15 June 2018
महाराणा प्रताप का परिचय
जिनका नाम लेकर दिन का शुभारंभ करे, ऐसे नामों में एक हैं #महाराणा प्रताप । उनका नाम उन पराक्रमी राजाओं कि सूचि में सुवर्णाक्षरों में लिखा गया है जो देश, धर्म, संस्कृति तथा इस देश कि स्वतंत्रता कि रक्षा हेतु जीवन भर जूझते रहे ! उनकी वीरता कि पवित्र स्मृति को यह विनम्र अभिवादन है ।
इस बार महाराणा प्रताप जयंती 16 जून को है।
मेवाड़ के महान राजा #महाराणा प्रताप सिंह का नाम कौन नहीं जानता ? भारत के इतिहास में यह नाम वीरता, पराक्रम, त्याग तथा देशभक्ति जैसी विशेषताओं हेतु निरंतर प्रेरणादाई रहा है ।मेवाड़ के सिसोदिया परिवार में जन्मे अनेक पराक्रमी योद्धा जैसे बाप्पा रावल, राणा हमीर, राणा संगको ‘राणा’ यह उपाधि दी गई अपितु #महाराणा ’ उपाधिसे केवल प्रताप सिंहबको सम्मानित किया गया ।
Under the name of Maharana Pratap, Akbar used to sweat even in sleep, know his history |
#महाराणा प्रताप का बचपन
#महाराणा प्रताप का जन्म वर्ष 1540 में हुआ । मेवाड़ के राणा उदय सिंह, द्वितीय, के 33 बच्चे थे । उनमें प्रताप सिंह सबसे बड़े थे । स्वाभिमान तथा धार्मिक आचरण प्रताप सिंह की विशेषता थी । #महाराणा प्रताप बचपन से ही दृढ़ तथा बहादूर थे बड़ा होने पर यह एक महापराक्रमी पुरुष बनेगा, यह सभी जानते थे । सर्वसाधारण शिक्षा लेने से खेलकूद एवं हथियार बनाने की कला सीखने में उन्हें अधिक रुचि थी ।
#महाराणा प्रताप का राज्याभिषेक !
महाराणा प्रताप सिंह के काल में दिल्ली पर अकबर बादशाह का शासन था । हिंदू राजाओं कि शक्ति का उपयोग कर दूसरे हिंदू राजाओं को अपने नियंत्रण में लाना, यह उनकी नीति थी । कई राजपूत राजाओं ने अपनी महान परंपरा तथा लड़ने की वृत्ति छोड़कर अपनी बहुओं तथा कन्याओं को अकबर के अंत:पूर में भेजा ताकि उन्हें अकबर से इनाम तथा मानसम्मान मिलें । अपनी मृत्यू से पहले उदय सिंह ने उनकी सबसे छोटी पत्नी का बेटा जगम्मल को राजा घोषित किया जबकि प्रताप सिंह जगम्मल से बड़े थे प्रभु रामचंद्र जैसे अपने छोटे भाई के लिए अपना अधिकार छोडकर मेवाड़ से निकल जाने को तैयार थे । किंतु सभी सरदार राजा के निर्णय से सहमत नहीं हुए । अत: सब ने मिलकर यह निर्णय लिया कि जगमल को सिंहासन का त्याग करना पड़ेगा । #महाराणा प्रताप सिंह ने भी सभी सरदार तथा लोगों की इच्छा का आदर करते हुए मेवाड़ की जनता का नेतृत्व करने का दायित्व स्वीकार किया ।
#महाराणा प्रताप की अपनी मातृभूमि को मुक्त कराने की अटूट प्रतिज्ञा !
#महाराणा प्रताप का वजन 110 किलो, लम्बाई 7'5”थी, दो म्यान वाली तलवार और 80 किलो का भाला रखते थे ।
महाराणा प्रताप के शत्रुओं ने मेवाड़ को चारों ओर से घेर लिया था । #महाराणा प्रताप के दो भाई शक्ति सिंह एवं जगमल अकबर से मिले हुए थे । सबसे बड़ी समस्या थी आमने- सामने लडने हेतु सेना खड़ी करना जिसके लिए बहुत धन की आवश्यकता थी ।
महाराणा प्रताप की सारी संदूके खाली थीं जबकी #अकबर के पास बहुत बड़ी सेना, अत्यधिक संपत्ति तथा और भी सामग्री बड़ी मात्रा में थी । किंतु महाराणा प्रताप निराश नहीं हुए अथवा कभी भी ऐसा नहीं सोचा कि वे #अकबर से किसी बात में न्यून(कम) हैं ।
#महाराणा प्रताप को एक ही चिंता थी, अपनी मातभूमि को मुगलों के चंगुल से मुक्त कराना। एक दिन उ्न्होंने अपने विश्वास के सारे सरदारों की बैठक बुलाई तथा अपने गंभीर एवं वीरता से भरे शब्दों में उनसे आहवाहन किया ।
उन्होंने कहा,‘ मेरे बहादूर बंधुआ, अपनी मातृभूमि, यह पवित्र मेवाड़ अभी भी मुगलों के चंगुल में है । आज मैं आप सबके सामने प्रतिज्ञा करता हूं कि, जबतक #चितौड़ मुक्त नहीं हो जाता मैं सोने अथवा चांदी की थाली में खाना नहीं खाऊंगा, मुलायम गद्देपर नहीं सोऊंगा तथा राज प्रासाद में भी नहीं रहुंगा इसकी अपेक्षा मैं पत्तल पर खाना खाउंगा, जमीन पर सोउंगा तथा झोपडे में रहुंगा । जबतक #चितौड़ मुक्त नहीं हो जाता तबतक मैं दाढी भी नहीं बनाउंगा । मेरे पराक्रमी वीरों, मेरा विश्वास है कि आप अपने तन-मन-धन का त्याग कर यह प्रतिज्ञा पूरी होने तक मेरा साथ दोगे ।
अपने राजा की प्रतिज्ञा सुनकर सभी सरदार प्रेरित हो गए तथा उन्होंने अपने राजा की तन-मन-धन से सहायता करेंगे तथा शरीर में रक्त की आखरी बूंद तक उसका साथ देंगे किसी भी परिस्थिति में मुगलों से #चितौड़ मुक्त होने तक अपने ध्येय से नहीं हटेंगे, ऐसी प्रतिज्ञा की । उन्होंने #महाराणा से कहा- विश्वास करो हम सब आपके साथ हैं, आपके एक संकेत पर अपने प्राण न्यौछावर कर देंगे ।
#अकबर अपने महल में जब वह सोता था तब #महाराणा प्रताप का नाम सुनकर रात में नींद में कांपने लगता था। #अकबर की हालत देख उसकी पत्नियां भी घबरा जाती, इस दौरान वह जोर-जोर से #महाराणा प्रताप का नाम लेता था।
हल्दी घाट की लड़ाई #महाराणा प्रताप एक महान योद्धा
#अकबर ने महाराणा प्रताप को अपने चंगुल में लाने का अथाह प्रयास किया किंतु सब व्यर्थ सिद्ध हुआ! #महाराणा प्रताप के साथ जब कोई समझौता नहीं हुआ तो अकबर अत्यंत क्रोधित हुआ और उसने युद्ध घोषित किया । #महाराणा प्रताप ने भी सिद्धताएं आरंभ कर दी । उसने अपनी राजधानी अरवली पहाड़ के दुर्गम क्षेत्र कुंभल गढ़ में स्थानांतरित की । #महाराणा प्रताप ने अपनी सेना में आदिवासी तथा जंगलों में रहनेवालों को भरती किया । इन लोगों को युद्ध का कोई अनुभव नहीं था किंतु उसने उन्हें प्रशिक्षित किया । उन्होंने सारे राजपूत सरदारोंको मेवाड़ के स्वतंत्रता के झंडे के नीचे इकट्ठा होने हेतु आहवाहन किया ।
#महाराणा प्रताप के 22,000 सैनिक अकबर की 80,000 सेना से हल्दी घाट में भिड़े । महाराणा प्रताप तथा उसके सैनिकों ने युद्ध में बड़ा पराक्रम दिखाया किंतु उसे पीछे हटना पड़ा। #अकबर की सेना भी राणा प्रताप की सेना को पूर्ण रूप से पराभूत करने में असफल रही । महाराणा प्रताप एवं उसका विश्वसनीय घोडा ‘ चेतक ’ इस युद्ध में अमर हो गए । #हल्दीघाट के युद्ध में ‘ चेतक ’ गंभीर रुप से घायल हो गया था किंतु अपने स्वामी के प्राण बचाने हेतु उसने एक नहर के उस पार लंबी छलांग लगाई । नहर के पार होते ही ‘ चेतक ’ गिर गया और वहीं उसकी मृत्यु हुई । इस प्रकार अपने प्राणों को संकट में डालकर उसने राणा प्रताप के प्राण बचाएं । लौहपुरुष #महाराणा अपने विश्वसनीय घोड़े की मृत्यू पर एक बच्चे की तरह फूट-फूटकर रोये ।
तत्पश्चात जहां चेतक ने अंतिम सांस ली थी वहां उन्होंने एक सुंदर उद्यान का निर्माण किया । #अकबरने महाराणा प्रताप पर आक्रमण किया किंतु छह महिने युद्ध के उपरांत भी अकबर महाराणा को पराभूत न कर सका तथा वह दिल्ली लौट गया । अंतिम उपाय के रूप में अकबर ने एक #पराक्रमी योद्धा सर सेनापति जगन्नाथ को 1584 में बहुत बड़ी सेना के साथ मेवाड़ पर भेजा, दो वर्ष के अथक प्रयासों के पश्चात भी वह राणा प्रताप को नहीं पकड़ सका ।
महाराणा प्रताप का कठोर प्रारब्ध
जंगलों में तथा पहाडों की घाटियों में भटकते हुए राणा प्रताप अपना परिवार अपने साथ रखते थे । शत्रू के कहीं से भी तथा कभी भी आक्रमण करने का संकट सदैव बना रहता था । जंगल में ठीक से खाना प्राप्त होना बडा कठिन था । कई बार उन्हें खाना छोडकर बिना खाए-पिए ही प्राण बचाकर जंगलों में भटकना पडता था ।
शत्रू के आने की खबर मिलते ही एक स्थान से दूसरे स्थान की ओर भागना पडता था । वे सदैव किसी न किसी संकट से घिरे रहते थे । एक बार महारानी जंगल में रोटियां सेंक रही थी उनके खाने के बाद उसने अपनी बेटी से कहा कि, बची हुई रोटी रात के खाने के लिए रख दे किंतु उसी समय एक जंगली बिल्ली ने झपट्टा मारकर रोटी छीन ली और राजकन्या असहायता से रोती रह गई । रोटी का वह टुकडा भी उसके प्रारब्धमें नहीं था । राणा प्रताप को बेटी की यह स्थिति देखकर बडा दुख हुआ। अपनी वीरता, स्वाभिमान पर उन्हें बहुत क्रोध आया तथा विचार करने लगे कि उसका युद्ध करना कहां तक उचित है ! मन की इस दुविधा स्थिति में उसने #अकबर के साथ समझौता करने की बात मान ली ।
पृथ्वीराज, अकबर के दरबार का एक कवी जिसे राणा प्रताप बडा प्रिय था उसने राजस्थानी भाषा में राणा प्रताप का आत्मविश्वास बढाकर उसे अपने निर्णय से परावृत्त करनेवाला पत्र कविता के रुप में लिखा । पत्र पढकर राणा प्रताप को लगा जैसे उन्हें 10,000 सैनिकों का बल प्राप्त हुआ हो । उनका मन स्थिर तथा शांत हुआ । अकबर की शरण में जाने का विचार उसने अपने मन से निकाल दिया तथा अपने ध्येय सिद्धि हेतु सेना अधिक संगठित करने के प्रयास आरंभ किए ।
भामाशाह की महाराणा के प्रति भक्ति महाराणा प्रताप के वंशजोें के दरबार में एक राजपूत सरदार था । राणा प्रताप जिन संकटों से मार्गक्रमण रहे था तथा जंगलों में भटक रहे थे इससे वह बडा दुखी हुआ । उसने राणा प्रताप को ढेर सारी संपत्ति दी, जिससे वह 25,000 की सेना 12 वर्ष तक रख सके । महाराणा प्रतापको बडा आनंद हुआ एवं कृतज्ञता भी लगी ।
आरंभमें महाराणा प्रताप ने #भामाशाह की सहायता स्वीकार करने से मना किया किंतु उनके बार-बार कहने पर राणा ने संपात्ति का स्वीकार किया । #भामाशाहसे धन प्राप्त होनेके पश्चात राणा प्रतापको दूसरे स्रोत से धन प्राप्त होना आरंभ हुआ । उन्होंने सारा धन अपनी सेना का विस्तार करने में लगाया तथा चितौड़ छोडकर मेवाड को मुक्त किया ।
अपने शासनकाल में उन्होने युद्ध में उजड़े गाँवों को पुनः व्यवस्थित किया। नवीन राजधानी #चावण्ड को अधिक आकर्षक बनाने का श्रेय महाराणा प्रताप को जाता है। राजधानी के भवनों पर कुम्भाकालीन स्थापत्य की अमिट छाप देखने को मिलती है। #पद्मिनी चरित्र की रचना तथा दुरसा आढा की कविताएं महाराणा प्रताप के युग को आज भी अमर बनाये हुए हैं।
महाराणा प्रताप की अंतिम इच्छा
#महाराणा प्रताप की मृत्यु हो रही थी तब वे घास के बिछौनेपर सोए थे, क्योंकि #चितौड़ को मुक्त करने की उनकी प्रतिज्ञा पूरी नहीं हुई थी । अंतिम क्षण उन्होंने अपने बेटे अमर सिंह का हाथ अपने हाथ में लिया तथा चितौड़ को मुक्त करने का दायित्व उसे सौंपकर शांति से परलोक सिधारे । क्रूर बादशाह अकबर के साथ उनके युद्ध की इतिहास में कोई तुलना नहीं । जब लगभग पूरा राजस्थान मुगल बादशाह अकबरके नियंत्रणमें था, #महाराणा प्रतापने #मेवाड़ को बचाने के लिए 12 वर्ष युद्ध किया ।
अकबर ने महाराणा को पराभूत करने के लिए बहुत प्रयास किए किंतु अंत तक वह अपराजित ही रहा । इसके अतिरिक्त उन्होंने राजस्थान का बहुत बडा क्षेत्र मुगलों से मुक्त किया । कठिन संकटों से जाने के पश्चात भी उन्होंने अपना तथा अपनी मातृभूमिका नाम पराभूत होने से बचाया । उनका पूरा जीवन इतना उज्वल था कि स्वतंत्रताका दूसरा नाम ‘ #महाराणा प्रताप ’ हो सकता है । उनकी #पराक्रमी स्मृति को हम #श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं ।
महाराणा प्रताप में अच्छे सेनानायक के गुणों के साथ-साथ अच्छे व्यस्थापक की विशेषताएँ भी थी। अपने सीमित साधनों से ही अकबर जैसी शक्ति से दीर्घ काल तक टक्कर लेने वाले वीर #महाराणा प्रताप की मृत्यु पर #अकबर भी दुःखी हुआ था।
आज भी महाराणा प्रताप का नाम असंख्य भारतीयों के लिये #प्रेरणास्रोत है। राणा प्रताप का स्वाभिमान भारत माता की पूंजी है। वह अजर अमरता के गौरव तथा मानवता के विजय सूर्य है। राणा प्रताप की "देशभक्ति" पत्थर की अमिट लकीर है। ऐसे #पराक्रमी भारत माँ के वीर सपूत महाराणा प्रताप को #राष्ट्र का #शत्-शत् नमन।
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