Thursday, December 19, 2024

हिंदुओं के मानवाधिकार पर दुनिया चुप क्यों हो जाती है?

 19 December 2024

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🚩हिंदुओं के मानवाधिकार पर दुनिया चुप क्यों हो जाती है?


🚩मानवाधिकार दिवस हर साल 10 दिसंबर को दुनिया भर में मनाया जाता है। इसका उद्देश्य लोगों के बुनियादी अधिकारों की रक्षा और उनकी गरिमा को सुनिश्चित करना है। परंतु, जब बात हिंदुओं के मानवाधिकारों की होती है, तो पूरी दुनिया में एक अजीब सी चुप्पी छा जाती है। हाल के वर्षों में, यह चुप्पी न केवल भारत में बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी साफ नजर आती है।


🚩क्या है मानवाधिकार और इसका महत्व?


मानवाधिकार वे अधिकार हैं जो हर व्यक्ति को केवल मानव होने के नाते प्राप्त हैं। ये अधिकार जाति, धर्म, लिंग, या राष्ट्रीयता से परे हैं और सभी के लिए समान हैं। इनमें जीवन का अधिकार, स्वतंत्रता, शिक्षा, भोजन, स्वास्थ्य, और न्याय की पहुंच शामिल है।


🚩संयुक्त राष्ट्र ने 10 दिसंबर 1948 को “मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा” (UDHR) अपनाई थी। इसका उद्देश्य सभी देशों और लोगों को यह सुनिश्चित करना था कि उनके नागरिक स्वतंत्रता और गरिमा के साथ जीवन जी सकें।


🚩भारत और मानवाधिकार की वास्तविकता


भारत ने भी UDHR को स्वीकार किया है और संविधान के माध्यम से मौलिक अधिकारों को लागू किया है। अनुच्छेद 14 से 32 तक नागरिकों को समानता, स्वतंत्रता, और न्याय प्रदान करने की गारंटी देता है। इसके बावजूद, वास्तविकता में मानवाधिकारों का पालन काफी हद तक कमजोर और असंतोषजनक है।


🚩हिंदुओं के मानवाधिकारों पर हमले


भारत और दुनिया के कई हिस्सों में हिंदू समुदाय के अधिकारों को न केवल अनदेखा किया गया, बल्कि कई बार उन्हें गंभीर संकटों का सामना करना पड़ा है।


 उदाहरण के लिए:


🎯 बांग्लादेश में हिंदुओं पर हमले


हाल ही में बांग्लादेश में 88 सांप्रदायिक हमलों की घटनाएं हुईं। हिंदुओं के घर जलाए गए, मंदिर तोड़े गए, और उनकी संपत्तियों को लूट लिया गया। यह स्थिति वहां के अल्पसंख्यक हिंदुओं के लिए चिंताजनक है, लेकिन अंतरराष्ट्रीय समुदाय इस पर चुप्पी साधे हुए है।


🎯 कश्मीर और पाकिस्तान में अत्याचार


कश्मीर घाटी से 1990 के दशक में हजारों कश्मीरी पंडितों को जबरन पलायन करने पर मजबूर किया गया। पाकिस्तान में हिंदू अल्पसंख्यकों पर हो रहे अत्याचार और उनकी बेटियों का अपहरण व जबरन धर्म परिवर्तन की घटनाएं आम हैं।


🎯भारत में मानवाधिकार उल्लंघन


भारत में भी मानवाधिकारों की रक्षा के नाम पर हिंदुओं को निशाना बनाया जाता है। जल-जंगल-जमीन बचाने के लिए संघर्ष कर रहे आदिवासियों को “माओवादी” करार देकर जेल में डाला जा रहा है।


🚩दुनिया की चुप्पी और दोहरा मापदंड


जब मानवाधिकार उल्लंघन की बात आती है, तो अंतरराष्ट्रीय समुदाय और मीडिया अपने एजेंडे के अनुसार प्रतिक्रिया देता है। फिलिस्तीन और अफगानिस्तान जैसे मुद्दों पर आवाज उठाने वाले वही लोग हिंदुओं पर हो रहे अत्याचारों पर खामोश रहते हैं।


🚩संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने कहा है, “मानवाधिकार सभी के लिए समान हैं।” लेकिन वास्तविकता में यह कथन लागू होता नहीं दिखता। जब हिंदुओं के अधिकारों की बात होती है, तो दुनिया आंखें मूंद लेती है।


🚩क्या है समाधान?


🔸मजबूत अंतरराष्ट्रीय दबाव


अंतरराष्ट्रीय समुदाय को हिंदुओं के मानवाधिकारों के उल्लंघन पर भी उतना ही संवेदनशील होना चाहिए जितना वे अन्य समुदायों के लिए हैं।


🔸सरकार की जवाबदेही


सरकारों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनके देश में सभी नागरिकों के साथ समान व्यवहार हो और उन्हें न्याय मिले।


🔸मीडिया की भूमिका


मीडिया को अपने एजेंडे से ऊपर उठकर निष्पक्षता से रिपोर्टिंग करनी चाहिए और अल्पसंख्यक हिंदुओं के मुद्दों को भी प्रमुखता से उठाना चाहिए।


🚩निष्कर्ष


मानवाधिकार दिवस केवल एक औपचारिकता बनकर रह गया है। हिंदुओं के मानवाधिकारों पर हो रहे हमलों और दुनिया की खामोशी से यह स्पष्ट होता है कि “सभी के लिए अधिकार” का वादा अधूरा है। हिंदुओं के अधिकारों की रक्षा के लिए सरकार, अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं, और समाज को मिलकर प्रयास करना होगा। अन्यथा, मानवाधिकार केवल एक मुखौटा बनकर रह जाएगा।


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Wednesday, December 18, 2024

यूनुस सरकार ने खुद उजागर की सच्चाई: 88 बार हिंदुओं पर हुए हमले!

 18 December 2024

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🚩यूनुस सरकार ने खुद उजागर की सच्चाई: 88 बार हिंदुओं पर हुए हमले!


🚩बांग्लादेश में हाल ही में हुए राजनीतिक तख्तापलट के बाद हिंदुओं पर अत्याचार और हमलों की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। यह स्थिति वहां के अल्पसंख्यकों, खासतौर से हिंदुओं के लिए बेहद चिंताजनक है।


🚩पहले, बांग्लादेश सरकार इन घटनाओं से इंकार करती रही। लेकिन अब, खुद यूनुस सरकार ने इन हमलों की सच्चाई स्वीकार कर ली है। मंगलवार को बांग्लादेश सरकार ने माना कि अगस्त में तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख हसीना को पद से हटाए जाने के बाद, सांप्रदायिक हिंसा की 88 घटनाएं सामने आईं, जिनका मुख्य निशाना अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय था।


🚩राजनीतिक तख्तापलट के बाद बिगड़ा माहौल


शेख हसीना को हटाए जाने के बाद बांग्लादेश में राजनीतिक अस्थिरता फैल गई। इस अस्थिरता के बीच, कट्टरपंथी गुटों ने हिंदू समुदाय को निशाना बनाते हुए उनकी संपत्तियों को नुकसान पहुंचाया, मंदिरों को तोड़ा, और कई जगह हिंसा की घटनाओं को अंजाम दिया।


🚩हिंदुओं के खिलाफ सुनियोजित हिंसा


इन 88 घटनाओं से यह स्पष्ट है कि यह कोई सामान्य सांप्रदायिक तनाव नहीं, बल्कि अल्पसंख्यकों के खिलाफ सुनियोजित हिंसा है। हिंदू समुदाय, जो बांग्लादेश की आबादी का एक छोटा हिस्सा है, इन हमलों से पूरी तरह असुरक्षित महसूस कर रहा है।


🚩पहले इंकार, अब स्वीकारोक्ति


हैरानी की बात यह है कि शुरुआत में बांग्लादेश सरकार ने इन हमलों को नजरअंदाज किया और इसे झूठा प्रचार बताया। लेकिन अंतरराष्ट्रीय दबाव और मीडिया रिपोर्ट्स के कारण, अब खुद सरकार को सच्चाई स्वीकारनी पड़ी। यह स्वीकारोक्ति बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों की स्थिति पर गंभीर सवाल खड़े करती है।


🚩अंतरराष्ट्रीय समुदाय की जिम्मेदारी


इन घटनाओं के बाद यह साफ हो गया है कि बांग्लादेश में हिंदुओं की सुरक्षा को लेकर कोई ठोस कदम नहीं उठाए जा रहे हैं। यह अंतरराष्ट्रीय समुदाय की जिम्मेदारी बनती है कि वह इस मामले में हस्तक्षेप करे और अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित करे।


🚩निष्कर्ष


बांग्लादेश में हिंदू समुदाय पर हो रहे ये हमले मानवाधिकारों का गंभीर उल्लंघन हैं। ऐसे में यह आवश्यक है कि भारत समेत अन्य पड़ोसी देश और अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं इस विषय पर बांग्लादेश सरकार से जवाबदेही मांगें।

हिंदू समुदाय की सुरक्षा और सम्मान की रक्षा करना सिर्फ बांग्लादेश की नहीं, बल्कि हर मानवतावादी देश की प्राथमिकता होनी चाहिए।


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Tuesday, December 17, 2024

JNU में बड़ा बवाल: वामपंथियों ने फाड़े साबरमति फ़िल्म के पोस्टर!

 17 December 2024

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🚩JNU में बड़ा बवाल: वामपंथियों ने फाड़े साबरमति फ़िल्म के पोस्टर!


🚩JNU (जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय) एक बार फिर विवादों के केंद्र में आ गया है। इस बार विवाद का कारण बनी है गोधरा कांड पर आधारित फिल्म साबरमति रिपोर्ट, जिसकी स्क्रीनिंग ABVP (अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद) द्वारा विश्वविद्यालय में आयोजित की जा रही थी।


🚩क्या हुआ JNU में?


फिल्म की स्क्रीनिंग से पहले ही वामपंथी गुटों ने इसका विरोध करना शुरू कर दिया। विरोध प्रदर्शन के दौरान उन्होंने साबरमति रिपोर्ट के पोस्टर फाड़ दिए और कार्यक्रम को बाधित करने की कोशिश की। इस घटना ने न केवल JNU के परिसर में अशांति फैलाई, बल्कि अभिव्यक्ति की आज़ादी और विचारों के टकराव पर भी बड़ा सवाल खड़ा किया।


🚩वामपंथी गुटों का तर्क


वामपंथी गुटों का कहना है कि साबरमति रिपोर्ट फिल्म गोधरा कांड को लेकर एकपक्षीय दृष्टिकोण प्रस्तुत करती है और सांप्रदायिक विभाजन को बढ़ावा देती है। वे इसे छात्रों के बीच नफरत फैलाने का प्रयास मानते हैं।


🚩ABVP की प्रतिक्रिया


ABVP ने इस घटना की कड़ी निंदा की और इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला बताया। उनका कहना है कि साबरमति रिपोर्ट एक तथ्यात्मक फिल्म है, जो गोधरा कांड और उससे जुड़े सच को जनता के सामने लाने का प्रयास करती है। ABVP ने यह भी कहा कि वामपंथी विचारधारा हमेशा से असहमति की आवाज को दबाने की कोशिश करती रही है।


🚩क्या कहता है संविधान?


भारत के संविधान के तहत हर नागरिक को अपने विचार रखने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार है। लेकिन JNU में बार-बार ऐसी घटनाएं होती रही हैं, जहां एक पक्ष अपने विरोध को हिंसा और तोड़फोड़ के रूप में प्रकट करता है।


🚩JNU और वामपंथ का इतिहास


JNU वामपंथी विचारधारा का गढ़ माना जाता है। लेकिन हाल के वर्षों में इस विचारधारा के चलते कई बार असहमति के स्वर को दबाने के प्रयास किए गए हैं। चाहे वह किसी राष्ट्रवादी मुद्दे पर कार्यक्रम हो या किसी विचारधारा से असहमति जताने का मामला, विरोध हमेशा हिंसक रूप लेता रहा है।


🚩हमारी संस्कृति और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता


भारत का लोकतंत्र विविध विचारों और बहसों पर टिका हुआ है। साबरमति रिपोर्ट जैसी फिल्में समाज को सच के कई पहलुओं से अवगत कराने का माध्यम हैं। यदि हर विचारधारा को बराबर का मंच नहीं दिया जाएगा, तो यह न केवल लोकतंत्र के मूल्यों का अपमान होगा, बल्कि समाज के विकास में भी बाधा बनेगा।


🚩निष्कर्ष


JNU में हुई यह घटना विचारों की स्वतंत्रता पर सीधा प्रहार है। एक विश्वविद्यालय को बहस और संवाद का केंद्र होना चाहिए, न कि हिंसा और विरोध का। ऐसे में यह जरूरी है कि हर पक्ष को अपनी बात कहने का समान अवसर दिया जाए। वामपंथी गुटों को यह समझना चाहिए कि असहमति का मतलब हिंसा नहीं है, बल्कि स्वस्थ संवाद है।


सवाल यह है कि क्या JNU में इस तरह की घटनाएं अभिव्यक्ति की आज़ादी को कुचलने का नया तरीका बन रही हैं?


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Monday, December 16, 2024

पीपल: धरती पर ईश्वर का अनमोल वरदान

 16 December 2024

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🚩पीपल: धरती पर ईश्वर का अनमोल वरदान


🚩पीपल का वृक्ष भारतीय संस्कृति और पर्यावरण के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसे धरती पर ईश्वर का वरदान माना गया है। न केवल धार्मिक दृष्टि से बल्कि वैज्ञानिक आधार पर भी यह वृक्ष अद्वितीय है।


🚩पीपल का पर्यावरणीय महत्व


पीपल का पेड़ 100% कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करता है, जबकि बरगद 80% और नीम 75% तक इस प्रक्रिया में योगदान करते हैं।


🚩आज की समस्या –


पिछले 68 वर्षों में पीपल, बरगद, और नीम जैसे जीवनदायी पेड़ों का रोपण सरकारी स्तर पर लगभग बंद हो गया है। इसके स्थान पर विदेशी यूकेलिप्टस और अन्य सजावटी पेड़ों को प्राथमिकता दी जा रही है।


🚩यूकेलिप्टस: पर्यावरण के लिए खतरा


यूकेलिप्टस की जड़ें जमीन का सारा पानी सोख लेती हैं, जिससे भूमि जल-विहीन हो जाती है। वहीं, सजावटी पेड़ जैसे गुलमोहर पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखने में कोई योगदान नहीं देते।


🚩गर्मी और प्रदूषण के खतरे


वायुमंडल में जब पीपल जैसे रिफ्रेशर पेड़ नहीं होंगे, तो गर्मी बढ़ना स्वाभाविक है। गर्मी बढ़ने से पानी का वाष्पीकरण तेजी से होगा, जिससे जल संकट भी गहराएगा।


🚩पीपल का अद्वितीय गुण


पीपल के पत्तों का फलक बड़ा और डंठल पतला होता है। यही कारण है कि हल्की हवा में भी इसके पत्ते हिलते रहते हैं और शुद्ध ऑक्सीजन प्रदान करते हैं। इसे वृक्षों का राजा भी कहा जाता है।


🚩धार्मिक महत्व


शास्त्रों में भी पीपल की महिमा का वर्णन किया गया है:


मूलम् ब्रह्मा, त्वचा विष्णु, सखा शंकरमेवच।

पत्रे-पत्रे का सर्वदेवानाम, वृक्षराज नमस्तुते।।


🚩अब क्या करें?


1. हर 500 मीटर पर एक पीपल का पेड़ लगाएं।


2. जीवनदायी वृक्षों के प्रति समाज को जागरूक करें।


3. बगीचों और खेतों में फालतू सजावटी पेड़ों की जगह पीपल, बरगद, और नीम जैसे पेड़ों को प्राथमिकता दें।


🚩 बरगद एक लगाइए, पीपल रोपें पाँच।

घर-घर नीम लगाइए, यही पुरातन साँच।


🚩यही पुरातन साँच, आज सब मान रहे हैं।

भाग जाय प्रदूषण सभी अब जान रहे हैं।


🚩विश्वताप मिट जाए, होय हर जन मन गदगद।

धरती पर त्रिदेव हैं, नीम, पीपल और बरगद।


🚩निष्कर्ष


पीपल, बरगद, और नीम जैसे वृक्ष केवल पर्यावरण को स्वच्छ और संतुलित ही नहीं करते, बल्कि यह हमारी सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहर भी हैं। विदेशी और सजावटी पेड़ों के प्रति आकर्षित होकर हमने इन जीवनदायी वृक्षों को अनदेखा कर दिया है।

अब समय आ गया है कि हम इनके महत्व को पहचानें और इनका संरक्षण करें। अगर हर व्यक्ति अपने आसपास ऐसे पेड़ों को लगाने का संकल्प ले, तो आने वाला भारत प्रदूषण मुक्त और पर्यावरण के प्रति जागरूक होगा।

आइए, मिलकर प्रयास करें और प्रकृति को उसका खोया हुआ सम्मान वापस दिलाएं।


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Sunday, December 15, 2024

पाँच महापाप से बचें: आत्मा को शुद्ध रखें

 15 December 2024

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🚩पाँच महापाप से बचें: आत्मा को शुद्ध रखें


🚩पंच महापाप, जिन्हें सनातन धर्म में गंभीरतम पाप माना गया है, व्यक्ति की आत्मा और समाज दोनों पर गहरा नकारात्मक प्रभाव डालते हैं। इनसे बचना न केवल व्यक्तिगत शुद्धि के लिए आवश्यक है, बल्कि सामाजिक और आध्यात्मिक शांति के लिए भी जरूरी है।


🚩पंच महापाप क्या हैं?


🟡 ब्रह्महत्या:

ब्राह्मण (ज्ञानवान व्यक्ति) की हत्या को सबसे बड़ा पाप माना गया है। यह केवल शारीरिक हत्या तक सीमित नहीं है, बल्कि ज्ञान के स्रोत को नष्ट करना भी ब्रह्महत्या के समान है।


🟡सुरापान (शराब पीना):

सुरापान से मनुष्य की बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है, और वह सही-गलत का निर्णय नहीं कर पाता। यह आत्मा और शरीर दोनों को दूषित करता है।


🟡चोरी:

किसी की संपत्ति या अधिकारों का हनन करना चोरी है। यह व्यक्ति की ईमानदारी और नैतिकता को खत्म कर देता है।


🟡गुरु पत्नी के साथ संबंध:

गुरु के प्रति आदर का भाव होना चाहिए। गुरु की पत्नी के साथ अनुचित संबंध एक गंभीर पाप है, जो शिक्षा, संस्कार और विश्वास को नष्ट करता है।


🟡पापकर्मियों के साथ अंतरंगता:

ऐसे व्यक्तियों के साथ संबंध रखना, जो पाप में लिप्त हैं, स्वयं को भी पाप के मार्ग पर ले जाता है। “संगति का प्रभाव” यहां सत्य सिद्ध होता है।


🚩पंच महापाप का दूसरा संदर्भ:


कहीं-कहीं काम, क्रोध, मोह, मद, और लोभ को भी पंच महापाप कहा गया है। ये पांच दोष आत्मा की शुद्धता को खत्म करते हैं और व्यक्ति को अधर्म के मार्ग पर ले जाते हैं।


🚩पाप और चेतना का संबंध


पाप और पुण्य आत्मा की चेतना से जुड़े हैं। यदि चेतना का स्तर ऊंचा है, तो व्यक्ति अपने विचार और कर्मों को शुद्ध रख सकता है।


🚩पाप कैसे नष्ट होते हैं?


🔸पाप न करें: यदि पाप कर्मों से बचा जाए, तो वे नष्ट हो जाते हैं।


🔸 भोग के माध्यम से: किए गए पापों को भोगकर समाप्त किया जा सकता है।


🔸 आत्मशुद्धि: प्रायश्चित, ध्यान और आत्मा की शुद्धि के माध्यम से पापों का प्रभाव कम किया जा सकता है।


🚩पाप से बचने के उपाय


🔹धर्म का पालन करें: सत्य, अहिंसा, और संयम का पालन करें।


🔹सत्संग करें: संतों और विद्वानों की संगति से विचारों में शुद्धता आती है।


🔹 ध्यान और प्रार्थना: नियमित ध्यान और ईश्वर की आराधना से आत्मा को पवित्र बनाए रखें।


🔹अहंकार त्यागें: विनम्र रहें और अहंकार से बचें।


🚩निष्कर्ष


पंच महापाप आत्मा के शुद्धिकरण में सबसे बड़ी बाधा हैं। इन्हें न करने का संकल्प लेना और जीवन में धर्म, सत्य और नैतिकता का पालन करना ही सच्ची आत्मिक शांति और मोक्ष का मार्ग है। आइए, इन महापापों से बचकर अपने जीवन को सार्थक बनाएं।


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Friday, December 13, 2024

आवंला : - एक अमृत फल

 13 December 2024

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🚩 आवंला : - एक अमृत फल


🚩जिस दिन आपकी सब्ज़ी में आंवले का उपयोग होना शुरू हो गया उस दिन से आधा मेडिकल माफिया जो आपको दिन रात लुटता रहता है, वह भाग जाएगा। 


 🚩सनातन भारत में सब्जी में खट्टापन लाने के लिये टमाटर के स्थान पर आंवले का प्रयोग होता था । इसलिये सनातन हिंदुओ की हड्डियां महर्षि दधीचि की तरह कठोर होती थीं ,इतनी मजबूत होती थी कि महाराणा प्रताप का महावज़नी भाला उठा सकतीं थी।

आज तमाम तरह के कैल्शियम विटामिन्स खाने के बाद भी जवानी में ही हड्डियां कीर्तन करने लगती हैं।


🚩जिस मौसम में देशी टमाटर मिले तो ठीक लेकिन अंडे जैसे आकार के अंग्रेजी टमाटर खाने के स्थान पर आंवले का प्रयोग आपकी सब्ज़ी को स्वादिष्ट भी बनाएगा और आपको मेडिकल माफिया के मकड़जाल से भी बाहर निकालेगा।


🚩आंवला ही एक ऐसा फल है जिसमे सब तरह के रस होते है । जैसे आंवला , खट्टा भी है मीठा भी कड़वा भी है नमकीन भी । आँवले का सनातन संस्कृति में 

 इतना महत्व है कि दीपावली के कुछ दिन बाद आँवला नवमी मनाई जाती है।


🚩आपको करना केवल इतना है कि साबुत या कटा हुआ आँवला ,बिना बच्चों और आधुनिक सदस्यों को बताए सब्ज़ी में डाल देना है। अगर आँवला साबुत डाला है तो सब्ज़ी बनने के बाद उसको ऐसे ही खा सकतें है ।


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Thursday, December 12, 2024

#MenToo: निर्दोष पुरुषों के अधिकारों की रक्षा का आंदोलन

 12 December 2024

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#MenToo: निर्दोष पुरुषों के अधिकारों की रक्षा का आंदोलन


🚩हमारे समाज में महिलाओं के अधिकारों और सुरक्षा को प्राथमिकता देना अत्यंत महत्वपूर्ण है, लेकिन इसके साथ यह भी सच है कि झूठे आरोपों के सहारे निर्दोष पुरुषों को निशाना बनाया जा रहा है। यह समस्या इतनी गंभीर हो चुकी है कि इसे #MenToo आंदोलन के रूप में पहचाना जा रहा है।


🚩अतुल का मामला: निर्दोषता पर प्रश्नचिह्न


हाल ही में अतुल का मामला #MenToo आंदोलन की प्रासंगिकता को और गहराई से उजागर करता है।

क्या हुआ था?

अतुल पर उनकी पत्नी ने घरेलू हिंसा समेत 9 केस किया और परेशान किया । 

परिणाम:

इस झूठे आरोप ने अतुल की प्रतिष्ठा, पारिवारिक जीवन और मानसिक स्वास्थ्य को गहरा नुकसान पहुंचाया। यह दिखाता है कि झूठे आरोप किस हद तक किसी निर्दोष व्यक्ति का जीवन बर्बाद कर सकते हैं। महिला रक्षण के कानूनों के दुरूपयोग का यह ताजा उदहारण है |


🚩संत श्री आशारामजी बापू का मामला


🚩संत श्री आशारामजी बापू पर भी झूठे आरोप लगाए गए, जिनका उद्देश्य उनकी प्रतिष्ठा को धूमिल करना था।

मीडिया ट्रायल:

मीडिया ने पक्षपातपूर्ण रिपोर्टिंग कर लोगों को गुमराह किया।

🚩अन्य निर्दोष संतों पर झूठे आरोप

1. स्वामी नित्यानंद:

झूठे आरोप और मीडिया ट्रायल के कारण उनकी प्रतिष्ठा को भारी नुकसान हुआ।

2. साध्वी प्रज्ञा ठाकुर:

झूठे आतंकवाद के आरोपों ने उनके जीवन को अत्यंत कठिन बना दिया।

3. जगतगुरु कृपालु महाराज:

उनके खिलाफ भी झूठे आरोप लगाए गए, लेकिन बाद में न्यायालय ने उन्हें निर्दोष पाया।


कानून का दुरुपयोग: निर्दोषों के खिलाफ साजिश


महिलाओं की सुरक्षा के लिए बनाए गए कानून, जैसे दहेज़ और यौन उत्पीड़न के कानूनों का कई बार झूठे आरोप लगाने के लिए दुरुपयोग किया गया है।

निर्दोष व्यक्ति को जेल में डालना।

उनकी सामाजिक और मानसिक स्थिति को नुकसान पहुंचाना।

उनके परिवार और रिश्तों को तोड़ना।


🚩झूठे आरोपों के खिलाफ मानवाधिकारों की सुरक्षा


🚩कानून में सुधार की आवश्यकता है ताकि निर्दोष पुरुषों के अधिकारों और मानवाधिकारों की रक्षा की जा सके:

1. निष्पक्ष जांच:

बिना ठोस सबूत के किसी व्यक्ति को दोषी ठहराने की प्रक्रिया पर रोक लगनी चाहिए।

2. झूठे आरोप लगाने वालों पर सख्त कार्रवाई:

जो लोग झूठे आरोप लगाते हैं, उन्हें कड़ी सजा मिलनी चाहिए ताकि कानून का दुरुपयोग रोका जा सके।

3. गोपनीयता का अधिकार:

जांच पूरी होने तक आरोपी का नाम और पहचान सार्वजनिक न की जाए।

4. मानसिक और सामाजिक स्वास्थ्य की सुरक्षा:

झूठे आरोपों के कारण पीड़ित को हुए मानसिक और सामाजिक नुकसान की भरपाई के लिए उचित मुआवजा दिया जाना चाहिए।

5. मीडिया की जवाबदेही:

मीडिया को निष्पक्षता बनाए रखनी चाहिए।

झूठी खबरें फैलाने पर मीडिया संस्थानों को जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए।

6. लिंग-निरपेक्ष कानून:

सभी के लिए समान अधिकार सुनिश्चित करने के लिए कानून को लिंग-निरपेक्ष बनाया जाना चाहिए।

7. मानवाधिकारों की सुरक्षा के लिए विशेष न्यायिक आयोग:

झूठे मामलों की जांच के लिए एक स्वतंत्र आयोग का गठन किया जाए।


🚩निष्कर्ष


पुरुषों के खिलाफ झूठे आरोप यह दिखाते हैं कि महिला सुरक्षा के कानून का दुरूपयोग न हो ऐसे कदम उठाये जाने की आवश्यकता है। #MenToo आंदोलन इस दिशा में समाज को जागरूक करने का प्रयास है।

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