Sunday, December 22, 2024

तुलसी की महिमा एवं धार्मिक दृष्टिकोण / महत्व

 22 December 2024

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🚩तुलसी की महिमा एवं धार्मिक दृष्टिकोण / महत्व


🚩तुलसी का पौधा भारतीय संस्कृति, धर्म और आयुर्वेद का एक अभिन्न अंग है। इसे “वृन्दा” और “हरिप्रिया” के नाम से भी जाना जाता है। हिंदू धर्म में तुलसी को अत्यधिक पवित्र और पूजनीय माना गया है। इसे देवी स्वरूप मानकर पूजा जाता है और इसे घर में रखना शुभ एवं कल्याणकारी माना जाता है। तुलसी न केवल धार्मिक दृष्टि से बल्कि औषधीय गुणों के कारण भी महत्वपूर्ण है।


🚩तुलसी की पौराणिक कथा


पौराणिक कथाओं के अनुसार, तुलसी माता का जन्म धर्म और भक्ति का प्रतीक है। तुलसी का नाम देवी वृन्दा के नाम पर रखा गया है, जो भगवान विष्णु की अनन्य भक्त थीं। वृन्दा ने अपने पति जलंधर की रक्षा के लिए कठोर तप किया। लेकिन भगवान विष्णु ने धर्म की रक्षा के लिए जलंधर का वध किया। जब वृन्दा को इस घटना का ज्ञान हुआ, तो उन्होंने भगवान विष्णु को श्राप दिया। इस श्राप से भगवान विष्णु ने शालिग्राम रूप धारण किया और वृन्दा तुलसी का पौधा बन गईं। तभी से तुलसी भगवान विष्णु की प्रिय मानी जाती है।


🚩धार्मिक महत्व


🔸 पूजा में उपयोग


तुलसी के पत्तों का उपयोग हर धार्मिक अनुष्ठान और पूजा में किया जाता है। विशेषकर, भगवान विष्णु और श्रीकृष्ण की पूजा में तुलसी के बिना पूजा अधूरी मानी जाती है।


🔸 कार्तिक मास और तुलसी विवाह


कार्तिक मास में तुलसी पूजा का विशेष महत्व है। तुलसी विवाह का आयोजन भी इसी महीने में किया जाता है, जिसमें तुलसी को भगवान शालिग्राम से विवाह करवाया जाता है। यह उत्सव पारिवारिक समृद्धि और सुख-शांति का प्रतीक है।


🔸धार्मिक मान्यताएँ


🌿तुलसी का पौधा घर में रखने से नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है।


 🌿 तुलसी के पौधे के पास शाम को दीपक जलाने से घर में सुख-शांति बनी रहती है।


 🌿 तुलसी के पास बैठकर जप करने से मन शांत होता है और ध्यान की गहराई बढ़ती है।


🚩औषधीय गुण


तुलसी को आयुर्वेद में “जीवनदायिनी” माना गया है। इसके औषधीय गुणों के कारण इसे कई रोगों के उपचार में उपयोग किया जाता है:


🔸प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाना


तुलसी के पत्ते इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाते हैं।


🔸 सर्दी-जुकाम का इलाज


तुलसी का काढ़ा सर्दी, जुकाम और खांसी में राहत देता है।


🔸 तनाव कम करना


तुलसी का नियमित सेवन तनाव और चिंता को कम करता है।


🔸 त्वचा और बालों के लिए फायदेमंद


तुलसी त्वचा रोगों और बालों की समस्याओं में भी लाभकारी है।


🚩पर्यावरणीय महत्व


तुलसी का पौधा पर्यावरण शुद्ध करता है और वातावरण में ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ाता है। इसे घर में लगाने से शुद्ध और सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है।


🚩निष्कर्ष


तुलसी न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह हमारे जीवन को शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक रूप से समृद्ध बनाती है। इसका हर पहलू—चाहे वह पूजा में उपयोग हो, औषधीय गुण हो या पर्यावरणीय महत्व—हमारे जीवन में एक नई ऊर्जा और संतुलन लाता है। इसलिए, तुलसी को अपने जीवन का हिस्सा बनाकर हम न केवल अपनी परंपराओं को जीवित रखते हैं, बल्कि स्वास्थ्य और पर्यावरण के प्रति अपनी जिम्मेदारी भी निभाते हैं।


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Saturday, December 21, 2024

25 दिसंबर: तुलसी पूजन दिवस

 21 December 2024

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🚩25 दिसंबर: तुलसी पूजन दिवस


🚩भारतीय संस्कृति में तुलसी पूजन दिवस का विशेष महत्व है। हर साल 25 दिसंबर को यह पर्व मनाया जाता है, जो प्रकृति, स्वास्थ्य और आध्यात्मिक उन्नति का प्रतीक है। इस दिन तुलसी माता की पूजा कर समाज में सकारात्मक ऊर्जा, पर्यावरण संरक्षण और भारतीय मूल्यों का प्रचार-प्रसार किया जाता है।


🚩तुलसी पूजन दिवस क्यों मनाया जाता है?


तुलसी को हिंदू धर्म में माता लक्ष्मी का स्वरूप और भगवान विष्णु की प्रिया माना गया है। तुलसी के बिना किसी भी पूजा को पूर्ण नहीं माना जाता। इसके अलावा, तुलसी का पौधा पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए भी अत्यंत लाभकारी है। इस दिन तुलसी माता की पूजा करने से परिवार और समाज में सुख-शांति और समृद्धि का आगमन होता है।


🚩तुलसी पूजन की विधि (25 दिसंबर)


🌿 स्नान और शुद्धि:


 सुबह ब्रह्म मुहूर्त में स्नान कर साफ़ वस्त्र धारण करें।


🌿तुलसी पर जल चढ़ाएं:


 तुलसी के पौधे पर शुद्ध जल अर्पित करें।


🌿 सिंदूर और फूल चढ़ाएं:


 तुलसी पर सिंदूर और लाल या गुलाबी फूल अर्पित करें।


🌿घी का दीप जलाएं:


 तुलसी माता के पास घी का दीपक जलाकर आरती करें।


🌿तुलसी स्तोत्र का पाठ:


 तुलसी स्तोत्र का पाठ कर भक्ति-भाव से पूजा करें।


🌿भोग और प्रसाद:


 फल, मिठाई और पंचामृत का भोग लगाकर प्रसाद वितरण करें।


🚩तुलसी पूजन के नियम और मान्यताएं


🟡शाम के समय तुलसी माता के पास दीपक जलाना विशेष शुभ माना जाता है।


🟡 रविवार और एकादशी के दिन तुलसी के पत्ते तोड़ने से बचना चाहिए।


🟡 तुलसी माला धारण करने से आध्यात्मिक लाभ मिलता है।


🚩25 दिसंबर:

 तुलसी पूजन और संस्कृति को सहेजने का दिन


आज के समय में जब पश्चिमी परंपराओं का प्रभाव बढ़ रहा है, तुलसी पूजन दिवस हमें अपनी संस्कृति को सहेजने और समाज को उसके महत्व से अवगत कराने का अवसर देता है।


🌿क्रिसमस ट्री की जगह तुलसी: 


25 दिसंबर को क्रिसमस मनाने के बजाय तुलसी का पौधा अपनाकर समाज को पर्यावरण संरक्षण और भारतीय मूल्यों का महत्व समझाएं।


🌿पर्यावरण और स्वास्थ्य:


 तुलसी न केवल धार्मिक दृष्टि से बल्कि पर्यावरण और स्वास्थ्य की दृष्टि से भी अत्यंत लाभकारी है। यह वायु को शुद्ध करती है और कई बीमारियों का उपचार करती है।


🚩भारतीय संस्कृति को आगे बढ़ाने का संकल्प


25 दिसंबर तुलसी पूजन दिवस केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह हमारी सांस्कृतिक जड़ों से जुड़ने और समाज में पर्यावरण और आध्यात्मिकता का संदेश फैलाने का पर्व है।


आइए, इस 25 दिसंबर तुलसी पूजन दिवस पर हम सभी समाज में तुलसी के महत्व को समझाएं और भारतीय संस्कृति को सशक्त बनाएं।

“तुलसी पूजन करें, प्रकृति और संस्कृति को समृद्ध करें!”


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Friday, December 20, 2024

सीरिया में सत्ता परिवर्तन: राष्ट्रपति असद ने 11 दिन में सत्ता गंवाई

 20 December 2024

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🚩सीरिया में सत्ता परिवर्तन: राष्ट्रपति असद ने 11 दिन में सत्ता गंवाई



सीरिया, पश्चिम एशिया का एक महत्वपूर्ण देश, एक दशक से अधिक समय तक राजनीतिक अस्थिरता और गृहयुद्ध का गवाह रहा है। राष्ट्रपति बशर अल-असद के शासनकाल में देश ने लंबे समय तक बाहरी हस्तक्षेप और आंतरिक संघर्ष झेला। हाल ही में, खबरें आईं कि राष्ट्रपति असद ने देश छोड़ दिया है और उनकी सत्ता केवल 11 दिनों में खत्म हो गई।


🚩घटना का विश्लेषण:


🔅 राजनीतिक अस्थिरता का कारण:


🔹राष्ट्रपति असद के शासन को तानाशाही के रूप में देखा गया, जहाँ उन्होंने विरोधियों पर कठोर कार्रवाई की।


🔹 देश में लोकतंत्र और मानवाधिकारों की मांग ने बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन को जन्म दिया।


🔹अंतरराष्ट्रीय स्तर पर असद सरकार पर कई प्रतिबंध लगाए गए, जिससे आर्थिक संकट गहराता गया।


🔅 11 दिनों में सत्ता का पतन:


🔹 बढ़ते विरोध प्रदर्शन और सेना के कुछ धड़ों के विद्रोह के कारण असद सरकार कमजोर हो गई।


🔹 देश के विभिन्न हिस्सों पर विद्रोही गुटों का कब्जा हो गया।


🔹अंतरराष्ट्रीय दबाव और भीतर से बढ़ते असंतोष के कारण राष्ट्रपति असद को देश छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा।


🚩 सीरिया की वर्तमान स्थिति:


🔹 सत्ता का पतन सीरिया के लिए एक नई शुरुआत की उम्मीद ला सकता है, लेकिन यह स्थिरता लाने में कितना सफल होगा, यह समय बताएगा।


🔹 वर्तमान में, देश में अंतरिम सरकार बनाने और शांति स्थापित करने के प्रयास जारी हैं।


🚩अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया:


🔹 संयुक्त राष्ट्र:


 इस घटना को पश्चिम एशिया में स्थिरता बहाल करने का एक अवसर माना गया।


🔹पड़ोसी देश: 


तुर्की, ईरान और अन्य देशों ने अपनी-अपनी रणनीतियां अपनाई हैं।


🔹 महाशक्तियां: 


अमेरिका और रूस जैसे देशों ने इस सत्ता परिवर्तन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।


🚩सीरिया का भविष्य:


राष्ट्रपति असद के देश छोड़ने के बाद, सीरिया को एक नई शुरुआत का अवसर मिला है। हालांकि, यह चुनौतीपूर्ण होगा कि सत्ता के विभिन्न धड़े और अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी मिलकर देश को स्थिर और लोकतांत्रिक बनाने की दिशा में काम करें।


🚩निष्कर्ष:


सीरिया में राष्ट्रपति असद का सत्ता गंवाना और देश छोड़ना, न केवल वहां के इतिहास में एक बड़ा बदलाव है, बल्कि यह पश्चिम एशिया की राजनीति पर भी गहरा प्रभाव डाल सकता है। यह देखना बाकी है कि सीरिया इन परिस्थितियों से कैसे उबरता है और भविष्य में खुद को कैसे स्थापित करता है।


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Thursday, December 19, 2024

हिंदुओं के मानवाधिकार पर दुनिया चुप क्यों हो जाती है?

 19 December 2024

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🚩हिंदुओं के मानवाधिकार पर दुनिया चुप क्यों हो जाती है?


🚩मानवाधिकार दिवस हर साल 10 दिसंबर को दुनिया भर में मनाया जाता है। इसका उद्देश्य लोगों के बुनियादी अधिकारों की रक्षा और उनकी गरिमा को सुनिश्चित करना है। परंतु, जब बात हिंदुओं के मानवाधिकारों की होती है, तो पूरी दुनिया में एक अजीब सी चुप्पी छा जाती है। हाल के वर्षों में, यह चुप्पी न केवल भारत में बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी साफ नजर आती है।


🚩क्या है मानवाधिकार और इसका महत्व?


मानवाधिकार वे अधिकार हैं जो हर व्यक्ति को केवल मानव होने के नाते प्राप्त हैं। ये अधिकार जाति, धर्म, लिंग, या राष्ट्रीयता से परे हैं और सभी के लिए समान हैं। इनमें जीवन का अधिकार, स्वतंत्रता, शिक्षा, भोजन, स्वास्थ्य, और न्याय की पहुंच शामिल है।


🚩संयुक्त राष्ट्र ने 10 दिसंबर 1948 को “मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा” (UDHR) अपनाई थी। इसका उद्देश्य सभी देशों और लोगों को यह सुनिश्चित करना था कि उनके नागरिक स्वतंत्रता और गरिमा के साथ जीवन जी सकें।


🚩भारत और मानवाधिकार की वास्तविकता


भारत ने भी UDHR को स्वीकार किया है और संविधान के माध्यम से मौलिक अधिकारों को लागू किया है। अनुच्छेद 14 से 32 तक नागरिकों को समानता, स्वतंत्रता, और न्याय प्रदान करने की गारंटी देता है। इसके बावजूद, वास्तविकता में मानवाधिकारों का पालन काफी हद तक कमजोर और असंतोषजनक है।


🚩हिंदुओं के मानवाधिकारों पर हमले


भारत और दुनिया के कई हिस्सों में हिंदू समुदाय के अधिकारों को न केवल अनदेखा किया गया, बल्कि कई बार उन्हें गंभीर संकटों का सामना करना पड़ा है।


 उदाहरण के लिए:


🎯 बांग्लादेश में हिंदुओं पर हमले


हाल ही में बांग्लादेश में 88 सांप्रदायिक हमलों की घटनाएं हुईं। हिंदुओं के घर जलाए गए, मंदिर तोड़े गए, और उनकी संपत्तियों को लूट लिया गया। यह स्थिति वहां के अल्पसंख्यक हिंदुओं के लिए चिंताजनक है, लेकिन अंतरराष्ट्रीय समुदाय इस पर चुप्पी साधे हुए है।


🎯 कश्मीर और पाकिस्तान में अत्याचार


कश्मीर घाटी से 1990 के दशक में हजारों कश्मीरी पंडितों को जबरन पलायन करने पर मजबूर किया गया। पाकिस्तान में हिंदू अल्पसंख्यकों पर हो रहे अत्याचार और उनकी बेटियों का अपहरण व जबरन धर्म परिवर्तन की घटनाएं आम हैं।


🎯भारत में मानवाधिकार उल्लंघन


भारत में भी मानवाधिकारों की रक्षा के नाम पर हिंदुओं को निशाना बनाया जाता है। जल-जंगल-जमीन बचाने के लिए संघर्ष कर रहे आदिवासियों को “माओवादी” करार देकर जेल में डाला जा रहा है।


🚩दुनिया की चुप्पी और दोहरा मापदंड


जब मानवाधिकार उल्लंघन की बात आती है, तो अंतरराष्ट्रीय समुदाय और मीडिया अपने एजेंडे के अनुसार प्रतिक्रिया देता है। फिलिस्तीन और अफगानिस्तान जैसे मुद्दों पर आवाज उठाने वाले वही लोग हिंदुओं पर हो रहे अत्याचारों पर खामोश रहते हैं।


🚩संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने कहा है, “मानवाधिकार सभी के लिए समान हैं।” लेकिन वास्तविकता में यह कथन लागू होता नहीं दिखता। जब हिंदुओं के अधिकारों की बात होती है, तो दुनिया आंखें मूंद लेती है।


🚩क्या है समाधान?


🔸मजबूत अंतरराष्ट्रीय दबाव


अंतरराष्ट्रीय समुदाय को हिंदुओं के मानवाधिकारों के उल्लंघन पर भी उतना ही संवेदनशील होना चाहिए जितना वे अन्य समुदायों के लिए हैं।


🔸सरकार की जवाबदेही


सरकारों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनके देश में सभी नागरिकों के साथ समान व्यवहार हो और उन्हें न्याय मिले।


🔸मीडिया की भूमिका


मीडिया को अपने एजेंडे से ऊपर उठकर निष्पक्षता से रिपोर्टिंग करनी चाहिए और अल्पसंख्यक हिंदुओं के मुद्दों को भी प्रमुखता से उठाना चाहिए।


🚩निष्कर्ष


मानवाधिकार दिवस केवल एक औपचारिकता बनकर रह गया है। हिंदुओं के मानवाधिकारों पर हो रहे हमलों और दुनिया की खामोशी से यह स्पष्ट होता है कि “सभी के लिए अधिकार” का वादा अधूरा है। हिंदुओं के अधिकारों की रक्षा के लिए सरकार, अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं, और समाज को मिलकर प्रयास करना होगा। अन्यथा, मानवाधिकार केवल एक मुखौटा बनकर रह जाएगा।


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Wednesday, December 18, 2024

यूनुस सरकार ने खुद उजागर की सच्चाई: 88 बार हिंदुओं पर हुए हमले!

 18 December 2024

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🚩यूनुस सरकार ने खुद उजागर की सच्चाई: 88 बार हिंदुओं पर हुए हमले!


🚩बांग्लादेश में हाल ही में हुए राजनीतिक तख्तापलट के बाद हिंदुओं पर अत्याचार और हमलों की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। यह स्थिति वहां के अल्पसंख्यकों, खासतौर से हिंदुओं के लिए बेहद चिंताजनक है।


🚩पहले, बांग्लादेश सरकार इन घटनाओं से इंकार करती रही। लेकिन अब, खुद यूनुस सरकार ने इन हमलों की सच्चाई स्वीकार कर ली है। मंगलवार को बांग्लादेश सरकार ने माना कि अगस्त में तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख हसीना को पद से हटाए जाने के बाद, सांप्रदायिक हिंसा की 88 घटनाएं सामने आईं, जिनका मुख्य निशाना अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय था।


🚩राजनीतिक तख्तापलट के बाद बिगड़ा माहौल


शेख हसीना को हटाए जाने के बाद बांग्लादेश में राजनीतिक अस्थिरता फैल गई। इस अस्थिरता के बीच, कट्टरपंथी गुटों ने हिंदू समुदाय को निशाना बनाते हुए उनकी संपत्तियों को नुकसान पहुंचाया, मंदिरों को तोड़ा, और कई जगह हिंसा की घटनाओं को अंजाम दिया।


🚩हिंदुओं के खिलाफ सुनियोजित हिंसा


इन 88 घटनाओं से यह स्पष्ट है कि यह कोई सामान्य सांप्रदायिक तनाव नहीं, बल्कि अल्पसंख्यकों के खिलाफ सुनियोजित हिंसा है। हिंदू समुदाय, जो बांग्लादेश की आबादी का एक छोटा हिस्सा है, इन हमलों से पूरी तरह असुरक्षित महसूस कर रहा है।


🚩पहले इंकार, अब स्वीकारोक्ति


हैरानी की बात यह है कि शुरुआत में बांग्लादेश सरकार ने इन हमलों को नजरअंदाज किया और इसे झूठा प्रचार बताया। लेकिन अंतरराष्ट्रीय दबाव और मीडिया रिपोर्ट्स के कारण, अब खुद सरकार को सच्चाई स्वीकारनी पड़ी। यह स्वीकारोक्ति बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों की स्थिति पर गंभीर सवाल खड़े करती है।


🚩अंतरराष्ट्रीय समुदाय की जिम्मेदारी


इन घटनाओं के बाद यह साफ हो गया है कि बांग्लादेश में हिंदुओं की सुरक्षा को लेकर कोई ठोस कदम नहीं उठाए जा रहे हैं। यह अंतरराष्ट्रीय समुदाय की जिम्मेदारी बनती है कि वह इस मामले में हस्तक्षेप करे और अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित करे।


🚩निष्कर्ष


बांग्लादेश में हिंदू समुदाय पर हो रहे ये हमले मानवाधिकारों का गंभीर उल्लंघन हैं। ऐसे में यह आवश्यक है कि भारत समेत अन्य पड़ोसी देश और अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं इस विषय पर बांग्लादेश सरकार से जवाबदेही मांगें।

हिंदू समुदाय की सुरक्षा और सम्मान की रक्षा करना सिर्फ बांग्लादेश की नहीं, बल्कि हर मानवतावादी देश की प्राथमिकता होनी चाहिए।


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Tuesday, December 17, 2024

JNU में बड़ा बवाल: वामपंथियों ने फाड़े साबरमति फ़िल्म के पोस्टर!

 17 December 2024

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🚩JNU में बड़ा बवाल: वामपंथियों ने फाड़े साबरमति फ़िल्म के पोस्टर!


🚩JNU (जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय) एक बार फिर विवादों के केंद्र में आ गया है। इस बार विवाद का कारण बनी है गोधरा कांड पर आधारित फिल्म साबरमति रिपोर्ट, जिसकी स्क्रीनिंग ABVP (अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद) द्वारा विश्वविद्यालय में आयोजित की जा रही थी।


🚩क्या हुआ JNU में?


फिल्म की स्क्रीनिंग से पहले ही वामपंथी गुटों ने इसका विरोध करना शुरू कर दिया। विरोध प्रदर्शन के दौरान उन्होंने साबरमति रिपोर्ट के पोस्टर फाड़ दिए और कार्यक्रम को बाधित करने की कोशिश की। इस घटना ने न केवल JNU के परिसर में अशांति फैलाई, बल्कि अभिव्यक्ति की आज़ादी और विचारों के टकराव पर भी बड़ा सवाल खड़ा किया।


🚩वामपंथी गुटों का तर्क


वामपंथी गुटों का कहना है कि साबरमति रिपोर्ट फिल्म गोधरा कांड को लेकर एकपक्षीय दृष्टिकोण प्रस्तुत करती है और सांप्रदायिक विभाजन को बढ़ावा देती है। वे इसे छात्रों के बीच नफरत फैलाने का प्रयास मानते हैं।


🚩ABVP की प्रतिक्रिया


ABVP ने इस घटना की कड़ी निंदा की और इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला बताया। उनका कहना है कि साबरमति रिपोर्ट एक तथ्यात्मक फिल्म है, जो गोधरा कांड और उससे जुड़े सच को जनता के सामने लाने का प्रयास करती है। ABVP ने यह भी कहा कि वामपंथी विचारधारा हमेशा से असहमति की आवाज को दबाने की कोशिश करती रही है।


🚩क्या कहता है संविधान?


भारत के संविधान के तहत हर नागरिक को अपने विचार रखने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार है। लेकिन JNU में बार-बार ऐसी घटनाएं होती रही हैं, जहां एक पक्ष अपने विरोध को हिंसा और तोड़फोड़ के रूप में प्रकट करता है।


🚩JNU और वामपंथ का इतिहास


JNU वामपंथी विचारधारा का गढ़ माना जाता है। लेकिन हाल के वर्षों में इस विचारधारा के चलते कई बार असहमति के स्वर को दबाने के प्रयास किए गए हैं। चाहे वह किसी राष्ट्रवादी मुद्दे पर कार्यक्रम हो या किसी विचारधारा से असहमति जताने का मामला, विरोध हमेशा हिंसक रूप लेता रहा है।


🚩हमारी संस्कृति और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता


भारत का लोकतंत्र विविध विचारों और बहसों पर टिका हुआ है। साबरमति रिपोर्ट जैसी फिल्में समाज को सच के कई पहलुओं से अवगत कराने का माध्यम हैं। यदि हर विचारधारा को बराबर का मंच नहीं दिया जाएगा, तो यह न केवल लोकतंत्र के मूल्यों का अपमान होगा, बल्कि समाज के विकास में भी बाधा बनेगा।


🚩निष्कर्ष


JNU में हुई यह घटना विचारों की स्वतंत्रता पर सीधा प्रहार है। एक विश्वविद्यालय को बहस और संवाद का केंद्र होना चाहिए, न कि हिंसा और विरोध का। ऐसे में यह जरूरी है कि हर पक्ष को अपनी बात कहने का समान अवसर दिया जाए। वामपंथी गुटों को यह समझना चाहिए कि असहमति का मतलब हिंसा नहीं है, बल्कि स्वस्थ संवाद है।


सवाल यह है कि क्या JNU में इस तरह की घटनाएं अभिव्यक्ति की आज़ादी को कुचलने का नया तरीका बन रही हैं?


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Monday, December 16, 2024

पीपल: धरती पर ईश्वर का अनमोल वरदान

 16 December 2024

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🚩पीपल: धरती पर ईश्वर का अनमोल वरदान


🚩पीपल का वृक्ष भारतीय संस्कृति और पर्यावरण के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसे धरती पर ईश्वर का वरदान माना गया है। न केवल धार्मिक दृष्टि से बल्कि वैज्ञानिक आधार पर भी यह वृक्ष अद्वितीय है।


🚩पीपल का पर्यावरणीय महत्व


पीपल का पेड़ 100% कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करता है, जबकि बरगद 80% और नीम 75% तक इस प्रक्रिया में योगदान करते हैं।


🚩आज की समस्या –


पिछले 68 वर्षों में पीपल, बरगद, और नीम जैसे जीवनदायी पेड़ों का रोपण सरकारी स्तर पर लगभग बंद हो गया है। इसके स्थान पर विदेशी यूकेलिप्टस और अन्य सजावटी पेड़ों को प्राथमिकता दी जा रही है।


🚩यूकेलिप्टस: पर्यावरण के लिए खतरा


यूकेलिप्टस की जड़ें जमीन का सारा पानी सोख लेती हैं, जिससे भूमि जल-विहीन हो जाती है। वहीं, सजावटी पेड़ जैसे गुलमोहर पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखने में कोई योगदान नहीं देते।


🚩गर्मी और प्रदूषण के खतरे


वायुमंडल में जब पीपल जैसे रिफ्रेशर पेड़ नहीं होंगे, तो गर्मी बढ़ना स्वाभाविक है। गर्मी बढ़ने से पानी का वाष्पीकरण तेजी से होगा, जिससे जल संकट भी गहराएगा।


🚩पीपल का अद्वितीय गुण


पीपल के पत्तों का फलक बड़ा और डंठल पतला होता है। यही कारण है कि हल्की हवा में भी इसके पत्ते हिलते रहते हैं और शुद्ध ऑक्सीजन प्रदान करते हैं। इसे वृक्षों का राजा भी कहा जाता है।


🚩धार्मिक महत्व


शास्त्रों में भी पीपल की महिमा का वर्णन किया गया है:


मूलम् ब्रह्मा, त्वचा विष्णु, सखा शंकरमेवच।

पत्रे-पत्रे का सर्वदेवानाम, वृक्षराज नमस्तुते।।


🚩अब क्या करें?


1. हर 500 मीटर पर एक पीपल का पेड़ लगाएं।


2. जीवनदायी वृक्षों के प्रति समाज को जागरूक करें।


3. बगीचों और खेतों में फालतू सजावटी पेड़ों की जगह पीपल, बरगद, और नीम जैसे पेड़ों को प्राथमिकता दें।


🚩 बरगद एक लगाइए, पीपल रोपें पाँच।

घर-घर नीम लगाइए, यही पुरातन साँच।


🚩यही पुरातन साँच, आज सब मान रहे हैं।

भाग जाय प्रदूषण सभी अब जान रहे हैं।


🚩विश्वताप मिट जाए, होय हर जन मन गदगद।

धरती पर त्रिदेव हैं, नीम, पीपल और बरगद।


🚩निष्कर्ष


पीपल, बरगद, और नीम जैसे वृक्ष केवल पर्यावरण को स्वच्छ और संतुलित ही नहीं करते, बल्कि यह हमारी सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहर भी हैं। विदेशी और सजावटी पेड़ों के प्रति आकर्षित होकर हमने इन जीवनदायी वृक्षों को अनदेखा कर दिया है।

अब समय आ गया है कि हम इनके महत्व को पहचानें और इनका संरक्षण करें। अगर हर व्यक्ति अपने आसपास ऐसे पेड़ों को लगाने का संकल्प ले, तो आने वाला भारत प्रदूषण मुक्त और पर्यावरण के प्रति जागरूक होगा।

आइए, मिलकर प्रयास करें और प्रकृति को उसका खोया हुआ सम्मान वापस दिलाएं।


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