Wednesday, October 23, 2024

साइनस: एक सामान्य लेकिन गंभीर समस्या और इसके घरेलू उपचार

 24/October/2024

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✴️साइनस: एक सामान्य लेकिन गंभीर समस्या और इसके घरेलू उपचार


✴️ आज की तेज़-तर्रार ज़िंदगी में साइनस की समस्या बहुत आम हो गई है। यह एक ऐसी स्थिति है जो अक्सर जुकाम के बाद होती है और इसे नजरअंदाज करना मुश्किल हो जाता है। साइनस के कारण सिर में भारीपन, नजर कमजोर होना, और बालों का जल्दी सफेद होना जैसी समस्याएं हो सकती है। यह समस्या धीरे-धीरे बढ़ती है और अगर सही समय पर इसका इलाज न किया जाए तो यह जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित कर सकती है। लेकिन अच्छी खबर यह है कि इसका इलाज आपके घर में ही मौजूद है।


✴️ साइनस क्या है?

साइनस का अर्थ है शरीर में मौजूद खोखले स्थान या गुहाएँ। ये गुहाएँ सिर में भौंहों के ऊपर, गालों के पास और नाक के आसपास होती है। जब जुकाम बिगड़ जाता है, तो इन गुहाओं में बलगम या म्यूकस जमा हो जाता है जिससे सूजन और दर्द होता है। यह सूजन ही साइनस का मुख्य कारण है। इस दर्द का सबसे अधिक असर सिर, चेहरे, और नाक पर होता है।


✴️साइनस के कारण

साइनस का मुख्य कारण बैक्टीरिया, वायरस या फंगस के कारण होने वाला संक्रमण है। इसके अलावा, धूल, धुआं, एलर्जी, प्रदूषण, मौसम में बदलाव, दूषित पानी से स्नान, और सर्दी-जुकाम साइनस को बढ़ा सकते है। ऐसे लोग जो मधुमेह या इम्यून सिस्टम से संबंधित समस्याओं से ग्रस्त होते है उन्हें साइनस होने की संभावना अधिक होती है।


✴️साइनस के लक्षण

नाक का बंद होना या बहना

सिर में तेज दर्द

चेहरा भारी लगना

आंखों के पीछे दर्द या दबाव महसूस होना

हल्का बुखार और गले में दर्द

नजर कमजोर होना

बालों का असमय सफेद होना


✴️घरेलू उपचार

1. जल नेती: साइनस के लिए सबसे प्रभावी घरेलू उपायों में से एक जल नेती है। यह योगिक प्रक्रिया साइनस की सफाई में मदद करती है। इसके लिए आप एक लोटे में उबला हुआ और ठंडा किया हुआ पानी लें, उसमें आधा चम्मच नमक मिलाएं। फिर इस लोटे की मदद से अपनी नाक से पानी को धीरे-धीरे अंदर खींचें और दूसरे नाक के छिद्र से बाहर निकालें। इसे सुबह उठकर कम से कम एक बार करें। इससे नाक की गुहाओं में जमा बलगम साफ होता है और साइनस की समस्या धीरे-धीरे खत्म हो सकती है।

2. नस्यम: आयुर्वेद में नस्यम प्रक्रिया साइनस के उपचार के लिए बहुत प्रभावी मानी जाती है। इस प्रक्रिया में चेहरे की आधे घंटे मसाज की जाती है, फिर भाप दी जाती है। भाप देने के बाद जल नेती की जाती है और अंत में नाक में बादाम के तेल की कुछ बूंदे डाली जाती है। यह साइनस के कारण होने वाली सूजन को कम करने में मदद करती है।

3. भाप लेना: साइनस के मरीजों को नियमित रूप से भाप लेना चाहिए। भाप लेने से बलगम ढीला हो जाता है और नाक साफ हो जाती है। भाप लेने से पहले पानी में थोड़ी सी पिपरमिंट या यूकेलिप्टस तेल की कुछ बूंदें मिलाएं। ये तेल एंटीबैक्टीरियल और एंटीफंगल गुणों से भरपूर होते है जिससे साइनस के संक्रमण में आराम मिलता है।

4. आहार संबंधी सावधानियां : साइनस होने पर कुछ आहार संबंधी सावधानियां भी जरूरी है। रात में ठंडी चीजें जैसे कोल्ड ड्रिंक, खट्टा भोजन, चावल, दही, और अचार का सेवन न करें। तले हुए और मैदे से बनी चीज़ों से भी दूर रहें क्योंकि ये साइनस को और बढ़ा सकते है।

5. गर्म पानी से गरारे और सेंक : साइनस के दर्द में आराम पाने के लिए गर्म पानी से गरारे और नाक पर हल्का गर्म सेंक करना भी फायदेमंद हो सकता है। यह साइनस की गुहाओं को खोलने और दर्द से राहत दिलाने में मदद करता है।


✴️साइनस से बचने के अन्य उपाय

विटामिन-सी और ए का सेवन : शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए विटामिन-सी और ए का सेवन करें। यह आपकी इम्युनिटी को मजबूत बनाए रखेगा और संक्रमण से लड़ने में मदद करेगा।

व्यायाम और योग : नियमित व्यायाम और योग शरीर को स्वस्थ रखते है और साइनस जैसी समस्याओं को दूर रखने में मदद करते है।

धूम्रपान और प्रदूषण से बचें : धूम्रपान और प्रदूषित वातावरण में रहने से साइनस की समस्या और बढ़ सकती है इसलिए इससे बचें।

नियमित सफाई : नाक और मुंह की स्वच्छता बनाए रखें। बाहर से आने के बाद अपने हाथ और मुंह को अच्छी तरह से साफ करें।


✴️निष्कर्ष

साइनस आज एक आम समस्या बन चुकी है लेकिन इसके प्रभावी घरेलू उपचार उपलब्ध है। योग और आयुर्वेदिक उपचार जैसे जल नेती, नस्यम और भाप लेना इस समस्या से राहत दिलाने में सहायक है। अगर आप अपने आहार और जीवनशैली पर थोड़ा ध्यान देंगे, तो साइनस की समस्या से आसानी से निजात पा सकते है।


✴️साइनस से परेशान होने की जरूरत नहीं है क्योंकि इसका उपचार आपके घर में ही मौजूद है। बस थोड़ा ध्यान, सही उपचार और कुछ घरेलू नुस्खे आपकी साइनस की समस्या को जड़ से खत्म कर सकते है।


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Tuesday, October 22, 2024

पेनकिलर और एंटीबायोटिक से सावधान रहें: प्राकृतिक उपचार अपनाएं

 23/October/2024


🔹पेनकिलर और एंटीबायोटिक से सावधान रहें: प्राकृतिक उपचार अपनाएं


🔹आज की भागदौड़ भरी ज़िंदगी में दर्द निवारक दवाइयों (पेनकिलर) और एंटीबायोटिक का इस्तेमाल आम हो गया है। हल्का सा सिरदर्द हो या कोई छोटी सी बीमारी, लोग बिना सोचे-समझे दवाओं का सहारा ले लेते है। हालांकि, पेनकिलर और एंटीबायोटिक की आवश्यकता कभी-कभी हो सकती है, लेकिन इनका नियमित उपयोग आपके स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव डाल सकता है।


🔹 पेनकिलर का अत्याधिक उपयोग – किडनी और लिवर पर प्रभाव

▪️अधिकांश पेनकिलर, जैसे पैरासिटामॉल, शरीर पर विषैले प्रभाव डालते है। इनका लगातार और अनावश्यक सेवन आपकी किडनी और लिवर को धीरे-धीरे खराब कर सकता है। किडनी के काम में बाधा उत्पन्न होती है और लिवर को पेनकिलर के विषैले तत्वों को साफ करने में अधिक मेहनत करनी पड़ती है। यह समय के साथ गंभीर बीमारियों का कारण बन सकता है, जिनमें किडनी फेलियर और लिवर सिरोसिस जैसी समस्याएं शामिल है।


🔹अक्सर लोग टी.वी. विज्ञापनों या दोस्तों की सलाह से तुरंत पेनकिलर लेने लगते है, लेकिन हमें इस बात को समझना चाहिए कि शरीर की प्राकृतिक हीलिंग प्रक्रिया को बाधित करना दीर्घकालिक नुकसान पहुंचा सकता है। शरीर को समय दें और बिना जरूरत पेनकिलर का इस्तेमाल करने से बचें।


🔹 एंटीबायोटिक के जोखिम – इम्यून सिस्टम को नुकसान

एंटीबायोटिक दवाइयाँ बैक्टीरिया को खत्म करने के लिए उपयोग की जाती है, लेकिन इनके अधिक उपयोग से शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली (इम्यून सिस्टम) कमजोर हो जाती है। जब हम एंटीबायोटिक का बार-बार उपयोग करते है, तो हमारा शरीर इन दवाओं के प्रति, प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर लेता है जिससे दवाइयाँ भविष्य में असरदार नहीं रहती। इसके साथ ही, एंटीबायोटिक दवाइयाँ शरीर के अच्छे बैक्टीरिया को भी खत्म कर देती है , जो हमें स्वस्थ रखने में मदद करते है।


🌿 इससे बेहतर है कि हम प्राकृतिक उपचारों का सहारा लें। हल्दी जैसे घरेलू उपाय न केवल सुरक्षित है, बल्कि लंबे समय तक उपयोग करने पर भी कोई दुष्प्रभाव नहीं होता। हल्दी में मौजूद ‘करक्यूमिन’ शरीर में संक्रमण और सूजन से लड़ने में मदद करता है।


🌿 हल्दी और जौ – प्राकृतिक उपचार :

हल्दी, जिसे भारतीय रसोई का खजाना कहा जाता है, प्राकृतिक एंटीबायोटिक और एंटी-इंफ्लेमेटरी गुणों से भरपूर है। गरम दूध में हल्दी डालकर पीने से यह शरीर को संक्रमण से लड़ने में मदद करता है और एंटीबायोटिक के प्राकृतिक विकल्प के रूप में काम करता है। इससे इम्यून सिस्टम मजबूत होता है और शरीर की स्वाभाविक रूप से बीमारी से लड़ने की क्षमता बढ़ती है।


🌿 इसी तरह, जौ भी एक प्रभावी घरेलू उपाय है। जौ का दलिया और जौ की रोटी सूजन कम करने और किडनी को स्वस्थ रखने में सहायक होते है। जौ में मौजूद पोषक तत्व शरीर में विषैले पदार्थों को बाहर निकालने में मदद करते हैं और रक्त को शुद्ध करते है। नियमित रूप से जौ का सेवन करने से आपका शरीर स्वस्थ रहता है और बुढ़ापे तक किडनी जैसी समस्याएं दूर रहती है।


🌿 प्राकृतिक उपचार का महत्व

आयुर्वेद में सदियों से प्राकृतिक उपचारों का उपयोग किया जाता रहा है। आधुनिक चिकित्सा प्रणाली में जहां रासायनिक दवाओं का उपयोग बढ़ रहा है, वहीं हमारे पूर्वज प्राकृतिक उपचारों के द्वारा ही स्वास्थ्य को बनाए रखते थे। हल्दी, अदरक, जौ, आंवला जैसे कई घरेलू उपचार न केवल रोगों को ठीक करते है, बल्कि शरीर को मजबूत बनाते है।


🌿 इन प्राकृतिक उपायों को अपनाकर हम न केवल बीमारियों से दूर रह सकते है, बल्कि दीर्घकालिक स्वास्थ्य समस्याओं से भी बच सकते है। पेनकिलर और एंटीबायोटिक के अधिक उपयोग से बचें और प्राकृतिक उपचारों का लाभ उठाएं।


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Monday, October 21, 2024

काशी का रहस्यमयी तारा माता मंदिर: जब एक राजकुमारी को किया गया था जिंदा दफन

 22 October 2024

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🚩काशी का रहस्यमयी तारा माता मंदिर: जब एक राजकुमारी को किया गया था जिंदा दफन


🚩वाराणसी,जिसे बनारस के नाम से भी जाना जाता है,अपनी हर गली और मुहल्ले में छुपे अद्भुत मंदिरों और उनसे जुड़ी कहानियों के लिए प्रसिद्ध है। यहां हर मंदिर के साथ कोई न कोई रोचक कथा जुड़ी होती है। आज हम आपको काशी के एक ऐसे मंदिर की कहानी बताने जा रहे है,जिसकी नींव में एक राजकुमारी को ज़िंदा दफन कर दिया गया था। इस अद्भुत कहानी का मंदिर काशी के पांडेय घाट पर स्थित है,जहां सिद्धपीठ तारा माता का प्राचीन मंदिर बना हुआ है।


🚩पांडेय घाट का तारा माता मंदिर और उसकी रहस्यमयी कथा : काशी के दशाश्वमेध घाट से केदार घाट की ओर बढ़ते हुए पांडेय घाट पर एक लाल रंग की कोठी स्थित है। यह कोठी बाहर से किसी साधारण पुरानी हवेली जैसी ही लगती है,लेकिन भीतर प्रवेश करने पर यह एक भव्य मंदिर के रूप में दिखाई देती है। इस मंदिर में कई देवी-देवताओं की मूर्तियां स्थापित है, परंतु यह मुख्य रूप से काशी की सिद्धपीठ मां तारा का मंदिर है। ऊंचे चबूतरे पर स्थापित मां नील तारा की नीली प्रतिमा और मंदिर की वास्तुकला यह प्रमाणित करती है कि यह मंदिर सैकड़ों साल पुराना है।


🚩परंतु इस मंदिर की सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि इसके नीचे एक राजकुमारी को ज़िंदा समाधि दी गई थी। यह कहानी आज भी लोगों के दिलों में जिंदा है।


🚩कौन थी वह राजकुमारी और क्यों हुई ज़िंदा दफन?

इस मंदिर की नींव में दफनाई गई राजकुमारी थी तारा सुन्दरी, जो बंगाल के नाटोर राज्य की राजकुमारी थी। उनकी मां, रानी भवानी, नाटोर की रानी थी। नाटोर का राज्य अत्यंत संपन्न था, परंतु राजा रमाकांत, जो तारा सुन्दरी के पिता थे, एक अय्याश प्रवृत्ति के थे। राजा के निधन के बाद रानी भवानी ने राज्य की बागडोर संभाल ली।


🚩राजकुमारी तारा सुन्दरी की शादी के कुछ समय बाद ही उनके पति का निधन हो गया और वह अपने मायके लौट आईं। तभी बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला उनकी सुंदरता पर मोहित हो गया और उनसे विवाह का प्रस्ताव रख दिया। रानी भवानी को इस संकट से बचने के लिए कोई रास्ता नहीं सूझा, और वह अपनी बेटी तारा सुन्दरी को लेकर काशी भाग आईं। परंतु नवाब सिराजुद्दौला अपनी सेना के साथ काशी की ओर बढ़ने लगा।


🚩तब राजकुमारी तारा सुन्दरी ने अपनी मां से कहा, “मुझे ज़िंदा दफना दो, पर उस विधर्मी (दूसरे धर्म के व्यक्ति) के हाथों में न पड़ने दो।” मजबूर होकर रानी भवानी ने अपनी बेटी को ज़िंदा दफन कर दिया और उसी स्थान पर तारा माता का मंदिर बनवाया।


🚩तारा माता मंदिर की आध्यात्मिक महिमा : यह मंदिर आज भी श्रद्धालुओं के लिए एक सिद्धपीठ के रूप में प्रसिद्ध है। माना जाता है कि इस मंदिर में मां तारा के दर्शन करने से भक्तों की हर मनोकामना पूरी होती है। तारा माता को काशी की रक्षक देवी के रूप में पूजा जाता है।


🚩इस मंदिर की रहस्यमयी और दुःख भरी कहानी न सिर्फ काशी के इतिहास का हिस्सा है, बल्कि यह माता और बेटी के बलिदान और साहस की भी अद्वितीय गाथा है।


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Sunday, October 20, 2024

थेऊर गणपति : श्री चिंतामणि गणेश का पौराणिक महत्व और धार्मिक महत्ता

 21October 2024

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🚩थेऊर गणपति : श्री चिंतामणि गणेश का पौराणिक महत्व और धार्मिक महत्ता


🚩थेऊर गणपति,जिसे श्री चिंतामणि गणेश के नाम से भी जाना जाता है, पुणे जिले में स्थित एक प्रमुख गणेश मंदिर है। यह अष्टविनायक यात्रा के आठ प्रमुख मंदिरों में से एक है और इसे भगवान गणेश की चिंताओं को हरने वाली शक्तियों के लिए जाना जाता है। यहाँ आने वाले भक्त यह विश्वास करते है कि श्री चिंतामणि गणेश की पूजा करने से उनकी सभी समस्याएं समाप्त हो जाती है और उन्हें मानसिक शांति प्राप्त होती है।


🚩पौराणिक कथा :

इस मंदिर का पौराणिक और ऐतिहासिक महत्व अत्यंत रोचक है। पुराणों के अनुसार, महर्षि कपाल ने चिंतामणि नामक एक दिव्य रत्न की प्राप्ति की थी। यह रत्न उनकी तपस्या का फल था और इससे सभी इच्छाएं पूर्ण की जा सकती थी। एक दिन राजा अभिजित और उनकी पत्नी गुणवती पुत्र प्राप्ति के लिए महर्षि कपाल के पास आए। महर्षि ने चिंतामणि रत्न के माध्यम से उन्हें पुत्र का आशीर्वाद दिया।


🚩कुछ वर्षों बाद उनका पुत्र गण युवावस्था में पहुँचा। एक बार गण शिकार के लिए जंगल में गया और महर्षि कपाल के आश्रम में रुका। वहाँ महर्षि ने चिंतामणि रत्न का उपयोग करके उसे अद्भुत भोजन कराया। भोजन से प्रभावित होकर गण ने महर्षि से वह रत्न मांगा, लेकिन महर्षि ने देने से मना कर दिया। इसके बाद गण ने बलपूर्वक रत्न छीन लिया और अपने राज्य लौट गया।


🚩महर्षि कपाल ने भगवान गणेश से प्रार्थना की और अपनी समस्या बताई। भगवान गणेश ने गण के राज्य में जाकर उसे हराया और चिंतामणि रत्न वापस लेकर महर्षि को लौटा दिया। महर्षि ने भगवान गणेश से आग्रह किया कि वह इस स्थान पर स्थायी रूप से वास करें ताकि भविष्य में किसी को भी ऐसी चिंता न हो। तब से भगवान गणेश यहां श्री चिंतामणि गणेश के रूप में पूजे जाते है।


🚩मंदिर का महत्व :

थेऊर गणपति मंदिर भक्तों की चिंताओं को दूर करने वाला माना जाता है। यहाँ श्री चिंतामणि गणेश की पूजा करने से मानसिक शांति, सुख और समृद्धि प्राप्त होती है। इस मंदिर में आने वाले भक्त यह विश्वास रखते है कि भगवान गणेश उनकी सभी समस्याओं का समाधान करेंगे और उन्हें जीवन में शांति प्रदान करेंगे। श्री चिंतामणि गणेश को “चिंताओं को हरने वाला” कहा जाता है, जो भक्तों के जीवन की बाधाओं को दूर करने में सहायक है।

🙏

🚩मंदिर की विशेषताएँ :

थेऊर गणपति मंदिर शांत वातावरण और सुंदर वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध है।

मंदिर में भगवान गणेश की प्रतिमा बैठी हुई मुद्रा में है, जो भक्तों को उनकी चिंताओं से मुक्त करती है।

गणेश चतुर्थी और अन्य उत्सवों के समय यहां विशेष पूजा और अनुष्ठान होते है,  जिनमें दूर-दूर से भक्त आते है।

🙏

🚩धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व :

यह मंदिर न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि महाराष्ट्र की सांस्कृतिक धरोहर का भी अभिन्न हिस्सा है। यहाँ आने वाले भक्तों का यह विश्वास है कि श्री चिंतामणि गणेश की कृपा से उनकी सभी मनोकामनाएँ पूरी होती हैं और जीवन की सभी बाधाओं से मुक्त होते है।


🚩कथा और महत्व का संदेश :

इस पौराणिक कथा से हमें यह शिक्षा मिलती है कि अहंकार और लोभ किसी भी प्रकार से जीवन में सुख नहीं ला सकते। भगवान गणेश की कृपा से ही वास्तविक शांति और संतोष प्राप्त होते है। श्री चिंतामणि गणेश के मंदिर में पूजा करने से न केवल भक्तों की चिंताएँ समाप्त होती है बल्कि उन्हें सही मार्ग पर चलने की प्रेरणा भी मिलती है।


🚩इस प्रकार, थेऊर गणपति मंदिर,भगवान गणेश के चिंताओं को दूर करने वाले स्वरूप की पूजा का एक महत्वपूर्ण केंद्र है और यह स्थल भक्तों के लिए आस्था, शांति और समृद्धि का प्रतीक है।



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Saturday, October 19, 2024

योद्धा जो रामायण और महाभारत दोनों में थे

 20 October 2024

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🚩योद्धा जो रामायण और महाभारत दोनों में थे


🚩भारतीय पौराणिक ग्रंथों में रामायण और महाभारत का विशेष महत्व है। ये महाकाव्य न केवल हमें जीवन की महत्वपूर्ण शिक्षाएँ देते है बल्कि इनमें अनेक ऐसी कथाएँ भी हैं जो हमे सोचने पर मजबूर कर देती हैं। रामायण त्रेता युग में हुई थी और महाभारत का युद्ध द्वापर युग में, लेकिन क्या आप जानते हैं कि इन दोनों युगों में कुछ ऐसे योद्धा और पात्र थे जो दोनों कालखंडों में उपस्थित थे? आइए जानते हैं उनके बारे में।


🚩1. भगवान परशुराम

भगवान परशुराम, जिन्हें विष्णु के छठे अवतार के रूप में जाना जाता है, का उल्लेख रामायण और महाभारत दोनों में मिलता है। रामायण में परशुराम जी माता सीता के स्वयंवर में राम जी के द्वारा शिव का धनुष तोड़ने पर उपस्थित हुए थे। इस घटना में उन्होंने राम जी के साहस की परीक्षा ली। वहीं, महाभारत में भगवान परशुराम ने कर्ण और पितामह भीष्म जैसे महान योद्धाओं को अस्त्र-शस्त्र की शिक्षा दी थी। यह दर्शाता है कि परशुराम जी का जीवनकाल बहुत लंबा था और वे दोनों युगों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे।


🚩2. हनुमान जी

रामायण के प्रमुख पात्र, हनुमान जी, भगवान राम के परम भक्त माने जाते है। रामायण में वे राम जी की सेना के सेनापति के रूप में प्रमुख भूमिका निभाते है। महाभारत में भी उनका उल्लेख मिलता है, जब वे पांडव भीम से मिलते है। ऐसा कहा जाता है कि माता सीता से हनुमान जी ने अमरता का वरदान प्राप्त किया था, जिसके कारण वे महाभारत के समय भी जीवित थे। भीम और हनुमान जी की भेंट का उल्लेख महाभारत में विशेष रूप से किया गया है, जहाँ हनुमान जी ने भीम को अहंकार त्यागने की सीख दी थी।


🚩3. जामवंत

जामवंत को भी रामायण और महाभारत दोनों में देखा गया है। रामायण में वे भगवान राम के प्रमुख सहयोगी थे और उन्होंने राम जी की सेना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। महाभारत में, जब भगवान कृष्ण ने राम के रूप में पुनर्जन्म लिया, तब जामवंत का युद्ध श्रीकृष्ण से हुआ था। यह युद्ध लगातार 8 दिनों तक चला, जिसके बाद जामवंत ने श्रीकृष्ण को पहचान लिया और अपनी बेटी जामवंती का विवाह उनके साथ कर दिया।


🚩4. महर्षि दुर्वासा

महर्षि दुर्वासा, अपने क्रोध और तपस्या के लिए प्रसिद्ध थे, और सतयुग, त्रेतायुग, और द्वापर युग तीनों में उपस्थित थे। रामायण में, दुर्वासा ऋषि का उल्लेख तब आता है जब लक्ष्मण जी उनकी सेवा में देरी करने के कारण श्रीराम को दिया गया वचन तोड़ते है। वहीं महाभारत में, महर्षि दुर्वासा ने कुंती को संतान प्राप्ति का वरदान दिया था। यह वरदान ही कुंती के पाँच पुत्रों, पांडवों, के जन्म का कारण बना।


🚩निष्कर्ष :

रामायण और महाभारत जैसे महाकाव्यों में हमें कई पात्र मिलते है जो हमें जीवन के मूल्य सिखाते है। परशुराम, हनुमान जी, जामवंत और महर्षि दुर्वासा जैसे योद्धा और ऋषि इस बात का प्रमाण हैं कि सदाचारी और धर्मनिष्ठ जीवन की गूंज युगों-युगों तक बनी रहती है। इन पात्रों के माध्यम से हम यह समझ सकते है कि समय बदल सकता है, परन्तु धर्म और सत्य की रक्षा करने वाले महान लोग हमेशा हर युग में मौजूद रहते है।


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Friday, October 18, 2024

कुश: कई रोगों की रामबाण दवा

 19/October/2024

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🚩कुश: कई रोगों की रामबाण दवा


🚩कुश (Desmostachya bipinnata) एक महत्वपूर्ण औषधीय पौधा है, जिसका उल्लेख प्राचीन आयुर्वेदिक ग्रंथों में मिलता है। इसे विशेष रूप से धार्मिक और औषधीय उपयोग  के लिए जाना जाता है। आचार्य बालकृष्ण जी, जो पतंजलि आयुर्वेद के प्रमुख है, कुश को कई रोगों के उपचार के लिए रामबाण दवा मानते है। आइए, जानते है कुश के स्वास्थ्य लाभ और उपयोग के बारे में।


🚩 कुश का परिचय :

कुश का पौधा 1 से 2 मीटर ऊंचा होता है और इसके लंबे, घने और हरे रंग के पत्ते होते है। इसे विभिन्न नामों से जाना जाता है, जैसे ‘कुशा’ या ‘दुर्वा’। इसका उपयोग न केवल औषधीय गुणों के लिए बल्कि पूजा-पाठ और धार्मिक अनुष्ठानों में भी किया जाता है।


🚩 स्वास्थ्य लाभ : 


🔺पाचन तंत्र के लिए लाभकारी: कुश का सेवन पाचन तंत्र को मजबूत करता है और पेट की समस्याओं जैसे कब्ज और गैस के लिए लाभकारी होता है।

🔺इम्यूनिटी बढ़ाने में सहायक: इसमें एंटीऑक्सीडेंट गुण होते है, जो शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाते है और संक्रामक बीमारियों से बचाते है।

🔺तनाव और चिंता में राहत: कुश का चूर्ण या काढ़ा तनाव और चिंता को कम करने में मदद करता है, जिससे मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है।

🔺डायबिटीज में फायदेमंद: कुश का नियमित सेवन रक्त शर्करा स्तर को नियंत्रित करने में सहायक होता है।

🔺 त्वचा और बालों के लिए: कुश का उपयोग त्वचा की समस्याओं जैसे एक्जिमा और खुजली के उपचार में भी किया जाता है। इसके अलावा, यह बालों की ग्रोथ को बढ़ाने में भी सहायक होता है।


🚩 उपयोग का तरीका :


🔺 कुश का काढ़ा: कुश की जड़ों या पत्तियों का काढ़ा बनाकर दिन में 1-2 बार सेवन करें। 

🔺कुश का चूर्ण: सूखी कुश की जड़ों का पाउडर बनाकर, इसे पानी या दूध के साथ मिलाकर पिएं।

🔺औषधीय तेल: कुश का तेल बना कर इसका 6% मालिश के लिए किया जा सकता है, जो शरीर में ऊर्जा का संचार करता है।

🔺 धार्मिक महत्व

कुश का धार्मिक महत्व भी है। इसे पवित्र माना जाता है और इसे पूजा में इस्तेमाल किया जाता है। धार्मिक अनुष्ठानों में कुश के फर्श पर बैठना या इसे आसन के रूप में उपयोग करना शुद्धता का प्रतीक माना जाता है।

🚩 निष्कर्ष

कुश एक अद्भुत औषधीय पौधा है, जो अनेक रोगों के उपचार में सहायक है। आचार्य बालकृष्ण जी के अनुसार, कुश का सेवन शरीर और मन के लिए फायदेमंद होता है। इस पौधे के गुणों को समझकर और इसे अपने दैनिक जीवन में शामिल करके हम अपने स्वास्थ्य को बेहतर बना सकते है।


🚩ध्यान दें: किसी भी औषधि का उपयोग करने से पहले अपने डॉक्टर या विशेषज्ञ से सलाह अवश्य लें।


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Thursday, October 17, 2024

बिहू उत्सव और महर्षि वाल्मीकि जयंती

 18/अक्टूबर/2024

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🚩बिहू उत्सव और महर्षि वाल्मीकि जयंती 


🚩17 अक्टूबर को असम में मनाया जाने वाला महत्वपूर्ण फसल उत्सव बिहू और महर्षि वाल्मीकि जयंती दोनों ही भारतीय संस्कृति और परंपरा के प्रमुख पर्व है।आइए इन दोनों त्योहारों पर एक नजर डालते है ।

🚩बिहू: असम का फसल उत्सव 

🚩बिहू असम का सबसे प्रमुख और लोकप्रिय त्योहार है, जिसे राज्य के लोग बड़े उत्साह और धूमधाम से मनाते है। 17 अक्टूबर को मनाया जाने वाला यह बिहू विशेष रूप से फसलों के कटाई के समय का उत्सव है। असम में बिहू तीन बार मनाया जाता है—रंगाली बिहू, कांगाली बिहू और भोगाली बिहू।अक्टूबर को मनाया जाने वाला बिहू आमतौर पर कांगाली बिहू कहलाता है, जिसे कटाई का बिहू भी कहा जाता है।

🚩कांगाली बिहू एक ऐसा समय होता है जब खेतों में धान पककर तैयार हो जाता है और किसान अपनी मेहनत का फल देखने के लिए उत्सुक होते है। हालांकि इस बिहू में भोग-व्यंजन की अधिकता नहीं होती लेकिन पूजा-अर्चना और किसानों के प्रति सम्मान का भाव प्रबल रहता है। लोग अपने परिवार और समुदाय के साथ मिलकर इस पर्व को मनाते है और देवी-देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त करते है।

🚩महर्षि वाल्मीकि जयंती :

🚩17 अक्टूबर को महर्षि वाल्मीकि जयंती भी मनाई जाएगी, जो महाकाव्य रामायण के रचयिता महर्षि वाल्मीकि की जन्म तिथि के रूप में मनाई जाती है। महर्षि वाल्मीकि का भारतीय साहित्य और संस्कृति में विशेष स्थान है। उन्हें आदि कवि (प्रथम कवि) कहा जाता है, क्योंकि उन्होंने संस्कृत में रामायण की रचना की, जो विश्व के सबसे प्राचीन और महानतम महाकाव्यों में से एक है।

🚩वाल्मीकि जयंती पर लोग महर्षि वाल्मीकि की शिक्षाओं और उनके जीवन से प्रेरणा लेते है। इस दिन रामायण का पाठ किया जाता है और महर्षि के आदर्शों को आत्मसात करने के लिए भजन-कीर्तन और धार्मिक आयोजनों होते है। यह पर्व विशेष रूप से उन लोगों के लिए प्रेरणादायक है, जो जीवन में अपने आचरण और कर्मों से समाज के कल्याण की दिशा में कार्य करना चाहते हैं।

🚩निष्कर्ष

17 अक्टूबर का दिन भारतीय संस्कृति में विशेष महत्व रखता है। जहां एक ओर असम में बिहू के माध्यम से किसानों की मेहनत और प्रकृति के प्रति सम्मान व्यक्त किया जाता है, वहीं दूसरी ओर महर्षि वाल्मीकि जयंती के अवसर पर उनके महान योगदान को स्मरण कर समाज को उनकी शिक्षाओं से मार्गदर्शन मिलता है।


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