Thursday, May 28, 2020

रेप कानून के दुरुपयोग के कारण एक संत को करनी पड़ी आत्महत्या, कब बदलाव होगा?

28 मई 2020

🚩प्रतापगढ़ जिला न्यायाधीश राजेन्द्र सिंह ने बताया कि 90 प्रतिशत बलात्कार के केस साबित ही नही हो पाते हैं। दलालों के माध्यम से प्रतिवर्ष काफी संख्या में बालिकाओं तथा महिलाओं द्वारा दुष्कर्म के प्रकरण दर्ज कराए जाते हैं।

🚩बलात्कार के कड़े कानून महिलाओं की सुरक्षा के लिए बनाए थे लेकिन इन कानूनों का कुछ गिरोह अथवा महिलाओं द्वारा भयंकर दुरुपयोग किया जा रहा है, इस कानून के दुरुपयोग से निर्दोष पुरुषों की ज़िंदगी तबाह हो रही है। कुछ पुरुष निर्दोष होते हुए भी आरोपी सिद्ध होकर सालों साल जेल की प्रताड़ना सहन करते हैं बाद में निर्दोष बरी होते हैं। कुछ पुरुष तो आरोप के सदमे में खुदकुशी तक कर लेते हैं।

🚩संत ने त्याग दी देह...

🚩राजस्थान के राजसमंद के भीम उपखंड में मंदिर के संत ने सोमवार को आश्रम स्थित पीपल के पेड़ पर फंदा लगाकर देह त्याग दी। इससे पहले संत ने वीडियो वायरल कर खुद पर लगे दुष्कर्म के आरोप को झूठा बताया। उन्होंने एक दंपती और महिला आयोग की सदस्या पर रुपए वसूलने का आरोप लगाया। 

🚩संत पर 20 मई को दिवेर थाने में नशीला पेय पिलाकर दुष्कर्म करने का आरोप लगा था। थानाधिकारी लक्ष्मण सिंह चुंडावत ने बताया कि प्रेमदास (50) ने पीपल के पेड़ पर फंदे पर लटक आत्महत्या कर ली।

🚩संत पर एक महिला ने 21 मई को दुष्कर्म का केस दर्ज करवाया था। पुलिस संत की तलाश में थी।

🚩गुणिया निवासी एक दंपती 20 अप्रैल को संत प्रेमदास के आश्रम पर पेट दर्द की समस्या लेकर पहुंचा था। उसके एक माह बाद पति ने फिर से संत के पास जाने को कहा। महिला ने वहां से लौटकर बताया कि उसके साथ दुष्कर्म किया गया। दंपती ने 20 मई को एसपी ओफिस में शिकायत की। इसके बाद 21 मई को दिवेर थाने में संत प्रेमदास के खिलाफ पॉक्सो एक्ट में केस दर्ज किया गया। जांच के लिए पुलिस आश्रम पहुंची तो संत नहीं मिले। इस दौरान आश्रम पर रहने वाले छगनलाल सुथार को संत के आने पर पुलिस को सूचना देने के लिए कहा गया।

🚩सोमवार सुबह छगनलाल आश्रम गया तो संत को पेड़ पर लटका देखकर ग्रामीणों को सूचना दी। छगनलाल ने बताया कि रविवार रात आश्रम से गया तो संत नहीं थे। संत ने आत्महत्या से पहले एसपी के नाम एक वीडियो बनाकर वायरल किया। इसमें दंपती समेत महिला आयोग की सदस्या पर 25 लाख रुपए वसूलने का आरोप लगाया। रुपए नहीं होने पर आत्म-सम्मान और संत सम्मान को बचाने के लिए देहत्याग करने का कदम उठाया।

🚩आगे की जांज होगी तब पता चलेगा कि सही क्या है? लेकिन इस तरह की घटनाएं पहले भी बहुत हुई है जिसके कारण निर्दोष पुरुषों को आत्महत्या करनी पड़ी है, इस कानून के जरिये पैसे ऐंठने का धंधा शुरू किया गया है, इसमे भी हिंदू साधु-संतों को खास निशाना बनाया जा रहा है क्योंकि साधु-संत सनातन संस्कृति की रक्षा के लिए कार्य करते हैं, धर्मातरण का विरोध करते हैं, घरवापसी कार्यक्रम चलाते हैं, विदेशी सामान का बहिष्कार करके स्वदेशी का प्रचार करते हैं, व्यसन मुक्त समाज को बनाते है और भी समाज की कई बुराइयां को दूर करते हैं और राष्ट्र के लिए जनता को जागरूक करते हैं, इन कारणों से भी साधु-संतों को टारगेट किया जा रहा है, आज भी एक निर्दोष संत 7 साल से जेल में बंद हैं, कई साधु-संत सालो से जेल में रहकर निर्दोष बरी हुए।

🚩रेप कानूनों का निर्माण महिला सुरक्षा के लिये किया गया लेकिन कुछ गिरोह और पथभ्रष्ट महिलाएं इसका धड़ल्ले से दुरुपयोग कर रही हैं। सरकार को इन पथभ्रष्ट महिलाओं द्वारा किये जा रहे हर फर्जी केस पर कठोर कार्यवाही करनी चाहिए तथा ऐसी महिलाओं को कठोर से कठोर दंड देने चाहिए जो अपनी स्वार्थपूर्त्ति के लिए किसी के जीवन से खेल रही हैं।

🚩करोड़ों लोगों के आस्था-केन्द्र धर्मगुरुओं, प्रसिद्ध गणमान्य हस्तियों एवं आम लोगों को रेप एवं यौन-शोषण से संबंधित कानूनों की आड़ में फँसाकर देश की जड़ें काटी जा रही हैं। स्वार्थी तत्त्वों एवं राष्ट्र-विरोधी ताकतों का मोहरा बनी महिलाओं के कारण समस्त महिला समुदाय कलंकित हो रहा है। महिलाओं को नौकरी नहीं मिल रही है, महिलाओं पर से लोगों का विश्वास घटता जा रहा है। इसलिए जनता की मांग है कि सरकार बलात्कार निरोधक कानूनों का दुरुपयोग रोकने के लिए इनमें शीघ्र संशोधन करें और पुरुष आयोग का गठन करें।

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Tuesday, May 26, 2020

क्या मिडिया आपका ब्रेनवाश करने की कोशिश कर रहा है ?

26 मई 2020

🚩मिडिया में दो विशेष जनभावनाए निर्माण करने की होड़ लगी है। सभी धर्म एक जैसे हैं तथा धर्म सभी बुराइयों की जड़ है।

🚩एक सेक्युलर ने कहा की धर्म से पेट नहीं भरता। इसलिए धर्म की कोई जरूरत नहीं है। शायद उसे कार्ल मार्क्स की वह बात याद आई होगी जिसमे धर्म को अफीम का नशा बताया गया है।
आगे उसने कहा - धर्म निकम्मेपन और निट्ठलेपन को बढ़ावा देता है? कुछ उदाहरण -

🚩अजगर करे ना चाकरी, पंछी करे ना काम
दास मलूखा कह गए सब के दाता राम
होवही सोई जे राम रची रखा, को करी तर्क बढावही शाषा
राम भरोसे बैठ कर लम्बी तान के सोए
अनहोनी होनी नहीं होनी है तो होए
समय से पहले और भाग्य से अधिक किसी को कुछ नहीं मिलता

उत्तर ...
धर्म निक्कमेपन की शिक्षा नहीं देता-

🚩यजुर्वेद अध्याय 40 मन्त्र 2 में उपदेश है -
▪️1-कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजीविषेच्छतं समाः---
कर्म करते हुए 100 वर्ष जीने की इच्छा करो

▪️2 आस्ते भग आसीनस्योर्ध्वस्तिष्ठति तिष्ठतः ।
शेते निपद्यमानस्य चराति चरतो भगश्चरैवेति ॥
(ऐतरेय ब्राह्मण, अध्याय 3, खण्ड 3)
अर्थ – जो मनुष्य बैठा रहता है, उसका सौभाग्य (भग) भी रुका रहता है । जो उठ खड़ा होता है उसका सौभाग्य भी उसी प्रकार उठता है । जो पड़ा या लेटा रहता है उसका सौभाग्य भी सो जाता है । और जो विचरण में लगता है उसका सौभाग्य भी चलने लगता है।

▪️3 -कलिः शयानो भवति संजिहानस्तु द्वापरः ।
उत्तिष्ठस्त्रेता भवति कृतं संपाद्यते चरंश्चरैवेति ॥
(ऐतरेय ब्राह्मण, अध्याय 3, खण्ड 3)
अर्थ – शयन की अवस्था कलियुग के समान है, जगकर सचेत होना द्वापर के समान है, उठ खड़ा होना त्रेता सदृश है और उद्यम में संलग्न एवं चलनशील होना कृतयुग (सत्ययुग) के समान है ।

🚩आगे उस सेक्युलर ने कहा- धर्म गरीबी की प्रेरणा देता है. देखिए क्या कहा है संतों ने-
▪️1-रूखी सुखी खाय कर ठण्डा पानी पी, देख पराई चोपड़ी क्यों ललचाए जी.
▪️2 - साईं इतना दीजिए जा में कुटुम्ब समाय, मैं भी भूखा ना रहूँ साधू भूखा ना जाए.

🚩उत्तर- धर्म गरीबी की प्रेरणा नहीं देता.
प्रातः कालीन वैदिक प्रार्थना में कहा गया है- वयं स्याम पतयो रयीणाम् ॥ (यजुर्वेदः 19/44) अर्थात हम धन ऐश्वर्य के स्वामी बनें. वेद में गरीब बनने या जल्दी मरने की कामना करने जैसी कोई प्रार्थना नहीं है

🚩आगे उस सेक्यूलर ने कहा - सभी धर्म नारी को दबा कर रखना चाहते हैं. जैसे घुंघट प्रथा, देवदासी प्रथा, खाप पंचायतों का महिलाओं के विरूद्ध निर्णय आदि..

🚩उत्तर- सेक्युलर जी शायद तीन तलाक, हलाला और मुत्ताह आदि को भूल गए. क्योंकि मिडिया उन्हें इन सब पर विचार करने की अनुमति ही नहीं देता. सेक्युलरों के हीरो आमिर खान आदि भी सत्यमेव जयते पर इन के बारे में कुछ नहीं बोलते इसलिए सेक्युलरों को लगता है कि इस तरह की कोई समस्या होती ही नहीं. वैसे भी सेक्युलर को ये नहीं पता होता कि धर्म अनेक नहीं होते. धर्म एक ही होता है जिसे सनातन धर्म कहते हैं. सनातन धर्म का आधार है वेद.. हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, इसाई और यहूदी आदि धर्म नहीं हैं. ये तो मत पंथ सम्प्रदाय हैं. देवदासी आदि प्रथा धर्म नहीं है

🚩देखिए महर्षि मनु क्या आदेश देते हैं नारी के विषय में.--
सन्तुष्टो भार्यया भर्त्ता भर्त्र भार्या तथैव च।यस्मिन्नेव कुले नित्यं कल्याणं तत्र वै ध्रुवम्।।१।।
जिस कुल में भार्य्या से भर्त्ता और पति से पत्नी अच्छे प्रकार प्रसन्न रहती है उसी कुल में सब सौभाग्य और ऐश्वर्य निवास करते हैं। जहां कलह होता है वहां दौर्भाग्य और दारिद्र्य स्थिर होता है।।१।।
यत्र नार्य्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः। यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्रऽफलाः क्रियाः।।२।।
शोचन्ति जामयो यत्र विनश्यत्याशु तत्कुलम्।न शोचन्ति तु यत्रैता वर्द्धते तद्धि सर्वदा।।३।।

जिस घर में स्त्रियों का सत्कार होता है उस में विद्यायुक्त पुरुष आनन्द से रहते हैं और जिस घर में स्त्रियों का सत्कार नहीं होता वहां सब क्रिया निष्फल हो जाती हैं।।२।।
जिस घर वा कुल में स्त्री शोकातुर होकर दुःख पाती हैं वह कुल शीघ्र नष्ट भ्रष्ट हो जाता है और जिस घर वा कुल में स्त्री लोग आनन्द से उत्साह और प्रसन्नता से भरी हुई रहती हैं वह कुल सर्वदा बढ़ता रहता है।।३।।
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🚩धर्म क्या है?
- महर्षि कणाद अपने वैशेषिक दर्शन मे धर्म की परिभाषा लिखते हैं
- यतो अभ्युदय निश्रेयस सिद्धि स एव धर्म –
- जिससे सामाजिक उन्नति हो व मोक्ष की प्राप्ति हो वह धर्म है।

🚩व्याख्या- केवल उन्नति तो चोरी, ठगी, लूट व धोखा देकर भी की जा सकती है परंतु वह सम्पूर्ण समाज को नष्ट कर देती है इसलिए केवल धन, शक्ति आदि की उन्नति को धर्म नहीं कहा जा सकता।सनातन धर्म के शास्त्रों मे विवाह के समय एक यज्ञ का विधान मिलता है । इस यज्ञ का नाम है राष्ट्रभृत यज्ञ। इसका मुख्य उद्देश्य यह था कि व्यक्ति वह रोजगार ना करे जिससे राष्ट्र को हानी हो जैसे शराब, सिगरेट, नशा बेचना, जुआ घर या वेश्याघर खोलना। केवल वन मे रहकर योगसाधना करने से मुक्ति का मार्ग तो सरल हो जाता है परंतु संसार का उपकार नहीं होता।

🚩वेदों के महान विद्वान महर्षि दयानन्द पक्षपात रहित आचरण को धर्म व पक्षपात पूर्ण आचरण को अधर्म कहते हैं। वह शिक्षा का उद्देश्य केवल आजीविका नहीं बल्कि सभ्यता, सदाचार व धार्मिक होना मानते हैं।

🚩धर्म का हमारे जीवन मे क्या स्थान है इसके लिए यह प्रसंग पढे
▪️1-सुश्रुत संहिता सूत्र स्थान अध्याय 2 मे महर्षि धन्वन्तरी अपने शिष्य को जनेऊ देते समय उपदेश देते है-
ब्राह्मण, गुरु, दरिद्र, मित्र, सन्यासी, पास मे नम्रता पूर्वक आए, सज्जन, अनाथ, दूर से आए सज्जनों की चिकित्सा स्वजनों (अपने परिवार के सदस्य) की भांति अपनी औषधियों से करनी चाहिए। यह करना साधु (श्रेष्ठ ) है।
व्याध (शिकारी), चिड़िमार, पतित (नीच आचरण वाला) पाप करने वालो की चिकित्सा धन का लाभ होने पर भी नहीं करनी चाहिए।
ऐसा करने से विद्या सफल होती है, मित्र, यश, धर्म, अर्थ और काम की प्राप्ति होती है। ऐसा ही विवरण चरक संहिता मे मिलता है। (क्या आज का चिकित्सक यह कर्त्तव्य निभाता है)

🚩जहां केवल अपने मत, मजहब, रिलीजन या पंथ के मानने वालों के लिए प्रार्थना की गई है वहाँ पक्षपात है। वह धर्म नहीं अधर्म है। जहां पर बेकसूर(काफिर) को मार कर जन्नत मे 72 हूर (सुन्दर स्त्रियाँ) मिलने की बात कही हो वह पक्षपात होने के कारण अधर्म है। जहां केवल गंगा नहाने से पाप दूर होने की बात हो वह अधर्म है क्योंकि इस तरह की बातें पाप को बढ़ावा देती हैं।

🚩गटर का पानी और गंगा नदी का पानी को एक जैसे नही मानते है वैसे ही सनातन हिंदू धर्म है उसके बराबरी कोई नही कर सकता।

🚩धर्म का सम्बन्ध मनुष्य से है। ईंट पत्थर से धर्म नहीं बनता। कुत्ते बिल्ली से धर्म का सम्बन्ध नहीं है। धर्म का सम्बन्ध आचार विचार व्यवहार से है

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Monday, May 25, 2020

गुरु अर्जुन देवजी सबसे पहले शहीद हुए थे, उसके बाद मुगलो का विनाश शुरू हो गया...

25 मई 2020

🚩शक्ति और शांति के पुंज, शहीदों के सरताज, सिखों के पांचवें गुरु श्री अर्जुन देव जी कि शहादत अतुलनीय है। मानवता के सच्चे सेवक, धर्म के रक्षक, शांत और गंभीर स्वभाव के स्वामी श्री गुरु अर्जुन देव जी अपने युग के सर्वमान्य लोकनायक थे। वह दिन-रात संगत कि सेवा में लगे रहते थे। श्री गुरु अर्जुन देव जी सिख धर्म के पहले शहीद थे।

🚩भारतीय दशगुरु परम्परा के पंचम गुरु श्री गुरु अर्जुनदेव जी गुरु रामदास के सुपुत्र थे। उनकी माता का नाम बीवी भानी जी था। उनका जन्म 15 अप्रैल, 1563 ई. को हुआ था। प्रथम सितंबर 1581 को वे गुरु गद्दी पर विराजित हुए। 8 जून 1606 को उन्होंने धर्म व सत्य कि रक्षा के लिए 43 वर्ष की आयु में अपने प्राणों की आहुति दे दी। 

🚩संपादन कला के गुणी गुरु अर्जुन देव जी ने श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी का संपादन भाई गुरदास की सहायता से किया। उन्होंने रागों के आधार पर श्री ग्रंथ साहिब जी में संकलित वाणियों का जो वर्गीकरण किया है, उसकी मिसाल मध्यकालीन धार्मिक ग्रंथों में दुर्लभ है। यह उनकी सूझ-बूझ का ही प्रमाण है कि श्री ग्रंथ साहिब जी में 36 महान वाणीकारों की वाणियां बिना किसी भेदभाव के संकलित हुई। श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी के कुल 5894 शब्द हैं, जिनमें 2216 शब्द श्री गुरु अर्जुन देव जी महाराज के हैं। पवित्र बीड़ रचने का कार्य सम्वत 1660 में शुरू हुआ तथा 1661 में यह कार्य संपूर्ण हो गया।
🚩ग्रंथ साहिब के संपादन को लेकर कुछ असामाजिक तत्वों ने अकबर बादशाह के पास यह शिकायत कि, की ग्रंथ में इस्लाम के खिलाफ लिखा गया है लेकिन बाद में जब अकबर को वाणी की महानता का पता चला, तो उन्होंने भाई गुरदास एवं बाबा बुढ्ढाके माध्यम से 51 मोहरें भेंट कर खेद ज्ञापित किया।

🚩अकबर कि मौत के बाद उसका पुत्र जहांगीर गद्दी पर बैठा जो बहुत ही कट्टर विचारों वाला था। अपनी आत्मकथा ‘तुजुके-जहांगीरी’ में उसने स्पष्ट लिखा है कि वह गुरु अर्जुन देव जी के बढ़ रहे प्रभाव से बहुत दुखी था। इसी दौरान जहांगीर का पुत्र खुसरो बगावत करके आगरा से पंजाब की ओर आ गया।

🚩जहांगीर को यह सूचना मिली थी कि गुरु अर्जुन देव जी ने खुसरो की मदद की है इसलिए उसने 15 मई 1606 ई. को गुरु जी को परिवार सहित पकड़ने का हुक्म जारी किया। उनका परिवार मुरतजाखान के हवाले कर घरबार लूट लिया गया। इसके बाद गुरु जी ने शहीदी प्राप्त की। अनेक कष्ट झेलते हुए गुरु जी शांत रहे, उनका मन एक बार भी कष्टों से नहीं घबराया।

🚩गुरु अर्जुन देव जी को लाहौर में 17 जून 1606 ई. को भीषण गर्मी के दौरान ‘यासा’ के तहत लोहे कि गर्म तवी पर बिठाकर शहीद कर दिया गया। यासा के अनुसार किसी व्यक्ति का रक्त धरती पर गिराए बिना उसे यातनाएं देकर शहीद कर दिया जाता है।

🚩गुरु जी के शीश पर गर्म-गर्म रेत डाली गई। जब गुरु जी का शरीर अग्नि के कारण बुरी तरह से जल गया तो इन्हें ठंडे पानी वाले रावी दरिया में नहाने के लिए भेजा गया जहां गुरु जी का पावन शरीर रावी में आलोप हो गया। जिस स्थान पर आप ज्योति ज्योत समाए उसी स्थान पर लाहौर में रावी नदी के किनारे गुरुद्वारा डेरा साहिब (जो अब पाकिस्तान में है) का निर्माण किया गया है। गुरुजी ने लोगों को विनम्र रहने का संदेश दिया। आप विनम्रता के पुंज थे। कभी भी आपने किसी को दुर्वचन नहीं बोले।

🚩गुरवाणी में आप फरमाते हैं :
‘तेरा कीता जातो नाही मैनो जोग कीतोई॥
मै निरगुणिआरे को गुण नाही आपे तरस पयोई॥
तरस पइया मिहरामत होई सतगुर साजण मिलया॥
नानक नाम मिलै ता जीवां तनु मनु थीवै हरिया॥’


🚩श्री गुरु अर्जुनदेव जी की शहादत के समय दिल्ली में मध्य एशिया के मुगल वंश के जहांगीर का राज था और उन्हें राजकीय कोप का ही शिकार होना पड़ा। जहांगीर ने श्री गुरु अर्जुनदेव जी को मरवाने से पहले उन्हें अमानवीय यातानाएं दी।

🚩मसलन चार दिन तक भूखा रखा गया। ज्येष्ठ मास की तपती दोपहर में उन्हें तपते रेत पर बिठाया गया। उसके बाद खौलते पानी में रखा गया। परन्तु श्री गुरु अर्जुनदेव जी ने एक बार भी उफ तक नहीं की और इसे परमात्मा का विधान मानकर स्वीकार किया।

🚩बाबर ने तो श्री गुरु नानक जी को भी कारागार में रखा था। लेकिन श्री गुरु नानकदेव जी ने तो पूरे देश में घूम-घूम कर हताश हुई जाति में नई प्राण चेतना फूंक दी। जहांगीर के अनुसार उनका परिवार मुरतजाखान के हवाले कर लूट लिया गया। इसके बाद गुरु जी ने शहीदी प्राप्त की। अनेक कष्ट झेलते हुए गुरु जी शांत रहे, उनका मन एक बार भी कष्टों से नहीं घबराया।

🚩तपता तवा उनके शीतल स्वभाव के सामने सुखदाई बन गया। तपती रेत ने भी उनकी निष्ठा भंग नहीं की। गुरु जी ने प्रत्येक कष्ट हंसते-हंसते झेलकर यही अरदास की-

🚩तेरा कीआ मीठा लागे॥ हरि नामु पदारथ नाटीयनक मांगे॥

🚩जहांगीर द्वारा श्री गुरु अर्जुनदेव जी को दिए गए अमानवीय अत्याचार और अन्त में उनकी मृत्यु जहांगीर की योजना का हिस्सा थी। श्री गुरु अर्जुनदेव जी जहांगीर की असली योजना के अनुसार ‘इस्लाम के अन्दर’ तो क्या आते, इसलिए उन्होंने विरोचित शहादत के मार्ग का चयन किया। इधर जहांगीर कि आगे की तीसरी पीढ़ी या फिर मुगल वंश के बाबर की छठी पीढ़ी औरंगजेब तक पहुंची। उधर श्री गुरुनानकदेव जी की दसवीं पीढ़ी श्री गुरु गोविन्द सिंह तक पहुंची। 

🚩यहां तक पहुंचते-पहुंचते ही श्री नानकदेव की दसवीं पीढ़ी ने मुगलवंश की नींव में डायनामाईट रख दिया और उसके नाश का इतिहास लिख दिया।

🚩संसार जानता है कि मुट्ठी भर मरजीवड़े सिंघ रूपी खालसा ने 700 साल पुराने विदेशी वंशजों को मुगल राज सहित सदा के लिए ठंडा कर दिया।

🚩100 वर्ष बाद महाराजा रणजीत सिंह के नेतृत्व में भारत ने पुनः स्वतंत्रता कि सांस ली। शेष तो कल का इतिहास है लेकिन इस पूरे संघर्षकाल में पंचम गुरु श्री गुरु अर्जुनदेव जी कि शहादत सदा सर्वदा सूर्य के ताप की तरह प्रखर रहेगी।

🚩गुरु जी शांत और गंभीर स्वभाव के स्वामी थे। वे अपने युग के सर्वमान्य लोकनायक थे । मानव-कल्याण के लिए उन्होंने आजीवन शुभ कार्य किए।

🚩गुरु जी के शहीदी पर्व पर उन्हें याद करने का अर्थ है धर्म कि रक्षा आत्म-बलिदान देने को भी तैयार रहना। उन्होंने संदेश दिया कि महान जीवन मूल्यों के लिए आत्म-बलिदान देने को सदैव तैयार रहना चाहिए, तभी कौम और राष्ट्र अपने गौरव के साथ जीवंत रह सकते हैं।

🚩आज भी हिन्दू संतो को सताया जा रहा है, कहि हत्या की जा रही है तो कहि झूठे केस बनाकर जेल भिजवाया जा रहा है ऐसा लग रहा है कि अभी भी मुगल काल चल रहा है जो साधु-संत ईसाई धर्मान्तरण रोकते है, विदेशी प्रोडक्ट बन्द करवाकर स्वदेशी अपनाने के लिए करोड़ो लोगो को प्रेरित करते है, विदेशों में जाकर हिन्दू धर्म की महिमा बताते है, करोड़ो लोगों का व्यसन छुड़वाते है, करोड़ो लोगो को सनातन हिन्दू संस्कृति के प्रति प्रेरित करते हैं, जन-जागृति लाते है, गरीबों में जाकर जीवनुपयोगी वस्तुओं का वितरण करते है, गौशालायें खोलते है उन महान संतो को विदेशी ताकतों के इशारे पर मीडिया द्वारा बदनाम करवाकर झूठे केस में जेल भिजवाया जा रहा है इससे साफ पता चलता है कि मुगल तो गये लेकिन आज भी उनकी नस्ले देश में है जो ये षड्यंत्र करवा रही है।

🚩वर्तमान में भी हिन्दू समाज को जगे रहना जरूरी है नही तो विदेशी ताकते देश को गुलाम बनाने कि ताक में बैठी है।


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