Friday, December 16, 2016

31 दिसंबर मनाना अर्थात मानसिक एवं सांस्कृतिक धर्मांतरण!!

31 दिसंबर मनाना अर्थात मानसिक एवं सांस्कृतिक धर्मांतरण!!

रावणरूपी पाश्‍चात्य संस्कृति के आक्रमणों को नष्ट कर,चैत्र प्रतिपदा के दिन नव वर्ष का विजयध्वज अपने घरों-मंदिरों पर फहराएं !

celebrating-December-31-means-mental-and-cultural-conversion 

नववर्ष प्रतिपदा (चैत्र-प्रतिपदा) से अधिक 31 दिसंबर की रात्रि को महत्त्व देनेवाले केवल नाम के हिन्दू हैं।

आजकल, 31 दिसंबर की रात्रि को छोटे बालकों से लेकर वृद्धों तक सभी एक-दूसरे को शुभकामना संदेश-पत्र अथवा प्रत्यक्ष मिलकर हैपी न्यू इयर कहते हुए नववर्ष की शुभकामनाएं देते हैं ।

वास्तविक भारतीय संस्कृति के अनुसार चैत्र-प्रतिपदा (गुढीपाडवा) ही हिंदुओं का नववर्ष दिन है । किंतु आज के हिन्दू 31 दिसंबर की रात्रि में नववर्ष दिन मनाकर अपने आपको धन्य मानने लगे हैं ।

 आजकल भारतीय वर्षारंभदिन चैत्रप्रतिपदा पर एक-दूसरे को शुभकामनाएं देने वाले हिंदुओं के दर्शन दुर्लभ हो गए हैं ।

भोगवादी युवापीढ़ी के निश्‍चिंत अभिभावक !

हिंदु धर्म के अनुसार शुभकार्य का आरंभ ब्रह्ममुहूर्त पर उठकर, स्नानादि शुद्धिकर्म के पश्‍चात, स्वच्छ वस्त्र एवं अलंकार धारण कर, धार्मिक विधि-विधान से करना चाहिए । इससे व्यक्ति पर वातावरण की सात्त्विकता के संस्कार पड़ते हैं ।

31 दिसंबर की रात्रि में किया जानेवाला मद्यपान एवं नाच-गाना, भोगवादी वृत्ति का परिचायक है । इससे हमारा मन भोगी बनेगा । इसी प्रकार रात्रि का वातावरण तामसिक होने से हमारे भीतर तमोगुण बढेगा । इन बातों का ज्ञान न होने के कारण अर्थात धर्मशिक्षा न मिलने के कारण ऐसे दुराचारों में रुचि लेने वाली आज की युवा पीढ़ी भोगवादी एवं विलासी बनती जा रही है । इस संबंध में इनके अभिभावक भी आनेवाले संकट से अनभिज्ञ दिखाई देते हैं।

ऋण उठाकर 31 दिसंबर मनानेवाले अंग्रेज बने भारतीय !

प्रतिवर्ष दिसंबर माह आरंभ होने पर, मराठी तथा स्वयं भारतीय संस्कृति का झूठा अभिमान अनुभव करने वाले परिवारों में चर्चा आरंभ होती है, `हमारे बच्चे अंग्रेजी माध्यम में पढते हैं । ‘खिसमस’ कैसे मनाना है, यह उन्हें पाठशाला में पढाते हैं, अत: हमारे घर ‘नाताल’ का त्यौहार मनाना ही पड़ता है, आदि।’ तत्पश्चात वे खिसमस ट्री, सजाने का साहित्य, बच्चों को सांताक्लॉज की टोपी, सफेद दाढी मूंछें, विग, मुखौटा, लाल लंबा कोट, घंटा आदि वस्तुएं ऋण उठाकर भी खरीद कर देते हैं ।  गोवा में एक प्रसिद्ध आस्थापन ने 25 फीट के अनेक खिसमस ट्री प्रत्येक को 1 लाख 50 सहस्र रुपयों में खरीदे हैं । ये सब करने वालों को एक ही बात बतानेकी इच्छा है, कि ऐसा कर हम एक प्रकार से धर्मांतरण ही कर रहे हैं । कोई भी तीज-त्यौहार, व्यक्ति को आध्यात्मिक लाभ हो, इस उद्देश्य से मनाया जाता है ! हिंदू धर्म के हर तीज-त्यौहार से उन्हें मनाने वाले, आचारविचार तथा कृत्यों में कैसे उन्नत होंगे, यही विचार हमारे ऋषि-मुनियों ने किया है । अत: ईश्वरीय चैतन्य, शक्ति एवं आनंद देनेवाले `गुढीपाडवा’ के दिन ही नववर्ष का स्वागत करना शुभ एवं हितकारी है ।

अनैतिक तथा कानूनद्रोही कृत्य कर करते हैं नववर्ष का स्वागत !

वर्तमान में पाश्चात्त्य प्रथाओं के बढते अंधानुकरण से तथा उनके नियंत्रण में जाने से अपने भारत में भी नववर्ष ‘गुढीपाडवा’ की अपेक्षा बड़ी मात्रा में 31 दिसंबर की रात 12 बजे मनाने की कुप्रथा बढ़ने लगी है । वास्तव में रात के 12 बजे ना रात समाप्त होती है, ना दिन का आरंभ होता है । अत: नववर्ष भी कैसे आरंभ होगा ? इस समय केवल अंधेरा एवं रज-तम का राज होता है । इस रात को युवकों का मदिरापान, नशीले पदार्थों का सेवन करने की मात्रा में बढ़ोतरी हुई है । युवक-युवतियों का स्वैराचारी आचरण बढ़ा है । तथा मदिरापान कर तेज सवारी चलाने से दुर्घटनाओं में बढ़ोतरी हुई है । कुछ स्थानों पर भार नियमन रहते हुए बिजली की झांकी सजाई जाती है, रातभर बड़ी आवाज में पटाखे जलाकर प्रदूषण बढ़ाया जाता है, तथा कर्णकर्कश ध्वनिवर्धक लगाकर उनके ताल पर अश्लील पद्धति से हाथ-पांव हिलाकर नाच किया जाता है, गंदी गालियां दी जाती हैं तथा लडकियों को छेड़ने की घटना बढ़कर कानून एवं सुव्यवस्था के संदर्भ में गंभीर समस्या उत्पन्न होती है । नववर्ष के अवसर पर आरंभ हुई ये घटनाएं सालभर में बढ़ती ही रहती हैं ! इस खिस्ती नएवर्ष ने युवा पीढ़ी को विलासवाद तथा भोगवाद की खाई में धकेल दिया है ।


कहाँ हर त्यौहार में सात्त्विक तथा ताजा चीजों को ही प्रसाद में उपयोग करने वाले हिन्दू आज किस दिशा की ओर बढ़ रहे हैं..???


31 दिसंबर के पूर्व आता है नाताल । पूर्व में केवल 31 दिसंबर को मौज-मस्ती करनेवाले अब उनकी चैनशौक का प्रारंभ नाताल से ही आरंभ करते हैं । नाताल के दिन सही महत्त्व प्लमकेक का ही होता है ! बहुत सारा सूखामेवा वाईनमें (मदिरामें ) डुबोकर उसको पूरी तरह से सनने पर ही प्लमकेक बनाने की मुख्य प्रक्रिया आरंभ होती है । वर्तमान में मिठाई के पर्याय के रूप में नाताल प्रेमियों में केक तथा पेस्ट्रीज का ही बड़ा आकर्षण उत्पन्न हुआ है । नाताल की कालावधि में सजाए केक, चाकलेट तथा कुकीज की बहुत मांग होती है । प्रचुर मांग के कारण बेस(स्पंजकेक) पांच-सात दिन पूर्व ही बनाया जाता है, जो हम ( भट्टीसे निकला हुआ ताजा) कहकर खाते हैं । अब ऐसी स्थिति में इस त्यौहार को अध्यात्मिक स्तर पर तो छोड़िये क्या शारीरिक स्तर पर भी कुछ लाभ होगा ? कुछ भी नहीं होगा । उलटे हुआ, तो हानि ही होगी, यह बात नाताल प्रेमी तथा 31 दिसंबर प्रेमी ध्यान में रखें !

बच्चों का मानसिक धर्मांतरण करनेवाला ‘सांताक्लॉज’ !

सांताक्लॉज बच्चों को क्यों अच्छा लगता है ? क्योंकि सांताक्लॉज बच्चों हेतु बहुत सारे खिलौने तथा चाकलेट लेकर आता है, बच्चों की ऐसी अनुचित धारणा होती है । खिसमस की रात सबसे अधिक प्रिय भेंटवस्तुओं की मनोकामना करने को कहा जाता है । सांताक्लॉज आकर ‘खिसमस ट्री’ के पास अपने हेतु भेंट रखकर जाता है, ऐसा कहा जाता है । वास्तव में ये भेंटवस्तु कभी भी प्राप्त नहीं होती । बच्चों की खुशी के लिए उनके माता-पिता ही ‘खिसमस ट्री’ के पास भेंटवस्तु रख देते हैं । माता-पिता को सांताक्लॉज तथा भेंटवस्तु का झूठा संबंध बच्चों के सामने लाना चाहिए; किंतु अंग्रेज बने माता-पिता वैसा नहीं करते । वास्तव में येशू का जन्म तथा सांताक्लॉज का आपस में कुछ भी संबंध नहीं, किंतु चौथी शताब्दी से तुर्कस्तान के मीरा नगर स्थित बिशप निकोलस के नाम पर सांताक्लॉज के भेंट की प्रथा आरंभ हुई । वह गरीब तथा अनाथ बच्चों को भेंटवस्तु देता था । तबसे आजतक यह प्रथा आरंभ है । यह सांताक्लॉज भारत के बच्चों का मानसिक धर्मांतरण ही कर रहा है । ऐसे मानसिक दृष्टि से धर्मांतरित  बच्चे आगे जाकर हिंदू धर्म -परम्पराओं का मजाक उड़ाने में स्वयं को धन्य मानते हैं । ये ही भविष्य में बुद्धिवादी तथा निधर्मीवादी बनकर एक प्रकार से राष्ट्र तथा धर्म पर आघात करते रहते हैं ।

राष्ट्र तथा धर्म प्रेमियों, इन कुप्रथाओ को रोकने हेतु आपको ही आगे आने की आवश्यकता है !

31 दिसंबरको होनेवाले अपप्रकारों के कारण अनेक नागरिक, स्त्रियों तथा लड़कियों का घर से बाहर निकलना असंभव हो जाता है । राष्ट्र की युवापीढी उद्ध्वस्त होने के मार्गपर है । इसका महत्त्व जानकर हिंदू जनजागृति समिति इस विषयमें जनजागृति कर पुलिस एवं प्रशासन की सहायता से उपक्रम चला रही है । ये गैर प्रकार रोकने हेतु 31 दिसंबर की रात को महाराष्ट्र के प्रमुख तीर्थक्षेत्र, पर्यटनस्थल, गढ-किलों जैसे ऐतिहासिक तथा सार्वजनिक स्थान पर मदिरापान-धूम्रपान करना तथा प्रीतिभोज पर प्रतिबंध लगाना आवश्यक है । पुलिस की ओर से गस्तीदल नियुक्त करना, अपप्रकार करनेवाले युवकों को नियंत्रण में लेना, तेज सवारी चलानेवालों पर तुरंत कार्यवाही करना, पटाखों से होनेवाले प्रदूषणके विषयमें जनताको जागृत करना, ऐसी कुछ उपाय योजना करने पर इन अपप्रकारों पर निश्चित ही रोक लगेगी । आप भी आगे आकर ये गैरप्रकार रोकने हेतु प्रयास करें । ध्यान रखें, 31 दिसंबर मनाने से आपको उसमें से कुछ भी लाभ तो होता ही नहीं, किंतु सारे ही स्तरों पर, विशेष रूप से अध्यात्मिक स्तर पर बड़ी हानि होती है ।

हिंदू जनजागृति समिति के प्रयासों की सहायता करें !

नए वर्ष का आरंभ मंगलदायी हो, इस हेतु शास्त्र समझकर भारतीय संस्कृतिनुसार ‘चैत्र शुद्ध प्रतिपदा’, अर्थात ‘गुढीपाडवा’ को नववर्षारंभ मनाना नैसर्गिक, ऐतिहासिक तथा अध्यात्मिक दृष्टि से सुविधाजनक तथा लाभदायक है । अत: पाश्चात्त्य विकृति का अंधानुकरण करने से होनेवाला भारतीय संस्कृतिका अधःपतन रोकना, हम सबका ही आद्यकर्तव्य है । राष्ट्राभिमान का पोषण करने तथा गैरप्रकार रोकने हेतु हिंदू जनजागृति समितिकी ओरसे आयोजित उपक्रमको जनतासे सहयोगकी अपेक्षा है । भारतीयो, गैरप्रकार, अनैतिक तथा धर्मद्रोही कृत्य कर नए वर्षका स्वागत न करें, यह आपसे विनम्र विनती !
– श्री. शिवाजी वटकर, समन्वयक, हिंदू जनजागृति समिति, मुंबई-ठाणे-रायगढ ।

स्त्रोत्र : हिंदू जनजागृति समिति

Thursday, December 15, 2016

आज अचानक सोशल मीडिया पर भगवद्गीता को "राष्ट्रीय ग्रंथ" घोषित करने के लिए उठी लाखों आवाजें..!!!

आज अचानक सोशल मीडिया पर भगवद्गीता को "राष्ट्रीय ग्रंथ" घोषित करने के लिए उठी लाखों आवाजें..!!!

आज दिनभर भारत में एक ट्रेंड टॉप पर चल रहा था जिसका हैशटेग था #भगवद्गीता_बने_राष्ट्रीय_ग्रंथ !!

इस हैशटेग के जरिये लाखों लोग आवाज उठा रहे थे कि सम्पूर्ण मानव जाति का कल्याण करने वाली महान भगवद्गीता को राष्ट्रीय ग्रंथ घोषित किया जाये ।

उनका कहना था कि देश-विदेश के विद्वानों व महापुरुषों द्वारा गीता जी की भूरी-भूरी प्रशंसा की गई है, गीता पढ़ने से करोड़ो-करोड़ो लोगों का जीवन बदल गया है , अनगिणत फायदे हुए हैं ऐसी भगवद्गीता को राष्ट्रीय ग्रंथ घोषित किया जाना चाहिये ।
भगवद्गीता को "राष्ट्रीय ग्रंथ" घोषित करने के लिए उठी लाखों आवाजें


आइये कुछ ट्वीट्स द्वारा देखें कि क्या कहना चाह रहे हैं ये लोग...???

1. मनीष मेघवाल ने लिखा कि
सभी समस्याओं व किसी भी परिस्थिति से निपटने में अगर किसी के ज्ञान की आवश्यकता है तो वह श्रीमद्भगवतगीता है #भगवद्गीता_बने_राष्ट्रीय_ग्रंथ।

2. पूनम डंग ने लिखा कि
जो साक्षात कमलनाभ भगवान श्री विष्णु के मुखकमल से प्रकट हुई, उस #भगवद्गीता_बने_राष्ट्रीय_ग्रंथ - गीता का ज्ञान अर्जन करें ।

3. मोहित मेहरा लिखते हैं कि JantaKeeAwaaz है कि भगवद्गीता_बने_राष्ट्रीय_ग्रंथ,यह ग्रन्थ किसी एक मजहब के लिए नही बल्कि सर्वधर्मों के लिए अमृत कुंड है। 

4.रेखा बजाज लिखती हैं कि श्रीमद्भगवद्गीता में कर्मयोग,ज्ञानयोग,
 और भक्तियोग का समन्वय है। #भगवद्गीता_बने_राष्ट्रीय_ग्रंथ

5.मंजीत कौर ने लिखा कि #भगवद्गीता_बने_राष्ट्रीय_ग्रंथ गीता के गूढ़ अर्थों को संत Asaram Bapu Ji से सरल भाषा में समझकर पूरा विश्व लाभांवित हुआ है!

6.सूरज कुमार लिखते हैं कि भारत की खुशहाली का मूल कारण- गौ-गंगा-गायत्री का सम्मान और श्रीमद् #भगवद्गीता_बने_राष्ट्रीय_ग्रंथ का दिव्य ज्ञान! 

7. वैशाली सिंह कहती हैं कि गीता सिर्फ एक पुस्तक नही है, यह तो जीवन मृत्यु के दुर्लभ सत्य को अपने में समेटे हुए है #भगवद्गीता_बने_राष्ट्रीय_ग्रंथ !

8. रवि यादव ने लिखा कि समस्त विश्व के लिये सच्चे सुख, शांति व ज्ञान के लिये भारत की अनमोल भेंट #भगवद्गीता_बने_राष्ट्रीय_ग्रंथ।

9.गौरहरी जी लिखते हैं कि अधर्म और शोषण का मुकाबला करने का सामर्थ्य जगाती है गीता। #भगवद्गीता_बने_राष्ट्रीय_ग्रंथ !

10. अनुजा दाभोलकर ने लिखा कि
गीता हमे जीवन के शत्रुओ से लड़ना सिखाती है और ईश्वर से एक गहरा नाता जोड़ने में भी मदद करती है। #भगवद्गीता_बने_राष्ट्रीय_ग्रंथ


 इस तरीके से हजारों नही लाखों ट्वीट आज इस हैशटैग से देखने को मिली । सभी की एक ही मांग थी कि हजारों सालों के बाद भी जिस ग्रंथ ने अपनी दिव्यता बनाई रखी है और प्राणिमात्र का कल्याण कर रही है उस श्रीमद्भगवद्गीता को शीघ्र राष्ट्रीय ग्रंथ घोषित करना चाहिए जिससे और भी लोग लाभाविन्त हो सकें।

आपको बता दें कि श्री गीता जी से केवल भारत के ही नही बल्कि विदेश के लोग भी लाभान्वित हुए हैं ।

 ऐसी पुण्यदायी श्रीगीता जी पढ़कर 1985-86 में गीताकार की भूमि को प्रणाम करने के लिए कनाडा के प्रधानमंत्री मि. पीअर ट्रुडो प्रधानमंत्री पद से त्यागपत्र देकर भारत आये थे ।  वे अपने शारीरिक पोषण के लिए एक दुधारू गाय और आध्यात्मिक पोषण के लिए उपनिषद् और गीता साथ में रखते थे ।

 ट्रुडो ने कहा है : ‘‘मैंने बाइबिल पढ़ी, एंजिल पढ़ी और अन्य धर्मग्रंथ पढ़े । सब ग्रंथ अपने-अपने स्थान पर ठीक हैं किंतु हिन्दुओं का यह ‘श्रीमद् भगवद्गीता’ ग्रंथ तो अद्भुत है । इसमें किसी मत-मजहब, पंथ या सम्प्रदाय की निंदा-स्तुति नहीं है वरन् इसमें तो मनुष्यमात्र के विकास की बातें हैं । गीता मात्र हिन्दुओं का ही धर्मग्रंथ नहीं है, बल्कि मानवमात्र का धर्मग्रंथ है ।’’


गीता ने किसी मत, पंथ की सराहना या निंदा नहीं की अपितु मनुष्यमात्र की उन्नति की बात कही है । 


गौरतलब है कि 10 दिसम्बर को गीता जयंती के दिन बापू आसारामजी के समर्थकों के द्वारा #भगवद्गीता_अदभुत_ग्रंथ हैशटैग का उपयोग करते हुए ट्वीट्स की जा रही थी । वो ट्रेंड भी दिन भर टॉप में था । आज के ट्रेंड में भी आम जनता के साथ-साथ अधिकतर ट्वीट्स बापू आसारामजी के ही समर्थकों की दिखाई दे रही थी ।

Wednesday, December 14, 2016

मुम्बई कत्लखाने को आधुनिकीकरण करने के लिए सरकार ने किया 1,066 करोड़ निवेश!!

मुम्बई कत्लखाने को आधुनिकीकरण करने के लिए सरकार ने किया 1,066 करोड़ निवेश!!


मुम्बई स्थित "देवनार" देश के सबसे बड़े कत्लखानों में से एक है ।


भूमि डूब, पुअर मीट चिलिंग और अवैज्ञानिक ढंग से ऐनिमल वेस्ट निपटान को देखते हुए पर्यावरणविद् और PETA संस्था ने आपत्ति जताई है।

BMC (बृहन्मुंबई महानगर पालिका ) ने देवनार को नया रूप देने के लिए 1,066 करोड़ निवेश करेगी ।
Azaad Bharat  1,066 Crore Investment in the modernization of Slaughter Houses

BMC अधिकारी ने कहा है कि "नगर निकाय के नेताओं के संयोग से  दोनार को इंटर्नेशनल स्टैण्डर्ड से लैस से किया जायेगा और नगरपालिका ने 1,066 करोड़ की मंजूरी दे दी है। इसके सुधार का उत्तरदायित्व BMC ने अपने हाथों में लिया है।

दोनार को 1971 में स्थापित किया गया था और यह आधे शहर के मीट की मांग की  पूर्ति करता है।

इसे सोलर एनर्जी यूटिलाइजेशन, वर्षा जल संचयन, हाई एन्ड मशीनरी के द्वारा जानवरों को रैंप द्वारा लोड और अनलोड करने जैसी सुविधाएं दी जायँगी । नगर-निगम के अधिकारियों को  डिस्प्नेसरी और ऑफिसर्स को रहने के लिए जगह अलॉट की जायेगी।

इसके साथ साथ बकर-ईद जैसे त्याहारों पर बाजार लगाये जायेंगे तथा खरीददारों के लिए रेस्ट रूम भी होंगे ।

ऐनिमल वेस्ट का निपटान बेहतर तरीके से किया जायेगा, इस कत्लखाने में 6000 जानवरों को एक यूनिट में निपटाने की क्षमता होंगी।

BMC अधिकारी ने कहा है इसका रूपांतरण कुछ भागों में किया जायेगा जिससे खरीददारों को कोई दिक्कत न आये ।


अब एक सवाल उठता है कि पहले की सरकार तो निर्दोष पशु और गौ-हत्या करने में मानती थी पर वर्तमान सरकार जो गौ-हत्या बन्द करवाने और हिंदुत्ववादी के नाम से चुनकर आई है ।
वो भी आज कत्लखानों में पैसा निवेश करती है लेकिन गौ-शाला के लिए एक रुपया भी निवेश क्यों नही होता है???

भाजपा सरकार द्वारा मुंबई देवनार कत्लखाने को और भी क्रियान्वित करने के लिये टेंडर निकाला है जिसमें हररोज लगभग 20 हजार गोवंश का वध किया जायेगा ।

 जिन चमड़ा कम्पनियों को गेंद, पर्स, जूते आदि सामान बनाने के लिये जो चमड़ा चाहिये वो अधिकतर गोमाता के चमड़े का प्रयोग किया जाता है ।

वर्तमान सरकार आने के बाद पहला बजट पास किया गया जिसमें कत्लखाने खोलने के लिए 15 करोड़ सब्सिडी प्रदान की जाती है ।

2014 में  4.8 अरब डॉलर का बीफ एक्सपोर्ट हुआ था । 2015 में भी भारत, 2.4 मिलियन टन बीफ एक्सपोर्ट कर दुनिया में नंबर वन बन गया। 

गाय के नाम पर वोट पाने वाली सरकार गाय के लिए क्या कर ही है ये उपर्युक्त आँकड़े से स्पष्ट है । 

भारत में प्रतिदिन लगभग 50 हजार से अधिक गायें बड़ी बेरहमी से काटी जा रही हैं । 1947 में गोवंश की जहाँ 60 नस्लें थी,वहीं आज उनकी संख्या घटकर 33 ही रह गयी है । हमारी अर्थव्यवस्था का आधार गाय है और जब तक यह बात हमारी समझ में नहीं आयेगी तबतक भारत की गरीबी मिटनेवाली नहीं है । गोमांस विक्रय जैसे जघन्य पाप के द्वारा दरिद्रता हटेगी नहीं बल्कि बढ़ती चली जायेगी । 

गौवध को रोकें और गोपालन कर गोमूत्ररूपी विषरहित कीटनाशक तथा गौ दुग्ध का प्रयोग करें । गोवंश का संवर्धन कर देश को मजबूत करें । 
गौमाता हमारे लिए कितनी उपयोगी है। लिंक पर पढ़े

देश का दुर्भाग्य है कि कसाईघरों के आधुनिकीकरण पर हजारों करोड़ खर्च किये जा रहे हैं, मगर गायों के संरक्षण के वास्ते सरकार के खजाने में पैसे नहीं हैं।

कसाईघरों के मालिकों को देखो तो बड़े ठाठ से जीते हैं और बड़े-बड़े महलों में रहते हैं वहीं दूसरी ओर गौ-पालक को देखो तो गरीब और छोटे घरों में रहते है आखिर ऐसा क्यों???

क्योंकि सरकार गौ-शालाओं में पैसा निवेश करने की जगह पर कसाईघरों में कर रही है ।

अभी जनता की एक ही मांग है कि सरकार जल्द से जल्द कत्लखानों का बजट बंद करके गौ-शालाओं में बजट को निवेश करें जिससे हमारी पवित्र गौ-माता की रक्षा हो और फिर से भारत विश्वगुरु पद पर आसीन हो ।

Tuesday, December 13, 2016

स्वास्थ्य मंत्रालय अधिकारी दीपकराज ने दैनिक भास्कर का किया पर्दोफाश!!

स्वास्थ्य मंत्रालय अधिकारी दीपकराज ने दैनिक भास्कर का किया पर्दोफाश!!

एक निजी चैनल में अपना इंटरव्यू देते हुए भारत सरकार स्वास्थ्य मंत्रालय अधिकारी दीपकराज पौनिकरजी ने बताया कि बापू आसारामजी के खिलाफ जो दैनिक भास्कर ने बटर ब्रेड वाली खबर छापी थी वो बिलकुल ही झूठी है ।

बापू आसारामजी के पास कोई नर्स गई ही नहीं थी क्योंकि उनके पास एक पैनल बना हुआ था । 

स्वास्थ्य मंत्रालय अधिकारी दीपकराज ने दैनिक भास्कर का किया पर्दोफाश!!

उनको बदनाम किया जाए ये मीडिया का रोल है । ओथोरिटीस ने ये बताया कि ऐसी कोई घटना घटी ही नहीं है।

दीपक जी ने आगे बताया कि एक कर्मचारी के ऊपर कोई आक्षेप करता हैं, या कोई बात बताता है, तो उस कर्मचारी का कर्तव्य बनता है कि वो सबसे पहले मुख्य अधिकारी को रिपोर्ट करें । परंतु ऐसी कोई भी जानकारी AIMS के प्रशासन में नहीं हैं ।

मैं AIIMS के PRO से मिला इस मेटर में, उनको कहा कि एक प्रतिष्ठित अखबार है दैनिक भास्कर और वो इस प्रकार की बातें करें मुझे ये खबर (बापू आसारामजी ने नर्स को बटर जैसा बोला) झूठी लग रही है।

 मुझे सत्य पता चले,समाज को सत्य पता चले इसके लिए क्या प्रोसेस है..??? मेरी प्रजंटेशन देने के बाद जो कार्यवाही चली, AIMS की टीम बैठी और टीम की ओथोरिटी ने बताया ऐसी कोई घटना ही नहीं घटी है।

दीपक जी ने आगे कहा कि दूसरी बात बापू आसारामजी बटर और ब्रेड खाते ही नहीं हैं । बापूजी तो क्या बापूजी के साधक भी नहीं खाते तो बापूजी कैसे बोल सकते हैं ब्रेड बटर चाहिए..???


जाँच कॉमेटी ने भी हमें उत्तर दिया ऐसी कोई घटना ही नहीं घटी । बापूजी के पास कोई नर्स ही नहीं गई क्योंकि उनका एक पेनल था ।


वो उपचार के लिए एक टेस्ट के लिए आए थे । बापूजी के पानी और नाश्ते की व्यवस्था आश्रम से ही की गई थी ।


बापू आसारामजी के प्रति मीडिया का रोल...

दीपक जी ने बताया कि मीडिया का रोल संत आसारामजी बापू के केस में एकदम नेगिटिव है। बापूजी के सेवाकार्यो को दिखाना नहीं है, समाज में संतो को किस प्रकार बदनाम किया जाए और साधक आपस में इतनी मजबूती से खड़े हैं उनका कैसे बिखराव किया जाय ये उनका षड़यंत्र है ।
गुरु शिष्य परंपरा को विश्व में कैसे बदनाम किया जाय ये मीडिया का रोल है ।


बापू आसारामजी जेल जाने के बाद धर्मान्तरण में गति आई!!


जब से बापूजी को गिरफ्तार करके जेल में रखा है । तब से हिन्दूओं को क्रिश्चन बनाने की मात्रा अधिक बढ़ी है।

ये सरकार को भी सोचना चाहिए और समाज के प्रतिष्ठित आदमी को भी सोचना चाहिए ।

इस बारे में साधु-संत और अखाड़ो को भी सोचना चाहिए कि बापूजी को जेल में भेजने से समाज किस ओर जा रहा है..???


आसारामजी बापू का इलाज !!

स्वास्थ्य अधिकारी दीपक जी ने आगे बताया कि कोई भी ट्रीटमेन्ट, कोई भी दवाई, किसी भी प्रकार की हो, किसी भी क्षेत्र की हो । वहाँ की व्यवस्था वहाँ के गांव/शहर के तापमान,किसके शरीर पर कितना प्रभाव होता है, वैसा डिपेन्ट होता है । दिल्ली का तापमान और जोधपुर के तापमान में डिफरंट हैं अगर जोधपुर में कोई आर्युवैदिक ट्रीटमेन्ट होता है क्या उसे शरीर Accept करता है ?   इस पर प्रश्न चिन्ह् है । 

बापूजी केरल इसलिए पसंद कर रहें हैं कि ये उनका मूलभूत अधिकार है कि केरल में वैसा वातावरण मिलता है । केरल में ऐसी ट्रीटमेन्ट की व्यवस्था है और उनका शरीर उस ट्रीटमेन्ट को Accept कर सकता है ये उनका मूलभूत अधिकार है ।

जोधपुर का जो वातावरण है आर्युवैदिक ट्रीटमेन्ट के लिए । चाहे आप उनको ट्रीटमेन्ट दें दीजिए पर उनका शरीर भी ट्रीटमेन्ट को Accept करना चाहिए । वहाँ का जो तापमान होता हैं वो शरीर को भी सुटेबल बैठना चाहिए । बापू आसारामजी को पता है आर्युवैदिक की महिमा कितनी है । बापूजी जानते हैं शरीर के साथ मानस की भी कितनी शुद्धि रहती है ।

मेरे मूलभूत अधिकार हैं मुझे कैसी ट्रीटमेन्ट चाहिए । बापूजी के भी मूलभूत अधिकार हैं उनको जो ट्रीटमेन्ट चाहिए उनका जो शरीर Accept करता है वो उनको मिलना ही चाहिए इसके लिए बकायता मंत्रालय है ।

गौरतलब है कि कुछ समय पूर्व बापू आसारामजी सुप्रीम कोर्ट के निर्देश अनुसार चेकअप के लिए एम्स दिल्ली में गये थे तो दैनिक भास्कर से बापू आसारामजी को बदनाम करने के लिए एक खबर छापी गई थी और उसके बाद लगभग सभी मीडिया में दिखाया गया था कि एम्स में बापू आसारामजी के पास एक नर्स नाश्ते में ब्रेड और बटर लेकर आई तो उन्होने बताया कि तुम मक्खन जैसी लग रही हो लेकिन बाद में एम्स ने अपना प्रेसनॉट जारी करते हुए लिखा कि बापू आसारामजी के पास कोई नर्स गई ही नही दैनिक भास्कर द्वारा छापी गई खबर बिलकुल झूठी है ।

Monday, December 12, 2016

"रईस" के पीछे ये है शाहरुख खान का असली खेल !

शाहरुख खान की नई फिल्म ‘रईस’ के रिलीज होने की तारीख जैसे-जैसे करीब आ रही है, इसे लेकर विवाद भी तेज होते जा रहे हैं।

 दरअसल यह फिल्म गुजरात के कुख्यात अपराधी और शराब तस्कर अब्दुल लतीफ की जिंदगी पर आधारित बताई जा रही है। 90 के दशक में पूरे गुजरात में अब्दुल लतीफ का आतंक हुआ करता था। उसके टारगेट पर ज्यादातर हिंदू ही हुआ करते थे, लिहाजा वो मुसलमानों के बीच काफी लोकप्रिय हो गया था। 

अब सवाल यह उठता है कि ऐसे अपराधी पर फिल्म बनाकर शाहरुख खान उसका महिमामंडन क्यों करना चाहता है..?

 रईस के ट्रेलर को देखकर ऐसा लग रहा है कि इस सड़कछाप गुंडे को किसी एक्शन हीरो और व्यापारी की तरह दिखाया गया है।

आइये अब जानते हैं कि कौन था अब्दुल लतीफ..!!!
"रईस" के पीछे ये है शाहरुख खान का असली खेल!

लतीफ बचपन से ही अपराध की दुनिया में उतर चुका था। पहले वो अहमदाबाद में जुए के अड्डों पर शराब पिलाने का काम किया करता था। इसके बाद उसने नकली शराब सप्लायर का धंधा स्टार्ट कर दिया।

 इस धंधे में रहते हुए उस पर मर्डर, अवैध वसूली जैसे तमाम केस दर्ज हो चुके थे। इसी दौरान उसने राज्य में सत्तारुढ़ कांग्रेस पार्टी का आशीर्वाद हासिल कर लिया।

 सियासी शह मिलने के बाद उसने अपना कारोबार पूरे गुजरात में फैला लिया। अब वो हवाला, सुपारी लेकर हत्या करने और जमीन हड़पने जैसे धंधों में भी उतर गया।


 लतीफ गुजरात के पश्चिमी तट पाकिस्तान से हथियार और गोला-बारूद मंगाया करता था। 1995 में जब लतीफ के घर पर छापा मारा गया था तो करीब 100 एके 47 राइफलें और 50 हजार के करीब ग्रेनेड बरामद हुए थे।

 वो गुजरात में दाऊद इब्राहिम के सबसे भरोसेमंद आदमी के तौर पर जाना जाता था। उसे करीब से जानने वालों के मुताबिक लतीफ की सारी ताकत सियासी शह के कारण थी, वरना निजी जिंदगी में वो बेहद डरपोक किस्म का आदमी था।

‘मुसलमानों के मसीहा’ की इमेज!!

गुजरात के मुसलमानों के बीच लतीफ ने अपनी इमेज रॉबिनहुड की तरह बनाई थी। आज भी गुजरात में कहानियां चलती हैं कि लतीफ गरीब मुस्लिम नौजवानों को नौकरी दिलाया करता था। इसके अलावा गरीबों को खाना, घर और दूसरी मदद करता था। उस दौरान वो बाकायदा कोर्ट भी लगाता था और लोगों के आपसी झगड़े और विवाद सुलझाया करता था। इन सब कामों के कारण पूरे गुजरात के मुसलमानों के बीच उसे मसीहा के तौर पर देखा जाने लगा। कोई दिक्कत होने पर लोग पुलिस की बजाय लतीफ के पास जाना पसंद करते थे।

हिंदुओं के लिए आतंक का दूसरा नाम!!

अब्दुल लतीफ का कहर खास तौर पर हिंदू समुदाय पर टूटा। उसका डर ऐसा था कि अहमदाबाद के कई इलाकों से हिंदू अपना घर-बार छोड़कर भाग गए थे। लतीफ ने ऐसे कई लोगों के घरों पर मुस्लिम परिवारों से अवैध कब्जे तक करवाए। 

कहा जाता है कि उसने हिंदू कारोबारियों को लूटा, उनकी महिलाओं का बलात्कार किया और करवाया। उसकी गैंग में सारे मुसलमान ही थे। लतीफ पर अपराध के 97 केस दर्ज थे, जिनमें 10 हत्या के और कुछ केस टाडा के तहत थे।

अब्दुल लतीफ और ‘सेकुलर सियासत’!!

1990 से 1995 के बीच चिमनभाई पटेल की अगुवाई वाली जनता दल और कांग्रेस की सरकारों में अब्दुल लतीफ को खूब सरकारी शह मिली। इस दौरान उसका काला कारोबार खूब फला-फूला। इस दौरान चुनावों में कांग्रेस को फायदा पहुंचाने के लिए लतीफ दंगे भी भड़काया करता था। लेकिन 1995 में गुजरात में केशुभाई पटेल की अगुवाई में बीजेपी की सरकार बन गई। इसी दौरान लतीफ पाकिस्तान भाग गया। 

बीजेपी की सरकार बनने के बाद लतीफ के कारोबार पर बंदिश लगनी शुरू हो गई। इसी दौरान यह बात सामने आई कि किस तरह से अब्दुल लतीफ का धंधा दाऊद और कांग्रेस की मदद से इतने साल तक चलता रहा। कहते हैं कि अब्दुल लतीफ की अगुवाई में मुस्लिम आतंक का ही नतीजा था कि गुजरात में हिंदू समुदाय बीजेपी के साथ आने लगा। क्योंकि लोगों को लगने लगा था कि कांग्रेस पार्टी अब्दुल लतीफ की कारगुजारियों को बढ़ावा दे रही है।

कैसे हुआ अब्दुल लतीफ का अंत..???

कुछ महीने पाकिस्तान में रहने के बाद अब्दुल लतीफ भारत लौट आया। यहां वो दिल्ली के जामा मस्जिद इलाके में छिपकर रहने लगा। यहां से वो एक पीसीओ से रोज फोन करके अपने गुर्गों से बात किया करता था। लेकिन एक दिन पुलिस ने जाल बिछाकर उसे पकड़ लिया। जब लतीफ को पुलिस ने गिरफ्तार किया तो पूरे गुजरात में हिंदू आबादी वाले इलाकों में आतिशबाजी हुई थी। उसके बाद जगह-जगह मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल के लिए सम्मान और धन्यवाद समारोह आयोजित किए गए थे।

 गिरफ्तारी के बाद लतीफ को साबरमती सेंट्रल जेल में रखा गया। 29 नवंबर 1997 को लतीफ ने जेल से भागने की कोशिश की, जिसके बाद पुलिस ने उसे मार गिराया। उस वक्त शंकर सिंह वाघेला गुजरात के सीएम बन चुके थे। कांग्रेस और लतीफ के हितैषी कहते हैं कि ये फेंक एनकाउंटर था।

किसको धोखा दे रहे हैं शाहरुख...???

‘रईस’ के निर्माता कह रहे हैं कि इस फिल्म का लतीफ से कोई लेना-देना नहीं है। जबकि सच्चाई यह है कि शाहरुख कम से कम दो बार लतीफ के परिवार से मिले थे, ताकि वो उसकी स्टाइल और बातचीत करने के तरीकों के बारे में जान सकें। रईस में अपने किरदार की रिसर्च के दौरान शाहरुख ने अब्दुल लतीफ से जुड़ी बहुत सारी जानकारियां भी मंगाई थी। लेकिन जैसे ही यह एहसास हुआ कि मामला हिंदू-मुस्लिम का रंग ले सकता है और इसका असर फिल्म पर भी पड़ सकता है, शाहरुख ने पलटी मार दी और उन्होंने लतीफ के परिवार के सदस्यों और उसके बेटे मुश्ताक से मिलना बंद कर दिया।

लतीफ के बेटे से विवाद का ड्रामा!!

बताते हैं कि शाहरुख ने लतीफ के बेटे मुश्ताक से खुद के खिलाफ 101 करोड़ रुपये का केस भी दर्ज करवाया। ताकि लोगों में यह इंप्रेशन जाए कि फिल्म रईस का लतीफ से कोई लेना-देना नहीं है। हालांकि मुश्ताक की शिकायत फिल्म के डायरेक्टर राहुल ढोलकिया से ज्यादा है। क्योंकि ‘रईस’ में उन्होंने लतीफ को कोठे चलाते और औरतों से शराब बिकवाते दिखाया है। मुश्ताक का दावा है कि उसने ये काम कभी नहीं किया। फिल्म में ऐसा दिखाने से उनके परिवार की ‘इज्जत’ पर बुरा असर पड़ेगा। हालांकि उस दौर के पुलिस अफसरों की मानें तो अब्दुल लतीफ कोठे चलाने और औरतों के इस्तेमाल ही नहीं, बल्कि इससे भी घटिया किस्म के अपराधों में शामिल था।

आपको बता दें कि रईस 25 जनवरी को रिलीज होने वाली है। यह तय है कि शाहरुख खान की नीयत एक सड़क छाप गुंडे को मुसलमानों का हीरो बनाने की है। 
बॉलीवुड किस तरह हिंदू प्रतीकों का अपमान करता है और छुटभैये मुस्लिम गुंडों को भी रॉबिनहुड के तौर पर दिखाता है ।

सिर्फ हिंदुओं को निशाना बनाने वाले लतीफ पर फिल्म बनाने के पीछे शाहरुख की नीयत सवालों में है!!


"रईस" में पाकिस्तानी कलाकार हैं । जिस पाकिस्तान ने हमारे 19 जवान मारें हैं । क्या ऐसे कलाकारों की तथा हिन्दू विरोधी रईस फिल्म को आप खुद के 200 रुपये खर्च करके देखना चाहोगे...???

अगर इतना सब कुछ जानने के बाद भी हिन्दू इस फिल्म को देखते हैं तो हिन्दू खुद अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने का काम करेंगे !!

अगर पाकिस्तानी मुसलमान हीरो हिंदुस्तान में रहकर भी अपने देश के लिए इतना कट्टर है तो हिन्दू को तो अपने देश के प्रति कितना कट्टर होना चाहिए!!

अतः सावधान रहें !!
कहीं आपके पैसों से देखी फिल्म से कमाया गया पैसा आपके ही हिंदुस्तान को तोड़ने में उपयोगी न हो!!

जागो हिन्दू!!

Sunday, December 11, 2016

कश्मीर के एेतिहासिक हिन्दू वास्तुआें के हो रहे इस्लामीकरण पर कब तक सोता रहेगा हिन्दू..???


जम्मू-कश्मीर में हिन्दुआें के ऐतिहासिक स्थानों के नाम परिवर्तित किए जा रहे हैं । यहां पहले ऐसी स्थिति नहीं थी; परंतु कुछ महीनों से बहुत कुछ हो रहा है । 


आइये जाने कि कश्मीर में क्या-क्या परिवर्तित हुआ और क्या-क्या परिवर्तित होनेवाला है!!
कश्मीर के एेतिहासिक हिन्दू वास्तुआें के हो रहे इस्लामीकरण पर कब तक सोता रहेगा हिन्दू..???


1. श्रीनगर में गोपाद्री पहाड़ी है । कश्मीर यात्रा के समय आदि शंकराचार्यजी ने इस पहाड़ी पर अनेक वर्ष तपस्या की थी । इसलिए सैकड़ों वर्ष पहले ही लोगों ने इस पहाड़ी का नाम शंकराचार्य पहाड़ी रखा था । ऐसी जानकारी सरकारी दस्तावेजों में भी
है; परंतु अब इसका नाम ‘सुलेमान टापू’ रखा गया है । विशेष बात तो यह है कि भारत सरकार के पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने भी यहां सुलेमान टापू नाम का फलक लगाया है ।

2. श्रीनगर में हरि पर्वत है । अब उसका नाम परिवर्तित कर कोह महारन अर्थात दुष्टों का पर्वत रखा गया है ।

3. कश्मीर के अनंतनाग को वहां के लोग इस्लामाबाद कहने लगे हैं । अनंतनाग का नाम हटाने के लिए लोगों ने आंदोलन आरंभ किया है।

4. अनंतनाग में उमानगरी नामक विख्यात तीर्थस्थान है। इसका नाम भी परिवर्तित कर शेखपुरा किया गया है ।

5. यहां की सरकार अब श्रीनगर नाम भी नहीं चाहती है । इस नगर का नाम शहर-ए-खास रखने के लिए राज्य सरकार ने कई बार चर्चा भी की है ।

6. श्रीनगर के जिस चौराहे में जामा मस्जिद है, उस चौराहे का हिन्दू नाम परिवर्तित कर मदिना चौराहा रखा गया है ।

7. कश्मीर घाटी में बहनेवाली किशनगंगा नदी को अब दरिया-ए-नीलम कहा जा रहा है ।

मीडिया यह सब दिखाने के लिए तैयार नहीं है । केवल कश्मीरी पंडित (हिन्दू) ही यह लड़ाई लड़ रहे हैं ।

अनेक वर्षों से यहां विद्यमान हिन्दू संस्कृति नष्ट की जा रही है । यदि देशवासी अब जागृत नहीं हुए, तो भविष्य में उन्हें माता रानी के दर्शन के लिए अनुज्ञप्तिपत्र और पारपत्र (पासपोर्ट) लेकर आना )पड़ेगा

क्या वैष्णोदेवी का नाम परिवर्तित होने पर ही आप जागृत होनेवाले हैं..???

पहले भी भारत में मुगल शासन काल में शहरों, गांव आदि के नाम बदले गये उसके बाद अंग्रेज आये उन्होंने भी कई शहरों, गाँव आदि के नाम बदले ।

जब तक भारत गुलाम था तब तक तो ठीक था लेकिन बड़ी विडंबना तो यह है कि भारत आजाद होने के बाद भी हमारे पुराने नाम वापिस नही बदले गये । आजादी को 70 साल हो गए लेकिन आज भी वही नाम चल रहे हैं,बदले नही जा रहे । जिन क्रूर मुगलों ने हमारी बहनों-बेटियों का बलात्कार किया । तलवार की नोंक पर धर्मपरिवर्तन करवाया उन्हीं के नाम से शहरों के नाम रखे गए।

आज कश्मीर में भी वही चल रहा है हमारे प्राचीन नाम बदले जा रहे है और हिन्दू चुप चाप बैठा है ।

पहले भी ऐसा हुआ और आज भी वही हो रहा है हिन्दू सहनशीलता के नाम से पलायनवादी हो गया है सोचता है कि बाजू  के घर में आग लगी है मुझे क्या?
अरे भाई बाजू के घर की आग नहीं बुझाएगा तो वो आग तेरे घर को भी जला सकती है।


पहले कश्मीर पंडित पलायन हुए, आज उत्तर प्रदेश के कई इलाकों से हिन्दू पलायन हो रहे है, हिन्दू संतों को जेल में भेजा जा रहा है, हिन्दुओं का ईसाई मिशनरियों द्वारा लालच देकर और मुसलमानों द्वारा दहशत फैलाकर धर्म परिवर्तन किया जा रहा है।


क्या हिन्दू इसी तरह से अन्याय को चुप-चाप देखता रहेगा..???

ऐसे ही अगर देखता रहा तो फिर हिन्दू को मिटने में देर नही लगेगी और हिन्दू मिटा तो सनातन संस्कृति मिटी और सनातन संस्कृति मिटी तो फिर पृथ्वी पर हा-हा कार मच सकता है ।

क्योंकि सनातन संस्कृति ही एक ऐसी संस्कृति है जो पूरी दुनिया में सुख-शांति भाईचारा का संदेश देती ही नही है बल्कि चरितार्थ करके भी दिखा देती है । 

आज दुनिया में जो सुख शांति है वो केवल सनातन संस्कृति का कुछ अंश लेकर ही है अतः हिन्दू संस्कृति को बचाना अत्यंत जरूरी है ।

आशा है कि भारतवासी जागृत होंगे ।
इस स्थिति में समस्त हिन्दू बंधु जागृत होकर वैध मार्ग अपना मिलकर विरोध करें ।

Saturday, December 10, 2016

क्या आपको पता है आज ट्विटर पर " #भगवद्गीता_अदभुत_ग्रंथ " क्यों ट्रेंड कर रहा था ?

आज सोशल मीडिया पर लाखों लोगों ने श्रीमद्भगवद्गीता की भूरी-भूरी प्रशंसा की!!

गीता मात्र हिन्दुओं का ही धर्मग्रंथ नहीं है, बल्कि मानवमात्र का धर्मग्रंथ है ।

 गीता ने किसी मत, पंथ की सराहना या निंदा नहीं की अपितु मनुष्यमात्र की उन्नति की बात कही । 

ऐसे अद्भुत ग्रन्थ की केवल भारत के ही नही अपितु विदेश के बुद्धिजीवी लोगों ने भी भूरी-भूरी प्रशंसा की है । केवल प्रशंसा ही नही की, उन्होंने गीता का ज्ञान जीवन में उतारकर अपने को धन्य-धन्य  किया है ।

आज भी ऐसा ही अद्भुत नजारा ट्वीटर पर देखने को मिला ।
लाखों लोग गीता जयंती निमित्त #भगवद्गीता_अदभुत_ग्रंथ हैशटैग के साथ ट्वीट कर रहे थे जो दिनभर टॉप में बना रहा ।

आइये देखते हैं कि लोग क्या लिख रहे थे ट्वीटस में...

do-you-know-why-bhagwatgeeta_adbut_grantha-was-trending-on-twitter
1. शेखर गड़ेवार लिखते हैं कि भारतीय संतों को नमन, जिन्होंने गीता के ज्ञान सुवास से 5000 साल तक समाज को महकाएं रखा !
#भगवद्गीता_अदभुत_ग्रंथ 


2. पूजा पंडा ने लिखा है कि समस्त विश्व के लिये सच्चे सुख, शांति व ज्ञान के लिये भारत की अनमोल भेंट #भगवद्गीता_अदभुत_ग्रंथ 


3. संजय राय ने लिखा कि #भगवद्गीता_अदभुत_ग्रंथ के ज्ञानजन्य सुख के आगे त्रिलोक का तमाम सुख तुच्छ है।


4. दीपा गुर्जर लिखती हैं कि जन-जन को कर्म योगी बनाना है तो विद्यार्थियों को #भगवद्गीता_अदभुत_ग्रंथ का महत्व समझाएं - Asaram Bapu Ji


5.  भवन उत्तरज ने लिखा कि #भगवद्गीता_अदभुत_ग्रंथ की विशालता इतनी मनोमय है, चित वृति शांत कर, लगाती हरि चरणों में, जो मानव जीवन का ध्येय है।


6. रूपल गुरनानी लिखती हैं कि #भगवद्गीता_अदभुत_ग्रंथ के अभ्यास से हजारों विद्यार्थियों का भविष्य उज्ज्वल हो रहा है Asaram Bapu Ji के गुरुकुलों में !!

7. अरुणेश शर्मा ने लिखा कि
कर्मफल को सहज-सरलता से समझना हो तो सिर्फ एक मात्र ग्रंथ है और वो है- श्रीमद् #भगवद्गीता_अदभुत_ग्रंथ 


8.अमित सोनी लिखते हैं कि
#भगवद्गीता_अदभुत_ग्रंथ उपनिषदों का अमृत है, धरती पर जीवों का उद्धार करने वाला विष्णु जी का चरणामृत है।

9.प्रीति ने लिखा है कि Asaram Bapu Ji के दिव्य सत्संग में करोड़ो-करोड़ो लोगों ने सहजता से सीखा #भगवद्गीता_अदभुत_ग्रंथ का ज्ञान ।

10.यग्नेश जी लिखते हैं कि भगवत् गीता एक अदभुत ग्रंथ है। जिसे स्वयं भगवान् कृष्ण ने उच्चारण किया है॥

ये तो आपको केवल कुछ ट्वीट्स बताई गई हैं ऐसे लाखों लोग ट्वीटस करके श्रीमद्भगवद्गीता की भूरी-भूरी प्रशंसा कर, बताना चाह रहे थे कि उनको गीता के ज्ञान से कितना अद्भुत लाभ हुआ है।


और बड़े आश्चर्य की बात ये थी कि ट्रेंड में देखा गया तो बापू आसारामजी के अनुयायी ही दिनभर ट्वीट कर रहे थे जिससे ट्रेंड भारत में टॉप पर बना रहा ।


और उनकी कुछ ट्वीट देखने पर पता चला कि वो केवल सोशल मीडिया पर ट्वीट्स ही नही कर रहे थे बल्कि विद्यालयों में और घर-घर जाकर निःशुल्क गीता भी बाँट रहे थे और गीता की महिमा भी बता रहे थे ।

भोग, मोक्ष, निर्लेपता, निर्भयता आदि तमाम दिव्य गुणों का विकसित करनेवाला यह गीताग्रंथ विश्व में अद्वितीय है ।

गीता में 18 अध्याय, 700 श्लोक, 94569 शब्द हैं और 578 से अधिक भाषाओं में गीता का अनुवाद हो चुका है ।

संसारिक दुनिया में दुख, क्रोध, अंहकार ईर्ष्या आदि से पीड़ित आत्माओं को गीता सत्य और अध्यात्म का मार्ग दिखाती है। 

ऐसा 'वसुधैव कुटुम्बकं' की सीख देता #भगवद्गीता_अदभुत_ग्रंथ को शत्-शत् नमन।