Saturday, September 19, 2020

सुप्रीम कोर्ट ने कहा मीडिया किसी एक समुदाय को निशाना नहीं बनायें, क्या हिंदू विरोधी अब रुकेंगे?

19 सितंबर 2020


सुदर्शन न्यूज़ के मुस्लिम अभ्यर्थियों के यूपीएससी में चुने जाने को लेकर दिखाए जा रहे कार्यक्रम पर सुप्रीम कोर्ट ने एतराज़ जताते हुए बचे हुए एपिसोड दिखाने पर रोक लगा दी थी। शुक्रवार (सितम्बर 18, 2020) को इस मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने मीडिया को सख्त संदेश दिया है कि किसी एक समुदाय को निशाना नहीं बनाया जा सकता है।




सुनवाई के दौरान जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, “एक संदेश मीडिया में जाने देना चाहिए कि किसी विशेष समुदाय को लक्षित नहीं किया जा सकता है। हमें एक ऐसे राष्ट्र के भविष्य के बारे में देखना चाहिए, जो सामंजस्यपूर्ण और विविधतापूर्ण हो। हम राष्ट्रीय सुरक्षा को मान्यता देते हैं, लेकिन हमें व्यक्तिगत सम्मान भी करना चाहिए।”

लेकिन जस्टिस चंद्रचूड़ जिस ‘समुदाय’ को निशाना ना बनाए जाने को लेकर संदेश देना चाह रहे थे उन्होंने उसका नाम तक नहीं लिया। यानी इसका अर्थ यह लगाया जा सकता है कि मीडिया में बैठे हुए प्रोपेगेंडा प्रतिनिधि बीबीसी, शेखर गुप्ता का ‘दी प्रिंट’, दी वायर, एनडीटीवी और ऐसे ही न जाने कितने ही हिन्दूफोबिया से ग्रसित पत्रकारिता के समुदाय विशेषों को हिन्दुओं और उनकी आस्था को निशाना बनाने के बारे में सोचना चाहिए।

जिस तरह का बर्ताव मीडिया का यह गिरोह हिन्दू समुदाय से करता आया है, यह कहा जा सकता है कि जस्टिस चंद्रचूड़ ने हिन्दूफोबिक चैनलों को इशारा किया है कि उनके द्वारा हिन्दुओं की आस्था पर आक्रमण भविष्य के भारत के लिए खतरा है और न्यायपालिका उसे बचाने के लिए प्रतिबद्ध है।

वास्तव में, हमने ऐसे अनगिनत उदाहरण देखे, जब किसी दूसरे समुदाय विशेष द्वारा किए गए अपराधों को भ्रामक तरीके से हिन्दुओं द्वारा किए जाने वाले अपराध साबित करने के प्रयास किए गए। हिन्दुओं की आस्था को लगातार खास तरह के चैनलों और पोर्टलों द्वारा नीचा दिखाया जाता रहा है। जस्टिस चंद्रचूड द्वारा दिए गए इस संदेश के बाद तो अब यही लगता है कि अब किसी रेपिस्ट ‘असलम’ को ‘बाबा’ लिख कर, कार्टून में भगवा पहनाने वालों की खैर नहीं।

शेखर गुप्ता के दी प्रिंट ने पिछले साल ही एक लेख प्रकाशित किया था जिसमें दावा किया गया था कि दिल्ली में मौजूद हनुमान जी की विशाल प्रतिमा से समुदाय विशेष के लोगों में दहशत का माहौल है।

इससे पहले सभी लोगों ने सिर्फ यही सुना था कि हनुमान जी का नाम सिर्फ भूत-पिशाचों में ही दहशत पैदा करता है, लेकिन दी प्रिंट के इस लेख में खुलासा किया गया था कि यह भूत-पिशाच कोई और नहीं बल्कि समुदाय विशेष के लोग थे।

यह एक ऐसा ही प्रमुख उदाहरण था जब पत्रकारिता के समुदाय विशेष द्वारा हिन्दू प्रतीकों को अपमानित करने का नैरेटिव खुलकर चलाया गया। तब शायद ही किसी हिन्दू ने शेखर गुप्ता के खिलाफ कोर्ट जाने का फैसला लिया होगा। यही हिन्दू धर्म की सहिष्णुता भी है।

इंडिया टुडे ने एक ऐसी ही खबर प्रकाशित करते हुए समुदाय विशेष के लोगों में बाल विवाह को लेकर सवाल उठाए गए थे। लेकिन शातिर तरीके से इंडिया टुडे ने अज्ञात कारणों से इस लेख में किसी समुदाय विशेष की बच्ची की तस्वीर के बजाए एक हिन्दू बच्ची की तस्वीर इस्तेमाल की थी। शायद इंडिया टुडे जानता था कि उसे किन लोगों से खतरा मोल नहीं लेना है। इंडिया टुडे यह तक कह चुका है कि श्रीराम नाम के नारों से माहौल दूषित हुआ है।

ऐसे ही कई उदाहरण हैं जब मीडिया में हिन्दू धर्म को निशाना बनाते हुए इसे अपमानित और इसके दुष्प्रचार का एजेंडा चलाया जाता है। इन्हीं में से सबसे प्रचलित एजेंडा क्राइम रिपोर्ट्स में अपनाया जाता है। जब पत्रकारिता के समुदाय विशेष द्वारा किसी ढोंगी को, जो कि अक्सर कोई अब्दुल या असलम होता है, भूत-प्रेत या फिर जिन-जिन्नात भगाने के लिए महिलाओं का शोषण या उन पर अत्याचार करते हुए पकड़ा जाता है लेकिन मीडिया का यह गिरोह इसे ‘तांत्रिक’ ‘ओझा‘ या फिर NDTV जैसे समूह ‘बाबा’ लिखकर हिन्दू धर्म को अपमानित करता है और कोई ‘आह’ तक नहीं करता।

खैर, जस्टिस चंद्रचूड़ का यह सन्देश वास्तव में व्यापक है। मीडिया यदि वास्तव में किसी एक समुदाय के खिलाफ एजेंडा चलाने से बाज आए, तो हिन्दू धर्म मीडिया के इस गिरोह का बहुत आभारी रहेगा।

आज तक मीडिया "भगवा आतंकवाद" के नाम से हिंदुओं को बदनाम किया, हिंदू देवी-देवताओं, हिंदू साधु-संतों, हिंदू मंदिरों, हिंदू त्यौहार का खूब अपमान किया अंतराष्ट्रीय स्तर पर हिंदू संस्कृति को बदनाम किया अब इस संदेश से मीडिया को रुकना चाहिए नही तो सुप्रीम कोर्ट को इस पर सख्त कार्यवाही करनी चाहिए सिर्फ एकतरफ फैसले से तो नुकसान ही होगा।

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Friday, September 18, 2020

बॉलीवुड में ड्रग्स का आरोप कोई नया नहीं है, पहले भी कई हीरो-हीरोइन शामिल रहे हैं...

18 सितंबर 2020


सुशांत सिंह राजपूत की मौत की जॉंच आगे बढ़ने के बाद बॉलीवुड में ड्रग्स का प्रभाव चर्चा में है। रिया चकवर्ती की गिरफ्तारी के बाद से मीडिया रिपोर्टों में लगातार दावा किया जा रहा है कि उन्होंने नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) के सामने सारा अली खान, रकुल प्रीत सिंह और सिमोन खंबोटा जैसों का नाम लिया है। अब बताया जा रहा है कि एनसीबी की जॉंच में एक और हीरोइन का नाम सामने आया है। हालॉंकि यह नाम अब तक स्पष्ट नहीं है।




वैसे बॉलीवुड में ड्रग्स समस्या कोई नई चीज नहीं है। फिल्मी दुनिया के कई सितारें पहले भी ड्रग लेने की बात कबूल चुके हैं। जाहिर है कि फ़िल्म इंडस्ट्री में ड्रग्स बेहद ही गंभीर समस्या पहले भी थी और अब भी है।

बता दें रणबीर कपूर से लेकर संजय दत्त जैसे कई सितारे इस पर खुल कर अपनी बात रख चुके हैं। वहीं गौरी खान, ममता कुलकर्णी, हनी सिंह से लेकर रणबीर कपूर तक के टॉप सेलिब्रिटीज पर ड्रग्स सेवन का आरोप लग चुका है।

फरदीन खान :: दिग्गज अभिनेता फ़िरोज़ खान के बेटे फरदीन का बॉलीवुड करियर बहुत ही कम समय का था। उन्हें 5 मई 2001 में मुंबई पुलिस ने कोकीन के साथ गिरफ्तार किया था। इस लत को छुड़ाने के लिए उन्होनें डिटॉक्सिफिकेशन कोर्स भी किया था। 2012 में टाइम्स ऑफ इंडिया के साथ एक साक्षात्कार में, फरदीन ने कहा, “कोई भी मन-परिवर्तन करने वाला पदार्थ, चाहे वह मादक पदार्थ हो या शराब या नशे की गोलियाँ, एक घातक निर्भरता पैदा करती है। इससे पहले कि आप इसके बारे में जाने यह आपको ले डूबता है।” नारकोटिक्स डिपार्टमेंट इस मामले में उन्हें चार्ज करने में 10 साल लग गए थे। जिसके बाद उन्हें जमानत दे दी गई थी।

संजय दत्त :: अनुभवी अभिनेता सुनील दत्त के बेटे संजय दत्त को 1982 में ड्रग रखने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था और इस मामले में उन्हें पाँच महीने जेल में बिताने पड़े थे। दत्त का नाम कई हाई-प्रोफाइल मामलों में शामिल था। जिसमें 1993 में मुंबई में हुए सीरियल ब्लास्ट भी शामिल थे। इंडिया टुडे के साथ एक साक्षात्कार में दत्त ने अपनी ड्रग्स लत की समस्याओं के बारे में विस्तार से बात की थी।

उन्होंने बताया कि ड्रग्स का वो फेज उनकी नौ साल की जिंदगी का सबसे बुरा समय था। दत्त ने ड्रग्स समस्या से छुटकारा पाने के लिए अमेरिका में एक रिहैबिलिटेशन केंद्र में समय बिताया। दत्त ने एक बार कहा था, “कोकीन से हेरोइन तक, हर तरह का ड्रग्स मैंने लिया है।”

उन्होंने अपने बॉयोपिक में (जिसमें रणबीर कपूर ने अभिनय किया था) इस बात का खुलासा किया था कि वे एक ड्रग्स के नशे में 2 दिन तक सोते रहे थे। जब वे दो दिन बाद उठे तो उन्हें बहुत भूख लगी थी। उस दिन के बाद उन्होंने अपने पिता कॉन्ग्रेस नेता रहे सुनील दत्त के मदद से ड्रग्स से बाहर निकलने का फैसला किया था।

ममता कुलकर्णी :: 90 के दशक में ममता कुलकर्णी बी-टाउन से शुरुआती जीवन में बड़े सितारों में एक थी। अभिनेत्री पर ड्रग्स मामलों में लिप्त पाए जाने के बाद 2014 केन्या में मामला दर्ज किया गया था। उन्हें केन्या पुलिस ने पति विक्की गोस्वामी और एक अन्य भारतीय नागरिक कुलम हुसैन के साथ गिरफ्तार किया था। कुलकर्णी ने 2000 के दशक में बॉलीवुड छोड़ दिया था। उन्होंने कथित तौर पर कुख्यात अंतरराष्ट्रीय ड्रग लॉर्ड गोस्वामी से शादी की थी। गोस्वामी ड्रग मामले के आरोप में 10 साल दुबई जेल में बंद था। जिसके बाद उन्होंने केन्या आकर रियल एस्टेट में कारोबार शुरू किया था।

हनी सिंह :: अपने रैप और पंजाबी संगीत के लिए जाने जाने वाले रैपर-कम-स्टार गायक हनी सिंह का शराब के नशे का लंबा इतिहास रहा है। हनी सिंह ने 2016 में एक इंटरव्यू के दौरान अपनी लत की समस्या का खुलासा किया था। जिसके कारण 18 महीने तक इंडस्ट्री से गायब रहे थे। जब वह बिना किसी सूचना के गायब हो गए थे तो यह अफवाहें सामने आई थी कि वह अपनी ड्रग्स की समस्या के लिए रिहैब केंद्र में समय बिता रहे है।

टाइम्स ऑफ इंडिया को दिए इंटरव्यू में उन्होंने सभी अफवाहों से इनकार करते हुए कहा था कि वह शराब की लत छुड़ाने के लिए इलाज करवा रहे थे। उन्होंने स्वीकार किया कि उन्हें बाइपोलर डिसऑर्डर है और वे एक शराबी है।

गीतांजलि नागपाल :: फैशन इंडस्ट्री को फॉलो करने वालों को गीतांजलि नागपाल के बारे में पता होगा। सुष्मिता सेन और अन्य प्रसिद्ध मॉडलों के साथ रैंप साझा करने वाली सफल मॉडलों में उन्हें जाना जाता है। नशे की लत ने उनसे काफी कुछ छीन लिया। एक फोटो जर्नलिस्ट ने सितंबर 2007 में उन्हें दिल्ली की सड़कों पर भीख माँगते हुए देखा था। हालाँकि किसी को नहीं पता था कि एक पूर्व-नौसेना अधिकारी की बेटी सड़कों पर रहने के लिए क्यों मजबूर हो गई थी। इस घटना से पहले वह एक ब्रिटिश नागरिक के साथ रिश्ते में थी।

गौरी खान :: भारतीय फिल्म उद्योग के सबसे सफल अभिनेताओं में से एक शाहरुख खान की पत्नी गौरी खान पर आरोप लगा था कि गौरी खान को बर्लिन एयरपोर्ट पर मारिजुआना के साथ पकड़ा गया था। हालाँकि पूछताछ के बाद उन्हें छोड़ दिया गया था। हालाँकि बर्लिन या भारत में हवाई अड्डे के अधिकारियों द्वारा सार्वजनिक रूप से उनका नाम जारी नहीं किया गया था। केवल यह बात सामने आई थी कि एक अभिनेता की पत्नी बर्लिन में पकड़ी गई थी।

सुज़ैन खान :: प्रसिद्ध इंटीरियर डिजाइनर और ऋतिक रोशन की पूर्व पत्नी सुज़ैन खान को लेकर एक रिपोर्ट में यह बात सामने आई है कि नशे की लत उनके तलाक के पीछे के प्राथमिक कारणों में से एक थी। एक साक्षात्कार में सुज़ैन के पिता अनुभवी अभिनेता संजय खान ने इनडाइरेक्ट तरीके से अपनी बेटी के ड्रग्स की लत के बारे में कहा था। सुज़ैन खान फरदीन खान की चचेरी बहन हैं।

रणबीर कपूर :: दिग्गज अभिनेता ऋषि कपूर और नीतू सिंह के बेटे रणबीर कपूर फिल्म इंडस्ट्री के जाने-माने लोगों में से एक है। उन्हें भी एक मामले में मादक द्रव्यों के सेवन से भी जोड़ा गया था। डेक्कन क्रॉनिकल के साथ अपने एक साक्षात्कार में, उन्होंने कॉलेज के समय में ड्रग्स के सेवन को स्वीकार किया था।

उन्होंने कहा, “मैंने ड्रग्स का इस्तेमाल किया है जब मैं फिल्म स्कूल में था और उस समय बुरे प्रभाव में आ गया था। लेकिन मुझे एहसास हुआ कि अगर मैं ड्रग्स का सेवन जारी रखता हूँ तो मैं जीवन में कुछ नहीं कर पाऊँगा।” हालाँकि उन्होंने कॉलेज के बाद हार्ड ड्रग्स का सेवन नहीं किया लेकिन उन्हें निकोटिन की लत है।

विजय राज :: अपनी कॉमिक भूमिकाओं के लिए जाने जाने वाले विजय राज को 2005 में अबू धाबी पुलिस ने DJ अकील के साथ ड्रग्स रखने के आरोप में गिरफ्तार किया था। राज ने एक सप्ताह जेल में बिताया था। विजय ने दावा किया कि वह निर्दोष थे और उन्हें समझ में नहीं आया कि हवाई अड्डे के अधिकारी अरबी में क्या बता रहे थे। उन्होंने दावा किया था कि वे कोई नशीला पदार्थ नहीं ले जा रहे थे।

कंगना रनौत :: कंगना रनौत विवादों से घिरे रहने वालों में कोई नया नाम नहीं हैं। कुछ दिनों पहले ही उन्होंने दावा किया था कि 90 प्रतिशत बॉलीवुड ड्रग एडिक्ट है। हालाँकि, उन पर पिछले दिनों आरोप लगे थे कि वह ड्रग्स की आदी थी। उन्होंने मार्च में एक IGTV वीडियो अपलोड किया था। जिसमें उन्होंने अपने जीवन के एक समय में ड्रग एडिक्ट होने की बात स्वीकार की थी। उनके पूर्व-प्रेमी अध्यायन सुमन ने भी एक साक्षात्कार के दौरान यह आरोप लगाया था कि वह ड्रग एडिक्ट हैं।

परवीन बॉबी :: हिंदी फिल्मों में 70 और 80 के दशक की सबसे ग्लैमरस एक्ट्रेस रहीं परवीन बॉबी की जिंदगी भी ड्रग्स के चलते बर्बाद हो गई थी। जानलेवा ड्रग्स और शराब की लत की वजह से उनकी मानसिक हालात बिगड़ गई थी। नशे की लत से मजबूर वह अपने सहयोगियों पर संदेह करने लगी थी। कथित तौर पर उन्होंने दावा किया था कि उनके पास 1993 में हुए मुंबई बम विस्फोट मामले में संजय दत्त के शामिल होने का सबूत है। वह फिल्म निर्माता महेश भट्ट के साथ भी रिश्ते में थीं।

मनीषा कोइराला :: बॉलीवुड में अपनी अदाओं से सबको दीवाना बनाने वाली मनीषा कोइराला को कथित तौर पर एक ड्रग एडिक्ट बताया गया था। कथित तौर पर इसके कारण ही उन्हें कैंसर हुआ था। रिपोर्ट के अनुसार अपने करियर के चरम पर वह ड्रग्स की आदी हो गई थीं। हालाँकि ड्रग्स के नशे को लेकर मनीषा ने कभी खुलकर बात नहीं कि लेकिन ड्रग्स की लत ने ही उनकी पर्सनल जिंदगी और करियर को भी चौपट कर दिया था।

बॉलीवुड, पार्टी और ड्रग्स

यदि कोई बॉलीवुड में सफल होना चाहता है, तो उसे पार्टियों में शामिल होना पड़ता है। यह फ़िल्म इंडस्ट्री में स्थापित नामों से जुड़ने का सबसे अच्छा तरीका है। हालाँकि, ये पार्टियाँ केवल नेटवर्क बिल्डिंग के लिए ही नहीं हैं। उद्योग के सूत्रों का कहना है कि ऐसी पार्टियों के दौरान ड्रग्स का खुल कर सेवन भी किया जाता है। पार्टी में हर तरीके का ड्रग्स इस्तेमाल होते हुए देखा जा सकता है। कोई ऐसा कोना नहीं बचता, जहाँ नशीली दवाइयाँ पड़ी न हो। उद्योग के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि कोकीन और अन्य हार्ड ड्रग्स मुश्किल से ही देख सकते हैं। लेकिन अगर आप पॉट धूम्रपान करना चाहते हैं, तो बॉलीवुड पार्टी में हर तीसरे व्यक्ति के पास कुछ न कुछ मिलेगा ही।

भारतीय संस्कृति को नष्ट करने में सबसे बड़ा हाथ बॉलीवुड का रहा है, चोरी, डकैती, बलात्कार, हत्या, आत्महत्या, साधु-संतों व देवी-देवताओं के अपमान करना, हिंदुओं व हिंदू के खिलाफ फिल्में बनाना, हिन्दू त्यौहार का मजाक उड़ाना, अश्लीलता फैलना आदि बहुत सारे कार्य है जो बॉलीवुड ने किया है जिसके कारण भारतीय संस्कृति को आघात पहुँचा हैं। अभी धीरे धीरे इनकी असलियत सामने आ रही है काफी लोग इनका बहिष्कार करने लगे हैं।

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Thursday, September 17, 2020

जान लीजिए रेप केस में कैसे निर्दोष पुरुषों को फँसाया जाता है, आप भी रहिये सावधान

17 सितंबर 2020


भारतीय संस्कृति में नारी को नारायणी कहा गया है, और परस्त्री को माता बहन बेटी समान बताया है, अपनी पत्नी के अलावा किसी भी महिला के प्रति बुरी नजर न रखना ये भारतीय संस्कृति है लेकिन , टीवी, सिनेमा, नॉवेल, अखबार, इंटरनेट आदि ने अश्लीलता दिखाकर महिलाओं के प्रति दृष्टिकोण बदल दिया, महिला को एक भोग्या समझने लगे, समाज में विचारधारा बदलने पर रेप केस बढ़ने लगे और रेप बढ़ने के कारण कड़े कानून बनाये गये लेकिन उसके बाद भी बलात्कार की संख्या बढ़ती जा रही है क्योंकि भारतीय संस्कृति की उपेक्षा की जा रही है और पाश्चात्य संस्कृति अपना रहे हैं ये हाल होना स्वाभाविक है ।




अब चिंताजनक यह बात है कि जो वास्तव में दोषी है वे तो आराम से बाहर घूमते हैं और निर्दोष पुरुष इन केस में फँसाए जाते हैं जिसके कारण निर्दोष पुरुषों की जिंदगी बर्बाद हो रही है, ऐसे सैंकड़ों उदाहरण हैं । अभी एक ताजा उदाहरण आपको दे रहे हैं ।

पिछले साल दिसम्बर में उन्नाव में दर्ज गैंगरेप (Gangrape) के मामले में चौंकाने वाला खुलासा हुआ है । पुलिस (Police) ने कहा है कि पीड़ित महिला ने अपने पिता और भाई पर झूठा आरोप लगाया था । जांच में खुलासा हुआ है कि शादी के 17 दिन बाद मां बनी महिला ने अपने गुनाहों को छिपाने के लिए पिता और भाई पर रेप और देह व्यापार में धकेलने का झूठा आरोप लगाया था । इतना ही नहीं, DNA टेस्ट में यह बात भी पता चली है कि बच्चा उसके प्रेमी का है । महिला ने यह बात कबूली है कि प्रेमी दिलीप के कहने पर ही आरोपी ने अपनों को झुठे मुकदमे में फंसाया था ।

दरअसल, पूरा मामला 29 दिसंबर 2019 का है जब लखनऊ के बंथरा में रहने वाली एक महिला ने तत्कालीन एसपी विक्रांतवीर के समक्ष पिता और सगे चचेरे भाई पर तीन वर्षों से रेप करने का आरोप लगाया था ।

देह व्यापर करवाने का भी आरोप लगाया गया था । इसके बाद 7 माह के गर्भ ठहरने की जानकारी पर आनन-फानन में 19 अप्रैल 2019 को उसकी शादी उन्नाव के सदर कोतवाली क्षेत्र के एक गांव में करा दी गई थी । शादी के 17 दिन बाद 6 मई को प्रसव पीड़ा शुरू हुआ तो महिला को ससुरालियों को सच बताना पड़ा । इसके बाद आरोप लगाने वाली महिला को एक नर्सिंग होम में भर्ती कराया गया, जहां उसने बेटे को जन्म दिया ।

पिता समेत 10 लोगों पर दर्ज हुआ था केस:

पीड़ि‍ता की शिकायत पर एसपी ने पिता समेत 10 लोगों के खिलाफ केस दर्ज करवाया था । मंगलवार को मामले का खुलासा करते हुए महिला थाने के एसओ इन्द्रपाल सिंह सेंगर ने बताया कि शादी से दो साल पहले से ही महिला के लखनऊ के बंथरा निवासी दिलीप नाम के युवक से अवैध संबंध थे । इस बीच जब वह प्रेग्नेंट हो गई और जानकारी परिजनों को लगी तो उसकी शादी कर दी गई । बेटे को जन्म देने के बाद अपने गुनाह को छिपाने के लिए महिला ने प्रेमी के कहने पर पिता समेत अन्य लोगों को झूठे मुक़दमे में फंसाया । डीएनए जांच में भी यह बात पता चली है कि दिलीप ही बच्‍चे का पिता है । आरोपी महिला व उसके प्रेमी को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया है ।

आप देख सकते हैं ऐसे झूठे रेप के आरोप आपके ऊपर लगे तो आपकी स्थिति क्या होगी ? इज्जत, पैसे और समय सब बर्बाद हो जाएगा समाज मे मुँह दिखाने लायक भी रहेंगे । एक तरफा कानून के कारण कितने सज्जन पुरुषों की ज़िन्दगी दाँव पर लगी है ।

महिलाओं की सुरक्षा के लिए कानून जरूरी है परंतु आज साजिश या प्रतिरोध की भावनाओं से निर्दोष लोगों को फँसाने के लिए बलात्कार के कानूनों का दुरुपयोग हो रहा है । राष्ट्रहित में काम करने वाले सुप्रतिष्ठित हस्तियों एवं संतों के खिलाफ इन कानूनों का राष्ट्र विरोधी ताकतों द्वारा अंधाधुंध इस्तेमाल हो रहा है ।

जनता यह भी मांग कर रही है कि जैसे महिला आयोग है वैसे पुरुष आयोग भी होना चाहिए जिसके कारण रेप का झूठा आरोप लगाने वाली महिलाओं पर भी कार्यवाही होनी चाहिए और निर्दोष पुरुषों को न्याय मिलना चाहिए नहीं तो एक के बाद एक निर्दोष पुरुष फँसते जाएंगे ।

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Wednesday, September 16, 2020

बॉलीवुड का संबंध आतंकियों, हत्या, आत्महत्या, कास्टिंग काउच तक का...

16 सितंबर 2020


समाजवादी पार्टी नेता व अभिनेत्री जया बच्चन ने आरोप लगाया कि सोशल मीडिया पर फिल्म इंडस्ट्री को बदनाम किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि केवल मुट्ठी भर लोगों के कारण आप पूरे बॉलीवुड को ड्रग्स एडिक्टेड नहीं बता सकते, उनकी छवि नहीं खराब कर सकते। 




बॉलीवुड की अगर बात बदनामी की ही है, तो आतंकियों से सम्बन्ध रखने, उनकी मदद करने से ज्यादा बदनामी की बात क्या होगी? बॉलीवुड के जाने-माने नाम महेश भट्ट और उनके परिवार के सदस्यों पर यही आरोप था। मुंबई हमलों (26/11) की साजिश रचने वाले डेविड हेडली ने स्वीकारा था कि उसने भट्ट को 26/11 को दक्षिणी मुंबई की तरफ ना जाने की सलाह दी थी।

डेविड हेडली को मुंबई घुमा-घुमा कर दिखाने का आरोप महेश भट्ट के बेटे पर ही रहा है। मगर नहीं इनसे तो बदनामी नहीं होती, बदनामी तो तब होती है जब कोई इस बारे में बोल बैठे?

आतंकियों से सम्बन्ध रखने का ये पहला मामला भी नहीं था। फ़िल्मी सितारों में से कइयों की तस्वीरें भारत से भागे हुए आतंकी दाउद इब्राहीम के साथ दिखी थीं। दाउद के दिए हुए ए.के. 56 के साथ ही संजय दत्त पकड़ा गया था।

इससे क्या बदनामी हुई? नहीं, बिलकुल नहीं। बल्कि उल्टा बॉलीवुड के सितारे प्ले-कार्ड लिए हुए संजय दत्त के समर्थन में खड़े नजर आए। उस पर फिल्म बनाने वाले राजकुमार हिरानी ने इंडिया टुडे के साथ एक इंटरव्यू में बताया था कि संजय दत्त 308 लड़कियों को अपने बिस्तर तक ले जाने के लिए एक अनोखा तरीका इस्तेमाल करता था। वो एक नकली कब्र पर उन्हें ले जाता और कहता कि वहाँ वो उन्हें अपनी माँ से मिलवाने लाया है! ऐसी चीज़ों को जब फिल्मों में दिखाया गया, तब भी बदनामी नहीं हुई थी।

बॉलीवुड के एक दूसरे पोस्टर-बॉय पर तो तारिकाओं से मारपीट करने का अभियोग लगातार लगता रहा है। खुद जया बच्चन की बहु, ऐश्वर्या राय बच्चन भी उसकी शिकार हो चुकी हैं।

इसके अलावा सलमान पर काले हिरण मारने का अभियोग रहा। बिश्नोई लोगों का विरोध ना झेलना पड़ता, तो अपने कुकृत्य में वो कामयाब भी होते। मुंबई में, संभवतः नशे में धुत्त होकर गाड़ी फुटपाथ पर सोए अल्पसंख्यक समुदाय के मजदूरों पर चढ़ा देने का भी उस पर मामला रहा है। पत्रकारों से मारपीट तो सलमान के लिए आम बात है, लेकिन इन सब से बदनामी कहाँ होती है? बदनामी तो तब होती है जब कोई इस बारे में बोल बैठे!

कुछ वर्षों पहले जिया खान नाम की एक युवा अभिनेत्री की आत्महत्या का मामला आया था। ऐसा तो बिलकुल नहीं है कि आत्महत्या बॉलीवुड के लिए कोई नई बात हो, मगर ये मामला इसलिए प्रकाश में आया क्योंकि जिया खान अपना लम्बा सा सुसाइड नोट छोड़ गई थी। इस नोट में आदित्य पंचोली के बेटे सूरज पंचोली का नाम साफ़-साफ़ आता है।

लेकिन किसी को आत्महत्या की कगार तक पहुँचा देना भी कोई बदनामी की बात थोड़ी है? वैसे इस मामले में भी जिया खान की माँ ने आरोप लगाए थे कि महेश भट्ट ने जिया खान को अवसाद ग्रस्त और मानसिक समस्याओं से पीड़ित स्वीकारने के लिए धमकाया था।

बॉलीवुड में “कास्टिंग काउच” पर एक स्टिंग ऑपरेशन हुआ था, जिसे कई लोगों ने देखा होगा। इस मामले में जाने-माने खलनायक शक्ति कपूर भी फँसे थे। मगर इसके उजागर होने पर मामला थमा हो, “कास्टिंग काउच” बंद हो गया हो, ऐसा भी नहीं। जानी-मानी हस्ती सरोज खान ने इस मसले पर कहा था “वो कम से कम रोटी तो देती है। रेप करके छोड़ तो नहीं देते?”

वैसे तो जिस्म बेच कर रोटी का इंतजाम करना भारतीय कानूनों के हिसाब से वेश्यावृति होगा लेकिन संविधान और कानूनों को मान लें तो फिर बॉलीवुड का सेलेब्रिटी कैसा? और हाँ, ध्यान रहे कि इनसे भी कोई बदनामी नहीं होती।

असली मामला तो “तुम्हारा कुत्ता कुत्ता और मेरा कुत्ता टॉमी” वाला है। इस देश में रहकर, यहीं के नागरिकों द्वारा सर पर बिठाए जाने के कारण जो लोग खुद को सेलेब्रिटी मानते हैं, वो जब इसी देश के बारे में कहते हैं कि यहाँ रहने में डर लगता है, या ये कि यहाँ असहिष्णुता का माहौल है, तब तो वो “जिस थाली में खाया, उसी में छेद करना” भी नहीं होता। जिस थाली में खाया, उसी में छेद करना तब हो जाता है, जब बॉलीवुड में काम कर चुका कोई बोल दे कि यहाँ नशे के व्यापार और अपराधी-आतंकी तत्वों से जान पहचान रखने वालों का बोलबाला है।


बाकी हमें उम्मीद है कि जया बच्चन जी के घर में आइना भी होगा। कभी सजते-संवरते उसमें अपनी आँखों से आंखें मिला कर देखिएगा। हो सकता है कुछ शर्म बाकी हो तो वो आँखों में उतर आए। देश का क्या है, तुम्हारा कुत्ता कुत्ता और हमारा कुत्ता टॉमी सुनने के बाद भी जिस थाली में खाया उसमें छेद करने वालों को ढूँढ ही लेगा।

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Tuesday, September 15, 2020

जाने सर्वपितृ अमावस्या के दिन श्राद्ध क्यों करना चाहिए, क्या-क्या लाभ होंगे?

15 सितंबर 2020


हिन्दू धर्म का व्यक्ति अपने जीवित माता-पिता की सेवा तो करता ही है, उनके देहावसान के बाद भी उनके कल्याण की भावना करता है एवं उनके अधूरे शुभ कार्यों को पूर्ण करने का प्रयत्न करता है । 'श्राद्ध-विधि' इसी भावना पर आधारित है। इस साल सर्वपितृ अमावस्या 17 सितंबर को है।




पुराणों में आता है कि आश्विन (गुजरात-महाराष्ट्र के मुताबिक भाद्रपद) कृष्ण पक्ष की अमावस (पितृमोक्ष अमावस) के दिन सूर्य एवं चन्द्र की युति होती है । सूर्य कन्या राशि में प्रवेश करता है । इस दिन हमारे पितर यमलोक से अपना निवास छोड़कर सूक्ष्म रूप से मृत्युलोक (पृथ्वीलोक) में अपने वंशजों के निवास स्थान में रहते हैं । अतः उस दिन उनके लिए विभिन्न श्राद्ध करने से वे तृप्त होते हैं ।

गरुड़ पुराण में लिखा है कि "अमावस्या के दिन पितृगण वायुरूप में घर के दरवाजे पर उपस्थित रहते हैं और अपने स्वजनों से श्राद्ध की अभिलाषा करते हैं। जब तक सूर्यास्त नहीं हो जाता, तब तक वे भूख-प्यास से व्याकुल होकर वहीं खड़े रहते हैं। सूर्यास्त हो जाने के पश्चात वे निराश होकर दुःखित मन से अपने-अपने लोकों को चले जाते हैं। अतः अमावस्या के दिन प्रयत्नपूर्वक श्राद्ध अवश्य करना चाहिए। यदि पितृजनों के पुत्र तथा बन्धु-बान्धव उनका श्राद्ध करते हैं और गया-तीर्थ में जाकर इस कार्य में प्रवृत्त होते हैं तो वे उन्ही पितरों के साथ ब्रह्मलोक में निवास करने का अधिकार प्राप्त करते हैं। उन्हें भूख-प्यास कभी नहीं लगती। इसीलिए विद्वान को प्रयत्नपूर्वक यथाविधि शाकपात से भी अपने पितरों के लिए श्राद्ध अवश्य करना चाहिए।

राजा रोहिताश्व ने मार्कण्डेयजी से प्रार्थना की : ‘‘भगवन् ! मैं श्राद्धकल्प का यथार्थरूप से श्रवण करना चाहता हूँ।

मार्कण्डेयजी ने कहा : ‘‘राजन् ! इसी विषय में आनर्त-नरेश ने भर्तृयज्ञ से पूछा था । तब भर्तृयज्ञ ने कहा था : ‘राजन् ! विद्वान पुरुष को अमावस्या  के दिन श्राद्ध अवश्य करना चाहिए । क्षुधा से क्षीण हुए पितर श्राद्धान्न की आशा से अमावस्या तिथि आने की प्रतीक्षा करते रहते हैं । जो अमावस्या को जल या शाक से भी श्राद्ध करता है, उसके पितर तृप्त होते हैं और उसके समस्त पातकों का नाश हो जाता है।

आनर्त-नरेश बोले : ‘ब्रह्मन् ! मरे हुए जीव तो अपने कर्मानुसार शुभाशुभ गति को प्राप्त होते हैं, फिर श्राद्धकाल में वे अपने पुत्र के घर कैसे पहुँच पाते हैं?

भर्तृयज्ञ : ‘राजन् ! जो लोग यहाँ मरते हैं उनमें से कितने ही इस लोक में जन्म लेते हैं, कितने ही पुण्यात्मा स्वर्गलोक में स्थित होते हैं और कितने ही पापात्मा जीव यमलोक के निवासी हो जाते हैं । कुछ जीव भोगानुकूल शरीर धारण करके अपने किये हुए शुभ या अशुभ कर्म का उपभोग करते हैं ।

राजन् ! यमलोक या स्वर्गलोक में रहनेवाले पितरों को भी तब तक भूख-प्यास अधिक होती है, जब तक कि वे माता या पिता से तीन पीढ़ी के अंतर्गत रहते हैं । जब तक वे मातामह, प्रमातामह या वृद्धप्रमातामह और पिता, पितामह या प्रपितामह पद पर रहते हैं, तब तक श्राद्धभाग लेने के लिए उनमें भूख-प्यास की अधिकता होती है ।

पितृलोक या देवलोक के पितर श्राद्धकाल में सूक्ष्म शरीर से श्राद्धीय ब्राह्मणों के शरीर में स्थित होकर श्राद्धभाग से तृप्त होते हैं, परंतु जो पितर कहीं शुभाशुभ भोग हेतु स्थित हैं या जन्म ले चुके हैं, उनका भाग दिव्य पितर लेते हैं और जीव जहाँ जिस शरीर में होता है, वहाँ तदनुकूल भोगों की प्राप्ति कराकर उसे तृप्ति पहुँचाते हैं ।

ये दिव्य पितर नित्य और सर्वज्ञ होते हैं । पितरों के उद्देश्य से शक्ति के अनुसार सदा ही अन्न और जल का दान करते रहना चाहिए । जो नीच मानव पितरों के लिए अन्न और जल न देकर आप ही भोजन करता है या जल पीता है, वह पितरों का द्रोही है । उसके पितर स्वर्ग में अन्न और जल नहीं पाते हैं । श्राद्ध द्वारा तृप्त किये हुए पितर मनुष्य को मनोवांछित भोग प्रदान करते हैं ।

आनर्त-नरेश : ‘ब्रह्मन् ! श्राद्ध के लिए और भी तो नाना प्रकार के पवित्रतम काल हैं, फिर अमावस्या को ही विशेषरूप से श्राद्ध करने की बात क्यों कही गयी है ?

भर्तृयज्ञ : ‘राजन् ! यह सत्य है कि श्राद्ध के योग्य और भी बहुत-से समय हैं । मन्वादि तिथि, युगादि तिथि, संक्रांतिकाल, व्यतीपात, चंद्रग्रहण तथा सूर्यग्रहण - इन सभी समयों में पितरों की तृप्ति के लिए श्राद्ध करना चाहिए । पुण्य-तीर्थ, पुण्य-मंदिर, श्राद्धयोग्य ब्राह्मण तथा श्राद्धयोग्य उत्तम पदार्थ प्राप्त होने पर बुद्धिमान पुरुषों को बिना पर्व के भी श्राद्ध करना चाहिए । अमावस्या को विशेषरूप से श्राद्ध करने का आदेश दिया गया है, इसका कारण है कि सूर्य की सहस्रों किरणों में जो सबसे प्रमुख है उसका नाम ''अमा'' है । उस "अमा'' नामक प्रधान किरण के तेज से ही सूर्यदेव तीनों लोकों को प्रकाशित करते हैं । उसी "अमा" में तिथि विशेष को चंद्रदेव  निवास  करते  हैं,  इसलिए  उसका  नाम अमावस्या है । यही कारण है कि अमावस्या प्रत्येक धर्मकार्य के लिए अक्षय फल देनेवाली बतायी गयी है । श्राद्धकर्म में तो इसका विशेष महत्त्व है ही ।

श्राद्ध की महिमा बताते हुए ब्रह्माजी ने कहा है : ‘यदि मनुष्य पिता, पितामह और प्रपितामह के उद्देश्य से तथा मातामह,  प्रमातामह और वृद्धप्रमातामह के उद्देश्य से श्राद्ध-तर्पण करेंगे तो उतने से ही उनके पिता और माता से लेकर मुझ तक सभी पितर तृप्त हो जायेंगे ।

जिस अन्न से मनुष्य अपने पितरों की तुष्टि के लिए श्रेष्ठ ब्राह्मणों को तृप्त करेगा और उसीसे भक्तिपूर्वक पितरों के निमित्त पिंडदान भी देगा, उससे पितरों को सनातन तृप्ति प्राप्त होगी ।

पितृपक्ष में शाक के द्वारा भी जो पितरों का श्राद्ध नहीं करेगा, वह धनहीन चाण्डाल होगा । ऐसे व्यक्ति से जो बैठना, सोना, खाना, पीना, छूना-छुआना अथवा वार्तालाप आदि व्यवहार करेंगे, वे भी महापापी माने जाएंगे । उनके यहाँ संतान की वृद्धि नहीं होगी । किसी प्रकार भी उन्हें सुख और धन-धान्य की प्राप्ति नहीं होगी ।

यदि श्राद्ध करने की क्षमता, शक्ति, रुपया-पैसा नहीं है तो श्राद्ध के दिन पानी का लोटा भरकर रखें फिर भगवदगीता के सातवें अध्याय का पाठ करें और 1 माला द्वादश मंत्र "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय" और एक माला "ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं स्वधादेव्यै स्वाहा" की करें और लोटे में भरे हुए पानी से सूर्यं भगवान को अर्घ्य दे फिर 11.36  से 12.24 के बीच के समय (कुतप वेला) में गाय को चारा खिला दें । चारा खरीदने का भी पैसा नहीं है, ऐसी कोई समस्या है तो उस समय दोनों भुजाएँ ऊँची कर लें, आँखें बंद करके सूर्यनारायण का ध्यान करें : ‘हमारे पिता को, दादा को, फलाने को आप तृप्त करें, उन्हें आप सुख दें, आप समर्थ हैं । मेरे पास धन नहीं है, सामग्री नहीं है, विधि का ज्ञान नहीं है, घर में कोई करने-करानेवाला नहीं है, मैं असमर्थ हूँ लेकिन आपके लिए मेरा सद्भाव है, श्रद्धा है । इससे भी आप तृप्त हो सकते हैं । इससे आपको मंगलमय लाभ होगा ।


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Monday, September 14, 2020

कश्मीरी हिन्दूओं का 14 सितंबर को शुरू हुआ था नरसंहार, आज भी शरणार्थी हैं कश्मीरी पंडित।

14 सितंबर 2020


कश्मीर में हिन्दुओं पर हमलों का सिलसिला 1989 में जिहाद के लिए गठित जमात-ए-इस्लामी ने शुरू किया था जिसने कश्मीर में इस्लामिक ड्रेस कोड लागू कर दिया। मुस्लिम आतंकी संगठन का नारा था- ‘हम सब एक, तुम भागो या मरो !’ इसके बाद कश्मीरी पंडितों ने घाटी छोड़ दी। करोड़ों के मालिक कश्मीरी पंडित अपनी पुश्तैनी जमीन-जायदाद छोड़कर शरणार्थी शिविरों में रहने को मजबूर हो गए। हिंसा के प्रारंभिक दौर में 300 से अधिक हिन्दू महिलाओं और पुरुषों की हत्या हुई थी ।




मुस्लिम आतंकवादियों ने 14 सितंबर के दिन कश्मीरी हिन्दूओं को धमकी देकर सर्वप्रथम 14 सितम्बर 1989 को श्रीनगर में हिंदुओं की रक्षा करने वाले भाजपा नेता श्री टिकालाल की हत्या की थी। उसके बाद 19 जनवरी 1990 को लाखों कश्मीरी हिंदुओं को सदा के लिए अपनी धरती, अपना घर छोड़ कर अपने ही देश में शरणार्थी होना पड़ा। वे आज भी शरणार्थी हैं। उन्हें वहां से भागने के लिए बाध्य करने वाले भी कहने को भारत के ही नागरिक थे, और आज भी हैं। उन कश्मीरी इस्लामिक आतंकवादियों को वोट डालने का अधिकार भी है, पर इन हिन्दू शरणार्थियों को वो भी नहीं !

वर्ष 1990 के आते आते फारूख अब्दुल्ला की सरकार आत्म-समर्पण कर चुकी थी। हिजबुल मुजाहिद्दीन ने 4 जनवरी 1990 को प्रेस नोट जारी किया, जिसे कश्मीर के उर्दू समाचार पत्रों `आफताब’ और `अल सफा’ ने छापा । प्रेस नोट में हिंदुओं को कश्मीर छोड़ कर जाने का आदेश दिया गया था । कश्मीरी हिंदुओं की खुले आम हत्याएं आरंभ हो गयी थी । कश्मीर की मस्जिदों के ध्वनि प्रक्षेपक जो अब तक केवल `अल्लाह-ओ-अकबर’ के स्वर छेड़ते थे, अब भारत की ही धरती पर हिंदुओं को चीख चीख कहने लगे कि, ‘कश्मीर छोड़ कर चले जाओ और अपनी बहू बेटियां हमारे लिए छोड जाओ ! `कश्मीर में रहना है तो अल्लाह-अकबर कहना है’, `असि गाची पाकिस्तान, बताओ रोअस ते बतानेव सन’ (हमें पाकिस्तान चाहिए, हिंदु स्त्रियों के साथ, किंतु पुरुष नहीं’), ये नारे मस्जिदों से लगाये जाने वाले कुछ नारों में से थे ।

दीवारों पर पोस्टर लगे हुए थे कि कश्मीर में सभी इस्लामी वेशभूषा पहनें, सिनेमा पर भी प्रतिबन्ध लगा दिया गया ।  कश्मीरी हिंदुओं की दुकानें, घर और व्यापारिक प्रतिष्ठान चिह्नित कर दिए गए । यहां तक कि लोगों की घड़ियों का समय भी भारतीय समय से बदल कर पाकिस्तानी समय पर करने के लिए उन्हें बाध्य किया गया । 24 घंटे में कश्मीर छोड़ दो या फिर मारे जाओ – कश्मीर में `काफिरों का कत्ल करो’ का सन्देश गूंज रहा था । इस्लामिक दमन का एक वीभत्स चेहरा जिसे भारत सदियों तक झेलने के बाद भी मिल-जुल कर रहने के लिए भूल चुका था, वह एक बार पुन: अपने सामने था !

आज कश्मीर घाटी में हिन्दू नहीं हैं। जम्मू और दिल्ली में आज भी उनके शरणार्थी शिविर हैं। 22 साल से वे वहां जीने को बाध्य हैं। कश्मीरी पंडितों की संख्या 3 से 7 लाख के लगभग मानी जाती है, जो भागने पर प्रेरित हुए। एक पूरी पीढ़ी नष्ट हो गयी। कभी धनवान रहे ये हिन्दू, आज सामान्य आवश्यकताओं के लिए भी पराश्रित हो गए हैं।  उनके मन में आज भी उस दिन की प्रतीक्षा है जब वे अपनी धरती पर वापस जा पाएंगे। उन्हें भगाने वाले गिलानी जैसे लोग आज भी जब चाहे दिल्ली आ के कश्मीर पर भाषण देकर जाते हैं और उनके साथ अरुंधती रॉय जैसे भारत के तथाकथित सेकुलर बुद्धिजीवी शान से बैठते हैं।

कश्यप ऋषि की धरती, भगवान शंकर की भूमि कश्मीर जहां कभी पांडवों की 28 पीढ़ियों ने राज्य किया था, वो कश्मीर जिसे आज भी भारत मां का मुकुट कहा जाता है। 500 साल पूर्व तक भी यही कश्मीर अपनी शिक्षा के लिए जाना जाता था। औरंगजेब का बड़ा भाई दारा शिकोह कश्मीर विश्वविद्यालय में संस्कृत पढ़ने गया था। किंतु कुछ समय पश्चात उसे औरंगजेब ने इस्लाम से निष्कासित कर भरे दरबार में उसका क़त्ल कर दिया था। भारतीय संस्कृति के अभिन्न अंग और प्रतिनिधि रहे कश्मीर को आज अपना कहने में भी सेना की सहायता लेनी पड़ती है। ‘हिंदु घटा तो भारत बंटा’ के `तर्क’ की कोई काट उपलब्ध नहीं है! कश्मीर उसी का एक उदाहरण मात्र है।

मुस्लिम वोटों की भूखी तथाकथित सेकुलर पार्टियों और हिंदु संगठनों को पानी पी पी कर कोसने वाले मिशनरी स्कूलों से निकले अंग्रेजी के पत्रकारों और समाचार चैनलों को उनकी याद भी नहीं आती ! गुजरात दंगों में मरे साढ़े सात सौ मुस्लिमों के लिए जीनोसाईड जैसे शब्दों का प्रयोग करने वाले सेकुलर चिंतकों को अल्लाह के नाम पर कत्ल किए गए दसों सहस्र कश्मीरी हिंदुओं का ध्यान स्वप्न में भी नहीं आता ! सरकार कहती है कि कश्मीरी हिंदु `स्वेच्छा से’ कश्मीर छोड़ कर भागे । इस घटना को जनस्मृति से विस्मृत होने देने का षड्यंत्र भी रचा गया है । आज की पीढ़ी में कितने लोग उन विस्थापितों के दुःख को जानते हैं जो आज भी विस्थापित हैं ।  भोगने वाले भोग रहे हैं । जो जानते हैं, दुःख से उनकी छाती फटती है, और याद करके आंखें आंसुओं के समंदर में डूब जाती हैं और सर लज्जा से झुक जाता है ।  रामायण की देवी सीता को शरण देने वाले भारत की धरती से उसके अपने पुत्रों को भागना पडा ! कवि हरि ओम पवार ने इस दशा का वर्णन करते हुए जो लिखा, वही प्रत्येक जानकार की मनोदशा का प्रतिबिम्ब है – `मन करता है फूल चढा दूं लोकतंत्र की अर्थी पर, भारत के बेटे शरणार्थी हो गए अपनी ही धरती पर’ ! स्त्रोत : IBTL

कश्मीरी हिन्दू विश्वभर के जिहादी आतंकवाद के पहली बलि सिद्ध हुए। वर्ष 1990 के विस्थापन के पश्चात विगत 29 वर्ष से विविध राजनीतिक दलों के शासन सत्ता में रहे; परंतु मुसलमानों के तुष्टीकरण की राजनीति के कारण कश्मीर की स्थिति में कुछ भी परिवर्तन नहीं हुआ अत: कश्मीरी हिन्दू अपने घर नहीं लौट सकें !

अब मोदीजी की सरकार ने कश्मीर से 370 हटाने से कश्मीरी हिंदुओंको पुनः घाटी में बसने की उम्मीदे जागृत हुई है । अब शीघ्र ही सरकार कश्मीरी हिंदुओं का पुनर्वसन करें, ऐसी हिंदुओं की मांग है।

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Sunday, September 13, 2020

हिंदी दुनिया की सबसे ज्यादा बोली जाने वाली एवं सबसे उन्नत भाषा है।

13 सितंबर 2020


संविधान सभा ने 14 सितंबर 1949 को एक मत से यह निर्णय लिया कि हिन्दी ही भारत की राजभाषा होगी। सरकारी काम काज हिंदी भाषा में ही होगा । इसी महत्वपूर्ण निर्णय के महत्व को प्रतिपादित करने तथा हिन्दी को हर क्षेत्र में प्रसारित करने के लिये राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा के अनुरोध पर सन् 1953 से संपूर्ण भारत में 14 सितंबर को प्रतिवर्ष हिन्दी-दिवस के रूप में मनाया जाता है।




अंग्रेजी भाषा के मूल शब्द लगभग 10,000 हैं, जबकि हिन्दी के मूल शब्दों की संख्या 2,50,000 से भी अधिक हैं। संसार की उन्नत भाषाओं में हिंदी सबसे अधिक व्यवस्थित भाषा है।

हिंदी दुनिया की सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। हिंदी दुनिया की सर्वाधिक तीव्रता से प्रसारित हो रही भाषाओं में से एक है। वह सच्चे अर्थों में विश्व भाषा बनने की पूर्ण अधिकारी है। हिंदी का शब्दकोष बहुत विशाल है और एक-एक भाव को व्यक्त करने के लिए सैकड़ों शब्द हैं जो अंग्रेजी भाषा में नहीं है। हिन्दी लिखने के लिये प्रयुक्त देवनागरी लिपि अत्यन्त वैज्ञानिक है। हिन्दी को संस्कृत शब्दसंपदा एवं नवीन शब्द-रचना-सामर्थ्य विरासत में मिली है। लेकिन अभी तक हम इसे संयुक्त राष्ट्र संघ की भाषा नहीं बना पाएं।

आज उस मैकाले की वजह से ही हमने अपनी मानसिक गुलामी बना ली है कि अंग्रेजी के बिना हमारा काम चल नहीं सकता। हमें हिंदी भाषा का महत्व समझकर उपयोग करना चाहिए।

मदन मोहन मालवीयजी ने 1898 में सर एंटोनी मैकडोनेल के सम्मुख हिंदी भाषा की प्रमुखता को बताते हुए, कचहरियों में हिन्दी भाषा को प्रवेश दिलाया।

लोकमान्य तिलकजी ने हिन्दी भाषा को खूब प्रोत्साहित किया। वे कहते थे : ‘‘अंग्रेजी शिक्षा देने के लिए बच्चों को सात-आठ वर्ष तक अंग्रेजी पढ़नी पड़ती है। जीवन के ये आठ वर्ष कम नहीं होते। ऐसी स्थिति विश्व के किसी और देश में नहीं है। ऐसी शिक्षा-प्रणाली किसी भी सभ्य देश में नहीं पायी जाती।’’

जिस प्रकार बूँद-बूँद से घड़ा भरता है, उसी प्रकार समाज में कोई भी बड़ा परिवर्तन लाना हो तो किसी-न-किसीको तो पहला कदम उठाना ही पड़ता है और फिर धीरे-धीरे एक कारवा बन जाता है व उसके पीछे-पीछे पूरा समाज चल पड़ता है।

हमें भी अपनी राष्ट्रभाषा को उसका खोया हुआ सम्मान और गौरव दिलाने के लिए व्यक्तिगत स्तर से पहल चालू करनी चाहिए। एक-एक मति के मेल से ही बहुमति और फिर सर्वजनमति बनती है। हमें अपने दैनिक जीवन में से अंग्रेजी को तिलांजलि देकर विशुद्ध रूप से मातृभाषा अथवा हिन्दी का प्रयोग करना चाहिए।

राष्ट्रीय अभियानों, राष्ट्रीय नीतियों व अंतर्राष्ट्रीय आदान-प्रदान हेतु अंग्रेजी नहीं राष्ट्रभाषा हिन्दी ही साधन बननी चाहिए। जब कमाल पाशा अरब देश में तुर्की भाषा को लागू करने के लिए अधिकारियों की कुछ दिन की मोहलत ठुकराकर रातोंरात परिवर्तन कर सकते हैं तो हमारे लिए क्या यह असम्भव है ?

आज सारे संसार की आशादृष्टि भारत पर टिकी है । हिन्दी की संस्कृति केवल देशीय नहीं सार्वलौकिक है क्योंकि अनेक राष्ट्र ऐसे हैं जिनकी भाषा हिन्दी के उतनी करीब है जितनी भारत के अनेक राज्यों की भी नहीं है। इसलिए हिन्दी की संस्कृति को विश्व को अपना अंशदान करना है।

राष्ट्रभाषा राष्ट्र का गौरव है। इसे अपनाना और इसकी अभिवृद्धि करना हमारा राष्ट्रीय कर्तव्य है। यह राष्ट्र की एकता और अखंडता की नींव है। आओ, इसे सुदृढ़ बनाकर राष्ट्ररूपी भवन की सुरक्षा करें।

स्वभाषा की महत्ता बताते हुए हिन्दू संत आशाराम बापू कहते हैं : ‘‘मैं तो जापानियों को धन्यवाद दूँगा। वे अमेरिका में जाते हैं तो वहाँ भी अपनी मातृभाषा में ही बातें करते हैं। ...और हम भारतवासी ! भारत में रहते हैं फिर भी अपनी हिन्दी, गुजराती, मराठी आदि भाषाओं में अंग्रेजी के शब्द बोलने लगते हैं । आदत जो पड़ गयी है ! आजादी मिले 70 वर्ष से भी अधिक समय हो गया, बाहरी गुलामी की जंजीर तो छूटी लेकिन भीतरी गुलामी, दिमागी गुलामी अभी तक नहीं गयी।’’
(लोक कल्याण सेतु : नवम्बर 2012)

अंग्रेजी भाषा के दुष्परिणाम

लॉर्ड मैकाले ने कहा था : ‘मैं यहाँ (भारत) की शिक्षा-पद्धति में ऐसे कुछ संस्कार डाल जाता हूँ कि आनेवाले वर्षों में भारतवासी अपनी ही संस्कृति से घृणा करेंगे, मंदिर में जाना पसंद नहीं करेंगे, माता-पिता को प्रणाम करने में तौहीन महसूस करेंगे, वे शरीर से तो भारतीय होंगे लेकिन दिलोदिमाग से हमारे ही गुलाम होंगे..!

विदेशी शासन के अनेक दोषों में देश के नौजवानों पर डाला गया विदेशी भाषा के माध्यम का घातक बोझ इतिहास में एक सबसे बड़ा दोष माना जायेगा। इस माध्यम ने राष्ट्र की शक्ति हर ली है, विद्यार्थियों की आयु घटा दी है, उन्हें आम जनता से दूर कर दिया है और शिक्षण को बिना कारण खर्चीला बना दिया है। अगर यह प्रक्रिया अब भी जारी रही तो वह राष्ट्र की आत्मा को नष्ट कर देगी। इसलिए शिक्षित भारतीय जितनी जल्दी विदेशी माध्यम के भयंकर वशीकरण से बाहर निकल जायें उतना ही उनका और जनता का लाभ होगा।

अपनी मातृभाषा की गरिमा को पहचानें। बोलचाल, इंटरनेट, ऑफिस आदि में हिंदी का प्रयोग करें व अपने बच्चों को अंग्रेजी (कन्वेंट स्कूलो) में शिक्षा दिलाकर उनके विकास को अवरुद्ध न करें । उन्हें मातृभाषा (गुरुकुलों) में पढ़ने की स्वतंत्रता देकर उनके चहुमुखी विकास में सहभागी बनें।

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