Tuesday, August 20, 2024

जन्माष्टमी: भगवान श्रीकृष्ण का महत्त्व,जीवन और उत्सव

 21 August 2024

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🚩जन्माष्टमी: भगवान श्रीकृष्ण का महत्त्व,जीवन और उत्सव


🚩जन्माष्टमी,भगवान श्रीकृष्ण के जन्मदिन के उपलक्ष्य में मनाया जाने वाला एक प्रमुख हिन्दू त्योहार है। यह पर्व श्रावण मास की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है, जो आमतौर पर अगस्त या सितंबर के महीने में आता है। जन्माष्टमी विशेष रूप से कृष्ण भक्तों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह दिन भगवान श्रीकृष्ण के जन्म की खुशी में समर्पित होता है।


🚩भगवान श्रीकृष्ण का जीवन और उनके अवतार


🚩भगवान श्रीकृष्ण,विष्णु के आठवें अवतार है। उनका जन्म मथुरा में देवकी और वसुदेव के पुत्र के रूप में हुआ था। भगवान श्रीकृष्ण का जीवन कई अद्भुत लीलाओं और घटनाओं से भरा हुआ है जो उनके दिव्य और अद्वितीय स्वरूप को दर्शाते है।


🚩1. कृष्ण की बाल लीलाएं लाएँ:  

भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीलाएं अत्यंत प्रसिद्ध है। उनके बचपन में माखन चोरी की घटनाएं, गोपालक की भूमिका निभाना और पूतना,कंस और अन्य राक्षसों का वध करना उनके दिव्य गुणों का परिचायक है। माखन चोरी की लीलाएं उनकी चंचलता और नटखट स्वभाव को दर्शाती है जबकि राक्षसों का वध उनके शौर्य और बल का प्रतीक है।


🚩2. गोवर्धन पूजा:  

कृष्ण ने अपनी युवावस्था में गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी अंगुली पर उठाकर गोकुलवासियों को इंद्रदेव के क्रोध से बचाया था। यह घटना उनकी शक्ति और उनके प्रति भक्तों की भक्ति का परिचायक है।गोवर्धन पूजा जिसे अन्नकूट के नाम से भी जाना जाता है। हर साल कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को मनाई जाती है।


🚩3. रासलीला:  

भगवान श्रीकृष्ण की रासलीला का वर्णन भी बहुत प्रसिद्ध है। रासलीला में कृष्ण ने गोपियों के साथ नृत्य किया जो उनके भक्ति, प्रेम और सौंदर्य का प्रतीक है। रासलीला के माध्यम से कृष्ण ने यह सिखाया कि भक्ति और प्रेम में कोई भेदभाव नहीं होता और यह प्रत्येक व्यक्ति की आत्मा को उच्चता की ओर ले जाता है।


🚩4. भगवद्गीता:  

भगवान श्रीकृष्ण ने महाभारत के युद्धभूमि में अर्जुन को भगवद्गीता का उपदेश दिया।भगवद्गीता, भगवान श्रीकृष्ण के उपदेशों का संग्रह है,धर्म,कर्म,योग और भक्ति की गहराई से भरी हुई है। इस में कृष्ण ने अर्जुन को कर्तव्य और धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी और जीवन के विभिन्न पहलुओं पर महत्वपूर्ण उपदेश दिए।


🚩जन्माष्टमी पर होने वाली विशेष पूजा और अनुष्ठान


🚩1. रात्रि जागरण और भजन कीर्तन:  

जन्माष्टमी की रात विशेष रूप से महत्वपूर्ण होती है। भक्तगण रातभर जागरण करते है।श्रीकृष्ण के भजन और कीर्तन गाते है और भगवान की पूजा करते है। इस रात,भगवान श्रीकृष्ण की पूजा विशेष रूप से रात के 12 बजे की जाती है, जब उनका जन्म हुआ था।


🚩2. बालकृष्ण की झाँकी:  

इस दिन, विशेष रूप से छोटे बच्चों को भगवान कृष्ण के रूप में सजाया जाता है। वे बालकृष्ण की भूमिका निभाते है और विभिन्न झाँकियों में हिस्सा लेते है, जिसमें माखन-मिश्री, मिठाई ई. चुराने का खेल भी शामिल होता है।


🚩3. दही हांडी:  

जन्माष्टमी के अवसर पर "दही हांडी" का आयोजन विशेष रूप से महाराष्ट्र और गुजरात में किया जाता है। इस में एक बड़े बर्तन में दही,मक्खन और अन्य मिठाइयां भरी जाती है और इसे ऊँचाई पर लटकाया जाता है। फिर, लोग एक मानव पिरामिड बनाकर दही हांडी को तोड़ने का प्रयास करते है। यह आयोजन भगवान श्रीकृष्ण की माखन चोरी की लीला को स्मरण करता है।


🚩4. व्रत और उपवास:  

इस दिन भक्तगण उपवास रखते है और केवल फलों और दूध का सेवन करते है। रात को पूजा के बाद विशेष प्रसाद का वितरण किया जाता है।


🚩जन्माष्टमी के सांस्कृतिक और सामाजिक पहलू


🚩जन्माष्टमी केवल धार्मिक पूजा तक सीमित नहीं है बल्कि यह एक सांस्कृतिक उत्सव भी है। इस दिन विभिन्न स्थानों पर रंग-बिरंगी सजावट, नृत्य और नाटकों का आयोजन किया जाता है। स्कूलों और सामाजिक संगठनों द्वारा भी इस दिन विशेष कार्यक्रम आयोजित किए जाते है,जिनमें कृष्ण के जीवन की लीलाओं का मंथन होता है।


🚩संक्षेप में


🚩जन्माष्टमी,भगवान श्रीकृष्ण के जन्म की खुशी और उनकी शिक्षाओं को मान्यता देने का पर्व है। यह दिन भक्ति, प्रेम और समर्पण का प्रतीक है और यह हमें श्रीकृष्ण के जीवन दर्शन और उनके उपदेशों को अपनाने की प्रेरणा देता है। भगवान श्रीकृष्ण के जीवन की अद्भुत लीलाएं और उनके उपदेश जीवन में सुख, समृद्धि और धार्मिक आस्था को बढ़ाते है।


🚩जन्माष्टमी के इस पावन अवसर पर भगवान श्रीकृष्ण की कृपा आप पर बनी रहे और आपके जीवन में सुख-शांति और समृद्धि का आगमन हो।


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Monday, August 19, 2024

संस्कृत दिवस: महत्त्व, हिन्दू संस्कृति में योगदान और धार्मिक ग्रंथों में इसकी भूमिका

 20 August 2024

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🚩संस्कृत दिवस: महत्त्व, हिन्दू संस्कृति में योगदान और धार्मिक ग्रंथों में इसकी भूमिका


संस्कृत, जिसे 'देववाणी' के रूप में जाना जाता है, न केवल भारत की बल्कि पूरी दुनियां की सबसे प्राचीन और समृद्ध भाषाओं में से एक है। यह भाषा भारतीय संस्कृति, धर्म और दर्शन की आत्मा मानी जाती है। संस्कृत दिवस प्रतिवर्ष श्रावण पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है, जिसका उद्देश्य संस्कृत भाषा के महत्त्व को उजागर करना और इसके प्रचार-प्रसार को बढ़ावा देना है। 


🚩 संस्कृत दिवस का इतिहास और उद्देश्य


संस्कृत भाषा को पुनर्जीवित करने और इसके महत्त्व को समझाने के लिए भारत सरकार ने वर्ष 1969 में संस्कृत दिवस की शुरुआत की। यह दिन संस्कृत भाषा के प्रति जागरूकता बढ़ाने और नई पीढ़ी को इसके अध्ययन के लिए प्रेरित करने का एक प्रयास है। संस्कृत दिवस का मुख्य उद्देश्य इस प्राचीन भाषा की धरोहर को सहेजना और इसे जन-जन तक पहुँचाना है। 


🚩 संस्कृत का हिन्दू संस्कृति और धार्मिक ग्रंथों में महत्त्व


🚩 1. वेदों की भाषा:


संस्कृत भाषा का सबसे प्राचीन और महत्वपूर्ण योगदान वेदों के रूप में है। वेद, जिन्हें सनातन धर्म का मूल आधार माना जाता है, संस्कृत में ही लिखे गए है। ऋग्वेद,यजुर्वेद,सामवेद और अथर्ववेद—ये चारों वेद हिन्दू धर्म के सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक ग्रंथ है और इन्हें समझने के लिए संस्कृत का ज्ञान आवश्यक है।


🚩 2. उपनिषद और दर्शन:


संस्कृत भाषा में ही उपनिषदों और दर्शनशास्त्र का सृजन हुआ, जो हिन्दू धर्म के गहन दार्शनिक विचारों को प्रस्तुत करते है। उपनिषदों में आत्मा, ब्रह्म, मोक्ष और कर्म के सिद्धांतों की गहन व्याख्या की गई है। भगवद्गीता, जो महाभारत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, संस्कृत में ही रची गई है और इसे हिन्दू धर्म का प्रमुख ग्रंथ माना जाता है।


🚩3. पुराण और महाकाव्य:


रामायण और महाभारत जैसे महाकाव्यों और पुराणों की रचना संस्कृत में हुई है। रामायण, जिसे महर्षि वाल्मीकि ने संस्कृत में लिखा, हिन्दू संस्कृति और धर्म का एक अनमोल ग्रंथ है। महाभारत, जिसे महर्षि वेदव्यास ने संस्कृत में लिखा, न केवल धर्म और अधर्म की लड़ाई का वर्णन करता है, बल्कि इसमें भगवद्गीता जैसी महत्वपूर्ण शिक्षाएँ भी समाहित है।


🚩 4. अनुष्ठान और मंत्र:


संस्कृत हिन्दू धर्म के अनुष्ठानों, पूजा-पाठ और यज्ञों में उपयोग होने वाले मंत्रों की भाषा है। ये मंत्र वेदों और अन्य धार्मिक ग्रंथों से लिए गए हैं और इन्हें संस्कृत में ही उच्चारित किया जाता है। संस्कृत मंत्रों के उच्चारण से होने वाली ध्वनि तरंगों को आध्यात्मिक और मानसिक शांति प्रदान करने वाला माना जाता है।


🚩 5. हिन्दू संस्कृति का संरक्षण:


संस्कृत भाषा हिन्दू संस्कृति के संरक्षण और प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह भाषा उन मूल्यों, सिद्धांतों और रीतियों को संजोने का कार्य करती है, जो सनातन धर्म की नींव है। संस्कृत के माध्यम से ही हिन्दू धर्म के कई महान संतों, ऋषियों और मुनियों ने अपने ज्ञान और शिक्षा का प्रसार किया।


🚩 6. शास्त्रों और स्मृतियों की रचना:


धर्मशास्त्र, न्यायशास्त्र, व्याकरणशास्त्र, योगशास्त्र, और अन्य विविध शास्त्रों की रचना संस्कृत में हुई है। मनुस्मृति, याज्ञवल्क्य स्मृति, और अन्य स्मृतियाँ भी संस्कृत में लिखी गई हैं, जो समाज के नियम और नीतियों का मार्गदर्शन करती है।


🚩 7. आध्यात्मिक और धार्मिक धरोहर:


संस्कृत भाषा में रचित धार्मिक ग्रंथों और शास्त्रों ने हिन्दू धर्म की आध्यात्मिक और धार्मिक धरोहर को संरक्षित रखा है। ये ग्रंथ न केवल धार्मिक अनुष्ठानों का मार्गदर्शन करते है बल्कि वे जीवन के प्रत्येक पहलू में नैतिकता, धर्म और सदाचार को भी सिखाते है।


🚩 संस्कृत दिवस पर होने वाले कार्यक्रम


संस्कृत दिवस पर विभिन्न शिक्षण संस्थानों, विद्यालयों, महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में संस्कृत के महत्त्व को उजागर करने वाले कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। इनमें संस्कृत श्लोक पाठ, निबंध लेखन प्रतियोगिता, भाषण, वाद-विवाद और संस्कृत नाट्य प्रस्तुतियाँ शामिल होती है। इसके साथ ही, संस्कृत शिक्षकों और विद्वानों को सम्मानित करने के लिए विशेष समारोह भी आयोजित किए जाते है।


🚩 संस्कृत का योगदान और भविष्य


संस्कृत न केवल अतीत में बल्कि वर्तमान में भी हमारे जीवन पर गहरा प्रभाव डालती है। आधुनिक युग में संस्कृत के प्रति रुचि फिर से जागरित हो रही है। कई देशों में संस्कृत के अध्ययन और शोध के लिए संस्थान स्थापित किए गए है। इसके साथ ही योग, आयुर्वेद और अन्य भारतीय परंपराओं के पुनर्जागरण के साथ-साथ संस्कृत भी पुनः वैश्विक स्तर पर प्रासंगिक होती जा रही है।


संस्कृत दिवस हमें हमारी प्राचीन धरोहर की ओर लौटने और संस्कृत भाषा को पुनर्जीवित करने का एक अवसर प्रदान करता है। यह दिन हमें प्रेरित करता है कि हम संस्कृत के अध्ययन को अपने जीवन का अंग बनाएं और इसे आने वाली पीढ़ियों तक पहुँचाने का प्रयास करें।


🚩 संस्कृत दिवस की प्रासंगिकता


आज के युग में जब भारतीय संस्कृति और परंपराएँ वैश्विक मंच पर पहचान बना रही हैं, संस्कृत दिवस का महत्त्व और भी बढ़ जाता है। यह दिवस हमें स्मरण दिलाता है कि संस्कृत न केवल हमारी पहचान का हिस्सा है बल्कि यह हमारी जड़ों से जुड़े रहने और दुनियां को हमारी प्राचीन संस्कृति और ज्ञान से परिचित कराने का माध्यम भी है।


🚩संस्कृत भाषा को जीवित रखें, इसे सीखें और सिखाएं। संस्कृत दिवस पर इस अद्वितीय धरोहर का सम्मान करें और इसे आगे बढ़ाने का संकल्प लें।


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Sunday, August 18, 2024

भारतीय संस्कृति और पारिवारिक मूल्यों की रक्षा के लिए फूहड़ TV धारावाहिकों का बहिष्कार आवश्यक

 19 August 2024

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🚩भारतीय संस्कृति और पारिवारिक मूल्यों की रक्षा के लिए फूहड़ TV धारावाहिकों का बहिष्कार आवश्यक


🚩भारतीय संस्कृति, जिसे "भाई-बहन संस्कृति" के रूप में भी जाना जाता है, हमारी सामाजिक संरचना का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसमें परिवार के हर सदस्य के प्रति सम्मान, प्रेम, और आदर का विशेष स्थान होता है। भाई-बहन का रिश्ता भारतीय संस्कृति में स्नेह, देखभाल, और आपसी जिम्मेदारी का प्रतीक है। यह रिश्ता केवल खून का नहीं, बल्कि एक भावना का है जो पूरे समाज में सद्भाव और सहयोग का संदेश फैलाता है।


 🚩भाई-बहन संस्कृति और उसके मूल्य:

रिश्तों में सम्मान: भारतीय समाज में, भाई-बहन का रिश्ता अत्यधिक महत्व रखता है। इसमें एक-दूसरे के प्रति गहरा सम्मान और स्नेह होता है, जो पारिवारिक एकता को मजबूत करता है। यह रिश्ता न केवल परिवार की नींव को मजबूत करता है, बल्कि समाज में भी आपसी सहयोग और समझ को बढ़ावा देता है।


🚩- परिवार की मजबूती: भाई-बहन का रिश्ता परिवार की मजबूती का एक प्रमुख आधार है। भाई अपनी बहन की रक्षा करता है और बहन अपने भाई की देखभाल करती है। यह एक ऐसा रिश्ता है जो जीवन के हर पड़ाव पर साथ देता है, चाहे कोई भी परिस्थिति हो। इस रिश्ते का महत्व राखी जैसे त्योहारों में विशेष रूप से दिखता है, जहाँ भाई अपनी बहन की सुरक्षा का वचन देता है।


🚩- सामाजिक संरचना का आधार: भाई-बहन संस्कृति भारतीय समाज की संरचना में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह संस्कृति पारिवारिक एकता को बढ़ावा देती है और समाज को एक साथ जोड़े रखने में मदद करती है। हमारे समाज में यह विश्वास किया जाता है कि मजबूत परिवार ही एक मजबूत समाज का निर्माण करते हैं।


🚩धारावाहिकों का नकारात्मक प्रभाव:

आजकल टीवी धारावाहिकों ने भारतीय समाज में एक गहरी और नकारात्मक छाप छोड़ी है। यह धारावाहिक न केवल हमारे पारिवारिक मूल्यों को प्रभावित कर रहे हैं, बल्कि हमारे समाज के नैतिक आधार को भी हिला रहे हैं। भारतीय संस्कृति, जो हमेशा से अपने पारंपरिक रीति-रिवाजों और पारिवारिक मूल्यों के लिए जानी जाती रही है, अब इन धारावाहिकों की वजह से खतरे में है।


🚩आजकल के अधिकांश धारावाहिकों में अवैध संबंधों और अनैतिकता को बढ़ावा दिया जा रहा है। इन कहानियों में रिश्तों की पवित्रता को तोड़ा जा रहा है और पारिवारिक संबंधों को विकृत रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है। जहाँ एक ओर, बच्चे अपनी माँ की दूसरी शादी की तैयारी में लगे हैं, वहीं दूसरी ओर, पिता का ध्यान किसी और महिला पर केंद्रित है। ऐसी कहानियाँ समाज के ताने-बाने को कमजोर कर रही हैं और एक विकृत विचारधारा को बढ़ावा दे रही हैं।


🚩यह केवल पारिवारिक संबंधों तक ही सीमित नहीं है। आधुनिकता के नाम पर, इन धारावाहिकों ने नैतिकता और शीलता की सभी सीमाओं को पार कर दिया है। इनके माध्यम से समाज में बेशर्मी और अनैतिकता को सामान्य बना दिया गया है। धारावाहिकों के निर्माता TRP की लालच में ऐसे विषयों को परोस रहे हैं जो न केवल भारतीय समाज के मूल्यों को धूमिल कर रहे हैं, बल्कि नई पीढ़ी को भी गलत दिशा में ले जा रहे हैं।


🚩इसलिए, यह आवश्यक है कि हम ऐसे धारावाहिकों का बहिष्कार करें जो भारतीय पारिवारिक मूल्यों का विध्वंस कर रहे हैं। हमें यह संकल्प लेना होगा कि हम अपने समाज और संस्कृति की रक्षा के लिए ऐसे सीरियलों को अपने घरों में जगह नहीं देंगे। अगर हम समय रहते नहीं जागे, तो हमारी भारतीय संस्कृति और पारिवारिक मूल्य पूरी तरह से नष्ट हो सकते हैं।


🚩अब समय आ गया है कि हम सभी मिलकर यह निर्णय लें कि हम उन धारावाहिकों को नहीं देखेंगे जो हमारे समाज और संस्कृति को नकारात्मक रूप में प्रस्तुत करते हैं। हमारे पारंपरिक मूल्य और रीति-रिवाज हमारी धरोहर हैं, और हमें उन्हें बचाने के लिए हर संभव प्रयास करना चाहिए। ऐसे धारावाहिकों का बहिष्कार कर हम न केवल अपनी संस्कृति की रक्षा करेंगे, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए एक स्वस्थ और नैतिक समाज का निर्माण भी करेंगे।


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Saturday, August 17, 2024

भादवे का घी

 18 August 2024 

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 🚩भादवे का घी


भारतीय देसी गाय का घी, विशेष रूप से भाद्रपद मास में प्राप्त भादवे का घी, एक अनमोल वस्तु है। भाद्रपद के आते ही, घास पक जाती है जो वास्तव में अत्यंत दुर्लभ औषधियाँ होती है। इनमें धामन,जो गायों को बेहद प्रिय होता है,खेतों और मार्गों के किनारे उगता है। सेवण और गंठिया भी इन घासों में शामिल है।मुरट,भूरट,बेकर,कण्टी,ग्रामणा, मखणी,कूरी,झेर्णीया,सनावड़ी,चिड़की का खेत,हाडे का खेत,लम्प जैसी वनस्पतियाँ इस समय पककर लहलहाने लगती है।


यदि समय पर वर्षा हुई हो,तो ये घासें रोहिणी नक्षत्र की तप्त से संतृप्त उर्वरकों से तेजी से बढ़ती है।इन घासों में विचरण करती गायें, पूंछ हिला-हिलाकर चरती रहती है और सफेद बगुले भी उनके साथ इतराते हुए चलते है। यह दृश्य अत्यंत स्वर्गिक होता है। 


जब इन जड़ी बूटियों पर दो शुक्ल पक्ष बीत जाते है, तो चंद्रमा का अमृत इनमें समा जाता है, जिससे इनकी गुणवत्ता बढ़ जाती है।गायें कम से कम 2 कोस चलकर,घूमते हुए इन्हें चरकर शाम को लौटती है और रातभर जुगाली करती है। इस जुगाली के दौरान वे अमृत रस को अपने दूध में परिवर्तित करती है।यह दूध अत्यंत गुणकारी होता है और इससे बना दही भी अत्यंत पीलापन लिए नवनीत निकलता है। 


5 से 7 दिनों में एकत्र मक्खन को गर्म करके घी बनाया जाता है, जिसे भादवे का घी कहते है। इस घी में अतिशय पीलापन होता है और ढक्कन खोलते ही 100 मीटर दूर तक इसकी मादक सुगंध हवा में तैरने लगती है। 


भादवे का घी मृतकों को जीवित करने के अलावा सब कुछ कर सकता है। इसे अधिक मात्रा में खा सकते है, कम हो तो नाक में चुपड़ सकते है, हाथों में लगाकर चेहरे पर मल सकते है, बालों में लगा सकते है, दूध में डालकर पी सकते है, सब्जी या चूरमे के साथ खा सकते है। बुजुर्गों के घुटनों और तलुओं पर मालिश कर सकते है। गर्भवतियों के खाने का मुख्य पदार्थ यही था। 


इस घी को बिना किसी अतिरिक्त चीज के इस्तेमाल किया जाता है। यह औषधियों का सर्वोत्तम सत्व होता है। हवन, देवपूजन और श्राद्ध करने से यह अखिल पर्यावरण,देवता और पितरों को तृप्त कर देता है।


मारवाड़ में इस घी की धाक थी। कहा जाता है कि इसे सेवन करने वाली विश्नोई महिला 5 वर्ष के उग्र सांड की पिछली टांग पकड़ लेती थी और वह चूं भी नहीं कर पाता था। एक अन्य घटना में, एक व्यक्ति ने एक रुपये के सिक्के को केवल उँगुली और अंगूठे से मोड़कर दोहरा कर दिया था। 


आधुनिक विज्ञान घी को वसा के रूप में परिभाषित करता है,जबकि पारखी लोग यह पहचान लेते थे कि यह फलां गाय का घी है।यही घी था,जिसके कारण युवा जोड़े कठोर परिश्रम करने के बावजूद थकते नहीं थे। इसमें इतनी ताकत होती थी कि सिर कटने पर भी धड़ लड़ते रहते थे।


घी को घड़ों या घोड़े की चर्म से बने विशाल मर्तबानों में इकट्ठा किया जाता था, जिन्हें 'दबी' कहते थे। घी की गुणवत्ता और भी बढ़ जाती थी यदि गाय स्वयं गौचर में चरती, तालाब का पानी पीती और मिट्टी के बर्तनों में बिलौना किया जाता हो।

                                                                                                                                                                                                                                              

🚩देसी घी की पहचान के लिए निम्नलिखित तरीके अपनाए जा सकते है:


🚩हाथ से परीक्षण: हाथ को उल्टा करके उसमें घी लगाएं और उंगलियों को रगड़ें। अगर घी में दाने महसूस होते है, तो यह नकली हो सकता है।


🚩आयोडीन परीक्षण: एक चम्मच घी में चार-पांच बूंदें आयोडीन की मिलाएं। अगर रंग नीला हो जाता है, तो इसका मतलब घी में उबले आलू की मिलावट है।


🚩उबालकर परीक्षण: मार्केट से खरीदे हुए घी में से चार-पांच चम्मच घी निकाले और उसे किसी बर्तन में डालकर उबाले। फिर इस बर्तन को लगभग 24 घंटे के लिए अलग रख दें। अगर 24 घंटे बाद भी घी दानेदार और महकदार हो, तो घी असली है। यदि ये दोनों लक्षण गायब है, तो घी नकली हो सकता है।


🚩नमक और हाइड्रोक्लोरिक एसिड का परीक्षण: एक बर्तन में दो चम्मच घी, 1/2 चम्मच नमक और एक चुटकी हाइड्रोक्लोरिक एसिड मिलाएं। इस मिश्रण को 20 मिनट के लिए अलग रख दें। 20 मिनट बाद, घी का रंग चेक करें। यदि घी ने कोई रंग नहीं बदला है, तो घी असली है। लेकिन अगर घी लाल या किसी अन्य रंग का हो गया है, तो समझें कि घी नकली हो सकता है।


🚩पानी में घी का परीक्षण: एक ग्लास में पानी भरें और एक चम्मच घी उसमें डालें। अगर घी पानी के ऊपर तैरने लगे, तो यह असली है। अगर घी पानी के नीचे बैठ जाता है, तो यह नकली हो सकता है।


🚩आज भी वही गायें, वही भादवे और वही घासें मौजूद है। यदि इस महान रहस्य को जानने के बावजूद यह व्यवस्था भंग हो जाती है, तो किसे दोष दें? जब गाय नहीं होगी, तो घी कहां होगा, यह एक विचारणीय प्रश्न है। 🙏


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Friday, August 16, 2024

हिंदू धर्म में संस्कार: आधार और महत्व

 17 August 2024

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🚩हिंदू धर्म में संस्कार: आधार और महत्व


हिंदू धर्म में 'संस्कार' जीवन की विभिन्न अवस्थाओं और घटनाओं को चिह्नित करने वाले अनुष्ठानों और समारोहों का समूह है। ये संस्कार व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक, और आध्यात्मिक विकास के साथ-साथ सामाजिक संरचना को मजबूत करते हैं। संस्कारों का एक विस्तृत और समृद्ध परंपरागत आधार होता है, जो व्यक्ति को अपने जीवन के प्रत्येक चरण में मार्गदर्शन प्रदान करता है। इनका पालन करने से व्यक्ति न केवल अपनी व्यक्तिगत क्षमताओं को निखारता है, बल्कि सामाजिक जिम्मेदारियों को भी समझता है।


🚩संस्कारों के आधार


1. धार्मिक ग्रंथ और शास्त्र: संस्कारों की परंपराएं और नियम वेदों, उपनिषदों, स्मृतियों, और अन्य धार्मिक ग्रंथों में विस्तृत रूप से वर्णित हैं। ये ग्रंथ जीवन के हर चरण के लिए विस्तृत निर्देश और महत्व बताते हैं, जिससे व्यक्ति धार्मिक आचरण और आध्यात्मिकता की राह पर चलता है।


2. धार्मिक आचार और नैतिकता: संस्कारों के माध्यम से व्यक्ति में धार्मिक आचरण और नैतिकता का विकास होता है। इन अनुष्ठानों के पालन से व्यक्तिगत और सामाजिक कर्तव्यों के प्रति सजगता और आदरभाव उत्पन्न होता है।


3. सामाजिक संरचना और संस्कृति: संस्कारों को समाज की सांस्कृतिक परंपराओं से गहराई से जोड़ा जाता है। ये संस्कार सामाजिक संबंधों और सामाजिक जिम्मेदारियों को परिभाषित करते हैं, जिससे समाज में सद्भाव और एकता की भावना को बढ़ावा मिलता है।


4. आध्यात्मिक उन्नति: संस्कारों का एक प्रमुख उद्देश्य व्यक्ति की आध्यात्मिक उन्नति है। ये अनुष्ठान आत्म-शुद्धि और आत्मबोध को प्रोत्साहित करते हैं, जिससे व्यक्ति मोक्ष और जीवन के उच्चतम लक्ष्यों की प्राप्ति की ओर अग्रसर होता है।


5. स्वास्थ्य और कल्याण: कई संस्कार व्यक्ति के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को सुनिश्चित करते हैं। ये अनुष्ठान व्यक्ति की विकासात्मक आवश्यकताओं को पूरा करते हैं और जीवन की विभिन्न चुनौतियों का सामना करने की तैयारी करते हैं।


6. अनुशासन और नियंत्रण: संस्कारों के माध्यम से अनुशासन और जीवन में अनुशासित दृष्टिकोण को बढ़ावा दिया जाता है। ये व्यक्ति को नियंत्रित और संगठित जीवन जीने की प्रेरणा देते हैं।


🚩संस्कारों के प्रकार


परंपरागत रूप से, 16 मुख्य संस्कारों को जीवन के विभिन्न चरणों में सम्पन्न किया जाता है, जो व्यक्ति के जीवन के महत्वपूर्ण चरणों और घटनाओं को चिह्नित करते हैं:


1. गर्भाधान संस्कार: गर्भाधान की शुद्धि के लिए।

2. पुंसवन संस्कार: गर्भस्थ शिशु की सुरक्षा के लिए।

3. सीमंतोन्नयन संस्कार: गर्भवती स्त्री की मनोवैज्ञानिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए।

4. जातकर्म संस्कार: जन्म के तुरंत बाद नवजात शिशु के लिए।

5. नामकरण संस्कार: शिशु का नामकरण करने के लिए।

6. निष्क्रमण संस्कार: शिशु का पहली बार घर से बाहर ले जाने के लिए।

7. अन्नप्राशन संस्कार: शिशु को पहला अन्न खिलाने के लिए।

8. चूड़ाकरण संस्कार: बाल कटवाने की पहली रस्म के लिए।

9. कर्णवेध संस्कार: कान छिदवाने के लिए।

10. विध्यारंभ संस्कार: शिक्षा के प्रारंभ के लिए।

11. उपनयन संस्कार: यज्ञोपवीत धारण करने के लिए।

12. वेदारंभ संस्कार: वेदों का अध्ययन शुरू करने के लिए।

13. केशांत संस्कार: पहला मुंडन कराने के लिए।

14. समावर्तन संस्कार: शिक्षा के पूर्ण होने पर स्नातक समारोह।

15. विवाह संस्कार: विवाह बंधन में बंधने के लिए।

16. अंत्येष्टि संस्कार: मृत व्यक्ति के अंतिम संस्कार के लिए।


 🚩निष्कर्ष

हिंदू धर्म में संस्कारों का पालन करने से व्यक्ति न केवल अपने जीवन के विभिन्न चरणों का सफलतापूर्वक पार करता है, बल्कि समाज में अपनी भूमिका को भी मजबूत करता है। ये संस्कार व्यक्ति और समाज के बीच एक गहरा संबंध स्थापित करते हैं और जीवन को समृद्ध बनाने का प्रयास करते हैं।


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Thursday, August 15, 2024

श्रावण मास का महत्व

 16 August 2024

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🚩श्रावण मास का महत्व


 🚩श्रावण मास, जिसे सावन का महीना भी कहा जाता है, हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखता है। यह महीना भगवान शिव की आराधना और उनकी कृपा प्राप्ति के लिए जाना जाता है। इस दौरान सोमवार के दिन का विशेष महत्व होता है। ऐसा माना जाता है कि श्रावण मास में शिव की पूजा करने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं। श्री शिव महापुराण में लिखा है, "द्वादशस्वपि मासेषु श्रावणो मेऽतिवल्लभः," जिसका अर्थ है, बारह महीनों में श्रावण शिव के लिए अतिप्रिय है।


 🚩श्रावण मास की 10 विशेषताएं इस प्रकार हैं:


🚩1. भगवान शिव की विशेष आराधना: श्रावण मास में भगवान शिव की पूजा का विशेष विधान है। हिंदू पंचांग के अनुसार, यह वर्ष का पांचवां महीना है और अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार, सावन का महीना जुलाई-अगस्त में आता है।


🚩2. सावन सोमवार व्रत: इस मास में सावन सोमवार व्रत का सर्वाधिक महत्व है। श्रावण मास में बेल पत्र से शिवजी की पूजा और जल अर्पण अति फलदायी मानी जाती है।


🚩3. शिव पुराण की महिमा: शिव पुराण के अनुसार, सावन सोमवार व्रत करने से शिवजी सभी इच्छाओं को पूर्ण करते हैं। इस महीने में लाखों भक्त ज्योतिर्लिंग के दर्शन के लिए तीर्थ स्थलों की यात्रा करते हैं।


🚩4. प्रकृति से संबंध: सावन का महीना वर्षा ऋतु का होता है, जो धरती को हरियाली से भर देता है। ग्रीष्म ऋतु के बाद होने वाली बारिश मानव समुदाय को राहत देती है।


🚩5. नारियल पूर्णिमा का उत्सव: भारत के पश्चिम तटीय राज्यों में श्रावण मास के अंतिम दिन नारियल पूर्णिमा मनाई जाती है।


🚩6. कांवड़ यात्रा: श्रावण के पावन मास में शिव भक्त कांवड़ यात्रा करते हैं, जिसमें गंगा जल से भरी कांवड़ को कंधों पर उठाकर तीर्थ स्थलों से लाते हैं और शिवजी को अर्पित करते हैं।


🚩7. पौराणिक कथाएं: पौराणिक कथा के अनुसार, समुद्र मंथन के समय निकले हलाहल विष को शिव ने पीकर अपनी कंठ में धारण किया, जिससे उनका कंठ नीला हो गया और उनका नाम नीलकंठ पड़ा।


🚩8. व्रत की विविधता: सावन में भक्त तीन प्रकार के व्रत रखते हैं - सावन सोमवार व्रत, सोलह सोमवार व्रत, और प्रदोष व्रत। इन व्रतों से भक्तों को शिव और पार्वती की कृपा प्राप्त होती है।


🚩9. ज्योतिष महत्व: श्रावण मास में सूर्य का राशि परिवर्तन होता है, जो सभी राशियों को प्रभावित करता है।


🚩10. माँ पार्वती की आराधना: सावन मास माँ पार्वती को भी समर्पित है। विवाहित महिलाएं वैवाहिक जीवन की सुख-शांति के लिए और अविवाहित महिलाएं अच्छे वर के लिए शिवजी का व्रत रखती हैं।


 🚩श्रावण मास का यह पवित्र महीना भक्तों के लिए आस्था, श्रद्धा, और भक्ति से भरा होता है, जिसमें भगवान शिव और माँ पार्वती की कृपा प्राप्ति की कामना की जाती है।


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Wednesday, August 14, 2024

स्वतंत्रता दिवस: इतिहास और महत्व

 15 August 2024


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🚩स्वतंत्रता दिवस: इतिहास और महत्व:


15 अगस्त 1947 का दिन भारत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण दिन के रूप में अंकित है। यह वह दिन था जब भारत के लोगों ने पहली बार एक आजाद देश में सांस लेना शुरू किया। अंग्रेजों की 200 सालों की गुलामी के बाद, 15 अगस्त का दिन एक ‘स्वर्णिम दिन’ के रूप में देश के लिए प्रसिद्ध हो गया। आज, हमारे देश की आजादी को 77 वर्ष पूरे हो गए हैं।


🚩आजादी का सफर


अंग्रेजों के अत्याचार और दो सौ वर्ष की गुलामी के पश्चात, भारतवासियों के मन में विद्रोह की ज्वाला भड़क उठी थी। नेताजी सुभाषचंद्र बोस, भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद और अनेक वीरों ने अपनी जान की बाजी लगाकर हमें आजादी दिलाई। इन वीरों ने अपने प्राणों की आहुति देकर देशवासियों को अंग्रेजों की बेड़ियों से मुक्त कराया। वहीं, सरदार पटेल और गांधी जी ने सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलते हुए बिना हथियारों की लड़ाई लड़ी। कई सत्याग्रह आंदोलनों और लाठियां खाने और जेल जाने के बाद अंग्रेजों को भारत छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा। भारतीय जनता की एकजुटता और संघर्ष ने आखिरकार उन्हें पीछे हटने पर मजबूर कर दिया।


🚩स्वतंत्रता दिवस समारोह


स्वतंत्रता दिवस के इस ऐतिहासिक महत्व को ध्यान में रखते हुए, हम सन् 1947 से आज तक इस दिन को बड़े उत्साह और प्रसन्नता के साथ मनाते आ रहे हैं। इस दिन, हमारे प्रधानमंत्री राजधानी दिल्ली के लाल किले पर राष्ट्रीय ध्वज फहराते हैं। इसके साथ ही शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित की जाती है और राष्ट्र के नाम संदेश दिया जाता है। विद्यालयों, महाविद्यालयों, सरकारी कार्यालयों, खेल परिसरों, स्‍काउट शिविरों पर भी भारतीय ध्‍वज फहराया जाता है। राष्ट्रगीत और राष्ट्रगान गाए जाते हैं और स्वतंत्रता संग्राम के सभी महानायकों को श्रद्धांजलि दी जाती है। इस अवसर पर मिठाइयां बांटी जाती हैं और देश के प्रति गर्व का माहौल होता है।


🚩राष्ट्रगीत और राष्ट्रगान


स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर राष्ट्रगीत "वंदे मातरम्" और राष्ट्रगान "जन गण मन" का गान किया जाता है। "वंदे मातरम्" का लेखन बंकिमचंद्र चटर्जी ने किया था, जो मातृभूमि के प्रति प्रेम और भक्ति को दर्शाता है। वहीं, "जन गण मन" को रवींद्रनाथ टैगोर ने लिखा, जो भारत की विविधता और एकता को सलाम करता है। इन दोनों गीतों का स्वतंत्रता दिवस समारोह में विशेष महत्व है, और इनका गान हमें देश की अखंडता और संप्रभुता की याद दिलाता है।


🚩भारतीय झंडे का इतिहास


भारतीय तिरंगे का विकास एक रोचक यात्रा रही है। प्रथम चित्रित ध्वज 1904 में स्वामी विवेकानंद की शिष्या भगिनी निवेदिता द्वारा बनाया गया था। 7 अगस्त 1906 को कलकत्ता में इसे कांग्रेस के अधिवेशन में फहराया गया। पिंगली वेंकैया ने 1916 से 1921 तक दुनियाभर के देशों के झंडों का अध्ययन कर भारतीय ध्वज के लिए 30 डिज़ाइन पेश किए। 1921 में, अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के बेजवाड़ा सत्र में पिंगली वेंकय्या ने दो रंगों, लाल और हरे, से बना एक झंडा प्रस्तुत किया। महात्मा गांधी की सलाह पर इसमें सफेद पट्टी और चरखा जोड़ा गया।


22 जुलाई 1947 को तिरंगे को भारतीय राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाया गया। 15 अगस्त 1947 को, पंडित बीपी दुआ ने लाल किले पर तिरंगा फहराया, जो भारत की आज़ादी का प्रतीक था।


🚩स्वतंत्रता दिवस: एक राष्ट्रीय गौरव


स्वतंत्रता दिवस का महत्व आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना 1947 में था। यह दिन हमें हमारे स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान और संघर्ष की याद दिलाता है और हमें एकजुट होकर देश के विकास और उन्नति की दिशा में कार्य करने के लिए प्रेरित करता है। इस दिन हम अपने स्वतंत्रता सेनानियों को श्रद्धांजलि देते हुए देश के भविष्य के लिए अपने संकल्पों को दोहराते हैं।


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