Monday, February 24, 2025

क्या आपको पता है उन्नीसवीं सदी में करोड़ों को ग्रसने वाली हैजा का इलाज किसने ढूंढा? नहीं न!!!

 24 February 2025

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🚩क्या आपको पता है उन्नीसवीं सदी में करोड़ों को ग्रसने वाली हैजा का इलाज किसने ढूंढा?

नहीं न!!!


🚩आइए उस गुमनाम नायक के बारे में जानते हैं।


🚩"सन 1817"

1817 में विश्व में एक नई बीमारी ने दस्तक दी।


🚩नाम था "ब्लू डेथ"


ब्लू डेथ यानी  "कॉलेरा", जिसे हिंदुस्तान में एक नया नाम दिया गया........"हैजा"।


🚩हैजा विश्व भर में मौत का तांडव करने लगा और इसकी चपेट में आकर उस समय लगभग  1,80,00,000 (एक करोड़ अस्सी लाख) लोगों की मौत हो गई। दुनिया भर के वैज्ञानिक हैजा का इलाज खोजने में जुट गए।


🚩"सन 1844"

रॉबर्ट कॉख नामक वैज्ञानिक ने उस जीवाणु का पता लगाया जिसकी वजह से हैजा होता है और उस जीवाणु को नाम दिया वाइब्रियो कॉलेरी ।

रॉबर्ट कॉख ने जीवाणु का पता तो लगा लिया लेकिन वह यह पता लगाने में नाकाम रहे कि वाइब्रियो कॉलेरी को कैसे निष्क्रिय किया जा सकता है।


🚩हैजा फैलता रहा... लोग मरते रहे और इस जानलेवा बीमारी को ब्लू डेथ यानी "नीली मौत" का नाम दे दिया गया।


🚩"1 फरवरी 1915"

पश्चिम बंगाल के एक दरिद्र परिवार में एक बालक का जन्म हुआ। नाम रखा गया "शंभूनाथ"।

शंभूनाथ शुरुआत से ही पढ़ाई में अव्वल रहे और उन्हें  कोलकाता मेडिकल कॉलेज में प्रवेश मिल गया। डॉक्टरी से अधिक उनका रुझान "रिसर्च" की ओर था। इसलिए 1947 में उन्होंने यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन  के  कैमरोन लैब में पीएचडी  में दाखिला लिया।

मानव शरीर की संरचना पर शोध करते समय शंभूनाथ डे का ध्यान हैजा फैलाने वाले जीवाणु  वाइब्रियो कॉलेरी की ओर गया।


🚩"1949"

मिट्टी का प्यार शंभूनाथ डे को वापस हिंदुस्तान खींच लाया। उन्हें कलकत्ता मेडिकल कॉलेज के पैथोलॉजी विभाग का निर्देशक नियुक्त किया गया और वे महामारी का रूप ले चुके हैजा का इलाज ढूंढने में जुट गए।

बंगाल उस समय हैजा के कहर से कांप उठा था। अस्पताल हैजा के मरीजों से भरे हुए थे।


🚩1844 में रॉबर्ट कॉख के शोध के अनुसार

 जीवाणु व्यक्ति के सर्कुलेटरी सिस्टम (खून) में जाकर उसे प्रभावित करता है। दरअसल, यहीं पर रॉबर्ट कॉख ने गलती की, उन्होंने कभी सोचा ही नहीं कि यह जीवाणु व्यक्ति के किसी और अंग के ज़रिए शरीर में ज़हर फैला सकता है।


🚩"1953"

शंभूनाथ डे ने अपने शोध से विश्व भर में सनसनी फैला दी।


उनके शोध से पता चला कि वाइब्रियो कॉलेरी खून के रास्ते नहीं बल्कि छोटी आंत में जाकर एक टॉक्सिन (जहरीला पदार्थ) छोड़ता है। इसकी वजह से इंसान के शरीर में खून गाढ़ा होने लगता है और पानी की कमी होने लगती है।


🚩"1953"

शंभूनाथ डे का शोध प्रकाशित होते ही ओरल डिहाइड्रेशन सॉल्यूशन (ORS) को विकसित किया गया। यह सॉल्यूशन  हैजा का रामबाण इलाज साबित हुआ। हिंदुस्तान और अफ्रीका में इस सॉल्यूशन के जरिए लाखों मरीजों को मौत के मुँह से निकाल लिया गया।


🚩"अंतर्राष्ट्रीय पहचान लेकिन राष्ट्रीय उपेक्षा"


विश्व भर में शंभूनाथ डे के शोध का डंका बज चुका था। परंतु उनका दुर्भाग्य था कि वह शोध भारत भूमि पर हुआ था। लाखों-करोड़ों लोगों को जीवनदान देने वाले शंभूनाथ को अपने ही राष्ट्र में सम्मान नहीं मिला।


🚩शंभूनाथ आगे इस जीवाणु पर और शोध करना चाहते थे, लेकिन भारत में संसाधनों की कमी के चलते नहीं कर पाए।


🚩उनका नाम एक से अधिक बार नोबेल पुरस्कार के लिए भी दिया गया। इसके अलावा, उन्हें दुनिया भर में सम्मानों से नवाजा गया, लेकिन भारत में वह एक गुमनाम शख्स की ज़िंदगी जीते रहे।


🚩"शंभूनाथ डे - एक भूला बिसरा नायक"


शंभूनाथ की रिसर्च ने  ब्लू डेथ के आगे से "डेथ" (मृत्यु) शब्द को हटा दिया। करोड़ों लोगों की जान बच गई। इतनी बड़ी उपलब्धि के पश्चात भी वह "राष्ट्रीय नायक" ना बन सके। न किसी सम्मान से नवाजे गए, न सरकार ने सुध ली।


यही नहीं, करोड़ों लोगों की ज़िंदगी बचाने वाले इस राष्ट्रनायक के विषय में हमें पढ़ाया तक नहीं गया।


"हमें अपने असली नायकों को पहचानना होगा। उन्हें सम्मान देना होगा।"


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