Showing posts with label हिंदी. Show all posts
Showing posts with label हिंदी. Show all posts

Sunday, September 13, 2020

हिंदी दुनिया की सबसे ज्यादा बोली जाने वाली एवं सबसे उन्नत भाषा है।

13 सितंबर 2020


संविधान सभा ने 14 सितंबर 1949 को एक मत से यह निर्णय लिया कि हिन्दी ही भारत की राजभाषा होगी। सरकारी काम काज हिंदी भाषा में ही होगा । इसी महत्वपूर्ण निर्णय के महत्व को प्रतिपादित करने तथा हिन्दी को हर क्षेत्र में प्रसारित करने के लिये राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा के अनुरोध पर सन् 1953 से संपूर्ण भारत में 14 सितंबर को प्रतिवर्ष हिन्दी-दिवस के रूप में मनाया जाता है।




अंग्रेजी भाषा के मूल शब्द लगभग 10,000 हैं, जबकि हिन्दी के मूल शब्दों की संख्या 2,50,000 से भी अधिक हैं। संसार की उन्नत भाषाओं में हिंदी सबसे अधिक व्यवस्थित भाषा है।

हिंदी दुनिया की सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। हिंदी दुनिया की सर्वाधिक तीव्रता से प्रसारित हो रही भाषाओं में से एक है। वह सच्चे अर्थों में विश्व भाषा बनने की पूर्ण अधिकारी है। हिंदी का शब्दकोष बहुत विशाल है और एक-एक भाव को व्यक्त करने के लिए सैकड़ों शब्द हैं जो अंग्रेजी भाषा में नहीं है। हिन्दी लिखने के लिये प्रयुक्त देवनागरी लिपि अत्यन्त वैज्ञानिक है। हिन्दी को संस्कृत शब्दसंपदा एवं नवीन शब्द-रचना-सामर्थ्य विरासत में मिली है। लेकिन अभी तक हम इसे संयुक्त राष्ट्र संघ की भाषा नहीं बना पाएं।

आज उस मैकाले की वजह से ही हमने अपनी मानसिक गुलामी बना ली है कि अंग्रेजी के बिना हमारा काम चल नहीं सकता। हमें हिंदी भाषा का महत्व समझकर उपयोग करना चाहिए।

मदन मोहन मालवीयजी ने 1898 में सर एंटोनी मैकडोनेल के सम्मुख हिंदी भाषा की प्रमुखता को बताते हुए, कचहरियों में हिन्दी भाषा को प्रवेश दिलाया।

लोकमान्य तिलकजी ने हिन्दी भाषा को खूब प्रोत्साहित किया। वे कहते थे : ‘‘अंग्रेजी शिक्षा देने के लिए बच्चों को सात-आठ वर्ष तक अंग्रेजी पढ़नी पड़ती है। जीवन के ये आठ वर्ष कम नहीं होते। ऐसी स्थिति विश्व के किसी और देश में नहीं है। ऐसी शिक्षा-प्रणाली किसी भी सभ्य देश में नहीं पायी जाती।’’

जिस प्रकार बूँद-बूँद से घड़ा भरता है, उसी प्रकार समाज में कोई भी बड़ा परिवर्तन लाना हो तो किसी-न-किसीको तो पहला कदम उठाना ही पड़ता है और फिर धीरे-धीरे एक कारवा बन जाता है व उसके पीछे-पीछे पूरा समाज चल पड़ता है।

हमें भी अपनी राष्ट्रभाषा को उसका खोया हुआ सम्मान और गौरव दिलाने के लिए व्यक्तिगत स्तर से पहल चालू करनी चाहिए। एक-एक मति के मेल से ही बहुमति और फिर सर्वजनमति बनती है। हमें अपने दैनिक जीवन में से अंग्रेजी को तिलांजलि देकर विशुद्ध रूप से मातृभाषा अथवा हिन्दी का प्रयोग करना चाहिए।

राष्ट्रीय अभियानों, राष्ट्रीय नीतियों व अंतर्राष्ट्रीय आदान-प्रदान हेतु अंग्रेजी नहीं राष्ट्रभाषा हिन्दी ही साधन बननी चाहिए। जब कमाल पाशा अरब देश में तुर्की भाषा को लागू करने के लिए अधिकारियों की कुछ दिन की मोहलत ठुकराकर रातोंरात परिवर्तन कर सकते हैं तो हमारे लिए क्या यह असम्भव है ?

आज सारे संसार की आशादृष्टि भारत पर टिकी है । हिन्दी की संस्कृति केवल देशीय नहीं सार्वलौकिक है क्योंकि अनेक राष्ट्र ऐसे हैं जिनकी भाषा हिन्दी के उतनी करीब है जितनी भारत के अनेक राज्यों की भी नहीं है। इसलिए हिन्दी की संस्कृति को विश्व को अपना अंशदान करना है।

राष्ट्रभाषा राष्ट्र का गौरव है। इसे अपनाना और इसकी अभिवृद्धि करना हमारा राष्ट्रीय कर्तव्य है। यह राष्ट्र की एकता और अखंडता की नींव है। आओ, इसे सुदृढ़ बनाकर राष्ट्ररूपी भवन की सुरक्षा करें।

स्वभाषा की महत्ता बताते हुए हिन्दू संत आशाराम बापू कहते हैं : ‘‘मैं तो जापानियों को धन्यवाद दूँगा। वे अमेरिका में जाते हैं तो वहाँ भी अपनी मातृभाषा में ही बातें करते हैं। ...और हम भारतवासी ! भारत में रहते हैं फिर भी अपनी हिन्दी, गुजराती, मराठी आदि भाषाओं में अंग्रेजी के शब्द बोलने लगते हैं । आदत जो पड़ गयी है ! आजादी मिले 70 वर्ष से भी अधिक समय हो गया, बाहरी गुलामी की जंजीर तो छूटी लेकिन भीतरी गुलामी, दिमागी गुलामी अभी तक नहीं गयी।’’
(लोक कल्याण सेतु : नवम्बर 2012)

अंग्रेजी भाषा के दुष्परिणाम

लॉर्ड मैकाले ने कहा था : ‘मैं यहाँ (भारत) की शिक्षा-पद्धति में ऐसे कुछ संस्कार डाल जाता हूँ कि आनेवाले वर्षों में भारतवासी अपनी ही संस्कृति से घृणा करेंगे, मंदिर में जाना पसंद नहीं करेंगे, माता-पिता को प्रणाम करने में तौहीन महसूस करेंगे, वे शरीर से तो भारतीय होंगे लेकिन दिलोदिमाग से हमारे ही गुलाम होंगे..!

विदेशी शासन के अनेक दोषों में देश के नौजवानों पर डाला गया विदेशी भाषा के माध्यम का घातक बोझ इतिहास में एक सबसे बड़ा दोष माना जायेगा। इस माध्यम ने राष्ट्र की शक्ति हर ली है, विद्यार्थियों की आयु घटा दी है, उन्हें आम जनता से दूर कर दिया है और शिक्षण को बिना कारण खर्चीला बना दिया है। अगर यह प्रक्रिया अब भी जारी रही तो वह राष्ट्र की आत्मा को नष्ट कर देगी। इसलिए शिक्षित भारतीय जितनी जल्दी विदेशी माध्यम के भयंकर वशीकरण से बाहर निकल जायें उतना ही उनका और जनता का लाभ होगा।

अपनी मातृभाषा की गरिमा को पहचानें। बोलचाल, इंटरनेट, ऑफिस आदि में हिंदी का प्रयोग करें व अपने बच्चों को अंग्रेजी (कन्वेंट स्कूलो) में शिक्षा दिलाकर उनके विकास को अवरुद्ध न करें । उन्हें मातृभाषा (गुरुकुलों) में पढ़ने की स्वतंत्रता देकर उनके चहुमुखी विकास में सहभागी बनें।

Official  Links:👇🏻

🔺 Follow on Telegram: https://t.me/ojasvihindustan





🔺 Pinterest : https://goo.gl/o4z4BJ

Monday, June 1, 2020

राज्य की सभी न्यायालयों में 'हिंदी' का उपयोग होना चाहिए : हरियाणा सरकार

01 जून 2020

🚩भारत की राष्ट्र भाषा हिंदी है और देश मे अधिकतर भारतवासी हिंदी ही समझते है लेकिन फिर भी न्यायालय और सरकारी कार्यालय में हिंदी की जगह अंग्रेजी भाषा का प्रयोग होता है बड़ा आश्चर्य की बात है और वे भी हमे 200 साल गुलाम रखने वालों की भाषा का प्रयोग कर रहे है भारत मे अधिकतर लोगों को अंग्रेजी भाषा नहीं आने के कारण वे न्यायालय की बहस और फैसले भी समझ नही पाते और सरकारी कार्यलय की तरफ से क्या निर्देश है वे भी समझ नही पाते है इसलिए अब समय आ गया है कि हरियाणा सरकार की तरह देशभर की न्यायालय से अंग्रेजी खत्म कर दी जाए और हिंदू का मुख्य रूप से कार्य चल ओर स्थानीय भाषा का थोड़ा बहुत प्रयोग किया जाए।

🚩आपको बता दे कि हरियाणा ने 11 मई, 2020 को एक अधिसूचना जारी कर कहा कि राज्य के सभी न्यायालयों और न्यायाधिकरणों में 'हिंदी' का उपयोग किया जाना चाहिए। राज्य सरकार ने हरियाणा राजभाषा (संशोधन) अधिनियम, 1969 की धारा 3 में संशोधन किया। इस अधिनियम को अब हरियाणा राजभाषा (संशोधन) अधिनियम, 2020 कहा जाता है।

🚩हरियाणा मंत्रिमंडल ने इससे पहले मई के पहले सप्ताह में अधीनस्थ न्यायालयों में हिंदी भाषा की शुरुआत को मंजूरी दी थी। विधानसभा ने फैसले के कार्यान्वयन के लिए एक विधेयक पारित किया था। 78 विधायकों, महाधिवक्ता और सैकड़ों अधिवक्ताओं ने अदालतों में इस्तेमाल के लिए हिंदी भाषा को अधिकृत करने में अपनी रुचि दिखाई थी, ताकि हरियाणा के नागरिक पूरी न्याय‌िक प्रक्रिया को समझ सकें क्योंकि यह उनकी अपनी भाषा में होगा। और ऐसा होने पर वह भी आसानी से न्यायालयों के सामने अपने विचार रख पाएंगे।

🚩संशोधन के महत्वपर्ण हिस्से-

हरियाणा राजभाषा (संशोधन) अधिनियम, 1969 की धारा 3 के बाद, निम्नलिखित अनुभाग शामिल किया जाएगा:

🚩"3-ए- न्यायालयों और न्यायाधिकरणों में हिंदी का उपयोग: - 

(1) हरियाणा में पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के अधीनस्थ सभी सिविल न्यायालय और आपराधिक न्यायालय, सभी राजस्व न्यायालय और रेंट ट्र‌िब्‍यूनल्स या राज्य सरकार द्वारा गठित अन्य न्यायालय या न्यायाधिकरण हिंदी भाषा में काम करेंगे।

(2) राज्य सरकार हरियाणा राजभाषा (संशोधन) अधिनियम, 2020 के प्रारंभ होने के छह महीने के भीतर अपेक्षित बुनियादी ढांचा और कर्मचारियों को प्रशिक्षण प्रदान करेगी।

🚩न्यायिक कार्य में हिंदी का उपयोग करने के पक्ष में हरियाणा सरकार का तर्क यह है कि अधिकांश वादकर्ता अंग्रेजी नहीं समझ सकते हैं और वे न्यायिक कार्यवाही के दौरान मूकदर्शक बने रहते हैं, जो उनके हितों के लिए उचित नहीं है।

🚩आम आदमी अदालत की कार्यवाही सहित दिन-प्रतिदिन के आधिकारिक कार्यों में अपनी भागीदारी चाहता हैं। यह भागीदारी वास्तविक नहीं हो पाता यदि वे दस्तावेजों में प्रयुक्त भाषा से परिचित नहीं होता है। हरियाणा में साक्षरता दर लगभग 80 प्रतिशत है, लेकिन उनमें से अधिकांश अंग्रेजी पढ़ना, बोलना या समझना नहीं जानते हैं। ऐसे में आम आदमी की शासन में भागीदारी की उम्मीद करना हास्यास्पद है। अदालत में एक आवेदन दाखिल करने के लिए, उन्हें मोटी रकम का भुगतान करने के बाद भी वकीलों के चक्‍कर काटने पड़ते हैं।
हिंदी के पक्ष में आम लोगों का तर्क यह है कि अगर हिंदी को कार्यालयों के कामकाज की भाषा बनाया जाता है तो वे अपने ही देश में पराया महसूस नहीं करेंगे।

🚩जिला अदालत, झज्जर (हरियाणा का एक जिला) में एक किसान और वादी रमेश ढाका ने अपना दर्द यूं बयां किया, "मैं टेन प्लस टू पास हूं, लेकिन अंग्रेजी समझ या पढ़ नहीं सकता। सभी समन, आवेदन, वकालतनामा अंग्रेजी में आते हैं जिन्हें मैं पढ़ नहीं पाता। उन्हें समझने के लिए मुझे या तो किसी वकील के पास जाना पड़ता है या गांव के किसी पढ़े-लिखे आदमी के पास। अगर ये हिंदी में होते तो मैं खुद इन्हें पढ़ लेता।"

🚩अगर हिंदी को न्यायालयों की भाषा बना दिया जाए तो इससे आम लोगों को काफी हद तक मदद मिल सकती है। अदालतों में अंग्रेजी भाषा के कारण हरियाणा राज्य में वादकारों कई मुश्‍किलों का सामना करना पड़ता है-

1. वे ‌शिकायतों या अन्य दस्तावेजों में क्या लिखा है, समझ नहीं पाते। उन्हें पूरी तरह से अपने वकीलों पर निर्भर रहना पड़ता है।

2. अदालती कार्यवाही के दौरान, वे यह समझ नहीं पाते कि रिकॉर्ड पर दर्ज सबूत उनके पक्ष में हैं या ख‌िलाफ हैं।

3. आपराधिक कार्यवाह‌ियों में सीआरपीसी की धारा 273 में, जहां अभियुक्त की उपस्थिति में साक्ष्य लिए जाने का प्रावधान है, निरर्थक हो जाता है, जब अभियुक्त यह नहीं समझ पाता कि उसके खिलाफ किस प्रकार के साक्ष्य दर्ज किए गए हैं।

4. अंग्रेजी भाषा न समझ पाने के कारण, वादकार, एक वकील के साथ पूरी तरह से भरोसे के आधार पर डील करने के लिए मजबूर हो जाता है। वो उन वकालतनामों या हलफनामों को पढ़ नहीं पाता, जिन्हें उसे वकील के निर्देशों के अनुसार साइन करना होता है। बार काउंसिल में पास वकीलों के कदाचार के कई मामले लंबित हैं।

5. वादियों के लिए तब और मुश्किल हो जाती है जब वकील कोर्ट रूम  में अंग्रेजी में बहस करते हैं। तब वादियों के पास मूक रहने के अलावा और कोई विकल्प नहीं रहता।

6. फैसले और आदेश की प्रतियां अंग्रेजी में होती हैं, इसलिए वे फैसले या आदेशों के तर्क या कारण को समझने में विफल रहते हैं। इसलिए भी उन्हें अधिवक्ताओं पर निर्भर रहना पड़ता है।

7. भाषा के कारण गवाह को भी परेशान होना पड़ता है, क्योंकि उनमें से अधिकांश अंग्रेजी नहीं जानते हैं।

8. हिंदी के दस्तावेज को रिकॉर्ड में लेने के लिए अंग्रेजी में अनुवाद किया जाता है। यदि सभी न्यायिक कार्यों के लिए हिंदी भाषा को अपनाया जाए तो यह कवायद नहीं करना पड़ेगी।

🚩जब अदालत में भाषाई परिवर्तन की चर्चा ह‌रियाणा के वकीलों से की तो तो अधिकांश ने हिंदी के पक्ष में राय दी और कहाकि उच्च न्यायालय में भी ऐसा होना चाहिए।
रोहतक जिला अदालत के एक वकील रोहताश मलिक ने कहा,
"चाहे जैसी भी दलील या कानूनी तर्क हम दे लें, हमे हाईकोर्ट के वकीलों से केवल इसलिए अलग रखा जाता है कि क्योंकि हम अंग्रेजी में बहस नहीं कर सकते। यह भाषा के आधार पर भेदभाव है और असंवैधानिक है।"

🚩कई ऐसे वकील हैं, जिन्होंने मुकदमेबाजी में लंबा समय दिया है, अंग्रेजी में अपना केस फ्रेम कर लेते हैं, काम करते-करते वो अंग्रेजी के साथ सहज हो चुके हैं।


🚩परेशानी युवा और नए वकीलों को आती है। उन्हें किसी मामले के कानूनी या तकनीकी को समझने से पहले मुकदमे/ कार्यवाही की भाषा को समझना पड़ता है। हालांकि, हरियाणा में अधिकांश लॉ कॉलेज अंग्रेजी माध्यम में एलएलबी की डिग्री प्रदान करते हैं, लेकिन लेक्चर और शिक्षक-छात्रों की बातचीत हिंदी में होती है। वे हिंदी के साथ अधिक सहज महसूस करते हैं। ऐसे कॉलेजों के छात्रों पर पर भी अंग्रेजी का अदृश्य दबाव देखा जा सकता है। यह दबाव हीन भावना को आमंत्रित करता है।

🚩एक और मुद्दा जो लेखक ने हिंदी माध्यम के वकीलों के साथ बात करते हुए पाया, वह उनके जज बनने का सपना होता है।
राजस्‍थान के हनुमानगढ़ के एक लोकल कॉलेज से 2017 में एलएलबी पास करने वाले ये बाते अनिल राणा का कहना है, "हम केवल मुकदमेबाजी करने के लिए एलएलबी करते हैं, हरियाणा न्यायिक सेवा की परीक्षा में बैठने के लिए शायद ही कोई विचार हमारे दिमाग में आता है, क्योंकि यह मुख्य रूप से अंग्रेजी माध्यम के छात्रों के लिए आरक्षित है।"

🚩हरियाणा मुख्य रूप से हिंदी भाषी राज्य है, जिसकी 100% आबादी हिंदी बोलती या समझती है। संयुक्त राज्य अमेरिका के सोलहवें राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने सही ही कहा था कि लोकतंत्र लोगों का है, लोगों के लिए और लोगों से है। लोकतंत्र कोई संस्था नहीं है, बल्कि यह संस्थानों के समूह का सुचारू कामकाज है।

🚩न्यायालय ऐसे संस्थानों में से एक हैं, जो समग्र रूप में किसी भी लोकतंत्र का बहुत ही महत्वपूर्ण और प्रासंगिक हिस्सा है। यह समझना उचित होगा कि अदालतें लोगों के लिए होती हैं और लोग अदालतों के लिए नहीं होते हैं। न तो अदालतें वकीलों के लिए हैं और न ही न्यायाधीशों या मजिस्ट्रेटों के लिए। अदालतें समाज के हित में और जनता के लिए न्याय का माध्यम हैं। वकील और जज न्याय का माध्यम हो सकते हैं न कि खुद न्याय। इसलिए अदालतों के लिए, जनता का हित सर्वोच्च और सर्वोपरि होना चाहिए। 


🚩राष्ट्रपति कोविंद ने भी हाईकोर्ट के फैसलों को उस भाषा में समझने योग्य बनाए जाने की पैरवी की है, जिसे लोग जानते हैं। उन्होंने फैसलों की प्रमाणित अनुवादित प्रतियां जारी करने के लिए व्यवस्था बनाये जाने का भी सुझाव दिया था उन्होंने कहा था कि उच्च न्यायालय अंग्रेजी में निर्णय देते हैं लेकिन हमारे देश में विविध भाषाएं हैं। हो सकता है कि वादी अंग्रेजी भाषा में दिए गए निर्णय को अच्छे से नहीं समझ पाते हों।

🚩राष्ट्रपति ने कहा था कि ऐसी व्यवस्था विकसित किए जाने की जरूरत है जहां न्यायालयों द्वारा स्थानीय या क्षेत्रीय भाषाओं में निर्णयों की प्रमाणित अनुवादित प्रतियां 24 या 36 घण्टे में उपलब्ध कराई जाएं। आगे कहा कि यह महत्वूपर्ण है कि न केवल लोगों को न्याय मिले बल्कि निर्णयों को वादियों के लिए उस भाषा में समझने योग्य बनाया जाना चाहिए ।

🚩जनता की अब यही मांग है कि न्यायालय और सरकार कार्यलय में अंग्रेजी खत्म करके  राष्ट्र भाषा 
हिंदी में कार्य होना चाहिए।

🚩Official Azaad Bharat Links:👇🏻

🔺 Follow on Telegram: https://t.me/azaadbharat





🔺 Pinterest : https://goo.gl/o4z4BJ

Monday, May 4, 2020

हिंदी को खत्म करने के लिए ऐसी साजिश, महाभारत के लिए भी फैलाया झूठ !

04 मई 2020

🚩कोरोना महामारी के चलते लॉकडाउन में लोगों के सामने बेहतरीन सीरियल प्रस्तुत करने की दूरदर्शन की कोशिशों के चलते ‘रामायण’ और ‘महाभारत’ के अलावा कई पुराने पर बेहद लोकप्रिय रहें सीरियलों का पुनर्प्रसारण प्रारंभ हुआ। तथाकथित बुद्धिजीवी भारत में हर चीज को मुगलों, मुसलमानों और उर्दू की देन बताने लग जाते हैं। 

🚩‘रामायण’ और ‘महाभारत’ के फिर से प्रसारण का समाचार सार्वजनिक होते ही इनके निर्माण से जुड़ी कहानियां भी फिर से सामने आने लगीं। ऐसी ही एक कहानी, जो बहुत जोर-शोर से प्रचारित की गई, वो महाभारत से जुड़ी थी। ये प्रचारित किया गया कि महाभारत के संवाद, मशहूर लेखक राही मासूम रजा ने लिखें। पर इस सचाई में एक और सच्चाई जरा दब सी गई, वो ये है कि राही मासूम रजा साहब को पंडित नरेन्द्र शर्मा का भी साथ मिला था। किस्सें इस तरह गढ़ें गए कि इस संदर्भ में नरेन्द्र शर्मा का नाम कोई लेता नहीं है, जबकि इस सीरियल के निर्माण के दौरान जब राही मासूम रजा इसके संवाद लिख रहे थे तो पंडित नरेन्द्र शर्मा उनकी काफी मदद कर रहे थे। यह कहना सही होगा कि महाभारत की पटकथा से लेकर संवाद तक में दोनों लेखकों की भूमिका थी। 

🚩प्रचारित तो यह भी किया गया कि राही मासूम रजा ने ‘भ्राताश्री’, ‘माताश्री’ जैसे शब्द गढ़ें लेकिन ऐसा प्रचारित करने वालें ये भूल गए कि ‘महाभारत’ के पहले ही ‘रामायण’ का प्रसारण हो चुका था और उसमें मेघनाद अपने पिता राक्षसराज रावण को पिताश्री कहकर ही संबोधित करता है। ‘रामायण’ के संवाद तो रामानंद सागर ने लिखे थें। इसलिए इन शब्दों को गढ़ने का श्रेय रजा साहब को देना अनुचित है। इस सीरियल को लिखने के दौरान होता ये था कि रजा साहब और नरेन्द्र शर्मा में लगातार विमर्श होता रहता था और दोनों एक दूसरे की मदद करते थें। यह भी सर्वविदित तथ्य है कि राही मासूम रजा जो भी लिखकर भेजते थे उसको पंडित नरेन्द्र शर्मा देखते थे और उनकी सहमति के बाद ही सीरियल में उसका उपयोग होता था। पंडित नरेन्द्र शर्मा की पुत्री लावण्या शाह के मुताबिक, राही मासूम रजा ने कहा था कि ‘महाभारत की भूल भूलैया भरी गलियों में, मैं, पंडित जी की अंगुली थामे आगे बढ़ता गया’

🚩दरअसल हिंदी फिल्मों से जुड़े एक खास वर्ग के लोग और मार्क्सवादी विचारधारा के अनुयायियों की ये पुरानी तकनीक है जिसके तहत वो फिल्मों की लोकप्रियता का श्रेय उन संवाद लेखकों को देते रहे हैं जो हिन्दी-उर्दू मिश्रित भाषा का प्रयोग करते रहे हैं। ये लोग इसको हिन्दुस्तानी कहकर प्रचारित प्रसारित करते हैं। गानों या संवादों में भी हिंदी शब्दों की बहुलता को लेकर बहुधा उपहास किया जाता रहा लेकिन इतिहास गवाह है कि जब भी हिंदी में संवाद लिखे गए, लोगों ने उसको खूब पसंद किया, जब भी विशुद्ध हिंदी की शब्दावली में गीत लिखे गए तो वो काफी लोकप्रिय हुए। कई गीत हैं जहां हिंदी के शब्दों को लेकर रचना की गई लेकिन ना तो गानेवालों को और ना ही संगीत देनेवालों को कोई दिक्कत हुई। कर्णप्रिय भी हुए और लोकप्रिय भी। यह तो गंभीर और गहन शोध की मांग करता है कि कैसे फिल्म जगत में हिंदी को हिंदी-उर्दू मिश्रित जुबान से विस्थापित करने की कोशिश हुई और हिंदुस्तानी के नाम पर भाषा के साथ खिलवाड़ किया गया।

🚩इतना ही नहीं अगर हम ‘रामायण’ और ‘महाभारत’ के संवाद को देखें तो उसमें भी हिंदी अपनी ठाठ के साथ खिलखिलाती है। जब ये पहली बार दर्शकों के लिए दूरदर्शन पर दिखाए गए तब भी और जब अब एक बार फिर से दूरदर्शन पर दिखाए जा रहे हैं तब भी, बेहद लोकप्रिय हैं। उस दौर के दर्शक अलग थें और जाहिर सी बात है कि तीन दशक के बाद दर्शक बदल गए हैं लेकिन लोकप्रियता में कोई कमी नहीं आई। भाषा को लेकर किसी को कोई दिक्कत नहीं हुई। ना सिर्फ ‘महाभारत’ या ‘रामायण’ बल्कि अगर हम बात करें तो ‘कौन बनेगा करोड़पति’ या ‘क्योंकि सास भी कभी बहू थी’ की भाषा हिंदी ही थी। सभी बेहद लोकप्रिय हुए। इस तरह के सीरियल न केवल लोकप्रिय हुए, बल्कि इन्होंने हिंदी का विकास भी किया, उसको मजबूती दी, उसको विस्तार दिया। सीरियल के माध्यम से लोगों का हिंदी के कई शब्दों से परिचय हुआ, उनका उपयोग बढ़ा और शब्द चलन में आ गए। ‘कौन बनेगा करोड़पति’ ने हिंदी के कई ऐसे शब्द फिर से जीवित कर दिए। ‘पंचकोटि’ जैसे शब्द तो लगभग चलन से गायब ही हो गए थें। ये इस सीरियल की लोकप्रियता ही थी जिसने शब्दों में फिर से जान डाल दी। 

🚩2012 में जोहानिसबर्ग में आयोजित विश्व हिंदी सम्मेलन के उद्घाटन सत्र में मॉरीशस के तत्कालीन कला और संस्कृति मंत्री चुन्नी रामप्रकाश ने कहा था कि ‘हिंदी के प्रचार प्रसार में बॉलीवुड की फिल्में और टीवी पर चलनेवाले सीरियल्स का बहुत बड़ा योगदान है। उन्होंने इस बात को स्वीकार किया कि उनकी जो भी हिंदी है वो सिर्फ हिंदी फिल्मों और टीवी सीरियल्स की बदौलत है।‘ और वो हिंदी बोल रहे थे लेकिन तथाकथित हिंदुस्तानी नहीं। सीरियल और फिल्मों का प्रभाव सिर्फ देश में नहीं बल्कि विदेशों में भी है, चुन्नी रामप्रकाश के वक्तव्य से इसको रेखांकित किया जा सकता है।

🚩वामपंथ के प्रभाव में हिंदी के साथ भी खिलवाड़ शुरू हुआ और भाषा को सेक्युलर बनाने की कोशिश शुरू हो गई। गंगा-जमुनी तहजीब के नाम पर हिंदी में उर्दू को मिलाने की कोशिशें सुनियोजित तरीके से शुरू की गईं। हिंदी को कथित तौर पर सुगम बनाने की कोशिश शुरू हुई। नतीजा यह हुआ कि हिंदी के कई शब्द अपना अर्थ खोने लगें। वो चलन से बाहर होने लगें। फिल्मों के प्रभाव को देखते हुए वहां भी कथित तौर पर हिंदुस्तानी को स्थापित करने की कोशिशें शुरू हुईं। इसके लिए पंडित नरेन्द्र शर्मा जैसे लेखक हाशिए पर धकेले जाने लगें। हिंदी उर्दू मिश्रित संवाद और गीत लिखनेवाले लोगों को प्रमुखता दी जाने लगी। अब यह तो नीति का हिस्सा होता है कि जिनको प्रमुखता देनी हो उसके पक्ष में एक माहौल बनाओ और जिसको गिराना हो उसके विपक्ष में माहौल बनाओ। इसके तहत हिंदी को कठिन बताकर और उर्दू मिश्रित हिंदी को बेहतर बताकर स्थापित किया गया। इस आधारभूत नियम का पालन बॉलीवुड में हुआ। इसका प्रकटीकरण साफ तौर पर महाभारत को लेकर राही मासूम रजा और नरेन्द्र शर्मा वाले प्रकरण में होता है। लेकिन न तो रामायण की भाषा को हिंदुस्तानी किया गया न महाभारत की भाषा को, परिणाम सबके सामने है।

🚩भाषा को दूषित करने के इस खेल में वामपंथियों ने भले ही उर्दू को अपना हथियार बनाया हो लेकिन वो न तो उर्दू के हितैषी हैं और न ही मुसलमानों के। अगर राही मासूम रजा की इतनी ही कद्र या फिक्र होती तो उनको हिंदी में बेहतरीन कृतियां लिखने पर साहित्य अकादमी पुरस्कार मिल जाता। साहित्य अकादमी में तो उन्नीस सौ पचहत्तर के बाद से वामपंथियों का ही बोलबाला रहा। सिर्फ राही मासूम रजा ही क्यों किसी भी मुसलमान लेखक को इन वामपंथियों ने आजतक हिंदी में लिखने के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार नहीं दिया, शानी के ‘काला जल’ को भी नहीं, रजा के 'आधा गांव' को भी इन्होंने इस लायक नहीं समझा। दरअसल ये अपनी विचारधारा को मजबूत बनाने और अपने और अपने राजनीतिक आकाओं के हितों की रक्षा के लिए भाषा, धर्म समाज सबका उपयोग करते रहे हैं। ये विचारधारा समावेशी नहीं है। कई बार ऐसा प्रतीत होता है कि इसका वैचारिक आधार स्वार्थ है और ये राजसत्ता हासिल करने के लिए भाषा, संस्कृति या धर्म का उपयोग करना चाहते हैं। साहित्य और संस्कृति को इस विचारधारा वालों ने राजनीति का औजार बनाकर इन विधाओं का इतना नुकसान किया जिसकी भारपाई निकट भविष्य में तो संभव नहीं है। जरूरत इस बात की है कि भाषाई अस्मिता के साथ खिलवाड़ न किया जाए, भाषा के नियमों के साथ छेड़-छाड़ नहीं की जाए। बॉलीवुड में विचारधारा के नाम पर लंबे समय तक बहुत ही खतरनाक खेल खेला गया, अब भी कई लोग ये खेल खेलना चाहते हैं, खेल भी रहे हैं लेकिन अब बेहद चालाकी से ऐसा करते हैं ताकि पकड़ में न आ सकें लेकिन वामपंथी ये भूल जाते हैं कि ये जनता है और वो सब जानती है। महाभारत के संवादों के अर्धसत्य पर अनंत विजय का लेख (साभार: दैनिक जागरण)

🚩हिंदुस्तानियों को बहुत सावधान रहने की आवश्यकता है ये लोग हमारी पूरी संस्कृति की विकृति करना चाहते है इसलिए अनेक तरीके से साजिशें चलाते है जो हमे पता भी नही चलने देते है पर अब जनता धीरे-धीरे जागरूक हो रही हैं लेकिन अभी और जागरूकता लाना जरूरी हैं।

🚩Official Azaad Bharat Links:👇🏻

🔺 Follow on Telegram: https://t.me/azaadbharat





🔺 Pinterest : https://goo.gl/o4z4BJ

Tuesday, January 10, 2017

राष्ट्र भाषा हिन्दी विश्व में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली बनी भाषा..!!!

राष्ट्र भाषा हिन्दी विश्व में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली बनी भाषा..!!!

भारत में भले अंग्रेजों ने हमारी भारतीय संस्कृति को मिटाने के लिए हमारी राष्ट्र भाषा हिंदी को हटाकर गुलाम बनाने वाली अंग्रेजी भाषा थोपने की कोशिश की थी। लेकिन आज के ताजे आकंड़े देखकर ताजुब हो जायेगा कि हिंदी भाषा दुनिया में सबसे ज्यादा लोगों द्वारा बोली जा रही है ।

दुनिया में हिंदी बोलने वालों की संख्या लगातार बढ़ रही है। 

2015 के आंकड़ों के अनुसार हिंदी दुनिया में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा बन चुकी है।

2005 में दुनिया के 160 देशों में हिंदी बोलने वालों की अनुमानित संख्या 1,10,29,96,447 थी। उस समय चीन की मंदारिन भाषा बोलने वालों की संख्या इससे कुछ अधिक थी। लेकिन 2015 में दुनिया के 206 देशों में करीब 1,30,00,00,000 (एक अरब तीस करोड़) लोग हिंदी बोल रहे हैं और अब हिंदी बोलने वालों की संख्या दुनिया में सबसे ज्यादा हो चुकी है।

मुंबई विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के पूर्व अध्यक्ष डॉ.करुणाशंकर उपाध्याय अपनी पुस्तक "हिंदी का विश्र्व संदर्भ" में सारणीबद्ध आंकड़े देते हुए कहते हैं कि भारत एक उभरती हुई अर्थव्यवस्था है। यहां के पेशेवर युवा दुनिया के सभी देशों में पहुंच रहे हैं और दुनिया भर की बहुराष्ट्रीय कंपनियां भारत में निवेश के लिए आ रही हैं। इसलिए एक तरफ हिंदी भाषी दुनिया भर में फैल रहे हैं, तो दूसरी ओर बहुराष्ट्रीय कंपनियों को अपना व्यवसाय चलाने के लिए अपने कर्मचारियों को हिंदी सिखानी पड़ रही है। तेजी से हिंदी सीखने वाले देशों में चीन सबसे आगे है।

फिलहाल चीन के 20 विश्वविद्यालयों में हिंदी पढ़ाई जा रही है। 2020 तक वहां हिंदी पढ़ाने वाले विश्वविद्यालयों की संख्या 50 तक पहुंच जाने की उम्मीद है। यहां तक कि चीन ने अपने 10 लाख सैनिकों को भी हिंदी सिखा रखी है। 

उपाध्याय के अनुसार अंतरराष्ट्रीय मंच पर बढ़ी भारत की साख के कारण भी दुनिया के लोगों की हिंदी और हिंदुस्तान में रुचि बढ़ी है।

देश में 78 फीसद लोग बोलते हैं हिंदी..!!

-डॉ. करुणाशंकर उपाध्याय ने अपनी पुस्तक में दिए आंकड़ों में डॉ. जयंतीप्रसाद नौटियाल द्वारा 2012 में किए गए शोध अध्ययन के अलावा, 1999 की जनगणना, द वर्ल्ड आल्मेनक एंड बुक ऑफ फैक्ट्स, न्यूज पेपर एंटरप्राइजेज एसोसिएशन अंक, न्यूयार्क और मनोरमा इयर बुक इत्यादि को आधार बनाया है।

- पुस्तक के अनुसार हिंदी के बाद दुनिया में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा चीन की मंदारिन है। लेकिन मंदारिन बोलने वालों की संख्या चीन में ही भारत में हिंदी बोलने वालों की संख्या से काफी कम है।

- चीनी न्यूज एजेंसी सिन्हुआ की एक रिपोर्ट के अनुसार केवल 70 फीसद चीनी ही मंदारिन बोलते हैं। जबकि भारत में हिंदी बोलने वालों की संख्या करीब 78 फीसद है। दुनिया में 64 करोड़ लोगों की मातृभाषा हिंदी है। जबकि 20 करोड़ लोगों की दूसरी भाषा, एवं 44 करोड़ लोगों की तीसरी, चौथी या पांचवीं भाषा हिंदी है।

- भारत के अलावा मॉरीशस, सूरीनाम, फिजी, गयाना, ट्रिनिडाड और टोबैगो आदि देशों में हिंदी बहुप्रयुक्त भाषा है। भारत के बाहर फिजी ऐसा देश है, जहां हिंदी को राजभाषा का दर्जा प्राप्त है।

- हिंदी को वहां की संसद में प्रयुक्त करने की मान्यता प्राप्त है। मॉरीशस में तो बाकायदा "विश्व हिंदी सचिवालय" की स्थापना हुई है, जिसका उद्देश्य ही हिंदी को विश्व स्तर पर प्रतिष्ठित करना है।


आपको बता दें कि शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास ने अपनी सिफारिशों में सरकारी और निजी दोनों संस्थानों में से धीरे-धीरे अंग्रेजी को हटाने और भारतीय भाषाओं को शिक्षा के सभी स्तरों पर शामिल करने पर जोर दिया है। साथ ही आईआईटी, आईआईएम और एनआईटी जैसे अंग्रेजी भाषाओं में पढ़ाई कराने वाले संस्थानों में भी भारतीय भाषाओं में शिक्षा देने की सुविधा देने पर जोर दिया गया है। 
The-worlds-most-spoken-national-language-Hind-language

हिंदी भाषा इसलिये दुनिया में प्रिय बन रही है क्योंकि इस भाषा को देवभाषा संस्कृत से लिया गया है जिसमें मूल शब्दों की संख्या 2,50,000 से भी अधिक है। जबकि अंग्रेजी भाषा के मूल शब्द केवल 10,000 ही हैं ।

हिंदी का शब्दकोष बहुत विशाल है और एक-एक भाव को व्यक्त करने के लिए सैकड़ों शब्द हैं जो अंग्रेजी एवं अन्य भाषाओं में नही हैं। हिंदी भाषा संसार की उन्नत भाषाओं में सबसे अधिक व्यवस्थित भाषा है। 

आज मैकाले की वजह से ही हमने मानसिक गुलामी बना ली है कि अंग्रेजी के बिना हमारा काम चल नहीं सकता । लेकिन आज दुनिया में हिंदी भाषा का महत्व जितना बढ़ रहा है उसको देखकर समझकर हमें भी हिंदी भाषा का उपयोग अवश्य करना चाहिए ।

अपनी मातृभाषा की गरिमा को पहचानें । अपने बच्चों को अंग्रेजी (कन्वेंट स्कूलो) में शिक्षा दिलाकर उनके विकास को अवरुद्ध न करें । उन्हें मातृभाषा(गुरुकुलों) में पढ़ने की स्वतंत्रता देकर उनके चहुँमुखी विकास में सहभागी बनें ।