Friday, January 8, 2021

हिंदुओं के धार्मिक स्थल तोड़े जा रहे हैं लेकिन अन्य धर्मों के नहीं...

08 जनवरी 2021


दिल्ली के चाँदनी चौक में सरकारी तन्त्र ने हनुमान मंदिर तोड़ दिया। यदि मन्दिर गलत तरीके से बना है तो उसे स्थानांतरित किया जा सकता है। दिल्ली में मस्जिद-दरगाह- मजार है जो रेलवे लाइन के रास्ते में है लेकिन इसको नहीं तोड़ा गया।




पुरे भारत में इस तरह की अनेक मस्जिद पीर की मजार, दरगाह और ईदगाह मिल जाएंगी जो रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड या मुख्य सड़क की जगह को घेर कर पिछले 70 साल मे बनाई गई हैं। यदि भारत के कानून का धर्म या मजहब से कुछ लेना देना नहीं है तो फिर इस तरह के मन्दिर मस्जिद हटाने चाहिए। मजारों और मस्जिदों के लिए नियम बदल दिए जाते हैं। यह एक तरफा सेक्युलरिज्म बेहद खतरनाक है।

सऊदी अरब जैसे देश में सड़कें इत्यादि बनवाने के लिए खुलेआम मस्जिद तुड़वाया जाता है। एक बार सऊदी अरब के सुल्तान को अपना महल बनाना था उसके लिए उसे जगह चाहिए थी तो उसने कहा कि बिलाल मस्जिद को तोड़ डालो, महल बनाने के लिए जबकि इस मस्जिद में पैगम्बर मुहम्मद नमाज पढ़ते थे ! जब सऊदी अरब में "पैगम्बर मुहम्मद की मस्जिद" को तोड़कर दूसरी जगह बनवाया जा सकता है तो भारत मे क्यों सेक्युलरिज़्म के नाम पर कब्जे हो रहे हैं?

मुज़फ़्फ़रपुर रेलवे स्टेशन प्लेटफॉर्म न.4 पर बनी जीन्नात(जीन्न) मस्जिद है। कहते है ये मस्जिद रातों रात बना मिला था। प्लेटफार्म न. 4 पर L शेप मे ट्रेक बना है और ट्रेन घुम कर स्टेशन पंहुचती है ? मुस्लिम आबादी यहां से कम से कम 1.5 कि.मी दुर है। इस मस्जिद के आसपास कोई बस्ती/महल्ला नहीं है जहां के लोग सदा यहां नमाज पढ़ते हो पर सुबह 4 बजे तक के भी नमाज मे मस्जिद भड़ी रहती है।

फरवरी 2018 मे मुजफ्फरनगर राष्ट्रीय राजमार्ग पर बनी मस्जिद हटाई गई। इसके लिए एक फ्लाई ओवर का का निर्माण 10 साल से रुका हुआ था। उसके कारण सड़क एक्सीडेंट मे लगभग 80 मौते हो चुकी थी। इस मस्जिद की वजह से हाईवे पर रेलवे लाइन के ऊपर बना फ्लाईओवर अधर में था। इसके लिए सरकार को 35 लाख रुपए मुआवजा देना पड़ा था।

इन्दिरा गांधी हवाई अड्डा -हवाई अड्डे के टी-2 रनवे नं 10 व 28 पर बनी पीर रोशन खान व काले खान की मजार का रख-रखाव ही नहीं मुस्लिम श्रद्धालुओं को वहां दर्शन कराने के लिए जी.एम.आर. कंपनी अपने वाहन व अन्य सुविधाएं देती है मजारों के कारण रनवे को 'शिफ्ट' किया गया है।

कब्रों पर सिर पटकने वाले हिन्दू ही ज्यादा होते हैं, गुरुवार को बाहरी लोगों (people not working at airport) के लिए भी दर्शन के खास इंतजाम GMR करता है।

दक्षिण दिल्ली में पालम हवाई अड्डे के निकट, सुप्रसिद्ध होटल रेडीसन के सामने स्थित है एक गांव नांगल देवता। इस गांव के दोनों छोर पर मन्दिरों व संतों की समाधियों की एक अविरल श्रृंखला है। मन्दिरों के साथ बगीचे व पेड़ों ने उसे एक आध्यात्मिक व रमणीक स्थल के रूप में प्रसिद्ध किया है। मन्दिर के गुम्बद, उसकी स्थापत्य कला और दीवारों का ढांचा मन्दिर की प्राचीनता का बखान करता है। किन्तु अब नांगल देवत नाम का वह ऐतिहासिक गांव अस्तित्व में नहीं है और प्राचीन ऐतिहासिक मंदिरों को कभी भी ध्वस्त किया जा सकता है। यह सब हो रहा है इंदिरा गांधी अन्तरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के विस्तार के नाम पर, जिसके लिए जी.एम.आर. नामक कम्पनी को ठेका दिया गया है।

1964-65 में जब पालम हवाई अड्डे का विस्तार हुआ तब गांव की बेहद उपजाऊ लगभग 12,000 बीघे जमीन नांगल देवत के ग्रामवासियों से छीन ली गई। इसके बाद सन् 1972 में गांव की आबादी को वहां से कहीं अन्यत्र चले जाने का नोटिस थमा दिया गया, किन्तु एक बड़े जन आन्दोलन की सुगबुगाहट की भनक लगने पर सरकार को अपना फैसला टालना पड़ा। लेकिन सरकार कहां चुप बैठने वाली थी, उसने सन् 1986 में सभी को गांव खाली करने का आदेश दे दिया गया। तब 360 गांवों की पंचायत बुलाई गई, लोगों ने संघर्ष किया। 1998 तक यह मामला निचली न्यायालय में चला। एकदिन 2007 में भवन निर्माण कम्पनी जी.एम.आर. ने भारी संख्या में पुलिस बल लगाकर चारों ओर से बुलडोजर चला दिये और मन्दिर परिसर को छोड़ पूरे गांव को मलवे के ढेर में बदल दिया। लोगों को अपना सामान भी घरों से निकालने का समय नहीं दिया गया। जुलाई, 2007 में जी.एम.आर. ने 28 एकड़ में फैले भव्य मन्दिरों, संतों की समाधियों व शमशान भूमि को अपने कब्जे में ले लिया। धीरे-धीरे जी.एम.आर. ने मन्दिर को न सिर्फ चारों ओर से लोहे की टिन से सील कर दिया बल्कि वहां अपने आराध्य की पूजा-अर्चना करने आने वाले भक्तों को भी रोकना प्रारम्भ कर दिया।

आज वहां न तो भक्तों के अन्दर जाने का सुगम रास्ता है और न ही वाहन खड़े करने के लिए व्यवस्था। सुरक्षा के भारी-भरकम ताम-झाम देखकर लोग काफी हैरान-परेशान हैं। इन मंदिरों के प्रति लोगों की अगाध श्रद्धा का अन्दाज इसी बात से लगाया जा सकता है कि चारों ओर से भगवान के घर को सीखचों में बन्द करने के बावजूद लोगों ने 'बाउण्ड्री' के नीचे जमीन में गड्ढे खोदकर वहां से मन्दिर में प्रवेश का रास्ता बना लिया है। हर वृहस्पतिवार व अमावस्या के दिन यहां भक्तों का मेला लगा रहता है। श्राद्ध पक्ष में कनागती अमावस्या के दिन तो यहां बड़ा भारी मेला अब भी लगता है, जिसमें महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, पश्चिम बंगाल, हरियाणा, उत्तर प्रदेश व मध्य प्रदेश सहित अनेक राज्यों के लाखों लोग अपने-अपने पितरों का तर्पण यहां आकर करते हैं।

कानून सभी के लिए समान है तो सभी के धर्मस्थल तोड़ने चाहिए न कि केवल हिंदुओं के ही, सरकार, न्यायालय को इसपर ध्यान देना चाहिए ऐसी जनता की मांग हैं।

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Thursday, January 7, 2021

एनर्जी ड्रिंक का शोध में सामने आयी भयंकर जानकारी.

07 जनवरी 2021


आज कल बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक हर व्यक्ति फास्ट फुड, जंक फुड, कोल्ड ड्रिंक्स, एनर्जी ड्रिंक जैसे आधुनिक आहार के आदी हो चुके हैं। ऐसे लोगों की आंखे खोलनेवाला यह शाेध महत्त्वपूर्ण है ।




आजकल यंग जेनरेशन को एनर्जी ड्रिंक पीना बहुत भाता है, उनका मानना है इसे पीने से बॉडी को इंटेन्‍ट एनर्जी मिलती है और वह पढ़ाई या पार्टी बिना थके कर लेते हैं लेकिन ये बात गलत है क्योंकि एनर्जी ड्रिंक्स का सेवन मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं, रक्तचाप, मोटापा और गुर्दे की क्षति समेत कई गंभीर स्वास्थ्य जोखिम पैदा कर सकता है।

लंदन : अगर आप भी एनर्जी ड्रिंक पीते हैं, तो सावधान हो जाइए ! दरअसल, एक नए शोध से पता चलता है कि एनर्जी ड्रिंक से युवाओं में नकारात्मक दुष्प्रभाव हो सकते हैं । कनाडा के ओंटारियो में वाटरलू विश्वविद्यालय में किए गए शोध में कहा गया है कि ऐसे ड्रिंक्स की बिक्री 16 वर्ष से कम उम्र के युवाओं को करने से प्रतिबंधित किया जाना चाहिए।

 हाल ही में किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि 12 से 24 वर्ष के 55 प्रतिशत बच्चों को एनर्जी ड्रिंक पीने के बाद स्वास्थ्य संबंधी गंभीर समस्या मिली थी। इनमें हार्ट रेट तेज होने के साथ ही दिल के दौरे शामिल थे। शोधकर्ताओं ने 2,000 से अधिक युवाओं से पूछा कि वे रेड बुल या मॉन्सटर जैसे एनर्जी ड्रिंक को कितनी बार पीते हैं।

शोधकर्ताओं ने कहा कि अन्य कैफीनयुक्त पेय की तुलना में जिस तरह से एनर्जी ड्रिंक का सेवन किया जाता है, उसे देखते हुए एनर्जी ड्रिंक अधिक खतरनाक हो सकते हैं। शोध में पाया गया कि जिन लोगों ने एनर्जी ड्रिंक का सेवन किया था उनमें से 24.7 प्रतिशत लोगों ने महसूस किया कि उनके दिल की धडकन तेज हो गई थी ।

वहीं, 24.1 प्रतिशत लोगों ने कहा कि इसे पीने के बाद उन्हें नींद नहीं आ रही थी। इसके अलावा, 18.3 प्रतिशत लोगों ने सिरदर्द, 5.1  प्रतिशत मितली, उल्टी या दस्त और 3.6 प्रतिशत लोगों ने छाती के दर्द का अनुभव किया। हालांकि, शोधकर्ताओं के बीच चिंता का कारण यह था कि इन युवाओं ने एक या दो एनर्जी ड्रिंक ही लिए थे फिर भी उन्हें ऐसे प्रतिकूल प्रभावों का अनुभव हो रहा था ।

अध्ययन के बारे में प्रोफेसर डेविड हैमोंड ने कहा कि फिलहाल ऊर्जा पेय खरीदनेवाले बच्चों पर कोई प्रतिबंध नहीं है। किराने की दुकानों में बिक्री के साथ ही बच्चों को टार्गेट करते हुए इसके विज्ञापन बनाए जाते हैं। उन्होंने कहा कि शोध के निष्कर्ष बताते हैं कि इन उत्पादों के स्वास्थ्य प्रभावों की निगरानी बढ़ाने की जरूरत है ! स्त्रोत : नई दुनिया

एक ताजा अध्ययन में इस बात का खुलासा हुआ है। अध्ययन में यह जानकारी निकलकर सामने आई है कि अक्सर एनर्जी ड्रिंक्स को शराब के साथ लिया जा रहा है। अधिकांश एनर्जी ड्रिंक्स के अवयवों में पानी, चीनी, कैफीन, कुछ विटामिन, खनिज और गैर-पोषक उत्तेजक पदार्थ जैसे गुआरना, टॉरिन तथा जिन्सेंग आदि #शामिल रहते हैं।

एनर्जी ड्रिंक्स में लगभग 100 मिलीग्राम कैफीन प्रति तरल औंस होता है, जो नियमित कॉफी की तुलना में आठ गुना अधिक होता है। कॉफी में 12 मिलीग्राम कैफीन प्रति तरल औंस होता है। एनर्जी ड्रिंक्स में उपरोक्त सभी स्वास्थ्य जोखिम इसमें मौजूद चीनी और कैफीन की उच्च मात्रा के कारण होता है।

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के अध्यक्ष पद्म श्री डॉ. के. के. अग्रवाल ने कहा, एनर्जी ड्रिंक्स शरीर के लिए नुकसानदेह हैं। उनमें कैफीन की अधिक मात्रा होने से युवाओं एवं बूढ़े लोगों में हृदय ताल, रक्त प्रवाह और रक्तचाप की समस्याएं हो सकती हैं। इन पेय पदार्थो में तौरीन नामक एक तत्व होता है, जो कैफीन के प्रभाव को बढ़ाता है। इसके अलावा, जो लोग शराब के साथ एनर्जी ड्रिंक्स पीते हैं, वे इसके प्रभाव में अधिक शराब पी जाते हैं। एनर्जी ड्रिंक्स लेने से शराब पीने का पता नहीं लग पाता, जिस कारण से लोग अधिक पीने के लिए प्रेरित होते हैं।

18 वर्ष से कम उम्र के लोगों, गर्भवती महिलाओं, कैफीन के प्रति संवेदनशील लोगों, एडीएचडी के लिए निर्धारित दवा जैसे एडर आदि लेने वालों के लिए एनर्जी ड्रिंक्स खास तौर पर अधिक नुकसानदेह होते हैं।

अमेरिका में हुए एनर्जी ड्रिंक से संबंधित एक सर्वेक्षण के अनुसार कैफीन लेने से दौरा पड़ने और सनक की समस्‍या होती है व कई बार तो मौत भी हो जाती है। अगर इसे आप सॉफ्ट ड्रिंक मानते हैं तो ये गलत है। एनर्जी ड्रिंक में मिली कैफीन सीधे दिमाग पर असर करती है, ऐसे में बच्चों का इसे पीने पर पाबंदी होनी चाहिए।

एनर्जी ड्रिंक में 640 मिग्रा कैफीन

विशेषज्ञों के अनुसार, हाई एनर्जी ड्रिंक के एक कैन में अमूमन 13 चम्‍मच चीनी और दो कप कॉफी के बराबर की कैफीन होती है। इस मात्रा से आप खुद अनुमान लगा सकते हैं कि एक बर में इतनी सारी कैलोरी और कैफीन मानव शरीर और दिमाग के लिए खतरा पैदा करने के लिए काफी है। जबकि कई बार तो युवा एक दिन में 3-4 कैन एनर्जी ड्रिंक पी लेते हैं। इसमें लगभग 640 मिग्रा कैफीन की मात्रा होती है, जबकि एक वयस्‍क भी एक दिन में केवल 400 मिग्रा कैफीन ही ऑब्जर्व कर सकता है।

एनर्जी ड्रिंक के दुष्‍प्रभावों को जानना जरूरी है। 

1) कैफीन पर निर्भरता : यह बात सामान्‍य है कि कैफीन की मात्रा, एनर्जी ड्रिंक में मिली हुई होती है। एनर्जी ड्रिंक को पीने से पता नहीं चलता है कि हमारे शरीर में कैफीन की कितनी मात्रा पहुंचती है। एक बार अगर शरीर को कैफीन की लत लग गई तो अन्‍य समस्‍याएं भी खड़ी हो सकती है। इसलिए इसे न पीना ही बेहतर विकल्‍प है।

2) नींद न आना : एनर्जी ड्रिंक को पीने से ज्‍यादा एनर्जी आने के कारण रात में भी नींद न आने की समस्‍या पैदा हो सकती है। शरीर और दिमाग थक जाते है लेकिन नींद नहीं आती है जिसके चलते उलझन होती है। जो लोग प्रतिदिन एनर्जी ड्रिंक का सेवन करते है, उन्हें ऐसी समस्‍या का सामना अक्‍सर झेलना पड़ता है। 

3) मूड पर प्रभाव : अध्‍ययनों से यह बात स्‍पष्‍ट हो चुकी है कि एनर्जी ड्रिंक पीने से व्‍यक्ति के मूड पर प्रभाव पड़ता है और उसका मूड स्‍वींग होता रहता है। इसके सेवन से शरीर में फील गुड कराने वाना सेरोटोनिन घट जाता है जिससे व्‍यक्ति को अवसाद हो जाता है या उसका मूड उखड़ा-उखड़ा रहता है। 

4) शुगर बढ़ना : एनर्जी ड्रिंक में भरपूर मात्रा में शुगर मिली होती है। एक ड्रिंक में लगभग 13 चम्‍मच चीनी होती है जो शरीर में शुगर लेवल को बढा देती है जिससे कई प्रकार की गंभीर समस्‍याएं होने का खतरा रहता है। इसके सेवन से डिहाईड्रेशन, प्रतिरक्षा प्रणाली पर प्रभाव, खराब दांत आदि पर भी असर पड़ता है। 

5) अंगो पर तनाव : एनर्जी ड्रिंक के सेवन से शरीर के सभी अंगो पर स्‍ट्रेस पड़ता है क्‍योंकि वह थक जाते हैं और उन्‍हे आराम नहीं मिल पाता है। अगर आप शरीर को स्‍वस्‍थ और खुशहाल बनाना चाहते हैं तो एनर्जी ड्रिंक का सेवन न करें। 

एनर्जी ड्रिंक को हेल्‍दी ड्रिंक का विकल्‍प कभी न बनायें और न ही इसे अपनी आदत बनायें। इसकी जगह ताजे फल और फलों का जूस पीने से अधिक एनर्जी बढ़ती है और शरीर स्वस्थ्य रहता है।

आज कल टीवी अखबारों, चलचित्रों, फिल्मों द्वारा पश्चिमी संस्कृति का महिमामंडन हो रहा है जिसके कारण आज बचपन से ही उनसे प्रभावित हो जाते है और अपने जीवन को निस्तेज कर देते हैं अतः आप ऐसी पाश्चात्य संस्कृति का अंधानुकरण नही करें । ताजा फलों का रस, देशी गाय का दूध, घी, गौझरन आदि का उपयोग करके स्वस्थ्य सुखी और सम्मानित जीवन जीये ।

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Wednesday, January 6, 2021

मुंबई का मालवणी, रहते थे 100 हिंदू परिवार, अब बचे केवल 8-10

06 जनवरी 2021


90 के दशक में जो जम्मू-कश्मीर के कश्मीरी पंडितों और हाल में कैराना के हिंदुओं के साथ हुआ, वही अब मुंबई के मलाड (Malad) में भी शुरू हो गया है। मलाड के मालवानी/मालवणी (Malvani) में बहुसंख्यक आबादी (मुस्लिम आबादी) अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (sc/st) समेत सभी हिंदुओं को इलाका छोड़कर जाने के लिए मजबूर कर रहे हैं।




मालवणी के मुस्लिम बहुल इलाके में हिंदुओं को लगातार डराया-धमकाया जा रहा है कि वो अपनी घर-जमीन छोड़कर वहाँ से पलायन कर जाएँ। एक समय में इस इलाके में 100 से ज्यादा हिंदू परिवार रहा करते थे। मगर अब हिंदू परिवारों की संख्या सिर्फ़ 8 से 10 रह गई है और वह भी बहुसंख्यक आबादी के बीच से निकल कर भागना चाहते हैं।

स्थानीय लोगों के अनुसार, हिंदू परिवारों पर दबाव बनाने वाले (मुस्लिम) गुंडों को स्थानीय कॉन्ग्रेस नेता व महा विकास आघाड़ी सरकार में कैबिनेट मंत्री असलम शेख का संरक्षण प्राप्त है। एक पीड़ित का दावा है कि कॉन्ग्रेस नेता की आड़ में समुदाय विशेष के लोग हिंदुओं की जमीन पर कब्जा करते हैं और बाद में दरगाह व मदरसों का निर्माण कर दिया जाता है।

पीड़ित के अनुसार पुलिस भी इन गुंडों के ख़िलाफ़ कई एफआईआर होने के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं करती है, जबकि ये गुंडे सिर्फ़ जमीन नहीं कब्जाते बल्कि साथ में ड्रग तस्करी, अनधिकृत निर्माण और कई अवैध काम करते हैं।

मुंबई के भाजपा अध्यक्ष प्रभात लोढ़ा पहुँचे मालवानी

हिंदुओं पर हो रहे अत्याचार के इस मामले पर मुंबई में बीजेपी अध्यक्ष मंगल प्रभात लोढ़ा ने संज्ञान लिया है। उन्होंने क्षेत्र में पहुँच कर स्थानीय लोगों से मुलाकात की। इस मुलाकात के बाद उन्होंने मालवणी में हिंदुओं की स्थिति को कश्मीरी पंडितों से जोड़ा। साथ ही स्थानीय प्रशासन से अपील की कि वह बिन भेदभाव के दलितों के साथ हो रही नाइंसाफी के लिए आरोपितों के ख़िलाफ़ कार्रवाई करें और पीड़ितों को सुरक्षा प्रदान करें।

मुस्लिम गुर्गों स्थानीय नेता असलम शेख का समर्थन: बीजेपी मंडल अध्यक्ष सुनील कोली

लोढ़ा के मालवणी दौरे के बाद ऑपइंडिया ने बीजेपी मंडल अध्यक्ष सुनील कोली से संपर्क किया। कोली ने बातचीत के दौरान इलाके में हिंदुओं पर हो रहे अत्याचार का घिनौना चेहरा उजागर किया। कोली ने कहा वह (मुस्लिम) गुंडे जो दलितों को धमकाते हैं, उन्हें क्षेत्र से जाने को मजबूर करते हैं, उन्हें स्थानीय नेता असलम शेख का संरक्षण प्राप्त है।

वह कहते हैं, “वो मुस्लिम गुंडे जो लोगों को घर खाली कराने के लिए धमकाते हैं और जमीन छोड़ने का दबाव बनाते घूमते हैं, उन सबको असलम शेख का संरक्षण प्राप्त है। उनकी तस्वीरें पूरे इलाके में बड़े-बड़े होर्डिंगों में शेख की तस्वीर के नीचे लगी दिखाई देती है। वह सिर्फ़ अपने मुस्लिम वोट बैंक को मजबूत करने के लिए दूसरों को जगह छोड़ने के लिए मजबूर करते हैं।”

उन्होंने कहा कि एक समय में यहाँ 100 से ज्यादा हिंदू रहते थे। अब सिर्फ़ मुश्किल से 8-10 परिवार बचे हैं। कई इन गुंडों के डर से भाग गए। वह बताते हैं कि इलाके में दलित परिवारों के साथ भी वही सब होता है जो सामान्य हिंदू परिवारों के साथ हुआ। उन्हें धमकी दी जाती है, पलायन को मजबूर किया जाता है, बिलकुल हिंदू परिवारों की तरह।

महाराष्ट्र सरकार की जमीन पर बने हैं अवैध मदरसा: सुनील कोली

कोली बताते हैं, “मुस्लिम गुंडों ने भाजी मार्केट के पीछे चॉल नंबर 7 में अवैध रूप से हिंदुओं के घरों पर कब्जा किया है। वह अब दलितों को सता रहे हैं कि वह भी जगह खाली कर दें। उनके घरों पर हमला हो रहा है। उनकी औरतों को प्रताड़ित किया जाता है।” सुनील कोली जानकारी देते हैं कि मालवणी में अनधिकृत मदरसों और दरगाहों की संख्या में वृद्धि हुई है। और नए मदरसे व दरगाह महाराष्ट्र सरकार के स्वामित्व वाली भूमि पर बनाए गए हैं।

एक सबसे अहम बिंदु जो गौर करने वाला है वो यह कि महाराष्ट्र हाउसिंग एंड एरिया डेवलपमेंट अथॉरिटी के अंतर्गत आने वाली चॉलों में कई अनियंत्रित मदरसों और दरगाहों का अचानक उदय हुआ है। छेदा कॉन्प्लेक्स की चॉल नंबर 5  में एक मदरसा और एक दरगाह है। कोली ने इस संबंध में आगे जानकारी देते हुए कहा कि पूरे मामले का संज्ञान भाजपा ने ले लिया है और उन लोगों की ओर से  पुलिस अधिकारियों को अल्टीमेटम दे दिया गया है कि इस संबंध में 15 जनवरी तक रिपोर्ट दी जाए। वह कहते हैं कि अगर पुलिस पीड़ितों को उनके अधिकार दिलाने में असमर्थ रहती है तो पार्टी रोड पर उतर कर प्रदर्शन करेगी।

कश्मीर के बाद कुछ समय पहले खबर आई थी कि उत्तरप्रदेश के कैराना में कुछ मुसलमानों से परेशान होकर हिंदू पलायन कर रहे है, उसके बाद मेरठ में भी पलायन की खबर आई थी उसके बाद आगरा और दिल्ली से भी कुछ ऐसी ही खबर आ रही थी कि हिंदू पलायन हो रहे है अब मुंबई से भी खबर आ रही है।

हिंदू हर जगह से भागता ही जा रहा है, पाकिस्तान, बंगलादेश, अफगानिस्तान से भागकर भारत मे आ रहा है पर भारत मे भी 8 राज्यों में हिंदू अल्पसंख्यक बन चुके हैं और उत्तरप्रदेश में भी कई इलाकों से ऐसी खबर आ रही है कि हिंदू पलायन कर रहे है, एक तरफ ईसाई मिशनरियां हिंदुओं का पुरजोर से धर्मांतरण करवा रहे है दूसरी तरफ लव जिहाद, लैंड जिहाद और बलजबरी से कुछ मुसलमान हिन्दुओं को भगा रहे है। अब हिंदू भाग-भाग कर कहाँ तक जाएगा?

सबसे पहले तो हिंदुओं को चाहिए कि जाति-पाती छोड़कर एक हो जाये दूसरा की हर हिंदू कमसे कम 4 बच्चें पैदा करें और कही भी किसी भी हिंदु पर अत्याचार या षडयंत्र हो रहा हो तो सभी हिंदू तन-मन-धन से उसको सहयोग करें जिससे किसी की भी हिम्मत न चले कोई हिंदू को परेशान करने की, अपने धर्म या धर्मगुरुओं पर एवं हिंदुनिष्ठ नेताओं पर भी जो षड्यंत्र हो रहे है उसको रोकने के लिए भी एक होकर मुहतोड़ जवाब देना चाहिए तभी हिंदुओं का अस्तित्व बचेगा नही तो फिर हर जगह से भागता ही रहेगा और कही भागने की जगह नही मिलेगी।

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Tuesday, January 5, 2021

बांग्लादेश में हिंदुओं की दुर्दशा देखकर आपकी भी रूह कांप जायेगी

05 जनवरी 2021


बांग्लादेश की स्वतंत्रता के लिए हिन्दू लड़े । उसके बदले में उन्हें क्या मिला? यह प्रश्‍न उपस्थित हो रहा है । बांग्लादेश जब से स्वतंत्र हुआ है, तब से आज तक वहां 15 लाख से अधिक हिन्दुओं की हत्या की गई है । स्वतंत्रता के पश्‍चात वहां के शासन ने संविधान में इस्लाम धर्मानुसार आचरण करने की धारा घुसाई । तब से निरंतर वहां के हिन्दुओं की धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार नकारा जा रहा है। वहां के हिन्दुओं को किसी प्रकार का न्याय अथवा अधिकार नहीं मिलता, अपितु हिन्दुओं की भूमि बलपूर्वक दबा ली गई । हिन्दू लड़कियों का अपहरण कर अत्याचार किए जाते हैं ।




प्रोफेसर बरकत ने ढाका यूनिवर्सिटी में किताब के विमोचन के दौरान बताया कि 1964 से 2013 के बीच लगभग 1 करोड़ 13 लाख हिंदुओं ने धार्मिक भेदभाव और उत्पीड़न के कारण से बांग्लादेश छोड़ा । 

बांग्लादेश में 2020 में विभिन्न घटनाओं में कम से कम 149 हिन्दुओं को मौत के घाट उतार दिया गया। इतना ही नहीं, 149 की हत्या के अलावा 7036 हिन्दू घायल भी हुए। ‘जटिया हिंदू महाजोत’ संगठन ने ये आँकड़े दिए हैं। साथ ही ये भी बताया गया है कि ये आँकड़े पिछले वर्ष के मुकाबले कहीं ज्यादा हैं। संगठन ने बुधवार (दिसंबर 30, 2020) को प्रेस कॉन्फ्रेंस कर के ये जानकारी दी और मुल्क में हिन्दुओं की सुरक्षा का मुद्दा उठाया।

संगठन के महासचिव गोबिंद चंद्र प्रमाणिक ने बताया कि बांग्लादेश में हिन्दुओं पर अत्याचार लगातार बढ़ता ही जा रहा है। राजधानी में ढाका रिपोर्टर्स यूनिटी के दफ्तर में आयोजित इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में जनवरी 1 से लेकर दिसंबर 29 तक के 2020 के आँकड़े सामने रखे गए। अगर 2019 के आँकड़ों को देखें तो उस साल 108 हिन्दुओं की हत्या कर दी गई थी और विभिन्न घटनाओं में 484 घायल हुए थे।
वहीं 2020 में 94 हिन्दुओं का अपहरण कर के उन्हें निशाना बनाया गया। साथ ही 2623 हिन्दुओं को जबरन इस्लाम कबूलने के लिए मजबूर किया गया। अगर 2019 की बात करें तो उस साल ये आँकड़े क्रमशः 76 और 18 थे। 2020 में इसमें कई गुना ज्यादा बढ़ोतरी हुई। कुल मिला कर बांग्लादेश में 2020 में 53 हिन्दू महिलाओं-बच्चों के साथ बलात्कार किया गया और पूरे साल में 370 मंदिरों की प्रतिमाओं को क्षतिग्रस्त करने की घटनाएँ हुईं।

ये दोनों आँकड़े भी 2019 में 42 और 246 थे। संगठन ने ये भी जानकारी दी कि 2020 में 2125 हिन्दू परिवारों को मुल्क छोड़ कर जाने के लिए मजबूर किया गया। ये संख्या 2019 में 379 थी। इतना ही नहीं, धार्मिक स्थलों पर हमले भी कई गुना बढ़ गए। 2020 में 163 मंदिरों पर हमला किया गया, या फिर उन्हें जला डाला गया। 2019 में ये संख्या 153 थी। कुल मिला कर हिन्दू समाज पर अत्याचार की 40,703 घटनाएँ सामने आईं।

2019 में ये आँकड़ा 31,505 था। बता दें कि बांग्लादेश से हिन्दुओं के अपहरण, जबरन धर्मांतरण, हिन्दू महिलाओं के बलात्कार, मंदिरों पर हमले, प्रतिमाओं को तोड़ने की घटनाएँ आए दिन होती रहती हैं और अंतरराष्ट्रीय मीडिया भी अल्पसंख्यकों के खिलाफ हो रहे इस अत्याचार पर मुखर नहीं रहता। वर्ल्ड हिन्दू फेडरेशन बांग्लादेश चैप्टर (world hindu federation bangladesh chapter) द्वारा जारी सूची के अनुसार, अकेले मई 2020 में ही हिंदुओं के 10 मंदिरों को तोड़ दिया गया था।

भारत में अल्पसंख्यक समुदाय पर कुछ होता है तो मीडिया दिन-रात खबरें दिखाती रहती है और सेक्युलर लोग उनके बचाव में टूट पड़ते हैं लेकिन बांग्लादेश में हर रोज इतना हिन्दुओं का पलायन होना व उनके ऊपर इतना अत्याचार होने पर मीडिया और  सेक्युलर लोगों ने चुप्पी क्यों साधी है ???

भारत सरकार को पाकिस्तान व बांग्लादेश के हिंदुओं की रक्षा के लिए ठोस कदम उठाना चाहिए।

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Monday, January 4, 2021

पश्चिमी नव-वर्ष से युवाधन का पतन

  अंग्रेज तो चले गए लेकिन भारत वासियों को मानसिक रूप से गुलाम बनाकर गए। यह कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं है। अंग्रेजों की गुलामी के समय भारत में शिक्षा का स्तर जनसंख्या अनुपात में बहुत कम था तो इसका लाभ उठाकर अंग्रेजों ने भारत वासियों को मानसिक रूप से भी गुलाम बनाया और आज भी वही गुलामी भारतीयों की दिलो-दिमाग में बनी हुई है। इसका एक प्रमुख उदाहरण है 1 जनवरी को नया साल मनाने की लोगों में अनावश्यक उत्सुकता। इस 1 जनवरी का सभी लोग हुड़दंग, शोरगुल, रॉक-पॉप संगीत, डांस, शराब- कबाब आदि के साथ स्वागत करते हैं और तथाकथित शिक्षित युवा वर्ग तो पश्चिमी नव-वर्ष का इस प्रकार स्वागत करना अपना गौरव समझते हैं। ऐसा कर, क्या वे अपनी सनातन संस्कृति का अपमान नही कर रहे? ऐसा कर, क्या वे सामाजिक विघटन की ओर कदम नही बढ़ा रहे? 31 दिसंबर की रात को ऐसी असभ्यता से अपने समाज को तो हम लज्जित करते ही हैं ऊपर से डीजे और आतिशबाजी से पर्यावरण भी प्रदूषित करते हैं। साथ ही विदेशी गिफ्ट्स, ग्रीटिंग्स-कार्ड, शराब, आदि की खरीदी से विदेशों में पैसा भेज कर अपने देश को आर्थिक रूप से कमजोर करने का अपराध भी करते हैं। यह बहुत ही चिंतनीय है कि इस नए साल के उत्साह में युवा वर्ग का कितना पतन हो रहा है। विदेशी उत्सवों के अंधानुसरण से धन और समय की बर्बादी तो होती ही है, जो समाज के नैतिक मूल्यों का ह्रास होता है उस ओर तो हमारा ध्यान भी नही जाता। २५ दिसम्बर से ५-७ जनवरी के दिनों में युवाओं में आत्महत्या एवं गर्भनिरोधक दवाइयों की बिक्री में  बढ़ोतरी हो जाती है। क्या ये समाज के उत्थान के संकेत हैं? ये कैसा उत्सव है कि मनुष्य पशुओं से भी गया-बीता हो गया? ऐसा नव-वर्ष भारतीयों के लिए ही नही, पूरी मानवजाति के लिए अभिशाप है। 


इन दिनों में प्रकृति में भी कोई उमंग-उल्लास नहीं रहती - सभी ओर सिर्फ कड़कती ठंड। इस विषय पर प्रबुद्ध-वर्ग को विचार-मंथन करना चाहिए और इस तरह देश को आर्थिक, सामाजिक व नैतिक क्षति पहुंचाने वाले आयोजनों का बहिष्कार कर एकजुट होकर कार्य करना चाहिए ।   


भारतवासी तो ऋतु एवं धर्म-संगत भारतीय पंचांग के अनुसार चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को नूतन वर्ष मनाते आए हैं। समाज को उत्साह प्रदान कर मन को प्रफुल्लित कर दे ऐसी नूतन-वर्ष की परंपरा भारतवर्ष में सदियों से चली आ रही है। भारतीय नूतन वर्ष का आगमन जगत-जननी माँ जगदम्बा की उपासना के लिए निर्दिष्ट बसंत-ऋतु में पड़ने वाले नवरात्र-पर्व से एवं ऋषि-मुनियों की वैदिक अनुष्ठान की वेला से होता है। इस ऋतु की अलग ही छंटा होती है, पर्यावरण भी अनुकूल होता है और प्रकृति स्वयं हमे इस परिवर्तन-काल का स्वागत करने का संकेत करती है। इन दिनों में वसंत ऋतु  धरती को अपनी खिलखिलाहट से भर देती है। रंग-बिरंगे फूलों से सजी धरती बहुत ही सुहावनी प्रतीत होती है। पंछियों का कलरव, भौंरों का गुंजन आदि मधुर-ध्वनियों से वातावरण अलंकृत रहता है। मनुष्यों में भी वसंत ऋतु का उमंग, उल्लास, आनंद समाहित रहता है।


जो हमारी संस्कृति के अनुकूल नही, ऐसी काल-गणना और नव-वर्ष को हम क्यूँ मनायें? हम भारतवासियों को अपना नूतन-वर्ष, चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा को ही मनाना चाहिए। स्वदेशी संस्कृति का अनुसरण कर हम एकजुट होंगे, अपने पूर्वजों का मान बढ़ाएंगे। ऐसा कर हम गौरवान्वित ही नही, उल्लसित भी होंगे क्योंकि इस परम्परा को हमारे आराध्य श्री राम-कृष्ण और ऋषि-मुनियों ने हमारे उत्थान के लिए ही निर्दिष्ट किया है।


पाठकों से यही निवेदन है कि वे अपना कीमती समय और साधन सांसकृतिक उत्सवों को मनाने में लगाएँ। इसी में अपना, परिवार का और समाज का कल्याण है।


बसन्त कुमार मानिकपुरी

छत्तीसगढ़ (भारत)

भारत से मुगल साम्राज्य को उखाड़ फेंकने वाले गोविंद सिंह का इतिहास

04 जनवरी  2020


सिख समुदाय के दसवें धर्म-गुरु (सतगुरु) गोविंद सिंह जी का जन्म पौष शुदि सप्तमी संवत 1723 ( 5 जनवरी 1666) को हुआ था । उनका जन्म बिहार के पटना शहर में हुआ था।




उनके पिता गुरू तेग बहादुर की मृत्यु के उपरान्त 11 नवम्बर सन 1675 को वे गुरू बने । वह एक महान योद्धा, कवि, भक्त एवं आध्यात्मिक संत थे।

सन 1699 में बैसाखी के दिन उन्होने खालसा पन्थ की स्थापना की । जो सिखों के इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण घटना मानी जाती है।

गुरू गोविन्द सिंह ने सिखों के पवित्र ग्रन्थ गुरु ग्रंथ साहिब को पूरा किया तथा उन्हें गुरु रूप में सुशोभित किया।

उन्होंने मुगलों या उनके सहयोगियों (जैसे, शिवालिक पहाड़ियों के राजा) के साथ 14 युद्ध लड़े । धर्म के लिए समस्त परिवार का बलिदान किया, जिसके लिए उन्हें 'सरबंसदानी' भी कहा जाता है । इसके अतिरिक्त जनसाधारण में वे कलगीधर, दशमेश, बाजांवाले आदि कई नाम, उपनाम व उपाधियों से भी जाने जाते हैं ।

गुरु गोविंद सिंह जो विश्व की बलिदानी परम्परा में अद्वितीय थे, वहीं वे स्वयं एक महान लेखक, मौलिक चिंतक तथा कई भाषाओं के ज्ञाता भी थे। उन्होंने स्वयं कई ग्रंथों की रचना की। वे विद्वानों के संरक्षक थे। उनके दरबार में 52 कवियों तथा लेखकों की उपस्थिति रहती थी, इसीलिए उन्हें 'संत सिपाही' भी कहा जाता था। वे भक्ति तथा शक्ति के अद्वितीय संगम थे।

गुरु गोबिन्द सिंह का जन्म!!

प्राग राज के निवास समय श्री गोबिंद राय जी के जन्म से एक दिन पहले माता नानकी जी ने स्वाभाविक श्री गुरु तेग बहादुर जी (Shri Guru Teg Bahadar Ji) को कहा कि बेटा! आप जी के पिता ने एक बार मुझे वचन दिया था कि तेरे घर तलवार का धनी बड़ा प्रतापी शूरवीर पोत्र ईश्वर का अवतार होगा । मैं उनके वचनों को याद करके प्रतीक्षा कर रही हूँ कि आपके पुत्र का मुँह मैं कब देखूँगी !
बेटा जी! मेरी यह मुराद पूरी करो, जिससे मुझे सुख की प्राप्ति हो ।

अपनी माता जी के यह मीठे वचन सुनकर गुरु जी ने वचन किया कि माता जी! आप जी का मनोरथ पूरा करना अकाल पुरख के हाथ मैं है । हमें भरोसा है कि आप के घर तेज प्रतापी ब्रह्मज्ञानी पौत्र देंगे ।

गुरु जी के ऐसे आशावादी वचन सुनकर माता जी बहुत प्रसन्न हुए । माता जी के मनोरथ को पूरा करने के लिए गुरु जी नित्य प्रति प्रातकाल त्रिवेणी स्नान करके अंतर्ध्यान हो कर वृति जोड़ कर बैठ जाते व पुत्र प्राप्ति के लिए अकाल पुरुष की आराधना करते ।

गुरु जी की नित्य आराधना और याचना अकाल पुरख के दरबार में स्वीकार हो गई। उसने हेमकुंट के महा तपस्वी दुष्ट दमन को आप जी के घर माता गुजरी जी के गर्भ में जन्म लेने कि आज्ञा की । जिसे स्वीकार करके श्री दमन (दसमेश) जी ने अपनी माता गुजरी जी के गर्भ में आकर प्रवेश किया ।

गुरु गोविंद सिंह का जन्म नौवें सिख गुरु तेगबहादुर और माता गुजरी के घर पटना में 5 जनवरी 1666 को हुआ था। जब वह पैदा हुए थे उस समय उनके पिता असम में धर्म उपदेश को गये थे। उन्होंने बचपन में फारसी, संस्कृत की शिक्षा ली और एक योद्धा बनने के लिए सैन्य कौशल सीखा।

गुरु गोबिंद सिंह की तीन पत्नियाँ थी :-

21जून, 1677 को 10 साल की उम्र में उनका विवाह माता जीतो के साथ आनंदपुर से 10 किलोमीटर दूर बसंतगढ़ में किया गया। उन दोनों के 3 लड़के हुए जिनके नाम थे – जुझार सिंह, जोरावर सिंह, फतेह सिंह ।

4अप्रैल, 1684 को 17 वर्ष की आयु में उनका दूसरा विवाह माता सुंदरी के साथ आनंदपुर में हुआ। उनका एक बेटा हुआ जिसका नाम था अजीत सिंह।

15 अप्रैल 1700 को 33 वर्ष की आयु में उन्होंने माता साहिब देवन से विवाह किया। वैसे तो उनकी कोई संतान नहीं थी पर सिख धर्म के पन्नों पर उनका दौर भी बहुत प्रभावशाली रहा।

गुरु गोबिन्द सिंह मार्ग :-

अप्रैल 1685 में, सिरमौर के राजा मत प्रकाश के निमंत्रण पर गुरू गोबिंद सिंह ने अपने निवास को सिरमौर राज्य के पांवटा शहर में स्थानांतरित कर दिया । सिरमौर राज्य के गजट के अनुसार, राजा भीम चंद के साथ मतभेद के कारण गुरु जी को आनंदपुर साहिब छोड़ने के लिए मजबूर किया गया था और वे वहाँ से टोका शहर चले गये । मत प्रकाश ने गुरु जी को टोका से सिरमौर की राजधानी नाहन के लिए आमंत्रित किया। नाहन से वह पांवटा के लिए रवाना हुये। मत प्रकाश ने गढ़वाल के राजा फतेह शाह के खिलाफ अपनी स्थिति मजबूत करने के उद्देश्य से गुरु जी को अपने राज्य में आमंत्रित किया था। राजा मत प्रकाश के अनुरोध पर गुरु जी ने पांवटा मे बहुत कम समय में उनके अनुयायियों की मदद से एक किले का निर्माण करवाया। गुरु जी पांवटा में लगभग तीन साल के लिए रहे और कई ग्रंथों की रचना की।

सन 1687 में नादौन की लड़ाई में, गुरु गोविंद सिंह, भीम चंद, और अन्य मित्र देशों की पहाड़ी राजाओं की सेनाओं ने अलिफ खान और उनके सहयोगियों की सेनाओं को हरा दिया था । और भट्ट वाहिस के अनुसार, नादौन पर बने व्यास नदी के तट पर गुरु गोबिंद सिंह आठ दिनों तक रहे और विभिन्न महत्वपूर्ण सैन्य प्रमुखों का दौरा किया।

भंगानी के युद्ध के कुछ दिन बाद, रानी चंपा (बिलासपुर की विधवा रानी) ने गुरु जी से आनंदपुर साहिब (या चक नानकी जो उस समय कहा जाता था) वापस लौटने का अनुरोध किया जिसे गुरु जी ने स्वीकार किया । वह नवंबर 1688 में वापस आनंदपुर साहिब पहुंच गये ।

1695 में, दिलावर खान (लाहौर का मुगल मुख्य) ने अपने बेटे हुसैन खान को आनंदपुर साहिब पर हमला करने के लिए भेजा । मुगल सेना हार गई और हुसैन खान मारा गया। हुसैन की मृत्यु के बाद, दिलावर खान ने अपने आदमियों जुझार हाडा और चंदेल राय को शिवालिक भेज दिया। हालांकि, वे जसवाल के गज सिंह से हार गए थे। पहाड़ी क्षेत्र में इस तरह के घटनाक्रम मुगल सम्राट औरंगजेब के लिए चिंता का कारण बन गए और उसने क्षेत्र में मुगल अधिकार बहाल करने के लिए सेना को अपने बेटे के साथ भेजा।

खालसा पंथ की स्थापना :-

गुरु गोविंद सिंह जी का नेतृत्व सिख समुदाय के इतिहास में बहुत कुछ नया रंग ले कर आया। उन्होंने सन 1699 में बैसाखी के दिन खालसा जो कि सिख धर्म के विधिवत् दीक्षा प्राप्त अनुयायियों का एक सामूहिक रूप है उसका निर्माण किया।

सिख समुदाय के एक सभा में उन्होंने सबके सामने पूछा – कौन अपने सर का बलिदान देना चाहता है? उसी समय एक स्वयंसेवक इस बात के लिए राजी हो गया और गुरु गोबिंद सिंह उसे तम्बू में ले गए और कुछ देर बाद वापस लौटे एक खून लगे हुए तलवार के साथ। गुरु ने दोबारा उस भीड़ के लोगों से वही सवाल दोबारा पूछा और उसी प्रकार एक और व्यक्ति राजी हुआ और उनके साथ गया पर वे तम्बू से जब बाहर निकले तो खून से सना तलवार उनके हाथ में था। उसी प्रकार पांचवा स्वयंसेवक जब उनके साथ तम्बू के भीतर गया, कुछ देर बाद गुरु गोबिंद सिंह सभी जीवित सेवकों के साथ वापस लौटे और उन्होंने उन्हें पंज प्यारे या पहले खालसा का नाम दिया।

उसके बाद गुरु गोबिंद जी ने एक लोहे का कटोरा लिया और उसमें पानी और चीनी मिला कर दुधारी तलवार से घोल कर अमृत का नाम दिया। पहले 5 खालसा के बनाने के बाद उन्हें छटवां खालसा का नाम दिया गया जिसके बाद उनका नाम गुरु गोबिंद राय से गुरु गोबिंद सिंह रख दिया गया। उन्होंने क शब्द के पांच महत्व खालसा के लिए समझाये और कहा – केश, कंगा, कड़ा, किरपान, कच्चेरा।

यह कहा जाता है कि गुरु गोबिंद सिंह ने कुल चौदह युद्ध लड़े परन्तु कभी भी किसी पूजा के स्थल के लोगों को ना ही बंदी बनाया या क्षतिग्रस्त किया।

भंगानी का युद्ध Battle of Bhangani (1688)नादौन का युद्ध

Battle of Nadaun (1691)गुलेर का युद्ध

Battle of Guler (1696)आनंदपुर का पहला युद्ध

First Battle of Anandpur (1700)आनंदपुर साहिब का युद्ध

Battle of Anandpur Sahib (1701) निर्मोहगढ़ का युद्ध

Battle of Nirmohgarh (1702) बसोली का युद्ध

Battle of Basoli (1702) आनंदपुर का युद्ध

Battle of Anandpur (1704) सरसा का युद्ध

Battle of Sarsa (1704) चमकौर का युद्ध

Battle of Chamkaur (1704) मुक्तसर का युद्ध Battle of Muktsar (1705)

परिवार के लोगों की मृत्यु :-

कहा जाता है कि सिरहिन्द के मुस्लिम गवर्नर ने गुरु गोबिंद सिंह के माता और दो पुत्र को बंदी बना लिया था। जब उनके दोनों पुत्रों ने इस्लाम धर्म को कुबूल करने से मना कर दिया तो उन्हें जिन्दा दफना दिया गया। अपने पोतों के मृत्यु के दुःख को ना सह सकने के कारण माता गुजरी भी ज्यादा दिन तक जीवित ना रह सकी और जल्द ही उनकी मृत्यु हो गयी। मुगल सेना के साथ युद्ध करते समय 1704 में उनके दोनों बड़े बेटों की मृत्यु हो गयी।

जफरनामा :-

गुरु गोबिंद सिंह ने जब देखा कि मुगल सेना ने गलत तरीके से युद्ध किया है और क्रूर तरीके से उनके पुत्रों का हत्या कर दी है तो हथियार डाल देने के बजाये गुरु गोविंद सिंह ने औरंगजेब को एक जफरनामा (विजय की चिट्ठी) लिखा, जिसमें उन्होंने औरगंजेब को चेतावनी दी कि तेरा साम्राज्य नष्ट करने के लिए खालसा पंथ तैयार हो गया है।

 8 मई सन्‌ 1705 में 'मुक्तसर' नामक स्थान पर मुगलों से भयानक युद्ध हुआ, जिसमें गुरुजी की जीत हुई। मुक्तसर को पंजाब में दोबारा गुरु जी ने स्थापित किया और अदि ग्रन्थ Adi Granth के नए अध्याय को बनाने के लिए खुद को समर्पित कर दिया जो पांचवें सिख गुरु अर्जुन द्वारा संकलित किया गया है।

उन्होंने अपने लेखन का एक संग्रह बनाया है जिसको नाम दिया दसम ग्रन्थ Dasam Granth और अपनी स्वयं की आत्मकथा जिसका नाम रखा है बिचित्र नाटक Bicitra Natak.

अक्टूबर सन्‌ 1706 में गुरुजी दक्षिण में गए जहाँ पर उनको औरंगजेब की मृत्यु का पता लगा। औरंगजेब ने मरते समय एक शिकायत पत्र लिखा था। हैरानी की बात है कि जो सब कुछ लुटा चुका था, (गुरुजी) वो फतहनामा लिख रहे थे व जिसके पास सब कुछ था वह शिकस्त नामा लिख रहा है। इसका कारण था सच्चाई। गुरुजी ने युद्ध सदैव अत्याचार के विरुद्ध किए थे न कि अपने निजी लाभ के लिए।

अन्तिम समय :-

औरंगजेब की मृत्यु के बाद आपने बहादुरशाह को बादशाह बनाने में मदद की। गुरुजी व बहादुरशाह के संबंध अत्यंत मधुर थे। इन संबंधों को देखकर सरहद का नवाब वजीत खाँ घबरा गया। अतः उसने दो पठान गुरुजी के पीछे लगा दिए। इन पठानों ने गुरुजी पर धोखे से घातक वार किया, जिससे 7 अक्टूबर 1708 में गुरुजी (गुरु गोबिन्द सिंह जी) नांदेड साहिब में दिव्य ज्योति में लीन हो गए। अंत समय में सिक्खों को गुरु ग्रंथ साहिब को अपना गुरु मानने को कहा व खुद भी माथा टेका। गुरुजी के बाद माधोदास ने, जिसे गुरुजी ने सिक्ख बनाया बंदासिंह बहादुर नाम दिया था, जिन्होंने सरहद पर आक्रमण किया और अत्याचारियों की ईंट से ईंट बजा दी।

 गुरु गोविंद सिंह के नारा था : ‘चिड़ियों से मैं बाज़ लड़ाऊं, सवा लाख से एक लड़ाऊं ।

जिनका एक एक सिपाही मुगलों को धूल चटा देता था, जिनका नाम सुनते ही औरंगजेब के पसीने छूटने लगते थे उन गुरु गोविंद सिंह जी को प्राणों से प्यारा था धर्म।

 धर्म की रक्षा के लिए कुर्बान हो गए ऐसे गुरु गोविंद सिंह को शत्- शत् नमन।

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Sunday, January 3, 2021

भास्कर हिंदू विरोधी : देवी-देवताओं के अपमान पर चुप रहने की सलाह दे रहा है

03 जनवरी 2021


कई समय से हिन्दू देवी-देवताओं को अपमानित करने और हिंदूवादी संगठनों के खिलाफ बेतुकी बयानबाजी करने वाले कथित कॉमेडियन मुनव्वर फारूकी (Munawar Faruqui) की शुक्रवार (जनवरी 01, 2021) शाम कुछ लोगों ने पिटाई कर डाली। ‘दैनिक भास्कर’ जैसे मीडिया संस्थानों को हमेशा से ही अपमानित होते आ रहे लोगों की प्रतिक्रिया से आपत्ति है।




समाचार पत्र ‘दैनिक भास्कर’ ने इस घटना के सम्बन्ध में जो खबर प्रकाशित की हैं उसका शीर्षक है, “हिंदूवादी नेताओं की गुंडागर्दी: देवताओं और अमित शाह पर टिप्पणी का आरोप, शो में कॉमेडियन को पीटा।”

जाहिर सी बात है कि ‘भास्कर’ ने यहाँ पर मुनव्वर फारूकी (Munawar Faruqui) की कुटाई करने वाली भीड़ के प्रति अपना फैसला सुनाते हुए यह शीर्षक लिखा है। साथ ही, यह समाचार पत्र चाहता है कि हिन्दुओं को अपमानित कर अपना ‘कॉमेडी’ का करियर बनाने की चाह रखने वाला हर दूसरा आदमी इसी तरह से मनचाही बयानबाजी कर एक बड़े समूह को लज्जित करता रहे और वह समूह इन सभी बातों का विरोध भी न करे।

यानी, मुनव्वर फारूकी भगवान राम से लेकर जला कर मार दिए गए कारसेवकों का मजाक उड़ाता रहे, तब मीडिया की नजरों में वह ‘कॉमेडी’ है और जब हिन्दुओं ने इसका विरोध किया तो वह गुंडागर्दी हो गई। निश्चित रूप से किसी भी तरह की हिंसा का समर्थन नहीं किया जा सकता लेकिन किसी भी तरह के उकसावे को भी जायज नहीं ठहराया जा सकता है। ऐसे में, विरोध को ‘गुंडई’ कह देना भी एक तरह से हिन्दू घृणा से सनी मीडिया द्वारा फारूकी जैसों के कारनामों का समर्थन ही है।

वास्तव में, सोशल मीडिया के बढ़ते चलन ने यह साबित भी किया है कि हिन्दुओं को या उनके देवी-देवताओं को लगातार अपमानित कर, उनकी भावनाओं को निरंतर आहत कर एक वर्ग-विशेष का चहेता बनने की इच्छा रखने वाले रातों-रात ‘स्टार’ भी बन गए। लेकिन यह अब एक चलन के साथ ही एक बढ़िया करियर विकल्प भी बनकर उभरा है और हिन्दू विरोधी घृणा से सने लोग इसे अवसर की तरह देखने लगे हैं।

लेकिन मीडिया का इन सब विषयों पर लिया गया पक्ष हैरान करता है। यदि मुनव्वर फारूकी की पिटाई करने वाले भीड़ ‘गुंडा’ थी तो फिर साल-दो साल से समाज एक एक बड़े वर्ग की भावनाओं का लगातार अपमान करने वाला फारूकी ‘कॉमेडियन’ कैसे कहा जा सकता है?

लेकिन ‘भास्कर’ चाहता है कि देवी-देवताओं को कोई गाली दे तो आप सुनते रहें और कोई प्रतिक्रिया ना दें। विरोध नहीं करें। और अगर आप ऐसा करेंगे तो यह गुंडई होगी। यह एकतरफा अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता इस देश के उदार और सेक्युलर वर्ग की पसंदीदा फैंटेसी बन चुकी है और मीडिया ने इसे जमकर भुनाया है। यह वही मुनव्वर फारुकी है, जिसने कॉमेडी के नाम पर माता सीता पर अभद्र टिप्पणी करते हुए कहा था, “मेरा पिया घर आया ओ राम जी। राम जी डोंट गिव अ फ़क अबाउट पिया। यह सुन राम जी कहते हैं मैं खुद चौदह साल से घर नहीं गया। अगर सीता ने सुन लिया, वो तो शक करेगी। सीता को तो माधुरी पे पहले से ही शक है। वो गाना है तेरा करूँ गिन-गिन इंतजार। उसे लग रहा है वनवास गिन रही है 14 पर आकर रुक गई।”

इस हरकत के बाद मुनव्वर फारुकी पर एफ़आईआर भी दर्ज की गई थी लेकिन उसका नतीजा सामने नहीं आया। इसके अलावा, उसने गोधरा में जलाकर मार डाले गए 59 कारसेवकों का मजाक उड़ाया था। गोधरा कांड के लिए उसने अमित शाह और आरएसएस को जिम्मेदार ठहराया था। संज्ञान में यह वीडियो आने के बाद राष्ट्रीय सेवा संघ (RSS) ने उस पर कानूनी एक्शन लेने की बात कही थी।

क्या ये सब बातें कहीं से भी कॉमेडी या हास्य कही जा सकती हैं? अगर यह हास्य है तो उसे पहले अपने मजहब से इसकी शुरुआत की चाहिए, जिसमें हो सकता है कि अन्य धर्मों से अधिक हास्य की सम्भावन निकल आएँ। लेकिन शायद खुद मुनव्वर फारूकी जैसों को खुद भी सभी धर्मों की सहिष्णुता और असहिष्णुता के पैमानों का सही-सही अंदाजा है, इसी कारण ये उस धर्म को निशाना बनाना ज्यादा आसान समझते हैं, जहाँ उनकी जिंदगी पर बात नहीं आती और बात बस एक-आध FIR और ‘ट्विटर आउटरेज’ में दफ़्न हो जाती हैं।

‘भास्कर’ जैसे मीडिया गिरोहों का मुनव्वर फारूकी की खबरों में लिया गया पक्ष इस देश की सहिष्णुता और इसके उदारवाद का एकदम नग्न और स्पष्ट परिचय है। ये समय-समय पर इसी तरह खुद अपना आवरण उतारकर सामने आते रहेंगे।

फिलहाल एक और ‘गुंडागर्दी की खबर’ जो सामने आई है, वह ये कि हिन्दू देवी-देवताओं और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह पर अभद्र टिप्पणी करने के आरोप में कथित कॉमेडियन मुनव्वर फारूकी समेत 5 लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया है।

दैनिक भास्कर पहले भी हिंदूत्व के खिलाफ छापता रहा है, कभी हिंदू त्यौहार नही मनाने की सलाह देता रहा है जिससे जनता में भारी रोष है और उसपर कड़ी कार्यवाही करने की मांग उठ रही है।

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