11 सितंबर 2020
भारत के साधु-संतों ने देश-विदेश में जो सनातन धर्म की धजा फहराया वे अतुलित है इन संतों ने भारतीय हिंदू संस्कृति को मिटने नही देने में बड़ा योगदान रहा है, साधु-संत राष्ट्र व धर्म की रक्षा के लिए प्राणों की भी परवाह नही करते है लेकिन सनातन धर्म विरोधी ताकते उनके खिलाफ अनेक षड्यंत्र करते रहते हैं।
स्वामी विवेकानंदजी ने अमरीका के शिकागो में 11 सितंबर 1893 को आयोजित विश्व धर्म परिषद में जो भाषण दिया था उसकी प्रतिध्वनि युगों-युगों तक सुनाई देती रहेगी।
हिन्दू संस्कृति का परचम लहराने वर्ल्ड रिलीजियस पार्लियामेंट (विश्व धर्मपरिषद) शिकागो में भारत का नेतृत्व 11 सितम्बर 1893 में स्वामी विवेकानंदजी ने किया था और ठीक उसके 100 साल बाद 4 सितम्बर 1993 में हिंदू संत आशारामजी बापू ने किया था ।
लेकिन दुर्भाग्य है कि जिन संतों को "भारत रत्न" की उपाधि से अलंकृत करना चाहिए उन्हें ईसाई मिशनरियों के इशारे पर राजनीति के तहत झूठे आरोपों द्वारा जेल में भेजा जाता है और विदेशी फण्ड से चलने वाली भारतीय मीडिया द्वारा उन्हें बदनाम कराया जाता है।
स्वामी विवेकानंद ने जब हिंदुओं की घरवासपी शुरू किया और पादरियों का विरोध करने लगे तब ईसाई मिशनरियों की कठ पुतली बने वीरचंद गांधी द्वारा अखबारों में उनके लिए गन्दा-गंदा लिखा गया । स्वामी विवेकानंद जी पर स्त्री लंपट, चरित्रहीन, विलासी युवान इस तरह के अनेक आरोप लगाए गए उनके हयाती काल में उन्हें इतना परेशान किया गया, उनका इतना कुप्रचार किया गया कि उनके गुरूजी की समाधि के लिये एक गज जमीन तक उन्हें नहीं मिली थी । पर अब पूरी दुनिया स्वामी विवेकानंद जी व उनके गुरूजी श्री रामकृष्ण परमहंस का जय-जयकार करती है ।
जब स्वामी विवेकानंद जी धरती से चले गए, अर्थात् इतिहास के पन्नों पर जब उनकी महिमा आयी तब लोग उनको इतना आदर - सम्मान देते हैं पर उनकी हयातीकाल में उनके साथ दुष्टों अनेक षडयंत्र किये।
क्या हम भी ऐसा व्यवहार हयात संतों के साथ तो नहीं कर रहे..??
बता दें कि आज मल्टी नेशनल कंपनियों को भारी घाटा होने के कारण ही आशारामजी बापू षड़यंत्र के तहत फंसाये गए हैं । क्योंकि उनके 8 करोड़ भक्त बीड़ी, सिगरेट, दारू, चाय, कॉफी, सॉफ्ट कोल्ड्रिंक आदि नही पीते हैं । वेलेंटाइन डे आदि नहीं मनाते जिससे विदेशी कंपनियों को अरबो-खबरों का घाटा हो रहा था और उन्होंने जो हिन्दू ईसाई बन गए थे उन लाखों हिन्दुओं की घर वापसी कराई, सनातन धर्म की महिमा सुनाई, इसलिए ईसाई मिशनरियों ने और विदेशी कंपनियों ने मिलकर मीडिया में बदमाम करवाया और राजनीति से मिलकर झूठे केस में फंसाया।
फकीरी स्वभाव के संत आशारामजी बापू सात वर्ष से कष्टदायी जेल में हैं । इसके बावजूद उन्होंने समता का साथ नहीं छोड़ा है । 8-10 करोड़ साधकों का बल होने के बाद भी कभी उसका दुरुपयोग नहीं किया । हमेशा शांति का संदेश दे के शासन-प्रशासन को सहयोग दिया । जेल में रहकर भी हमेशा अपने भक्तों को समता, धीरज और अहिंसा का संदेश भेजते रहे ।जहर उगलनेवाले टीवी चैनलों ने कभी इस ओर ध्यान नहीं दिया ।बापू नहीं चाहते कि उनके भक्त उनके लिए कष्ट सहें, कानून को हाथ में लेकर कोई भी गलत कदम उठायें , देश की संपत्ति का नुकसान पहुंचे। वे हमेशा कहते रहते हैं : ‘‘सबका मंगल, सबका भला हो ।’’ वे स्वयं कष्ट सहकर मुस्कराते हैं और अपने साधकों को कहते हैं :*
"मुस्कराकर गम का जहर जिनको पीना आ गया ।
यह हकीकत है कि जहाँ में उनको जीना आ गया ।।’’
बापू आशारामजी हर परिस्थिति में सम रहने का जो उपदेश देते हैं, वह उनके स्वयं के जीवन में, व्यवहार में प्रत्यक्ष देखने को मिलता है । आज हर वह व्यक्ति पीड़ित है, जिसे अपने देश, धर्म और संस्कृति तथा इनके रक्षक संतों से प्यार है । आज दुःखद बात यह है कि देश के इतने बड़े संत, जिन्होंने विश्व धर्म संसद में स्वामी विवेकानंद के बाद भारत का प्रतिनिधित्व किया और भारतीय संस्कृति की महानता का डंका बजाया तथा पूरे विश्व को प्रेम और भाईचारा सिखाया, उनको सात वर्ष से जेल में रखा गया है । इसे अन्याय की पराकाष्ठा नहीं कहेंगे तो और क्या कहेंगे?
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