Friday, October 16, 2020

लव जिहाद ने खड़ी की बेटियों के लिए पहाड़ जैसी बड़ी समस्या - असम मंत्री

16 अक्टूबर 2020


लव जिहाद के मामलों में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। ऐसे में कई सरकारें इसे रोकने की दिशा में लगातार प्रयासरत हैं और इसके खिलाफ़ मुखर होकर एक्शन भी ले रही हैं। आज इसी कड़ी में असम के मंत्री (वित्त, स्वास्थ्य व परिवार कल्याण) व भाजपा विधायक हिमंत बिस्वा सरमा ने भी अपना बयान दिया है।




उन्होंने लव जिहाद की ओर इशारा करते हुए बताया कि जो मुस्लिम लड़के झूठा नाम रख कर हिंदू लड़कियों से निकाह करते हैं, वह कोई सच्ची शादी नहीं होती बल्कि विश्वासघात होता है।

समाचार एजेंसी से बात करते हुए असम मंत्री हिमंत बिस्वा ने कहा, “कई मुस्लिम लड़के हिंदू नाम से फेसबुक अकॉउंट बनाते हैं और मंदिर में जाकर अपनी तस्वीर डालते हैं और जब एक बार लड़की ऐसे लड़कों से शादी कर लेती है तो उसे लड़के का असली नाम पता चलता है। इसे असली विवाह नहीं बल्कि विश्वासघात कहा जाता है।”

बता दें कि इससे पहले असम मंत्री हिमंत ने मदरसों पर भी अपना बयान दिया था। उन्होंने कहा था कि उनके राज्य में नवंबर में सभी मदरसों को बंद करने के बारे में एक अधिसूचना जारी की जाएगी। उन्होंने कहा कि राज्य में लगभग 100 संस्कृत स्कूल भी बंद किए जाएँगे।

बिस्वा ने एएनआई को बताया था, “मेरी राय में, कुरान का शिक्षण सरकारी धन पर नहीं हो सकता है। अगर हमें ऐसा करना है तो हमें बाइबल और भगवद गीता दोनों को भी पढ़ाना चाहिए। इसलिए, हम एकरूपता लाना चाहते हैं और इस प्रथा को रोकना चाहते हैं।”

गौरतलब है कि पिछले दिनों लव जिहाद के कई ऐसे मामले सामने आए हैं, जब लड़की को हिंदू नाम बताकर फँसा लिया गया और बाद में उसे नारकीय जीवन जीने पर या तो मजबूर किया गया या फिर मार कर कहीं फेंक दिया गया। पिछले दिनों भी इसी संबंध में भाजपा के वरिष्ठ नेता हिमंत बिस्वा ने असम चुनावों के मद्देनजर आह्वान किया था कि यदि उनकी सरकार आई तो इस लव जिहाद के ख़िलाफ़ कड़ी कार्रवाई होगी।

उन्होंने कहा था, ‘‘हमें असम की जमीन पर लव जिहाद के खिलाफ एक नई और कड़ी लड़ाई शुरू करनी होगी। अगर भाजपा दुबारा सत्ता में आती है तो हम यह निर्णय लेंगे कि अगर कोई भी लड़का धार्मिक पहचान छुपाता है और असम की बेटियों और महिलाओं पर कुछ भी नकारात्मक टिप्पणी करता है तो उसे कड़ी सजा मिले।”

हिमंत बिस्वा सरमा ने यह भी कहा था, ‘‘लव जिहाद ने असम की बेटियों के लिए पहाड़ जैसी बड़ी समस्या खड़ी की है। कई लड़कियों की तो तलाक की नौबत आ गई क्योंकि उन्हें गलत नाम बताकर लड़कों ने धोखा दिया।”

हिंदू युवतियों को अपने माँ-बाप धर्म के संस्कार नहीं देते हैं जिससे हिंदू युवतियां सेक्युलर बन जाती हैं और स्कूलों में भी शिक्षा सेक्युलरिज्म की दी जा रही है। ऊपर से वेब सीरीज, सीरियलों एवं फिल्मों द्वारा लव जिहाद को बढ़ावा दिया जाता है जिसके कारण हिंदू युवती लव जिहाद में आसानी से फंस जाती है और उनका आखरी अंत बड़ा दर्दनाक होता है।

लव जिहाद से हिंदू युवतियों की जिंदगी बर्बाद हो गई है ऐसी एक-दो नहीं हजारों-लाखों घटनाएं होंगी पर उसकी खबरें इलेक्ट्रॉनिक एवं प्रिंट मीडिया नहीं बताती है जिसके कारण ऐसी खबरें जनता तक पहुँच नहीं पाती हैं जिसके कारण दूसरी हिंदू युवतियां भी लव जिहाद में फंसकर अपनी जिंदगी बर्बाद कर देती हैं।

माँ-बाप पहले सनातन धर्म का संस्कार जरूर दें और लव जिहाद में फंसने वाली जिन लड़कियों का जीवन बर्बाद हो गया है उनका भी उदाहरण दें जिसके कारण आपकी बेटियां इनके चंगुल से बच सकें।

Official  Links:👇🏻

🔺 Follow on Telegram: https://t.me/ojasvihindustan





🔺 Pinterest : https://goo.gl/o4z4BJ

Thursday, October 15, 2020

खुलासा : फेसबुक मार्क जुकरबर्ग ने नहीं !! एक भारतीय ने बनाया है !!

15 अक्टूबर 2020


देखा जाए तो आजतक दुनिया में जितनी खोजे हुई हैं वे सब भारतीयों ने ही की है... । उसमें हमारे ऋषि-मुनियों का ज्यादा योगदान रहा है लेकिन दुर्भाग्य यह है कि जितनी भी भारतीयों ने खोजे की उसको तथाकथित इतिहासकारों ने छुपा दी और उस खोज पर विदेशी लोगों की मुहर लगा दी। इसके कारण भारतीय आज अपनी संस्कृति पर गर्व करने की बजाय पाश्चात्य संस्कृति की तरफ प्रभावित हो जाता है।




अगर आपसे कहा जाए कि फेसबुक के संस्थापक मार्क जुकरबर्ग नहीं बल्कि एक भारतीय है, तो क्या आप इस बात पर भरोसा करेंगे ?? नहीं न, लेकिन ये सच है। इस भारतीय शख्स का नाम है 'दिव्य नरेंद्र'। नरेंद्र ने फेसबुक बनाया तो लेकिन उन्हें कभी भी इसका क्रेडिट नहीं मिला। नरेंद्र ने अपने दो अन्य साथियों के साथ मिलकर वो आइडिया डेवलप किया था, जिसे आज हम फेसबुक के नाम से जानते हैं। नरेंद्र ही वो पहले शख्स हैं, जिन्होंने जुकरबर्ग के खिलाफ विश्वासघात का मुकदमा किया था।

◆ कौन हैं नरेंद्र?

नरेंद्र का जन्म 1984 में न्यूयार्क के ब्रांक्स में हुआ था। नरेंद्र भारत से अमेरिका शिफ्ट हुए डॉक्टर दंपत्ति के बड़े बेटे हैं। साल 2000 में उन्होंने हार्वर्ड में दाखिला लिया और साल 2004 में वो अप्लाइड मैथमेटिक्स में ग्रेजुएट हुए।  इसके बाद उन्होंने MBA और कानून की भी पढाई की। नरेंद्र हार्वर्ड कनेक्शन (बाद में नाम कनेक्टयू) के सह-संस्थापक थे, जिसे उन्होंने कैमरुन विंकलेवोस और टेलर विंकलेवोस के साथ मिलकर बनाई थी। इस फार्मूला पर बना है फेसबुक नरेंद्र ने हावर्ड के अपने दो क्लासमेट के साथ मिलकर हार्वर्ड कनेक्ट सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट 21 मई 2004 में लांच की। जिसका नाम बाद में बदलकर कनेक्टयू कर दिया। इस प्रोजेक्ट की शुरुआत दिसंबर 2002 में की गई। इस प्रोजेक्ट का पूरा फॉरमेट और अवधारणा वही है, जिस पर फेसबुक शुरू हुआ। कनेक्टयू वेबसाइट लांच हुई, हार्वर्ड कम्युनिटी के तौर पर इस पर काम शुरू किया फिर ये बंद हो गई। 

◆ ये थे पहले प्रोग्रामर

संजय मवींकुर्वे नाम के प्रोग्रामर के सबसे पहले हार्वर्ड कनेक्शन बनाने को कहा गया। संजय ने इस प्रोजेक्ट पर काम करना शुरू किया लेकिन साल 2003 में उन्होंने इसे छोड़ दिया और गूगल चले गए। संजय के प्रोजेक्ट बीच में छोड़ने के बाद नरेंद्र ने विंकलेवोस और हार्वर्ड के स्टूडेंट और अपने दोस्त प्रोग्रामर विक्टर गाओ को साथ काम करने का प्रस्ताव दिया। विक्टर गाओ ने कहा कि वो इस प्रोजेक्ट का फुल पार्टनर बनने की बजाए पैसे पर काम करना चाहेंगे। इसके लिए नरेंद्र ने उन्हें 400 डॉलर दिए और उन्होंने वेबसाइट कोडिंग पर काम किया। लेकिन बाद में व्यक्तिगत कारणों से उन्होंने खुद को इस प्रोजेक्ट से अलग कर लिया। 

◆ नरेंद्र ने किया था मार्क जुकरबर्ग को एप्रोच 

2003 में नवंबर में विक्टर के रिफरेंस पर विंकलेवोस और नरेंद्र ने मार्क जुकरबर्ग को एप्रोच किया कि वो उनके साथ काम करें। हालांकि जुकरबर्ग को काम के लिए एप्रोच करने से पहले ही नरेंद्र और विंकलेवोस इस पर काफी काम कर चुके थे। नरेंद्र के मुताबिक, कुछ दिनों बाद हमने काफी हद तक वो वेबसाइट डेवलप कर ली लेकिन हमें इस बात का बिल्कुल अंदाजा नहीं था कि जैसे ही हम उसे कैंपस में लोगों को दिखाएंगे, वो लोगों के बीच हलचल पैदा करेगी। मार्क जुकरबर्ग ने जब हार्वर्ड कनेक्शन टीम से बात की तो टीम को वो काफी इंट्रेस्टेड लगे। जुकरबर्ग को वेबसाइट के बारे में बताया गया कि वे कैसे उसका किस तरह विस्तार करेंगे, कैसे उसे दूसरे स्कूलों और अन्य कैंपस तक ले जाएंगे। हालांकि, ये सारी जानकारियां गोपनीय थी, लेकिन मीटिंग में बताना जरूरी था।

◆ पार्टनर बनने के बाद दिया धोखा 

नरेंद्र के मुताबिक, मौखिक बातचीत के जरिए ही जुकरबर्ग उनके पार्टनर बन गए। इसके बाद जुकरबर्ग को प्राइवेट सर्वर लोकेशन और पासवर्ड के बारे में बताया गया, जिससे वेबसाइट का बचा काम और कोडिंग पूरी की जा सके। जुकरबर्ग के टीम में शामिल होने के बाद माना गया कि वो जल्द ही प्रोग्रामिंग के काम को पूरा कर देंगे और वेबसाइट लांच कर दी जाएगी। इन सारे कामों के समझने के कुछ ही दिन बाद जुकरबर्ग ने कैमरुन विंकलेवोस को ईमेल भेजा, जिसमें कहा गया था कि उन्हें नहीं लगता कि प्रोजेक्ट को पूरा करना कोई मुश्किल होगा। जुकरबर्ग ने लिखा था कि मैंने वो सारी चीजें पढ़ ली हैं, जो मुझको भेजी गई हैं और मुझे इन्हें लागू करने में ज्यादा समय नहीं लगेगा। इसके बाद अगले दिन जुकरबर्ग ने एक और ईमेल भेजा, जिसमें लिखा था कि मैने सब कर लिया है और वेबसाइट जल्द ही शुरू हो जाएगी। लेकिन इसी के बाद से जुकरबर्ग धोखा देने लगे। 

◆जुकरबर्ग ने फोन कॉल्स किए इग्नोर

जुकरबर्ग ने धीरे-धीरे करके हार्वर्ड कनेक्ट टीम के फोन उठाने बंद कर दिए। न ही वो टीम के मेल के जवाब दे रहे थे। जुकरबर्ग ने ये जताना शुरू कर दिया कि वो किसी ऐसे काम में बिजी हो गए हैं कि उनके पास ज्यादा समय नहीं है। इसके बाद 4 दिसंबर 2003 को जुकरबर्ग ने मेल किया और लिखा कि सॉरी मैं आप लोगों के कॉल के जवाब नहीं दे सका, मैं बहुत बिजी हूं। इसके बाद वो हर मेल में ऐसी ही बातें कहने लगे।
 
◆ चुपके से लॉन्च किया फेसबुक 

धीरे-धीरे जुकरबर्ग ने हावर्ड टीम के साथ मतभेद पैदा किए और अलग हो गए। इसी के बाद उन्होंने द फेसबुक डॉट कॉम के नाम से 4 फरवरी 2004 को नई वेबसाइट लांच कर दी। इस वेबसाइट में सबकुछ वही था, जो हार्वर्ड कनेक्ट के लिए डेवलप किया जा रहा था। ये सोशल नेटवर्क साइट भी हार्वर्ड स्टूडेंट्स के लिए ही थी, जिसका विस्तार बाद में देश के अन्य स्कूलों तक करना था। विंकलेवोस और नरेंद्र को इस बात का देरी से पता चला। जब उन्हें इस बात का पता चला तो नरेंद्र और उनके सहयोगियों की जुकरबर्ग से तीखी नोकझोंक हुई। यूनिवर्सिटी मैनेजमेंट ने इस मामले में हस्तक्षेप करते हुए नरेंद्र को कोर्ट जाने की सलाह दी। कोर्ट ने माना आइडिया नरेंद्र का था यूनिवर्सिटी की सलाह मानकर नरेंद्र और विंकलेवोस कोर्ट में पहुंचे। साल 2008 में जुकरबर्ग ने इनसे समझौता किया और 650 लाख डॉलर की रकम दी। हालांकि, नरेंद्र इस समझौते से संतुष्ट नहीं थे क्योंकि उनका तर्क था कि उस समय फेसबुक के शेयरों की जो बाजार में कीमत थी, उन्हें उसके हिसाब से हर्जाना नहीं दिया गया। लेकिन अमेरिकी कोर्ट के फैसले से इस बात को तो खुलासा हो गया था कि दुनिया की सबसे बड़ी सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक का आइडिया दिव्य नरेंद्र का था। 

◆ नरेंद्र चलाते हैं समजीरो नाम की कंपनी 

नरेंद्र अब अपनी कंपनी चलाते हैं, जिसका नाम समजीरो है। इस कंपनी को उन्होंने और हावर्ड के क्लामेट अलाप ने शुरू किया। ये कंपनी प्रोफेशनल निवेशक फंड, म्युचुअल फंड और प्राइवेट इक्विटी फंड पर काम करती है। नरेंद्र ने दो साल पहले एक अमेरिकन एनालिस्ट फोबे व्हाइट से शादी रचाई। 

फेसबुक तो एक नमूना है बाकी सर्जरी हो, हवाई जहाज हो, परमाणु हथियार हो अथवा बिजली से लेकर शरीर के स्वास्थ्य तक कि सारी खोजे हमारे ऋषि-मुनियों ने की है लेकिन आज हम असली इतिहास छुपाकर नकली इतिहास पढ़ाया जाता है जिसके कारण आज हम असली भारतीय खोजकर्ताओं को भुला रहे हैं, अब समय की मांग रहते हुए असली इतिहास पढ़ाया जाना चाहिए।

Official  Links:👇🏻

🔺 Follow on Telegram: https://t.me/ojasvihindustan





🔺 Pinterest : https://goo.gl/o4z4BJ

Wednesday, October 14, 2020

केवल साल 2020 में ही 12 साधुओं की बेरहमी से कर दी गई हत्याएं

14 अक्टूबर 2020


पिछले साढ़े छ: सालों में यानी भाजपा के सत्ता संभालने के बाद से ही मुख्यधारा मीडिया में ‘धर्म और जाति’ की खबरें प्रमुखता से दिखाई जाने लगी। केवल हमारे देश में ही नहीं, विदेशों तक में सबको ऐसे केसों के बारे में पता चलने लगा, जहाँ अल्पसंख्यकों पर हमला हुआ। अब चाहें बुद्धिजीवियों के कारण कहें या राजनेताओं की वजह से, दिल्ली के हिंदू विरोधी दंगों तक को मुस्लिमों के ख़िलाफ साजिश बता दिया गया। इसके अलावा जब-जब कोई अल्पसंख्यक या कोई दलित समुदाय के लोगों पर हमला हुआ, तो उसे फौरन आग की तरह फैलाया गया। वहीं किसी सवर्ण पर हमले की घटना पर हर जगह बस मौन पसरा दिखा। नतीजतन सवर्णों पर हुए हमलों की घटनाओं के बारे में विदेशों में तो छोड़िए, भारत तक में भी अधिकांश लोगों ने आवाज नहीं उठाई।




पुराने मामले छोड़ कर यदि सिर्फ़ साल 2020 की बात करें तो इस वर्ष कई साधुओं व संतों पर हमला हुआ। मगर, केवल पालघर जैसे मामलों को ही मीडिया ने प्रमुखता से दिखाया, वो भी बड़े सामंजस्य के साथ। कई हमलों को तो मीडिया ने हजारों अनर्गल खबरों के बीच में ही दबा दिया या यदि उन्हें कवर भी किया तो किसी छोटे से कॉलम के लिए, वो भी बिना किसी फॉलोअप आदि के।

आज हम आपको ऐसे ही कुछ हमलों की जानकारी देने जा रहे हैं जो केवल साल 2020 में ही घटे हैं।

16 जनवरी 2020 को चित्रकूट के बालाजी मंदिर के महंत अर्जुन दास को कुछ उपद्रवियों ने मार डाला। पुलिस ने इस केस में अलोक पांडे, मंगलदास, राजू मिश्रा व दो अन्य लोगों के ख़िलाफ़ मामला दर्ज किया। रिपोर्ट्स में इस घटना को जमीनी विवाद का अंजाम बताया गया और साथ ही कहा गया कि आरोपितों ने हमले के तीन दिन पहले घटनास्थल की रेकी की थी। इसके बाद आकर महंत को गोली मारी। गोली लगने से जहाँ महंत की मृत्यु हो गई वहीं उनके साथी घायल हो गए।

16 अप्रैल 2020, जूना अखाड़ा के दो संतों को हिंसक भीड़ ने अपना निशाना बनाया और पालघर में उनकी लिंचिंग कर उन्हें मौत के घाट उतार दिया। मृतकों की पहचान 70 साल के कल्पवृक्ष गिरि महाराज और 35 साल के सुशील गिरी महाराज के रूप में हुई। उनके साथ हिंसक भीड़ ने उनके ड्राइवर को भी मौत के घाट उतारा। मामले के तूल पकड़ने पर उनके ऊपर तरह तरह के इल्जाम लगाए गए। हालाँकि बाद में जब वीडियो आया तब इस हकीकत का खुलासा हुआ कि आखिर कैसे पुलिस की मौजूदगी में हिंसक भीड़ ने बेरहमी से संतों को मारा। इस पूरे मामले की जाँच में यह भी खुलासा हुआ था कि यह हत्या जानबूझकर की गई और इससे कई राजनैतिक कोण भी जुड़े हुए थे। यह भी अंदाजा लगाया गया कि एनसीपी की शह पर ईसाई मिशनरियों ने इस घटना को अंजाम दिलवाया।

28 अप्रैल को बुलंदशहर में दो पुजारियों पर हमला हुआ। उनका शव मंदिर के परिसर में क्षत-विक्षत मिला। पुजारियों की पहचान जगदीश उर्फ रंगी दास और शेर सिंह उर्फ सेवा दास के रूप में हुई। रिपोर्ट्स में बताया गया कि उन्होंने मुरारी नाम के व्यक्ति को चोरी करते पकड़ा था। इसके बाद मुरारी ने गुस्से में उन दोनों को धारदार हथियार से मारा और बाद में कई ग्रामीणों ने उसे तलवार के साथ गाँव के बाहर जाते देखा। पुलिस की छानबीन में आरोपित को गाँव से दो किलोमीटर दूर से पकड़ा गया था।

23 मई को महाराष्ट्र के नांदेड़ में दो साधुओं की हत्या हुई। पीड़ितों की पहचान बाल ब्रह्मचारी शिवाचार्य महाराज गुरु और भगवान शिंदे के रूप में हुई। साधुओं का शव घर के बाथरूम से बरामद हुआ। पुलिस रिपोर्ट ने बताया कि कम से कम दो आरोपित चोरी करने के लिए घर में घुसे और जब साधुओं से उनका आमना-सामना हुआ तो चार्जिंग केबल से उनका गला घोंट दिया। इसके बाद आरोपितों ने 69,000 रुपए लूटे, लैपटॉप चोरी किया और बाकी वस्तुएँ भी नहीं छोड़ीं। कुल मिलाकर साधु के कमरे से 1,50,000 रुपए गायब थे। पुलिस ने इस संबंध में साईनाथ सिंघाड़े को गिरफ्तार किया था।

13 जुलाई को मेरठ के अब्दुल्लापुर में एक शिव मंदिर के केयरटेकर कांति प्रसाद से मारपीट का मामला सामने आया। कांति प्रसाद की गलती बस यह थी कि वह भगवा धारण करते थे और इसी को देखकर एक ग्रामीण अनस कुरैशी उन पर आपत्तिजनक टिप्पणियाँ करता था। 13 जुलाई को जब कांति प्रसाद बिजली का बिल जमा कराकर लौट रहे थे, तब भी अनस ने यही किया और उन्हें बीच सड़क पर मारना शुरू कर दिया। इस बीच किसी तरह कांति प्रसाद उससे बच कर अनस के घर पहुँचे, लेकिन वहाँ भी अनस ने पीछे से आकर उन पर हमला कर दिया। जब कांति प्रसाद के घरवालों को इसकी सूचना मिली तो उन्होंने शिकायत दर्ज करवाई और पिता को अस्पताल में भर्ती करवाया। हालाँकि हालत गंभीर होने के कारण कांति प्रसाद बच न सके और अगले दिन उन्होंने दम तोड़ दिया।

23 जुलाई को यूपी के एक मंदिर में 22 वर्षीय साधु का शव पेड़ से लटका पाया। रिपोर्ट्स में उनकी पहचान बालयोगी सत्येंद्र आनंद सरस्वती बताई गई, जो हिमाचल प्रदेश से सुल्तानपुर आए थे। वह छतौना गाँव के वीर बाबा मंदिर में लंबे समय से रह रहे थे। जब पुलिस को उनकी अप्राकृतिक मृत्यु का मालूम चला तो शव को हिरासत में ले लिया गया। हालाँकि कुछ ग्रामीणों ने आरोप लगाया कि यह आत्महत्या नहीं, हत्या है।

23 अगस्त को बिहार के लखीसराय में नक्सलियों ने नीरज झा को किडनैप किया और 1 करोड़ की फिरौती माँगी। जब परिवार वालों को पुजारी का शव मिला तो वो इतनी बुरी तरह से क्षत विक्षत था कि परिवार वाले उन्हें पहचान ही नहीं पाए। बाद में उनके भाई पंकज झा ने जनेऊ के कारण उन्हें पहचाना।

11 सिंतबर को मंड्या शहर के बाहरी इलाके में आरकेश्वर मंदिर में 3 पुजारियों की हत्या की गई। पुलिस ने इनकी पहचान गणेश, प्रकाश और आनंद के रूप में की। तीनों का शव पुलिस को खून से लथपथ बरामद हुआ। रिपोर्ट्स से पता चला कि पुजारियों का सिर पत्थर से कुचला गया था। हमलावरों ने वारदात को अंजाम देने के बाद मंदिर में लूटपाट भी की और दानपेटी में बस कुछ सिक्के छोड़े। 15 सितंबर को पाँचों हमलावरों को पकड़ा गया। इनकी पहचान अभिजीत, रघु, विजि, मंजा और गाँधी के रूप में हुई।

24 सितंबर को मध्यप्रदेश के जिला हरदा के तहसील खिड़किया, ग्राम बारंगी में 80 वर्षीय महंत नारायण गिरीजी को बेरहमी से हत्या कर दी गई।

8 अक्टूबर को राजस्थान के करौली जिले के बोकना गाँव में 6 लोगों ने एक मंदिर की जमीन पर अतिक्रमण की कोशिश करते हुए 50 वर्षीय पुजारी बाबूलाल वैष्णव को पेट्रोल डालकर जला के मार डाला । उन्हें जयपुर के एसएमएस अस्पताल में गंभीर हालात में भर्ती करवाया गया और 9 अक्टूबर को उनकी मौत हो गई।

10 अक्टूबर को राम जानकी मंदिर के तिर्रे मनोरमा गाँव में इटियाथोक थाने में पुजारी को गोली मारी गई। यह वारदात भी जमीन विवाद पर हुई। अभी उनका इलाज लखनऊ के ट्रॉमा सेंटर में चल रहा है। रिपोर्ट में बताया जा रहा है कि पुजारी सम्राट दास जिस राम जानकी मंदिर के पुजारी थे, उसकी जमीन पर भू माफियों की नजर थी। उन पर इस बाबत पिछले साल भी हमला हुआ था। पुलिस ने अब इस संबंध में एफआईआर रजिस्टर कर ली है और अपनी पड़ताल भी शुरू कर दी है।

आजकल साधु-संतों की हत्या व उनके ऊपर झूठे केस दायर करना, उनको मीडिया द्वारा बदनाम करना, उनके खिलाफ झूठी कहानियां बनाकर फिल्में बनाना ये कार्य जोरो से चल रहा है पर सरकार इस पर ध्यान नही दे रही है, जनता की तीव्र मांग है कि साधु-संतों के हत्यारों को फाँसी का प्रावधान होना चाहिए जिसके कारण आगे कोई भी किसी साधु की हत्या न करें और साधुओं की सुरक्षा के लिए भी व्यवस्था करनी चाहिए, साधु-संतो पर जो झुठे केस दायर किये जा रहे हैं उनके खिलाफ भी कार्यवाही करनी चाहिए ऐसी जनता की मांग हैं।

Official  Links:👇🏻

🔺 Follow on Telegram: https://t.me/ojasvihindustan





🔺 Pinterest : https://goo.gl/o4z4BJ

Tuesday, October 13, 2020

कानून के रखवाले हिंदुओं को कैसे प्रताड़ित करते हैं पढ़ लीजिये

13 अक्टूबर 2020


वैसे लगता है कि भारत में राष्ट्र एवं भारतीय संस्कृति के उत्थान के कार्य करना अपराध हो गया है, जबकि जो लोग राष्ट्र व भारतीय संस्कृति के खिलाफ़ कार्य कर रहे हैं वे शायद अच्छे कार्य कर रहे हैं क्योंकि कानून इनको आसानी से राहत दे देता है और राष्ट्रहित के कार्य करने वाले सालों से जेल मे प्रताड़ित किये जाते हैं।




आपको ताजा उदाहरण देते हैं जैसे कि न्यायालय ने ड्रग्स मामले में रिया चक्रवर्ती को जमानत दे दी, नाबालिग रेप केस में सपा नेता गायत्री प्रजापति को जमानत मिल गई, करोड़ों रूपये के घोटाले करने वाले लालू प्रसाद यादव को जमानत मिल गई, देशभर में कोरोना फैलाने वाले मौलाना साद को जमानत मिल गई, देश के 'टुकड़े' करने का नारा लगाने वाले उमर खालिद और कन्हैया कुमार को जमानत मिल गई, बलात्कार आरोपी बिशप फ्रेंको व तरुण तेजपाल को जमानत मिल गई , 65 गैर जमानती वारंट होने के बाद भी दिल्ली के इमाम बुखारी को आज तक एरेस्ट नहीं कर पाए और यही न्यायालय राष्ट्र और भारतीय संस्कृति के उत्थान कार्य करने वाले 85 वर्षीय हिंदू संत आशारामजी बापू को 7 साल से आज तक जमानत नहीं दे पाई ।

बता दें कि जब किसी नेता, अभिनेता, जज या पत्रकार अथवा मुस्लिम और इसाई धर्मगुरु आदि पर आरोप लगते हैं तब सभी बुद्धजीवी बोलतें हैं कि जांच चल रही है, कानून अपना काम कर रहा है, कानून सबके लिए समान है आदि-आदि, लेकिन जैसे ही किसी हिंदुनिष्ठ या हिंदू साधु-संत पर झुठे आरोप लगते हैं तो सभी बोलने लग जाते हैं कि आरोपी पर इतने गंभीर आरोप लगे हैं, फिर भी गिरफ्तारी नहीं हो रही है, ये शर्मनाक बात है आदि-आदि, कुछ इस तरह के नारे लगते हैं और उनको आधी रात में गिरफ्तार कर लिया जाता है और सालों तक जमानत भी नहीं दी जाती है।

जैसे कि शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती जी पर हत्या का आरोप लगा और उनको आधी रात में गिरफ्तार कर लिया गया फिर वे बाद में निर्दोष बरी हुए।

वैसे साध्वी प्रज्ञा ठाकुर, स्वामी असीमानंद, स्वामी नित्यानंद, डीजी वंजारा जी आदि को भी सालों तक जेल में प्रताड़ित किया गया और आखिर में वे निर्दोष बरी हुए।

अभी वर्तमान में हिंदू संत आशाराम बापू का केस तो आप देख ही रहे हैं, उनके पास षडयंत्र के तहत फंसाने और निर्दोष होने के प्रमाण भी हैं फिर भी उनको जमानत नहीं दी जा रही है।

दूसरी ओर सलमान खान को सजा होने के बाद भी 1 घण्टे में ही जमानत मिल जाती है, संजय दत्त को बार-बार पेरोल मिल जाती है, लालू को सजा होने के बाद बेटे की शादी में जाने के लिए जमानत मिल जाती है, पत्रकार तरुण तेजपाल पर आरोप सिद्ध होने के बाद भी जमानत मिल जाती है, बिशप फ्रैंको को 21 दिन में जमानत मिल जाती है, इससे साफ सिद्ध होता है कि कानून केवल समान बोला जा रहा है पर कानून व्यवस्था देखने वाले समानता का व्यवहार नहीं कर रहे हैं।

कानून के हाथ भले ही लम्बे हों परन्तु लगता है कि नीति बहुत ही पक्षपाती है। देश में कई ऐसे कैदी हैं जिनके पास वकील रखने व जमानत लेने के पैसे नहीं हैं इसलिए जेल में सड़ रहे हैं, वे बाहर नहीं आ पा रहे हैं। किसी साधु-संत अथवा आम आदमी पर आरोप लगते ही गिरफ्तार कर लिया जाता है पर बड़े नेता-अभिनेता, अमीर आदि को गिरफ्तारी से पहले ही जमानत हासिल हो जाती है।

इन सब बातों से साफ पता चलता है कि कानून समान बोला जा रहा है पर उसका पालन नहीं हो रहा है इससे हिंदुनिष्ठ और आम जनता को न्याय नहीं मिल पा रहा है, यह जनता के लिए दुःखद बात है इस पर सरकार और न्यायालय को ठोस कदम उठाना चाहिए नहीं तो निर्दोष पीड़ित होते ही रहेंगे।

Official  Links:👇🏻

🔺 Follow on Telegram: https://t.me/ojasvihindustan





🔺 Pinterest : https://goo.gl/o4z4BJ

Monday, October 12, 2020

अमेरिकन प्रोफेसर : हिन्दू धर्म से बड़ा कोई धर्म नही, हिंदुत्व से बेहतर और कुछ नहीं

12 अक्टूबर 2020


अमेरिका के नॉर्थ कैरोलिना स्थित ऐलोन यूनिवर्सिटी में धार्मिक इतिहास विभाग के सीनियर प्रोफेसर ब्राइन के.पेनिंग्टन इन दिनों में भारत आये है और हिंदुत्व पर गहन खोज कर रहे हैं।




प्रोफेसर ब्राइन ने कहा कि बीते ढाई दशक में मैंने हिंदुत्व को जितना पढ़ा और समझा, उसका सार यही है कि जीवन को संचालित करने की हिंदुत्व से बेहतर कोई और व्यवस्था नहीं। दुनिया के किसी भी धर्म का उद्भव व उद्देश्य मानव सभ्यता के विकास क्रम में और मानवीय जीवनशैली को बेहतर बनाने पर केंद्रित रहा है।

भारत के सर्वोच्च न्यायालय के उस मत से मैं पूरी तरह सहमत हूं, जिसमें हिंदुत्व को 'वे ऑफ लाइफ' (जीवन पद्धति) माना गया है। मेरे जीवन में भी हिंदुत्व का बड़ा महत्व है और यह मेरे लिए गर्व की बात है कि मैं हिंदुत्व पर शोध कर रहा हूं...।

54 वर्षीय प्रो. ब्राइन हिंदुत्व एवं हिंदू मान्यताओं पर अब तक तीन पुस्तकें लिख चुके हैं। इन दिनों शोध के सिलसिले में वे भारत आए हुए हैं।

माघ मेले में शामिल होने आया हूं-
माघ मेले में शामिल होने और हिंदू धर्म, दर्शन व मान्यताओं पर अपने शोध को आगे बढ़ाने के लिए भारत आए प्रो. ब्राइन ने यहां दैनिक जागरण से चर्चा में कहा, हिंदुत्व पर लंबे शोध में मैंने अब तक यही पाया कि सांस्कृतिक मूल्यों और मान्यताओं के रूप में हिंदुत्व का इतिहास मानव सभ्यता के विकास जितना ही पुराना है। लेकिन एक धर्म के रूप में इसके सभी सांस्कृतिक मूल्यों और समान मान्यताओं का एकीकरण क्रमिक चरण में हुआ।

प्रोफेसर ने बताया कि हिंदू धर्म के इतिहास पर शोध करने के लिए वे वर्ष 1993 में पहली बार भारत आए थे। हिंदुत्व को लेकर अब तक उनकी तीन पुस्तकें 'वास हिंदुइज्म इनवेंटेड', 'रीचिंग रिलीजियन एंड वाइलेंस' और 'रिचुअल इनोवेशन' प्रकाशित हो चुकी हैं।

हिंदुत्व पर अब शोध की थीम क्या है? इस पर उन्होंने कहा, आज भी वही है, जो पहले थी- हिंदुत्व को समझना। इस समय शोध का विषय देवी-देवताओं और हिंदुत्व के बीच संबंध पर केंद्रित है। माघ मेले में सम्मिलित होने के अलावा मुझे कुछ पौराणिक स्थलों और देवी-देवताओं से संबंधित जानकारियों का संकलन करना है।

अमेरिकी विवि का पाठ्यक्रम-
प्रो. ब्राइन के अनुसार अमेरिकी विवि में रिलीजियस स्टडीज में हिंदुत्व के बारे में सबसे पहले हिंदुत्व का इतिहास पढ़ाया जाता है। हिंदू दर्शन को समझा सकने वाले वेद, पुराण, उपनिषद, गीता, रामायण, महाभारत सहित अन्य रचनाएं पाठ्क्रम में शामिल हैं। इसके अलावा स्वामी विवेकानंद, महात्मा गांधी व माधवराव सदाशिव राव गोलवलकर जैसी शख्सियतें भी पाठ्यक्रम का हिस्सा हैं। प्रोफेसर ने स्पष्ट किया कि हिंदुत्व के बारे में जो भी पढ़ाया जाता है, वह प्रमाणों और तथ्यों पर आधारित होता है। इसके लिए शोध भी किया जाता है।

16 साल का था तब पहली बार पढ़ी गीता-

इस अमेरिकी प्रोफेसर ने कहा, जब मैं 16 वर्ष का था, तब पहली बार गीता पढ़ी। इसी के बाद मेरी हिंदुत्व के प्रति रुचि जागृत हुई। फिर तो मैंने वेद, उपनिषद, रामायण, महाभारत सहित सभी धर्मशास्त्रों, 15वीं शताब्दी से लेकर 20वीं शताब्दी तक के सभी संतों और विवेकानंद, गोलवलकर व गांधी जैसे महापुरुषों के बारे में भी अध्ययन किया। महाभारत ग्रंथ को पढ़कर मैं खासा प्रभावित हुआ। महाभारत में जो किरदार हैं, उनका अपना अलग महत्व है। खासकर युधिष्ठिर से मैं सबसे अधिक प्रभावित हुआ। जबकि, रामायण समझने में अति सरल है।

सकारात्मक आस्था के मामले में हिंदू धर्म सर्वश्रेष्ठ-

प्रो. ब्राइन का मानना है कि सकारात्मक आस्था के मामले में हिंदू धर्म सभी धर्मों में श्रेष्ठ है। उन्होंने कहा, इसका उदाहरण गंगा नदी के रूप में देखा सकता है। गंगा को माता का दर्जा दिया गया है, लेकिन उसका जल सभी के लिए बराबर है। हिंदुत्व में मानव सभ्यता के उच्चतम आदर्शों व मूल्यों का समावेश है और प्रकृति पूजा इसके मूल में है।

डॉ. डेविड फ्रॉली कहते हैं : हिंदुत्व बहुत पावरफुल कल्चर है, ‘‘भारत को अपने लक्ष्य तक पहुँचना है और वह लक्ष्य है अपनी आध्यात्मिक संस्कृति का #पुनरुद्धार । इसमें न केवल भारत का अपितु मानवता का कल्याण निहित है । यह तभी सम्भव है जब भारत के बुद्धिजीवी आधुनिकता का मोह त्यागकर अपने हिन्दू धर्म और अध्यात्म की कटु आलोचना से विरत होंगे ।

अमेरिका के प्रोफेसर भी खुलकर हिन्दू धर्म को महान बता रहे हैं लेकिन भारत मे सेक्युलर के नाम पर हिन्दू धर्म को नीचा दिखाने की भारी कोशिश की जा रही है और मीडिया, सेक्युलर नेता आदि हिन्दू विरोधी बातें #करते हैं यहाँ तक कि सुप्रीम कोर्ट भी हिन्दू धर्म के खिलाफ कई बार जजमेंट दे चुका है, सरकार भी सेक्युलर एजेंडे में ही चल रही है हिन्दू धर्म पर भारी खतरा मंडार रहा है।

हिन्दू धर्म की महिमा अमेरिका के प्रोफेसर समझ रहे हैं तो भारत के हिन्दू कब समझेंगे ? गीता पढ़कर हिन्दू धर्म की महत्ता समझ गये तो भारत में हिन्दू गीता, उपनिषद आदि हिन्दू धर्मग्रंथों को क्यों नही पढ़ रहे हैं? हिंदुओं ने अपने धर्म की उपेक्षा करने लगे है और पाश्चात्य संस्कृति की ओर आकर्षित होने लगे हैं इसलिए आज हिंदुत्व पर प्रहार होने लगा है और विदेशी ताकतें हिन्दुओं का धर्मान्तरण करवा रहे हैं ।

अभी भी हिन्दू जगा नही और अपने धर्म की महिमा समझकर लौटा नही तो आगे जाकर बहुत भुगतना पड़ेगा। अतः हिन्दू धर्म की महिमा समझकर उस अनुसार आचरण करें और अन्य लोगों को भी प्रेरित करें ।

Official  Links:👇🏻

🔺 Follow on Telegram: https://t.me/ojasvihindustan





🔺 Pinterest : https://goo.gl/o4z4BJ

Sunday, October 11, 2020

अशोक सिंघल के थे दो लक्ष्य एक हुआ साकार, अब दूसरे की बारी

11 अक्टूबर 2020


यह तो सब जानते ही हैं कि श्रीराम जन्मभूमि पर मंदिर-निर्माण में विश्व हिन्दू परिषद के पूर्व अंतर्राष्ट्रीय अध्यक्ष अशोक सिंघल तथा बीजेपी सांसद डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी का बड़ा योगदान रहा है। पर क्या आप यह भी जानते हैं कि इन्हीं दो नेताओं ने एक और मुद्दे पर जमकर पैरवी की है और वह है आशाराम बापू की रिहाई । दोनों ने खुलकर हर मंच पर कहा है कि आशाराम बापू निर्दोष हैं, उन्हें फँसाया गया है और उन्हें जल्द-से-जल्द ससम्मान रिहा किया जाना चाहिए। अशोक सिंघल और सुब्रमण्यम स्वामी दोनों ही आशाराम बापू से मिलने जोधपुर जेल भी गये थे।




क्या कहते थे सिंघल आशाराम बापू के बारे में ? जोधपुर जेल में बापू से मुलाकात के बाद पत्रकारों से बातचीत में सिंघल ने कहा था कि ‘‘आशारामजी बापू को इस उम्र में इतना कष्ट दिया गया है ! कानून में किसीको भी फँसाया जा सकता है । बापू पर लगाया गया आरोप, केस - सारा कुछ बनावटी है । हिन्दू धर्म के खिलाफ देश के भीतर वातावरण पैदा हो इसके लिए भारी मात्रा में फंड्स देते हैं विदेशी लोग। आशारामजी बापू हमारी संस्कृति को समाज में प्रतिष्ठित करने में लगे हुए हैं। समाज उनका ऋणी रहेगा और कभी उस ऋण को चुका नहीं पायेगा। उन्होंने अनेक प्रकार के सेवाकार्य वनवासी क्षेत्रों में खड़े किये। यह जिनके लिए बरदाश्त से बाहर की चीज थी उन्होंने ही महाराजजी को ऐसे बदनाम करना चाहा है जैसे शंकराचार्य श्री जयेन्द्र सरस्वतीजी को किया गया था।’’

क्या कहते आये है सुब्रमण्यम स्वामी ?
डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी यह पहले ही कह चुके है कि ‘‘लड़की के फोन रिकॉर्ड्स से पता लगा कि जिस समय पर वह कहती है कि वह कुटिया में थी, उस समय वह वहाँ थी ही नहीं ! उसी समय बापू सत्संग में थे और आखिर में एक मँगनी के कार्यक्रम में व्यस्त थे। वे भी वहाँ कुटिया में नहीं थे। बापू पर ‘पॉक्सो एक्ट’ लगवाने हेतु एक झूठा सर्टिफिकेट निकाल के दिखा दिया गया। संत आशारामजी बापू के खिलाफ किया गया केस पूरी तरह बोगस है।’’

अयोध्या में शिलान्यास पर संतों ने किया याद गौर करियेगा कि केवल सिंघल या स्वामी ही बापू को निर्दोष मानते हैं ऐसा नहीं है। अयोध्या के दिग्गज महंत एवं श्रीराम जन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष नृत्यगोपालदासजी का भी यही मानना है। वे साफ तौर पर कह चुके हैं कि ‘‘संत आशारामजी बापू के प्रति जनता में बहुत भारी श्रद्धा है अतः दोष लगाने के लिए षड्यंत्रकारियों को कोई-न-कोई सहारा चाहिए। इसलिए इस प्रकार से सहारा लेकर उन्होंने चारित्रिक दोष की कल्पना की है लेकिन आशारामजी बापू महात्मा हैं। ।’’https://youtu.be/YegncME19aU

भारतीय जनक्रांति दल, अयोध्या के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. श्री राकेशशरणजी महाराज ने अशोक सिंघलजी के जीवन को याद करते हुए बताया कि ‘‘श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन के प्रणेता अशोक सिंघलजी के दो लक्ष्य थे। एक था श्रीराम मंदिर निर्माण और दूसरा हमारे निर्दोष संत आशाराम बापू की रिहाई। एक लक्ष्य तो पूरा हुआ, दूसरा सरकार कब पूरा करेगी ?’’

महाराज जी ने बापू को महान संत बताया और कहा कि उनका तो समाज के प्रति ऐसा योगदान है कि उन्हें तो श्रीराम मंदिर शिलान्यास के कार्यक्रम में होना चाहिए था।

राम मंदिर की तरह बापू की रिहाई के लिए भी हो सामूहिक प्रयास
अयोध्या के स्वामी अवधकिशोर शरणजी ने अपने उद्बोधन में कहा कि ‘‘बापूजी को मिशनरियों ने जबरदस्ती फँसाया है। सभी धर्मप्रेमियों, भक्तों, समाज व सभी संत-महापुरुषों से अनुरोध करूँगा कि जैसे राम मंदिर के लिए सभी ने इतना किया इसी तरह बापूजी के लिए भी आवाज उठानी चाहिए।’’

अयोध्या संत समिति के महामंत्री महंत पवनकुमारदास शास्त्रीजी, राष्ट्रीय संत सुरक्षा परिषद के सम्पूर्ण दक्षिण भारत प्रभारी डॉ. श्रीकृष्ण पुरीजी, अयोध्या के महंत चिन्मयदासजी एवं श्री सतेन्द्रदासजी वेदांती ने भी इसी प्रकार की बात दोहरायी।

निश्चित ही अशोक सिंघल, वी.एच.पी. व संस्कृतिप्रेमियों का राम मंदिर निर्माण का एक सपना तो साकार हो ही गया है और अब उनका संत आशाराम बापू की निर्दोष रिहाई का दूसरा सपना भी जल्द ही साकार होगा ऐसा सबका मानना है।


Official  Links:👇🏻

🔺 Follow on Telegram: https://t.me/ojasvihindustan





🔺 Pinterest : https://goo.gl/o4z4BJ

Saturday, October 10, 2020

असम में मदरसों को बंद करने का फरमान जारी।

10 अक्टूबर 2020


कट्टरपंथी और आतंकवादी बढ़ रहे हैं उसका मूल कारण मदरसों में कट्टरपंथ की शिक्षा देना, जिस तरह लव जिहाद चलाया जा रहा है और आतंकवादी संगठनों में जो मुस्लिम युवक- युवतियां भर्ती होने जाते हैं उसका कारण मदरसों में दी जा रही कट्टरपंथी शिक्षा ही है।




उत्तर प्रदेश सेंट्रल शिया वक्फ बोर्ड के चेयरमैन वसीम रिज़वी ने बताया था कि "मदरसों में बच्चों को बाकियों से अलग कर कट्टरपंथी सोच के तहत तैयार किया जाता है। यदि प्राथमिक मदरसे बंद ना हुए तो 15 साल में देश का आधे से ज्यादा मुसलमान आईएसआईएस का समर्थक हो जाएगा। उन्‍होंने इसके बजाय हाई स्कूल के बाद धार्मिक तालीम के लिए मदरसे जाने के विकल्प का सुझाव दिया। कोई भी मिशन आगे बढ़ाने के लिए बच्चों का सहारा लिया जाता है और हमारे यहां भी ऐसा ही हो रहा है ! ये देश के लिए भी खतरा है।

आपको बता दें कि असम की बीजेपी सरकार नवंबर में सरकारी मदरसों को बंद करने को लेकर नोटिफिकेशन जारी करेगी। राज्य के शिक्षा मंत्री हिमांत विश्व शर्मा ने बृहस्पतिवार (8 अक्टूबर 2020) को यह साफ़ करते हुए कहा कि मजहबी शिक्षा का खर्च जनता के रुपए से नहीं उठाया जा सकता है।

शर्मा ने कहा, “राज्य में कोई भी धार्मिक शैक्षणिक संस्थान सरकारी खर्च पर नहीं चलाया जा सकता है। हम इस प्रक्रिया को लागू करने के लिए आगामी नवंबर में ही एक अधिसूचना जारी करेंगे।

हिमांत शर्मा ने ग्रीष्मकालीन विधानसभा सत्र के दौरान मदरसों से जुड़े एक सवाल का जवाब देते हुए कहा था कि सरकारी मदरसे नवंबर से बंद हो रहे हैं। उनका कहना था कि अब से सरकार केवल धर्म निरपेक्ष और आधुनिक शिक्षा को बढ़ावा देगी। उन्होंने कहा था कि अब और अरबी शिक्षकों की नियुक्ति की कोई योजना नहीं है। मदरसा बोर्ड को भंग कर संस्थानों के शिक्षाविद माध्यमिक शिक्षा बोर्ड को सौंप दिए जाएँगे।

संस्कृत के बारे में बात करते हुए शर्मा ने कहा कि संस्कृत सभी आधुनिक भाषाओं की जननी है। असम सरकार ने सभी संस्कृत टोल्स को कुमार भास्कर वर्मा संस्कृत और प्राचीन अध्ययन विश्वविद्यालय (नलबाड़ी में) के तहत लाने का फैसला किया है। वह एक नए रूप में कार्य करेंगे। फरवरी 2020 के दौरान एक अहम निर्णय में असल सरकार ने घोषणा की थी कि सरकार सभी राज्य संचालित मदरसों और संकृत टोल्स को बंद करने वाली है। उनके मुताबिक़ धार्मिक उद्देश्यों के लिए धार्मिक शास्त्र, अरबी और अन्य भाषाओं को पढ़ाना सरकार का काम नहीं है।

असम में कुल 614 सरकारी और 900 निजी मदरसे हैं। इनमें अधिकांश जमीयत उलामा के तहत चलाए जाते हैं। सरकार प्रतिवर्ष मदरसों पर लगभग 3 से 4 करोड़ रुपए खर्च करती है ।

बता दें कि पाकिस्तानी समाचार पत्र डॉन के स्तंभकार नाजिहा सईद अली ने हाल ही में एक रिपोर्ट प्रकाशित की है जिसमें बताया कि, राजस्थान से लगती सीमा पर 2000 में जहां इक्का-दुक्का मदरसे थे, वे 2015 से अचानक 20 तक पहुंच गए हैं । ये मदरसे धर्म परिवर्तन कर नए मुस्लिमों के बच्चों की तालीम के लिए खुले हैं ।

आपको बता दें कि जाकिर नाईक ने कई मदरसे खोले थे उन मदरसों में वह कट्टरता की ट्रेनिंग देता था ।

पाकिस्तान में जिहाद में झोंके जाने वाले बच्चे गरीब घरों के तथा मदरसों से निकले बच्चे हैं । इनकी शिक्षा पद्धति ही इन्‍हें आतंकवाद के रास्ते पर प्रेरित करती है ।

कुछ समय पहले केंद्रीय गृह मंत्रालय ने रिपोर्ट भेजी है जिसमें कहा गया था कि कश्मीर में मस्जिदों, मदरसों और मीडिया पर नियंत्रण रखना होगा ।

फ़्रांस ने तो कई मस्जिदें बन्द कर दी वहाँ के गृहमंत्री बर्नार्ड कैजनूव ने कहा था कि  “फ्रांस में मस्जिदों या प्रेयर हॉल में नफरत भड़काने वाली शिक्षा दी जाती है, इसलिए मस्जिदों को बंद कर दिया हैं, इन मस्जिदों में धार्मिक विचारों के प्रचार के नाम पर कट्टरवादी (देश विरोधी) शिक्षा दी जाती थी । कई मस्जिदों पर छापे के दौरान जेहादी दस्तावेज बरामद किए गए थे । इन मस्जिदों में सऊदी अरब से फंडिग होती थी ।

फ्रांस ने तो समझ लिया कि देश को तोड़ने के लिये विदेशी फण्ड से चलने वाली मस्जिदों में आतंकवादी बनने की ट्रेंनिग दी जाती है और देश विरोधी बातें सिखाई जाती हैं ।

देश में हिन्दुओं पर मुस्लिमों के बढ़ते आतंक की हालत देखकर भारत सरकार को फ्रांस से सीख लेनी चाहिए मुस्लिमों की बढ़ती संख्या पर नियंत्रण करना चाहिये ।

मदरसों में जब कट्टरपंथी की शिक्षा दी जाती है और कई मदरसों में बच्चों का मौलवी यौन शोषण कर रहे है तो ऐसे मदरसों पर बेन तो लगना ही चाहिए ।

सरकार को तो मदरसों पर बैन लगाना चाहिए किंतु उसके विपरित सरकार मदरसों को अनुदान देती है। जबकि ‘मदरसों को अनुदान देना अर्थात सरकारी (जनता के टैक्स ) पैसों से आतंकवादियों का निर्माण करना है ।

देश को बाहरी आतंकवादियों से इतना खतरा नही जितना इन कट्टरपंथियों से है इसलिए सरकार को जांच करवानी चाहिए और विदेशी फंड से जितनी भी मस्जिदें चल रही हैं उसमें अगर देश विरोधी बातें सिखाई जाती हैं तो ऐसे मदरसों और मस्जिदों को बंद कर देना चाहिए जिससे देश सुरक्षित रहे और सुख शांति बनी रहे ।


Official  Links:👇🏻

🔺 Follow on Telegram: https://t.me/ojasvihindustan





🔺 Pinterest : https://goo.gl/o4z4BJ