Saturday, June 27, 2020

वन्दे मातरम् का इतिहास और उसके अंधे विरोध की हकीकत

27 जून 2020

🚩आज बंकिम चंद्र चटर्जी का जन्मदिवस है। वे प्रसिद्द गीत वन्दे मातरम के रचियता थे। हमारे देश के कुछ मुस्लिम भाई बहकावे में आकर वन्दे मातरम गान का बहिष्कार कर देते हैं। उनका कहना है कि वन्दे मातरम का गान करना इस्लाम की मान्यताओं के खिलाफ है। दुनिया में शायद भारत ही ऐसा पहला देश होगा जिसमें राष्ट्रीय गीत और राष्ट्रीय गान अलग अलग हैं। हमारे देश का यह दुर्भाग्य है कि अल्पसंख्यकों को प्रोत्साहन देने के नाम पर, तुष्टिकरण के नाम पर राष्ट्रगीत के अपमान को कुछ लोग आंख बंदकर स्वीकार कर लेते हैं।

🚩भारत जैसे विशाल देश को हजारों वर्षों की गुलामी के बाद आजादी के दर्शन हुए थे। वन्दे मातरम वह गीत है, जिससे सदियों से सुप्त भारत देश जग उठा और अर्ध शताब्दी तक भारत के स्वतंत्रता संग्राम का प्रेरक बना रहा। इस गीत के कारण बंग-भंग के विरोध की लहर बंगाल की खाड़ी से उठ कर इंग्लिश चैनल को पार करती हुई ब्रिटिश संसद तक गूंजा आई थी। जो गीत गंगा की तरह पवित्र, स्फटिक की तरह निर्मल और देवी की तरह प्रणम्य है उस गीत का तुष्टिकरण की भेंट चढ़ाना, राष्ट्रीयता का परिहास ही तो है। जबकि इतिहास इस बात का गवाह है कि भारत का विभाजन इसी तुष्टिकरण के कारण हुआ था। इस लेख के माध्यम से हम वन्दे मातरम के इतिहास को समझने का प्रयास करेंगे।

🚩1. वन्दे मातरम के रचियता बंकिम चन्द्र

🚩बहुत कम लोग यह जानते हैं की वन्दे मातरम के रचियता बंकिम बाबु का परिवार अंग्रेज भगत था। यहाँ तक की उनके पैतृक गृह के आगे एक सिंह की मूर्ति बनी हुई थी। जिसकी पूँछ को दो बन्दर खिंच रहे थे, पर कुछ भी नहीं कर पा रहे थे। यह सिंह ब्रिटिश साम्राज्य का प्रतीक था। जबकि बन्दर भारतवासी थे। ऐसी मानसिकता वाले घर में बंकिम जैसे राष्ट्रभक्त का पैदा होना। निश्चित रूप से उस समय की क्रांतिकारी विचारधारा का प्रभाव कहा जायेगा। आनंद मठ में बंकिम बाबु ने वन्देमातरम गीत को प्रकाशित किया। आनंद मठ बंगाल में नई क्रांति के सूत्रपात के रूप में उभरा था।

🚩2. वन्दे मातरम और कांग्रेस

🚩कांग्रेस की स्थापना के द्वितीय वर्ष 1886 में ही कोलकाता अधिवेशन के मंच से कविवर हेमचन्द्र द्वारा वन्दे मातरम के कुछ अंश मंच से गाये गए थे। 1896 में कांग्रेस के 12वें अधिवेशन में रविन्द्र नाथ टैगोर द्वारा गाया गया था। लोकमान्य तिलक को वन्दे मातरम में इतनी श्रद्धा थी कि शिवाजी की समाधी के तोरण पर उन्होंने इसे उत्कीर्ण करवाया था। 1901 के बाद से कांग्रेस के प्रत्येक अधिवेशन में वन्दे मातरम गाया जाने लगा।

🚩6 अगस्त 1905 को बंग भंग के विरोध में टाउन हॉल में सभा हुई। सभा में वन्दे मातरम को विरोध के रूप में करीब तीस हज़ार भारतीयों द्वारा गाया गया था। स्थान स्थान पर विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार किया गया और स्वदेशी कपड़ा और अन्य वस्तुओं का उपयोग भारतीय जनमानस द्वारा किया जाने लगा। यहाँ तक की बंग भंग के बाद वन्दे मातरम संप्रदाय की स्थापना भी हो गई थी। वन्दे मातरम की स्वरलिपि रविन्द्र नाथ टैगोर जी ने दी थी।

🚩3. राष्ट्र कवि/लेखक और वन्दे मातरम

🚩राष्ट्रीय कवियों और लेखकों द्वारा अनेक रचनाएँ वन्दे मातरम को प्रसिद्द करने के लिए रची गई जो उसके महत्व को  सिद्ध करती हैं।

🚩इनमे से है स्वदेशी आन्दोलन चाई आत्मदान, वन्दे मातरम गाओ रे भाई – श्री सतीश चन्द्र, मागो जाय जेन जीवन चले, शुधु जगत माझे तोमार काजे, वन्दे मातरम बले- श्री कालि प्रसन्न काव्य विशारद, भइया देश का यह क्या हाल, खाक मिटटी जौहर होती सब, जौहर हैं जंजाल बोलो वन्दे मातरम-श्री कालि प्रसन्न काव्य विशारद आदि। अक्टूबर 1905 में ‘वसुधा’ में जितेंदर मोहम बनर्जी ने वन्दे मातरम पर लेख लिखा था। 1906 के चैत्र मास के बम्बई के ‘बिहारी अखबार’ में वीर सावरकर ने वन्दे मातरम पर लेख लिखा था। 22 अप्रैल को मराठा में ‘तिलक महोदय’ ने वन्दे मातरम पर ‘शोउटिंग ऑफ़ वन्दे मातरम’ के नाम से लेख लिखा था।

🚩कुछ ईसाई लेखक वन्दे मातरम की प्रसिद्धि से जलभून कर उसके विरुद्ध अपनी लेखनी चलाते हैं जैसे
पिअरसन महोदय ने तो यहाँ तक लिख दिया कि मातृभूमि की कल्पना ही हिन्दू विचारधारा के प्रतिकूल है। बंकिम महोदय ने इसे यूरोपियन संस्कृति से प्राप्त किया है।

🚩अपनी जन्म भूमि को माता या जननी कहने की गरिमा तो भारत वर्ष में उस काल से स्थापित है। जब धरती पर ईसाइयत या इस्लाम का जन्म भी नहीं हुआ था।

🚩वेदों में इस तथ्य को इस प्रकार ग्रहण किया गया हैं –

🚩वह माता भूमि मुझ पुत्र के लिए पय यानि दूध आदि पुष्टि प्रद पदार्थ प्रदान करे। – अथर्ववेद १२/१/२०

🚩भूमि मेरी माता है और मैं उसका पुत्र हूँ। – अथर्ववेद १२-१-१५

🚩वाल्मीकि रामायण में “जननी जन्मभूमि ” को स्वर्ग के समान तुल्य कहा गया है।

🚩ईसाई मिशनरियों ने तो यहाँ तक कह डाला कि वन्दे मातरम राजनैतिक डकैतों का गीत हैं।

🚩4. वन्दे मातरम और बंगाल में कहर

🚩बंगाल की अंग्रेजी सरकार ने कुख्यात सर्कुलर जारी किया कि अगर कोई छात्र स्वदेशी सभा में भाग लेगा अथवा वन्दे मातरम का नारा लगाएगा। तो उसे स्कूल से निकाल दिया जायेगा।

🚩बंगाल के रंगपुर के एक स्कूल के सभी 200 छात्रों पर वन्दे मातरम का नारा लगाने के लिए 5-5 रुपये का दंड किया गया था।

🚩पूरे बंगाल में वन्दे मातरम के नाम की क्रांति स्थापित हो गई थी। इस संस्था से जुड़े लोग हर रविवार को वन्दे मातरम गाते हुए चन्दा एकत्र करते थे। उनके साथ रविन्द्र नाथ टैगोर भी होते थे। यह जुलुस इतना बड़ा हो गया कि इसकी संख्या हजारों तक पहुँच गई थी। 16 अक्टूबर 1906 को बंग भंग विरोध दिवस बनाने का फैसला किया गया था। उस दिन कोई भी बंगाली अन्न-जल ग्रहण नहीं करेगा। ऐसा निश्चय किया गया। बंग भंग के विरोध में सभा हुई और यह निश्चय किया गया की जब तक चूँकि सरकार बंगाल की एकता को तोड़ने का प्रयास कर रही है। इसके विरोध में हर बंगाली विदेशी सामान का बहिष्कार करेगा। हर किसी की जबान पर वन्दे मातरम का नारा था। चाहे वह हिन्दू हो, चाहे मुस्लिम हो, चाहे ईसाई हो।

🚩वन्दे मातरम से आम जनता को कितना प्रेम हो गया था। इसका उदहारण हम इस प्रसंग से समझ सकते है। किसी गाँव में, जो ढाका जिले के अंतर्गत था, एक आदमी गया और कहने लगा कि मैं नवाब सलीमुल्लाह का आदमी हूँ। इसके बाद वन्दे मातरम गाने वाले और नारे लगाने वालो की निंदा करने लगा। इतना सुनते ही पास की एक झोपड़ी से एक बुढ़िया झाड़ू लेकर बाहर आई और बोली वन्दे मातरम गाने वाले लड़को ने मुझे बचाया हैं। वे सब राजा बेटा है। उस वक्त तेरा नवाब कहाँ था?

🚩5. फूलर के असफल प्रयास

🚩फूलर उस समय बंगाल का गवर्नर बना। वह अत्यन्त छोटी सोच वाला व्यक्ति था। उसने कहा कि मेरी दो बीवी हैं। एक हिन्दू और दूसरी मुस्लिम। मुझे दूसरी ज्यादा प्रिय है। फुलर का उद्देश्य हिन्दू-मुस्लिम एकता को तोड़ना था। फुलर के इस घटिया बयान के विपक्ष में क्रान्तिकारी और कवि अश्वनी कुमार दत ने अपनी कविता में लिखा-

🚩“आओ हे भारतवासी! आओ, हम सब मिलकर भारत माता के चरणों में प्रणाम करें। आओ! मुसलमान भाइयों, आज जाती-पाती का झगड़ा नहीं है। इस कार्य में हम सब भाई भाई है।इस धुल में तुम्हारे अकबर है और हमारे राम है।”

🚩फूलर ने बंगाल के मुस्लिम जमींदारों को भड़का कर दंगा करवाने का प्रयास किया पर उसके प्रयास सफल न हुए।

🚩अंग्रेज सरकार के मन में वन्दे मातरम को लेकर कितना असंतोष था कि उन्होंने सभी विद्यालयों को सरकारी आदेश जारी किया। सभी छात्र अपनी अपनी नोटबुक में 500 बार यह लिखे कि “वन्दे मातरम चिल्लाने में अपना समय नष्ट करना मुर्खता और अभद्रता हैं।”

🚩6. वारिसाल में कांग्रेस का अधिवेशन और वन्दे मातरम

🚩14 अप्रैल 1906 के दिन वारिसाल में कांग्रेस के जुलुस में वन्दे मातरम का नारा लगाने पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया। शांतिपूर्वक निकल रहे जुलुस पर पुलिस ने निर्दयता से लाठीचार्ज किया। निर्दयता की हालत यह थी कि एक मकान की खूंटी पर वन्दे मातरम लिखा था। तो उस मकान को गिरा दिया गया। 10-11 वर्ष का एक बालक रसोई में वन्देमातरम गा रहा था। तो उसे घर से निकलकर कोर्ट के सामने चाबुक से पीटा गया। दो हलवाइयों की दुकान पर यह नारा लिखा था तो उनके सर फोड़ दिए गए। सुरेंदर नाथ बनर्जी की गिरफ्तार कर 200 रुपये जुर्माने और अलग से कोर्ट की अवमानना पर 200 रुपये का दंड लेकर छोड़ दिया गया। इतनी निर्दयता के बावजूद भीड़ वन्दे मातरम का गान करते हुए अपने सभापति महोदय रसूल साहिब को लेकर सभास्थल पर पहुँच गई।

🚩मंच पर हिन्दू नेताओं के साथ मुस्लमान नेताओं में सर्वश्री इस्माइल चौधरी, मौलवी अब्दुल हुसैन, मौलवी हिदायत बक्श, मौलवी हमिजुद्दीन अहमद, मौलवी दीन मुहम्मद, मौलवी मोथार हुसैन, मौलवी मोला चौधरी उपस्थित थे। वन्दे मातरम के गान से सभा का आरम्भ हुआ था। सभापति महोदय ने देश की आज़ादी के लिए सभी हिन्दू-मुसलमान को आपस में मिलकर लड़ने का आवाहन किया।

🚩इतने में सुरेंदर नाथ बनर्जी अपने साथियों के साथ सभा स्थल पर जा पहुँचे। जिससे वन्दे मातरम के गगन भेदी नारों के साथ सम्पूर्ण सभा स्थल गूँज उठा। सभा में ब्रिटिश सरकार के द्वारा वन्दे मातरम को लेकर किये जा रहे अत्याचार को घोर निंदा की गई। जिस स्थान पर सुरेंदरनाथ बनर्जी को वन्दे मातरम गाने के लिए गिरफ्तार किया गया था। उस स्थान पर वन्दे मातरम स्तंभ बनाने के प्रस्ताव को सभा में पारित किया गया। अगले दिन के सभी समाचार पत्र वरिसाल के वन्दे मातरम संघर्ष की प्रशंसा और अंग्रेज सरकार की निंदा से भरे पड़े थे। वारिसाल की घटना के कारण लार्ड कर्जन को भारत के वाइसराय के पद से त्याग देना पड़ा।

🚩7. वन्दे मातरम और योगी अरविन्द

🚩वन्दे मातरम के नाम से पत्र आरंभ हुआ जिसे पहले विपिन चन्द्र पाल ने सम्पादित किया बाद में श्री अरविन्द ने। श्री अरविन्द ने इस पत्र से यह भली भांति सिद्ध कर दिया की तलवार से ज्यादा तीखी लेखनी होती है और उसकी ज्वाला से क्रूर शासन भी भस्मीभूत हो सकता है। अरविन्द के पत्र के बारे में स्टेट्समैन अखबार लिखता है कि “अखबार की हर लाइन के बीच भरपूर राजद्रोह दीखता है। पर वह इतनी दक्षता से लिखा होता है कि उस पर क़ानूनी कार्यवाही नहीं की जा सकती।”

🚩श्री अरविन्द ने वन्दे मातरम गीत के बारे में कहा है कि बंकिम ने ही स्वदेश को माता की संज्ञा दी है। वन्दे मातरम संजीवनी मंत्र है। हमारी स्वाधीनता का हथियार वन्दे मातरम है। उन्होंने कहा कि वन्दे मातरम साधारण गीत नहीं है। बल्कि एक ऐसा मंत्र है जो हमें मातृभूमि की वंदना करने की सीख देता है। उनकें इस व्यक्तव्य के कारण ही बंग-भंग के क्रांतिकारियों के लिए वन्दे मातरम का यह नारा वह गीत मंत्र बन गया।

🚩अपनी पत्नी को 30 अगस्त 1908 को एक पत्र में श्री अरविन्द लिखते है- “मेरा तीसरा पागलपन यह है कि जहाँ दुसरे लोग स्वदेश को जड़ पदार्थ, खेत, मैदान, पहाड़, जंगल और नदी समझते हैं। वहां मैं अपनी मातृभूमि को अपनी माँ समझता हूँ। उसे अपनी भक्ति अर्पित करता हूँ और उसकी पूजा करता हूँ।माँ की छाती पर बैठ कर अगर कोई उसका खून चूसने लगे तो बेटा क्या करता है? क्या वह चुपचाप बैठा हुआ भोजन करता है? या स्त्री पुरुष के साथ रंगरलिया बनता है? या माँ को बचाने के लिए दौड़ जाता है?”

🚩श्री अरविन्द को गिरफ्तार कर लिया गया। उससे देश में वन्दे मातरम की लहर चल पड़ी।

🚩1906 को धुलिया, महाराष्ट्र में वन्दे मातरम के नारे से सभा ही रूक गयी। नासिक में वन्दे मातरम पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया। जिस जिस ने प्रतिबन्ध को तोड़ा, तो उसे पीटा गया गया। कई गिरफ्तारियाँ हुई। इस कांड का तो नाम ही वन्दे मातरम कांड बन गया।

🚩फरवरी 1907 को तमिलनाडू में मजदूरों ने हड़ताल कर दी और ब्रिटिश नागरिकों को घेर कर उन्हें भी वन्दे मातरम के नारे लगाने को बाध्य किया।

🚩मई 1907 को रावलपिंडी में भी स्वदेशी के नेताओं की गिरफ़्तारी के विरोध में युवकों ने वन्दे मातरम के नारे को लगाते हुए लाठियाँ खाई।

🚩26 अगस्त,1907 को वन्दे मातरम के एक लेख के कारण बिपिन चन्द्र पाल को अदालत में सजा हुई। तो उनका स्वागत हजारों की भीड़ ने वन्दे मातरम से किया। यह देखकर पुलिस अँधाधुंध लाठीचार्ज करने लगी। यह देखकर एक 15 वर्षीय बालक सुशील चन्द्र सेन ने एक पुलिस वाले मुँह पर मुक्का मार दिया। उस वीर बालक को 15 बेतों की सजा सुनाई गई थी। सुशील की इस सजा की प्रशंसा करते हुए संध्या में एक लेख छपा “सुशील की कुदान भरी, फिरंगी की नानी मरी”

🚩सुशील युगांतर पार्टी के सदस्य थे। उनकी चर्चा सुरेंदर नाथ बनर्जी तक पहुँची तो उन्होंने उसे सोने का तमगा देकर सम्मानित किया।

🚩अब युगांतर पार्टी के सदस्यों ने सुशील को सजा देने वाले अत्याचारी किंग्स्फोर्ड को यमालय भेजने की ठानी। यह कार्य प्रफुल्ल चन्द्र चाकी और खुदी राम बोस को सोंपा गया। षड़यंत्र असफल हो जाने पर चाकी ने आत्महत्या कर ली और खुदीराम ने फाँसी का फन्दा चूम कर सबसे कम उम्र में शहीद होने का सम्मान प्राप्त किया। इसी केस में श्री अरविन्द को भी सजा हुई थी।

🚩8. वन्दे मातरम और राष्ट्रीय झंडा

🚩कांग्रेस का लम्बे समय तक कोई निजी झंडा नहीं था। कांग्रेस के अधिवेशन में यूनियन जैक को फहराकर भारत के अंग्रेज भगत प्रसन्न हो जाते थे। 1906 में कोलकता में कांग्रेस के अधिवेशन में भगिनी निवेदिता ने सबसे पहले वज्र अंकित झंडे का निर्माण किया जिस पर वन्दे मातरम लिखा हुआ था। उसके बाद 18 अक्टूबर, 1907 को जर्मनी के स्टुअर्ट नगर में मैडम बीकाजी कामा ने वन्दे मातरम गीत के बाद राष्ट्रीय झंडा फहराया जिस पर वन्दे मातरम अंकित था। अपने भाषण में मैडम कामा ने पहले अंग्रेजों द्वारा भारत में किये जा रहे अत्याचारों का विवरण दिया जिससे की सुनने वालो के रोंगटे खड़े हो गए। उसके बाद भारत का झंडा निकालती हुई वह बोली " यह है भारतीय राष्ट्र का स्वतंत्र झंडा। यह देखिये फहरा रहा है। भारतीय देश भक्तों के रक्त से यह पवित्र हो चूका है। सदस्यगण, मैं आपसे अनुरोध करती हूँ कि आप खड़े होकर भारत की इस स्वतंत्र पताका का अभिवादन करे।”

🚩सर्व प्रथम झंडे पर वन्दे मातरम को अंकित करने से पाठक उस काल में वन्दे मातरम के भारतीय जन समुदाय पर प्रभाव को समझ सकते है।

🚩9. वन्दे मातरम का भारत व्यापी प्रभाव

🚩मोतीलाल नेहरु ने जवाहरलाल नेहरु को 1905 में एक पत्र में लिखा था कि हम ब्रिटिश भारत के इतिहास की सबसे संकट पूर्ण अवधि से गुजर रहे है। इलाहाबाद में भी वन्दे मातरम आम अभिनन्दन बन गया हैं। यदि अभियान चलता रहा तो यहाँ लौटने पर भारत को, जब तुम गये, उससे बिलकुल बदला पाओगे।

🚩25 नवम्बर 1905 को ट्रिब्यून अखबार लिखता है कि “बंगाल में लोगो ने वन्दे मातरम का जयघोष शुरू किया हैं। इन शब्दों का अर्थ है माता की वन्दना। इसमें कुछ भी भयंकर नहीं है। फिर दमनशाही द्वारा वन्दे मातरम की मनाही क्यूँ है? अब तो पंजाब में सुशिक्षित लोग एक दुसरे से भेंट होने पर वन्दे मातरम कहकर अभिनन्दन करते है। इस प्रकार सारे हिंदुस्तान में असंख्य मुखों से निरन्तर निकलते वन्दे मातरम को बंद करने में सरकार को कितने सिपाहियों और अधिकारीयों की आवश्यकता होगी? पूर्वी बंगाल की जनता के साथ सारे हिंदुस्तान की सहानभूति हैं।

🚩जब हैदराबाद के निज़ाम के धर्मान्ध अत्याचारों के विरुद्ध आर्य समाज ने 1939 में हैदराबाद सत्याग्रह किया था तब जेल में रामचन्द्र के नाम से एक आर्यवीर को बंद कर दिया गया था। अपनी क्रूरता की धाक जमाने के लिए जेल में आर्य सत्याग्रहियों पर अत्याचार किया जाता था। जेल में दरोगा जब भी वीर रामचंद्र को बेंत मारते तो उनके मुख से वन्दे मातरम का नारा निकलता था। दरोगा जब तक मारते रहते जब तक की रामचंद्र बेहोश न हो गए पर उनके मुख से बेहोशी में भी नारा निकलता रहा। उनका जेल से छूटने के बाद आजीवन नाम ही रामचंद्र वन्देमातरम हो गया। ऐसा अनुराग था देश और धर्म प्रेमियों को वन्दे मातरम के साथ।

🚩10. वन्दे मातरम विदेश में

🚩जुलाई 1909 को मदन लाल धींगरा को लन्दन में जब फाँसी दी गई तो उनके अंतिम शब्द थे “वन्दे मातरम”।

🚩1909 को जिनेवा से एक पत्रिका वन्दे मातरम का का प्रकाशन आरंभ हुआ। अपने प्रथम अंक में पत्रिका ने कहा ‘विदेशी अत्याचार के विरुद्ध हमारे बहादुर और बुद्धिमान नेताओं ने बंगाल में जो यशस्वी अभियान शुरू किया है। वन्दे मातरम के माध्यम से हम उसे पूर्ण शक्ति और दृढ़ता के साथ में चलायेगे।

🚩कनाडा से आ रहे जहाज कमागातामारू के झंडे पर वन्दे मातरम, सत श्री अकाल और अल्लाह हो अकबर के नारे लिखे थे।

🚩साउथ अफ्रीका से जब महात्मा गाँधी भारत लौटे तो उन्होंने भारत आकर वन्दे मातरम गीत की प्रशंसा करी थी।(हरिजन 1 जुलाई 1938)

🚩1922 में जब गोखले अफ्रीका गए तो हजारों भारत वासियों ने उनका स्वागत वन्दे मातरम से किया था।

🚩1937 में तुर्की के अदान नगर में भारतीय मस्जिद पर वन्दे मातरम लिखा था। मस्जिद पर भारतीय तिरंगा लगा था और हर नमाज के साथ वन्दे मातरम का घोष किया जाता था।

11. भारतीय क्रांतिकारी और वन्दे मातरम

🚩सन 1920 में लाला लाजपत राय ने दिल्ली से दैनिक वन्दे मातरम का प्रकाशन शुरू किया था।

🚩सन 1930 में चन्द्र शेखर आजाद अपने पिता को पत्र लिखने समय वन्दे मातरम सबसे ऊपर लिखते हैं।

🚩सन 1920 का असहयोग आन्दोलन, नमक सत्याग्रह में भी वन्दे मातरम का बोलबाला था।

🚩रामचंद्र बिस्मिल ने काकोरी कांड में फाँसी पर लटकने से पहले वन्दे मातरम कहा था।

🚩चटगांव सशस्त्र संघर्ष में वीर सूर्यसेन को फाँसी देने से पहले जब भी मार पड़ती तो वे वन्दे मातरम का जय घोष करते थे। उन्हें इतना मार गया था कि वे बेहोश हो गए और अचेत अवस्था में ही उन्हें फाँसी पर चढ़ा दिया गया था।

🚩इसके अतिरिक्त अनेक सन्दर्भ हमें भारत की आज़ादी की लड़ाई में वन्दे मातरम को प्रेरणा के स्रोत्र के रूप में पाते हैं। डॉ . विवेक आर्य

🚩इस लेख से स्पष्ट होता है कि अगर कोई वन्दे मातरम का विरोध करता है तो वे भी देश विरोधी में ही गिना जाएगा क्योंकि अंग्रेज भी वन्दे मातरम को पसंद नही करते थे इसलिए वन्दे मातरम का विरोध करने वाले लोगो से सावधान रहें वे देशहित में कार्य नही कर सकते।

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Friday, June 26, 2020

राष्ट्रद्रोहीयों को आसानी से जमानत, राष्ट्रहित करने वाले आज भी जेल में, कमी राष्ट्रवादीयों की है!

26 जून 2020

🚩इतना तो पक्का हो गया कि अगर आप राष्ट्र और संस्कृति के लिये कार्य करेंगे तो आपकी गिरफ्तारी भी होगी, जमानत भी नही होगी, मीडिया न्यायालय पर प्रेशर भी बनायेगा और बाद में आपको आजीवन तक की सजा भी दी जा सकती है और राष्ट्रवादी लोग आपके लिए कोई आवाज नही उठाएंगे और आपने राष्ट्र एवं भारतीय संस्कृति विरोधी कार्य किये होंगे तो जमानत भी मिलेगी, मीडिया भी वाहवाही करेगी और राष्ट्रविरोधी गुट आपके लिए समर्थन भी करेंगे।

🚩आइए कुछ उदाहरणों से जानते है-

🚩दिल्ली हाई कोर्ट ने जामिया कोआर्डिनेशन कमेटी की सदस्य सफूरा जरगर को जमानत दे दी है। बता दें कि दिल्ली दंगा भड़काने में सफूरा जरगर मुख्य साजिशकर्ताओं में से एक है। जफूरा के कई वीडियो उपलब्ध हैं, जिसमें वो कश्मीर को आजादी, केरल को आजादी, बिहार को आजादी और इंकलाब की बातें करती है।

🚩इसके अलावा जफूरा के खिलाफ सबूत हैं कि ये जाफराबाद से महिलाओं की टोली को शाहीनबाग लाती थी और दंगे से पहले जाफराबाद में जो जाम लगा था, वहाँ भी ये सक्रिय रूप से उपस्थित थी और लोगों को उकसा रही थी।

🚩ऐसे लोग जब हार जाएँगे तो सबूत के साथ छेड़छाड़ करने की संभावना बढ़ जाती है। इसके बावजूद इसे बैल दी गई। दिल्ली पुलिस की तरफ से सरकार का पक्ष रख रहे सॉलीसिटर जनरल तुषार मेहता ने स्वयं कहा कि उन्हें इसमें कोई आपत्ति नहीं है, इसे बैल दे दी जाए। बताया गया गर्भवती होने के कारण जमानत दी गई लेकिन आपको बता दें कि इससे पहले कई गर्भवती महिलाओं को गिरफ्तार किया था और उसी जेल में 39 बच्चों को जन्म भी दिया गया है और इन पर तो राष्ट्रद्रोह जैसा गंभीर आरोप भी हैं फिर भी जमानत दी गई हैं।

🚩इससे पहले संजय दत्त, सोनिया गांधी, राहुल गांधी, वाड्रा, लालू यादव, तरुण तेजपाल, माल्या, सलमान खान, कन्हैया कुमार, उमर खालिद, इमाम बुखारी, मुक़व्वल फ्रेंको आदि नेता-अभिनेता, पत्रकार, धनी, अन्य पंथ के धर्मगुरु और राष्ट्रद्रोह आदि अपराधों में जमानत मिलती रही हैं।

🚩लेकिन वहीं साध्वी प्रज्ञाजी को 9 साल, डीजी वंजाराजी को 8 साल, स्वामी असीमानन्दजी को 8 साल, कर्नल पुरोहित 7 साल, केशवानन्दजी महाराज, शंकराचार्य आदि को सालों तक जेल में रखा गया, अमानवीय यातनाएं दी गई लेकिन जमानत नही दी गई।

🚩ओडीशा में धर्मान्तरण का विरोध करने वाले दारा सिंह को सालो से जेल में रखा गया है, अपनी मां की अंतेष्टि करने के लिए भी पेरोल नही दी गई।

🚩जोधपुर जेल में 7 साल से बंद 85 वर्षीय हिंदू संत आशारामजी को एक दिन भी जमानत अथवा पेरोल नही दी गई इसके पीछे के कारण नीचे जानिए।

1). लाखों धर्मांतरित ईसाईयों को पुनः हिंदू बनाया व करोड़ों हिन्दुओं को अपने धर्म के प्रति जागरूक किया व आदिवासी इलाकों में जाकर जीवनोपयोगी सामग्री, मकान, पैसे, दवाइयां आदि दी जिससे धर्मान्तरण करने वालों का धंधा चौपट हो गया।

2). कत्लखानों में जाती हज़ारों गौ-माताओं को बचाकर, उनके लिए विशाल गौशालाओं का निर्माण करवाया।

3). शिकागो विश्व धर्मपरिषद में स्वामी विवेकानंदजी के 100 साल बाद जाकर हिन्दू संस्कृति का परचम लहराया।

4). विदेशी कंपनियों द्वारा देश को लूटने से बचाकर आयुर्वेद/होम्योपैथी के प्रचार-प्रसार द्वारा एलोपैथिक दवाईयों के कुप्रभाव से असंख्य लोगों का स्वास्थ्य और पैसा बचाया।

5). लाखों-करोड़ों विद्यार्थियों को सारस्वत्य मंत्र देकर और योग व उच्च संस्कार का प्रशिक्षण देकर ओजस्वी- तेजस्वी बनाया।

6). लंदन, पाकिस्तान, चाईना, अमेरिका और बहुत सारे देशों में जाकर सनातन हिंदू धर्म का ध्वज फहराया, पाकिस्तान में तो कराची में गाजी दरगाह में दोपहर की अजान के समय भी वे हरि कथा करते रहे।

7). वैलेंटाइन डे का विरोध करके "मातृ-पितृ पूजन दिवस" का प्रारम्भ करवाया।

8). क्रिसमस डे के दिन प्लास्टिक के क्रिसमस ट्री को सजाने के बजाय, तुलसी पूजन दिवस मनाना शुरू करवाया।

9). करोड़ों लोगों को अधर्म से धर्म की ओर मोड़ दिया।

10). नशा मुक्ति अभियान के द्वारा करोड़ों लोगों को व्यसन-मुक्त कराया।

11). वैदिक शिक्षा पर आधारित अनेकों गुरुकुल खुलवाएं।

12). मुश्किल हालातों में कांची कामकोटि पीठ के "शंकराचार्य श्री जयेंद्र सरस्वतीजी", बाबा रामदेव, मोरारी बापूजी, साध्वी प्रज्ञा एवं अन्य संतों का साथ दिया।

🚩ऐसे अनेक भारतीय संस्कृति के उत्थान के कार्य किये हैं जो विस्तार से नहीं बता पा रहे हैं।

🚩डॉ सुब्रमण्यम स्वामी ने तो यह भी बताया कि हिन्दू संत आशारामजी बापू ने लाखों हिंदुओं की घर वापसी की और करोड़ो लोगों को सनातन धर्म की तरफ ले आये इसके कारण वेटिकन सिटी ने सोनिया गाँधी को कहकर झूठे केस में फँसाया गया। उनके आश्रम में फेक्स भी आया था कि 50 करोड़ दो नहीं तो जेल जाने को तैयार रहो इससे साफ होता है कि उन पर अंतर्राष्ट्रीय षड्यंत्र हुआ है।

🚩इससे साफ पता चलता है कि सफूरा जरगर जैसे जो देश को तोड़ने की बात करते है वे किसी भयंकर अपराध में गिरफ्तार हो भी जाये तो उनको तुरंत जमानत मिल जाती है क्योंकि उनके लिए आवाज उठाने के लिए राष्ट्रविरोधी लोग तुरंत इकट्ठे हो जाते है, मीडिया उनके पक्ष में बोलने लगती है जबकि कोई राष्ट्रवादी षडयंत्र तहत जेल जाता है तो राष्ट्रवादी लोग आवाज नही उठाते है सोचते है कि हमारे पडोश में आग लगी है न हमारे घर मे तो नही आई है न लेकिन पडोस में लगी है तो आपके वहाँ भी आयेगी इसलिए सभी राष्ट्रवादी, हिन्दूनिष्ठ इक्कट्ठे होकर आवाज उठानी चाहिए तभी सभी बच पायेंगे नही तो एक के बाद एक कि बारी तय है।

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Thursday, June 25, 2020

आसाराम बापू अभी भी जेल में क्यों हैं? सवाल आपका - जवाब हमारा...

25 जून 2020

🚩हिंदुस्तान में अधिकतर लोगों में एक धारणा बनी रहती है कि कोई व्यक्ति जेल में है तो समझो की वे अपराधी होगा लेकिन ये बात सभी जगह लागू नही होती कुछ व्यक्ति जेल में होते है तो उसके पीछे ओर भी बहुत कारण होते हैं। कई बार राष्ट्र और संस्कृति का कार्य करने पर जेल भेजा हैं।

1.) स्वदेशी अभियान आंदोलन 
🚩इसके अंतर्गत बापू आसारामजी आयुर्वेद विज्ञान को लोगों की जीवनशैली में वापस लाए और गरीबों को उच्च गुणवत्ता वाली और सस्ती दवाइयां उपलब्ध करवाई।

2.) 50 से भी ज्यादा सनातन धर्म शैली के गुरुकुलों की शुरूआत की जिससे छोटी उम्र में ही बच्चे वैदिक संस्कृति से जुड़ने लगें । इनके गुरुकुल इतने लोकप्रिय हो गए हैं कि सभी स्थानीय कॉन्वेंट स्कूलों में प्रवेश में गिरावट आने लगी।

3.) 10,000 से ज्यादा गायों को कत्लखाने जाने से बचाकर, स्व-निर्भर गौशालाओं की शुरुआत की, जो बिना किसी बाहरी दान के चलायी जाती हैं । जहाँ गौ सेवा अंतर्राष्ट्रीय मानकों पर की जा रही है। इनके गौमूत्र से बने अर्क, गौवटी और गोधूप इतने लोकप्रिय हो गए हैं कि अन्य बाहरी स्रोतों पर निर्भर रहने की आवश्यकता नहीं पड़ी और इससे 100 से ज्यादा अलग-अलग जगहों पर आदिवासी परिवारों को रोजगार मिलने लगा।

4.) जो लोग उनके सत्संग को सुनते और उनके संपर्क में आने लगे, वे गर्व से कहने लगे कि हिंदू होने पर वे अपने आपको बहुत भाग्यशाली मानते हैं।

5.)  बापू आसारामजी ने कई संस्थाओं के मार्गदर्शक बनकर उन्हें भी प्रेरित किया और खुद भी जनजातीय क्षेत्र में बहुत से सेवा और रोजगार के अवसरों का नेतृत्व किया और सनातन धर्म के मार्ग को खोने वाले लाखों धर्मान्तरित हिंदुओं की घरवापसी करवाई। 

6.) बापू आशारामजी के प्रत्येक आश्रम (450 आश्रम) को एक आत्मनिर्भर इकाई के रूप में बनाया गया ताकि उन्हें किसीके सामने धनराशि के लिए प्रार्थना न करनी पड़े और वे आसानी से व्यसन मुक्ति अभियान, मातृपितृ पूजन दिवस, संस्कार सिंचन अभियान, वैदिक मंत्र विज्ञान प्रचार, संस्कृति रक्षक सम्मेलन, संकीर्तन यात्राएं और सत्संग जैसे सेवाकार्यों द्वारा समाज में जागृति लाये।

7.) किसी भी देश की रीढ़ की हड्डी युवा होते हैं। हिंदू संत आशारामजी बापू ने युवाधन सुरक्षा अभियान (दिव्य प्रेरणा प्रकाश) द्वारा युवाओं को संयमित जीवन का महत्व समझाया। आज बापू आसारामजी के कारण आधुनिक अश्लीलता भरे वातावरण में भी करोड़ों युवा ब्रह्मचर्यं का महत्व समझ रहे हैं और अपनी प्राचीन विरासत पर गर्व करने लगे हैं।

8.) बापू आसारामजी ने देश विदेश में 17,000 से भी अधिक बाल संस्कार केंद्र शुरू करवाये जहां बच्चों को अपने माता-पिता का आदर करना, स्मृति क्षमता में वृद्धि और अपने जीवन को कैसे ऊर्जावान बनाया जाये, ये शिक्षा दी जाने लगी। उद्यम, साहस, धैर्य, बुद्धि, शक्ति, पराक्रम जैसे सद्गुणों से बच्चे विद्यार्थी जीवन से ही उन्नत, विचारवान और संस्कृति प्रेमी बनने लगे।

9.) हमारी खोई हुई गरिमा और संस्कृति की महिमा को जनमानस के हृदय में पुनः स्थापित करने के लिए समाज में वैश्विक आंदोलन के रूप में प्रस्तुत किया गया 14 फरवरी वेलेंटाइन डे को "मातृपितृ पूजन दिवस" और  25 दिसंबर क्रिसमस डे को "तुलसी पूजन दिवस" और करोड़ो लोग इस दिन 14 फरवरी को मातृ-पितृ पूजन दिवस और 25 दिसंबर को तुलसी पूजन दिवस मनाने लगें।

🚩इन सभी गतिविधियों को आम व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह द्वारा शुरू नहीं किया जा सकता है। यह केवल किसी महापुरुष द्वारा किया जा सकता है जो आत्मनिर्भर और दिव्य हैं। ऐसे संतों से लाभान्वित होना न होना ये समाज पर निर्भर करता है। विकल्प हमारा है क्योंकि आत्मरामी संतों को हमसे किसी चीज की आवश्यकता नहीं है और न ही उनको कोई घाटा है पर उनकी उपेक्षा करने से समाज को आने वाले समय में बहुत बड़े नुकसान का सामना करना पड़ेगा।

🚩तो अब सवाल यह है पिछले पचास साल से देश और संस्कृति की सेवा करनेवाले बापू आसाराम जी को जेल क्यों भेजा गया ?

🚩सब जानते हैं कि भारत को 1947 में आजादी मिली पर पर्दे के पीछे का सत्य कोई नहीं जानता। केजीबी जासूस के मुताबिक़ अंतर्राष्ट्रीय मिशनरियों के पास भारत की संस्कृति को ध्वस्त करने का लक्ष्य है। असल में वे दुनिया पर शासन करना चाहते हैं पर किसी भी देश को नष्ट करने के लिए सबसे पहले उस देश की संस्कृति को नष्ट करना होता है और इसलिए वे उस देश की संस्कृति को नष्ट करने के लिए देश के प्रति वफादार नेताओं और संतों पर हमला करते हैं।

🚩जैसे सुभाष चन्द्र बोस, लाल बहादुर शास्त्री, राजीव दीक्षित और संत लक्ष्मणानंदजी आदि आदि की कैसे मृत्यु हुई आज तक पता नही चला।

🚩कुछ साल पहले यूरी बेज़मेनोव, जो पूर्व केजीबी जासूस है, उनके इन्टरव्यू के अंश एक अद्भुत अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं।

"किसी भी देश की पूरी आबादी की सोच और व्यवहार को बदलने के लिए चार कदम हैं।

1. अनैतिकता

2. अस्थिरता

3. संकट

4. सामान्यीकरण

हम युवाओं को शिक्षण के द्वारा गुमराह करके अनैतिक बना देते हैं। भारत में अनैतिकता प्रक्रिया मूल रूप से पहले ही पूरी हो चुकी है।"

🚩अब यह स्पष्ट होना चाहिए कि आशाराम बापू अभी भी जेल में क्यों हैं?
कुछ लोग कहते हैं, कांग्रेस (विशेष रूप से सोनिया गांधी का षड्यंत्र) आशाराम बापू पर बनाये गये मामले के पीछे छिपी हुई है लेकिन अब जब मोदी सत्ता में हैं, तब भी आशाराम बापू जेल में हैं।

🚩वास्तविक सत्य यह है: यह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर साजिश है। बड़े शक्तिशाली लोग जो बहुराष्ट्रीय कंपनियों और मिशनरियों से जुड़े हुए हैं, जिन्होंने भारतीय मीडिया कई समूहों को खरीद रखा है, यहां भारतीय मीडिया पूरी तरह से दूषित है और खरीदने में मुश्किल नहीं है, वे भ्रष्ट अधिकारी और राजनेता को खरीदते हैं। वे हमेशा किसी भी चेहरे के पीछे काम करते हैं, जैसे उन्होंने सोनिया गांधी के चेहरे के पीछे किया था। भारतीय लोगों को मीडिया द्वारा आसानी से बेवकूफ़ बना दिया जाता है और बाकि भ्रष्ट राजनेता और अधिकारी केस को लंबा बनाते हैं।

🚩जब हम आसाराम बापू पर की गई FIR पढ़ते हैं तो सबकुछ स्पष्ट होता है। FIR में कोई बलात्कार का जिक्र नहीं है, लेकिन मीडिया ब्रेकिंग न्यूज 24X7 में "रेप" शब्द बोलता है और लड़की की कॉल डिटेल के अनुसार लड़कीं ने जिस समय पर छेड़छाड़ का आरोप लगाया है उस समय वहाँ थी ही नही और आशारामजी बापू किसी कार्यक्रम में व्यस्त थे वहां 60 लोग भी मौजूद थे इससे स्पष्ट होता है कि सोची समझी साजिश के तहत जेल भिजवाया हैं।

🚩बापू आशारामजी के आश्रम में फैक्स भी किया था उसमे लिखा था कि 50 करोड़ दे दीजिए नही तो लड़की के केस में जेल जाने को तैयार रहिये लेकिन बापू आशारामजी ने इसपर ध्यान ही नही दिया वे देश व संस्कृति की सेवा में लगे रहे पैसे गरीबों और गायों की सेवा में लगाते रहे जिसके कारण वे आज भी जेल में है और अगर उनको बाहर निकालेंगे तो फिर से धर्मान्तरण वालो और मल्टीनेशनल कंपनियों की दुकानें बंद हो जायेगी।

🚩अगर देश को बचाना चाहते हैं तो भारतीयों को एकजुट होना चाहिए। लेकिन केजीबी के जासूसी प्रभावित लोगों का मीडिया द्वारा ब्रेनवोश किया गया है, इसलिए वे कभी भी सच नहीं पढ़ते और ना बोलते हैं।

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