Tuesday, April 16, 2024

भगवान श्री राम का जन्म क्यों, कहा, कैसे हुआ था? उस समय माहोल कैसा था?

17 April 2024

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🚩श्री राम में अत्यंत विलक्षण प्रतिभा थी जिसके परिणामस्वरूप अल्प काल में ही वे समस्त विषयों में पारंगत हो गए। उन्हें सभी प्रकार के अस्त्र-शस्त्रों को चलाने तथा हाथी, घोड़े एवं सभी प्रकार के वाहनों की सवारी में उन्हें असाधारण निपुणता प्राप्त हो गई। वे निरंतर माता- पिता और गुरुजनों की सेवा में लगे रहते थे। उनका अनुसरण शेष तीन भाई भी करते थे। गुरुजनों के प्रति जितनी श्रद्धा भक्ति इन चारों भाइयों में थी, उतना ही उनमें परस्पर प्रेम और सौहार्द भी था। महाराज दशरथ का हृदय अपने चारों पुत्रों को देखकर गर्व और आनंद से भर उठता था।


🚩कैसे हुआ श्रीराम का जन्म :

रामचरितमानस के बालकांड के अनुसार पुत्र की कामना के चलते राजा दशरथ के कहने पर वशिष्ठजी ने श्रृंगी ऋषि को बुलवाया और उनसे शुभ पुत्रकामेष्टि यज्ञ कराया। इस यज्ञ के बाद कौसल्या आदि प्रिय रानियों को यज्ञ का प्रसाद खाने पर पुत्र की प्राप्त हुई।


🚩2. कब हुआ था श्रीराम का जन्म :

पुराणों के अनुसार प्रभु श्रीराम का जन्म त्रेतायुग और द्वापर युग के संधिकाल में हुआ था। कलियुग का प्रारंभ 3102 ईसा पूर्व से हुआ था। इसका मतलब 3102+2021 = 5123 वर्ष कलियुग के बीत चूके हैं। उपरोक्त मान से अनुमानित रूप से भगवान श्रीराम का जन्म द्वापर के 864000 + कलियुग के 5123 वर्ष = 869123 वर्ष अर्थात 8 लाख 69 हजार 123 वर्ष हो गए हैं प्रभु श्रीराम को हुए। परंतु यह धारणा इतिहासकारों के अनुसार सही नहीं है, जो वाल्मीकि रामायण में लिखा है वही सही माना जा सकता है।


🚩वाल्मीकि के अनुसार श्रीराम का जन्म चैत्र शुक्ल नवमी तिथि एवं पुनर्वसु नक्षत्र में जब पांच ग्रह अपने उच्च स्थान में थे, तब हुआ था। इस प्रकार सूर्य मेष में 10 डिग्री, मंगल मकर में 28 डिग्री, बृहस्पति कर्क में 5 डिग्री पर, शुक्र मीन में 27 डिग्री पर एवं शनि तुला राशि में 20 डिग्री पर था। (बाल कांड 18/श्लोक 8, 9)।... जन्म सर्ग 18वें श्लोक 18- 8-10 में महर्षि वाल्मीकिजी ने उल्लेख किया है कि श्री राम जी का जन्म चैत्र शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को अभिजीत मुहूर्त में हुआ था।


🚩मानस के बाल काण्ड के 190वें दोहे के बाद पहली चौपाई में तुलसीदासजी ने भी इसी तिथि और ग्रह-नक्षत्रों का जिक्र किया है।


🚩3. किस समय हुआ था श्रीराम का जन्म :

 दोपहर के 12.05 पर भगवान राम का जन्म हुआ था। उस समय भगवान का प्रिय अभिजित् मुहूर्त था। तब न बहुत सर्दी थी, न धूप थी।


🚩4. जन्म के समय के ग्रह-नक्षत्र की स्थिति : वाल्मीकि के अनुसार श्रीराम का जन्म चैत्र शुक्ल नवमी तिथि एवं पुनर्वसु नक्षत्र में जब पांच ग्रह अपने उच्च स्थान में थे तब हुआ था। इस प्रकार सूर्य मेष में 10 डिग्री, मंगल मकर में 28 डिग्री, ब्रहस्पति कर्क में 5 डिग्री पर, शुक्र मीन में 27 डिग्री पर एवं शनि तुला राशि में 20 डिग्री पर था। (बाल कांड 18/श्लोक 8,9)1


🚩5. कहां हुआ था श्रीराम का जन्म :

 श्री राम का जन्म भारतवर्ष में सरयू नदी के पास स्थित अयोध्या नगरी में एक महल में हुआ था। अयोध्या को सप्त पुरियों में प्रथम माना गया है।


🚩7. जन्म के समय खुशनुमा था माहौलः

वह पवित्र समय सब लोकों को शांति देने वाला था। जन्म होते ही जड़ और चेतन सब हर्ष से भर गए। शीतल, मंद और सुगंधित पवन बह रहा था। देवता हर्षित थे और संतों के मन में चाव था। वन फूले हुए थे, पर्वतों के समूह मणियों से जगमगा रहे थे और सारी नदियां अमृत की धारा बहा रही थीं।


🚩8. देवता उपस्थित हुए :

जन्म लेते ही ब्रह्माजी समेत सारे देवता विमान सजा-सजाकर पहुंचे। निर्मल आकाश देवताओं के समूहों से भर गया। गंधर्वों के दल गुणों का गान करने लगे। सभी देवाता राम लला को देखने पहुंचे।


🚩9. नगर में हुआ हर्ष व्याप्त :

 राजा दशरथ ने नांदीमुख श्राद्ध करके सब जातकर्म-संस्कार आदि किए और द्वीजों को सोना, गो, वस्त्र और मणियों का दान दिया। संपूर्ण नगर में हर्ष व्याप्त हो गया। ध्वजा, पताका और तोरणों से नगर छा गया। जिस प्रकार से वह सजाया गया। चारों और खुशियां ही खुशियां थीं। घर-घर मंगलमय बधावा बजने लगा। नगर के स्त्री-पुरुषों के झुंड के झुंड जहां-तहां आनंदमग्न हो रहे हैं।


🚩धार्मिक ग्रंथों के अनुसार त्रेतायुग में भगवान राम जी का उद्देश्य रावण जैसे रक्षकों के अत्याचारों का खात्मा तथा अधर्म का नाश करके धर्म की स्थापना करना था।


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Monday, April 15, 2024

सभी को भगवान श्री रामलला के जन्मोत्सव की बधाईयां...

16 April 2024

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🚩17 अप्रैल बुधवार को श्रीराम नवमी का पर्व है। 

 त्रेता युग में इसी दिन भगवान श्री रामजी का जन्म हुआ था।

इसलिए भारत सहित अन्य देशों में भी हिंदू धर्म को मानने वाले इस पर्व को बड़ी धूम-धाम से मनाते हैं।


🚩हिन्दु धर्म शास्त्रों के अनुसार त्रेतायुग में रावण के अत्याचारों को समाप्त करने तथा धर्म की पुन: स्थापना के लिये भगवान विष्णु ने मृत्यु लोक में श्री राम के रूप में अवतार लिया था। श्रीराम चन्द्र जी का जन्म चैत्र शुक्ल की नवमी के दिन पुनर्वसु नक्षत्र तथा कर्क लग्न में रानी कौशल्या की कोख से, राजा दशरथ के घर में हुआ था।

 

🚩 राम भगवान विष्णु के अवतार हैं और इन्हें श्रीराम और श्रीरामचन्द्र के नामों से भी जाना जाता है। रामायण में वर्णन के अनुसार अयोध्या के सूर्यवंशी चक्रवर्ती सम्राट दशरथ ने पुत्रेश्टी यज्ञ (पुत्र प्राप्ती यज्ञ ) कराया जिसके फलस्वरूप उनके घर पुत्रों का जन्म हुआ।

 

🚩मर्यादा-पुरुषोत्तम राम, अयोध्या के राजा दशरथ और रानी कौशल्या के सबसे बड़े पुत्र थे। राम की पत्नी का नाम सीता था इनके तीन भाई थे- लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न। हनुमान राम के सबसे बड़े भक्त माने जाते हैं और भगवान राम ने गुरु वशिष्ठ और गुरु विश्वामित्र की बहुत सेवा की थी ।

 

🚩राम ने लंका के राजा रावण (जिसने अधर्म का पथ अपना लिया था) का वध किया। श्री राम की प्रतिष्ठा मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में है। श्री राम ने मर्यादा के पालन के लिए राज्य, मित्र, माता-पिता, यहाँ तक कि पत्नी का भी साथ छोड़ा। इनका परिवार, आदर्श भारतीय परिवार का प्रतिनिधित्व करता है। राम रघुकुल में जन्मे थे, जिसकी परम्परा रघुकुल रीति सदा चलि आई प्राण जाई पर बचन न जाई की थी।

 

🚩 भगवान श्रीराम ने हर परिस्थितियों में अपने चित्त को सम रखा,भगवान राम सबसे मधुर-नम्रता से बात करते थे,वे नित्य सूर्योपासना करते,जप-ध्यान करते थे।

 

🚩बचपन में गुरुकुल में रहकर शिक्षा पायी,युवावस्था में संतो को सताने वाले राक्षको का वध किया और अंत समय में राम-राज्य करते हुए , प्रजा पालन करते हुए अपने लोक को चले गए।

 

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Sunday, April 14, 2024

डॉ. आंबेडकर ने धारा 370, हिंदू और मुस्लिम के लिए क्या बताया था ?

15 April 2024

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🚩भारतीय राजनीति अपनी महत्वकांक्षाओं को पूरा करने के लिए जैसे अपने क्रांतिकारियों को जाति के आधार पर विभाजित कर लेती है वैसे ही महान व्यक्तित्वों को भी हमने जाति भेद के आधार पर विभाजित कर लेती है। भीमराव रामजी आम्बेडकर । यह नाम सुनते ही पाठकों के मन में एक दलितों के अधिकारों के लिए संघर्ष करने वाले नेता उजागर होगी। मगर डॉ अम्बेडकर के जीवन के एक ऐसा पक्ष भी हैं जिसमें राष्ट्रवादी चिंतन के महान नेता के रूप में उनके दर्शन होते हैं। डॉ अम्बेडकर के नाम पर दलित राजनीति करने वाले लोग जिन्हें हम छदम अम्बेडकरवादी कह सकते हैं, विदेशी ताकतों के हाथों की कठपुतली बनकर डॉ अम्बेडकर के सिद्धांतों की हत्या करने में लगे हुए हैं। अम्बेडकरवाद के नाम पर याकूब मेनन की फांसी की हत्या का विरोध, यूनिवर्सिटी में बीफ फेस्टिवल बनाना, कश्मीर में भारतीय सेना को बलात्कारी बताने, वन्दे मातरम और भारत माता की जय का नारा लगाने का विरोध, दलित-मुस्लिम गठजोड़ बनाने की कवायद, अलगाववादी कश्मीरी नेताओं की प्रशंसा जैसे कार्यों में लिप्त होना डॉ अम्बेडकर की मान्यताओं का स्पष्ट विरोध हैं। अम्बेडकरवादियों के क्रियाकलापों से सामान्य जन कि डॉ अम्बेडकर के विषय में धारणा भी विकृत हो जाति हैं। इस लेख का उद्देश्य यही सिद्ध करना है की अम्बेडकरवादी डॉ अम्बेडकर के सिद्धांतों के हत्यारे हैं।


🚩1. मैं यह स्वीकार करता हूँ कि कुछ बातों को लेकर सवर्ण हिन्दुओं के साथ मेरा विवाद है, परन्तु मैं आपके समक्ष यह प्रतिज्ञा करता हूँ कि मैं अपनी मातृभूमि की रक्षा करने के लिए अपना जीवन बलिदान कर दूँगा। – (राष्ट्र पुरुष बाबा साहेब डॉ भीम राव अम्बेडकर, कृष्ण गोपाल एवं श्री प्रकाश, फरवरी 1940, पृष्ठ 50)


🚩2. शुद्र राजाओं और ब्राह्मणों में बराबर झगड़ा रहा जिसके कारण ब्राह्मणों पर बहुत अत्याचार हुआ। शूद्रों के अत्याचारों के कारण ब्राह्मण लोग उनसे घृणा करने लगे और उनका उपनयन करना बंद कर दिया। उपनयन न होने के कारण उनका पतन हुआ। (डॉ अम्बेडकर राइटिंग्स एंड स्पीचेज,खण्ड 13, पृष्ठ 3)


🚩3. आर्यों के मूलस्थान (भारत के बाहर) का सिद्धांत वैदिक सहित्य से मेल नहीं खाता। वेदों में गंगा, यमुना, सरस्वती के प्रति आत्मीय भाव है। कोई विदेशी इस तरह नदियों के प्रति आत्मस्नेह सम्बोधन नहीं कर सकता। (डॉ अम्बेडकर राइटिंग्स एंड स्पीचेज,खण्ड 7, पृष्ठ 70 )


🚩4. हिन्दू समाज ने अपने धर्म से बाहर जाने के मार्ग तो खुला रखा है, किन्तु बाहर से अंदर आने का मार्ग बंद किया हुआ है। यह स्थिति पानी की उस टंकी के समान है जिसमें पानी के अंदर आने का मार्ग बंद किया हुआ है। किन्तु निकास की टोटीं सदैव खुली है। अंत: हिन्दू समाज को आने वाले अनर्थ से बचाने के लिए इस व्यवस्था में परिवर्तन होना आवश्यक है। (बाबा साहेब बांची भाषणे- खण्ड 5, पृष्ठ 16)


🚩5. हिन्दू अपनी मानवतावादी भावनाओं के लिए प्रसिद्द हैं और प्राणी जीवन के प्रति तो उनकी आस्था अद्भुत है। कुछ लोग तो विषैले सांपों को भी नहीं मारते। हिन्दू दर्शन सर्वव्यापी आत्मा का सिद्धांत सिखाता है और गीता उपदेश देती है कि ब्राह्मण और चांडाल में भेद न करो। प्रश्न उठता है कि जिन हिन्दुओं में उदारता और मानवतावाद की इतनी अच्छी परम्परा है और जिनका अच्छा दर्शन है वे मनुष्यों के प्रति इतना अनुचित तथा निर्दयता पूर्ण व्यवहार क्यों करते हैं? (Source: Material editor B.G.Kunte Vol 1 page 14-15)


🚩6. डॉ अम्बेडकर का मत था कि प्रत्येक हिन्दू वैदिक रीति से यज्ञोपवीत धारण करने का अधिकार रखता है और इसके लिए अम्बेडकर जी ने बम्बई में “समाज समता संघ” की स्थापना की जिसका मुख्य कार्य अछूतों के नागरिक अधिकारों के लिए संघर्ष करना तथा उनको अपने अधिकारों के प्रति सचेत करना था। यह संघ बड़ा सक्रिय था। इसी समाज के तत्वाधान में 500 महारों को जनेउ धारण करवाया गया ताकि सामाजिक समता स्थापित की जा सके। यह सभा बम्बई में मार्च 1928 में संपन्न हुई जिसमें डॉ अम्बेडकर भी मौजूद थे। (डॉ बी आर अम्बेडकर- व्यक्तित्व एवं कृतित्व पृष्ठ 116-117)


🚩7. तरुणों की धर्म विरोधी प्रवृत्ति देखकर मुझे दुःख होता है। कुछ लोग कहते हैं कि धर्म अफीम की गोली है। परन्तु यह सही नहीं है। मेरे अंदर जो भी अच्छे गुण हैं अथवा मेरी शिक्षा के कारण समाज हित के काम जो मैंने किये हैं वे मुझ में विद्यमान धार्मिक भावना के कारण ही हैं। मुझे धर्म चाहिए लेकिन धर्म के नाम पर चलने वाला पाखण्ड नहीं चाहिए। (हमारे डॉ अम्बेडकर जी, पृष्ठ 9 श्री आश्चर्य लाल नरूला)


🚩8. मुस्लिम भ्रातृभाव केवल मुसलमानों के लिए-”इस्लाम एक बंद निकाय की तरह है, जो मुसलमानों और गैर-मुसलमानों के बीच जो भेद यह करता है, वह बिल्कुल मूर्त और स्पष्ट है। इस्लाम का भ्रातृभाव मानवता का भ्रातृत्व नहीं है, मुसलमानों का मुसलमानों से ही भ्रातृभाव मानवता का भ्रातृत्व नहीं है, मुसलमानों का मुसलमानों से ही भ्रातृत्व है। यह बंधुत्व है, परन्तु इसका लाभ अपने ही निकाय के लोगों तक सीमित है और जो इस निकाय से बाहर हैं, उनके लिए इसमें सिर्फ घृणा ओर शत्रुता ही है। इस्लाम का दूसरा अवगुण यह है कि यह सामाजिक स्वशासन की एक पद्धति है और स्थानीय स्वशासन से मेल नहीं खाता, क्योंकि मुसलमानों की निष्ठा, जिस देश में वे रहते हैं, उसके प्रति नहीं होती, बल्कि वह उस धार्मिक विश्वास पर निर्भर करती है, जिसका कि वे एक हिस्सा है। एक मुसलमान के लिए इसके विपरीत या उल्टे सोचना अत्यन्त दुष्कर है। जहाँ कहीं इस्लाम का शासन हैं, वहीं उसका अपना विश्वास है। दूसरे शब्दों में, इस्लाम एक सच्चे मुसलमानों को भारत को अपनी मातृभूमि और हिन्दुओं को अपना निकट सम्बन्धी मानने की इज़ाजत नहीं देता। सम्भवतः यही वजह थी कि मौलाना मुहम्मद अली जैसे एक महान भारतीय, परन्तु सच्चे मुसलमान ने, अपने, शरीर को हिन्दुस्तान की बजाए येरूसलम में दफनाया जाना अधिक पसंद किया।” (बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर सम्पूर्ण वाड्‌मय, खंड १५-‘पाकिस्तान और भारत के विभाजन, २०००)


🚩9. Conversion to Islam or Christianity will denationalize the Depressed classes.If they go over to Islam, the number of Muslims would be doubled; and the danger of Muslim domination also become real.If they go over to Christianity, the numerical strength of the Christians becomes five to six crores. It will help to strengthen the political hold of Britain on the country. (Dr Ambedkar Life and Mission. 2nd Edition pp.278-279)


🚩10. You wish India should protect your border, she should build roads on your area, she should supply you food grains, and Kashmir should get equal status as India.But Government of India should have only limited powers and Indian people should have no rights in Kashmir.To give consent to this proposal, would be a treacherous thing against the interests of India and I, as law minister of India will never do it. (Dr B R Ambedkar to Sheikh Abdullah on Article 370)


🚩इस प्रकार से डॉ अम्बेड़कर के वांग्मय में अनेक ऐसे उदहारण मिलते है जिससे यह सिद्ध होता है कि डॉ अम्बेडकर सच्चे राष्ट्रभक्त थे। अपने राजनीतिक हितों साधने के लिए अम्बेडकरवादियों ने डॉ अम्बेडकर के साथ विश्वासघात किया। आइए डॉ अम्बेडकर कि जयन्ती पर उनके राष्ट्रवादी चिंतन से विश्व को अवगत करवायें। लेखक : डॉ. विवेक आर्य


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Saturday, April 13, 2024

फ़्रांस में कुरान के नियमों का पालन नहीं करने वालों को निशाना बना रहे कट्टरपंथी

14 April 2024

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🚩रमज़ान के महीने में फ्रांस में हिंसा का माहौल रहा। हाल ही में हुए घातक हमलों से यूरोपीय देश में बढ़ते कट्टरवाद और उग्रवाद की चिंताजनक प्रवृत्ति का पता चलता है। इस्लामवादियों द्वारा गैर-मुस्लिमों को निशाना बनाया जा रहा है। यूरोपीय कंजर्वेटिव की एक रिपोर्ट में कहा गया है, “रमजान में तनाव बढ़ गया है, जो कुरान के सम्मान को लेकर एक-दूसरे से आगे निकलने की प्रतिस्पर्धा का कारण बन जाता है।”


🚩फ्रांस के बोर्डो में 10 अप्रैल को एक व्यक्ति द्वारा छुरा घोंपने से एक व्यक्ति की मौत हो गई, जबकि दो घायल हो गए। चाकू से हमला स्थानीय समयानुसार शाम 7:50 बजे वॉटर मिरर पूल में हुआ। ‘द टाइम्स’ के मुताबिक, आरोपित की पहचान एक अफगान प्रवासी के रूप में हुई है। वह रमजान के दौरान घटना के पीड़ितों को शराब पीते देखकर गुस्सा हो गया था।


🚩ईद-अल-फितर से एक दिन पहले 9 अप्रैल को अचेनहेम (बास-राइन) में चार नाबालिगों ने एक 13 वर्षीय लड़की पर हमला किया। अपने कॉलेज जाने के लिए बस में यात्रा करते समय उसके स्कूल के आरोपित उसके पास आए और उस पर रमज़ान में रोज़े का सम्मान नहीं करने का आरोप लगाकर पीटने लगे।


🚩इसी तरह 5 अप्रैल को दक्षिणी पेरिस के उपनगरीय इलाके में बालाक्लाव पहने युवाओं के एक समूह द्वारा पीटे जाने के एक दिन बाद शम्सुद्दीन नाम के एक 15 वर्षीय लड़के की मृत्यु हो गई। प्रारंभिक जाँच और आरोपितों के बयानों के अनुसार, चार आरोपितों में दो भाई थे। उन्हें अपनी बहन और परिवार की प्रतिष्ठा को लेकर डर सता रहा था।


🚩यूरोपीय चुनावों के लिए लेस रिपब्लिकंस सूची में नंबर दो पर सेलीन इमार्ट ने उल्लेख किया कि उनके क्षेत्र के एक मिडिल स्कूल में एक छात्र ने अपने शिक्षक को पानी पीने से रोका, क्योंकि रमज़ान चल रहा था। उन्होंने CNews को दिए इंटरव्यू में कहा, “डर से वह टीचर हार मान ली। आइए अपने उन शिक्षकों का समर्थन करें, जो अधिकार और ज्ञान प्रसारित करने से डरते हैं!”


🚩इसी तरह, 3 अप्रैल को मोंटपेलियर के ऑर्थर-रिंबाउड कॉलेज में गैर-इस्लामी व्यवहार के लिए समारा नाम की 14 वर्षीय लड़की पर हिंसक हमला किया गया था। रिपोर्ट के मुताबिक, इसके लिए तीन नाबालिगों को पुलिस ने हिरासत में लिया है। कथित तौर पर इस मामले ने पूरे देश में राजनीतिक हंगामा मचा दिया है।


🚩हमले के बाद लड़की कोमा में चली गई थी। हालाँकि, अब वह इससे बाहर है। आरोपित लड़की उसी स्कूल की छात्रा है। उन्होंने लड़की को मारने की बात कबूली है। पीड़िता की माँ ने कहा, “मैं वास्तव में समारा पर लगातार हमला करने के इन बच्चों के कारणों को नहीं समझ पा रही हूँ, लेकिन कुछ तो बात है। मुझे लगता है कि समारा शायद कुछ छात्रों की तुलना में थोड़ी अधिक मुक्त है।”


🚩पीड़िता की माँ ने कहा कि समारा कुछ मेकअप करती है, जबकि आरोपित हिजाब/बुर्का पहनती है। पीड़िता की माँ ने कहा, “दिन भर वह उसे काफिर कहती रही, जिसका अरबी में मतलब गैर-मुस्लिम होता है। मेरी बेटी यूरोपीय शैली में कपड़े पहनती है। दिन भर अपमान होता था, उसे कहबा कहा जाता था, जिसका अरबी में मतलब होता है c**t। यह शारीरिक और मनोवैज्ञानिक रूप से असहनीय था।”


🚩पीड़िता की माँ ने यह भी खुलासा किया कि जून 2023 में आरोपित को दो दिनों के लिए स्कूल से निलंबित कर दिया गया था, क्योंकि उसने सोशल मीडिया नेटवर्क पर उसकी बेटी की तस्वीरें पोस्ट की थी। इतना ही नहीं, उसने उसकी बेटी के साथ बलात्कार करने के लिए लोगों से आह्वान किया था।


🚩इसी साल मार्च में पेरिस स्थित एक स्कूल के प्रिंसिपल ने एक छात्रा को स्कूल परिसर में हिजाब/बुर्का हटाने के लिए कहा था। इसके बाद प्रिंसिपल को जान से मारने की धमकी मिली थी, जिससे डरकर उसने इस्तीफा दे दिया। गौरतलब है कि फ्रांस में साल 2004 से हिजाब या धार्मिक संबद्धता दिखाने वाले चिन्ह या पोशाक पहनने पर प्रतिबंध है।


🚩यूरोपियन कंजर्वेटिव के मुताबिक, फ्रांस की मीडिया ऐसे हमलों से इनकार करता रहा है। रिपोर्ट में आगे कहा गया है, “बोर्डो में हत्या के बाद प्रेस ने चाकूबाजी में आतंकवादी मकसद की अनुपस्थिति पर जोर दिया।” (साभार: Financial Times)


🚩भारत में भी फिलिस्तीन के समर्थन में नारे 


🚩भारत में गुरुवार ( 11 अप्रैल 2024 ) को रमजान के अंतिम दिन मुस्लिमों द्वारा ईद-उल-फितर मनाया गया। इस दौरान मुस्लिम समाज के लोगों ने मस्जिदों सहित विभिन्न जगहों पर ईद की नमाज पढ़ी। उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ और पंजाब के लुधियाना जैसी कुछ जगहों पर नमाज के बाद फिलिस्तीन के समर्थन में नारे लगाए गए और पोस्टर लहराए गए।


🚩भारत की जनता की कहना है कि अगर भारत देश को कट्टरपंथीयों से बचाना है, देश और देशवासियों को सुरक्षित रखना है, जनता को सुखी जीवन जीने देना है तो भारत को तुरंत हिंदु राष्ट्र घोषित करना चाहिए।


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Thursday, April 11, 2024

हिंदू धर्म में हवन और यज्ञ का महत्व

12 April 2024

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🚩हिंदू धर्म में हवन और यज्ञ को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। ये दोनों ही धार्मिक कर्मकांड हैं, जिन्हें कई उद्देश्यों के लिए किया जाता है, जैसे कि देवताओं को प्रसन्न करना, शुभकामनाएं प्राप्त करना, नकारात्मक ऊर्जा को दूर करना, और स्वास्थ्य और समृद्धि को बढ़ावा देना।


🚩हवन और यज्ञ में अंतर


🚩हवन और यज्ञ दोनों ही अग्नि में आहुति देने की प्रक्रिया हैं, लेकिन इनमें कुछ अंतर हैं। हवन यज्ञ का ही एक छोटा रूप है। हवन में आमतौर पर लकड़ी, घी, और अन्य पदार्थों की आहुति दी जाती है, जबकि यज्ञ में अधिक जटिल प्रक्रिया होती है। यज्ञ में देवताओं, आहुति, वेद मंत्र, ऋत्विक, और दक्षिणा सभी आवश्यक होते हैं।


🚩हवन और यज्ञ का महत्व


🚩हिंदू धर्म में हवन और यज्ञ का महत्व निम्नलिखित है:


🚩देवताओं को प्रसन्न करना: हवन और यज्ञ के माध्यम से लोग देवताओं को प्रसन्न कर सकते हैं। ऐसा माना जाता है कि देवता इन कर्मकांडों से खुश होकर लोगों को आशीर्वाद देते हैं।

शुभकामनाएं प्राप्त करना: हवन और यज्ञ के माध्यम से लोग शुभकामनाएं प्राप्त कर सकते हैं। ऐसा माना जाता है कि इन कर्मकांडों से लोगों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं।


🚩नकारात्मक ऊर्जा को दूर करना: हवन और यज्ञ के माध्यम से लोग नकारात्मक ऊर्जा को दूर कर सकते हैं। ऐसा माना जाता है कि इन कर्मकांडों से वातावरण शुद्ध होता है और लोगों को सकारात्मक ऊर्जा मिलती है।


🚩स्वास्थ्य और समृद्धि को बढ़ावा देना: हवन और यज्ञ के माध्यम से लोग स्वास्थ्य और समृद्धि को बढ़ावा दे सकते हैं। ऐसा माना जाता है कि इन कर्मकांडों से लोगों का शरीर स्वस्थ और मन समृद्ध होता है।

हवन और यज्ञ की विधि


🚩हवन और यज्ञ की विधि निम्नलिखित है:


🚩हवन कुंड का निर्माण: हवन और यज्ञ के लिए एक हवन कुंड का निर्माण किया जाता है। यह कुंड मिट्टी, पत्थर, या अन्य सामग्री से बनाया जा सकता है।


🚩अग्नि का प्रज्वलन: हवन कुंड में अग्नि प्रज्वलित की जाती है। अग्नि को ईंधन के रूप में लकड़ी, घी, या अन्य सामग्री का उपयोग करके प्रज्वलित किया जा सकता है।


🚩आहुति की तैयारी: हवन और यज्ञ में आहुति के रूप में विभिन्न प्रकार के पदार्थों का उपयोग किया जा सकता है, जैसे कि फल, फूल, शहद, घी, और अनाज।


🚩आहुति का हवन: ऋत्विक (यज्ञ का संचालक) मंत्रों का उच्चारण करते हुए आहुति को अग्नि में डालता है।

हवन और यज्ञ के लाभ


🚩हवन और यज्ञ के निम्नलिखित लाभ हैं:


🚩मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार: हवन और यज्ञ से मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार होता है। इन कर्मकांडों से लोगों को तनाव, चिंता, और अवसाद से राहत मिलती है।


🚩सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह: हवन और यज्ञ से सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है। इन कर्मकांडों से वातावरण शुद्ध होता है और लोगों को सकारात्मक ऊर्जा मिलती है।

भाग्य में वृद्धि: हवन और यज्ञ से भाग्य में वृद्धि होती है। इन कर्मकांडों से लोगों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं।


🚩हवन और यज्ञ हिंदू धर्म में महत्वपूर्ण धार्मिक कर्मकांड हैं। ये कर्मकांड लोगों को देवताओं को प्रसन्न करने, शुभकामनाएं प्राप्त करने, नकारात्मक ऊर्जा को दूर करने, और स्वास्थ्य और समृद्धि को बढ़ावा देने में मदद करते हैं।


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Wednesday, April 10, 2024

आस्था,विश्वास,मान-मन्नत का पर्व गणगौर

10 April 2024

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🚩यह पर्व राजा धनियार व रणुबाई (रथ) के गृहस्थ प्रेम और भगवान शिव-माता पार्वती के पूजन से जुड़ा है।


🚩जवारे बोने के साथ होती है पर्व की शुरुआत


🚩चैत्र कृष्ण एकादशी को माता की बाड़ी में जवारे बोने के साथ गणगौर पर्व की शुरुआत होती हैं।


🚩गणगौरी तीज से पर्व की छटा 11अप्रैल चैत्र शुक्ल सुदी तीज को माता की बाड़ी में जवारों का दर्शन-पूजन करने सुबह से ही श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती हैं। माता की मुख्य बाड़ी से ज्वारों को श्रृंगारित काष्ठ प्रतिमाओं में रखकर चल समारोह के साथ घर लाया जाता हैं। इसके बाद गणगौर माता के गीत गूंजने लगते हैं।


🚩रात में डांडिया नृत्य,मटकी नृत्य, भक्ति गीत, लोकगीत के साथ पर्व मनाया जाता हैं।


🚩माँ रणुबाई और धनियार राजा का भव्य नृत्य होता है, जिससे देखने के लिए श्रद्धालुओं का जनसैलाब उमड़ता हैं।


🚩गणगौर विशेष रूप से राजस्थान और मध्यप्रदेश के मालवा-निमाड़ के भागों में धूमधाम से मनाया जाता है। कुँवारी लड़कियां अपने भावी पति और विवाहित स्त्रियां अपने पतियों की सम्रद्धि के लिए ये पूजा अर्चना करती हैं।


🚩होलिका दहन के दुसरे दिन से प्रारम्भ होने वाला ये त्यौहार पूरे 16 दिनों तक है। महिलाएं मंगल गीत गाते हुए अपने पीहर और ससुराल के अच्छे भविष्य की कामना करती हैं। अपने पति के दीर्घायु होने की कामना करते हुए कई गीत गाती हैं जिसमे अपने परिजनों का नाम लिया जाता है।


🚩चैत्र माह की तीज को मनाया जाने वाला यह महापर्व एक महोत्सव रूप में संपूर्ण मध्यप्रदेश निमाड़-मालवांचल में अपनी अनूठी छटा बिखेरता है। इसके साथ ही चैत्र माह में राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में महाकाली, महागौरी एवं महासरस्वती अलग-अलग रूपों में नवरात्रि में पूजा की जाती हैं।


🚩पारिवारिक व सामाजिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है गणगौर का त्योहार। चैत्र गणगौर पर्व गणगौर दशमी से अथवा एकादशी से प्रारंभ होता है, जहां माता की बाड़ी यानी जवारे बोए जाने वाला स्थान पर नित्य आठ दिनों तक गीत गाए जाते हैं। यह गीत कन्याओं, महिलाओं, पुरुषों, बालकों के लिए शिक्षाप्रद होते हैं।


🚩सर्वप्रथम होलिका दहन के स्थान से होली की जली राख से बिना थापे बने कंडे (खड़े) एवं पांच कंकर की गौरा माता घर लाते हैं। यह तभी निश्चित कर लिया जाता है कि कितने रथ तैयार होंगे।


🚩उसी अनुरूप छोटी-छोटी टोकरियों (कुरकई) में चार देवियों के स्वरूप चार में गेहूं के जवारे एवं बच्चों के स्वरूप छोटे-छोटे दीपकों में सरावले बोए जाते हैं। एक बड़े टोकने में मूलई राजा बोए जाते हैं।


🚩चारों देवियों एवं सरावले व मूलई राजा के जवारों का नित्य अति शुद्धता पूर्व पूजन एवं सिंचन जिस कमरे में किया जाता है उसे माता की कोठरी कहते हैं। इसी माताजी की वाड़ी में प्रतिदिन शाम को कई स्त्रियां धार्मिक भावना से चारों माता के विष्णु राजा की पत्नी लक्ष्मी, ब्रह्माजी की सइतबाई, शंकरजी की गउरबाई एवं चंद्रमाजी की रोयेणबाई के गीत मंगल गान के रूप में गाए जाते हैं।


🚩तंबोल यानी गुड़, चने, जुवार, मक्के की धानी, मूंगफली) बांटी जाती है।


🚩फिर गणगौर का प्रसिद्ध गीत गाते हैं –


🚩पीयर को पेलो जड़ाव की टीकी,


मेण की पाटी पड़ाड़ वो चंदा…


कसी भरी लाऊं यमुना को पाणी…


हारी रणुबाई का अंगणा म ताड़ को झाड़।


ताड़ को झाड़ ओम म्हारी


देवि को र्यवास।


रनूबाई रनू बाई, खोलो किवाड़ी…।


पूजन थाल लई उभी दरवाजा


पूजण वाली काई काई मांग…


🚩अपने परिवार की सुख-समृद्धि हेतु भक्त इस तरह से विनती कर वरदान मांग लेते हैं। माता के विसर्जन से पूर्व जो लोग माता के रथ लाते हैं, अपने घर सुंदर रथ श्रृंगार कर वाड़ी पूजन के पश्चात घर ले जाते हैं।


🚩सायंकाल सभी रथों को खुशी प्रकट करने हेतु झालरिया गीत गाए जाते हैं। नौवें दिन माता की मान-मनौती वाले परिवार रथ बौड़ाकर या पंचायत द्वारा माता को पावणी (अतिथि) लाते हैं।


🚩कुल मिलाकर यह संदेश दिया जाता है कि बहन, बेटी को नवमें दिन ससुराल नहीं भेजना चाहिए। दसवें दिन पुनः सपरिवार भोजन प्रसादी आयोजन होता है।


🚩माता का बुचका यानी जिसमें माताजी की समस्त श्रृंगार सामग्री, प्रसाद, भोग एवं आवश्यक वस्तुएं श्रीफल आदि बांध कर पीली चुनरी ओढ़ाकर हंसी-खुशी विदा किया जाता है। यही परंपरा सतत चली आ रही है।


🚩आप सभी को गणगौर पर्व की बहुत बहुत शुभकामनाएं…


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Tuesday, April 9, 2024

सिंधी समाज मरख बादशाह के आतंक से झुके नहीं, ऐसे किया उसका अंत

10 April 2024

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🚩सनातनी हिन्दू आक्रमणकारियों से हमेंशा प्रताड़ित किया गया है पर समय समय पर उनको करारा जवाब भी दिया है, आज भी हिंदुओं के खिलाफ अनेक षडयंत्र रचे जा रहे हैं पर हिंदुओं को जैसे उत्तर देना चाहिए वे सिंधी भाइयों ने युक्ति बताई है, आपदा समय में ये भी युक्ति अपनानी चाहिए।


🚩सिंध समाज पर एक ऐसी विकट आपदा आ पड़ी


🚩आपको बता दें कि सिंध स्थित हिन्दुओं को जबरदस्ती मुसलमान बनाने हेतु वहाँ के नवाब मरखशाह ने फरमान जारी किया । उसका जवाब देने के लिए हिन्दुओं ने आठ दिन की मोहलत माँगी । अपने धर्म की रक्षा हेतु हिन्दुओं ने सृष्टिकर्त्ता भगवान की शरण ग्रहण की तथा ‘कार्यं साधयामि वा देहं पातयामि…’ अर्थात् ‘या तो अपना कार्य सिद्ध करेंगे अथवा मर जायेंगे’ के निश्चय के साथ हिन्दुओं का अपार जनसमूह सागर तट पर उमड़ पड़ा । सब तीन दिन तक भूख-प्यास सहते हुए प्रार्थना करते रहे।


🚩आये हुए सभी लोग किनारे पर एकटक देखते-देखते पुकारते- ‘हे सर्वेश्वर ! तुम अब रक्षा करो। मरख बादशाह तो धर्मांध है और उसका मूर्ख वजीर ‘आहा’, दोनों तुले हैं कि हिन्दू धर्म को नष्ट करना है। लेकिन प्रभु ! हिन्दू धर्म नष्ट हो जायेगा तो अवतार बंद हो जायेंगे। मानवता की महानता उजागर करने वाले रीति रिवाज सब चले जायेंगे। आप ही धर्म की रक्षा के लिए युग-युग में अवतरित होते हो। किसी भी रूप में अवतरित होकर प्रभु हमारी रक्षा करो। रक्षमाम् ! रक्षमाम् !! तब अथाह सागर में से प्रकाशपुंज प्रगट हुआ । उस प्रकाशपुंज में निराकार परमात्मा अपना साकार रूप प्रगट करते हुए बोले : ‘‘हिन्दू भक्तजनों ! तुम सभी अब अपने घर लौट जाओ । तुम्हारा संकट दूर हो इसके लिए मैं शीघ्र ही नसरपुर में अवतरित हो रहा हूँ । फिर मैं सभी को धर्म की सच्ची राह दिखाऊँगा ।’’


🚩सप्ताह भर के अंदर ही संवत् 1117 के चैत्र शुक्ल पक्ष की द्वितीया को नसरपुर में ठक्कर रत्नराय के यहाँ माता देवकी के गर्भ से भगवान झूलेलाल ने अवतार लिया और हिन्दू जनता को दुष्ट मरख के आतंक से मुक्त किया । उन्हीं भगवान झूलेलाल का अवतरण दिवस ‘चेटीचंड’ के रूप में मनाया जाता है ।


🚩प्रार्थना से सबकुछ संभव है। सिंधी भाइयों की सामुहिक पुकार पर हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए झूलेलाल जी का अवतरण, मद्रास के भीषण अकाल में श्री राजगोपालाचार्य द्वारा करायी गयी सामूहिक प्रार्थना के फलस्वरूप मूसलधार वर्षा होने लगी।


🚩किसी ने सही कहा है…. ” जब और सहारे छिन जाते, न किनारा मिलता है । तूफान में टूटी किश्ती का, भगवान सहारा होता है ।”


🚩झूलेलाल जी का वरुण अवतार यह खबर देता है कि कोई तुम्हारे को धनबल, सत्ताबल अथवा डंडे के बल से अपने धर्म से गिराना चाहता हो तो आप ‘धड़ दीजिये धर्म न छोड़िये।’ सिर देना लेकिन धर्म नहीं छोड़ना।


🚩चेटीचंड महोत्सव मानव – जाति को संदेश देता है कि क्रूर व्यक्तियों से दबो नहीं , डरो नहीं , अपने अंतरात्मा परमात्मा की सत्ता को जागृत करो ।


🚩सिंधी भाई जुल्मी आतताईयों के आगे झुके नहीं वरन धर्म का आश्रय लेकर उन्होंने अपनी अंतर चेतना का भगवान झूलेलालजी के रूप में अवतरण करा दिया । इसलिए यह उत्सव हमें पुरुषार्थी और साहसी बनकर अपने धर्म में अडीग रहने रहने की प्रेरणा देता हैं।


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