Monday, April 27, 2020

सदियों पहले आद्य शंकराचार्य पर भी किये थे अनेक प्रहार जो आप नही जानते होंगे

27 अप्रैल 2020

🚩इस संसार में सज्जनों, सत्पुरुषों और संतों को जितना सहन करना पड़ता है उतना दुष्टों को नहीं। ऐसा मालूम होता है कि इस संसार ने सत्य और सत्त्व को संघर्ष में लाने का मानो ठेका ले रखा है। यदि ऐसा न होता तो मीरा को जहर नही दिया जाता, उड़िया बाबा की हत्या नही की जाती, स्वामी दयानन्द जी को जहर न दिया जाता और लिंकन व कैनेडी की हत्या न होती।

🚩आज भी कई सच्चे महापुरुष है जिन्होनें सनातन संस्कृति की रक्षा करके समाज को जगाने का कार्य किया, लेकिन उनके ऊपर षडयंत्र करके जेल भिजवा दिया गया या हत्या करवा दी।

🚩इस संसार का यह कोई विचित्र रवैया है कि इसका अज्ञान-अँधकार मिटाने के लिए जो अपने आपको जलाकर प्रकाश देता है, संसार की आँधियाँ उस प्रकाश को बुझाने के लिए दौड़ पड़ती हैं। टीका, टिप्पणी, निन्दा, गलत चर्चाएँ और अन्यायी व्यवहार की आँधी चारों ओर से उस पर टूट पड़ती है।

आद्य शंकराचार्यजी

🚩श्रीमद आदि गुरू शंकराचार्य का जन्म केरल के कालडी़ नामक ग्राम में हुआ था। वह अपने ब्राह्मण माता-पिता की एकमात्र सन्तान थे। बचपन में ही उनके पिता का देहान्त हो गया। बचपन का नाम शंकर था,  उनकी रुचि आरम्भ से ही संन्यास की तरफ थी।

🚩जिस समय इस देश में आद्य शंकराचार्यजी का आविर्भाव हुआ था उस समय असामाजिक तत्त्व अनीति, शोषण, भ्रम तथा अनाचार के द्वारा समाज को गलत दिशा में ले जा रहे थें। समाज में फैली इस अव्यवस्था को देखकर बालक शंकर का हृदय काँप उठा। उसने प्रतिज्ञा की कि ‘मैं राष्ट्र के धर्मोद्धार के लिए अपने सुख की तिलांजलि देता हूँ। अपने श्रम और ज्ञान की शक्ति से राष्ट्र की आध्यात्मिक शक्तियों को जागृत करूँगा। चाहे उसके लिए मुझे सारा जीवन साधना में लगाना पड़े, घर छोड़ना पड़े अथवा घोर-से-घोर कष्ट सहने पड़ें, मैं सदैव तैयार रहूँगा।’

🚩बालक शंकर माँ से आज्ञा लेकर चल पड़े अपने संकल्प को साधने। उन्होंने सद्गुरु स्वामी गोविंदपादाचार्यजी से दीक्षा ली। इसके बाद वे साधना एवं वेद-शास्त्रों के गहन अध्ययन से अपने ज्ञान को परिपक्व कर बालक शंकर से जगद्गुरु आद्य शंकराचार्य बन गये। शंकराचार्यजी अपने गुरुदेव से आशीर्वाद प्राप्त कर देश में वेदांत का प्रचार करने चल पड़े। भगवान श्रीराम, श्रीकृष्ण जैसों को भी दुष्टों के उत्पीड़न सहने पड़े तो आचार्य उससे कैसे बच पाते ? शंकराचार्यजी के धर्मकार्य में विधर्मी हर प्रकार से रुकावट डालने का प्रयास करने लगे, कई बार उन पर मर्मांतक प्रहार भी किये गयें।

🚩कपटवेशधारी उग्रभैरव नामक एक दुष्ट व्यक्ति ने आचार्य की हत्या के लिए शिष्यत्व ग्रहण किया। आचार्य को मारने की उसकी साजिश विफल हुई और अंततः वह भगवान नृसिंह के प्रवेश अवतार द्वारा मारा गया।

🚩कर्नाटक में बसनेवाली कापालिक जाति का मुखिया था क्रकच। वह मांस-शराब आदि अनेक दुराचारों में लिप्त था। कर्नाटक की जनता उसके अत्याचारों से त्रस्त थी। आचार्य शंकर के दर्शन, सत्संग एवं सान्निध्य के प्रभाव से लोग कापालिकों द्वारा प्रसारित दुर्गुणों को छोड़ने लगें और शुद्ध, सात्त्विक जीवन की ओर आकृष्ट होने लगें। सैकड़ों कापालिक भी मांस-शराब को छोड़कर शंकराचार्यजी के शिष्य बन गये। इस पर क्रकच घबराया। उसने शंकराचार्यजी का अपमान किया, गालियाँ दीं और वहाँ से भाग जाने को कहा। शंकराचार्यजी ने उसके विरोध की कोई परवाह नहीं की और अपनी संस्कृति का, अपने धर्म का प्रचार-प्रसार निष्ठापूर्वक करते रहे। इस पर क्रकच ने उन्हें मार डालने की धमकी दी। उसने बहुत-से दुष्ट शिष्यों को शराब पिलाकर शंकराचार्यजी को मारने हेतु भेजा। धर्मनिष्ठ राजा सुधन्वा को जब इस बात का पता चला तो उन्होंने अपनी सेना को भेजा और युद्ध में सारे कापालिकों को मार गिराया।

🚩अभिनव गुप्त भी एक ऐसा ही महामूर्ख था जो आचार्य के लोक-जागरण के कार्यों को बंद कराना चाहता था। वह भी अपने शिष्यों सहित आचार्य से पराजित हुआ। वह दुराभिमानी, प्रतिक्रियावादी, ईर्ष्यालु स्वभाव का था। वह आचार्य के प्रति षड्यंत्र करने लगा। दैवयोग से उसे भगंदर का रोग हो गया और कुछ ही दिनों बाद उसकी मृत्यु हो गयी।

🚩आद्य शंकराचार्यजी का इतना कुप्रचार किया गया कि उनकी माँ के अंतिम संस्कार के लिए उन्हें लकड़ियाँ तक नहीं मिल रही थीं।

🚩आद्य शंकराचार्य जी ने तत्कालीन भारत में व्याप्त धार्मिक कुरीतियों को दूर कर अद्वैत वेदान्त की ज्योति से देश को आलोकित किया। सनातन धर्म की रक्षा हेतु उन्होंने भारत में चारों दिशाओं में चार मठों की स्थापना की तथा शंकराचार्य पद की स्थापना करके उस पर अपने चार प्रमुख शिष्यों को आसीन किया।

🚩उन्होंने उत्तर में ज्योतिर्मठ, दक्षिण में श्रृंगेरी, पूर्व में गोवर्धन तथा पश्चिम में शारदा मठ नाम से देश में चार धामों की स्थापना की। 32 साल की अल्पायु में पवित्र केदार नाथ धाम में शरीर त्याग दिया। सारे देश में शंकराचा‍र्य को सम्मान सहित आदि गुरु के नाम से जाना जाता है।

🚩शंकराचार्य के विषय में कहा गया है-
अष्टवर्षेचतुर्वेदी, द्वादशेसर्वशास्त्रवित् षोडशेकृतवान्भाष्यम्द्वात्रिंशेमुनिरभ्यगात्

अर्थात् आठ वर्ष की आयु में चारों वेदों में निष्णात हो गए, बारह वर्ष की आयु में सभी शास्त्रों में पारंगत, सोलह वर्ष की आयु में शांकरभाष्य लिखा तथा बत्तीस वर्ष की आयु में शरीर त्याग दिया। ब्रह्मसूत्र के ऊपर शांकरभाष्य की रचना कर विश्व को एक सूत्र में बांधने का प्रयास भी शंकराचार्य के द्वारा किया गया है।

🚩इस संसार में ईर्ष्या और द्वेषवश जिसने भी महापुरुषों का अनिष्ट करना चाहा, देर-सवेर दैवी विधान से उन्हीं का अनिष्ट हो जाता है। संतों-महापुरुषों की निंदा करना, उनके दैवी कार्य में विघ्न डालना यानी खुद ही अपने अनिष्ट को आमंत्रित करना है। उग्रभैरव, क्रकच व अभिनव गुप्त का जीवन इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है।

🚩समाज जब किसी ज्ञानी संतपुरुष की शरण तथा सहारा लेने लगता है तब राष्ट्र, धर्म व संस्कृति को नष्ट करने के कुत्सित कार्यों में संलग्न असामाजिक तत्त्वों को अपने षडयन्त्रों का भंडाफोड़ हो जाने का एवं अपना अस्तित्व खतरे में पड़ने का भय होने लगता है, परिणामस्वरूप अपने कुकर्मों पर पर्दा डालने के लिए वे उस दीये को ही बुझाने के लिए नफरत, निन्दा, कुप्रचार, असत्य, अमर्यादित व अनर्गल आक्षेपों व टीका-टिप्पणियों की आँधियों को अपने हाथों में लेकर दौड़ पड़ते हैं, जो समाज में व्याप्त अज्ञानांधकार को नष्ट करने के लिए महापुरुषों द्वारा प्रज्जवलित हुआ था।

🚩ये असामाजिक तत्त्व अपने विभिन्न षडयन्त्रों द्वारा संतों व महापुरुषों के भक्तों व सेवकों को भी गुमराह करने की कुचेष्टा करते हैं। समझदार लोग उनके षडयंत्रजाल में नहीं फँसते, महापुरुषों के दिव्य जीवन के प्रतिपल से परिचित उनके अनुयायी कभी भटकते नहीं, पथ से विचलित होते नहीं अपितु सश्रद्ध होकर उनके निष्काम सेवाकार्यों में अत्यधिक सक्रिय व गतिशील होकर सहभागी हो जाते हैं।

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Sunday, April 26, 2020

अमेरिका के विश्वविद्यालय के प्रोफेसर ने रामायण पढ़ने के लिए छोड दी अंग्रेजी

26 अप्रैल 2020

🚩पाश्चात्य संस्कृति के अंधानुकरण के कारण भले ही आज भारत में भगवान श्री राम और रामायण का महत्व कम समझ पा रहे हैं, लेकिन कई विदेशी बुद्धिजीवी लोगों ने गीता, रामायण आदि ग्रन्थों का अध्ययन किया और आखिरी सार पर आये कि दुनिया में सबसे श्रेष्ठ हिन्दू धर्म ही है और बाद में उन्होंने हिन्दू धर्म भी अपना लिया।

🚩ऐसे ही अमेरिका के विश्वविद्यालय ऑफ हवॉई के प्राध्यापक रामदास ने बताया कि उन्होंने रामायण सीखने के लिए अंग्रेजी का भी त्याग कर दिया।

🚩जबलपुर : गुरु ने दो वर्ष तक अंग्रेजी न बोलने का संकल्प दिला दिया। फिर हिंदी बोलना सीखा। दो वर्ष तक लगातार अभ्यास किया और हिंदी सीख ली। अब भारत में सभी से हिंदी में ही बात करता हूँ । कुछ समय पहले यह बात चर्चा के दौरान अमेरिका के विश्वविद्यालय ऑफ हवॉई में धर्म विभाग के प्राध्यापक रामदास ने कही।

🚩उन्होंने बताया कि मां काफी गरीब थी, जो दूसरों के घरों में सफाई करने जाया करती थी । वहां से पुस्तकें ले आती थी। एक बार महात्मा गांधी की पुस्तक लेकर आईं, जिसे पढ़कर भारत आने का मन हुआ। लोगों के सहयोग से 20 साल की उम्र में पहली बार भारत आया। दूसरी बार 22 वर्ष की उम्र में भारत आया। उन्होंने बताया कि इसके बाद चित्रकूट में मानस महाआरती त्यागी महाराज के सानिध्य में आया और उनसे दीक्षा ले ली।

अमेरिका में रामलीला करती है स्टार्नफील्ड की टीम

🚩25 साल पहले विश्वविद्यालय में अचानक महर्षि वाल्मीकि का चित्र दिखा, इसमें उन्हें अपने पिता का चेहरा दिखार्इ दिया। उनके बारे में जानकारी एकत्रित की और वाल्मीकि रामायण पढा तभी से रामायण को विस्तृत जानने की प्रेरणा निर्माण हुई। यह बात विश्व रामायण परिषद में शामिल होने आए महर्षि विश्वविद्यालय ऑफ मैनेजमेंट पेयरफिल्ड, लोवा यूएसए के प्रोफसर माइकल स्टार्नफिल्ड ने कही। उन्होंने बताया कि उनकी 400 लोगों की एक टीम है, जिसमें बच्चे, युवा व बुजुर्ग शामिल हैं, जो वाल्मीकि रामायण पर आधारित रामलीला करते हैं। उनकी ड्रेस भारतीय रामलीला से मिलती जुलती है।

थाईलैंड की प्राथमिक शिक्षा में शामिल है रामायण

🚩बैंकाक के सिल्पाकॉर्न विश्वविद्यालय के एसोसिएट प्राध्यापक बूंमरूग खाम-ए ने बताया कि थाईलैंड में रामायण, लिटरेचर की तरह स्कूल और कॉलेजों के पाठ्यक्रम में शामिल है। विश्वविद्यालय के खोन (नाट्य) विभाग के छात्र सबसे अधिक रामलीला को पसंद करते हैं। थाईलैंड में रामायण को रामाकेन और रामाकृति बोलते हैं। जो वाल्मीकि रामायण से मिलती जुलती है, किंतु इसमें थाई कल्चर का समावेश है। उन्होंने बताया कि विश्वविद्यालय के अनेक विद्यार्थी रामायण पर पीएचडी कर रहे हैं। इसमें से कुछ वर्ल्ड रामायण कांफ्रेंस में शामिल होने जबलपुर आए हैं।

थाईलैंड की रामायण में हनुमानजी ब्रह्मचारी नहीं

प्राध्यापक बंमरूग खाम-ए ने बताया कि भारत की वाल्मीकि रामायण में हनुमान जी को ब्रह्मचारी बताया गया है। जबकि थाईलैंड की रामायण (रामाकेन) में हनुमानजी की पत्नी और पुत्र का उल्लेख है।

हम हिंदी प्रेमी हैं

🚩कुछ वर्ष पहले थाईलैंड से आई चारिया धर्माबून हिंदी प्रेमी है। पढ़ाई के दौरान राम के चरित्र से प्रभावित होकर रामायण पर पीएचडी कर रही हैं। उन्होंने अपने इस प्रेम को टीशर्ट पर ‘हम हिंदी प्रेमी हैं’ के रूप में भी लिख रखा है। वर्ल्ड रामायण कांफ्रेंस में शामिल होने उनके साथ सुपापोर्न पलाइलेक, चोनलाफाट्सोर्न बिनिब्राहिम और पिबुल नकवानीच आए हैं। सभी शिल्पाकर्न विश्वविद्यालय से रामायण में पीएचडी कर रहे हैं। पीएचडी करने वाले विद्यार्थी रामायण पर आधारित पैंटिंग और रामलीला भी करते हैं।

भारत के मंदिरों का इतिहास खोज निकाला

🚩अमेरिका के डॉ. स्टीफन कनाप ने बताया कि उन्हें हर विषय की गहराई में जाना अच्छा लगता है। 1973-74 में रामायण के बारे में जानकारी मिली, जिसे पढ़ा और इसकी खोज में भारत आया। यहां रामायण के संबंध में काफी खोज की। अनेक किताबें लिख चुके डॉ. स्टीफन ने बताया कि उन्होंने भारत के मंदिरों के इतिहास की खोज कर उन पर अनेक पुस्तकें लिखी हैं।

🚩हिन्दू पुराणों और शास्त्रों में इतना गूढ़ रहस्य है कि अगर मनुष्य उसको ठीक से पढ़कर समझे तो सुखी स्वस्थ और सम्मानित  जीवन जी सकता है । इस लोक में तो सुखी रह सकता और परलोक में भी सुखी रह सकता है ।

🚩जिसके जीवन में हिन्दू संस्कृति का ज्ञान नही है उसका जीवन तो धोबी के कुत्ते जैसा है न घर का न घाट का, इस लोक में भी दुःखी चिंतित और परेशान रहता है और परलोक में भी नर्क में जाकर दुःख ही पाता है ।

🚩अतः बुद्धिमान व्यक्ति को समय रहते रामायण, श्रीमद्भगवद्गीता पढ़कर भारतीय संस्कृति के अनुसार अपने जीवन को ढाल लेना चाहिये।

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Saturday, April 25, 2020

‘कोरोना’ महासंकट क्यों आया और इससे निपटने के लिए क्या उपाय हैं?

25 अप्रैल 2020

🚩आज हम सभी जन ‘कोरोना’ नामक एक महासंकट का सामना कर रहे हैं। गत सदी में पोलिओ, प्लेग, मलेरिया जैसी भयंकर महामारी के कारण लाखों लोगों की मृत्यु हुई थी, ऐसा हमने केवल सुना था। उसके उपरांत शास्त्रज्ञों ने विभिन्न शोध कर उन पर टीका, दवाईयां खोज कर निकाली। इससे इन महामारीयों का उपाय भी मिला। विज्ञान की प्रगति की यह कहानियां सुनने के पश्‍चात सभी की ऐसी मानसिकता ही बन गई थी कि अब भविष्य में ऐसी स्थिति का निर्माण ही नहीं हो सकता। उसके साथ मानवी बुद्धि और प्रभुत्व के अहंकार के कारण हमे देवता-धर्म यह संकल्पना पिछडी, अंधश्रद्धा लगने लगी। ऐसे समय ही प्रकृति मानव को उसकी मर्यादा का भान करवाती है।

🚩अनेक संत-महापुरुष सतत स्वार्थ त्यागकर धर्म के मार्ग पर चलने का आह्वान कर रहे है, अन्यथा आगामी काल मे नैसर्गिक आपत्तियां तथा महामारी जैसा संकट आने की पूर्वसूचना वो दे रहे थे। हम सभी ने उनकी ओर ध्यान ही नहीं दिया। आज प्रत्यक्ष में ‘कोरोना’ (कोविड-१९) नामक एक वायरस के कारण मानव ने की हुई प्रगति, विज्ञान की आधुनिकता के अहंकार के चिथडे उड गए हैं।

🚩मानव द्वारा ही निर्मित इस आपत्ति के कारण आधुनिक हवाई जहाज भूमि पर उतर आए हैं, बुलेट ट्रेनें यार्ड में खडी हैं, कारें-बसें बंद हैं और इनका निर्माण करनेवाला मानव आज अपने ही घर में कैद हो बैठा है। इस वायरस का संसर्ग न हो इसलिए वह सारे प्रयास कर रहा है, क्योंकि आज के दिन तक तो इस भयंकर महामारी पर आधुनिक विज्ञान के पास भी कोई दवाई उपलब्ध नहीं है। ऐसी स्थिति में प्रकृति में विद्यमान दैवी शक्ति की शरण जाने के सिवाय हम मानवों के पास अन्य कोई पर्याय भी तो नहीं है।

🚩यह प्रकृति ईश्‍वर निर्मित माया है तथा उसका निर्माता ईश्‍वर, विश्‍व का चालक है। यद्यपि हम ईश्‍वर और प्रकृति को भिन्न मानते हैं, पर धर्म के अनुसार ईश्‍वर और प्रकृति एक ही है। इसलिए विश्‍व का यह संकट दूर होने के लिए हम सामान्य जन उस सर्वशक्तिमान ईश्‍वर की शरण तो निश्‍चितरूप से जा सकते हैं। ईश्‍वर सूक्ष्म, अर्थात आखों से दिखाई न पडनेवाला होने के कारण उसे हमसे नारियल, फूल, मिठाई, धन ऐसे किसी चीज की अपेक्षा नहीं होती। वह तो चाहता है कि हम अपने जीवन को जन्म-मृत्यु के फेर से मुक्त होने के लिए प्रयास करें ।

मनुष्य के स्वभाव में छुपा है, आपत्तियों का कारण !

🚩आज विश्‍व की आपत्तियों का कारण कहीं न कहीं हमारे अनुचित व्यवहार का यह परिणाम है। लोग पृथ्वी पर उपलब्ध संसाधनों का बिना सोचे-समझे दुरुपयोग करते हैं। अनेकों को पता होते हुए भी वो अनुचित व्यवहार करते हैं, इसलिए कि उनका अहंकार और स्वार्थ उनको समाज का विचार नहीं करने देता। तीव्र अहंकार तथा स्वार्थी वृत्ति होने से, वें प्रकृति, मनुष्य तथा अन्य जीवों को कष्ट देकर अधिकतर समय केवल अपने लिए ही सुख जुटाने में लगे रहते हैं। सरकार कितना भी प्रयास करे, कानून बना ले, परंतु जब तक वह स्वयं अपने समाज ऋण को नहीं पहचानेगा, तब तक परिवर्तन असंभव है।

🚩समाज में चुनिंदा लोग ही प्रकृति और समाज का विचार करते हैं। यदि उनके जीवन में हम झांककर देखें, तो वें धर्माचरण करनेवाले, दयालु स्वभाव के और सभी के प्रति प्रेम रखनवाले हैं। उनके व्यवहार में व्यापकता है। उनका आचरण हम सबको लोककल्याण करने की प्रेरणा देता है। उन्हें अधर्म का परिणाम पता है। कानून के दंड से भी अधिक प्रभावी है, व्यक्ति का आत्मसंयम ! जो केवल धर्म को समझने से और उसको जीवन में उतारने से आ सकता है।


🚩कोरोना महामारी से हम बच जाए और आगे ऐसी आपदाएं न आये इसलिए हमें महापुरुषों द्वारा बताये गये सनातन धर्म के अनुसार आचरण करना चाहिए और ईश्वर की उपासना करनी चाहिए तभी हम ऐसी आपदाओं से बच सकते है नही तो आने वाले समय मे भयंकर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं।

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Friday, April 24, 2020

साधुओं की हत्या के बाद एक सच्चाई तो सभी मान रहे है पर एक बात पर सब चुप है

24 अप्रैल 2020

🚩पालघर में दो साधुओं की नृशंस हत्या के बाद आज मीडिया और बुद्धिजीवी ये बात बोलने लगे गए है कि साधुओं की हत्या के पीछे बड़ा हाथ ईसाई मिशनरियों का लग रहा है क्योंकि वे लोग धर्मान्तरण करवाते है और लोगों में हिंदू धर्म के देवी-देवताओं और साधु-संतों के खिलाफ जहर भरते है, उसका परिणाम आज देखने को मिल रहा है।

🚩धर्मान्तरण करते समय ईसाई मिशनरियां लोगों में हिंदू धर्म के प्रति ऐसा जहर भर देते है कि वे लोग अपने ही हिंदू धर्म के खिलाफ हो जाते है और हत्या तक का अंजाम दे सकते है जैसे अभी पालघर में हुआ और स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती को 2008 में कुल्हाड़े से काट डाला था ।

🚩अभी बड़ी विंडबना ये है कि जो साधु-संत धर्मान्तरण रोकने में आगे आते है उनको ईसाई मिशनरी निशाना बनाती है। जिनकी हत्या कर सके उनकी हत्या कर देते है या जिनकी हत्या नही कर सकते उनके खिलाफ झूठा मुकदमा बनाकर, मीडिया में बदनाम करवाकर जेल भिजवाया जाता है और कुछ हिंदू तो मीडिया की बात को सच मानकर उन संतों को भी गलत बोल देते हैं। उनको पता नही की उनके खिलाफ बड़ी साजिश चल रही है।

🚩आपको बता दे कि स्वामी असीमानन्द जी आवहा-डांग (गुजरात) मे धर्मान्तरण रोक रहे थे तो उनको बम धमाके के में फसाकर 9 साल जेल में रखा फिर निर्दोष बरी हुए।

🚩ऐसा ही मामला हिंदू संत आशारामजी बापू के साथ है। उन्होंने देश-विदेश में ऐसा अभियान छेड़ा की करोड़ो लोग सनातन धर्म के दीवाने होते गए और जो हिन्दू धर्मपरिवर्तन करने लगे थे उनकी घर वापसी करवा दी। एक तरफ हजारों NGO's धर्मान्तरण करवाने के लिए लगे थे और दूसरी तरफ अकेले बापू आशारामजी धर्मान्तरण रोकने में लगे थे और आदिवासियों में जाकर धर्म के ज्ञान के साथ मकान, अनाज, रुपये, जीवनोपयोगी सामग्री आदि देकर उनकी घर वापसी करवाते थे तथा जो आगे धर्मान्तरित होने जा रहे थे उनको रोक रहे थे। गुजरात, राजस्थान, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, पंजाब, दिल्ली, हरियाणा, छत्तीसगढ़, झारखंड तथा ओडिशा आदि मुख्य राज्य थे जिसमें उनका यह मिशन चलता था। उनके करोड़ो अनुयायियों को भी उन्होंने इसी में लगाकर रखा था।

🚩आपको बता दे कि यहां तक वे सफल हुए थे कि इंडोनेशिया से पादरी डॉ. सोलोमन धर्मान्तरण करने के लिए भारत आया था उसने एक दिन बापू आशारामजी का झारखंड में प्रवचन सुन लिया जिसमे हिंदू धर्म के बारे में बापू आशारामजी बता रहे थे, अचानक उसके जीवन मे परिवर्तन हुआ, वो बापू आशारामजी से मिला और उनको गुरु माना और खुद हिन्दू धर्म अपना लिया तथा नाम रख लिया डॉ. सुमन। अब वे खुद पादरियों की पोल खोलते है और धर्मपरिवर्तन की जगह घरवापसी करवाते है।

🚩एक मुसलमान भी भुट्टो खान से हरी शंकर बन गये।

🚩बता दे कि आशारामजी बापू ने वेलेंटाइन डे की जगह पर मातृ-पितृ पूजन दिवस शुरू किया जिसके कारण करोड़ो लोग उस दिन वेलेंटाइन डे की जगह माता-पिता की पूजा करने लगे। उसके कारण विदेशी कम्पनियों के गर्भनिरोधक सामान, दवाइयां, गिफ्ट, नशीले पदार्थ आदि बिकना बंद हो गये जिसके कारण उनको अरबो रूपये का घाटा आ रहा था।

🚩आपको बता दे कि हिंदू संत आशारामजी बापू एक दिन में चार-चार जगह पर प्रवचन के कार्यक्रम करते थे और हर जगह लोगों की भारी भीड़ होती थी। वे जाती-पाती छोड़कर सबको सनातन धर्म मे जोड़ते थे इससे भारतवासी अपने को सनातनी मानकर गर्व महसूस करने लगे। उनके प्रवचन सुनकर करोड़ो लोगों ने शराब, बीड़ी, सिगरेट, चाय आदि व्यसन छोड़ दियें, उनके बताए अनुसार आसान-प्राणायम करके लोग स्वस्थ होने लगे। कुछ बीमारी होती थी तो उनके प्रवचन में बताएं घरेलू नुस्खे सीखकर स्वस्थ होने लगे जिसके कारण लोगो ने दवाइयां लेना बंद कर दी और टीवी, फिल्में आदि देखना छोड़ दिया, क्लब में जाना छोड़ दिया, व्यभिचार छोड़कर सदाचार अपना लिया, ये अभियान सिर्फ भारत नही बल्कि विश्व के कई देशों में भी होने लगा इसके कारण बहुराष्ट्रीय कंपनियों को खरबो रुपयों का नुकसान होने लगा और धर्मान्तरण करने वालो की दुकानें बंद होने लगी इसके कारण अंतर्राष्ट्रीय कम्पनियां और वेटिकन सिटी बुरी तरह बोखला गए थे।

🚩बता दे कि हिन्दू संस्कृति का परचम लहराने वर्ल्ड रिलीजियस पार्लियामेंट (विश्व धर्मपरिषद) शिकागों में भारत का नेतृत्व 11 सितम्बर 1893 में स्वामी विवेकानंदजी ने और ठीक उसके 100 साल बाद 4 सितम्बर 1993 में हिंदू संत आशारामजी बापू ने किया था।

🚩आपको बता दे कि 2004 में शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती जी को झूठे केस में गिरफ्तार किया तो उनके ही लोग बोलने लगे थे कि शंकराचार्य जी को अपने पद से इस्तीफा दे देना चाहिए लेकिन बापू आशारामजी ने जंतर-मंतर पर धरना दिया जिसमें अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण आडवाणी जैसे कई बड़े-बड़े नेता उनके साथ आये और आखिर शंकराचार्य जी को निर्दोष बरी करना पड़ा उस समय उन्होंने भविष्यवाणी की थी की अब हमारे ऊपर भी ये लोग षड्यंत्र करेंगे।

🚩बता दे कि साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को जब गिरफ्तार करके जेल में प्रताड़ित किया जा रहा था, उनको केंसर हो गया था और चला भी नही जा रहा था तथा जब उनसे किसी को भी मिलने नही जाने दे रहे थे तब बापू आशारामजी को भी प्रशासन ने मिलने से मना किया था तब उन्होंने नही मिलने पर धरना देने का आह्वान किया था फिर डर के मारे उनको तुरंत मुलाकत करवाई थी और बापू आशारामजी ने साध्वी प्रज्ञा को कहा था कि आप इसी पेर से चलोगी और निर्दोष बरी होंगी, यही आज सच निकला। इसलिए आज साध्वी बापू को निर्दोष मानती है।


🚩रामलीला मैदान में जब बाबा रामदेव और उनके भक्तों पर लाठीचार्ज किया था तब बापू आशारामजी ने सबसे पहला नारा लगया था कि "सोनिया मैडम भारत छोड़ो"

🚩बापू आशारामजी ने बच्चों के लिए देशभर में 17000 हजार बाल संस्कार केंद्र और 35 वैदिक गुरुकुल खुलवा दिएं, युवाओं के लिए करोड़ो युवाधन सुरक्षा का साहित्य बंटवा दिया, युवा सेवा संघ की स्थापना की, महिलाओं के उत्थान के लिए महिला उत्थान मंडल खोल दिया, उनके 450 आश्रम और 1400 समितियां देशभर में समाज, राष्ट्र और संस्कृति की सेवा में लग गई।

🚩बापू आशारामजी जोर-शोर से देश-विदेश में सनातन हिंदू धर्म का परचम लहरा रहे रहे थे जिससे लोग राष्ट्रवादी ओर उद्यमी बन रहे थे। राष्ट्रविरोधी ताकतों को ये रास नही आया। वे सबके सब 2008 से उनके पीछे लग गए और उनकी खूब बदनामी शुरू कर दी।


🚩वे एकबार हवाई जहाज से आ रहे थे तब उसी में डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी भी थे। उन्होंने बताया कि बापू आप जो इतना जोरो से धर्मान्तरण पर रोक लगा रहे है उसके कारण वेटिकन सिटी आपसे नराज है और सोनिया गांधी से मिलकर आपको जेल भेजने की तैयारी कर रही है। स्वामी ने आगे बताया कि उनको कोई परवाह नही थी भगवान में विश्वास था। आखिर यही हुआ कि सोनिया गांधी ने वेटिकन सिटी के इशारे पर जेल भिजवाया और विदेशी फंड से मीडिया द्वारा खूब बदनाम करवाया।

🚩सुब्रमण्यम स्वामी ने कहा कि पूरा केस बोगस है क्योंकि जिस समय की घटना लड़की बता रही है उस समय तो वह फोन पर अपने मित्र से बात कर रही थी और आशारामजी बापू अपने एक कार्यक्रम में व्यस्त थे उसके फोटोज भी है और 50 लोग गवाह भी है फिर भी उनको षड्यंत्र के तहत 25 अप्रैल 2018 में उम्रकैद की सजा दे दी। ये वेटिकन सिटी की जीत थी और इतिहास का काला दिवस था जो सनातन धर्म के प्रचार रथ को रुकवा दिया। बापूजी 7 साल से जोधपुर सेंट्रल जेल में बंद है लेकिन एक दिन भी जमानत नही दी गई जबकि बड़े-बड़े अपराधियों को जमानत दे दी जाती है।

🚩आपको बता दें कि बापू आशारामजी के अहमदाबाद आश्रम में एक Fax आया था जिसमें 50 करोड़ की फिरौती की मांग की गई थी और न देने पर धमकी दी गई थी कि अगर बापू ने 50 करोड़ नही दिए तो झूठी लड़कियां तैयार करके झूठे केस में फंसा देंगे और कभी बाहर नहीं आ पाओगे पर कोर्ट ने इनके ऊपर कोई एक्शन नहीं लिया।

🚩इन सब तथ्यों से साबित होता है कि बापू आशारामजी को षड्यंत्र के तरह फ़साया गया है और इसमें मुख्यरूप से धर्मान्तरण पर रोक लगाने पर ये सब हुआ, ये सभी टीवी चैनल के मालिक जानते है पर उनको उनके खिलाफ खबर चलाने की भारी फंडिग मिलती है इसलिए उनके एंकरों को जैसे बोलते है वैसे वे करते है उनको तो नोकरी करनी है परिवार पालना है देश-धर्म से कोई लेना देना है नही इसलिए वे बापू आशारामजी को बदनाम करते है और भोले-भाले हिंदू उनकी बातों में आकर उनकी बात सच मानकर अपने धर्मगुरुओं को गलत मानने लग जाते है।

🚩अभी भी समय है हिंदू साधु-संतों पर हो रहे अत्याचार को मिलकर रोकना होगा तभी सनातन धर्म बचेगा। और धर्म होगा तभी मानवता जीवित रहेगी और राष्ट्र सुरक्षित रहेगा।

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