Sunday, September 29, 2024

जातीय जनगणना और भारत का सामाजिक भविष्य

 30 सितंबर 2024

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🚩जातीय जनगणना और भारत का सामाजिक भविष्य 


🚩जातीय जनगणना का मुद्दा आजकल काफी चर्चा में है। यह एक ऐसा विषय है जिसे लेकर देश में अलग-अलग राजनीतिक दलों के बीच बहस छिड़ी हुई है। लेकिन सवाल यह है कि आखिर जातीय जनगणना की आवश्यकता क्यों है और इसे कब तक टाला जा सकता है?


🚩जातीय जनगणना की आवश्यकता : जातीय जनगणना केवल आंकड़ों का संग्रहण नहीं है, यह समाज के विभिन्न वर्गों के जीवनस्तर को समझने का एक महत्वपूर्ण माध्यम है। अगर, जातीय जनगणना आज नहीं होगी तो कल होगी, अगर कल नहीं होगी तो परसों होगी, लेकिन एक दिन यह अवश्य होगी। इसे टालने का प्रयास केवल देश की वास्तविक समस्याओं से आंखें मूंदने जैसा है।


🚩यह जनगणना एक बंद मुट्ठी की तरह है, जो यदि खुल गई, तो उससे देश की सामाजिक और आर्थिक असमानताओं का सच सामने आ सकता है। कांग्रेस जैसे दल इस मुद्दे से बचने का प्रयास कर रहे है क्योंकि इसका घाटा उन्हें ही होगा। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जातीय सर्वे कराकर इसे सार्वजनिक कर दिया, लेकिन कर्नाटक में कांग्रेस ने जातीय सर्वे कराया था और आज तक उसकी रिपोर्ट सार्वजनिक करने की हिम्मत नहीं दिखाई।


🚩जातीय जनगणना का राजनीतिक आयाम : जो नेता भाजपा के इसके विरोध में बयानबाजी कर रहे है , वे या तो सामाजिक ज्ञान से अज्ञानी हैं या फिर मूर्खता कर रहे है।वास्तविकता यह है कि, जातीय जनगणना भाजपा ही कराएगी। भाजपा ने हर मौके पर सामाजिक न्याय को ध्यान में रखते हुए महत्वपूर्ण फैसले किए है। पहले एक राष्ट्रवादी मुस्लिम को राष्ट्रपति बनाया, फिर दलित को और तीसरी बार आदिवासी को यह सम्मान मिला। भाजपा ने बाबा साहब अम्बेडकर और कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देकर उनके योगदान को सराहा, जो कि कांग्रेस कभी नहीं कर सकी।  


🚩कांग्रेस ने पीढ़ी दर पीढ़ी प्रधानमंत्री पद को अपने परिवार के पास ही रखा और जब अन्य लोगों को मौका मिला भी, तो वे उच्च वर्ग के ही थे। कांग्रेस का वास्तविक उद्देश्य यथास्थितिवाद को बनाए रखना है, जो देश की प्रगति में सबसे बड़ा बाधक है।


🚩भाजपा की नीतियां और यथास्थितिवाद से संघर्ष : जब तक अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री नहीं बने थे, देश में बुनियादी सुविधाओं की स्थिति बेहद खराब थी। दो लेन की सड़क को ही हाईवे माना जाता था और गांवों में बिजली पहुंचाना ग्रामीणों का अधिकार नहीं बल्कि एक कृपा समझा जाता था।भाजपा ने सत्ता में आते ही इन यथास्थितिवादी धारणाओं को तोड़ा और लोगों को उनके अधिकारों का एहसास कराया।


🚩गैस सिलेंडर,फोन कनेक्शन,ट्रांसफॉर्मर लगवाना, इंदिरा आवास,शौचालय निर्माण – ये सब कांग्रेस के समय में लोगों को एहसान लगते थे। लेकिन भाजपा ने इन्हें जनता के अधिकारों के रूप में प्रस्तुत किया। ग्रामीण क्षेत्रों में सड़कें बनवाईं, बिजली पहुंचाई और हर जरूरतमंद के लिए सरकारी योजनाओं का लाभ सुनिश्चित किया।


🚩जातीय जनगणना का महत्व : जातीय जनगणना का मुख्य उद्देश्य सामाजिक असमानताओं को दूर करना और समाज के सभी वर्गों के लिए समान अवसर सुनिश्चित करना है। यह कांग्रेस के यथास्थितिवाद के जड़मूल को हिला देगा। जातीय जनगणना से सबसे अधिक नुकसान कांग्रेस और गांधी परिवार को होगा। पी चिदंबरम का यह बयान कि "जैसे-जैसे इस देश में लोकतंत्र गहरा होता जाएगा, वैसे-वैसे कांग्रेस कमजोर होती जाएगी", शत-प्रतिशत सत्य प्रतीत होता है।


🚩निष्कर्ष : जातीय जनगणना से समाज में कोई भूकंप नहीं आएगा, बल्कि यह सामाजिक संतुलन और न्याय सुनिश्चित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम होगा। इसे आज नहीं तो कल भाजपा ही पूरा करेगी। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से आग्रह है कि वे इस जनगणना को उत्तर प्रदेश में शुरू कर इसे आगे बढ़ाएं और समाज में व्याप्त असमानताओं को दूर करने का मार्ग प्रशस्त करें।


🚩जातीय जनगणना का होना केवल समय की बात है और यह समाज को नए सिरे से परिभाषित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।


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Saturday, September 28, 2024

भारत का विभाजन: धार्मिक आधार और राष्ट्र की चुनौती

 29th September 2024

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▪भारत का विभाजन: धार्मिक आधार और राष्ट्र की चुनौती



▪1947 में जब सीरिल जॉन रेडक्लिफ ने अविभाजित भारत के नक्शे पर दो रेखाएं खींची, तब भारत और पाकिस्तान का जन्म हुआ। भारत का आधार उन इलाकों पर रखा गया, जहां मुसलमान बहुसंख्यक नहीं थे। वहीं, मुसलमान बहुल क्षेत्रों को पाकिस्तान बनाया गया। यह विभाजन एक धार्मिक विभाजन था, जिसमें भारत और पाकिस्तान को धर्म के आधार पर अलग किया गया। 


▪विभाजन का सिद्धांत और भारत की नींव पर संकट :

विभाजन का मूल सिद्धांत यही था कि जिन इलाकों में मुसलमान बहुसंख्यक होंगे, वे पाकिस्तान का हिस्सा बनेंगे। इसलिए, अगर आज भारत के किसी राज्य में आबादी की धार्मिक संरचना बदलती है, तो यह भारत के संविधान और उसकी नींव पर सीधा हमला है। यह केवल धार्मिक स्वतंत्रता का मुद्दा नहीं है, बल्कि भारत की सभ्यता और उसके अस्तित्व का प्रश्न है। 


▪यह एक ऐसा मुद्दा है, जिसे हर भारतीय नागरिक को गंभीरता से लेना चाहिए। यह केवल राजनीतिक दलों के बीच की प्रतिस्पर्धा नहीं है, बल्कि राष्ट्र के भविष्य से जुड़ा सवाल है। यह भारतीय लोकतंत्र और एकता के सिद्धांतों को कमजोर करने का प्रयास है।


▪ 1946 के चुनाव और मुस्लिम लीग का दबदबा :

विभाजन से पहले के घटनाक्रमों को ध्यान में रखते हुए यह समझना जरूरी है कि 1946 के चुनावों में मुस्लिम लीग ने बड़े पैमाने पर समर्थन हासिल किया था, यहां तक कि उन इलाकों से भी जहां यह स्पष्ट था कि वे पाकिस्तान का हिस्सा नहीं बनेंगे। तमिलनाडु और केरल के मुसलमानों ने भी मुस्लिम लीग के उम्मीदवारों को जीताया, जबकि जिन्ना ने कभी यह दावा नहीं किया कि ये क्षेत्र पाकिस्तान का हिस्सा बनेंगे।


▪यह मुस्लिम समुदाय द्वारा धर्म के आधार पर लिया गया निर्णय था, जिसने भारत के

 विभाजन की नींव रखी। भारतीय मुसलमानों ने धर्म के आधार पर मुस्लिम लीग के थोक भाव उम्मीदवार जिताए, जिससे विभाजन की मांग और भी मजबूत हो गई। 


▪मुस्लिम लीग का दबदबा और पाकिस्तान का निर्माण :

विभाजन से पहले,अविभाजित पंजाब और बंगाल के मुसलमानों में मुस्लिम लीग का प्रभाव धीरे-धीरे बढ़ा। हालांकि, मुस्लिम लीग का दबदबा बहुत देर से शुरू हुआ, लेकिन इसका प्रभाव गहरा था। इससे अंग्रेजों को यह साबित करने में मदद मिली कि मुसलमान और हिंदू एक ही राष्ट्र में नहीं रह सकते। यही कारण था कि 14 अगस्त 1947 को पाकिस्तान का गठन हुआ। 


▪संविधान सभा और सरदार पटेल की दृढ़ता :

विभाजन के बाद, मुस्लिम लीग के कई प्रतिनिधि पाकिस्तान जाने के बजाए भारत की संविधान सभा में शामिल हो गए। इन 28 प्रतिनिधियों ने संविधान सभा में मांग की कि मुसलमानों को फिर से "सैपरेट इलैक्टोरेट" दिया जाए, ताकि मुस्लिम सांसद और विधायक केवल मुस्लिम वोटों से चुने जा सकें। 


▪यह उस विचारधारा का प्रतीक था, जिसने विभाजन को बढ़ावा दिया था। लेकिन इस मांग के खिलाफ सरदार वल्लभभाई पटेल ने दृढ़ता से अपना विरोध जताया। 28 अगस्त 1947 को संविधान सभा में दिए गए अपने प्रसिद्ध भाषण में पटेल ने कहा, "अगर ये सब चाहिए तो पाकिस्तान चले जाओ! यहां हम 'एक राष्ट्र' बना रहे हैं। इसमें मैं किसी को बाधा नहीं डालने दूंगा।"


▪भारत की एकता और भविष्य की दिशा : 

पटेल के इस वक्तव्य ने स्पष्ट कर दिया कि भारत एक राष्ट्र है और यहां धर्म के आधार पर किसी को विशेष अधिकार नहीं दिए जाएंगे। भारत का निर्माण एक ऐसे राष्ट्र के रूप में हुआ था, जहां सभी धर्मों, जातियों और समुदायों के लोग एक साथ मिलकर रह सकें। 


 ▪हालांकि,आज भी कुछ तत्व भारतीय समाज में विभाजन की भावना को बढ़ावा देने का प्रयास करते हैं। यह राष्ट्र की एकता के लिए गंभीर चुनौती है और इसे सख्ती से रोकने की आवश्यकता है।


▪निष्कर्ष :

1947 में भारत का विभाजन धार्मिक आधार पर हुआ था, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि आज भी हम उस विभाजनकारी मानसिकता को आगे बढ़ने दें। हमें यह समझना होगा कि भारत का निर्माण एक समावेशी राष्ट्र के रूप में हुआ था, जहां सभी धर्मों और समुदायों के लोग साथ रह सकें। 


▪धार्मिक संरचना में कोई भी बदलाव, जो भारी है कि वह अपने राष्ट्र की सुरक्षा और उसकी एकता के प्रति सचेत रहे।


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Friday, September 27, 2024

भारतीय राजनीति में अल्पसंख्यक वोट बैंक और सामाजिक न्याय की चुनौतियां

 28 September 2024

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♻भारतीय राजनीति में अल्पसंख्यक वोट बैंक और सामाजिक न्याय की चुनौतियां 


♻भारतीय राजनीति में धर्म और जाति की भूमिका हमेशा से महत्वपूर्ण रही है। राजनीतिक दलों की चुनावी रणनीतियां अक्सर इन आधारों पर ही तय होती है। विशेष रूप से जब किसी दल को किसी क्षेत्र या राज्य में एकमुश्त अल्पसंख्यक वोट मिलता है,तो यह 20% या उससे अधिक का चुनावी लाभ प्रदान करता है। अगर, इसमें कुछ प्रभावशाली जातियों का समर्थन जुड़ जाए, तो चुनावी जीत की संभावना और भी बढ़ जाती है। ऐसे में उम्मीदवार की जाति को ध्यान में रखकर समीकरण आसानी से बन जाता है। 


♻ अल्पसंख्यक वोट बैंक और चुनावी समीकरण


♻जब कोई राजनीतिक दल अल्पसंख्यक वोट बैंक पर निर्भर होता है, तो अन्य समुदायों, विशेष रूप से वंचित हिंदू समुदायों को चुनावी समीकरण से बाहर रखने की प्रवृत्ति बढ़ जाती है। ऐसी स्थितियों में,उन दलों को इन वंचित समूहों तक अपना आधार बढ़ाने की आवश्यकता नहीं महसूस होती। यह न केवल सामाजिक न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ है बल्कि भारतीय लोकतंत्र में समरसता और विविधता को भी कमजोर करता है।


♻ सामाजिक न्याय और राजनीतिक उदासीनता


♻वंचित समुदायों की अनदेखी की यह प्रवृत्ति कई बार बड़े सामाजिक न्याय के मुद्दों पर भी देखने को मिलती है। उदाहरण के लिए:

▪- एससी-एसटी कर्मचारियों का डिमोशन।

▪- मंडल कमीशन की सिफारिशों को 1990 तक लागू न करना।

▪- NEET ऑल इंडिया कोटा में ओबीसी आरक्षण को शामिल न करना।

▪- बाबा साहब अंबेडकर और कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने में देरी।

▪- मुसलमानों और ईसाइयों को अनुसूचित जातियों में शामिल करने की कोशिश।

▪- 2011 में जामिया में एससी और एसटी आरक्षण का समाप्त होना।


♻ये सभी घटनाएं तब घटित हुईं जब सत्ताधारी दल अल्पसंख्यक वोटों पर अधिक निर्भर थे। इसका स्पष्ट अर्थ है कि जब दल को अल्पसंख्यक वोट बैंक से मजबूत समर्थन मिलता है,तो वह सामाजिक न्याय की पहल से दूर हो जाता है और वंचित समुदायों की जरूरतों को नजरंदाज करता है।


♻ विविधता और समरसता का अभाव


♻♻जो राजनीतिक दल अल्पसंख्यक वोट बैंक पर निर्भर नहीं होते, उन्हें ज़्यादा से ज़्यादा जातियों और समूहों को अपने साथ जोड़ने की ज़रूरत होती है। ऐसा इसलिए नहीं कि वे सामाजिक न्याय के प्रति अधिक जागरूक होते है,बल्कि चुनावी गणित में खुद को संतुलित करने के लिए उन्हें ऐसा करना पड़ता है।अगर, उन्हें अल्पसंख्यक वोट का 20% हिस्सा नहीं मिलता, तो वे केवल विभिन्न जातियों और समुदायों के बीच समरसता स्थापित कर ही सत्ता तक पहुंच सकते है। 


 ♻ गैर-कांग्रेस सरकारें और सामाजिक न्याय की पहल


♻ इसीलिए,अधिकांश महत्वपूर्ण सामाजिक न्याय की पहलें गैर-कांग्रेसी सरकारों के तहत ही लागू हुई है। बीजेपी, जनता पार्टी, जनता दल और डीएमके जैसे दलों की सरकारों ने सामाजिक न्याय के विभिन्न कदम उठाए है,जो सामाजिक समरसता को बढ़ावा देने में मददगार रहे है। 


♻अल्पसंख्यक वोट बैंक का राजनीतिक प्रभाव


♻यह भी महत्वपूर्ण है कि भारत में सबसे बड़े अल्पसंख्यक की जनसंख्या 15% से कम है, लेकिन उनकी एकजुट वोटिंग उन्हें सबसे ताकतवर राजनीतिक दबाव समूह बना देती है। ऐतिहासिक रूप से, जिस दल को अल्पसंख्यक वोट का समर्थन मिला है, वही सत्ता में आया है। उदाहरण के लिए, पश्चिम बंगाल में मुसलमानों का समर्थन जिस पार्टी को जाता है, वही पार्टी सरकार बनाती है। समय-समय पर उन्होंने कांग्रेस, वामपंथ और तृणमूल कांग्रेस का समर्थन किया है और हर बार सत्ता का परिवर्तन हुआ है।


 ♻भारतीय लोकतंत्र की विकृतियां 


♻धार्मिक पहचान के आधार पर अल्पसंख्यकों का एकमुश्त वोट देना भारतीय लोकतंत्र की सबसे बड़ी विकृतियों में से एक है। यह लोकतंत्र के मूलभूत सिद्धांतों के विपरीत है,जहाँ हर समुदाय को समान अधिकार और प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए। यह विकृति न केवल राजनीतिक असंतुलन पैदा करती है, बल्कि सामाजिक न्याय और समरसता की धारणा को भी नुकसान पहुंचाती है।


♻ निष्कर्ष


♻भारतीय राजनीति में अल्पसंख्यक वोट बैंक और जातिगत समीकरणों की भूमिका ने सामाजिक न्याय और समरसता को कमजोर किया है। ऐसे में,राजनीतिक दलों को सभी समुदायों को साथ लेकर चलने की आवश्यकता है,ताकि भारतीय लोकतंत्र का वास्तविक उद्देश्य पूरा हो सके और सामाजिक न्याय के सिद्धांतों का पालन हो।


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Thursday, September 26, 2024

कोकिलाक्ष: आयुर्वेदिक औषधि और इसके चमत्कारी लाभ

 27th September 2024

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🚩कोकिलाक्ष: आयुर्वेदिक औषधि और इसके चमत्कारी लाभ

🚩कोकिलाक्ष क्या है? 


आयुर्वेद,जो कि भारतीय चिकित्सा पद्धति का प्राचीन और समृद्ध स्रोत है, उसमें कई औषधियों का उल्लेख मिलता है जो प्राकृतिक रूप से शरीर को स्वस्थ और रोगमुक्त बनाने में सहायक होती है। ऐसी ही एक महत्वपूर्ण औषधि है कोकिलाक्ष, जिसे तालमखाना के नाम से भी जाना जाता है। आयुर्वेदीय निघण्टु एवं संहिताओं में कोकिलाक्ष का उल्लेख प्राप्त होता है। चरक-संहिता में शुक्रशोधन महाकषाय के अंतर्गत इसका उल्लेख मिलता है। यह औषधि शरीर की पोषण क्षमता को बढ़ाने और विभिन्न बीमारियों के इलाज में सहायक होती है।


🚩कोकिलाक्ष के औषधीय गुण

कोकिलाक्ष के पत्ते, जड़ और बीज तीनों का ही आयुर्वेद में औषधीय महत्व है। इसके पत्ते मधुर, कड़‍वे और शोफ(Dropsy), दर्द, विष,पीलिया, कब्ज,मूत्र रोग और वात को कम करने में सहायक होते है। इसकी जड़ शीतल,दर्दनिवारक और मूत्रल होती है जो मूत्र संबंधी समस्याओं को दूर करती है। वहीं,इसके बीज कड़वे,ठंडे तासीर के और गर्भ को पोषण देने वाले होते है।


🚩कोकिलाक्ष का मुख्य उपयोग यौन संबंधी समस्याओं के इलाज में किया जाता है। इसके अलावा इसका प्रयोग शरीर की कमजोरी,मूत्र संबंधी विकार, पीलिया और पाचन तंत्र की समस्याओं में भी लाभकारी होता है।


🚩कोकिलाक्ष के फायदे 

कोकिलाक्ष का उपयोग कई तरह की बीमारियों के इलाज में किया जाता है। इसके कुछ प्रमुख फायदे निम्नलिखित है :


1. 🚩खांसी में फायदेमंद  

मौसम के बदलाव से होने वाली खांसी से राहत पाने के लिए कोकिलाक्ष के पत्तों का चूर्ण शहद के साथ मिलाकर सेवन करने से आराम मिलता है। 1-2 ग्राम चूर्ण शहद में मिलाकर लेने से खांसी में राहत मिलती है।


2.🚩सांस संबंधी समस्याओं में लाभकारी

अगर किसी को सांस लेने में तकलीफ हो रही हो, तो कोकिलाक्ष के बीज का चूर्ण शहद और घी के साथ लेने से तुरंत आराम मिलता है। यह उपाय श्वास की तकलीफों में बहुत प्रभावी है।


3. 🚩जलोदर में लाभकारी

पेट में जल या प्रोटीन का ज्यादा जमाव होने के कारण पेट फूलने और दर्द होने की समस्या को जलोदर कहा जाता है। इस स्थिति में तालमखाना की जड़ से बना काढ़ा बहुत प्रभावी होता है। 10-20 मिलीलीटर काढ़े का सेवन जलोदर में लाभकारी होता है। यह काढ़ा लीवर और मूत्राशय से संबंधित समस्याओं में भी सहायक है।


4. 🚩रक्त विकारों में लाभकारी  

रक्त विकारों से परेशान व्यक्तियों के लिए कोकिलाक्ष का सेवन भी बहुत फायदेमंद होता है। 1-2 ग्राम कोकिलाक्ष बीज का चूर्ण सेवन करने से रक्त संबंधी समस्याओं में राहत मिलती है।


5. 🚩मूत्र संबंधी समस्याओं में लाभकारी  

मूत्र रोगों में दर्द,जलन,मूत्र का रुक-रुक कर आना या मूत्र का कम आना जैसी समस्याएं बहुत आम है। कोकिलाक्ष का सेवन इन समस्याओं को दूर करने में कारगर है।गोखरू, तालमखाना और एरण्ड की जड़ का मिश्रण दूध के साथ लेने से मूत्र संबंधी विकारों में काफी आराम मिलता है।  


🚩तालमखाना के बीज के फायदे

तालमखाना या कोकिलाक्ष के बीज औषधीय गुणों से भरपूर होते है। इनका उपयोग कई तरह की यौन संबंधी समस्याओं के इलाज में किया जाता है। इसके बीज ठंडे तासीर के होते है , जो शरीर की कमजोरी को दूर करने में मदद करते है। गर्भपोषण के लिए भी इन बीजों का सेवन लाभकारी होता है।


🚩निष्कर्ष  

कोकिलाक्ष या तालमखाना एक बहुआयामी आयुर्वेदिक औषधि है, जिसका प्रयोग प्राचीन काल से किया जाता रहा है। इसके पत्ते, जड़ और बीज सभी औषधीय गुणों से भरपूर होते है। चाहे वह खांसी,सांस संबंधी समस्या हो मूत्र विकार हो या रक्त विकार,कोकिलाक्ष इन सभी बीमारियों का प्राकृतिक और प्रभावी इलाज प्रदान करता है। हालांकि, इसका सेवन चिकित्सक की सलाह के अनुसार ही करना चाहिए ताकि इसका पूर्ण लाभ मिल सके और स्वास्थ्य बेहतर हो सके।


🚩आयुर्वेद के समृद्ध ज्ञान का यह अनुपम उदाहरण कोकिलाक्ष आज भी कई लोगों के लिए प्राकृतिक उपचार का एक महत्वपूर्ण स्रोत बना हुआ है।


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Tuesday, September 24, 2024

जीवित्पुत्रिका व्रत: महत्व,विधि एवं कथा

 25 सितम्बर 2024

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🚩 जीवित्पुत्रिका व्रत: महत्व,विधि एवं कथा


जीवित्पुत्रिका व्रत या जिउतिया व्रत संतान की लंबी आयु, स्वास्थ्य और कल्याण के लिए किया जाने वाला एक महत्वपूर्ण व्रत है। यह विशेष रूप से माताओं द्वारा अपने पुत्रों की रक्षा और उनके समृद्ध भविष्य के लिए रखा जाता है। यह व्रत मुख्य रूप से उत्तर भारत के बिहार,उत्तर प्रदेश,झारखंड और नेपाल में बड़ी श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। 


🚩 जीवित्पुत्रिका व्रत का महत्व:

जीवित्पुत्रिका व्रत का प्रमुख उद्देश्य संतान की लंबी आयु, उनके स्वास्थ्य और समृद्धि के लिए भगवान से प्रार्थना करना है। माना जाता है कि इस व्रत को करने से संतान पर आने वाले सभी संकट दूर हो जाते है और माता का आशीर्वाद उन्हें हमेशा सुरक्षा प्रदान करता है। यह व्रत संतान की लंबी आयु और सुखमय जीवन के लिए विशेष रूप से फलदायक माना जाता है। 


🚩 जीवित्पुत्रिका व्रत की विधि


1. स्नान और संकल्प : व्रत के दिन माताएं सूर्योदय से पहले स्नान करके व्रत का संकल्प लेती है। संकल्प में यह निश्चय किया जाता है कि वे पूरे दिन बिना अन्न-जल के व्रत रखेंगी और अपनी संतान की लंबी उम्र और अच्छे स्वास्थ्य के लिए प्रार्थना करेंगी।


2. 🚩पूजा सामग्री : इस व्रत की पूजा में चंदन, फूल, धूप, दीप, नैवेद्य, धान, कच्चा सूत और मिट्टी की मूर्तियां (जीवित्पुत्रिका देवी और भगवान जीमूतवाहन की) आवश्यक होती है।


3. 🚩पूजन विधि : पूजन के समय भगवान जीमूतवाहन और जीवित्पुत्रिका देवी की मूर्तियों की पूजा की जाती है। मिट्टी से बनी मूर्ति को साफ स्थान पर स्थापित किया जाता है फिर धूप, दीप, चंदन और फूल अर्पित किए जाते है। व्रति माताएं अपनी संतान की सुरक्षा और दीर्घायु के लिए विशेष रूप से प्रार्थना करती है।


4. 🚩कथा श्रवण : व्रत के दौरान जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा सुनना और सुनाना अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। कथा श्रवण से व्रत की पूर्णता मानी जाती है। 


5. 🚩दिवस-निशा व्रत : इस व्रत को विशेष रूप से कठिन माना जाता है क्योंकि इसमें माताएं बिना अन्न और जल ग्रहण किए पूरा दिन और रात व्रत रखती है। व्रत का समापन अगले दिन सूर्योदय के बाद होता है।


🚩 जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा :

जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा, भगवान जीमूतवाहन से जुड़ी है। कथा के अनुसार, जीमूतवाहन एक धर्मपरायण और परोपकारी राजा थे। एक बार वे वन में घूम रहे थे, तभी उन्होंने देखा कि एक स्त्री अपने पुत्र को बचाने के लिए रो रही है। जब उन्होंने उस स्त्री से इसका कारण पूछा, तो उसने बताया कि उनका पुत्र नागवंश का है और हर वर्ष गरुड़ देवता को नागों में से एक को बलिदान के रूप में देना पड़ता है। 


🚩जीमूतवाहन ने उस स्त्री की पीड़ा को महसूस किया और अपने जीवन को बलिदान करने का निर्णय लिया। उन्होंने गरुड़ देवता से कहा कि वे इस बार नाग की जगह उन्हें ही खा लें। गरुड़ ने जब जीमूतवाहन की इस महानता को देखा तो वह प्रभावित हुए और उन्होंने वचन दिया कि वे अब कभी नागों को नहीं खाएंगे। इस प्रकार, जीमूतवाहन के बलिदान और करुणा के कारण नागों की सुरक्षा हुई। 


🚩कहा जाता है कि इस कथा को सुनने और इस व्रत को विधिपूर्वक करने से माताओं की संतान पर आने वाले सभी संकट टल जाते है और वे दीर्घायु होते है।


🚩 निष्कर्ष

जीवित्पुत्रिका व्रत माताओं की संतान के प्रति निःस्वार्थ प्रेम और त्याग का प्रतीक है। इस व्रत में माताएं बिना अन्न और जल के अपने बच्चों की सुरक्षा और लंबी आयु के लिए भगवान से प्रार्थना करती है। जीमूतवाहन की कथा🙏 हमें त्याग, परोपकार और धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती है।


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Monday, September 23, 2024

असम के कानून पर उठे विवाद की सच्चाई

 24 सितम्बर 2024

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🔷असम के कानून पर उठे विवाद की सच्चाई


असम में हाल ही में पारित "The Assam Compulsory Registration of Muslim Marriage and Divorce Bill, 2024" को लेकर विवाद चल रहा है। इस बिल का उद्देश्य निकाह और तलाक का अनिवार्य रूप से रजिस्ट्रेशन कराना है, जिसके जरिए बाल विवाह, बिना सहमति के विवाह और बहुविवाह जैसी समस्याओं पर रोक लगाई जा सके।

🔷मुस्लिम समुदाय के कुछ हिस्सों ने इसे भेदभावपूर्ण करार दिया है।लेकिन वास्तविकता यह है कि मुस्लिम समुदाय को पहले ही कई कानूनी लाभ मिले हुए है। उदाहरण के लिए,वर्तमान में निकाह का सर्टिफिकेट काजी द्वारा दिया जाता है जबकि हिंदू विवाह के लिए यह अधिकार पंडित को नहीं है। हिंदुओं को अपनी शादी का रजिस्ट्रेशन सरकारी अधिकारियों के पास कराना पड़ता है जिसका कोई विरोध नहीं होता।  

🔷यहां तक कि आर्य समाज मंदिरों में होने वाले विवाह को भी सुप्रीम कोर्ट ने अवैध घोषित कर दिया लेकिन काजियों के अधिकार को चुनौती नहीं दी गई। क्यों?

🔷निकाह और अनुबंध (Contract) : मुस्लिम समुदाय का कहना है कि निकाह एक अनुबंध (Contract) है। लेकिन,अनुबंध की शर्तें और पात्रता Indian Contract Act, 1872 में स्पष्ट रूप से परिभाषित है। इसके अनुसार, अनुबंध करने वाले की आयु कम से कम 18 वर्ष होनी चाहिए और व्यक्ति मानसिक रूप से स्वस्थ होना चाहिए। अगर कोई व्यक्ति 21 वर्ष से कम है और उसे कोर्ट द्वारा गार्जियन नियुक्त किया गया तो उसे नाबालिग माना जाएगा और वह अनुबंध नहीं कर सकता।साथ ही, रजिस्ट्रेशन के समय लड़के और लड़की को यह साबित करना होगा कि वे असम के नागरिक है, जिससे अवैध प्रवासियों (बांग्लादेशी) का पर्दाफाश हो सकता है।


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Sunday, September 22, 2024

शरद ऋतु: रोगों की माता

23 September 2024

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 🚩शरद ऋतु: रोगों की माता


🚩शरद ऋतु, वर्षा ऋतु के बाद आने वाली ऋतु है, जो स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से विशेष रूप से संवेदनशील मानी जाती है। इस समय वातावरण में गर्मी और उमस बनी रहती है और मौसम में अचानक बदलाव होते है,जिससे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो जाती है। इस कारण शरद ऋतु को अक्सर "रोगों की माता" कहा जाता है। इस समय खासतौर पर पित्तज और वातज रोगों का खतरा अधिक होता है, जैसे बुखार, जुकाम, खांसी, पेट के रोग, त्वचा संबंधी समस्याएं, आदि।


🚩हालांकि, उचित आहार और विहार (जीवनशैली) अपनाकर हम इस समय होने वाले रोगों से आसानी से बच सकते है। आइए जानते है, शरद ऋतु में रोगों से सुरक्षा के लिए कौन से आहार और विहार अपनाने चाहिए।


🚩 शरद ऋतु में उचित आहार :


1. 🚩हल्का और पचने वाला भोजन : इस समय पाचन शक्ति कमजोर रहती है, इसलिए हल्का और सुपाच्य भोजन लेना चाहिए। मूंग की दाल, खिचड़ी और दलिया जैसे सादे और हल्के आहार सर्वोत्तम माने जाते है।


2. 🚩पित्तशामक आहार : शरद ऋतु में पित्त दोष बढ़ता है, इसलिए पित्त को शांत करने वाले आहार लेना चाहिए। इस दौरान ठंडी तासीर वाले भोजन जैसे नारियल पानी, खीरा, तरबूज और अनार का सेवन फायदेमंद होता है।


3. 🚩ताजे फल और सब्जियां : ताजे मौसमी फल जैसे सेब, अमरूद, और पपीता खाना चाहिए। सब्जियों में लौकी, तोरई, और टिंडा का सेवन करना स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है।


4. 🚩जल का सेवन : इस समय शरीर में पानी की कमी न हो इसका विशेष ध्यान रखें। दिनभर में पर्याप्त मात्रा में साफ और उबला हुआ पानी पिएं।


5. 🚩सात्विक भोजन : तामसिक भोजन (ज्यादा तला-भुना, मांसाहार) और मसालेदार खाने से परहेज करें। सात्विक और सादा भोजन जैसे दही, छाछ, और घी का सेवन पित्त को नियंत्रित करने में मदद करता है।


🚩 शरद ऋतु में उचित विहार (जीवनशैली)


1. 🚩नियमित दिनचर्या : इस मौसम में नियमित दिनचर्या अपनाना बहुत जरूरी है। समय पर सोना, जागना, और भोजन करना शरीर के लिए लाभकारी होता है।


2. 🚩योग और व्यायाम : हल्के योगासन और प्राणायाम करना चाहिए, ताकि शरीर की ऊर्जा बनी रहे और रोग प्रतिरोधक क्षमता में सुधार हो। इस समय ताड़ासन, भुजंगासन और अनुलोम-विलोम प्राणायाम फायदेमंद होते है।


3. 🚩ध्यान और शांति : मानसिक स्वास्थ्य का ध्यान रखना भी जरूरी है। ध्यान और शांत वातावरण में समय बिताने से मन और शरीर को आराम मिलता है, जिससे रोगों का खतरा कम हो जाता है।


4. 🚩शीतल जल से स्नान : शरद ऋतु में शीतल जल से स्नान करना पित्त दोष को शांत करता है और शरीर को ठंडक प्रदान करता है। स्नान के बाद तिल के तेल की मालिश भी लाभकारी होती है।


5. 🚩कपड़ों का चयन : हल्के और आरामदायक कपड़े पहनें ताकि शरीर को सही तापमान मिल सके। इस समय सिंथेटिक कपड़ों से बचें, सूती कपड़े उत्तम माने जाते है।


###🚩शरद ऋतु में क्या न करें


1. 🚩तेल-मसालेदार भोजन से बचें : इस समय भारी और मसालेदार भोजन से दूर रहें, क्योंकि यह पाचन तंत्र पर असर डालता है और पित्त को बढ़ाता है।


2. रात में ठंडे पदार्थ न लें: रात के समय ठंडे पदार्थों का सेवन जैसे ठंडा पानी,आइसक्रीम आदि से परहेज करें, इससे कफ और गले की समस्याएं हो सकती है।


3. 🚩अत्यधिक शारीरिक परिश्रम न करें : इस ऋतु में अत्यधिक शारीरिक परिश्रम करने से शरीर थकावट महसूस करता है। अधिक श्रम से शरीर की ऊर्जा कम हो जाती है, जो रोगों को निमंत्रण देती है।


4. 🚩अत्यधिक धूप में न जाएं : धूप में ज्यादा देर रहना शरीर में पित्त की वृद्धि करता है। धूप में बाहर निकलने से बचें और सिर को ढककर रखें।


🚩निष्कर्ष


🚩शरद ऋतु में रोगों से बचाव के लिए सही आहार और जीवनशैली का पालन करना आवश्यक है। इस समय शरीर की विशेष देखभाल करने से न केवल हम रोगों से बचे रहते है, बल्कि हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता भी मजबूत होती है। सात्विक आहार, नियमित योग, और शांत मन इस ऋतु को स्वस्थ और सुखद बनाने में सहायक है।


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