Thursday, January 17, 2019

जनवरी 17 को अंग्रेजों ने 68 गौभक्तों को उड़ा दिया था तोप से

17 जनवरी  2019

🚩भारत में गौ हत्या को बढ़ावा देने में अंग्रेज़ों ने अहम भूमिका निभाई । जब 1700 ई. में अंग्रेज़ भारत आए थे उस वक़्त यहां गाय और सुअर का वध नहीं किया जाता था । हिंदू गाय को पूजनीय मानते थे और मुसलमान सुअर का नाम तक लेना पसंद नहीं करते थे । अंग्रेजों ने मुसलमानों को भड़काया कि क़ुरान में कहीं भी नहीं लिखा है कि गाय कि क़ुर्बानी हराम है । इसलिए उन्हें गाय कि क़ुर्बानी करनी चाहिए । उन्होंने मुसलमानों को लालच भी दिया और कुछ लोग उनके झांसे में आ गए । इसी तरह उन्होंने दलित हिंदुओं को सुअर के मांस की बिक्री कर मोटी रकम कमाने का झांसा दिया । नतीजन 18वीं सदी के आख़िर तक बड़े पैमाने पर गौ हत्या होने लगी । अंग्रेज़ों की बंगाल, मद्रास और बंबई प्रेसीडेंसी सेना के रसद विभागों ने देश भर में कसाईखाने बनवाए । जैसे-जैसे यहां अंग्रेज़ी सेना और अधिकारियों की तादाद बढ़ने लगी वैसे-वैसे गौ हत्या में भी बढ़ोत्तरी होती गई ।

गौ हत्या और सुअर हत्या की आड़ में अंग्रेज़ों को हिंदू और मुसलमानों में फूट डालने का भी मौक़ा मिल गया । इस दौरान हिंदू संगठनों ने गौ हत्या के ख़िला़फ मुहिम छेड़ दी । नामधारी सिखों का कूका आंदोलन कि नींव गौरक्षा के विचार से जुड़ी थी ।

🚩यह आंदोलन भी एक ऐसा इतिहास है जो समय के पन्नो के नीचे जानबूझ कर दबाया गया । एक गहरी व सोची समझी साजिश थी इसके पीछे क्योंकि यहां संबन्ध गाय से था और गाय शब्द आते ही स्वघोषित इतिहासकारों की भृकुटियां तन जाती है क्योंकि उसमें से तो कुछ गाय खाते हुए सेल्फी तक डालते हैं ।

गाय शब्द आते ही बुद्धिजीवियों के एक बड़े वर्ग में बेचैनी आ जाती है क्योंकि गाय की रक्षा को उन्होंने एक बेहद नए व आयातित शब्द से जोड़ रखा है जिसका नाम मॉब लिंचिंग है । गाय शब्द आते ही सत्ता में भी हलचल मचती है क्योंकि संसद में गौ रक्षको को सज़ा दिलाने के लिए कुछ लोग अपनी सीट तक छोड़ देते हैं और संसद तक नहीं चलने देते हैं । उसी गौ माता की रक्षा व उनके रक्षकों का आज बलिदान दिवस है जो परम् गौ भक्त रामसिंह कूका के नेतृत्व में थे...

🚩17 जनवरी, 1872 की प्रातः ग्राम जमालपुर (मालेरकोटला, पंजाब) के मैदान में भारी भीड़ एकत्र थी । एक-एक कर 50 गौभक्त सिख वीर वहाँ लाये गये । उनके हाथ पीछे बँधे थे । इन्हें मृत्युदण्ड दिया जाना था । ये सब सद्गुरु रामसिंह कूका के शिष्य थे । अंग्रेज जिलाधीश कोवन ने इनके मुह पर काला कपड़ा बाँधकर पीठ पर गोली मारने का आदेश दिया; पर इन वीरों ने साफ कह दिया कि वे न तो कपड़ा बँधवाएंगे और न ही पीठ पर गोली खायेंगे । तब मैदान में एक बड़ी तोप लायी गयी । अनेक समूहों में इन वीरों को तोप के सामने खड़ा कर गोला दाग दिया जाता । गोले के दगते ही गरम मानव खून के छींटे और मांस के लोथड़े हवा में उड़ते । जनता में अंग्रेज शासन की दहशत बैठ रही थी । कोवन का उद्देश्य पूरा हो रहा था । उसकी पत्नी भी इस दृश्य का आनन्द उठा रही थी ।

🚩इस प्रकार 49 वीरों ने मृत्यु का वरण किया; पर 50 वें को देखकर जनता चीख पड़ी । वह तो केवल 12 वर्ष का एक छोटा बालक बिशनसिंह था । अभी तो उसके चेहरे पर मूँछें भी नहीं आयी थीं । उसे देखकर कोवन की पत्नी का दिल भी पसीज गया । उसने अपने पति से उसे माफ कर देने को कहा । कोवन ने बिशनसिंह के सामने रामसिंह को गाली देते हुए कहा कि यदि तुम उस धूर्त का साथ छोड़ दो, तो तुम्हें माफ किया जा सकता है । यह सुनकर बिशनसिंह क्रोध से जल उठा । उसने उछलकर कोवन की दाढ़ी को दोनों हाथों से पकड़ लिया और उसे बुरी तरह खींचने लगा । कोवन ने बहुत प्रयत्न किया; पर वह उस तेजस्वी बालक की पकड़ से अपनी दाढ़ी नहीं छुड़ा सका । इसके बाद बालक ने उसे धरती पर गिरा दिया और उसका गला दबाने लगा । यह देखकर सैनिक दौड़े और उन्होंने तलवार से उसके दोनों हाथ काट दिये । इसके बाद उसे वहीं गोली मार दी गयी । इस प्रकार 50 कूका वीर उस दिन बलिपथ पर चल दिये ।

🚩गुरु रामसिंह कूका का जन्म 1816 ई0 की वसन्त पंचमी को लुधियाना के भैणी ग्राम में जस्सासिंह बढ़ई के घर में हुआ था । वे शुरू से ही धार्मिक प्रवृत्ति के थे । कुछ वर्ष वे महाराजा रणजीत सिंह की सेना में रहे । फिर अपने गाँव में खेती करने लगे । वे सबसे अंग्रेजों का विरोध करने तथा समाज की कुरीतियों को मिटाने को कहते थे । उन्होंने सामूहिक, अन्तरजातीय और विधवा विवाह की प्रथा चलाई । उनके शिष्य ही ‘कूका’ कहलाते थे ।  कूका आन्दोलन का प्रारम्भ 1857 में पंजाब के विख्यात बैसाखी पर्व (13 अप्रैल) पर भैणी साहब में हुआ । गुरु रामसिंह जी गोसंरक्षण तथा स्वदेशी के उपयोग पर बहुत बल देते थे । उन्होंने ही सर्वप्रथम अंग्रेजी शासन का बहिष्कार कर अपनी स्वतन्त्र डाक और प्रशासन व्यवस्था चलायी थी ।

🚩मकर संक्रान्ति मेले में मलेरकोटला से भैणी आ रहे गुरुमुख सिंह नामक एक कूका के सामने मुसलमानों ने जानबूझ कर गौहत्या की । यह जानकर कूका वीर बदला लेने को चल पड़े । उन्होंने उन गौहत्यारों पर हमला बोल दिया; पर उनकी शक्ति बहुत कम थी । दूसरी ओर से अंग्रेज पुलिस एवं फौज भी आ गयी । अनेक कूका मारे गये और 68 पकड़े गये । इनमें से 50 को 17 जनवरी को तथा शेष को अगले दिन मृत्युदण्ड दिया गया ।

अंग्रेज जानते थे कि इन सबके पीछे गुरु रामसिंह कूका की ही प्रेरणा है । अतः उन्हें भी गिरफ्तार कर बर्मा की जेल में भेज दिया । 14 साल तक वहाँ काल कोठरी में कठोर अत्याचार सहकर 1885 में सदगुरु रामसिंह कूका ने अपना शरीर त्याग दिया । आज उन सभी गौ भक्तों को उनके बलिदान दिवस पर नमन...
🚩भारतीय इतिहास में गौ हत्या को लेकर कई आंदोलन हुए हैं और कई आज भी जारी हैं । लेकिन अभी तक गौहत्या पर प्रतिबन्ध नहीं लग सका है । इसका सबसे बड़ा कारण राजनितिक इच्छा शक्ति कि कमी होना है । आप कल्पना कीजिये हर रोज जब आप सोकर उठते है तब तक हज़ारों गौओं के गलों पर छूरी चल चुकी होती है । गौ हत्या से सबसे बड़ा फ़ायदा तस्करों एवं गाय के चमड़े का कारोबार करने वालों को होता है । इनके दबाव के कारण ही सरकार गौ हत्या पर प्रतिबन्ध लगाने से पीछे हट रही है । वरना जिस देश में गाय को माता के रूप में पूजा जाता हो वहां सरकार गौ हत्या रोकने में नाकाम है । आज हमारे देश कि जनता ने नरेन्द्र मोदी जी को सरकार चुनी है । सेक्युलरवाद और अल्पसंख्यकवाद के नाम पर पिछले अनेक दशकों से बहुसंख्यक हिन्दुओं के अधिकारों का दमन होता आया है । उसी के प्रतिरोध में हिन्दू प्रजा ने संगठित होकर जात-पात से ऊपर उठकर एक सशक्त सरकार को चुना है । इसलिए यह इस सरकार का कर्त्तव्य बनता है कि वह बदले में हिन्दुओं की शताब्दियों से चली आ रही गौरक्षा कि मांग को पूरा करें और गौ हत्या पर पूर्णत प्रतिबन्ध लगाए । 

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Wednesday, January 16, 2019

बलात्कार आरोपी पादरी बिशप का विरोध करने वाली 4 नन को निकाला

16 जनवरी  2019

🚩अनगिनत बार ईसाइयों का पवित्रस्थल चर्च यौन उत्पीड़न के मामलों से भी कलंकित हुआ है । हाल ही के वर्षों में भारत सहित शेष विश्व में जिस तीव्र गति से इस तरह के मामले सामने आए हैं उससे स्पष्ट है कि रूढ़िवादी सिद्धांत, परंपराओं और प्रथाओं के नाम पर चर्च या फिर अन्य कैथोलिक संस्थाएं महिलाओं व बच्चों के यौन शोषण के अड्डे बन गए हैं । चर्च अपने पादरियों व ननों के ब्रह्मचर्यव्रती होने का दावा करता है किन्तु यथार्थ यही है कि दैहिक जरूरतों कि पूर्ति न होने के कारण अधिकतर कुंठित हो जाते हैं । यहां बाल यौन शोषण से लेकर समलिंगी यौन संबंध आम बात है । जब भी इस तरह की घटना जहां कहीं भी प्रकाश में आती है चर्च अपने ब्रह्मचर्य विधान पर ऐसी घटनाओं के बारे में सूचित कर उसका समाधान खोजने के विपरीत उसे दबाने की कोशिश में जुट जाता है । 

🚩अभी हाल ही में जालंधर के ईसाई पादरी बिशप फ्रैंको मुलक्कल ने केरल की नन के साथ 2014 से 2016 के बीच कई बार बलात्कार किया ऐसा आरोप लगाया गया  । उसके खिलाफ कई ननों ने फ्रैंको के खिलाफ अभियान चलाया जिसके तहत उसे जेल जाना पड़ा था ये बात और है कि मात्र 21 दिनों में ही उसे बेल मिल गयी ।

🚩केरल के बहुचर्चित नन रेप मामले में आरोपी बिशप फ्रैंको मुलक्कल का विरोध करने वाली पांच में से चार नन को हटा दिया गया है । इन सबको कोट्टम के कॉन्वेंट से बाहर जाने के लिए कह दिया गया है । विरोध करने वाली सिस्टर अनुपमा, सिस्टर एनसिटा, सिस्टर एल्फी और सिस्टर जॉसफाइन को तुरंत वापस पुराने कॉन्वेंट में जाने को कह दिया गया है ।

🚩इनमे से एक नन ने बिशप फ्रैंको मुलक्कल के खिलाफ रेप करने की शिकायत दर्ज की थी । बाद में इन सभी नन ने मुलक्कल की गिरफ्तारी को लेकर विरोध प्रदर्शन किया था । चारों नन को तबादला पत्र थमाते हुए अलग-अलग कॉन्वेंट में जाने को कहा गया है ।

🚩बता दें कि नन ने 54 साल के बिशप पर 2014 से 2016 के बीच बलात्कार और अप्राकृतिक यौन संबंध बनाने का आरोप लगाया था । जून में कोट्टयाम पुलिस को दी गई अपनी शिकायत में नन ने आरोप लगाया था कि बिशप ने मई 2014 में कुराविलंगाड गेस्ट हाउस में उनका बलात्कार किया और बाद में भी यौन शोषण करते रहे ।

तीन दिनों की पूछताछ के बाद मुलक्कल को पिछले साल 21 सितंबर को पुलिस ने गिरफ्तार किया था । बाद में 24 सितंबर को बलात्कार आरोपी फ्रैंको को दो हफ्ते की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया था । बाद में उच्च न्यायालय ने आरोपी फ्रैंको मुलक्कल को सशर्त जमानत दे दी थी । स्त्रोत : न्यूज 18

🚩4 ननों को अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने पर कान्वेंट से बाहर किया लेकिन अब कोई भी बॉलीवूड फेमिनीस्ट या महिला अधिकार गैंग इनके बचाव में आवाज उठाने आगे नहीं आई और आएँगे भी क्यों  ये तो केवल सबरीमला जैसे हिन्दुओं के मुद्दों पर बोलते हैं !

🚩जब भी हिन्दू साधु-संतों से जुड़ी खबरें सामने आती हैं वे एकाएक सार्वजनिक विमर्श का हिस्सा बन जाती हैं किन्तु अन्य मजहबों से संबंधित मामलों में सन्नाटा पसरा मिलता है ऐसा क्यों ?
विश्व में कैथोलिक पादरियों द्वारा हजारों यौन उत्पीडऩ के मामले सामने आ चुके हैं । अकेले 2001-10 के कालखंड में 3 हजार पादरियों पर यौन उत्पीड़न और कुकर्म के आरोप लग चुके हैं जिनमें अधिकतर मामले 50 साल या उससे अधिक पुराने हैं । रोमन कैथोलिक चर्च एक कठोर सामाजिक संस्था है जो हमेशा अपने विचार और विमर्श को गुप्त रखती है । अपनी नीतियां स्वयं बनाती है और मजहबी दायित्व कि पूर्ति कठोरता से करवाती है । जब कोई पादरी कार्डिनल बनाया जाता है तो वह पोप के समक्ष वचन लेता है, ‘‘वह हर उस बात को गुप्त रखेगा जिसके प्रकट होने से चर्च कि बदनामी होगी या नुक्सान पहुंचेगा ।’’ इन्हीं सिद्धांतों के कारण पादरियों, बिशप और कार्डिनलों द्वारा किए जाते यौन उत्पीड़न के मामले दबे रह जाते हैं और चर्च या फिर अन्य कैथोलिक संस्थाओं को बदनामी से बचाना मजहबी कर्तव्य बन जाता है । 

🚩आपको बता दें कि पवित्र हिन्दू साधु-संतों को बदनाम करने और उनके ऊपर झूठे मुकदमे चलाने के लिए विदेशी ताकतें काम कर रही हैं जो भारत से हिन्दू धर्म को मिटाने के लिए कार्य कर रहे है इसलिए ईसाई पादरियों के कुकर्म छुपाते है और हिन्दू धर्मगुरुओं को बदनाम करते हैं  ।

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Tuesday, January 15, 2019

सबसे ज्यादा शिक्षित हिन्दू हैं,अमेरिका में हिंदू महिला लड़ेगी राष्ट्रपति का चुनाव

15 जनवरी  2019

🚩हिंदू धर्म को नष्ट करने व हिंदूओ को दुनिया के नक़्शे से मिटाने के लिए अनेक षड़यंत्र रचे गए हैं और चल भी रहे हैं, लेकिन हिंदू धर्म सनातन धर्म है, दुनिया के सभी हिन्दू विरोधी मिलकर भी प्रयास करें तो भी इसे नहीं मिटा सकते हैं क्योंकि ये सनातन धर्म है जब से सृष्टि का उद्गम हुआ है तब से यह धर्म है जिस दिन हिन्दू धर्म का अस्तित्व मिट जायेगा उस दिन से सृष्टि का प्रलय हो जायेगा सनातन धर्म ही सृष्टि का नाभि है ।

दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश अमेरिका से एक ऐसी खबर सामने आई है जो समस्त सनातनियों के लिए गर्व करने की बात है । इस रिपोर्ट के मुताबिक़, अमेरिका में हिंदू समुदाय के लोग सबसे ज्यादा पढ़े लिखे हैं ।

🚩प्यू रिसर्च के मुताबिक, अमेरिका में रह रहे सभी धार्मिक समुहों में हिंदू समुदाय के लोग सबसे ज्यादा शिक्षित है । पिछले महीने दिसंबर में जारी हुई इस रिपोर्ट में बताया गया है कि शिक्षा के मामले में अमेरिका में रह रहे हिंदुओ ने यहूदी समुदाय के लोगों को भी पछाड़ दिया है, जो अब तक सबसे ऊपर थे । इस रिपोर्ट के अनुसार, कॉलेज डिग्री वालों में सबसे अधिक संख्या हिंदुओं की है ।

🚩इस रिपोर्ट के मुताबिक़, नॉर्थ अमेरिका, यूरोप, कैरिबायाई और सब-सहारा अफ्रीका देशों से लेकर जहां भी हिंदू बहुसंख्यक हैं, वहां हिंदू समुदाय के लोग ही सबसे ज्यादा शिक्षित है । रिपोर्ट के मुताबिक, धर्म के आधार पर अगर देखा जाए तो 77 फीसदी के साथ कॉलेज डिग्री वालों में से हिंदुओं की संख्या सबसे ज्यादा है । हिंदुओं के बाद दूसरा नंबर यूनिटेरियन समुदाय के लोगों का आता है, जो दूसरे सबसे ज्यादा शिक्षित है ।

🚩भारतीय अमेरिकी समुदाय ने अमेरिका में सबसे धनी और सबसे शिक्षित के रूप में अपनी पहचान बनाई है । प्यू के अध्ययन में कहा गया है कि अधिक शिक्षित होने के कारण ही हिंदू देश में अमीर हैं । इस संगठन ने आर्थित सफलता और शिक्षा के बीच के संबंध के बारे में बताया है । प्यू के 2014 के अध्ययन के अनुसार यहूदी और हिंदुओं की वार्षिक आय अधिक है । यहुदियों में 10 में से 4 (44 फीसदी) लोग और हिंदुओं में 10 में से 3 (36 फीसदी) लोग ऐसे हैं जिनकी सालाना एक लाख डॉलर के करीब है ।

🚩अमेरिका में हिंदू सांसद लड़ेगी चुनाव...

वॉशिंगटन: अमेरिका की पहली हिंदू सांसद तुलसी गेबार्ड 2020 में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव में उम्मीदवारी भर रही हैं । तमाम कयासों पर विराम देते हुए गेबार्ड ने यह साफ़ कर दिया है कि वे 2020 का अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव लड़ने वाली हैं । अमेरिकी सीनेट में हवाई का प्रतिनिधित्व करने वाली डेमोक्रेट सांसद तुलसी बेबार्ड ने मीडिया को बताया है कि, 'मैंने तय कर लिया है कि मैं राष्ट्रपति चुनाव लड़ूंगी ।'

🚩अमेरिका के इतिहास में ऐसा पहली बार होगा जब किसी हिंदू को अमेरिका की किसी पार्टी की ओर से राष्ट्रपति चुनाव की उम्मीदवारी मिलेगी ।  वहीं अगर गेबार्ड 2020 का राष्ट्रपति चुनाव में जीत दर्ज करती हैं, तो वे अमेरिका की प्रथम महिला और सबसे युवा राष्ट्रपति होंगी ।

आपको बता दें कि तुलसी गेबार्ड हिंदू जरूर हैं, लेकिन वे भारतीय मूल की नहीं है । तुलसी गेबार्ड का जन्म अमेरिका के समोआ में एक कैथोलिक परिवार के घर हुआ था । उनकी मां कॉकेशियन हैं, जिन्होंने बाद में हिंदू धर्म अपना लिया था । तुलसी दो साल की थीं, तब वे अपनी माँ के साथ हवाई आकर रहने लगीं और बाद में उन्होंने भी हिंदू धर्म अपना लिया । तुलसी पहली ऐसी अमेरिकी सांसद हैं, जिन्होंने भगवत गीता को हाथ में लेकर शपथ ग्रहण की थी ।

🚩हिन्दुत्व एक व्यवस्था है मानव में महामानव और महामानव में महेश्वर को प्रगट करने की । यह द्विपादपशु सदृश उच्छृंखल व्यक्ति को देवता बनाने वाली एक महान परम्परा है । 'सर्वे भवन्तु सुखिनः' का उद्घोष केवल इसी संस्कृति के द्वारा किया गया है.....

🚩भारतीय हिंदूओ को भी अपनी महिमा समझनी पड़ेगी और हिंदू संस्कृति पर हो रहे है कुठाराघात को रोकना पड़ेगा, हिन्दू धर्म, हिन्दू साधु-संत, हिंदू कार्यकर्ता, हिन्दू मंदिर मिटाने के भरपूर प्रयास किये जा रहे हैं, जिसमें इसाई मिशनरियां, इस्लामिक राष्ट्र, विदेशी कंपनियां, वामपंथी आदि लगे हैं । इसको रोकने के लिए सभी हिंदूओं को मिलकर प्रयास करना होगा ।

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Monday, January 14, 2019

मकर संक्रांति और सूर्य उपासना की महिमा जानकर आप भी हो जाएंगे उसके दीवाने

14 जनवरी  2019

🚩सब पर्वों की तारीखें बदलती जाती हैं किंतु मकर सक्रांति की तारीख नहीं बदलती  । यह नैसर्गिक पर्व है  । किसी व्यक्ति के आने-जाने से या किसी के अवतार के द्वारा इस पर्व की शुरुआत नहीं हुयी है  । प्रकृति में होने वाले  मूलभूत परिवर्तन से यह पर्व संबंधित है और प्रकृति की हर चेष्टा व्यक्ति के तन और मन से संबंध रखती है  । इस काल में भगवान भास्कर की गति उत्तर की तरफ होती है  । अंधकार वाली रात्रि छोटी होती जाती है और प्रकाश वाला दिन बड़ा होता जाता है  । 

🚩पुराणों का कहना है कि इन दिनों देवता लोग जागृत होते हैं  । मानवीय 6 महीने दक्षिणायन के बीतते हैं, तब देवताओं की एक रात होती है । उत्तरायण के दिन से देवताओं की सुबह मानी जाती है । 

🚩ऋग्वेद में आता है कि सूर्य न केवल सम्पूर्ण विश्व के प्रकाशक, प्रवर्त्तक एवं प्रेरक हैं वरन् उनकी किरणों में आरोग्य वर्धन, दोष-निवारण की अभूतपूर्व क्षमता विद्यमान है । सूर्य की उपासना करने एवं सूर्य की किरणों का सेवन करने से प्रकार के  शारीरिक, बौद्धिक एवं आध्यात्मिक लाभ होते हैं ।

🚩जितने भी सामाजिक एवं नैतिक अपराध हैं, वे विशेषरूप से सूर्यास्त के पश्चात अर्थात् रात्रि में ही होते हैं । सूर्य की उपस्थिति मात्र से ही दुष्प्रवृत्तियां नियंत्रित हो जाती  हैं । सूर्य के उदय होने से समस्त विश्व में मानव, पशु-पक्षी आदि क्रियाशील होते हैं । यदि सूर्य को विश्व-समुदाय का प्रत्यक्ष देव अथवा विश्व-परिवार का मुखिया कहें तो भी कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी ।

🚩वैसे तो सूर्य की रोशनी सभी के लिए समान होती है परन्तु उपासना करके उनकी विशेष कृपा प्राप्त कर व्यक्ति सामान्य लोगों की अपेक्षा अधिक उन्नत हो सकता है तथा समाज में अपना विशिष्ट स्थान बना सकता है ।

🚩सूर्य एक शक्ति है । भारत में तो सदियों से सूर्य की पूजा होती आ रही है । सूर्य तेज और स्वास्थ्य के दाता माने जाते हैं । यही कारण है कि विभिन्न जाति, धर्म एवं सम्प्रदाय के लोग दैवी शक्ति के रूप में सूर्य की उपासना करते है ।

सूर्य की किरणों में समस्त रोगों को नष्ट करने की क्षमता विद्यमान है । सूर्य की प्रकाश – रश्मियों के द्वारा हृदय की दुर्बलता एवं हृदय रोग मिटते हैं । स्वास्थ्य, बलिष्ठता, रोगमुक्ति एवं आध्यात्मिक उन्नति के लिए सूर्योपासना करनी ही चाहिए ।

🚩सूर्य नियमितता, तेज एवं प्रकाश के प्रतीक हैं । उनकी किरणें समस्त विश्व में जीवन का संचार करती हैं । भगवान सूर्य नारायण सतत् प्रकाशित रहते हैं । वे अपने कर्त्तव्य पालन में एक क्षण के लिए भी प्रमाद नहीं करते, कभी अपने कर्त्तव्य से विमुख नहीं होते । प्रत्येक मनुष्य में भी इन सदगुणों का विकास होना चाहिए । नियमतता, लगन, परिश्रम एवं दृढ़ निश्चय द्वारा ही मनुष्य जीवन में सफल हो सकता है तथा कठिन परिस्थितियों के बीच भी अपने लक्ष्य तक पहुँच सकता है ।

सूर्य बुद्धि के अधिष्ठाता देव हैं । सभी मनुष्यों को प्रतिदिन स्नानादि से निवृत्त होकर एक लोटा जल सूर्यदेव को अर्घ्य देना चाहिए । अर्घ्य देते समय इस बीजमंत्र का उच्चारण करना चाहिएः
🚩ॐ ह्रां ह्रीं ह्रों सः सूर्याय नमः ।
इस प्रकार मंत्रोच्चारण के साथ जल देने से तेज एवं बौद्धिक बल की प्राप्ति होती है ।

🚩सूर्योदय के बाद जब सूर्य की लालिमा निवृत्त हो जाय तब सूर्याभिमुख होकर कंबल अथवा किसी विद्युत कुचालक आसन् पर पद्मासन अथवा सुखासन में इस प्रकार बैठें ताकि सूर्य की किरणें नाभि पर पड़े । अब नाभि पर अर्थात् मणिपुर चक्र में सूर्य नारायण का ध्यान करें ।

यह बात अकाट्य सत्य है कि हम जिसका ध्यान, चिन्तन व मनन करते हैं, हमारा जीवन भी वैसा ही हो जाता है । उनके गुण हमारे जीवन में प्रगट होने लगते हैं ।

🚩नाभि पर सूर्यदेव का ध्यान करते हुए यह दृढ़ भावना करें कि उनकी किरणों द्वारा उनके दैवी गुण आप में प्रविष्ट हो रहे हैं । अब बायें नथुने से गहरा श्वास लेते हुए यह भावना करें कि सूर्य किरणों एवं शुद्ध वायु द्वारा दैवीगुण मेरे भीतर प्रविष्ट हो रहे हैं । यथासामर्थ्य श्वास को भीतर ही रोककर रखें । तत्पश्चात् दायें नथुने से श्वास बाहर छोड़ते हुए यह भावना करें कि मेरी श्वास के साथ मेरे भीतर के रोग, विकार एवं दोष बाहर निकल रहे हैं । यहाँ भी यथासामर्थ्य श्वास को बाहर ही रोककर रखें तथा इस बार दायें नथुने से श्वास लेकर बायें नथुने से छोड़ें । इस प्रकार इस प्रयोग को प्रतिदिन दस बार करने से आप स्वयं में चमत्कारिक परिवर्तन महसूस करेंगे । कुछ ही दिनो के सतत् प्रयोग से आपको इसका लाभ दिखने लगेगा । अनेक लोगों को इस प्रयोग से चमत्कारिक लाभ हुआ है ।

सूर्य की रश्मियों में अद्भुत रोगप्रतिकारक शक्ति है । दुनिया का कोई वैद्य अथवा कोई मानवी इलाज उतना दिव्य स्वास्थ्य और बुद्धि की दृढ़ता नहीं दे सकता है, जितना सुबह की कोमल सूर्य-रश्मियों में छुपे ओज-तेज से मिलता है ।

भगवान सूर्य तेजस्वी एवं प्रकाशवान हैं । उनके दर्शन व उपासना करके तेजस्वी व प्रकाशमान बनने का प्रयत्न करें ।
ऐसे निराशावादी और उत्साहहीन लोग जिनकी आशाएँ, भावनाएँ व आस्थाएँ मर गयी हैं, जिन्हें भविष्य में प्रकाश नहीं, केवल अंधकार एवं निराशा ही दिखती है ऐसे लोग भी सूर्योपासना द्वारा अपनी जीवन में नवचेतन का संचार कर सकते हैं ।

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Sunday, January 13, 2019

जानिए मकर संक्रांति क्यों मनाई जाती है? क्या करना चाहिए उसदिन?

13 जनवरी  2019

🚩हिन्दू संस्कृति अति प्राचीन #संस्कृति है, उसमें अपने जीवन पर प्रभाव पड़ने वाले ग्रह, नक्षत्र के अनुसार ही वार, तिथि त्यौहार बनाये गये हैं । इसमें से एक है  मकर संक्रांति..!! इस बार 15 जनवरी को मकर संक्रांति मनाई जायेगी ।

🚩हिंदू धर्म ने माह को दो भागों में बाँटा है- कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष । इसी तरह वर्ष को भी दो भागों में बाँट रखा है। #पहला उत्तरायण और दूसरा दक्षिणायन। उक्त दो अयन को मिलाकर एक वर्ष होता है ।   

🚩मकर संक्रांति के दिन #सूर्य पृथ्वी की परिक्रमा करने की दिशा बदलते हुए थोड़ा उत्तर की ओर ढलता जाता है, इसलिए इस काल को उत्तरायण कहते हैं ।  

🚩 इसी दिन से अलग-अलग राज्यों में गंगा नदी के किनारे माघ मेला या गंगा स्नान का आयोजन किया जाता है । कुंभ के पहले स्नान की शुरुआत भी इसी दिन से होती है ।

🚩सूर्य पर आधारित #हिंदू धर्म में मकर संक्रांति का बहुत अधिक महत्व माना गया है । वेद और पुराणों में भी इस दिन का विशेष उल्लेख मिलता है । होली, दीपावली, दुर्गोत्सव, शिवरात्रि और अन्य कई त्यौहार जहाँ विशेष कथा पर आधारित हैं, वहीं #मकर संक्रांति खगोलीय घटना है, जिससे जड़ और चेतन की दशा और दिशा तय होती है । मकर संक्रांति का महत्व #हिंदू धर्मावलंबियों के लिए वैसा ही है जैसे वृक्षों में पीपल, हाथियों में ऐरावत और पहाड़ों में हिमालय ।  

🚩सूर्य के धनु से मकर राशि में प्रवेश को उत्तरायण माना जाता है । इस राशि परिवर्तन के समय को ही मकर संक्रांति कहते हैं । यही एकमात्र पर्व है जिसे समूचे #भारत में मनाया जाता है, चाहे इसका नाम प्रत्येक प्रांत में अलग-अलग हो और इसे मनाने के तरीके भी भिन्न हो, किंतु यह बहुत ही महत्व का पर्व है ।

🚩विभिन्न राज्यों में अलग-अलग नाम से मनाया जाता है:-

🚩उत्तर प्रदेश : मकर संक्रांति को खिचड़ी पर्व कहा जाता है । सूर्य की पूजा की जाती है । चावल और दाल की खिचड़ी खाई और दान की जाती है ।

🚩गुजरात और राजस्थान : उत्तरायण पर्व के रूप में मनाया जाता है। पतंग उत्सव का आयोजन किया जाता है ।

🚩आंध्रप्रदेश : संक्रांति के नाम से तीन दिन का पर्व मनाया जाता है ।

🚩तमिलनाडु : किसानों का ये प्रमुख पर्व पोंगल के नाम से मनाया जाता है । घी में दाल-चावल की खिचड़ी पकाई और खिलाई जाती है ।

🚩महाराष्ट्र : लोग गजक और तिल के लड्डू खाते हैं और एक दूसरे को भेंट देकर शुभकामनाएं देते हैं ।

🚩पश्चिम बंगाल : हुगली नदी पर गंगा सागर मेले का आयोजन किया जाता है ।

🚩असम : भोगली बिहू के नाम से इस पर्व को मनाया जाता है ।

🚩पंजाब : एक दिन पूर्व लोहड़ी पर्व के रूप में मनाया जाता है । धूमधाम के साथ समारोहों का आयोजन किया जाता है ।

🚩इसी दिन से हमारी धरती एक नए वर्ष में और सूर्य एक नई गति में प्रवेश करता है। वैसे वैज्ञानिक कहते हैं कि 21 मार्च को धरती सूर्य का एक चक्कर पूर्ण कर लेती है तो इसे माने तो #नववर्ष तभी मनाया जाना चाहिए। #इसी 21 मार्च के आसपास ही विक्रम संवत का नववर्ष शुरू होता है और #गुड़ी पड़वा मनाया जाता है, किंतु 14 जनवरी ऐसा दिन है, जबकि धरती पर अच्छे दिन की शुरुआत होती है। ऐसा इसलिए कि सूर्य दक्षिण के बजाय अब उत्तर को गमन करने लग जाता है। जब तक सूर्य पूर्व से दक्षिण की ओर गमन करता है तब तक उसकी किरणों को ठीक नही माना गया है, लेकिन जब वह पूर्व से उत्तर की ओर गमन करने लगता है तब उसकी किरणें सेहत और शांति को बढ़ाती हैं।  

🚩मकर संक्रांति के दिन ही पवित्र #गंगा नदी का धरती पर अवतरण हुआ था। महाभारत में #पितामह भीष्म ने सूर्य के उत्तरायण होने पर ही स्वेच्छा से शरीर का परित्याग किया था, कारण कि #उत्तरायण में देह छोड़ने वाली आत्माएँ या तो कुछ काल के लिए देवलोक में चली जाती हैं या पुनर्जन्म के चक्र से उन्हें छुटकारा मिल जाता है।

 🚩दक्षिणायन में देह छोड़ने पर बहुत काल तक आत्मा को अंधकार का सामना करना पड़ सकता है । सब कुछ प्रकृति के नियम के तहत है, इसलिए सभी कुछ प्रकृति से बद्ध है । #पौधा प्रकाश में अच्छे से खिलता है, अंधकार में सिकुड़ भी सकता है । इसीलिए मृत्यु हो तो प्रकाश में हो ताकि साफ-साफ दिखाई दे कि हमारी गति और स्थिति क्या है । क्या हम इसमें सुधार कर सकते हैं? 
क्या ये हमारे लिए उपयुक्त चयन का मौका है ?  

🚩स्वयं भगवान #श्रीकृष्ण ने भी उत्तरायण का महत्व बताते हुए #गीता में कहा है कि उत्तरायण के छह मास के शुभ काल में, जब सूर्य देव उत्तरायण होते हैं और पृथ्वी प्रकाशमय रहती है तो इस प्रकाश में शरीर का परित्याग करने से व्यक्ति का पुनर्जन्म नहीं होता, ऐसे लोग #ब्रह्म को प्राप्त हैं। इसके विपरीत सूर्य के दक्षिणायण होने पर पृथ्वी अंधकारमय होती है और इस अंधकार में शरीर त्याग करने पर पुनः जन्म लेना पड़ता है। (श्लोक-24-25)  

🚩क्या करे मकर संक्रांति को..???

🚩14 जनवरी - मकर संक्रांति ( पुण्यकालः दोपहर 1:27 से सूर्यास्त तक)

🚩मकर संक्रांति या #उत्तरायण दान-पुण्य का पर्व है । इस दिन किया गया #दान-पुण्य, जप-तप अनंतगुना फल देता है । इस दिन गरीब को अन्नदान, जैसे तिल व गुड़ का दान देना चाहिए। इसमें तिल या तिल के लड्डू या तिल से बने खाद्य पदार्थों को दान देना चाहिए । कई लोग रुपया-पैसा भी दान करते हैं।

🚩मकर संक्रांति के दिन साल का पहला #पुष्य नक्षत्र है मतलब खरीदारी के लिए बेहद शुभ दिन ।

🚩उत्तरायण के दिन भगवान सूर्यनारायण के 
इन नामों का जप विशेष हितकारी है ।

ॐ मित्राय नमः । ॐ रवये नमः । 
ॐ सूर्याय नमः । ॐ भानवे नमः ।
ॐ खगाय नमः । ॐ पूष्णे नमः ।
ॐ हिरण्यगर्भाय नमः । ॐ मरीचये नमः । 
ॐ आदित्याय नमः । ॐ सवित्रे नमः ।
ॐ अर्काय नमः ।  ॐ भास्कराय  नमः । 
ॐ सवितृ सूर्यनारायणाय नमः ।

🚩ॐ ह्रां ह्रीं सः सूर्याय नम:।  इस मंत्र से सूर्यनारायण की वंदना कर लेना, उनका चिंतन करके प्रणाम कर लेना। इससे सूर्यनारायण प्रसन्न होंगे, निरोगता देंगे और अनिष्ट से भी रक्षा करेंगे।

🚩यदि नदी तट पर जाना संभव नही है, तो अपने घर के स्नान घर में #पूर्वाभिमुख होकर जल पात्र में तिल मिश्रित जल से स्नान करें । साथ ही समस्त पवित्र नदियों व तीर्थ का स्मरण करते हुए ब्रम्हा, विष्णु, रूद्र और भगवान भास्कर का ध्यान करें । साथ ही इस जन्म के पूर्व जन्म के ज्ञात अज्ञात मन, वचन, शब्द, काया आदि से उत्पन्न दोषों की निवृत्ति हेतु #क्षमा याचना करते हुए सत्य धर्म के लिए निष्ठावान होकर सकारात्मक कर्म करने का संकल्प लें । जो संक्रांति के दिन स्नान नही करता वह 7 जन्मों तक निर्धन और रोगी रहता है ।

🚩तिल का महत्व :-

🚩विष्णु धर्मसूत्र में उल्लेख है कि मकर संक्रांति के दिन #तिल का 6 प्रकार से उपयोग करने पर जातक के जीवन में सुख व समृद्धि आती है ।

 🚩तिल के तेल से स्नान करना । #तिल का उबटन लगाना । पितरों को तिलयुक्त तेल अर्पण करना। तिल की आहूति देना । तिल का दान करना । तिल का सेवन करना।

🚩ब्रह्मचर्य बढ़ाने के लिए :-

🚩ब्रह्मचर्य रखना हो, संयमी जीवन जीना हो, वे 
उत्तरायण के दिन भगवान सूर्यनारायण का 
सुमिरन करें, जिससे बुद्धि में बल बढे ।
ॐ सूर्याय नमः... ॐ शंकराय नमः... 
ॐ गं गणपतये नमः... ॐ हनुमते नमः... 
ॐ भीष्माय नमः... ॐ अर्यमायै नमः... 
ॐ... ॐ...

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दसवें गुरु गोविंद सिंह जिन्होंने भारत से उखाड़ फेंका मुगल साम्राज्य को..

12 जनवरी  2019

🚩सिख समुदाय के दसवें धर्म-गुरु (सतगुरु) गोविंद सिंह जी का जन्म पौष शुदि सप्तमी संवत 1723 ( 5 जनवरी 1666) को हुआ था । उनका जन्म बिहार के पटना शहर में हुआ था। इस साल 13 जनवरी को गुरु गोविंद सिंह जयंती मनाई जायेगी।

🚩उनके पिता गुरू तेग बहादुर की मृत्यु के उपरान्त 11 नवम्बर सन 1675 को वे गुरू बने । वह एक महान योद्धा, कवि, भक्त एवं आध्यात्मिक संत थे।

🚩सन 1699 में बैसाखी के दिन उन्होने खालसा पन्थ की स्थापना की । जो सिखों के इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण घटना मानी जाती है।

🚩गुरू #गोविन्द सिंह ने सिखों के पवित्र ग्रन्थ गुरु ग्रंथ साहिब को पूरा किया तथा उन्हें गुरु रूप में सुशोभित किया। 

🚩उन्होंने #मुगलों या उनके #सहयोगियों (जैसे, शिवालिक पहाड़ियों के राजा) के साथ 14 युद्ध लड़े । धर्म के लिए समस्त परिवार का बलिदान किया, जिसके लिए उन्हें 'सरबंसदानी' भी कहा जाता है । इसके अतिरिक्त जनसाधारण में वे कलगीधर, दशमेश, #बाजांवाले आदि कई नाम, उपनाम व उपाधियों से भी जाने जाते हैं ।

🚩गुरु गोविंद सिंह जो विश्व की बलिदानी परम्परा में अद्वितीय थे, वहीं वे स्वयं एक महान लेखक, #मौलिक चिंतक तथा कई भाषाओं के ज्ञाता भी थे। उन्होंने स्वयं कई ग्रंथों की रचना की। वे विद्वानों के संरक्षक थे। उनके दरबार में 52 कवियों तथा लेखकों की उपस्थिति रहती थी, इसीलिए उन्हें 'संत सिपाही' भी कहा जाता था। वे भक्ति तथा शक्ति के अद्वितीय संगम थे।

🚩गुरु गोबिन्द सिंह का जन्म!!

🚩प्राग राज के निवास समय श्री गोबिंद राय जी के जन्म से एक दिन पहले माता नानकी जी ने स्वाभाविक श्री गुरु तेग बहादुर जी (Shri Guru Teg Bahadar Ji) को कहा कि बेटा! आप जी के पिता ने एक बार मुझे वचन दिया था कि तेरे घर तलवार का धनी बड़ा प्रतापी शूरवीर पोत्र ईश्वर का अवतार होगा । मैं उनके वचनों को याद करके प्रतीक्षा कर रही हूँ कि आपके पुत्र का मुँह मैं कब देखूँगी !
 बेटा जी! मेरी यह मुराद पूरी करो, जिससे मुझे सुख की प्राप्ति हो ।

🚩अपनी माता जी के यह मीठे वचन सुनकर गुरु जी ने वचन किया कि माता जी! आप जी का मनोरथ पूरा करना अकाल पुरख के हाथ मैं है । हमें भरोसा है कि आप के घर तेज प्रतापी #ब्रह्मज्ञानी पौत्र देंगे ।

🚩गुरु जी के ऐसे आशावादी वचन सुनकर माता जी बहुत प्रसन्न हुए । माता जी के मनोरथ को पूरा करने के लिए गुरु जी नित्य प्रति प्रातकाल त्रिवेणी स्नान करके अंतर्ध्यान हो कर वृति जोड़ कर बैठ जाते व पुत्र प्राप्ति के लिए अकाल #पुरुष की आराधना करते ।

🚩गुरु जी की नित्य आराधना और याचना अकाल पुरख के दरबार में स्वीकार हो गई। उसने हेमकुंट के महा तपस्वी दुष्ट दमन को आप जी के घर माता गुजरी जी के गर्भ में जन्म लेने कि आज्ञा की । जिसे स्वीकार करके श्री #दमन (दसमेश) जी ने अपनी माता गुजरी जी के गर्भ में आकर प्रवेश किया ।

🚩गुरु #गोविंद_सिंह का जन्म नौवें सिख गुरु तेगबहादुर और माता गुजरी के घर पटना में 5 जनवरी 1666 को हुआ था। जब वह पैदा हुए थे उस समय उनके पिता असम में #धर्म उपदेश को गये थे। उन्होंने बचपन में फारसी, #संस्कृत की शिक्षा ली और एक योद्धा बनने के लिए सैन्य कौशल सीखा।

🚩गुरु गोबिंद सिंह की तीन #पत्नियाँ थी :- 

🚩21जून, 1677 को 10 साल की उम्र में उनका विवाह माता जीतो के साथ आनंदपुर से 10 किलोमीटर दूर #बसंतगढ़ में किया गया। उन दोनों के 3 लड़के हुए जिनके नाम थे – जुझार सिंह, जोरावर सिंह, फतेह सिंह ।

🚩4अप्रैल, 1684 को 17 वर्ष की आयु में उनका दूसरा विवाह माता सुंदरी के साथ आनंदपुर में हुआ। उनका एक #बेटा हुआ जिसका नाम था #अजीत सिंह।

🚩15अप्रैल, 1700 को 33 वर्ष की आयु में उन्होंने माता साहिब देवन से विवाह किया। वैसे तो उनकी कोई संतान नहीं थी पर सिख धर्म के पन्नों पर उनका दौर भी बहुत प्रभावशाली रहा। 

🚩गुरु गोबिन्द सिंह मार्ग :- 

🚩अप्रैल 1685 में, सिरमौर के राजा मत प्रकाश के निमंत्रण पर गुरू गोबिंद सिंह ने अपने निवास को सिरमौर राज्य के पांवटा शहर में स्थानांतरित कर दिया । सिरमौर राज्य के गजट के अनुसार, राजा भीम चंद के साथ मतभेद के कारण गुरु जी को आनंदपुर साहिब छोड़ने के लिए मजबूर किया गया था और वे वहाँ से टोका शहर चले गये । मत प्रकाश ने गुरु जी को टोका से सिरमौर की राजधानी नाहन के लिए आमंत्रित किया। नाहन से वह पांवटा के लिए रवाना हुये। मत प्रकाश ने गढ़वाल के राजा फतेह शाह के खिलाफ अपनी स्थिति मजबूत करने के उद्देश्य से गुरु जी को अपने राज्य में आमंत्रित किया था। राजा मत प्रकाश के अनुरोध पर गुरु जी ने पांवटा मे बहुत कम समय में उनके #अनुयायियों की मदद से एक किले का निर्माण करवाया। गुरु जी पांवटा में लगभग तीन साल के लिए रहे और कई ग्रंथों की रचना की। 

🚩सन 1687 में नादौन की लड़ाई में, #गुरु गोविंद सिंह, भीम चंद, और अन्य मित्र देशों की पहाड़ी राजाओं की सेनाओं ने अलिफ खान और उनके सहयोगियों की सेनाओं को हरा दिया था । विचित्र नाटक (गुरु गोबिंद सिंह द्वारा रचित आत्मकथा) और भट्ट वाहिस के अनुसार, #नादौन पर बने व्यास नदी के तट पर गुरु गोबिंद सिंह आठ दिनों तक रहे और विभिन्न महत्वपूर्ण सैन्य प्रमुखों का दौरा किया।

🚩भंगानी के युद्ध के कुछ दिन बाद, रानी चंपा (बिलासपुर की विधवा रानी) ने गुरु जी से आनंदपुर साहिब (या चक नानकी जो उस समय कहा जाता था) वापस लौटने का अनुरोध किया जिसे गुरु जी ने स्वीकार किया । वह नवंबर 1688 में वापस आनंदपुर साहिब पहुंच गये ।

🚩1695 में, दिलावर खान (#लाहौर का मुगल मुख्य) ने अपने बेटे #हुसैन खान को आनंदपुर साहिब पर हमला करने के लिए भेजा । मुगल सेना हार गई और हुसैन खान मारा गया। हुसैन की मृत्यु के बाद, दिलावर खान ने अपने आदमियों जुझार हाडा और चंदेल राय को शिवालिक भेज दिया। हालांकि, वे जसवाल के गज सिंह से हार गए थे। पहाड़ी क्षेत्र में इस तरह के घटनाक्रम मुगल सम्राट औरंगजेब के लिए चिंता का कारण बन गए और उसने क्षेत्र में मुगल अधिकार बहाल करने के लिए सेना को अपने बेटे के साथ भेजा।

🚩खालसा पंथ की स्थापना :-

🚩गुरु #गोविंद सिंह जी का नेतृत्व सिख समुदाय के इतिहास में बहुत कुछ नया रंग ले कर आया। उन्होंने सन 1699 में बैसाखी के दिन खालसा जो कि सिख धर्म के विधिवत् #दीक्षा प्राप्त अनुयायियों का एक सामूहिक रूप है उसका निर्माण किया।

🚩सिख समुदाय के एक सभा में उन्होंने सबके सामने पूछा – कौन अपने सर का बलिदान देना चाहता है? उसी समय एक #स्वयंसेवक इस बात के लिए राजी हो गया और गुरु गोबिंद सिंह उसे तम्बू में ले गए और कुछ देर बाद वापस लौटे एक खून लगे हुए तलवार के साथ। गुरु ने दोबारा उस भीड़ के लोगों से वही सवाल दोबारा पूछा और उसी प्रकार एक और व्यक्ति राजी हुआ और उनके साथ गया पर वे तम्बू से जब बाहर निकले तो #खून से सना तलवार उनके हाथ में था। उसी प्रकार पांचवा स्वयंसेवक जब उनके साथ तम्बू के भीतर गया, कुछ देर बाद गुरु #गोबिंद सिंह सभी जीवित सेवकों के साथ वापस लौटे और उन्होंने उन्हें पंज प्यारे या पहले खालसा का नाम दिया।

🚩उसके बाद गुरु गोबिंद जी ने एक लोहे का कटोरा लिया और उसमें पानी और चीनी मिला कर दुधारी तलवार से घोल कर अमृत का नाम दिया। पहले 5 खालसा के बनाने के बाद उन्हें छटवां खालसा का नाम दिया गया जिसके बाद उनका नाम गुरु गोबिंद राय से गुरु गोबिंद सिंह रख दिया गया। उन्होंने क शब्द के पांच महत्व खालसा के लिए समझाये और कहा – केश, कंगा, कड़ा, किरपान, कच्चेरा।

🚩यह कहा जाता है कि #गुरु गोबिंद सिंह ने कुल चौदह युद्ध लड़े परन्तु कभी भी किसी पूजा के स्थल के लोगों को ना ही बंदी बनाया या क्षतिग्रस्त किया।

🚩भंगानी का युद्ध Battle of Bhangani (1688)नादौन का #युद्ध 

Battle of Nadaun (1691)गुलेर का युद्ध 

Battle of Guler (1696)आनंदपुर का पहला युद्ध 

First Battle of Anandpur (1700)आनंदपुर साहिब का युद्ध 

Battle of Anandpur Sahib (1701)निर्मोहगढ़ का युद्ध 

Battle of Nirmohgarh (1702)बसोली का युद्ध 

Battle of Basoli (1702)आनंदपुर का युद्ध 

Battle of Anandpur (1704)सरसा का युद्ध 

Battle of Sarsa (1704)चमकौर का युद्ध 

Battle of Chamkaur (1704)मुक्तसर का युद्ध Battle of Muktsar (1705)

🚩परिवार के लोगों की मृत्यु :-

🚩कहा जाता है कि सिरहिन्द के मुस्लिम गवर्नर ने गुरु गोबिंद सिंह के माता और दो पुत्र को बंदी बना लिया था। जब उनके दोनों पुत्रों ने इस्लाम धर्म को कुबूल करने से मना कर दिया तो उन्हें जिन्दा दफना दिया गया। अपने पोतों के मृत्यु के दुःख को ना सह सकने के कारण माता गुजरी भी ज्यादा दिन तक जीवित ना रह सकी और जल्द ही उनकी मृत्यु हो गयी। मुगल सेना के साथ युद्ध करते समय 1704 में उनके दोनों बड़े बेटों की मृत्यु हो गयी।

🚩जफरनामा :-

🚩गुरु गोबिंद सिंह ने जब देखा कि मुगल सेना ने गलत तरीके से युद्ध किया है और क्रूर तरीके से उनके पुत्रों का हत्या कर दी है तो हथियार डाल देने के बजाये गुरु गोविंद सिंह ने औरंगजेब को एक जफरनामा (विजय की चिट्ठी) लिखा, जिसमें उन्होंने औरगंजेब को चेतावनी दी कि तेरा साम्राज्य नष्ट करने के लिए खालसा पंथ तैयार हो गया है।

🚩 8 मई सन्‌ 1705 में 'मुक्तसर' नामक स्थान पर मुगलों से भयानक युद्ध हुआ, जिसमें गुरुजी की जीत हुई। मुक्तसर को पंजाब में दोबारा गुरु जी ने स्थापित किया और अदि ग्रन्थ Adi Granth के नए अध्याय को बनाने के लिए खुद को समर्पित कर दिया जो पांचवें सिख गुरु अर्जुन द्वारा संकलित किया गया है।

🚩उन्होंने अपने लेखन का एक संग्रह बनाया है जिसको नाम दिया दसम ग्रन्थ Dasam Granth और अपनी स्वयं की आत्मकथा जिसका नाम रखा है बिचित्र नाटक Bicitra Natak.

अक्टूबर सन्‌ 1706 में गुरुजी दक्षिण में गए जहाँ पर उनको औरंगजेब की मृत्यु का पता लगा। औरंगजेब ने मरते समय एक शिकायत पत्र लिखा था। हैरानी की बात है कि जो सब कुछ लुटा चुका था, (गुरुजी) वो फतहनामा लिख रहे थे व जिसके पास सब कुछ था वह शिकस्त नामा लिख रहा है। इसका कारण था सच्चाई। गुरुजी ने युद्ध सदैव अत्याचार के विरुद्ध किए थे न कि अपने निजी लाभ के लिए।

🚩अन्तिम समय :-

औरंगजेब की मृत्यु के बाद आपने बहादुरशाह को बादशाह बनाने में मदद की। गुरुजी व बहादुरशाह के संबंध अत्यंत मधुर थे। इन संबंधों को देखकर सरहद का नवाब वजीत खाँ घबरा गया। अतः उसने दो पठान गुरुजी के पीछे लगा दिए। इन पठानों ने गुरुजी पर धोखे से घातक वार किया, जिससे 7 अक्टूबर 1708 में गुरुजी (गुरु गोबिन्द सिंह जी) नांदेड साहिब में दिव्य ज्योति में लीन हो गए। अंत समय में सिक्खों को गुरु ग्रंथ साहिब को अपना गुरु मानने को कहा व खुद भी माथा टेका। गुरुजी के बाद माधोदास ने, जिसे गुरुजी ने सिक्ख बनाया बंदासिंह बहादुर नाम दिया था, जिन्होंने सरहद पर आक्रमण किया और अत्याचारियों की ईंट से ईंट बजा दी।

🚩 गुरु गोविंद सिंह के नारा था : ‘चिड़ियों से मैं बाज़ लड़ाऊं, सवा लाख से एक लड़ाऊं । 

जिनका एक एक सिपाही मुगलों को धूल चटा देता था, जिनका नाम सुनते ही औरंगजेब के पसीने छूटने लगते थे उन गुरु गोविंद सिंह जी को प्राणों से प्यारा था धर्म।

🚩 धर्म की रक्षा के लिए कुर्बान हो गए ऐसे गुरु गोविंद सिंह को शत्- शत् नमन।

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Friday, January 11, 2019

वोटबैंक के लिए नेता बसा रहे हैं अवैद्य बांग्लादेशी, देश के लिए है खतरा

11 जनवरी  2019

🚩नेता वोटबैंक के लिए कुछ भी कर सकते हैं, चाहे देश की सुरक्षा खतरे में चली जाए, आतंकवादी हमले कर दें, हिन्दुओं की सम्पति पर कोई अधिकार कर ले या देश में जनसंख्या बढ़ जाए, इससे नेताओं को कोई लेना-देना नहीं होता है, कई नेता अच्छे भी हैं, लेकिन चूँकि भारत में भ्रष्ट नेताओं की संख्या अधिक है, जिसके कारण ईमानदार नेता भी सहीं से कार्य नहीं कर पाते हैं ।

🚩भारतवासी नेता भी अधिकतर देशहित के निर्णय, न लेकर, वोटबैंक कैसे बढ़े इस बारे में ही सोचते हैं तो फिर विदेश से आई सोनिया गांधी तो देशहित के लिए सोच ही कैसे सकती है ?

🚩आज देश में जनसंख्या बढ़ रही है, उसकी परेशानी बढ़ रही है ऊपर से करोड़ों बांग्लादेशी अवैध रूप से भारत में बस गए हैं, जिससे भारत को और भी अधिक परेशानी उठानी पड़ रही है ।

🚩विपक्ष एक बार फिर राज्यसभा में सरकार के सामने तनकर खड़ा हो गया तथा विपक्ष ने नागरिकता संशोधन विधेयक को पास होने से रोक दिया । अब यह विधेयक अगले सत्र में पेश किया जा सकता है । इस बिल के पास होने के बाद पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान से पीड़ित होकर भारत आने वाले गैर मुस्लिम(हिन्दू, सिख, ईसाई, जैन, बौद्ध, पारसी) हिंदुस्तान की नागरिकता प्राप्त कर सकेंगे तथा इस बिल के मुताबिक बांग्लादेशी घुसपैठिए को देश छोड़कर जाना होगा, लेकिन मजहबी कट्टरपंथी तथा तथाकथित सेक्यूलर दल इस बिल के खिलाफ है । ये जानने के बाद भी कि बांग्लादेशी घुसपैठिये देश की सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा बन चुके हैं, देश को खोखला कर रहे हैं, इतना होने पर भी विपक्ष राजनीति से बाज नहीं आ रहा है ।

🚩कब-कब बने चुनौती ?

2012 में असम के कोकराझार में वहां के स्थानीय बोड़ो आदिवासी और बांग्लादेशी मुस्लिम घुसपैठियों के बीच जबरदस्त सांप्रदायिक झड़प के कारण 77 लोगों की मौत हो जाती है । इस घटना के बाद से ही असम में घुसपैठियों के प्रति अविश्वास का माहौल तैयार होता है और इस मुद्दे का बहुत तेज़ी से राजनीतिकरण होता है ।

🚩इसी साल रोहिंग्या मुसलमानों और कोकराझार के दंगों में मरने वाले मुसलमानों को लेकर मुंबई के आज़ाद मैदान में बांग्लादेशी मुसलमानों के द्वारा एक रैली का आयोजन किया जाता है जिसमें बांग्लादेशी मुसलमानों की हिंसक भीड़ पुलिस कर्मचारियों को दौड़ा- दौड़ा कर मारती है । 

🚩महिला सिपाहियों के साथ बदसलूकी की जाती है और करोड़ों रुपये की सरकारी सम्पति को नुकसान पहुँचाया जाता है । इस बीच बंगाल और असम में कई बांग्लादेशी घुसपैठियों के तार प्रतिबंधित इस्लामिक संगठन ‘हूजी’ से जुड़े होने के मामले सामने आते हैं । इस्लामिक स्टेट ने भी भारत में अपने प्रभाव को बढ़ाने के लिए घुसपैठियों को अपने एजेंडे में शामिल होने का न्यौता दिया था ।

🚩हिन्दुस्तान सरकार के बॉर्डर मैनेजमेंट टास्क फोर्स की वर्ष 2000 की रिपोर्ट के अनुसार 1.5 करोड़ बांग्लादेशी घुसपैठ कर चुके हैं और लगभग तीन लाख प्रतिवर्ष घुसपैठ कर रहे हैं । हाल के अनुमान के मुताबिक देश में 4 करोड़ घुसपैठिये मौजूद हैं । पश्चिम बंगाल में वामपंथियों की सरकार ने वोटबैंक की राजनीति को साधने के लिए घुसपैठ की समस्या को विकराल रूप देने का काम किया ।

🚩तीन दशकों तक राज्य की राजनीति को चलाने वालों ने अपनी व्यक्तिगत राजनीतिक महत्वाकांक्षा के कारण देश और राज्य को बारूद की ढेर पर बैठने को मजबूर कर दिया । उसके बाद राज्य की सत्ता में वापसी करने वाली ममता बनर्जी बांग्लादेशी घुसपैठियों के दम पर जिहादी दीदी का तमगा लेकर मुस्लिम वोटबैंक की सबसे बड़ी धुरंधर बन गईं ।

🚩हाल ही में बंगाल के कई इलाकों में हिन्दुओं के ऊपर होने वाले सांप्रदायिक हमलों में बांग्लादेशी घुसपैठियों का ही हाथ रहा है । 2014 में पश्चिम बंगाल के सीरमपुर में नरेंद्र मोदी ने कहा था कि चुनाव के नतीजे आने के साथ ही बांग्लादेशी ‘घुसपैठियों’ को बोरिया-बिस्तर समेट लेना चाहिए । 2016 में असम में भाजपा की सरकार आने के बाद राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर को सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में अपडेट किया जा रहा है । लोकसभा चुनाव से पहले मोदी सरकार हिंदुत्व के मोर्चे पर किये गए अपने वादों का संज्ञान लेना चाहती है । बांग्लादेशी मुस्लिमों की एक बड़ी आबादी ने देश के कई राज्यों में जनसंख्या असंतुलन को बढ़ाने का काम किया है जिसके कारण देश में कई अप्रिय घटनाएं घटित हुई हैं । इसलिए इस समस्या का तुरंत निष्पादन जरूरी है ।


🚩बांग्लादेशी भारत में उपद्रव करते हैं, आतंकवादी गतिविधियां पाई गई हैं । देश की सुरक्षा को बंगलादेशी घुसपैठियों से खतरा है । देश की सुरक्षा के मद्देनजर इन्हें शीघ्र बाहर करना होगा ।

🚩भारत में अवैध घुसपैठियों को, अल्पसंख्यक की सारी सुविधाएं दी जा रही है, दूसरी ओर बांग्लादेश में बस रहे हिंदुओ पर, भीषण अत्याचार किया जा रहा है |

🚩बांग्लादेश माइनॉरिटी वॉच के अध्यक्ष अधिवक्ता #श्री रवींद्र घोष ने कहा कि बांग्लादेश जब से स्वतंत्र हुआ है, तब से आज तक वहां 15 लाख से अधिक हिन्दुओं की हत्या की गई है । स्वतंत्रता के पश्‍चात जब से वहां के शासन ने, संविधान में इस्लाम धर्मानुसार, आचरण करने की धारा घुसाई, तब से निरंतर वहां के हिन्दुओं की, धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकारों को नकारा जा रहा है । वहां के हिन्दुओं को किसी प्रकार का न्याय अथवा अधिकार नहीं मिलता, अपितु हिन्दुओं की भूमि बलपूर्वक दबा ली गई ।

🚩हिन्दू लड़कियों का अपहरण कर बलात्कार किए जाते हैं । हिन्दुओं के घर-दुकाने जला दिए जातें हैं, सम्पति हड़प ली जाती है,  विद्यालय के बुद्धिमान हिन्दू विद्यार्थियों को मारा जाता है । अभी तक #बांग्लादेश में #3 सहस्र 336 मंदिर तोड़े गए हैं । ऐसे विविध प्रकार से हिन्दुओं पर #अत्याचार और अन्याय किया जाता है तथा उस प्रत्येक घटना के विरोध में #‘बांग्लादेश मायनॉरिटी वॉच’ संघर्ष कर रहा है । 

🚩अखण्ड भारत को जिहादियों ने खण्ड-खण्ड कर दिया, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश बना दिया, उसमें पहले से ही स्थायी रूप से रह रहे हिन्दुओं पर भीषण अत्याचार किया जा रहा है, वहीं दूसरी ओर भारत मे अवैध रूप में बस रहे, बंगलादेशीयों को सारी सुख-सुविधाएं दी जा रही है, यह कहाँ का न्याय है ?

बंगलादेशीयों और रोहिंग्याओं को शीघ्र बाहर करना होगा, तभी देश की सुरक्षा बनी रहेगी ।

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