Monday, October 7, 2024

नवचंडी पूजा और शतचंडी यज्ञ: अद्भुत शक्ति और शास्त्रोक्त महत्व

 08 Oct 2024

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🚩नवचंडी पूजा और शतचंडी यज्ञ: अद्भुत शक्ति और शास्त्रोक्त महत्व


नवचंडी पूजा और यज्ञ का उल्लेख प्राचीन शास्त्रों और वेदों में विस्तार से मिलता है। यह पूजा विशेष रूप से “मार्कंडेय पुराण” में वर्णित है, जिसमें मां दुर्गा के नौ रूपों की महिमा का बखान किया गया है।यजुर्वेद और अथर्ववेद जैसे ग्रंथों में नवचंडी यज्ञ के विधि-विधान और सकारात्मक प्रभाव का उल्लेख है।

🚩नवचंडी यज्ञ का शास्त्रोक्त महत्त्व : शास्त्रों में नवचंडी यज्ञ को अत्यंत फलदायी और सभी संकटों का निवारक माना गया है। नवचंडी यज्ञ के माध्यम से की जाने वाली आहुतियाँ देवताओं को प्रसन्न करती है और मनुष्य की परेशानियाँ दूर करती है। “कुर्म पुराण” और “स्कंद पुराण” में इसका महत्व यह बताया गया है कि नवचंडी यज्ञ संकटों, ग्रहों की विपरीत दशाओं और असाध्य रोगों से मुक्ति दिलाता है।

🚩शास्त्रों में उल्लिखित महायज्ञ : शतचंडी यज्ञ का विस्तृत वर्णन “मार्कंडेय पुराण” में मिलता है। इस महायज्ञ को विशेष रूप से युद्ध,संकट,रोग और शत्रुओं से सुरक्षा के लिए किया जाता है।“वामन पुराण” और “ब्रह्मवैवर्त पुराण” में भी शतचंडी यज्ञ का उल्लेख मिलता है, जिसमें इसे अत्यंत फलदायी और अद्वितीय ऊर्जा का स्रोत बताया गया है।“मार्कंडेय पुराण” के अनुसार, चंडी पाठ मां भगवती की विशेष कृपा प्राप्त करने का साधन है।

🚩शास्त्रों के अनुसार, नवचंडी और शतचंडी यज्ञ करने से व्यक्ति को जीवन में हर क्षेत्र में सफलता मिलती है। यह यज्ञ आध्यात्मिक और भौतिक उन्नति का साधन है। शास्त्रों में इसे ग्रह शांति, रोग निवारण,शत्रु नाश और धन-समृद्धि की प्राप्ति का प्रमुख यज्ञ बताया गया है। “ब्रह्मांड पुराण” में कहा गया है कि यह यज्ञ करने से व्यक्ति अपने सभी कष्टों से मुक्ति प्राप्त कर लेता है और देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त करता है।

🚩शास्त्रों में नवचंडी और शतचंडी यज्ञ के प्रभाव का वर्णन करते हुए कहा गया है कि यह यज्ञ वातावरण को शुद्ध करता है,समाज में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है और समग्र रूप से कल्याणकारी होता है।“शिव पुराण” और “देवी भागवत” में इसका उल्लेख मिलता है।आइए, इस दिव्य अनुष्ठान का अनुभव करें और जीवन को नई दिशा में ले जाएं।


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Saturday, October 5, 2024

जिनकी पूजा दरगाहों में होती है, उन्होंने कौन से महान काम किये थे?

 6 अक्टूबर 2024

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▪️जिनकी पूजा दरगाहों में होती है, उन्होंने कौन से महान काम किये थे?


▪️भारत के विभिन्न स्थानों पर सड़कों के किनारे आपको कई छोटी-बड़ी दरगाहें दिख जाएंगी। कुछ दरगाहें तो इतनी मशहूर है कि वहां लाखों लोग मन्नतें मांगने जाते है। लेकिन जब आप किसी से पूछेंगे कि “यह दरगाह किस महापुरुष की मजार है और उन्होंने कौन से महान कार्य किए थे?”, तो अधिकतर लोग इसका उत्तर नहीं दे पाते।


▪️दरगाह पूजा को लेकर कई भ्रम है। कुछ हिंदू ,इसे मुस्लिम पूजा पद्धति मानते है और सद्भावना के रूप में वहां माथा टेकते है। लेकिन, यदि आप इस्लाम के जानकार से पूछें तो वह यही कहेगा कि दरगाह पूजा इस्लाम के खिलाफ है। तो फिर यह पूजा किस धर्म का हिस्सा है और लोग क्यों इसे करते है?


▪️मशहूर दरगाहें और उनका इतिहास:

1. बहराइच के गाजी बाबा :

गाजी बाबा का असली नाम सालार मसूद था। वह महमूद गजनवी का भतीजा था,जिसने भारत पर हमला किया और कई स्थानों को विध्वंस किया। सालार मसूद ने दिल्ली, मेरठ, कन्नौज, आदि पर कब्जा कर लिया और अयोध्या की ओर बढ़ रहा था। लेकिन बहराइच के राजा सुहेल देव ने उसे कड़ी टक्कर दी और उसकी सेना का विनाश कर दिया। बाद में तुगलक ने उसकी मजार बनाकर उसे ‘गाजी बाबा’ का नाम दिया।

2. अजमेर के ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती :

ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती मोहम्मद गौरी का साथी था।उसने जयचंद को पृथ्वीराज चौहान के खिलाफ भड़काने का काम किया और पृथ्वीराज की हार में मुख्य भूमिका निभाई। अजमेर में उसने मंदिरों का विध्वंस कर वहां मस्जिद बनाई, जिसे आज ‘अढ़ाई दिन का झोपड़ा’ कहा जाता है।

3. हाजी अली दरगाह (मुंबई):

हाजी अली का असली नाम शाह अली बुखारी था। वह तैमूर लंग का साथी था और तैमूर के खजाने से चोरी कर सिंध में भाग आया। बाद में अरब भागने के प्रयास में उसकी मृत्यु हो गई और उसकी लाश एक संदूक में बंद समुद्र में फेंक दी गई। यह संदूक मुंबई के पास एक टापू पर पहुंचा, जहां मछुआरों ने उसकी लाश को दफन किया, और उसे ‘हाजी अली’ कहा जाने लगा।


▪️इस प्रकार,जिन दरगाहों पर लोग मन्नत मांगने जाते है,उन महापुरुषों का इतिहास कहीं न कहीं आक्रमण और विध्वंस से जुड़ा हुआ है।


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Friday, October 4, 2024

समय के साथ खुद को अपग्रेड करते रहिए।

5 October 2024

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समय के साथ खुद को अपग्रेड करते रहिए


🔸AI के शुरुआती दौर में एलन मस्क AI के सबसे प्रबल विरोधियों में से एक थे। हालांकि, यह कुछ हद तक “अंगूर खट्टे है” वाली स्थिति थी। दरअसल, ChatGPT के आरंभिक निवेशकों में एलन मस्क ही शामिल थे, लेकिन बाद में उन्होंने इस प्रोजेक्ट से हाथ खींच लिया। इसके बाद, Microsoft ने ChatGPT पर नियंत्रण कर लिया और बाकी का इतिहास हम सब जानते है।


🔸लेकिन पर्दे के पीछे, एलन मस्क को इस बात का एहसास था कि भविष्य AI का है। इसीलिए उनकी कंपनी X इस दिशा में काम करती रही। हाल ही में, मस्क ने ट्विटर (अब X) के साथ इंटीग्रेटेड एक नया chatbot ‘ग्रोक’ रिलीज़ किया है। इस chatbot की खास बात यह है कि इसमें कोई कठोर सीमाएं नहीं लगाई गई है,जिससे यह आकर्षक और अत्याधुनिक इमेजेस बनाने में सक्षम है।


🔸दूसरी ओर Google ने अपने सर्च इंजन में AI को इंटीग्रेट कर दिया है। इसके साथ ही, उनके नए Pixel फ़ोन मॉडल में दुनियां का पहला AI-बेस्ड chatbot ‘Gemini Live’ पेश किया गया है, जिससे लोग बातचीत कर सकते है।


🔸Meta ने भी AI की इस दौड़ में कदम रखा है। उन्होंने अपने Llama बेस्ड AI chatbot को WhatsApp, Facebook और Instagram जैसे सभी प्लेटफार्मों पर इंटीग्रेट कर दिया है।


🔸इस बीच, देशी मीडिया सनसनीखेज खबरों में उलझा हुआ है, जैसे “सुनीता विलियम्स अंतरिक्ष में फंस गईं” जैसी अफवाहें। असली मुकाबला तो यह है कि अंतरिक्ष में भेजे गए यान को कौन वापस लाएगा - Boeing का यान या SpaceX का। पहली बार ऐसा हो रहा है कि स्पेस मिशन में सरकारी एजेंसियों की बजाय निजी कंपनियों की होड़ हो रही है। पहले स्पेस सेक्टर पर सरकारों का ही अधिकार होता था।


🔸Meta ने Ray-Ban के साथ मिलकर एक नए तरह के स्मार्ट चश्मे लॉन्च किए है,जो पहनने वाले की नजरों से ही वीडियो या फोटो रिकॉर्ड कर सकते है,जैसे वे दुनियां को देख रहे है। खबर यह भी है कि Apple भी जल्द ही अपने स्मार्ट ग्लासेस पेश करने वाला है। स्मार्टफ़ोन और स्मार्टवॉच के बाद अब तीसरी बड़ी प्रतिस्पर्धा स्मार्ट चश्मों के लिए होने वाली है।


🔸तकनीकी क्षेत्र में हर दिन नए-नए क्रांतिकारी परिवर्तन हो रहे है।पिछले कुछ दशकों को मानवता का “स्वर्णकाल” कहा जा सकता है। इतिहास में इससे पहले कभी भी इतनी शांति और उन्नति नहीं देखी गई। आज दुनियां के तमाम संसाधन नए-नए अविष्कारों में लगे है। पिछले दस सालों में तकनीकी क्षेत्र में जितनी तेजी से विकास हुआ है, उतना पिछले सौ वर्षों में भी नहीं हुआ।


🔸इसलिए, समय के साथ खुद को अपग्रेड करते रहिए। दुनियां एक ऐसी दिशा में जा रही है, जहां टेक्नोलॉजी से युक्त 10 प्रतिशत लोग मालिक होंगे और दिन भर राजनीति और प्रपंच में व्यस्त रहने वाले 90 प्रतिशत लोग उनके अधीन रहेंगे।


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Thursday, October 3, 2024

वेदों में शून्य का महत्व

 4th October 2024

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🚩वेदों में शून्य का महत्व


मोहित गौड़ नामक आर्य युवक के शोध पत्र के प्रकाशित होने के बाद कई लोग उसकी प्रामाणिकता पर सवाल उठा रहे है। हालांकि, शोध पत्र जिस पत्रिका में प्रकाशित हुआ है, उसकी सत्यता पर पर्याप्त चर्चा हो चुकी है। इसलिए यहां हम केवल यह समझेंगे कि शोध पत्र में दिए गए प्रमाण सही कैसे है और वैदिक साहित्य में 'शून्य' का मूल क्या है।


🚩वेदों में शून्य का उल्लेख:

वेदों में 'शून्य' का उपयोग 'आकाश' या 'अंतरिक्ष' के लिए किया गया है, जिसका अर्थ अदृश्य,असीम और अनन्त है। उदाहरण के लिए:


🚩"आग्ने॑ स्थू॒रं र॒यिं भ॑र पृ॒थुं गोमं॑तम॒श्विनं॑ ।  

अं॒ग्धि खं व॒र्तया॑ प॒णिं ॥३"  

(ऋग्वेद १०।१५६।३)


🚩इस श्लोक में 'खं' का अर्थ आकाश या अंतरिक्ष है। यह स्पष्ट करता है कि वैदिक काल में शून्य को आकाश या अंतरिक्ष के रूप में देखा गया, जो एक असीम तत्व है। यजुर्वेद (४०।१७) में भी 'खं' का उल्लेख मिलता है:


🚩"ॐ खं ब्रह्म।"  

(यजुर्वेद ४०।१७)

यहाँ 'खं' को ब्रह्म के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जो अनन्त और अपरिमेय है। आकाश या शून्य की यह व्याख्या दिखाती है कि शून्य को केवल 'अभाव' नहीं, बल्कि एक असीम सत्ता के रूप में समझा गया है। 


🚩वैदिक साहित्य और गणित में शून्य का महत्व:

वेदों में प्रस्तुत शून्य का यह विचार गणित में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। भारतीय गणित में शून्य का महत्व बहुत पहले से स्थापित हो चुका था, जहां इसे न केवल एक संख्यात्मक मान के रूप में, बल्कि एक दार्शनिक और वैज्ञानिक अवधारणा के रूप में देखा गया था। भास्कराचार्य द्वितीय (११५० ईस्वी) ने शून्य की गणितीय विशेषताओं को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया, जिसमें शून्य के साथ गुणा और विभाजन के नियम भी शामिल है। उन्होंने स्पष्ट किया कि किसी भी संख्या को शून्य से विभाजित करने पर अनन्त आता है:


🚩"वधादौ वियत् खस्य खं खेन घाते।  

खहारो भवेत् खेन भक्तश्च राशिः।  

अयमनन्तो राशिः खहर इत्युच्यते।"  

(बीजगणित श्लोक ३)


🚩यह श्लोक सिद्ध करता है कि किसी संख्या को शून्य से विभाजित करने पर अनन्त संख्या प्राप्त होती है, जिसे 'खहर' कहते है। शून्य का यह गणितीय सिद्धांत न केवल भारतीय गणित में बल्कि पूरी दुनियां में महत्वपूर्ण समझा गया है।


🚩शून्य और सृष्टि का संबंध:

बीजगणित श्लोक ४ में प्रलय और सृष्टि के समय अनन्त (अच्युत) में सभी प्राणियों के लीन और निर्गत होने के बारे में बताया गया है। यह श्लोक शून्य और अनन्त का दार्शनिक संबंध स्पष्ट करता है:

"अस्मिन् विकार। खहरे न राशी-  

अपि प्रविद्वेष्वपि निःसुतेषु।  

बहुष्वपि स्याद् लय-सृष्टि-कालेऽ  

नन्तेऽच्युते भूतगणेषु यत्वत्।"  

(बीजगणित श्लोक ४)


🚩यह श्लोक यह स्पष्ट करता है कि सृष्टि और प्रलय के समय सभी जीव अनन्त (विष्णु) में लीन हो जाते है और उसमें कोई विकार या परिवर्तन नहीं होता। ठीक इसी प्रकार शून्य में से कुछ घटाने या जोड़ने पर भी उसमें कोई परिवर्तन नहीं होता, क्योंकि यह असीम और अनन्त है।


🚩शून्य और पूर्णता का सिद्धांत : शून्य की यह अवधारणा केवल गणित तक सीमित नहीं है। यह वैदिक और दार्शनिक स्तर पर भी महत्वपूर्ण है। उपनिषदों के शान्तिपाठ में भी शून्य और पूर्णता का सिद्धांत प्रस्तुत किया गया है :


🚩"पूर्णमदः पूर्णमिदं, पूर्णात् पूर्णमुदच्यते।  

पूर्णस्य पूर्णमादाय, पूर्णमेवावशिष्यते॥"  

(शान्तिपाठ, उपनिषद)


🚩इस श्लोक का अर्थ है कि पूर्ण (असीम) से पूर्ण निकालने पर भी पूर्ण ही शेष रहता है। यह सिद्धांत गणितीय शून्य पर भी लागू होता है, जहां शून्य से कुछ भी घटाने पर वह पूर्ण ही रहता है। यह शून्य की अनन्तता को दर्शाता है।


🚩शून्य का वास्तविक अर्थ : शून्य को केवल 'अभाव' या 'नहीं' के रूप में समझना एक बड़ी भूल है। पाणिनि के व्याकरण में 'अदर्शनं लोपः' (अष्टाध्यायी १.१.६०) सूत्र के अनुसार, लोप का अर्थ 'अदृश्य होना' है, न कि 'अभाव'। इसी प्रकार, शून्य का अर्थ किसी संख्या का अदृश्य रूप से विद्यमान होना है, जिसे हम साधारण अंकों से व्यक्त नहीं कर सकते। यह एक असीम संख्या का प्रतीक है, जिसे गणित में हम शून्य के रूप में स्वीकार करते है।


🚩शून्य का वैश्विक महत्व : भारतीय गणितज्ञों जैसे आर्यभट, ब्रह्मगुप्त और भास्कराचार्य ने शून्य को वेदों से निःसृत किया है और इसे गणितीय परंपरा में महत्वपूर्ण स्थान दिया। विश्व भर के गणितीय विकास में भारतीय शून्य का योगदान अपरिहार्य है। शून्य ने आधुनिक गणित और विज्ञान को एक नई दिशा दी है और इसके बिना संख्याओं का गणना तंत्र अधूरा होता।


🚩निष्कर्ष :

Wednesday, October 2, 2024

नवरात्रि और आयुर्वेद: देवी पूजन के साथ वनौषधियों का अद्भुत संगम

 3rd October 2024

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🚩नवरात्रि और आयुर्वेद: देवी पूजन के साथ वनौषधियों का अद्भुत संगम


नवरात्रि के देवी रूप और उनसे जुड़े आयुर्वेदिक औषधियों का यह विवरण अद्वितीय और महत्वपूर्ण है। इसमें दर्शाया गया है कि कैसे हमारे प्राचीन ग्रंथों और परंपराओं में देवी पूजन और प्रकृति के अनमोल उपहार—वनौषधियों—के बीच गहरा संबंध है। इस प्रकार की जानकारी न केवल हमें धार्मिक महत्ता का बोध कराती है, बल्कि हमारे स्वास्थ्य और समृद्धि के लिए प्राकृतिक तत्वों के उपयोग को भी उजागर करती है।


🚩नवरात्रि के इन नौ दिनों में न केवल देवी दुर्गा के नौ रूपों की आराधना होती है बल्कि इनसे जुड़ी औषधियां हमारे शरीर और मन की शांति और स्वास्थ के लिए भी अत्यंत लाभकारी है।


🚩नवरात्रि के इन नौ देवी रूपों के साथ जुड़ी हुई वनौषधियां आयुर्वेदिक दृष्टिकोण से भी अद्वितीय है। प्रत्येक देवी एक विशेष वनस्पति या औषधीय पौधे का प्रतीक है, जो हमारे स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभकारी है। आइए जानते है कैसे :

🚩1. शैलपुत्री (हिरडा/हरड़ा): यह आयुर्वेद की सबसे महत्वपूर्ण औषधियों में से एक है जो पाचन सुधारने, शरीर की सफाई करने और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में सहायक है। हरड़ा त्रिफला का एक महत्वपूर्ण घटक है और इसका उपयोग विभिन्न रोगों के इलाज में किया जाता है।


🚩 2. ब्रह्मचारिणी (ब्राह्मी): ब्राह्मी स्मरणशक्ति और मानसिक शांति के लिए जानी जाती है। इसे सरस्वती की औषधि कहा जाता है क्योंकि यह दिमाग को तेज करती है और मानसिक स्वास्थ्य को मजबूत बनाती है। ब्राह्मी का उपयोग अवसाद, तनाव और चिंता से निपटने में होता है।


🚩3. चंद्रघंटा (चंद्रशूर/हलीम): यह पौधा विटामिन्स और मिनरल्स से भरपूर है जो शरीर को पोषण प्रदान करता है। इसे एनीमिया , हृदय रोग और प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करने के लिए उपयोग किया जाता है। यह विशेष रूप से महिलाओं के स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद है।


🚩4. कूष्मांडा (कोहला): कोहला, जिसे हम पेठा के नाम से भी जानते है , पाचन तंत्र को मजबूत करता है और शरीर की ऊर्जा को संतुलित रखता है। यह वात, पित्त और कफ को संतुलित करने में सहायक है और वीर्यवृद्धि तथा रक्तशुद्धि में मदद करता है।


🚩5. स्कंदमाता (अलसी/जवस): अलसी के बीज ओमेगा-3 फैटी एसिड से भरपूर होते है,जो दिल के स्वास्थ्य के लिए बेहद फायदेमंद है। यह हार्मोनल संतुलन बनाए रखने और महिलाओं के कई विकारों को ठीक करने में सहायक है।


🚩6. कात्यायनी (अंबाडी): अंबाडी की पत्तियां विटामिन्स और मिनरल्स से भरपूर होती है, जो शरीर में वसा को कम करने और हड्डियों को मजबूत करने में सहायक है। यह सब्जी शरीर के कफ और पित्त दोषों को संतुलित करती है।


🚩7. कालरात्री (नागदवणी): यह वनस्पति अत्यधिक ठंडक प्रदान करती है और रक्तस्राव, बवासीर और आंतों से जुड़े विकारों में लाभकारी है। यह शरीर की सूजन को कम करती है और मूत्र मार्ग की समस्याओं का समाधान करती है।


🚩8. महागौरी (तुलसी): तुलसी को आयुर्वेद में "जड़ी-बूटियों की रानी" कहा जाता है। यह एंटीबैक्टीरियल और एंटीवायरल गुणों से भरपूर है और प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करती है। यह सर्दी-खांसी, बुखार और त्वचा के रोगों में अत्यंत उपयोगी है।


🚩9. सिद्धिदात्री (शतावरी): शतावरी विशेष रूप से महिलाओं के लिए बहुत फायदेमंद है। यह हार्मोनल संतुलन बनाए रखने, प्रजनन स्वास्थ्य को बढ़ावा देने और शरीर की प्रतिरक्षा क्षमता को मजबूत करने में सहायक है। शतावरी के सेवन से शरीर का संपूर्ण स्वास्थ्य बेहतर होता है।


🚩इस प्रकार, नवरात्रि के प्रत्येक दिन पूजित की जाने वाली देवी न केवल आध्यात्मिक ऊर्जा का प्रतीक है, बल्कि उनके साथ जुड़ी वनौषधियां हमारे स्वास्थ्य के लिए भी वरदान स्वरूप है। जब हम इन देवी रूपों का पूजन करते है, तो यह हमें प्रकृति और उसके स्वास्थ्यवर्धक गुणों के प्रति जागरूक बनाता है। नवरात्रि हमें इन दिव्य औषधियों का महत्व समझाकर हमें निरोगी जीवन जीने की प्रेरणा देती है।


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Tuesday, October 1, 2024

शारदीय नवरात्रि 2024 - मां दुर्गा की उपासना का महापर्व

 2nd October 2024

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🚩शारदीय नवरात्रि 2024 - मां दुर्गा की उपासना का महापर्व :

शारदीय नवरात्रि इस वर्ष 3 अक्टूबर 2024, गुरुवार से प्रारंभ होकर 12 अक्टूबर 2024 को समाप्त होगी।


🚩महालय अमावस्या के बाद, शारदीय नवरात्रि का पर्व पूरे भारत में उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। यह हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जिसमें माता दुर्गा के नौ रूपों की उपासना की जाती है। इस नवरात्रि का विशेष महत्व होता है क्योंकि यह देवी दुर्गा की शक्ति और विजय का प्रतीक है। इस वर्ष नवरात्रि 10 दिनों तक चलेगी और माता रानी पालकी पर सवार होकर आएंगी।


🚩नवरात्रि का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व :

नवरात्रि का त्योहार पूरे भारत में व्यापक रूप से मनाया जाता है। यह पर्व अधर्म पर धर्म की विजय का प्रतीक है। हिंदू धर्म में नवरात्रि का महत्व केवल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक दृष्टि से भी है। इस अवसर पर माता दुर्गा के विभिन्न रूपों की उपासना कर भक्त उन्हें प्रसन्न करते है। नौ दिनों तक व्रत, पूजा-पाठ और देवी के लिए आरती का आयोजन होता है, जिससे भक्त अपने जीवन में शांति, सुख और समृद्धि की कामना करते है।


🚩माता रानी का आगमन और वाहन :

ज्योतिषीय मान्यताओं के अनुसार,नवरात्रि का प्रारंभ जिस दिन से होता है उस दिन के अनुसार माता का वाहन भी बदलता है। इस वर्ष नवरात्रि गुरुवार से प्रारंभ हो रही है और इस दिन माता रानी पालकी में सवार होकर आती है। हालांकि, पालकी में माता का आगमन शुभ नहीं माना जाता है।मान्यता है कि पालकी पर माता के आने से अर्थव्यवस्था में गिरावट, व्यापार में मंदी और महामारी जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।


🚩नवरात्रि की पूजा विधि और कलश स्थापना :

नवरात्रि के पहले दिन भक्तजन व्रत का संकल्प लेते है। पूजा की शुरुआत कलश स्थापना से होती है जिसे बहुत शुभ माना जाता है। कलश स्थापना के साथ ही घर में देवी के स्वागत के लिए अखंड ज्योति प्रज्वलित की जाती है। पूजा विधि में मिट्टी की वेदी में जौ बोया जाता है, जो समृद्धि और उन्नति का प्रतीक है। कलश में सात प्रकार के अनाज,सिक्के और मिट्टी रखे जाते हैं, और इसे फूलों और आम के पत्तों से सजाया जाता है। नारियल को कलश पर स्थापित कर देवी दुर्गा की आराधना की जाती है।


🚩कलश स्थापना के बाद दुर्गा सप्तशती का पाठ किया जाता है और नौ दिनों तक मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है। भक्तजन व्रत रखते है और देवी को भोग लगाते है। नवरात्रि के अंतिम दिन,जिसे विजयादशमी कहा जाता है,देवी दुर्गा की प्रतिमा का विसर्जन किया जाता है,जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है।


🚩माँ दुर्गा के नौ रूपों की पूजा ": 

शारदीय नवरात्रि के दौरान माँ दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है, जिन्हें  नवदुर्गा कहा जाता है। हर दिन एक विशेष देवी की उपासना की जाती है :

   1.🚩 मां शैलपुत्री - शक्ति और दृढ़ संकल्प का प्रतीक।

2. 🚩मां ब्रह्मचारिणी  - तपस्या और संयम का प्रतीक।

3. 🚩मां चंद्रघंटा - सौम्यता और साहस का प्रतीक।

4. 🚩मां कूष्माण्डा - सृष्टि की उत्पत्ति का प्रतीक।

5. 🚩मां स्कंदमाता - प्रेम और ममता का प्रतीक।

6. मां कात्यायनी  - ज्ञान और रक्षा का प्रतीक।

   7.मां कालरात्रि - नकारात्मक शक्तियों का विनाश।

8. 🚩मां महागौरी - शुद्धता और आशीर्वाद का प्रतीक।

9. 🚩मां सिद्धिदात्री - सिद्धियों और आशीर्वाद का प्रतीक।


🚩नवरात्रि का उपवास और साधना -

 नवरात्रि के दौरान भक्तगण उपवास रखते है और मां दुर्गा की आराधना करते है। यह उपवास शरीर और आत्मा को शुद्ध करने का एक माध्यम माना जाता है। भक्त अपने सामर्थ्य के अनुसार 2, 3 या पूरे 9 दिन का व्रत रखते है। इस दौरान सात्विक भोजन ग्रहण किया जाता है और मांस,शराब और अन्य तामसिक वस्तुओं का त्याग किया जाता है।


🚩नवरात्रि का सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व

नवरात्रि न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है बल्कि यह सांस्कृतिक धरोहर का भी प्रतीक है। इस अवसर पर विभिन्न राज्यों में रामलीला,गरबा, डांडिया और देवी जागरण जैसे सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होता है। ये उत्सव हमें हमारी संस्कृति और परंपराओं से जोड़ते है और समाज में एकता और भाईचारे की भावना को बढ़ावा देते है ।


🚩शारदीय नवरात्रि का समापन - विजयादशमी :

 नवरात्रि का समापन, विजयादशमी के दिन होता है, जिसे दशहरा के नाम से भी जाना जाता है। यह दिन भगवान राम की रावण पर विजय का प्रतीक है और बुराई पर अच्छाई की जीत का संदेश देता है। इस दिन मां दुर्गा की प्रतिमाओं का विसर्जन किया जाता है और लोग अपने जीवन से बुराइयों को दूर करने का संकल्प लेते है।


🚩नवरात्रि का संदेश :

नवरात्रि हमें शक्ति,साहस और आत्म-शुद्धि का संदेश देती है। यह पर्व हमें सिखाता है कि कैसे हम अपने भीतर की बुराइयों से लड़कर जीवन में अच्छाई और सच्चाई की जीत हासिल कर सकते है। मां दुर्गा की कृपा से भक्तजन अपने जीवन में सुख, समृद्धि और शांति का अनुभव करते है।


🚩इस प्रकार, शारदीय नवरात्रि न केवल एक धार्मिक पर्व है बल्कि यह जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और उत्साह का संचार करता है।


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Monday, September 30, 2024

सर्वपितृ अमावस्या श्राद्ध - पितरों को प्रसन्न करने का आखिरी अवसर और श्रीमद्भगवद्गीता का सातवां अध्याय

 1st October 2024

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🚩सर्वपितृ अमावस्या श्राद्ध - पितरों को प्रसन्न करने का आखिरी अवसर और श्रीमद्भगवद्गीता का सातवां अध्याय 


🚩हिंदू धर्म में पितरों का सम्मान और उनका तर्पण एक अत्यंत महत्वपूर्ण धार्मिक कर्तव्य माना जाता है। सर्वपितृ दर्श अमावस्या, जिसे महालय भी कहा जाता है, पितरों को प्रसन्न करने का अंतिम दिन होता है। यह अमावस्या पितृ पक्ष का समापन करती है और उन लोगों के लिए विशेष महत्व रखती है जिन्होंने अपने पितरों का श्राद्ध उनकी पुण्यतिथि पर नहीं कर पाया हो। इस वर्ष सर्वपितृ अमावस्या 2 अक्टूबर 2024 को मनाई जाएगी और यह पितरों की आत्मा की तृप्ति और सद्गति के लिए अत्यंत शुभ दिन माना जाता है।


🚩सर्वपितृ अमावस्या का महत्व : पितृ पक्ष में 16 दिनों तक लोग अपने पितरों का तर्पण और श्राद्ध करते है और सर्वपितृ अमावस्या इस अवधि का समापन करती है। यह तिथि उन सभी पितरों के लिए होती है जिनका श्राद्ध किसी कारणवश न हो पाया हो, चाहे उनकी पुण्यतिथि ज्ञात न हो। इस दिन श्राद्ध, तर्पण और पिंड दान करने से पितरों की आत्माएं संतुष्ट होती है और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति पूरे पितृ पक्ष में श्राद्ध करने में असमर्थ हो, तो सर्वपितृ अमावस्या के दिन श्राद्ध कर सकता है और अपने पितरों को तृप्त कर सकता है।


🚩श्रीमद्भगवद्गीता का सातवां अध्याय और पितरों की सद्गति  

सर्वपितृ अमावस्या के अवसर पर पितरों की सद्गति और मोक्ष के लिए श्रीमद्भगवद्गीता का सातवां अध्याय, जिसे "ज्ञान-विज्ञान योग" कहा जाता है, विशेष रूप से प्रासंगिक है। भगवान श्रीकृष्ण इस अध्याय में अर्जुन को ज्ञान और भक्ति का मार्ग दिखाते है। वे कहते है कि जो लोग श्रद्धा और भक्ति से पितरों का तर्पण और श्राद्ध करते है उनके पितर सद्गति की ओर बढ़ते है और मोक्ष प्राप्त करते है। 


🚩भगवान श्रीकृष्ण का यह उपदेश बताता है कि पितरों की संतुष्टि के लिए मनुष्य का कर्तव्य क्या होना चाहिए और किस प्रकार उनके प्रति श्रद्धा और तर्पण करके उन्हें मोक्ष प्राप्ति का मार्ग दिखाया जा सकता है। श्रद्धा और भक्ति के साथ किया गया तर्पण पितरों की आत्माओं को संतुष्टि प्रदान करता है और वे अपने परिजनों को आशीर्वाद देते है। 


🚩श्राद्ध और तर्पण का महत्व :  

श्राद्ध और तर्पण विधियां जो विशेष रूप से सर्वपितृ अमावस्या पर की जाती है, पितरों के मोक्ष और सद्गति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है। इस दिन ब्राह्मणों या जरूरतमंदों को भोजन कराने, पिंड दान करने और जल तर्पण करने से पितरों की आत्माएं तृप्त होती है। यदि किसी व्यक्ति ने अपने पितरों का श्राद्ध पूरे पितृ पक्ष में नहीं किया हो तो सर्वपितृ अमावस्या पर किया गया श्राद्ध सभी पितरों के लिए किया जा सकता है।


🚩पितरों की सद्गति और मोक्ष का मार्ग : श्रीमद्भगवद्गीता के सातवें अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण यह भी बताते है कि भक्ति और श्रद्धा के साथ पितरों का स्मरण और उनके लिए श्राद्ध करना ही उनके मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करता है। जब पितरों को विधिपूर्वक श्राद्ध और तर्पण अर्पित किया जाता है तो उन्हें सद्गति प्राप्त होती है और उनके आशीर्वाद से परिवार में सुख, शांति और समृद्धि आती है।


🚩सर्वपितृ अमावस्या का शुभ मुहूर्त :  इस वर्ष 2 अक्टूबर 2024 को सर्वपितृ अमावस्या का शुभ मुहूर्त पितरों का श्राद्ध और तर्पण करने के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है। यह दिन उन सभी के लिए एक अंतिम अवसर है जो अपने पितरों का ऋण चुकाना चाहते है और उनके आशीर्वाद से अपने जीवन में समृद्धि लाना चाहते है। 


🚩पितरों की प्रसन्नता का साधन - तर्पण, पिंड दान और भक्ति : श्रीमद्भगवद्गीता के अनुसार, तर्पण और श्राद्ध के साथ-साथ पितरों के प्रति सच्ची भक्ति का भाव ही उनकी सद्गति का वास्तविक मार्ग है। सर्वपितृ अमावस्या के दिन विधिपूर्वक इन सभी विधियों का पालन करके हम अपने पितरों को प्रसन्न कर सकते है और उनके आशीर्वाद से जीवन में सफलता प्राप्त कर सकते है।


🚩इस प्रकार, सर्वपितृ अमावस्या का दिन न केवल पूर्वजों का सम्मान करने का अवसर है, बल्कि श्रीमद्भगवद्गीता के सातवें अध्याय में बताए गए मोक्ष के मार्ग पर चलकर पितरों की सद्गति प्राप्त करने का भी शुभ समय है।


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