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Thursday, April 23, 2020

भारत को आज परशुरामजी की ही जरूरत है

23 अप्रैल 2020

🚩भगवान परशुरामजी का जन्म भृगुश्रेष्ठ महर्षि जमदग्नि द्वारा सम्पन्न पुत्रेष्टि यज्ञ से प्रसन्न देवराज इन्द्र के वरदान स्वरूप पत्नी क्षत्राणी रेणुका के गर्भ से वैशाख शुक्ल तृतीया को हुआ था। वे भगवान विष्णु के छठे अंशावतार थे। पितामह भृगु द्वारा सम्पन्न नामकरण संस्कार के अनन्तर राम, जमदग्नि का पुत्र होने के कारण जामदग्न्य और शिवजी द्वारा प्रदत्त परशु धारण किये रहने के कारण वे परशुरामजी कहलाये।

🚩शक्तिधर परशुरामजी का चरित्र एक ओर जहाँ शक्ति के केन्द्र सत्ताधीशों को त्यागपूर्ण आचरण की शिक्षा देता है वहीं दूसरी ओर वह शोषित पीड़ित क्षुब्ध जनमानस को भी उसकी शक्ति और सामर्थ्य का एहसास दिलाता है। शासकीय दमन के विरूद्ध वह क्रान्ति का शंखनाद है। वह सर्वहारा वर्ग के लिए अपने न्यायोचित अधिकार प्राप्त करने की मूर्तिमंत प्रेरणा है। वह राजशक्ति पर लोकशक्ति का विजयघोष है।

🚩आज स्वतंत्र भारत में सैकड़ों-हजारों सहस्रबाहु देश के कोने-कोने में विविध स्तरों पर सक्रिय हैं। ये लोग कहि साधु-संतों की हत्या करते है या अपमानित करते है या कहीं न कहीं न्याय का आडम्बर करते हुए भोली जनता को छल रहे हैं, कहीं उसका श्रम हड़पकर अबाध विलास में ही राजपद की सार्थकता मान रहे हैं, तो कहीं अपराधी माफिया गिरोह खुलेआम आतंक फैला रहे हैं। तब असुरक्षित जन-सामान्य की रक्षा के लिए आत्म-स्फुरित ऊर्जा से भरपूर व्यक्तियों के निर्माण की बहुत आवश्यकता है। इसकी आदर्श पूर्ति के निमित्त परशुराम जैसे प्रखर व्यक्तित्व विश्व इतिहास में विरले ही हैं।  इस प्रकार परशुरामजी का चरित्र शासक और शासित दोनों स्तरों पर प्रासंगिक है।

🚩शस्त्र शक्ति का विरोध करते हुए अहिंसा का ढोल चाहे कितना ही क्यों न पीटा जाये, उसकी आवाज सदा ढोल के पोलेपन के समान खोखली और सारहीन ही सिद्ध हुई है। उसमें ठोस यथार्थ की सारगर्भिता कभी नहीं आ सकी। सत्य हिंसा और अहिंसा के संतुलन बिंदु पर ही केन्द्रित है। कोरी अहिंसा और विवेकहीन पाश्विक हिंसा, दोनों ही मानवता के लिए समान रूप से घातक हैं। आज जब हमारे साधु-संत और राष्ट्र की सीमाएं असुरक्षित हैं, कभी कारगिल, कभी कश्मीर, कभी बंग्लादेश तो कभी देश के अन्दर नक्सलवादी शक्तियों के कारण हमारी अस्मिता का चीरहरण हो रहा है तब परशुरामजी जैसे वीर और विवेकशील व्यक्तित्व के नेतृत्व की आवश्यकता है।

🚩गत शताब्दी में कोरी अहिंसा की उपासना करने वाले हमारे नेतृत्व के प्रभाव से हम जरुरत के समय सही कदम उठाने में हिचकते रहे हैं। यदि सही और सार्थक प्रयत्न किया जाये तो देश के अन्दर से ही प्रश्न खड़े होने लगते हैं। परिणाम यह है कि हमारे तथाकथित बुद्धिजीवियों और व्यवस्थापकों की धमनियों का लहू इतना सर्द हो गया है कि देश की जवानी को व्यर्थ में ही कटवाकर भी वे आत्मसंतोष और आत्मश्लाघा का ही अनुभव करते हैं। अपने नौनिहालों की कुर्बानी पर वे गर्व अनुभव करते हैं, उनकी वीरता के गीत तो गाते हैं किन्तु उनके हत्यारों से बदला लेने के लिए उनका खून नहीं खौलता। प्रतिशोध की ज्वाला अपनी चमक खो बैठी है । शौर्य के अंगार तथाकथित संयम की राख से ढंके हैं । शत्रु-शक्तियां सफलता के उन्माद में सहस्रबाहु की तरह उन्मादित हैं लेकिन परशुरामजी अनुशासन और संयम के बोझ तले मौन हैं।

🚩राष्ट्रकवि दिनकर ने सन् 1962 ई. में चीनी आक्रमण के समय देश को ‘परशुराम की प्रतीज्ञा’ शीर्षक से ओजस्वी काव्यकृति देकर सही रास्ता चुनने की प्रेरणा दी थी। युग चारण ने अपने दायित्व का सही-सही निर्वाह किया। किन्तु राजसत्ता की कुटिल और अंधी स्वार्थपूर्ण लालसा ने हमारे तत्कालीन नेतृत्व के बहरे कानों तक उसकी पुकार ही नहीं आने दी। पांच दशक बीत गये। इस बीच एक ओर साहित्य में परशुराम के प्रतीकार्थ को लेकर समय पर प्रेरणाप्रद रचनाएं प्रकाश में आती रही और दूसरी ओर सहस्रबाहु की तरह विलासिता में डूबा हमारा नेतृत्व राष्ट्र-विरोधी षड़यंत्रों को देश के भीतर और बाहर दोनों ओर पनपने का अवसर देता रहा । परशुरामजी पर केन्द्रित साहित्यिक रचनाओं के संदेश को व्यावहारिक स्तर पर स्वीकार करके हम साधारण जनजीवन और राष्ट्रीय गौरव की रक्षा कर सकते हैं।

🚩महापुरूष किसी एक देश, एक युग, एक जाति या एक धर्म के नहीं होते। वे तो सम्पूर्ण मानवता की, समस्त विश्व की, समूचे राष्ट्र की विभूति होते हैं । उन्हें किसी भी सीमा में बाँधना ठीक नहीं। दुर्भाग्य से हमारे यहां स्वतंत्रता में महापुरूषों को स्थान, धर्म और जाति की बेड़ियों में जकड़ा गया है। विशेष महापुरूष विशेष वर्ग के द्वारा ही सत्कृत हो रहे हैं। एक समाज विशेष ही विशिष्ट व्यक्तित्व की जयंती मनाता है। अन्य जन उसमें रूचि नहीं दर्शाते, अक्सर ऐसा ही देखा जा रहा है। यह स्थिति दुभाग्यपूर्ण है । महापुरूष चाहे किसी भी देश, जाति, वर्ग, धर्म आदि से संबंधित हो, वह सबके लिए समान रूप से पूज्य है, अनुकरणीय है।

🚩इस संदर्भ में भगवान परशुरामजी जो उपर्युक्त विडंबनापूर्ण स्थिति के चलते केवल ब्राह्मण वर्ग तक सीमित हो गए हैं, समस्त शोषित वर्ग के लिए प्रेरणा स्रोत क्रान्तिदूत के रूप में स्वीकार किये जाने योग्य हैं और सभी शक्तिधरों के लिए संयम के अनुकरणीय आदर्श हैं ।

🚩भा माना -अध्यात्म
रत माना - उसमें रत रहने वाले
"जिस देश के लोग अध्यात्म में रत रहते हैं उसका नाम है भारत।"

🚩भारत की गरिमा उसकी संस्कृति व साधु-संतों से ही रही है सदा । भगवान भी बार-बार जिस धरा पर अवतरित होते आये हैं वो भूमि भारत की भूमि है। किसी भी देश को माँ कहकर संबोधित नहीं किया जाता पर भारत को "भारत माता" कहकर संबोधित किया जाता है क्योंकि यह देश आध्यात्मिक देश है, संतों महापुरुषों का देश है। भौतिकता के साथ-साथ यहाँ आध्यात्मिकता को भी उतना ही महत्व दिया गया है। पर आज के पाश्चात्य कल्चर की ओर बढ़ते कदम इसकी गरिमा को भूलते चले जा रहे हैं । संतों महापुरुषों का महत्व, उनके आध्यात्मिक स्पन्दन भूलते जा रहे हैं।

🚩संत और समाज में खाई खोदने में एक बड़ा वर्ग सक्रीय है। ईसाई मिशनरियां सक्रीय हैं । मीडिया सक्रीय है । विदेशी कम्पनियाँ सक्रीय हैं । विदेशी फण्ड से चलने वाले NGOs सक्रीय हैं । जिहादी सक्रिय हैं।  कई राजनैतिक दल व नेता सक्रीय हैं। क्योंकि इनका उद्देश्य है भारतीय संस्कृति को मिटाकर पश्चिमी सभ्यता लाने का जिससे विदेशी कंपनियों की प्रोडक्ट की बिक्री भारी मात्रा में होगी और धर्मान्तरण भी जोरो शोरो से होगा फिर उनका वोटबैंक बढ़ जायेगा और देश को गुलामी की जंजीरों में जकड़ लेंगे।

🚩इतने सब वर्ग जब एक साथ सक्रीय होंगे तो किसी के भी प्रति गलत धारणाएं समाज के मन में उत्पन्न करना बहुत ही आसान हो जाता है और यही हो रहा है हमारे संत समाज के साथ ।

🚩पिछले कुछ सालों से एक दौर ही चल पड़ा है हिन्दू संतों को लेकर। किसी संत की हत्या कर दी जाती है या किसी संत को झूठे केस में सालों जेल में रखा जाता है फिर विदेशी फण्ड से चलने वाली मीडिया उनको अच्छे से बदनाम करके उनकी छवि समाज के सामने इतनी धूमिल कर देती है कि समाज उन झूठे आरोपों के पीछे की सच्चाई तक पहुँचने का प्रयास ही नहीं करता ।

🚩अब समय है कि समाज को जागना होगा, भारतीय संस्कृति व साधु-संतों के साथ हो रहे अन्याय को समझने के लिए। अगर अब भी हिन्दू मौन दर्शक बनकर देखता रहा तो हिंदुओं का भविष्य खतरे में हैं।

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Wednesday, April 22, 2020

भारत के योग की ताकत : खत्म कर दिया कोरोना वायरस

22 अप्रैल 2020

🚩भारत के ऋषि-मुनियों ने हमें आसन-प्राणायाम दिये लेकिन हम उसकी महत्ता भूल गए, कुछ लोग तो मजाक उड़ाने लगे पर कोरोना वायरस से पूरी दुनिया डरी हुई है और उसका कोई इलाज आज तक बड़े-बड़े वैज्ञानिक और डॉक्टर नही ढूंढ पाए वही भारतीय आसन-प्राणयाम से 5 बार पोजेटिव आया कोरोना वाला व्यक्ति भी ठीक हो गया।

🚩योग का जन्म भारतवर्ष में ही हुआ मगर दुखद यह रहा की आधुनिक कहाने वाले समय में अपनी दौड़ती-भागती जिंदगी से लोगों ने योग को अपनी दिनचर्या से हटा लिया है। जिसका असर लोगों के स्वास्थ्य पर हुआ। मगर आज भारत में ही नहीं विश्व भर में योग का बोलबाला है और निःसन्देह उसका श्रेय भारत के ही साधु-संतों को जाता है, जिन्होंने योग को फिर से पुनर्जीवित किया।

🚩आपको बता दे कि 47 साल के अश्विनी गर्ग मर्चेंट नेवी में थे। अश्विनी 21 मार्च को सिंगापुर से नई दिल्ली एयरपोर्ट उतरे थे। उस दौरान वहां भारी भीड़ थी। उन्हें वहां 12 घंटे इंतजार करना पड़ा। उन्हें तभी संक्रमित होने का अंदेशा हो गया था। वह मेरठ में अपने घर पर ही क्वारंटीन में रहे।  27 तारीख को गले में दर्द और बुखार हुआ। 28 मार्च को टेस्ट कराया गया, अगले दिन उनकी रिपोर्ट पॉजिटिव आई। रिपोर्ट कुल 5 बार पाजिटिव आई, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी।

🚩अश्विनी ने बताया कि जर्मनी में रहने वाले अपने भाई की सलाह पर 9 अप्रैल से योग एवं प्राणायाम शुरू किया। इससे उनके सांस लेने की क्षमता बढ़ने लगी और मानसिक रूप से भी वे खुद को मजबूत महसूस करने लगे। उन्होंने बताया कि अस्पताल में इलाज के दौरान वे प्रतिदिन कम से कम तीन घंटे योग प्राणायाम का अभ्यास करते थे। 12 अप्रैल को भी उनका टेस्ट पॉजिटिव आया, लेकिन ब्लड टेस्ट में सुधार दिखने लगा था। योग शुरू करने के छह दिन बाद 15 अप्रैल को उनका पांचवा टेस्ट निगेटिव आया। उनका दावा है कि दो हफ्ते तक योगाभ्यास करने से रक्त में डब्ल्यूबीसी बढ़ जाता है। मानसिक ताकत भी बढ़ गई। शुक्रवार की रात उन्हें मेरठ मेडिकल कॉलेज से डिस्चार्ज कर दिया गया।

🚩जो लोग आसान-प्रणायाम, सूर्यनमस्कार आदि की महत्ता नही समझ रहे थे, जो लोग मजाक भी उड़ाने लगे थे, जो हमारे ऋषि-मुनियों की बात को कपोल कल्पित समझते थे और वैज्ञानिको को ही सबकुछ समझते थे आज उनके मुंह पर एक तमाचा है की भारत के महापुरुषों ने हमारे लिए कितनी महान खोजे की है और हमे सहज में ही दे दी और आज पूरी दुनिया के वैज्ञानिक, डॉक्टर, बुद्धिजीवी लोग कोरोना का उपचार नही ढूढ पा रहे है वही हमारे ऋषि-मुनियों ने पहले से ऐसी रहन-सहन पद्धति बताई है कि हमारी रोगप्रतिकारक शक्ति इतनी रहेगी कि कोरोना जैसे भयंकर वायरस भी आपका कुछ बिगाड़ नही सकता ।

🚩योग शास्त्रों की परम्परानुसार चौरासी लाख आसन हैं और ये सभी जीव जंतुओं के नाम पर आधारित हैं। इन आसनों के बारे में कोई नहीं जानता इसलिए चौरासी आसनों को ही प्रमुख माना गया है और वर्तमान में बत्तीस आसन ही प्रसिद्ध हैं। आसनों का अभ्यास शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक रूप से स्वास्थ्य लाभ व उपचार के लिए किया जाता है।

🚩योगासन से क्या-क्या लाभ होते हैं?

▪️(1) योगासनों का सबसे बड़ा गुण यह है कि वे सहज साध्य और सर्वसुलभ हैं। योगासन ऐसी व्यायाम पद्धति है जिसमें न तो कुछ विशेष व्यय होता है और न इतनी साधन-सामग्री की आवश्यकता होती है।

▪️(2) योगासन अमीर-गरीब, बूढ़े-जवान, सबल-निर्बल सभी स्त्री-पुरुष कर सकते हैं।

▪️(3) आसनों में जहां मांसपेशियों को तानने, सिकोड़ने और ऐंठने वाली क्रियाएं करनी पड़ती हैं, वहीं दूसरी ओर साथ-साथ तनाव-खिंचाव दूर करनेवाली क्रियाएं भी होती रहती हैं, जिससे शरीर की थकान मिट जाती है और आसनों से व्यय शक्ति वापिस मिल जाती है। शरीर और मन को तरोताजा करने, उनकी खोई हुई शक्ति की पूर्ति कर देने और आध्यात्मिक लाभ की दृष्टि से भी योगासनों का अपना अलग महत्त्व है।

▪️(4) योगासनों से भीतरी ग्रंथियां अपना काम अच्छी तरह कर सकती हैं और युवावस्था बनाए रखने एवं वीर्य रक्षा में सहायक होती है।

▪️(5) योगासनों द्वारा पेट की भली-भांति सुचारु रूप से सफाई होती है और पाचन अंग पुष्ट होते हैं। पाचन-संस्थान में गड़बड़ियां उत्पन्न नहीं होतीं।

▪️(6) योगासन मेरुदण्ड-रीढ़ की हड्डी को लचीला बनाते हैं और व्यय हुई नाड़ी शक्ति की पूर्ति करते हैं।

▪️(7) योगासन पेशियों को शक्ति प्रदान करते हैं। इससे मोटापा घटता है और दुर्बल-पतला व्यक्ति तंदरुस्त होता है।

▪️(8) योगासन स्त्रियों की शरीर रचना के लिए विशेष अनुकूल हैं। वे उनमें सुन्दरता, सम्यक-विकास, सुघड़ता, गति और सौन्दर्य आदि के गुण उत्पन्न करते हैं।

▪️(9) योगासनों से बुद्धि की वृद्धि होती है और धारणा शक्ति को नई स्फूर्ति एवं ताजगी मिलती है। ऊपर उठने वाली प्रवृत्तियां जागृत होती हैं और आत्म-सुधार के प्रयत्न बढ़ जाते हैं।

▪️(10) योगासन स्त्रियों और पुरुषों को संयमी एवं आहार-विहार में मध्यम मार्ग का अनुकरण करने वाला बनाते हैं अत: मन और शरीर को स्थाई तथा सम्पूर्ण स्वास्थ्य, मिलता है।

▪️(11) योगासन श्वास- क्रिया का नियमन करते हैं, हृदय और फेफड़ों को बल देते हैं, रक्त को शुद्ध करते हैं और मन में स्थिरता पैदा कर संकल्प शक्ति को बढ़ाते हैं।

▪️(12) योगासन शारीरिक स्वास्थ्य के लिए वरदान स्वरूप हैं क्योंकि इससे शरीर के समस्त भागों पर प्रभाव पड़ता है और वह अपने कार्य सुचारु रूप से करते हैं।

▪️(13) आसन रोग विकारों को नष्ट करते हैं, रोगों से रक्षा करते हैं, शरीर को निरोग, स्वस्थ एवं बलिष्ठ बनाए रखते हैं।

▪️(14) आसनों से नेत्रों की ज्योति बढ़ती है। आसनों का निरन्तर अभ्यास करने वाले को चश्में की आवश्यकता समाप्त हो जाती है।

▪️(15) योगासन से शरीर के प्रत्येक अंग का व्यायाम होता है, जिससे शरीर पुष्ट, स्वस्थ एवं सुदृढ़ बनता है। आसन शरीर के पांच मुख्यांगों, स्नायु तंत्र, रक्ताभिगमन तंत्र, श्वासोच्छवास तंत्र की क्रियाओं का व्यवस्थित रूप से संचालन करते हैं जिससे शरीर पूर्णत: स्वस्थ बना रहता है और कोई रोग नहीं हो पाता। शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक और आत्मिक सभी क्षेत्रों के विकास में आसनों का अधिकार है। अन्य व्यायाम पद्धतियां केवल बाह्य शरीर को ही प्रभावित करने की क्षमता रखती हैं, जबकि योगसन मानव का चहुँमुखी विकास करते हैं।

🚩आपको भारतीय योगासनों के यहाँ कुछ ही फायदे बताये बल्कि इससे भी कई अधिक फायदें है और प्राणायम के तो ओर अधिक फायदें है अतः इसका आप भी लाभ उठाएं, स्वस्थ्य रहिये ओरो को फायदा बताकर सभी को रोगमुक्त करिये।

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Thursday, April 16, 2020

भारत देश तब्लीगी जमात के एजेंडे से अनजान है, सच जानना बहुत जरूरी है !

16 अप्रैल 2020

*🚩तब्लीग़ी जमात का जन्म मुगलों ने हिंदुओं को जबरदस्ती बनाये मुसलमान को फिर से हिंदू धर्म में घरवापसी को रोकने के लिये हुआ था। घर वापसी में हज़ारों ऐसे मुसलमानों को शुद्ध कर हिंदू बनाया जो किसी काल में भ्रष्ट हो कर इस्लामी हो गए थे। इनमें बहुतेरे ऐसे थे जिनके रीत-व्यवहार हिन्दुओं के से थे। आर्य समाज के घर वापसी का प्रताप को देख कर इस्लामी शुद्धता के केंद्र देवबंद के इलाक़े के ही एक मुल्ला मुहम्मद इलियास कांधलवी ने तब्लीग़ी जमात को शुरू किया। तब्लीग़ी जमात से हिसाब से मुसलमान ठीक रस्ते पर नहीं चल रहे और उन्हें अस्ली इस्लाम को अपनाना चाहिए अतः अब जानना ज़रूरी है कि अस्ली इस्लाम क्या है ?*

*1.जमात के संस्थापक मौलाना को रंज होता था कि दिल्ली के मुसलमान हिंदू रंगत लिए हुए थे*

*🚩प्रसिद्ध विद्वान मौलाना वहीदुद्दीन खान की पुस्तक ‘तब्लीगी मूवमेंट’ से इसकी प्रामाणिक जानकारी मिलती है। इस जमात के संस्थापक मौलाना इलियास को यह देख भारी रंज होता था कि दिल्ली के आसपास के मुसलमान सदियों बाद भी बहुत चीजों में हिंदू रंगत लिए हुए थे। वे गोमांस नहीं खाते थे, चचेरी बहनों से शादी नहीं करते थे, कुंडल, कड़ा धारण करते थे, चोटी रखते थे। यहां तक कि अपना नाम भी हिंदुओं जैसे रखते थे। हिंदू त्योहार मनाते और कुछ तो कलमा पढ़ना भी नहीं जानते थे। वास्तव में मेवाती मुसलमान अपनी परंपराओं में आधे हिंदू थे। इसी से क्षुब्ध होकर मौलाना इलियास ने मुसलमानों को कथित तौर पर सही राह पर लाना तय किया।*

*2. हिंदू प्रभावित मुसलमानों को इस्लामी प्रशिक्षण देकर उन्हें ‘नया मनुष्य बना दिया गया*

*🚩मौलाना इलियास ने मुसलमानों में हिंदू प्रभाव का कारण मिल-जुल कर रहना समझा था। उनकी समझ से इसका उपाय उन्हें हिंदुओं से अलग करना था, ताकि मुसलमानों को ‘बुरे प्रभाव से मुक्त किया जाए।’ इस प्रक्रिया के बारे में मौलाना वहीदुद्दीन लिखते हैं कि कुछ दिन तक इस्लामी व्यवहार का प्रशिक्षण देकर उन्हें ‘नया मनुष्य बना दिया गया।’ यानी उन्हें अपनी जड़ से उखाड़ कर, दिमागी धुलाई करके, हर चीज में अलग किया गया। खास पोशाक, खान-पान, खास दाढ़ी, बोल-चाल, आदि अपनाना इसके प्रतीक थे।*

*3. तब्लीगी जमात का मिशन है हिंदुओं के साथ मिल-जुल कर रहने वाले मुसलमानों को अलग करना*

*🚩तब्लीगी जमात में प्रशिक्षित मुसलमानों ने वापस जाकर स्थानीय मेवातियों में वही प्रचार किया। इससे मेवात में मस्जिदों की संख्या तेजी से बढ़ी और मेवात पूरी तरह बदल गया। वास्तव में यही जमात का मिशन है हिंदुओं के साथ मिल-जुल कर रहने वाले मुसलमानों को पूरी तरह अलग करना। उन्हें पूर्णत: शरीयत-पाबंद बनाना। अपने पूर्वजों के रीति-रिवाजों से घृणा करना। दूसरे मुसलमानों को भी वही प्रेरणा देना।*

*4. तब्लीगी एजेंडे को महात्मा गांधी द्वारा खिलाफत आंदोलन के सक्रिय समर्थन से ताकत मिली*

*🚩तब्लीगी एजेंडे को महात्मा गांधी द्वारा खिलाफत आंदोलन के सक्रिय समर्थन से ताकत मिली। ऐसा इसके पहले कभी नहीं हुआ। मुमताज अहमद के अनुसार मौलाना इलियास को खिलाफत आंदोलन का बड़ा लाभ मिला। इससे उपजे आवेश का लाभ उठाकर उन्होंने सही इस्लाम और आम मुसलमानों के बीच दूरी पाटने और उन्हें हिंदू समाज से अलग करने में आसानी हुई।*

*5. स्वामी श्रद्धानंद की हत्या के बाद ही तब्लीगी जमात पहली प्रमुखता से समाचारों में आई*

*🚩खिलाफत के बाद जमात का काम इतनी तेजी से बढ़ा कि जमाते उलेमा ने 1926 में बैठक कर तब्लीग को स्वतंत्र रूप में चलाने का फैसला किया। इस तरह तब्लीगी जमात बनी। मौलाना वहीदुद्दीन के अनुसार, ‘‘आर्य समाज के शुद्धि प्रयासों से नई समस्याएं पैदा हुईं, जो मुसलमानों को अपने पुराने धर्म में वापस ला रहा था।’’ यही स्वामी श्रद्धानंद पर जमात के कोप के कारण का भी संकेत है। स्वामी श्रद्धानंद की हत्या के बाद ही तब्लीगी जमात पहली बार प्रमुखता से (1927) समाचारों में आई।*

*6. निजामुद्दीन मरकज: मलेशिया, इंडोनेशिया आदि देशों के कई मौलाना मिले*

*🚩इलियास के बाद उनके बेटे मुहम्मद यूसुफ ने पूरे भारत और विदेश यात्राएं कीं। इसके असर से अरब और अन्य देशों से भी तब्लीगी मुसलमान निजामुद्दीन आने लगे। इस पर हैरानी नहीं कि हाल में उसके मरकज यानी मुख्यालय से मलेशिया, इंडोनेशिया आदि देशों के कई मौलाना मिले।*

*7.मौलाना यूसुफ ने कहा था- इस्लाम की सामूहिकता सर्वोच्च रहनी चाहिए*

*🚩मौलाना यूसुफ ने अपनी मृत्यु से तीन दिन पहले रावलपिंडी में (1965) में कहा था, ‘उम्मत की स्थापना अपने परिवार, दल, राष्ट्र, देश, भाषा, आदि की महान कुर्बानियां देकर ही हुई थी। याद रखो, ‘मेरा देश’, ‘मेरा क्षेत्र’, ‘मेरे लोग’, आदि चीजें एकता तोड़ने की ओर जाती हैं। इन सबको अल्लाह सबसे ज्यादा नामंजूर करता है। राष्ट्र और अन्य समूहों के ऊपर इस्लाम की सामूहिकता सर्वोच्च रहनी चाहिए।’*

*8. शांतिपूर्ण प्रचार और जिहाद एक ही सिक्के के दो पहलू हैं*

*🚩कुछ लोग तब्लीगी जमात के गैर-राजनीतिक रूप और राजनीतिक इस्लाम में अंतर करते हैं, पर यह नहीं परखते कि प्रचार किस चीज का हो रहा है? शांतिपूर्ण प्रचार और जिहाद एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। इसे जगह, समय और काफिरों की तुलनात्मक स्थिति देखकर तय किया जाता है। जमात के काम ‘शांतिपूर्ण’ हैं, मगर यह शांति माकूल वक्त के इंतजार के लिए है, क्योंकि उनके पास उतनी ताकत नहीं है।*

*9. जमात का मॉडल आरंभिक इस्लाम है*

*🚩प्रो. बारबरा मेटकाफ के अनुसार, जमात का मॉडल आरंभिक इस्लाम है। उसके प्रमुख की ‘अमीर’ उपाधि भी इसका संकेत है, जो सैनिक-राजनीतिक कमांडर होता था। उसकी टोलियों की यात्रा कोई शिक्षक-दल नहीं, बल्कि गश्ती दस्ते जैसी होती हैं ताकि किसी इलाके की निगरानी कर उसके हिसाब से रणनीति बनाई जा सके।*

*10. कई मंदिरों पर हमले में 1992-93 में तब्लीगी जमात का नाम उभरा था*

*🚩यह संयोग नहीं कि 1992-93 में भारत, पाक, बांग्लादेश में कई मंदिरों पर हमले में तब्लीगी जमात का नाम उभरा था। न्यूयॉर्क में आतंकी हमले के बाद तो वैश्विक अध्ययनों में भी उसका नाम बार-बार आया। अमेरिका के अलावा मोरक्को, फ्रांस, फिलीपींस, उज्बेकिस्तान और पाक में सरकारी एजेंसियों ने जिहादियों और तब्लीगियों में गहरे संबंध पाए थे।*

*11.तब्लीगी जमात की सफलता में उसकी एकनिष्ठता का बड़ा हाथ*

*🚩तब्लीगी जमात की सफलता में उसकी एकनिष्ठता का बड़ा हाथ है। वे पदों-कुर्सियों के फेर में नहीं रहे। वे हिंदू नेताओं, बौद्धिकों के अज्ञान का भी चुपचाप दोहन करते हैं। इसीलिए उनका अंतरराष्ट्रीय केंद्र राजधानी दिल्ली में एक पुलिस स्टेशन के समीप होने पर भी बेखटके चलता रहा।*

*12. हमारी पार्टियों ने ‘राष्ट्रवादी मुसलमान’ कह कर उन्हें महिमामंडित किया*

*🚩वस्तुत: हमारी पार्टियों ने ‘राष्ट्रवादी मुसलमान’ कह कर जिन्हें महिमामंडित किया, वे अधिकांश पक्के इस्लामी थे- मौलाना मौदूदी, मशरिकी, इलियास, अब्दुल बारी आदि। उनके द्वारा मुस्लिम लीग के विरोध के पीछे ताकत बढ़ाकर पूरे भारत पर कब्जे की मंशा थी। इसी को कांग्रेसियों ने देशभक्ति कहा। वही परंपरा भाजप ने भी अपना ली। इस प्रकार, हमारे दल विविध इस्लामी नेताओं, संस्थानों, संगठनों आदि को सम्मान, अनुदान, संरक्षण तो देते रहते हैं, पर उनके काम का आकलन कभी नहीं करते। फलत: दोहरी नैतिकता और छद्म के उपयोग से पूरा देश गाफिल रहता है। इसीलिए भारत में तब्लीगी जमात का काम अतिरिक्त सुविधा से चलता रहता है।*
*स्रोत :*

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Monday, April 24, 2017

पाकिस्तान सुप्रीम कोर्ट का आदेश भव्य राम मंदिर बनाओ , भारत की कोर्ट कब देगी आदेश?

🚩पाकिस्तान सुप्रीम कोर्ट का आदेश भव्य राम मंदिर बनाओ , भारत की कोर्ट कब देगी आदेश?

🚩पाकिस्तान की #सुप्रीम_कोर्ट ने हुक्म दिया है कि राम मंदिर को फिर से पूरी भव्यता के साथ तामीर किया जाये। इस आदेश से पूरे मुल्क के लोग चौंक गये हैं। 
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🚩रिपोर्ट के मुताबिक #पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने खैबर पख़्तूनख़्वा सरकार को आदेश दिया है कि वह करक जिले के टेरी गाँव में 1997 में तोड़ा गया राम मंदिर फिर से बनवाए। 

🚩 #मीडिया की खबरों में कहा गया है कि हिंदू संत परमहंस जी महाराज की समाधि पर बनाए गए मंदिर को कुछ कट्टरपंथियों ने 1997 में तोड़ दिया और वहां किसी तरह का मंदिर नहीं बनने दिया। पाकिस्तान #सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला सांसद और पाकिस्तानी हिंदू परिषद के संरक्षक #रमेश कुमार वंकवानी की अर्जी पर सुनवाई के बाद दिया।

🚩मुस्लिम बहुल देश पाकिस्तान में तो 20 साल पहले ही तोड़ा हुआ राम मंदिर बनने के लिए पाकिस्तानी सुप्रीम कोर्ट ने भव्य राम मंदिर बनाने का आदेश दे दिया लेकिन #हिंदुओं का बाहुल्य देश #हिन्दुस्तान में #आक्रमणकारी #मुगलों द्वारा तोड़ा गया राम मंदिर बनने के लिये अभी तक निर्णय नही ले पा रही है???

🚩क्या सुप्रीम कोर्ट पर भी कोई दबाव है???
जबकि अभी तो कई #मुस्लिम समुदाय के लोग भी राम मंदिर बनाने के पक्ष में आगे आये हैं।

🚩छह दिसंबर 1992 को #अयोध्या के विवादित ढाँचे को गिराने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने लाल कृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी समेत #बीजेपी के कई बड़े नेताओं पर आपराधिक साजिश का केस चलाने का आदेश दिया है। लेकिन जब वहाँ पर मंदिर तोड़ा गया था तब उनके ऊपर क्यों केस नही चलाया ??? 

🚩तीन दिन पहले अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए #मुस्लिम कारसेवक मंच के सदस्य पहुंचे। इतना ही नही मंदिर के निर्माण के लिए ट्रक में ईंट भरकर भी साथ लाए । मुस्लिम #कारसेवकों के अध्यक्ष आजम खाँ ने कहा कि अब देश का मुस्लिम जाग चुका है और किसी के बहकावे में नहीं आएगा। पुलिस को खबर मिलते ही प्रशासन एक्शन में आ गया और कारसेवकों को जाने से रोक लिया आखिर क्यों?

🚩 #हिंदू समाज पार्टी के अध्यक्ष कमलेश तिवारी  कल अयोध्या जा रहे थे तो उनको पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया उन्होंने कहा कि भाजपा राम मंदिर को बस मुद्दा बनाए रखना चाहती है। उसे मंदिर से कोई लेना देना नहीं है।  
🚩डॉ. सुब्रमण्यम #स्वामीजी ने कहा है "कि इस्लाम में मस्जिद सिर्फ नमाज पढ़ने की जगह माना गया है। इससे कोई आस्था नहीं जुड़ी है।" पाकिस्तान, #तुर्की, कतर, #सऊदी अरब आदि देशों में विकास कार्यों के लिए मस्जिदों को हटाने या ढहाने के अनेक उदाहरण मिलते हैं।  

🚩अदालत के आदेश पर "भारतीय #पुरातत्व सर्वेक्षण" विभाग ने उत्खनन करके निष्कर्ष दिया है कि वहां एक बहुत बड़ा मंदिर परिसर था। इस तथ्य को उच्च न्यायालय ने भी स्वीकार किया है और उसके मुख्य गुम्बद के स्थान को भगवान राम की जगह बताया है। 

🚩उच्च न्यायालय के एक #मुसलमान जज ने भी फैसले में कहा है-"कि वह जगह बाबर की संपत्ति रही है, यह सिद्ध कभी नहीं हो सकता"। अतएव मुसलमानों का दावा कमजोर है।
   
🚩मुस्लिम महिला #फाउंडेशन अध्यक्ष नाजनीन अंसारी और भारतीय आवाम पार्टी की नजमा परवीन ने भी कुछ समय पहले मोदी के संसदीय कार्यालय में पहुंचकर अयोध्या में #श्रीराम मंदिर निर्माण कराने की अपील की है। इसके लिए उन्होंने बकायदा मोदी को पत्र लिखा है। #फाउंडेशन के प्रेस नोट में कहा गया है कि #राममंदिर के निर्माण से #हिंदू-मुस्लिम एकता और भाईचारा बढ़ेगा और लोगों में नफरत खत्‍म होगी। 

🚩जगद्गुरु श्री रामभद्राचार्यजी महाराज ने कुछ समय पूर्व संघ प्रमुख से कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र #मोदी दूसरों के दिन तो अच्छे ला रहे हैं पर हम #साधु-संतों के अच्छे दिन कब आएंगे ?

🚩कहा कि अयोध्या में राम मंदिर नहीं बना तो मोदी भूतपूर्व #प्रधानमंत्री हो जायेंगे। 

🚩श्रीराम #जन्मभूमि मंदिर निर्माण समिति के अध्यक्ष नृत्यगोपालदासजी ने कहा कि हम बुजुर्ग हो गए हैं हम सभी का एक ही सपना है कि #अयोध्या में #श्रीराम #मंदिर बन जाए। सिंघल तो इस सपने को देखते-देखते ही चले गए ।

🚩हिंदुओं ने इस लिए भाजपा सरकार को वोट दिया था कि हिन्दू संस्कृति की धरोहर की रक्षा हो और #हिन्दू #संस्कृति के आधार स्तंभ #साधु-संतो की भी रक्षा हो ।

🚩सरकार को निर्दोष #संतों को रिहा कर देना चाहिए और राम मन्दिर का कार्य शीघ्र चालू कर देना चाहिये यही भारत की जनता की मांग है ।

🚩अब देखते है केंद्र सरकार जनता की आवाज कितनी जल्दी सुनती है।

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