Friday, May 31, 2024
तंबाकू सेवन से क्या हानि होती हैं? छोड़ने से क्या फायदा होगा? छोड़ने का उपाय क्या हैं?
तंबाकू सेवन से क्या हानि होती हैं? छोड़ने से क्या फायदा होगा? छोड़ने का उपाय क्या हैं?
1 June 2024
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🚩जिस प्रकार दीपक के तेल को जलाकर उसका काजल एकत्रित किया जाता है उसी प्रकार अमेरिका के दो प्रोफेसर, ग्रेहम और वाइन्डर ने तम्बाकू जला कर उसके धुएँ की स्याही इक्टठी की। उस तम्बाकू की स्याही को अनेकों स्वस्थ चूहों के शरीर पर लगाया। परिणाम यह हुआ कि कितने चूहे तो तत्काल मर गये । अनेकों चूहों का मरण दो-चार मास बाद हुआ जबकि अन्य अनेकों चूहों को त्वचा का कैंसर हो गया और वे घुट-घुट कर मर गये। जिन चूहों के शरीर पर तम्बाकू की स्याही नहीं लगायी गयी थी और उन्हें उनके साथ रखा गया था उन्हें कोई हानि न हुई। इस प्रयोग से सिद्ध हो गया कि तम्बाकू का धुआँ शरीर के लिए कितना खतरनाक है।
🚩विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 2016 में कहा था कि ‘‘तंबाकू का सेवन दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्र (11 देशों)-(जिसमें भारत शामिल है) में करीब 24.6 करोड़ लोग धूम्रपान करते हैं और 29 करोड़ से थोड़े कम इसका धुआंरहित स्वरूप में सेवन करते हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘तंबाकू से हर साल क्षेत्र में 13 लाख लोगों की मौत हो जाती है, जो 150 मौत प्रति घंटे के बराबर है ।’’
WHO के मुताबिक तंबाकू सेवन और धूम्रपान से दुनिया में हर 6 सेकेंड में एक व्यक्ति की मौत होती है ।
बीसवीं सदी के अंत तक सिगरेट पीने के कारण 6 करोड़ 20 लाख लोग अपनी जान से हाथ धो बैठे थे ।
विकसित देशों में हर छठी मौत सिगरेट के कारण होती है। महिलाओं में सिगरेट पीने के बढ़ते चलन के कारण यह आँकड़ा और बढ़ा है ।
🚩तम्बाकू से होने वाले दुष्परिणाम-
🚩निकोटीन, टार और कार्बन-मोनोऑक्साइड जैसे हानिकारक कैमिकल से युक्त तंबाकू जितना आपके फेफड़ों और चेहरे को प्रभावित करता है उतना ही हानिकारक आपके नाजुक दिल के लिए भी होता है ।
🚩तंबाकू का सेवन करने वाले के मुँह से बदबू तो आती है, लेकिन उसके साथ ही उसको मुंह और गले में भयानक कैंसर की भी संभावना होती है । तंबाकू में मौजूद निकोटीन पूरे शरीर में रक्त की पूर्ति करने वाली महाधमनी को प्रभावित करता है। यह फेफड़ों को भी काफी हद तक प्रभावित करता है जिससे श्वास संबंधी समस्याएं आम हो जाती हैं।
🚩तंबाकू के नियमित सेवन से सिर दर्द और चक्कर आना जैसी आम शिकायत भी हो सकती है। इतना ही नहीं तंबाकू आपकी रक्त वाहिनिकाओं को प्रभावित कर हृदय संबंधी गंभीर बीमारियों को भी जन्म दे देता है। यह हमारे पाचन तंत्र को खराब करने के साथ-साथ हम पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव भी डालता है। तम्बाकू से अनेक भयंकर बीमारियां होती है ।
🚩धूम्रपान से बच्चों पर भयंकर असर…
जिन घरों में धूम्रपान आम होता है, उन घरों के बच्चे न चाहते हुए भी जन्म से ही ‘धूम्रपान’ की ज्यादतियों के शिकार हो जाते हैं। कोई वयस्क एक मिनट में लगभग 16 बार सांस लेता है, जबकि बच्चों में इसकी गति अधिक होती है।
पाँच साल का एक सामान्य बच्चा एक मिनट में 20 बार साँस लेता है। किन्हीं विशेष परिस्थितियों में यह गति बढ़कर 60 बार प्रति मिनट तक हो सकती है।
🚩जाहिर है कि जिन घरों में सिगरेट या बीड़ी का धुआँ रह-रहकर उठता है उन घरों के बच्चे तंबाकू के धुएँ में ही साँस लेते हुए बड़े होते हैं।
चूँकि वे वयस्कों से अधिक तेज गति से साँस लेते हैं इसलिए उनके फेफड़ों में भी वयस्कों के मुकाबले अधिक धुआँ जाता है। धुएँ के साथ जहरीले पदार्थ भी उसी मात्रा में दाखिल होते हैं।
🚩धूम्रपान का धुआँ बच्चों में निमोनिया या पल्मोनरी ब्रोंकाइटिस अर्थात साँस के साथ उठने वाली खाँसी की समस्या पैदा कर सकता है।बच्चों के मध्यकर्ण में अधिक पानी भर सकता है, उन्हें सुनने की अथवा वाचा की समस्या पैदा हो सकती है।
धूम्रपान के धुएँ में पलने वाले बच्चों के फेफड़े कम क्षमता से काम करते हैं। इसी वजह से उनकी रोग प्रतिरोधक प्रणाली भी कमजोर होती है। वे युवावस्था में दूसरों के मुकाबले कम तगड़े होते हैं।
🚩बच्चों का सामान्य विकास अवरुद्ध हो जाता है। उनका वजन और ऊँचाई दूसरों के मुकाबले कम होती है। जिन्होंने जीवन में कभी भी धूम्रपान नहीं किया हो उन्हें पेसिव स्मोकिंग के कारण फेफड़ों के कैंसर होने का 20-30 प्रतिशत जोखिम होता है।
🚩धूम्रपान छोड़ने के अनेक फायदे…
🚩1. धूम्रपान बंद करने के 12 मिनट के भीतर ही आपकी उच्च हृदय गति (हाई बी.पी) और रक्त चाप में कमी(लो बी.पी) दिखने लगेगी। 12 घंटे बाद अपने खून में मौजूद कार्बन मोनोऑक्साइड का स्तर घटकर सामान्य पर पहुंच जाएगा। वहीं दो से 12 हफ्तों में आपके शरीर के भीतर खून के प्रवाह और फेफड़ों की क्षमता बढ़ जाएगी।
🚩2. धूम्रपान छोड़े हुए एक साल बीतते-बीतते आप में दिल से जुड़ी बीमारियां होने का खतरा धूम्रपान करने वालों की तुलना में आधा तक रह जाएगा। वहीं पांच साल तक पहुंचने पर मस्तिष्काघात का खतरा नॉन स्मोकर के स्तर पर पहुंच जाएगा।
🚩3. दस साल तक अपने-आपको धूम्रपान से दूर रखने पर आप में फेफड़ों का कैंसर होने का खतरा धूम्रपान करने वाले की तुलना में आधे पर पहुंच जाएगा। वहीं मुंह, गले, मूत्राशय, गर्भाशय और अग्नाशय में कैंसर का खतरा भी कम हो जाएगा ।
🚩4. धूमपान छोड़ने पर आपकी जीवन प्रत्याशा में भी इजाफा होगा। अगर आप 30 वर्ष की उम्र से पहले ही धूम्रपान की लत से तौबा कर लेते हैं तो धूम्रपान करने वालों की तुलना में आपकी जीवन प्रत्याशा करीब 10 साल तक बढ़ जाएगी, लेकिन धूम्रपान छोड़ने में देर करने से आपकी जिंदगी भी छोटी होती चली जाएगी।
🚩5. धूम्रपान छोड़ने से आप में नपुंसकता की आशंका कम होती है। इसके अलावा महिलाओं में गर्भधारण में कठिनाई, गर्भपात, समय से पहले जन्म या जन्म के समय बच्चे का वजन बेहद कम होने जैसी समस्याएं भी कम होती है।
🚩6. आपके धूम्रपान से तौबा करने पर आपके बच्चों में भी सैकंड हैंड स्मोक से होने वाली श्वास संबंधी बीमारियों का खतरा कम हो जाता है।
🚩7.धूम्रपान छोड़ना आपकी जेब के लिए भी फायदेमंद हैं। मान लें अगर आप औसतन प्रतिदिन
🚩10 सिगरेट पीते हैं और एक सिगरेट की कीमत 10 रुपये है, तो आप साल भर में ही 36,500 रुपये बस धूम्रपान में ही फूंक डालते हैं। इन पैसों से आप कुछ तो बेहतर काम कर ही सकते हैं।
🚩व्यसन छोड़ने के उपाय-
🚩अजवाइन साफ कर इसे नींबू के रस और काले नमक में दो दिन तक भीगने के लिए छोड़ दें, फिर इसे सुखा लें और इसके बाद इसको मुंह में घंटो रखकर तंबाकू को खाने जैसी अनुभूति प्राप्त कर सकते हैं ।
🚩अगर आपको तंबाकू खाने की तलब काफी ज्यादा है तो आप बारीक सौंफ के साथ मिश्री के दाने मिलाकर धीरे धीरे चूस सकते हैं ।
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Thursday, May 30, 2024
हिन्दुओं को बदनाम करने के लिए बनाई फिल्म’: CPI(M) नेता
हिन्दुओं को बदनाम करने के लिए बनाई फिल्म’: CPI(M) नेता
31 May 2024
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🚩दक्षिण भारतीय राज्य तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में सिनेमा व राजनीति एक-दूसरे से मिले-जुले हुए हैं। तमिलनाडु के CM रहे करूणानिधि और जयललिता फिल्म इंडस्ट्री से थे। आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे NTR फिल्म इंडस्ट्री से थे। हालाँकि, केरल में ये देखने को नहीं मिलता है। मलयालम फिल्म इंडस्ट्री एक एक बड़ा बाजार है, जिसने ममूटी, मोहनलाल, जयराम और सुरेश गोपी जैसे सुपरस्टार दिए हैं। आज दिलकीर सलमान और फहाद फासिल सुर्खियाँ बटोर रहे हैं।
🚩अब पिछले 53 वर्षों से मलयालम फिल्म इंडस्ट्री में सक्रिय ममूटी पर जिहादी होने के आरोप लगे हैं, जिसके बाद वो विवादों में आ गए हैं। उन्हें उनके फैंस ‘मम्मूक्का’ भी कहते हैं। चेन्नई स्थित एक कारोबार मोहम्मद शरशाद बनियांदी, जो कि CPI(M) नेता भी है, उन्होंने ‘सुपर मेगास्टार’ ममूटी को लेकर कुछ ऐसे खुलासे किए हैं, जो धर्मनिरपेक्ष, उदार और लोकतांत्रिक व्यवस्था में यकीन रखने वालों को हैरान करने वाले हैं। हालाँकि, न सिर्फ CPI(M) व उनके लेफ्ट के साथी दल, बल्कि कॉन्ग्रेस भी ममूटी को जिहादी बताए जाने का विरोध कर रही है।
🚩मोहम्मद शरशाद बनियांदी ने कहा है कि उनकी पूर्व-पत्नी राठीना PT और स्क्रिप्ट लेखक हर्षद ने मिल कर एक हिन्दू विरोधी और सवर्ण विरोधी फिल्म बनाने की साजिश रची, जिसमें ममूटी मुख्य अभिनेता थे। रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि राठीना PT पर दबाव बनाया गया था कि हिन्दुओं को बदनाम करने के लिए वो इस फिल्म का निर्देशन करें। मामला 2022 में रिलीज हुई फिल्म ‘Puzhu’ से जुड़ा है, जिसे ममूटी की होम प्रोडक्शन कंपनी ‘Wayfarer Films’ द्वारा बनाया गया था।
🚩इस फिल्म का डिस्ट्रीब्यूशन SonyLIV ने किया था।इस फिल्म इस फिल्म में उन्होंने एक ‘उच्च जाति’ के IPS अधिकारी का किरदार निभाया है, जो अपनी बहन से इसीलिए नफरत करता है क्योंकि वो अपने दलित प्रेमी के साथ भाग गई थी। असल में राठीना PT ने एक हल्का-फुल्का मनोरंजन वाली फिल्म बनाने की सोची थी, लेकिन दावा है कि उन्हें ‘सुपर मेगास्टार’ के हिसाब से चलना पड़ा। फिल्म के लेखक हर्षद को भी शरशाद ने एक ‘इस्लामी कट्टरपंथी’ बताया है।
🚩बनियांदी ने कहा कि ममूटी को राठीना के साथ एक अन्य प्रोजेक्ट पर काम करना था, लेकिन जल्दी-जल्दी में ‘Puzhu’ बना दी गई। उन्होंने दावा किया कि इस फिल्म के लिए कुछ ‘बाहरी तत्वों’ ने उनकी पूर्व पत्नी के मन में कुछ भर दिया था। ममूटी 2000 से ही ‘कैराली टीवी’ के चेयरमैन हैं, जिसे CPI(M) का वरदहस्त हासिल है। मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन से उनके नज़दीकी रिश्ते हैं। 2007 में ‘डेमोक्रेटिक यूथ फेडरेशन ऑफ इंडिया (DYFI)’ के ऑल इंडिया कॉन्फ्रेंस में उन्होंने कहा था कि अगर ये संगठन गुजरात में सक्रिय रहता तो 2002 में दंगे नहीं होते।
🚩बता दें कि DYFI ‘कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सिस्ट)’ का ही युवा संगठन है। अब SIMI के पूर्व अध्यक्ष एवं CPI(M) के MLA KT जलील ने भाजपा पर हमला किया है। उन्होंने ममूटी का बचाव किया है। वो कहते रहे हैं कि भारत को इस्लाम के माध्यम से ही ‘मुक्त’ किया जा सकता है। वो केरल में मंत्री भी रहे हैं। दावा किया जा रहा है कि मोहम्मद शरशाद बनियांदी अपने कहे से पलट गए हैं, लेकिन हमें अभी तक ऐसा कुछ आधिकारिक नहीं मिला है।
🚩सोशल मीडिया के दौर में लिखने-बोलने-दिखने का ऑप्शन अब आम जनता के पास भी है। बॉलीवुड के सनातन-विरोधी रवैये पर लोग अब इनकी खाल उतारने लगे हैं। तो क्या ऐसे में मुंबइया फिल्म इंडस्ट्री हिंदुओं को लेकर अपनी घटिया मानसिकता से बाहर आ चुकी है? अभिव्यक्ति की जिस आजादी के नाम पर हिंदू धर्म को नीचा दिखाया जाता है, क्या उसी तरीके से इस्लाम और ईसाई मजहब को लेकर यह इंडस्ट्री कहानियाँ लिख सकती है, उसे पर्दे पर उतारती है? बिना ज्यादा सोचे एकमात्र उत्तर जो दिमाग में आएगा, वो है – नहीं।
🚩बॉलीवुड एक फट्टू इंडस्ट्री है। बॉलीवुड धंधा करने वाली कौम का नाम है। इन लोगों को पता है कि हिंदू को छोड़ कर ये अगर किसी और पर निशाना साधे तो ‘सर तन से जुदा’ निश्चित है, बिजनेस का बेड़ागर्क पक्का है। इसलिए हर बार ये मजाक उड़ाते हैं सनातनी परंपराओं का, हिंदुओं की आस्थाओं का। साल 2023 भी इनके लिए कोई अपवाद नहीं रहा।
🚩हिंदू विरोधी फिल्मों का बहिष्कार करना ही सर्वोत्तम उपाय हैं तभी इनकी अक्ल ठिकाने आयेगी।
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Wednesday, May 29, 2024
सेलीब्रिटियों के तलाक से समाज पर क्या असर पड़ता हैं ?
सेलीब्रिटियों के तलाक से समाज पर क्या असर पड़ता हैं ?
30 May 2024
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🚩भारतीय संस्कृति में विवाह का एक खास महत्व होता है जबकि तलाक का फैसला बहुत बड़ी बात मानी जाती है, लेकिन आजकल के समय में ऐसा लग रहा है जैसे ‘तलाक’ के कॉन्सेप्ट को ट्रेंड बनाने का प्रयास हो रहा है। एक दम ताजा बात है, मशहूर भारतीय क्रिकेटर हार्दिक पांड्या अपनी पत्नी नताशा से अलग हुए हैं। वहीं कुछ दिन पहले ही दूसरी शादी के बंधन में बँधी टीवी एक्ट्रेस और बिग बॉस फेम दलजीत कौर भी अपने पति से धोखा पाने के बाद अलग हुई हैं।
🚩दोनों ने अपने इस फैसले के पीछे मीडिया को अपने-अपने कारण दिए हैं और दोनों डायवोर्सों की चर्चा भी मीडिया में जोरों-शोरों से है। कुछ लोग इनके इस फैसले के बारे में जानने के बाद कह रहे हैं कि एक खराब रिश्ते में रहने से अच्छा तलाक लेकर अलग होना है तो कुछ लोग समझा रहे हैं कि शादी करने के बाद एक दूसरे से अलग होने का कड़ा फैसला लेने से पहले सोचना चाहिए।
🚩अब ये सारी बातें सोशल मीडिया की हैं। सेलिब्रिटियों की दुनिया में शादी करना, फिर तलाक लेना, फिर शादी करना और फिर से तलाक लेना बहुत सामान्य बात होती जा रही है, उनके लिए ये सब नया नहीं है… वहीं ये प्रक्रिया भारत के सामान्य लोगों के लिए सामान्य नहीं है। ऐसे में इन सेलिब्रिटियों के तलाक का जितना प्रचार सोशल मीडिया पर होता है वो समाज के लिए बेहद घातक हो सकता है।
🚩आप अगर पूछें कैसे तो इसका जवाब है सोशल मीडिया, उसपर बढ़ते भारतीय यूजर्स और सेलिब्रिटियों से इन्फ्लुएंस होती जनता…। आज के समय में जब सोशल मीडिया के आने के बाद लोग अपने रिश्ते बचाने के लिए संघर्षों में लगे हैं और हर इन्फ्लुएंसर से इन्फ्लुएंस होकर अपने कदम उठाना शुरू कर रहे हैं… उस समय में सेलिब्रिटियों द्वारा तलाक सामान्य बनाते जाना बेहद खतरनाक है।
🚩भारतीय संस्कृति महान है , इस महान संस्कृति में सौंदर्य और पैसे देखकर शादी नही की जाती है और पति पत्नी का संबध केवल स्वार्थ के लिए नही बने होते है बल्कि हर सुख दुःख में एक दूसरे के साथ निभाने के लिए बने होते है, आपस में कभी अनबन होने पर भी उसको भूलकर स्नेह बना रहता है, पाश्चात कल्चर के कारण भारत में रिश्ते में दरार पड़ रही है।
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Tuesday, May 28, 2024
वीर सावरकर ने ऐसा क्या किया है जिसने कारण इतनी बहस होती हैं ?
वीर सावरकर ने ऐसा क्या किया है जिसने कारण इतनी बहस होती हैं ?
29 May 2024
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🚩हमारे देश में एक विशेष जमात यह राग अलाप रही है,कि जिन्नाह अंग्रेजों से लड़े थे इसलिए महान थे।जबकि वीर सावरकर गद्दार थे,क्योंकि उन्होंने अंग्रेजों से माफ़ी मांगी थी।
वैसे इन लोगों को यह नहीं मालूम कि,जिन्नाह इस्लाम की मान्यताओं के विरुद्ध सारे कर्म करते थे,जैसे सूअर का मांस खाना, शराब पीना, सिगार पीना आदि। वो न तो पांच वक्त के नमाजी थे। न ही हाजी थे। न ही दाढ़ी और टोपी में यकीन रखते थे।
जबकि वीर सावरकर उनका तो सारा जीवन ही राष्ट्र और संस्कृति को समर्पित था।
🚩पहले वीर सावरकर को जान तो लीजिये:-
🚩1. वीर सावरकर पहले क्रांतिकारी देशभक्त थे, जिन्होंने 1901 में ब्रिटेन की रानी विक्टोरिया की मृत्यु पर नासिक में शोक सभा का विरोध किया और कहा कि वो हमारे शत्रु देश की रानी थी, हम शोक क्यों करें ? क्या किसी भारतीय महापुरुष के निधन पर ब्रिटेन में शोक सभा हुई है.?
🚩2. वीर सावरकर पहले देशभक्त थे,जिन्होंने एडवर्ड सप्तम के राज्याभिषेक समारोह का उत्सव मनाने वालों को त्र्यम्बकेश्वर में बड़े – बड़े पोस्टर लगाकर कहा था कि गुलामी का उत्सव मत मनाओ…
🚩3. विदेशी वस्त्रों की पहली होली पूना में, 7 अक्तूबर 1905 को वीर सावरकर ने जलाई थी…
🚩4. वीर सावरकर पहले ऐसे क्रांतिकारी थे,जिन्होंने विदेशी वस्त्रों का दहन किया,तब बाल गंगाधर तिलक ने अपने पत्र केसरी में,उनको शिवाजी के समान बताकर उनकी प्रशंसा की थी।
🚩5. वीर सावरकर द्वारा विदेशी वस्त्र दहन की इस प्रथम घटना के 16 वर्ष बाद गाँधीजी उनके मार्ग पर चले और 11 जुलाई 1921 को मुंबई के परेल में विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार किया…
🚩6. सावरकर पहले भारतीय थे,जिनको 1905 में विदेशी वस्त्र दहन के कारण पुणे के फर्म्युसन कॉलेज से निकाल दिया गया और दस रूपये जुर्माना लगाया …इसके विरोध में हड़ताल हुई…स्वयं तिलक जी ने ‘केसरी’ पत्र में सावरकर के पक्ष में सम्पादकीय लिखा…
🚩7. वीर सावरकर ऐसे पहले बैरिस्टर थे,जिन्होंने 1909 में ब्रिटेन में ग्रेज-इन परीक्षा पास करने के बाद ब्रिटेन के राजा के प्रति वफादार होने की शपथ नही ली… इस कारण उन्हें बैरिस्टर होने की उपाधि का पत्र कभी नही दिया गया…
🚩8.वीर सावरकर पहले ऐसे लेखक थे,जिन्होंने अंग्रेजों द्वारा ग़दर कहे जाने वाले संघर्ष को ‘1857 का स्वातंत्र्य समर’ नामक ग्रन्थ लिखकर सिद्ध कर दिया…
🚩9. सावरकर पहले ऐसे क्रांतिकारी लेखक थे,जिनके लिखे ‘1857 का स्वातंत्र्य समर’ पुस्तक पर ब्रिटिश संसद ने प्रकाशित होने से पहले प्रतिबन्ध लगाया था…
🚩10. ‘1857 का स्वातंत्र्य समर’ विदेशों में छापा गया और भारत में भगत सिंहने इसे छपवाया था जिसकी एक – एक प्रति तीन-तीन सौ रूपये में बिकी थी…भारतीय क्रांतिकारियों के लिए यह पवित्र गीता थी…पुलिस छापों में देशभक्तों के घरों में यही पुस्तक मिलती थी…
🚩11. वीर सावरकर पहले क्रान्तिकारी थे,जो समुद्री जहाज में बंदी बनाकर ब्रिटेन से भारत लाते समय 8 जुलाई 1910 को समुद्र में कूद पड़े थे और तैरकर फ्रांस पहुँच गए थे…
🚩12. सावरकर पहले क्रान्तिकारी थे, जिनका मुकद्दमा अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय हेग में चला, मगर ब्रिटेन और फ्रांस की मिलीभगत के कारण उनको न्याय नही मिला और बंदीबनाकर भारत लाया गया…
🚩13. वीर सावरकर विश्व के पहले क्रांतिकारी और भारत के पहले राष्ट्रभक्त थे, जिन्हें अंग्रेजी सरकार ने दो आजन्म कारावास की सजा सुनाई थी…
🚩14. सावरकर पहले ऐसे देशभक्त थे,जो दो जन्म कारावास की सजा सुनते ही हंसकर बोले- “चलो,ईसाई सत्ता ने हिन्दू धर्म के पुनर्जन्म सिद्धांत को मान लिया.”
🚩15. वीर सावरकर पहले राजनैतिक बंदी थे,जिन्होंने काला पानी की सजा के समय 10 साल से भी अधिक समय तकआजादी के लिए कोल्हू चलाकर 30 पौंड तेल प्रतिदिन निकाला…
🚩16. वीर सावरकर काला पानी में पहले ऐसे कैदी थे,जिन्होंने काल कोठरी की दीवारों पर कंकड़ और कोयले से कवितायें लिखी और 6000 पंक्तियाँ याद रखी…
🚩17. वीर सावरकर पहले देशभक्त लेखक थे,जिनकी लिखी हुई पुस्तकों पर आजादी के बाद कई वर्षों तक प्रतिबन्ध लगा रहा…
🚩18. आधुनिक इतिहास के वीर सावरकर पहले विद्वान लेखक थे,जिन्होंने हिन्दू को परिभाषित करते हुए लिखा कि-‘आसिन्धु सिन्धुपर्यन्ता यस्य भारत भूमिका.पितृभू: पुण्यभूश्चैव स वै हिन्दुरितीस्मृतः.’ अर्थात समुद्र से हिमालय तक भारत भूमि जिसकी पितृभू है,जिसके पूर्वज यहीं पैदा हुए हैं व यह पुण्य भू है,जिसके तीर्थ भारत भूमि में ही हैं, वही हिन्दू है…
🚩19. वीर सावरकर प्रथम राष्ट्रभक्त थे,जिन्हें अंग्रेजी सत्ता ने 30 वर्षों तक जेलों में रखा तथा आजादी के बाद 1948 में नेहरु सरकार ने गाँधीजी की हत्या की आड़ में लाल किले में बंद रखा, पर न्यायालय द्वारा आरोप झूठे पाए जाने के बाद ससम्मान रिहा कर दिया…देशी-विदेशी दोनों सरकारों को उनके राष्ट्रवादी विचारों से डर लगता था…
🚩20. वीर सावरकर पहले क्रांतिकारी थे,जब उनका 26 फरवरी 1966 को उनका स्वर्गारोहण हुआ तब भारतीय संसद में कुछ सांसदों ने शोक प्रस्ताव रखा तो यह कहकर रोक दिया गया कि, वे संसद सदस्य नही थे,जबकि चर्चिल की मौत पर शोक मनाया गया था…
🚩21.वीर सावरकर पहले क्रांतिकारी राष्ट्रभक्त स्वातंत्र्य वीर थे, जिनके मरणोपरांत 26 फरवरी 2003 को,उसी संसद में मूर्ति लगी जिसमे कभी उनके निधनपर शोक प्रस्ताव भी रोका गया था….
🚩22. वीर सावरकर ऐसे पहले राष्ट्रवादी विचारक थे, जिनके चित्र को संसद भवन में लगाने से रोकने के लिए कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गाँधी ने राष्ट्रपति को पत्र लिखा, लेकिन राष्ट्रपति डॉ. अब्दुल कलाम ने सुझाव पत्र नकार दिया और वीर सावरकर के चित्र अनावरण राष्ट्रपति ने अपने कर-कमलों से किया…
🚩23. वीर सावरकर पहले ऐसे राष्ट्रभक्त हुए,जिनके शिलालेख को अंडमान द्वीप की सेल्युलर जेल के कीर्ति स्तम्भ से UPA सरकार के मंत्री मणिशंकर अय्यर ने हटवा दिया था! और उसकी जगह गांधी का शिलालेख लगवा दिया…वीर सावरकर ने 10 साल आजादी के लिए काला पानी में कोल्हू चलाया था।
🚩24. महान स्वतंत्रता सेनानी, क्रांतिकारी-देशभक्त, उच्च कोटि के साहित्य के रचनाकार,हिंदी-हिन्दू-हिन्दुस्थान के मंत्रदाता,हिंदुत्व के सूत्रधार वीर विनायक दामोदर सावरकर पहले ऐसे भव्य-दिव्य पुरुष, भारत माता के सच्चे सपूत थे, जिनसे अन्ग्रेजी सत्ता भयभीत थी,आजादी के बाद नेहरु की कांग्रेस सरकार भयभीत थी…
🚩25. वीर सावरकर माँ भारती के पहले सपूत थे,जिन्हें जीते जी और मरने के बाद भी आगे बढ़ने से रोका गया…पर आश्चर्य की बात यह है कि, इन सभी विरोधियों के घोर अँधेरे को चीरकर आज वीर सावरकर के राष्ट्रवादी विचारों का सूर्य उदय हो रहा है…। – लेखक-जयपाल सिंह
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Monday, May 27, 2024
भारत में वामपंथ हिंदू विरोधी क्यो है? जबकि दूसरे देशों में उलट है?
भारत में वामपंथ हिंदू विरोधी क्यो है? जबकि दूसरे देशों में उलट है?
28 May 2024
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🚩भारत में सनातन की चिंता करने वाले को आमतौर पर ‘दक्षिणपंथी’ कहा जाता है। लेकिन यहां की चिंताएं अमेरिका या अफ़्रीका के मूल निवासियों की चिंताओं से अलग नहीं हैं। पश्चिमी सांस्कृतिक, व्यापारिक, धार्मिक दबावों के खिलाफ़ सनतनियों का विरोध उसी तरह का है, जो अमेरिका में रेड-इंडियन या ऑस्ट्रेलिया में एबोरिजनल समुदायों का है। दोनों अपनी संस्कृति का बचाव करना चाहते हैं।
🚩अमेरिका में मूल निवासियों की अपने पवित्र श्रद्धास्थल वापस करने की मांग से वहां वामपंथियों की सहानुभूति है। लेकिन अयोध्या काशी, मथुरा, जैसे महान श्रद्धास्थलों की वापसी की मांग को वामपंथी ‘असहिष्णुता’ बताते देते हैं।
रेड-इंडियनों की संस्कृति में क्रिश्चियन मिशनरियों के दखल का अमेरिकी वामपंथी विरोध करते हैं। पर उन्हीं मिशनरियों के भारत में दूर देहातों, जंगलों में रहने वालों को धर्मांतरित करने के प्रयासों का यहां वामपंथी बचाव करते हैं। उलटे विरोध करने वालों को सज़ा दिलवाना चाहते हैं।
🚩उसी तरह अफ़्रीका, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया में इतिहास के पुनर्लेखन की मांग का पश्चिमी वामपंथी समर्थन करते हैं, ताकि विदेशी विजेताओं, मिशनरियों के लिखे इतिहास में सुधार कर देसी और सताए गए लोगों की दृष्टि से इतिहास लिखा जाए।लेकिन भारत में सदियों से सताए गए भारतीय की दृष्टि से इतिहास लिखने के प्रयास को ‘भगवाकरण’ कहकर वामपंथी मज़ाक उड़ाते हैं। वे यहां शरिया शासन की प्रशंसा करने के लिए इतिहास की पोथियों में थोक भाव से झूठ लिखने से नहीं हिचकते।
🚩जिन दलाई लामा और तिब्बतियों को दुनियाभर के वामपंथी प्रेम से आदर-समर्थन देते हैं, वही भारत में वामपंथियों की आलोचना के शिकार होते हैं। भारतीय वामपंथी दलाई लामा को ‘दक्षिणपंथी, प्रतिक्रियावादी’ कहते हैं, जबकि अमेरिकी वामपंथी उनका सम्मान करते हैं।
🚩इन उदाहरणों से भी भारत में वामपंथ और दक्षिणपंथ विशेषणों की उलटबांसी समझी जा सकती है। सनातनीयों इतिहास और वर्तमान और अरबी लुटेरों के इतिहास और वर्तमान को एक मानदंड से देखने पर सचाई दिखेगी। अभी तक तो पीड़ित और शोषक का मुंह देख-देख कर सारा शोर-शराबा होता है।
दरअसल, अमेरिका, अफ़्रीका, ऑस्ट्रेलिया में मूल धर्म-संस्कृति वाले लोग बहुत कम बचे। यूरोपीय औपनिवेशिक सेनाओं और उनके साथ गए क्रिश्चियन मिशनरियों ने उनका लगभग सफ़ाया कर डाला। उससे हमारा अंतर मात्र यह है कि यहां की मूल धर्म-संस्कृति सदियों से हमले, विनाश, जबरन धर्मांतरण, देश के टुकड़े काट-काट तोड़ने के बाद भी बचे भारत में बहुसंख्यक है। तो क्या सनातन धर्मियों को अपने संघर्ष, दृढ़ता और धर्म-रक्षा का दंड दिया जाना चाहिए? एक जैसी घटनाओं पर दोहरे मानदंड क्यों?
🚩अगर मिशनरियों का अमेरिका, अफ़्रीका में जबरन या छल-कपट से धर्मांतरण कराना ग़लत है, तो वही काम भारत में भी अनुचित है। पर भारतीय वामपंथी अज्ञान या स्वार्थवश यहां की देसी परंपरा को ओछी निगाह से देखते हैं। दुनिया में कहीं वामपंथी ऐसा नहीं करते।
🚩भारत में एक भी सनातन चिंता से वामपंथियों की सहानुभूति नहीं है। उलटे वे विस्तारवादी, देश-विरोधी, हिंदू-विरोधी घोषणाएं करने वाले नेताओं को ‘मायनोरिटी’ कहकर अपना समर्थन देते हैं।
इसलिए भारत में भारतीय धार्मिक हित की बात सताई हुई बहुसंख्यक जाति की आत्म-रक्षा की चिंता है। केवल संख्या के तर्क से इसे असहिष्णु, शोषक नहीं कहा जा सकता। हजार वर्ष का इतिहास यही है कि अल्पसंख्यक समूहों ने ही यहां के राम कृष्ण को मानने वालों का संहार, विध्वंस, शोषण किया।
🚩स्वतंत्र भारत में भी हम ही लांछित और बेआवाज़ रहे। धीरे-धीरे उन्हें संवैधानिक रूप से भी दूसरे दर्ज़े का बना दिया गया। उनकी जायज़ मांगों को भी ठुकराया जाता है। दुर्बल, नेतृत्वहीन होने के कारण उन्हें जो चाहे ठोकर मारता है, जबकि हिंसक, संगठित, साधनवानों की खुली दबंगई की भी अनदेखी होती है।
समाज के रूप में हमआज भी अरक्षित है। व्यापारी, उद्योगपति, लेखक, पत्रकार, यहां तक कि नेता भी व्यक्तिगत रूप से भले ही हम समर्थ, सक्षम दिखते हैं, लेकिन समाज के रूप में उनकी कोई हस्ती, कोई आवाज़ नहीं है। हमारे समाज पर चोट पड़ने पर कोई कुछ नहीं कर पाता। बोलता तक नहीं! जबकि मुस्लिमों, क्रिश्चियनों की बढ़ा-चढ़ाकर या झूठी शिकायत पर भी प्रतिक्रियाओं की बाढ़ आ जाती है।
🚩राष्ट्रीय-अंतराष्ट्रीय हेडलाइनें बनती हैं। इसके उलट, हिंदुओं को सामूहिक रूप से मार भगाने, जिंदा जला देने पर भी मृतकों और मारने वालों की धार्मिक पहचान छिपाने की ज़िद रहती है। यह कई बार हुआ है।
शोषण या अन्याय की ठोस कसौटी रखने के बजाए हर घटना में धर्म, समुदाय देखकर हाय-तौबा या उपेक्षा करने का चलन भारत में ही है। यही रेडीमेड सामग्री विदेशी मीडिया भी उठाता है। इसी कारण, भारत में जो भावना ‘दक्षिणपंथी’ कहकर नकार दी जाती है, वही यूरोप, अमेरिका में ‘वंचितों की भावना’ के रूप में सहजता से ली जाती है।
हिंदू धर्म जगज़ाहिर रूप से उदार और बहुलतावादी है। इसमें विविध पंथ और परंपराओं की स्वीकृति है। बिना मुहम्मद को प्रोफेट माने कोई मुसलमान और बिना जीसस को माने क्रिश्चियन नहीं हो सकता। लेकिन किसी भी देवी-देवता या अवतार को स्वीकार किए बिना भी कोई हिंदू हो सकता है। हिंदू धर्म किसी ईश्वर या अवतार पर निर्भर नहीं है।
🚩इसीलिए हिंदू गुरु, संत आदि धार्मिक विविधता के सहज समर्थक रहे हैं। वे किसी एक मत-विश्वास का एकाधिकारी दावा नहीं मानते। क्रिश्चियनिटी और इस्लाम से हमारी चिंता का मुख्य कारण इनकी विस्तारवादी, राजनीतिक योजनाएं हैं। ये हिंदू धर्म-समाज को ख़त्म करने का घोषित सिद्धांत रखते हैं। इसलिए इनका विरोध हमारी धर्म-रक्षा का अंग है। इसे ‘विविधता’ का विरोध कहना ग़लत है।
🚩नोट करें, कि धर्म संबंधी हिंदू विचार भी पश्चिम में वामपंथियों के निकट हैं। अमेरिकी दक्षिणपंथी पूरी दुनिया में धर्मांतरण कराने वाले चर्च-मिशनरी भेजते हैं। वे केवल क्रिश्चियनिटी को सच्चा धर्म मानते हैं। जब हिंदुओं ने कहा कि कैथोलिक चर्च के पोप बयान दें कि सत्य किसी धर्म-मत विशेष का ही एकाधिकार नहीं और बिना क्रिश्चियन बने भी मनुष्य को मुक्ति मिल सकती है, तब हिंदुओं को ही सांप्रदायिक कहा गया। पोप को लिबरल बताया गया, जो हिंदू-बौद्ध परंपराओं को अंधकार-ग्रस्त बताते हैं।
🚩हिंदुओं द्वारा ज्ञान-विज्ञान की खोज के विरोध का इतिहास में कभी कोई उदाहरण नहीं मिलता। किसी मत-विश्वास के लिए विज्ञान का विरोध हिंदू मानसिकता से परे है। हिंदू लोग अध्यात्म और विज्ञान की एकता को ही मानवीय प्रगति का मार्ग मानते हैं।
🚩दरअसल, भारत में वाम और दक्षिण की सारी बातें एकतरफ़ा और पुराने कम्युनिस्ट प्रभाव से ग्रस्त हैं। मार्क्सवादियों ने स्वयं को वामपंथी कहते हुए मनमाने रूप से अपने विरोधियों को ‘दक्षिणपंथी’ कहकर इसे लगभग गाली के तौर पर प्रयोग करना शुरू किया। इसकी परवाह ही नहीं की गई कि कोई व्यक्ति या संगठन अपने को ‘दक्षिणपंथी’ कहा जाना स्वीकार करता है या उसकी बातें ‘राइटिस्ट’ हैं भी या नहीं? यहां मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी बरसों तक अपने प्रतिद्वंद्वी भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी को ‘दक्षिणपंथी कम्युनिस्ट’ कहती थी!
🚩चूंकि नेहरूजी ने शुरू से मार्क्सवादियों को प्रतिष्ठा दी, इसीलिए उनके राज में स्वतंत्र भारत का विमर्श विकृति का शिकार हो गया। मार्क्सवादी लोग मानो सरकारी बौद्धिक पुरोधा बन गए। उनके मुहावरों, लांछनों को मानकर चलना अकादमिक-राजनीतिक और मीडिया की भी आदत बन गई। तभी आज भी स्तालिन, माओ की तस्वीरें लगाने वाले वामपंथियों को ‘प्रगतिशील’ कहा जाता है, जबकि दोनों ने अपने-अपने देशों में करोड़ों निरीह, निर्दोष लोगों का संहार किया, और समाज को दशकों पीछे धकेल दिया।
🚩दुनियाभर में कम्युनिस्ट राज-सत्ताएं तानाशाही, असहिष्णुता और हिंसा का पर्याय रही हैं। पर भारतीय वामपंथी आज भी उसी व्यवस्था के लिए आहें भरते हैं, जिसने रूस, चीन, पूर्वी यूरोप के अनेक देशों को तबाह किया। साथ ही, हर कहीं आर्थिक जर्जरता भी लाई। उन्हीं नीतियों की नकल में यहां भी नेहरूवादी-वामपंथी नीतियों ने अर्थव्यवस्था, राज्यतंत्र और शिक्षा को बेहिसाब नुकसान पहुंचाया है। यह अब भी जारी है।
🚩हिंदू चिंताओं को ‘दक्षिणपंथी’ कहकर मज़ाक बनाना या निंदा करना उन पर ध्यान देने से रोकने की तकनीक है। भारत में राजनीति, कानून, शिक्षा, इतिहास और धर्म संबंधी विवादों को सरल ‘वाम’ या ‘दक्षिण’ श्रेणियों में बांटकर समझा नहीं जा सकता। ये श्रेणियां यूरोपीय इतिहास की विशेष परिस्थितियों की देन हैं, जिनकी भारतीय परिस्थितियों से कोई समानता नहीं है।
इसलिए यहां मार्क्सवादियों का वाम-दक्षिण काफी कुछ इस्लामियों के मोमिन-काफ़िर जैसी शब्दावली है। इसे भारतीय सभ्यता पर थोपने से कुछ समझ नहीं आ सकता। सच यह है कि भारत में हिंदू आंदोलन मुख्य रूप से अपनी आध्यात्मिक विरासत बचाने और पुनर्जीवित करने की भावना है।
🚩भारतीय समाज, धर्म-संस्कृति और सभ्यता को समझने और इसके लोगों से संवाद करने के लिए ऐसे ही शब्दों, मुहावरों, विशेषणों का प्रयोग होना चाहिए जो यहां की स्थिति पर लागू होते हैं। जिन्हें यहां के लोग जानते, समझते और अनुभव करते हैं। जब तक हम भारतीय जन-जीवन को किन्हीं राजनीतिक या पार्टी-हितों की दृष्टि से देखते रहेंगे, तब तक सामाजिक विमर्श तरह-तरह के विरोध, भ्रम और उलझनों में जकड़ा रहेगा।
- डॉ. शंकर शरण (९ जून २०२०)
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Sunday, May 26, 2024
मदरसों में कहीं फटा बम, कहीं भेड़-बकरियों की तरह ठूँसे बच्चे, कहीं यौन शोषण कर रहा मौलवी...
मदरसों में कहीं फटा बम, कहीं भेड़-बकरियों की तरह ठूँसे बच्चे, कहीं यौन शोषण कर रहा मौलवी...
27 May 2024
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🚩बिहार के छपरा के मोतिराजपुर गाँव में स्थित एक मदरसे में बम ब्लास्ट हो गया। छानबीन हुई तो पता चला कि एक छात्र मदरसे के पीछे मिले बम को गेंद समझकर मदरसे में उठा लाया और फिर खेलने लगा। मौलाना ने देखा तो उसे बाहर फेंकना चाहा लेकिन तब तक बम फट गया था। घटना में मौलाना और छात्र दोनों गंभीर रूप से घायल है।
🚩पुलिस मामले की छानबीन कर रही है। पता लगाया जा रहा है कि आखिर ये बम आए कहाँ से❓ शुरुआती जाँच में तो इसे पटाखे फैक्ट्री का बम बता दिया गया लेकिन इससे बात खत्म नहीं होती। समाचारों में मदरसों को लेकर जो खबरें आना शुरू हुई हैं वो सवाल खड़ा करती हैं कि आखिर दीनी तालीम के नाम पर मदरसों में चल क्या रहा है। कहीं से यौन उत्पीड़न की खबरें आती हैं, कहीं से शारीरिक शोषण, क्रूरता की तो कहीं से कट्टरपंथ के पाठ की।
🚩ज्यादा दिन नहीं बीते राजस्थान के अजमेर में 5 छात्रों ने इमाम को डंडे से पीट-पीटकर और रस्सी से गला घोंटकर मार डाला था। जब मामला खुला तो चौंकाने वाली बात सामने आई। छात्रों ने बताया कि इमाम के यौन उत्पीड़न से तंग आकर ये हत्या उन लोगों ने ही की। ये छात्र उस इमाम से इतने परेशान थे कि इन्होंने बकायदा साजिश रचकर उसको जान से खत्म किया। इसी तरह असम के सलमारा जिले में एक मदरसे के अंदर नाबालिग लड़के से यौन उत्पीड़न की घटना 9 मई को खुली थी। आरोपित मदरसे का मौलाना अखिरुल इस्लाम ही था। इस मौलाना ने बच्चे की मारपीट करके हालत ऐसी कर दी थी कि वो क्लास में जाने से डरता था।
🚩पाकिस्तान से लेकर बांग्लादेश तक से मदरसों पर आती हैं खबर...
ये 2-3 मामले वो हाल के मामले हैं जो पिछले एक हफ्ते में आए… महीनों का आँकड़ा देखें या फिर सालों की बात करें तो मदरसों में हो रहे कुकर्म की खबरों की गिनती आपको हमेशा बढ़ती हुई ही मिलेगी। मामले जिले, राज्य या किसी प्रदेश तक सीमित नहीं हैं। इस्लामी मुल्कों में भी मदरसों के यही हाल हैं।
🚩कहीं से वीडियो आती है कि छोटे बच्चों को निर्ममता से पीटा जा रहा है, कहीं पता चलता कि क्लास के बीच में छात्राओं के साथ छेड़खानी होती है। किसी को मार्क्स देने के नाम पर परेशान किया जाता है तो किसी के मुँह में जबरन कपड़े ठूँस कर उसके साथ रेप होता है। अफ्रीका से तो एक बार ऐसी खबर भी आई थी कि वहाँ मदरसों में पढ़ने वालों से गरीब बच्चों से मौलवी भीख मँगवाने लगे थे।
🚩इसी तरह पाकिस्तान की बात करें तो वहाँ भी मदरसों में बच्चों का यौन शोषण होता है, लेकिन उसके साथ वहाँ उन्हें ऐसी तालीम मिलती है कि वो आतंकी संगठन में शामिल होने से कोई गुरेज नहीं करते। पाकिस्तान का दारुल उलूम हक़्क़ानिया ऐसा ही एक मदरसा है जिससे पढ़कर निकले लोग तालिबान जैसे संगठनों में शामिल होकर कट्टरपंथ के रास्ते पर चल पड़ते हैं। बांग्लादेश में भी मदरसों की ऐसी कई कहानियाँ हैं।
🚩मीडिया में मौजूद कुछ खबरें तो यहाँ तक बताती हैं कि पाकिस्तान अपने आतंक का एजेंडा भारत में मदरसों के जरिए पूरा करने में लगा है…। हम इन खबरों को एक बार झुठलाने की अगर सोचें भी तो पिछले सालों में ऐसे तमाम उदाहरण सामने आ गए हैं जो बताते हैं आतंकी अपने टेरर मॉड्यूल को मदरसे के बहाने ही जमीन पर उतारना चाहते हैं।
🚩असम में टेरर मॉड्यूल का भंडाफोड़...
साल 2022 में असम में जो टेरर मॉड्यूल का भंडाफोड़ हुआ था वो याद करें तो पता चलता है कि कट्टरपंथियों की कितनी गहरी साजिश चल रही है। असम पुलिस ने उस समय कई आतंकियों को गिरफ्तार किया था और जिन मदरसों से इसके संबंध मिले थे उनपर हिमंता सरकार ने बुलडोजर चलवा दिया था। उन्होंने साफ-साफ ऐलान किया था कि अगर उन्हें पता चला कि किसी मदरसे में अवैध गतिविधियाँ चल रही हैं, देश विरोधी तालीम दी जा रही हैं तो तुरंत वो मदरसे को गिरवा देंगे। इसके बाद असम में 1281 के करीब मदरसे बंद हुए थे। सरकार ने फैसला लिया था कि प्रदेश में दीनी तालीम की जगह आधुनिक शिक्षा दी जाएगी जिससे बच्चे भविष्य में कुछ अच्छा कर सकें।
🚩यूपी में एक्शन
इसके अलावा उत्तर प्रदेश की योगी सरकार भी लगातार कट्टरपंथ से लड़ने में प्रयासरत है, लेकिन उनके लिए ये काम इतना आसान नहीं है। मदरसों को फलने-फूलने के लिए खाद-पानी यूपी की पहले की सरकारों ने ही दिया। जब योगी सरकार आई तो अवैध रूप से चल रहे मदरसों पर शिकंजा कसना शुरू हुआ। योगी सरकार ने जाँच करवाई तो पता चला कि हजारों की संख्या में न केवल अवैध मदरसे चलाए जा रहे हैं बल्कि सीमाओं पर अचानक इनकी गिनती बढ़ी है। सरकार के पास जब इनकी रिपोर्ट पहुँची तो वह इस पर सख्त हुए। करीब 16000 मदरसों पर एक्शन लिया गया। इसके बाद एक खबर यह भी आई कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी याचिका पर सुनवाई करते हुए राज्य मदरसा बोर्ड एक्ट को असंवैधानिक घोषित कर दिया है। हालाँकि बाद में जब ये मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुँचा तो वहाँ उच्च न्यायालय के फैसले पर रोक लगा दी गई…।
🚩दीनी तालीम के नाम पर बच्चे भेजे जा रहे मदरसों में...
बता दें कि जिस तरह की तस्वीर पिछले कुछ समय में मदरसों की उभरकर आई है उससे यही पता चलता है कि ये आने वाले समय में कितना भयावह रूप ले सकते हैं। केवल राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से ही नहीं सामाजिक दृष्टि से भी सवाल उठता है कि आखिर ऐसे संस्थानों का उद्देश्य क्या होता है।
🚩क्या मजहब के नाम पर बच्चों को दुनिया से पीछे कर देना मौलानाओं का काम है❓ या फिर उन्हें यौन उत्पीड़न का शिकार बनाकर उन्हें भीतर से तोड़ने का बीड़ा उन्होंने उठाया है❓ मदरसों में बम फटना या रेप होना या आतंकियों को पनाह मिलना कोई सामान्य घटना नहीं हैं…❗ लेकिन इन सबको लेकर अलग-अलग जगह के मदरसे बदनाम हुए हैं।
🚩इनकी खबरें पढ़ने के बावजूद मजहब की बातें करने वाले कुछ कट्टरपंथी विचारधारा वाले अपने बच्चों को आधुनिक शिक्षा देने की बजाय मदरसों में जाने को मजबूर करते हैं और जब वो जाने से मना करते हैं तो उनके साथ मारपीट होती है।
https://x.com/KanoongoPriyank/status/1789981750615314902?t=gbxNothG-fVeoBlZnuRRZQ&s=19
🚩कुछ दिन पहले एनसीपीआर अध्यक्ष ने भी मदरसों में जमा होती भीड़ की तस्वीर को दुनिया के आगे उजागर किया था। उन्होंने अपने ट्वीट में बताया था कि कैसे गरीब बच्चों को ला लाकर मदरसों में भरा जा रहा है। जहाँ न बुनियादी सुविधाएँ उन्हें मिलती हैं और न वो अच्छे से जीवन व्यतीत कर पाते हैं। - जयंती मिश्रा
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Saturday, May 25, 2024
मुस्लिम युवती हिंदू के साथ नही रह सकती , हिंदू युवती मुस्लिम के साथ रह सकती है : हाईकोर्ट
मुस्लिम युवती हिंदू के साथ नही रह सकती , हिंदू युवती मुस्लिम के साथ रह सकती है : हाईकोर्ट
26 May 2024
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🚩कर्नाटक हाई कोर्ट ने हाल ही में एक मामले की सुनवाई करते हुए एक हिन्दू लड़की को मुस्लिम व्यक्ति के साथ रहने की इजाजत दे दी। इससे कुछ दिन पहले इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक मुस्लिम महिला को हिन्दू व्यक्ति के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रहने की इजाजत देने से मना कर दिया था।
🚩कर्नाटक हाई कोर्ट ने दायर किए गए इस मामले में हिन्दू लड़की की माँ से उसे पेश करने की याचिका लगाई थी। हिन्दू लड़की के मुस्लिम पति के वकील ने लड़की को कोर्ट के सामने पेश कर दिया था। इसके बाद कोर्ट ने लड़की से उससे बातचीत की।
🚩लड़की ने बताया कि उसने 1 अप्रैल, 2024 को मुस्लिम लड़के के साथ निकाह कर लिया था और अब वह अपने मुस्लिम पति के साथ केरल में रहना चाहती है। उसने कहा कि वह अपने हिन्दू परिवार में वापस नहीं लौटना चाहती। इसके बाद हाई कोर्ट ने उसे मुस्लिम पति के साथ रहने की इजाजत दे दी।
🚩इससे पहले मार्च, 2024 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक मुस्लिम महिला को उसके हिन्दू लिव इन पार्टनर के साथ रहने की अनुमति देने से मना कर दिया था। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने यह निर्णय शरिया के आधार पर दिया था, जिसमें महिला का हिन्दू व्यक्ति के साथ रहना गलत गुनाह था।
🚩याचिका लगाने वाली महिला का निकाह एक मुस्लिम व्यक्ति के साथ हुआ था, जिसने दो साल बाद एक और महिला से निकाह कर लिया था। इसके बाद मुस्लिम महिला अपने माता-पिता के पास रहने चली आई थी। इसके बाद उसका एक हिन्दू व्यक्ति से सम्पर्क हो गया और वह उसके साथ लिव इन रिलेशनशिप में रहने लगी।
🚩महिला ने अपने पूर्व मुस्लिम पति के साथ जाने से मना कर दिया था, महिला का कहना था कि उसका मुस्लिम पति उसे मारता पीटता है। हिन्दू व्यक्ति के साथ रहने के कारण महिला को उसके घरवालों से धमकियाँ मिल रही थीं। उसने अपनी सुरक्षा को लेकर इलाहाबाद हाई कोर्ट के समक्ष एक याचिका लगाई थी।
🚩इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई करते हुए महिला को कोई भी राहत देने से इनकार कर दिया। हाई कोर्ट ने कहा कि महिला का पहले निकाह हो गया और उसने तलाक नहीं लिया ऐसे में वह हिन्दू पुरुष के साथ नहीं रह सकती। कोर्ट ने यह भी कहा कि महिला का हिन्दू पुरुष के साथ रहना शरिया के अनुसार हराम है।
🚩कोर्ट ने यह भी कहा कि महिला पर हिन्दू पुरुष के साथ रहने के लिए मुकदमा भी चलाया जा सकता है। हाई कोर्ट ने इसी के साथ मुस्लिम महिला की हिन्दू पुरुष के साथ रहने की याचिका को खारिज कर दिया था और अनुमति नहीं दी थी।
🚩पाकिस्तान की न्ययालय ऐसा फैसला दे तो मान सकते है लेकिन भारत की न्यायालय ऐसे फैसले सुनाए ये जनता को स्वीकार्य नहीं है। जनता इस तरीके फैसला का विरोध करती हैं।
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