Monday, June 24, 2024
पूजा करते समय...आखिर क्यों ढका जाता है सिर...
पूजा करते समय...आखिर क्यों ढका जाता है सिर....❓
25 June 2024
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🚩हिंदू धर्म विशेष प्रयोजन में विशेष वस्त्र धारण का महत्व है। अगर पूजा पाठ या किसी मांगलिक कार्य में जाते हैं तो सबसे पहले हम अपने सिर ढकते हैं। स्त्रियां अपने साड़ी के पल्लू / दुपट्टे से, पुरुष रुमाल/गमछे या पगड़ी का इस्तेमाल करते हैं। हालांकि सिर ढकना अपने से बड़ों को सम्मान देने का भी संकेत है। सिर ढकना हमारे ग्रहों से भी जुड़ा हुआ है। सिर ढकने से शरीर को कई तरह के लाभ मिलते हैं और साथ ही साथ सकारात्मक ऊर्जा पैदा होती है।
🚩बृहस्पति ग्रह की शक्ति को बढ़ाता है...
🚩सिर का संबंध हमारे मंगल ग्रह से होता है। मंगल ग्रह हमारे बहुत ही गतिविधियों से जुड़ा है। सामाजिक जीवन में रहने वालों के बीच एक प्रतिस्पर्धा रहती है।
🚩राहु ग्रह से बुरे प्रभाव का असर होता है। ऐसे में एक छोटा सा नियम और उपाय सिर को ढकने का जो बृहस्पति से जोड़कर देखा जाता है इससे बृहस्पति की शक्ति भी बढ़ती है।
🚩बृहस्पति एक सात्विक ग्रह है यही वजह है कि किसी भी मांगलिक कार्य में सिर ढकना शुभ होता है और सीधे बृहस्पति ग्रह को मजबूत करता है। सिर ढकने से बृहस्पति की ऊर्जा सक्रिय होती है जिससे मानव शरीर के सभी ग्रहों की शक्तियां बढ़ जाती हैं। जिससे हमारी आत्म शक्ति भी बढ़ती है, सात्विक भाव का मन में प्रवेश होने से मन में अहंकार, बुरे विचार दूर हो जाते हैं।
🚩सिर ढकने की प्रथा हमारी पुरानी परंपरा से चली आ रही है अपने से बड़ों को सम्मान देने का एक तरीका भी इसे माना जाता है। माना जाता है कि माता लक्ष्मी भगवान विष्णु के पैर दबाते समय सदैव अपने सिर को ढक कर रखती हैं इसलिए इसका संबंध मां लक्ष्मी से भी जोड़ा जाता है।
🚩नकारात्मक ऊर्जा होती है दूर...
🚩घर हो या बाहर नकारात्मक ऊर्जा से सभी बचना चाहते हैं। सभी अपने घर या अपने आसपास के वातावरण को सकारात्मक बनाए रखना चाहते हैं। इससे सकारात्मक ऊर्जा बढ़ती है। सिर ढकने से बृहस्पति की उर्जा शरीर को आती हैं जिससे राहु की दशा का प्रभाव कुछ कम हो जाता है। राहु को मैटेरियल वर्ल्ड से जोड़कर देखा जाता है जिससे भौतिक जीवन हमेशा सुखदाई होता है।
🌹सिर ढकने के लाभ...
🚩सभी धर्मों की स्त्रियां दुपट्टा या साड़ी के पल्लू से अपना सिर ढंककर रखती हैं। सिर ढंकना सम्मान सूचक भी माना जाता है। इसके वैज्ञानिक कारण भी है। सिर मनुष्य के अंगों में सबसे संवेदनशील स्थान होता है।
🚩ब्रह्मरंध्र सिर के बीचों बीच स्थित होता है। मौसम का मामूली से परिवर्तन के दुष्प्रभाव ब्रह्मरंध्र के भाग से शरीर के अन्य अंगों में आते हैं। इसके अलावा आकाशीय विद्युतीय तरंगे खुले सिर वाले व्यक्तियों के भीतर प्रवेश कर क्रोध, सिर दर्द, आंखों में कमजोरी आदि रोगों को जन्म देती है।
🚩सिर के बालों में रोग फैलाने वाले कीटाणु आसानी से चिपक जाते हैं, क्योंकि बालों की चुंबकीय शक्ति उन्हें आकर्षित करती है। रोग फैलाने वाले यह कीटाणु बालों से शरीर के भीतर प्रवेश कर जाते हैं। जिससे व्यक्ति रोगी को रोगी बनाते हैं। इसीलिए साफ, पगड़ी और अन्य साधनों से सिर ढंकने पर कान भी ढंक जाते हैं। जिससे ठंडी और गर्म हवा कान के द्वारा शरीर में प्रवेश नहीं कर पाती। कई रोगों का इससे बचाव हो जाता है।
🚩सिर ढंकने से आज का जो सबसे गंभीर रोग है गंजापन, बाल झडऩा और डेंड्रफ से आसानी से बचा जा सकता है। आज भी हिंदू धर्म में परिवार में किसी की मृत्यु पर उसके संबंधियों का मुंडन किया जाता है। ताकि मृतक शरीर से निकलने वाले रोगाणु जो उनके बालों में चिपके रहते हैं। वह नष्ट हो जाए। स्त्रियां बालों को पल्लू से ढंके रहती है। इसलिए वह रोगाणु से बच पाती है।
🚩नवजात शिशु का भी पहले ही वर्ष में इसलिए मुंडन किया जाता है ताकि गर्भ के अंदर की जो गंदगी उसके बालों में चिपकी है वह निकल जाए। मुंडन की यह प्रक्रिया अलग अलग धर्मों में किसी न किसी रूप में है।
🚩पौराणिक कथाओं में भी नायक, उपनायक तथा खलनायक भी सिर को ढंकने के लिए मुकुट पहनते थे। यही कारण है कि हमारी परंपरा में सिर को ढकना स्त्री और पुरुषों सबके लिए आवश्यक किया गया था। इसके बाद धीरे धीरे समाज की यह परंपरा बड़े लोगों को या भगवान को सम्मान देने का तरीका बन गई।
🚩इसका एक कारण यह भी है कि सिर के मध्य में सहस्त्रारार चक्र होता है। पूजा के समय इसे ढककर रखने से मन एकाग्र बना रहता है।
🚩हिंदु धर्म की ऐसी मान्यता है कि हमारे शरीर में 10 द्वार होते हैं, दो नासिका, दो आंख, दो कान, एक मुंह, दो गुप्तांग और दशवां द्वार होता है सिर के मध्य भाग में जिसे दशम द्वार कहा जाता है।
🚩सभी 10 द्वारों में दशम द्वार सबसे अहम है। ऐसी मान्यता है कि दशम द्वार के माध्यम से ही हम परमात्मा से साक्षात्कार कर पाते हैं। इसी द्वार से शिशु के शरीर में आत्मा प्रवेश करती है। किसी भी नवजात शिशु के सिर पर हाथ रखकर दशम द्वार का अनुभव किया जा सकता है। नवजात शिशु के सिर पर एक भाग अत्यंत कोमल रहता है, वही दशम द्वार है जो बच्चे के बढऩे के साथ साथ थोड़ा कठोर होता जाता है।
🚩परमात्मा के साक्षात्कार के लिए व्यक्ति के बड़े होने पर कठोर हो चुके दशम द्वार को खोलना अतिआवश्यक है और यह द्वार आध्यात्मिक प्रयासों से ही खोला जा सकता है। इसका संबंध सीधे मन से होता है। मन बहुत ही चंचल स्वभाव का होता है जिससे मनुष्य परमात्मा में ध्यान आसानी नहीं लगा पाता। मन को नियंत्रित करने के लिए ही दशम द्वार ढंककर रखा जाता है ताकि हमारा मन अन्यत्र ना भटके और भगवान में ध्यान लग सके।
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Sunday, June 23, 2024
हिन्दू धर्म 👉 कौन थे 12 आदित्य जानिए….....
हिन्दू धर्म 👉 कौन थे 12 आदित्य जानिए….....
24 June 2024
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🚩देवताओं का कुल:--
🚩 12 आदित्य, 8 वसु, 11 रुद्र और इन्द्र व प्रजापति को मिलाकर कुल 33 देवता होते हैं। कुछ विद्वान इन्द्र और प्रजापति की जगह 2 अश्विनी कुमारों को रखते हैं। प्रजापति ही ब्रह्मा हैं। 12 आदित्यों में से 1 विष्णु हैं और 11 रुद्रों में से 1 शिव हैं। उक्त सभी देवताओं को परमेश्वर ने अलग अलग कार्य सौंप रखे हैं। इन सभी देवताओं की कथाओं पर शोध करने की जरूरत है।
🚩जिस तरह देवता 33 हैं उसी तरह दैत्यों, दानवों, गंधर्वों, नागों आदि की गणना भी की गई है। देवताओं के गुरु बृहस्पति हैं, जो हिन्दू धर्म के संस्थापक 4 ऋषियों में से एक अंगिरा के पुत्र हैं। बृहस्पति के पुत्र कच थे जिन्होंने शुक्राचार्य से संजीवनी विद्या सीखी। शुक्राचार्य दैत्यों (असुरों) के गुरु हैं। भृगु ऋषि तथा हिरण्यकशिपु की पुत्री दिव्या के पुत्र शुक्राचार्य की कन्या का नाम देवयानी तथा पुत्र का नाम शंद और अमर्क था। देवयानी ने ययाति से विवाह किया था।
🚩ऋषि कश्यप की पत्नी अदिति से जन्मे पुत्रों को आदित्य कहा गया है। वेदों में जहां अदिति के पुत्रों को आदित्य कहा गया है, वहीं सूर्य को भी आदित्य कहा गया है। वैदिक या आर्य लोग दोनों की ही स्तुति करते थे। इसका यह मतलब नहीं कि आदित्य ही सूर्य है या सूर्य ही आदित्य है। हालांकि आदित्यों को सौर देवताओं में शामिल किया गया है और उन्हें सौर मंडल का कार्य सौंपा गया है।
🚩12 आदित्य देव के अलग अलग नाम: ये कश्यप ऋषि की दूसरी पत्नी अदिति से उत्पन्न 12 पुत्र हैं। ये 12 हैं: अंशुमान, अर्यमन, इन्द्र, त्वष्टा, धातु, पर्जन्य, पूषा, भग, मित्र, वरुण, विवस्वान और विष्णु। इन्हीं पर वर्ष के 12 मास नियुक्त हैं।
🚩पुराणों में इनके नाम इस तरह मिलते हैं: धाता, मित्र, अर्यमा, शुक्र, वरुण, अंश, भग, विवस्वान, पूषा, सविता, त्वष्टा एवं विष्णु। कई जगह इनके नाम हैं: इन्द्र, धाता, पर्जन्य, त्वष्टा, पूषा, अर्यमा, भग, विवस्वान, विष्णु, अंशुमान और मित्र।
🚩12 आदित्य:- विवस्वान्, अर्यमा, पूषा, त्वष्टा, सविता, भग, धाता, विधाता, वरुण, मित्र, इंद्र और त्रिविक्रम (भगवान वामन)।
🚩पहले आदित्य का परिचय...
1. इन्द्र: यह भगवान सूर्य का प्रथम रूप है। यह देवों के राजा के रूप में आदित्य स्वरूप हैं। इनकी शक्ति असीम है। इन्द्रियों पर इनका अधिकार है। शत्रुओं का दमन और देवों की रक्षा का भार इन्हीं पर है। इन्द्र को सभी देवताओं का राजा माना जाता है। वही वर्षा पैदा करता है और वही स्वर्ग पर शासन करता है।
🚩वह बादलों और विद्युत का देवता है। इन्द्र की पत्नी इन्द्राणी थी। छल कपट के कारण इन्द्र की प्रतिष्ठा ज्यादा नहीं रही। इसी इन्द्र के नाम पर आगे चलकर जिसने भी स्वर्ग पर शासन किया, उसे इन्द्र ही कहा जाने लगा।
🚩तिब्बत में या तिब्बत के पास इंद्रलोक था। कैलाश पर्वत के कई योजन उपर स्वर्ग लोक है। इन्द्र किसी भी साधु और धरती के राजा को अपने से शक्तिशाली नहीं बनने देते थे। इसलिए वे कभी तपस्वियों को अप्सराओं से मोहित कर पथभ्रष्ट कर देते हैं तो कभी राजाओं के अश्वमेध यज्ञ के घोड़े चुरा लेते हैं।
🚩ऋग्वेद के तीसरे मंडल के वर्णानुसार इन्द्र ने विपाशा (व्यास) तथा शतद्रु नदियों के अथाह जल को सुखा दिया जिससे भरतों की सेना आसानी से इन नदियों को पार कर गई। दशराज्य युद्ध में इन्द्र ने भरतों का साथ दिया था। सफेद हाथी पर सवार इन्द्र का अस्त्र वज्र है और वह अपार शक्ति संपन्न देव है। इन्द्र की सभा में गंधर्व संगीत से और अप्सराएं नृत्य कर देवताओं का मनोरंजन करते हैं।
🚩दूसरे आदित्य...
2. धाता: धाता हैं दूसरे आदित्य। इन्हें श्रीविग्रह के रूप में जाना जाता है। ये प्रजापति के रूप में जाने जाते हैं। जन समुदाय की सृष्टि में इन्हीं का योगदान है। जो व्यक्ति सामाजिक नियमों का पालन नहीं करता है और जो व्यक्ति धर्म का अपमान करता है उन पर इनकी नजर रहती है। इन्हें सृष्टिकर्ता भी कहा जाता है।
🚩तीसरे आदित्य...
3. पर्जन्य: पर्जन्य तीसरे आदित्य हैं। ये मेघों में निवास करते हैं। इनका मेघों पर नियंत्रण हैं। वर्षा के होने तथा किरणों के प्रभाव से मेघों का जल बरसता है। ये धरती के ताप को शांत करते हैं और फिर से जीवन का संचार करते हैं। इनके बगैर धरती पर जीवन संभव नहीं।
4. त्वष्टा: आदित्यों में चौथा नाम श्रीत्वष्टा का आता है। इनका निवास स्थान वनस्पति में है। पेड़ पौधों में यही व्याप्त हैं। औषधियों में निवास करने वाले हैं। इनके तेज से प्रकृति की वनस्पति में तेज व्याप्त है जिसके द्वारा जीवन को आधार प्राप्त होता है। त्वष्टा के पुत्र विश्वरूप। विश्वरूप की माता असुर कुल की थीं अतः वे चुपचाप असुरों का भी सहयोग करते रहे।
🚩एक दिन इन्द्र ने क्रोध में आकर वेदाध्ययन करते विश्वरूप का सिर काट दिया। इससे इन्द्र को ब्रह्महत्या का पाप लगा। इधर, त्वष्टा ऋषि ने पुत्रहत्या से क्रुद्ध होकर अपने तप के प्रभाव से महापराक्रमी वृत्तासुर नामक एक भयंकर असुर को प्रकट करके इन्द्र के पीछे लगा दिया।
🚩ब्रह्माजी ने कहा कि यदि नैमिषारण्य में तपस्यारत महर्षि दधीचि अपनी अस्थियां उन्हें दान में दें दें तो वे उनसे वज्र का निर्माण कर वृत्तासुर को मार सकते हैं। ब्रह्माजी से वृत्तासुर को मारने का उपाय जानकर देवराज इन्द्र देवताओं सहित नैमिषारण्य की ओर दौड़ पड़े।
5. पूषा: पांचवें आदित्य पूषा हैं जिनका निवास अन्न में होता है। समस्त प्रकार के धान्यों में ये विराजमान हैं। इन्हीं के द्वारा अन्न में पौष्टिकता एवं ऊर्जा आती है। अनाज में जो भी स्वाद और रस मौजूद होता है वह इन्हीं के तेज से आता है।
6. अर्यमन: अदिति के तीसरे पुत्र और आदित्य नामक सौर देवताओं में से एक अर्यमन या अर्यमा को पितरों का देवता भी कहा जाता है। आकाश में आकाशगंगा उन्हीं के मार्ग का सूचक है। सूर्य से संबंधित इन देवता का अधिकार प्रात: और रात्रि के चक्र पर है। आदित्य का छठा रूप अर्यमा नाम से जाना जाता है। ये वायु रूप में प्राणशक्ति का संचार करते हैं। चराचर जगत की जीवन शक्ति हैं। प्रकृति की आत्मा रूप में निवास करते हैं।
7. भग: सातवें आदित्य हैं भग। प्राणियों की देह में अंग रूप में विद्यमान हैं। ये भग देव शरीर में चेतना, ऊर्जा शक्ति, काम शक्ति तथा जीवंतता की अभिव्यक्ति करते हैं।
8. विवस्वान: आठवें आदित्य विवस्वान हैं। ये अग्निदेव हैं। इनमें जो तेज व ऊष्मा व्याप्त है वह सूर्य से है। कृषि और फलों का पाचन, प्राणियों द्वारा खाए गए भोजन का पाचन इसी अग्नि द्वारा होता है। ये आठवें मनु वैवस्वत मनु के पिता हैं।
9. विष्णु: नौवें आदित्य हैं विष्णु। देवताओं के शत्रुओं का संहार करने वाले देव विष्णु हैं। वे संसार के समस्त कष्टों से मुक्ति कराने वाले हैं। माना जाता है कि नौवें आदित्य के रूप में विष्णु ने त्रिविक्रम के रूप में जन्म लिया था। त्रिविक्रम को विष्णु का वामन अवतार माना जाता है। यह दैत्यराज बलि के काल में हुए थे। हालांकि इस पर शोध किए जाने कि आवश्यकता है कि नौवें आदित्य में लक्ष्मीपति विष्णु हैं या विष्णु अवतार वामन। द्वादश आदित्यों में से एक विष्णु को पालनहार इसलिए कहते हैं, क्योंकि उनके समक्ष प्रार्थना करने से ही हमारी समस्याओं का निदान होता है। उन्हें सूर्य का रूप भी माना गया है। वे साक्षात सूर्य ही हैं। विष्णु ही मानव या अन्य रूप में अवतार लेकर धर्म और न्याय की रक्षा करते हैं। विष्णु की पत्नी लक्ष्मी हमें सुख, शांति और समृद्धि देती हैं। विष्णु का अर्थ होता है विश्व का अणु।
10. अंशुमान: दसवें आदित्य हैं अंशुमान। वायु रूप में जो प्राण तत्व बनकर देह में विराजमान है वही अंशुमान हैं। इन्हीं से जीवन सजग और तेज पूर्ण रहता है।
11. वरुण: ग्यारहवें आदित्य जल तत्व का प्रतीक हैं वरुण देव। ये मनुष्य में विराजमान हैं जल बनकर। जीवन बनकर समस्त प्रकृति के जीवन का आधार हैं। जल के अभाव में जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है।वरुण को असुर समर्थक कहा जाता है। वरुण देवलोक में सभी सितारों का मार्ग निर्धारित करते हैं।
🚩वरुण तो देवताओं और असुरों दोनों की ही सहायता करते हैं। ये समुद्र के देवता हैं और इन्हें विश्व के नियामक और शासक, सत्य का प्रतीक, ऋतु परिवर्तन एवं दिन रात के कर्ता धर्ता, आकाश, पृथ्वी एवं सूर्य के निर्माता के रूप में जाना जाता है। इनके कई अवतार हुए हैं। उनके पास जादुई शक्ति मानी जाती थी जिसका नाम था माया। उनको इतिहासकार मानते हैं कि असुर वरुण ही पारसी धर्म में ‘अहुरा मज़्दा’ कहलाए।
12. मित्र: बारहवें आदित्य हैं मित्र। विश्व के कल्याण हेतु तपस्या करने वाले, साधुओं का कल्याण करने की क्षमता रखने वाले हैं मित्र देवता हैं।
🌹 ये 12 आदित्य सृष्टि के विकास क्रम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
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Saturday, June 22, 2024
सभी को ज्ञात होनी चाहिए 👉 पूजा से पहले शौच और आचमन करने की विधि ?
🚩सभी को ज्ञात होनी चाहिए 👉 पूजा से पहले शौच और आचमन करने की विधि ?
23 June 2024
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सकल सौच करि राम नहावा। सुचि सुजान बट छीर मगावा॥
अनुज सहित सिर जटा बनाए। देखि सुमंत्र नयन जल छाए॥
*भावार्थ:- शौच के सब कार्य करके (नित्य) पवित्र और सुजान श्री रामचन्द्रजी ने स्नान किया। फिर बड़ का दूध मँगाया और छोटे भाई लक्ष्मणजी सहित उस दूध से सिर पर जटाएँ बनाईं। यह देखकर सुमंत्रजी के नेत्रों में जल छा गया॥*
🚩संध्या वंदन के समय मंदिर या एकांत में शौच, आचमन, प्राणायामादि कर गायत्री छंद से निराकार ईश्वर की प्रार्थना की जाती है। संधिकाल में ही संध्या वंदन किया जाता है। वेदज्ञ और ईश्वरपरायण लोग इस समय प्रार्थना करते हैं। ज्ञानीजन इस समय ध्यान करते हैं। भक्तजन कीर्तन करते हैं।
🚩पुराणिक लोग देवमूर्ति के समक्ष इस समय पूजा या आरती करते हैं। तो ये बात सिद्ध होती है कि संध्योपासना या हिन्दू प्रार्थना के चार प्रकार हो गए हैं;-
(1) प्रार्थना स्तुति,
(2) ध्यान साधना,
(3) कीर्तन भजन
और
(4) पूजा आरती
🌹व्यक्ति की जिस में जैसी श्रद्धा है वह वैसा करता है।
🚩भारतीय परंपरा में पूजा, प्रार्थना और दर्शन से पहले शौच और आचमन करने का विधान है। बहुत से लोग मंदिर में बिना शौच या आचमन किए चले जाते हैं जो कि अनुचित है। प्रत्येक मंदिर के बाहर या प्रांगण में नल जल की उचित व्यवस्था होती है जहां व्यक्ति बैठकर अच्छे से खुद को शुद्ध कर सके। यदि किसी मंदिर में जल का उचित स्थान नहीं है तो यह मंदिर दोष में गिना जाएगा।
🚩शौच का अर्थ:-
शौच अर्थात शुचिता, शुद्धता, शुद्धि, विशुद्धता, पवित्रता और निर्मलता। शौच का अर्थ शरीर और मन की बाहरी और आंतरिक पवित्रता से है। आचमन से पूर्व शौचादि से निवृत्त हुआ जाता है।
🚩शौच का अर्थ है अच्छे से मल मूत्र त्यागना भी है। शौच के दो प्रकार हैं; बाह्य और आभ्यन्तर। बाह्य का अर्थ बाहरी शुद्धि से है और आभ्यन्तर का अर्थ आंतरिक अर्थात मन वचन और कर्म की शुद्धि से है। जब व्यक्ति शरीर, मन, वचन और कर्म से शुद्ध रहता है तब उसे स्वास्थ्य और सकारात्मक ऊर्जा का लाभ मिलना शुरू हो जाता है।
🚩शौचादि से निवृत्ति होने के बाद पूजा, प्रार्थना के पूर्व आचमन किया जाता है। मंदिर में जाकर भी सबसे पहले आचमन किया जाता है।
🚩शौच के दो प्रकार हैं; बाह्य और आभ्यन्तर।
🚩बाहरी शुद्धि: हमेशा दातुन कर स्नान करना एवं पवित्रता बनाए रखना बाह्य शौच है। कितने भी बीमार हों तो भी मिट्टी, साबुन, पानी से थोड़ी मात्रा में ही सही लेकिन बाहरी पवित्रता अवश्य बनाए रखनी चाहिए। आप चाहे तो शरीर के जो छिद्र हैं उन्हें ही जल से साफ और पवित्र बनाएँ रख सकते हैं। बाहरी शुद्धता के लिए अच्छा और पवित्र जल भोजन करना भी जरूरी है। अपवित्र या तामसिक खानपान से बाहरी शुद्धता भंग होती है।
🚩आंतरिक शुद्धि: आभ्यन्तर शौच उसे कहते हैं जिसमें हृदय से रोग द्वेष तथा मन के सभी खोटे कर्म को दूर किया जाता है। जैसे क्रोध से मस्तिष्क और स्नायुतंत्र क्षतिग्रस्त होता है।
🚩लालच, ईर्ष्या, कंजूसी आदि से मन में संकुचन पैदा होता है जो शरीर की ग्रंथियों को भी संकुचित कर देता है। यह सभी हमारी सेहत को प्रभावित करते हैं। मन, वचन और कर्म से पवित्र रहना ही आंतरिक शुद्धता के अंतर्गत आता है अर्थात अच्छा सोचे, बोले और करें।
🚩शौच के लाभ: ईर्ष्या, द्वेष, तृष्णा, अभिमान, कुविचार और पंच क्लेश को छोड़ने से दया, क्षमा, नम्रता, स्नेह, मधुर भाषण तथा त्याग का जन्म होता है। इससे मन और शरीर में जाग्रति का जन्म होता है। विचारों में सकारात्मकता बढ़कर उसके असर की क्षमता बढ़ती है। रोग और शौक से छुटकारा मिलता है। शरीर स्वस्थ और सेहतमंद अनुभव करता है। निराशा, हताशा और नकारात्मकता दूर होकर व्यक्ति की कार्यक्षमता बढ़ती है।
🌹जानिए आचमन के बारे में विस्तार से...
🚩आचमन का अर्थ:- आचमन का अर्थ होता है जल पीना। प्रार्थना, दर्शन, पूजा, यज्ञ आदि आरंभ करने से पूर्व शुद्धि के लिए मंत्र पढ़ते हुए जल पीना ही आचमन कहलाता है। इससे मन और हृदय की शुद्धि होती है। आचमनी का अर्थ एक छोटा तांबे का लोटा और तांबे की चम्मच को आचमनी कहते हैं। छोटे से तांबे के लोटे में जल भरकर उसमें तुलसी डालकर हमेशा पूजा स्थल पर रखा जाता है। यह जल आचमन का जल कहलाता है। इस जल को तीन बार ग्रहण किया जाता है। माना जाता है कि ऐसे आचमन करने से पूजा का दोगुना फल मिलता है।
🚩आचमन विधि:- वैसे तो आचमन के कई विधान और मंत्र है लेकिन यहां छोटी सी ही विधि प्रस्तुत है। आचमन सदैव उत्तर, ईशान या पूर्व दिशा की ओर मुख करके ही किया जाता है अन्य दिशाओं की ओर मुंह करके कदापि न करें। संध्या के पात्र तांबे का लोटा, तारबन, आचमनी, टूक्कस हाथ धोने के लिए कटोरी, आसन आदि लेकर के गायत्री छंद से इस संध्या की शुरुआत की जाती है। प्रातःकाल की संध्या तारे छिपने के बाद तथा सूर्योदय पूर्व करते हैं।
🚩आचमन के लिए जल इतना लें कि हृदय तक पहुंच जाए। अब हथेलियों को मोड़कर गाय के कान जैसा बना लें कनिष्ठा व अंगुष्ठ को अलग रखें। तत्पश्चात जल लेकर तीन बार निम्न मंत्र का उच्चारण करते हैं:- हुए जल ग्रहण करें...
ॐ केशवाय नम:
ॐ नाराणाय नम:
ॐ माधवाय नम:
ॐ ह्रषीकेशाय नम; बोलकर ब्रह्मतीर्थ (अंगुष्ठ का मूल भाग) से दो बार होंठ पोंछते हुए हस्त प्रक्षालन करें (हाथ धो लें)। उपरोक्त विधि ना कर सकने की स्थिति में केवल दाहिने कान के स्पर्श मात्र से ही आचमन की विधि की पूर्ण मानी जाती है।
🚩आचमन मुद्रा:- शास्त्रों में कहा गया है कि, त्रिपवेद आपो गोकर्णवरद् हस्तेन त्रिराचमेत्। यानी आचमन के लिए गोकर्ण मुद्रा ही होनी चाहिए तभी यह लाभदायी रहेगा। गोकर्ण मुद्रा बनाने के लिए दर्जनी को मोड़कर अंगूठे से दबा दें। उसके बाद मध्यमा, अनामिका और कनिष्ठिका को परस्पर इस प्रकार मोड़ें कि हाथ की आकृति गाय के कान जैसी हो जाए।
🚩भविष्य पुराण के अनुसार जब पूजा की जाए तो आचमन पूरे विधान से करना चाहिए। जो विधिपूर्वक आचमन करता है, वह पवित्र हो जाता है। सत्कर्मों का अधिकारी होता है। आचमन की विधि यह है कि हाथ पांव धोकर पवित्र स्थान में आसन के ऊपर पूर्व से उत्तर की ओर मुख करके बैठें। दाहिने हाथ को जानु के अंदर रखकर दोनों पैरों को बराबर रखें। फिर जल का आचमन करें।
🚩आचमन करते समय हथेली में 5 तीर्थ बताए गए हैं;
1. देवतीर्थ,
2. पितृतीर्थ,
3. ब्रह्मातीर्थ,
4. प्रजापत्यतीर्थ और
5. सौम्यतीर्थ।
🚩कहा जाता है कि अंगूठे के मूल में ब्रह्मातीर्थ, कनिष्ठा के मूल में प्रजापत्यतीर्थ, अंगुलियों के अग्रभाग में देवतीर्थ, तर्जनी और अंगूठे के बीच पितृतीर्थ और हाथ के मध्य भाग में सौम्यतीर्थ होता है, जो देवकर्म में प्रशस्त माना गया है।
🚩आचमन हमेशा ब्रह्मातीर्थ से करना चाहिए। आचमन करने से पहले अंगुलियां मिलाकर एकाग्रचित्त यानी एकसाथ करके पवित्र जल से बिना शब्द किए 3 बार आचमन करने से महान फल मिलता है। आचमन हमेशा 3 बार करना चाहिए।
🌹आचमन के बारे में स्मृति ग्रंथ में लिखा है कि...
प्रथमं यत् पिबति तेन ऋग्वेद प्रीणाति।
यद् द्वितीयं तेन यजुर्वेद प्रीणाति।
यत् तृतीयं तेन सामवेद प्रीणाति।
🌹श्लोक का अर्थ है कि आचमन क्रिया में हर बार एक एक वेद की तृप्ति प्राप्त होती है। प्रत्येक कर्म के आरंभ में आचमन करने से मन, शरीर एवं कर्म को प्रसन्नता प्राप्त होती है। आचमन करके अनुष्ठान प्रारंभ करने से छींक, डकार और जंभाई आदि नहीं होते हालांकि इस मान्यता के पीछे कोई उद्देश्य नहीं है।
🚩पहले आचमन से ऋग्वेद और द्वितीय से यजुर्वेद और तृतीय से सामवेद की तृप्ति होती है। आचमन करके जलयुक्त दाहिने अंगूठे से मुंह का स्पर्श करने से अथर्ववेद की तृप्ति होती है। आचमन करने के बाद मस्तक को अभिषेक करने से भगवान शंकर प्रसन्न होते हैं। दोनों आंखों के स्पर्श से सूर्य, नासिका के स्पर्श से वायु और कानों के स्पर्श से सभी ग्रंथियां तृप्त होती हैं। माना जाता है कि ऐसे आचमन करने से पूजा का दोगुना फल मिलता है।
शौच ईपसु: सर्वदा आचामेद एकान्ते प्राग उदड़्ग मुख: (मनुस्मृति)
🌹अर्थात जो पवित्रता की कामना रखता है उसे एकान्त में आचमन अवश्य करना चाहिए। 'आचमन' कर्मकांड की सबसे जरूरी विधि मानी जाती है। वास्तव में आचमन केवल कोई प्रक्रिया नहीं है। यह हमारी बाहरी और भीतरी शुद्धता का प्रतीक है।
एवं स ब्राह्मणों नित्यमुस्पर्शनमाचरेत्।
ब्रह्मादिस्तम्बपर्यंन्तं जगत् स परितर्पयेत्॥
🚩प्रत्येक कार्य में आचमन का विधान है। आचमन से हम न केवल अपनी शुद्धि करते हैं अपितु ब्रह्मा से लेकर तृण तक को तृप्त कर देते हैं। जब हम हाथ में जल लेकर उसका आचमन करते हैं तो वह हमारे मुंह से गले की ओर जाता है, यह पानी इतना थोड़ा होता है कि सीधे आंतों तक नहीं पहुंचता।
🚩हमारे हृदय के पास स्थित ज्ञान चक्र तक ही पहुंच पाता है और फिर इसकी गति धीमी पड़ जाती है। यह इस बात का प्रतीक है कि हम वचन और विचार दोनों से शुद्ध हो गए हैं तथा हमारी मन:स्थिति पूजा के लायक हो गई है। आचमन में तांबे के विशेष पात्र से हथेली में जल लेकर ग्रहण किया जाता है। उसके बाद खुद पर जल छिड़क कर शुद्ध किया जाता है।
🚩मनुस्मृति में कहा गया है कि, नींद से जागने के बाद, भूख लगने पर, भोजन करने के बाद, छींक आने पर, असत्य भाषण होने पर, पानी पीने के बाद, और अध्ययन करने के बाद आचमन जरूर करें।
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Thursday, June 20, 2024
सुबह जल्दी उठने से क्या फायदा होगा और जल्दी नही उठने से क्या क्या नुकसान होगा?
सुबह जल्दी उठने से क्या फायदा होगा और जल्दी नही उठने से क्या क्या नुकसान होगा?
22 June 2024
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🚩रात्रि के अंतिम प्रहर को ब्रह्म मुहूर्त कहते हैं। हमारे ऋषि मुनियों ने इस मुहूर्त का विशेष महत्व बताया है। उनके अनुसार यह समय निद्रा त्याग के लिए सर्वोत्तम है। ब्रह्म मुहूर्त में उठने से सौंदर्य, बल, विद्या, बुद्धि और स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है।
सूर्योदय से चार घड़ी (लगभग डेढ़ घण्टे) पूर्व ब्रह्म मुहूर्त में ही जग जाना चाहिये। इस समय सोना शास्त्र निषिद्ध है। ब्रह्म का मतलब परम तत्व या परमात्मा। मुहूर्त यानी अनुकूल समय। रात्रि का अंतिम प्रहर अर्थात प्रात: 4 से 5.30 बजे का समय ब्रह्म मुहूर्त कहा गया है।
🚩“ब्रह्ममुहूर्ते या निद्रा सा पुण्यक्षयकारिणी”।
🚩अर्थात - ब्रह्ममुहूर्त की निद्रा पुण्य का नाश करने वाली होती है।
सिख धर्म में इस समय के लिए बेहद सुन्दर नाम है--"अमृत वेला", जिसके द्वारा इस समय का महत्व स्वयं ही साबित हो जाता है। ईश्वर भक्ति के लिए यह महत्व स्वयं ही साबित हो जाता है। ईवर भक्ति के लिए यह सर्वश्रेष्ठ समय है। इस समय उठने से मनुष्य को सौंदर्य, लक्ष्मी, बुद्धि, स्वास्थ्य आदि की प्राप्ति होती है। उसका मन शांत और तन पवित्र होता है।
ब्रह्म मुहूर्त में उठना हमारे जीवन के लिए बहुत लाभकारी है। इससे हमारा शरीर स्वस्थ होता है और दिनभर स्फूर्ति बनी रहती है। स्वस्थ रहने और सफल होने का यह ऐसा फार्मूला है जिसमें खर्च कुछ नहीं होता। केवल आलस्य छोड़ने की जरूरत है।
🚩पौराणिक महत्व
🚩वाल्मीकि रामायण के मुताबिक माता सीता को ढूंढते हुए श्रीहनुमान ब्रह्ममुहूर्त में ही अशोक वाटिका पहुंचे। जहां उन्होंने वेद व यज्ञ के ज्ञाताओं के मंत्र उच्चारण की आवाज सुनी।
शास्त्रों में भी इसका उल्लेख है--
🚩वर्णं कीर्तिं मतिं लक्ष्मीं स्वास्थ्यमायुश्च विदन्ति।
ब्राह्मे मुहूर्ते संजाग्रच्छि वा पंकज यथा॥
🚩अर्थात- ब्रह्म मुहूर्त में उठने से व्यक्ति को सुंदरता, लक्ष्मी, बुद्धि, स्वास्थ्य, आयु आदि की प्राप्ति होती है। ऐसा करने से शरीर कमल की तरह सुंदर हो जाता हे।
🚩ब्रह्म मुहूर्त और प्रकृति
🚩ब्रह्म मुहूर्त और प्रकृति का गहरा नाता है। इस समय में पशु-पक्षी जाग जाते हैं। उनका मधुर कलरव शुरू हो जाता है। कमल का फूल भी खिल उठता है। मुर्गे बांग देने लगते हैं। एक तरह से प्रकृति भी ब्रह्म मुहूर्त में चैतन्य हो जाती है। यह प्रतीक है उठने, जागने का। प्रकृति हमें संदेश देती है ब्रह्म मुहूर्त में उठने के लिए।
🚩इसलिए मिलती है सफलता व समृद्धि
🚩आयुर्वेद के अनुसार ब्रह्म मुहूर्त में उठकर टहलने से शरीर में संजीवनी शक्ति का संचार होता है। यही कारण है कि इस समय बहने वाली वायु को अमृततुल्य कहा गया है। इसके अलावा यह समय अध्ययन के लिए भी सर्वोत्तम बताया गया है क्योंकि रात को आराम करने के बाद सुबह जब हम उठते हैं तो शरीर तथा मस्तिष्क में भी स्फूर्ति व ताजगी बनी रहती है। प्रमुख मंदिरों के पट भी ब्रह्म मुहूर्त में खोल दिए जाते हैं तथा भगवान का श्रृंगार व पूजन भी ब्रह्म मुहूर्त में किए जाने का विधान है।
🚩ब्रह्ममुहूर्त के धार्मिक, पौराणिक व व्यावहारिक पहलुओं और लाभ को जानकर हर रोज इस शुभ घड़ी में जागना शुरू करें तो बेहतर नतीजे मिलेंगे।
🚩ब्रह्म मुहूर्त में उठने वाला व्यक्ति सफल, सुखी और समृद्ध होता है, क्यों? क्योंकि जल्दी उठने से दिनभर के कार्यों और योजनाओं को बनाने के लिए पर्याप्त समय मिल जाता है। इसलिए न केवल जीवन सफल होता है। शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रहने वाला हर व्यक्ति सुखी और समृद्ध हो सकता है। कारण वह जो काम करता है उसमें उसकी प्रगति होती है। विद्यार्थी परीक्षा में सफल रहता है। जॉब (नौकरी) करने वाले से बॉस खुश रहता है। बिजनेसमैन अच्छी कमाई कर सकता है। बीमार आदमी की आय तो प्रभावित होती ही है, उल्टे खर्च बढऩे लगता है। सफलता उसी के कदम चूमती है जो समय का सदुपयोग करे और स्वस्थ रहे। अत: स्वस्थ और सफल रहना है तो ब्रह्म मुहूर्त में उठें।
वेदों में भी ब्रह्म मुहूर्त में उठने का महत्व और उससे होने वाले लाभ का उल्लेख किया गया है।
🚩प्रातारत्नं प्रातरिष्वा दधाति तं चिकित्वा प्रतिगृह्यनिधत्तो।
तेन प्रजां वर्धयमान आयू रायस्पोषेण सचेत सुवीर:॥ - ऋग्वेद-1/125/1
🚩अर्थात- सुबह सूर्य उदय होने से पहले उठने वाले व्यक्ति का स्वास्थ्य अच्छा रहता है। इसीलिए बुद्धिमान लोग इस समय को व्यर्थ नहीं गंवाते। सुबह जल्दी उठने वाला व्यक्ति स्वस्थ, सुखी, ताकतवाला और दीर्घायु होता है।
🚩यद्य सूर उदितोऽनागा मित्रोऽर्यमा।
सुवाति सविता भग:॥ - सामवेद-35
🚩अर्थात- व्यक्ति को सुबह सूर्योदय से पहले शौच व स्नान कर लेना चाहिए। इसके बाद भगवान की पूजा-अर्चना करना चाहिए। इस समय की शुद्ध व निर्मल हवा से स्वास्थ्य और संपत्ति की वृद्धि होती है।
🚩उद्यन्त्सूर्यं इव सुप्तानां द्विषतां वर्च आददे।
अथर्ववेद- 7/16/2
🚩अर्थात- सूरज उगने के बाद भी जो नहीं उठते या जागते उनका तेज खत्म हो जाता है।
🚩व्यावहारिक महत्व
🚩व्यावहारिक रूप से अच्छी सेहत, ताजगी और ऊर्जा पाने के लिए ब्रह्ममुहूर्त बेहतर समय है। क्योंकि रात की नींद के बाद पिछले दिन की शारीरिक और मानसिक थकान उतर जाने पर दिमाग शांत और स्थिर रहता है। वातावरण और हवा भी स्वच्छ होती है। ऐसे में देव उपासना, ध्यान, योग, पूजा तन, मन और बुद्धि को पुष्ट करते हैं।
🚩जैविक घड़ी पर आधारित शरीर की दिनचर्या के अनुसार प्रातः 3 से 5 – इस समय जीवनी-शक्ति विशेष रूप से फेफड़ों में होती है। थोड़ा गुनगुना पानी पीकर खुली हवा में घूमना एवं प्राणायाम करना। इस समय दीर्घ श्वसन करने से फेफड़ों की कार्यक्षमता खूब विकसित होती है। उन्हें शुद्ध वायु (आक्सीजन) और ऋण आयन विपुल मात्रा में मिलने से शरीर स्वस्थ व स्फूर्तिमान होता है। ब्रह्म मुहूर्त में उठने वाले लोग बुद्धिमान व उत्साही होते है, और सोते रहने वालों का जीवन निस्तेज हो जाता है।
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Tuesday, June 18, 2024
पश्चिम बंगाल और केरल में हिन्दुओं का अस्तित्व संकट में हैं?
पश्चिम बंगाल और केरल में हिन्दुओं का अस्तित्व संकट में हैं?
19 June 2024
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🚩पश्चिम बंगाल और केरल भारत के दो ऐसे राज्य है जहां वामपंथ का पिछले 60 वर्षों से वर्चस्व रहा है। यहां पहले ईसाई मिशनरियों के चलते हिन्दू आबादी में बढ़े पैमाने पर सेंधमारी हुई जिसके बाद मुस्लिम-वामपंथी गठजोड़ ने राज्य में हिन्दुओं के अस्तित्व को संकट में डाल दिया। हिन्दू संगठन और धार्मिक संस्थानों पर लगातर हमलों का इन राज्यों में लंबा इतिहास रहा है। आधुनिक भारत में इस तरह के सामाजिक परिवर्तन और राजनीतिक स्वार्थ के चलते हिन्दुओं में तनाव का बढ़ना चिंता का विषय है।
🚩पश्चिम बंगाल में हिन्दू :
🚩भारत में ईसाइयों की आबादी लगभग 2.78 करोड़ हो चली है, जो कि कुल जनसंख्या का 2.3 फ़ीसद है। जहां ईसाई मिशनरी सक्रिय है उन राज्यों में पश्चिम बंगाल, केरल, उड़ीसा, पूर्वोत्तर के राज्य, मध्यप्रदेश छत्तीसगढ़, तमिनाडु, बिहार और झारखंड का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। आने वाले समय में नागालैंड, मेघालय और मिजोरम की तरह और भी राज्यों में हिन्दू आबादी का विघटन होगा। जहां तक पश्चिम बंगाल का सवाल है यह ईसाई धर्म का अंग्रेज काल से ही केंद्र रहा है। हालांकि यह ईसाई धर्म यहां इतना सफल नहीं हो पाया जितना की केरल, मिजोरम और नगालैंड में।
🚩बांग्लादेश और पश्चिम बंगाल को मिलाकर पहले हिन्दू बहुसंख्यक हुआ करता था। अब बंगाल का एक बहुत बड़ा हिस्सा बांग्लादेश बन गया है, जहां मुस्लिम बहुसंख्यक है और अब जहां हिन्दू मात्र 6 प्रतिशत बचे हैं। इधर पश्चिम बंगाल में मुस्लिम आबादी 2001 में 25 प्रतिशत थी, जो 2011 में बढ़कर 27 प्रतिशत हो गई। वर्तमान में भारत-बांग्लादेश के सीमावर्ती इलाकों से कट्टरपंथियों द्वारा हिन्दुओं को मार-मारकर भगाया जा रहा है। ऐसा इसलिए है क्योंकि बांग्लादेश की सीमा से सटे प. बंगाल, बिहार और असम के अधिकतर क्षेत्रों का राजनीतिक व सांस्कृतिक परिदृश्य बदल गया है?
🚩40 वर्षों से अधिक वामपंथी वर्चस्व के राज्य में हिन्दुओं की आबादी कुछ क्षेत्रों में लगातार घटती गई जहां से हिन्दुओं को पलायन करने के लिए मजबूर कर दिया गया। 24 परगना, मुर्शिदाबाद, बिरभूम, मालदा आदि ऐसे कई उदाहरण सामने हैं। हालात तब ज्यादा बिगड़ने लगे हैं जबकि बांग्लादेशी और रोहिंग्या शरणार्थी भी राज्य में डेरा जमाए हुए हैं। राज्य में हिन्दू आबादी का संतुलन बिगाड़ने की साजिश लगातार जारी है। हिन्दुओं का ईसाईकरण करने से भी राज्य की आबादी का संतुलन बिगड़ा है।
🚩2011 की जनगणना के अनुसार पश्चिम बंगाल में हिन्दुओं की आबादी में 1.94 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई, जो कि बहुत ज्यादा है। राष्ट्रीय स्तर पर मुसलमानों की आबादी में 0.8 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई है जबकि सिर्फ बंगाल में मुसलमानों की आबादी 1.77 फीसदी की दर से बढ़ी है, जो राष्ट्रीय स्तर से भी कहीं दुगनी दर से बढ़ी है। इस आंकड़े से ही पता चलता है कि पश्चिम बंगाल में क्या चल रहा है? 2013 में बंगाल में हुए सुनियोजित दंगों में सैकड़ों हिंदुओं के घर और दुकानें लूटे गए। साथ ही कई मंदिरों को तोड़ दिया गया था इस पर अभी तक कोई संज्ञान नहीं लिया गया।
🚩बंगाल के 3 जिले ऐसे हैं, जहां पर मुस्लिमों ने हिन्दुओं की जनसंख्या को फसाद और दंगे के माध्यम से पलायन के लिए मजबूर किया। वर्तमान में मुर्शिदाबाद में 47 लाख मुस्लिम और 23 लाख हिन्दू, मालदा में 20 लाख मुस्लिम और 19 लाख हिन्दू और उत्तरी दिनाजपुर में 15 लाख मुस्लिम और 14 लाख हिन्दू हैं। हिन्दू यहां कभी बहुसंख्यक हुआ करते थे। प. बंगाल के सीमावर्ती उपजिलों की बात करें तो 42 क्षेत्रों में से 3 में मुस्लिम 90 प्रतिशत से अधिक, 7 में 80-90 प्रतिशत के बीच, 11 में 70-80 प्रतिशत तक, 8 में 60-70 प्रतिशत और 13 क्षेत्रों में मुस्लिमों की जनसंख्या 50-60 प्रतिशत तक हो चुकी है।
🚩प. बंगाल की 9.5 करोड़ की आबादी में 2.5 करोड़ से अधिक मुसलमान हैं। 1951 की जनगणना में प. बंगाल की कुल जनसंख्या 2.63 करोड़ में मुसलमानों की आबादी लगभग 50 लाख थी, जो 2011 की जनगणना में बढ़कर 2.50 करोड़ हो गई। प. बंगाल में 2011 में हिन्दुओं की 10.8 प्रतिशत दशकीय वृद्धि दर की तुलना में मुस्लिम जनसंख्या की वृद्धि दर दोगुनी यानी 21.8 प्रतिशत है।
🚩केरल में हिन्दू :
केरल एक ऐसा राज्य है जहां देश में सबसे पहले ईसाई धर्म और बाद में मुस्लिम धर्म ने दस्तक दी। देश का पहला चर्च और पहली मस्जिद केरल में ही है। दोनों ही धर्मों के बीच हिन्दू आबादी को धर्मान्तरित करने का लक्ष्य था, जो अब तक जारी है। केरल में हिन्दू आबादी के विघटन के बाद यहा मिलिझुली संस्कृति निर्मित हो गई। इसके चलते ही इस भारतीय राज्य में वामपंथी वर्चस्व बढ़ गया। केरल को भारत का सबसे गरीब लेकिन सबसे शिक्षित राज्य माना जाता रहा है।
🚩केरल में 300 वर्ष पहले तक 99 प्रतिशत हिन्दू रहते थे। वर्तमान में केरल की कुल 3.50 करोड़ आबादी का 54.7 प्रतिशत भाग ही हिन्दू हैं जबकि 26.6 फीसदी मुस्लिम और 18.4 प्रतिशत ईसाई हैं। केरल में आबादी का संतुलन खासकर ईसाई मिशनरियों ने बिगाड़ा। हिन्दुओं का धर्मांतरण कर वहां की आबादी में कट्टरपंथी मुस्लिमों और वामपंथियों को वर्चस्व की भूमिका में ला खड़ा किया। 2011 की धार्मिक जनगणना के आंकड़ों अनुसार हिन्दुओं की आबादी 16.76 प्रतिशत की दर से तो मुस्लिमों की आबादी 24.6 प्रतिशत की दर से बढ़ी। पहली बार हिन्दुओं की आबादी वहां 80 प्रतिशत से नीचे आ गई। 2001 में हिन्दू 80.5 प्रतिशत थे, जो घटकर 79.8 प्रशिशत रह गए जबकि मुस्लिमों की आबादी 13.4 प्रतिशत से बढ़कर 14.2 प्रतिशत हो गई।
🚩एक छोटा-सा गुट कट्टर सुन्नी इस्लाम को मानता है जिसे सलफी मुस्लिम कहते हैं, लेकिन इसकी गतिविधि ने राज्य के अन्य धर्मों के लोगों की जिंदगी मुश्किल में डाल दी है। इस राज्य में राज्य सरकार की नीति के तहत अरब और खाड़ी देशों का दखल ज्यादा है। बाहरी दखल के चलते केरल के शांतिप्रिय मुस्लिम भी अब कट्टरता की राह पर चल पड़े हैं। वर्तमान में केरल के मल्लापुरम, कासरगोड, कन्नूर और पलक्कड़ ऐसे क्षेत्र हैं, जहां मुस्लिमों का जोर चलता है। यहां हिन्दू और ईसाई दबाव में रहते हैं।
🚩आंकड़ों के मुताबिक राज्य में साल 2015 में जन्मे कुल 5,16,013 जिंदा बच्चों में से 42.87 प्रतिशत हिन्दू समुदाय से, 41.45% मुस्लिम समुदाय और ईसाई समुदाय से 15.42% थे। साल 2006 में मुसलमानों की जन्म दर 35 प्रतिशत से बढ़कर 2015 में बढ़कर 41.45 हो गई। 2006 में हिन्दू समुदाय ने 46 प्रतिशत की जन्म दर दर्ज की, जो 10 वर्षों में घटकर 42.87 प्रतिशत रह गई। ईसाई जन्म दर, जो हमेशा 20 प्रतिशत से नीचे थी, 2006 में 17 प्रतिशत से 2015 में 15.42 प्रतिशत हो गई। 9 साल की अवधि के दौरान मुस्लिम जन्म दर में केवल 2 बार गिरावट आई है। 2007 में यह 35 प्रतिशत (2006) से 33.71% तक फिसल गई। - स्त्रोत : वेब दुनिया
🚩अभी भी हिंदुओं को संभलने का मौका है, बाद में तो क्या हाल होगा उसकी कल्पना करना भी मुश्किल होगा...।
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Monday, June 17, 2024
राजस्थान की राजधानी में हिंदुओं का बुरा हाल, पलायन रोकने को लगे पोस्टर
राजस्थान की राजधानी में हिंदुओं का बुरा हाल, पलायन रोकने को लगे पोस्टर
18 June 2024
https://azaadbharat.org
🚩राजस्थान की राजधानी जयपुर एक बार फिर से पलायन के पोस्टरों के कारण चर्चा में है। हालाँकि इस बार ‘सर्व हिन्दू समाज’ के नाम से यह पोस्टर लगाते हुए हिंदुओं से अपील की गई है कि वो अपने घरों को छोड़कर न जाएँ। ऐसे पोस्टर दीवारों पर बुधवार (12 जून 2024) को इसलिए सामने आए क्योंकि कई रिपोर्ट्स के अनुसार जयपुर के शास्त्री नगर इलाके के हिन्दू, इलाके में रहने वाले मुस्लिमों से तंग आकर अपना घर छोड़ने का मन बना रहे हैं। उनका कहना है कि प्रशासन भी उनकी सुनवाई नहीं कर रहा है। इलाके में चोरी और लड़कियों से छेड़खानी आम बात हो गई है इसलिए यहाँ उनका रहना मुश्किल है।
https://x.com/MrSinha_/status/1800949861845696844?t=6x0P-3l6aEm3QPTli63Eow&s=19
🚩मामला जयपुर के शास्त्री नगर इलाके का है। यहाँ के कई मकानों पर बुधवार (12 जून) को एक पोस्टर लगा दिखा। पोस्टर में जारीकर्ता के तौर पर सर्व हिन्दू समाज लिखा हुआ है। शुरुआत में सनातनियों से अपील की गई है। इसके बाद पोस्टर में ‘पलायन को रोको’ लिखा गया है। इसे जारी करने वाले ने आगे लिखा, “सभी सनातन भाइयों बहनों से निवेदन है कि अपना मकान गैर हिन्दुओं को न बेचें।” इस पोस्टर को शास्त्री के कई मकानों पर चिपका देखा गया।
🚩मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक पोस्टर शास्त्री नगर के शिवाजी नगर में लगाए गए हैं। यहाँ के कई निवासियों ने खुद को इलाके के मुस्लिम समुदाय के लोगों की प्रताड़ना से तंग बताया है। उन्होंने आरोप लगाया है कि शिवाजी नगर इलाके में उनकी बहन-बेटियाँ सुरक्षित नहीं हैं। स्थानीय निवासियों का यह भी दावा है कि मुस्लिम तबके के कई लोग उनकी जमीनों पर अवैध तरीके से कब्ज़ा कर रहे हैं। इन सभी ने यह भी कहा कि कई बार शिकायतों के बावजूद प्रशासन उनकी तकलीफ सुनने को तैयार नहीं है।
🚩स्थानीय हिन्दू निवासियों ने बताया कि रात को उनके घरों के दरवाजे पीटे जाते हैं। उन पर घर को बेचकर कहीं और चले जाने का दबाव बनाया जाता है। कभी-कभार घरों पर पत्थर भी चलते हैं। टाइम्स नाऊ नवभारत की वायरल होती एक वीडियो में एक महिला ने मीडिया को बताया, “यहाँ आ कर इतना ज्यादा उधम मचाते हैं कि आपको क्या बताऊँ। बच्चियाँ बाहर नहीं खड़ी होतीं। सीटियाँ बजाते हैं यहीं पर। हर रात को चोरियाँ हो रहीं हैं। सरकारी स्कूल में जब बच्चियों की छुट्टियाँ होती हैं तो वहाँ कई गाड़ियाँ खड़ी कर दी जाती हैं।” इसी दौरान पीछे से बोल रहे एक व्यक्ति ने मुस्लिम तबके के युवाओं पर रात में 2-2 बजे तक नशा कर के घूमने का आरोप लगाया।
🚩स्थानीय निवासियों ने यह भी बताया कि उनके मोहल्ले में बकरों की मंडी खोलने की तैयारी चल रही है। वीडियो में कुछ लोग बकरों को लेकर खड़े भी दिखे। एक अन्य महिला ने कहा, “हमारे मंदिर के पास मीट की दुकानें खोली जा रहीं हैं।” वहीं टाइम्स नाउ के पत्रकार ने जब इलाके में घूम रही पुलिस की गाड़ी में मौजूद जवानों से बात करनी चाही तो उन्होंने ‘मुझे जानकारी नहीं है’ कह कर पल्ला झाड़ लिया। हालाँकि जयपुर पुलिस ने आधिकारिक तौर पर बताया है कि मामले को संज्ञान में ले कर स्थानीय थाना प्रभारी को कार्रवाई के आदेश जारी कर दिए गए हैं।
🚩बता दें कि मामले से संबंधित खबर की वीडियो तेजी से वायरल हो रही है। टाइम्स नाऊ नवभारत की ग्राउंड रिपोर्ट में ताजा पोस्टरों के बारे में खुलासा हुआ है।
🚩हिंदू हर जगह से भागता ही जा रहा है, पाकिस्तान, बंगलादेश, अफगानिस्तान से भागकर भारत मे आ रहा है पर भारत मे भी 8 राज्यों में हिंदू अल्पसंख्यक बन चुके हैं और उत्तरप्रदेश में भीकई इलाकों से ऐसी खबर आ रही है कि हिंदू पलायन कर रहे है, एक तरफ ईसाई मिशनरियां हिंदुओं का पुरजोर से धर्मांतरण करवा रहे है दूसरी तरफ लव जिहाद, लैंड जिहाद और बलजबरी सेकुछ मुसलमान हिन्दुओं को भगा रहे है। अब हिंदू भाग-भाग कर कहाँ तक जाएगा?
🚩सबसे पहले तो हिंदुओं को चाहिए कि जाति-पाती छोड़कर एक हो जाये दूसरा की हर हिंदू कमसे कम 4 बच्चें पैदा करें और कही भी किसी भी हिंदु पर अत्याचार या षडयंत्र हो रहा हो तो सभीहिंदू तन-मन-धन से उसको सहयोग करें जिससे किसी की भी हिम्मत न चले कोई हिंदू को परेशान करने की, अपने धर्म या धर्मगुरुओं पर एवं हिंदुनिष्ठ नेताओं पर भी जो षड्यंत्र हो रहे है उसको रोकने के लिए भी एक होकर मुहतोड़ जवाब देना चाहिए तभी हिंदुओं का अस्तित्व बचेगा नही तो फिर हर जगह से भागता ही रहेगा और कही भागने की जगह नही मिलेगी।
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Sunday, June 16, 2024
वजन घटाने में दवा की तरह काम करते हैं फाइबर से भरपूर ये 5 फूड्स, आज से ही शुरू करें खाना
🚩वजन घटाने में दवा की तरह काम करते हैं फाइबर से भरपूर ये 5 फूड्स, आज से ही शुरू करें खाना*
16 June 2024
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🚩वजन कम करने के लिए बिना स्टार्च वाली सब्जियों का सेवन करें। फलियां जैसे बीन्स, चने और दाल में अधिक मात्रा में फाइबर और प्रोटीन होता है जिसकी वजह से बार-बार भूख नहीं लगती है।
🚩आजकल हर कोई हेल्दी और फिट रहना चाहता है लेकिन आज के समय में बहुत से लोग मोटापे से परेशान हैं । उनके लिए वजन घटाना किसी चुनौती से कम नहीं है ।
🚩चलिए जानते हैं वजन घटाने के लिए कौन सी ऐसी 5 चीजें हैं जिसे आप अपनी दिनचर्या में शामिल कर सकते हैं
🚩सब्जियां :
वजन कम करने के लिए बिना स्टार्च वाली सब्जियां जैसे ब्रोकली, पालक, गाजर, केल और स्प्राउट्स का सेवन करें । इन सब्जियों में कैलोरी की मात्रा कम होती है और फाइबर भरपूर होने के कारण यह जल्दी वजन घटाने में मददगार होती है
🚩फल :
भागदौड़ भरी जिन्दगी में लोग अक्सर फल खाने के बजाय जल्दी में जूस पीकर निकल जाते हैं । फल में जूस के मुकाबले ज्यादा मात्रा में फाइबर होता है इसलिए जूस के बजाय फल का ही सेवन करना चाहिए । जैसे कि- सेब, नाशपाती, जामुन और संतरे ।
🚩फलियां :
फलियां जैसे बीन्स, चने और दाल में अधिक मात्रा में फाइबर और प्रोटीन होता है, जिसकी वजह से बार-बार भूख नहीं लगती है। इसका सेवन करने से बॅाडी में एनर्जी आती है और वजन घटाने में भी मदद मिलती है।
🚩साबुत अनाज :
साबुत अनाज सेहत के लिए बेहद ही फायदेमंद होता है जैसे कि ओट्स, जौ, क्विनोआ और वीट ब्रेड साबुत अनाज में रिफाइंड अनाज की तुलना में अधिक मात्रा में फाइबर और पोषक तत्व होते हैं जो कि वजन को कम करने में मदद करते हैं ।
🚩नट्स और सीड्स :
नट्स और सीड्स जैसे अलसी के बीज, बादाम, चिया सीड्स और कद्दू के बीज । इन सब में सिर्फ फाइबर ही नहीं बल्कि अधिक मात्रा में हेल्दी फेट और प्रोटीन भी होता है जो कि हेल्थ के लिए काफी सेहतमंद माना जाता है । इसको रोजाना की दिनचर्या में शामिल करने से यह वजन को भी कम करने में मदद करता है ।
🚩एवोकाडो :
एवोकाडो एकमात्र ऐसा फल है जो कि सिर्फ खाने में ही स्वादिष्ट नहीं होता बल्कि इसमें भरपूर मात्रा में फाइबर और हेल्दी फैट होता है । यह सेहत, स्वास्थ्य और त्वचा के लिए बहुत फायदेमंद होता है । इसलिए इसको सुपरफूड भी कहा जाता है
🚩बस आपको अपने खाने पीने और लाइफ स्टाइल में थोड़ा सा फेरबदल करना होगा औऱ फिर आप भी फैट से फिट तक के लक्ष्य को आसानी से हासिल कर सकेंगे।
🚩1. भरपूर पानी पिएं :
पानी हमारे जीवन के लिए ही नहीं बल्कि हमारे शरीर की मशीनरी को सुचारू रूप से नियंत्रित रखने के लिए भी महत्वपूर्ण है। वज़न कम करने का पहला पड़ाव है कि अपने पानी के इनटेक को सुधारें । दिन भर में कम से कम चार लीटर पानी पीना आवश्यक है। इससे आपके शरीर की गंदगी बाहर निकलेगी। वाटर रिटेंशन की समस्या खत्म होगी और पाचन क्रिया सुधरेगी। वास्तव में इस दावे में सच्चाई है कि पानी पीने से वजन घटाने में मदद मिल सकती है।जानकार मानते हैं कि अधिक पानी पीने से आपकी कैलोरी बर्न करने की क्षमता भी बढ़ जाती है । इसलिए जल ही जीवन है को मंत्र को आत्मसात कर लें।
🚩2. चीनी से दूरी बनाएं :
आपका वज़न बढ़ाने में सबसे बड़ा हाथ चीनी का होता है। दिन भर में चाय कॉफी , कोल्ड ड्रिंक्स के सहारे आप काम निपटाते रहते हैं। इसके बाद लंच औऱ डिनर के बाद मीठा खाकर मन को संतुष्ट करते हैं। पर वज़न कम करना है तो इस रुटीन को छोड़ना होगा। अगर आप चाय औऱ कॉफी में चीनी बंद नहीं कर सकते तो इसे धीरे धीरे कम करना शुरु करें। खाने के बाद मीठा खाने का मन हो तो कोई फल खा लें। चीनी न केवल खाली कैलोरी में अधिक होती है, बल्कि आपके मेटाबालिज़्म को भी धीमा कर देती है। इससे मोटापा और दिल से जुड़ी समस्याएं होती हैं।
🚩3. प्रोटीन का सेवन बढ़ाएं :
वजन कम करने के लिए उच्च प्रोटीन आहार को एक सफल रणनीति के रूप में देखा जा सकता है । हाई प्रोटीन आहार लेने से आपके मेटाबालिज़्म में सुधार होता है,पेट भरा होने का एहसास देर तक बना रहता है और शरीर को भरपूर ऊर्जा भी मिलती है।प्रोटीन के सेवन से ट्राइग्लिसराइड्स, रक्तचाप नियंत्रित रहता है और मोटापा तेज़ी से कम होता है। यदि आपके खाने में प्रोटीन का मात्रा कम है तो इसे सुधारें। अपने आहार में अधिक प्रोटीन शामिल करें। रोजाना दाल, पनीर और सोया उत्पादों का सेवन करें। इससे आप वज़न घटाने कि दिशा में एक कदम औऱ बढ़ सकते हैं।
🚩4. वॉक करना शुरु करें :
वज़न घटाने के लिए आहार के साथ शरिर का सक्रिय रहना भी ज़रूरी है। काउच पर बड़े रहकर वज़न कम करने का सपना बस सपना बनकर ही रह जाता हरै। इसलिए खुद को पुश करें और घर के आसपास किसी खुली जगह में वॉक करने का नियम बना लें। वजन घटाने के लिए आदर्श रूप से आपको रोजाना कम से कम 45 मिनट के लिए तेजी से चलना चाहिए। लेकिन अगर आप ऐसा नहीं कर सकते हैं तो सुबह और शाम आधा घंटा टहलने की कोशिश करें। आप शुरुआत 10 मिनट की वॉक से भी कर सकते हैं। धीरे धीरे अपने शरीर सहनशक्ति के हिसाब से इस समय को बढ़ाते जाइए। जानकार मानते हैं कि पैदल चलने से आंतरिक अंगों की मालिश होती है और मेटाबॉलिज्म बढ़ाने में मदद मिलती है। हर भोजन के बाद 1000 कदम चलने की कोशिश करें। अगर आप जल्दी वजन कम करना चाहते हैं तो यह सबसे अच्छा मंत्र है।
🚩5. खाने में फाइबर का मात्रा बढ़ाएं :
तला भुना ,मसालेदार खाना सबके मन को भाता है। खासकर मैदे से बनी चीज़ें तो हमारे खानपान का हिस्सा बन चुकी हैं। पर वज़न घटाने के लिए इन चीजों से दूरी बनानी पड़ेगी। अपने आहार में मैदा हटाकर फाइबर युक्त चीज़ें शामिल करें। फाइबर न केवल कोलेस्ट्रॉल को कम करता है, बल्कि आंत को साफ रखता है और आपको लंबे समय तक तृप्त भी रखता है। जब कोई वजन कम करना चाहता है तो रेशेदार खाना खाना बहुत जरूरी है। अगर आप जल्दी वजन कम करना चाहते हैं तो अपने आहार में साइलियम भूसी, चिया बीज, फल और हरी सब्जियां शामिल करें।
🚩6. खाने में तेल पर रखें लगाम :
भारतीय घरों में पराठा पूड़ी औऱ मसालेदार वाली चीज़ें अधिक खाई जाती हैं । ऐसी अधिकतर डिशों में तेल की एक परत ऊपर से ही तैरती हुई दिख जाती है। यही तेल आपके वज़न कम करने के सपने की राह में अड़चन है। आदर्श रूप से, आपके पास एक महीने में 900 ग्राम से अधिक तेल नहीं होना चाहिए। आप कितना तेल खा रहे हैं, इस पर नज़र रखें और इसका आपके वजन पर स्पष्ट प्रभाव पड़ेगा। कोशिश करें की सब्ज़ियों में तेल नाम मात्र ही डालें। औऱ पूड़ी पराठे के मोह को भी त्याग दें तभी आपकी फिट होने की कोशिश रंग ला सकेगी।
🚩7. खाने को धीरे-धीरे चबाएं :
कई शोधों में इस बात का खुलासा हुआ है कि अगर हम अपना खाना धीरे-धीरे देर तक चबाकर खाते हें तो में ही पेट भरा होने का एहसास होता है। जानकार मानते हैं कि आप अपने खाने के दौरान प्रत्येक निवाले का स्वाद लें और जानबूझकर इसे देर तक चबाते रहें । खाना तभी निगलें जब खाना पूरी तरह से चबा लिया जाए । दरअसल धीरे-धीरे भोजन करने से न केवल हम अपने भोजन का अधिक आनंद लेते हैं बल्कि हमें तृप्ति के बेहतर संकेत भी मिलते हैं।
🚩8. खाना छोड़ें नहीं :
वज़न घटाने की चाह में कई बार लोग खाना स्किप करने लगते हैं । खुद को लम्बे समय तक भूखा रखकर कैलोरी नियंत्रित करने की कोशिश करते हैं।पर ये तरीका ठीक नहीं हैं। शरीर को काम करने के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है। इसलिए अपनी भूख का सम्मान करें और अपने शरीर को यह सोचने की अनुमति न दें कि यह भूखा है। जानकार मानते हैं कि दिन में चार बार खाएं पर थोड़ा थोड़ा कर के खाएं। दिन भर में एक बार ज़रूरत से ज्यादा खाने से आपका मकसद हल नहीं होने वाला।
🚩9. खाने के समय और पोर्शन को अनुशासित करें :
दिनभर में आप जो कुछ भी खा रहे हैं उसका समय सुनिश्चित करें। साथ ही कोशिश करें की सुबह का नाश्ता भरपूर हो पर लंच उससे कुछ छोटा हो और डिनर में बहुत हल्का खाना लें। जो अपना वजन कम करना चाहते हैं और समग्र स्वास्थ्य में सुधार करना चाहते हैं वे इस नियम का पालन करेंगे तो उन्हें अच्छे परिणाम मिल सकते हैं। विशेषज्ञ मानते हैं कि शाम सात बजे के बाद कुछ नहीं खाना चाहिए।आप अपना डिनर 7 बजे तक कर लें औऱ फिर अगले सुबह अच्छा औप पौष्टिक नाश्ता लें। ऐसा करने से आपके शरीर को भोजन पचाने का पूरा समय मिल सकेगा औऱ आप करा वज़न नियंत्रित होगा।
🚩10. चीट मील के बाद कैलोरी का संतुलन बनाएं :
कोई भी व्यक्ति हमेशा खाने को लेकर पूरी तरह अनुशासित नहीं रह सकता । कई बार शादी ,पार्टियों या किसी त्यौहार के मौके पर हम तेल मसालों से भरपूर खाना खा ही लेते हैं। पर आप इस खाने से मिली एक्सट्रा कैलोरीज़ को आने वाले दिनों में कैसे नियंत्रित करते हैं ये महत्वपूर्ण है। बिंज ईटिंग के बाद अगले दो तीन दिनों तक हल्का खाना खाएं। पानी अधिक पिएं और खीरे ,छाछ औऱ तरबूज जैसी चीज़ों का सेवन करें जिससे आपके शरीर में अतिरिक्त कैलोरी को संतुलित किया जा सके।ऐसा कर के आप अपने वज़न घटाने के मिशन को दाबारा ट्रैक पर ला सकते हैं।
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