Saturday, June 3, 2023

संत कबीर जयंती की हार्दिक शुभकामनाएं...

3 June , 2023

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🚩संत कबीर 15वीं सदी के भारतीय रहस्यवादी कवि और संत थे।


🚩 वे हिन्दी साहित्य के भक्तिकालीन युग में परमेश्वर की भक्ति के लिए एक महान प्रवर्तक के रूप में उभरे।


🚩महापुरूष कबीर जी सनातन धर्म के महान संत थे,उनके गुरु संत रामानन्द जी थे।


🚩कबीर जी को ईश्वर के प्रति अटूट श्रद्धा थी,यह उनकी साखियों में भगवान श्रीराम और श्रीकृष्ण के नाम से सिद्ध होता है ।


🚩संत कबीर जी ने अपना जीवन सनातन हिन्दू धर्म के प्रचार प्रसार में लगा दिया,लेकिन दुष्ट लोगों ने उनपर भी झूठे आरोप लगाए थे और आज भी उनका नाम लेकर हिन्दुओ को हिन्दू धर्म से अलग किया जा रहा है,इसलिए ऐसे लोगों से सावधान रहें।


🚩इनकी रचनाओं ने भक्तिकालीन युग में हिन्दी साहित्य को गहरे स्तर तक प्रभावित किया। उनका लेखन सिक्खों ☬ के आदि ग्रंथ में भी देखने को मिलता है।


🚩संत कबीर दास एक अवतारी महापुरुष और सनातन धर्म की गुरु परम्परा की स्वर्णिम श्रृंखला के एक अनमोल और अद्वितीय कड़ी थे ।उन्होंने संत रामानंदजी से दीक्षा ली थी और वे अपने गुरुजी की आज्ञा अनुसार ही चलते थे ।

...पर आज भी कुछ स्वार्थी लोग अपनी-अपनी दुकान चलाने के लिए सनातनधर्म में प्रकटे महापुरुष को भी अपनी मति गति से तोलकर एक सीमित दायरे में रखना चाहते हैं और उनके नाम का दुरुपयोग करके हिन्दू धर्म पर कुठाराघात कर रहे हैं ।



🚩महापुरूष किसी एक देश, एक युग, एक जाति या एक धर्म के नहीं होते । वे तो समूचे राष्ट्र की ,सम्पूर्ण मानवता की, समस्त विश्व की विभूति होते हैं । उन्हें किसी भी सीमा में बाँधना ठीक नहीं । पर राष्ट्रविरोधी तत्वों के हथकंडे बने स्वार्थी लोग ऐसे महापुरुषों के नाम का दुरुपयोग कर आपस में हमें लड़ाना चाहते हैं ।

ऐसे नराधमों से सावधान रहने की बड़ी आवश्यकता है ।


🚩जितने भी ईश्वरवादी संत हुए हैं , बामसेफियों द्वारा उन्हें एक-एक कर नास्तिक, हिंदुद्रोही अथवा डा. अंबेडकर के विचारों से समानता रखने वाले और बुद्ध के समीप या बौद्ध साबित करने का कुचक्र भी जोर-शोर से चल रहा है । बामसेफियों की प्रचार सामग्रियों, पुस्तकों और भाषणों में डा.अंबेडकर और बुद्ध के साथ इन संतों को भी जोड़ा जाना आम बात हो गई है ।

कबीर दास जी की छवि इन मलीन और कुत्सित चिंतकों द्वारा छल कपट का सहारा लेकर नास्तिक और हिन्दू द्रोही बनाने का प्रयास वृहद् स्तर पर किया जा रहा है ।



🚩रामपाल के द्वारा भी यही कृत्य किया जा रहा है । संत कबीरजी को भगवान श्री राम व कृष्ण का द्रोही बताया जा रहा है और कबीरजी को लेकर भगवान व देवी-देवताओं व ऋषि-मुनियों एवं संत-महापुरुषों के खिलाफ एक अभियान चलाया जा रहा है ।


🚩लेकिन सत्य क्या है यह जानने का प्रयास संत कबीरदास जी की वाणी से ही किया जा सकता है। उनकी चंद साखियां नीचे दी जा रही हैं , जो सिद्ध करती हैं कि वो डा. अंबेडकर के नूतन धर्म , दर्शन , मान्यताओं और नास्तिकता से कोसों दूर थे । साथ में कबीरपंथी विद्वानों की लिखित उस पुस्तक का हवाला भी है जिससे ये साखियां ली गयी हैं। पढ़ें और कबीरजी को जो भी सनातन धर्म से अलग साबित करना चाह रहे हैं, उनको आइना दिखाएं ।


🚩1- कबीर कुत्ता राम का,मोतिया मेरा नाऊं।

गले राम की जेवड़ी, जित खिचै तित जाऊं ।।

तू-तू करे तो बावरों , हुर्र धुत्त करे हट जाऊं।

जो देवे सो खाय लूं , जहां राखै रह जाऊं ।।


अर्थ: कबीर दास कहते हैं , कि मैं तो रामजी का कुत्ता हूं और नाम मेरा मोती है। गले में राम नाम की जंजीर पड़ी हुयी है। मैं उधर ही चला जाता हूं जिधर मेरा राम मुझे ले जाता है। वो दया वश सुख दें तो उन्हीं की करुणा समझ प्रीति में डूब जाता हूं और वो कृपा वश दुख भेजें तो सावधान हो कर उसका भी साक्षी बनकर उसे देखता हूं ।


🚩2- मेरे संगी दोई जण, एक वैष्णों एक राम ।

वो है दाता मुकति का, वो सुमिरावै नाम।।

अर्थ: कबीर जी कहते हैं कि जग में मेरे तो दो ही संगी साथी हैं- एक वैष्णवपुरुष (संत ) और दूसरा राम। राम जहां मुक्तिदाता हैं वहीं वैष्णवों के संग में , संत संगति में नाम स्मरण स्वतः होने लगता है।

यहां भी डा. अंबेडकर और संत कबीर विपरीत ध्रुवों पर खड़े साबित होते हैं।


🚩3- सबै रसायन मैं किया, हरि सा और ना कोई।

तिल इक घट में संचरे,तौ सब तन कंचन होई।

अर्थ: कबीर कहते हैं मैंने सभी उपाय करके देख लिये मगर हरि रस जैसा कोई अन्य रसायन नहीं मिला। यदि यह एक तिल मात्र भी घट में (अन्तः शरीर में ) पहुंच जाये तो संपूर्ण वासनाओं का मैल धुल जाता है, जीवन अत्यंत निर्मल हो जाता है और समय पाकर मनुष्य आत्मसाक्षात्कार को उपलब्ध हो जाता है ।

🚩4-कबीर हरि रस यौं पिया, बाकी रही न थाकि ।

पाका कलस कुंभार का, बहूरि चढ़ी न चाकि ।।

अर्थ : कबीर दास कहते हैं कि श्री हरि के प्रेम रस का प्याला ऐसा छककर पिया है , कि संसारी सुखों और विषय विकारों का अन्य रस पीने की रुचि अब तनिक भी रही नहीं । कुम्हार अपने बनाए हुए पक्के घड़े को दोबारा चाक पर नहीं चढ़ता ,तो मैं फिर अन्यत्र क्यों भटकूं।


🚩5- क्यूं नृप-नारी नींदिये, क्यूं पनिहारिन कौ मान।

मांग संवारै पीय कौ, या नित उठि सुमिरै राम।।

अर्थ : कबीर साहिब कहते हैं कि रानी को यह नीचा स्थान क्यूं दिया गया और पनिहारिन को इतना ऊंचा स्थान क्यूं दिया गया ? इसलिये कि रानी तो अपने राजा को रिझाने के लिये मांग संवारती है, श्रृंगार करती है लेकिन वह पनिहारिन नित्य उठकर अपने राम का सुमिरन करती है।

आशय... जो व्यक्ति भोग-विलास और विषयों की ओर पीठ करके भगवान को ही भजता है , वह ही वास्तव में आदर के योग्य है ।


🚩6-दुखिया भूखा दुख कौं,सुखिया सुख कौं झूरि।

सदा अजंदी राम के, जिनि सुखदुख गेल्हे दूरि।।

अर्थ: कबीर जी कहते हैं , कि दुखिया भी मर रहा है और सुखिया भी- एक बहुत अधिक दुख के कारण तो दूसरा अधिक सुख में विलासी भोगी होकर के । लेकिन रामजन(संत पुरुष) सदा ही आनंद में रहते हैं,क्योंकि वो सुख और दुख दोनों को स्वयं से भिन्न देखते हैं।


🚩7- कबीर का तू चिंतवे, का तेरा च्यंत्या होई ।

अणचंत्या हरि जी करै, जो तोहि च्यंत न होई।।

अर्थ: कबीर साहिब कहते हैं तू क्यों बेकार की चिंता कर रहा है, चिंता करने से होगा क्या ? जिस बात को तूने कभी सोचा ही नहीं उसे अचिंत्य को भी तेरा हरि पूरा करेगा।

आशय...भगवान जब देते हैं,अपनी ओर से अपनी महिमा से,उसका हिसाब नहीं लगा सकता व्यक्ति। वो तो सुमिरन करने वाले जीव को ही शिव स्वरूप बना देते हैं।


🚩8- मैं जाण्यूं पढ़िबो भलो, पढ़िबो से भलो जोग।

राम नाम सूं प्रीति करी, भल भल नीयौ लोग ।।

अर्थ: कबीर साहिब कहते हैं- पहले मैं समझता था कि पोथियों को पढ़ा हुआ बड़ा आदमी है। फिर सोचा कि पढ़ने से भी योग साधना कहीं अच्छी है। लेकिन अब इस निर्णय पर पहुंचा हूं , कि राम नाम से ही सच्ची प्रीति की जाये तो ही उद्धार संभव है।


🚩9- राम बुलावा भेजिया, दिया कबीरा रोय ।

जो सुख साधु संग में, सो बैकुंठ न होय ।।

अर्थ: कबीर कहते हैं , कि यदि भगवान स्वयं भी स्वर्ग या वैकुण्ठ के सुखों हेतु आमंत्रित करेंगे तो भी...मुझे उसमें सार नहीं दिखता...

क्योंकि जिस सुख की अनुभूति साधुओं के सत्संग में होती है वह बैकुंठ में नहीं।


🚩10- वैध मुआ रोगी मुआ, मुआ सकल संसार ।

एक कबीरा ना मुआ, जेहि के राम अधार ।।

अर्थ: कबीर दास कहते हैं कि संसार और उसके सुख दुखादि नाशवान होने के कारण ही उनका रूप-रूपांतर हो जाता है।लेकिन जो राम में आसक्त हैं वो सदा अमर रहते हैं।


🚩11- दया आप हृदय नहीं, ज्ञान कथे वे हद ।

ते नर नरक ही जायेंगे, सुन-सुन साखी शब्द।।

अर्थ: कबीर कहते हैं कि जिनके हृदय में दया का भाव नहीं है और ज्ञान का उपदेश देते हैं, वो चाहे कितनी बातें बना लें लेकिन उनका उद्धार संभव नहीं।


🚩12- जेती देखो आत्म, तेता सालिगराम ।

साधू प्रतषि देव है, नहीं पाहन सूं काम ।।

अर्थ: संत कहते हैं , कि जिसने आत्मज्ञान प्राप्त किया है वही (संत) वास्तविक पूजने योग्य देव हैं । अर्थात प्रत्यक्ष देव तो मेरे लिये सच्चा साधु ही है। पाषाण की मूर्ति पूजने से मेरा क्या भला होने वाला है, वह तो मन को ईश्वर से जोड़ने का जरिया मात्र ही है।


🚩यह भी ध्यान रखना होगा कि धर्म में पाखंड का विरोध करने से कोई नास्तिक नहीं हो जाता है। यदि कबीरजी ने हिंदू धर्म में व्याप्त कुरीतियों की आलोचना की तो गलत नहीं किया। अनेक महापुरुषों ने ऐसा किया है , फिर भी आस्तिक ही रहे।उन्होंने सनातन हिन्दू धर्म नहीं छोड़ा। इसलिये अंबेडकरवादियों का यह कहना कि हिंदू धर्म में व्याप्त कुरीतियों पर प्रहार करने वाला हर व्यक्ति अंबेडकरवादी , नास्त्तिक, नवबौद्ध और हिन्दू द्रोही है हास्यास्पद तर्क है।

यह सत्य है , कि कबीर जी ने धर्म में प्रचलित कुप्रथाओं पर प्रहार किया। लेकिन राम और हरि पर अटूट आस्था भी बनाये रखी तथा नरक और आत्मा पर विश्वास भी व्यक्त किया ।


🚩 रामपाल भी जो भगवान को गालियां देने में कबीरजी के नाम का दुरुपयोग कर रहे है , तो उनको यह पंक्तियां अवश्य पढ़नी चाहिए , कि कबीरदास जी की भगवान में कितनी अटूट आस्था थी।


🚩सभी महापुरुष दिव्य सनातन धर्म में ही अवतरित हुए हैं और होते रहेंगे...और उन्होंने सनातन हिन्दू धर्म का ही प्रचार किया है। उनको कोई सनातन विरोधी बताकर आपको गुमराह करे तो सावधान हो जाइए क्योंकि उनकी मंशा ही है हमारे राष्ट्र को खंड-खंड करना ।।


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3 comments:

  1. Bilkul sahi baat hai

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  2. Koti koti naman Mahapurush ko.

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  3. धर्म की गुरु परम्परा की स्वर्णिम श्रृंखला के एक अनमोल और अद्वितीय कड़ी थे

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