Sunday, September 9, 2018

मीडिया मनमानी न करे, रिपोर्टिंग में आत्म-नियमन बरते : न्यायमूर्ति ललित..

09 September 2018

🚩इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया टी.आर.पी. और पैसे के लिए इतने अंधे हो गए हैं कि कुछ भी खबर दिखाने लगते हैं, किसी एजेंडा के तहत तो काफी झूठी खबरें भी परोसने लगते हैं ।

🚩भारत में मीडिया ट्रायल बहुत चलता है, किसी एक खबर को लेकर, उसपर मनगढ़ंत कहानियां बनाकर इतनी खबरें दिखाई जाती हैं कि आम जनता भी उसको सही मानने लगे और अधिकतर ऐसा मीडिया ट्रायल हिन्दू संस्कृति व हिंदुनिष्ठ लोगो के खिलाफ चलाया जाता है ।
Media should not be arbitrary, self-regulation in reporting: Justice Fine

🚩विश्व हिन्दू परिषद के मुख्य संरक्षक व पूर्व अंतर्राष्ट्रीय अध्यक्ष स्वर्गीय श्री अशोक सिंघलजी कहते हैं : ‘‘मीडिया ट्रायल के पीछे कौन है ? हिन्दू धर्म व संस्कृति को नष्ट करने के लिए मीडिया ट्रायल पश्चिम का बड़ा भारी षड़्यंत्र है हमारे देश के भीतर । मीडिया का उपयोग कर रहे हैं विदेश के लोग, उसके लिए भारी मात्रा में फंड्स देते हैं, जिससे हिन्दू धर्म के खिलाफ देश के भीतर वातावरण पैदा हो ।’’ 

🚩सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश उदय यू. ललित ने शनिवार को अहमदाबाद में कहा कि मीडिया को अपराधिक मुकदमों की सुनवाई की रिपोर्टिंग में आत्म-नियमन बरतना चाहिए । 

🚩न्यायमूर्ति ललित, पी.डी. देसाई स्मृति व्याख्यान श्रृंखला को इस विषय पर संबोधित कर रहे थे कि क्या मीडिया की रिपोर्टिंग किसी मुकदमे की निष्पक्ष सुनवाई में बाधक है । उन्होंने कहा कि मीडिया को किसी अपराध की जांच की खबरें लिखने-दिखाने से रोकने के लिए कोई कानून नहीं है। 

🚩न्यायमूर्ति ललित ने कहा, ‘‘इस देश में हम प्रेस के अधिकारों को इस स्तर का समझते हैं कि हम उनमें कटौती नहीं करना चाहते । कोई कानून उनमें कटौती नहीं कर सकता, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि मीडिया में पूरी तरह से मनमानापन हो जाए । प्रेस में आत्म-नियमन होना चाहिए ।’’ 

🚩कुछ समय पूर्व दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है  कि "मीडिया में दिखायी गयी खबरें न्यायाधीश के फैसलों पर असर डालती हैं । खबरों से न्यायाधीश पर दबाव बनता है और फैसलों का रुख भी बदल जाता है । पहले मीडिया अदालत में विचाराधीन मामलों में नैतिक जिम्मेदारियों को समझते हुए खबरें नहीं दिखाता था, लेकिन अब नैतिकता को हवा में उड़ा दिया है ।  मीडिया ट्रायल के जरिए दबाव बनाना न्यायाधीशों के फैसलों को प्रभावित करने की प्रवृत्ति है । जाने-अनजाने में एक दबाव बनता है और इसका असर आरोपियों और दोषियों की सजा पर पड़ता है ।’’

🚩जज भी एक मनुष्य है और जब मीडिया ट्रायल किसी व्यक्ति के खिलाफ चलता है तो जज भी प्रभावित होता है और उस व्यक्ति के खिलाफ जजमेंट देता है ।

आपको दो उदाहरण प्रस्तुत करते है :
🚩1. आरुषि हत्या कांड में उनके माता - पिता के खिलाफ इतना मीडिया ट्रायल चला कि उनको सेशन कोर्ट ने उम्रकैद सजा दे दी ।
फिर हाईकोर्ट ने 9 साल बाद निर्दोष बरी किया ।

🚩2 . हिन्दू संत आसाराम बापू को भी एक फर्जी केस में सेशन कोर्ट ने उम्रकैद की सजा सुनाई गई है । जबकि लड़की का मेडिकल हुआ उसमे एक भी खरोंच नहीं आई थी, जिस समय की घटना लड़की बता रही थी, उससमय तो वो वहाँ थी ही नहीं, जन्म प्रमाणपत्र भी अलग-अलग है फिर भी पोस्को एक्ट लगाकर फर्जी केस में उम्रकैद दे दी, उनको षड्यंत्र के तहत फ़साने के कई प्रमाण भी थे, उन्हें भी अनदेखा किया । 

🚩भारत में मीडिया इतना स्वतंत्र हो गई है कि किसी के बारे में कुछ भी मनगढ़ंत कहानियां बनाकर उसके खिलाफ इतना ट्रायल चलाती है कि कोर्ट को भी निर्णय बदलने पर मजबूर होना पड़ता है ।

🚩टी.वी. चैनलों ने तो आरुषि कांड में तलवार दंपति को मुकदमा शुरू होने पहले ही मुजरिम ठहरा दिया था । टी.वी. चैनलों ने तो जांच एजेंसियों की थ्योरी पर यकीन कर लिया, कोई सवाल नहीं पूछा गया।'

🚩अब बड़ा सवाल उठता है कि देश का चौथा स्तंभ मीडिया इतना गिर चुका है कि कोर्ट की अवेहलना करके खुद ही निर्यण देने लगा है क्या इस पर सरकार नियंत्रण नहीं कर सकती है ?

🚩देश में ऐसे हजारों निर्दोष है जो बिना सबूत सालों से जेल में हैं, साध्वी प्रज्ञा को भी 9 साल बाद रिहा किया । स्वामी असीमानन्द जी 8 साल में, शंकराचार्य अमृतानन्द जी 9 साल में, डी.जी. वंजारा जी 8 साल में, स्वामी केशवानंद जी 7 साल में बरी निर्दोष हुए । केवल और केवल मीडिया #ट्रायल और #भ्रष्ट तंत्र के कारण निर्दोष होने पर भी जेल में थे ।

🚩देश में ऐसे एक-दो नहीं लाखों केस हैं जो भ्रष्टाचार के कारण बिना सबूत जेल में सजा भुगतने को मजबूर हैं । अब सरकार को इस पर ध्यान देना चाहिए और मीडिया ट्रायल चलाने वाले और भ्रष्टाचारियों को जेल की राह दिखानी चाहिए ।

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