Thursday, May 14, 2020

सनातन धर्म को कर रहा विश्व नमन, बिना प्रचार के फैल रहा है चहुओर...

14 मई 2020

🚩ये बिल्कुल सत्य है कि सनातन धर्म आज के दिन विश्व का एकमात्र ऐसा धर्म है जो बिना प्रचार प्रसार के ही फैल रहा है, जिसे विश्व के लोग प्रेम से अपना रहे है।

🚩हिन्दू धर्म को अपनाने का मुख्य कारण है इसका वैदिक ज्ञान जो "वसुधैव कुटुम्बकम्", "सर्वे भवन्तु सुखिनः" की बात करता है, इसके धर्मग्रंथों यथा वेद और श्रीमद्भगवद्गीता का ज्ञान जो निष्काम कर्म और आत्मा परमात्मा का ज्ञान प्रदान करता है, इसकी परंपराएं जो वैज्ञानिक सिद्ध हो चुकी है।

🚩आज पूरा विश्व कोरोना महामारी के संकट से जूझ रहा है। कोरोना ने पूरे विश्व में तबाही मचा रखी है। पश्चिमी जीवनशैली कोरोना महामारी से बचाने में ना केवल असफल रही है उल्टा पश्चिमी जीवनशैली कोरोना वायरस को फैलाने में मददगार सिद्ध हुई है।

🚩कोरोना वायरस से बचने के लिए वैज्ञानिकों और डॉक्टरों ने जो सावधानी रखने की बात कही, जो सफाई रखने की बात कही, वो तो सनातन संस्कृति में परम्पराएं के रूप में सदियों से चली आ रही हैं। पहले सनातन संस्कृति की ऐसी कुछ परम्पराओं के विषय में बता रहे हैं 👇🏻

(1) सनातन धर्म में दोनों हाथ जोड़कर नमस्ते करने की परंपरा है।

(2) जब कोई घर में प्रवेश करता है तो हाथ पैर धोकर प्रवेश करता है।

(3) सनातन धर्म में मृत शरीर का दाह-संस्कार करने की परंपरा है। मृत शरीर को अग्नि द्वारा जलाया जाता है।

(4) सनातन संस्कृति में श्मशान घाट और अस्पताल से आने के बाद स्नान करने की परंपरा है।

(5) सनातन संस्कृति ने सदा शाकाहारी रहने की शिक्षा दी और शाकाहार जीवन का अनुसरण किया।

(6) सनातन संस्कृति के योग और प्राणायाम की खोज की और स्वस्थ रहने के लिए योग, प्राणायाम करने की शिक्षा दी।

(7) सनातन संस्कृति संतों द्वारा ही "ॐ" और दूसरे मंत्रों की खोज की गई जिनमें आरोग्यता के साथ साथ भगवान से मिलाने की शक्ति है।

(8) सनातन संस्कृति ने यज्ञ, भजन, पूजा-पाठ, घण्टी-शंख बजाना आदि परम्पराएं चलाई जिनसे पर्यावरण शुद्ध होता है।

(9) सनातन संस्कृति में पशुओं, जंगलों, तुलसी, पीपल आदि को पूजने की प्रथा भी है।

🚩उपरोक्त सभी परम्पराओं पर दुनिया पहले सनातन संस्कृति पर हँसती थी। पर जब पूरे विश्व को अदृश्य और अति सूक्ष्म वायरस ने अपनी चपेट में लिया तो वैज्ञानिकों और डॉक्टरों ने यहीं पद्दतियां अपनाने की सलाह दी जिनका हम सदियों से अनुसरण कर रहे हैं। तब पूरा विश्व भी सनातन संस्कृति की प्रशंसा करता नजर आया और इस बात को स्वीकार किया कि सनातन संस्कृति की परम्पराएं वैज्ञानिक हैं।

🚩अब कोरोना त्रासदी के दौरान विश्व में कुछ हुए घटनाक्रमों को देखते हैं जिनसे सिद्ध होता है कि सनातन संस्कृति का लोहा सबने माना हैं👇🏻

(1) विश्व की सबसे बड़ी महाशक्ति अमेरिका में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, फर्स्ट लेडी मेलानिया ट्रंप की मौजूदगी में व्हाइट हॉउस के रोज़ गार्डन में प्रार्थना दिवस मनाया गया और इस दौरान यहां वैदिक शांति पाठ का उच्चारण भी किया गया। यहां शांति पाठ के उच्चारण के लिए खास हिन्दू पंडित को बुलाया गया था। मंदिर के पुजारी हरीश ब्रह्मभट्ट ने यहां वैदिक मंत्र का उच्चारण किया।

(2) स्पेन को कोरोना वायरस ने पूरी तरह हिला दिया है। यहां भी डॉक्टर, नर्स से लेकर पूरा स्टॉफ मरीजों के लिए प्रार्थना करता दिखा। इस दौरान वे बड़े अनुशासित ढंग से वे "ॐ" मंत्र का उच्चारण करते नजर आए।

(3) इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने कोरोना से बचने के लिए भारतीय तरीके से अभिवादन करने को कहा है। इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने अपने देशवासियों से कहा कि वो हाथ ना मिलाएं और भारत के अभिवादन की परंपरा की तरह नमस्ते करें।

(4) व्हाइट हॉउस में अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और आयरलैंड के प्रधानमंत्री लियो वराडकर ने एक दूसरे को नमस्ते कहकर अभिवादन किया।

(5) बकिंघम पैलेस में प्रिंस चार्ल्स और ब्रिटिश टीवी एंकर फ्लोएला बेंजामिन ने एक दूसरे का नमस्ते करके अभिवादन किया।

(6) टोक्यो, जापान में प्रधानमंत्री आवास पर प्रधानमंत्री शिंजो आबे और गवर्नर युरिको कोइके ने एक दूसरे को नमस्ते करके अभिवादन किया।

(7) फ्रांस में राष्ट्रपति इमेनुएल मेंक्रो ने स्पेन के राजा को नमस्ते किया।

(8) शेफील्ड, ब्रिटेन में शेफील्ड यूनाइटेड VS नोविर्च सिटी फुटबाल मैच से पहले खिलाड़ी एक दूसरे को अभिवादन करते नज़र आए।

(9) फिलीपींस में डॉक्टर राधिका देवी जो कोरोना के मरीजों का इलाज कर रही थी, वो बीच में माला के साथ भगवन्नाम जप करते नज़र आई।

(10) श्रीलंका में कोरोना से मृत्यु के पश्चात दाह संस्कार को अनिवार्य किया।

(11) चीन जहां से कोरोना पूरे विश्व में फैला था, वहाँ भी सरकार ने कोरोना से मृत्यु के बाद दाह संस्कार के आदेश दिए हुए थे।

(12) जर्मनी में चांसलर एंजेला मर्केल के लिए उस वक्त स्थिति असहज हो गई जब जर्मनी के आंतरिक मंत्री होर्स्ट जेहोफान ने एंजिला मर्केल से हाथ मिलाने से इनकार कर दिया।

(13) कोरोना वायरस फैलने का कारण मांसाहार था इसलिए पूरी दुनिया मांसाहार छोड़कर शाकाहार को अपनाती नज़र आई।

(14) जर्मनी की ल्युबेक यूनिवर्सिटी ने भारतीय खानपान पर रिसर्च करती नज़र आई।

(15) हावर्ड वैद्यकीय विद्यालय, अमेरिका ने कहा कि कोरोना वायरस से जुड़ी व्यग्रता और बेचैनी से निपटने के लिए योग व ध्यान करें।

(16) अमेरिका ने स्वीकार किया कि तुलसी और पीपल सर्वोत्तम है।

(17) फ्रांस ने स्वीकार किया कि शंख ध्वनि लाभदायक है।

(18) इजराइल ने कहा कि यज्ञ-हवन से वायरस दूर होते हैं।

(19) कोरोना पर भारत का मजाक उड़ाने वाले अर्थशास्त्री जिम ओ नील को अमेरिकी अभिनेत्री शेरोन स्टोन ने जवाब दिया कि भारत ने शाकाहार को आदर्श बनाया और आयुर्वेद का विस्तार किया, जिस कारण भारत कभी गम्भीर बीमारी के संकट में नहीं पड़ा। भारत ने इतिहास के पन्नों में कोई महामारी उत्पन्न नहीं की। भारतीय सभ्यता दुनिया में सबसे उन्नत है इसलिए नमस्ते को विश्व के नेता प्रचारित कर रहे हैं। अपनी उन्नत संस्कृति और आदर्शों की वजह से भारत हर संकट से लड़ने में कामयाब रहा था और रहेगा।

🚩विश्व कोरोना वायरस से जूझ रहा है पर ये भी वास्तविकता है कि विश्व सनातन संस्कृति की ओर आकर्षित हो रहा है। पूरे विश्व में हिन्दू धर्म इतना लोकप्रिय हो रहा है कि लोग अपना धर्म छोड़कर हिन्दू धर्म और हिन्दू जीवनशैली अपना रहे हैं। जानिए पूरा विश्व कैसे हिन्दुत्व का लोहा मानकर उसे अपना रहा है 👇🏻

(1) रूस में हिन्दू धर्म बहुत तेजी से फैल रहा है। ऑस्ट्रेलिया में भी हिन्दू धर्म बड़ी तेजी से फैल रहा है, वहां बड़े-बड़े मंदिर बन रहे हैं।

(2) टेनिस में कई बार विम्बलडन विजेता रह चुके स्टार खिलाड़ी नोवाक जोकोविच ने कहा कि शाकाहार, योग और ध्यान ने मुझे शिखर पर पहुँचाया है।

(3) दुनिया में सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी वाले देश इंडोनेशिया के नोट पर भगवान गणेश की फ़ोटो है। भगवान गणेश को इंडोनेशिया में शिक्षा, कला और विज्ञान का देवता माना जाता है।

(4) मुस्लिम बहुल देश इंडोनेशिया में सुग्रीव के नाम पर खुला पहला हिंदू विश्‍वविद्यालय खुल चुका है।

(5) स्विट्जरलैंड में यूरोपीय संशोधन केंद्र ने संशोधन के बाद कहा कि भगवान शिवजी का 'तांडव नृत्य' ब्रह्मांड में हो रहे मूल कणों के उतार-चढ़ाव की क्रियाओं का प्रतीक है।

(6) अमेरिका की सेटन हॉल यूनिवर्सिटी में श्रीमद्भगवद्गीता पढ़ना अनिवार्य है।

(7) अमेरिका की हॉवर्ड यूनिवर्सिटी में रामायण और श्रीमद्भागवत गीता पढ़ाई जा रही है।

(8) श्रीमद्भगवद्गीता का विश्व की 578 से भी अधिक भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। सभी ने इसे महान ग्रन्थ स्वीकार किया है।

(9) रोमानिया में 11वीं कक्षा में रामायण और महाभारत का कुछ अंश पढ़ाया जा रहा है।

(10) यूरोपीय विद्वान मार्क स्ट्रैंथ ने कहा कि धर्म के आधार पर सभी देश दरिद्र है किन्तु भारत धर्म के क्षेत्र में अरबपति तथा सबसे महान राष्ट्र है।

(11) सैमुअल जानसन के अनुसार हिन्दू लोग धार्मिक, प्रसन्नचित, शांतिप्रिय, न्यायप्रिय, सत्यभाषी, दयालु, कृतज्ञ, ईश्वरभक्त तथा भावनाशील होते हैं।

(12) दक्षिण अफ्रीका के पूर्व क्रिकेटर जोंटी रोडस भारत और हिन्दू धर्म से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने हिन्दू धर्म अपना लिया और जब उनको बेटी हुई तो उसका नाम "इंडिया" रखा।

(13) इंग्लैंड क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान हिन्दू धर्म से बहुत प्रभावित है और इसलिए वो हिंदी भी सीख रहे हैं। कुछ दिन पहले केविन पीटरसन ने हिंदी भाषा में ट्वीट किया था। उन्होंने उसमें लिखा - "नमस्ते इंडिया, हम सब कोरोना वायरस को हराने में एक साथ हैं, हम सब अपनी-अपनी सरकार की बात का निर्देश करें और घर में कुछ दिन के लिए रहें, यह समय है होशियार रहने का। आप सभी को ढेर सारा प्यार"।

🚩एक तरफ जहाँ इस्लाम धर्म को फैलाने के लिए मुस्लिम जिहाद, लव जिहाद जैसे अमानवीय कृत्य कर रहे हैं, ईसाई मिशनरियां पैसे, छल, बल द्वारा गरीबों,आदिवासियों, मजबूरों का धर्म परिवर्तन कर रही है वहीं दूसरी और अपनी महान, वैदिक और वैज्ञानिक परम्पराओं की वजह से हिन्दू धर्म को लोग बिना प्रचार प्रसार के ही अपना रहे हैं। जहां रोगों को चमत्कार से दूर करने की बात करने वाले सैकड़ों पादरी और मौलवी कोरोना वायरस के संक्रमण के कारण मर गए वहीं हिन्दू संतों द्वारा खोजा गया योग, प्राणयाम, जप और संतों द्वारा शाकाहार जीवनशैली की शिक्षा और दूसरी सनातन परम्पराएं पूरे विश्व की कोरोना वायरस से रक्षा कर रही हैं। ये गर्व की बात है कि हमारा जन्म भारत में हुआ। गर्व से कहो कि हम सनातन धर्मी है।

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Tuesday, May 12, 2020

विश्व को सर्जरी करना सिखाया भारत के ऋषि-मुनियों ने, जानिए दिव्य इतिहास!

12 मई 2020

🚩भारत की संस्कृति विश्व की सबसे प्राचीन संस्कृति हैं और विश्व को सब कुछ भारत ने ही सिखाया है लेकिन हमें इतिहास सही नही पढ़ाया जा रहा है जिसके कारण हम हमारी संस्कृति की महानता नही समझ पा रहे हैं।

🚩आयुर्वेद के नियम हजारों साल पहले आयुर्वेद चिकित्सा के ऋषि-मुनियों ने बनाये हुए हैं। हमारी आयुर्वेद चिकित्सा में एक महापुरुष हुए, जिनका नाम था महर्षि चरक। इन्होने सबसे ज्यादा रिसर्च इस बात पर किया कि जड़ी बूटियों से क्या क्या बीमारियाँ ठीक होती हैं या पेड़ पोधों से कौन सी बीमारियाँ ठीक होती है। पेड़ों के पत्तों से कौन सी बीमारियाँ ठीक होती हैं, उस पर उन्होंने सबसे ज्यादा रिसर्च किया।

🚩आपको जानकर आश्चर्य होगा और ख़ुशी भी होगी कि सर्जरी का अविष्कार इसी देश में हुआ। यानी भारत में हुआ, सारी दुनिया ने सर्जरी भारत से सीखी। ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी ने यहीं से सर्जरी सीखी, अमेरिका में तो बहुत बाद में आयी सर्जरी और ब्रिटेन ने भारत से लगभग 400 साल पूर्व ही सर्जरी सीखी। ब्रिटेन के डॉक्टर यहाँ आते थे और सर्जरी सीख कर वापिस जाते थे।

🚩 महर्षि सुश्रुत शल्यचिकित्सा विज्ञान यानी सर्जरी के जनक व दुनिया के पहले शल्यचिकित्सक (सर्जन) माने जाते हैं। वे शल्यकर्म या आपरेशन में दक्ष थे। महर्षि सुश्रुत द्वारा लिखे गऐ ‘सुश्रुतसंहिता’ ग्रंथ में शल्य चिकित्सा के बारे में बहुत अहम ज्ञान विस्तार से बताया है। इनमें सुई, चाकू व चिमटे जैसे तकरीबन 125 से भी ज्यादा शल्यचिकित्सा में जरूरी औजारों के नाम और 300 तरह की शल्यक्रियाओं व उसके पहले की जाने वाली तैयारियों, जैसे उपकरण उबालना आदि के बारे में पूरी जानकारी बताई गई है।

🚩जबकि आधुनिक विज्ञान ने शल्य क्रिया की खोज तकरीबन चार सदी पहले ही की है। माना जाता है कि महर्षि सुश्रुत मोतियाबिंद, पथरी, हड्डी टूटना जैसे पीड़ाओं के उपचार के लिए शल्यकर्म यानी आपरेशन करने में माहिर थे। यही नहीं वे त्वचा बदलने की शल्यचिकित्सा भी करते थे।

🚩आपको शायद सुनकर आश्चर्य होगा कि आज से 400 साल पहले भारत में सर्जरी के बहुत बड़े विश्वविद्यालय (यूनिवर्सिटी) चला करते थें। हिमाचल प्रदेश में एक जगह है कांगड़ा, यहाँ सर्जरी का सबसे बड़ा कॉलेज था।  एक ओर जगह है भरमौर, हिमाचल प्रदेश में ही, वहां एक दूसरा बड़ा केंद्र था सर्जरी का। ऐसे ही एक तीसरी जगह है, कुल्लू, वहां भी एक बहुत बड़ा केंद्र था। अकेले हिमाचल प्रदेश में 18 ऐसे केंद्र थें। फिर उसके बाद गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र तथा सम्पूर्ण भारत में सर्जरी के एक हजार दो सौ के आसपास केंद्र थें, यहाँ अंग्रेज आकर सीखते थें। 

🚩आपको बता दे कि लंदन में एक बहुत बड़ी संस्था है जिसका नाम है फेलो ऑफ़ द रॉयल सोसाइटी ऑफ़ लंदन (FRS), इस संस्था की स्थापना उन डॉक्टरों ने की थी जो भारत से सर्जरी सीख कर गये थें और उनमें से कई डॉक्टर्स ने मेमुआर्ट्स लिखे हैं।  मेमुआर्ट्स माने अपने मन की बात।  तो उन मेमुआर्ट्स को अगर पढ़े तो इतनी ऊँची तकनीक के आधार पर सर्जरी होती थी ये आपको सुनकर आश्चर्य होगा कि 400 साल पहले इस देश में रहिनोप्लास्टिक होती थी रहिनोप्लास्टिक मतलब शरीर के किसी अंग से कुछ भी काट कर नाक के आसपास के किसी भी हिस्से में उसको जोड़ देना और पता भी नही चलता।

🚩एक कर्नल कूट अंग्रेज की डायरी में लिखा हुआ कि उसका 1799 में कर्नाटक में हैदर अली के साथ युद्ध हुआ।  हैदर अली ने उसको युद्ध में पराजित कर दिया।  हारने के बाद हैदर अली ने उसकी नाक काट दी। हमारे देश में नाक काटना सबसे बड़ा अपमान है। तो हैदर अली ने उसको मारा नही चाहे तो उसकी गर्दन काट सकता था। हराने के बाद उसकी नाक काट दी और कहा कि तुम अब जाओ कटी हुई नाक लेकर।

🚩कर्नल कूट कटी हुई नाक लेकर घोड़े पर भागा, तो हैदर अली की सीमा के बाहर उसको किसी ने देखा कि उसकी नाक से खून निकल रहा है, नाक कटी हुई है हाथ में थी। तो जब उससे पूछा कि ये क्या हो गया तो उसने सच नही बताया। तो उसने कहा कि चोट लग गयी है। तो व्यक्ति ने कहा कि ये चोट नही है तलवार से काटी हुयी है। तो कर्नल कूट मान गया की हाँ तलवार से कटी है।

🚩उस व्यक्ति ने कर्नल कूट से कहा कि तुम अगर चाहो तो हम तुम्हारी नाक जोड़ सकते है। तो कर्नल कूट ने कहा की ये तो पुरे इंग्लैंड में कोई नही कर सकता तुम कैसे कर दोगे। तो उसने कहा कि हम बहुत आसानी से कर सकते है। तो बेलगाँव में कर्नल कूट के नाक को जोड़ने का ऑपरेशन हुआ। उसका करीब तीन साढ़े तीन घंटे ऑपरेशन चला। वो नाक जोड़ी गयी फिर उसपर लेप लगाया गया। 15 दिन उसको वहां रखा गया।

🚩15 दिन बाद उसकी छूट्टी हुई, 3 महीने बाद वो लंदन पहुंचा तो लंदन वाले हैरान थे कि तुम्हारी नाक तो कहीं से कटी हुई नही दिखती। तब उसने लिखा कि ये भारतीय सर्जरी का कमाल है। तो ये जो सर्जरी हमारे देश में विकसित हुई इसके लिए महर्षि सुश्रुत ने बहुत प्रयास किये तब जाकर ये सर्जरी भारत में फैली।

🚩यहाँ तो आपको भारत के ऋषि-मुनियों की केवल एक ही खोज बताई है बाकी तो विश्व मे जितनी भी आज खोजे हो रही है वे पहले हमारे ऋषि-मुनि कर चुकें हैं बस हमे जरूरत है तो सिर्फ सही इतिहास पढ़ाने और उसके अनुसार चलने की।

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Monday, May 11, 2020

सुप्रीम कोर्ट के जज बोले अमीरों की मुट्ठी में कैद है कानून और न्याय व्यवस्था

11 मई 2020

🚩वर्तमान न्याय प्रणाली हमें अंग्रेजों से विरासत में मिली है। गांधीजी ने कहा था, 'यह प्रणाली अंग्रेजों ने नेटिव इंडियंस (मूलनिवासी भारतीयों) को न्याय देने के लिए प्रस्थापित नहीं की थी, बल्कि अपना साम्राज्य मजबूत करने के लिए इस न्याय प्रणाली का गठन किया गया था। इस न्याय प्रणाली में 'स्वदेशी' कुछ भी नहीं है। इसकी भाषा, पोशाक तथा चिंतन सब कुछ विदेशी है। अतीत में भारत में जो न्याय दिलाने वाली संस्थाएँ विद्यमान थीं, उन्हें पूर्णत: समाप्त कर एक केंद्रीभूत तथा सर्वव्यापी न्याय व्यवस्था अंग्रेजों ने स्थापित की। गांधीजी ने यह भी कहा था, 'जिसकी थैली बड़ी होगी, उसी को यह न्याय प्रणाली सुहाती है।'

🚩इस न्यायव्यवस्था के कारण हमारी न्यायपालिका में भ्रष्टाचार इतना व्याप्त है कि गरीब और हिन्दूनिष्ठ निर्दोष को जल्दी न्याय ही नही मिल पाता है।

🚩आपको बता दे कि सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस दीपक गुप्ता ने अपनी नौकरी के अंतिम दिन विदाई भाषण में न्यायप्रणाली पर तीखी टिप्पणी की। बुधवार (06 मई) को सुप्रीम कोर्ट बार काउंसिल द्वारा आयोजित वर्चुअल फेयरवेल पार्टी में जस्टिस गुप्ता ने कहा कि देश का कानून और न्याय तंत्र चंद अमीरों और ताकतवर लोगों की मुट्ठी में कैद में है। उन्होंने कहा, “यदि कोई व्यक्ति जो अमीर और शक्तिशाली है, वह सलाखों के पीछे है, तो वह मुकदमे की पेंडेंसी के दौरान बार-बार उच्चतर न्यायालयों में अपील करेगा, जब तक कि किसी दिन वह यह आदेश हासिल नहीं कर लेता कि उसके मामले का ट्रायल तेजी से किया जाना चाहिए।” उन्होंने कहा, “वर्तमान समय और दौर में न्यायाधीश इससे अनजान होकर ‘आइवरी टॉवर’ में नहीं रह सकते कि उनके आसपास की दुनिया में क्या हो रहा है? उन्हें इसके बारे में जरूर पता होना चाहिए।”

🚩जस्टिस गुप्ता ने कहा, ऐसा, गरीब प्रतिवादियों की कीमत पर होता है, जिनके मुकदमे में और देरी होती जाती है क्योंकि वह धन के अभाव में उच्चतर न्यायालयों का दरवाजा नहीं खटखटा सकते। जस्टिस गुप्ता यहीं नहीं रुके। उन्होंने कहा, “अगर कोई अमीर शख्स जमानत पर है और वह मुकदमे को लटकाना चाहता है तब भी वह उच्चतर न्यायालयों का दरवाजा खटखटाकर, मामले का ट्रायल या पूरी सुनवाई प्रक्रिया तब तक बार-बार लटकाएगा, जब तक कि विपक्षी पार्टी परेशान न हो जाय।”

🚩जस्टिस गुप्ता ने जोर देकर कहा कि ऐसी स्थिति में बेंच और बार की यह जिम्मेदारी बनती है कि वो समाज के वंचितों और गरीबों को न्याय दिलाने में मदद करें। वो इस बात पर नजर रखें कि कहीं गरीबी की वजह से उनके मुकदमे पेंडिंग बॉक्स में पड़े न रह जाएं। उन्होंने कहा, “यदि वास्तविक न्याय किया जाना है, तो न्याय के तराजू को वंचितों के पक्ष में तौलना होगा।”

🚩जस्टिस गुप्ता ने कहा, “बार को पूरी तरह से स्वतंत्र होना चाहिए…और अदालतों में मामलों पर बहस करते समय बार के सदस्यों को अपनी राजनीतिक या अन्य संबद्धताओं को छोड़ देना चाहिए और मामले की पैरवी कानून के अनुसार सख्ती से करनी चाहिए।”

🚩आपको बता दे कि यह कोई पहले जज नही है जिन्होंने न्यायपालिका पर सवाल उठाया हो इससे पहले भी कई न्यायाधीशों ने इसपर सवाल उठाए है।

🚩सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायधीश काटजू ने कहा था कि भारतीय न्याय प्रणाली में 50% जज भ्रष्ट है।

🚩सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश संतोष हेगड़े भी सवाल उठा चुके है कि ‘धनी और प्रभावशाली’ तुरंत जमानत हासिल कर सकते हैं। गरीबों के लिए कोई न्याय की व्यवस्था नही है।

🚩कर्नाटक हाईकोर्ट के पूर्व वरिष्ठ न्यायाधीश जस्टिस के एल मंजूनाथ ने कहा कि यहाँ सत्यनिष्ठा और ईमानदारी के लिए कोई स्थान नहीं है और इस देश में न्याय के लिए कोई जगह नहीं।

🚩राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने भी कहा है कि देश में निर्णय देने में विलंब होना चिंता की बात है। समाज में सबसे गरीब और सबसे वंचित लोग न्याय में देरी के पीड़ितों में शामिल हैं। उन्होंने केस को जल्द निपटाने के लिए एक तंत्र बनाने की जरूरत हैं।

🚩देश में न्याय इसलिए देरी से मिलता है कि देश में जजों की कमी, वकीलों द्वारा पैसे ऐठने के कारण लंबा खीचना, बदला लेने या, पैसा नोचने की नीयत से झूठे केस दर्ज करना, और देश के जजों में रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार इतना बढ़ गया है कि अपराधियों को सजा और निर्दोषों को न्याय मिलना ही मुश्किल हो गया है। कई जज तो रिश्वत लेते पकड़े भी गये है।

🚩आज कोर्ट में देखो तो सामान्य आदमी ही आता है, धनी और प्रभावशाली व्यक्ति तो कोर्ट में मुद्दत पर आते ही नही है, गरीबों से वकील पैसे नोचते रहते हैं और न्यायालय से न्याय नहीं मिलता है, मिलती है तो सिर्फ तारीख...।

🚩नेता, अभिनेता, पत्रकारों, अमीरों को तो न्याय मिल जाता है लेकिन हिंदुत्वनिष्ठों और गरीबों को जल्दी न्याय नही मिल पाता है।

🚩इसलिये आज न्याय प्रणाली से देश की जनता का भरोसा उठ गया है, इसमे शीध्र सुधार करना चाहिए नही तो एक के बाद एक निर्दोष परेशान होते जायेंगे।


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Sunday, May 10, 2020

लंदन में लाखों की सैलरी छोड़ भारत में मां-बाप की सेवा और कर रहे हैं खेती ।

10 मई 2020

🚩भारत के अधिकतर युवाओं का सपना होता है कि पढ़-लिख कर अच्छे पैकेज की नौकरी कर आराम से जीवन गुजारा जाए और उसमें अगर विदेश में जाकर बसने का मौका मिल जाए तो यह सोने पर सुहागा जैसा साबित होगा। लेकिन ऐसे भी नौजवान हैं जो विदेश में लग्जरी जीवनशैली और बड़े पैकेज की नौकरी छोड़ न केवल स्वदेश का रुख कर रहे हैं, बल्कि गांव के कठीन जीवन में कामयाबी की इबारत लिख रहे हैं।

🚩एक ऐसा ही नौजवान जोड़ा है रामदे खुटी और भारती खुटी का। रामदे और भारती काफी समय से लंदन में रह रहे थे। यहां दोनों पति-पत्नी नौकरी करके शानो-शौकत भरा जीवन जी रहे थे, लेकिन अब यह युवा कपल लंदन छोड़कर गुजरात के पोरबंदर स्थित अपने गांव वापस आ गया है। और यहां गांव में रहकर दोनों पति-पत्नी खेती तथा पशुपालन कर रहे हैं ।

🚩पोरबंदर जिले के बेरण गांव के रामदेव खुटी वर्ष 2006 में काम करने के लिए इंग्लैंड गए थे। वहां दो साल काम करने के बाद भारत वापस आए और यहां भारती से शादी कर ली  शादी के समय भारती राजकोट में एयरपोर्ट प्रबंधन और एयर होस्टेस का कोर्स कर रही थी ।

🚩भारती अपनी पढ़ाई पूरी करने अपने पति के पास 2010 में लंदन चली गई। लंदन में भारती ने इंटरनेशनल टूरिज्म एंड हॉस्पिटैलिटी मैनेजमेंट की डिग्री हासिल की इसके बाद भारती ने ब्रिटिश एयरवेज के हीथ्रो एयरपोर्ट से हेल्थ एंड सेफ्टी कोर्स भी पूरा किया और वहीं नौकरी भी करने लगी।

🚩दोनों पति-पत्नी लंदन में शानदार जीवनशैली व्यतीत करने लगे। इस दौरान उनको एक बेटा भी हो गया। लेकिन रामदे खुटी यहां गुजरात में रह रहे अपने माता-पिता को लेकर चिंतित थे। क्योंकि उनकी देखभाल के लिए यहां कोई नहीं था। इसके अलावा उनकी खेतीबाड़ी भी दूसरे लोग ही कर रहे थे।

🚩रामदे खुटी ने भारत अपने माता-पिता के पास लौटने का फैसला किया और खेती बाड़ी से ही कुछ नया करने की सोची। रामदे की इस फैसले में उनकी पत्नी भारती ने भी पूरा समर्थन दिया। इस तरह एक दिन रामदे लंदन की लग्जरी लाइफ छोड़कर अपने परिवार के साथ वापस गुजरात आ गए और नए सिरे से खेती करने लगे। यहां आकर उन्होंने माता-पिता की सेवा और खेती के साथ-साथ पशुपालन पर भी ध्यान दिया।

🚩हालांकि भारती को शुरू में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा था, क्योंकि इससे पहले उसने कभी खेतीबाड़ी नहीं की। लेकिन लगातार मेहनत के दम पर अब भारती खेती के साथ पशुपालन के ज्यादातर काम खुद ही संभालती है।

🚩रामदे ने बताया कि वह खेती के परंपरागत तरीकों को छो़ड़कर आधुनिक तरीकों को अपना रहे हैं और जैविक खेती कर रहे हैं। नियमित आमदनी के लिए उन्होंने गाय-भैंस का पालन शुरू कर दिया है, जिनकी जिम्मेदारी भारती उठा रही हैं। इस तरह वह गांव में ही एक अच्छा जीवन जी रहे हैं और सबसे बड़ी खुशी की बात ये है कि वह अपने परिवार के बीच हैं।

🚩रामदे बताते हैं कि यहां आकर उन्होंने सीखा कि गांव में रहकर भी एक आदमी शानदार जीवनशैली जी सकता है।

🚩भारत के कुछ जवान थोड़ा पढ़ लिख लेते है तो फिर वे अपने माँ-बाप की सेवा करना, खेती करना और गाय को पालना में अपने को छोटा महसूस करते है। अथवा गांव में रहने वाले युवा अपने को कोसते रहते हैं कि हम छोटी जिंगदी जी रहे है काश हम भी विदेश में होते तो मौज मस्ती करते लेकिन इन दपन्ति से बता दिया कि अपने माता-पिता और मातृ भूमि से बढ़कर कुछ भी नही है और विदेश से भी बढ़कर अपनी खेती है और अपना जीवन खुशहाल जी सकते हैं, अपने युवाओं को भी चाहिए कि अपने माता-पिता का आदर करे और जैविक खेती और पशुपालन में भी ध्यान दे जिससे जीवन स्वस्थ और सुखी जीवन जी सके।

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