Saturday, June 15, 2024

PK और ‘हमारे बारह’ को लेकर सुप्रीम कोर्ट का दोहरा रवैया क्या कहता है ?

PK और ‘हमारे बारह’ को लेकर सुप्रीम कोर्ट का दोहरा रवैया क्या कहता है ? 16 June 2024 https://azaadbharat.org
🚩एक फिल्म आ रही है – ‘हमारे बारह’। जनसंख्या नियंत्रण की समस्या और इस्लाम में महिलाओं के अपमान पर बन रही अन्नू कपूर अभिनीत इस फिल्म की रिलीज पर देश के सर्वोच्च न्यायालय ने ब्रेक लगा दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने इसकी स्क्रीनिंग पर रोक लगाते हुए कहा कि उन्होंने इसका ट्रेलर देखा तो काफी आपत्तिजनक है। इसके डायलॉग्स पर भी आपत्ति जताई गई। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आपत्तिजनक चीजें भरी पड़ी हैं। इससे पहले बॉम्बे हाईकोर्ट ने फिल्म की रिलीज पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था। 🚩‘हमारे बारह’: मुस्लिम महिलाओं की व्यथा दिखाना जुर्म? 🚩सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के इस फैसले पर आपत्ति जताते हुए कहा कि उच्च न्यायालय को ये आदेश देना चाहिए था कि CBFC (सेंसर बोर्ड) एक समिति बना कर इस मामले की जाँच करे। अज़हर बाशा तम्बोली ने जहाँ इस फिल्म के पक्ष में याचिका दायर की थी, वहीं जस्टिस विक्रम नाथ और संदीप मेहता की वैकेशन बेंच ने इस पर सुनवाई की। याचिकाकर्ता की तरफ से फौजिया शकील बतौर अधिवक्ता पेश हुईं। कर्नाटक की कॉन्ग्रेस सरकार पहले ही ‘हमारे बारह’ को प्रतिबंधित कर चुकी है। 🚩आखिर ‘हमारे बारह’ में ऐसा क्या दिखाया गया है जो सुप्रीम कोर्ट को सब कुछ आपत्तिजनक ही लग रहा है। ट्रेलर में मौलवी का किरदार निभाने वाले अभिमन्यु सिंह कहते हैं, “औरतें सलवार के नाड़े की तरह होनी चाहिए। जब तक अंदर रहेंगी, बेहतर रहेंगी। तुम्हारी औरतें तुम्हारी खेती हैं, अपनी मर्जी से खेती करो।” ट्रेलर में दिखाया गया है कि कैसे मुस्लिम महिलाओं को मुल्ले-मौलवियों की इस सोच के कारण समस्या का सामना करना पड़ता है, प्रताड़ना झेलनी पड़ती है। 🚩क्या इस्लाम में महिलाओं को बुर्के और हिजाब में रहने के लिए बाध्य नहीं किया जाता है? उन्हें भी तो आखिर स्वच्छंद हवा में साँस लेने का अधिकार है। ‘हलाला’ जैसी कुप्रथा के तहत शादीशुदा महिलाओं के साथ रात गुजारने के लिए ये मौलवी हजारों-लाखों रुपए वसूल करते हैं। ये मौलवी खुद एक से अधिक महिलाओं से निकाह करते हैं, फिर दूसरी महिलाओं से ‘हलाला’ भी करते हैं। मौलवियों का दाम तय है। ‘हलाला’ के बहाने मदरसों के लिए फंडिंग भी ले ली जाती है। 🚩क्या ये मौलवी जन्नत की ’72 हूरों’ का विवरण देते समय महिलाओं का अपमान नहीं करते? इस समस्या को दिखा देने पर सुप्रीम कोर्ट नाराज़ हो जाता है। कोई मौलाना इन हूरों के ‘बड़े-बड़े स्तन’ होने के दावे करते है तो कोई पत्नियों को ‘मैली-कुचली’ कह कर संबोधित करता है। इसी समस्या को तो दिखाया गया है ‘हमारे बारह’ फिल्म में। हूरों का ‘दबा कर इस्तेमाल करना’, ‘पेट भरना’ और ‘कपड़ों में गूदा नज़र आना’ जैसी चीजें आपत्तिजनक हैं, इन पर सवाल उठाना नहीं। 🚩PK फिल्म पर क्या बोला था सुप्रीम कोर्ट फिर सुप्रीम कोर्ट ऐसी फिल्म को आपत्तिजनक क्यों बता रहा है, जिसमें इस्लाम की कुरीति पर बात की गई है। वहीं फिल्म में जब हिन्दू देवी-देवताओं का मजाक बनाया जाता है तो यही सुप्रीम कोर्ट ऐसी कोई कार्यवाही नहीं करता। आज से एक दशक पीछे चलते हैं, आमिर खान की फिल्म PK आपको याद होगी। दिसंबर 2014 में आई इस फिल्म को लेकर काफी विवाद हुआ था, लेकिन चूँकि पीड़ित पक्ष हिन्दू थे इसीलिए उन्हें हर जगह झटका ही मिला। 🚩इस फिल्म को भगवान शिव को सड़क पर भागते हुए और बाथरूम में छिपते हुए दिखाया गया था, पाकिस्तानी सरफ़राज़ को हिन्दू लड़की को गर्लफ्रेंड बनाते हुए दिखाया गया था, हिन्दू संत को लोगों को झाँसा देते हुए दिखाया गया था। और हाँ, ‘सरफ़राज़ धोखा देगा’ वाला बयान एक हिन्दू संत से कहलवा कर अंत में दिखाया गया था कि वो एक ‘सच्चा पाकिस्तानी मुस्लिम’ है। फिल्म में हिन्दुओं को अंधविश्वासी दिखाया गया था। आपको वो दृश्य भी याद होगा जब आमिर खान मंदिर में भगवान शिव की वेशभूषा वाले कलाकार को खदेड़ते हैं। महादेव को कॉमेडी का विषय बना दिया गया था। 🚩“अगर आपको पसंद नहीं है तो मत देखिए” – PK को लेकर जब सुप्रीम कोर्ट में याचिका पहुँची थी तो कुछ ऐसी ही टिप्पणी देश की सर्वोच्च न्यायालय से सुनने को मिली थी। सुप्रीम कोर्ट ने इसे कला और मनोरंजन बताते हुए कहा था कि आपको नहीं पसंद है तो मत देखिए, दूसरों को तो देखने दीजिए। 3 जजों (RM लोढ़ा, कुरियन जोसेफ, RF नरीमन) की बेंच ने ‘ह्यूमन राइट्स एन्ड सोशल जस्टिस’ नामक NGO से ऐसा कहा था। पूछा गया था कि आपका संवैधानिक या कानूनी अधिकार इससे कैसे बाधित होते हैं, क्या इसे सेंसर बोर्ड ने पास नहीं किया? 🚩सुप्रीम कोर्ट ने तब आजकल के युवाओं को बहुत स्मार्ट बताते हुए पूछा था कि आप क्या-क्या छिपाओगे, ये इंटरनेट का ज़माना है। क्या अब ये सब चीजें सुप्रीम कोर्ट भूल चुका है? 10 वर्ष बाद इंटरनेट का और भी तेज़ी से प्रसार हुआ है और युवा तो और अधिक स्मार्ट हुए होंगे न। फिर जो चीजें PK पर लागू होती हैं वही ‘हमारे बारह’ पर क्यों नहीं? क्या मुस्लिम महिलाओं की व्यथा दिखाना पाप है? और अन्नू कपूर तो खुद को नास्तिक भी बताते हैं। फिल्म की टीम को ‘सर तन से जुदा’ की धमकियाँ भी मिल रही हैं। 🚩‘सेक्सी दुर्गा’ से लेकर ‘सेक्सी राधा’ तक इसी तरह जानबूझकर 2017 में एक मलयालम हॉरर फिल्म का नाम ‘सेक्सी दुर्गा’ रखा गया। विवाद हुआ तो इसे ‘S दुर्गा’ कर दिया गया। भारत में माँ दुर्गा का क्या महत्व है, ये बताने की ज़रूरत नहीं है। उन्हें ईश्वर की ऊर्जा कहा गया है, साल में 4 बार नवरात्रि आती है। शक्ति संप्रदाय भी हिन्दू धर्म का एक अंग है। केरल के हाईकोर्ट ने इसे गोवा में आयोजित इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल तक में दिखाने का आदेश दिया, जबकि केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण ने इसे सूची से हटा दिया था। 🚩इसी तरह ‘स्टूडेंट ऑफ द ईयर’ (2012) में राधा के लिए ‘सेक्सी’ शब्द का प्रयोग किया जाता है, लेकिन कोर्ट को कोई आपत्ति नहीं होती। भगवान श्रीकृष्ण को मानने वाला हर एक व्यक्ति राधा को माँ कहता है और सम्मान की दृष्टि से देखता है। उनकी भावनाओं का क्या? वेब सीरीज ‘पाताल लोक’ (2020) में मंदिर प्रांगण में ब्राह्मण को मांस खाते हुए और गंदी गालियाँ बकते हुए दिखाया जाता है। इसी तरह ‘मिर्जापुर’ (2018) वेब सीरीज में ‘मुन्ना भैया’ को एक पंडित को डाँटते हुए दिखाया जाता है। 🚩सैफ अली खान वाली सीरीज ‘तांडव’ (2021) में हिन्दू देवी-देवताओं का मजाक बनाया गया। ऐसा एक बार नहीं, कई बार, बार-बार हो चुका है। इसे इतना सामान्य बना दिया गया है कि सुप्रीम कोर्ट तो दूर की बात, स्थानीय प्रशासन तक हिन्दुओं की आपत्तियाँ नहीं सुनता। जबकि बात जब इस्लाम या ईसाइयत की आती है तो पूछिए मत। बाइबिल के एक शब्द का मजाक बनाने पर फराह खान, रवीना टंडन और भारती सिंह जैसी बॉलीवुड की हस्तियों को वेटिकन सिटी के प्रतिनिधि पादरी से मिल कर हस्तलिखित माफीनामा सौंपना पड़ा था। 🔺 Follow on 🔺 Facebook https://www.facebook.com/SvatantraBharatOfficial/ 🔺Instagram: http://instagram.com/AzaadBharatOrg 🔺 Twitter: twitter.com/AzaadBharatOrg 🔺 Telegram: https://t.me/ojasvihindustan 🔺http://youtube.com/AzaadBharatOrg 🔺 Pinterest : https://goo.gl/o4z4BJ

Thursday, June 13, 2024

आज की माता अपने बच्चों के प्रति कर्तव्य विहीन हो रही है? मां कैसी होनी चाहिए?

आज की माता अपने बच्चों के प्रति कर्तव्य विहीन हो रही है? मां कैसी होनी चाहिए? 13 June 2024 https://azaadbharat.org
🚩माता ही अपने बच्चे का निर्माण करनेवाली होती है। इतिहास में सबसे सुन्दर उदाहरण मदालसा देवी का है। मदालसा के तीन पुत्र हुए। उनके नाम रखे गये―विक्रान्त, सुबाहु और अरिदमन। माता उन्हें लोरी देती हुई कहती― 🚩शुद्धोऽसि बुद्धोऽसि निरञ्जनोऽसि संसारमायापरिवर्जितोऽसि । संसारमायां त्यज मोहनिद्रां मदालसोल्लपमुवाच पुत्रम्।।* *भावार्थ*— _हे पुत्र ! तू शुद्ध है, बुद्ध है, निरंजन=निर्दोष है, संसार की माया से रहित है। इस संसार की माया को त्याग दे। उठ, खड़ा हो, मोह को परे हटा। इस प्रकार मदालसा ने अपने पुत्र से कहा। 🚩शुद्धोऽसि रे तात न तेऽस्ति नाम कृतम् हि यत् कल्पनयाधुनैव। 🚩भावार्थ: हे प्रिय पुत्र! तू शुद्ध स्वरूप आत्मा है परन्तु तेरा नाम (विक्रांत, सुबाहु, अरिमर्दन) शुद्ध नहीं है बल्कि ये आजकल की कल्पनाओं के आधार पर रखा गया है। 🚩इस शिक्षा का परिणाम क्या हुआ? तीनों पुत्र राज-पाट का मोह त्यागकर वनों को चले गये। यह स्थिति देख महाराज ने कहा―देवी! राज-पाट कौन सम्भालेगा, क्या सबको सन्यासी बना देगी? जब चौथा पुत्र उत्पन्न हुआ तब मदालसा ने उसका नाम रखा―अलर्क। माता ने उसे राजनीति का उपदेश दिया। उसे लोरी देते हुए माता कहती थी― 🚩धन्योऽसि रे यो वसुधामशत्रु- रेकश्चिरं पालयिताऽसि पुत्र ! तत्पालनादस्तु सुखोपभोगो धर्मात् फलं प्राप्स्यसि चामरत्वम् ।। ―मार्कण्डेयपुराण २६।३५ 🚩_हे पुत्र! तू धन्य है जो अकेला ही शत्रुओं से रहित होकर इस पृथ्वी का पालन कर रहा है। धर्मपूर्वक प्रजापालन से तुझे इस लोक में सुख और मरने पर मोक्ष की प्राप्ति होगी।_ राज्य की उत्तम व्यवस्था का उपदेश देते हुए वह कहती― राज्यं कुर्वन् सुहृदो नन्दयेथाः साधून् रक्षंस्तात ! यज्ञैर्यजेथाः । दुष्टान्निघ्नन् वैरिणश्चाजिमध्ये गोविप्रार्थे वत्स ! मृत्युं व्रजेथाः ।। ―मा० पु० २६।४१ 🚩_हे पुत्र ! तू राज्य करते हुए अपने मित्रों को आनन्दित करना, साधुओं=श्रेष्ठ पुरुषों की रक्षा करते हुए खूब यज्ञ करना। गौ और ब्राह्मणों की रक्षा के लिए संग्राम-भूमि में शत्रुओं को मौत के घाट उतारता हुआ तू स्वयं भी मृत्यु को प्राप्त हो जाना।_ 🚩आज माताएँ अपने कर्त्तव्य को भूल चुकी हैं। आज माता और पिताओं को बच्चे को गोद लेने में शर्म आती है। बच्चे नौकरानी अथवा 'आया' की गोद में पलते हैं। परिणामस्वरूप बालकों का सुनिर्माण नहीं हो पाता। 🚩बालकों पर घर के वातावरण, रहन-सहन और आचार-विचार का भी गहरा प्रभाव पड़ता है। जो माता-पिता आदि स्वयं किसी को 'नमस्ते' नहीं करते। जिन परिवारों में माता-पिता देर से उठते हैं वहाँ बच्चे भी देर से उठते हैं। जो पिता बीड़ी, सिगरेट, मद्य-मांस आदि का सेवन करते हैं उनके बच्चे भी इन दुर्गुणों से बच नहीं सकते। इसके विपरीत जिन परिवारों में सन्ध्या,यज्ञ , आसन और प्राणायाम का अभ्यास होता है उन परिवारों के बच्चों में भी वेसे ही गुण विकसित हो जाते हैं। यदि माता-पिता चाहते हैं कि उनके बच्चे श्रेष्ठ, सदाचारी और आदर्श नागरिक बनें तो माता-पिता को स्वयं अपने जीवन में परिवर्तन लाना होगा। माता-पिता को अपने आचरण के द्वारा उन्हें शिक्षा देनी होगी। 🚩अपने बच्चों को सदाचारी, सभ्य और श्रेष्ठ बच्चों की संगति में रखना चाहिए, दुराचारी, असभ्य और गुणहीन बच्चों की संगति से अपने बच्चों को दूर रखें। 🔺 Follow on 🔺 Facebook https://www.facebook.com/SvatantraBharatOfficial/ 🔺Instagram: http://instagram.com/AzaadBharatOrg 🔺 Twitter: twitter.com/AzaadBharatOrg 🔺 Telegram: https://t.me/ojasvihindustan 🔺http://youtube.com/AzaadBharatOrg 🔺 Pinterest : https://goo.gl/o4z4BJ

Wednesday, June 12, 2024

मात्र 23 साल में देश के लिए बलिदान देने वाली खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी...

मात्र 23 साल में देश के लिए बलिदान देने वाली खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी... 13 June 2024 https://azaadbharat.org
🚩भारत में अंग्रेजी सत्ता के आने के साथ ही गाँव-गाँव में उनके विरुद्ध विद्रोह होने लगा; पर व्यक्तिगत या बहुत छोटे स्तर पर होने के कारण इन संघर्षों को सफलता नहीं मिली। अंग्रेजों के विरुद्ध पहला संगठित संग्राम 1857 में हुआ। इसमें जिन वीरों ने अपने साहस से अंग्रेजी सेनानायकों के दाँत खट्टे किये, उनमें झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई का नाम प्रमुख है। 🚩19 नवम्बर, 1835 को वाराणसी में जन्मी लक्ष्मीबाई का बचपन का नाम मनु था। प्यार से लोग उसे मणिकर्णिका तथा छबीली भी कहते थे। इनके पिता श्री मोरोपन्त ताँबे तथा माँ श्रीमती भागीरथी बाई थीं। गुड़ियों से खेलने की अवस्था से ही उसे घुड़सवारी, तीरन्दाजी, तलवार चलाना, युद्ध करना जैसे पुरुषोचित कामों में बहुत आनन्द आता था। नाना साहब पेशवा उसके बचपन के साथियों में थे। 🚩उन दिनों बाल विवाह का प्रचलन था।अतः 7 वर्ष की अवस्था में ही मनु का विवाह झाँसी के महाराजा गंगाधरराव से हो गया। विवाह के बाद वह लक्ष्मीबाई कहलायीं। उनका वैवाहिक जीवन सुखद नहीं रहा। जब वह 18 वर्ष की ही थीं, तब राजा का देहान्त हो गया। दुःख की बात यह भी थी कि वे तब तक निःसन्तान थे। युवावस्था के सुख देखने से पूर्व ही रानी विधवा हो गयीं। उन दिनों अंग्रेज शासक ऐसी बिना वारिस की जागीरों तथा राज्यों को अपने कब्जे में कर लेते थे। इसी भय से राजा ने मृत्यु से पूर्व ब्रिटिश शासन तथा अपने राज्य के प्रमुख लोगों के सम्मुख दामोदर राव को दत्तक पुत्र स्वीकार कर लिया था; पर उनके परलोक सिधारते ही अंग्रेजों की लार टपकने लगी। उन्होंने दामोदर राव को मान्यता देने से मनाकर झाँसी राज्य को ब्रिटिश शासन में मिलाने की घोषणा कर दी। यह सुनते ही लक्ष्मीबाई सिंहनी के समान गरज उठी - मैं अपनी झाँसी नहीं दूँगी। 🚩अंग्रेजों ने रानी के ही एक सरदार सदाशिव को आगे कर विद्रोह करा दिया। उसने झाँसी से 50 कि.मी दूर स्थित करोरा किले पर अधिकार कर लिया; पर रानी ने उसे परास्त कर दिया। इसी बीच ओरछा का दीवान नत्थे खाँ झाँसी पर चढ़ आया। उसके पास साठ हजार सेना थी; पर रानी ने अपने शौर्य व पराक्रम से उसे भी दिन में तारे दिखा दिये। 🚩इधर देश में जगह-जगह सेना में अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह शुरू हो गये। झाँसी में स्थित सेना में कार्यरत भारतीय सैनिकों ने भी चुन-चुनकर अंग्रेज अधिकारियों को मारना शुरू कर दिया। रानी ने अब राज्य की बागडोर पूरी तरह अपने हाथ में ले ली; पर अंग्रेज उधर नयी गोटियाँ बैठा रहे थे। 🚩जनरल ह्यू रोज ने एक बड़ी सेना लेकर झाँसी पर हमला कर दिया। रानी दामोदर राव को पीठ पर बाँधकर 22 मार्च, 1858 को युद्धक्षेत्र में उतर गयी।आठ दिन तक युद्ध चलता रहा; पर अंग्रेज आगे नहीं बढ़ सके। नौवें दिन अपने बीस हजार सैनिकों के साथ तात्या टोपे रानी की सहायता को आ गये; पर अंग्रेजों ने भी नयी कुमुक मँगा ली। रानी पीछे हटकर कालपी जा पहुँची। कालपी से वह ग्वालियर आयीं। वहाँ 17 जून, 1858 को ब्रिगेडियर स्मिथ के साथ हुए युद्ध में उन्होंने वीरगति पायी। रानी के विश्वासपात्र बाबा गंगादास ने उनका शव अपनी झोंपड़ी में रखकर आग लगा दी। रानी केवल 22 वर्ष और सात महीने ही जीवित रहीं। पर ‘‘खूब लड़ी मरदानी वह तो, झाँसी वाली रानी थी.....’’ गाकर उन्हें सदा याद किया जाता है। 🚩ब्राह्मण कुल में जन्मी और महलों में पलने वाली भारत माता की सिंहनी ” वीरांगना महारानी लक्ष्मीबाई ” ने अपनी वीरता, साहस, संयम, धैर्य तथा देशभक्ति के कारण सन् 1857 के महान क्रांतिकारियों की शृृंखला में अपना नाम स्वर्णाक्षरों में लिखा दिया । 🚩भारतीय नारी ने समग्र विश्व में अपनी एक विशेष पहचान बनायी है । अपने श्रेष्ठ चरित्र, वीरता तथा बुद्धिमत्ता के बल पर उसने मात्र भारत ही नहीं अपितु समस्त नारी जाति को गौरवान्वित किया है । उनका संयम, साहस व वीरता आज भी प्रशंसनीय है । भारत के इतिहास में ऐसी अनेक नारियों का वर्णन पढ़ने-सुनने को मिलता है । 🚩झाँसी कि रानी लक्ष्मीबाई का नाम भी ऐसी ही महान नारियों में आता है । रानी लक्ष्मीबाई का जीवन बड़े-बड़े विघ्नों में भी अपने धर्म को बनाये रखने तथा परोपकार के लिए बड़ी-से-बड़ी सुविधाओं को भी तृण कि भाँति त्याग देने की प्रेरणा देता है । 🔺 Follow on 🔺 Facebook https://www.facebook.com/SvatantraBharatOfficial/ 🔺Instagram: http://instagram.com/AzaadBharatOrg 🔺 Twitter: twitter.com/AzaadBharatOrg 🔺 Telegram: https://t.me/ojasvihindustan 🔺http://youtube.com/AzaadBharatOrg 🔺 Pinterest : https://goo.gl/o4z4BJ

Tuesday, June 11, 2024

कश्मीर में 109 साल पुराने मंदिर में मुस्लिम को बना दिया पुजारी, अब लग गई आग

कश्मीर में 109 साल पुराने मंदिर में मुस्लिम को बना दिया पुजारी, अब लग गई आग 12 June 2024 https://azaadbharat.org
🚩जम्मू-कश्मीर के गुलमर्ग की पहाड़ी पर स्थित महारानी मंदिर के नाम से प्रसिद्ध शिव मंदिर में 5 जून 2024 की तड़के आग लग गई। आग को तो बुझा लिया, लेकिन मंदिर पूरी तरह जल गया है। आग लगने का कारणों का फिलहाल पता नहीं चल पाया है। लगभग 109 साल पुराने इस मंदिर को कश्मीर के महाराजा हरि सिंह की धर्मपत्नी महारानी मोहिनी बाई सिसोदिया ने सन 1915 में बनवाया था। 🚩महारानी मंदिर में मोहिनीश्वर शिव स्थित हैं। यह घास के मैदानों से घिरी एक पहाड़ी पर स्थित था। लकड़ी और पत्थरों से बने 109 साल पुराने इस शिव मंदिर का विशिष्ट पिरामिडनुमा गुंबद है। इसमें ऐसी खिड़कियाँ थीं, जो गुलमर्ग के सभी कोनों से दिखाई देती थीं। मंदिर के पुजारी पुरुषोत्तम शर्मा ने मंदिर में आग लगने का कारण शॉर्ट सर्किट बताया। हालाँकि, अभी असली वजह का पता नहीं चल पाया है। 🚩कश्मीर में 1990 के हिंदू विरोधी नरसंहार से पहले इस महारानी मंदिर की भव्यता और प्रसिद्धि अपने चरम पर थी। यही कारण है कि यहाँ ना सिर्फ हिंदू श्रद्धालुओं का ताँता लगा रहता था, बल्कि फिल्मों में इसे दिखाने की होड़ लगी रहती थी। उस समय तक मंदिर में पुजारी से लेकर इसका प्रबंधन तक हिंदुओं के हाथों में हुआ करता था। महाराजा हरि सिंह के समय से ही मंदिर में ब्राह्मण पुजारी नियुक्त थे। 🚩यह मंदिर पर्यटकों के बीच काफी लोकप्रिय था। इतना ही नहीं, इस मंदिर को बॉलीवुड की कई फिल्मों में भी दिखाया जा चुका है। राजेश खन्ना और मुमताज अभिनीत सुपरहिट फिल्म ‘आप की कसम’ का लोकप्रिय गाना ‘जय जय शिव शंकर’ इसी मंदिर में फिल्माया गया था। इसके अलावा इसके अलावा फिल्म ‘रोटी’, ‘अंदाज’ और ‘कश्मीर की कली’ जैसी फिल्मों की शूटिंग भी इस मंदिर में हो चुकी है। 🚩हालाँकि, 1990 के दशक में घाटी में इस्लामी आतंकियों द्वारा हिंदुओं के खिलाफ छेड़े गए अभियान और हिंदुओं के पलायन के बाद यहाँ के हिंदू-सिखों के ही नहीं, बल्कि मंदिरों के भी दुर्दिन शुरू हो गए। हिंदुओं के पलायन के बाद पलायन के बाद यह मंदिर लंबे समय तक बंद रहा। बाद में बारामुल्ला जिले के दंडमुह निवासी गुलाम मोहम्मद शेख ने 23 सालों तक इस मंदिर की देखभाल और पूजा-अर्चना की। 🚩गुलाम मोहम्मद शेख को धर्मार्थ ट्रस्ट की ओर से मासिक वेतन पर शुरू में चौकीदार के रूप में नियुक्त किया गया था। हालाँकि, बाद में उन्होंने हिंदुओं के पवित्र कर्मकांड एवं अनुष्ठान की विधि को सीखा। मंदिर में जब नियमित पुजारी की अनुपस्थिति हो गई तो गुलाम मोहम्मद शेख पूजा के साथ-साथ शाम और सुबह की आरती करने लगे। हालाँकि, साल 2021 में वह इस काम से सेवानिवृत्त हो गए। 🚩गुलमर्ग पुलिस थाने के प्रभारी सब इंस्पेक्टर फारूक अहमद के अनुसार, मंदिर की देखरेख पुजारी समेत तीन लोग करते हैं। इनमें दो लोग स्थानीय मुस्लिम समुदाय से हैं। इनमें से एक गुलाम मोहम्मद शेख का भांजा है। मंदिर छोटा होने के चलते रात को दोनों मंदिर के निकट स्थित हट में चले जाते थे। घटना की रात मंदिर का पुजारी भी निकटवर्ती गुरुद्वारे में सो रहा था। 🚩अब यह मंदिर जम्मू-कश्मीर धर्मार्थ ट्रस्ट के अधीन है। नवंबर 2023 में धर्मार्थ ट्रस्ट ने पुरुषोत्तम शर्मा को मंदिर का पुजारी नियुक्त किया है। ट्रस्ट मंदिर के पुनर्निर्माण की तैयारी कर रहा है। वहीं, फारूक अहमद ने बताया कि शुरुआती जाँच में पता चला कि मंदिर में बिजली के तारों में शॉर्ट सर्किट हुआ, जिसके कारण आग लगी। वहीं, पुजारी पुरुषोत्तम शर्मा ने मंदिर में आगजनी की घटना से इनकार किया है। 🚩सोशल मीडिया पर सवाल 🚩ऐसे में लोग सवाल उठा रहे हैं कि जब मंदिर में ना पुजारी सो रहा था और ना ही उसका सहयोगी तो कैसे पता चला कि किसी ने आगजनी नहीं की। बिजली के तारों में भी छेड़छाड़ करके शॉर्ट सर्किट किया जा सकता है, क्योंकि घटना के वक्त मंदिर में कोई मौजूद नहीं था। लोगों का तर्क है कि ऐसा करके अब शांति को कदम बढ़ा रहे जम्मू-कश्मीर में माहौल बिगाड़ने वाले अराजक तत्वों की अभी भी कमी नहीं है। 🚩वहीं, मंदिर में मुस्लिम व्यक्ति को देखभाल एवं पुजारी नियुक्त करने पर सवाल उठाया है। लोगों का तर्क है कि मंदिर एक पवित्र जगह है, जहाँ प्रवेश करने पर कई तरह नियम और कायदे का पालन करना जरूरी है। इनमें सात्विक भोजन, शुद्ध आचार-व्यवहार एवं अन्य तरह पाबंदियाँ भी शामिल हैं। उनका कहना है कि गुलाम मोहम्मद को मंदिर का देखरेख करने के लिए उस दौर में रखा गया था, जब वहाँ कोई हिंदू नहीं था। 🚩लोगों ने गुलाम मोहम्मद द्वारा मंदिर में पूजा-पाठ एवं आरती का विरोध किया। इसके साथ ही वर्तमान में नियुक्त किए गए दो मुस्लिम देखरेख करने वालों पर सवाल उठाया गया है। अन्य कुछ लोगों का तर्क है कि मंदिर की देखभाल करना अलग बात है और उसमें पूजा-पाठ करना अलग बात है। इसके पीछे लोगों ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की एक घटना का भी जिक्र किया। 🚩बीएचयू में संस्कृत विभाग में डॉक्टर फिरोज की नियुक्ति होने पर छात्रों ने जमकर बवाल किया था। उन्होंने कहा था कि डॉक्टर फिरोज को कर्मकांड का क्या जानकारी होगी। इसके खिलाफ छात्रों ने धरना प्रदर्शन भी किया था। हालांकि, बीएचयू के वीसी और कुछ प्रोफेसरों ने डॉक्टर फिरोज की प्रोफेसर पद पर नियुक्ति का समर्थन किया था। स्त्रोत : ओप इंडिया 🚩लोगों का यह भी तर्क है कि जिस मुस्लिम समुदाय में मूर्ति पूजा शिर्क है, हराम है…. क्या वे उतनी पवित्रता या भाव से पूजा-पाठ या कर्मकांड को अंजाम देते होंगे या फिर सिर्फ इसे भी किसी दैनिक काम की तरह ही निपटाते होंगे। उनका तर्क है कि जिस तरह से एक गैर-मुस्लिम को कुरान आदि पढ़ने के बाद भी मौलवी आदि नहीं बनाया जा सकता, उसकी तरह हिंदू धर्म में भी गैर-हिंदू को पुजारी नहीं बनाया जाना चाहिए। 🔺 Follow on 🔺 Facebook https://www.facebook.com/SvatantraBharatOfficial/ 🔺Instagram: http://instagram.com/AzaadBharatOrg 🔺 Twitter: twitter.com/AzaadBharatOrg 🔺 Telegram: https://t.me/ojasvihindustan 🔺http://youtube.com/AzaadBharatOrg 🔺 Pinterest : 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Monday, June 10, 2024

राजा सुहेलदेव ने महमूद गजनवी वंश को ऐसा पराजित किया कि, वे 200 साल तक डरते रहें.....

राजा सुहेलदेव ने महमूद गजनवी वंश को ऐसा पराजित किया कि, वे 200 साल तक डरते रहें..... 11 June 2024 https://azaadbharat.org
🚩मुस्लिम आक्रमणकारी सालार मसूद को बहराइच (उत्तर प्रदेश) में उसकी एक लाख बीस हजार सेना सहित जहन्नुम पहुंचाने वाले राजा सुहेलदेव का जन्म श्रावस्ती के राजा त्रिलोकचंद के वंशज पासी मंगलध्वज (मोरध्वज) के घर में माघ कृष्ण 4, विक्रम संवत 1053 (सकट चतुर्थी) को हुआ था। अत्यन्त तेजस्वी होने के कारण इनका नाम सुहेलदेव (चमकदार सितारा) रखा गया। 🚩विक्रम संवत 1078 में इनका विवाह हुआ तथा पिता के देहांत के बाद वसंत पंचमी विक्रम संवत 1084 को ये राजा बने। इनके राज्य में आज के बहराइच, गोंडा, बलरामपुर, बाराबंकी, फैजाबाद तथा श्रावस्ती के अधिकांश भाग आते थे। बहराइच में बालार्क (बाल+अर्क = बाल सूर्य) मंदिर था, जिस पर सूर्य की प्रातःकालीन किरणें पड़ती थीं। मंदिर में स्थित तालाब का जल गंधकयुक्त होने के कारण कुष्ठ व चर्म रोग में लाभ करता था। अतः दूर-दूर से लोग उस कुंड में स्नान करने आते थेे। 🚩महमूद गजनवी ने भारत में अनेक राज्यों को लूटा तथा सोमनाथ सहित अनेक मंदिरों का विध्वंस किया। उसकी मृत्यु के बाद उसका बहनोई सालार साहू अपने पुत्र सालार मसूद, सैयद हुसेन गाजी, सैयद हुसेन खातिम, सैयद हुसेन हातिम, सुल्तानुल सलाहीन महमी, बढ़वानिया,सालार, सैफुद्दीन, मीर इजाउद्दीन उर्फ मीर सैयद दौलतशाह, मियां रज्जब उर्फ हठीले, सैयद इब्राहिम बारह हजारी तथा मलिक फैसल जैसे क्रूर साथियों को लेकर भारत आया। बाराबंकी के सतरिख (सप्तऋषि आश्रम) पर कब्जा कर उसने अपनी छावनी बनायी। 🚩यहां से पिता सेना का एक भाग लेकर काशी की ओर चला; पर हिन्दू वीरों ने उसे प्रारम्भ में ही मार गिराया। पुत्र मसूद अनेक क्षेत्रों को रौंदते हुए बहराइच पहुंचा। उसका इरादा बालार्क मंदिर को तोड़ना था; पर राजा सुहेलदेव भी पहले से तैयार थे। उन्होंने निकट के अनेक राजाओं के साथ उससे लोहा लिया। 🚩कुटिला नदी के तट पर हुए राजा सुहेलदेव के नेतृत्व में हुए इस धर्मयुद्ध में उनका साथ देने वाले राजाओं में प्रमुख थे रायब, रायसायब, अर्जुन, भग्गन, गंग, मकरन, शंकर, वीरबल, अजयपाल, श्रीपाल, हरकरन, हरपाल, हर, नरहर, भाखमर, रजुन्धारी, नरायन, दल्ला, नरसिंह, कल्यान आदि। वि.संवत 1091 के ज्येष्ठ मास के पहले गुरुवार के बाद पड़ने वाले रविवार (10.6.1034 ई.) को राजा सुहेलदेव ने उस आततायी का सिर धड़ से अलग कर दिया। तब से ही क्षेत्रीय जनता इस दिन चित्तौरा (बहराइच) में विजयोत्सव मनाने लगी। 🚩इस विजय के परिणामस्वरूप अगले 200 साल तक मुस्लिम हमलावरों का इस ओर आने का साहस नहीं हुआ। पिता और पुत्र के वध के लगभग 300 साल बाद दिल्ली के शासक फीरोज तुगलक ने बहराइच के बालार्क मंदिर व कुंड को नष्ट कर वहां मजार बना दी। अज्ञानवश हिन्दू लोग उसे सालार मसूद गाजी की दरगाह कहकर विजयोत्सव वाले दिन ही पूजने लगे, जबकि उसका वध स्थल चित्तौरा वहां से पांच कि.मी दूर है। 🚩कालान्तर में इसके साथ कई अंधविश्वास जुड़ गये। वह चमत्कारी तालाब तो नष्ट हो गया था; पर एक छोटे पोखर में ही लोग चर्म रोगों से मुक्ति के लिए डुबकी लगाने लगे। ऐसे ही अंधों को आंख और निःसंतानों को संतान मिलने की बातें होने लगीं। हिन्दुओं की इसी मूर्खता को देखकर तुलसी बाबा ने कहा था - 🚩लही आंख कब आंधरो, बांझ पूत कब जाय कब कोढ़ी काया लही, जग बहराइच जाय।। 🚩उ०प्र० की राजधानी लखनऊ में राजा सुहेलदेव की वीर वेष में घोड़े पर सवार मनमोहक प्रतिमा स्थापित है। 🔺 Follow on 🔺 Facebook https://www.facebook.com/SvatantraBharatOfficial/ 🔺Instagram: http://instagram.com/AzaadBharatOrg 🔺 Twitter: twitter.com/AzaadBharatOrg 🔺 Telegram: https://t.me/ojasvihindustan 🔺http://youtube.com/AzaadBharatOrg 🔺 Pinterest : https://goo.gl/o4z4BJ

Sunday, June 9, 2024

वीर छत्रसाल ने मुगल साम्राज्य को इस तरह से किया था खत्म

वीर छत्रसाल ने मुगल साम्राज्य को इस तरह से किया था खत्म 10 June 2024 https://azaadbharat.org
🚩झाँसी के आसपास उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश की विशाल सीमाओं में फैली बुन्देलखण्ड की वीर भूमि में ज्येष्ठ शुक्ल 3,विक्रम संवत 1706 (3/6/1649) को चम्पतराय और लालकुँवर के घर में वीर छत्रसाल का जन्म हुआ था। चम्पतराय सदा अपने क्षेत्र से मुगलों को खदेड़ने के प्रयास में लगे रहते थे। अतः छत्रसाल पर भी बचपन से इसी प्रकार के संस्कार पड़ गये। 🚩छत्रसाल भारत की मुक्ति चाहते थे- 🚩शाहजहां के कुशासन की प्रतिक्रिया स्वरूप छत्रसाल का जन्म हुआ। जब उस महायोद्घा ने देखा कि लोग एक रोटी के लिए भी अपना जीवन बेच देना चाहते हैं, तो यह कैसे कहा जा सकता है कि छत्रसाल जैसे देशभक्तों के हृदयों में आग न लगी हो ? आग लगी और इतनी तेज लगी कि संपूर्ण तंत्र को ही भस्मीभूत करने के लिए प्रचण्ड हो उठी। 🚩इसी तेज पुंज छत्रसाल को राजा सुजानसिंह की मृत्यु के उपरांत उसके भाई इंद्रमणि ने ओरछा की गद्दी संभालने के पश्चात 1674-1676 के मध्य अपनी सहायता देना बंद कर दिया, तो इस शासक के बहुत बड़े क्षेत्र को जीतकर छत्रसाल ने अपने राज्य में मिला लिया। तब इंद्रमणि पर छत्रसाल ने अपना शिकंजा कसना आरंभ किया तो वह भयभीत हो गया और उसने शीघ्र ही छत्रसाल के साथ संधि कर ली। उसने छत्रसाल को मुगलों के विरूद्घ सहायता देने का भी वचन दिया। 🚩तहवर खां को किया परास्त- 🚩1679 ई. में औरंगजेब ने अपने चिरशत्रु शत्रुसाल (छत्रसाल) का मान मर्दन करने के लिए अपने बहुत ही विश्वसनीय योद्घा तहवर खां को विशाल सेना के साथ भेजा। छत्रसाल इस समय संडवा बाजने में अपनी स्वयं की वर यात्रा लेकर आये हुए थे। उस समय उनकी भंवरी पड़ रही थी, तो तहवर खां ने उसी समय उन्हें घेर लिया। छत्रसाल के विश्वसनीय साथी बलदीवान ने तहवर खां से टक्कर ली। भंवरी पड़ चुकने पर छत्रसाल ने तहवरखां की सेना के पृष्ठ भाग पर आक्रमण कर दिया और जब तक तहवरखां इस सच से परिचित होता कि उसकी सेना के पृृष्ठ भाग पर मार करने वाला योद्घा ही छत्रसाल है, तब तक छत्रसाल ने तहवरखां को भारी क्षति पहुंचा दी थी। 🚩जब तहवरखां अपनी सेना के पृष्ठ भाग की रक्षार्थ उस ओर चला तो बलदीवान भी उसके पीछे-पीछे चल दिया। रामनगर की सीमा में छत्रसाल की सेना से तहवरखां का सामना हो गया। अब सामने से छत्रसाल की सेना और पीछे से बल दीवान की सेना ने तहवरखां की सेना को मारना आरंभ कर दिया। अंत में तहवरखां वीरगढ़ की मुगल सैनिक चौकी की ओर भाग लिया। पर यह क्या? उसे तो छत्रसाल के सैनिक पहले ही नष्ट कर चुके थे। अब तो वह और भी कठिनाई में फंस गया। वीरगढ़ में उसे ऐसा लगा कि छत्रसाल की सेना मुगलों के भय से भागती फिर रही है तो उसने छत्रसाल का पीछा करना चाहा। उसे सूचना मिली कि छत्रसाल टोकरी की पहाड़ी पर छुपा है। तब वह उसी ओर चल दिया। उधर बलदीवान वीरगढ़ के पास छिपा सारी वस्तुस्थिति पर दृष्टि गढ़ाये बैठा था, उसे जैसे ही ज्ञात हुआ कि तहवरखां टोकरी की ओर बढ़ रहा है तो वह भी तुरंत उसी ओर चल दिया। छत्रसाल और बलदीवान शत्रु को इसी पहाड़ी पर ले आना चाहते थे क्योंकि यहां शत्रु को निर्णायक रूप से परास्त किया जा सकता था। 🚩यहां से बलदीवान ने एक सैनिक टुकड़ी छत्रसाल की सहायतार्थ भेजी। उसने स्वयं ने मुगलों को ऊपर न चढ़ने देने के लिए उनसे संघर्ष आरंभ कर दिया। यहां पर छत्रसाल की सेना के हरिकृष्ण मिश्र नंदन छीपी और कृपाराम जैसे कई वीरों ने अपना बलिदान दिया। पर उनका यह बलिदान व्यर्थ नहीं गया । कुछ ही समयोपरांत मुगल सेना भागने लगी। हमीरपुर के पास उस सेना का सामना छत्रसाल से हुआ तो तहवरखां को निर्णायक रूप से परास्त कर दिया गया। तहवरखां को अपने स्वामी औरंगजेब को मुंह दिखाने का भी साहस नहीं हुआ। 🚩कालिंजर विजय- 🚩मुगल सत्ता व शासकों के पापों का प्रतिशोध लेता छत्रसाल अपनी नवविवाहिता पत्नी के साथ कालिंजर की ओर बढ़ा तो वहां के दुर्ग के मुगल दुर्ग रक्षक करम इलाही के हाथ-पांव फूल गये । कालिंजर का दुर्ग बहुत महत्वपूर्ण था । छत्रसाल ने 18 दिन के घेराव और संघर्ष के पश्चात अंत में इसे भी अपने अधिकार में ले ही लिया । दुर्ग पर छत्रसाल का भगवाध्वज फहर गया । इस युद्घ में बहुत से बुंदेले वीरों का बलिदान हुआ, पर उस बात की चिंता किसी को नहीं थी । 🚩कालिंजर विजय की प्रसन्नता में बलिदान सार्थक हो उठे । सभी ने अपने वीरगति प्राप्त साथियों के बलिदानों को नमन किया और उनके द्वारा दिखाये गये मार्ग पर चलने की प्रतिज्ञा भी की । यहीं से छत्रसाल को लोगों ने ‘महाराजा’ कहना आरंभ किया । ये कालिंजर की महत्ता का ही प्रमाण है कि लोग अब छत्रसाल को ‘महाराजा’ कहने में गौरव अनुभव करने लगे। छत्रसाल महाराजा के इस सफल प्रयास से मुगल सत्ता को उस समय कितनी ठेस पहुंची होगी?-यह सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है । 🚩छत्रसाल को घेरने की तैयारी होने लगी- 🚩अब छत्रसाल की ख्याति इतनी बढ़ चुकी थी कि उनसे ईर्ष्या करने वाले या शत्रुता मानने वाले मुगल शासकों तथा उनके चाटुकार देशद्रोही ‘जयचंदों’ ने उन्हें घेरने का प्रयास करना आरंभ कर दिया । औरंगजेब के लिए यह अत्यंत लज्जाजनक स्थिति थी कि छत्रसाल जैसा एक युवक उसी की सेना से निकलकर उसी के सामने छाती तानकर खड़ा हो जाए और मिट्टी में से रातों रात एक साम्राज्य खड़ा करने में सफल हो जाए। विशेषत: तब जबकि यह साम्राज्य उसी के साम्राज्य को छिन्न-भिन्न करके तैयार किया जा रहा था । 🙏🏻छत्रसाल ने भी स्थिति को समझ लिया था। डा. भगवानदास गुप्त ‘महाराजा छत्रसाल बुंदेला’ में लिखते हैं कि-”छत्रसाल ने ऐसी परिस्थितियों में दूरदृष्टि का परिचय देते हुए औरंगजेब के पास अपने कार्यों की क्षमायाचना का एक पत्र लिखा। वास्तव में यह पत्र उन्होंने मुगलों को धोखे में डालने के लिए नाटकमात्र किया था। जिससे मुगल कुछ समय के लिए भ्रांति में रह जाएं और उन्हें अपनी तैयारियां करने का अवसर मिल जाए। क्योंकि छत्रसाल यह जान गये थे कि अब जो भी युद्घ होगा वह बड़े स्तर पर होगा। बुंदेलखण्ड की मिट्टी में रहकर किसी के लिए यह संभव ही नही था कि वह वहां स्वतंत्रता के विरूद्घ आचरण करे। इस मिट्टी में स्वतंत्रता की गंध आती थी और उस सौंधी सौंधी गंध को पाकर लोग वीरता के रस से भर जाते थे। छत्रसाल के साथ भी ऐसा ही होता था।” 🚩स्वामी प्राणनाथ और छत्रसाल- 🚩स्वामी प्राणनाथ छत्रसाल के आध्यात्मिक गुरू थे-उन्होंने अपने प्रिय शिष्य के भीतर व्याप्त स्वतंत्रता और स्वराज्य के अमिट संस्कारों को और भी प्रखर कर दिया और उन्हें गतिशील बनाकर इस प्रकार सक्रिय किया कि संपूर्ण बुंदेलखण्ड ही नहीं, अपितु तत्कालीन हिंदू समाज भी उनसे प्राण ऊर्जा प्राप्त करने लगा। स्वामी प्राणनाथ और छत्रसाल का संबंध वैसा ही बन गया जैसा कि छत्रपति शिवाजी महाराज और समर्थ गुरू रामदास का संबंध था। स्वामी प्राणनाथ का उस समय हिन्दू समाज में अच्छा सम्मान था। 🚩साम्राज्य निर्माता छत्रसाल- 🚩इसके पश्चात छत्रसाल ने जलालखां नामक एक सरदार का सामना किया और उसे बेतवा के समीप परास्त कर उससे 100 अरबी घोड़े, 70 ऊंट तथा 13 तोपें प्राप्त कीं । इसी प्रकार जब औरंगजेब द्वारा बारह हजार घुड़सवारों की सेना अनवर खां के नेतृत्व में 1679 ई. में भेजी गयी तो उसे भी छत्रसाल ने परास्त कर दिया । 🚩इस प्रकार की अनेकों विजयों से तत्कालीन भारत के राजनीतिक गगन मंडल पर छत्रसाल ने जिस वीरता और साहस के साथ अपना साम्राज्य खड़ा किया उसने उनके नाम को इतिहास के स्वर्णिम पृष्ठों पर सदा-सदा के लिए अमर कर दिया । उनका पुरूषार्थ भारत के इतिहास के पृष्ठों को उनकी कान्ति से इस प्रकार महिमामंडित और गौरवान्वित कर गया कि लोग आज तक उन्हें सम्मान के साथ स्मरण करते हैं । उसका प्रयास हिंदू राष्ट्र निर्माण की दिशा में उठाया गया ठोस और महत्वपूर्ण कार्य था । दुर्भाग्य हमारा था कि हम ऐसे प्रयासों को निरंतर पीढ़ी दर पीढ़ी केवल इसीलिए अनवरतता या नैरतंर्य प्रदान नही कर पाये कि छत्रसाल जैसे राष्ट्रनिर्माताओं के चले जाने पर हमारे भीतर से ही कुछ ‘जयचंद’ उठते थे और उनके प्रयासों को धक्का देने के लिए सचेष्ट हो उठते थे । 🚩यह सच है कि अपने काल के बड़े-बड़े शत्रुओं को समाप्त करना और महादुष्ट और निर्मम शासकों की नाक तले साम्राज्य खड़ा कर राष्ट्र निर्माण का कार्य संपन्न करना बहुत बड़ा कार्य था। जिसे शत्रु के अत्याचारों से मुक्त होने की दिशा में उठाया गया वंदनीय कृत्य ही माना जाना चाहिए । 🚩औरंगजेब की नींद उड़ा दी थी छत्रसाल ने- 🚩औरंगजेब की रातों की नींद छत्रसाल के कारण उड़ चुकी थी। वह जितने प्रयास करता था कि छत्रसाल का अंत कर दिया जाए-छत्रसाल था कि उतना ही बलशाली होकर उभरता था। 🚩शिवाजी महाराज की मृत्यु के उपरांत 14 अप्रैल 1680 ई. में औरंगजेब ने मिर्जा सदरूद्दीन (धमौनी का सूबेदार) को छत्रसाल को बंदी बनाने के लिए भेजा। छत्रसाल इस समय अपने गुरू छत्रपति शिवाजी की मृत्यु (4 अप्रैल 1680 ई.) से आहत थे। पर वह तलवार हाथ में लेकर युद्घ के लिए सूचना मिलते ही चल दिये। 🚩चिल्गा नौरंगाबाद (महोबा राठ के बीच) में दोनों पक्षों का आमना-सामना हो गया। छत्रसाल ने सदरूद्दीन की सेना के अग्रिम भाग पर इतनी तीव्रता से प्रहार किया कि वह जितनी शीघ्रता से आगे बढ़ रही थी उतनी ही शीघ्रता से पीछे भागने लगी। इससे सदरूद्दीन की सेना में खलबली मच गयी। सदरूद्दीन भी छत्रसाल की सेना के आक्रमण से संभल नही पाया और ना ही वह अपने भागते सैनिकों को कुछ समझा पाया कि भागिये मत, रूकिये और शत्रु का सामना वीरता से कीजिए। उसको स्वयं को भी भय लगने लगा। 🚩सदरूद्दीन को भी पराजित होना पड़ा- 🚩इस युद्घ में परशुराम सोलंकी जैसे अनेकों हिंदू वीरों ने अपनी अप्रतिम वीरता का प्रदर्शन किया और मुगल सेना को भागने के लिए विवश कर दिया। पर सदरूद्दीन ने अपनी सेना को ललकारा और उसे कुछ समय पश्चात वह रोकने में सफल रहा। फिर युद्घ आरंभ हुआ। इस बार बुंदेले वीर छत्रसाल को मुगल सेना ने घेर लिया। पर वह वीर अपनी तलवार से शत्रु को काटता हुआ धीरे-धीरे पीछे हटता गया। वह बड़ी सावधानी से और योजनाबद्घ ढंग से पीछे हट रहा था और शत्रुसेना को अपने साथी परशुराम सोलंकी की सेना की जद में ले आने में सफल हो गया, जो पहले से ही छिपी बैठी थी। यद्यपि मुगल सैनिक छत्रसाल के पीछे हटने को ये मान बैठे थे कि वह अब हारने ही वाली है। 🚩परशुराम के सैनिक भूखे शेर की भांति मुगलों पर टूट पड़े। युद्घ का परिदृश्य ही बदल गया , सदरूद्दीन को अब हिंदू वीरों की वीरता के साक्षात दर्शन होने लगे। वीर बुंदेले अपना बलिदान दे रहे थे और बड़ी संख्या में शत्रु के शीश उतार-उतार कर मातृभूमि के ऋण से उऋण हो रहे थे। परशुराम सोलंकी, नारायणदास, अजीतराय, बालकृष्ण, गंगाराम चौबे आदि हिंदू योद्घाओं ने मुगल सेना को काट-काटकर धरती पर शवों का ढेर लगा दिया। अपनी पराजय को आसन्न देख सदरूद्दीन मियां ने अपने हाथी से उतरकर एक घोड़े पर सवार होकर भागने का प्रयास किया। जिसे छत्रसाल ने देख लिया। वह तुरंत उस ओर लपके और सदरूद्दीन को आगे जाकर घेर लिया। सदरूद्दीन के बहुत से सैनिकों ने उसका साथ दिया। छत्रसाल की सेना के नायक गरीबदास ने यहां भयंकर रक्तपात किया और अपना बलिदान दिया। पर सिर कटे गरीबदास ने भी कई मुगलों को काटकर वीरगति प्राप्त की। मुगल सेना का फौजदार बागीदास सिर विहीन गरीब दास की तलवार का ही शिकार हुआ था। गरीबदास की स्थिति को देखकर छत्रसाल और उनके साथियों ने और भी अधिक वीरता से युद्घ करना आरंभ कर दिया। 🚩अंत में सदरूद्दीन क्षमायाचना की मुद्रा में खड़ा हो गया। उसने छत्रसाल को चौथ देने का वचन भी दिया। छत्रसाल ने तो उसे छोड़ दिया पर बादशाह औरंगजेब ने उसे भरे दरबार में बुलाकर अपमानित किया और उसके सारे पद एवं अधिकारों से उसे विहीन कर दिया। 🚩हमीद खां को भी किया परास्त- 🚩इसी प्रकार कुछ कालोपरांत छत्रसाल को एक हमीदखां नामक मुगल सेनापति के आक्रमण की जानकारी मिली। हमीदखां ने चित्रकूट की ओर से आक्रमण किया था और वह वहां के लोगों पर अत्याचार करने लगा था। तब उस मुगल को समाप्त करने के लिए छत्रसाल ने बलदीवान को 500 सैनिकों के साथ उधर भेजा। बलदीवान ने उस शत्रु पर जाते ही प्रबल प्रहार कर दिया और उसे प्राण बचाकर भागने के लिए विवश कर दिया। बलदीवान ने हमीद खां का पीछा किया और उसके द्वारा महोबा के जागीरदार को छत्रसाल के विरूद्घ उकसाने की सूचना पाकर उस जागीरदार को भी दंडित किया। यहां से बचकर भागा हमीद खां बरहटरा में जाकर लूटमार करने लगा तो वहां छत्रसाल के परमहितैषी कुंवरसेन धंधेरे ने हमीद खां को निर्णायक रूप से परास्त कर भागने के लिए विवश कर दिया। 🚩मुगल साम्राज्य हो गया छिन्न-भिन्न- 🚩हम यहां पर स्पष्ट कर देना चाहते हैं कि औरंगजेब भारतवर्ष में ऐसा अंतिम मुस्लिम बादशाह था-जिसके साम्राज्य की सीमाएं उसके जीवनकाल में भी तेजी से सिमटती चली गयीं। उसकी मृत्यु के पश्चात उसका साम्राज्य बड़ी तेजी से छिन्न-भिन्न हो गया था, और फिर कभी उन सीमाओं तक किसी भी मुगल बादशाह को राज्य करने का अवसर नही मिला। मुगलों के साम्राज्य को इस प्रकार छिन्न-भिन्न करने में छत्रसाल जैसे महायोद्घाओं का अप्रतिम योगदान था। हमें चाहे सन 1857 तक चले मुगल वंश के शासकों के नाम गिनवाने के लिए कितना ही विवश किया जाए पर सत्य तो यही है कि औरंगजेब की मृत्यु (1707 ई.) के पश्चात ही भारत से मुगल साम्राज्य समाप्त हो गया था। उसकी मृत्यु के पश्चात भारतीय स्वातंत्रय समर की दिशा और दशा में परिवर्तन आ गया था। जिसका उल्लेख हम यथासमय और यथास्थान करेंगे। 🚩यहां इतना स्पष्ट कर देना समीचीन होगा कि औरंगजेब अपने जीवन में बुंदेले वीरों के पराक्रमी स्वभाव से इतना भयभीत रहा कि वह कभी स्वयं बुंदेलखण्ड आने का साहस नही कर सका। वह दूर से ही दिल्ली की रक्षा करता रहा और उसकी योजना मात्र इतनी रही कि चाहे जो कुछ हो जाए और चाहे जितने बलिदान देने पड़ जाएं पर छत्रसाल को दिल्ली से दूर बुंदेलखण्ड में ही युद्घों में उलझाये रखा जाए और उससे ‘दिल्ली दूर’ रखी जाए। औरंगजेब जैसे बादशाह की इस योजना को जितना समझा जाएगा उतना ही हम छत्रसाल की वीरता को समझने में सफल होंगे। इतिहास के अध्ययन का यह नियम है कि अपने चरित नायक को समझने के लिए आप उसके शत्रु पक्ष की चाल को समझें और देखें कि आपके चरितनायक ने उन चालों को किस प्रकार निरर्थक सिद्घ किया या उनका सामना किया या शत्रु पक्ष को दुर्बल किया? निश्चय ही हम ऐसा समझकर छत्रसाल के प्रति कृतज्ञता से भर जाएंगे। – लेखक : राकेश कुमार आर्य 🚩हमारा दुर्भाग्य है कि हमारे ही देश में लुटेरे, आक्रमणकारी, बलात्कारी, क्रूर मुगलों एवं अंग्रेजो इतिहास तो पढ़ाया जाता है, लेकिन छत्रसाल जैसे महान वीरों का नहीं पढ़ाया जाता है । वर्तमान सरकार से आशा है कि सहीं इतिहास पढ़ाया जाएगा । 🚩भारत के ऐसे ही वीर सपूतों के लिए किसीने कहा है : तुम अग्नि की भीषण लपट, जलते हुए अंगार हो । तुम चंचला की द्युति चपल, तीखी प्रखर असिधार हो ।। तुम खौलती जलनिधि-लहर, गतिमय पवन उनचास हो । तुम राष्ट्र के इतिहास हो, तुम क्रांति की आख्यायिका ।। भैरव प्रलय के गान हो, तुम इन्द्र के दुर्दम्य पवि । तुम चिर अमर बलिदान हो, तुम कालिका के कोप हो ।। पशुपति रुद्र के भू्रलास हो, तुम राष्ट्र के इतिहास हो । 🔺 Follow on 🔺 Facebook https://www.facebook.com/SvatantraBharatOfficial/ 🔺Instagram: http://instagram.com/AzaadBharatOrg 🔺 Twitter: twitter.com/AzaadBharatOrg 🔺 Telegram: https://t.me/ojasvihindustan 🔺http://youtube.com/AzaadBharatOrg 🔺 Pinterest : https://goo.gl/o4z4BJ

Saturday, June 8, 2024

बच्चा पैदा करने के लिए मिली पैरोल, बुजुर्ग संत को बीमारी की अवस्था में भी जेल...

बच्चा पैदा करने के लिए मिली पेरोल, बुजुर्ग संत को बीमारी की अवस्था में भी जेल 9 June 2024 https://azaadbharat.org
🚩भारत का कानून जिनके हाथ में उनकि मर्जी चाहे किसी को भी रिहा कर दे और मर्जी चाहे उसे जीवनभर जेल में सड़ा दे फिर चाहे वो निर्दोष है, चाहे अपराधी- उसपर ध्यान ज्यादा नहीं दिया जाता है। काफी समय से देख रहे हैं कि एक जैसे मामलों में भी एक अदालत अलग फैसला सुना रही है तो दूसरी अलग फैसला सुना रही है इससे साफ होता है की कानून को अपने ढंग से चलाया जा रहा है, इसलिए आज जनता का भरोसा न्याय पालिका से उठता जा रहा हैं। 🚩आपका बता दे की कर्नाटक उच्च न्यायालय ने हत्या के दोष में आजीवन कारावास की सजा काट रहे 28 वर्षीय आनंद को संतान पैदा करने के लिए 30 दिन की परोल दी है। कैदी की 31 वर्षीय पत्नी ने संतान प्राप्ति के अपने अधिकार और अपनी सास की स्वास्थ्य स्थिति के आधार पर अपने पति की रिहाई की माँग के लिए याचिका दाखिल की थी। 🚩हाई कोर्ट के न्यायाधीश एसआर कृष्ण कुमार ने कैदी को नजदीकी थाने में हर हफ्ते हाजिरी देने का भी आदेश दिया। न्यायाधीश ने आनंद के आचरण के आधार पर पत्नी को परोल की अवधि बढ़ाने का अनुरोध करने की भी अनुमति दी। पत्नी ने याचिका में कहा कि उसे संतान के अधिकार से वंचित किया जा रहा है। उसकी सास बुजुर्ग और बीमार हैं। वह अपने पोते-पोतियों के साथ समय बिताना चाहती थी। दरअसल, कोलार निवासी आनंद को हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया गया था और साल 2019 में जिला सत्र न्यायालय ने उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। उसने इस फैसले को कर्नाटक उच्च न्यायालय में चुनौती दी, जिसने उसकी सजा को घटाकर 10 साल कर दिया। इस समय तक आनंद पहले ही पाँच साल जेल में बिता चुका था। 🚩इससे पहले 5 अप्रैल से 20 अप्रैल 2023 तक की पिछली परोल के दौरान आनंद ने याचिकाकर्ता से विवाह किया था। शादी के बाद पत्नी ने अपने पति के साथ अधिक समय बिताने के लिए 60 दिन की विस्तारित पैरोल माँगी। आनंद के जेल लौटने के बाद उसने जेल अधिकारियों से 90 दिन की पैरोल माँगी, जिसे अस्वीकार कर दिया गया था। 🚩फिर उसने गर्भधारण करने के उद्देश्य से कर्नाटक उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। अदालत ने अब संभावित विस्तार के साथ 30 दिन की पैरोल मंजूर की है। हाईकोर्ट के निर्देशानुसार परप्पना अग्रहारा केंद्रीय कारागार के जेल अधीक्षक आनंद को 5 जून से 4 जुलाई तक रिहा करेंगे। इस बार उसने बच्चा पैदा करने के अपने अधिकार के तहत अपने पति के लिए यह परोल माँगी है। 🚩कोर्ट हत्या केस में शादी करने और बच्चे पैदा करने के लिए जमानत दे सकती है तो फिर कई निदोष जेल में है उनको भी रिहा करना चाहिए। 🚩नेता, अभिनेता, आतंकवादियों जैसे को उनका मौलिक अधिकार बताकर जमानत दी जाती है तो फिर स्वामी विवेकानंदजी के 100 साल बाद विश्व धर्म परिषद में भारत का प्रतिनिधित्व करने वाले, बच्चों को दिव्य संस्कार देने हेतु 17000 बाल संस्कार खोलने वाले, वेलेंटाइन डे की जगह मातृ-पितृ पूजन व क्रिसमस की जगह तुलसी पूजन शुरू करवाने वाले, वैदिक गुरुकुल खोलने वाले, करोड़ों लोगों को व्यसन मुक्त करवा उनके हृदय में सनातन संस्कृति की लौ जगाने वाले, धर्मांतरण रोकने वाले 88 वर्षीय हिंदू संत श्री आशारामजी बापू को एक निहायत ही झूठे और बेबुनियाद केस में 12 साल से कारावास रखा गया हैं, कारावास में रहते हुए उनके शरीर में कई भयंकर बीमारियां हो गई हैं। 🚩जनता की मांग है की निर्दोष हिंदू संत आशाराम बापू को तुरंत रिहा कर देना चाहिए। 🔺 Follow on 🔺 Facebook https://www.facebook.com/SvatantraBharatOfficial/ 🔺Instagram: http://instagram.com/AzaadBharatOrg 🔺 Twitter: twitter.com/AzaadBharatOrg 🔺 Telegram: https://t.me/ojasvihindustan 🔺http://youtube.com/AzaadBharatOrg 🔺 Pinterest : https://goo.gl/o4z4BJ