Monday, September 2, 2024

महर्षि भारद्वाज द्वारा रचित 'विमान शास्त्र' और प्राचीन विमानों का विवरण

 3rd September 2024

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🚩महर्षि भारद्वाज द्वारा रचित 'विमान शास्त्र' और प्राचीन विमानों का विवरण  


🚩'विमान शास्त्र' महर्षि भारद्वाज की एक अत्यंत प्राचीन और महत्वपूर्ण कृति है,जिसमें उड्डयन विज्ञान और प्राचीन भारतीय विमानों के निर्माण के बारे में विस्तृत जानकारी मिलती है। यह ग्रंथ इस बात का प्रमाण है कि भारत में उड्डयन विज्ञान का ज्ञान हजारों साल पहले से ही था।  


🚩विमान शास्त्र का परिचय:महर्षि भारद्वाज ने 'विमान शास्त्र' की रचना की, जिसमें विभिन्न प्रकार के विमानों, उनके निर्माण, संचालन और तकनीकी क्षमताओं का उल्लेख है। 'विमान शास्त्र' में 500 से अधिक सूत्र और 100 से अधिक उप-सूत्रों का उल्लेख मिलता है, जो विमानों के विज्ञान और उनके उपयोग के सिद्धांतों को विस्तृत रूप से समझाते है। इस ग्रंथ में विमानों की विभिन्न तकनीकों, ऊर्जा स्रोतों और धातुओं के मिश्रण का भी उल्लेख है, जो विमान निर्माण के लिए आवश्यक थे।  


🚩 प्राचीन विमानों का वर्णन और उनकी विशेषताएं 


🚩'विमान शास्त्र' में महर्षि भारद्वाज ने कई प्रकार के विमानों का वर्णन किया है। इनमें से कुछ प्रमुख प्रकार निम्नलिखित है:  

♦ शाकुन विमान:  

   शाकुन विमान का निर्माण 

पक्षियों की उड़ान के सिद्धांतों पर आधारित था। इसमें पंखों की संरचना और उड़ान की गति पक्षियों के समान थी। इस विमान में हवाई संतुलन बनाए रखने और विभिन्न दिशाओं में उड़ान भरने की विशेष क्षमता थी।

♦ सुन्दर विमान:  

   सुन्दर विमान का उपयोग मुख्यतः युद्ध और परिवहन के लिए किया जाता था। यह विमान भारी भार वहन कर सकता था और इसमें लंबी दूरी तक उड़ान भरने की क्षमता थी। इसके अलावा, इसमें अदृश्यता की तकनीक का भी उल्लेख है,जो शत्रु से बचने के लिए प्रयोग की जाती थी।

♦ रुखमा विमान:  

   रुखमा विमान को अंतरिक्ष यात्रा के लिए डिज़ाइन किया गया था। इस विमान में अंतरिक्ष के प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करने की क्षमता थी और यह अंतरिक्ष में जाने और वापस लौटने में सक्षम था। इसका निर्माण धातुओं के विशेष मिश्रण से किया गया था।

♦ त्रिपुर विमान। आईपीओ:  

   त्रिपुर विमान एक अत्यंत जटिल और विशाल विमान था, जिसे जल,थल और आकाश में संचालित किया जा सकता था। यह विमान विभिन्न भूमिकाओं में सक्षम था,जैसे कि परिवहन,और निगरानी। इसके निर्माण में उन्नत तकनीकों और धातुओं का उपयोग किया गया था।


🚩 विमान शास्त्र के तकनीकी विवरण  


🚩'विमान शास्त्र' में विमानों के निर्माण के लिए उपयोग होने वाली धातुओं, मिश्रणों और सामग्रियों के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई है। इस ग्रंथ के अनुसार,विमानों के निर्माण में निम्नलिखित मुख्य तत्वों का उपयोग होता था:  

- धातुओं का मिश्रण: विमानों के निर्माण में 'सौम्य धातु', 'रास धातु', और 'लोह धातु' जैसे धातुओं का उपयोग किया जाता था। इन धातुओं का चयन उनके गुणों और विमानों की आवश्यकता के अनुसार किया जाता था।  

- ऊर्जा स्रोत: विमानों के संचालन के लिए विभिन्न प्रकार के ऊर्जा स्रोतों का उपयोग किया जाता था, जैसे कि सौर ऊर्जा,बिजली और मानसिक शक्ति। विमानों को ईंधन की आवश्यकता नहीं होती थी, क्योंकि वे प्राकृतिक ऊर्जा स्रोतों से संचालित होते थे।  

- गुरुत्वाकर्षण नियंत्रण: विमानों में गुरुत्वाकर्षण का संतुलन बनाए रखने के लिए विशेष तकनीकों का उल्लेख किया गया है। विमान उड़ान के दौरान पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण को नियंत्रित कर सकते थे।  

- गति और दिशा नियंत्रण: विमानों की गति और दिशा को नियंत्रित करने के लिए विशेष उपकरणों और तकनीकों का उपयोग किया गया था। ये उपकरण विमानों को किसी भी दिशा में उड़ान भरने में सक्षम बनाते थे।


🚩 विमान शास्त्र की आधुनिक प्रासंगिकता


🚩आज के वैज्ञानिक और शोधकर्ता इस प्राचीन ग्रंथ को पढ़कर आश्चर्यचकित होते है कि प्राचीन भारत में इतने उन्नत विमान और तकनीकी ज्ञान कैसे हो सकता था।हालांकि 'विमान शास्त्र' को एक ऐतिहासिक और धार्मिक ग्रंथ माना जाता है फिर भी इसमें वर्णित कई तकनीकें आधुनिक विज्ञान के लिए प्रेरणादायक साबित हो सकती है। कुछ विद्वान मानते है कि इस ग्रंथ में उल्लिखित सिद्धांतों का अध्ययन करके हम आधुनिक विज्ञान और तकनीक में नए आयाम जोड़ सकते है।


🚩 निष्कर्ष 

महर्षि भारद्वाज का 'विमान शास्त्र' एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है जो प्राचीन भारतीय विज्ञान और तकनीकी कौशल का अद्भुत प्रमाण है। इस ग्रंथ में वर्णित विमानों और उनकी तकनीकों का अध्ययन हमें यह समझने में मदद करता है कि प्राचीन भारत में विज्ञान और तकनीक कितने विकसित थे। 'विमान शास्त्र' भारतीय ज्ञान और विज्ञान की धरोहर को उजागर करता है और आधुनिक युग के वैज्ञानिकों के लिए प्रेरणा का स्रोत बना हुआ है।  


🚩इस प्रकार, 'विमान शास्त्र' न केवल हमारे अतीत का गौरवशाली अध्याय है, बल्कि यह आधुनिक विज्ञान के लिए प्रेरणा और मार्गदर्शन का स्रोत भी है। यह ग्रंथ हमें हमारी पुरातन धरोहर पर गर्व करने का एक और कारण देता है और विज्ञान तथा तकनीक के क्षेत्र में हमारे पूर्वजों की उपलब्धियों को दर्शाता है।


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Sunday, September 1, 2024

आखिर क्यों है सनातन धर्म में सोमवती अमावस्या का महत्वपूर्ण स्थान?

 2 सितंबर 2024

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 🚩आखिर क्यों है सनातन धर्म में सोमवती अमावस्या का महत्वपूर्ण स्थान?


🚩सोमवती अमावस्या, जो सोमवार को पड़ने वाली अमावस्या को कहा जाता है, हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखती है। इस दिन को लेकर कई धार्मिक मान्यताएं और परंपराएं है, जिन्हें सदियों से श्रद्धापूर्वक निभाया जा रहा है। इस दिन का महत्व मुख्यतः विवाहित स्त्रियों के लिए है, जो अपने पतियों की दीर्घायु की कामना हेतु व्रत रखती है। सोमवती अमावस्या के दिन मौन व्रत रखने से सहस्र गोदान के बराबर फल मिलता है। शास्त्रों में इस दिन को अश्वत्थ (पीपल) वृक्ष प्रदक्षिणा व्रत के रूप में भी मान्यता प्राप्त है।

🚩सोमवती अमावस्या का महत्त्व महाभारत काल से जुड़ा हुआ है। महाभारत में भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर को इस दिन के महत्व के बारे में बताया था। उन्होंने कहा था कि इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करने से व्यक्ति समृद्ध, स्वस्थ और सभी दु:खों से मुक्त होता है। यह भी माना जाता है कि इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करने से पितरों की आत्माओं को शांति मिलती है।  

🚩 सोमवती अमावस्या के दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा का विशेष विधान है। विवाहित महिलाएं व्रत रखकर भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करती है और अपने पति की लंबी आयु और सुख-समृद्धि की प्रार्थना करती है। इस व्रत को करने से सुहागन स्त्रीयों का सौभाग्य अखंडित रहता है और उनके परिवार में सुख-शांति बनी रहती है।


🚩सोमवती अमावस्या के धार्मिक अनुष्ठान

🚩1. पीपल वृक्ष की पूजा और परिक्रमा: सोमवती अमावस्या के दिन विवाहित महिलाएं पीपल वृक्ष की दूध,जल,पुष्प,अक्षत और चन्दन से पूजा करती है।इसके बाद वे वृक्ष के चारों ओर 108 बार परिक्रमा करती है। कुछ परम्पराओं में पीपल वृक्ष को भँवरी देने का भी विधान है।ऐसा माना जाता है कि इस दिन पीपल वृक्ष की पूजा करने से भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का आशीर्वाद मिलता है।

🚩2. तुलसी पूजन और अर्पण:  

इस दिन धान,पान और खड़ी हल्दी को मिलाकर उसे विधि-विधान पूर्वक तुलसी के पौधे को चढ़ाया जाता है। हालांकि,इस दिन तुलसी के पौधे को छूना या उसे जल अर्पित करना वर्जित माना जाता है, इसलिए विशेष सावधानी रखनी चाहिए।

🚩3. पवित्र नदियों में स्नान:  

   सोमवती अमावस्या के दिन गंगा,यमुना,नर्मदा और अन्य पवित्र नदियों में स्नान करना अत्याधिक पुण्यदायक माना जाता है। स्नान के बाद ताम्रपात्र में जल और काले तिल डालकर सूर्यदेव को अर्घ्य देने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है।

🚩4.काले तिल का दान: इस दिन काले तिल का दान करने से पितृ दोष से मुक्ति मिलती है और पितरों की कृपा बनी रहती है। ऐसा माना जाता है कि काले तिल का दान करने से जीवन में तरक्की और समृद्धि प्राप्त होती है। आप काले तिल को मंदिर में दान कर सकते है या गरीबों और ब्राह्मणों को अर्पित कर सकते है।


🚩 सोमवती अमावस्या के दिन क्या करें और क्या न करें?

🚩क्या करें:

1.पितरों को भोजन, जल और अन्य वस्तुएं अर्पित करें।

- धर्मग्रंथों का पाठ करें, जैसे गीता, रामायण, और शिव पुराण का पाठ।

- भगवान शिव, माता पार्वती, और भगवान विष्णु की पूजा करें।

- घर के बुजुर्गों और पितरों का आशीर्वाद प्राप्त करें।

- मौन व्रत का पालन करें और अपनी आत्मा की शुद्धि के लिए ध्यान और साधना करें।

🚩क्या न करें:

- इस दिन तामसिक भोजन जैसे लहसुन, प्याज, मांस-मदिरा आदि से बचें।

- चना,मसूर दाल,सरसों का साग और मूली जैसी चीजों का सेवन न करें।

- तुलसी को छूने या उसे जल अर्पित करने से बचें।

- क्रोध,झूठ और वाणी की अशुद्धता से बचें। 

- बाल धोना या सिर की धुलाई करना इस दिन वर्जित माना जाता है। इससे जीवन में बधाएं आ सकती हैं और अशुभता का आगमन हो सकता है।

      🚩निष्कर्ष 

सोमवती अमावस्या का दिन सनातन धर्म में अत्याधिक पुण्यदायी माना गया है। इस दिन के अनुष्ठानों का पालन करके व्यक्ति न केवल अपनी और अपने परिवार की सुख-समृद्धि और आरोग्यता के लिए कामना कर सकता है, बल्कि पितरों की आत्मा की शांति और उनके आशीर्वाद की भी प्राप्ति कर सकता है। इस पवित्र दिन के महत्व को समझते हुए श्रद्धापूर्वक इसका पालन करने से व्यक्ति को जीवन में सुख,शांति और समृद्धि का वरदान प्राप्त होता है।


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Saturday, August 31, 2024

जानिए 12 वर्ष तक लगातार त्रिफला खाने के लाभ

 1 सितम्बर 2024

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🚩जानिए 12 वर्ष तक लगातार त्रिफला खाने के लाभ


🚩त्रिफला एक आयुर्वेदिक औषधि है जिसमें हरड़, बहेड़ा और आंवला के फल शामिल होते है। आयुर्वेद के अनुसार,त्रिफला का सेवन शरीर की तीनों दोषों—वात, पित्त और कफ—को संतुलित करने में सहायक होता है। त्रिफला के निरंतर सेवन से शरीर का कायाकल्प किया जा सकता है और इसे दीर्घकालिन स्वास्थ्य लाभ के लिए अत्याधिक प्रभावी माना गया है।


 🚩 त्रिफला का महत्व और लाभ


🚩त्रिफला के बारे में कहा जाता है कि:हरड़,बहेड़ा,आंवला घी शक्कर संग खाए,हाथी दाबे कांख में और चार कोस ले जाए।"


🚩यह कहावत त्रिफला के चमत्कारिक प्रभावों को दर्शाती है। इसका मतलब है कि त्रिफला का सेवन करने से व्यक्ति में इतनी ऊर्जा और ताकत आती है कि वह हाथी को भी अपनी कांख में दबाकर चार कोस (1 कोस = 3-4 किमी) चल सकता है।


🚩 त्रिफला के सेवन के नियम और विधियां 

1. सेवन विधि: त्रिफला का सेवन सुबह खाली पेट ताजे पानी के साथ करना चाहिए। सेवन के बाद एक घंटे तक कुछ भी न खाएं और न पिएं। इसके अलावा, ऋतु के अनुसार त्रिफला के साथ अलग-अलग चीजें मिलाकर सेवन करने की सलाह दी जाती है:

   - बसंत ऋतु (मार्च - मई): त्रिफला को शहद के साथ मिलाकर लें।

   - ग्रीष्म ऋतु (मई - जुलाई): त्रिफला के साथ गुड़ मिलाकर सेवन करें।

   - वर्षा ऋतु (जुलाई - सितम्बर): त्रिफला के साथ सैंधा नमक मिलाकर लें।

   - शरद ऋतु (सितम्बर - नवम्बर): त्रिफला के साथ देशी खांड मिलाकर लें।

   - हेमंत ऋतु (नवम्बर - जनवरी): त्रिफला के साथ सौंठ का चूर्ण मिलाकर सेवन करें।

   - शिशिर ऋतु (जनवरी - मार्च):त्रिफला के साथ पीपल छोटी का चूर्ण मिलाकर सेवन करें।


🚩2. मात्रा का निर्धारण: त्रिफला की मात्रा का निर्धारण उम्र के अनुसार किया जाता है। जितने वर्ष की उम्र है,उतने रत्ती त्रिफला का सेवन करना चाहिए। उदाहरण के लिए, यदि आपकी उम्र 50 वर्ष है, तो 50 x 0.12 = 6 ग्राम त्रिफला लेना चाहिए। 


🚩 त्रिफला का सेवन करने से मिलने वाले लाभ:


- पहला वर्ष: शरीर की सुस्ती दूर होती है।

- दूसरा वर्ष: सभी रोगों का नाश होता है।

- तीसरा वर्ष: नेत्रों की ज्योति बढ़ती है।

- चौथा वर्ष: चेहरे की सुंदरता में निखार आता है।

- पांचवां वर्ष: बुद्धि का अभूतपूर्व विकास होता है।

- छठा वर्ष: शरीर में बल बढ़ता है।

- सातवां वर्ष: सफेद बाल काले होने लगते है।

- आठवां वर्ष: शरीर यौवन शक्ति से परिपूर्ण होता है।

- नवां वर्ष: शरीर में दिव्य गुणों का विकास होता है।

- दसवां वर्ष: देवी सरस्वती का वास कंठ में होता है।

- ग्यारहवां और बारहवां वर्ष: वचन सिद्ध होते है।


 🚩त्रिफला के विभिन्न प्रयोग:


- नेत्र-प्रक्षालन: एक चम्मच त्रिफला चूर्ण रात को पानी में भिगोकर रखें और सुबह उस पानी से आँखें धो लें। इससे आँखों की रोशनी में सुधार होता है।

- कुल्ला करना: त्रिफला का पानी सुबह कुल्ला करने के बाद मुंह में रखने से दांत और मसूड़े मजबूत रहते है।

- वजन कम करने के लिए: त्रिफला के काढ़े में शहद मिलाकर पीने से मोटापा कम होता है।


🚩सावधानियां:

- त्रिफला का सेवन दुर्बल, कृश व्यक्ति, गर्भवती स्त्री, और नए बुखार में नहीं करना चाहिए।

- त्रिफला का सेवन करते समय दी गई मात्रा का सख्ती से पालन करें। अधिक मात्रा में सेवन करने से शरीर में विकार उत्पन्न हो सकते है।


🚩 स्वस्थ जीवन के लिए सुझाव:


- रिफाइन्ड नमक, तेल, शक्कर, और मैदा का सेवन न करें।

- प्राकृतिक भोजन और शुद्ध पानी का सेवन करें।

- आध्यात्मिकता और ध्यान का अभ्यास करें।

- अपने आहार और दिनचर्या में संतुलन बनाए रखें।


🚩त्रिफला का नियमित और सही तरीके से सेवन करने से आप न केवल विभिन्न बीमारियों से बच सकते है,बल्कि दीर्घकालिन स्वास्थ्य और सुंदरता भी प्राप्त कर सकते है। आयुर्वेद का यह अनमोल उपहार आपके जीवन को नई ऊर्जा और स्वास्थ्य से भर देगा।


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Friday, August 30, 2024

बिजली महादेव मंदिर हिमाचल प्रदेश का अनोखा मंदिर

 31 August 2024

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🚩बिजली महादेव मंदिर हिमाचल प्रदेश का अनोखा मंदिर


🚩बिजली महादेव मंदिर, हिमाचल प्रदेश के खूबसूरत कुल्लू शहर में स्थित एक प्राचीन और रहस्यमयी मंदिर है। यह मंदिर व्यास और पार्वती नदियों के संगम के पास, ऊंचे पर्वत की चोटी पर स्थित है, जो भक्तों और पर्यटकों दोनों के लिए आकर्षण का केंद्र है। 


 🚩कुल्लू घाटी की मान्यता और पौराणिक कथा:

कुल्लू घाटी की मान्यता के अनुसार, यह घाटी एक विशालकाय सांप के रूप में मानी जाती है। कहा जाता है कि इस विशालकाय सांप का वध भगवान शिव ने किया था। उसी स्थान पर भगवान शिव का यह मंदिर बना है, जिसे बिजली महादेव के नाम से जाना जाता है। 


 🚩शिवलिंग पर गिरती है आकाशीय बिजली:

इस मंदिर की सबसे अनोखी विशेषता यह है कि यहां के शिवलिंग पर हर 12 साल में एक बार भयंकर आकाशीय बिजली गिरती है। मान्यता है कि यह आकाशीय बिजली भगवान शिव की शक्ति का प्रतीक है। बिजली गिरने से मंदिर का शिवलिंग पूरी तरह खंडित हो जाता है। हाल ही में, दो साल पहले ही यहां बिजली गिरी थी, जिससे शिवलिंग टूट गया था, लेकिन इस घटना में कभी कोई जनहानि नहीं होती।


 🚩खंडित शिवलिंग की पुनर्स्थापना:

इस मंदिर के पुजारी खंडित शिवलिंग के टुकड़ों को इकट्ठा करते है और मक्खन के साथ उन्हें जोड़ते है। कुछ महीनों के बाद, शिवलिंग फिर से ठोस रूप में परिवर्तित हो जाता है और कुछ समय बाद पिंडी अपने पुराने शिवलिंग के स्वरूप में आ जाती है। इस प्रक्रिया को देखकर लगता है जैसे भगवान शिव स्वयं अपनी पिंडी को फिर से जीवित कर रहे है। इस अनोखे चमत्कार के कारण यहां के निवासियों ने भगवान शिव को "मक्खन महादेव" का नाम भी दिया है। 


 🚩भक्तों के लिए आस्था और रोमांच का केंद्र:

बिजली महादेव मंदिर तक पहुंचने के लिए भक्तों को करीब 3 किलोमीटर की कठिन चढ़ाई करनी पड़ती है, जो कि घने जंगलों और सुंदर पहाड़ियों के बीच से होकर गुजरती है। इस यात्रा के दौरान, भक्तों को प्राकृतिक सौंदर्य का अद्भुत अनुभव मिलता है। मंदिर के पास से घाटी और नदियों का नज़ारा बेहद मनमोहक होता है। 


 🚩भक्तों की आस्था और मंदिर का महत्त्व:

बिजली महादेव मंदिर न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि यह प्राकृतिक सुंदरता और रोमांच का अनुभव भी कराता है। यहां आनेवाले भक्त भगवान शिव की महिमा का अनुभव करते है और इस अनोखे मंदिर के दर्शन करके खुद को धन्य मानते है। 


🚩यह वीडियो उस समय का है जब अंतिम बार बिजली गिरी थी, और भक्तों ने इस अद्भुत घटना का अनुभव किया। 


🚩इस मंदिर की कहानी हमें यह सिखाती है कि प्रकृति और भगवान की शक्तियों का आदर और सम्मान करना चाहिए। कुल्लू घाटी के इस अनोखे मंदिर की यात्रा न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से बल्कि एक अद्वितीय अनुभव के रूप में भी यादगार रहती है।


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Thursday, August 29, 2024

मंदिरों की छत समतल क्यों नहीं होती, नुकीली क्यों बनाई जाती है ?

 30 अगस्त 2024

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🚩मंदिरों की छत समतल क्यों नहीं होती, नुकीली क्यों बनाई जाती है ?


🚩मंदिर तो आपने देखे ही होंगे। मंदिरों की छतों पर एक विशेष प्रकार की आकृति बनाई जाती है जो ऊपर की ओर नुकीली होती है। प्रश्न यह है कि मंदिरों की छतों को इस प्रकार क्यों बनाया जाता है? क्या इसके पीछे कोई वैज्ञानिक या धार्मिक कारण है? आइए, विस्तार से जानते है:


🚩मंदिरों की छतें कितने प्रकार की होती है ?


🚩विशेषज्ञों के अनुसार,भारत में मंदिर निर्माण की दो प्रमुख शैलियां है : उत्तर भारतीय 'नागर शैली' और दक्षिण भारतीय 'द्रविड़ शैली'। उत्तर भारत में मंदिर की छत को 'शिखर' कहा जाता है,जबकि दक्षिण भारत में इसे 'विमान' कहते है। 'शिखर' और 'विमान' दोनों ही मंदिर की छत की उन संरचनाओं को संदर्भित करते है जो ऊंचाई  ओर बढ़ती है। दक्षिण भारत में, 'शिखर' केवल ऊपर रखे पत्थर को कहा जाता है, जबकि उत्तर भारत में शिखर के सबसे ऊपर 'कलश' रखा जाता है। 


🚩इनके अलावा, पूर्वी भारत में 'रिक्हा देउल' और पश्चिमी भारत में 'वेसर शैली' जैसी अन्य शैलियां भी पाई जाती है, जो स्थानीय सांस्कृतिक और भौगोलिक परिस्थितियों के अनुसार विकसित हुई है।


🚩मंदिर की छत को पिरामिड जैसा क्यों बनाया जाता है ?


🚩1. धार्मिक और आध्यात्मिक कारण : धार्मिक दृष्टि से ऐसा माना जाता है कि ब्रह्मांड का आरंभ एक बिंदु से हुआ था, इसीलिए मंदिर का शिखर भी एक बिंदु के रूप में होता है, जो ब्रह्मांड से सकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित करता है। यह ऊर्जा पूरे मंदिर में फैलती है, जिससे मंदिर में शांति और पवित्रता का अनुभव होता है। शिखर को ऊंचा और नुकीला बनाने का एक उद्देश्य यह भी है कि यह आकाश की ओर इशारा करते हुए आध्यात्मिक उन्नति का प्रतीक बनता है।


🚩2.वास्तुकला और विज्ञान:

विज्ञान भी इस बात को मान्यता देता है कि पिरामिड जैसी आकृति के अंदर सकारात्मक ऊर्जा का संग्रहण अधिक होता है। इस प्रकार की संरचना के अंदर, विशेष रूप से यदि वह खोखली हो, ऊर्जा का मंडार (समूह) बनता है। इस प्रकार, मंदिर के अंदर ध्यान या प्रार्थना करने वाले व्यक्ति को इस ऊर्जा का लाभ मिलता है, जो मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होता है।


🚩3. जलवायु अनुकूलता:

   इस प्रकार की छत के कारण सूर्य की सीधी किरणें इसे प्रभावित नहीं कर पाती। त्रिकोणाकार छत का ऊपरी हिस्सा सूर्य की किरणों को अधिक झेल सकता है, जबकि अंदर का भाग ठंडा और आरामदायक रहता है। भारत में गर्म जलवायु को देखते हुए, इस प्रकार की वास्तुकला यात्रियों और भक्तों को राहत देने के लिए भी उपयोगी सिद्ध होती है।


🚩4. संरचनात्मक स्थिरता:

   पिरामिड आकार की संरचनाएं और भूकंप-रोधी होती है। त्रिकोणीय आकृति का केंद्र गुरुत्वाकर्षण के कारण मजबूत और संतुलित रहता है, जो किसी भी प्राकृतिक आपदा, जैसे भूकंप या तेज हवाओं के दौरान भी मंदिर को संरक्षित रखता है।


🚩5. दूर से पहचान:

   मंदिर के शिखर को ऊंचा और नुकीला बनाने का एक और उद्देश्य यह है कि इसे दूर से आसानी से पहचाना जा सके। शिखर का आकार ऐसा होता है कि कोई भी व्यक्ति प्रतिमा के ऊपर खड़ा नहीं हो सकता, जो धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है क्योंकि भगवान की प्रतिमा के ऊपर किसी का होना अशुभ माना जाता है।


इस प्रकार, मंदिरों की छत की संरचना केवल धार्मिक महत्व ही नहीं, बल्कि वैज्ञानिक और वास्तुकला संबंधी कारणों से भी महत्वपूर्ण है। मंदिरों का निर्माण एक पूर्ण वैज्ञानिक विधि से किया जाता है, जिससे वहां पवित्रता, शांति और दिव्यता बनी रहती है।  


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Wednesday, August 28, 2024

पनीर के फायदे और नुकसान

29August 2024

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🚩 पनीर के फायदे और नुकसान


पनीर, जो आज के दौर में एक लोकप्रिय खाद्य पदार्थ है,आयुर्वेद और पारंपरिक चिकित्सा के अनुसार स्वास्थ्य के लिए हानिकारक माना गया है। आयुर्वेद में इसे "निकृष्टतम भोजन" कहा गया है, जिसे पशुओं को भी नहीं खिलाना चाहिए। पनीर, दूध को फाड़कर या उसके प्राकृतिक रूप को विकृत करके बनाया जाता है। जिस तरह हम सड़ी हुई सब्जी नहीं खाते,उसी तरह पनीर भी एक तरह से सड़ा हुआ दूध ही है। 


🚩पनीर का भारतीय इतिहास में अभाव  

भारतीय इतिहास में पनीर का कोई उल्लेख नहीं मिलता,क्योंकि प्राचीनकाल से ही भारत में दूध को विकृत करने की मनाही रही है। आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाएं दूध को फाड़कर कुछ बनाने से बचती है।


🚩पनीर खाने के स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव  

आयुर्वेद के अनुसार,विकृत दूध से बने खाद्य पदार्थ जैसे पनीर, लिवर और आंतों के लिए हानिकारक होते है।आधुनिक चिकित्सा शोध भी इस बात की पुष्टि करते है कि पनीर खाने से पाचनतंत्र पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है,जिससे पाचन संबंधी समस्याएं उत्पन्न होती है। पनीर में मौजूद प्रोटीन को पचाना जानवरों के लिए भी कठिन होता है, फिर मनुष्य इसे कैसे पचा सकते है? इससे कब्ज, फैटी लीवर, और IBS (इर्रिटेबल बॉवेल सिंड्रोम) जैसी गंभीर बीमारियां हो सकती। इसके अतिरिक्त,पनीर के अत्याधिक सेवन से रक्त में थक्के जमने का खतरा रहता है, जो ब्रेन हैमरेज और हार्ट फेलियर का कारण बन सकता है।


🚩पनीर और हार्मोनल  असंतुलन  

पनीर का अत्यधिक सेवन हार्मोनल असंतुलन भी पैदाकर सकता है, जिसके परिणामस्वरूप हाइपोथायरायडिजम जैसी समस्या उत्पन्न हो सकती है। इसके अलावा, महिलाओं में गर्भधारण करने की क्षमता भी कम हो सकती है।


🚩पनीर की लोकप्रियता और इसके व्यंजन  

आजकल पनीर का उपयोग कढ़ाई पनीर,शाही पनीर,मटर पनीर, चिली पनीर आदि अनेक प्रकार के व्यंजनों में किया जाता है। यह समोसे, पकौडे और बर्गर में भी व्यापक रूप  प्रयोग होता है। भारतीय लोग पनीर के इतने शौकीन हो चुके है कि बिना पनीर खाए उन्हें भोजन अधूरा लगता है। 


🚩पनीर और मिलावट का खतरा  

यह भी देखा गया है कि बाजार में मिलने वाले पनीर में अक्सर मिलावट की जाती है, जो स्वास्थ्य के लिए और भी हानिकारक होता है। अतः, यदि आप पनीर का सेवन करना चाहते है तो घर पर ही इसे तैयार करें ताकि आप मिलावट और अन्य स्वास्थ्य जोखिमों से बच सकें।


🚩पनीर के बारे में सोचें  

अगली बार, जब भी आप पनीर खाने का विचार करें, तो यह जरूर सोचें कि क्या यह वास्तव में आपके स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है या केवल स्वाद के लिए ही आप इसका सेवन कर रहे है। 


🚩निष्कर्ष  

पनीर को लेकर आयुर्वेद और आधुनिक चिकित्सा के विचारों को ध्यान में रखते हुए हमें अपने आहार में इसके उपयोग पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है। स्वास्थ्य को प्राथमिकता देते हुए, हमें यह समझना चाहिए कि पनीर का सेवन हमारे शरीर के लिए अधिक हानिकारक साबित हो सकता है। इसलिए, सेहतमंद जीवनशैली अपनाने के लिए हमें पनीर से दूर रहना चाहिए।


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Tuesday, August 27, 2024

ॐ पर्वत: हिमालय की गोद में छिपा दिव्य रहस्य

 28 August 2024

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🚩ॐ पर्वत: हिमालय की गोद में छिपा दिव्य रहस्य


🚩ॐ पर्वत, जिसे 'आदि कैलाश' के नाम से भी जाना जाता है, उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में स्थित एक पवित्र पर्वत है। यह पर्वत अपनी अनोखी विशेषता के कारण दुनियांभर के तीर्थयात्रियों, साहसिक पर्यटकों और पर्वतारोहियों को अपनी ओर आकर्षित करता है। इस पर्वत की अनूठी बात यह है कि इसकी हिमाच्छादित चोटियों पर प्राकृतिक रूप से 'ॐ' का चिन्ह अंकित है, जो भारतीय संस्कृति और धार्मिकता का प्रतीक है।


🚩'ॐ' का यह प्रतीक मात्र एक आकृति नहीं, बल्कि एक दिव्य संदेश है जो आध्यात्मिकता, ध्यान और साधना का मार्ग दिखाता है। हिन्दू धर्म में 'ॐ' को सबसे पवित्र और शक्तिशाली मंत्र माना गया है। जब लोग इस पर्वत पर 'ॐ' के चिन्ह को देखते है,तो उन्हें ऐसा लगता है मानो साक्षात भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त हो रहा हो। यह पर्वत कैलाश मानसरोवर यात्रा के मार्ग का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और यहां से कैलाश पर्वत और मानसरोवर झील का भी आभास होता है।


🚩 ॐ पर्वत के आस-पास का क्षेत्र प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर है। यहां पर हिमालय की ऊंची चोटियों के साथ-साथ हरे-भरे जंगल,गहरी घाटियां और निर्मल जलधाराएं मिलती है जो इस स्थान को एक स्वर्गीय धाम का आभास कराती है। यहां का वातावरण शुद्ध और शांतिपूर्ण है, जो ध्यान और साधना के लिए आदर्श माना जाता है। 


🚩ॐ पर्वत की यात्रा काफी चुनौतीपूर्ण मानी जाती है क्योंकि यहां पहुंचने के लिए कठिन पहाड़ी रास्तों और अनिश्चित मौसम का सामना करना पड़ता है। इसके बावजूद, तीर्थयात्री और पर्यटक यहां की यात्रा करते है क्योंकि यहां पहुंचने के बाद उन्हें एक अलग ही आध्यात्मिक शांति और संतोष का अनुभव होता है। यात्रा के दौरान, यात्री भारतीय सेना और आईटीबीपी (इंडो-तिब्बतन बॉर्डर पुलिस) के गाइडेंस में सुरक्षित रहते है,जो यात्रा को सुरक्षित और सफल बनाने में मदद करते है।


🚩यह भी मान्यता है कि जो लोग ॐ पर्वत की यात्रा करते है,वे अपने जीवन में आध्यात्मिक उत्थान और शांति की प्राप्ति करते है। यहां का हर एक दृश्य,चाहे वह हिमाच्छादित पहाड़ हो,बर्फीली हवा हो या फिर 'ॐ' का दिव्य प्रतीक—सब कुछ एक गहरी आध्यात्मिक अनुभूति का अनुभव कराता है।


🚩अतः, ॐ पर्वत न केवल एक प्राकृतिक चमत्कार है बल्कि यह एक ऐसा स्थान है जहां आध्यात्मिक ऊर्जा और ब्रह्मांडीय शक्तियों का अद्भुत संगम होता है। यह स्थान अपने आप में एक जीवंत मंदिर की तरह है, जो न केवल भारत की धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर का प्रतिनिधित्व करता है बल्कि यह जीवन की गहरी सच्चाइयों और दिव्यता की ओर भी मार्गदर्शन करता है।

🚩इस प्रकार, ॐ पर्वत न केवल प्राकृतिक सुंदरता का धाम है, बल्कि यह एक आध्यात्मिक केंद्र भी है जो भारत की प्राचीन संस्कृति और धार्मिक धरोहर को संजोए हुए है। यहां की यात्रा हर भारतीय के लिए एक आध्यात्मिक यात्रा का अनुभव है, जो आत्मा को शांति और सकारात्मक ऊर्जा से भर देता है।

जो भी इस पवित्र पर्वत की यात्रा करता है वह अपने जीवन में अनंत शांति और सुख का अनुभव करता है।


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