Wednesday, June 24, 2020

चीन भूल गया क्या ? केवल 120 भारतीय जवानों ने 1300 चीनी सैनिकों को उतारा था मौत के घाट !

24 जून 2020

🚩चीन हमेशा भारत पर धोखे से वार करता आया है और गीदड़ धमकी देता रहता है जबकि अंदर से तो वो भी जानता है कि भारतीय सैनिकों के पराक्रम के आगे चीनी सैनिक टिक नही सकते इसलिए वे हमेशा पीठ पीछे वार करते हैं फिर भी हमारे सैनिकों ने ऐसा करारा जवाब दिया है कि सालों तक मुड़कर नही देखते हैं। 

🚩भारत से इतिहास के पन्ने पलटने की वकालत करने वाला चीन जब इन्हीं पन्नों में खुद को देखता है तो उसको घिन आने लगती है। साल 1962 नवंबर महीने का 18वां दिन, देश में दिवाली की धूम थी वहीं लद्दाख की बर्फ से ढकी चुशुल घाटी एक इतिहास रचने जा रही थी और इस बात की भनक किसी को लगी नहीं थी। तड़के साढ़े तीन बजे शांत घाटी में गोलियों की गंध घुलनी शुरू हो गई थी।

🚩पांच से छह हजार की संख्या में चीनी जवानों ने लद्दाख पर हमला कर दिया था। इस दौरान सीमा पर मेजर शैतान सिंह के नेतृत्व वाली टुकड़ी देश की सीमा की सुरक्षा कर रही थी। इस टुकड़ी में केवल 120 जवान थे। लेकिन मुट्ठीभर जवान चीन को ऐसा सबक सिखाएंगे इस बात की कल्पना तो दुनिया ने नहीं की थी।

🚩अचानक हुए इस हमले में देखते ही देखते भारत माता के वीर सपूत चीनियों के लिए काल बन गए थे। भारतीय सेना के जवानों ने किस अंदाज में यह जंग लड़ी थी उसका अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि 120 सैनिकों ने चीन के करीब 1300 जवानों को मौत के घाट उतार दिया था। 

🚩इस टुकड़ी के पास न तो आधुनिक हथियार थे और न ही तकनीक। हथियार के नाम पर इनके पास थी सिर्फ वीरता। जिसका लोहा बाद में पूरी दुनिया ने माना। 120 जवानों की इस टुकड़ी का नेतृत्व मेजर शैतान सिंह कर रहे थे। कहा जाता है कि गिन पाना मुश्किल था कि शैतान सिंह ने अकेले ही कितने चीनी सैनिकों को मार डाला था। इतना ही नहीं वो अपने साथियों को लगातार प्रोत्साहित कर रहे थे। इसी बीच उन्हें कई गोलियां लगीं।

🚩दो सैनिक उन्हें उठाकर किसी सुरक्षित स्थान पर ले जा रहे थे तभी एक चीनी सैनिक ने आकर मशीनगन से उन पर हमला कर दिया। जब शैतान सिंह पर हमला हुआ तो उन्होंने अपने साथी सैनिकों को पीछे हटने का आदेश दिया और खुद मशीनगन के सामने आ गए।

🚩इसके बाद सैनिकों ने शैतान सिंह को एक बड़े पत्थर के पीछे छुपा दिया। जब युद्ध खत्म हुआ तो उसी पत्थर के पीछे शैतान सिंह का शव मिला। उन्होंने अपने हाथों से मजबूत तरीके से बंदूक पकड़ रखी थी। टुकड़ी में 120 जवान और सामने दुश्मनों की फौज, बावजूद इसके मेजर के कुशल नेतृत्व के बूते 18 नवंबर 1962 का दिन इतिहास के अमर पन्नों में दर्ज हो गया। 

🚩इस लड़ाई में 114 भारतीय वीर सपूतों ने देश की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहूति दे दी थी। जबकि जीवित बचे छह जवानों को बंदी बना लिया। लेकिन वीर सपूतों ने चीन को यहां भी मात दी। चीनी सेना समझ ही नहीं पाई और सभी जवान बचकर निकल आए। इस सैन्य टुकड़ी को पांच वीर चक्र और चार सेना पदक से सम्मानित किया गया था। वहीं मेजर को उनके शौर्य के चलते परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था।

🚩भारतीय सैनिकों के इस साहस को देखकर चीनी लोगों ने अपने घुटने टेक दिए और 21 नवंबर को उसने सीजफायर की घोषणा कर दी थी। यह तारीख इतिहास के पन्नों में दर्ज हो चुकी है। जब भी भारतीय सैनिकों की वीरता और साहस की बात होती है तो ऐसा नहीं होता कि शैतान सिंह को याद न किया जाए।

🚩भारतीय सेना ने इतना अद्भुत पराक्रम केवल एक बार ही नही अनेकों बार दिखाया है।11 सितंबर 1967 में चीन ने धोखे से अटेक किया था तभी उनके 400 सैनिको को मौत के घाट उतार दिया था। जबकि भारत के केवल 70 जवान शहीद हुए थे। अभी हाल में चीन ने धोखे से वार किया उसका जवाब में उनके 40 सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया था। 

🚩गीदड़ धमकी देने से पहले चीन को यह सब याद रखना चाहिए और अभी तो 2020 का भारत है, ड्रैगन बचेगा भी नही इसलिए चीन अपनी जुबान संभालकर खोले।

🚩सबसे अधिक हिन्दू सैनिक क्यों बचे ?

🚩द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान अफ्रीका के सहारा मरूस्थल में खाद्य आपूर्ति बंद हो जाने के कारण मित्र राष्ट्रों की सेनाओं को तीन दिन तक अन्न जल कुछ भी प्राप्त नहीं हो सका। चारों ओर सुनसान रेगिस्तान तथा धूल-कंकड़ों के अतिरिक्त कुछ भी दिखाई नहीं देता था। रेगिस्तान पार करते करते कुल सात सौ सैनिकों की उस टुकड़ी में से मात्र 210 व्यक्ति ही जीवित बच पाये। बाकी सभी भूख-प्यास के कारण रास्ते में ही मर गये।

🚩आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि इन जीवित सैनिकों में से 80 प्रतिशत अर्थात् 186 सैनिक हिन्दू थे। इस आश्चर्यजनक घटना का जब विश्लेषण किया गया तो विशेषज्ञों ने यह निष्कर्ष निकाला किः 'वे निश्चय ही ऐसे पूर्वजों की संतानें थीं जिनके रक्त में तप, तितिक्षा, उपवास, सहिष्णुता एवं संयम का प्रभाव रहा होगा। वे अवश्य ही श्रद्धापूर्वक कठिन व्रतों का पालन करते रहे होंगे।'

🚩हिन्दू संस्कृति के वे सपूत रेगिस्तान में अन्न जल के बिना भी इसलिए बच गये क्योंकि उन्होंने, उनके माता-पिता ने अथवा उनके दादा-दादी ने इस प्रकार की तपस्या की होगी। सात पीढ़ियों तक की संतति में अपने संस्कारों का अंश जाता है।

🚩भारतीय संस्कृति इतनी महान है कि कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी सफलता दिलवा देती है और हमारे जवान हमेंशा उसका अनुसरण करते आये हैं इसलिए वे हमेंशा जीत हासिल कर लेते हैं। हमारी दिव्य सनातन हिंदू संस्कृति और वीर जवानों को नमन।

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Tuesday, June 23, 2020

भारतीय नारी की शूरवीरता : रानी दुर्गावती ने तीन बार मुगल सेना को रौंद दिया था।

23 जून 2020

🚩 भारत में शूर, बुद्धिमान और साहसी कई वीरांगनाएँ पैदा हुई, जिनके नाम से ही मुगल सल्तनत काँपने लगती थी पर दुर्भाग्य की बात यह है कि भारत के इतिहास में उनको कहीं स्थान नहीं दिया गया इसके विपरीत क्रूर, लुटेरे, बलात्कारी मुगलों व अंग्रेजो का इतिहास पढ़ाया जाता है । आज अगर सही इतिहास पढ़ाया जाए तो हमारी भावी पीढ़ी पश्चिमी संस्कृति की तरफ मुड़कर भी नही देखेगी इतना महान इतिहास है अपना।

🚩 भारत की नारियों में अथाह सामर्थ्य है, अथाह शक्ति है। भारतीय संस्कृति के बताये हुए मार्ग के अनुसार अपनी छुपी हुई शक्ति को जाग्रत करके अवश्य महान बन सकती है । आज स्वतन्त्रता और फैशन के नाम पर नारियों का शोषण किया जा रहा है। नारी अबला नही बल्कि सबला है। नारी कितनी महान है उसका आपको एक महान नारी की याददाश्त को ताजा कराते हैं।

🚩 रानी दुर्गावती का जन्म 10 जून, 1525 को तथा हिंदु कालगणनानुसार आषाढ शुक्ल द्वितीया को चंदेल राजा कीर्ति सिंह तथा रानी कमलावती के गर्भ से हुआ । वे बाल्यावस्था से ही शूर, बुद्धिमान और साहसी थीं । उन्होंने युद्धकला का प्रशिक्षण भी उसी समय लिया । प्रचाप (बंदूक) भाला, तलवार और धनुष-बाण चलाने में वह प्रवीण थी । गोंड राज्य के शिल्पकार राजा संग्राम सिंह बहुत शूर तथा पराक्रमी थे । उनके सुपुत्र वीरदलपति सिंह का विवाह रानी दुर्गावती के साथ वर्ष 1542 में हुआ । वर्ष 1541 में राजा संग्राम सिंह का निधन होने से राज्य का कार्यकाज वीरदलपति सिंह ही देखते थे । उन दोनों का वैवाहिक जीवन 7-8 वर्ष अच्छे से चल रहा था । इसी कालावधि में उन्हें वीरनारायण सिंह नामक एक सुपुत्र भी हुआ ।

🚩 रानी दुर्गावती ने राजवंशव की बागडोर थाम ली

दलपतशाह की मृत्यु लगभग 1550 ईसवी सदी में हुई । उस समय वीर नारायण की आयु बहुत अल्प होने के कारण, रानी दुर्गावती ने गोंड राज्यकी बागडोर (लगाम) अपने हाथों में थाम ली । अधर कायस्थ एवं मन ठाकुर, इन दो मंत्रियों ने सफलतापूर्वक तथा प्रभावी रूप से राज्य का प्रशासन चलाने में रानी की मदद की । रानी ने सिंगौरगढ से अपनी राजधानी चौरागढ स्थानांतरित की । सातपुडा पर्वत से घिरे इस दुर्ग का (किलेका) रणनीतिकी दृष्टि से बडा महत्त्व था।

🚩 कहा जाता है कि इस कालावधि में व्यापार बडा फूला-फला । प्रजा संपन्न एवं समृद्ध थी । अपने पति के पूर्वजों की तरह रानी ने भी राज्य की सीमा बढाई तथा बडी कुशलता, उदारता एवं साहस के साथ गोंडवन का राजनैतिक एकीकरण ( गर्‍हा-काटंगा) प्रस्थापित किया । राज्यके 23000 गांवों में से 12000 गांवों का व्यवस्थापन उसकी सरकार करती थी । अच्छी तरह से सुसज्जित सेना में 20,000 घुडसवार तथा 1000 हाथीदल के साध बडी संख्या में पैदल सेना भी अंतर्भूत थी । रानी दुर्गावती में सौंदर्य एवं उदारता का धैर्य एवं बुद्धिमत्ता का सुंदर संगम था । अपनी प्रजा के सुख के लिए उन्होंने राज्य में कई काम करवाए तथा अपनी प्रजा का ह्रदय (दिल) जीत लिया । जबलपुर के निकट ‘रानीताल’ नामका भव्य जलाशय बनवाया । उनकी पहल से प्रेरित होकर उनके अनुयायियों ने चेरीतल का निर्माण किया तथा अधर कायस्थ ने जबलपुर से तीन मील की दूरी पर अधरतल का निर्माण किया । उन्होंने अपने राज्य में अध्ययन को भी बढावा दिया ।

🚩 शक्तिशाली राजा को युद्ध में हराया

राजा दलपति सिंह के निधन के उपरांत कुछ शत्रुओं की कुदृष्टि इस समृद्धशाली राज्य पर पडी । मालवा का मांडलिक राजा बाजबहादुर ने विचार किया, हम एक दिन में गोंडवाना अपने अधिकार में लेंगे । उसने बडी आशा से गोंडवाना पर आक्रमण किया; परंतु रानी ने उसे पराजित किया । उसका कारण था रानी का संगठन चातुर्य । रानी दुर्गावती द्वारा बाजबहादुर जैसे शक्तिशाली राजा को युद्ध में हराने से उसकी कीर्ति सर्वदूर फैल गई । सम्राट अकबर के कानोंतक जब पहुंची तो वह चकित हो गया । रानी का साहस और पराक्रम देखकर उसके प्रति आदर व्यक्त करने के लिए अपनी राजसभा के (दरबार) विद्वान `गोमहापात्र’ तथा `नरहरिमहापात्र’को रानी की राजसभा में भेज दिया । रानी ने भी उन्हें आदर तथा पुरस्कार देकर सम्मानित किया । इससे अकबर ने सन् 1540 में वीर नारायण सिंह को राज्यका शासक मानकर स्वीकार किया । इस प्रकारसे शक्तिशाली राज्य से मित्रता बढने लगी । रानी तलवार की अपेक्षा बंदूक का प्रयोग अधिक करती थी । बंदूक से लक्ष साधने में वह अधिक दक्ष थी । ‘एक गोली एक बली’, ऐसी उनकी आखेट की पद्धति थी । रानी दुर्गावती राज्यकार्य संभालने में बहुत चतुर, पराक्रमी और दूरदर्शी थी।

🚩 अकबर का सेनानी तीन बार रानि से पराजित

अकबर ने वर्ष 1563 में आसफ खान नामक बलाढ्य सेनानी को (सरदार) गोंडवाना पर आक्रमण करने भेज दिया । यह समाचार मिलते ही रानी ने अपनी व्यूहरचना आरंभ कर दी । सर्वप्रथम अपने विश्वसनीय दूतों द्वारा अपने मांडलिक राजाओं तथा सेनानायकों को सावधान हो जाने की सूचनाएं भेज दीं । अपनी सेना की कुछ टुकडियों को घने जंगल में छिपा रखा और शेष को अपने साथ लेकर रानी निकल पडी । रानी ने सैनिकों को मार्गदर्शन किया । एक पर्वत की तलहटी पर आसफ खान और रानी दुर्गावती का सामना हुआ । बडे आवेश से युद्ध हुआ । मुगल सेना विशाल थी । उसमें बंदूकधारी सैनिक अधिक थे । इस कारण रानी के सैनिक मरने लगे; परंतु इतने में जंगल में छिपी सेना ने अचानक धनुष-बाण से आक्रमण कर, बाणों की वर्षा की । इससे मुगल सेना को भारी क्षति पहुंची और रानी दुर्गावती ने आसफ खान को पराजित किया । आसफ खान ने एक वर्ष की अवधि में 3 बार आक्रमण किया और तीनों ही बार वह पराजित हुआ।

🚩 स्वतंत्रता के लिए आत्मबलिदान

अंतमें वर्ष 1564 में आसफखान ने सिंगारगढ पर घेरा डाला; परंतु रानी वहां से भागने में सफल हुई । यह समाचार पाते ही आसफ खान ने रानी का पीछा किया । पुनः युद्ध आरंभ हो गया । दोनो ओर से सैनिकों को भारी क्षति पहुंची । रानी प्राणों पर खेलकर युद्ध कर रही थीं । इतने में रानी के पुत्र वीरनारायण सिंह के अत्यंत घायल होने का समाचार सुनकर सेना में भगदड मच गई । सैनिक भागने लगे । रानी के पास केवल 300 सैनिक थे । उन्हीं सैनिकों के साथ रानी स्वयं घायल होनेपर भी आसफ खान से शौर्य से लड रही थी । उसकी अवस्था और परिस्थिति देखकर सैनिकों ने उसे सुरक्षित स्थान पर चलने की विनती की; परंतु रानी ने कहा, ‘‘मैं युद्ध भूमि छोडकर नहीं जाऊंगी, इस युद्ध में मुझे विजय अथवा मृत्यु में से एक चाहिए ।” अंतमें घायल तथा थकी हुई अवस्था में उसने एक सैनिक को पास बुलाकर कहा, “अब हमसे तलवार घुमाना असंभव है; परंतु हमारे शरीर का नख भी शत्रु के हाथ न लगे, यही हमारी अंतिम इच्छा है । इसलिए आप भाले से हमें मार दीजिए । हमें वीरमृत्यु चाहिए और वह आप हमें दीजिए”; परंतु सैनिक वह साहस न कर सका, तो रानी ने स्वयं ही अपनी तलवार गले पर चला ली।

🚩 वह दिन था 24 जून 1564 का, इस प्रकार युद्ध भूमि पर गोंडवाना के लिए अर्थात् अपने देश की स्वतंत्रता के लिए अंतिम क्षण तक वह झूझती रही । गोंडवाना पर वर्ष 1549 से 1564 अर्थात् 15 वर्ष तक रानी दुर्गावती का अधिराज्य था, जो मुगलों ने नष्ट किया । इस प्रकार महान पराक्रमी रानी दुर्गावती का अंत हुआ । इस महान वीरांगना को हमारा शतशः प्रणाम !

🚩 जिस स्थान पर उन्होंने अपने प्राण त्याग किए, वह स्थान स्वतंत्रता सेनानियों के लिए निरंतर प्रेरणा का स्रोत रहा है ।

🚩 उनकी स्मृति में 1883 में मध्यप्रदेश सरकार ने जबलपुर विश्वविद्यालय का नाम रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय रखा ।

🚩 इस बहादुर रानी के नामपर भारत सरकार ने 24 जून 1988 को डाकका टिकट प्रचलित कर (जारी कर) उनके बलिदान को श्रद्धांजली अर्पित की ।

🚩 गोंडवाना को स्वतंत्र करने हेतु जिसने प्राणांतिक युद्ध किया और जिसके रुधिर की प्रत्येक बूंद में गोंडवाना के स्वतंत्रता की लालसा थी, वह रणरागिनी थी महारानी दुर्गावती । उनका इतिहास हमें नित्य प्रेरणादायी है।

🚩 आज की भारतीय नारियाँ इन आदर्श नारियों से प्रेरणा पाकर आगे बढ़े, पाश्चात्य संस्कृति की तरफ न भागे । भारत की नारियां अपने बच्चों में सदाचार, संयम आदि उत्तम संस्कारों का सिंचन करें तो वह दिन दूर नहीं, जिस दिन पूरे विश्व में भारतीय सनातन धर्म और संस्कृति की दिव्य पताका पुनः लहरायेगी। भारतकी नारियों आपमें बहुत महानता छुपी है आप चाहे तो शिवाजी, महाराणा प्रताप, गुरु गोविंद सिंह जैसे महान पुत्रो को जन्म देकर अपनी कोख को पावन कर सकती है, आप पाश्चात्य संस्कृति अपनाकर अपने को दिन-हीन नही बनाना बल्कि ऋषि-मुनियों एवं भगवद्गीता के अनुसार आचरन करके अपने को महान बनाना।

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Monday, June 22, 2020

अंग्रेज़ों के कानूनों का इतिहास और इससे देश तथा देशवासियों को नुकसान कितना?

22 जून 2020

🚩ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा व्यापार करने के लिए पहली बार ब्रिटिश (अंग्रेज़) भारत में 24 अगस्त 1608 को सूरत में आए थे। ईस्ट इंडिया कंपनी भारत में मुख्य रूप से मसालों के व्यापार के लिए आई थी जो यूरोप में मांस के संरक्षण में प्रयोग होने वाली बहुत महत्वपूर्ण वस्तु थी। वो साथ में सिल्क, कपास, इंडिगो डाई, नमक, चाय और अफीम के व्यापार के लिए भी भारत आई थी।

🚩ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना 31 दिसम्बर 1600 को लंदन, ब्रिटेन में हुई थी जिसका उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और अफीम की तस्करी करना था। भारत को "सोने की चिड़िया" के नाम से भी जाना जाता था। जब वे भारत आये तो वे भारत की संपन्नता देखकर बहुत प्रभावित हुए और वे समझ गए कि भारत व्यापार का बहुत बड़ा केंद्र है।

🚩1613 में ईस्ट इंडिया कंपनी ने मुगल सम्राट जहांगीर से सूरत में फैक्ट्री बनाने की आज्ञा ली और 1615 में पूरे मुगल साम्राज्य में फैक्ट्री लगाने और व्यापार करने की आज्ञा ली। ईस्ट इंडिया कंपनी ने शुरू में तो बस व्यापार किया पर बाद में धीरे धीरे भारत की राजनीतिक, भौगोलिक और सामाजिक परिस्थितियों को समझकर भारत पर कब्जा कर लिया।

🚩1803 में जब ईस्ट इंडिया कंपनी भारत में अपनी सत्ता की चरम सीमा पर थी, उस समय उसके पास 2 लाख 60 हजार सैनिकों की निजी सेना थी जो संख्या में ब्रिटिश आर्मी से दोगुनी थी।

🚩ईस्ट इंडिया कंपनी धीरे धीरे कब्जा करती रही और भारत को लूटने और व्यापार करने के हिसाब से ही शासन व्यवस्था भी बनाती रही। इसके लिए जरूरत पड़ने पर ईस्ट इंडिया कंपनी ने समय समय पर कानून भी बनाए ताकि भारत पर अपने हिसाब से शासन कर सके।

🚩1857 से पहले ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा लागू कानूनों की सूची👇🏻

(1) Regulating Act 1773
(2) Pitt's India Act of 1784
(3) Charter Act of 1793
(4) Charter Act of 1813
(5) Charter Act of 1833
(6) Charter Act of 1853

🚩ये सभी कानून समय समय पर लागू किये गए थे, जिनका उद्देश्य ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा भारत में सत्ता प्रबंधन से था। इनका वास्तविक उद्देश्य भारत को लूटने और अपने फायदे के लिए आयात-निर्यात से था।

🚩1857 की क्रांति जिसे भारत का "प्रथम स्वतंत्रता संग्राम" भी कहते हैं, उसने भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी के साम्राज्य को हिला दिया था।

🚩1857 की क्रांति की चिंगारी मेरठ से शुरू हुई थी जिसकी आग बाद में पूरे भारत में फैल गई थी। 1857 की क्रांति को भारतीय विद्रोह, प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम, गुर्जर विद्रोह और सैनिक विद्रोह के नाम से भी जाना जाता है। इतिहास की पुस्तकें कहती हैं कि 1857 की क्रांति की शुरूआत '10 मई 1857' की संध्या को मेरठ में हुई थी और इसलिए आज भी समस्त भारतवासी 10 मई को प्रत्येक वर्ष "क्रान्ति दिवस" के रूप में मनाते हैं। क्रान्ति की शुरूआत करने का श्रेय अमर शहीद कोतवाल धनसिंह गुर्जर को जाता है।

🚩10 मई 1857 को मेरठ में विद्रोही सैनिकों और पुलिस फोर्स ने अंग्रेजों के विरूद्ध साझा मोर्चा गठित कर क्रांतिकारी घटनाओं को अंजाम दिया। सैनिकों के विद्रोह की खबर फैलते ही मेरठ की शहरी जनता और आसपास  के हजारों ग्रामीण मेरठ की सदर कोतवाली क्षेत्र में जमा हो गए। इसी कोतवाली में धन सिंह कोतवाल (प्रभारी) के पद पर कार्यरत थे। धन सिंह कोतवाल क्रान्तिकारी भीड़ (सैनिक, मेरठ के शहरी, पुलिस और किसान) में एक प्राकृतिक नेता के रूप में उभरे। उस क्रान्तिकारी भीड़ ने रात दो बजे मेरठ जेल पर हमला कर दिया। जेल तोड़कर 836 कैदियों को छुड़ा लिया और जेल में आग लगा दी। जेल से छुड़ाए कैदी भी क्रांति में शामिल हो गए। रात को ही विद्रोही सैनिक दिल्ली की ओर कुछ कर गए और धीरे धीरे क्रांति की ये चिंगारी पूरे भारत में आग की तरह फैल गई।

🚩उससे पहले मंगल पाण्डे 08 अप्रैल 1857 को बैरकपुर, बंगाल में शहीद हो गए थे। मंगल पाण्डे ने चर्बी वाले कारतूसों के विरोध में अपने एक अफसर को 29 मार्च, 1857 को बैरकपुर छावनी, बंगाल में गोली से उड़ा दिया था। जिसके पश्चात उन्हें गिरफ्तार कर बैरकपुर (बंगाल) में 08 अप्रैल को फांसी दे दी गई थी।

🚩समस्त पश्चिम उत्तर प्रदेश के बंजारों, रांघड़ों और गुर्जर किसानों ने 1857 की क्रांति में व्यापक स्तर पर भाग लिया। पूर्वी उत्तर प्रदेश में ताल्लुकदारों ने अग्रणी भूमिका निभाई। बुनकरों और कारीगरों ने अनेक स्थानों पर क्रान्ति में भाग लिया। 1857 की क्रान्ति के व्यापक आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक कारण थे और विद्रोही जनता के हर वर्ग से आये थे, ऐसा अब आधुनिक इतिहासकार सिद्ध कर चुके हैं। अतः 1857 का गदर मात्र एक सैनिक विद्रोह नहीं वरन् जनसहभागिता से पूर्ण एक राष्ट्रीय स्वतन्त्रता संग्राम था।

🚩1857 की क्रांति में राव कदमसिंह गुर्जर मेरठ के पूर्वी क्षेत्र में क्रान्तिकारियों का नेता था। राव उमराव सिहँ गुर्जर दादरी भटनेर रियासत के राजा थे और वहाँ क्रांति का बिगुल बजाया। राव फतुआ सिंह गुर्जर ने गंगोह क़स्बे से अंग्रेज़ी राज़ ख़त्म कर दिया था और लगभग आधे सहारनपुर को अंग्रेज मुक्त कर दिया था। चौधरी हिम्मत सिंह खटाणा ने गुडगांव जिले में क्रांति का बिगुल बजाया। आशादेवी गूजरी ने मुजफ्फरनगर में क्रांति का बिगुल बजाया। दयाराम गुर्जर चन्द्रावल गांव, दिल्ली में क्रांति का बिगुल बजाया। बाबा शाहमल ने बड़ौत क्षेत्र में क्रांति का बिगुल बजाया। देवहंस कषाणा ने आगरा जिले की 3-4 तहसीलों पर अधिकार करके इस क्षेत्र में अंग्रेंजी राज को समाप्त सा कर दिया था। राव दरगाही तंवर ने फतेहपुर, दिल्ली, बेरी में क्रांति का बिगुल बजाया। रानी लक्ष्मीबाई ने झांसी में क्रांति का बिगुल बजाया।

🚩1857 की क्रांति के दमन के पश्चात् ब्रिटिश सरकार ने 10 मई, 1857 को मेरठ मे हुई क्रान्तिकारी घटनाओं में पुलिस की भूमिका की जांच के लिए मेजर विलियम्स की अध्यक्षता में एक कमेटी गठित की गई। मेजर विलियम्स ने उस दिन की घटनाओं का भिन्न-भिन्न गवाहियों के आधार पर गहन विवेचन किया तथा मेरठ में जनता की क्रान्तिकारी गतिविधियों के विस्फोट के लिए धन सिंह कोतवाल को मुख्य रूप से दोषी ठहराया, उसका मानना था कि यदि धन सिंह कोतवाल ने अपने कर्तव्य का निर्वाह ठीक प्रकार से किया होता तो संभवतः मेरठ में जनता को भड़कने से रोका जा सकता था।

🚩1857 की क्रांति ने भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी की नींव को हिला दिया था। 1858 में ब्रिटिश सम्राट ने भारत की प्रभुसत्ता ईस्ट इंडिया कंपनी से अपने हाथ में ले ली और ब्रिटिश पार्लियामेंट ने भारत पर सीधा शासन चलाने के लिए पहला कानून "भारत शासन अधिनियम 1858" बनाया।

🚩1857 की क्रांति के कारणों की अंग्रज़ों ने पूरी समीक्षा की और क्रांति के जो जो कारण थे, उन पर नकेल कसनी शुरू की। क्रांति की शुरुआत पुलिस ने की थी और क्रांति सशस्त्र थी तो भविष्य में फिर ऐसा ना हो तो और कड़े "Indian Police Act", "Licensing of Arms Act" आदि बनायें और जो जो कारण थे, उनको दबाने के लिए कड़े से कड़े कानून बनाये। 1857 की क्रांति में लगभग हर वर्ग ने भाग लिया था, इसलिए हर वर्ग को शोषित करने के लिए अंग्रेज़ों ने कानून बनायें ताकि भविष्य में कोई वर्ग इतना मजबूत ना बचे कि वो विद्रोह करें।

🚩1857 की क्रांति के बाद अंग्रेजों द्वारा बनाये गए कानूनों की सूची 👇🏻

(1) Government of India Act 1858
(2) Indian Council Act 1861
(3) Act of 1892
(4) Indian Council Act 1909
(5) Montague Chelmsford Reforms (Govt of India Act) 1919
(6) Government of India Act 1935

🚩1857 की क्रांति के बाद अंग्रेज़ों ने भारत में बहुत सारे अधिनियम भी लागू किये, जिनका उद्देश्य था भारत की जनता को दबाकर और शोषित करते हुए शासन करना। लागू किये गए कुछ अधिनियम बहुत कड़े थे, कुछ अधिनियमों में कुछ धाराएं बहुत कड़ी थी, जिसका मुख्य उद्देश्य था भारतीयों को दबाना ताकि फिर कोई क्रांति ना करें।

🚩1857 के बाद अंग्रेजों ने 250 से भी अधिक अधिनियम लागू किये इनमें से मुख्य मुख्य अधिनियमों की सूची 👇🏻

(1) Indian Penal Code 1860
(2) Indian Police Act 1861
(3) Government Seal Act 1862
(4) Excise Act 1863
(5) Religious Endowments Act 1863
(6) Indian Tolls Act 1864
(7) Press and Registration of Books Act 1867
(8) Bombay Civil Court Act 1869
(9) Indian Evidence Act 1872
(10) Indian Contract Act 1872
(11) Majority Act 1875
(12) Dramatic Performances Act 1876
(13) Negotiable Instruments Act 1881
(14) Transfer of Property Act 1882
(15) Indian Easements Act 1882
(16) Indian Telegraph Act 1885
(17) Land Acquisition Act 1885
(18) Land Acquisition Act 1894
(19) Prisons Act 1894
(20) Indian Fisheries Act 1897
(21) Indian Post Office Act 1898
(22) Code of Civil Procedure 1908
(23) Official Secrets Act 1923
(24) Indian Succession Act 1925
(25) Legal Practitioners Act 1926
(26) Sales of Goods Act 1930
(27) Mussalman Wakf Validating Act 1930
(28) Muslim Personal Law (Shariat) Application Act 1937
(29) Central Excise Act 1944

🚩आपको जानकर आश्चर्य होगा कि जिन अंग्रेज़ों ने भारत पर राज करने के लिए 300 से भी अधिक अधिनियम लागू किये, उनके देश में कोई लिखित संविधान नहीं है। जी हाँ, ब्रिटेन में कोई लिखित संविधान नहीं है। जिन्होंने अपने देश के लिए आज तक संविधान नहीं लिखा, उन्होंने बस भारतीयों को लूटने और दबाकर शोषण करने के लिए ही कानून लिखें।

🚩पर सबसे बड़ी विडंबना ये है कि अंग्रेज़ों के बनाये गए बहुत से कानून देश में आज भी लागू है। भले ही देश अंग्रेजों से 72 साल पहले आज़ाद हो गया हो पर अंग्रेज़ों के कानूनों से आज तक आज़ाद नहीं हो पाया है। फर्क सिर्फ इतना है कि आजादी से पहले अंग्रेज इस कानून द्वारा भारतीयों का शोषण करते थे और आज कुछ भारतीय बाकी भारतीयों का शोषण करते हैं। सेकुलरिज्म की आड़ में हिंदुओं को कानून द्वारा प्रताड़ित करना हिन्दू विरोधी ताकतों का प्रमुख हथियार बन चुका है।

🚩जरूरत है अंग्रेज़ों द्वारा बनाई गई कानून व्यवस्था को उखाड़ फैंककर नई न्याय व्यवस्था का निर्माण करने की नहीं तो ये व्यवस्था देश को इसी तरह दीमक की तरह खाती रहेगी और भारत को फिर से गुलाम बनने से कोई नहीं रोक पाएगा।

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