Wednesday, July 17, 2024
ASI सर्वे: भोजशाला में ब्रह्मा-गणेश-नरसिंह-भैरव की मिली प्रतिमाएं
ASI सर्वे: भोजशाला में ब्रह्मा-गणेश-नरसिंह-भैरव की मिली प्रतिमाएं
18 July 2024
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🚩मध्य प्रदेश के धार जिले में स्थित भोजशाला में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) की सर्वे रिपोर्ट को मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में जमा कर दिया गया है। इस रिपोर्ट में सर्वे में मिली सभी संरचनाओं की जानकारी दी गई है। रिपोर्ट में सर्वे के दौरान मिली मूर्तियों, सिक्कों और चिन्हों के विषय में जानकारी दी गई है।
🚩आजतक की एक रिपोर्ट के अनुसार, इस सर्वे के दौरान चाँदी, तांबे, एल्युमिनियम और स्टील के 31 सिक्के पाए गए है। यह सिक्के अलग-अलग ऐतिहासिक समय के है। इसमें दिल्ली के सल्तनत काल, मुग़ल काल और अलग-अलग समय के हैं। सिक्कों के अलावा 94 वास्तुशिल्प भी मिले है। इनमें मूर्तियाँ, मूर्तियों के खंडित हिस्से और पत्थरों पर उकेरी प्रतिमाएं शामिल है।
🚩इस सर्वे में यह भी पाया गया है कि यहाँ के स्तम्भों पर मूर्तियां उकेरी गई थी। इन पर बने हुए देवता सशस्त्र थे। बताया गया कि इन छवियों में ब्रम्हा, गणेश, नरसिंह और भैरव के साथ ही पशुओं की आकृतियाँ भी है। इनमें कुछ मानव आकृतियाँ भी है।
🚩इसके अलावा इस परिसर के एक हिस्से में भित्तिचित्रों में मानव औए सिंह समेत कई पशुओं के मुख वाली आकृतियाँ भी है। एक हिस्से में यह विकृत की गई थी जबकि कुछ जगह यह सुरक्षित थी। यहाँ कई शिलालेख भी मिले है। इनमें कई रचनाएँ लिखी हुई है। इन रचनाओं से भोजशाला के रूप में जानकारी मिलती है।
🚩बताया गया है कि सर्वे में मिले एक शिलालेख में यहां परमार वंश के राजा नरवर्मन का शासन था। इससे इंगित होता है कि यहां मुस्लिमों के शान करने से पहले हिन्दू शासक, शासन कर रहे थे। रिपोर्ट में यहाँ से मिले अन्य कई शिलालेख और चिन्ह को रिपोर्ट में जगह दी गई है। यह रिपोर्ट 2000 पेज की है।
🚩इस मामले में हिन्दू पक्ष के याचिकाकर्ता आशीष गोयल ने ऑपइंडिया को बताया, “हिन्दू पक्ष की याचिका पर हाई कोर्ट ने यहाँ सर्वे का आदेश ASI को दिया था। यहाँ 98 दिन तक सर्वे चला। इस सर्वे में 1700 से अधिक अवशेष मिले है। इनमें 39 से अधिक मूर्तियाँ और प्रतिमाएँ है। इनमें गदा, पद्म, कमल और स्तम्भ के टुकड़े है। अब इस विषय में 22 जुलाई, 2024 को कोर्ट में सुनवाई है। हम इस मामले में कोर्ट से रिपोर्ट सार्वजनिक करने की अपील करेंगे।”
🚩मालूम हो कि इस संबंध में हिंदू पक्ष ने याचिका डाली हुई है कि भोजशाला उनकी माँ वाग्देवी का मंदिर है। वहीं मुस्लिम पक्ष इसे अपना मजहबी स्थल बताकर सर्वे के खिलाफ बोल रहे है। इस मामले में 11 मार्च को इंदौर हाईकोर्ट ने सुनवाई के बाद सर्वे की अनमुति दी थी। 22 मार्च से सर्वे शुरू हुआ, 1 अप्रैल को मुस्लिम पक्ष इसे रोकने सुप्रीम कोर्ट पहुँचा, 29 अप्रैल को एएसआई के आवेदन पर सर्वे की समयसीमा और बढ़ाई गई, अब इस मामले में ASI ने अपनी रिपोर्ट कोर्ट को सौंप दी है।
🚩वाग्देवी मंदिर कैसे बना कमालुद्दीन मस्जिद
🚩गौरतलब है कि भोजशाला विवाद बहुत पुराना विवाद है। हिंदू पक्ष का मत है कि ये माता सरस्वती का मंदिर है जिसकी स्थापना राजा भोज ने सन् 1000-1055 के मध्य कराई थी। सदियों पहले मुसलमान आक्रांताओं ने इसकी पवित्रता भंग करते हुए यहाँ मौलाना कमालुद्दीन (जिस पर तमाम हिंदुओं को छल-कपट से मुस्लिम बनाने के आरोप है) की मजार बना दी थी जिसके बाद यहाँ मुस्लिमों का आना जाना शुरू हो गया और अब इसे नमाज के लिए प्रयोग में लाया जाता है। हालाँकि हिंदू पक्ष का कहना है कि ये उनका मंदिर ही है क्योंकि आज भी इसके खंभों पर देवी-देवताओं के चित्र और संस्कृत में श्लोक लिखे साफ दिखते हैं। इसके अलावा दीवारों पर ऐसी नक्काशी है जिसमें भगवान विष्णु के कूर्मावतार के बारे में दो श्लोक हैं।
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Tuesday, July 16, 2024
ईसाइयत से भी पुराना गुजरात का शहर मांस-मछली से हुआ मुक्त
ईसाइयत से भी पुराना गुजरात का शहर मांस-मछली से हुआ मुक्त
17 July 2024
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🚩गुजरात के भावनगर में स्थित पालिताना शहर में मांसाहारी भोजन और मांस की बिक्री पर पूरी तरह से बैन लगा दिया गया है। पालिताना शहर जैन धर्म के सबसे पवित्र नगरों में से एक है। इसी के साथ पालिताना दुनियां का पहला ऐसा शहर बन गया है, जहां मांसाहारी भोजन पर संपूर्ण प्रतिबंध लग गया है।
🚩भावनगर जिले में स्थित पालिताना में 250 से अधिक मांस बिक्री केंद्र चल रहे थे, जिसका विरोध जैन धर्म के साधु-संत लगातार कर रहे थे। जैन साधुओं ने कहा कि अहिंसा जैन धर्म का मुख्य सिद्धांत है। ये जगह जैन धर्म के लिए पवित्र है, खासकर शत्रुंजय पहाड़ियों का क्षेत्र,इसलिए यहाँ मांसाहार,पशु वध पर पूरी तरह से बैन लगना चाहिए। प्रशासन ने उनकी माँगों को सुना और पालिताना में मांस पर संपूर्ण बैन का आदेश जारी कर दिया। पालिताना शहर में मांसाहारी भोजन पर प्रतिबंध को लेकर गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेन्द्र पटेल का भी समर्थन मिला है।
🚩पालिताना जैनियों के लिए सबसे पवित्र तीर्थ स्थानों में से एक है और यह स्थान, जो शत्रुंजय पहाड़ियों में स्थित है, इसको जैन मंदिर शहर के रूप में भी जाना जाता है।
पालिताना शहर में 800 जैन मंदिर हैं। शहर में सबसे प्रसिद्ध जैन मंदिर आदिनाथ मंदिर है,जो जैन धर्म के पहले तीर्थंकर थे। पालिताना न केवल पर्यटन के लिए बल्कि अपने धार्मिक महत्व के कारण भी ऐतिहासिक शहरों में से एक है। यह मंदिर,इस क्षेत्र के अन्य मंदिरों के समूह के साथ, जैनियों के लिए सबसे महत्वपूर्ण तीर्थ स्थलों में से एक रहा है और यह 5वीं शताब्दी ईस्वी पूर्व का है।
🚩जैन धर्मियों के लिए पालिताना का वही महत्व है जो हिंदुओं के लिए राम जन्मभूमि, ईसाइयों के लिए येरुशलम और मुस्लिमों के लिए मक्का का है। जैन, पालिताना को पवित्र मानते हैं क्योंकि यह शत्रुंजय पहाड़ियों का उद्गम स्थल है, जिसे ‘शाश्वत भूमि’ कहा जाता है जो समय के उतार-चढ़ाव से बच जाएगी और आने वाले समय में अरबों आत्माओं के लिए धार्मिकता और मोक्ष का प्रतीक बनी रहेगी।
🚩जैन धर्म के अनुसार, अनगिनत आत्माओं ने पवित्र शत्रुंजय तीर्थ के माध्यम से मोक्ष या ‘निर्वाण’ प्राप्त किया है। जिसमें वर्तमान चक्र के पहले तीर्थंकर,भगवान आदिनाथ, इक्ष्वाकु वंश के संस्थापक शामिल हैं – यह नाम एक घटना से लिया गया है जिसमें एक जैन श्रावक ने भगवान आदिनाथ की 400 दिनों से अधिक की कठोर तपस्या को तोड़ने के लिए इक्षु रस (गन्ने का रस) चढ़ाया था, जिसे जैन भाषा में ‘वर्षिप्तप’ के रूप में जाना जाता है। जैनियों के अनुसार, यह धार्मिक तीर्थस्थल अरबों साल पुराना है और आने वाले समय तक अनंत काल तक सुरक्षित रहेगा।
🚩जैन धर्म के मूल में अहिंसा, सिर्फ इंसान ही नहीं जानवरों के लिए भी नियम मान्य है।
शत्रुंजय पहाड़ियों की यह पवित्रता और शीर्ष पर स्थित धार्मिक मंदिर, साथ ही जैन धर्म का मूल सिद्धांत अहिंसा है जो पालिताना में मांस की बिक्री और खपत पर प्रतिबंध लगाने की मांग का आधार बनता है।
अहिंसा जैन धर्म का एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है जो इसकी नैतिकता की आधारशिला है। इसका अर्थ है, पूरी तरह से हानिरहित होना, न केवल अपने प्रति बल्कि दूसरों के प्रति भी, जिसमें जीवन के सभी रूप शामिल हैं, सबसे विकसित जीवों से लेकर पृथ्वी पर के सबसे छोटे सूक्ष्मजीवों तक।
🚩जैन धर्म सभी जीवित प्राणियों के लिए समान अधिकारों का दावा करता है, चाहे उनका आकार, रूप या आध्यात्मिक विकास कुछ भी हो। किसी भी जीवित प्राणी को किसी अन्य जीवित प्राणी को नुकसान पहुँचाने, घायल करने या मारने का अधिकार नहीं है, चाहे वह जानवर, कीड़े या पौधे क्यों न हों। सिर्फ इंसान ही नहीं बल्कि प्रत्येक जीवित प्राणी का जीवन पवित्र है। - जतिन जैन
🚩आपको बता दे की पशु-प्रेमी संस्थाओं ने मिलकर एनिमल किल क्लॉक नाम की वेबसाइट तैयार की, जो अमेरिकी डिपार्टमेंट ऑफ एग्रीकल्चर के साथ मिलकर काम करती है। रोज कितने जानवर मारे जा रहे हैं, यहां उसका डेटा और लाइव अपडेट भी रहता है। फिलहाल इसका बड़ा हिस्सा अमेरिका में एनिमल किलिंग पर फोकस करता है लेकिन इसमें दुनियां में मारे जाने वाले जानवरों के आंकड़े भी दिए जाते हैं।
एनिमल किल क्लॉक के अनुसार रोज 20 करोड़ जानवरों की (हमारी प्लेट में आ सकें) इसलिए हत्या हो रही है। ये आंकड़े केवल ऑफिशियल है बाकी तो कितने जानवर कट जाते है उसकी कोई गिनती नहीं है।
सनातन संस्कृति और मानवी संवेदना के अनुसार जीव हत्या करना गुनाह और बड़ा पाप है, इसलिए केवल शाकाहारी भोजन ही ग्रहण करे।
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Monday, July 15, 2024
हिन्दू सभ्यता को बचाए रखने के लिए आखिर हम क्या कर सकते है ?
हिन्दू सभ्यता को बचाए रखने के लिए आखिर हम क्या कर सकते है ?
16 July 2024
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🚩सदियों से ब्रिटिश शासकों एवं इस्लामिक आक्रांताओं द्वारा आक्रमण और दमन का दौर झेलने के बाद कुछ दशक पहले ही हिन्दू सभ्यता ने राजनैतिक स्वतंत्रता हासिल करके दोबारा साँस भरनी शुरू की थी,लेकिन अब लगता है शायद फिर से यह अंधकार की ओर जाने की कगार पर है।
🚩इस पीढ़ी के अधिकांश लोगों के लिए उस संघर्ष,कठिनाई और उत्पीड़न की कल्पना भी कर पाना असंभव है जो हमारे पूर्वजों ने असहिष्णु और शत्रुतायुक्त राजनीतिक शासन के अधीन रहकर झेला है।
यह एक विडम्बना है कि हमारी वर्तमान ‘सेक्युलर’ शिक्षा न केवल हमारे सच्चे इतिहास पर लीपापोती कर बनी है,बल्कि वास्तविक अतीत तक जाने में भी हमारे सामने सबसे बड़ा रोड़ा बनकर खड़ी है।
अगर,ऐसा नहीं होता तो आज हम सामाजिक, राजनैतिक और सभ्यागत मोर्चों पर इस्लामिक प्रभुत्व के फिर से उभरने के संकेतों को स्पष्टरुप से देख पाते। खुद सोचिए, हमारे मंदिर पूर्व काल में भी तोड़े जाते थे और आज भी तोड़े जा रहें हैं; हमारी स्त्रियां तब भी अत्याचार का शिकार होती थी और आज भी हो रहीं है; हिन्दू तब भी संकट में थे और आज भी हैं। उस समय भी हमारे पूर्वज जजिया कर देते थे, वह भी दूसरे-तीसरे दर्जे के नागरिक बनकर जीने के लिए और अब भी देश की बहुसंख्यक आबादी जजिया-2.0 के अंतर्गत अल्पसंख्यकों के लिए विशिष्ट स्कीमों को वित्तपोषित करती है। आज हिन्दूओं के खिलाफ, छोटे स्तर पर होने वाली जिहाद की घटनाओं में लगातार वृद्धि देखने को मिल रही है।
हाल ही में हिंदुस्तान के ‘दिल’ नई दिल्ली में दुर्गा मंदिर पर हुए हमले,इस बात का पुख्ता सबूत है कि हमलावर दिन-ब-दिन कितने बेख़ौफ़ होते जा रहे हैं।
🚩इन सीधे-सीधे हमलों में अगर ईसाईयों द्वारा अपने पंथ का आक्रामक प्रचार,आदिवासी इलाकों का तेजी से ईसाइकरण, भारत को तोड़ने और हिन्दूवादी ताकतों को उखाड़ने के लिए हिंदुओं की सभ्यता और संस्कृति पर हुए हमलों को जोड़ दिया जाए तो पता चलेगा कि सनातन सभ्यता के दोबारा अंधकार में जाने में अब ज्यादा समय नहीं बचा है- अगर, हिन्दू अपनी सभ्यता पर मँडराते इस खतरे को भांपकर, इसके खिलाफ उचित कदम नहीं उठाते हैं तो!
🚩मुझ से अक्सर पूछा जाता है कि हम हिंदू व्यक्तिगत रूप से इस स्थिति के बारे में क्या कर सकते हैं? हम सबके पास अपनी नौकरी की चिंता है, अपना परिवार है। इसके अलावा हमारे पास एकता नहीं है, न ही धन है, और न ही कुछ करने की राजनीतिक शक्ति है।
🚩हालाँकि, यह सच है कि व्यक्तिगत रूप में हमारे साधन सीमित हैं और यह भी सच है कि इन ज्वलंत मुद्दों को दूर करना सरकार की जिम्मेदारी है जो दुर्भाग्य से वर्तमान सरकार हिन्दू जनादेश पर सत्ता में आने के बावजूद कर नहीं रही है बल्कि उसकी जगह ‘सबका साथ सबका विश्वास’ के नाम पर तुष्टिकरण की नीतियों की घोषणा कर उसे कार्यन्वित कर रही है। मगर उतना ही सत्य ‘यथा राजा तथा प्रजा’ का लोकतांत्रिक उलट ‘यथा प्रजा, तथा राजा’ है। इसलिए इस महान हिन्दू सभ्यता के व्यक्तिगत उत्तराधिकारियों के रूप में हमारी हर एक व्यक्ती की जिम्मेदारी बनती है कि हम अपने-अपने स्तर पर सनातन संस्कृति का उत्कर्ष करें।
🚩‘कौरवों’ की पहचान
किसी भी काम को करने में पहला कदम उसमें निहित चुनौतियों को पहचानना है। इन चुनौतियों को हम भिन्न-भिन्न प्रकार के ‘कौरवों’ के रूप में सोच सकते हैं। हिन्दू संरचना में हम जीवन और समाज को समझने के लिए धर्म-अधर्म की श्रेणियों का प्रयोग करते हैं। महाभारत में हम ऐसे चित्रणों को पाएँगे जिन में कई प्रकार की अधर्मी ताकतें स्पष्ट होती है।
🚩सबसे पहले दुर्योधन, जो अधर्म का अवतार था- धर्मराज युद्धिष्ठिर का प्रतिद्वंद्वी।
दूसरा कर्ण, जो दुर्योधन (अधर्म) की कुचालों में सक्रिय रूप से सहायक था;
तीसरे भीष्म, जो न चाहते हुए भी दुर्योधन की तरफ से लड़कर अधर्म का साथ दे रहे थे;
चौथे धृतराष्ट्र, जो बिना कुछ किए आँख बंद करके निष्क्रिय रूप से दुर्योधन के साथ खड़े होकर अधर्म के साथी थे।
🚩हम इन सभी प्रकार के अधर्मियों को आज के समाज में देख सकते हैं। आज इस्लाम और ईसाईकरण जैसी धर्म-विरोधी ताकतें भारत और हिंदुत्व/हिन्दू-धर्म को तोड़ना चाहतीं हैं। मीडिया, एनजीओ, नौकरशाहों का गठजोड़ इन अधार्मिक ताकतों के लिए सक्रिय सहयोगियों का काम कर रहे हैं। फिर कुछ अनचाहे सहयोगी हैं, जिन्हें बल,धोखाधड़ी और अन्य साधनों का प्रयोग करके सहयोग करने के लिए ब्लैकमेल किया जाता है।अंत में हमारे पास बड़ी तादाद में ऐसे लोग हैं जो खुद को धोखे में रखकर, ‘धिम्मी, बने रहकर ‘सर्वधर्म समभाव’ का प्रपोगंडा आगे बढ़ाते हैं और अंततः धृतराष्ट्र की भाँति अधर्म का प्रतिरोध न कर उसके सहयोगी ही बन जाते हैं।
🚩संक्षेप में कहूँ तो ‘कुछ नहीं करना’ बहुत लंबे समय तक विकल्प नहीं रहने वाला है। क्योंकि, कुछ नहीं करना आपको हिंदू सभ्यता के विरोधियों का अप्रत्यक्ष रूप से सहयोगी बनाता है।
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Sunday, July 14, 2024
ब्रिटेन में शिवानी राजा ने हाथ में श्रीमद्भगवद्गीता लेकर ली शपथ
ब्रिटेन में शिवानी राजा ने हाथ में श्रीमद्भगवद्गीता लेकर ली शपथ
15 July 2024
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🚩भारत में कुछ नेता अपनी भारतीय संस्कृति की महिमा को समझ नहीं पा रहे है और ज्ञानहीन,अनुभव रहित नेता, तो भरी संसद में हिंदुओं को हिसंक बता रहें है।
जबकि,ब्रिटेन की संसद में शिवानी राजा हाथ में श्रीमद्भगवद्गीता लेकर शपथ ग्रहण करती है। इनसे,भारतीय नेताओं को सिख लेकर समझना चाहिए की भारतीय संस्कृति कितनी महान है जो समस्त मानवजाति को स्वस्थ,सुखी और सम्मानित जीवन जीने की कला सिखाती है और मानव से महेश्वर बनाने तक का ज्ञान प्रदान करती है।
🚩आपको बता दे की ब्रिटेन के आम चुनावों में लीसेस्टेर ईस्ट से जीती,भारतीय मूल की शिवानी राजा ने संसद में शपथ ली तो सब देखते रह गए।
ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि शिवानी राजा ने शपथ लेते वक्त श्रीमद्भगवद्गीता को हाथ में पकड़ा हुआ था। उनके हाथ में भगवत गीता देख संसद में बैठे सारे लोग हैरान थे। शिवानी ने इसी माहौल में अपनी सांसद पद की शपथ ली। उन्होंने कहा - “मुझे गीता पर हाथ रखकर महामहिम राजा चार्ल्स के प्रति अपनी निष्ठा की शपथ लेने पर गर्व है।”
https://x.com/ShivaniRaja_LE/status/1811047130535977148?t=eUZS_BSMxDGzxmk3t8nfqw&s=19
🚩बता दें कि खुद को गर्व से हिंदू कहने वाली शिवानी राजा ने ब्रिटेन के लीसेस्टर ईस्ट से जीत हासिल की है। उन्होंने कंजर्वेटिव पार्टी की ओर से जीत हासिल करके लेबर पार्टी के उम्मीदवार राजेश अग्रवाल को हराया। शिवानी राजा को इस चुनाव में 14,526 वोट मिले और लेबर पार्टी के राजेश अग्रवाल को मात्र 10,100 वोट मिले। इसके अलावा लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी के ज़ुफ्फर हक़ केवल 6329 वोट हासिलकर पाए।
🚩उल्लेखनीय है कि शिवानी राजा के साथ ही कंजर्वेटिव पार्टी के लिए भी यह बड़ी जीत है। कंजर्वेटिव पार्टी को यह जीत 37 साल बाद हासिल हुई है। इस सीट पर लगातार लेबर पार्टी कब्जा कर रही थी।
शिवानी राजा लीसेस्टर में जन्मी पहली पीढ़ी की ब्रिटिश नागरिक हैं और एक कट्टर हिंदू है।
🚩शिवानी राजा की वेबसाइट के अनुसार, शिवानी राजा के माता-पिता 70 के दशक के अंत में केनिया और भारत से लीसेस्टर चले गए थे। शिवानी ने डी मोंटफोर्ट यूनिवर्सिटी से अपनी शिक्षा पूरी की है। उन्होंने फार्मास्युटिकल और कॉस्मेटिक साइंस में ग्रेजुएशन किया है और बाद में इंग्लैंड में कुछ बड़े कॉस्मेटिक्स ब्रांड के साथ काम भी किया है।
पिछले महीने की शुरुआत में वह लीसेस्टर पूर्व में हिन्दू कथावाचक गिरिबापू के ‘शिव कथा’ कार्यक्रम में शामिल हुईं थी।
🚩29 साल की शिवानी ने लीसेस्टर में जीत ऐसे माहौल में हासिल की है जहाँ 2022 में भारत बनाम पाकिस्तान टी20 एशिया कप मैच के बाद इस्लामी कट्टरपंथियों ने जमकर हिंसा की थी और हिंदुओं को निशाना बनाया था। ऐसे में शिवानी का इस जगह से जीता जाना एक न केवल कन्जर्वेटिव पार्टी की जीत मानी जा रही बल्कि हिंदुओं की जीत से भी इसे जोड़ा जा रहा है। शिवानी के अलावा यूके के आम चुनाव में 27 अन्य भारतीय मूल के सांसद हाउस ऑफ कॉमन्स के लिए चुने गए हैं।
🚩इंग्लैंड के एफ.एच.मोलेम ने कहा है की भगवदगीता ऐसे दिव्य ज्ञान से भरपूर है कि उसके अमृतपान से मनुष्य के जीवन में साहस, हिम्मत, समता, सहजता, स्नेह, शान्ति और धर्म आदि दैवी गुण विकसित हो उठते हैं। साथ ही,अधर्म और शोषण का मुकाबला करने का सामर्थ्य भी आ जाता है। अतः प्रत्येक युवक-युवती को गीता के श्लोक कण्ठस्थ करने चाहिए और उनके अर्थ में गोता लगाकर अपने जीवन को तेजस्वी बनाना चाहिए।
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Saturday, July 13, 2024
जातिवाद को मिटाने के हमारे पूर्वजों का एक विस्मृत प्रयास , आज हमें भी करना चाहिए
जातिवाद को मिटाने के हमारे पूर्वजों का एक विस्मृत प्रयास , आज हमें भी करना चाहिए
14 July 2024
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🚩1926 में पंजाब में आद धर्म के नाम से अछूत समाज में एक मुहिम चली। इसे चलाने वाले मंगू राम, स्वामी शूद्रानन्द आदि थे। ये सभी दलित समाज से थे। स्वामी शूद्रानन्द का पूर्व नाम शिव चरन था। उनके पिता ने फगवाड़ा से जालंधर आकर जूते बनाने का कारखाना लगाया था। उन्होंने आर्यसमाज द्वारा संचालित आर्य हाई स्कूल में 1914 तक शिक्षा प्राप्त की थी। बाद में आर्यसमाज से अलग हो गये। इनका उद्देश्य दलित समाज को यह सन्देश देना था कि वो हिन्दू धर्म त्याग कर चाहे सिख बने, चाहे मुसलमान और चाहे ईसाई। पर हिन्दू न रहे। सत्य यह है जातिवाद एक अभिशाप है जिसका समाधान धर्म परिवर्तन से नहीं होता। उस काल में संयुक्त पंजाब के दलित स्यालकोट, गुरुदासपुर में ईसाई या सिख बन गये और रावलपिंडी, लाहौर और मुलतान में मुसलमान बन गए। पर इससे जातिवाद की समस्या का समाधान नहीं निकलता था। सिख बनने पर उसे मज़हबी कहा जाने लगा, ईसाई बनने पर मसीही और मुसलमान बनने पर मुसली। अपने आपको उच्च मानने वाले गैर हिन्दू अभी भी उसके साथ रोटी-बेटी का सम्बन्ध नहीं रखते थे। सिखों के हिन्दू समाज का पंथ के रूप में सम्मान था पर जो दलित हिन्दू जैसे रहतियें, रविदासिए, रामगढिये आदि थे उनके साथ उच्च समझने वाले सिखों का व्यवहार भी छुआछूत के समान था। आर्यसमाज ने ऐसी विकट परिस्थिति में अछूतोद्धार का कार्य प्रारम्भ किया। अछूतों के लिए आर्यों ने सार्वजनिक कुएँ खोले तो उनके बच्चों को पढ़ाने के लिए पाठशालाएँ और शिल्प केंद्र। पंडित अमीचंद शर्मा ब्राह्मण परिवार में जन्में थे। आपके ऊपर अछूतोद्धार की प्रेरणा ऐसी हुई कि आपने वाल्मीकि समाज में कार्य करना प्रारम्भ किया। आपने वाल्मीकि प्रकाश के नाम से पुस्तक भी लिखी थीं। इस पुस्तक में वाल्मीकि समाज को उनके प्राचीन गौरव के विषय में परिचित करवाया गया था।
🚩आद धर्म सामाजिक सुधार से अधिक राजनीतिक महत्वाकांक्षा की ओर केंद्रित गया। 1931 की जनगणना में आद धर्म को जनगणना में हिन्दुओं से अलग लिखवाने की कवायद चलाई गई। इसके लिए अछूत समाज में जनसभायें आयोजित की जाने लगी। आर्यों ने इस स्थिति को भांप लिया। उन्हें कई दशक से अछूतोद्धार और विधर्मी बन गए अछूतों को वापिस शुद्ध कर सहधर्मी बनाने का अनुभव था। ऐसी ही एक जनसभा में शूद्रानन्द भावनाओं को भड़काने का कार्य कर रहा था। वो कहता था कि मुसलमान बन जाओ पर हिन्दू न रहो। आर्यों को उनकी सुचना मिली। आर्यसमाज के दीवाने पंडित केदारनाथ दीक्षित (स्वामी विद्यानंद के पिता) और ठाकुर अमर सिंह जी ( महात्मा अमर स्वामी) उस सभा में जा पहुंचे। कुछ देर सभा को देखकर दोनों खड़े हो गये। फिर ऊँची आवाज़ में बोले- 'मैं बिजनौर का रहने वाला जन्म का ब्राह्मण हूँ, और ये अरनिया जिला बुलंदशहर के रहने वाले राजपुर क्षत्रिय हैं। स्वामी शूद्रानन्द कहते हैं कि हम तुम से घृणा करते हैं। तुम लोगों में से कोई दो गिलास पानी ले आये। पानी आ गया। एक गिलास पंडित जी ने पिया हुए एक अमर सिंह जी ने। दो मिनट में शूद्रानन्द का बना बनाया खेल बिगड़ गया। और हज़ारों लोग मुसलमान बनने से बच गये। पंडित केदारनाथ स्वामी दर्शनानन्द के उपदेशों को सुनकर आर्य बने थे। उस काल में जब अछूत के घर का कोई पानी पीना तक पाप मानता था ,तब आर्यों के उपदेशकों ने जमीनी स्तर कर अछूतोद्धार का कार्य किया था। उनका लक्ष्य राजनीतिक महत्वाकांशा को पूरा करना नहीं था अपितु मानव मात्र के साथ बंधु और सखा के समान व्यवहार करना था। आजकल के दलितोद्धार के नाम से दुकान चलाने वाले क्या शूद्रानन्द के राह पर नहीं चल रहे। - डॉ विवेक आर्य
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Friday, July 12, 2024
अदालतें कह रहीं धर्मांतरण रोको ? बहुसंख्यकों के अल्पसंख्यक होने का खतरा कितना बड़ा ?
अदालतें कह रहीं धर्मांतरण रोको ? बहुसंख्यकों के अल्पसंख्यक होने का खतरा कितना बड़ा ?
13 July 2024
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🚩हाल में इलाहाबाद की अदालत ने भारत में बहुसंख्यक हिंदुओ के अल्पसंख्यक होने की आशंका जताते हुए धर्मांतरण को रोकने के मामले में टिप्पणी की थी। वहीं झारखंड की हाई कोर्ट ने तो कहा था कि भारत में अवैध रूप से घुसपैठ करने वाले बांग्लादेशियों को चिह्नित करके वापस से भेजना चाहिए क्योंकि वो यहाँ आकर जनजातीय लड़कियों को अपने जाल में फँसाते हैं और धर्मांतरण कराते हैं।
🚩इलाहाबाद हाई कोर्ट और झारखंड हाई कोर्ट ने भले ही ये बातें अलग-अलग मामलों में की हो, लेकिन इनके मायने समझेंगे तो पता चलेगा कि मामला कितना गंभीर है। एक तरफ अदालत मान रहा है कि अगर धर्मांतरण का खेल चलता रहा तो बहुसंख्यक अल्पसंख्यक हो जाएँगे और दूसरी ओर दिख भी रहा है कि कैसे घुसपैठ के बाद एसटी महिलाओं को फँसाते हुए उनका धर्मांतरण कराया जा रहा है, फिर वहीं रहते हुए नए मदरसे खुल रहे हैं और आबादी में परिवर्तन का खेल चल रहा है।
🚩अदालतों की ये बातें निराधार बात नहीं है। भारत को स्वतंत्र हुए 75 साल हो गए हैं। इतने समय से मुस्लिमों को अल्पसंख्यक श्रेणी में रखा जाता है, मगर जिस हिसाब से इनकी रफ्तार बढ़ रही है उसे देख ऐसा लगता है कि ओडिशा हाई कोर्ट की चिंता जायज है।
🚩1951 और 2011 में हुई जनगणना
1951 में हुई जनगणना के अनुसार, भारत में हिंदुओं की आबादी 30.5 करोड़ (84.1%), सिखों की 60 लाख 86 हजार (1.9%), ईसाइयों की 80 लाख के आसपास और मुसलमानों की जनसंख्या 3.54 करोड़ (9.8%) थी। वहीं 2011 की जनगणना में यदि देखें तो कुल 121.09 करोड़ की जनसंख्या में हिंदू 96.63 करोड़ यानी 79.8% हो गए। वहीं मुस्लिम की संख्या बढ़कर 17.22 करोड़ (14.2%) हो गई; ईसाई 2.78 करोड़ (2.3%); सिख 2.08 करोड़ (1.7%)।
🚩अब इन दोनों जनगणनाओं की यदि तुलना करें तो पता चलेगा कि हर धर्म के लोगों की जनसंख्या में बढ़ते समय के साथ गिरावट आई है जबकि सिर्फ मुस्लिम ऐसे हैं जो इतने सालों में निरंतर बढ़े हैं। 1951 में ये 9.8% थे जो कि अब बढ़कर 14.2% हो गए हैं।
🚩हिंदुओं की घटी हिस्सेदारी
इसके अलावा अभी हाल में भी ये चिंताजनक आँकड़े प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद की साइट पर उपलब्ध अध्य्यन से ही उजागर हुए थे। इसमें बताया गया था कि कैसे बीते सालों में हिंदुओं की हिस्सेदारी घटी है। रिपोर्ट में बताया गया था कि 1950 से लेकर 2015 के बीच, भारत में बहुसंख्यक आबादी में 7.82% की उलेखनीय गिरावट आई। पहले हिंदू 84.68 फीसदी थे और अब सिर्फ 78.06 रह गए हैं। जबकि इसी अवधि के दौरान अल्पसंख्यकों की हिस्सेदारी में वृद्धि दर्ज की गई। रिपोर्ट के अनुसार 1950 में मुस्लिम आबादी का हिस्सा 9.84 प्रतिशत था और 2015 में बढ़कर 14.09 प्रतिशत हो गया।
🚩इस रिपोर्ट पड़ोसी मुल्कों से जुड़े आँकड़े भी दिए गए थे जिनको देखने पर साफ हुआ था कि ये भारत ही है जहाँ अल्पसंख्यकों की संख्या में बढ़त देखने को मिली और बहुसंख्यक कम होते गए। वरना बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान इन तीनों मुल्कों में बहुसंख्यक आबादी यानी मुस्लिम सिर्फ बढ़े ही बढ़े हैं। कम हुए हैं तो हिंदू धर्म के लोग।
🚩इसलिए ये कहना कि समय के साथ जनसंख्या में ऐसे परिवर्तन देखना आम है एकदम गलत तथ्य है। अगर ऐसा होता तो बाकी मुल्कों में भी संख्या बढ़ी-घटी होती। सारे देशों की तुलना में अगर कुछ समान चीज को खोजें तो पाएँगे सिर्फ और सिर्फ मुस्लिमों को हर जगह बढ़ना ही एक कॉमन चीज है। इसके अलावा अगर मीडिया रिपोर्ट्स आदि पढ़कर समझेंगे तो पता चलेगा कि जिन जगहों पर मुस्लिमों की ऐसी वृद्धि हुई है वहाँ पहले से बसे हिंदू या अन्य वर्ग के लोग अपने आप कम हुए हैं और इस बदलाव ने कई जगह की डेमोग्राफी भी बदली है।
🚩डेमोग्राफी बदलना सामान्य नहीं
डेमोग्राफी का बदलना कोई सामान्य प्रक्रिया नहीं होती, वो भी तब जब धीरे-धीरे दिखने वाले इस बदलाव के साथ उस क्षेत्र के तौर-तरीकों और रहन-सहन में बदलाव दिखने लगे। सोचिए, 1930 में कराची की तस्वीर में महाशिवरात्रि के मेले की भीड़ दिखती थी क्योंकि वहाँ का इलाका हिंदू बहुल था मगर भारत से अलग होने के बाद वो जगह मुस्लिम बहुल हुई और आज कोई हिंदू वैसे उत्सव की कल्पना भी कराची में नहीं कर सकता। हाँ! अगर कल्पना कर सकता है तो धर्मांतरण की जैसा कि पाकिस्तान से आने वाली रिपोर्ट्स बताती हैं।
🚩पता रहे कि आज के समय में भारत में डेमोग्राफी बदलाव काफी चिंता का विषय है। उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, असम जैसे राज्यों के कई सीमा से सटे क्षेत्र में 10 सालों में अप्रत्याशित परिवर्तन देखने को मिला है। 2022 की खबर के अनुसार, उत्तर प्रदेश और असम बॉर्डर वाले इलाकों में अचानक से 32% फीसदी बढ़ने की जानकारी आई थी जबकि पूरे राज्य में मिलाकर ये दर 10-15 फीसद बढ़ी बताई गई थी। इसी तरह उत्तराखंड
में भी 11 साल में मुस्लिम आबादी में हुई बढ़ोतरी की खबरें 2022 में सामने आई थी।
🚩ये दुर्भाग्य है कि हमने अपने इतिहास से कुछ नहीं सीखा क्योंकि डेमोग्राफी में होने वाले बदलाव तो कोई अभी की बात नहीं है। इनपर चिंता तो तभी से होने चाहिए थी जब इस्लाम के नाम पर भारत का 8 लाख वर्ग किलोमीटर उठाकर पाकिस्तान को दे दिया गया। आज उसी क्षेत्र में देख लीजिए हिंदुओं के हालात क्या है। आए दिन वहाँ से अल्पसंख्यको के साथ धर्मांतरण, रेप की खबरें आती हैं। इसके बाद यही बांग्लादेश में भी हुआ। भारत का करीबन डेढ़ लाख वर्ग किलोमीटर उनको दे दिया गया। वहाँ भी आज के समय में पाकिस्तान जैसा ही अल्पसंख्यकों को हाल है। अगर कोई धर्मांतरण के खेल से बच जाए तो उस पर ईशनिंदा के आरोप लगाकर अत्याचार किए जाने लगते हैं। इसी तरह अफगानिस्तान, एक समय में ये भी भारत का हिस्सा था, मगर अब वहाँ 6 लाख वर्ग किलोमीटर में इस्लाम का बोल बाला हो गया है।
🚩हिंदुओं को सतर्क होना क्यों जरूरी
अनुपम सिंह अपनी रिपोर्ट में कहते हैं कि बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान तो इस्लामी कट्टरवाद की बस 33 फीसद सफलता है, बाकी की जीत तो उनकी ‘गजवा-ए-हिंदुस्तान’ के सपने के साथ पूरी होगी। ‘गजवा-ए-हिंद’ यानी पूरे भारत पर इस्लाम का राज…। आज धीरे-धीरे हो रहा डेमोग्राफी बदलाव इसी मकसद को पूरा करने के लिए उठाए गए कदम हैं जिसके लिए इस्लामी कट्टरपंथी तरह-तरह से लगे हैं। उन्हें कम आँकने वालों को समझना होगा कि राज्यों में होने वाले डेमोग्राफी सामान्य नहीं हैं। न ही ये कोई हवा-हवाई बातों से उठी चिंचा है। अतीत में इसके दुष्परिणाम भारत झेल चुका है और अगर अब भी वो नहीं सतर्क हुए तो हाल बुरे हो सकते हैं। शायद अगला कराची भारत का कोई इलाका हो जहाँ हिंदुओं को अपने पर्वों का उत्साह धीरे-धीरे भूलना पड़े और आदत लग जाए इस्लामी तौर-तरीकों के हिसाब से जीने की। आप समझ भी नहीं पाएँगे कब ये समस्या दूसरे के क्षेत्र से उठकर आपके क्षेत्र में पहुँच जाएगी और आपको उस क्षेत्र से निकलने पर मजबूर कर देगी। वर्तमान में कई मामले आ चुके हैं जहाँ मुस्लिम संख्या बढ़ने पर उसे मुस्लिम इलाका अपने आप घोषित कर दिया जाता है। - जयन्ती मिश्रा
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Thursday, July 11, 2024
वैदिक संस्कार क्यों किये जाते हैं ?
वैदिक संस्कार क्यों किये जाते हैं ?
11 July 2024
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🚩1. गर्भाधान संस्कार - युवा स्त्री-पुरुष उत्तम सन्तान की प्राप्ति के लिये विशेष तत्परता से प्रसन्नतापूर्वक गर्भाधान करे।
🚩2. पुंसवन संस्कार - जब गर्भ की स्थिति का ज्ञान हो जाए, तब दुसरे या तीसरे महिने में गर्भ की रक्षा के लिए स्त्री व पुरुष प्रतिज्ञा लेते है कि हम आज ऐसा कोई कार्य नहीं करेंगे जिससे गर्भ गिरने का भय हो।
🚩3. सीमन्तोन्नयन संस्कार - यह संस्कार गर्भ के चौथे मास में शिशु की मानसिक शक्तियों की वृद्धि के लिए किया जाता है इसमें ऐसे साधन प्रस्तुत किये जाते है जिससे स्त्री प्रसन्न रहें।
🚩4. जातकर्म संस्कार - यह संस्कार शिशु के जन्म लेने पर होता है। इसमें पिता सलाई द्वारा घी या शहद से जिह्वा पर ओ३म् लिखते हैं और कान में 'वेदोऽसि' कहते है।
🚩5. नामकरण संस्कार- जन्म से ग्यारहवें या एक सौ एक या दूसरे वर्ष के आरम्भ में शिशु का नाम प्रिय व सार्थक रखा जाता है।
🚩6. निष्क्रमण संस्कार - यह संस्कार जन्म के चौथे माह में उसी तिथि पर जिसमें बालक का जन्म हुआ हो किया जाता है। इसका उद्देश्य शिशु को उद्यान की शुद्ध वायु का सेवन और सृष्टि के अवलोकन का प्रथम शिक्षण है।
🚩7. अन्नप्राशन संस्कार - छठे व आठवें माह में जब शिशु की शक्ति अन्न पचाने की हो जाए तो यह संस्कार होता है।
🚩8. चूडाकर्म (मुंडन) संस्कार - पहले या तीसरे वर्ष में शिशु के बाल कटवाने के लिये किया जाता है।
🚩9. कर्णवेध संस्कार - कई रोगों को दूर करने के लिए शिशु के कान बींधे जाते है।
🚩10. उपनयन संस्कार - जन्म से आठवें वर्ष में इस संस्कार द्वारा लड़के व लड़की को यज्ञोपवीत (जनेऊ) पहनाया जाता है।
🚩11. वेदारम्भ संस्कार - उपनयन संस्कार के दिन या एक वर्ष के अन्दर ही गुरुकुल में वेदों के अध्ययन का आरम्भ किया जाता है।
🚩12. समावर्तन संस्कार - जब ब्रह्मचारी व्रत की समाप्ति कर वेद-शास्त्रों के पढ़ने के पश्चात गुरुकुल से घर आता है तब यह संस्कार होता है।
🚩13. विवाह संस्कार - विद्या प्राप्ति के पश्चात जब लड़का-लड़की भली भांति पूर्ण योग्य बनकर घर जाते है तब दोनों का विवाह गुण-कर्म-स्वभाव देखकर किया जाता है।
🚩14. वानप्रस्थ संस्कार - जब घर में पुत्र का पुत्र हो जाए, तब गृहस्थ के धन्धे को छोड़ कर वानप्रस्थ आश्रम में प्रवेश किया जाता है।
🚩15. सन्यास संस्कार - वानप्रस्थी वन में रह कर जब सब इन्द्रियों को जीत ले, किसी में मोह व शोक न रहे तब संन्यास आश्रम में प्रवेश किया जाता है।
🚩16. अन्त्येष्टि संस्कार - मनुष्य शरीर का यह अन्तिम संस्कार है जो मृत्यु के पश्चात शरीर को जलाकर किया जाता है।
🚩यह संक्षेप में 16 वैदिक संस्कारों का प्रयोजन संक्षेप में बताया है। इन सोलह संस्कारों की वैज्ञानिकता और महानता को विस्तार में जानने के लिए पुस्तक #संस्कार_विधि पढ़ें।
-साभार
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