लाखो वर्ष पहले से ही भारत के ऋषि-मुनियों ने विभिन्न क्षेत्रों में ज्ञान की खोज में रत रहते थे । उनका मस्तिष्क सृजनात्मक और बहुआयामी था । ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्रों में संसार को उनकी कई महत्वपूर्ण देनें हैं, जिसके लिए पूरा विश्व,राष्ट्र और समाज आज भी उनका ऋणी है ।
By whose knowledge NASA still teaches, today is the birth anniversary of the great sage Aryabhata ji |
अंग्रेजो के पिट्ठुयो के इतहास में लुटेरे, आक्रमणकारी मुगलों ओर अंग्रेजो का है इतिहास पढ़ाया जाता है वास्तव में जिन्होंने विश्व और समाज के लिए उपयोगी खोज किया उनका इतिहास ही खत्म कर दिया गया लेकिन उन महापुरुषों किसी परिचय के मोहताज नहीं थे और न ही झोलाछाप इतिहासकारों की लेखनी के बिना विस्मृत होने वाले हैं। उन तमाम महान आत्माओ में से एक हैं आर्यभट्ट । जिनका आज जयंतीहै। नासा आज भी उनकी ही शिक्षा से प्रयोगशाला चला रही है लेकिन अफ़सोस की बात तो ये है कि हम में से कोई भी उनके बारे में जानते ही नहीं हैं।
तो आइए आज जानते है उन महान ऋषि के बारे में...
खगोलशास्त्र का अर्थ है ग्रह, नक्षत्रों की स्थिति एवं गति के आधार पर पंचाग का निर्माण। जिससे शुभ कार्यों के लिए उचित मुहूर्त निकाला जा सके। इस क्षेत्र में भारत का लोहा दुनिया को मनवाने वाले वैज्ञानिक आर्यभट के समय में अंग्रेजी तिथियाँ प्रचलित नहीं थीं। अपने एक ग्रन्थ में उन्होंने कलयुग के 3,600 वर्ष बाद की मध्यम मेष संक्रान्ति को अपनी आयु 23 वर्ष बताये थे। इस आधार पर विद्वान् उनकी जन्मतिथि 21 मार्च 476 ई. मानते हैं। उनके जन्मस्थान के बारे में भी विद्वानों एवं इतिहासकारों में मतभेद रहा। उन्होंने स्वयं अपना जन्मस्थान कुसुमपुर बताया है। कुसुमपुर का अर्थ है फूलों का नगर।
जिसे आज पाटलिपुत्र या पटना के नाम से जाना जाता हैं। 973 ई. में भारत आये पर्शिया के विद्वान अलबेरूनी ने भी अपने यात्रा वर्णन में 'कुसुमपुर के आर्यभट' की चर्चा अनेक स्थानों पर की है। कुछ विद्वानों का मत है कि उनके पंचांगों का प्रचलन उत्तर की अपेक्षा दक्षिण में अधिक है, इसलिए कुसुमपुर कोई दक्षिण भारतीय नगर होगा। कुछ लोग इसे विन्ध्य पर्वत के दक्षिण में बहने वाली नर्मदा और गोदावरी के बीच का कोई स्थान बताते हैं। कुछ विद्वान आर्यभट को केरल निवासी मानते हैं।
पहले आर्यभट गणित, खगोल या ज्योतिष के क्षेत्र में भारतीय वैज्ञानिक नहीं थे पर उनके समय तक पुरानी अधिकांश गणनाएँ एवं मान्यताएँ विफल हो चुकी थीं। पितामह सिद्धान्त, सौर सिद्धान्त, वशिष्ठ सिद्धान्त, रोमक सिद्धान्त और पौलिष सिद्धान्त, यह पाँचों सिद्धान्त पुराने पड़ चुके थे। इनके आधार पर बतायी गयी ग्रहों की स्थिति तथा ग्रहण के समय आदि की प्रत्यक्ष स्थिति में काफी अन्तर मिलता था। इस कारण भारतीय ज्योतिष पर से लोगों का विश्वास उठ गया। ऐसे में लोग इन्हें अवैज्ञानिक एवं अपूर्ण मानकर विदेशी एवं विधर्मी पंचांगों की ओर झुकने लगे थे।
आर्यभट ने इस स्थिति को समझकर इस शास्त्र का गहन अध्ययन किया और उसकी कमियों को दूरकर नये प्रकार से जनता के सम्मुख प्रस्तुत किया। उन्होंने पृथ्वी तथा अन्य ग्रहों की अपनी धुरी तथा सूर्य के आसपास घूमने की गति के आधार पर अपनी गणनाएँ कीं। इससे लोगों का विश्वास फिर से भारतीय खगोलविद्या एवं ज्योतिष पर जम गया
इसी कारण लोग उन्हें भारतीय खगोलशास्त्र का प्रवर्तक भी मानते हैं। उन्होंने एक स्थान पर स्वयं को 'कुलप आर्यभट' कहा है। इसका अर्थ कुछ #विद्वान् यह लगाते हैं कि वे नालन्दा विश्वविद्यालय के कुलपति भी थे। उनके ग्रन्थ 'आर्यभटीयम्' से हमें उनकी महत्वपूर्ण खोज एवं शोध की जानकारी मिलती है। इसमें कुल 121 श्लोक हैं, जिन्हें #गीतिकापाद, गणितपाद, कालक्रियापाद और गोलापाद नामक चार भागों में बाँटा है।
इसी कारण लोग उन्हें भारतीय खगोलशास्त्र का प्रवर्तक भी मानते हैं। उन्होंने एक स्थान पर स्वयं को 'कुलप आर्यभट' कहा है। इसका अर्थ कुछ #विद्वान् यह लगाते हैं कि वे नालन्दा विश्वविद्यालय के कुलपति भी थे। उनके ग्रन्थ 'आर्यभटीयम्' से हमें उनकी महत्वपूर्ण खोज एवं शोध की जानकारी मिलती है। इसमें कुल 121 श्लोक हैं, जिन्हें #गीतिकापाद, गणितपाद, कालक्रियापाद और गोलापाद नामक चार भागों में बाँटा है।
वृत्त की परिधि और उसके व्यास के संबंध को 'पाई' कहते हैं। आर्यभट द्वारा बताये गये इसके मान को ही आज भी गणित में प्रयोग किया जाता है। इसके अतिरिक्त #पृथ्वी, चन्द्रमा आदि ग्रहों के प्रकाश का रहस्य, छाया का मापन, कालगणना, बीजगणित, त्रिकोणमिति, व्यासविधि, मूल-ब्याज, सूर्योदय व सूर्यास्त के बारे में भी उन्होंने निश्चित सिद्धान्त बताये। #आर्यभट की इन खोजों से गणित एवं खगोल का परिदृश्य बदल गया। उनके योगदान को सदा स्मरण रखने के लिए 19 अप्रैल 1975 को अन्तरिक्ष में स्थापित कियेे गये भारत में ही निर्मित प्रथम कृत्रिम उपग्रह का नाम 'आर्यभट' रखा गया।
न्यूटन ने 1500 साल पहले दिया था भारत को गुरुत्वाकर्षण बल के बारे में जानकारी।
देश के जाने-माने #वैज्ञानिक एवं भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के पूर्व प्रमुख जी माधवन नायर ने कहा कि वेद के कुछ श्लोकों में चंद्रमा पर जल की मौजूदगी का जिक्र है और आर्यभट्ट जैसे खगोलविद्वान न्यूटन से भी कहीं पहले गुरुत्वाकर्षण बल के बारे में जानते थे।
पद्म विभूषण से नवाजे जा चुके 71 साल के नायर ने कहा कि भारतीय वेदों और प्राचीन हस्तलेखों में भी #धातुकर्म, #बीजगणित, #खगोल शास्त्र, गणित, वास्तुकला एवं ज्योतिष-शास्त्र के बारे में सूचना थी और यह जानकारी उस वक्त से थी, जब पश्चिमी देशों को इनके बारे में पता भी नहीं था।
नायर ने कहा कि वेदों में दी गई जानकारी ‘संक्षिप्त स्वरूप’ में थी जिससे आधुनिक विज्ञान के लिए उन्हें स्वीकार करना मुश्किल हो गया। नायर ने कहा, एक वेद के कुछ श्लोकों में कहा गया है कि चंद्रमा पर जल है, लेकिन किसी ने इस पर भरोसा नहीं किया। हमारे चंद्रयान मिशन के जरिये हम इसका पता लगा सके और यह पता लगाने वाला हमारा देश पहला है।
उन्होंने कहा कि वेदों में लिखी सारी बातें नहीं समझी जा सकतीं क्योंकि वे क्लिष्ठ संस्कृत में हैं। पांचवीं सदी के खगोलविद्वान -गणितज्ञ आर्यभट्ट की तारीफ में नायर ने कहा - हमें वास्तव में गर्व है कि आर्यभट्ट और भास्कर ने ग्रहों एवं बाहरी ग्रहों के विषय पर गहन कार्य किया है। यह एक चुनौतीपूर्ण क्षेत्र था। उन्होंने कहा, यहां तक कि चंद्रयान के लिए भी आर्यभट्ट का समीकरण इस्तेमाल किया गया। गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र के बारे में भी न्यूटन को इसके बारे में करीब 1500 साल बाद पता चला। यह जानकारी हमारे पौराणिक ग्रंथों में है।
आज उस महानतम वैज्ञानिक और संसार को संसार के बारे में बताने वाले उस खगोलशास्त्री को उनके जयंती पर भारतवासी बारम्बार नमन करते हुए उनकी गौरवगाथा को सदा सदा के लिए अमर रखने का संकल्प लेते है ।
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