January 12, 2018
भगवान बुध्द के जैसी दिखने वाली एक मूर्ति बनाई गई है जो बच्चा को गोद में लेकर बैठे है, वे वास्तव में मैरी की है जिसे जापान के क्रिप्टो-क्रिस्चियन पूजते थे। ये क्रिप्टो-क्रिस्चियन क्या है? ग्रीक भाषा मे क्रिप्टो शब्द का अर्थ हुआ छुपा हुआ या गुप्त; क्रिप्टो-क्रिस्चियन (crypto-christian) का अर्थ हुआ गुप्त-ईसाई। इसमें महत्वपूर्ण बात ये है कि क्रिप्टो-क्रिस्चियन कोई गाली या नकारात्मक शब्द नहीं हैं।
क्रिप्टो-क्रिस्चियानिटी ईसाई धर्म की एक संस्थागत प्रैक्टिस है। क्रिप्टो-क्रिस्चियनिटी के मूल सिद्धांत के अंर्तगत क्रिस्चियन जिस देश में अल्पसंख्यक होते है वहाँ वे दिखावे के तौर पर तो उस देश के ईश्वर की पूजा करते है, वहाँ का धर्म, रिवाज मानते हैं जो कि उनका छद्मावरण होता है, पर वास्तव में अंदर से वे ईसाई होते हैं और निरंतर ईसाई धर्म का प्रसार करते रहते है।
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जिस तरह इस्लाम का प्रचार तलवार के बल पर हुआ है वैसे ही ईसाईयत का प्रचार 2 निम्नलिखित बुनियादी सिद्धांतों पर हुआ है. 1) Defiling other Gods यानि दूसरे धर्म के ईश्वर, प्रतीकों की गरिमा भंग करो। 2) Soul Harvesting यानि दूसरे की कमजोरियों, दुखों, मजबूरियों का फायदा उठाओ। क्रिप्टो-क्रिश्चियन्स स्थानीय छद्मावरण में रहते हुए इन दोनों सिद्धांतों के आधार ईसाईयत का प्रचार करो।
क्रिप्टो-क्रिस्चियन का सबसे पहला उदाहरण रोमन सामाज्य में मिलता है जब ईसाईयत ने शुरुवाती दौर में रोम में अपने पैर रखे थे। तत्कालीन महान रोमन सम्राट ट्रॉजन ने ईसाईयत को रोमन संस्कृति के लिए खतरा समझा और जितने रोमन ईसाई बने थे उनके सामने प्रस्ताव रखा कि या तो वे ईसाईयत छोड़ें या मृत्यु-दंड भुगतें। रोमन ईसाईयों ने मृत्यु-दंड से बचने के लिए ईसाई धर्म छोड़ने का नाटक किया और उसके बाद ऊपर से वे रोमन देवी देवताओं की पूजा करते रहे, पर अंदर से ईसाईयत को मानते थे।
देखा गया है, मुसलमान जब 2-4 प्रतिशत होते हैं तब उस देश के कानून को मनाते है पर जब 20-30 प्रतिशत होते हैं तब शरीअत की मांग शुरू होती है, दंगे होते है। आबादी और अधिक बढ़ने पर गैर-मुसलमानों की ethnic cleansing शुरू हो जाती है। क्रिप्टो-क्रिश्चियन्स की कार्य शैली अलग है पर इरादे वही मुसलमानों वाले की स्थानीय धर्म खत्म करके अपने धर्म का प्रसार करना।
क्रिप्टो-क्रिस्चियन जब 1 प्रतिशत से कम होते है तब वह उस देश के ईश्वर को अपनाकर अपना काम करते रहते हैं और जब अधिक संख्या में हो जाते तो उन्ही देवी-देवताओं का अपमान करने लगते हैं। Hollywood की मशहूर फिल्म Agora(2009) हर हिन्दू को देखनी चाहिए। इसमें दिखाया है कि जब क्रिप्टो-क्रिस्चियन रोम में संख्या में अधिक हुए तब उन्होंने रोमन देवी-देवताओं का अपमान (Defiling) करना शुरू कर दिया। जिससे रोमन समाज में तनाव और गृह युुुद्ध की स्थिति बन गयी।
भारत में भी क्रिप्टो-क्रिस्चियन ने पकड़ बनानी शुरू की तो यहाँ भी हिन्दू देवी-देवताओं, ब्राह्मणों को गाली देने का काम शुरू कर दिया। हिन्दू नामों में छुपे क्रिप्टो-क्रिश्चियन्स पिछले कई दशकों से देवी दुर्गा को वेश्या प्रचारित कर रहे हैं। राम को शंभूक (बलि देने वाला दुष्ट तांत्रिक) का हत्यारा प्रचारित कर रहे हैं। ब्राह्मणों के खिलाफ anti-Brahminism की विचारधारा के अंतर्गत ब्राह्मणों के खिलाफ मनगढंत कहानियां बनाई जा रही हैं जैसे कि ब्राह्मण दलितों के कान में पिघला शीशा डालता है, महिलाओं को घर से उठा के देवदासी बना देता है फिर उनका शोषण करता है। ये सब ईसाई प्रचार के पहले सिद्धांत, Defiling other Gods के अंतर्गत हो रहा है, मतलब, जो काम यूरोप में 2000 साल पहले हुआ वह भारत में आज हो रहा है।
दूसरा सिद्धांत है soul harvesting जब इंसान दुखी होता है या किसी मुश्किल में होता है तब वह receptive हो जाता है यानि दूसरे के विचार आसानी से ग्रहण कर सकता है जो ईसाई धर्मान्तरण का रास्ता है। इसी कारण ये अस्पताल खोलते है कि दुःखी मरीजों का धर्मान्तरण करवाएं, प्राकृतिक आपदाओं में सेवा के लिए नहीं धर्मान्तरण के लिए जाते है जैसे कि नेपाल का भूकंप, भोपाल गैस कांड में टेरेसा का कलकत्ते से भोपाल जाना।
जब तक हिन्दू समाज खुशहाल है और सभी आपस मे मिलकर रह रहे हैं, हिंदुओं का धर्मान्तरण मुश्किल है। हिंदुओं में वर्गीकरण हो, आपस मे लड़े, और कलह के बाद हमारा संदेश सुना जाये इसी soul harvesting के चलते हिंदुओं में sc, st, obc की सरकारी पहचान बनाई गई। जितनी बार मंडल कमीशन वाले दंगे होंगे, भुक्तभोगी समाज मिशनिरियों के संदेश के लिए receptive होगा और धर्मान्तरण आसान होगा। दुर्भाग्य से सभी हिन्दू संगठन ईसाईयों की इस दूरगामी चाल को समझने में मंदबुद्धि साबित हुए।
क्रिप्टो-क्रिस्चियन के बहुत से उदाहरण हैं पर सबसे रोचक उदाहरण जापान से है। मिशनरियों का तथाकथित-संत ज़ेवियर जो भारत आया था वह 1550 में धर्मान्तरण के लिए जापान गया और उसने कई बौद्धों को ईसाई बनाया। 1643 में जापान के राष्ट्रवादी राजा शोगुन(Shogun) ने ईसाई धर्म का प्रचार जापान की सामाजिक एकता के लिए खतरा समझा। शोगुन ने बल का प्रयोग किया और कई चर्चो को तोड़ा गया; जीसस-मैरी की मूर्तियां जब्त करके तोड़ दी गईं; बाईबल समेत ईसाई धर्म की कई किताबें खुलेआम जलायी गई। जितने जापानियों ने ईसाई धर्म अपना लिया था उनको प्रताड़ित किया गया, उनकी बलपूर्वक बुद्ध धर्म में घर वापसी कराई गई। जिन्होंने मना किया, उनके सर काट दिए गए। कई ईसाईयों ने बौद्ध धर्म में घर वापसी का नाटक किया और क्रिप्टो-क्रिस्चियन बने रहे। जापान में इन क्रिप्टो-क्रिस्चियन को "काकूरे-क्रिस्चियन" कहा गया।
काकूरे-क्रिस्चियन ने बौद्धों के डर से ईसाई धर्म से संबधित कोई भी किताब रखनी बन्द कर दी। जीसस और मैरी की पूजा करने के लिए इन्होंने प्रार्थना बनायी जो सुनने में बौद्ध मंत्र लगती पर इसमें बाइबल के शब्द होते थे। ये ईसाई प्रार्थनाएँ काकूरे-क्रिस्चियनों ने एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी मौखिक रूप से हस्तांतरित करनी शुरू कर दी। जीसस और मैरी की मूर्तियां बुद्ध जैसी दिखती थी जिसे बौद्ध कभी नहीं समझ पाए कि वह बुद्ध की मूर्तियां नहीं हैं। 1550 से लेकर अगले 400 सालों तक काकूरे-क्रिस्चियन बुद्ध धर्म के छद्मावरण में रहे। 20वी शताब्दी में जब जापान औद्योगिकीकरण की तरफ बढ़ा, जापान की कई कंपनियों टोयोटा, हौंडा, सोनी इत्यादि ने दुनियाँ में अपने झंडे गाड़ने शुरू कर दिए और बौद्धों के धार्मिक कट्टरवाद में कमी आई तो इन काकूरे-क्रिस्चियन बौद्ध धर्म के मुखौटे से बाहर निकल अपनी ईसाई पहचान उजागर की।
भारत में ऐसे बहुत से काकूरे-क्रिस्चियन हैं जो सेक्युलरवाद, वामपंथ और बौद्ध धर्म का मुखौटा पहन कर हमारे बीच हैं। भारत में ईसाई आबादी आधिकारिक रूप से 2 करोड़ है और अचंभे की बात नहीं होगी अगर भारत मे 10 करोड़ ईसाई निकलें। अकेले पंजाब में अनुमानित ईसाई आबादी 10 प्रतिशत से ऊपर है। सिखों में बड़ा वर्ग क्रिप्टो-क्रिस्चियन है। सिख धर्म के छद्मावरण में रहते हुए पगड़ी पहनते है, दाड़ी, कृपाण, कड़ा भी पहनतें हैं पर सिख धर्म को मानते हैं पर ये सभी गुप्त-ईसाई हैं। जब ये आपस में मिलते हैं तो जय-मसीह बोलते हैं।
बहुत से क्रिप्टो-क्रिस्चियन आरक्षण लेने के लिए हिन्दू नाम रखे हैं। इनमें कइयों के नाम राम, कृष्ण, शिव, दुर्गा आदि भगवानों पर होते है जिन्हें संघ के लोग भी सपने में गैर-हिन्दू नहीं समझ सकते जैसे कि विष्णु भगवान के नाम वाला पूर्व राष्ट्रपति के आर नारायणन जिंदगी भर दलित बन के मलाई खाता रहा और जब मरने पर ईसाई धर्म के अनुसार दफनाने की प्रक्रिया देखी तो समझ में आया कि ये क्रिप्टो-क्रिस्चियन है।
देश में ऐसे बहुत से क्रिप्टो-क्रिस्चियन हैं जो हिन्दू नामों में हिन्दू धर्म पर हमला करके सिर्फ वेटिकन का एजेंडा बढ़ा रहे हैं। हम रोजमर्रा की ज़िंदगी में हर दिन क्रिप्टो-क्रिस्चियनों को देखते हैं पर उन्हें समझ नहीं पाते क्योंकि वे हिन्दू नामों के छद्मावरण में छुपे रहतें हैं। जैसे कि... राम को काल्पनिक बताने वाली कांग्रेसी नेता अम्बिका सोनी क्रिप्टो-क्रिस्चियन है। NDTV का अधिकतर स्टाफ क्रिप्टो-क्रिस्चियन है।
हिन्दू नामों वाले नक्सली जिन्होंने स्वामी लक्ष्मणानन्द को मारा, वे क्रिप्टो-क्रिस्चियन हैं। गौरी लंकेश, जो ब्राह्मणों को केरला से बाहर उठा कर फेंकने का चित्र अपनी फेसबुक प्रोफाइल पर लगाये थी, क्रिप्टो-क्रिस्चियन थी। JNU में भारत के टुकड़े करने के नारे लगाने वाले और फिर उनके ऊपर भारत सरकार द्वारा कार्यवाही को ब्राह्मणवादी अत्याचार बताने वाले वामी नहीं, क्रिप्टो-क्रिस्चियन हैं। ब्राह्मणों के खिलाफ अभियान चला के हिन्दू धर्म पे हमला करने वाले सिख क्रिप्टो-क्रिस्चियन हैं। तमिलनाडु में द्रविड़ियन पहचान में छुप कर उत्तर भारतीयों पर हमला करने वाले क्रिप्टो-क्रिस्चियन हैं।
जिस राज्य ने सबसे अधिक हिंदी गायक दिए उस राज्य बंगाल में हिंदी का विरोध करने वाले क्रिप्टो-क्रिस्चियन हैं।अंधश्रद्धा के नाम हिन्दू त्यौहारों के खिलाफ एजेंडे चलाने वाला और बकरीद पर निर्दोष जानवरों की बलि और ईस्टर के दिन मरा हुआ आदमी जीसस जिंदा होने को अंधश्रध्दा न बोलने वाला दाभोलकर, क्रिप्टो-क्रिस्चियन था।TV पर अक्सर बौद्ध स्कॉलर बन के आने वाला काँचा इलैया, क्रिप्टो-क्रिस्चियन है, पूरा नाम है काँचा इलैया शेफर्ड।
देवी दुर्गा के वेश्या बोलने वाला JNU का प्रोफेसर केदार मंडल और रात दिन फेसबुक पर ब्राह्मणों के खिलाफ बोलने वाले दिलीप मंडल, वामन मेश्राम क्रिप्टो-क्रिस्चियन। महिषासुर को अपना पूर्वज बताने वाले जितेंद्र यादव और सुनील जनार्दन यादव जैसे कई यादव सरनेम में छुपे क्रिप्टो-क्रिस्चियन हैं। ब्राह्मण विरोधी वरिष्ठ राजनेता शरद यादव क्रिप्टो-क्रिस्चियन है। इसके घर पर जोशुआ प्रोजेक्ट सुनील सरदार, जॉन दयाल, चौथी राम यादव अक्सर आते हैं। NDTV पर पत्रकार के रूप में आने वाला गंजा अभय दुबे(CSDS) नाम से ब्राह्मण है पर क्रिप्टो-क्रिस्चियन है। ये भारत को अम्बेडकर के सपनों का भारत बनाना चाहता है। (स्त्रोत : दैनिक भारत)

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