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Friday, December 25, 2020

25 दिसंबर को भारतवासी खुश भी दिखे और नाराज भी दिखे...

25 दिसंबर 2020


अंग्रेजों ने भारत में आकर बड़ी चालाकी से हिन्दू धर्म को मिटाने के लिए हिन्दू संस्कृति को हटाकर अपनी पश्चिमी संस्कृति थोपनी चाही, गत वर्षों तक इसका प्रभाव जनमानस पर देखने को मिला, लेकिन आज देश की जनता जागरूक होने लगी है, धीरे-धीरे जनता पश्चिमी संस्कृति को भूल रही है और भारत की दिव्य संस्कृति की तरफ लौट रही है ।




 यूरोप आदि देशों में पहले 25 दिसंबर को सूर्यपूजा होती थी लेकिन सूर्यपूजा को खत्म करने के लिए और ईसाईयत का बढ़ावा देने के लिए क्रिसमस- डे शुरू किया लेकिन भारत में क्रिसमस की जगह देश-विदेश में विद्यालयों में, गांवों में, शहरों में, मन्दिरों आदि जगह-जगह पर तुलसी पूजन दिवस मनाया गया ।

आपको बता दें कि केवल भारत में ही नहीं दुबई, अमेरिका आदि में भी तुलसी पूजन दिवस मनाया गया, सिर्फ हिन्दू ही नहीं बल्कि मुस्लिम, ईसाई, फारसी लोगों ने भी 25 दिसंबर को तुलसी पूजन दिवस मनाया । 

बाता दें कि भारत की जनता ने सोशल मीडिया पर नाराजगी भी जाहिर किया । उनका कहना था कि नेता, एक्टर आदि ने हमारी भारतीय संस्कृति के त्यौहार तुलसी पूजन दिवस और गीता जयंती की बधाई नहीं दी जबकि पाश्चात्य संस्कृति का त्यौहार क्रिसमस पर बधाई दी, जनता लिख रही थी कि यही लोग भारतीय संस्कृति को खत्म करते जा रहे हैं।

बता दें कि तुलसी पूजन केवल जमीनी स्तर पर ही नहीं बल्कि ट्वीटर, फेसबुक, यूट्यूब आदि सोशल साइट्स पर भी तुलसी पूजन दिवस की धूम मची है ।

गौरतलब है कि 2014 से 25 दिसंबर को तुलसी पूजन हिंदू संत आसाराम बापू ने शुरू करवाया था और उनके करोड़ो अनुयायियों द्वारा जगह-जगह पर मनाना प्रारंभ किया गया । उसके बाद तो 2015 से इस अभियान ने विश्वव्यापी रूप धारण कर लिया और अब 2018 में तो देश-विदेश में अनेक जगहों पर हिन्दू मुस्लिम और अन्य धर्मों की जनता भी उत्साहित होकर इस दिन को एक त्यौहार के रूप में मना रही है ।

संत आसारामजी आश्रम द्वारा बताया गया कि उनके करोड़ों अनुयायियों द्वारा विश्वभर में विद्यालयों और जाहिर जगहों पर एवं घर-घर तुलसी पूजन त्यौहार मनाया जा रहा है ।

नीचे दी गई लिंक पर आप देख सकते हैं कि किस प्रकार देश-विदेश के अनगिनत लोग तुलसी पूजन द्वारा लाभान्वित हो रहे हैं ।

ट्वीटर, फेसबुक आदि सोशल साइट्स पर तुलसी पूजन दिवस निमित्त देशभर के स्कूल, कॉलेज, गांवों, शहरों में हुए तुलसी पूजन तथा यात्राओं के साथ हुए तुलसी वितरण के फोटोज़ अपलोड हुए हैं ।

मंगलवार को ट्वीटर पर ट्रेंड करता हैशटैग- #तुलसी_पूजन_दिवस दिखाई दिया।

आम जनता के साथ राष्ट्रवादी नेताओं, पत्रकार आदि ने भी ट्वीट करके इस दिन तुलसी पूजन करने का समर्थन किया है ।

 आपको बता दें कि बापू आसारामजी के अनुयायियों के साथ-साथ अनेक हिन्दू संगठन और देश-विदेश के लोग भी मना रहे थे तुलसी पूजन का त्यौहार!!

आपको बता दें कि डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी, स्वर्गीय श्री अशोक सिंघल जी और सुदर्शन न्यूज के सुरेश चव्हाणके और भी कई बड़ी हस्तियां आसारामजी बापू को जेल में मिलकर आये थे और उन्होंने बताया कि बापूजी ने देशहित के अतुलनीय कार्य किये हैं और ईसाई धर्मांतरण पर रोक लगाई है, इसलिए उनको षड़यंत्र के तहत फंसाया गया है।

आज तक देखने में आया है कि बापू आसारामजी के अनुयायियों ने अपने गुरुदेव से प्रेरणा पाकर हमेशा विदेशी अंधानुकरण का विरोध किया है और हिन्दू संस्कृति का समर्थन किया है ।

आज भले बापू आसारामजी अंतर्राष्ट्रीय षड़यंत्र के तहत जेल में हों लेकिन आज भी उनके द्वारा प्रेरित किये गए सेवाकार्यों की सुवास समाज में देखने को मिलती है। जैसे 14 फरवरी को #मातृ_पितृ_पूजन_दिवस, गौ-पूजन, दीपावली पर गरीबों में भंडारा, गीता जयंती निमित्त रैलियां, यात्रायें आदि आदि ।

पर मीडिया का कैमरा कभी उस सच्चाई तक नहीं गया, कभी उन सेवाकार्यों तक नहीं गया जिससे मानवमात्र लाभान्वित हो रहा है ।  अगर आप गौर करेंगे तो मीडिया ने जब भी बापू आशाराम जी के लिए कुछ बोला तो हमेशा समाज में उनकी छवि धूमिल करने का ही प्रयास किया। उनकी क्या हर हिन्दू संत, हर हिन्दू कार्यकर्ता की छवि को धूमिल करने का प्रयास मीडिया द्वारा होता ही आया है ।

मीडिया के इस दोगलेपन के पीछे का राज है कि  मीडिया विदेशी फंड से चलती है । इसलिए ये समाज को वही दिखाती है जो इसे दिखाने के लिए कहा जाता है । इन्हें सत्य से कुछ लेना-देना नहीं, हर न्यूज के दाम फिक्स होते हैं । ऐसी मीडिया पर आप कब तक भरोसा करेंगे ???

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Sunday, January 1, 2017

भारतवासी शहीद गोकुल सिंह के बलिदान दिवस को भूल गए !! पर 1 जनवरी को अंग्रेजों का नया साल याद रखते हैं !!

महाआश्चर्य!

भारतवासी,1 जनवरी को देश की आजादी के लिए शहीद होने वाले अमर वीर गोकुल सिंह को भूल गए..!!!
पर गुलाम बनाने वाले अंगेजों के नववर्ष को याद रखे..!


1669 की क्रान्ति के जननायक, परतंत्र भारत में असहयोग आन्दोलन के जन्मदाता, राष्ट्रधर्म रक्षक वीर गोकुल सिंह जी और उनके सात हजार क्रान्तिकारी साथियों के बलिदान दिवस पर {1जनवरी} उनको शत-शत नमन।


कैसे वीर थे वो अलबेले,कैसी अमर है उनकी कहानी।
सरदार गोकुल सिंह जी की, आओ याद करें कुर्बानी।।
Indians-have-forgotten-Gokul-Singhs-martyrdom-day 


सन् 1666 के समय में इस्लामिक राक्षस औरंगजेब के अत्याचारों से हिन्दू जनता त्राहि-त्राहि कर रही थी। मंदिरों को तोड़ा जा रहा था, हिन्दू स्त्रियों की इज्जत लूटकर उन्हें मुस्लिम बनाया जा रहा था।
औरंगजेब और उसके सैनिक पागल हाथी की तरह हिन्दू जनता को मथते हुए आगे बढ़ते जा रहे थे।

हिंदुओं को दबाने के लिए औरंगजेब ने अब्दुन्नवी नामक एक कट्टर मुसलमान को मथुरा का फौजदार नियुक्त किया। अब्दुन्नवी के सैनिकों का एक दस्ता मथुरा जनपद में चारों ओर लगान वसूली करने निकला। 

सिनसिनी गाँव के सरदार गोकुल सिंह के आह्वान पर किसानों ने लगान देने से इंकार कर दिया, परतन्त्र भारत के इतिहास में वह "पहला असहयोग आन्दोलन" था ।

दिल्ली के सिंहासन के नाक तले समरवीर धर्मपरायण हिन्दू वीर योद्धा गोकुल सिंह और उनकी किसान सेना ने आतताई औरंगजेब को हिंदुत्व की ताकत का एहसास दिलाया। 

मई 1669 में अब्दुन्नवी ने सिहोरा गाँव पर हमला किया। उस समय वीर गोकुल सिंह गाँव में ही थे। भयंकर युद्ध हुआ लेकिन इस्लामी शैतान अब्दुन्नवी और उसकी सेना सिहोरा के वीर हिन्दुओं के सामने टिक ना पाई और सारे इस्लामिक पिशाच गाजर-मूली की तरह काट दिए गए।

गोकुल सिंह की सेना में जाट, राजपूत, गुर्जर, यादव, मेव, मीणा इत्यादि सभी जातियों के हिन्दू थे। इस विजय ने मृतप्राय हिन्दू समाज में नए प्राण फूँक दिए थे।

इसके बाद पाँच माह तक भयंकर युद्ध होते रहे । मुगलों की सभी तैयारियां और चुने हुए सेनापति प्रभावहीन और असफल सिद्ध हुए । क्या सैनिक और क्या सेनापति सभी के ऊपर गोकुलसिंह का वीरता और युद्ध संचालन का आतंक बैठ गया। अंत में सितंबर मास में, बिल्कुल निराश होकर, शफ शिकन खाँ ने गोकुलसिंह के पास संधि-प्रस्ताव भेजा । गोकुल सिंह ने औरंगेजब का प्रस्ताव अस्वीकार करते हुए  कहा कि "औरंगजेब कौन होता है हमें माफ करने वाला, माफी तो उसे हम हिन्दुओं से मांगनी चाहिए उसने अकारण ही हिन्दू धर्म का बहुत अपमान किया है।

अब औरंगजेब 28 नवम्बर 1669 को दिल्ली से चलकर खुद मथुरा आया गोकुल सिंह से लड़ने के लिए। औरंगजेब ने मथुरा में अपनी छावनी बनाई और अपने सेनापति होशयार खाँ को एक मजबूत एवं विशाल सेना के साथ युद्ध के लिए भेजा।

आगरा शहर का फौजदार होशयार खाँ 1669 सितंबर के अंतिम सप्ताह में अपनी-अपनी सेनाओं के साथ आ पहुंचे । यह विशाल सेना चारों ओर से गोकुलसिंह को घेरा लगाते हुए आगे बढ़ने लगी । गोकुलसिंह के विरुद्ध किया गया यह अभियान, उन आक्रमणों से विशाल स्तर का था, जो बड़े-बड़े राज्यों और वहां के राजाओं के विरुद्ध होते आए थे। इस वीर के पास न तो बड़े-बड़े दुर्ग थे, न अरावली की पहाड़ियाँ और न ही महाराष्ट्र जैसा विविधतापूर्ण भौगोलिक प्रदेश । इन अलाभकारी स्थितियों के बावजूद, उन्होंने जिस धैर्य और रण-चातुर्य के साथ, एक शक्तिशाली साम्राज्य की केंद्रीय शक्ति का सामना करके, बराबरी के परिणाम प्राप्त किए, वह सब अभूतपूर्व है।

औरंगजेब की तोपो,धर्नुधरों, हाथियों से सुसज्जित तीन लाख की विशाल सेना और गोकुल सिंह की किसानों की 20000 हजार की सेना में भयंकर युद्ध छिड़ गया। 
चार दिन तक भयंकर युद्ध चलता रहा और गोकुल सिंह की छोटी सी अवैतनिक सेना अपने बेढंगे व घरेलू हथियारों के बल पर ही अत्याधुनिक हथियारों से सुसज्जित और प्रशिक्षित मुगल सेना पर भारी पड़ रही थी। 

भारत के इतिहास में ऐसे युद्ध कम हुए हैं जहाँ कई प्रकार से बाधित और कमजोर पक्ष, इतने शांत निश्चय और अडिग धैर्य के साथ लड़ा हो । हल्दी घाटी के युद्ध का निर्णय कुछ ही घंटों में हो गया था। पानीपत के तीनों युद्ध एक-एक दिन में ही समाप्त हो गए थे, परन्तु वीरवर गोकुलसिंह का युद्ध तीसरे दिन भी चला ।

इस लड़ाई में सिर्फ पुरुषों ने ही नही बल्कि उनकी स्त्रियों ने भी पराक्रम दिखाया। 

चार दिन के युद्ध के बाद जब गोकुल की सेना युद्ध जीतती हुई प्रतीत हो रही थी तभी हसन अली खान के नेतृत्व में एक नई विशाल मुगलिया टुकड़ी आ गई और इस टुकड़ी के आते ही गोकुल की सेना हारने लगी। युद्ध में अपनी सेना को हारता देख हजारों नारियाँ जौहर की पवित्र अग्नि में खाक हो गई।

गोकुल सिंह और उनके ताऊ उदय सिंह को सात हजार साथियों सहित बंदी बनाकर आगरा में औरंगजेब के सामने पेश किया गया। औरंगजेब ने कहा "जान की खैर चाहते हो तो इस्लाम कबूल कर लो और रसूल के बताए रास्ते पर चलो। बोलो क्या इरादा है इस्लाम या मौत?

अधिसंख्य धर्म-परायण हिन्दुओं ने एक सुर में कहा - "औरंगजेब, अगर तेरे खुदा और रसूल मोहम्मद का रास्ता वही है जिस पर तू चल रहा है तो धिक्कार है तुझे,
हमें तेरे रास्ते पर नहीं चलना l"

इतना सुनते ही औरंगजेब के संकेत से गोकुल सिंह की बलशाली भुजा पर जल्लाद का बरछा चला।
गोकुल सिंह ने एक नजर अपने भुजाविहीन रक्तरंजित कंधे पर डाली और फिर बड़े ही घमण्ड के साथ जल्लाद की ओर देखा और कहा दूसरा वार करो। 
दूसरा बरछा चलते ही वहाँ खड़ी जनता आंर्तनाद कर उठी और फिर गोकुल सिंह के शरीर के एक-एक जोड़ काटे गए। गोकुल सिंह का सिर जब कटकर धरती माता की गोद में गिरा तो मथुरा में केशवराय जी का मंदिर भी भरभराकर गिर गया। यही हाल उदय सिंह और बाकि साथियों का भी किया गया। उनके छोटे- छोटे बच्चों को जबरन मुसलमान बना दिया गया ।

*1 जनवरी 1670 ईसवी का दिन था वह।*

ऐसे अप्रतिम वीर का कोई भी इतिहास नही पढ़ाया गया और न ही कहीं कोई सम्मान दिया गया। न ही उनके नाम पर न कोई विश्वविद्यालय है और न कोई केन्द्रीय या राजकीय परियोजना। 

*कितना एहसान फरामोश, कृतघ्न है हिंदू समाज!!*

कैसे वीर हुए इस धरा पर,जिन्होंने धर्म के लिए प्राण न्यौछावर कर दिये पर इस्लाम नही अपनाया।

गोकुलसिंह सिर्फ जाटों के लिए शहीद नहीं हुए थे न उनका राज्य ही किसी ने छीन लिया था, न कोई पेंशन बंद कर दी थी, बल्कि उनके सामने तो अपूर्व शक्तिशाली मुगल-सत्ता, दीनतापूर्वक, सन्धि करने की तमन्ना लेकर गिड़-गिड़ाई थी।

 शर्म आती है हमें कि हम ऐसे अप्रतिम वीर को कागज के ऊपर भी सम्मान नहीं दे सके।

शाही इतिहासकारों ने उनका उल्लेख तक नही किया। केवल जाट पुरूष ही नही बल्कि उनकी वीरांगनायें भी अपनी ऐतिहासिक दृढ़ता और पारंपरिक शौर्य के साथ उन सेनाओं का सामना करती रही।

 दुर्भाग्य की बात है कि भारत की इन वीरांगनाओं और सच्चे सपूतों का कोई उल्लेख शाही टुकड़ों पर पलने वाले तथाकथित इतिहासकारों ने नहीं किया। 

जागो भारतवासियों!!!