Thursday, November 7, 2019

जानिए भीष्मपंचक व्रत से कितने है फायदे? और क्यो करना चाहिए ?

07 नवम्बर 2019

*🚩भीष्म पंचक का हिन्दू धर्म में बड़ा ही महत्त्व है। पुराणों तथा हिन्दू धर्मग्रंथों में कार्तिक माह में 'भीष्म पंचक' व्रत का विशेष महत्त्व कहा गया है। इस साल यह व्रत 08 नवम्बर से 12 नवम्बर तक है।*

*🚩 सदाचारी एवं संयमी व्यक्ति ही जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफलता प्राप्त कर सकता है । सुखी-सम्मानित रहना हो, तब भी ब्रह्मचर्य की जरूरत है और उत्तम स्वास्थ्य व लम्बी आयु चाहिए, तब भी ब्रह्मचर्य की जरूरत है ।*

*🚩 माँ गंगा के पुत्र भीष्म पितामह पूर्व जन्म में वसु थे । अपने पिता की इच्छा पूर्ति के लिए आजन्म अखण्ड ब्रह्मचर्य के पालन का दृढ संकल्प करने के कारण पिता की तरफ से उनको इच्छा मृत्यु का वरदान मिला था।*

*🚩 कार्तिक शुक्ल एकादशी से पूनम तक का व्रत ‘भीष्मपंचक व्रत कहलाता है । जो इस व्रत का पालन करता है, उसके द्वारा सब प्रकार के शुभ कृत्यों का पालन हो जाता है । यह महापुण्यमय व्रत महापातकों का नाश करनेवाला है । निःसंतान व्यक्ति पत्नीसहित इस प्रकार का व्रत करे तो उसे संतान की प्राप्ति होती है ।*

*🚩 भीष्मपंचक व्रत कथा:*

*🚩कार्तिक एकादशी के दिन बाणों की शय्या पर पड़े हुए भीष्मजी ने जल की याचना की थी । तब अर्जुन ने संकल्प कर भूमि पर बाण मारा तो गंगाजी की धार निकली और भीष्मजी के मुँह में आयी । उनकी प्यास मिटी और तन-मन-प्राण संतुष्ट हुए । इसलिए इस दिन को भगवान श्रीकृष्ण ने पर्व के रूप में घोषित करते हुए कहा कि ‘आज से लेकर पूर्णिमा तक जो अघ्र्यदान से भीष्मजी को तृप्त करेगा और इस भीष्मपंचक व्रत का पालन करेगा, उस पर मेरी सहज प्रसन्नता होगी ।*

*🚩 इसी संदर्भ में एक और कथा है...*

*महाभारत का युद्ध समाप्त होने पर जिस समय भीष्म_पितामह सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा में शरशैया पर  शयन कर रहे थे। तक भगवान कृष्ण पाँचो पांडवों को साथ लेकर उनके पास गये थे। ठीक अवसर मानकर युधिष्ठर ने भीष्म पितामह से उपदेश देने का आग्रह किया। भीष्म जी ने पाँच दिनों तक राज धर्म ,वर्णधर्म मोक्षधर्म आदि पर उपदेश दिया था । उनका उपदेश सुनकर श्रीकृष्ण सन्तुष्ट हुए और बोले, ”पितामह! आपने शुक्ल एकादशी से पूर्णिमा तक पाँच दिनों में जो धर्ममय उपदेश दिया है उससे मुझे बड़ी प्रसन्नता हुई है। मैं इसकी स्मृति में आपके नाम पर भीष्म पंचक व्रत स्थापित करता हूँ । जो लोग इसे करेंगे वे जीवन भर विविध सुख भोगकर अन्त में मोक्ष प्राप्त करेंगे।*

*🚩भीष्म पंचक व्रत में क्या करना चाहिए ?* 

*इन पाँच दिनों में अन्न का त्याग करें । कंदमूल, फल, #दूध अथवा #हविष्य (विहित सात्त्विक आहार जो यज्ञ के दिनों में किया जाता है) लें ।*

*🚩 इन पाँच दिनों में निम्न मंत्र से भीष्मजी के लिए तर्पण करना चाहिए :*

*सत्यव्रताय शुचये गांगेयाय महात्मने ।* *भीष्मायैतद् ददाम्यघ्र्यमाजन्मब्रह्मचारिणे ।।*

*‘आजन्म ब्रह्मचर्य का पालन करनेवाले परम पवित्र, सत्य-व्रतपरायण गंगानंदन महात्मा भीष्म को मैं यह अर्घ्य देता हूँ ।*

*(स्कंद पुराण, वैष्णव खंड, कार्तिक माहात्म्य)*

*🚩अर्घ्य के जल में थोडा-सा कुमकुम, केवड़ा, पुष्प और पंचामृत (गाय का दूध, दही, घी, शहद और शक्कर) मिला हो तो अच्छा है, नहीं तो जैसे भी दे सकें । ‘मेरा ब्रह्मचर्य दृढ रहे, संयम दृढ़ रहे, मैं कामविकार से बचूँ... - ऐसी प्रार्थना करें ।*

*🚩इन पाँच दिनों में अन्न का त्याग करें । कंदमूल, फल, दूध अथवा हविष्य (विहित सात्त्विक आहार जो यज्ञ के दिनों में किया जाता है) लें ।*

*🚩इन दिनों में पंचगव्य (गाय का दूध, दही, घी, गोझरण व गोबर-रस का मिश्रण) का सेवन लाभदायी है ।*

*🚩पानी में थोड़ा-सा गोझरण डालकर स्नान करें तो वह रोग-दोषनाशक तथा पापनाशक माना जाता है ।*

*🚩इन दिनों में #ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए ।*

*🚩जो नीचे लिखे #मंत्र से भीष्मजी के लिए अर्घ्यदान करता है, वह मोक्ष का भागी होता है :*
*वैयाघ्रपदगोत्राय सांकृतप्रवराय च । अपुत्राय ददाम्येतदुदकं भीष्मवर्मणे ।।*
*वसूनामवताराय शन्तनोरात्मजाय च । अघ्र्यं ददामि भीष्माय आजन्मब्रह्मचारिणे ।।*

*‘जिनका व्याघ्रपद गोत्र और सांकृत प्रवर है, उन पुत्ररहित भीष्मवर्मा को मैं यह जल देता हूँ । वसुओं के अवतार, शान्तनु के पुत्र, आजन्म ब्रह्मचारी भीष्म को मैं अर्घ्य देता हूँ ।*

*🚩 इस व्रत का प्रथम दिन #देवउठी एकादशी है l इस दिन भगवान नारायण जागते हैं l इस कारण इस दिन निम्न मंत्र का उच्चारण करके भगवान को जगाना चाहिए :*
*उत्तिष्ठोत्तिष्ठ गोविन्द उत्तिष्ठ गरुडध्वज l*
*उत्तिष्ठ कमलाकान्त त्रैलोक्यमन्गलं कुरु ll*

*'हे गोविन्द ! उठिए, उठिए , हे गरुड़ध्वज ! उठिए, हे कमलाकांत ! #निद्रा का त्याग कर तीनों लोकों का मंगल कीजिये l'*
*(ऋषि प्रसाद : नवम्बर 2007)*

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Tuesday, October 22, 2019

कमलेश तिवारी जी की कौनसी रणनीति के तहत हत्या किया?

22 अक्टूबर 2019

🚩 *इस्लाम के आखिरी पैगंबर मुहम्मद ने जिहाद यानी गैर मुसलमानों के खिलाफ धर्मयुध्द की सफलता के लिये तीन महत्वपूर्ण रणनीति निर्धारित की है:*
*1- धोखेबाजी*
*2- आतंक , और*
*3- पहले हमले की पहल*

🚩 *यही इस्लाम की नैतिकता है। मुहम्मद ने बुखारी , हदीस संख्या 1213 , के अनुसार लड़ाई का नाम धोखा रखा है। हर मुसलमान के जीवन में यह इस्लामी दर्शन शांति और युध्द काल दोनों में समान रूप से कायम रहता है। चूंकि कुरानी दर्शन जिहाद है, जो काफिरों के विरुद्ध चौतरफा लड़ाई है, इसलिये धोखेबाजी का आचरण उसके जीवन का अभिन्न अंग होता है। कमलेश तिवारी की हत्या के पीछे भी यही कुरानी दर्शन और सुन्नत है। स्वयं मुहम्मद का जीवन इसका गवाह है। कैसे ? संक्षेप में :*

🚩 *मदीना में आसमा नामक कवियित्री की मुहम्मद ने बस इसलिये हत्या करवाई कि उसने मुहम्मद के खिलाफ तुकबंदी की थी।मदीना में ही एक सौ साल के वृद्ध यहूदी कवि अबू अफाक थे। उन्होंने ने भी मुहम्मद के खिलाफ कविता बनाई थी। उनकी हत्या हो गई।  एक कवि जिनका नाम काब इब्न अशरफ था उसकी भी धोखे से इन्हीं कारणों के चलते हत्या करवा दी।फिर अपने अनुयायियों को यहूदियों की खुली हत्या की छूट दे दी। तब इब्न सुनैना नामके व्यापारी की उसी के टुकड़ों पर पल रहे एक मुसलमान ने हत्या कर दी। कवि नाजिर इब्न हरीथ को गिरफ्तार कर बस इसलिये कत्ल कर डाला गया कि उसने मुहम्मद की चुनौती स्वीकार करते हुये उन्हीं जैसी आयत बनाकर सुना दिया था। जो भी विचारशील थे और मुहम्मद की किसी भी रुप में स्वस्थ आलोचना भी करते थे उनकी धोखे से हत्या करवा देना नियम बन गया था। खैबर से मदीना आते हुये 28 यहूदियों की बिना किसी उकसावे के धोखे से हत्या करा दी गयी। उनका धन लूटा गया और औरतों को मुसलमानों में बांटा गया। बानू कुरेज़ा नामक यहूदी कबीले के 800 लोगों को गिरफ्तार कर दिन भर कसाई की तरह काटा गया और एक विशाल कब्र में भर दिया गया। कैनुका और बानू नाजिर नामक दो यहूदी कबीलों को सिर्फ इस्लाम न मानने के कारण, उनका सब कुछ लूटकर, मदीना से बेदखल कर दिया गया। मुहम्मद के जीवन काल में ही इस्लाम मानने को विवश करने के लिये काफिरों के विरूध्द तीन या चार को छोड़कर बयासी एकतरफा हमले किये गये। इनमें हत्या, लूट, अपहरण और विध्वंश का नंगा नाच हुआ। बेटे ने इस्लाम न माने जाने पर अपने पिता की हत्या की भी इस्लामिक कसम खाई। काफिर औरत की छाती से लगे दूध पीते बच्चे को झटके से अलग कर उसकी मां के सीने में खंजर भोंक दिया गया। मुर्शिदाबाद में तो मां के गर्भ में पल रहे बच्चे को भी मां सहित नहीं बक्शा गया। उपर्युक्त सूची मात्र ही इस्लामी आतंक को दिखलाने के लिये पर्याप्त है।*

🚩 *स्पष्ट है कि कुरान, हदीस और मुहम्मद के क्रियाकलापों से शिक्षा ग्रहण कर मुसलमान छल-कपट और जिहाद से संपोषित जिहाद का पालन शांति और युध्दकाल दोनों में करते है। जब संख्या बल कम हो यह जिहाद अस्त्र शस्त्रों से सुसज्जित होना है। अल्लाह ने भी अन्य कई आयतों के अलावा यह भी फरमाया है कि वह काफिरों के दिल में दहशत पैदा करेगा। कमलेश तिवारी की जघन्य हत्या का मकसद भी दहशत फैलाना ही है।*

🚩 *तीसरी रणनीति है पहले आक्रमण करना जब काफिर मुस्लिम योजना से बिलकुल अनजान और असावधान हों। ब्रि. मलिक ने ओहद की लड़ाई की समीक्षा में बताया कि कठिन परिस्थिति में भी मुहम्मद ने, जिसमें वो पराजित हुये, दांत भी टूटे और जान बची, पहले हमले की कार्यवाही शत्रु के हाथ नहीं जाने दी। यही रणनीति सभी मुस्लिम दंगों में देखी जाती है। जब गैर मुसलमान बिना किसी संदेह के निश्चिंततापूर्वक अपने कार्य में लगे रहते हैं मुसलमान उनपर हमला कर कत्ल ए आम मचा देते हैं। कमलेश तिवारी के साथ भी यही किया गया।*

🚩 *यह भी लगे हाथ समझ लेना जरुरी है कि मुसलमान और गैर मुसलमान के बीच संघर्ष का लगभग स्थाई कारण राजनीतिक और आर्थिक न होकर धर्म ही है। यह भी हमारी कोरी भ्रांति और झूठा प्रचार है कि गरीबी, और बेरोजगारी के चलते मुसलमान जिहादी और आतंकवादी बन रहे हैं। कमलेश तिवारी की हत्या के लिये 51लाख का फतवा कैसे एक गरीब मुसलमान जारी कर सकता है ?*

🚩 *ओसामा बिन लादेन से मशहूर पाकिस्तानी पत्रकार रहीमुल्ला यूसुफज़ई , ए बी सी के पत्रकार जान मिलर एवं अरबी पत्रिका निदा-उल-इस्लाम द्वारा किए गये साक्षात्कारों के आधार पर कुछ चुनिंदा सवाल-जवाब "मुस्लिम आतंकवाद बनाम अमरीका" (वाणी प्रकाशन,नई दिल्ली-11002) नामक पुस्तक में प्रकाशित किये गये हैं। एक प्रश्न में ओसामा से पूछा गया:*

*" आप एक बहुत धनी घराने से सबंधित होने के बावज़ूद भी आराम की ज़िंदगी छोड़कर युध्द और कष्टों के बीच जीवन गुजार रहे हैं। अमरीकियों को यह बहुत अटपटा लगता है।*

🚩 *उत्तर - यह समझना बहुत मुश्किल है, खास तौर से उनके लिये जो इस्लाम को नहीं समझते। हमारे धर्म का यह विश्वास है कि अल्लाह ने हमें इसलिये बनाया कि हम उसकी इबादत करें। उसी ने हमें यह मजहब दिया। अल्लाह का आदेश है कि सर्वोच्चता कायम करने के लिये हम जिहाद करें। पश्चिम में यह झूठा प्रचार किया जाता है कि गरीबी के कारण लोग जिहादी बन रहे हैं।इसमें बहुत से धनीमानी युवा भी जुड़ चुके है।"*

🚩 *कमलेश तिवारी की हत्या के पीछे अल्ल्लाह का काफिरों के विरुद्ध यही जिहाद करने का आदेश है। यह आदेश हम सभी काफिरों के मारे जाने तक वैध, लागू और पाक है। यह सभी मुसलमानों पर फर्ज है। इसप्रकार हम देखते हैं कि कुरान, हदीस और सीरत-अन-नबी सम्मत इस्लामिक योजनाओं और क्रियाकलापों का जो चित्र उभरता है उसमें हर मुस्लिम कार्रवाई की जड़ में उसका मजहब ही था, है और कयामत तक रहेगा।*

🚩 *पर इतिहास की लंबी कालावधि में मुस्लिम चरित्र को देखकर भी हिंदू बुद्धिजीवियों, हिंदू राजनीतिज्ञों, हिंदू धर्म गुरुओं और हिंदू धर्म व्यवसाइयों ने कभी इस्लाम का गहन अध्ययन करने, उसके उद्देश्यों, कार्य योजनाओं और कार्यक्रमों - धोखेबाजी , आतंक , अचानक हमला - को इस्लाम के ही धर्मग्रंथों से और इसके खूनी इतिहास को समझने और हिंदुओं को समझाने का प्रयास ही नहीं किया। जब ऐसा नहीं किया तो उसके हमलों से बचने का उपाय कैसे करता ? इसीलिये हिंदू समाज इस्लाम के हाथों सदा कुचला गया- बिना समुचित प्रतिरोध के अनवरत। आज हिंदू अपने ही देश में अस्तित्व रक्षा की समस्या से ग्रसित है और तथाकथित हिंदू बुद्धिजीवी सामाजिक अस्तित्व की चिंता से मुक्त जीविकोर्पाजन तक ही सिमटा है। कमलेश तिवारी की हत्या इसका ज्वलंत प्रमाण है।*

🚩 *अगर हिंदू समाज को इस्लाम के उद्देश्यों, शिक्षाओं और कार्यविधियों का ज्ञान होता तो वह विभाजन पूर्व कोलकटा की सड़कों और गलियों में भेड़-बकरियों की तरह काटा नहीं जाता। वह पहले से बचाव के साधनों और उपायों का प्रयोग कर हमलावरों का विनाश कर पाता। मालदा में मुसलमान क्या करेगा उसको समझ हथियार बंद होकर तैयार रहता। देश के विभिन्न हिस्सों में जुम्मे की नमाज के बाद उपद्रवियों को सबक सिखा पाता। लखनऊ के नाकाम हिंडोला में जुम्मे की नमाज के बाद मुसलमान कमलेश तिवारी के साथ करेगा करेगा उसे पता होता। वह इसके लिये तैयार होता। कमलेश तिवारी के हत्यारों को हत्या के पहले या बाद मौके पर ही काट डालता। धार्मिक जुलूस निकालते समय हर तरीके से बचाव के लिये तैयार रहता। मुस्लिम परस्त सरकारों का क्या रवैया होगा, प्रशासनिक अधिकारियों के क्या निर्णय होंगे, मीडिया और सिकुलर बुध्दिजीवी क्या विषवमन करेंगे इसके लिये पहले से तैयार रहता। मुस्लिम नेता और मौलवी कैसी भाषा बोलेगा और मस्जिदों के माध्यम से मुसलमानों को क्या निर्देश देगा। मुस्लिम गुंडों को मजहबी मुजाहिदीन का सम्मान देकर कैसे थाने से छुड़ायेगा। ट्रकों पर लाठी, भाला, गड़ांसा, आग लगाने के सामानों को लादकर हिंदू विनाश के लिये उसे स्वयं जगह-जगह भेजने की व्यवस्था कैसे करेगा। तब हिंदू को पता होता कि ये लोग कैसे कैसे अत्याचार, दुराचार करेंगे और क्यों करेंगे। यह भी पता होता कि अपने किये हुये दुराचारों के लिये मुसलमान मुर्शिदाबाद के हिंदू भुक्तभोगी पर ही उल्टा दोषारोपण भी करेंगे। किसी समस्या के समाधान के लिये पहला कदम है उसे समझना। अगर समस्या का रुप सामाजिक है तो सामाजिक तौर पर एकजुट होकर समझना और एक होकर अपने बचाव की तैयारी रखना। अपने बचाव के लिये हर हालत में तैयार रहना गैर कानूनी भी नहीं है।*

🚩 *भूमिका में जो ऊपर लिखा गया है वो बेमतलब नहीं है। मकसद है पिछले करीब सौ सालों से भारत में करोड़ों हिंदू,सिख और बौद्धोंका जो वीभत्स कत्ल ए आम हुआ वह इसी इस्लामी फितरत - धोखेबाजी, आतंक , अचानक हमले- के कारण ही हुआ। इस फितरत को समझकर पूर्व तैयारी के साथ पलटवार कर हम इस इस्लामी फितरत को बहुत आसानी से पराजित कर सकते हैं।*

🚩 *कमलेश तिवारी की हत्या भी इसी इस्लामी फितरत- धोखेबाजी, आतंक, अचानक हमले- के कारण हुयी। उनकी हत्या का कारण उनका मोहम्मद के बारे में दिया बयान ही सिर्फ नहीं है। उनका काफिर होना ही प्रर्याप्त था उनके कत्ल के लिये। जिस धवन ने मुसलमानों की ओर से राम जन्मभूमि पर बहस की, जो अखिलेश यादव, अंबेडकरवादी, कांग्रेसी और समाजवादी गैर मुसलमान मुसलमानों के पैरोकार बने हुये हैं वो सब इस्लाम की नज़र में काफिर होने के कारण कत्ल के लायक ही हैं। इन सबका भी अंततोगत्वा वहीं हश्र होना है जो कमलेश तिवारी का हुआ। -अरुण लवानिया*

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Saturday, October 19, 2019

के.के. मुहम्मद का खुलासा : अयोध्या में बाबरी मस्जिद नहीं, राम मंदिर था

18 अक्टूबर 2019

*🚩 भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के उत्तरी क्षेत्र के क्षेत्रीय निर्देशक रह चुके के.के. मुहम्मद ने अपनी किताब में लिखा है कि अयोध्या में राम जन्मभूमि के मालिकाना हक़ को लेकर 1990 में पूरे देश में बहस ने जोर पकड़ा था । इसके पहले 1976-77 में पुरातात्विक अध्ययन के दौरान अयोध्या में होने वाली खुदाई में हिस्सा लेने के लिए मुझे भी भेजा गया ।*

*🚩प्रो. बी.बी. लाल की अगुवाई में अयोध्या में खुदाई करने वाली आर्कियोलॉजिस्ट टीम में दिल्ली स्कूल ऑफ आर्कियोलॉजी के 12 छात्रों में से एक मैं भी था । उस समय के उत्खनन में हमें मंदिर के स्तंभों के नीचे के भाग में ईंटों से बनाया हुआ आधार देखने को मिला । हमें हैरानी थी कि किसी ने इसे कभी पूरी तरह खोदकर देखने की जरूरत ही नहीं समझी । ऐसी खुदाइयों में हमें इतिहास के साथ-साथ एक पेशेवर नजरिया बनाए रखने की भी जरूरत होती है ।*

*🚩खुदाई के लिए जब मैं वहां पहुंचा तब बाबरी मस्जिद की दीवारों में मंदिर के खंभे साफ-साफ दिखाई देते थे । मंदिर के उन स्तंभों का निर्माण ‘ब्लैक बसाल्ट’ पत्थरों से किया गया था । स्तंभ के नीचले भाग में 11वीं और 12वीं सदी के मंदिरों में दिखने वाले पूर्ण कलश बनाए गए थे । मंदिर कला में पूर्ण कलश 8 ऐश्वर्य चिन्हों में एक माने जाते हैं ।*

*🚩1992 में बाबरी मस्जिद ढहाए जाने के ठीक पहले इस तरह के एक या दो स्तंभ नहीं, बल्कि कुल 14 स्तंभों को हमने करीब से देखा । उस दौरान भी वहां पर कड़ी पुलिस सिक्योरिटी हुआ करती थी और मस्जिद में प्रवेश मना था। लेकिन खुदाई और रिसर्च से जुड़े होने के कारण हमारे लिए किसी प्रकार का प्रतिबंध नहीं था । खुदाई के लिए हम करीब दो महीने अयोध्या में रहे । यह समझना बिल्कुल भी मुश्किल नहीं था कि बाबर के सिपहसलार मीर बाकी ने कभी यहां रहे विशाल मंदिर को तुड़वाकर उसके टुकड़ों से ही बाबरी मस्जिद बनवाई होगी ।*

*🚩खुदाई से मिले सबूतों के आधार पर मैंने 15 दिसंबर 1990 को बयान दिया कि बाबरी मस्जिद के नीचे मंदिर के अवशेष को मैंने खुद देखा है । उस समय माहौल गरम था । हिंदू और मुसलमान दो गुटों में बंटे थे । कई नरमपंथियों ने समझौते की कोशिश की, लेकिन तब तक विश्व हिंदू परिषद का आंदोलन बढ़ चुका था । बाबरी मस्जिद हिंदुओं को देकर समस्या का समाधान करने के लिए कुछ मुसलमान तैयार थे, लेकिन इसे खुलकर कहने की किसी में हिम्मत नहीं थी ।*

*🚩बाबरी मस्जिद पर दावा छोड़ने से विश्व हिंदू परिषद के पास कोई मुद्दा नहीं रह जाएगा, कुछ मुसलमानों ने ऐसा भी सोचा । इस तरह के विचारों से समस्या के समाधान की संभावना पैदा होती । ऐसी स्थिति में इतिहास और पुरातात्विक खोजबीन समस्या सुलझाने में मददगार हो सकते थे । लेकिन खेद के साथ कहना पड़ेगा कि कट्टरपंथी मुस्लिम संगठनों की मदद करने के लिए कुछ वामपंथी इतिहासकार सामने आए और उन्होंने मुसलमानों को उकसाया कि वो किसी हाल में मस्जिद पर अपना दावा न छोड़ें ।*

*🚩उन्हें यह मालूम नहीं था कि वे कितना बड़ा पाप कर रहे हैं । जे.एन.यू. के एस. गोपाल, रोमिला थापर, बिपिन चंद्रा जैसे इतिहासकारों ने कहा कि 19वीं सदी के पहले मंदिर तोड़ने का सुबूत नहीं है । यहां तक कि उन्होंने अयोध्या को ‘बौद्घ-जैन केंद्र’ तक कह डाला । उनका साथ देने के लिए आर.एस. शर्मा, अनवर अली, डी.एन. झा, सूरजभान, प्रो. इरफान हबीब जैसे ढेरों वामपंथी इतिहासकार भी सामने आ गए । इनमें केवल सूरजभान पुरातत्वविद् थे । प्रो आर.एस. शर्मा के साथ रहे कई इतिहासकारों ने बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के विशेषज्ञ के रूप में कई बैठकों में भाग लिया । मतलब साफ है कि ये वामपंथी इतिहासकार समस्या सुलझाने के बजाय आग में घी डालने में जुटे थे ।*

*🚩बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी की कई बैठकें भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद (ICHR) के अध्यक्ष प्रो. इरफान हबीब की अध्यक्षता में हुईं । कमेटी की बैठक परिषद के सरकारी दफ्तर में करने का तत्कालीन सदस्य सचिव और इतिहासकार प्रो एमजीएस नारायण ने कड़ा विरोध भी किया लेकिन प्रो. इरफान हबीब ने उसे नहीं माना । वामपंथी इतिहासकारों ने अयोध्या की वास्तविकता पर सवाल उठाते हुए लगातार लेख लिखे और उन्होंने जनता में भ्रम और असमंजस का माहौल पैदा किया ।*

*🚩वामपंथी इतिहासकार और उनका समर्थन करने वाली मीडिया ने समझौते के पक्ष में रहे मुस्लिम बुद्घिजीवियों को मजबूर कर दिया कि वो अपने विचार त्याग दें । वरना आज भी मुसलमानों की अच्छी-खासी आबादी मानती है कि अयोध्या के धार्मिक महत्व को देखते हुए अगर मुस्लिम अपने पैर पीछे खींच लें तो देश के इतिहास में यह मील का पत्थर होगा । इससे आगे के लिए हिंदू-मुस्लिम झगड़ों की एक बड़ी वजह खत्म हो जाएगी । दोनों समुदायों के बीच आपसी अविश्वास भी खत्म होगा, लेकिन कॉमरेड इतिहासकारों ने यह होने नहीं दिया ।*

*🚩इससे एक बात स्पष्ट हो जाती है कि हिंदू या मुस्लिम कट्टरपंथ से ज्यादा वामपंथी विचार देश के लिए खतरा हैं । सेकुलर नजरिए से समस्या को देखने के बजाय वामपंथियों की आंख से अयोध्या मामले का विश्लेषण एक बड़ी भूल साबित हुई । राष्ट्र को इसकी कितनी बड़ी कीमत चुकानी पड़ी, यह अंदाजा अभी लोगों को नहीं है।*

*🚩इतिहास अनुसंधान परिषद (ICHR) में समस्या का समाधान चाहने वाले कई लोग थे, लेकिन इरफान हबीब के सामने वो कुछ नहीं कर सके । इरफान हबीब ने आरएसएस की तुलना आईएस जैसे आतंकवादी संगठन से की थी। आई.सी.एच.आर. के ज्यादातर सदस्य उनसे सहमत नहीं थे, लेकिन विरोध करने की हिम्मत किसी में नहीं हुई ।*

*🚩अयोध्या मामले के पक्ष और विपक्ष में इतिहासकार और पुरातत्वविद् भी गुटों में बंटे हुए थे । बाबरी मस्जिद टूटने के बाद पड़े मलबे में जो सबसे महत्वपूर्ण अवशेष मिला था वो था-विष्णु हरिशिला पटल । इसमें 11वीं और 12वीं सदी की नागरी लिपि में संस्कृत भाषा में लिखा गया है कि यह मंदिर बाली और दस हाथों वाले (रावण) को मारने वाले विष्णु (श्रीराम विष्णु के अवतार माने जाते हैं) को समर्पित किया जाता है ।*

*🚩1992 में डॉ. वाई.डी. शर्मा और डॉ. के.एन. श्रीवास्तव के सर्वे में वैष्णव अवतारों और शिव-पार्वती के कुषाण जमाने (ईसा से 100-300 साल पहले) की मिट्टी की मूर्तियां मिली हैं । 2003 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ बेंच के आदेश से हुई खुदाई में करीब 50 मंदिर-स्तंभों के नीचे के भाग में ईंटों से बनाया चबूतरा मिला था । इसके अलावा मंदिर के ऊपर का आमलका और मंदिर के अभिषेक का जल बाहर निकालने वाली मकर प्रणाली भी उत्खनन में मिली थी ।*

*🚩यूपी में पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के डायरेक्टर की रिपोर्ट में कहा गया है कि बाबरी मस्जिद के आगे के भाग को समतल करते समय मंदिर से जुड़े कुल 263 पुरातात्विक अवशेष मिले हुए । खुदाई से मिले इन तमाम सबूतों के आधार पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग इस निर्णय पर पहुंचा कि बाबरी मस्जिद के नीचे एक मंदिर दबा हुआ है। सीधे तौर पर कहें तो बाबरी मस्जिद इस मंदिर को तोड़कर उसके मलबे पर बनाई गई है। इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने भी यही फैसला सुनाया था ।*

*🚩अयोध्या में हुई खुदाई में कुल 137 मजदूर लगाए गए थे, जिनमें से 52 मुसलमान थे । बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के प्रतिनिधि के तौर पर सूरजभान मंडल, सुप्रिया वर्मा, जया मेनन आदि के अलावा इलाहाबाद हाई कोर्ट का एक मजिस्ट्रेट भी इस पूरी खुदाई की निगरानी कर रहा था । जाहिर है इसके नतीजों पर सवाल उठाने का कोई आधार नहीं है ।*

*🚩ज्यादा हैरानी तो तब हुई जब इलाहाबाद हाई कोर्ट ने मंदिर के पक्ष में फैसला सुनाया तो भी वामपंथी इतिहासकार गलती मानने को तैयार नहीं हुए । इसका बड़ा कारण यह था कि खुदाई के दौरान जिन इतिहासकारों को शामिल किया गया था वो दरअसल निष्पक्ष न होकर बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के प्रतिनिधि के तौर पर काम कर रहे थे । इनमें से 3-4 को ही आर्कियोलॉजी की तकनीकी बातें पता थीं । सबसे बड़ी बात कि ये लोग नहीं चाहते थे कि अयोध्या का ये मसला कभी भी हल हो । शायद इसलिए क्योंकि वो चाहते हैं कि भारत के हिंदू और मुसलमान हमेशा ऐसे ही आपस में उलझे रहें।*

*(लेखक के.के. मुहम्मद भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के उत्तरी क्षेत्र के क्षेत्रीय निर्देशक रह चुके हैं । यह लेख उनकी किताब मैं_भारतीय हूं का एक संपादित हिस्सा है)*

*करोड़ों लोगों के आस्था स्वरूप भगवान श्रीराम का मंदिर अयोध्या में था जिसे विदेशी क्रूर, आक्रमणकारी, लुटेरा, बलात्कारी मुग़ल बाबर के सेनापति मीर बाकी ने तोड़ दिया था, इसके सबूत भी हैं फिर भी सदियों हो गए लेकिन मन्दिर नहीं बन पाया।*

*अब सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई पूरी हो गई है करोड़ों हिंदुओं को अब आशा है कि अयोध्या में शीघ्र भव्य श्री राम मंदिर बनेगा और फिर से देश मे राम राज्य की स्थापना होगी।*

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Friday, October 18, 2019

बंगाल को 16 अक्टूबर को बांट दिया था, आज भी बना है खतरा

16 अक्टूबर 2019

क्रांतिकारियों से नफरत करने वाले एक अंग्रेज उच्च अधिकारी ने, सेवानिवृत्ति के बाद, कुछ अंग्रेज टाईप भारतीयों को लेकर 1885 में “इंडियन नेशनल कांग्रेस” की स्थापना की थी, जिसका उद्देश्य अर्द्ध अंग्रेज अर्द्ध भारतीय लोगों का सहारा लेकर, जनता के मन में अंग्रेजों के प्रति नफरत कम करना था। ए. ओ. ह्युम की यह चाल कामयाब रही और लगभग बीस साल तक कोई क्रांतिकारी घटना नहीं हुई।

1905 में 16 अक्टूबर के दिन अंग्रेजों ने मुसलमानों को खुश करने के लिए, हिन्दू -मुस्लिम आबादी के घनत्व के आधार पर बंगाल का विभाजन कर दिया। यह बात देशभक्त हिन्दुओं को बर्दाश्त नहीं हुई और अंग्रेजों के खिलाफ माहौल बनने लगा। बंग-भंग का बहुत बिरोध हुआ।*

हालांकि अंग्रेजों के खिलाफ बंगाल पहले ही जागने लगा था। 1902 से ही अनुशीलन समिति और युगांतर जैसी संस्थाए उभरने लगी थीं, जो सशत्र क्रान्ति के द्वारा अंग्रेजों को भगा देना चाहती थीं, लेकिन इनको जन समर्थन नही मिलता था। ए.ओ. ह्युम की कांग्रेस ने इतना बढ़िया काम किया था कि भारत की आम जनता भी अंग्रेजों के खिलाफ कुछ नहीं सुनती थी। बंग-भंग के बाद युगांतर और अनुशीलन समिति ने अंग्रेजों के खिलाफ कार्यवाहियां तीव्र कर दीं, इनका उद्घोष था “वन्देमातरम” बंगाल के समस्त लोग चाहे वो हिन्दू हों या मुस्लिम वन्देमातरम का उद्घोष करने लगे। ये लोग बम बनाने, युवाओं को पर्शिक्षण देने का काम करते थे और मौक़ा मिलने पर अंग्रेजों और उनके चापलूसों का बध करने से नहीं चूकते थे।*

उन दिनों हिन्दू और मुस्लिम सभी “वन्देमातरम” का उद्घोष करते थे। तब इन लोगों ने बड़ी चालाकी से मुसलमानों को समझाना शुरू किया कि-वन्देमातरम का उद्घोष इस्लाम बिरोधी है। उनकी यह चाल भी काफी हद तक कामयाब रही और मुस्लिम क्रान्ति से दूर हो गए, इसी लिए द्वितीय स्वाधीनता संग्राम में बहुत ढूँढने पर इक्का दुक्का मुस्लिम नाम दिखाई देंगे। मदनलाल धींगरा द्वारा कर्नल वायली का बध करने पर सावरकर की आलोचना की, कि युवाओं को आतंकवाद का गलत रास्ता दिखा रहे हैं। नाशिक के कलेक्टर जैक्सन के बध के लिए भी सावरकर को दोषी बताया।*

अंग्रेज अथवा अंग्रेज के चापलूस भारतीय के वध पर, यह लोग आलोचना करते थे लेकिन अंगेजों द्वारा किसी क्रांतिकारी की हत्या, फांसी अथवा कालापानी की सजा पर चुप्पी साध लिया करते थे। अंग्रेजों ने जैक्सन की हत्या का षड्यंत्र करने का आरोप लगाकर, 4 जुलाई 1911 को द्वितीय स्वाधीनता संग्राम के सूत्रधार सावरकर को कालापानी की सजा दे दी। जब 1905 में मजहबी आधार पर बंगाल का विभाजन किया गया तब मुसलमानों सहित समाज के सभी वर्गों के लोग जुड़ें, इस हेतु किसी प्रकार का तुष्टीकरण न करते हुए धरती व परम्परा के प्रति विशुद्ध प्रेम का आह्वान किया गया।*

दूसरी ओर बंग-भंग आन्दोलन का नेतृत्व करने वाले लोगों का अदम्य विश्वास तथा अविचल निष्ठा थी। जिसकी झलक हमें तब दिखाई देती है जब बंग-भंग के जनक लार्ड कर्जन ने अहंकार से कहा “दि पार्टीशन आफ बंगाल इज ए सेटिल्ड फैक्ट”, (बंगाल का विभाजन एक निर्णायक तथ्य है) इस पर राष्ट्र ऋषि सुरेन्द्र नाथ बनर्जी ने कहा “आई विल अनसेटिल द सेटिल्ड फैक्ट” (मैं इस निर्णायक तथ्य को पलट कर रख दूंगा). यह विश्वास व विशुद्ध राष्ट्रवादी आह्वान ही इस कृत्रिम विभाजन को मिटाने का कारण बना।*

आज उस दिवस से सबको बड़ी शिक्षा लेते हुए भविष्य को सुधारने का संकल्प लेने का समय है। 16 अक्टूबर का भारत के इतिहास से रिश्ता बुरा ही सही पर बताना था पूर्ववर्ती लोगों को पर चाटुकारिता से लिखा गया कई पन्नो का इतिहास अक्सर वो अपराध कर देता है समाज के साथ जो बंगाल को बांटने वाले भी नहीं कर पाए। - सुदर्शन न्यूज*

अंग्रेज़ो ने बंगाल को बांट दिया लेकिन वामपंथी और ममता सरकार वोटबैंक के कारण देश की सुरक्षा के साथ खिलवाड़ किया है , बंगलादेशी और आतंकी रोहिंग्याओं को बसाकर देश को खतरा पैदा किया है।*

आज बंगाल में हिंसा की जड़ में क्या है?*

आज पश्चिम बंगाल में मुस्लिम जनसंख्या, आजादी से पहले के स्तर पर पहुंच रही है। 1941 में पश्चिम बंगाल में 29 प्रतिशत मुसलमान जनसंख्या थी। आज ये आंकडा 27 प्रतिशत पहुंच गया है। जबकि देश के बंटवारे के बाद 1951 में पश्चिम बंगाल में केवल 19.5 प्रतिशत मुसलमान थे। बंटवारे के बाद बडी तादाद में मुसलमान, पाकिस्तान चले गए थे।*

हम मुसलमानों की जनसंख्या में बढ़ोतरी के आंकडों पर गौर करें तो चौंकानेवाली बातें सामने आती हैं ! 2001 से 20111 के बीच पश्चिम बंगाल में मुस्लिम जनसंख्या 1.77 प्रतिशत सालाना की दर से बढ़ी। जबकि देश के बाकी हिस्सों में मुस्लिम जनसंख्या 0.88 प्रतिशत की दर से बढ़ी !*

यूं तो राजनीति में आंकड़ों की बहुत बात होती है। परंतु पश्चिम बंगाल की तेजी से बढ़ती मुस्लिम जनसंख्या की आेर से सब ने आंखें मूंद रखी थीं। सियासी फायदे के लिए देशहित की कुर्बानी दे दी गई। अगर हम आंकड़ों पर ध्यान देते तो फौरन बात पकड़ में आ जाती कि जिस बंगाल में कारोबार ठप पड़ रहा था, उद्योग बंद हो रहे थे, वहां लोग रोजगार की नीयत से तो जा नहीं रहे थे !

आज की तारीख में हम घुसपैठ के सियासी असर की बात करें तो, पश्चिम बंगाल के तीन जिलों में मुसलमान बहुमत में हैं। लगभग 100 विधानसभा सीटों के नतीजे मुसलमानों के वोट तय करते हैं। यानी मुस्लिम वोट, पश्चिम बंगाल की सियासत के लिहाज से आज बेहद अहम हो गए हैं। इसीलिए राज्य में ममता बनर्जी जमकर मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति कर रही हैं। उनसे पहले वामपंथी दल यही कर रहे थे !*

*🚩तुष्टीकरण की गंदी सियासत का नमूना हमने 2007 के चुनावों में देखा था। उस समय अपनी तरक्कीपसंद राजनीति के बावजूद वामपंथी सरकार ने बांग्लादेशी लेखिका तस्लीमा नसरीन को कोलकाता से बाहर जाने पर मजबूर किया। इसकी वजह ये थी कि बंगाल के कट्टरपंथी मुसलमान, तस्लीमा के शहर में रहने का विरोध कर रहे थे। आज का पश्चिम बंगाल सांप्रदायिक रूप से और भी संवेदनशील हो गया है !*

*🚩ममता बनर्जी ने सांप्रदायिकता को अपना सबसे बडा सियासी हथियार बना लिया है। उनका आदर्शवाद सत्ता में रहते हुए उड़न-छू हो चुका है। राज्य के 27 प्रतिशत मुस्लिम जनसंख्या को लुभाने के लिए ममता किसी भी हद तक जाने को तैयार दिखती हैं। इसीलिए वो नूर-उल-रहमान बरकती जैसे मौलवियों को शह देती हैं !*

*🚩ये वही बरकती है जिसने पीएम मोदी के विरोध में फतवा दिया था। बरकती ने कई भड़काऊ बयान दिए। वो लालबत्ती पर रोक के बावजूद खुले तौर पर अपनी गाडी में लालबत्ती लगाकर चलता था। परंतु ममता ने उसके विरोध में कोई एक्शन नहीं लिया। बाद में कोलकाता की टीपू सुल्तान मस्जिद के ट्रस्टियों ने बरकती को इमाम पद से जबरदस्ती हटाया।*

*🚩इसी तरह ममता बनर्जी ने मालदा के हरिश्चंद्रपुर कस्बे के मौलाना नासिर शेख की आेर से आंखें मूंद लीं। इस मौलाना ने टीवी, संगीत, फोटोग्राफी और गैर मुसलमानों से मुसलमानों के बात करने पर पाबंदी लगा दी थी। राज्य के धर्मनिरपेक्ष नियमों के विरोध में जाकर ममता ने इमामों और मौलवियों को उपाधियां और पुरस्कार दिए हैं !*

*🚩ममता ने मुस्लिम तुष्टीकरण की सारी हदें तोड दी हैं ! तभी तो दुर्गा पूजा के बाद 4 बजे के बाद मूर्ति विसर्जन पर, मुहर्रम का जुलूस निकालने के लिए रोक लगा देती हैं। उन्हें आम बंगालियों की धार्मिक भावनाओं का खयाल तक नहीं आता। कलकत्ता उच्च न्यायालय ने ममता बनर्जी सरकार के इस फैसले को अल्पसंख्यकों का अंधा तुष्टीकरण कहा था !*

*🚩क्या ममता बनर्जी को ये समझ में आएगा कि मुस्लिम तुष्टीकरण से बंगाल में अब काजी नजरुल इस्लाम जैसे लोग नहीं पैदा होगे। बल्कि इससे इमाम बरकती और नसीर शेख जैसे मौलवियों को ही ताकत मिलेगी ! ये वही लोग हैं जो मुसलमानों की नुमाइंदगी का दावा करते हैं, मगर उन्हीं के हितों को चोट पहुंचाते हैं। ये सांप्रदायिकता फैलाते हैं !*

*आज बंगाल में जो हो रहा है वो तुष्टीकरण की नीतियों का ही नतीजा है। कल यही हाल कोलकाता का भी हो सकता है !*

*🚩ममता बनर्जी सांप्रदायिकता की ऐसी आग से खेल रही हैं, जिस पर काबू पाना उनके बस में भी नहीं होगा ! स्त्रोत : फर्स्ट पोस्ट*

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