Saturday, August 15, 2020

यह इतिहास आपको जानना जरूरी है, भारत के बंटवारे के समय हिंदुओं की क्या हालत थी?

 15 अगस्त 2020


शाम की रुपहली किरणें हमारे साथ की सीमा के बाहर झांक रहीं थीं, किन्तु हमारे भाग्य में उन्हें देखना बदा न था। 15 अगस्त से पूर्व तो हम अपने शहर से एक मील स्टेशन तक सैर को जा सकते थे, किन्तु इधर उधर के अप्रत्याशित कत्लों के भय ने हमें वहां से खींच कर शहर से केवल एक फर्लांग की दूरी पर, नहर की पटरी पर ला पटका। सायंकाल के पांच बजते ही लोग पचास-साठ की टोलियां बना कर नहर की पटरी तक आते। पुल के किनारे पर बैठते। सामाजिक चर्चा करके फिर जेल के कैदी के समान दिया जलने से पूर्व ही लौट आते व अन्धेरा होते ही शहर के चारों दरवाजे बन्द हो जाते थे।



भगवान् ने हमारे शहर की बनावट ही विचित्र बनाई है। इस जैसा एक रूप में बना शहर और शायद कहीं हो तो हो चौक में खड़ा मनुष्य सारे शहर को एक ही नजर में देख सकता है। गली के बिल्कुल सामने गली। शहर के चारों ओर परकोटा। वह एक ऐसी स्थिति थी जो इस भयानक तम वातावरण में भी हमें शत्रुओं के आक्रमणों से बचाये हुए थी। सारा दिन भय और चिन्ता में बीतता था, तो रात्रि 'खबरदार और होशियार' के नारों से गुंजित रहती थी। शत्रु की दृष्टि में हम पूर्णतया अपनी रक्षा में समर्थ और उसे नीचा दिखाने की क्षमता रखते थे। वह तो भगवान् ही जानता है कि हमारी कितनी तैयारी थी और हम कितने पानी में थे।

रोज रक्षा समितियां होती थीं, किन्तु बातों ही बातों में शहर के कर्णधार समय व्यतीत करके अपने घरों को चले जाते थे। इतना कुछ होते हुए भी चन्द एक युवकों के उत्साह से हम स्थानीय मुसलमानों से हार जाने वाले नहीं थे, ऐसी धारणा शत्रु और मित्र पक्ष की थी।

मुसलमानों के श्रम और स्थानीय हिन्दू अधिपतियों की गाढ़ी निद्रा तथा पाकिस्तानी योजना की अर्थ प्रणाली के फलस्वरूप हमारी विपत्ति की एकमात्र रक्षिका हिन्दू सेना भी हमें भगवान् के सहारे छोड़ करके चली गई थी। म्युनिसिपल कमेटी का कार्य अस्त-व्यस्त हो चुका था। पूर्व कार्यकर्ता काम छोड़ बैठे थे। सफाई का तनिक मात्र भी प्रबन्ध नहीं था। खास शहर क्षेत्र भी चलते-फिरते मनुष्यों से भरे नर्ककुण्ड से भी निकृष्टतर हो चुका था। इर्द गिर्द के देहात के अशिक्षित लोगों के आ जाने के कारण सफाई की प्रणाली और भी बिगड़ चुकी थी। वह बच्चों को शौच निवारणार्थ नालियों में ही बिठा देते थे। इन नालियों की सफाई का कार्य भी शहर के प्रतिष्ठित सज्जनों को करना पड़ता था। ऐसी अवस्था को देख करके उस युग की याद आ जाती थी, जबकि स्वर्गीय अमर शहीद बापू अन्य कांग्रेसी नेताओं के साथ अपने हाथों में झाड़ू और सिर पर गन्दगी की टोकरी उठाये सफाई करते दिखाई देते थे। मकानों को साफ करने वाले मुसलमान भंगी एक समय के १) और २) तक वसूल करते थे। जिन्हें दो समय भरपेट भोजन भी दुर्लभ था, वे इस रकम को कैसे भरते?

ऐसी विकट परिस्थिति थी, सारा शहर पाकिस्तान छोड़कर हिन्दुस्तान आने को कमर कसे बैठा था। हमारा सब सामान पाकिस्तान की सम्पत्ति समझी जाती थी। मुस्लिम नेशनल बोर्ड के लगातार प्रचार के अतिरिक्त भी हमारे घर की नई मशीनें ३५) को बिक रही थीं। कईयों का सौदा तो १५) और २०) पर भी आ निपटता था। साईकल २०) को और सजाने की शीशें वाली मेजें ३) तक को उठ जाती थीं। कुर्सी १), पलंग ५) और ट्रक आठ आने तक में प्रत्येक घर से मिन्नतों और धन्यवादों से मिल जाता था। ख़ालिस घी १) सेर और चीनी तीन आने में बिक रही थी। कपड़ों और गेहूं को लोग गरीबों में मुफ्त बांट करके परम सन्तोष अनुभव करते थे। चारों ओर, "अंधेर नगरी चौपट राजा। टके सेर भाजी टके सेर खाजा।।" का राज्य छाया हुआ था। ऐसी परिस्थिति में भला कौन वहां रहना चाहता।

पहली स्पेशल गाड़ी आ गई, तो जूते की तह से लेकर के पगड़ी के छोर तक सब कुछ टटोला गया। स्त्रियों के गुप्तांगों को भी, स्त्री वेषधारी कामुकों ने तलाशी लेकर हिन्दू शरीरधारी मानव को मुस्लिम वेष में फिरते नर पशु ने तीन ही वस्त्रों में भेजा। इसमें वे करोड़पति भी थे जोकि आज तक भूमि पर पैदल भी न चले थे। आहें लेती और सिसकियां भरती सन्तानों को अपने तीन वस्त्रों में छिपाये भारत की शान देवी पाकिस्तान को हमेशा के लिए प्रणाम करके भारत को चल पड़ी।

दूसरी और तीसरी स्पेशल गाड़ी के बीच शहर में अभूतपूर्व परिवर्तन हुए। तीसरी स्पेशल के आने से पन्द्रह दिन पूर्व हमारा शहर से निकलना पूर्णतया बन्द हो चुका था। प्रति शुक्रवार शहर में नमाज के लिए हज़ारों मुसलमानों के धड़-धड़ घुस आने पर हमारा सारा दिन मौत की घड़ियां गिनते बीतता था। लोग अपने-अपने तख़्तपोशों पर और गलियों के सिरों पर मोर्चा बना करके बैठे रहते थे। माताएं और बहिनें घर में भगवान् का नाम लेकर के हमारे सकुशल घर पहुंचने की प्रार्थनाएं किया करती थीं। शहर की आधे से अधिक स्त्रियों के पास सांघातिक विष था, जो किसी भी समय आने वाली मुसीबत के समय संकटमोचन का काम देता।

आखिर वह संख्या आ ही पहुंची, जब कि सबने सुना कि कल ३५०० मनुष्यों की एक स्पेशल भारत की ओर जावेगी। टिकट बंट गए ताकि लोग अधिज न आ सकें। सारी रात जागकर लोग तैयारी करते रहे क्योंकि आने वाला प्रातःकाल उनके दुःखों को नष्ट करने के हेतु स्वरूप लुभावना दीख रहा था। सारी रात जागते कटी। रात को यह अफ़वाह फैल गई कि कल बैलगाड़ियां और तांगे स्टेशन की ओर नहीं जायेंगे इसलिए समान जितना संक्षिप्त किया जा सकता था, किया गया। इंतज़ार की घड़ी लम्बी होती है, वह भी आ ही पहुंची।

प्रातः पांच बजे मुझे चाचा जी ने बुलाया, जो कि कमेटी के प्रधान थें, और कहा- 'मुझे एक विश्वस्त सूत्र ज्ञात हुआ है कि इस गाड़ी के साथ एक षड्यन्त्र है, अतः तुम मत जाओ।'

'मैं बच्चों का बिलखना सुन चुका था। दूध उन्हें मिल नहीं रहा था। ताजी सब्जी के दर्शन दुर्लभ थे। मैं टूट चुका था। गली में स्थान-स्थान पर पड़े कूड़े के ढेरों को देखकर प्रति समय हैजा का भय सताता था। शत्रु के आक्रमण की चर्चा और बलोच सेना के मनमाने अत्याचार हमारी दिन और रात की रोटी का रस सुखाये चले जा रहे थे। ऐसी परिस्थिति में मैंने भी उद्दण्ड सन्तान के समान आज्ञा का उल्लंघन करते हुए जवाब दे ही तो दिया, यहां के घुल-घुल करके मरने से रास्ते में ही कहीं पर मर जाना श्रेयस्कर है।'

इस पर चाचा जी ने मुझे आशीर्वाद दिया और कहा 'भगवान् तुम्हारा भला करे।' उनकी चरण रज ले करके हम शहर से बाहर निकले। आठ ट्रक और आठ बिस्तरे तीन परिवारों के थे। बैलगाड़ी पर एक मील के ८०) भर कर हम स्टेशन की ओर चले। पहले स्पेशल रात्रि के समय ही पहुंच जाती थी, किन्तु यह ११ बजे दोपहर को आयी। हमने सारी गाड़ी को झांक डाला, किन्तु हिन्दू सेना का निशान कहीं पर भी न मिला।

सेना-नायक अपनी बलोच सेना को रास्ते का प्रोग्राम समझा रहा था और मन अन्दर से धक्-धक् कर रहा था। आने वाला भय मिश्रित समय हमारे अन्दर निराशा का आसव उड़ेल रहा था। मुस्लिम सेना हिन्दू नवयुवकों को जबरन बाहर निकाल-निकाल करके गाड़ी की छत पर बिठा रही थी। उनकी वे हरकतें हमारे अन्दर छिपे भय को और भी बढ़ा रहीं थीं। हम द्विविध में थे। इधर आग और उधर खाई। हम मन मसोड़कर ही बैठे रहे। मुस्लिम सेना के सैनिक अभी अन्दर घुसने को ही थे कि दूर से हमें एक ट्रक आता दिखाई दिया। उनमें से निकलते मरहट्टा सैनिकों के चेहरों को देख करके सबके सूखे मुख-कमल आशा और प्रसन्नता से निखर उठे। हमने समझा बस अब संकट कट गया, किन्तु हमें क्या पता था कि फूलों के नीचे विषधारी सर्प कुण्डली मारे बैठा है। राख के नीचे सुलगती चिंगारी सबको भस्म करने के लिए अभी जल रही हैं। अमृत मुख पट के अन्दर हलाहल विष छिपा पड़ा है।

फिर भी सब प्रसन्न थे। सबके छिपे चेहरे खिड़की के बाहर झांक रहे थे। बच्चे हँस रहे थे और स्त्रियां सुखमयी वार्ता में लीन थीं। कोई डेढ़ बजे के करीब हम शुजाबाद को अन्तिम प्रणाम करके चल पड़े। हमारे मन में जन्मभूमि का प्रेम उमड़ पड़ा। तब बिलख-बिलख कर रो रहे थे और बिस्मिल के वह शब्द गुनगुना रहे थे-
'दर-ओ-दीवार पे हसरत से नज़र करते हैं,
ख़ुश रहो अहल-ए-वतन हम तो सफ़र करते हैं।'

गाड़ी अपना रास्ता तय करती चली जा रही थी। शुजाबाद कि चौथे स्टेशन पर गाड़ी एक घण्टे के लिए रुकी और उसने दिशा परिवर्तन किया। सबने नलकों से पानी भरा। गाड़ी चल पड़ी। प्रत्येक स्टेशन पर सशस्त्र धर्मांध मुस्लिम सैकड़ों और हज़ारों की संख्या में प्लेटफॉर्म पर ठहरे हमारा स्वागत करते थे। वह सचमुच उन जंगली पशुओं के समान दीख रहे थे, जोकि हिंस्रवृत्ति में उलझे हुए अपने सामने शिकार को आता देख करके अपने से अधिक बलवान् को सामने देखकर दांत पीसकर के रह जाते हैं, ठीक वह दशा उनकी थी। इसी तरह करते-कराते हम साढ़े आठ बजे पाकपटन स्टेशन पर पहुंचे, जहां पर कि हमारे भाग्य का निश्चय होना था।

यहां पर आकर हिन्दू सेना उतर गई और उसकी जगह पर बलोच सेना के सिपाही अपने कंधे पर संगीनों वाली बन्दूकों को लटकाये आ पहुंचे। उनके आगमन के साथ ही स्टेशन पर का सब पानी बन्द हो गया। बच्चे प्यास से कराह उठे। साढ़े ३ घण्टे एडमिन भी स्टेशन से दूर रहा। हमें क्या पता था कि पानी लेने के बहाने वह हमारे खून लेने का षड्यन्त्र रच रहा था। रात के ठीक १२ बज कर पांच मिनिट पर हमारे गाड़ी पाकपटन की सीमा को पार करती हुई, हमारे दुर्भाग्य पर धुआं उड़ाती हुई चल पड़ी। ठीक १२ बज कर दस मिनिट पर पाकपटन और उसमानवाला स्टेशन के बीचों-बीच मिन्ट गुमरी जिले को आबाद करने वाली, हमारे लिए "अल्लाहो अकबर" और "या अली" तथा "काफ़िरों को मारो" का संदेशा लेकर बहने वाली नीलवाह नदी के किनारे पर आकर के हमारी गाड़ी रुक गई। छुरियों, कुल्हाड़ियों, तेगों और दूसरे प्रकार के शस्त्रों का ताण्डव नृत्य होने लगा। हम कोई आधा घण्टा मृत्यु की छत्रछाया में पड़े करवटें बदलते रहें। गाड़ी के किवाड़ों और खिड़कियों के तख़्ते नहीं थे। सबने उनके आगे ट्रंकों और बिस्तरों को रखकर अन्दर से बन्द कर दिया। जिन्होंने आज तक भगवान् का नाम नहीं लिया था, वे भी अविराम गति से "राम", "कृष्ण" और "ओ३म्" का जाप करने लगे। स्त्रियां, पतियों और बच्चों की सलामती की मनौतियां मना रही थीं। चंद स्वार्थी नरपिशाच यहां पर भी रक्षा के नाम पर चोर बाजारी धन बटोर रहे थे। हमें बाहरी दुनिया का लेशमात्र भी ज्ञान नहीं था। हम तो केवल यही जानते थे कि १२ बजकर ३० मिनिट पर गाड़ी चली और उसमानवाला स्टेशन पर पहुंची, जहां पर कि सुबह छः बजे तक ठहरी रही। वह साढ़े ५ घण्टे हमारे उस कैदी के समान गुज़र रहे थे, जिनको किसी समय भी फांसी की सजा मिल जाये। यहां पर आकर हमें पता चला कि हमारी गाड़ी के तीन छकड़ों के आदमी बिल्कुल समाप्त कर दिए गए हैं।

पशुता का ताण्डव
मेरे पास एक बच्चा आया, जिसकी आयु पांच वर्ष थी। वह प्लेटफॉर्म पर मेरा नाम लेकर चिल्ला रहा यह। जब उसे मेरे पास पहुंचाया गया, तो वह रो रहा था। उसकी सिसकियों में एक करुण क्रन्दन था- 'मेरे माता-पिता मर गये हैं, मेरे भाईयों और बहिनों को किसी ने कुल्हाड़ी से काट डाला है।' कितना मर्मस्पर्शी दृश्य था वह, जिसे देखकर वहां पर बैठी सभी स्त्रियां फफक फफक कर रो रही थीं। हम उसे धैर्य बंधा रहे थे किन्तु हमारी आंखें गंगा-जमुना बन रही थीं।

जाको राखे साइयां
इसी प्रकार एक घटना अगले छकड़े में गुजरी। एक लड़की जिसकी आयु १४ वर्ष की थी दौड़ती हुई चिल्ला रही थी 'भगवान् के लिए मुझे बचाओ।' चन्द नवयुवकों ने उसे गाड़ी में खींच लिया। वह नंगी थी, उसे कपड़े दिए गए। उसके मुख पर एक निशान था, जो जबरदस्ती लड़कर छूटने में हुआ था। चन्द कामुक मुसलमानों के चुम्बन का घाव उसके मुख पर था, जिससे खून निकल रहा था।

छः बजे हमारी गाड़ी चली और दोपहर को निर्विघ्न कसूर पहुंच गई। वहीं भारत और पाकिस्तान से आने वाली गाड़ियों का अड्डा था उसमानवाला और कसूर के बीच सही सलामत यात्रा करने का श्रेय हम अपने शहर के तहसीलदार और एक राना शफ़ी अहमद को देते हैं, जिन्होंने पाकपटन से कसूर इस आशय का तार दे दिया था कि 'हमने सारी गाड़ी नष्ट कर दी है'। उसमानवाला स्टेशन पर छः घण्टे की रुकावट ने हमें उस सारे प्रोग्राम से बचा दिया, जो कि रास्ते में हमारे विनाश की घड़ियां गिन रहा था। 'जाको राखे साइयां मार सके न कोय' फिर भी हम ३५०० मनुष्यों में से ६०० को गवां करके अश्रुओं का हार पहिने कसूर पहुंचे।

वहां पर भी भाग्य हम पर अठखेलियां कर रहा था। २ बजे दोपहर को कोई ५००० सशस्त्र आक्रान्ताओं ने हम पर हमला कर दिया। इनके साथी १३७ बलोच सैनिक भी थे जिनके पास युद्ध का सब आधुनिक सामान था। हमारे साथी थे भगवन् और ३६ मरहट्टे सैनिक, जिन्होंने दो की आहुति देकर के हमारी रक्षा की। यहां पर हमारे १५० आदमी मरे। छः घण्टे लगातार हम गोलियों की बौछार के नीचे पड़े रहे। हमें दुनिया की सुध-बुध नहीं थी। हम अपना नाता उस परब्रह्म से छोड़ चुके थे जिससे मिलाने के लिए यह गोलियां हमारे ऊपर साय साय करके चल रही थीं। रात भी सर पर आ पहुंची। आक्रमणकर्ता वापिस चले गये। हम भी अन्धकारमयी रजनी में मुर्दों को सिरहाना बना कर लहू की शैय्या पर पड़े रहे। इसका भान हमें तब हुआ, जब कि हम प्रात:काल जागे और अपने सारे वस्त्रों को लहू में घिरा देखा। बरबस मेरे मुख से निकला- "दुर्भाग्य! कभी तो सफेद वस्त्र पर दो धब्बे खून के देखकर न्यायाधीश मनुष्य को फांसी पर चढ़ा देता था, और कहां आज खून से हम चारों ओर लिपटे हुए हैं। किन्तु न्याय नदारद!"

प्रातः सात बजे ट्रक आये, जो हमें सतलुज से पार भारत की सरहद में ले गये। हमने दस माह के बाद अपने मुख से नारा लगाया- "हिन्दुस्तान, जिन्दाबाद"। 
लेखक : श्री इन्द्रकुमार विद्यार्थी
प्रस्तुत : प्रियांशु सेठ
['वीर अर्जुन' (साप्ताहिक) के १९४८ अंक से साभार]

इस लेख पढ़ने के बाद भी अपने देश की संस्कृति व देशहित में कार्य नही करता है तो फिर उनका जीना भी बेकार है, देश को तोड़ने वाली ताकतों से अपने देश को बचाने के लिए हर हिंदुस्तानी सतर्क रहें।

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Friday, August 14, 2020

स्वतंत्रता दिवस मनाएं लेकिन इनपर भी ध्यान देना जरूरी है।

 15 अगस्त 2020


सभी देशवासी 15 अगस्त की खुशियां मनाते है और मनानी भी चाहिए क्योंकि हमें 700 साल मुगलों ने और 200 साल अंग्रेजों ने गुलामी की जंजीरों में जकड़ा था उससे हमें स्वतंत्रता मिली तो खुशी होनी चाहिए, लेकिन मुगलों से आज़ाद होने के लिए लाखों और अंग्रेजों के अत्याचारी शासन से मुक्त होने के लिए 732000 शहीदों ने बलिदान दिया है ।



15 अगस्त 1947 को अंग्रेजों की बाह्य गुलामी तो दूर हुई, लेकिन अंग्रेजी भाषा की, उनके बनाये कानून और उनके विचारों की गुलामी तो हमारे दिमाग में घुसी हुई है । उनकी बनाई हुई शिक्षा प्रणाली आज भी चल रही है।

स्वतंत्रता दिवस की खुशियाँ मनानी चाहिए पर खुशी मनाने के साथ खुशी शाश्वत रहे, ऐसी नजर रखो। इसके लिए देश को तोड़ने वाले षड्यंत्रों से बचें, संयमी और साहसी बनें, बुद्धिमान बनें। अपनी संस्कृति व उसके रक्षक संतों के प्रति श्रद्धा तोड़ने वालों की बातें मानकर अपने देश की जड़ें खोदने का दुर्भाग्य अपने हाथ में न आये। बड़ी कुर्बानी देकर आजादी मिली है। फिर यह आजादी विदेशी ताकतों के हाथ में न चली जाय, उसका ध्यान रखना ही 15 अगस्त याद दिलाता है।

आज कॉन्वेंट स्कूल, मीडिया, टीवी, इंटरनेट आदि के माध्यम से उनकी संस्कृति हमें परोसकर हमारे देशवासियों को कमजोर कर रहे हैं । दूसरा अंग्रेजों के बनाये कानून के द्वारा आज भी निर्दोष को न्याय और अपराधियों को सजा नही होने के कारण अपने भारतीय संस्कृति के अनुसार भारत की व्यवस्था करनी चाहिए जिसके कारण देशवासियों को न्याय मिल पाए।

विदेशी लोग अपनी पाश्चात्य संस्कृति से परेशान होकर वे लोग हमारी संस्कृति व भाषा अपना रहे हैं।

हमे भी अपनी वैदिक संस्कृति, अपने देश की जलवायु और रीति-रिवाजों के अनुसार स्वास्थ्य लाभ, सामाजिक जीवन और आत्मिक उन्नति करानेवाली भारत की महान संस्कृति का आदर करना चाहिये, लाभ लेना चाहिए । अंग्रेजी कल्चर का दिखावटी जीवन भीतर से खोखला कर देता है । संयमी, सदाचारी और साहसी भारतीय संस्कृति के सपूतों को अपनी मिली हुई आजादी को सावधानी से सँभाले रखना चाहिये । उनकी संस्कृति अपनाकर हमें परतंत्र नही बनाना चाहिए बल्कि अपनी महान भारतीय वैदिक संकृति अपनाकर स्वतंत्र बनना चाहिए।

आइये आपको कुछ नमूने बताते हैं जो विदेशियों की विवशता और भारतवासियों की महामूर्खता कर रहे हैं-

1. आठ महीने ठण्ड पड़ने के कारण कोट पेंट पहनना विदेशियों की विवशता और शादी वाले दिन भरी गर्मी में कोट - पेंट डालकर बारात लेकर जाना हमारी मूर्खता ।

2. ठण्ड में नाक बहते रहने के कारण टाई लगाना विदेशियों की विवशता और दूसरों को प्रभावित करने के लिऐ जून महीने में टाई कसकर घर से निकलना हमारी मूर्खता ।

3. ताजा भोजन उपलब्ध ना होने के कारण सड़े आटे से पिज्जा, बर्गर, नूडल्स आदि खाना विदेशियों की विवशता और 56 भोग छोड 400/- की सड़ी रोटी (पिज्जा ) खाना हमारी मूर्खता ।

4. ताजे भोजन की कमी के कारण फ्रीज का इस्तेमाल करना यूरोप की विवशता और रोज दो समय ताजी सब्जी बाजार में मिलनें पर भी हफ्ते भर की सब्जी मंडी से लेकर फ्रीज में ठूसकर सड़ा-सड़ा कर खाना हमारी मूर्खता ।

5. जड़ी बूटियों का ज्ञान ना होने के कारण... जीव जंतुओं के हाड़मांस से दवाएं बनाना उनकी विवशता और आयुर्वेद जैसा महान चिकित्सा ग्रंथ होेने के बावजूद हाड़मांस की दवाईयां उपयोग करना हमारी महामूर्खता ।

6. पर्याप्त अनाज ना होने के कारण जानवरों को खाना उनकी विवशता और 1600 किस्मों की फसलें होनें के बाबजूद जीभ के स्वाद के लिए किसी निर्दोष प्राणी को मारकर उसे खाना हमारी मूर्खता ।

7. लस्सी, दूध, जूस आदि ना होने के कारण कोल्ड ड्रिंक को पीना उनकी विवशता और 36 तरह के पेय पदार्थ होते हुए भी कोल्ड ड्रिंक नामक जहर को पीकर खुद को आधुनिक समझ कर इतराना हमारी महा मूर्खता ।

8. टाइट कपड़े पहनने के कारण जमीन की जगह कुर्सी पर बैठ कर भोजन करना उनकी विवशता और हमारी मूर्खता ।

9. न बोल पाने की असमर्थता के कारण उनका संस्कृत ना बोलना और जोड़-तोड़ वाली अंग्रेजी से काम चलाना और दूसरी ओर अपनी महान संस्कृत से विमुख होकर अंग्रेजी बोलने का प्रयास करना हमारी मूर्खता ।

10. असभ्य, लालची और स्वार्थी स्वभाव के कारण अपने माँ बाप से अलग रहना । ये उनका दुर्व्यवहार अपने में लाना हमारी मूर्खता ।

क्या ये भारतीयों को शोभा देता है..???

भारतीय अपनी मूर्खता छोड़ें और अपनी दिव्य , महान संस्कृति पर ध्यान दें...

भारत महान था, महान है, किंतु महान तब रहेगा जब देशवासी ऐसी महामूर्खताओं को त्याग कर अपने देश की महानता को समझेंगे ।

हमें स्वतंत्र होना है तो उनके कानून, उनकी शिक्षा और उनकी संस्कृति को खत्म करके हमारी संस्कृति के अनुसार करना होगा तभी पूर्ण स्वतंत्र होंगे।

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Thursday, August 13, 2020

बेंगलुरु दंगे क्यों हुए ? मीडिया, भीम-मीम वाले इस पर मौन क्यों हैं ?

 13 अगस्त 2020


कई बार सोशल मीडिया पर आपने नारें सुने होंगे भीम-मीम भाई-भाई अर्थात दलित और मुसलमान भाई-भाई है लेकिन वास्तविकता उल्टी है बेंगलुरु में हुए दंगे उसका प्रमाण है एक दलित भाई ने पैंगबर को लेकर सोशल मीडिया पर टिप्पणी की थी इसको लेकर मुस्लिम भीड़ ने उनका घर जला दिया, उस दलित भाई को जान से मारने की धमकी दी जा रही है और इसमे जिन पुलिसकर्मियों ने दंगाइयों को रोकने की कोशिश की, उन पर भी मुस्लिम भीड़ ने हमला किया, जिसके परिणामस्वरूप 60 से अधिक पुलिसकर्मी गंभीर रूप से घायल हो गए। मंगलवार रात पूर्वी बेंगलुरु में भड़की इस हिंसा में 3 लोगों की मौत हो गई और कई अन्य घायल हो गए।


आपको बता दें कि बेंगलुरु में मुस्लिम भीड़ द्वारा किए गए दंगों के दौरान उग्र मुस्लिम भीड़ डीजे हल्ली पुलिस स्टेशन के बेसमेंट में घुस गई और कथित तौर पर 200-250 वाहनों में आग लगा दी। खबरों के मुताबिक, कॉन्ग्रेस विधायक के आवास पर तोड़फोड़ करने वाली मुस्लिम भीड़ ने मंगलवार (अगस्त 11, 2020) को पुलिस थाने में यह मानकर तोड़फोड़ और वाहनों को क्षतिग्रस्त किया कि पुलिस ने आरोपितों को हिरासत में रखा है।

इस पर मीडिया भी मौन है और भीम-मीम के नारे लगाने वाले भी चुप हैं। क्योंकि दंगे करने वाले मुस्लिम समुदाय से है। जबकि आये दिन हिंदू देवी-देवताओं और साधु-संतों का अपमान किया जा रहा हैं लेकिन एक भी हिंदु ने सड़को पर आज तक दंगे नही किये और न ही किसी की हत्या की पर देवी-देवताओं व साधु-संतों के अपमान पर कोई प्रतिक्रिया भी दे तो भी वामपंथी मीडिया और सेक्युलर शोर मचाने लगते हैं।

हिंसा भड़कने के मामले में 5 लोगों का नाम FIR में शामिल किया गया है। इन पाँचों पर आरोप है कि इन्होंने ही 200-300 लोगों की इस्लामिक भीड़ को एकत्रित करके बेंगलुरु में दंगे करवाए।

टाइम्स ऑफ इंडिया ने इस एफआईआर पर रिपोर्ट की है। रिपोर्ट के मुताबिक FIR में बताया गया है कि भीड़ के पास पहले से माचिसें, पत्थर, रॉड जैसे हथियार थे। ये भीड़ कथित तौर पर नारे लगा रही थी, “पुलिस को मारो और खत्म करो।”

इन लोगों ने केजी हल्ली और डीजे हल्ली थाने में 11 अगस्त को आगजनी करके हड़कंप मचाया था। इन्होंने पेट्रोल से भरी प्लास्टिक की बोतलें थाने में पुलिस के ऊपर फेंकीं थी।

रिपोर्ट यह भी बताती है कि यह दंगे कुछ स्थानीय मुस्लिम नेताओं की एक बैठक के बाद शुरू हुए।

पूर्व नियोजित दंगे में मुस्लिम भीड़ ने थाने पर पेट्रोल बम और हथियारों से हमला किया। इस दौरान भीड़ अल्लाह हू अकबर और नारा ए तकबीर के नारे लगाती रही। मामला शांत पड़ने पर कर्नाटक गृहमंत्री ने आदेश दिए कि वह इन दंगों की जाँच करवाएँगें और जो नुकसान हुआ है उसकी भरपाई भी दंगाइयों से की जाएगी। इस पूरे केस में अभी तक 146 लोग गिरफ्तार हुए हैं।

क्या आपको कमलेश तिवारी याद हैं?

साल 2015 में पैगंबर मुहम्मद के खिलाफ कथित आपत्तिजनक टिप्पणी करने के बाद से उनका जीवन खतरे में पड़ गया था। जेल में महीनों बिताने और अपनी जिंदगी पर लगातार खतरों का सामना करने के बाद, अक्टूबर 2019 में उनकी हत्या हो गई थी।

कमलेश तिवारी की कहानी को एक बार फिर दोहराया जा रहा है क्योंकि कर्नाटक में एक कॉन्ग्रेस विधायक के भतीजे नवीन के खिलाफ इसी तरह से आक्रामक भीड़ द्वारा हमला हुआ है। बेंगलुरु के शांतिपूर्ण शहर को हिलाकर रख देने वाले दंगों ने इसी तरह का असर दिखाना शुरू कर दिया है, जिस प्रकार कमलेश तिवारी की टिप्पणी के बाद सांप्रदायिक तनाव बढ़ गया था।

फेसबुक और ट्विटर, दोनों सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म नवीन के खिलाफ किए गए पोस्ट और टिप्पणियों से भरे हुए हैं। ‘शांतिपूर्ण समुदाय’ के लोग उत्तेजक और आक्रामक भाषा में उनके खिलाफ आवाज उठा रहे हैं। इसके साथ वे यह भी पूछ रहे कि अभी तक उसकी हत्या क्यों नहीं हुई?

जिस दलित विधायक के भतीजे नवीन ने टिप्पणी पोस्ट की, उसका घर जला दिया गया है। गौरतलब है कि हमेशा की तरह लिबरल्स गिरोह ‘शांतिपूर्ण समुदाय’ के लिए ‘दंगों का अधिकार’ को सही ठहराएँगे।

मालदा का ख़ौफनाक दंगा

बेंगलुरु में कल हुए दंगों ने मालदा के दंगों की याद दिला दी, जब 2 लाख से अधिक मुसलमान सड़कों पर निकले थे, जबकि कमलेश तिवारी उस वक्त जेल में थे। उन्होंने यह माँग रखी थी कि तिवारी को उनकी टिप्पणी के लिए मार दिया जाना चाहिए।

प्रदर्शनकारियों ने सार्वजनिक संपत्ति को नष्ट कर करोड़ों का नुकसान पहुँचया था। इसके अलावा, बीएसएफ की एक वाहन को भी दंगों में झोंक दिया गया था। उन्होंने कालियाचक थाना क्षेत्र में कई घरों को जला दिया और दंगे करते हुए कई दुकानों को भी लूट लिया गया था।

हिंदुस्तान में ही हिंदू देवी-देवताओं व साधु-संतों का अपमानित किया जाता है, गालियां बोली जाती है फिर भी हिंदू चुप रहते है निष्क्रिय रहते है कानून के अनुसार भी कार्यवाही नही करते है लेकिन मुस्लिम समुदाय अपने पैगम्बर के सोशल मीडिया पर किसी ने टिप्पणी कर देते है तो उसकी हत्या कर देते है, दंगे करते है, घर, पुलिस थाना जला देते है फिर भी वामपंथी मीडिया ओर सेक्युलर इस पर खामोश रहते हैं।

हिंदुओं को भी जागरूक होना चाहिए देवी-देवताओं अथवा किसी साधु-संत के अपमान करने वाले पर कानूनी कार्यवाही अवश्य करनी चाहिए।

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Wednesday, August 12, 2020

जापान में होती है हिंदू देवी-देवताओं की पूजा, हिन्दुस्तान में कब महत्व समझेगें?

12 अगस्त 2020


भारत में कुछ लोग पाश्चात्य संस्कृति के अंधानुकरण करने के कारण संस्कृत भाषा और देवी-देवताओं का महत्व नही समझ रहे हैं और कुछ वोटबैंक के लिए दलितों को उकसा रहे हैं और बोल रहे हैं कि आप हिन्दू नही हो इसलिए आपको हिन्दू देवी-देवताओं की पूजा नही करनी चाहिए, लेकिन वास्तव में देखें तो हमारे पुराणों में दलित शब्द है ही नही । अंग्रेजों द्वारा आपस में लड़ाने के लिए जाति-पाति बांटी गई जबकि भारतीय संस्कृति में वर्ण व्यवस्था जो है वो कर्म के अनुसार बनाई है, इसलिए किसी के बहकाव में आकर देवी-देवताओं की पूजा नही छोड़नी चाहिए क्योंकि विदेशों में देवी-देवताओं का महत्व समझकर उनकी पूजा की जा रही है और उसके लाभ भी प्राप्त कर रहे हैं ।



जापान में हिंदू देवी देवताओं की पूजा की जाती है। जापान में कई हिंदू देवी-देवताओं को जैसे ब्रह्मा, गणेश, गरुड़, वायु, वरुण आदि की पूजा आज भी की जाती है। कुछ समय पहले नई दिल्ली में फोटोग्राफ़र बेनॉय के बहल के फोटोग्राफ़्स की एक प्रदर्शनी हुई, जिससे जापानी देवी-देवताओं की झलक मिली।

बेनॉय के अनुसार हिंदी के कई शब्द जापानी भाषा में सुनाई देते हैं। ऐसा ही एक शब्द है ‘सेवा’ जिसका मतलब जापानी में भी वही है जो हिंदी में होता है। बेनॉय कहते हैं कि जापानी किसी भी प्रार्थना का अनुवाद नहीं करते। उनको लगता है कि ऐसा करने से इसकी शक्ति और प्रभाव कम हो जाएगा ।

लिम्का वर्ल्ड रिकॉर्ड भारतीय सभ्यता के रंग जापान में देखने को मिलते हैं। सरस्वती के कई मंदिर भी जापान में देखने को मिलते हैं। संस्कृत में लिखी पांडुलिपियां कई जापानी घरों में मिल जाती है। बेनॉय का नाम लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में ‘मोस्ट ट्रेवल्ड फोटोग्राफ़र’ के रूप में दर्ज है।

आधार ही संस्कृत जापान की राजधानी टोक्यो में पांचवी शताब्दी की सिद्धम स्क्रिप्ट को आज भी देखा जा सकता है। इसे गोकोकुजी कहते हैं। बेनॉय का कहना है कि ये लिपि पांचवी शताब्दी से जापान में चल रही है और इसका नाम सिद्धम है। भारत में ऐसी कोई जगह नहीं, जहां ये पाई जाती हो ।

आज भी जापान की भाषा ‘काना’ में कई संस्कृत के शब्द सुनाई देते हैं । इतना ही नहीं काना का आधार ही संस्कृत है। बहल के अनुसार जापान की मुख्य दूध कंपनी का नाम सुजाता है। उस कंपनी के अधिकारी ने बताया कि ये उसी युवती का नाम है जिसने बुद्ध को निर्वाण से पहले खीर खिलाई थी। स्त्रोत : बीबीसी

भातीय सभ्यता अपनाकर, हिन्दू देवी-देवताओं की पूजा करके एवं संस्कृत व हिन्दी भाषा का प्रयोग करके जापान दुनिया मे टेक्नोलॉजी में नंबर एक पर है, आज उस देश के सामने कोई भी देश आंख नही दिखा सकता लेकिन भारत में ऐसी विडंबना है कि भारतवासी अपने ही हिन्दू देवी-देवताओं को भूल रहे है, कई तो मुर्दों की मजार पर मत्था टेकने चले जाते हैं। अपनी संस्कृति को भूलकर पाश्चात्य संस्कृति की ओर आकर्षित हो रहे हैं, अपनी महान संस्कृत एवं हिन्दी भाषा को भूलकर अंग्रेजी भाषा को अपना रहे हैं, कितनी विडंबना है, हमारी संस्कृति को भूलने के कारण ही आज हम पीछे रह गये और जापान हमारी संस्कृति को अपनाकर महान बन रहे हैं ।

दुनिया का सबसे प्राचीन हिन्दू धर्म अपनी उदारता, व्यापकता और सहिष्णुता की वजह से पूरी दुनिया के लोगों को ध्यान खींच रहा है। ऑस्ट्रेलिया और आयरलैंड जैसे देश में तो सबसे तेजी से बढ़ने वाला धर्म बन गया है।

एक तरफ विदेशी भी हिन्दू धर्म की महिमा जानकर हिन्दू धर्म और संस्कृति की तरफ आकर्षित हो रहे है, दूसरी ओर हिन्दू बाहुल देश भारत में ही ईसाई मिशनरियां और कुछ मुस्लिम समुदाय के लोग हिन्दू धर्म को मिटाकर अपना धर्म बढ़ाना चाहते हैं इसलिए लालच देकर एवं जबरन धर्मान्तरण, लव जिहाद आदि अभियानों द्वारा हिन्दू धर्म को तोड़ रहे हैं ।

हिन्दू धर्म में रहने वाले भी कुछ लोग हिन्दू धर्म की महिमा समझते नही हैं और बोलते हैं कि सर्व धर्म समान । सर्व धर्म का सम्मान तो हो सकता है पर सर्व धर्म समान नहीं हो सकते ।  महान सनातन हिन्दू धर्म को किसी धर्म के साथ जोड़ना मूर्खता है।

हिन्दू संस्कृति की आदर्श आचार संहिता ने समस्त वसुधा को आध्यात्मिक एवं भौतिक उन्नति से पूर्ण किया, जिसे हिन्दुत्व के नाम से जाना जाता है।

हिन्दू धर्म का यह पूरा वर्णन नही हैं इससे भी कई गुणा ज्यादा महिमा है क्योंकि हिन्दू धर्म सनातन धर्म है इसके बारे में संसार की कोई कलम पूरा वर्णन नही कर सकती । आखिर में हिन्दू धर्म का श्लोक लिखकर विराम देते हैं ।

सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया, सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुख भागभवेत। ॐ शांतिः शांतिः शांतिः

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Tuesday, August 11, 2020

माता देवकीजी के गर्भ में जाने से पूर्व श्री विष्णु ने ये कहा था? किस तरह जन्में थे श्रीकृष्ण?

 11 अगस्त 2020


साधारण जीव जब जन्म लेता है तो कर्मों के परिणामस्वरूप माता-पिता के रज-वीर्य के मिश्रण से जन्मता है परंतु भगवान जब अवतार लेते है तो चतुर्भुजी रूप में दर्शन देते हैं। फिर माँ और पिता को तपस्याकाल में संतुष्ट करने के लिए जो वरदान दिया था, उस वरदान के फलस्वरूप नन्हें से हो जाते हैं।

सुतपा प्रजापति और पृश्नि ने पूर्वकाल में वरदान में भगवान जैसा पुत्र माँगा था तब भगवान ने कहा थाः "मेरे जैसा तो मैं ही हूँ। तुम जैसा पुत्र माँगते हो वैसा मैं दे नहीं सकता। अतः एक बार नही वरन् तीन बार मैं तुम्हारा पुत्र होकर आऊँगा।"



भगवान विष्णु ने श्रीकृष्ण के रूप में मथुरा के अत्याचारी राजा कंस के कारागार में देवकी के गर्भ से भाद्रपद मास की कृष्ण अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में रात की बारह बजे जन्म लिया था। गर्भ में प्रवेश के दौरान भगवान विष्णु ने प्रकट होकर देवकी और वसुदेवजी को अपने चतुर्भुज रूप के दर्शन कराकर रहस्य की बातें बताई थीं।

कारागार में वसुदेव-देवकीजी के सामने जब श्रीभगवान विष्णु चतुर्भुज रूप में प्रकट हुए तो उन्होंने कहा, हे माता! आपके पुत्र रूप में मेरे प्रकट होने का समय आ गया है। तीन जन्म पूर्व जब मैंने आपके पुत्र रूप में प्रकट होने के लिए वरदान दिया था।

तब श्रीकृष्ण भगवान वसुदेव और देवकी के पूर्व जन्म की कथा बताते हैं और कहते हैं कि आप दोनों ने स्वायम्भुव मन्वन्तर में प्रजापति सुतपा और देवी वृष्णी के रूप में किस तरह मुझे प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी। फिर मैंने तीन बार तथास्तु कहा था इसलिए मैं आपके तीन जन्म में आपके पुत्र के रूप में प्रकट हुआ। पहले जन्म में वृष्णीगर्भ के नाम से आपका पुत्र हुआ। फिर दूसरे जन्म में जब आप देव माता अदिति थी तो मैं आपका पुत्र उपेंद्र था। मैं ही वामन बना और राजा बलि का उद्धार किया।

अब इस तीसरे जन्म में मैं आपके पुत्र रूप में प्रकट होकर अपना वचन पूरा कर रहा हूं। यदि आपको मुझे पुत्र रूप में पाने का पूर्ण लाभ उठाना है तो पुत्र मोह त्यागकर मेरे प्रति आप ब्रह्मभाव में ही रहना। इससे आपको इस जन्म में मोक्ष मिलेगा।

यह सुनकर माता देवकी कहती हैं कि हे जगदीश्वर यदि मुझमें मोक्ष की लालसा होती तो उसी दिन में मोक्ष न मांग लेती! नहीं प्रभु, मुझे मुक्ति नहीं चाहिए। मुझे तो आपके साथ मां बेटे का संबंध चाहिए। यह सुनकर प्रभु प्रसन्न हो जाते हैं। फिर माता देवकी कहती हैं कि इस चतुर्भुज रूप को हटाकर आप मेरे सामने नन्हें बालक के रूप में प्रकट हों। मुझे तो केवल मां और पुत्र का संबंध ही याद रहे बस। तब श्रीकृष्ण कहते हैं तथास्तु।

फिर माता योगमाया प्रकट होती है। फिर श्रीकृष्ण कहते हैं कि मेरी माया के प्रभाव से आपको ये सब बातें याद नहीं रहेंगे। आप पुत्र मोह, वात्सल्य और पीड़ा का अनुभव करेंगी। फिर देवकी और वसुदेव माया के प्रभाव से पुन: सो जाते हैं तब प्रभु श्रीकृष्ण बाल रूप में देवकी के पास प्रकट हो जाते हैं। योगमाया उन्हें नमस्कार करती हैं।

शेषनाग ने जब किया गर्भ धारण, कंस पहुंचा वध करने कुछ देर बाद योगमाया वसुदेव को जगाती है। वसुदेव जागते हैं तो वह कहती हैं कि कंस के आने के पहले तुम इस बालक को लेकर गोकुल चले जाओ। वसुदेव बालक को प्रणाम करते हैं और फिर योगमाया से कहते हैं कि परंतु देवी माता मैं जाऊंगा कैसे? मेरे हाथ में तो बेड़ियां पड़ी हैं और चारों और कंस के पहरेदार भी खड़े हैं। तब देवी माता कहती हैं कि तुम स्वतंत्र हो जाओगे। गोकुल जाकर तुम यशोदा के यहां इस बालक को रख आओ और वहां से अभी-अभी जन्मी बालिका को उठाकर यहां लेकर आ जाओ।

पहरेदारों को नींद आ जाती है, वसुदेवजी की बेड़ियां खुल जाती हैं और फिर वे बालक को उठाकर कारागार से बाहर निकल जाते हैं। बाहर आंधी और बारिश हो रही होती है। चलते-चलते वे यमुना नदी के पास पहुंच जाते हैं। तट पर उन्हें एक सुपड़ा पड़ा नजर आता है जिसमें बालक रूप श्रीकृष्ण को रखकर पैदल ही नदी पार करने लगते हैं। तेज बारिश और नदी की धार के बीच वे गले गले तक नदी में डूब जाते हैं तभी शेषनाग बालकृष्ण के सहयोग के लिए प्रकट हो जाते हैं। 

भगवान श्रीकृष्ण ने आगे की 7 तिथियाँ और पीछे की 7 तिथियाँ छोड़कर बीच की अष्टमी तिथि को पसंद किया, वह भी भाद्रपद मास (गुजरात-महाराष्ट्र के अनुसार श्रावण मास) के रोहिणी नक्षत्र में, कृष्ण पक्ष की अष्टमी। शोषकों ने समाज में अंधेरा मचा रखा था और समाज के लोग भी उस अंधकार से भयभीत थे, अविद्या में उलझे हुए थे।अतः जैसे, कीचड़ में गिरे व्यक्ति को निकालने के लिए निकालने वाले को स्वयं भी कीचड़ में जाना पड़ता है, वैसे ही अंधकार में उलझे लोगों को प्रकाश में लाने के लिए भगवान ने भी अंधकार में अवतार ले लिया।

भगवान के जन्म और कर्म तो दिव्य हैं ही परंतु उनकी प्रेम शक्ति, माधुर्य शक्ति तथा आह्लादिनी शक्ति भी दिव्य है। जिसने एक बार भी भगवान के माधुर्य का अनुभव किया या सुना वह भगवान का ही हो जाता है। 

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जानिए श्रीकृष्ण ने पृथ्वी पर अवतार क्यों लिया? जन्माष्टमी कब मनाये? व्रत से क्या लाभ होंगे?


10 अगस्त 2020

जब-जब पृथ्वी पर पापियों का बोझ बढ़ जाता है, तब-तब पृथ्वी अपना बोझ उतारने के लिए भगवान की शरण में जाती है । कंस आदि दुष्टों के पापकर्म बढ़ जाने पर भी, पापकर्मों के भार से बोझिल पृथ्वी देवताओं के साथ भगवान के पास गई और उसने श्रीहरि से प्रार्थना की, तब भगवान ने कहाः "हे देवताओं ! पृथ्वी के साथ तुम भी आये हो, धरती के भार को हल्का करने की तुम्हारी भी इच्छा है, अतः जाओ, तुम भी वृन्दावन में जाकर गोप-ग्वालों के रूप में अवतरित हो मेरी लीला में सहयोगी बनो । मैं भी समय पाकर वसुदेव-देवकी के यहाँ अवतार लूँगा ।"



वसुदेव-देवकी कोई साधारण मनुष्य नहीं थे । स्वायम्भुव मन्वंतर में वसुदे 'सुतपा' नाम के प्रजापति और देवकी उनकी पत्नी 'पृश्नि' थीं । सृष्टि के विस्तार के लिए ब्रह्माजी की आज्ञा मिलने पर उन्होंने भगवान को पाने के लिये बड़ा तप किया था ।

समाज में जब शोषक लोग बढ़ गए, दीन-दुखियों को सताने वालें व चाणूर और मुष्टिक जैसे पहलवानों और दुर्जनों का पोषण करने वालें क्रूर राजा बढ़ गए, समाज त्राहिमाम पुकार उठा, सर्वत्र भय व आशंका का घोर अंधकार छा गया तब भाद्रपद मास (गुजरात-महाराष्ट्र में श्रावण मास) में कृष्ण पक्ष की उस अंधकारमयी अष्टमी, रोहिणी नक्षत्र को कृष्णावतार हुआ । जिस दिन वह निर्गुण, निराकार, अच्युत, माया को वश करने वाले जीवमात्र के परम सुहृद भगवान स्वयं प्रकट हुए वह पावन दिन जन्माष्टमी कहलाता है।

श्रीमद् भागवत में भी आता है कि दुष्ट राक्षस जब राजाओं के रूप में पैदा होने लगें, प्रजा का शोषण करने लगें, भोगवासना-विषयवासना से ग्रस्त होकर दूसरों का शोषण करके भी इन्द्रिय-सुख और अहंकार के पोषण में जब उन राक्षसों का चित्त रम गया, तब उन आसुरी प्रकृति के अमानुषों को हटाने के लिए तथा सात्त्विक भक्तों को आनंद देने के लिए भगवान श्रीकृष्ण का अवतार हुआ ।

जब समाज में अव्यवस्था फैलने लगती है, सज्जन लोग पेट भरने में भी कठिनाइयों का सामना करते हैं और दुष्ट लोग शराब-कबाब उड़ाते हैं, कंस, चाणूर, मुष्टिक जैसे दुष्ट बढ़ जाते है और निर्दोष गोप-बाल जैसे लोग अधिक सताए जाते हैं, तब उन सताए जाने वालों की संकल्प शक्ति और भावना शक्ति उत्कट होती है और सताने वालों के दुष्कर्मों का फल देने के लिए भगवान का अवतार होता है ।

भगवान अवतरित हुए तब जेल के दरवाजे खुल गए । पहरेदारों को नींद आ गयी । रोकने-टोकने और विघ्न डालने वाले सब निद्राधीन हो गए । जन्म हुआ है जेल में, एकान्त में, वसुदेव-देवकी के यहाँ और लालन-पालन होता है नंद-यशोदा के यहाँ ।  श्रीकृष्ण का प्राकट्य देवकी के यहाँ हुआ है, परंतु पोषण यशोदा माँ के वहाँ होता है ।

भगवान श्रीकृष्ण के जीवन में एक महत्त्वपूर्ण बात झलकती है कि बुझे दीयों को प्रकाश देने का कार्य और उलझे हुए दिलों को सुलझाने का काम तो वे करते ही हैं, साथ ही साथ इन कार्यों में आने वाले विघ्नों को, फिर चाहे वह मामा कंस हो या पूतना या शकटासुर-धेनकासुर-अघासुर-बकासुर हो फिर केशि हो, सबको श्रीकृष्ण किनारे लगा देते हैं ।


श्रीमद् भगवदगीता के चौथे अध्याय के सातवें एवं आठवें श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण स्वयं अपने श्रीमुख से कहते हैं-

यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।।
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।
धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे।।

1.परित्राणय साधुनाः - साधु स्वभाव के लोगों का, सज्जन स्वभाववाले लोगों का रक्षण करना ।

2. विनाशाय च दुष्कृताम् - जब समाज में बहुत स्वार्थी, तामसी, आसुरी प्रकृति के कुकर्मी लोग बढ़ जाते हैं तब उनकी लगाम खींचना।

3.धर्मसंस्थापनार्थायः - धर्म की स्थापना करने के लिए अर्थात् अपने स्वजनों को, अपने भक्तों को तथा अपनी ओर आने वालों को अपने स्वरूप का साक्षात्कार हो सके इसका मार्गदर्शन करना।

भगवान के अवतार के समय तो लोग लाभान्वित होते ही हैं किंतु भगवान का दिव्य विग्रह जब अन्तर्धान हो जाता है, उसके बाद भी भगवान के गुण, कर्म और लीलाओं का स्मरण करते-करते हजारों वर्ष बीत जाने के बाद भी मानव समाज लाभ उठाता रहता है।

जन्माष्टमी व्रत से लाभ:-

जन्माष्टमी का व्रत करने से 1000 एकादशी व्रत करने का पुण्य प्राप्त होता है और उसके रोग, शोक, दूर हो जाते हैं।” धर्मराज सावित्री देवी को कहते हैं किः “जन्माष्टमी का व्रत सौ जन्मों के पापों से मुक्ति दिलाने वाला है ।” (ब्रह्मवैवर्त पुराण)

अकाल मृत्यु व गर्भपात से करे रक्षा:-

ʹभविष्य पुराणʹ में लिखा है कि ʹजन्माष्टमी का व्रत अकाल मृत्यु नहीं होने देता है । जो जन्माष्टमी का व्रत करते हैं, उनके घर में गर्भपात नहीं होता । बच्चा ठीक से पेट में रह सकता है और ठीक समय पर बालक का जन्म होता है।ʹ ( स्त्रोत : संत श्री आशारामजी आश्रम द्वारा साहित्य से )

व्रत-जागरण और उपवास किस दिन करें?

11 या 12 अगस्त को, आखिर कब है श्रीकृष्ण जन्माष्टमी?

पंचांग के अनुसार इस बार भाद्रपद कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि 11 अगस्त 2020 मंगलवार को प्रात: 9.07 बजे से प्रारंभ होकर अगले दिन 12 अगस्त बुधवार को प्रात: 11.18 बजे तक रहेगी। 11 अगस्त को भरणी नक्षत्र मध्यरात्रि के बाद 00.55 बजे तक रहेगा। इसके बाद कृतिका नक्षत्र प्रारंभ होगा जो 12 अगस्त को मध्यरात्रि के बाद 3.25 बजे तक रहेगा। इसके अलावा कार्यों में सिद्धि देने वाला सर्वार्थ सिद्धि योग 11 अगस्त की रात 12:53 बजे से शुरू होकर 13 अगस्त को सुबह 6:04 बजे समाप्त होगा। इस प्रकार 12 अगस्त को पूरे दिन सर्वार्थ सिद्धि योग रहेगा।

चार खास संयोग में 12 अगस्त को मनाना श्रेष्ठ।

12 अगस्त को चार विशेष संयोग बन रहे हैं। सर्वार्थसिद्धि योग, वृषभ का चंद्रमा, बुधवार का दिन और सूर्य उदय की अष्टमी। भगवान श्रीकृष्ण के जन्म के समय ये चार संयोग थे। इसके अलावा एक और संयोग नक्षत्र का था। भगवान कृष्ण का जन्म रोहिणी नक्षत्र में हुआ था। इस बार यह नक्षत्र दोनों ही दिन नहीं आ रहा है। लेकिन चार संयोगों का होना इस बात की पुष्टि करता है कि जन्माष्टमी 12 अगस्त को मनाना ही श्रेष्ठ और शास्त्र सम्मत है। हालांकि स्मार्त मत को मानने वाले लोग 11 अगस्त को जन्माष्टमी मनाएंगे और वैष्णव मत को मानने वाले 12 अगस्त को मनाएंगे। वैसे उदय तिथि के अनुसार व्रत-त्योहार मनाना शास्त्र सम्मत माना जाता है और उदय तिथि अष्टमी 12 को ही है।

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Sunday, August 9, 2020

न्यायालय समान न्याय क्यों नहीं कर रहा है? पादरी को तुरंत बेल हिंदू संत को जेल ऐसा क्यों ?

 09 अगस्त 2020


🚩भारत मे इस कहावत का सबसे बड़ा मजाक बनाकर रख दिया है "कानून सबके लिए समान है" लेकिन जब न्याय की बात आती है तो न्यायालय द्वारा ही पक्षपात किया जाता है ऐसे अनगिनत उदाहरण हैं पर अभी एक ताजा उदाहरण आपके सामने पेश कर रहे हैं।

🚩जालंधर के ईसाई पादरी बिशप फ्रैंको मलक्कल ने केरल की नन के साथ 2014 से 2016 के बीच कई बार बलात्कार किया ऐसा आरोप लगाया गया। नन ने मलक्कल पर आरोप लगाया था कि मई 2014 में कुरविलांगड़ के एक गेस्ट हाउस में उनसे बलात्कार किया गया और बाद में कई मौकों पर उनका यौन शोषण किया । नन ने कहा कि चर्च के अधिकारियों ने जब पादरी के खिलाफ उनकी शिकायत पर कोई कदम नहीं उठाया तो उन्होंने पुलिस का रुख किया।

🚩जब जनता का प्रेशर हुआ तब मलक्कल को गिरफ्तार भी किया लेकिन 21 दिन में मलक्कल को जमानत मिल गई अभी फिर दुबारा भी जमानत न्यायालय ने दे दी है।

🚩समान कानून की बात करने वाली यही न्यायालय जब एक लड़की षड्यंत्र के तहत 85 वर्षीय हिंदू संत आशाराम बापू 7 साल से 1 दिन भी जमानत नही दी जबकि उनके केस में ट्रायल 5 साल तक चला, ट्रायल के समय भी उनको जमानत नही जबकि बीच मे उनके बहन-भांजे आदि की मौत भी हुई और उनकी धर्मपत्नी और उनकी स्वयं तबियत खराब भी हुई फिर हुई जमानत नही दी गई।

🚩बिशप फ्रेंको मलक्कल और हिंदू संत आशाराम बापू में इतना ही फर्क था कि मलक्कल वेटिकन सिटी के फंड लेकर भारत में धर्मान्तरण करवा रहा था और बापू आशारामजी धर्मान्तरण को रोक रहे थे, उन्होंने ऐसा एक अभियान चलाया था, करोड़ों लोगों को सनातन धर्म की महिमा बताई, लाखों हिंदुओं की घर वापसी करवाई, आदिवासी क्षेत्रों में जाकर उनको घर व जीवनोपयोगी सामग्री दी, पैसे दिए इसके कारण धर्मान्तरण का धंधा कम होने लगा जिसके कारण उनको जेल में जाना पड़ा और न्यायालय ने 1 दिन भी जमानत नही दी, अगर बापू आशारामजी धर्मान्तरण रोकने का गुनाह नही करते तो वे भी आज बाहर होते।

🚩कानून को देखो राहूल गांधी, नेता सोनिय गांधी, अभिनेता सलमान खान, पत्रकार तरुण तेजपाल, टुकड़े टुकड़े गैंग के कन्हैया कुमार, उमर खालिद दिल्ली दंगा भड़काने में मुख्य साजिशकर्ता सफूरा जरगर को तुंरत जमानत हासिल हो जाती है लेकिन धर्मान्तरण पर रोक लगाने वाले दारा सिंह 20 साल से ओडिशा की जेल में बंद हैं। 85 वर्षीय हिंदू संत आशारामजी बापू 7 साल से जेल में बंद है जबकि उनको षडयंत्र तहत फसाने के कई प्रमाण भी हैं फिर भी उनको आज तक जमानत हासिल नही हुई क्या हिंदुस्तान में हिंदू हित की बात करना भी अपराध हो गया है?

🚩आपको बता दें कि जिस केस में हिंदू संत आशारामजी बापू को सेशन कोर्ट ने सजा सुनाई है लेकिन जब उनके केस पढ़ते है तो उसमें साफ है कि जिस समय आरोप लगाने वाली लड़की ने तथाकथित घटना बताई है उससे तो साफ होता है कि वे उस समय अपने मित्र से फोन पर बात कर थी उसकी कॉल डिटेल भी है और आशारामजी बापू एक कार्यक्रम में थे वहां पर 50-60 लोग भी मौजूद थे उन्होंने भी गवाही दी है और मेडिकल रिपोर्ट में भी लड़की को एक खरोच तक नही आई है  और एफआईआर में भी बलात्कार का कोई उल्लेख नही है केवल छेड़छाड़ का आरोप है।

🚩आपको ये भी बता दें कि बापू आशारामजी आश्रम में एक फेक्स भी आया था उसमें उन्होंने साफ लिखा था कि 50 करोड़ दो नही तो लड़की के केस में जेल जाने के लिए तैयार रहो।

🚩बता दें कि स्वामी विवेकानंद जी के 100 साल बाद शिकागो में विश्व धर्मपरिषद में भारत का नेतृत्व हिंदू संत आसाराम बापू ने किया था। बच्चों को भारतीय संस्कृति के दिव्य संस्कार देने के लिए देश मे 17000 बाल संस्कार खोल दिये थे, वेलेंटाइन डे की जगह मातृ-पितृ पूजन शुरू करवाया, क्रिसमस की जगह तुलसी पूजन  शुरू करवाया, वैदिक गुरुकुल खोलें, करोड़ो लोगों को व्यसनमुक्त किया, ऐसे अनेक भारतीय संस्कृति के उत्थान के कार्य किये हैं जो विस्तार से नहीं बता पा रहे हैं। इसके कारण आज वे जेल में हैं और जमानत हासिल नही हो रही है अब हिन्दू समाज को जागरूक होकर उनकी रिहाई करवानी चाहिए।

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