंक बैठ गया। अंत में सितंबर मास में, बिल्कुल निराश होकर, शफ़ शिक़न खाँ ने गोकुलसिंह के पास संधि-प्रस्ताव भेजा। गोकुल सिंह ने औरंगेजब का प्रस्ताव अस्वीकार करते हुए कहा कि औरंगजेब कौन होता है,हमें माफ़ करने वाला... माफ़ी तो उसे हम हिन्दुओं से मांगनी चाहिए क्योंकि उसने अकारण ही हिन्दू धर्म का बहुत अपमान किया है।


🚩अब औरंगजेब 28 नवम्बर 1669 को दिल्ली से चलकर खुद मथुरा आया गोकुल सिंह से लड़ने के लिए। औरंगजेब ने मथुरा में अपनी छावनी बनाई और अपने सेनापति होशयार खाँ को एक मजबूत एवं विशाल सेना के साथ युद्ध के लिए भेजा।


🚩आगरा शहर का फौजदार होशयार खाँ 1669 सितंबर के अंतिम सप्ताह में अपनी-अपनी सेनाओं के साथ आ पहुंचे। यह विशाल सेना चारों ओर से गोकुलसिंह को घेरते हुए आगे बढ़ने लगी। गोकुलसिंह के विरुद्ध किया गया यह अभियान, उन आक्रमणों की बनिस्पत विशाल स्तर का था, जिसमें बड़े-बड़े राज्यों और वहां के राजाओं के विरुद्ध होते आए थे। इस वीर के पास न तो बड़े-बड़े दुर्ग थे, न अरावली की पहाड़ियाँ और न ही महाराष्ट्र जैसा विविधतापूर्ण भौगोलिक प्रदेश। इन अलाभकारी स्थितियों के बावजूद, उन्होंने जिस धैर्य और रण-चातुर्य के साथ, एक शक्तिशाली साम्राज्य की केंद्रीय शक्ति का सामना करके, बराबरी के परिणाम प्राप्त किए, वह सब अभूतपूर्व है।


🚩औरंगजेब की तोपों, धर्नुधरों, हाथियों से सुसज्जित तीन लाख (3 लाख) सैनिकों की विशाल सेना और गोकुल सिंह के किसानों की बीस हजार (20 हजार) की सेना में भयंकर युद्ध छिड़ गया।

चार दिन तक भयंकर युद्ध चलता रहा और गोकुल सिंह की छोटी सी अवैतनिक सेना अपने बेढ़ंगे व घरेलू हथियारों के बल पर ही अत्याधुनिक हथियारों से सुसज्जित और प्रशिक्षित मुगल सेना पर भारी पड़ रही थी।


🚩भारत के इतिहास में ऐसे युद्ध कम हुए हैं,जहाँ कई प्रकार से बाधित और कमजोर पक्ष इतने शांत निश्चय और अडिग धैर्य के साथ लड़ा हो। हल्दी घाटी के युद्ध का निर्णय कुछ ही घंटों में हो गया था। पानीपत के तीनों युद्ध एक-एक दिन में ही समाप्त हो गए थे, परन्तु वीरवर गोकुलसिंह का युद्ध तीसरे दिन भी चला।


🚩इस लड़ाई में सिर्फ पुरुषों ने ही नहीं, बल्कि उनकी स्त्रियों ने भी पराक्रम दिखाया।


🚩चार दिन के युद्ध के बाद भी जब गोकुल की सेना युद्ध जीतती हुई प्रतीत हो रही थी,तभी हसन अली खान के नेतृत्व में एक नई विशाल मुगलिया टुकड़ी आ गई और इस टुकड़ी के आते ही गोकुल सिंह की सेना हारने लगी। युद्ध में अपनी सेना को हारता देख हजारों हिन्दू नारियाँ जौहर की पवित्र अग्नि में खाक हो गईं।


🚩गोकुल सिंह और उनके ताऊ उदय सिंह को सात हजार साथियों सहित बंदी बनाकर आगरा में औरंगजेब के सामने लाया गया। औरंगजेब ने कहा “जान की खैर चाहते हो तो इस्लाम कबूल कर लो और रसूल के बताए रास्ते पर चलो। बोलो क्या इरादा है...! इस्लाम या मौत ?”


🚩अधिसंख्य धर्म-परायण हिन्दुओं ने एक सुर में कहा- “औरंगजेब, अगर तेरे खुदा और रसूल मोहम्मद का रास्ता वही है,जिस पर तू चल रहा है। तो धिक्कार है तुझे, हमें तेरे रास्ते पर नहीं चलना।"


🚩इतना सुनते ही औरंगजेब के संकेत से गोकुल सिंह की बलशाली भुजा पर जल्लाद का बरछा चला।


🚩गोकुल सिंह ने एक नजर अपने भुजाविहीन रक्तरंजित कंधे पर डाली और फिर पूरे आत्मविश्वास व स्वाभिमान भरे स्वर में दहाड़ते हुए जल्लाद की ओर देखा और कहा दूसरा वार करो।


🚩दूसरा बरछा चलते ही वहाँ खड़ी जनता आर्तनाद कर उठी और फिर गोकुल सिंह के शरीर के एक-एक जोड़ काटे गए। गोकुल सिंह का सिर जब कटकर धरती माता की गोद में गिरा तो मथुरा में केशवरायजी का मंदिर भी भरभराकर गिर गया। यही हाल उदय सिंह और बाकि साथियों का भी किया गया। उनके छोटे- छोटे बच्चों को जबरन मुसलमान बना दिया गया।


🚩1 जनवरी 1670 ईसवी का ही भयानक दिन था वह।


🚩ऐसे अप्रतिम वीर का कोई भी इतिहास नहीं पढ़ाया गया और न ही कहीं कोई सम्मान ही दिया गया। न ही उनके नाम पर कोई विश्वविद्यालय है और न कोई केन्द्रीय या राजकीय परियोजना।

हाय ! कितना एहसान फरामोश, कृतघ्न है हिंदू समाज !??


🚩कैसे वीर हुए इस धरा पर, जिन्होंने धर्म के लिए प्राण न्यौछावर कर दिये, पर इस्लाम नहीं अपनाया।


🚩गोकुलसिंह सिर्फ जाटों के लिए शहीद नहीं हुए थे न उनका राज्य ही किसी ने छीन लिया था, न कोई पेंशन बंद कर दी थी। बल्कि उनके सामने तो अपूर्व शक्तिशाली मुगल-सत्ता, दीनतापूर्वक सन्धि करने की तमन्ना लेकर गिड़गिड़ाई थी।


🚩शर्म आनी चाहिए हमें ! कि हम ऐसे अप्रतिम वीर को कागज़ के ऊपर भी सम्मान नहीं दे सके।


🚩शाही इतिहासकारों ने उनका उल्लेख तक नहीं किया। केवल जाट पुरूष ही नहीं बल्कि उनकी वीरांगनायें भी अपनी ऐतिहासिक दृढ़ता और पारंपरिक शौर्य के साथ उन सेनाओं का सामना करती रहीं।

दुर्भाग्य की बात है, कि भारत की इन वीरांगनाओं और सच्चे सपूतों का कोई उल्लेख शाही टुकड़ों ( मुगलों के ) पर पलने वाले तथाकथित इतिहासकारों ने नहीं किया।


🚩 1669 की क्रान्ति के जननायक, परतंत्र भारत में असहयोग आन्दोलन के जन्मदाता, राष्ट्रधर्म रक्षक वीर गोकुल सिंहजी और उनके सात हजार क्रान्तिकारी साथियों के बलिदान दिवस पर आज 1जनवरी पर उनको शत-शत नमन।


🚩कैसे वीर थे वो अलबेले, कैसी अमर है उनकी कहानी,

     सरदार गोकुल सिंह जी की, आओ याद करें कुर्बानी ।।


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एक देश ऐसा है जहां अंग्रेजों का नहीं केवल हिन्दू कैलेंडर अनुसार मनाया जाता है नया साल...

1 January 2024

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🚩दुनिया के बहुत से देशों ने ग्रेगोरियन कैलेंडर अपनाया है। वे 31 दिसंबर की आधी रात के बाद नया साल मनाते हैं, लेकिन एक ऐसा देश है जो ग्रेगोरियन पद्धति को नहीं बल्कि हिन्दू कैलेंडर( पंचांग )को मानता है।


🚩हिन्दू कैलेंडर विक्रम संवत कैलेंडर का ही प्रचलित नाम है जो भारत में अति प्राचीन काल से चला आ रहा है। 

जब बच्चा पैदा होता है तो पंडित जी द्वारा उसका नामकरण कैलेंडर से नहीं, हिन्दू पंचांग से किया जाता है । ग्रहदोष भी हिन्दू पंचांग से देखे जाते हैं और विवाह में जन्मकुंडली का मिलान भी हिन्दू पंचांग से ही होता है । भारतीय सभी व्रत, त्योहार हिन्दू पंचांग के अनुसार ही आते हैं। मरने के बाद तेरहवाँ भी हिन्दू पंचांग से ही देखा जाता है। मकान का उद्घाटन, जन्मपत्री, स्वास्थ्य रोग और अन्य सभी समस्याओं का निराकरण भी हिन्दू कैलेंडर {पंचांग} से ही होता है।

 

🚩आज़ादी के बाद देश को जब कैलेंडर अपनाने का फैसला करना था, तब प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने ग्रेगोरियन और विक्रम संवत को अपनाया था। 


🚩वहीं नेपाल हमेशा से ही हिन्दू कैलेंडर को मानता चला आ रहा है। वह कभी अंग्रोजों का गुलाम नहीं रहा और इस वजह से वह हमेशा ही पहले से उपयोग में चले आ रहे विक्रम संवत को मानता रहा, जो कि आज भी जारी है। विक्रम संवत , ग्रेगोरियन कैलेंडर से 57 साल आगे चलता है।


🚩नेपाल में कभी अंग्रेजों का शासन नहीं रहा। इसलिए वे कभी भी नेपाल पर अपनी परंपराएं नहीं थोप सके। इसका परिणाम वहाँ उपयोग किया जाने वाला कैलेंडर भी है। नेपाल में विक्रम संवत का आधिकारिक इस्तेमाल 1901 ईस्वी में वहां के राणा वंश ने शुरू किया था। हिन्दू धर्म का यह कैलेंडर भारत के उज्जैनी राज्य में 102 ईसा पूर्व में जन्मे महान शासक सम्राट विक्रमादित्य के नाम पर है।


🚩नेपाल के कैलेंडर अनुसार वहाँ पर नया साल ग्रेगोरियन कैलेंडर के मार्च के अंत या अप्रैल महीने की शुरुआत में चालू होता है। यह कैलेंडर चांद की स्थिति और पृथ्वी द्वारा सूर्य की परिक्रमा के समय पर आधारित होता है। इसे पंचांग भी कहते हैं। इसमें तारीख को तिथि कहते हैं। सप्ताह में सात ही दिन होते हैं और आमतौर पर साल में 12 महीने होते हैं। लेकिन कई बार साल 13 महीने का भी हो जाता है। जब अधिक मास लगता है।


🚩विक्रम संवत की शुरुआत राजा भर्तृहरि ने की थी। विक्रमादित्य उनके छोटे भाई थे। राजा भर्तृहरि ने संन्यास लेकर राज्य विक्रमादित्य को दे दिया था। राजा विक्रमादित्य बहुत ही लोकप्रिय राजा हुए थे। उसके नाम से ही संवत नाम चला और प्रचलित हो गया।


🚩भारतीय संस्कृति का नव संवत् ही नया साल है…. जब ब्रह्माण्ड से लेकर सूर्य चाँद की दिशा, मौसम, नक्षत्र, पौधों की नई पत्तियां, किसान की नई फसल, विद्यार्थी की नई कक्षा, मनुष्य में नया रक्त संचरण आदि परिवर्तन होते हैं , जो विज्ञान आधारित है और चैत्र नवरात्रि का पहला दिन होने के कारण घर, मन्दिर, गली, दुकान सभी जगह पूजा-पाठ व भक्ति का पवित्र वातावरण होता है ।

 

🚩अतः हिन्दुस्तानी अपनी मानसिकता को बदलें। विज्ञान आधारित भारतीय काल गणना को पहचानें और चैत्री शुक्ल पक्ष प्रतिपदा के दिन ही नूतन वर्ष मनायें। 1 जनवरी को केवल कैलेंडर ही बदलें, साल नहीं...


जय हिन्द !!

जय माँ भारती !!


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Saturday, December 30, 2023

भारतवासी अपने ही नूतन वर्ष को क्यों भूल गए ?

31 दिसंबर को क्या करें ?

31 December 2023

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🚩भारतीय संस्कृति के अनुसार चैत्र-प्रतिपदा(गुड़ी पड़वा) ही हिंदुओं के नववर्ष का प्रथम दिन है। किंतु, आज के हिंदू 31 दिसंबर की रात्रि में नववर्ष दिन मनाकर अपने आपको धन्य मानने लगे हैं। आजकल, भारतीय वर्षारंभ दिन चैत्र प्रतिपदा पर एक-दूसरे को शुभकामनाएं देनेवाले हिंदुओं के दर्शन भी दुर्लभ हो गए हैं जबकि 31 दिसंबर की रात्रि में छोटे बालकों से लेकर वृद्ध तक सभी एक-दूसरे को शुभकामना संदेश-पत्र,व्हाट्सएप, टेलीग्राम,इंस्ट्राग्राम, फेसबुक, ट्विटर अथवा प्रत्यक्ष मिलकर हैप्पी न्यू इयर कहते हुए नववर्ष की शुभकामनाएं देते हैं।


🚩चैत्री नूतन वर्ष (गुड़ी पड़वा) के फायदे और 31 दिसंबर के नुकसान


🚩हिंदु धर्म के अनुसार शुभ कार्य का आरंभ ब्रह्ममुहूर्त में उठकर, स्नानादि शुद्धिकर्म के पश्‍चात, स्वच्छ वस्त्र एवं अलंकार धारण कर, धार्मिक विधि-विधान से करना चाहिए। इससे व्यक्ति पर वातावरण की सात्विकता का संस्कार होता है।


🚩31 दिसंबर की रात्रि में किया जानेवाला मद्यपान एवं नाच-गाना, भोगवादी वृत्ति का परिचायक है। इससे हमारा मन भोगी बनेगा। इसी प्रकार, रात्रि का वातावरण तामसी होने से हमारे भीतर तमोगुण बढ़ेगा। इन बातों का ज्ञान न होने के कारण अर्थात धर्मशिक्षा न मिलने के कारण, ऐसे दुराचारों में रुचि लेने वाली आज की युवा पीढी भोगवादी एवं विलासी बनती जा रही है। इस संबंध में इनके अभिभावक भी आनेवाले संकट से अनभिज्ञ दिखाई देते हैं।


🚩ऋण उठाकर 31 दिसंबर मनाते हैं


🚩प्रतिवर्ष दिसंबर माह आरंभ होने पर मराठी तथा स्वयं भारतीय संस्कृति का झूठा अभिमान अनुभव करने वाले परिवारों में चर्चा आरंभ हो जाती है। हमारे बच्चे अंग्रेजी माध्यम में पढते हैं , तो ‘क्रिसमस’ कैसे मनाना है, यह उन्हें पाठशाला में बताया जाता है। अत: हमारे घरों में यह उधारी का त्योहार मनाया जाता है।

इतना ही नहीं स्कूलों में ले जाने के लिए क्रिसमस ट्री सजाने की सामग्री , बच्चों को सांताक्लॉज की टोपी, सफेद दाढ़ी मूंछें, विक, मुखौटा, लाल लंबा कोट, घंटा आदि वस्तुएं बच्चों के गरीब अभिभावक ऋण उठाकर खरीदते हैं।


🚩गोवा में एक प्रसिद्ध आस्थावान ने 25 फीट के अनेक क्रिसमस ट्री को 1 लाख 50 हजार रुपयों में खरीदे हैं। ये सब करनेवालों को एक ही बात बताने की इच्छा है, कि ऐसा कर के हम आंशिक तौर पर धर्मांतित ही तो हो रहे हैं। सनातन धर्म का कोई भी तीज-त्यौहार, व्यक्ति को आध्यात्मिक लाभ हो, इस उद्देश्य से मनाया जाता है! उत्सवों को मनानेवाले, आचार-विचार तथा कृत्यों में कैसे उन्नत हों, यही विचार करके हमारे ऋषि-मुनियों ने सभी व्यवस्थाएं की थीं । अत: सच्चा सुख,शान्ति,समृद्धि ,शक्ति एवं आपसी सौंदर्य बढ़ाने वाले गुड़ीपड़वा’ के दिन ही नववर्ष का स्वागत करना शुभ एवं हितकारी है।


🚩अनैतिक तथा कानून द्रोही कृत्य करके नववर्ष का स्वागत क्यों...!?


🚩वर्तमान में पाश्चात्य प्रथाओं के बढ़ते अंधानुकरण से तथा उनके नियंत्रण में जाने से अपने भारत में भी नववर्ष ‘गुड़ीपड़वा’ की अपेक्षा बडी मात्रा में 31 दिसंबर की रात 12 बजे मनाने की कुप्रथा बढ़ने लगी है। वास्तव में रात के 12 बजे ना रात समाप्त होती है, ना दिन का आरंभ होता है।

अत: विचार कीजिए कि काली अंधेरी आधी रात में नववर्ष भी कैसे आरंभ होगा !? इस समय केवल अंधेरा एवं रज-तम का राज होता है। इस रात को युवकों द्वारा मदिरापान, अन्य नशीले पदार्थों का सेवन व व्यभिचार करने की मात्रा में बढोतरी हुई है।


 🚩युवक-युवतियों का स्वेच्छाचारी आचरण बढ़ा है तथा मदिरापान कर तेज सवारी चलाने से दुर्घटनाओं में बढोतरी हुई है। कुछ स्थानों पर भार नियमन रहते हुए बिजली की झांकी सजाई जाती है, रातभर बड़ी आवाज में पटाखे जला कर प्रदूषण बढ़ाया जाता है तथा कर्ण कर्कश ध्वनिवर्धक लगाकर उनके तालपर अश्लील पद्धति से हाथ-पांव हिलाकर नाच किया जाता है। गंदी गालियां दी जाती हैं तथा लडकियों को छेड़ने की घटना बढ़कर कानून एवं सुव्यवस्था के संदर्भ में गंभीर समस्या उत्पन्न होती है। अंग्रेजी नववर्ष के अवसर पर आरंभ हुई ये घटनाएं फिर सालभर भी बढती ही रहती हैं! इस ख्रिस्ती नए वर्ष ने युवा पीढ़ी को विलासवाद तथा भोगवाद की खाई में धकेल दिया है।


🚩राष्ट्र तथा धर्म प्रेमियों, इन कुप्रथाओं को रोकने हेतु आपको ही आगे आने की आवश्यकता है!


🚩31 दिसंबर को होने वाले अपकारों के कारण अनेक नागरिक, स्त्रियों तथा लड़कियों का घर से बाहर निकलना असंभव हो जाता है। राष्ट्र की युवा पीढी पथभ्रष्ट हो रही है। इसलिए जानकर हिंदू जनजागृति समिति इस विषय में जनजागृति कर पुलिस एवं प्रशासन की सहायता से उपक्रम चला रही है।


🚩ये असामाजिक कार्य रोकने हेतु 31 दिसंबर की रात को प्रमुख तीर्थक्षेत्र, पर्यटनस्थल, गढ़-किलों जैसे ऐतिहासिक तथा सार्वजनिक स्थान पर मदिरापान-धूम्रपान करके पार्टी करने पर प्रतिबंध लगाना अत्यावश्यक है। पुलिस की ओर से गश्तीदल नियुक्त करना, अपकार करनेवाले युवकों को नियंत्रण में लेना, तेज सवारी चलाने वालों पर तुरंत कार्यवाही करना, पटाखों से होनेवाले प्रदूषण के विषय में जनता को जागृत करने जैसे कुछ उपाय करने पर इन अपकारों पर निश्चित ही रोक लगेगी।


🚩अतः आप भी आगे आकर ये अकृत्य रोकने हेतु प्रयास करें। ध्यान रखें, 31 दिसंबर मनाने से आपको उसमें से कुछ भी लाभ तो होता ही नहीं, किंतु सारे ही स्तरों पर, विशेष रूप से अध्यात्मिक स्तर पर बड़ी हानि होती है।


🚩हिंदू जनजागृति समिति के प्रयासों की सहायता करें!


🚩नए वर्ष का आरंभ मंगलदायी हो- इस हेतु शास्त्र-सम्मत भारतीय संस्कृति अनुसार ‘चैत्र शुक्ल प्रतिपदा’ अर्थात ‘गुड़ीपड़वा’ को नववर्षारंभ मनाना नैसर्गिक, ऐतिहासिक तथा अध्यात्मिक दृष्टि से सुविधाजनक तथा लाभदायक है। अत: पाश्चात्य विकृति का अंधानुकरण करने से होनेवाले भारतीय संस्कृति का अधःपतन रोकना, हम सबका ही आद्यकर्तव्य है। राष्ट्राभिमान का पोषण करने तथा अकृत्य रोकने हेतु हिंदू जनजागृति समिति की ओर से आयोजित उपक्रम को जनता से सहयोग की अपेक्षा है। भारतीयों, असामाजिक, अनैतिक तथा धर्मद्रोही कृत्य करके नए वर्ष का स्वागत न करें, यह आपसे विनम्र विनती !


               – श्री. शिवाजी वटकर, समन्वयक, हिंदू जनजागृति समिति


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Friday, December 29, 2023

जिन्होंने बदला धर्म उनको ST से बाहर करो : राँची में हुआ जुटान...

30 December 2023

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🚩डी लिस्टिंग यानी धर्मांतरण कर ईसाई अथवा मुस्लिम बनने वाले जनजातीय समाज के लोगों को अनुसूचित जनजाति (ST) के दायरे से बाहर करने को लेकर देशव्यापी आंदोलन चल रहा है। फरवरी 2024 में जनजातीय समाज के लोग अपनी माँगों के समर्थन में दिल्ली में जुट सकते हैं। 25 dec ईसाइयों के त्योहार क्रिसमस से ठीक पहले 24 दिसंबर 2023 को झारखंड की राजधानी राँची में इकट्ठे हो कर वो अपना इरादा जता चुके हैं।


🚩अनुसूचित जनजाति के लोगों का यह अभियान जनजाति सुरक्षा मंच (JSM) के बैनर तले चल रहा है। टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार इस अभियान को हिंदुवादी संगठनों का भी समर्थन हासिल है। इसी रिपोर्ट में देशभर के जनजातीय समाज के लोगों का दिल्ली में फरवरी में जुटान होने की बात कही गई है। हालाँकि इसकी तारीख अभी तय नहीं हुई है।


🚩जनजातीय समाज के लोगों का कहना है कि धर्मांतरण करने वाले लोग ST का लाभ उठाकर उनके अधिकार को छीन रहे हैं। उनके अनुसार ईसाई बनने वाले ST बीते 75 साल से अनुसूचित जनजाति को मिलने वाले आरक्षण लाभ का 80 फीसदी फायदा उठा रहे हैं। जेएसएम का कहना है कि ईसाइयों अथवा मुस्लिमों का एसटी आरक्षण पर अधिकार नहीं हैं। लेकिन वे जनजातीय समाज के लोगों को मिले संवैधानिक अधिकारों का अतिक्रमण कर रहे हैं।


🚩इन्हीं माँगों के समर्थन में जनजातीय समाज के करीब 5000 लोगों का जुटान गत 24 दिसंबर 2023 को राँची के मोरहाबादी मैदान में हुआ। उलगुलान आदिवासी डीलिस्टिंग नामक इस महारैली का आयोजन JSM की ओर से किया गया था। झारखंड के अलग-अलग हिस्सों से आए अनुसूचित जनजाति समाज के लोगों ने पारंपरिक पोशाकों और तीर-धनुष जैसे पारंपरिक हथियारों के साथ इस रैली में शिरकत की थी।


🚩रैली की अध्यक्षता पूर्व केंद्रीय मंत्री और लोकसभा के पूर्व उपाध्यक्ष करिया मुंडा ने की। उनके अलावा बीजेपी के लोकसभा सांसद सुदर्शन भगत, राज्यसभा सदस्य समीर ओरांव, जेएसएम के राष्ट्रीय संयोजक गणेश राम भगत भी मौजूद थे। करिया मुंडा ने कहा, “झारखंड में ईसाई धर्म अपनाने वाले आदिवासियों का प्रतिशत लगभग 15-20% होगा, लेकिन अगर हम सरकारी नौकरियों और आईएएस सहित प्रथम श्रेणी के अधिकारियों को देखें, तो 80-90% वे हैं जो धर्मांतरित हैं।”


🚩जनजातीय समाज के लोगों की डी-लिस्टिंग की डिमांड नई नहीं है। मुंडा ने बताया कि राँची की तरह ही नागपुर, नासिक, मुंबई जैसे कई जगहों पर इन्हीं माँगों को लेकर जनजातीय समाज के लोगों का जुटान हो चुका है। वहीं जेएसएम के राष्ट्रीय सह संयोजक राजकिशोर हांसदा ने कहा , कि भारतीय संविधान के निर्माताओं ने देश के 700 से अधिक जनजातीय समूहों के अधिकारों की रक्षा के लिए बेहतरीन कोशिशें की थीं, लेकिन ये फायदा मुट्ठी भर उन लोगों को मिल रहा है जो धर्म बदल चुके हैं। जिन्हें चर्च का समर्थन हासिल है।


🚩जनता का कहना है,कि सरकार को भी इस विषय पर ध्यान देना चाहिए,क्योंकि महान विचारक वीर सावरकर धर्मान्तरण को राष्ट्रान्तरण मानते थे। आप कहते थे...

“यदि कोई व्यक्ति धर्मान्तरण करके ईसाई या मुसलमान बन जाता है तो फिर उसकी आस्था भारत में न रहकर उस देश के तीर्थ स्थलों में हो जाती है जहाँ के धर्म में वह आस्था रखता है, इसलिए धर्मान्तरण यानी राष्ट्रान्तरण है। 


🚩इस बात को ध्यान रखते हुए धर्मान्तरण करने वालों को सरकारी सुविधाएं बंद कर देनी चाहिए।


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