Tuesday, March 4, 2025

1954 कुंभ मेला भगदड़: एक ऐतिहासिक त्रासदी

 04 March 2025

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🚩1954 कुंभ मेला भगदड़: एक ऐतिहासिक त्रासदी


🚩1954 का कुंभ मेला भारतीय इतिहास की सबसे भयावह भगदड़ों में से एक के रूप में दर्ज है। 3 फरवरी, 1954 को प्रयागराज (तत्कालीन इलाहाबाद) में मौनी अमावस्या के अवसर पर लाखों श्रद्धालु संगम में स्नान के लिए एकत्र हुए थे। लेकिन अफवाहों और भीड़ नियंत्रण की विफलता के कारण मची भगदड़ में सैकड़ों श्रद्धालुओं की जान चली गई।


🚩कैसे हुआ हादसा?


प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, शाही स्नान के दौरान यह अफवाह फैली कि तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का हेलीकॉप्टर मेला क्षेत्र में उतरने वाला है। इस खबर से भीड़ में हलचल मच गई, और श्रद्धालु प्रधानमंत्री की एक झलक पाने के लिए भागने लगे। इसी बीच नागा साधुओं की टोलियों और श्रद्धालुओं के बीच धक्का-मुक्की शुरू हो गई। कहा जाता है कि कुछ नागा साधुओं ने गुस्से में आकर चिमटे भी चला दिए, जिससे स्थिति और भयावह हो गई।


🚩45 मिनट तक चला मौत का तांडव:

 भगदड़ लगभग 45 मिनट तक जारी रही। हजारों लोग एक-दूसरे पर गिर पड़े, और सैकड़ों श्रद्धालु कुचलकर या दम घुटने से मर गए। विभिन्न स्रोतों के अनुसार मरने वालों की संख्या अलग-अलग बताई गई। द गार्जियन  के अनुसार 800 से अधिक लोग मारे गए, जबकि द टाइम्स ने इस संख्या को 350 बताया।


🚩क्या थी प्रशासन की चूक?


👉🏻अत्यधिक भीड़ और सीमित स्थान:

 1954 का कुंभ मेला स्वतंत्रता के बाद का पहला कुंभ था, जिससे देशभर से 50 लाख से अधिक श्रद्धालु प्रयागराज पहुंचे थे। लेकिन प्रशासन ने इतनी बड़ी संख्या में लोगों के लिए पर्याप्त व्यवस्था नहीं की थी।


👉🏻नेताओं की उपस्थिति:

 नेहरू सहित कई बड़े नेता मेले में आए थे, जिससे सुरक्षा घेरे और अधिक कड़े हो गए, और आम श्रद्धालुओं की आवाजाही सीमित हो गई।

👉🏻अफवाहों पर नियंत्रण नहीं:

 किसी भी आपात स्थिति में अफवाहें बहुत घातक साबित हो सकती हैं, लेकिन प्रशासन ने इन्हें रोकने के लिए समय रहते कोई कदम नहीं उठाया।


🚩नेहरू की प्रतिक्रिया


प्रधानमंत्री नेहरू स्वयं इस मेले में उपस्थित थे और हादसे के बाद उन्होंने वीआईपी लोगों से अपील की कि वे स्नान पर्वों के दौरान कुंभ मेले में न आएं, ताकि आम जनता को परेशानी न हो। हालाँकि, इस त्रासदी ने यह भी दिखाया कि कुंभ जैसे भव्य आयोजनों में भीड़ प्रबंधन कितना महत्वपूर्ण होता है।


🚩क्या कुंभ केवल धार्मिक आयोजन था या राजनीतिक इवेंट?


कुछ लोग यह तर्क देते हैं कि 1954 में कुंभ मेले का राजनीतिकरण किया गया था। स्वतंत्रता के बाद यह पहला कुंभ मेला था, और इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रचारित किया गया। कई विदेशी लेखकों ने इस पर लेख लिखे और इसे एक महत्वपूर्ण अवसर के रूप में प्रस्तुत किया गया। दूरदर्शन (जो उस समय सरकारी मीडिया था) पर इस आयोजन को व्यापक रूप से दिखाया गया।


🚩अन्य कुंभ मेलों में भगदड़ की घटनाएँ


1954 की घटना पहली नहीं थी, जब कुंभ मेले में भगदड़ मची थी। इससे पहले 1840 और 1906 में भी इसी तरह की घटनाएँ हुई थीं। इसके बाद भी कई कुंभ मेलों में भगदड़ के कारण जान-माल की हानि हुई:


👉🏻1992 उज्जैन कुंभ:सिंहस्थ कुंभ में भगदड़ के दौरान 50 से अधिक श्रद्धालु मारे गए।


👉🏻2003 नासिक कुंभ: 27 अगस्त को हुई भगदड़ में 39 लोगों की जान गई।


👉🏻2010 हरिद्वार कुंभ:14 अप्रैल को मची भगदड़ में 7 श्रद्धालुओं की मौत हुई।


👉🏻2013 प्रयागराज कुंभ: 10 फरवरी को मौनी अमावस्या के दिन प्रयागराज रेलवे स्टेशन पर भगदड़ में 36 लोग मारे गए।


🚩1954 के कुंभ की भगदड़ का सांस्कृतिक प्रभाव


इस त्रासदी ने साहित्य और सिनेमा को भी प्रभावित किया। प्रसिद्ध उपन्यासकार विक्रम सेठ ने अपने उपन्यास ए सूटेबल बॉय  में 1954 की भगदड़ का जिक्र किया है, जिसमें इसे ‘पुल मेला’ कहा गया है। इसके अलावा, समरेश बसु और अमृता कुंभेर संधाने द्वारा लिखे गए उपन्यासों में भी इस घटना का उल्लेख है।


🚩निष्कर्ष


1954 के कुंभ की भगदड़ इतिहास की सबसे भयानक त्रासदियों में से एक थी, जिसने भीड़ नियंत्रण की महत्ता को उजागर किया। यह घटना प्रशासनिक विफलता, अफवाहों और अव्यवस्थित भीड़ प्रबंधन का एक उदाहरण थी। आज जब कुंभ को एक भव्य आयोजन के रूप में प्रस्तुत किया जाता है, तो यह याद रखना जरूरी है कि सही प्रबंधन और सुरक्षा के बिना कोई भी बड़ा आयोजन भयावह रूप ले सकता है।


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Monday, March 3, 2025

राम नाम सत्य है: एक ऐतिहासिक और आध्यात्मिक प्रसंग

 03 March 2025

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🚩राम नाम सत्य है: एक ऐतिहासिक और आध्यात्मिक प्रसंग


🚩सनातन संस्कृति में "राम नाम सत्य है" का विशेष महत्व है। यह वाक्य आमतौर पर अंतिम यात्रा में सुना जाता है, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि यह परंपरा कब और कैसे शुरू हुई? इसके पीछे एक अत्यंत प्रेरणादायक और चमत्कारिक कथा है, जो संत तुलसीदासजी से जुड़ी हुई है।


🚩तुलसीदास जी और राम भक्ति


संत गोस्वामी तुलसीदास जी भगवान श्रीराम के अनन्य भक्त थे। वे अपने गांव में राम भक्ति में लीन रहते थे, लेकिन उनके परिवार और गांववालों ने उन्हें ढोंगी कहकर घर से निकाल दिया। इसके बाद तुलसीदास जी गंगा जी के घाट पर रहने लगे और वहीं प्रभु की भक्ति और रामचरितमानस की रचना में लीन हो गए।


🚩शादी, मृत्यु और चमत्कार


इसी दौरान, तुलसीदास जी के गांव में एक युवक की शादी हुई। वह अपनी नवविवाहित पत्नी को लेकर घर आया, लेकिन दुर्भाग्यवश रात में ही उसकी मृत्यु हो गई। घरवाले शोक में डूब गए और सुबह उसकी अर्थी को श्मशान घाट ले जाने लगे। नवविवाहिता पत्नी ने सती होने का निर्णय लिया और अर्थी के पीछे-पीछे चल पड़ी।


रास्ते में उनकी मुलाकात तुलसीदास जी से हुई। जब उस नवविवाहिता की नजर तुलसीदास जी पर पड़ी, तो उसने प्रणाम करने का निश्चय किया। वह नहीं जानती थी कि ये तुलसीदास हैं। जैसे ही उसने उनके चरण छुए, तुलसीदास जी ने उसे "अखंड सौभाग्यवती भव" का आशीर्वाद दे दिया।


यह सुनकर वहां उपस्थित लोग हंसने लगे और बोले, "तुलसीदास, तुम तो मूर्ख हो। इसका पति मर चुका है, फिर यह अखंड सौभाग्यवती कैसे हो सकती है?" लोगों ने उनका उपहास किया और कहा, "तू भी झूठा और तेरा राम भी झूठा!"


🚩राम नाम की महिमा


तुलसीदास जी ने कहा, "मैं झूठा हो सकता हूँ, लेकिन मेरे राम कभी झूठे नहीं हो सकते।" लोगों ने चुनौती दी कि यदि राम का नाम सत्य है तो इसका प्रमाण दो।


तुलसीदास जी ने अर्थी को रुकवाया और मृतक युवक के कान में धीरे से कहा, "राम नाम सत्य है!" यह सुनते ही युवक का शरीर हिलने लगा।


फिर दूसरी बार उन्होंने उसके कान में कहा, "राम नाम सत्य है!" इस बार युवक को चेतना आने लगी।


तीसरी बार उन्होंने दोहराया, "राम नाम सत्य है!" और चमत्कार हुआ! युवक ने अपनी आँखें खोल दीं और अर्थी से उठकर बैठ गया।


🚩परंपरा की शुरुआत


यह देखकर सभी लोगों को अत्यंत आश्चर्य हुआ। वे तुलसीदास जी के चरणों में गिरकर क्षमा मांगने लगे। तब तुलसीदास जी बोले, "यदि आप लोग इस रास्ते से नहीं आते, तो मेरे राम के नाम की सत्यता का प्रमाण कैसे मिलता? यह सब श्रीराम की ही लीला थी।"


इसी घटना के बाद से यह प्रथा शुरू हुई कि किसी मृत व्यक्ति की अंतिम यात्रा में "राम नाम सत्य है" बोला जाता है।


🚩राम नाम की शक्ति


यह कथा हमें यह सिखाती है कि भगवान का नाम मात्र लेने से असंभव भी संभव हो सकता है। यदि सच्चे मन से राम का नाम लिया जाए, तो जीवन में कोई भी बाधा बड़ी नहीं रहती। तुलसीदास जी के इस चमत्कार ने यह सिद्ध कर दिया कि राम नाम सत्य ही नहीं, बल्कि परम शक्ति का स्रोत भी है।


🚩 जय श्रीराम! 🚩


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Sunday, March 2, 2025

सुमेरियन सभ्यता का रहस्य: क्या प्राचीन मानवता हमारी सोच से अधिक उन्नत थी?

 02 March 2025

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🚩सुमेरियन सभ्यता का रहस्य: क्या प्राचीन मानवता हमारी सोच से अधिक उन्नत थी?



🚩यहां एक रोचक और रहस्यमयी ब्लॉग प्रस्तुत है, जिसमें सुमेरियन सभ्यता और उनके खगोल विज्ञान के गहन ज्ञान पर चर्चा की गई है।  

🚩क्या सुमेरियन सभ्यता वास्तव में हमारी सोच से अधिक उन्नत थी?


जब हम प्राचीन सभ्यताओं की बात करते हैं, तो अक्सर यही माना जाता है कि वे तकनीकी रूप से पिछड़ी थीं और उनका ज्ञान सीमित था। लेकिन 6,000 साल से भी अधिक पुरानी सुमेरियन सभ्यता को देखने पर यह धारणा बदल जाती है। यह सभ्यता न केवल लेखन, गणित और चिकित्सा में उन्नत थी, बल्कि उनके पास खगोल विज्ञान का ऐसा ज्ञान था, जिसे देखकर आधुनिक वैज्ञानिक भी हैरान रह जाते हैं।  


🚩सौर मंडल का विस्तृत नक्शा

सुमेरियों ने मिट्टी की गोलियों (Clay Tablets) पर खगोलीय चित्र बनाए थे, जिनमें यह स्पष्ट दिखाया गया कि सूर्य हमारे सौर मंडल के केंद्र में स्थित है और अन्य ग्रह उसकी परिक्रमा करते हैं। यह वही तथ्य है जिसे आधुनिक खगोल विज्ञान ने मात्र कुछ सदियों पहले पूरी तरह से समझा। उनके बनाए गए चित्रों में न केवल ज्ञात ग्रह थे, बल्कि कुछ ऐसे ग्रहों का भी उल्लेख था जिनके बारे में आधुनिक खगोलशास्त्रियों को बाद में जानकारी मिली।  


🚩क्या प्राचीन सुमेरियन देवता वास्तव में उच्च बुद्धिमान प्राणी थे? 

सुमेरियन सभ्यता में कई विशालकाय संस्थाओं के चित्र भी पाए गए हैं, जिन्हें उन्होंने "देवता" कहा। इन चित्रों को ध्यान से देखने पर पता चलता है कि उनमें कुछ ऐसे प्रतीक भी हैं, जो आधुनिक विज्ञान में डीएनए अनुक्रम (DNA Sequences) से मिलते-जुलते हैं। क्या यह संभव है कि सुमेरियों के पास आनुवंशिकी और जैव प्रौद्योगिकी का कुछ रहस्यमयी ज्ञान था?  


🚩चिकित्सा विज्ञान और रहस्यमयी प्रतीक

सुमेरियन सभ्यता के चिकित्सा से जुड़े चित्रों में कुछ ऐसे प्रतीक पाए गए हैं, जो आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के प्रतीकों से मेल खाते हैं। यह हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि क्या वे चिकित्सा के ऐसे सिद्धांतों को जानते थे, जिन्हें आज हम पुनः खोज रहे हैं?  


🚩प्राचीन ज्ञान या खोई हुई उच्च तकनीक?

यह प्रश्न स्वाभाविक रूप से उठता है कि इतने हज़ारों वर्ष पहले सुमेरियन सभ्यता को यह सब ज्ञान कहां से मिला? क्या वे खगोलीय गणनाओं में इतने पारंगत थे कि बिना आधुनिक तकनीक के सौर मंडल की सटीक जानकारी प्राप्त कर सके? या फिर यह ज्ञान उन्हें कहीं और से प्राप्त हुआ था?  


🚩संस्कृत ग्रंथों में भी है रहस्यमयी ज्ञान का उल्लेख!

सनातन संस्कृति के ग्रंथों में भी ऐसे ज्ञान का उल्लेख मिलता है, जो आधुनिक विज्ञान को चुनौती देता है। ऋग्वेद, महाभारत और पुराणों में ऐसे कई संदर्भ हैं जो बताते हैं कि हमारे पूर्वज खगोल विज्ञान, चिकित्सा और धातु विज्ञान में अत्यधिक विकसित थे।


 उदाहरण के लिए

👉🏻वेदों में वर्णित खगोल विज्ञान

भारतीय ऋषियों ने हज़ारों वर्ष पहले ही ग्रहों की गति और उनकी कक्षाओं की जानकारी दी थी।  

👉🏻समुद्र मंथन की कथा में अमृत और डीएनए

समुद्र मंथन में निकले अमृत को आधुनिक वैज्ञानिक डीएनए अनुवांशिक विज्ञान से जोड़कर देखते हैं।

👉🏻ऋषि सुश्रुत और चिकित्सा विज्ञान

 आयुर्वेद के जनक ऋषि सुश्रुत प्राचीनकाल में शल्य चिकित्सा (सर्जरी) करते थे, जो आधुनिक विज्ञान के लिए एक रहस्य है।  


🚩क्या यह सभ्यता हमसे आगे थी?

इतिहासकारों और वैज्ञानिकों के लिए यह एक बड़ा रहस्य बना हुआ है कि हजारों वर्ष पहले सुमेरियनों को सौर मंडल, चिकित्सा और डीएनए जैसे जटिल विषयों की जानकारी कैसे थी। क्या वे किसी उन्नत सभ्यता के संपर्क में थे, या फिर हम इतिहास की कोई महत्वपूर्ण कड़ी को खो चुके हैं?  

संभव है कि प्राचीन सभ्यताओं में वह ज्ञान था, जिसे हम आधुनिक विज्ञान के माध्यम से फिर से खोजने की कोशिश कर रहे हैं।  

तो क्या प्राचीन सभ्यताएँ पिछड़ी हुई थीं, या फिर हम उनकी वास्तविक महानता को समझने में असमर्थ हैं?

🚩आपके विचार क्या हैं?

क्या आपको लगता है कि सुमेरियन सभ्यता का ज्ञान किसी दिव्य शक्ति से प्राप्त हुआ था? या फिर वे स्वयं इतने विकसित थे कि उनका ज्ञान हमारी वर्तमान सभ्यता से भी आगे था? अपने विचार हमें कमेंट में बताएं!


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Saturday, March 1, 2025

महाकुंभ में तैनात पुलिसकर्मियों को मिलेगा एक हफ्ते का अवकाश, मेडल और प्रशस्तिपत्र से होंगे सम्मानित!

 01 March 2025

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🚩महाकुंभ में तैनात पुलिसकर्मियों को मिलेगा एक हफ्ते का अवकाश, मेडल और प्रशस्तिपत्र से होंगे सम्मानित!


🚩महाकुंभ जैसे भव्य आयोजन में सुरक्षा व्यवस्था की जिम्मेदारी निभाने वाले पुलिसकर्मियों के लिए एक बड़ी खुशखबरी आई है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने महाकुंभ में तैनात पुलिसकर्मियों की प्रशंसा करते हुए उनके लिए एक सप्ताह के अवकाश की घोषणा की है। साथ ही, इन कर्मठ पुलिसकर्मियों को विशेष रूप से 'कुंभ मेडल' और प्रशस्तिपत्र से सम्मानित किया जाएगा।


🚩सीएम योगी की घोषणा: पुलिसकर्मियों का सम्मान


हर बार की तरह, इस बार भी महाकुंभ में करोड़ों श्रद्धालु स्नान और धार्मिक अनुष्ठान करने आते हैं। ऐसे में इस विशाल जनसमूह की सुरक्षा व्यवस्था को बनाए रखना पुलिस बल के लिए एक चुनौतीपूर्ण कार्य होता है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पुलिसकर्मियों की मेहनत को देखते हुए विशेष घोषणा की।


उन्होंने कहा, "महाकुंभ में तैनात पुलिसकर्मियों ने अनुशासन और समर्पण के साथ अपनी ड्यूटी निभाई है। उनके परिश्रम और त्याग को सम्मान देने के लिए उन्हें कुंभ मेडल और प्रशस्तिपत्र प्रदान किया जाएगा। साथ ही, उनके परिवार के साथ समय बिताने के लिए उन्हें एक सप्ताह की विशेष छुट्टी भी दी जाएगी।"


🚩अधिकारियों को मिलेगा 10 हजार रुपये का बोनस


सीएम योगी ने महाकुंभ में तैनात पुलिस अधिकारियों को प्रोत्साहन राशि के रूप में 10,000 रुपये के बोनस की भी घोषणा की है। यह बोनस उन पुलिस अधिकारियों को दिया जाएगा जो महाकुंभ के दौरान दिन-रात ड्यूटी पर तैनात रहे और सुरक्षा प्रबंधन को प्रभावी रूप से संचालित किया।


🚩महाकुंभ में पुलिसकर्मियों की महत्वपूर्ण भूमिका


महाकुंभ में लाखों-करोड़ों श्रद्धालुओं की भीड़ होती है, जिससे यातायात, सुरक्षा और कानून व्यवस्था को बनाए रखना पुलिस के लिए एक बड़ी जिम्मेदारी होती है। पुलिस प्रशासन को न केवल भीड़ नियंत्रण करना पड़ता है, बल्कि किसी भी आपातकालीन स्थिति से निपटने के लिए सतर्क रहना होता है।


🚩महाकुंभ में पुलिस बल की मुख्य जिम्मेदारियाँ होती हैं


👉🏻भीड़ नियंत्रण:


 भारी संख्या में श्रद्धालु एकत्र होते हैं, जिनकी सुरक्षा और मार्गदर्शन पुलिस की प्राथमिक जिम्मेदारी होती है।


👉🏻सुरक्षा निगरानी:


 किसी भी संदिग्ध गतिविधि को रोकने के लिए सख्त निगरानी की जाती है।


👉🏻यातायात प्रबंधन:

 

कुंभ क्षेत्र में ट्रैफिक व्यवस्था को सुचारू बनाए रखना।


👉🏻आपातकालीन सहायता:


 किसी भी दुर्घटना या आपात स्थिति में त्वरित सहायता उपलब्ध कराना।


🚩पुलिसकर्मियों के लिए यह सम्मान क्यों महत्वपूर्ण है?


महाकुंभ जैसे विशाल आयोजन के दौरान पुलिसकर्मी अत्यधिक कठिन परिस्थितियों में काम करते हैं। लगातार ड्यूटी, भीड़भाड़, विपरीत मौसम परिस्थितियाँ और अत्यधिक दबाव के बावजूद वे अपनी जिम्मेदारियों को पूरी निष्ठा के साथ निभाते हैं। इस सम्मान से उन्हें न केवल मनोबल मिलेगा बल्कि उनके समर्पण को भी एक आधिकारिक मान्यता प्राप्त होगी।


🚩समाज और सरकार की पहल


महाकुंभ में तैनात पुलिसकर्मियों के लिए यह निर्णय दर्शाता है कि सरकार उनके योगदान को पहचानती और सराहती है। यह पहल न केवल पुलिस बल को उत्साहित करेगी बल्कि भविष्य में बेहतर सेवा देने के लिए प्रेरित भी करेगी। समाज को भी यह समझना चाहिए कि पुलिसकर्मियों का त्याग हमारे सुगम और सुरक्षित आयोजन के लिए कितना महत्वपूर्ण होता है।


🚩निष्कर्ष


महाकुंभ में पुलिस बल की भूमिका अतुलनीय होती है, और इसीलिए उनके प्रयासों को पहचानना आवश्यक है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा घोषित एक सप्ताह की छुट्टी, कुंभ मेडल, प्रशस्तिपत्र और 10,000 रुपये का बोनस पुलिसकर्मियों के समर्पण को सम्मानित करने का एक सराहनीय कदम है। यह न केवल पुलिस बल को प्रेरित करेगा बल्कि आने वाले आयोजनों में भी सुरक्षा व्यवस्था को और अधिक सशक्त बनाने में सहायक सिद्ध होगा।


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Friday, February 28, 2025

भारत बना विश्व का सबसे बड़ा तीर्थ स्थल! अयोध्या, मथुरा और महाकुंभ ने तोड़े सारे रिकॉर्ड!

28 February 2025

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🚩 भारत बना विश्व का सबसे बड़ा तीर्थ स्थल!

अयोध्या, मथुरा और महाकुंभ ने तोड़े सारे रिकॉर्ड!


🚩कुछ साल पहले तक एक सवाल अक्सर उठता था—  

"मंदिर बनाने से क्या मिलेगा?"

लेकिन आज जब अयोध्या, मथुरा, वृंदावन और महाकुंभ प्रयागराज श्रद्धालुओं से भरे पड़े हैं, जब करोड़ों लोग इन पावन स्थलों पर आकर अपनी श्रद्धा व्यक्त कर रहे हैं, तब यह सवाल पूछने वाले कहीं दिखाई नहीं दे रहे ।


🚩भारत की धार्मिक और आध्यात्मिक विरासत ने आज पूरे विश्व को चौंका दिया है। सऊदी अरब, वेटिकन सिटी और अजमेर शरीफ जैसे प्रसिद्ध तीर्थों को भी पीछे छोड़कर भारत के तीर्थ स्थलों पर श्रद्धालुओं की संख्या ने सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं! आइए, 2024-25 के आंकड़ों पर एक नजर डालते हैं—  


🚩 दुनिया के प्रसिद्ध तीर्थ स्थलों पर श्रद्धालुओं की संख्या


👉🏻मक्का सऊदी अरब – 1 करोड़ 40 लाख

👉🏻अजमेर शरीफ दरगाह भारत – 73 लाख

👉🏻वेटिकन सिटी (ईसाई धर्म का केंद्र, रोम  – 80 लाख

👉🏻मथुरा-वृंदावन भगवान श्रीकृष्ण की भूमि, भारत  – 8.5 करोड़

👉🏻अयोध्या (भगवान श्रीराम जन्मभूमि, भारत  – 16 करोड़


👉🏻महाकुंभ प्रयागराज (भारत) – 60 करोड़+  


🚩 सोचिए! जिस जगह को एक समय मंदिर विरोधियों ने बेकार समझा था, वही आज पूरी दुनिया के लिए एक अद्भुत आध्यात्मिक केंद्र बन चुका है!


🚩 1. अयोध्या – 16 करोड़ श्रद्धालुओं का आस्था संगम!


🔸श्रीराम लला के दर्शन के लिए उमड़ी श्रद्धालुओं की ऐतिहासिक भीड़!


भगवान श्रीराम का भव्य मंदिर बनने के बाद अयोध्या धाम पूरी तरह बदल चुका है।  अब यहां ना सिर्फ़ भारत से, बल्कि विदेशों से भी लोग भारी संख्या में आ रहे हैं।  


🔸16 करोड़ से अधिक श्रद्धालु अयोध्या पहुंचे।  

🔸 2024 में श्रीराम जन्मभूमि मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह के बाद यहां की धार्मिक ऊर्जा कई गुना बढ़ गई।  

🔸पर्यटन, व्यवसाय और रोजगार में भारी उछाल!


🚩 "मंदिर बनने से क्या मिलेगा?"कहने वालों को अब कोई जवाब नहीं देना पड़ रहा, क्योंकि हर श्रद्धालु का आशीर्वाद खुद ही सब कुछ कह रहा है!


🚩 2. मथुरा-वृंदावन – श्रीकृष्ण की भक्ति में डूबे 8.5 करोड़ श्रद्धालु!


🔸भगवान श्रीकृष्ण की जन्मभूमि  मथुरा और वृंदावन आज केवल एक तीर्थ स्थल नहीं, बल्कि  भक्ति और प्रेम का महासागर बन चुका है।  

🔸 8.5 करोड़ श्रद्धालु मथुरा-वृंदावन पहुंचे।  

🔸बांके बिहारी मंदिर, प्रेम मंदिर, इस्कॉन मंदिर और निधिवन में श्रद्धालुओं का तांता लगा रहा।  

🔸 गिरिराज गोवर्धन परिक्रमा  में शामिल होने वालों की संख्या लाखों में पहुंच गई।  

🔸 "राधे-राधे" की गूंज और वृंदावन की गलियों में भक्ति की लहरें हर दिल को मंत्रमुग्ध कर रही हैं।  


🚩 3. महाकुंभ प्रयागराज – 60 करोड़ से भी अधिक श्रद्धालु, एक विश्व रिकॉर्ड!


🚩 144 साल बाद आया यह भव्य, दिव्य महाकुंभ पूरी दुनिया में चर्चा का विषय बन गया!


👉🏻क्या आपने कभी सोचा था कि एक ही स्थान पर इतने लोग एक साथ स्नान कर सकते हैं? लेकिन महाकुंभ में यह सच हो गया!  


✅ 60 करोड से भी अधिक श्रद्धालु संगम स्नान के लिए आए।  

✅ यह संख्या अमेरिका की कुल आबादी से भी दोगुनी!

✅ मेले में 4,000 हेक्टेयर क्षेत्र था, जो कि दुनिया के सबसे बड़े स्टेडियम से 160 गुना बड़ा!

✅ 50 हजार सुरक्षाकर्मी और 2700 सीसीटीवी कैमरों की मदद से पूरे आयोजन की निगरानी की गई।  

✅ 4 लाख टेंट और 1.5 लाख टॉयलेट बनाए गए, जिससे यह दुनिया का सबसे बड़ा टेंट सिटी बन गया।  

✅ 6 लाख से अधिक लोगों को स्वास्थ्य सुविधाएं दी गईं।

✅ स्वच्छता का नया रिकॉर्ड! हर 25 मीटर पर एक डस्टबिन लगाया गया और 11 हजार सफाईकर्मियों ने पूरी व्यवस्था संभाली।


🌊 गंगा स्नान का पुण्य लाभ लेने के लिए आए करोड़ों श्रद्धालुओं ने इस आयोजन को स्वर्ण अक्षरों में लिखने लायक बना दिया!


🚩 क्या भारत आध्यात्मिक पर्यटन का केंद्र बन चुका है?


🔸 अयोध्या, मथुरा, वृंदावन और प्रयागराज में श्रद्धालुओं की ऐतिहासिक भीड़ यह साबित कर रही है कि भारत अब सिर्फ़ आध्यात्मिक रूप से नहीं, बल्कि पर्यटन और अर्थव्यवस्था में भी सबसे आगे बढ़ रहा है।

🔸 धार्मिक पर्यटन के कारण व्यापार, होटल, ट्रांसपोर्ट और अन्य सेक्टरों में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है।

🔸 सरकार ने इन स्थानों को आधुनिक सुविधाओं से लैस करने का शानदार प्रयास किया है।


🚩 निष्कर्ष: भारत – आस्था, श्रद्धा और संस्कृति की अनंत भूमि!


जो लोग कभी कहते थे कि मंदिर बनाने से कुछ नहीं मिलेगा, आज वे ही देख रहे हैं कि अयोध्या, मथुरा, वृंदावन और प्रयागराज में कितना कुछ मिल रहा है।


✅ यह सिर्फ़ एक मंदिर नहीं, भारत के गौरवशाली इतिहास और संस्कृति की पुनर्स्थापना है।

✅ यह दिखाता है कि भारत की आध्यात्मिक शक्ति अनंत है और यह पूरी दुनिया को अपनी ओर आकर्षित कर रही है।

✅ धर्म और अध्यात्म के माध्यम से भारत विश्वगुरु बनने की ओर अग्रसर है!


🚩 अब कोई सवाल नहीं, केवल एक ही उत्तर है 


🚩 अयोध्या में श्रीराम मंदिर बनकर भारत की आध्यात्मिक पहचान विश्व स्तर पर स्थापित हो गई है!"


🚩जय श्रीराम! जय श्रीकृष्ण! हर हर गंगे!


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Thursday, February 27, 2025

144 साल बाद आयोजित हुआ भव्य महाकुंभ: एक ऐतिहासिक और दिव्य आयोजन!

 27 February 2025

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🚩144 साल बाद आयोजित हुआ भव्य महाकुंभ: एक ऐतिहासिक और दिव्य आयोजन!


🚩27 फरवरी 2025 को  संपन्न हुआ महाकुंभ न केवल धार्मिक और आध्यात्मिक रूप से ऐतिहासिक रहा, बल्कि इसने कई विश्व-रिकॉर्ड भी बनाए। यह कुंभ मेला अपनी विशालता, दिव्यता और अतुलनीय व्यवस्थाओं के कारण पूरी दुनिया में चर्चा का विषय बना। 

144 वर्षों बाद आयोजित इस महाकुंभ ने भारत की संस्कृति, प्रशासनिक दक्षता और श्रद्धालुओं की आस्था का अद्भुत संगम प्रस्तुत किया।  


आइए जानते हैं, महाकुंभ 2025  से जुड़े उन 8 महारिकॉर्ड्स के बारे में, जिन्होंने इसे अब तक का सबसे भव्य आयोजन बना दिया।  


🚩 महारिकॉर्ड-1: श्रद्धालुओं की संख्या 


महाकुंभ में श्रद्धालुओं की अभूतपूर्व संख्या  ने नया इतिहास रच दिया।  


✅ 64 करोड़ से अधिक श्रद्धालु महाकुंभ में सम्मिलित हुए।  

✅ यह संख्या अमेरिका की कुल आबादी से लगभग दोगुनी  है।  

✅ इतनी विशाल संख्या में भक्तों का एकत्रित होना बताता है कि आस्था का यह महासंगम कितना महत्वपूर्ण और प्रभावशाली था।  


🚩महाकुंभ के प्रत्येक प्रमुख स्नान के दिन करोड़ों श्रद्धालु पवित्र संगम में स्नान के लिए उमड़े।


🚩 महारिकॉर्ड-2: विश्वस्तरीय इन्फ्रास्ट्रक्चर  


महाकुंभ का क्षेत्रफल इतना विशाल था कि यह दुनिया के सबसे बड़े स्टेडियमों से भी कई गुना बड़ा था।  


✅ 4,000 हेक्टेयर भूमि पर फैला महाकुंभ क्षेत्र।  

✅ यह दुनिया के सबसे बड़े स्टेडियम से 160 गुना बड़ा था।  

✅ महाकुंभ में नए पुलों, सड़कों, घाटों और अस्थायी टाउनशिप का निर्माण किया गया।  


🚩प्रशासन ने इस आयोजन को व्यवस्थित और सुविधाजनक बनाने के लिए व्यापक स्तर पर योजनाएं बनाई थीं, जो पूरी तरह सफल रहीं।


🚩 महारिकॉर्ड-3: कुंभ सिटी – दुनिया का सबसे बड़ा अस्थायी नगर


महाकुंभ में श्रद्धालुओं के लिए एक विशाल और सुव्यवस्थित अस्थायी शहर बसाया गया था, जिसे "कुंभ सिटी" कहा गया।  


✅  लाख से अधिक तंबू श्रद्धालुओं के लिए बनाए गए।  

✅ 1.5 लाख टॉयलेट्स की व्यवस्था की गई, जिससे स्वच्छता बनी रहे।  

✅ इस क्षेत्र में सड़कों, बिजली, पानी, अस्पताल, बाजार, पुलिस स्टेशन और अन्य आवश्यक सुविधाओं की व्यवस्था की गई।  


🚩यह विश्व का सबसे बड़ा अस्थायी नगर था, जिसे इतने कम समय में इतनी भव्यता से बसाया गया।  


🚩 महारिकॉर्ड-4: ट्रांसपोर्टेशन और यात्रा सुविधाएं


महाकुंभ के लिए परिवहन की विशालतम व्यवस्था की गई थी, जिससे देश-विदेश से आने वाले श्रद्धालुओं को सुविधा मिले।  


🚆 13,830 ट्रेनों के माध्यम से, 30.2 करोड़ यात्री पहुंचे।  

✈️ 2,800 से अधिक विशेष फ्लाइट्स प्रयागराज पहुंचीं।  

🛫 हवाई यात्रा के जरिए 4.5 लाख से अधिक श्रद्धालु कुंभ में पहुंचे।  

🚌 सड़क मार्ग पर लाखों वाहनों ने श्रद्धालुओं को कुंभ स्थल तक पहुंचाया।  


🚩इतनी बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं का सुरक्षित आवागमन सुनिश्चित करना एक चुनौती थी, जिसे प्रशासन ने शानदार तरीके से पूरा किया।


🚩 महारिकॉर्ड-5: सुरक्षा व्यवस्था


इतनी विशाल भीड़ को नियंत्रित करने के लिए अभूतपूर्व सुरक्षा इंतजाम किए गए।  


✅ 50,000 से अधिक सुरक्षाकर्मी तैनात किए गए।  

✅ 2,700 सीसीटीवी कैमरों के जरिए मेले की निगरानी की गई।  

✅ ड्रोन कैमरों और कंट्रोल रूम्स के माध्यम से सुरक्षा को चाक-चौबंद रखा गया।  


🚩यह अब तक के किसी भी धार्मिक आयोजन की सबसे बड़ी और आधुनिक सुरक्षा व्यवस्था थी।


🚩 महारिकॉर्ड-6: स्वास्थ्य सुविधाएं


महाकुंभ में स्वास्थ्य सेवाओं का विशेष ध्यान रखा गया, जिससे किसी भी प्रकार की आपातकालीन स्थिति को प्रभावी ढंग से संभाला जा सके।  


🏥 43 अस्थायी अस्पताल स्थापित किए गए।  

👨‍⚕️ 6 लाख से अधिक लोगों को नि:शुल्क चिकित्सा सहायता दी गई।  

🚑 एम्बुलेंस सेवाओं और मेडिकल कैंप्स को पूरे क्षेत्र में व्यवस्थित किया गया।  


🚩इतने बड़े पैमाने पर स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता से यह सुनिश्चित किया गया कि श्रद्धालु बिना किसी चिंता के धार्मिक अनुष्ठान कर सकें।


🚩 महारिकॉर्ड-7: स्वच्छता और सफाई अभियान


महाकुंभ को स्वच्छ और प्रदूषण मुक्त रखने के लिए विशाल स्वच्छता अभियान चलाया गया।  


✅ 4 लाख डस्टबिन पूरे क्षेत्र में लगाए गए।  

✅ 11,000 से अधिक सफाई कर्मियों ने पूरे मेले की सफाई की।  

✅ हर 25 मीटर पर एक डस्टबिन लगाया गया, जिससे कुंभ क्षेत्र स्वच्छ बना रहा।  


🚩स्वच्छ भारत अभियान को ध्यान में रखते हुए इस महाकुंभ को ‘सबसे स्वच्छ कुंभ’ बनाने की दिशा में बड़ी पहल की गई।


🚩 महारिकॉर्ड-8: आर्थिक योगदान और व्यापार


महाकुंभ केवल धार्मिक और आध्यात्मिक आयोजन ही नहीं था, बल्कि इसने भारतीय अर्थव्यवस्था  को भी बड़ा प्रोत्साहन दिया।  


💰 मेले के दौरान 3 लाख करोड़ रुपये  से अधिक का आर्थिक लेन-देन हुआ।  

🛍️ व्यापारियों, दुकानदारों, होटल और टूरिज्म सेक्टर को बड़ा फायदा मिला।  

🏗️ इन्फ्रास्ट्रक्चर और ने परिवहन परियोजनाओं में निवेश ने क्षेत्रीय विकास को गति दी।  


🚩कुंभ मेला भारत की अर्थव्यवस्था में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, और इस बार इसका आर्थिक प्रभाव अभूतपूर्व रहा।


🚩 निष्कर्ष: अद्वितीय और ऐतिहासिक आयोजन


 144 साल बाद आयोजित यह महाकुंभ न केवल एक धार्मिक और आध्यात्मिक आयोजन था, बल्कि यह प्रशासनिक क्षमता, स्वच्छता, सुरक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं और भव्यता का भी अद्भुत उदाहरण बना।


✅ अविश्वसनीय श्रद्धालुओं की संख्या

✅ दुनिया का सबसे बड़ा अस्थायी नगर

✅ अत्याधुनिक इन्फ्रास्ट्रक्चर और सुविधाएं

✅ सुरक्षा, स्वच्छता और स्वास्थ्य सेवाओं का बेजोड़ संयोजन

✅ भारतीय अर्थव्यवस्था को बड़ा योगदान


🚩 हर हर गंगे!  🚩


यह महाकुंभ न केवल श्रद्धालुओं के लिए एक दिव्य और अद्वितीय अनुभव रहा, बल्कि यह आने वाली पीढ़ियों के लिए भी प्रेरणा स्रोत बनेगा।


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Tuesday, February 25, 2025

महाशिवरात्रि: एक दिव्य पर्व का महत्व और रहस्य

 25 February 2025

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🚩महाशिवरात्रि: एक दिव्य पर्व का महत्व और रहस्य


महाशिवरात्रि हिन्दू धर्म का एक अत्यंत पवित्र और महत्वपूर्ण पर्व है। यह शिव भक्तों के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि इस दिन भगवान शिव की उपासना, रात्रि जागरण, व्रत, और विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। महाशिवरात्रि का अर्थ होता है “शिव की महान रात्रि,” और यह फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मनाई जाती है।


🚩महाशिवरात्रि का पौराणिक महत्व


महाशिवरात्रि से जुड़ी कई पौराणिक कथाएँ प्रचलित हैं। इनमें से कुछ प्रमुख इस प्रकार हैं:


🔸 शिव-पार्वती विवाह कथा


एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार, महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था। माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की थी, जिसके फलस्वरूप इस दिन उनका विवाह सम्पन्न हुआ। इसलिए यह दिन शिव-पार्वती के दिव्य मिलन का प्रतीक भी माना जाता है।


 🔸समुद्र मंथन और हलाहल का पान


एक अन्य कथा के अनुसार, जब देवताओं और असुरों ने अमृत प्राप्त करने के लिए समुद्र मंथन किया, तब समुद्र से विष (हलाहल) निकला। इस विष से समस्त संसार के विनाश का संकट उत्पन्न हो गया। तब भगवान शिव ने उस विष को अपने कंठ में धारण कर लिया और उसे गले में रोक लिया, जिससे उनका कंठ नीलवर्ण हो गया और वे “नीलकंठ” कहलाए। यह घटना महाशिवरात्रि से जुड़ी हुई मानी जाती है और इस दिन शिवजी के इस त्याग और कल्याणकारी रूप की पूजा की जाती है।


🔸 लिंग रूप में शिव का प्राकट्य


स्कंद पुराण के अनुसार, एक बार ब्रह्मा और विष्णु में श्रेष्ठता को लेकर विवाद हुआ। तभी एक दिव्य ज्योतिर्लिंग प्रकट हुआ, जिसका न कोई आदि था, न अंत। ब्रह्मा और विष्णु ने इस ज्योतिर्लिंग के छोर को खोजने का प्रयास किया, लेकिन असफल रहे। तब भगवान शिव स्वयं प्रकट हुए और दोनों देवताओं को बताया कि वही सृष्टि के मूल कारण और परब्रह्म हैं। यह घटना भी महाशिवरात्रि से जुड़ी हुई है और इसी कारण इस दिन शिवलिंग की विशेष पूजा की जाती है।


🚩महाशिवरात्रि का आध्यात्मिक महत्व


महाशिवरात्रि केवल एक पर्व नहीं है, बल्कि यह एक विशेष आध्यात्मिक प्रक्रिया भी है। इस दिन ध्यान, साधना, और उपासना के माध्यम से भक्त भगवान शिव की कृपा प्राप्त कर सकते हैं। यह रात आत्मचिंतन और आत्मशुद्धि का पर्व मानी जाती है।


भगवान शिव को “महादेव” कहा जाता है, जिसका अर्थ है “देवों के देव”। वे संहारक होते हुए भी करुणामय हैं। उनका त्रिशूल तीन गुणों (सत्व, रज, तम) का प्रतीक है, डमरू ब्रह्माण्डीय ध्वनि का प्रतीक है, और गंगा उनकी जटाओं में विराजमान होकर ज्ञान एवं पवित्रता का प्रतीक मानी जाती है।


🚩महाशिवरात्रि का पूजन-विधान


महाशिवरात्रि पर भक्त पूरे दिन उपवास रखते हैं और भगवान शिव की आराधना करते हैं। इस दिन विशेष रूप से निम्नलिखित अनुष्ठान किए जाते हैं:


🔸व्रत एवं उपवास

भक्त इस दिन निर्जला या फलाहार व्रत रखते हैं।

कुछ लोग एक समय फलाहार करके व्रत का पालन करते हैं।

उपवास करने से मन और शरीर दोनों की शुद्धि होती है।


🔸रात्रि जागरण एवं शिव भजन

महाशिवरात्रि की रात्रि को चार प्रहरों में विभाजित किया जाता है।

हर प्रहर में शिवलिंग का विशेष अभिषेक किया जाता है।

शिव भजनों और मंत्रों का जाप किया जाता है।


🔸शिवलिंग अभिषेक


महाशिवरात्रि पर शिवलिंग का अभिषेक विभिन्न सामग्रियों से किया जाता है, जिनका अपना विशेष महत्व होता है:

गंगाजल – पवित्रता का प्रतीक

दूध – शांति और शीतलता

दही – समृद्धि

शहद – मधुरता

घी – आरोग्य

बेलपत्र – भगवान शिव को अति प्रिय

भांग-धतूरा – शिव की विशेष प्रसादी


🔸 ओम नमः शिवाय मंत्र का जाप

इस दिन ‘ॐ नमः शिवाय’ मंत्र का जप करना अत्यंत शुभ माना जाता है।

यह मंत्र भक्त को शिव तत्व के निकट ले जाता है और आत्मिक शांति प्रदान करता है।


🔸 कथा एवं हवन

कई स्थानों पर शिव पुराण की कथा सुनाई जाती है।

हवन कर भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने के लिए विशेष आहुतियाँ दी जाती हैं।


🚩महाशिवरात्रि का वैज्ञानिक और सामाजिक महत्व

🔸आध्यात्मिक उन्नति: महाशिवरात्रि पर ध्यान और जप करने से मानसिक शांति मिलती है।

🔸 स्वास्थ्य लाभ: इस दिन व्रत रखने से शरीर की शुद्धि होती है और पाचन तंत्र को आराम मिलता है।

🔸 सकारात्मक ऊर्जा: शिवलिंग का जलाभिषेक करने से वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।

🔸 पर्यावरण संरक्षण: इस दिन पीपल, बिल्व और अन्य औषधीय वृक्षों की पूजा की जाती है, जिससे वृक्षारोपण को बढ़ावा मिलता है।


🚩निष्कर्ष


महाशिवरात्रि केवल एक पर्व नहीं, बल्कि एक दिव्य अवसर है, जिसमें हम अपने जीवन में शिवतत्व को आत्मसात कर सकते हैं। यह हमें यह सिखाता है कि आत्म-चिंतन, त्याग, और भक्ति से जीवन में शांति और सफलता प्राप्त की जा सकती है। इस पावन दिन पर भगवान शिव की आराधना करके हम सभी अपने जीवन में सुख-शांति, समृद्धि और मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं।


हर हर महादेव!


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