Wednesday, May 29, 2024
सेलीब्रिटियों के तलाक से समाज पर क्या असर पड़ता हैं ?
सेलीब्रिटियों के तलाक से समाज पर क्या असर पड़ता हैं ?
30 May 2024
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🚩भारतीय संस्कृति में विवाह का एक खास महत्व होता है जबकि तलाक का फैसला बहुत बड़ी बात मानी जाती है, लेकिन आजकल के समय में ऐसा लग रहा है जैसे ‘तलाक’ के कॉन्सेप्ट को ट्रेंड बनाने का प्रयास हो रहा है। एक दम ताजा बात है, मशहूर भारतीय क्रिकेटर हार्दिक पांड्या अपनी पत्नी नताशा से अलग हुए हैं। वहीं कुछ दिन पहले ही दूसरी शादी के बंधन में बँधी टीवी एक्ट्रेस और बिग बॉस फेम दलजीत कौर भी अपने पति से धोखा पाने के बाद अलग हुई हैं।
🚩दोनों ने अपने इस फैसले के पीछे मीडिया को अपने-अपने कारण दिए हैं और दोनों डायवोर्सों की चर्चा भी मीडिया में जोरों-शोरों से है। कुछ लोग इनके इस फैसले के बारे में जानने के बाद कह रहे हैं कि एक खराब रिश्ते में रहने से अच्छा तलाक लेकर अलग होना है तो कुछ लोग समझा रहे हैं कि शादी करने के बाद एक दूसरे से अलग होने का कड़ा फैसला लेने से पहले सोचना चाहिए।
🚩अब ये सारी बातें सोशल मीडिया की हैं। सेलिब्रिटियों की दुनिया में शादी करना, फिर तलाक लेना, फिर शादी करना और फिर से तलाक लेना बहुत सामान्य बात होती जा रही है, उनके लिए ये सब नया नहीं है… वहीं ये प्रक्रिया भारत के सामान्य लोगों के लिए सामान्य नहीं है। ऐसे में इन सेलिब्रिटियों के तलाक का जितना प्रचार सोशल मीडिया पर होता है वो समाज के लिए बेहद घातक हो सकता है।
🚩आप अगर पूछें कैसे तो इसका जवाब है सोशल मीडिया, उसपर बढ़ते भारतीय यूजर्स और सेलिब्रिटियों से इन्फ्लुएंस होती जनता…। आज के समय में जब सोशल मीडिया के आने के बाद लोग अपने रिश्ते बचाने के लिए संघर्षों में लगे हैं और हर इन्फ्लुएंसर से इन्फ्लुएंस होकर अपने कदम उठाना शुरू कर रहे हैं… उस समय में सेलिब्रिटियों द्वारा तलाक सामान्य बनाते जाना बेहद खतरनाक है।
🚩भारतीय संस्कृति महान है , इस महान संस्कृति में सौंदर्य और पैसे देखकर शादी नही की जाती है और पति पत्नी का संबध केवल स्वार्थ के लिए नही बने होते है बल्कि हर सुख दुःख में एक दूसरे के साथ निभाने के लिए बने होते है, आपस में कभी अनबन होने पर भी उसको भूलकर स्नेह बना रहता है, पाश्चात कल्चर के कारण भारत में रिश्ते में दरार पड़ रही है।
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Tuesday, May 28, 2024
वीर सावरकर ने ऐसा क्या किया है जिसने कारण इतनी बहस होती हैं ?
वीर सावरकर ने ऐसा क्या किया है जिसने कारण इतनी बहस होती हैं ?
29 May 2024
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🚩हमारे देश में एक विशेष जमात यह राग अलाप रही है,कि जिन्नाह अंग्रेजों से लड़े थे इसलिए महान थे।जबकि वीर सावरकर गद्दार थे,क्योंकि उन्होंने अंग्रेजों से माफ़ी मांगी थी।
वैसे इन लोगों को यह नहीं मालूम कि,जिन्नाह इस्लाम की मान्यताओं के विरुद्ध सारे कर्म करते थे,जैसे सूअर का मांस खाना, शराब पीना, सिगार पीना आदि। वो न तो पांच वक्त के नमाजी थे। न ही हाजी थे। न ही दाढ़ी और टोपी में यकीन रखते थे।
जबकि वीर सावरकर उनका तो सारा जीवन ही राष्ट्र और संस्कृति को समर्पित था।
🚩पहले वीर सावरकर को जान तो लीजिये:-
🚩1. वीर सावरकर पहले क्रांतिकारी देशभक्त थे, जिन्होंने 1901 में ब्रिटेन की रानी विक्टोरिया की मृत्यु पर नासिक में शोक सभा का विरोध किया और कहा कि वो हमारे शत्रु देश की रानी थी, हम शोक क्यों करें ? क्या किसी भारतीय महापुरुष के निधन पर ब्रिटेन में शोक सभा हुई है.?
🚩2. वीर सावरकर पहले देशभक्त थे,जिन्होंने एडवर्ड सप्तम के राज्याभिषेक समारोह का उत्सव मनाने वालों को त्र्यम्बकेश्वर में बड़े – बड़े पोस्टर लगाकर कहा था कि गुलामी का उत्सव मत मनाओ…
🚩3. विदेशी वस्त्रों की पहली होली पूना में, 7 अक्तूबर 1905 को वीर सावरकर ने जलाई थी…
🚩4. वीर सावरकर पहले ऐसे क्रांतिकारी थे,जिन्होंने विदेशी वस्त्रों का दहन किया,तब बाल गंगाधर तिलक ने अपने पत्र केसरी में,उनको शिवाजी के समान बताकर उनकी प्रशंसा की थी।
🚩5. वीर सावरकर द्वारा विदेशी वस्त्र दहन की इस प्रथम घटना के 16 वर्ष बाद गाँधीजी उनके मार्ग पर चले और 11 जुलाई 1921 को मुंबई के परेल में विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार किया…
🚩6. सावरकर पहले भारतीय थे,जिनको 1905 में विदेशी वस्त्र दहन के कारण पुणे के फर्म्युसन कॉलेज से निकाल दिया गया और दस रूपये जुर्माना लगाया …इसके विरोध में हड़ताल हुई…स्वयं तिलक जी ने ‘केसरी’ पत्र में सावरकर के पक्ष में सम्पादकीय लिखा…
🚩7. वीर सावरकर ऐसे पहले बैरिस्टर थे,जिन्होंने 1909 में ब्रिटेन में ग्रेज-इन परीक्षा पास करने के बाद ब्रिटेन के राजा के प्रति वफादार होने की शपथ नही ली… इस कारण उन्हें बैरिस्टर होने की उपाधि का पत्र कभी नही दिया गया…
🚩8.वीर सावरकर पहले ऐसे लेखक थे,जिन्होंने अंग्रेजों द्वारा ग़दर कहे जाने वाले संघर्ष को ‘1857 का स्वातंत्र्य समर’ नामक ग्रन्थ लिखकर सिद्ध कर दिया…
🚩9. सावरकर पहले ऐसे क्रांतिकारी लेखक थे,जिनके लिखे ‘1857 का स्वातंत्र्य समर’ पुस्तक पर ब्रिटिश संसद ने प्रकाशित होने से पहले प्रतिबन्ध लगाया था…
🚩10. ‘1857 का स्वातंत्र्य समर’ विदेशों में छापा गया और भारत में भगत सिंहने इसे छपवाया था जिसकी एक – एक प्रति तीन-तीन सौ रूपये में बिकी थी…भारतीय क्रांतिकारियों के लिए यह पवित्र गीता थी…पुलिस छापों में देशभक्तों के घरों में यही पुस्तक मिलती थी…
🚩11. वीर सावरकर पहले क्रान्तिकारी थे,जो समुद्री जहाज में बंदी बनाकर ब्रिटेन से भारत लाते समय 8 जुलाई 1910 को समुद्र में कूद पड़े थे और तैरकर फ्रांस पहुँच गए थे…
🚩12. सावरकर पहले क्रान्तिकारी थे, जिनका मुकद्दमा अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय हेग में चला, मगर ब्रिटेन और फ्रांस की मिलीभगत के कारण उनको न्याय नही मिला और बंदीबनाकर भारत लाया गया…
🚩13. वीर सावरकर विश्व के पहले क्रांतिकारी और भारत के पहले राष्ट्रभक्त थे, जिन्हें अंग्रेजी सरकार ने दो आजन्म कारावास की सजा सुनाई थी…
🚩14. सावरकर पहले ऐसे देशभक्त थे,जो दो जन्म कारावास की सजा सुनते ही हंसकर बोले- “चलो,ईसाई सत्ता ने हिन्दू धर्म के पुनर्जन्म सिद्धांत को मान लिया.”
🚩15. वीर सावरकर पहले राजनैतिक बंदी थे,जिन्होंने काला पानी की सजा के समय 10 साल से भी अधिक समय तकआजादी के लिए कोल्हू चलाकर 30 पौंड तेल प्रतिदिन निकाला…
🚩16. वीर सावरकर काला पानी में पहले ऐसे कैदी थे,जिन्होंने काल कोठरी की दीवारों पर कंकड़ और कोयले से कवितायें लिखी और 6000 पंक्तियाँ याद रखी…
🚩17. वीर सावरकर पहले देशभक्त लेखक थे,जिनकी लिखी हुई पुस्तकों पर आजादी के बाद कई वर्षों तक प्रतिबन्ध लगा रहा…
🚩18. आधुनिक इतिहास के वीर सावरकर पहले विद्वान लेखक थे,जिन्होंने हिन्दू को परिभाषित करते हुए लिखा कि-‘आसिन्धु सिन्धुपर्यन्ता यस्य भारत भूमिका.पितृभू: पुण्यभूश्चैव स वै हिन्दुरितीस्मृतः.’ अर्थात समुद्र से हिमालय तक भारत भूमि जिसकी पितृभू है,जिसके पूर्वज यहीं पैदा हुए हैं व यह पुण्य भू है,जिसके तीर्थ भारत भूमि में ही हैं, वही हिन्दू है…
🚩19. वीर सावरकर प्रथम राष्ट्रभक्त थे,जिन्हें अंग्रेजी सत्ता ने 30 वर्षों तक जेलों में रखा तथा आजादी के बाद 1948 में नेहरु सरकार ने गाँधीजी की हत्या की आड़ में लाल किले में बंद रखा, पर न्यायालय द्वारा आरोप झूठे पाए जाने के बाद ससम्मान रिहा कर दिया…देशी-विदेशी दोनों सरकारों को उनके राष्ट्रवादी विचारों से डर लगता था…
🚩20. वीर सावरकर पहले क्रांतिकारी थे,जब उनका 26 फरवरी 1966 को उनका स्वर्गारोहण हुआ तब भारतीय संसद में कुछ सांसदों ने शोक प्रस्ताव रखा तो यह कहकर रोक दिया गया कि, वे संसद सदस्य नही थे,जबकि चर्चिल की मौत पर शोक मनाया गया था…
🚩21.वीर सावरकर पहले क्रांतिकारी राष्ट्रभक्त स्वातंत्र्य वीर थे, जिनके मरणोपरांत 26 फरवरी 2003 को,उसी संसद में मूर्ति लगी जिसमे कभी उनके निधनपर शोक प्रस्ताव भी रोका गया था….
🚩22. वीर सावरकर ऐसे पहले राष्ट्रवादी विचारक थे, जिनके चित्र को संसद भवन में लगाने से रोकने के लिए कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गाँधी ने राष्ट्रपति को पत्र लिखा, लेकिन राष्ट्रपति डॉ. अब्दुल कलाम ने सुझाव पत्र नकार दिया और वीर सावरकर के चित्र अनावरण राष्ट्रपति ने अपने कर-कमलों से किया…
🚩23. वीर सावरकर पहले ऐसे राष्ट्रभक्त हुए,जिनके शिलालेख को अंडमान द्वीप की सेल्युलर जेल के कीर्ति स्तम्भ से UPA सरकार के मंत्री मणिशंकर अय्यर ने हटवा दिया था! और उसकी जगह गांधी का शिलालेख लगवा दिया…वीर सावरकर ने 10 साल आजादी के लिए काला पानी में कोल्हू चलाया था।
🚩24. महान स्वतंत्रता सेनानी, क्रांतिकारी-देशभक्त, उच्च कोटि के साहित्य के रचनाकार,हिंदी-हिन्दू-हिन्दुस्थान के मंत्रदाता,हिंदुत्व के सूत्रधार वीर विनायक दामोदर सावरकर पहले ऐसे भव्य-दिव्य पुरुष, भारत माता के सच्चे सपूत थे, जिनसे अन्ग्रेजी सत्ता भयभीत थी,आजादी के बाद नेहरु की कांग्रेस सरकार भयभीत थी…
🚩25. वीर सावरकर माँ भारती के पहले सपूत थे,जिन्हें जीते जी और मरने के बाद भी आगे बढ़ने से रोका गया…पर आश्चर्य की बात यह है कि, इन सभी विरोधियों के घोर अँधेरे को चीरकर आज वीर सावरकर के राष्ट्रवादी विचारों का सूर्य उदय हो रहा है…। – लेखक-जयपाल सिंह
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Monday, May 27, 2024
भारत में वामपंथ हिंदू विरोधी क्यो है? जबकि दूसरे देशों में उलट है?
भारत में वामपंथ हिंदू विरोधी क्यो है? जबकि दूसरे देशों में उलट है?
28 May 2024
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🚩भारत में सनातन की चिंता करने वाले को आमतौर पर ‘दक्षिणपंथी’ कहा जाता है। लेकिन यहां की चिंताएं अमेरिका या अफ़्रीका के मूल निवासियों की चिंताओं से अलग नहीं हैं। पश्चिमी सांस्कृतिक, व्यापारिक, धार्मिक दबावों के खिलाफ़ सनतनियों का विरोध उसी तरह का है, जो अमेरिका में रेड-इंडियन या ऑस्ट्रेलिया में एबोरिजनल समुदायों का है। दोनों अपनी संस्कृति का बचाव करना चाहते हैं।
🚩अमेरिका में मूल निवासियों की अपने पवित्र श्रद्धास्थल वापस करने की मांग से वहां वामपंथियों की सहानुभूति है। लेकिन अयोध्या काशी, मथुरा, जैसे महान श्रद्धास्थलों की वापसी की मांग को वामपंथी ‘असहिष्णुता’ बताते देते हैं।
रेड-इंडियनों की संस्कृति में क्रिश्चियन मिशनरियों के दखल का अमेरिकी वामपंथी विरोध करते हैं। पर उन्हीं मिशनरियों के भारत में दूर देहातों, जंगलों में रहने वालों को धर्मांतरित करने के प्रयासों का यहां वामपंथी बचाव करते हैं। उलटे विरोध करने वालों को सज़ा दिलवाना चाहते हैं।
🚩उसी तरह अफ़्रीका, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया में इतिहास के पुनर्लेखन की मांग का पश्चिमी वामपंथी समर्थन करते हैं, ताकि विदेशी विजेताओं, मिशनरियों के लिखे इतिहास में सुधार कर देसी और सताए गए लोगों की दृष्टि से इतिहास लिखा जाए।लेकिन भारत में सदियों से सताए गए भारतीय की दृष्टि से इतिहास लिखने के प्रयास को ‘भगवाकरण’ कहकर वामपंथी मज़ाक उड़ाते हैं। वे यहां शरिया शासन की प्रशंसा करने के लिए इतिहास की पोथियों में थोक भाव से झूठ लिखने से नहीं हिचकते।
🚩जिन दलाई लामा और तिब्बतियों को दुनियाभर के वामपंथी प्रेम से आदर-समर्थन देते हैं, वही भारत में वामपंथियों की आलोचना के शिकार होते हैं। भारतीय वामपंथी दलाई लामा को ‘दक्षिणपंथी, प्रतिक्रियावादी’ कहते हैं, जबकि अमेरिकी वामपंथी उनका सम्मान करते हैं।
🚩इन उदाहरणों से भी भारत में वामपंथ और दक्षिणपंथ विशेषणों की उलटबांसी समझी जा सकती है। सनातनीयों इतिहास और वर्तमान और अरबी लुटेरों के इतिहास और वर्तमान को एक मानदंड से देखने पर सचाई दिखेगी। अभी तक तो पीड़ित और शोषक का मुंह देख-देख कर सारा शोर-शराबा होता है।
दरअसल, अमेरिका, अफ़्रीका, ऑस्ट्रेलिया में मूल धर्म-संस्कृति वाले लोग बहुत कम बचे। यूरोपीय औपनिवेशिक सेनाओं और उनके साथ गए क्रिश्चियन मिशनरियों ने उनका लगभग सफ़ाया कर डाला। उससे हमारा अंतर मात्र यह है कि यहां की मूल धर्म-संस्कृति सदियों से हमले, विनाश, जबरन धर्मांतरण, देश के टुकड़े काट-काट तोड़ने के बाद भी बचे भारत में बहुसंख्यक है। तो क्या सनातन धर्मियों को अपने संघर्ष, दृढ़ता और धर्म-रक्षा का दंड दिया जाना चाहिए? एक जैसी घटनाओं पर दोहरे मानदंड क्यों?
🚩अगर मिशनरियों का अमेरिका, अफ़्रीका में जबरन या छल-कपट से धर्मांतरण कराना ग़लत है, तो वही काम भारत में भी अनुचित है। पर भारतीय वामपंथी अज्ञान या स्वार्थवश यहां की देसी परंपरा को ओछी निगाह से देखते हैं। दुनिया में कहीं वामपंथी ऐसा नहीं करते।
🚩भारत में एक भी सनातन चिंता से वामपंथियों की सहानुभूति नहीं है। उलटे वे विस्तारवादी, देश-विरोधी, हिंदू-विरोधी घोषणाएं करने वाले नेताओं को ‘मायनोरिटी’ कहकर अपना समर्थन देते हैं।
इसलिए भारत में भारतीय धार्मिक हित की बात सताई हुई बहुसंख्यक जाति की आत्म-रक्षा की चिंता है। केवल संख्या के तर्क से इसे असहिष्णु, शोषक नहीं कहा जा सकता। हजार वर्ष का इतिहास यही है कि अल्पसंख्यक समूहों ने ही यहां के राम कृष्ण को मानने वालों का संहार, विध्वंस, शोषण किया।
🚩स्वतंत्र भारत में भी हम ही लांछित और बेआवाज़ रहे। धीरे-धीरे उन्हें संवैधानिक रूप से भी दूसरे दर्ज़े का बना दिया गया। उनकी जायज़ मांगों को भी ठुकराया जाता है। दुर्बल, नेतृत्वहीन होने के कारण उन्हें जो चाहे ठोकर मारता है, जबकि हिंसक, संगठित, साधनवानों की खुली दबंगई की भी अनदेखी होती है।
समाज के रूप में हमआज भी अरक्षित है। व्यापारी, उद्योगपति, लेखक, पत्रकार, यहां तक कि नेता भी व्यक्तिगत रूप से भले ही हम समर्थ, सक्षम दिखते हैं, लेकिन समाज के रूप में उनकी कोई हस्ती, कोई आवाज़ नहीं है। हमारे समाज पर चोट पड़ने पर कोई कुछ नहीं कर पाता। बोलता तक नहीं! जबकि मुस्लिमों, क्रिश्चियनों की बढ़ा-चढ़ाकर या झूठी शिकायत पर भी प्रतिक्रियाओं की बाढ़ आ जाती है।
🚩राष्ट्रीय-अंतराष्ट्रीय हेडलाइनें बनती हैं। इसके उलट, हिंदुओं को सामूहिक रूप से मार भगाने, जिंदा जला देने पर भी मृतकों और मारने वालों की धार्मिक पहचान छिपाने की ज़िद रहती है। यह कई बार हुआ है।
शोषण या अन्याय की ठोस कसौटी रखने के बजाए हर घटना में धर्म, समुदाय देखकर हाय-तौबा या उपेक्षा करने का चलन भारत में ही है। यही रेडीमेड सामग्री विदेशी मीडिया भी उठाता है। इसी कारण, भारत में जो भावना ‘दक्षिणपंथी’ कहकर नकार दी जाती है, वही यूरोप, अमेरिका में ‘वंचितों की भावना’ के रूप में सहजता से ली जाती है।
हिंदू धर्म जगज़ाहिर रूप से उदार और बहुलतावादी है। इसमें विविध पंथ और परंपराओं की स्वीकृति है। बिना मुहम्मद को प्रोफेट माने कोई मुसलमान और बिना जीसस को माने क्रिश्चियन नहीं हो सकता। लेकिन किसी भी देवी-देवता या अवतार को स्वीकार किए बिना भी कोई हिंदू हो सकता है। हिंदू धर्म किसी ईश्वर या अवतार पर निर्भर नहीं है।
🚩इसीलिए हिंदू गुरु, संत आदि धार्मिक विविधता के सहज समर्थक रहे हैं। वे किसी एक मत-विश्वास का एकाधिकारी दावा नहीं मानते। क्रिश्चियनिटी और इस्लाम से हमारी चिंता का मुख्य कारण इनकी विस्तारवादी, राजनीतिक योजनाएं हैं। ये हिंदू धर्म-समाज को ख़त्म करने का घोषित सिद्धांत रखते हैं। इसलिए इनका विरोध हमारी धर्म-रक्षा का अंग है। इसे ‘विविधता’ का विरोध कहना ग़लत है।
🚩नोट करें, कि धर्म संबंधी हिंदू विचार भी पश्चिम में वामपंथियों के निकट हैं। अमेरिकी दक्षिणपंथी पूरी दुनिया में धर्मांतरण कराने वाले चर्च-मिशनरी भेजते हैं। वे केवल क्रिश्चियनिटी को सच्चा धर्म मानते हैं। जब हिंदुओं ने कहा कि कैथोलिक चर्च के पोप बयान दें कि सत्य किसी धर्म-मत विशेष का ही एकाधिकार नहीं और बिना क्रिश्चियन बने भी मनुष्य को मुक्ति मिल सकती है, तब हिंदुओं को ही सांप्रदायिक कहा गया। पोप को लिबरल बताया गया, जो हिंदू-बौद्ध परंपराओं को अंधकार-ग्रस्त बताते हैं।
🚩हिंदुओं द्वारा ज्ञान-विज्ञान की खोज के विरोध का इतिहास में कभी कोई उदाहरण नहीं मिलता। किसी मत-विश्वास के लिए विज्ञान का विरोध हिंदू मानसिकता से परे है। हिंदू लोग अध्यात्म और विज्ञान की एकता को ही मानवीय प्रगति का मार्ग मानते हैं।
🚩दरअसल, भारत में वाम और दक्षिण की सारी बातें एकतरफ़ा और पुराने कम्युनिस्ट प्रभाव से ग्रस्त हैं। मार्क्सवादियों ने स्वयं को वामपंथी कहते हुए मनमाने रूप से अपने विरोधियों को ‘दक्षिणपंथी’ कहकर इसे लगभग गाली के तौर पर प्रयोग करना शुरू किया। इसकी परवाह ही नहीं की गई कि कोई व्यक्ति या संगठन अपने को ‘दक्षिणपंथी’ कहा जाना स्वीकार करता है या उसकी बातें ‘राइटिस्ट’ हैं भी या नहीं? यहां मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी बरसों तक अपने प्रतिद्वंद्वी भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी को ‘दक्षिणपंथी कम्युनिस्ट’ कहती थी!
🚩चूंकि नेहरूजी ने शुरू से मार्क्सवादियों को प्रतिष्ठा दी, इसीलिए उनके राज में स्वतंत्र भारत का विमर्श विकृति का शिकार हो गया। मार्क्सवादी लोग मानो सरकारी बौद्धिक पुरोधा बन गए। उनके मुहावरों, लांछनों को मानकर चलना अकादमिक-राजनीतिक और मीडिया की भी आदत बन गई। तभी आज भी स्तालिन, माओ की तस्वीरें लगाने वाले वामपंथियों को ‘प्रगतिशील’ कहा जाता है, जबकि दोनों ने अपने-अपने देशों में करोड़ों निरीह, निर्दोष लोगों का संहार किया, और समाज को दशकों पीछे धकेल दिया।
🚩दुनियाभर में कम्युनिस्ट राज-सत्ताएं तानाशाही, असहिष्णुता और हिंसा का पर्याय रही हैं। पर भारतीय वामपंथी आज भी उसी व्यवस्था के लिए आहें भरते हैं, जिसने रूस, चीन, पूर्वी यूरोप के अनेक देशों को तबाह किया। साथ ही, हर कहीं आर्थिक जर्जरता भी लाई। उन्हीं नीतियों की नकल में यहां भी नेहरूवादी-वामपंथी नीतियों ने अर्थव्यवस्था, राज्यतंत्र और शिक्षा को बेहिसाब नुकसान पहुंचाया है। यह अब भी जारी है।
🚩हिंदू चिंताओं को ‘दक्षिणपंथी’ कहकर मज़ाक बनाना या निंदा करना उन पर ध्यान देने से रोकने की तकनीक है। भारत में राजनीति, कानून, शिक्षा, इतिहास और धर्म संबंधी विवादों को सरल ‘वाम’ या ‘दक्षिण’ श्रेणियों में बांटकर समझा नहीं जा सकता। ये श्रेणियां यूरोपीय इतिहास की विशेष परिस्थितियों की देन हैं, जिनकी भारतीय परिस्थितियों से कोई समानता नहीं है।
इसलिए यहां मार्क्सवादियों का वाम-दक्षिण काफी कुछ इस्लामियों के मोमिन-काफ़िर जैसी शब्दावली है। इसे भारतीय सभ्यता पर थोपने से कुछ समझ नहीं आ सकता। सच यह है कि भारत में हिंदू आंदोलन मुख्य रूप से अपनी आध्यात्मिक विरासत बचाने और पुनर्जीवित करने की भावना है।
🚩भारतीय समाज, धर्म-संस्कृति और सभ्यता को समझने और इसके लोगों से संवाद करने के लिए ऐसे ही शब्दों, मुहावरों, विशेषणों का प्रयोग होना चाहिए जो यहां की स्थिति पर लागू होते हैं। जिन्हें यहां के लोग जानते, समझते और अनुभव करते हैं। जब तक हम भारतीय जन-जीवन को किन्हीं राजनीतिक या पार्टी-हितों की दृष्टि से देखते रहेंगे, तब तक सामाजिक विमर्श तरह-तरह के विरोध, भ्रम और उलझनों में जकड़ा रहेगा।
- डॉ. शंकर शरण (९ जून २०२०)
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Sunday, May 26, 2024
मदरसों में कहीं फटा बम, कहीं भेड़-बकरियों की तरह ठूँसे बच्चे, कहीं यौन शोषण कर रहा मौलवी...
मदरसों में कहीं फटा बम, कहीं भेड़-बकरियों की तरह ठूँसे बच्चे, कहीं यौन शोषण कर रहा मौलवी...
27 May 2024
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🚩बिहार के छपरा के मोतिराजपुर गाँव में स्थित एक मदरसे में बम ब्लास्ट हो गया। छानबीन हुई तो पता चला कि एक छात्र मदरसे के पीछे मिले बम को गेंद समझकर मदरसे में उठा लाया और फिर खेलने लगा। मौलाना ने देखा तो उसे बाहर फेंकना चाहा लेकिन तब तक बम फट गया था। घटना में मौलाना और छात्र दोनों गंभीर रूप से घायल है।
🚩पुलिस मामले की छानबीन कर रही है। पता लगाया जा रहा है कि आखिर ये बम आए कहाँ से❓ शुरुआती जाँच में तो इसे पटाखे फैक्ट्री का बम बता दिया गया लेकिन इससे बात खत्म नहीं होती। समाचारों में मदरसों को लेकर जो खबरें आना शुरू हुई हैं वो सवाल खड़ा करती हैं कि आखिर दीनी तालीम के नाम पर मदरसों में चल क्या रहा है। कहीं से यौन उत्पीड़न की खबरें आती हैं, कहीं से शारीरिक शोषण, क्रूरता की तो कहीं से कट्टरपंथ के पाठ की।
🚩ज्यादा दिन नहीं बीते राजस्थान के अजमेर में 5 छात्रों ने इमाम को डंडे से पीट-पीटकर और रस्सी से गला घोंटकर मार डाला था। जब मामला खुला तो चौंकाने वाली बात सामने आई। छात्रों ने बताया कि इमाम के यौन उत्पीड़न से तंग आकर ये हत्या उन लोगों ने ही की। ये छात्र उस इमाम से इतने परेशान थे कि इन्होंने बकायदा साजिश रचकर उसको जान से खत्म किया। इसी तरह असम के सलमारा जिले में एक मदरसे के अंदर नाबालिग लड़के से यौन उत्पीड़न की घटना 9 मई को खुली थी। आरोपित मदरसे का मौलाना अखिरुल इस्लाम ही था। इस मौलाना ने बच्चे की मारपीट करके हालत ऐसी कर दी थी कि वो क्लास में जाने से डरता था।
🚩पाकिस्तान से लेकर बांग्लादेश तक से मदरसों पर आती हैं खबर...
ये 2-3 मामले वो हाल के मामले हैं जो पिछले एक हफ्ते में आए… महीनों का आँकड़ा देखें या फिर सालों की बात करें तो मदरसों में हो रहे कुकर्म की खबरों की गिनती आपको हमेशा बढ़ती हुई ही मिलेगी। मामले जिले, राज्य या किसी प्रदेश तक सीमित नहीं हैं। इस्लामी मुल्कों में भी मदरसों के यही हाल हैं।
🚩कहीं से वीडियो आती है कि छोटे बच्चों को निर्ममता से पीटा जा रहा है, कहीं पता चलता कि क्लास के बीच में छात्राओं के साथ छेड़खानी होती है। किसी को मार्क्स देने के नाम पर परेशान किया जाता है तो किसी के मुँह में जबरन कपड़े ठूँस कर उसके साथ रेप होता है। अफ्रीका से तो एक बार ऐसी खबर भी आई थी कि वहाँ मदरसों में पढ़ने वालों से गरीब बच्चों से मौलवी भीख मँगवाने लगे थे।
🚩इसी तरह पाकिस्तान की बात करें तो वहाँ भी मदरसों में बच्चों का यौन शोषण होता है, लेकिन उसके साथ वहाँ उन्हें ऐसी तालीम मिलती है कि वो आतंकी संगठन में शामिल होने से कोई गुरेज नहीं करते। पाकिस्तान का दारुल उलूम हक़्क़ानिया ऐसा ही एक मदरसा है जिससे पढ़कर निकले लोग तालिबान जैसे संगठनों में शामिल होकर कट्टरपंथ के रास्ते पर चल पड़ते हैं। बांग्लादेश में भी मदरसों की ऐसी कई कहानियाँ हैं।
🚩मीडिया में मौजूद कुछ खबरें तो यहाँ तक बताती हैं कि पाकिस्तान अपने आतंक का एजेंडा भारत में मदरसों के जरिए पूरा करने में लगा है…। हम इन खबरों को एक बार झुठलाने की अगर सोचें भी तो पिछले सालों में ऐसे तमाम उदाहरण सामने आ गए हैं जो बताते हैं आतंकी अपने टेरर मॉड्यूल को मदरसे के बहाने ही जमीन पर उतारना चाहते हैं।
🚩असम में टेरर मॉड्यूल का भंडाफोड़...
साल 2022 में असम में जो टेरर मॉड्यूल का भंडाफोड़ हुआ था वो याद करें तो पता चलता है कि कट्टरपंथियों की कितनी गहरी साजिश चल रही है। असम पुलिस ने उस समय कई आतंकियों को गिरफ्तार किया था और जिन मदरसों से इसके संबंध मिले थे उनपर हिमंता सरकार ने बुलडोजर चलवा दिया था। उन्होंने साफ-साफ ऐलान किया था कि अगर उन्हें पता चला कि किसी मदरसे में अवैध गतिविधियाँ चल रही हैं, देश विरोधी तालीम दी जा रही हैं तो तुरंत वो मदरसे को गिरवा देंगे। इसके बाद असम में 1281 के करीब मदरसे बंद हुए थे। सरकार ने फैसला लिया था कि प्रदेश में दीनी तालीम की जगह आधुनिक शिक्षा दी जाएगी जिससे बच्चे भविष्य में कुछ अच्छा कर सकें।
🚩यूपी में एक्शन
इसके अलावा उत्तर प्रदेश की योगी सरकार भी लगातार कट्टरपंथ से लड़ने में प्रयासरत है, लेकिन उनके लिए ये काम इतना आसान नहीं है। मदरसों को फलने-फूलने के लिए खाद-पानी यूपी की पहले की सरकारों ने ही दिया। जब योगी सरकार आई तो अवैध रूप से चल रहे मदरसों पर शिकंजा कसना शुरू हुआ। योगी सरकार ने जाँच करवाई तो पता चला कि हजारों की संख्या में न केवल अवैध मदरसे चलाए जा रहे हैं बल्कि सीमाओं पर अचानक इनकी गिनती बढ़ी है। सरकार के पास जब इनकी रिपोर्ट पहुँची तो वह इस पर सख्त हुए। करीब 16000 मदरसों पर एक्शन लिया गया। इसके बाद एक खबर यह भी आई कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी याचिका पर सुनवाई करते हुए राज्य मदरसा बोर्ड एक्ट को असंवैधानिक घोषित कर दिया है। हालाँकि बाद में जब ये मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुँचा तो वहाँ उच्च न्यायालय के फैसले पर रोक लगा दी गई…।
🚩दीनी तालीम के नाम पर बच्चे भेजे जा रहे मदरसों में...
बता दें कि जिस तरह की तस्वीर पिछले कुछ समय में मदरसों की उभरकर आई है उससे यही पता चलता है कि ये आने वाले समय में कितना भयावह रूप ले सकते हैं। केवल राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से ही नहीं सामाजिक दृष्टि से भी सवाल उठता है कि आखिर ऐसे संस्थानों का उद्देश्य क्या होता है।
🚩क्या मजहब के नाम पर बच्चों को दुनिया से पीछे कर देना मौलानाओं का काम है❓ या फिर उन्हें यौन उत्पीड़न का शिकार बनाकर उन्हें भीतर से तोड़ने का बीड़ा उन्होंने उठाया है❓ मदरसों में बम फटना या रेप होना या आतंकियों को पनाह मिलना कोई सामान्य घटना नहीं हैं…❗ लेकिन इन सबको लेकर अलग-अलग जगह के मदरसे बदनाम हुए हैं।
🚩इनकी खबरें पढ़ने के बावजूद मजहब की बातें करने वाले कुछ कट्टरपंथी विचारधारा वाले अपने बच्चों को आधुनिक शिक्षा देने की बजाय मदरसों में जाने को मजबूर करते हैं और जब वो जाने से मना करते हैं तो उनके साथ मारपीट होती है।
https://x.com/KanoongoPriyank/status/1789981750615314902?t=gbxNothG-fVeoBlZnuRRZQ&s=19
🚩कुछ दिन पहले एनसीपीआर अध्यक्ष ने भी मदरसों में जमा होती भीड़ की तस्वीर को दुनिया के आगे उजागर किया था। उन्होंने अपने ट्वीट में बताया था कि कैसे गरीब बच्चों को ला लाकर मदरसों में भरा जा रहा है। जहाँ न बुनियादी सुविधाएँ उन्हें मिलती हैं और न वो अच्छे से जीवन व्यतीत कर पाते हैं। - जयंती मिश्रा
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Saturday, May 25, 2024
मुस्लिम युवती हिंदू के साथ नही रह सकती , हिंदू युवती मुस्लिम के साथ रह सकती है : हाईकोर्ट
मुस्लिम युवती हिंदू के साथ नही रह सकती , हिंदू युवती मुस्लिम के साथ रह सकती है : हाईकोर्ट
26 May 2024
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🚩कर्नाटक हाई कोर्ट ने हाल ही में एक मामले की सुनवाई करते हुए एक हिन्दू लड़की को मुस्लिम व्यक्ति के साथ रहने की इजाजत दे दी। इससे कुछ दिन पहले इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक मुस्लिम महिला को हिन्दू व्यक्ति के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रहने की इजाजत देने से मना कर दिया था।
🚩कर्नाटक हाई कोर्ट ने दायर किए गए इस मामले में हिन्दू लड़की की माँ से उसे पेश करने की याचिका लगाई थी। हिन्दू लड़की के मुस्लिम पति के वकील ने लड़की को कोर्ट के सामने पेश कर दिया था। इसके बाद कोर्ट ने लड़की से उससे बातचीत की।
🚩लड़की ने बताया कि उसने 1 अप्रैल, 2024 को मुस्लिम लड़के के साथ निकाह कर लिया था और अब वह अपने मुस्लिम पति के साथ केरल में रहना चाहती है। उसने कहा कि वह अपने हिन्दू परिवार में वापस नहीं लौटना चाहती। इसके बाद हाई कोर्ट ने उसे मुस्लिम पति के साथ रहने की इजाजत दे दी।
🚩इससे पहले मार्च, 2024 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक मुस्लिम महिला को उसके हिन्दू लिव इन पार्टनर के साथ रहने की अनुमति देने से मना कर दिया था। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने यह निर्णय शरिया के आधार पर दिया था, जिसमें महिला का हिन्दू व्यक्ति के साथ रहना गलत गुनाह था।
🚩याचिका लगाने वाली महिला का निकाह एक मुस्लिम व्यक्ति के साथ हुआ था, जिसने दो साल बाद एक और महिला से निकाह कर लिया था। इसके बाद मुस्लिम महिला अपने माता-पिता के पास रहने चली आई थी। इसके बाद उसका एक हिन्दू व्यक्ति से सम्पर्क हो गया और वह उसके साथ लिव इन रिलेशनशिप में रहने लगी।
🚩महिला ने अपने पूर्व मुस्लिम पति के साथ जाने से मना कर दिया था, महिला का कहना था कि उसका मुस्लिम पति उसे मारता पीटता है। हिन्दू व्यक्ति के साथ रहने के कारण महिला को उसके घरवालों से धमकियाँ मिल रही थीं। उसने अपनी सुरक्षा को लेकर इलाहाबाद हाई कोर्ट के समक्ष एक याचिका लगाई थी।
🚩इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई करते हुए महिला को कोई भी राहत देने से इनकार कर दिया। हाई कोर्ट ने कहा कि महिला का पहले निकाह हो गया और उसने तलाक नहीं लिया ऐसे में वह हिन्दू पुरुष के साथ नहीं रह सकती। कोर्ट ने यह भी कहा कि महिला का हिन्दू पुरुष के साथ रहना शरिया के अनुसार हराम है।
🚩कोर्ट ने यह भी कहा कि महिला पर हिन्दू पुरुष के साथ रहने के लिए मुकदमा भी चलाया जा सकता है। हाई कोर्ट ने इसी के साथ मुस्लिम महिला की हिन्दू पुरुष के साथ रहने की याचिका को खारिज कर दिया था और अनुमति नहीं दी थी।
🚩पाकिस्तान की न्ययालय ऐसा फैसला दे तो मान सकते है लेकिन भारत की न्यायालय ऐसे फैसले सुनाए ये जनता को स्वीकार्य नहीं है। जनता इस तरीके फैसला का विरोध करती हैं।
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Friday, May 24, 2024
अर्बन नक्सल का मायाजाल खतरनाक, फस गए आप तो निकलना होगा मुश्किल
अर्बन नक्सल का मायाजाल खतरनाक, फस गए आप तो निकलना होगा मुश्किल
25 May 2024
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🚩आज मिडिया, न्यायलय, राजनीति और विश्विद्यालय में अर्बन नक्सली प्रभावी हैं। वे एक झूठ का मायाजाल बन रहे हैं और सामान्य आदमी उस में फंस रहा है। आज के युग में जानकारी ही बचाव है । सामान्य हिन्दू का अज्ञान ही इनकी ताकत है। सुचना के स्रोत को ध्यान से देखिए। मिडिया द्वारा एक जनमानस बनाने की कोशिश हो रही है जो बताता है कि लव जेहाद काल्पनिक है। दलित उत्पीडन और मोब लिंचिग वास्तविक है।
🚩वामपंथियों द्वारा इस तकनीक का बहुतायत में उपयोग किया गया है । भारत के परिप्रेक्ष्य में देखें तो हिन्दुओं के एक बड़े वर्ग (जिसे आज कल छद्म सेक्युलर कहा जाता है) को आज वामपंथी यह यकीन दिलाने में सफल हुए हैं कि जो भी समस्या है वह हिन्दुओं द्वारा प्रदत्त है, बल्कि हिंदुत्व ही सारी समस्याओं की जड़ है । जब भी किसी लिबरल सेक्युलर हिन्दू के मन में आता कि इस्लामी आतंकवाद में कोई समस्या है तो फिर बाबरी मस्जिद के नाम पर कभी दंगों के नाम पर उनके मन में यह संदेह उत्पन्न करने की कोशिश की जाती कि "नहीं हम में ही कुछ ना कुछ खोट है" ।
🚩कम्युनिष्ट शासन वाले देशों ने कभी भी इस्लामिक शरिया कानून को विचार लायक भी नहीं समझा। उनकी नजर में शरिया कानून ईश्वरीय कानून नहीं है। किसी भी मुस्लिम बहुल देश ने कम्युनिष्ट शासन पद्धति को नहीं माना। 90% मुस्लिम देशों में समाजवाद की बात करना भी अपराध है।
कम्युनिस्ट भारतीय राष्ट्रवाद के किसी भी शत्रु से सहकार्य करेंगे। भारतीयों को अब सोचना है। वक़्त ज्यादा नहीं है आज इस्लामिक आतंकवाद पर यदि कोई बोलना चाहता है तो सबसे पहले ये कम्युनिस्ट ही आतंकी को बचाने में सहायता करने आते हैं।
🚩कुछ साल पहले कोच्चि में माकपा की बैठक में अनोखा नजारा देखने को मिला। मौलवी ने नमाज की अजान दी तो माकपा की बैठक में मध्यांतर की घोषणा कर दी गई। मुसलिम कार्यकर्ता बाहर निकले। रात को उन्हें रोजा तोड़ने के लिए पार्टी की तरफ से नाश्ता परोसा गया। यह बैठक वहां के रिजेंट होटल होल में हो रही थी।
🚩कुछ साल हुए कन्नूर (केरल) से माकपा सांसद केपी अब्दुल्लाकुट्टी हज यात्रा पर गए। जब बात फैली तो सफाई दी कि अकादमिक वजहों से गए थे। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी का कोई भी नेता केपी अब्दुल्लाकुट्टी के खिलाफ बोलने का साहस नहीं जुटा पा रहा है।'मगर यह सफेद झूठ था क्योंकि उन्होंने उमरा भी कराया था। अकादमिक वजहों से जाने वाला उमरा जैसा धार्मिक कर्मकांड नहीं कराएगा। ( उमरा ----सउदी जाकर मजहबी कर्त्तव्य करने को उमरा कहते हैं जैसे ख़ास तरह के वस्त्र धारण करना, बाल कटवाना आदि }
🚩वहीं जब पश्चिम बंगाल के खेल व परिवहन मंत्री सुभाष चक्रवर्ती तारापीठ मंदिर गए तो पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री ज्योति बसु ने तो यहां तक कह दिया, 'सुभाष चक्रवर्ती पागल हैं।
🚩कम्युनिस्ट हिन्दुओं के मानबिन्दुओं का अपमान करने में ही सबसे आगे रहे हैं। इसलिए सीपीएम नेता कडकम्पल्ली सुरेंद्रन जब यह झूठ बोलते हैं कि 'किसी भी संगठन द्वारा मंदिरों का इस्तेमाल हथियारों और शारीरिक प्रशिक्षण के लिए करना श्रद्धालुओं के साथ अन्याय है।' तब हिन्दुओं के खिलाफ किसी साजिश की बू आती है। जिन्होंने कभी हिन्दुओं की चिंता नहीं की, वे हिन्दुओं की आड़ लेकर राष्ट्रवादी विचारधारा पर प्रहार करना चाह रहे हैं।
सरकार की नीयत मंदिरों पर कब्जा जमाने की है। केरल की विधानसभा में एक विधेयक पेश किया गया है। इस विधेयक के पारित होने के बाद केरल के मंदिरों में जो भी नियुक्तियाँ होंगी, वह सब लोक सेवा आयोग (पीएससी) के जरिए होंगी। माकपा सरकार इस व्यवस्था के जरिए मंदिरों की संपत्ति और उनके प्रशासनिक नियंत्रण को अपने हाथ में रखना चाहती है। मंदिरों की देखरेख और प्रबंधन के लिए पूर्व से गठित देवास्वोम बोर्ड की ताकत को कम करना का भी षड्यंत्र माकपा सरकार कर रही है। माकपा सरकार ने देवास्वोम बोर्ड को 'सफेद हाथी' की संज्ञा दी है और इस बोर्ड को समाप्त करना ही उचित समझती है।
🚩दरअसल, दो अलग-अलग कानूनों के जरिए माकपा सरकार ने हिंदू मंदिरों की संपत्ति पर कब्जा जमाने का षड्यंत्र रचा है। एक कानून के जरिए मंदिर के प्रबंधन को सरकार (माकपा) के नियंत्रण में लेना है और दूसरे कानून के जरिए मंदिरों से राष्ट्रवादि विचारधारा को दूर रखना है। ताकि जब कम्युनिस्ट मंदिरों की संपत्ति का दुरुपयोग करें, तब उन्हें टोकने-रोकने वाला कोई उपस्थित न हो।
🚩हमारे प्रगतिशील कामरेड वर्षों से भोपाल गैस कांड को लेकर अमेरिकी कंपनी तथा वहां के शासकों की निर्ममता के विरूध्द आग उगलते रहे हैं। लेकिन भोपाल गैस कांड के लिए दोषी यूनियन कार्बाइड की मातृ संस्था बहुराष्ट्रीय अमेरिकी कंपनी डाऊ केमिकल्स को हल्दिया-नंदीग्राम में केमिकल कारखाना लगाने के लिए बंगाल की कम्युनिस्ट सरकार न्यौता दिया था। यह कैसा मजाक और दोहरा मानदंड है। आप भोपाल गैस कांड के लिए दोषी प्रबंधकों तथा पीड़ितों को मुआवजा न देने वाले लोगों को दंडित करवाने के बजाय उनकी आरती उतारने के लिए बेताब हैं।
🚩सेक्युलरिज्म के नियम --
🚩- अफजल गुरू, कसाब और मदानी जैसे आतंकवादियों के प्रति उदासीनता बरती जाए तब तो ऐसे लोग भी सेक्युलरवादी होते है परन्तु एमसी शर्मा के बलिदान का समर्थन किया जाए तो वे लोग साम्प्रदायिक बन जाते है।
🚩एम.एफ. हुसैन सेक्युलर है परन्तु तस्लीमा नसरीन साम्प्रदायिक है, तभी तो उसे पश्चिम बंगाल के सेक्युलर राज्य से बाहर निकाल दिया गया।
🚩इस्लाम का अपमान करने वाला डेनिश कार्टूनिस्ट तो साम्प्रदायिक है परन्तु हिन्दुत्व का अपमान करने वाले करूणानिधि को सेक्युलर माना जाता है।
🚩मेजर संदीप उन्नीकृष्णन के बलिदान का उपहास उड़ाना सेक्युलरवादी होता है, दिल्ली पुलिस की मंशा पर सवाल खड़ा करना सेक्युलरवादी होता है, परन्तु एटीएस के स्टाइल पर सवाल खड़ा करना साम्प्रदायिकता के घेरे में आता है।
🚩- राष्ट्र-विरोधी 'सिमी' सेक्युलर है तो राष्ट्रवादी रा.स्व.सं साम्प्रदायिक है।
🚩- एमआईएम, पीडीपी, एयूडीएफ और आईयूएमएल जैसी विशुध्द मजहब-आधारित पार्टियां सेक्युलर है, परन्तु भाजपा साम्प्रदायिक है।
🚩बांग्लादेशी आप्रवासियों, विशेष रूप से मुस्लिमों का और एयूडीएफ का समर्थन करना सेक्युलर है, परन्तु कश्मीरी पंडितों का समर्थन करना साम्प्रदायिक है
🚩नंदीग्राम में 2000 एकड़ क्षेत्र में किसानों पर गोलियों की बरसात करना सेक्युलरिज्म है परन्तु अमरनाथ में 100 एकड़ की भूमि की मांग करना साम्प्रदायिक है।
🚩मजहबी धर्मांतरण सेक्युलर है तो उनका पुन: धर्मांतरण करना साम्प्रदायिक होता है।
🚩हिन्दू समुदाय के कल्याण की बात करना साम्प्रदायिक है तो उधर मुस्लिम तुष्टिकरण सेक्युलर है।कामरेडों का नमाज में भाग लेना, हज जाना और चर्च जाना तो सेक्युलरिज्म है परन्तु हिन्दूओं का मंदिरों में जाना या पूजा में भाग लेना साम्प्रदायिक है।
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🚩पाठय-पुस्तकों में छत्रपति शिवाजी और गुरू गोविन्द सिंह जैसी धार्मिक नेताओं के प्रति अपशब्दावली का इस्तेमाल 'डिटोक्सीफिकेशन' या सेक्युलरिज्म माना जाता है और भारत सभ्यता का महिमामंडन साम्प्रदायिक कहा जाता है।
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Thursday, May 23, 2024
ये कैसा न्याय है ? 200 की चोरी पर जेल, 2 इंजीनियरों को कुचलने पर रईसजादे को बेल
ये कैसा न्याय है ?
200 की चोरी पर जेल,
2 इंजीनियरों को कुचलने पर रईसजादे को बेल
24 May 2024
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🚩महाराष्ट्र के पुणे में पोर्शे लक्जरी कार की टक्कर से एक युवक और एक युवती की मौत हो गई। दोनों ने इस हादसे से कुछ मिनट पहले तक सोचा भी नहीं होगा। अनीस अवधिया और अश्विनी कोस्टा, दोनों ही मृतक सॉफ्टवेयर इंजीनियर थे। घटना कल्याणी नगर क्षेत्र की है। असली खबर ये है कि भद्दे तरीके से कार चलाने वाला एक नाबालिग था। इससे भी बड़ी बात ये है कि उसने उस समय शराब पी रखी थी। इससे भी बड़ी बात ये है कि उसके बिल्डर पिता ने उसके हाथ में 3 करोड़ रुपए की कार दे दी। इन सबसे बड़ी खबर ये है कि कुछ ही मिनटों बाद वो जमानत पर रिहा हो गया।
🚩एक बार में पार्टी के बाद उक्त नाबालिग लड़का लौट रहा था। उसके साथ उसके दोस्तों का एक समूह था। हालाँकि, मौके पर आक्रोशित लोगों ने उसकी धुनाई तो की लेकिन पुलिस और न्यायपालिका उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाई। घटना का वीडियो भी सामने आया। नाबालिग की उम्र मात्र 17 वर्ष है। दोनों सॉफ्टवेयर इंजीनियर बाइक पर सवार थे, तभी पोर्शे ने पीछे से टक्कर मारी। रात के ढाई बजे हुई इस घटना के दौरान कार इसके बाद एक अन्य गाड़ी से टकराई, फिर पार्किंग में खड़ी एक बाइक इसकी जद में आ गई।
पुणे में नाबालिग ने पोर्शे से कुचल कर युवक-युवती को मार डाला
मामला यरवदा पुलिस थाना क्षेत्र का है। अनीश अवधिया और अश्विनी कोस्टा की उम्र 24 वर्ष थी। मौके पर ही इन दोनों की मौत हो गई। दोनों ने मध्य प्रदेश के जबलपुर के रहने वाले थे और उन्होंने पुणे में कम्प्यूटर साइंस से इंजीनियरिंग की थी। इसके बाद उनकी नौकरी भी लग गई थी। ये दोनों एक रेस्टॉरेंट में पार्टी के बाद लौट रहे थे, उनके साथ अन्य बाइकों से उनके दोस्त थे। कार ने इन दोनों को कुचलने के बाद सड़क के किनारे बनी रेलिंग को भी क्षतिग्रस्त कर दिया।
🚩नाबालिग के खिलाफ लापरवाही और उतावलेपन के साथ ड्राइविंग का मामला दर्ज किया गया। साथ ही उस पर अन्य लोगों के जीवन को खतरे में डालने और नुकसान पहुँचाने का मामला भी दर्ज किया गया। नाबालिग को ‘जुवेलाइन जस्टिस बोर्ड (JJB)’ के समक्ष पेश किया गया। जहाँ कुछ मामूली शर्तों के साथ उसे तुरंत ही रिहा कर दिया गया। हालाँकि किशोर के पिता के खिलाफ उसे कार चलाने की अनुमति देने का मामला दर्ज किया गया है।
🚩उक्त बिल्डर ने पुलिस थाने में मौजूदगी दर्ज कराने तक की जहमत नहीं उठाई, बल्कि अपने भाइयों को भेजा। इस परिवार को कई परियोजनाओं से जुड़े होने के कारण जाना जाता है। रविवार (19 मई, 2024) को तड़के सुबह हुई इस घटना को लेकर ईस्ट एवेन्यू स्थित मुंधवा पब के खिलाफ भी नाबालिगों को शराब परोसने का मामला दर्ज किया गया है। नाबालिग के साथ उसके 2 दोस्त उस कार में मौजूद थे, जो शहर के एक नामी स्कूल में पढ़ते हैं।
🚩तुरंत मिला जमानत: न्यायपालिका पर उठ रहे हैं सवाल
अब आइए, बताते हैं कि नाबालिग को जमानत दिए जाने की शर्तें क्या थीं। ये ‘भारी-भड़कम’ शर्तें थीं – इस दुर्घटना पर एक लेख लिखो, 15 दिन के लिए ट्रैफिक पुलिस के साथ काम करो, शराब की लत छोड़ने के लिए डॉक्टर की मदद लो, और मनोचिकित्सक से काउंसिलिंग लेकर उसकी रिपोर्ट सबमिट करो। ये थी 2 युवाओं के हत्यारे एक शराबी ड्राइवर को मिली ‘कड़ी सज़ा’। इसके बाद सवाल खड़े हो गए हैं कि क्या न्यायपालिका को पूरी तरह से सुधार की आवश्यकता है?
🚩परिस्थिति को थोड़ा पलट कर देखिए। क्या मृतकों में अगर कोई रसूखदार परिवार का होता और ये दुर्घटना किसी ग़रीब ट्रक ड्राइवर से हुई होती तो क्या उससे भी लेख लिखवा कर उसे छोड़ दिया जाता? आजकल 17 वर्ष की उम्र में लड़के-लड़कियाँ पब में पार्टी कर रहे हैं, बाइक-कार चला रहे हैं, सामान्य वयस्क की तरह रह रहे हैं और यहाँ तक कि शारीरिक संबंध भी बना रहे हैं, ऐसी स्थिति में ऐसे अपराध को अंजाम देने वाले के साथ नर्सरी के बच्चे की तरह व्यवहार करना कहाँ तक उचित है?
🚩चूँकि नाबालिग का पिता रसूखदार है, इसीलिए उसने थाने में आने तक की जहमत नहीं उठाई भले ही उसके खिलाफ FIR ही क्यों न दर्ज हो गई हो। इसका कारण ये है कि न्यायपालिका को नचाने के हथियार इनलोगों के पास हैं। बड़े वकील हैं, पैसा है, प्रभाव है, संपर्क है और फैला हुआ कारोबार भी है। जो 2 लोग इस घटना में मारे गए, उनके परिवारों के बारे में सोचिए। पढ़ा-लिखा कर इंजीनियर बनाया, अब शादी-विवाह वगैरह किए जाते, उन परिवारों के सारे अरमान मिट्टी में मिल गए।
🚩करोड़ों रुपए की कार मिल जाने का ये अर्थ नहीं है कि आपको 2 लोगों को कुचल कर मार डालने और उसके बाद बिना किसी सज़ा के रिहा हो जाने का लाइसेंस मिल जाता है। 12वीं में पास होने के बाद दारू पार्टी कर के 2 लोगों को मार डालने वाले नाबालिग के पिता ने तुरंत प्रशांत पाटिल और आबिद मुलानी जैसे वकीलों को खड़ा कर दिया अपने बेटे के पक्ष में। हालाँकि, पुलिस इस पक्ष में है कि नाबालिग को इस मामले में बालिग़ की तरह ट्रीट किया जाए।
🚩रसूखदार और अमीर परिवारों के लिए अलग हैं नियम-कानून?
इसे एक जघन्य वारदात बताते हुए पुलिस ने नाबालिग की कस्टडी की भी माँग की है। जमानत के इस आदेश के खिलाफ अब पुलिस सेशन कोर्ट जाएगी। कार में नंबर प्लेट तक नहीं थी। ACP स्तर के अधिकारी को मामले की जाँच सौंपी गई है। रोड सेफ्टी के लिए काम करने वाले NGO के संचालक अनुराग कुलश्रेष्ठ ने कहा कि हम एक अनुशासनहीन समाज में रह रहे हैं जहाँ सड़क के कानूनों के लिए कोई जगह नहीं है। उन्होंने कहा कि पुणे में ट्रैफिक पुलिस की स्थिति ये है कि हेलमेट को लेकर चेकिंग अभियान शुरू किया गया तो कई राजनीतिक दल इसके विरोध में उतर गए।
🚩प्रशांत पाटिल बॉम्बे हाईकोर्ट के अधिवक्ता हैं। कॉर्पोरेट और बैंकिंग धोखाधड़ी से लेकर घरेलू व अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता तक के मामलों को देखते रहे हैं। बतौर क्रिमिनल लॉयर भी काम कर चुके हैं। सावित्रीबाई फुले यूनिवर्सिटी से संबद्ध पुणे स्थित पद्मश्री DY पाटिल कॉलेज ऑफ लॉ और मुंबई यूनिवर्सिटी से उन्होंने कानून की पढ़ाई की है। वहीं आबिद मुलानी भी बड़े वकीलों में से एक हैं। क्या कोई साधारण व्यक्ति नामी वकीलों को हायर करने की सोच भी सकता है?
🚩न्यायपालिका में सुधार की बातें इसीलिए भी की जा रही हैं, क्योंकि इसका दोहरा रवैया इस मामले में सामने आता रहता है। दिल्ली में एक लड़के को 200 रुपए की चोरी के आरोप में 1 साल जेल की सज़ा काटनी पड़ी। भारत की जेलों में 9681 ऐसे बच्चे रह रहे हैं, जिन्हें वयस्कों की जेलों में डाल दिया गया है। यहाँ तक कि लड़कियाँ भी इनमें शामिल हैं। सुप्रीम कोर्ट के जज इसके लिए राज्यों को दोषी ठहराते हैं। लेकिन, जब आरोपित रसूखदार और अमीर परिवार का हो तो भेदभाव क्यों?
🚩क्या कहते हैं अधिवक्ता
ये तो एक तरह से उन दोनों मृतकों के परिवारों के जख्म पर मरहम लगाने की बजाए नमक छिड़कने जैसा हुआ। हमने इसके कानूनी पहलुओं को समझने के लिए सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता शशांक शेखर झा से बातचीत की। उन्होंने कहा कि भारत में 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों की संलिप्तता वाले मामलों में 3 तरह के केस लगाए जाते हैं – Petty (छोटे), Serious (गंभीर) और Heinous (घृणित)। उन्होंने बताया कि गंभीर मामलों में 7 साल तक की सज़ा होती है, छोटे वाले में 2 साल तक की और 7 साल से ऊपर सज़ा वाली को ‘Heinous’ की श्रेणी में डाला जाता है।
🚩उन्होंने समझाते हुए कहा कि मायने ये रखता है कि FIR में जो धाराएँ लगाई गई हैं वो किस कैटेगरी में आती हैं इन तीनों में से। उन्होंने बताया कि 2015 में एक मूवमेंट के बाद कानून में संशोधन हुआ और JJD (जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड) को ये अधिकार दिया गया कि अगर नाबालिग की उम्र 16-18 है तो गंभीर मामलों में उस पर बालिग़ की तरह मुकदमा चलाया जाए। उन्होंने बताया कि ऐसे मामलों में 304 लगाया जाता है, जिसमें सज़ा 10 साल तक की है जबकि 304A में 2 साल तक की सज़ा मिल सकती है।
🚩बताते चलें कि पुणे वाले मामले में पुलिस ने 304A धारा लगाई है। उन्होंने बताया कि लापरवाही से खतरनाक ड्राइविंग के मामले में 304 लगाया जाता है, जब मामला गंभीर हो। उन्होंने उदाहरण देकर समझाया कि 304A तब लगाया जा सकता है जब किसी ने ट्रैफिक लाइट जंप किया और किसी गाड़ी की चपेट में आने के कारण उसकी मौत हो गई। उन्होंने बताया कि कैसे मीडिया में चल रहा है कि FIR दर्ज करने में कोताही बरती जा रही थी और गवाहों से ही सही व्यवहार नहीं किया गया।
🚩पालघर में साधुओं की मॉब लिंचिंग के मामले में उन्हें न्याय दिलाने में सक्रिय रहे शशांक शेखर झा ने पुणे वाले मामले को लेकर पुलिस की मंशा पर भी सवाल उठाए और पूछा कि अगर वो चाहती है कि नाबालिग को बालिग की तरह ट्रीट किया जाए तो उस पर कमजोर धाराएँ क्यों लगाई गईं? साथ ही उन्होंने पूछा कि जज ने तुरंत जमानत कैसे दे दी? उन्होंने कहा कि इस मामले को लेकर गलत सन्देश गया है। उन्होंने ध्यान दिलाया कि लोगों ने आरोपित को पकड़ लेने के बावजूद उसे पुलिस को सौंप दिया और न्याय व्यवस्था पर भरोसा जताया, कहीं उनका ये भरोसा भविष्य में खत्म हुआ तो ये लोकतंत्र के लिए ये ठीक नहीं होगा। - अनुपम कुमार सिंह
🚩भारत में कई निर्दोष आज भी जेल में है और अपराधी आज भी खुलेआम बाहर घूम रहे हैं इससे जनता का न्यापालिका से विश्वास कम होता जा रहा है, सभी के लिए कानून समान है तो न्याय भी समान ही मिलना चाहिए।
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