माना कि वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए राष्ट्र व समाजहित में बलात्कार कानून की अत्यंत आवश्यकता है पर उसका उचित प्रयोग और पालन भी आवश्यक है। परंतु इस कानून में अनेकों अपभ्रंश है जिसे नकारा नहीं जा सकता क्योंकि ऐसे तथ्य भी सामने आ रहे हैं कि इस कानून का दुरुपयोग कर कई निर्दोष, सामाजिक, प्रतिष्ठासम्पन्न व्यक्तियों या सामान्य नागरिकों पर झूठे आरोप दर्ज करायें जा रहे हैं और आरोप मात्र से बिना किसी सबूत या जांच के जेल भेजने की कार्रवाई भी हो रही है। ऐसे कृत्य में असामाजिक तत्वों की संलिप्तता है जो रंजिशवश, बदले की भावना से या पैसे ऐंठने के लिए किसी निर्दोष पर झूठे आरोप लगाकर बेहिचक जेल की सजा दिलाने में कामयाब हो जाते हैं। किसी निर्दोष को फंसाने में इन्हें कोई न शर्म महसूस होती है और न ही आत्मग्लानि होती है। इनका एकमात्र लक्ष्य पैसा कमाना होता है।
Wednesday, December 9, 2020
महिला सुरक्षा कानून का दुरुपयोग चरम सीमा पर...
बलात्कार कानून के अनियमितता एवं अपभ्रंशता पर स्वयं महिला जज निवेदिता शर्मा ने कहा है कि वर्तमान बलात्कार कानून में झूठे आरोपों में फंसे पुरुषों को भी बचाने का कोई प्रावधान नहीं है। और भी कई कानून के जानकार, न्यायविद् एवं अधिवक्ताओं का मानना है कि वर्तमान बलात्कार कानून में अनेकों अनियमितताएँ हैं - यह कानून एकतरफा है।
किसी भी राष्ट्र में महिला एवं पुरुष समाज के अभिन्न अंग होते हैं। एक दूसरे के बिना सामाजिक विकास की कल्पना कपोल कल्पित है। महिला एवं पुरुष दोनों की अथक परिश्रम एवं योगदान से स्वस्थ, सुंदर एवं गौरवपूर्ण राष्ट्र का निर्माण होता है। यदि इस प्रकार बलात्कार कानून को एकतरफा बनाया गया है तो उसकी वजह से पुरुष वर्ग के साथ महा अन्याय एवं राष्ट्रीय विघटन की कल्पना भी कोई अतिश्योक्ति नहीं है। कानून निर्माताओं से इस पहलू पर भूल क्यों हुआ कि जब किसी निर्दोष को बलात्कार कानून का मोहरा बनाया जाएगा तो उसके साथ उसका पूरा परिवार, रिश्तेदार सभी बिखर जाएंगे उनकी सामाजिक प्रतिष्ठा धूमिल हो जाएगी, उनके बच्चों का भविष्य अंधकारमय हो जाएगा आदि आदि...
इसी वर्तमान बलात्कार कानून की वजह से भारतीय संस्कृति की गरिमा की रक्षा करने वाले, देशहित में अनेकों महत्वपूर्ण योगदान देने वाले विश्व सुप्रसिद्ध संत श्री आशाराम जी बापू पर मिथ्या आरोप लगाकर उनको कारावास में डाला गया है जबकि उन्हें मेडिकल रिपोर्ट में क्लीनचिट मिली हुई है एवं उनके निर्दोषिता के अनेक प्रमाणित सबूत न्यायालय में पेश किए गए हैं फिर भी 7+ वर्ष हो गए अभी तक उन्हें उचित न्याय नही दिया जा रहा है न ही जेल से मुक्त किया जा रहा है। इसी प्रकार स्वामी नित्यानंद जी, कृपालु जी महाराज एवं नामी-अनामी कई निर्दोषों को भी मिथ्या आरोप में कानूनी यातनाएं सहनी पड़ी है।
सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई पर भी यौन शोषण का आरोप लगा था हालांकि विशेष सेलिब्रिटी एवं राष्ट्रीय गरिमा को देखते हुए साजिश है कहकर उनका केस खारिज कर दिया गया। अब प्रश्न यह है उठता है कि जब कोई जज जैसे विशेष सेलिब्रिटी पर आरोप लगता है तो साजिश है कहकर केस खारिज कर दिया जाता है तो फिर करोड़ों लोगों को धर्म के मार्ग पर प्रशस्त कर व्यसन छुड़ाने वाले उनके जीवन में आशातीत परिवर्तन लाकर सच्चाई के मार्ग पर चलाने वाले निर्दोष संतो के मामले में न्याय व्यवस्था की उत्तरदायित्व रखने वाले अर्थात न्याय व्यवस्था संचालन करने वालों की कदाचित निष्क्रियता आखिर क्यों?
इन सब कारणों का अवलोकन करने से राष्ट्र की गरिमा को सुदृढ़ करने एवं राष्ट्रहितैषी सन्तों की रक्षा करने हेतु एक तथ्य सामने आ रहा है कि वर्तमान एकतरफा बलात्कार कानून पर आवश्यक संशोधन के साथ देश में पुरुष आयोग की स्थापना एकमात्र विकल्प है।
बसन्त कुमार मानिकपुरी
स्थान - पाली (कोरबा)
छत्तीसगढ़
Tuesday, December 8, 2020
साल 2002 में आज ही गौमूत्र को अमेरिका ने करवा लिया था पेटेंट..
08 दिसंबर 2020
इसको बुद्धिहीनता माना जाय, विडम्बना कही जाय या विदेशी शक्तियों की कोई सोची समझी साजिश.. गाय की रक्षा के मुद्दे को जहाँ तथाकथित आधुनिकता की धारा में बह रहे लोग पिछड़ी सोच वाले उन्मादी बता रहे हैं तो तथाकथित सेकुलर ब्रिगेड सवाल करती है कि क्या गाय इंसानों से ऊपर हो गयी है ..
वामपंथी विचारधारा के लोग जो बाबरी में पूर्ण आस्था रखते हैं पर श्रीरामजन्मभूमि के नाम से बिदकते हैं उनके लिए तो गौ रक्षा किसी आतंकवाद से कम नहीं है.., इतना ही नहीं, देश पर सबसे ज्यादा शासन करने वाली कांग्रेस पार्टी ने तो गौ सेवा के साथ मॉब लिंचिंग जैसे शब्द भी जोड़ डाले जिसमें पीड़ित केवल एक पक्ष और पीड़ा देने वाला एक वर्ग घोषित किया गया है ..
भारत के एक तथाकथित शांतिप्रिय समूह के वोट के लिए ये सब कुछ चलता रहा और अगर हिन्दू समाज पर सबसे ज्यादा आघात किया गया तो वो गाय को सामने रख कर ..इस गाय की सेवा, रक्षा करने का आदेश हिंदुओं के शास्त्रों में भी है लेकिन उन पावन ग्रंथों को कपोल कल्पित किताबे बता दिया गया ..
लेकिन ग्रन्थ और वैज्ञानिकता बार बार कहती रही कि गाय इंसानों के लिए एक ईश्वरीय वरदान के समान है जिसका संरक्षण और संवर्धन जरूरी है। एक स्वस्थ समाज के लिए.. कुछ प्रदेशो में गाय की रक्षा के लिए कानून भी बने पर उसको लगातार चुनौती मिलती रही गौ हत्यारो की तरफ से..
उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर की घटना इसका जीवंत प्रमाण है और बाकी जिलो में जारी गौ तस्करी भी श्रद्धा और संविधान को सीधी चुनौती मानी जा सकती है ..सवाल ये है कि इंसान के सर्वोपरि होने का क्या ये मतलब है कि वो जिसे चाहे मार कर खा जाए ? क्या धन धान्य से भरी इस श्यामला धरती पर कुछ लोग बिना गौ मांस खाये रह नहीं सकते ?
किस डॉक्टर का वो कौन सा पर्चा है जिसमे गौ मांस जरूरी बताया गया है ..यदि किसी नवजात बच्चे की माँ नहीं है या उसको दूध पिलाने में सक्षम नहीं है तो डॉक्टरों के निर्देश पर उसको गाय का दूध पिला कर पाला जा सकता है .. इसीलिए गाय को मां भी कहा जाता है..
लेकिन दूध ही नहीं गौ मूत्र भी इंसानों के लिए अमृत है इसको आज ही के दिन अमेरिका ने 17 साल पहले ही मान लिया था और 2002 में गौ मूत्र को औषधि के रूप में बनाने के लिए बाकायदा पेटेंट भी करवा लिया था .. भारत मात्र गौ मांस के लोभियों और स्वघोषित सेकुलरों के दबाव में पीछे रह गया था जिन्होंने तथाकथित आधुनिक लोगों के दिमाग मे ये भर दिया था कि गौ रक्षा पुरानी विचारधारा के उन्मादी लोगों का कार्य है ..
अमेरिका ने 8 दिसम्बर 2002 को जिस गौ मूत्र को अमृत के समान स्वास्थ्यवर्धक औषधि मान मात्र 17 साल पहले पहचान कर कर पेटेंट करवाया था, उसको हिंदुओं के शास्त्र, ग्रन्थ और वेद लाखों वर्ष पहले ही लिख कर गए थे..
रामायण में प्रभु श्रीराम के समय से भी पहले गौ रक्षा व गौ सेवा का आदेश वेदों में सनातनियो को मिला है पर वो भारत मे विदेशी शक्तियों द्वारा संचालित वर्ग के कहने में आ गए और गंवा बैठे अपने ही पुरखों द्वारा मिली हुई अनमोल धरोहर को..
भारत की पारंपरिक जैव संपदा नीम, हल्दी और जामुन के बाद अब गोमूत्र को भी अमरीकी वैज्ञानिकों ने शक्तिवर्धक दवा के स्रोत के रूप में आज ही के दिन अर्थात 2002 को पेटेंट कर लिया था.. ऐसे ही नही वो दुनिया की सबसे बड़ी ताकत बना जो ओलंपिक आदि में सबसे ज्यादा पदक प्राप्त करता है ..
भारत की तत्कालीन अटल बिहारी सरकार तब वामपंथी सोच व तब विपक्ष से तालमेल बनाती ही रह गयी लेकिन उतनी देर में अपना नफा नुकसान समझते हुए अमेरिका ने इसे पेंटेट कर लिया। वैदिक काल अर्थात प्राचीन समय से ही गोमूत्र को पंच गव्य का हिस्सा माना जाता रहा है और इसका इस्तेमाल शक्तिवर्धक औषधियों के निर्माण में किया जाता था।
पंचगव्य में गाय का दूध, दही, घी, गोबर के साथ गोमूत्र को भी शामिल किया गया है ।अमरीका द्वारा इसे पेटेंट किए जाने से यह बात अब पूरी तरह प्रमाणिक हो चुकी है कि इसमें मनुष्य को दीर्घायु बनाने वाले तत्व मौजूद हैं। गोमूत्र के पहले नीम हल्दी और जामुन को अमरीका मे पेटेंट किए जाने को लेकर देश में तब हिंदूवादी समूहों ने विरोध दर्ज करवाया था क्योंकि गाय के समान हिन्दू नीम को भी देव मान कर उसको जल आदि चढ़ाते थे..
लेकिन उन्हें पुरानी सोच वाला बताया गया और आखिरकार गाय के साथ नीम भी अमेरिका ने पेटेंट करवा कर वामपंथी सोच व गौ हत्यारो की विचारधारा वालों के मंसूबे सफल कर दिए थे .. इसमें कोई आश्चर्य नहीं की कल कोई ये कुतर्क दे कि क्या हवा इंसानों से बढ़ कर है, इसलिए हवा बन्द करो, क्या पानी इंसानों से बढ़ कर है , इसलिए पानी बन्द करो..
ये वही कुतर्क हैं जिनके चलते गाय भारत की धरोहर होते हुए भी भारत के हाथों से निकल कर अमेरिका के पास चली गयी.. भारत मे तो एक शासन में गौ रक्षा की मांग करने वाले सन्तो पर गोलियां बरसा दी गयी थीं जिसके लिए आज तक किसी ने न्याय की या सज़ा की मांग नहीं की थी ..
8 दिसम्बर को इतिहास द्वारा नीम और गाय के महत्व को याद दिलाते हुए सभी गौ रक्षको व गौ सेवकों को साधुवाद है जिनके संघर्षों के चलते अभी भी थोड़े बहुत गौ वंश बचे हुए हैं और देश मे एक छोटा सा ही सही पर एक वर्ग गाय, नीम आदि को देवतुल्य मान कर बचाये हुए है...।
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Monday, December 7, 2020
देश में विकराल होता जा रहा है लव जिहाद का जाल...
07 नवंबर 2020
हाल में उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने लव-जिहाद के खतरे से निपटने के लिए एक अध्यादेश जारी किया है। इसके अलावा और दो-तीन राज्यों में इसके खिलाफ कानून बनाने की तैयारी चल रही है। विडंबना देखिए कि इसे कुछ लोग हिंदुत्ववादियों का दुष्प्रचार बता रहे हैैं, जबकि वे यह नहीं देख रहे कि वर्षों से कैथोलिक बिशप काउंसिल, सीरो-मालाबार चर्च जैसी ईसाई संस्थाएं भी इस पर चिंता जता रही हैैं। लव-जिहाद का मुद्दा सबसे पहले दिग्गज कम्युनिस्ट नेता वी एस अच्युतानंदन ने दस साल पहले उठाया था। वह तब केरल के मुख्यमंत्री थे। फिर कांग्रेस मुख्यमंत्री ओमान चांडी ने 25 जून 2012 को विधानसभा में बताया कि विगत छह साल में वहां 2,667 लड़कियों को इस्लाम में धर्मांतरित कराया गया। केरल हाई कोर्ट ने भी 2009 में लव जिहाद पर ही सुनवाई करते हुए कहा था कि झूठी मोहब्बत के जाल में फंसाकर धर्मांतरण का खेल केरल में वर्षों से संगठित रूप से चल रहा हैै। स्वयं पुलिस रिकॉर्ड ने विगत चार वर्षों में प्रेम-जाल से जुड़े चार हजार ऐसे धर्मांतरणों का संकेत किया। तब हाई कोर्ट ने संज्ञान लिया था कि वहां 'इस्लामिक पॉपुलर फ्रंट' की छात्र शाखा 'कैंपस फ्रंट' संगठित रूप से इसमें संलग्न थी। वह शैक्षणिक परिसरों में मुस्लिम युवकों को फैंसी कपड़े, मोटरसाइकिल और मोबाइल फोन देकर इसी काम के लिए सक्रिय रखता था। गैर-मुस्लिम लड़कियों को रिझाने, फिर नकली शादी या लोभ, दबाव, धमकी समेत किसी तरह धर्मांतरित कराने पर उन लड़कों को वह नकद इनाम भी देता था। कुछ समय पहले उत्तराखंड हाई कोर्ट और राजस्थान हाई कोर्ट ने भी अलग-अलग मामलों में कहा था कि विवाह के मामले में जबरन धर्मांतरण रोका जाना चाहिए। उन्होंने अंतरधार्मिक विवाह के लिए एक महीने पहले नोटिस देना अनिवार्य करने की बात कही। सुप्रीम कोर्ट ने भी राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआइए) को कर्नाटक के हादिया मामले में जबरन धर्मांतरण की जांच करने के आदेश दिए थे।
हालांकि यह केवल भारत की बात नहीं। सशस्त्र जिहाद की तरह लव-जिहाद भी अंतरराष्ट्रीय समस्या है। इंग्लैंड में सिख समुदाय यह खतरा दो-तीन दशकों से झेल रहा है। मुस्लिम युवक स्वयं को सिख बताते हुए सिख लड़कियों को बरगलाकर धर्मांतरित कराते हैैं। एक ब्रिटिश अखबार के अनुसार पुलिस कई विश्वविद्यालयों में ऐसे उग्रवादी इस्लामी संगठनों पर नजर रखती है, जो 'आक्रामक धर्मांतरण' कराने में लगे थे। उन संगठनों के लड़के सिख और हिंदू लड़कियों को धर्मांतरित कराने में छल-प्रपंच, बदनाम करने, डराने से लेकर मार-पीट तक करते थे। इसके कारण वहां कई लड़कियों को पढ़ाई छोडऩी पड़ी। लव-जिहाद के संगठित अभियान का वर्णन 'व्हाई वी लेफ्ट इस्लाम' नामक पुस्तक में भी है। इसमें वैसे लव-जिहादियों के संस्मरण हैैं, जो क्रिश्चियन लड़कियों को बरगलाकर मुसलमान बनाते रहे थे। वे उन लड़कियों को अपने जाल में फंसाने के लिए झूठी मोहब्बत का दिखावा करने से लेकर, ब्लैकमेलिंग और खुद को ईसाई बताकर शारीरिक संबंध बनाने तक कई प्रपंचों का इस्तेमाल करते थे। जितने रसूखदार परिवार की लड़की के साथ यह प्रपंच किया जाता, इनाम की रकम उतनी ही बड़ी होती थी। मिस्र में तो ईसाई लड़कियों को धर्मांतरित कराने पर गाजे-बाजे के साथ जुलूस निकाला जाता है।
जाहिर है देश-दुनिया में ऐसा करने वाले युवक नि:संदेह "मजहबी" काम कर रहे हैैं। तब इसे "प्रेम" क्यों कहना चाहिए? यह जिहाद है, क्योंकि वे छल-कपट आदि जैसे भी हो काफिरों को मुसलमान बना रहे हैं, जो उनका मजहबी निर्देश है। अत: वैयक्तिक या धार्मिक स्वतंत्रता के नाम पर झूठे नारे और अधूरी बातें पढ़ाकर हिंदू युवाओं को विचारहीन छोड़ देना घोर पाप है। हिंदुओं को दूसरे धर्मावलंबियों के समान अपनी शिक्षा की स्वतंत्रता नहीं है। इसीलिए हिंदू युवा धर्महीन बने रह जाते हैैं। वे न स्वधर्म के बारे में जानते हैं, न परधर्म को। फलत: किसी भी आक्रामक मतवाद का शिकार होने के लिए अरक्षित बने रहते हैैं, जबकि स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि जब हिंदू धर्म से कोई अलग होता है तो केवल एक हिंदू ही कम नहीं होता, बल्कि हिंदुओं का एक शत्रु बढ़ता है! श्री अरविंद ने भी एकतरफा धर्मांतरण की छूट को राष्ट्रीय एकता के लिए घातक बताया था। ऐसी गंभीर सीखों से हिंदू बच्चों को वंचित रखना उन्हें डूबने के लिए खुला छोड़ देने जैसा ही है।
चूंकि ईसाई, हिंदू या सिख लड़कियां स्वेच्छा से इस जाल में फंसती हैैं इसलिए यह मुख्यत: कानूनी मुद्दा नहीं है। कानून बनाकर जबरदस्ती या धोखा रोक सकते हैैं, लेकिन अंतरधार्मिक शादियों में हिंदू लड़के या लड़की के स्वेच्छा से मुसलमान बनने पर प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता। यद्यपि कोई मुस्लिम यदि ईसाई, हिंदू या बौद्ध बने तो उसे शरीयत कानून के नाम पर मार डाला जाता है या उस पर यह खतरा सदैव बना रहता है। इस चीज को कड़ाई से प्रतिबंधित करना होगा। जीवन के हरेक क्षेत्र को शरीयत के दबावों से दृढ़तापूर्वक मुक्त रखना हमारे राजनीतिक वर्ग की जिम्मेदारी है।
इसमें एक सबसे बड़ी गलती हिंदू समाज को शैक्षिक, धार्मिक मामलों में कानूनन हीन बनाए रखना है। भारत में हिंदुओं को अपने मंदिरों और अपनी शिक्षा संस्थाओं पर दूसरों के समान अधिकार नहीं हैैं। इसीलिए हिंदू बच्चे दूसरे धर्मांवलंबियों की तुलना में वैचारिक रूप से असहाय से होते हैैं। उन्हें शिकार बनाने में जिहादियों, कम्युनिस्टों या ईसाई एनजीओ आदि विविध तत्वों को आसानी होती है। यह आसानी उन्हें गैर-हिंदुओं को पकडऩे में नहीं होती। हिंदू लड़के-लड़कियां विवेकहीन, सूखी, भौतिकवादी शिक्षा के कारण धर्म-संस्कृति की मूलभूत बातों से भी अनजान रहते हैैं। पक्षपाती सेक्युलर शिक्षा के कारण वे नहीं जान पाते कि कई मतवादों की मूल प्रतिज्ञाएं हिंदू हितों के विरुद्ध हैैं। फलत: वे अपने जीवन में अहितकारी निर्णय लेते रहते हैं। इसकी दारुण विडंबना को समझने के लिए प्रसिद्ध कन्नड़ लेखक भैरप्पा का चर्चित उपन्यास 'आवरण' पढऩा श्रेयस्कर होगा।
वस्तुत: स्वयं हिंदू सेक्युलर-वामपंथियों द्वारा लव-जिहाद पर चिंता को 'दुष्प्रचार' बताकर खारिज करना भी उसी विडंबना का एक प्रमाण है। यह हमारे अंग्रेजी मीडिया में भी प्राय: दिखता है। इसलिए लव-जिहाद पर कानून से अधिक बुनियादी काम शिक्षा प्रबंध और मंदिर प्रबंध में हिंदू विरोधी पक्षपात खत्म करना है। यहां सभी समुदायों के लिए एक जैसे शैक्षिक, सांस्कृतिक और धार्मिक अधिकार होने चाहिए। इसका अभाव ही अनेक गंभीर समस्याओं की जड़ है। इसके लिए हमारे नेतागण दोषी हैं, लेकिन वे हिंदू जनता को ही दोष दे-देकर अपनी विभाजक, पक्षपाती नीतियों को छिपाते हैं। यह हिंदुओं पर तिहरी चोट है, जो बंद होनी चाहिए।
- डॉ. शंकर शरण
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Sunday, December 6, 2020
डॉ अम्बेडकर के विचार और आज के दलित नेताओं के विचार
06 दिसंबर 2020
किसी ने कहा की भेड़ की खाल में भेड़िया का उदहारण दो। विद्वान ने कहा आज के समाज में भेड़ की खाल में भेड़िया का सबसे सटीक उदहारण "दलित चिंतक/विचारक" हैं। जो खाते इस देश का है, आरक्षण भी इस देश लेते है और गाली भी इस देश को ही देते है। कुछ उदहारण द्वारा इन तथ्य को समझ सकते हैं।
1. दलित चिंतक हर हिन्दुत्ववादी को ब्राह्मणवाद, मनुवाद के नाम पर गाली देते हैं। इसमें वो हिन्दू भी शामिल हैं जो जातिवाद को नहीं मानते और परस्पर सहयोग से जातिवाद का नाश करना चाहते है।
2. दलित चिंतक पाकिस्तान ज़िंदाबाद, कश्मीर में आज़ादी जैसी मांगों को करने वाले अलगाववादियों के साथ खड़े दिखाई देते हैं। यह एक प्रकार का राष्ट्रद्रोह हैं। वे भारतीय सेना के कश्मीर की रक्षा में दिए गए योगदान को जनता से अनभिज्ञ रखकर भारत विरोधी नारे बाजी और सेना पर पत्थरबाजी करने वालों को महिमामंडित करते दिखाई देते हैं।
3. दलित चिंतक भारतीय संस्कृति, वेद, दर्शन, उपनिषद् आदि की पवित्र शिक्षाओं को जानते हुए भी विदेशी विद्वानों के घीसे पिटे अधकचरे और भ्रामक अनुवादों को शोध के नाम पर रटते/गाते रहते हैं। उनका उद्देश्य प्राचीन महान आर्य संस्कृति को गाली देना होता हैं। JNU जैसे संस्थानों से हर वर्ष शोध के नाम पर ऐसा कूड़ा कचरा ही छपता हैं।
4. भारतीय संविधान निर्माता डॉ अम्बेडकर द्वारा बनाये गए संविधान के आधार पर दोषी देश द्रोही अफ़जल गुरु, याकूब मेनन जैसो की फांसी का करना हमारे संविधान की अवमानना करने के समान हैं। इस प्रकार से ये भेड़िये डॉ अम्बेडकर के किये कराये पर पानी फेर रहे हैं।
5. डॉ अम्बेडकर को हैदराबाद के निज़ाम ने इस्लाम स्वीकार करने के लिए भारी प्रलोभन दिया था। उन्होंने देशभक्त के समान उसे सिरे से नकार दिया था। NGO धंधे की आड़ में दलित चिंतक विदेशों से पैसा लेकर भारत को कमजोर बनाने में लगे हुए हैं। वे विदेशी ताकतों के इशारे पर देश तोड़क कार्य करते हैं।
6. कहने को दलित चिंतक अपने आपको महात्मा बुध्द का शिष्य बताते हैं। अहिंसा का सन्देश देने वाले महात्मा बुध्द के शिक्षा बीफ़ फेस्टिवल बनाकर गौमांस खाकर अपनी अहिंसा का साक्षात प्रदर्शन करते हैं। इनसे बड़े दोगले आपको देखने को नहीं मिलेंगे। क्यूंकि ऐसी गतिविधि का उद्देश्य केवल और केवल सामाजिक एकता का नाश होता हैं।
7. जब भी देश में हिन्दू-मुस्लिम दंगे होते है। तब मुसलमान दंगाई यह भेद नहीं देखते की हिन्दू स्वर्ण हैं अथवा दलित। उनके लिए तो सभी काफ़िर हैं। दंगों में सभी स्वर्ण और दलित हिन्दुओं की हानि होती हैं। जमीनी हकीकत यही है। दंगे शांत होने पर दलित चिंतक दलितों को मुसलमानों द्वारा जो प्रताड़ित किया गया उसकी अनदेखी कर 'मुजफ्फरनगर अभी बाकि है' जैसी वृत्तचित्रों का समर्थन करते है। इसे दलितों की पीठ पीछे छुरा घोपना कहा जाये तो सटीक रहेगा।
8. मुसलमानों द्वारा लव जिहाद में फंसाकर स्वर्ण और दलित दोनों हिन्दुओं की लड़कियों का जीवन बर्बाद किया जाता हैं। इस सोची समझी साज़िश की अनदेखी कर दलित चिंतक लव जिहाद षड्यंत्र को कल्पना बताने वालों के साथ कंधे से कन्धा मिलाकर खड़े दिखाई देते है। इस पर आप ही टिप्पणी करे तो अच्छा हैं।
9. मुसलमानों और ईसाईयों द्वारा प्रलोभन देकर धर्म परिवर्तन करने को डॉ अम्बेडकर गलत मानते थे। आज अधिकतर दलित चिंतक केवल नाम से हिन्दू हैं। वे धर्म परिवर्तन करने वालों का कभी विरोध नहीं करते और उनका खुला समर्थन करते हैं। इस प्रकार से उन्होंने डॉ अम्बेडकर को भी ठेंगा दिखा दिया।
10. कुछ राजनीतिक दल दलित-मुस्लिम गठजोड़ बनाने की कवायद में नारे लगाते हैं। डॉ अम्बेडकर द्वारा अपनी पुस्तक थॉट्स ओन पाकिस्तान में इस्लाम की मान्यताओं द्वारा जातिवाद की समस्या का समाधान होने का स्पष्ट निषेध किया था। डॉ अम्बेडकर ने पाकिस्तान बनने पर सभी दलितों को पाकिस्तान छोड़कर भारत आकर बसने के लिए कहा था। क्यूंकि उन्हें मालूम था की इतिहास में मुस्लिम आक्रमणकारियों ने हिन्दू-बौद्ध समाज पर कैसे कैसे अत्याचार किये हैं। दलित चिंतक राजनीतिक तुच्छ लाभ के लिए मुस्लिम नेताओं के हाथ की कठपुतली बन डॉ अम्बेडकर की अवमानना करने से पीछे नहीं रहते।
यह कुछ उदहारण हैं। आपको जितने भी वैदिक धर्म-देश और जाति के विरोध में देश में कार्य दिखेंगे उसमें भेड़ की खाल में भेड़िये आसानी से नज़र आ जायेगे। आईये जातिवाद का नाश कर एक आदर्श समाज का निर्माण करे। जिसमें सभी एक दूसरे के साथ भ्रातृवत व्यवहार करे। - डॉ विवेक आर्य
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Saturday, December 5, 2020
सनातन धर्मग्रंथों पर की जा रही है बार-बार चोट
05 दिसंबर 2020
सनातन हिंदू धर्म को मिटाने के लिए अनेकों प्रकार के षड्यंत्र सदियों से चले आ रहे हैं, उसमे से एक है बौद्धिक षड्यंत्र जिसमे असली सनातन धर्मग्रंथों को तोड मरोड़ करके बदलकर समाज को परोसना ये वामपंथ ने खूब काम किया और भी सनातन धर्म विरोधी लोग है यह खूबी से कर रहे हैं।
शिकागो विश्वविद्यालय की प्रोफेसर वेंडी डोनीजर की लिखी पुस्तक 'द हिंदूज: ऐन अल्टरनेटिव हिस्ट्री' आजकल चर्चा में है। पुस्तक के चर्चा में आने की वजह कोई स्तरीय या शोधपरक लेखन नहीं, बल्कि हिंदू धर्मग्रंथों और आख्यानों के चुने हुए प्रसंगों की व्याख्या काम भाव की दृष्टि से किया जाना है।
उदाहरण के लिए, इस पुस्तक में लिखा गया है कि रामायण में उल्लिखित राजा दशरथ कामुक प्रवृत्ति के व्यक्ति थे और बुढ़ापे में भी कैकेयी जैसी जवान पत्नी के साथ वह रंगरेलियों में डूबे रहते थे। इसमें लिखा गया है कि कैकेयी के इशारे पर ही राजा दशरथ ने अपने बेटे राम को जंगल में भेज दिया ताकि कोई रुकावट न रहे। पुस्तक के मुताबिक राम और लक्ष्मण दोनों ने ही अपने पिता को कामुक बूढ़ा कहा था। वेंडी ने लिखा है कि जंगल में रहते हुए लक्ष्मण के मन में भी सीता के प्रति कामभावना पैदा हुई थी और राम ने इस बारे में लक्ष्मण से सवाल भी किया था। इसी तरह महाभारत की कथा के बारे में भी वेंडी ने अपने मन मुताबिक व्याख्या दी है। जैसे कुंती द्वारा सूर्य के साथ नियोग से प्राप्त पुत्र के बारे में लिखा गया है कि सूर्य देवता ने कुंती के साथ बलात्कार किया, जिससे 'कर्ण' नामक अवैध संतान पैदा हुई।
पुस्तक में भारतीय धर्मग्रंथों के कुछ चुने हुए प्रसंगों की कामुक व्याख्या करके एक "वैकल्पिक" इतिहास लिखने की कोशिश की गई है। यह केवल प्राचीन ग्रंथों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसमें राजनीतिक घटनाक्रमों को भी कुछ इसी तरह घसीटा गया है। गांधी की रामराज्य की कल्पना को भारत में मुसलमानों और ईसाइयों से छुटकारा पाने और हिंदू राज्य की स्थापना से जोड़ा गया है।
वेंडी ने ऐसा लेखन पहली बार नहीं किया है। हिंदू चिंतन, मनीषा और इतिहास पर वह पिछले तीन दशक से इसी तरह का लेखन करती रही हैं। हमारे बुद्धिजीवियों को भी पश्चिमी भक्ति के कारण पर्याप्त आदर और सम्मान मिलता रहा है। जिस लेखन को किसी अन्य धर्म अथवा मत के लोग घृणा या क्षोभ से देखते हैं उसे पश्चिम के रेडिकल प्रोफेसर एक नई व्याख्या के रूप में सम्मान देते हैं।
कहने की आवश्यकता नहीं कि ऐसा लेखन यदि इस्लामी प्रसंगों पर कोई करें तो उसे एंटी-मुस्लिम और घोर साम्प्रदायिक कहकर प्रतिबंधित करने की मांग की जाती है। विडंबना यह है कि यह लोग भी वहीं होते हैं जो हिंदू ग्रंथों और महापुरुषों पर कालिख पोतने का हर तरीके से समर्थन करते हैं। यह कार्य केवल बयान तक सीमित नहीं रहता, बल्कि जुलूस और प्रदर्शन तक किए जाते हैं। जेम्स लेन की पुस्तक में छत्रपति शिवाजी के गंदे चित्रण का समर्थन करते हुए यही किया गया था।
सच्चाई तो यही है कि वेंडी डोनीजर या जेम्स लेन जैसे लेखक भारत में भी हैं। इतिहासकार डी. एन. झा ने लिखा है कि कृष्ण का चाल-चलन अच्छा नहीं था। साहित्यकार राजेंद्र यादव ने राम को युद्धलिप्साग्रस्त साम्राज्यवादी तथा हनुमान को पहला आतंकवादी तक बताया। रोमिला थापर ने सनातन हिंदू धर्म को नकारते हुए इसे ब्राह्मणवाद घोषित करते हुए व्याख्या दी कि यह निम्न जातियों के शोषण और दमन करने की विचारधारा है।
इधर एक नेता ने उसी भाव से "द्रौपदी" नामक उपन्यास लिखा। ऐसे अधिकाश लेखक हिंदू परिवारों में ही पैदा हुए, लेकिन वास्तव में यह धर्महीन हो चुके लेखक ही हैं। इनका मुख्य लक्ष्य हिंदू धर्म चिंतन और महापुरुषों को लांछित करके नाम कमाना है। विडंबना यह है कि इन सबको भारत में मान-सम्मान भी मिलता रहा है। यह एक सच्चाई है कि आजाद भारत में हिंदू मनीषा के साथ दोहरा अन्याय होता रहा है। वेद, उपनिषद, पुराण, रामायण, महाभारत आदि ग्रंथों को उतना सम्मान नहीं मिल पाया जितना मिलना चाहिए था। यदि इन्हें कुरान, बाइबिल की तरह धर्म-पुस्तक माना गया होता तो इस तरह घृणा फैलाने का दुस्साहस शायद ही कोई करता। तब राम, कृष्ण को केवल ईश्वरीय आदर दिया जाता, जैसा कि पैगंबर मुहम्मद या ईसा मसीह को दिया जाता है।
उपनिषद दर्शनशास्त्र का विश्वकोष है, किंतु भारत में दर्शनशास्त्र का विद्यार्थी अरस्तू, काट, मार्क्स, फूको, देरिदा आदि को ही पढ़ता है। महाभारत राजनीति और नैतिकता की अद्भुत पुस्तक होने के बावजूद औपचारिक शिक्षा से बहिष्कृत है। यह सब "धर्मनिरपेक्षता" के नाम पर किया जाता है। तर्क दिया जाता है कि यदि इन्हें पाठ्य-क्रमों का हिस्सा बनाया जाएगा तो बाइबिल, कुरान, हदीस को भी शामिल करना पड़ेगा।
जब वेद, उपनिषद, रामायण, महाभारत, नीतिशतक को धर्मपुस्तक का आदर देने की बात हो तो इन्हें गल्प साहित्य मानकर मनमाने आलोचना का शिकार बनाया जाता है। अपनी मूल्यवान थाती का ऐसा निरादर शायद ही दुनिया में कहीं और हुआ हो। भारत में हिंदू ग्रंथों के साथ हो रहे इस दोहरे अन्याय को ईसाइयत के उदाहरण से अच्छी तरह समझा जा सकता है। सुपरस्टार के रूप में जीसस क्राइस्ट और द विंसी कोड जैसे उदाहरणों से स्पष्ट है यूरोपीय अमेरिकी समाज बाइबिल और ईसाई कथा-प्रसंगों की आलोचनात्मक व्याख्या सहता है, साथ ही ईसाइयत का पूरा चिंतन, चर्च और वेटिकन के विचार-भाषण-प्रस्ताव आदि यूरोप की शिक्षा प्रणाली का अभिन्न अंग भी हैं और वह औपचारिक शिक्षा की प्रणाली से बाहर नहीं है।
ईसाइयत संबंधी धर्मशिक्षा पश्चिम में उसी तरह स्थापित हैं जैसे भौतिकी, रसायन या अर्थशास्त्र आदि हैं। इन्हें पढ़कर हजारों युवा उसी तरह वहां के कालेजों, विश्वविद्यालयों से हर वर्ष स्नातक होते हैं जैसे कोई अन्य विषय पढ़कर। तदनुरूप उनकी विशिष्ट पत्र-पत्रिकाएं, सेमिनार सम्मेलन आदि भी होते हैं। ईसाइयत संबंधी विमर्श, शोध, चिंतन के अकादमिक जर्नल्स आक्सफोर्ड और सेज जैसे प्रमुख अकादमिक प्रकाशनों से प्रकाशित होते हैं। ऐसा इक्का-दुक्का नहीं, बल्कि अनगिनत होता है।
यदि यूरोपीय जगत ईसा और ईसाइयत की कथाओं और ग्रंथों की आलोचनात्मक व्याख्या को स्थान देता है तो साथ ही धर्मग्रंथों के संपूर्ण अध्ययन को एक विषय के रूप में सम्मानित आसन भी देता है। स्वयं वेंडी डोनीजर शिकागो विश्वविद्यालय के "डिविनिटी स्कूल" में प्रोफेसर हैं। हालांकि भारतीय विश्वविद्यालयों में ऐसा कोई विभाग ही नहीं होता।
भारत में इसके ठीक विपरीत धर्म और उसके नाम पर सभी हिंदू ग्रंथों और चिंतन के अगाध भंडार को औपचारिक शिक्षा से बाहर रखा गया है। यहां यह जानने योग्य है कि मैक्सवेबर जैसे महान विद्वान ने भी भगवद्गीता को राजनीति और नैतिकता के अंत:संबंध पर पूरे विश्व में एकमात्र सुसंगत पाठ्यसामग्री माना है, किंतु क्या मजाल कि भारत में राजनीतिशास्त्र के विद्यार्थियों को इसे पढ़ाने की अनुमति दी जाए। यह तो एक उदाहरण है।
वास्तव में यहूदी, ईसाइयत और इस्लाम की तुलना में हिंदू चिंतन कहीं ज्यादा गहन है। समाज विज्ञान का कोई भी ऐसा विषय नहीं है जिसके समुचित अध्ययन के लिए हमें हिंदू ग्रंथों से मदद न मिल सके। इस सबके बावजूद समाज विज्ञान विभागों में या फिर अलग विधा के विषय के रूप में भारत में कोई अकादमिक संस्थान या स्थान नहीं बनाया गया है।
यही कारण है कि गीता प्रेस, गोरखपुर के संपूर्ण कार्यो को अकादमिक जगत उपेक्षा से देखता है। मानो वह आधुनिक समाज से कटे हुए वृद्ध पुरुषों-महिलाओं और अशिक्षितों के पढ़ने के लिए सतही व अंधविश्वासी चीजें हों।
यदि इन बातों पर सगग्रता में विचार किया जाए तो पाएंगे कि आजाद भारत में हिंदू मनीषा के साथ किस तरह दोहरा अन्याय हुआ है। यहां यह कहना गलत न होगा कि ऐसा करने के लिए आजाद भारत के शासकों और नीति-निर्माताओं ने जनता से कभी कोई जनादेश तो लिया नहीं है। यह सब चुपचाप एक चिरस्थापित औपनिवेशिक मानसिकता के तहत अभी तक चल रहा है। भारतीयों पर यह मानसिकता हजारों वर्षो की गुलामी में विदेशी शासकों ने जबरन थोपी। जिसमें हर स्वदेशी चीज खराब मानी जाती है और हर पश्चिमी चीज अच्छी।
पश्चिमी लेखक वेंडी डोनीजर को सम्मान और भारतीय हनुमान प्रसाद पोद्दार का बहिष्कार इसका स्पष्ट प्रमाण है।
लेखक : डॉ. शंकर शरण
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Friday, December 4, 2020
NGT का दोहरा मापदंड : दीपावली पर प्रतिबंध, क्रिसमस पर पटाखे पर छूट
04 दिसंबर 2020
हिंदुस्तान में ही हिंदुओं का दूसरा दर्जा रखा हुआ है, कोई भी हिंदू त्यौहार आये तो उस पर सवाल उठाया जाता है जबकि किसी अन्य समुदाय का त्योहार हो तो तुरंत छूट मिल जाती है, दूसरी तरफ जहाँ अधिकारों की बात आती है वहाँ पर भी सरकारी सुविधाओं पर जितना हक अल्पसंख्यकों का है उतना बहुसंख्यक हिंदुओं को नही मिलता है। विश्व मे भारत ही एक ऐसा देश है जो बहुसंख्यकों को दूसरा दर्जा दिया है।
आपको बता दें कि देश में कोरोना की स्थिति को देखते हुए एनजीटी ने पटाखों पर लगे बैन को अनिश्चितकाल तक के लिए बढ़ा दिया है। एनजीटी ने साफ तौर पर कह दिया है कि दिल्ली-एनसीआर समेत देश के उन सभी हिस्सों में पटाखों पर बैन बरकरार रहेगा जहाँ पर एयर क्वालिटी ख़राब या खतरनाक स्तर पर है। साथ ही एनजीटी ने कहा है कि क्रिसमस और न्यू ईयर के मद्देनजर देश के उन इलाकों में जहाँ एयर क्वालिटी मॉडरेट स्तर पर है, वहाँ पटाखे रात को 11:55 बजे से 12.30 तक यानी 35 मिनट के लिए चलाने की अनुमित होगी।
बता दें कि एनजीटी द्वारा पटाखों पर लगे बैन को आगे बढ़ाने के बाद अब सार्वजनिक स्थानों पर किसी भी समारोह या शादी में पटाखों का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। इसके अलावा इसकी खरीद-फरोख्त पर लगी रोक भी बरकरार रहेगी।
पिछले महीने दीवाली से पहले एनजीटी ने 9 नवंबर को पटाखों के खरीद-फरोख्त और स्टोरेज पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया था। एनजीटी की तरफ से यह प्रतिबंध 30 नवंबर तक के लिए लगाया गया था, लेकिन अब एनजीटी ने पाया कि दिल्ली एनसीआर में कोरोना की तीसरी लहर तेज है, इसलिए यह प्रतिबंध आगे भी जारी रहेगा।
दिल्ली में दिवाली से ठीक पहले दिल्ली सरकार ने एक बड़ा फैसला लिया था। दिल्ली में पटाखों को 9 नवंबर से 30 नवंबर तक पूरी तरह से बैन कर दिया गया। ग्रीन क्रैकर्स की बिक्री पर भी रोक लगा दी गई। कहा गया कि दिल्ली को प्रदूषण से बचाने के लिए इस तरह की पाबंदी लगाई गई।
केजरीवाल सरकार ने पटाखों को लेकर दिशा-निर्देश जारी किए। दिल्ली सरकार में पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने इसकी जानकारी देते हुए बताया था कि पटाखे जलाने और पटाखे बेचने वालों पर ₹1 लाख तक का जुर्माना लगाया जा सकता है।
गोपाल राय ने कहा कि पटाखे बेचने या फोड़ने वाले लोगों पर वायु प्रदूषण (नियंत्रण) अधिनियम (1981) के तहत 1 लाख रुपए तक का जुर्माना लगाया जा सकता है। गोपाल राय ने बताया कि आरोपित के खिलाफ एयर एक्ट के तहत केस बनाया जाएगा, जिसमें 1 लाख रुपए तक का जुर्माना लगाने का प्रावधान है। अब एनजीटी ने क्रिसमस और न्यू ईयर के अवसर पर रात के 11:55 बजे से 12.30 तक पटाखे चलाने की अनुमति दे दी है।
बीजेपी नेता मेजर सुरेंद्र पुनिया ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए लिखा है, “शाबाश NGT NGT क्रिसमस/नईसे साल पर 11:50PM से 12:30 AM के बीच में पटाखे चला सकते हैं” क्योंकि उससे प्रदूषण नहीं होगा! दीवाली पर इसी NGT के आदेश पर पटाखे चलाने के जुर्म में 850 लोगों को गिरफ़्तार किया गया था। मी लॉर्ड,आपको इस वैज्ञानिक आविष्कार के लिए नोबेल पुरस्कार क्यों ना मिले?
वहीं एक अन्य सोशल मीडिया यूजर ने लिखा, अब पटाखे जलाने से प्रदूषण नहीं फैलता? केवल दीपावली पर ही प्रदूषण फैलता है? अब कोविड-19 वायरस का संक्रमण खत्म हो गया है? या कानून का दुरुपयोग हो रहा है सिर्फ हिन्दू के त्यौहार को प्रतिबंधित करने के लिए?
ऐसा कोई पहली बार नहीं हुआ है की किसी भी हिंदू त्यौहार आते ही वामपंथी, सेक्युलर, तथाकथित बुद्धजीवी, मीडिया आदि विरोध में खड़े हो जाते हैं पर अन्य समुदायों के लोगो के लिए छूट देने की मांग करते हैं, ये अंग्रेजों वाली नीति है हिंदुओं को संगठित होकर इसको खत्म कर देना चाहिए जब सेक्युलर देश बोला जाता है तो सभी को समानता का हक भी मिलना चाहिए।
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Thursday, December 3, 2020
फ्रांस के राजदूत ने पत्नी के साथ की महाकाल की पूजा, दिए 80 करोड़
03 दिसंबर 2020
भारत की धार्मिक एवं सांस्कृतिक स्वीकार्यता का दायरा काफी बड़ा है। यही कारण है कि दुनिया भर के लोग इससे जुड़ी चीज़ों में अपनी अटूट आस्था दिखाते हैं। इसी कड़ी में फ्रांस के राजदूत इमैनुएल लेनिन अपनी पत्नी के साथ उज्जैन स्थित महाकाल मंदिर का दर्शन करने आए।
एक तरफ भारत की राज्य सरकारें मंदिरों पर राजकीय कब्जा करके मंदिरों की संपत्तियों को ले लेती है वहीं दूसरी ओर फ्रांस जैसे देश मदिरों के विकास के लिए करोड़ो रूपये अनुदान दे रहे हैं, भारत की राज्य सरकारों को फ्रांस सरकार से सिख लेनी चाहिए।
पिछले कुछ समय से फ्रांस डट कर कट्टरपंथी ताक़तों का सामना कर रहा है। ऐसे में फ्रांस के राजदूत का महाकाल की शरण में आना भारत के लिए राजनीतिक और धार्मिक दोनों दृष्टिकोण से सकारात्मक है। दर्शन के बाद उन्होंने ऐलान किया कि फ्रांस की सरकार ‘महाकाल मंदिर विकास योजना’ में 80 करोड़ रुपए दान करेगी।
7 नवंबर 2020 को फ्रांस के राजदूत निजी दौरे पर मध्य प्रदेश आए थे। इंदौर में ठहरने के दौरान उन्होंने महाकाल दर्शन का निर्णय लिया था। जिसके बाद वह शनिवार को महाकाल के दर्शन के लिए निकले। दर्शन के बाद मंदिर समिति ने इमैनुएल लेनिन और उनकी पत्नी को महाकाल के चित्र भी भेंट किए। इसके बाद लेनिन और उनकी पत्नी रामघाट गए और अंत में इंदौर रोड स्थित प्राचीन शनि मंदिर के दर्शन भी किए। इसके बाद वह इंदौर के लिए वापस निकल गए।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक फ्रांस के राजदूत ने पूरे विधि विधान से पूजा पाठ किया। मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश बंद होने की वजह से इमैनुएल लेनिन को नंदी हॉल से ही दर्शन करना पड़ा। मंदिर के पुजारी रमण त्रिवेदी ने फ्रांस के राजदूत से पूजा पाठ संपन्न कराया।
सावधानी और सुरक्षा के दृष्टिकोण से फ्रांसीसी राजदूत के इस दौरे की जानकारी पुलिस और प्रशासन को ही थी। यात्रा के बाद राजदूत लेनिन और उनकी पत्नी ने क्षिप्रा नदी के तट पर पहुँच कर कुछ देर विश्राम भी किया।
इसके बाद उज्जैन के कलेक्टर आशीष सिंह ने इस संबंध में विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने कहा कि मंदिर विकास योजना का दूसरा चरण बहुत जल्द शुरू होने वाला है। इस संबंध में सिंहस्थ मेला कार्यालय में अधिकारियों के साथ परियोजना की समीक्षा की गई है।
फ्रांस सरकार इस योजना में आर्थिक सहयोग के तौर पर 80 करोड़ रुपए देने जा रही है, जिसे मंदिर के विशेष निर्माण कार्य में लगाया जाएगा। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़ इस राशि को मंदिर परिसर के 10-12 गुना अधिक विस्तृत करने में किया जाएगा, जिससे श्रद्धालुओं के आवागमन में कोई परेशानी नहीं हो।
इन विकास कार्यों में भूमि अधिग्रहण, मंदिर क्षेत्र के आस-पास 500 मीटर में चौड़ी और पक्की सड़क, ब्रिज निर्माण, नज़दीक रहने वालों की अन्य क्षेत्र में रहने की व्यवस्था और मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं के लिए मूलभूत व्यवस्थाएँ शामिल हैं।
फ्रांस के लोग भारत के सनातन धर्म को समझ रहे हैं, अपना रहे है और मदिरों में अनुदान दे रहे हैं लेकिन भारत के सेक्युलर लोग देवी देवताओं की मजाक उड़ाते हैं, सरकार मदिरों की संपत्ति ले लेती है, फ्रांस देश से हमें सिख लेनी चाहिए, भारत के सनातन धर्म की महिमा समझनी चाहिए तभी दुनिया मे सुख शांति बनी रहेगी।
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