Wednesday, December 2, 2020

धर्मांतरण पर रोक कानून को पूरे देश में लागू किया जाए

02 दिसंबर 2020


धर्म के संस्कार नहीं होने के कारण कुछ युवतियां सेक्युलर बन जाती हैं और कोई उनसे धर्म की बात करे तो अपने को मॉर्डन बताकर उनसे नफरत करती हैं जिसके कारण वे लव जिहाद में फस जाती हैं और बाद में अपनी जिंदगी नरक जैसी जीती रहती हैं, पुलिस अथवा न्यायालय में शिकायत करती हैं पर तब तक अपनी जिंदगी तबाह हो गई होती है। ऐसा ही एक ताजा मामला है, पढ़ लीजिये।




मेरा नाम कमालरुख खान है। मैं दिवंगत संगीतकार वाजिद खान की पत्नी हूँ। विवाह से पहले मैंने और साजिद ने दस साल एक दूसरे के साथ बिताये था। आप हमें कॉलेज स्वीटहार्ट कह सकते हैं। मैं पारसी थी और वो मुस्लिम थे। हम दोनों ने स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत विवाह किया था। यही वह कारण है जिसकी वजह से वर्तमान में चल रही धर्मांतरण की बहस मेरे लिए भी महत्वपूर्ण हो जाती है।

मैं आपके साथ अपना अनुभव इसलिए बांटना चाहती हूँ कि मजहब के नाम पर एक औरत के साथ किस तरह भेदभाव, दमन और पूर्वाग्रह का सामना करना पड़ता है। एक स्त्री के सम्मान के लिए ये अपमानजनक, निंदनीय और आंख खोलनेवाला है।

मेरे सामान्य पारसी परिवार का पालन पोषण बहुत लोकतांत्रिक मूल्यों वाला था। वैचारिक स्वतंत्रता को बढावा दिया जाता था और लोकतांत्रिक बहसें सामान्य सी बात थी। हर स्तर पर शिक्षा का महत्व सर्वोपरि होता था लेकिन मेरी शादी के बाद यही वैचारिक स्वतंत्रता, लोकतांत्रिक जीवन मूल्य और शिक्षा मेरे पति के लिए सबसे बड़ी समस्या थी। एक पढी लिखी लड़की जो वैचारिक स्वतंत्रता रखती हो, उनके परिवार को कतई स्वीकार नहीं थी। इस्लाम कबूल न करने का विरोध तो सबसे अपवित्र कार्य साबित हुआ। मैं हमेशा सभी धर्मों का सम्मान करती हूँ और उनके सभी धार्मिक आयोजनों में शामिल भी होती थी लेकिन मेरे ऊपर धर्मांतरण का दबाव लगातार बढता जा रहा था और ये दबाव यहां तक बढा कि मुझे तलाक के लिए अदालत की शरण लेनी पड़ी। मेरा आत्मसम्मान मुझे उनके या उनके परिवार के लिए इसकी (इस्लाम कबूल करने की) अनुमति नहीं दे रहा था।

मैं जिन मूल्यों में विश्वास करती हूँ उसमें धर्म परिवर्तन के लिए कोई स्थान नहीं है। न ही मैं अपनी 16 वर्षीय बेटी अर्शी और 9 वर्षीय बेटे ह्रेहान में ये संस्कार डालना चाहती हूँ। लेकिन अपनी शादी के बाद मैंने नख शिख इसके खिलाफ लड़ाई लड़ी है। इसका परिणाम ये हुआ कि मेरे ससुरालवालों ने मेरे खिलाफ एक से एक डरावने तरीके इस्तेमाल किये ताकि मैं इस्लाम कबूल कर लूं।

वाजिद एक सुपर टैलेन्टेड संगीतकार थे जिन्होंने एक से एक सुरीली धुनों की रचना की। मैं और मेरे बच्चे आज भी उनको मिस करते हैं। काश वो हमारे साथ कुछ समय और रहते। लेकिन धार्मिक पूर्वाग्रहों के कारण मैं और मेरे बच्चे कभी उनके परिवार की तरह उनकी संगीत रचना का हिस्सा न बन सके।

लेकिन मैंने लड़ाई लड़ी। लड़ाई जीवन मूल्यों की और लड़ाई अपने बच्चों के भविष्य की। ये लड़ाई मुझे सिर्फ इसलिए लड़नी पड़ी क्योंकि वो लोग मुझसे सिर्फ इसलिए नफरत करते थे क्योंकि मैंने इस्लाम कबूल करने से मना कर दिया। ये नफरत इतनी गहरी है कि वाजिद की मौत के बाद भी खत्म नहीं हुई है। दुर्भाग्य से उनकी मृत्यु के बाद भी उनके परिवार की ओर से मेरी प्रताड़ना जारी है।

मैं दिल से चाहती हूँ कि ये एन्टी कन्वर्जन लॉ पूरे देश में लागू किया जाए ताकि अंतर्धामिक विवाहों में स्त्री के प्रेम और आत्मसम्मान की रक्षा हो सके। हमें अपनी जमीन पर खड़े होने के लिए बदनाम किया जाता है। ये धर्मांतरण माफिया बहुत शुरुआत से ही अपनी व्यूह रचना करते हैं जो ये कहते हैं कि सिर्फ उन्हीं का गॉड/प्रॉफेट सच्चा है बाकी अन्य दूसरे सभी भगवान झूठ हैं। धर्म उत्सव के लिए होता है लोगों और परिवारों को तोड़ने के लिए नहीं।

यह सब देखते हुए अब हिंदुओं को जागरूक होने की अत्यंत आवश्यकता है सबसे पहले अपने बच्चों को धर्म की शिक्षा दे, अच्छे संस्कार दे , टीवी सिनेमा से दूर रखें, उनका मोबाइल चेक करते रहे जिससे बच्चे अपनी जिंदगी बर्बाद न कर ले नहीं तो यही बच्चे बड़े होकर आपको ही गालियां देंगे, बच्चों का भी कर्तव्य है कि अपने माँ-बाप बात माने नही तो आगे पछताना पड़ेगा।

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Tuesday, December 1, 2020

भगवान विष्णु का मंदिर पाकिस्तान में 1300 साल पुराना मिला

 1 दिसंबर 2020


विश्व मे प्रथम धर्म एकमात्र सनातन धर्म ही था, जब ब्रह्माजी ने सृष्टि का उद्गम किया तब केवल सनातन धर्म ही था जिसको आज हिंदू धर्म के नाम से बोला जाता है।  2020 साल पुराने ईसाई मत और 1500 साल पुराने इस्लाम मजहब ने सनातन धर्म को तोड़ने के लिए अनेक प्रयत्न कियें लेकिन आज भी हिंदू धर्म के मदिरों के अवशेष मिल रहा है।




आपको बता दें कि पाकिस्तान और इटली के पुरातत्व विशेषज्ञों (Archaeological Experts) को खुदाई के दौरान उत्तर-पश्चिमी पाकिस्तान के स्वात शहर स्थित पहाड़ों के नज़दीक लगभग 1300 साल पुराना हिन्दू मंदिर मिला है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़ पुरातत्वविदों को उत्तर-पश्चिमी पाकिस्तान के बारिकोट घुंडई में खुदाई के दौरान यह मंदिर मिला। खैबर पख्तूनखवा, पुरातात्विक विभाग के फज़ल खालिक ने बताया कि यह मंदिर भगवान विष्णु का है।

 विशेषज्ञों ने बताया कि संभावित तौर पर इस मंदिर का निर्माण ‘हिन्दू-शाही’ काल के दौरान लगभग 1300 साल पहले कराया गया था। हिन्दू-शाही साम्राज्य ने काबुल घाटी (पूर्वी अफगानिस्तान) और गंधार (आज का पाकिस्तान) तथा वर्तमान के उत्तर पश्चिमी भारत पर शासन किया था। अनुमानित तौर पर इन्होंने ही 850 से 1026 CE के बीच हिन्दू मंदिर का निर्माण कराया था।

खुदाई के दौरान पुरातत्वविदों को मंदिर के नज़दीक छावनी और पहरा देने वाले स्तंभ (वॉच टावर) के भी अवशेष मिले। इसके अलावा उन्हें खुदाई के स्थान से जलाशय (water tank) भी मिला, जिसका उपयोग हिन्दू समुदाय के लोग मंदिर जाने से पहले नहाने के लिए करते थे। खालिक ने यह भी बताया कि स्वात शहर हज़ारों साल पुराना पुरातात्विक स्थल है और इतने समय में पहली बार हिन्दू-शाही शासन काल के निशान मिले हैं। स्वात में अनेक बौद्ध मंदिर और पूजा के तमाम स्थल भी मौजूद हैं। इटालियन पुरातात्विक अभियान के मुखिया डॉक्टर लूका ने कहा कि स्वात शहर में गंधार सभ्यता के दौर का यह पहला मंदिर है।

हाल ही में खोजी गई बुद्ध प्रतिमा को कट्टरपंथियों ने तोड़ दिया था।

जुलाई 2020 में ही खोजी गई बुद्ध की प्रतिमा को स्थानीय श्रमिकों और मौलवी ने तोड़ कर टुकड़े-टुकड़े कर दिए थे। पश्तून बाहुल्य खैबर पख्तूनखवा प्रांत के मर्दान शहर में एक घर की नींव की खुदाई के दौरान प्रतिमा के अवशेष बरामद हुए थे। इस घटना का वीडियो भी सामने आया था जिसमें मौलवी और श्रमिक बुद्ध की प्रतिमा को हथौड़े से खंडित करते हुए नज़र आ रहे थे। बौद्ध धर्म (जिसे वह इस्लाम विरोधी भी मानते हैं) के विरुद्ध अपना रोष जताते हुए मौके पर मौजूद सभी लोग बुद्ध की विशालकाय प्रतिमा को नष्ट करते हैं।

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार स्थानीय मौलवी की तरफ से दिए गए आदेश के बाद बुद्ध की प्रतिमा के साथ तोड़फोड़ की गई थी और उसने प्रतिमा को इस्लाम विरोधी भी बताया था। मौलवी ने इस घटना के ठीक पहले कहा था, “अगर यह प्रतिमा नष्ट नहीं की जाती है तो तुम्हारे निकाह का वजूद समाप्त हो जाएगा और तुम अपने मज़हब के प्रति आस्तिक नहीं रह जाओगे।” इसके बाद ही लोगों ने बुद्ध की मूर्ति के साथ तोड़फोड़ की थी जो कि मिलने के वक्त अच्छी स्थिति में थी।

जुलाई 2020 में ही इस तरह की एक और घटना हुई थी, जिसमें पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के गिलगित बाल्टिस्तान स्थित चिलास क्षेत्र में बौद्ध शिला बरामद की गई थी। इस शिला को भी कट्टरपंथी इस्लामियों ने नष्ट करने का पूरा प्रयास किया था, उस पर पाकिस्तान का झंडा बना दिया था और नारे तक लिख दिए थे। मीडिया रिपोर्ट के के मुताबिक़ यह मामला सुर्ख़ियों में तब आया जब वहाँ के स्थानीय लोगों ने सोशल मीडिया पर इस घटना की तस्वीरें साझा की। जिस शिला पर कट्टरपंथियों ने इस्लामी नारे लिखे थे, लगभग 800 AD की थी।

आपको बता दें कि वियतनाम में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) को एक संरक्षण परियोजना की खुदाई के दौरान 9वीं शताब्दी का शिवलिंग मिला है।

आपने जाना कि हिंदू वियतनाम में भी थे, वहाँ शिवलिंग मिलने पर कुछ हिंदू खुश भी होंगे लेकिन हिंदू केवल वियतनाम में ही नहीं बल्कि पूरे विश्व मे फैले थे, हिंदू जाती मे बँटते गए और आज सिर्फ भारत में ही हैं और उसमे भी 8 राज्यों में तो अल्पसंख्यक बन चुके हैं। हरियाणा के मेवात में करीब 50 से अधिक गांव हिन्दू विहीन बन गए हैं, हिंदू साधु-संतों ही हत्या कर दी जा रही है अथवा जेल भेज दिया जाता है, हिंदू मंदिरों के पैसे चर्च, मस्जिद आदि अन्य जगह उपयोग किये जा रहे हैं। हिंदुनिष्ठ लोगो की हत्या की जा रही है, फिल्मों, मीडिया, वेब सीरीज आदि द्वारा हिंदुओ को गलत तरीके से दिखाया जा रहा है, भीम आर्मी वाले हिंदुओं को ही आपस में तोड़ रहे हैं अर्थात हिंदू बाहुल्य देश मे भी हिन्दू सुरक्षित नहीं हैं।

अभी भी जाति-पाती में बंटे रहें तो फिर कौन बचायेगा? इसलिए अभी भी समय है, एक हो जाइए और एकता के सूत्र में बंधकर भारत को हिंदू राष्ट्र घोषित करना चाहिए।

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Monday, November 30, 2020

The way POCSO Act is MISUSED

 The way POCSO Act is MISUSED


Today , abuse of laws in India is at its prime. Kerala HC recently dismissed a fake case in POCSO Act. Be it a well-reputed person or an ordinary one, no one is safe from the shortcomings of law. In recent years, government has formulated a new law called POCSO. This law is intended to protect minors from sexual abuse. This law tips the scales of justice in favor of the 
accuser by considering their statement as absolute. 




The defendant has to prove they are not guilty – this is not justice but discrimination.
The accuser requires no evidence, no proof, they just have to point finger to sully a man’s reputation and prove them guilty.
This law seems to be good in the sense that the victim gets complete justice and the convict cannot escape law but what if the defendant is innocent? There is no recourse under POCSO Act for the 
defendant. They are deemed guilty from the start.

In a democratic nation which promotes 
equality, a law like this is a threat to equality.

A case was filed by a mother against a father that he was abusing their 
girl child. The charges were filed under POCSO Act so as to take custody of her child. Mother wanted to settle personal scores by abusing the law. However, the girl child revealed in court that the father never abused her or harmed her. If the child would have not stepped forward, he would have been wrongly convicted and imprisoned. 

Courts are aware of the fraudulent cases filed out of malice and hatred and has become more careful in applying the law. The Supreme Court has commented in the past on the high disproportionate number
of false accusations made under the Dowry Act and POCSO Act. Clearly such laws are biased. 

In another similar case, a man was accused of abusing an underage girl by
her mother. This time however, he could not come up with any proof or witness to defend himself. He wasn’t charged guilty by the court but assumed guilty and is rotting in prison for more than a year without 
bail. His family suffers as well, as he was the main earning member of the family.

According to officials, cases filed under POCSO are not investigated fairly 
because there is no incentive for fair investigation – the defendant is 
assumed guilty and they have to prove they are not. 

POCSO Act is broken, unfair and abused more often that not; it should be amended to represent all genders fairly.

Divyam Verma
Patna, Bihar

गुरु नानकजी प्रकाशोत्सव पर विशेष रूप से प्रकाशित लेख..

30 नवंबर 2020


गुरु नानक ने बाबर नामक राक्षस को भारत की प्रजा पर अकथनीय अत्याचार करते अपनी आँखों से देखा था। गुरु नानक ने इस अत्याचार से व्यथित होकर अपने मन की इच्छाओं को अपनी रचनाओं के माध्यम से प्रस्तुत किया था। यह रचनायें उस काल में देश तथा समाज की तत्कालीन समस्याओं के प्रति उनकी जागरुकता को प्रकट करती है। ‘उस समय में देश के शासक भोग- लिप्सा तथा मातृभूमि के प्रति अकर्मण्यता के भाव से पीड़ित थे। विदेशियों और विधर्मियों का प्रतिरोध करने के बजाय वे अपनी स्वार्थ पूर्ति और रंगरेलियों में लगे रहते थे। यह देखकर गुरू नानक ने उनको बड़े रोषपूर्वक फटकारा।




गुरु नानक लिखते है-*
*राजा सिंह मुकद्दम कुत्ते- जाइ जगाई बैठे सुत्ते ।।
चाकर नहंदा पाईन्ह घाउ- रत पितु कुतिहां चटि जाहु।
जिथै जींआ होसी सार- नकी बड़ी लाइन बार॥
अर्थात्- ‘‘वर्तमान समय के राजा शेर- चीतों की तरह हिंसक हैं और उनके अधिकारी कुत्तों की तरह लालची हैं और निर्दोष जनता को अकारण ही पीड़ित करते रहते हैं। राजकर्मचारी अपने नाखूनों से जनता को घायल करते रहते हैं और उसका खून कुत्तों की तरह ही चाट जाते हैं। परलोक में जब इनकी जाँच की जायेगी तो इनकी नाक काटी जायेगी।’’

बाबर के सैनिकों ने चारों तरफ तबाही पैदा कर दी और लोगों के धन, मान तथा इज्जत को मिट्टी में मिला दिया। उस भयंकर काल में भारतीय नारियों की दुर्दशा का चित्रण करते हुए उन्होंने लिखा है-

जिन सिरि सोहनि पाटियाँ माँगी पाई संधूर ।।
से सिर काती मुनीअन्हि गल बिच आवे धूड़ि। ।।
महला अंदरि होदीआ हुणि वहणिन मिलन्ह हटूरि॥१
जदहु सीआ बिआहीआ लाड़े सोहनि पासि।
हीडोली चढ़ि आईआ दंद खंड दीदे रासि।
उपपहु पाणी बीरिऐ झले झपकनि पासि।।२
इक लखु लहन्हि बहिठीआ लखु लहन्हि खड़ी आ।
गरी छुहारे खाँदीआ माणन्हि से जडीआ ।।
तिन्ह गलि सिलका पाईया तुरीन्ह मोत सरी आ॥३
धनु जोवन दुइ वैरी होए जिन्ही रखे रंगु लाइ ।।
दुता नो फुरमाइया लै चले पति गवाई ।।
अर्थात्- ‘‘जिन स्त्रियों के सिर में सुंदर पट्टियाँ शोभित होती थीं, जिनकी माँग में सिंदूर भरा हुआ था, अत्याचारियों ने उनके केश काट डाले और उन्हें भूमि पर इस तरह घसीटा कि गले तक धूल भर गई। जो महलों में निवास करती थीं, उनको अब बाहर बैठने को भी जगह नहीं मिलती। विवाहित स्त्रियाँ जो अपने पतियों के पास सुशोभित थीं, जो पालकियों में बैठकर आई थीं, जिन पर जल न्यौछावर करते थे, जड़ाबदार पंखों से हवा करते थे, जिन पर लाखों रूपये लुटाये जाते थे, जो मेवा मिठाई खाती थीं, सेजों पर सुख भोगती थीं, अब अत्याचारी उनको गले में रस्सी डालकर खींच रहे हैं और उनके गले की मोतियों की मालाएँ टूट गई हैं अभी तक धन और यौवन ने उन्हें अपने रंग में रंग रखा था, अब वह दोनों उनके बैरी हो गये। सिपाहियों को आज्ञा मिली और वे उनकी इज्जत को लूटकर चले गए।’’ अपने देश के संपन्न वर्ग की उस कठिन समय में कैसी दुर्गति हुई, उसकी एक झलक इस कविता में मिलती है।

जब मनुष्य इस प्रकार विवश हो जाता है और अत्याचार का कुछ प्रतिकार नहीं कर सकता तो वह भगवान् को उलाहना देने लगता है कि तुम कैसे न्यायकारी और करुणासिंधु हो जो संसार में ऐसा अंधेरखाता मचवा रहे हो। इस भाव से प्रेरित होकर नानक जी ने आदिग्रंथ में लिखा-

खुरासान खसमान कीआ हिंदुस्तानु डराइआ।
आपै दोसु न देई करता जमु का मुगल चढ़ाइआ।
एती मार पई कर लणे तैं की दरदु न आइआ।
करता तू समना का सोई।
जो सकता सकते कउ मारे ता मनि रोसु न होई।
सकता सीहू मारे पै वर्ग खसमै सा पुरसाई ।।
अर्थात्- ‘‘हे भगवान् ! बाबर ने खुरासान को बर्बाद किया,पर तुमने उसकी रक्षा न की और अब हिंदुस्तान को भी उसके आक्रमण से भयभीत कर दिया है। तुम स्वयं ही ऐसी घटनाएँ कराते हो, परंतु तुमको कोई दोष न दे इसलिए तुमने मुगलों को यमदूत बनाकर यहाँ भेज दिया। सर्वत्र इतनी अधिक मार- काट हो रही है कि लोग त्राहि- त्राहि पुकार रहे हैं। पर तुम्हारे मन में इन निरीह लोगों के प्रति तनिक भी दर्द पैदा नहीं होता। हे भगवान् ! तुम तो सभी प्राणियों के समान रूप से पालनकर्ता कहलाते हो, फिर यदि एक शक्तिशाली दूसरे शक्तिशाली सिंह, निरपराध पशुओं के झुंड पर आक्रमण करे तो उनके स्वामी को कुछ तो पुरूषार्थ दिखाना चाहिए।’’

इस तरह परमात्मा को जोरदार उलाहना देकर नानक जी ने इस देश के प्रमुख शासकों तथा बड़े लोगों को भी फटकारा है कि तुमने अपने कर्तव्य को बिसरा दिया और भोग- विलास में डूब गए, उसी का नतीजा इस तरह भोग रहे हो-

रतन बिगाड़ बिगोए कुतीं मुइआ सार न काई।
आगो देजे चेतीए तो काइतु मिलै सजाइ।
शाहां सुरति गबाईआ रगि तमासै चाइ।
बाबर वाणी फिरि गई कुइरा न रोटी खाई।
इकता बखत खुआई अहि इकंहा पूजा खाई।
चउके विणु हिंदवाणीआ किउ टिके कढहि नाइ ।।
राम न कबहू चेतिओ हुणि कहणि न मिलै खदाई।
अर्थात्- ‘‘इन नीच कुत्तों (विलासी शासकों) ने रतन के समान इस देश को बिगाड़कर रख दिया। इनके मरने के बाद कोई इनकी बात भी नहीं पूछेगा। अगर ये पहले से ही सावधान हो जाते तो हमको ऐसी सजा क्यों मिलती? पर यहाँ के शासक तो सदा रंग तमाशों में ही डूबे रहे, उन्हें अपने कर्तव्य का ध्यान ही न था। नतीजा यह हुआ कि इस समय चारों ओर बाबर की दुहाई फिर गई है, किसी को रोटी तक खाने को नहीं मिलती। मुसलमानों (पठानों) की नमाज का समय जाता रहा और हिंदुओं की पूजा छूट गई। अब चौके के बिना हिंदू स्त्रियाँ किस प्रकार अपनी पवित्रता की रक्षा करेंगी? जिन्हें कभी राम शब्द भी याद नही आया था, अब वे आक्रमणकारियों के भय से खुदा को याद करना चाहते हैं, परंतु जालिम लोग उनको खुदा भी नहीं कहने देते।’’

खेद का विषय है कि इस प्रकार की जिल्लत उठाकर और अमानुषी दंड सहन करके भी हिंदुओं की आँखें नहीं खुलीं। उसके पश्चात् भी मानसिंह, जयसिंह, यशवंतसिंह आदि प्रमुख राजपूत नरेश मुगल बादशाहों के अनुचर बनकर अपने ही भाइयों को पराधीन बनाने का पाप- कर्म करते रहे। उसके बाद जब अंग्रेज आए तब भी हिंदुओं ने ही उनके सहायक बनकर शासन- कार्य में हर तरह से सहयोग दिया और आज के दिन भी इस जाति की पारस्परिक फूट, मत- विरोध, कर्तव्यहीनता स्पष्ट दिखाई पड़ रही है।

यह अकर्मण्यता, विलासिता, चिरनिंद्रा, जातिवाद का रोग आज भी वैसा का वैसा अपितु पहले से भी भयंकर बना हुआ है। पाकिस्तान, बांग्लादेश में हिंदुओं की हालात का तो विचार कब होता। अपने ही देश में कश्मीर,असम, बंगाल, केरल, कैराना उत्तर प्रदेश में हिन्दू चंद वर्षों में अल्पसंख्यक हो गए मगर तब इनकी आंख नहीं खुली। जागो अब तो जागो। नानक के सन्देश को समझो। और अपनी जाति, अपने वेद, अपने राम और कृष्ण की रक्षा करो।

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Sunday, November 29, 2020

जानिए भारत की व्यवस्था ने कैसे बना दिया हिन्दू को दूसरा दर्जे का नागरिक..

29 नवम्बर 2020


दुनिया में अभी 2-3 तरीके के राज्य हैं एक तो खुद बोलते हैं, हम क्रिश्चियन हैं । ईसाई धर्म पर आधारित राज्य हैं, बाइबल को मानते हैं, हाथ में बाइबल लेकर शपथ ली जाती है राज्य व्यवस्था उसके आधार पर की जाती है । अपना एक स्टेंडर्ड कंटूटिशन भी होता है । दूसरे इस्लामिक राज्य हैं, तीसरे कुछ कम्युनिस्ट राज्य हैं । लेकिन दुनिया में एक अकेला राज्य भारत ऐसा है जो किसीके पक्ष में है या नहीं ये तो नहीं पता लेकिन हिंदुओं के विरोध में पूरी व्यवस्था है ।




हमारा कोई सेक्युलर राज्य नहीं है हिन्दू राज्य बनाने की बात लोग करते हैं, लेकिन अभी जो हमारी राज्य व्यवस्था है कि हिन्दू विरोधी राज्य व्यवस्था है ये राज्य व्यवस्था आपको मोटिवेट करती है कि आप हिन्दू धर्म को छोड़े, ये राज्य व्यवस्था आपको इस प्रकार का रोज सुबह उठने के साथ सोने तक ये एहसास कराती है कि आप इस देश में सेकंड क्लास है डिवीजन है, दूसरे दर्जे के नागरिक हैं । आप देश के अन्य नागरिकों के बराबर नहीं है । आपका बच्चा अगर पैदा होगा तो उसके अधिकार किसी अन्य धर्म में पैदा होने वाले बच्चों से कम होंगे । किसी अन्य धर्म में पैदा होता है तो सरकार उसे पैसा देगी, पढ़ने जाएगा तो सरकार उसे बस्ता देगी, किताब देगी, स्कॉलरशिप देगी, रिजर्वेशन देगी, नौकरी केवल धर्म आधारित पैसा रिजर्वेशन, व्रोटेशन, मोटिवेशन केवल और केवल धर्म आधारित पैसा रिजर्वेशन, प्रोक्शन, संगठन , मोटिवेशन इस देश की राज्य व्यवस्था दे रही है । उसमें भी शब्द यूज़ करते है कि minority अल्पसंख्यक। मेरे को लगता है पूरे ब्रह्मांड में 25 करोड़ वाला अल्पसंख्यक केवल भारत में ही बैठा हुआ है । और वो इतना अल्पसंख्यक है कि उसके हर बच्चे के 7-8 बच्चे पैदा हो रहे हैं । जब ये कहा गया कि मुसलमानों  की तरक्की के लिए योजना लाओ तो मुझे लगता है कि नसबन्दी की योजना सबसे बड़ी योजना है जिससे मुसलमानों की तरक्की हो सकती है । 

एक ही योजना ऐसी है जिससे तरक्की हो सकती है। लेकिन उनका विश्वास नहीं है उनका विश्वास है कि पॉपुलेशन देहात में । मैं अपना व्यक्तिगत तौर पे ये उदाहरण देता हूँ कि विधायक होने के नाते मैं अपने दफ्तर में बैठा था सरकार विधवा महिलाओं को पेंशन देती है। तो मेरे पास एक 24 वर्ष की एक महिला आई जो विधवा थी और विधवा की बेटी थी, शादी के लिए भी सरकार सहायता देती है । तो वो मुझसे ये कहने आई कि मेरी बेटी की शादी में सरकार सहायता देगी क्या? तो मैंने कहा आपकी बेटी की उम्र कितनी है? तो उसने कहा 12 साल है शादी की बात चल रही है मैने कहा 18 साल से पहले शादी गैरकानूनी है । करना भी मत कोई कानूनी कार्यवाही हो जाएगी और सरकारी सुविधा कुछ मिल ही नहीं सकती क्योंकि कागज पे सर्टिफिकेट होना चाहिए कि 18 से ज्यादा उम्र है। फिर मैंने उससे पूछा कि 12 साल की बेटी की शादी की बात कर रही हो तुम्हारे और कितने बच्चे है? 24 साल में विधवा हो चुकी उस बहन के 8 बच्चे हैं । और जिसकी वो 12 साल में शादी की बात कर रही है उसके भी 24 की होते होते 8 बच्चे हो जाएंगे । 

तो इतने में हमारे बच्चे कॉलेज पास करके सोचते हैं कि आगे जिंदगी में क्या करना है उसमें इनके 8×8=64 बच्चे उनके घर में खेलते होते हैं । और उन 64 बच्चों के पैदा होने पर भारत की सरकार पैसा देती है । स्कूल जाएंगे तो पैसा देगी, नौकरी करेंगे तो लोन भारत की सरकार देगी रिजर्वेशन देगी और सिंदे साहब की बात पर अगर कोई ज्यादा पढ़ना लिखना शुरू कर दे तो उसकी उच्च शिक्षा में या नौकरी में इतिहास में भारत की आज़ादी के बाद upsc में सबसे ज्यादा मुस्लिम हाईएस्ट अधिकारियों का चयन हुआ है । 

ये कोई सहयोग नहीं है प्रॉपर योजना बना के प्लानिंग से ट्रेनिंग देकर उनके बच्चों को निःशुल्क शिक्षा, निःशुल्क आवास, निःशुल्क प्रशिक्षण देकर उत्साहित किया जाता है कि हर साल ज्यादा से ज्यादा लोग IAS बने और ये भारत की सरकार की नीति है । ये कोई धर्म की अपनी संस्था की नीति नहीं है भारत की सरकार की नीति है । तो धर्म आधारित भेदभाव इस हद तक हो चुका है कि साउथ के आफ्रीका में काले और गोरे का भेद, हमें ये बात कहनी होगी, हम ये बात कहने में झिझकते हैं हिंदुओं की मेजोरिटी है कि काले और गोरे बीच में किया गया था अधिकार का साउथ अफ्रीका में, वो भेद हिंदुओं में और अन्य धर्म के अंदर आज भी किया जा रहा है । दूसरे दर्जे की नागरिकता दे दी गई है ।


हमारे मंदिरों के बारे में कोई भी निर्णय ले सकता है हमारी परंपराओं के बारे में कोई भी निर्णय ले सकता है । ये कोई मजाक नहीं है आपका इतिहास ही आपको नहीं बताया जा रहा है । आपका इतिहास आपसे छुपाया जा रहा है आपका वर्तमान अटकाया जा रहा है राज्यव्यवस्था है । क्यों रामकृष्ण समाज मजबूर हो गया कोर्ट जाने के लिए ? कि हमें अल्पसंख्यक घोषित करो । क्यों आई ये स्थिति क्योंकि अल्पसंख्यक कराके वो अपनी परंपरा बना सकता है वो अपना एक मिशन चला सकता है । लेकिन वो अल्पसंख्यक नहीं है तो वो अपने ही बच्चों को अपने ही धर्म के बारे में ज्ञान नहीं दे सकता । अपनी परंपरा का संगठन नहीं कर सकता ।

सबरीमाला पर न्यायालय बोला महिला जाएगी ये महिलाओं के अधिकारों की बात है कल को कोर्ट बोलेगा नवरात्रि में दुर्गा पूजा में लड़कों का भी पूजन करो कन्या पूजा क्यों करते हो? ये भी समानता की बात है कि अपने हमारे धर्म को नहीं मानो, आस्था को नहीं मानो, परंपरा को नहीं मानो । और मंदिर के अंदर बैठे देवता के प्राणप्रतिष्ठा की ये मानने से आपने इनकार कर दिया क्योंकि वो देवता जीवित है प्राण की प्रतिष्ठा की हुई है, उसकी मर्जी से किसीसे मिलेगा नहीं मिलेगा और आपने ये मान लिया कि देवता के प्राण के प्राण ही नहीं है वो एक निर्जीव है तो उसमें आपने पब्लिक से emporiums secular spare is public spare ये कोर्ट बोल रहा है। भाई जाके कोर्ट में याचिका डाल दी मुझे तो ठंड लगती है नंगे पैर जूता पहन के जाऊंगा तो कोर्ट बोलेगा नंगे पैर जूता पहन के जा क्योंकि पब्लिक स्पेयर है । 

इस प्रकार के वातावरण तक हम पहुंच चुके हैं हमारी संस्कृति की न्यायपालिका चुप है क्योंकि वोट बैंक सबसे बड़ी कमजोरी है क्योंकि वोट बैंक कहाँ बढ़ाया जा रहा है रणनीति के तहत दिल्ली में एक डेमोग्राफिक है जिसमें अगले दस साल के बाद दिल्ली की 70 विधानसभाओं में से 48 विधानसभाओं में वही व्यक्ति चुनाव जीत पाएंगे जिनको मुस्लिम समाज समर्थन देंगे । 70 में से 48 ये दिल्ली के अंदर होगा अगले 10 सालो में इसप्रकार से डेमिग्राफिक चेंज हो रही है । हो सकता है पूरे भारत में भी ये स्थिति आ सकती है धीरे धीरे 5 साल, 10 साल, 15 साल या 20 साल इस देश की ऐसी ही कोई लोकसभा या विधानसभा की सीट बचेगी जिसमें धर्म के आधार पर चुनाव और धर्म के नाम पर 15-20 साल के बाद ऐसी कोई सरकार आती है तो केवल मुस्लिम वोट के आधार पर आती है इसको एक टूल की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है । 

हिन्दू चार्टर की जब हम बात करते हैं तो ये एक इस देश में हिंदुओं की मांग तो रखी जाए बोला तो जाए। अगर हम कहते हैं हिंदुओं को मुसलमान के समान अधिकार दिया जाए तो कहेंगे सम्प्रदायी हो । भड़काऊ बातें करते हो तुम्हारी बातों से दंगा फैल सकता है । तुम आतंकवादी हो केवल समान अधिकार मांगने पर इतनी बात बोल दी जाती है, लेकिन बचपन में एक बात सीखा दी गई थी कि बिना रोये माँ भी दूध नहीं देती तो अपनी बात कहने का, अपनी बात मांगने का बार-बार कहने का की हमें सेकंड क्लास के डिवीजन मत बनाओ बराबरी का अधिकार दो । 

ये ये अधिकार दो इलीगल है ये कोई आज सार्वजनिक मंच पर आकर देश का राजनेता बोल ही नहीं रहा मिनोरटी कमीशन इलीगल है, मिनोरटी को दिये जाने वाली सारी सुविधाएं इलीगल है, गैरसंवैधानिक है, उनप्रोसेक्यूशन है । हमारा संविधान बनाने वालों को मेरा ये मानना है, ये मन में आस्था अभी भी है कि जिन्होंने संविधान बनाया शायद उनकी नियत नहीं थी ऐसा करने की वो तो शायद ये सोचते थे कि हिंदुओं को तो अधिकार मिल ही जायेगा । हिन्दू राष्ट्रमंत्री, हिन्दु  सरकार हिंदुओं को तो मिल ही जाएगा बाकियों के लिए लिख दो उनकी नियत तो शायद ऐसी होगी, लेकिन उसके बाद जो व्याख्या की गई इस संविधान की वो ये कह दी गई कि हिंदुओं को ही नहीं दिया जाएगा बाकी सबको दे दो। 

और इस प्रकार से ये देश चलाया गया संविधान में सब्सिडी डाल दिये गए जो ना हमारी परंपरा में आते हैं ना धार्मिक परंपरा में आते हैं,  ना आध्यात्मिक, न सामाजिक देश की संस्कृति में ही नहीं आते । ये संविधान उनको हमारे संविधान में डाल दिया गया और उसके आधार पर ये सारे कमिश्नर रिपोर्ट को बार बार कहना, हक से कहना और मांगना और ये सुरक्षित करना कि इस देश के जितने भी लोग सरकारों पर पदों पर बैठे हैं, जिस चीज पर बैठे हैं उनको पता लगे, भारतीय जन मानस को पता लगे कि उसके साथ अन्याय हुआ है । लोग अन्याय देख रहें है अन्याय के प्रत्यक्ष भी गवाह है विटनेस हैं । ये अगर बार बार बोलेंगे तो इसका एक दबाव जरूर बनेगा । कपिल मिश्रा, विधायक, दिल्ली

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Saturday, November 28, 2020

जानिए धर्मांतरण रोकने के लिए देर से बने कानून कितने दुरुस्त?

28 नवंबर 2020


बराबरी का अधिकार संविधान ही छीन लेता है। जब अनुच्छेद 25(1) में कहा जाता है कि “सभी लोग”, ध्यान दीजिये, सभी लोग, सिर्फ “भारतीय नागरिक” नहीं, कोई भी अपने पंथ को मानने, उसका अभ्यास करने और उसके प्रचार के लिए स्वतंत्र है तो ये भारत में बाहर कहीं से आकर धर्म प्रचार करने वाले प्रचारकों को अनैतिक छूट देना ही है।




विश्व में जहाँ कोई भी हिन्दुओं का, ईरान से भगाए गए विस्थापितों का, बहाई समुदाय का, सिखों का, जैनियों का कोई देश है ही नहीं, वहाँ ऐसी छूट का मतलब क्या है ? सीधी सी बात है विदेशी प्रचारकों के पास जहाँ कई-कई देशों का खुला समर्थन है वो बेहतर स्थिति में आ जाएँगे और भारत में बसने वाले कई दबे-कुचले समुदाय हाशिए पर धकेल दिए जाएँगे। प्रचारकों के पास देशों की अर्थव्यवस्था का समर्थन होगा और हाशिए पर के इन समुदायों के पास सिर्फ आत्मरक्षा की नैतिक जिम्मेदारी। हमलावरों के खिलाफ ये लड़ाई कभी बराबर की तो थी ही नहीं!

केंद्र में ज्यादातर कांग्रेस का शासन रहा है, कई राज्य भी लगातार कांग्रेस शासित रहे हैं। धर्म परिवर्तन पर चर्चा तो काफी पहले, संविधान बनते समय ही शुरू हो गई थी, मगर जबरन धर्म परिवर्तन पर कांग्रेस ने नियम-कानून आश्चर्यजनक रूप से पचास साल तक नहीं बनाए थे। धर्म और रिलिजन पर संविधान सभा की बैठकों में इस परिवर्तन के बाबत चर्चाएँ हो रही थी (6 दिसम्बर, 1949)। इस दिन चर्चा करते हुए पंडित लक्ष्मी कान्त मिश्रा ने कहा था कि भारत में अभी रिलिजन ज्यादा से ज्यादा अज्ञान, गरीबी और महत्वाकांक्षा को कट्टरपंथ के झंडे तले भुनाने का तरीका है। उनकी सलाह थी कि अपनी रिलीजियस-मजहबी आबादी को बढ़ा कर उसका राजनैतिक लाभ उठाने का मौका किसी को नहीं दिया जाना चाहिए।

ध्यान रहे कि ये दिसंबर 1949 की चर्चा है। उनके तुरंत बाद बोलते हुए एच.वी. कामथ ने कहा था कि सरकार किसी रिलिजन को अनैतिक लाभ ना दे, लेकिन उसके काम से किसी के अपने धर्म के प्रचार-प्रसार और अभ्यास में दिक्कत भी नहीं आनी चाहिए। उन्होंने “रिलिजन” के “वास्तविक अर्थ” की बात करते हुए ये बताने की कोशिश की थी कि कैसे “धर्म” वास्तविक अर्थों में धार्मिकता की सही परिभाषा देता है। धर्म परिवर्तन के मामले में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चर्चाओं में रहे ग्राहम स्टेंस नाम के मिशनरी की हत्या का मामला देखें तो भी इस सम्बन्ध में कई बातें खुलेंगी। इस मामले का फैसला सुनाते हुए जस्टिस पी.सदाशिवम लिखते हैं, “ये निर्विवाद सत्य है कि किसी और की आस्थाओं में दखलंदाजी, किसी भी किस्म का बल प्रयोग, उकसावे, लालच, या इस वहम में कि उसका मजहब, दूसरे के मजहब से बेहतर है, सरासर गलत है।” इसके अलावा यही बात चीफ़ जस्टिस ए.एन.रे भी रेवरेंड स्टेनिस्लौस बनाम मध्य प्रदेश सरकार के मुक़दमे में कर चुके हैं। इस मुक़दमे में 1960 के दौर के दो कानूनों, मध्य प्रदेश धर्म स्वातंत्र्य अधिनियम और ओडिशा फ्रीडम ऑफ़ रिलिजन एक्ट को संवैधानिक माना गया था, जिसे इसाई मिशनरी अपने काम में एक बड़ी बाधा मानते हैं।

अदालतों ने बार-बार ये स्पष्ट किया है कि आपको अपने पंथ-मजहब के प्रचार का अधिकार तो है, लेकिन किसी भी तरह से धर्म परिवर्तन करवाने को मौलिक अधिकार नहीं कहा जा सकता। राज्यों के स्थानीय नियम देखें तो जबरन धर्म परिवर्तन को भारतीय दंड संहिता की धारा 295A और 298 में संज्ञेय अपराध की श्रेणी में रखा गया है। इन प्रावधानों की वजह से इस धूर्ततापूर्ण और जान-बूझकर दूसरों की भावना को ठेस पहुँचाने वाली हरकत को दंडात्मक अपराध माना गया है।

आजादी के पहले बनाए गए, राजाओं के ज़माने के कानून देखें तो रायगढ़ स्टेट कन्वर्शन एक्ट (1936), पटना फ्रीडम ऑफ़ रिलिजन एक्ट (1942), सरगुजा स्टेट अपोस्टेसी एक्ट (1945) या उदयपुर स्टेट एंटी कन्वर्शन एक्ट (1946) वगैरह में धोखे से या लालच देकर ईसाई बनाए जाने के खिलाफ कम और ईसाइयों के प्रति होने वाली हिंसा के कानून ज्यादा हैं।

पक्षपातपूर्ण रवैए से काफी नुकसान होने के बाद जब हिन्दुओं ने आवाज उठानी शुरू की तब, आजादी के कई साल बाद, धार्मिक आजादी से सम्बंधित विधेयकों को जगह मिली है । अरुणाचल प्रदेश में 1978 में धार्मिक स्वतंत्रता सम्बन्धी विधेयक आया और गुजरात में ये 2003 में आया ।

हिमाचल प्रदेश फ्रीडम ऑफ़ रिलिजन एक्ट (2006) के साथ हिमाचल प्रदेश जबरन धर्म परिवर्तन रोकने का प्रयास करने वाला पहला कॉन्ग्रेस शासित राज्य बना।छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में भी नियमों में संशोधन कर के 2006 में डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट के पास तीस दिनों में धर्म परिवर्तन की सूचना देने का नियम लागू किया गया। https://twitter.com/OpIndia_in/status/1332489387104407553?s=19

मगर इतने दिनों की देर के बाद अब पहला सवाल तो ये है कि जिस विषय में संविधान निर्माताओं को 1949 से पता था, उस पर कानून बनाने में नेताओं ने इतनी देर आखिर की क्यों? फिर सवाल ये भी है कि अब जब ये नियम बनने शुरू भी हुए हैं तो क्या ये काफी हैं, या हमें बहुत देर से और बहुत थोड़ा देकर बहलाया जा रहा है?

गांधीजी कहते थे कि "हमें गोमांस भक्षण और शराब पीने की छूट देने वाला ईसाई धर्म नहीं चाहिए। धर्म परिवर्तन वह ज़हर है जो सत्य और व्यक्ति की जड़ों को खोखला कर देता है।

जनता की मांग है कि पूरे देश में धर्मांतरण पर रोक लगनी चाहिए।

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Friday, November 27, 2020

गीता का जिसने भी अनुवाद अपनी भाषा में किया उसने अपना लिया हिन्दुधर्म

27 नवंबर 2020


जीवन के सर्वांगीण विकास के लिए श्रीमद्भगवद्गीता ग्रंथ अदभुत है। विश्व की 578 से अधिक भाषाओं में गीता का अनुवाद हो चुका है। हर भाषा में कई चिन्तकों, विद्वानों और भक्तों ने मीमांसाएँ की हैं और अभी भी हो रही हैं, होती रहेंगी। क्योंकि इस ग्रन्थ में सब देशों, जातियों, पंथों के तमाम मनुष्यों के कल्याण की अलौकिक सामग्री भरी हुई है।




आपको यहाँ कुछ विद्वानों के नाम बता रहे हैं जिन्होंने गीता का अनुवाद किया बाद में उन्होंने सनातन हिंदू धर्म अपना लिया।

★ जिस व्यक्ति ने श्रीमदभगवद गीता का पहला उर्दू अनुवाद किया वो था मोहम्मद मेहरुल्लाह! बाद में उसने सनातन धर्म अपना लिया!

★पहला व्यक्ति जिसने श्री गीताजी का अरबी अनुवाद किया वो एक फिलिस्तीनी था अल फतेह कमांडो नाम का! जिसने बाद में जर्मनी में इस्कॉन जॉइन किया और अब हिंदु धर्म अपना लिया हैं।

★पहला व्यक्ति जिसने इंग्लिश अनुवाद किया उसका नाम चार्ल्स विलिक्नोस था! उसने भी बाद में हिन्दू धर्म अपना लिया उसका तो ये तक कहना था कि दुनिया में केवल हिंदुत्व बचेगा!

★हिब्रू में अनुवाद करने वाला व्यक्ति Bezashition le fanah नाम का इज़रायली था जिसने बाद में भारत मर आकर हिंदुत्व अपना लिया था ।

★पहला व्यक्ति जिसने रूसी भाषा मे गीता का अनुवाद किया उसका नाम था नोविकोव जो बाद में भगवान कृष्ण का भक्त बन गया था!

★आज तक 283 से अधिक बुद्धिमानों ने 578 से अधिक भाषाओं में श्रीमद्भगवद्गीता का अनुवाद किया हैं। जिनमें से 58 बंगाली, 44 अंग्रेजी, 12 जर्मन, 4 रूसी, 4 फ्रेंच, 13 स्पेनिश, 5 अरबी, 3 उर्दू और अन्य कई भाषाएं थी ओर इन सब में दिलचस्प बात यह है कि इन सभी ने बाद मैं हिन्दू धर्म को अपना लिया था।

★जिस व्यक्ति ने कुरान को बंगाली में अनुवाद किया उसका नाम गिरीश चंद्र सेन था! लेकिन वो इस्लाम मे नहीं गया शायद इसलिए कि वो इस अनुवाद करने से पहले श्रीमद भागवद गीता को भी पढ़ चुके थे !

इंग्लैंड के विद्वान एफ.एच.मोलेम ने लिखा की बाईबल का मैंने यथार्थ अभ्यास किया है। उसमें जो दिव्यज्ञान लिखा है वह केवल गीता के उद्धरण के रूप में है। मैं ईसाई होते हुए भी गीता के प्रति इतना सारा आदरभाव इसलिए रखता हूँ कि जिन गूढ़ प्रश्नों का समाधान पाश्चात्य लोग अभी तक नहीं खोज पाये हैं, उनका समाधान गीता ग्रंथ ने शुद्ध और सरल रीति से दिया है। उसमें कई सूत्र अलौकिक उपदेशों से भरूपूर लगे इसीलिए गीता जी मेरे लिए साक्षात् योगेश्वरी माता बन रही हैं। वह तो विश्व के तमाम धन से भी नहीं खरीदा जा सके ऐसा भारतवर्ष का अमूल्य खजाना है।

श्रीमद्भगवद्गीता की इतनी महिमा है फिर भी हिंदू लोग नही पढ़ते है जिसके कारण हिंदू जिनती अपनी उन्नति करना है उतना  नही कर पाते है, गीता में अपने जीवनशैली का पूरा ज्ञान है उससे हर व्यक्ति स्वस्थ, सुखी और सम्मानित जी सकता है, मदरसों में अगर कुरान पढ़ाई जाती है, मिशनरियों स्कूलों में बाइबल पढ़ाई जाती है तो फिर विधायलयों में गीता क्यो नही पढ़ाई जाती है इसमे तो सभी मनुष्यों के लिए उपयोगी बाते लिखी है अतः सरकार को इस पर ध्यान देना चाहिए।

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