Wednesday, June 28, 2023

सनातनी वैवाहिक व्यवस्था और अंग्रेजी कानून

28 June 2023

http://azaadbharat.org

🚩अंग्रेजों का यह चरण शुरू होता है 1941 में....


🚩आजादी से भी लगभग 6 वर्ष पूर्व सन 1941 में अंग्रेजों ने भारत के ही एक और महान सपूत #मैकाले_शिक्षा_जनित अपने एक सिविल सर्वेंट "Sir" #बी_एन_राव को पकड़ा और उससे कहा कि वह भारत के इन हिन्दुओं के लिए ऐसा कानून लिखे कि इनकी अर्धनारीश्वर की इस गौरवमयी प्रतिमा का गुरुर टूट जाये और यह प्रतिमा छिन्न छिन्न हो जाये। पुरुष और स्त्री एक दूसरे को पूरक नहीं, प्रतिद्वंदी समझने लगें।।  इनकी स्त्रियाँ पतितपथ गामिनी, व्यभिचारिणी हो जाएँ और इनके पुरुष अपनी स्त्रियों की आन बान और शान के लिए सिर तो क्या, सिर का एक बाल तक ना कटवाएं और सनातनी वैवाहिक व्यवस्था जो सात सात जन्मों तक वैवाहिक बन्धन की पवित्रता की बात करती है, एक जन्म भी इस बंधन को न निभा पाए। समाज में तलाक होने लगे, परिवार टूट जाए, परिवारों के बच्चे बिखर जाएँ, और स्त्री और पुरुष एक दूसरे को अपना दुश्मन समझने लगें।


🚩देश के सुपूत बी एन राव अंग्रेजों के दिए हुए इस पवित्र कार्य में लग गये।


🚩उन्होंने पाया कि इस महान किताब का पहला पाठ तो उनके जैसे ही मैकाले शिक्षा पुत्र देशमुख नाम के एक अन्य अंग्रेज भक्त 1937 में लिख ही चुके हैं। जिसको उन्होंने नाम दिया था Hindu Women's Rights to Property Act (Deshmukh Act 1937). इस एक्ट के द्वारा हिन्दू औरतों को पॉवर देने की बात कहकर भारतीय सनातनी परिवारों में पहली दरार तो खींची ही जा चुकी थी...!!


🚩फिर क्या था, इसी पाठ को आगे बढ़ाते हुए मैकाले शिक्षा पुत्र बी एन राव ने इस किताब में अगला अध्याय जोड़ दिया कि हिन्दू पति पत्नी चाहें तो एक दूसरे से अलग अलग भी रह सकते हैं। इस अध्याय में प्रावधान दिया गया कि हिन्दू औरत और पुरुष जब चाहे कुछ कुछ कारण बताकर एक दूसरे से अलग अलग रहे और स्त्री अपने लिए #पुरुष_से_मेंटेनेंस_की_मांग करे, जो उसको पुरुष से दिलवाया जायेगा।


🚩इन सबको पता था कि पति से कारण-अकारण अलग रह कर पति से ही मेंटेनेंस लेकर अलग रह रही नारी और नारी से विलग हुआ विरही पुरुष अपने आप टूट जायेंगे, उनके #बच्चे_बिखर_जायेंगे और भारत के आचार विचार तो क्या चरित्र तक का अपने आप हनन होता चला जायेगा...!! यही तो चाहते थे कुटिल अंग्रेज।


🚩बी एन राव की यह किताब 1941 से 1947 तक लिखी जाती रही। और इस किताब का नाम दिया "हिन्दू कोड बिल"


🚩वर्ष 1947 में इस कुटिल किताब में एक और कुटिल अध्याय जोड़ा गया "तलाक" के अधिकार का। और यही से सनातन धर्म के सात-सात जन्मो के वैवाहिक बंधन के विचार को नष्ट करने का सबसे कुटिल अध्याय शुरू हो गया और फिर वर्ष 1947 में ही इस कुटिल किताब में एक अंतिम अध्याय जोडा गया जिसके प्रावधानों के अनुसार सनातन धर्म के मजबूत स्तम्भ "सयुंक्त परिवार" अर्थात जॉइंट फॅमिली एवं प्रॉपर्टी सिस्टम को ख़त्म करने का प्रावधान हिन्दुओं को दे दिए जाने की बात कही गयी।


🚩इस अध्याय में कहा गया कि पिता की संपत्ति में पुत्र के साथ-साथ पुत्री का भी अधिकार होगा। भारत की नारियों को इस प्रकार के प्रावधान बहुत लुभावने से लगने वाले थे, किन्तु इसी में तो अंग्रेजों की कुटिल नीति छिपी हुई थी..जो देश आज तक न समझ पाया.....!!


🚩"हिन्दू कोड बिल" का आखिरी पन्ना 1947 में लिख कर तैयार हो गया।


🚩कितना खास होगा वह पन्ना...!! शायद इसी पन्ने के इंतज़ार में अंग्रेज अब तक भारत से चिपके बैठे थे और जैसे ही 1947 में इस बिल का आखिरी पन्ना लिखा गया, अंग्रेजो ने देश को छोड़ने की घोषणा कर दी। और जाते-जाते "हिन्दू कोड बिल" की यह कुटिल किताब अपने प्रिय, #मैकाले_शिक्षा_पुत्र श्री #जवाहर_लाल_नेहरु को देना नहीं भूले... शायद इस आदेश के साथ, कि प्रधानमंत्री तुम बन जाओगे, वह हम पर छोड़ दो, किन्तु प्रधानमंत्री बनते ही सबसे पहला कार्य जो तुमको करना होगा वह होगा इस "हिन्दू कोड बिल" को पूरे भारत के हिन्दुओं पर लागू करना।


🚩अंग्रेजों और नेहरु के बीच इसको लेकर और क्या-क्या कुटिल समझौते हुए होंगे, यह तो वो चार दीवारे ही जानती होंगी, जिनमें बैठकर वें खूनी समझौते हुए, किन्तु इतिहास को तो सिर्फ वही पता होता है जो उसने स्वयं देखा, स्वयं पर झेला और स्वयं किसी के खून से लिखा। यह लेख इतिहास के उन्ही पन्नों पर सनातन धर्म के खून से लिखी -अधलिखी कहानी ही तो है....!!


🚩हिन्दू कोड बिल नेहरु को दिया जा चुका था। कितने आश्चर्य की बात है कि औरंगजेबी "फतवा-ए-आलमगीरी" अर्थात "मुस्लिम पर्सनल लॉ" को लेकर अंग्रेजो ने भी कोई नया बिल नही लिखा था। शायद यह भी अंग्रेजों की कोई कुटिल नीति ही थी...जो अब आजादी के सत्तर साल बाद रंग दिखा रही है....


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Tuesday, June 27, 2023

वायु कितने प्रकार के है ? शायद आधुनिक मौसम विज्ञान भी अनभिज्ञ है...!!

27 June 2023

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🚩संत तुलसीदास जी कृत रामचरितमानस के सुन्दर कांड में , जब हनुमान जी ने लंका में आग लगाई थी , उस प्रसंग पर लिखा है |

"हरि प्रेरित तेहि अवसर चले मरुत उनचास

अट्टहास करि गर्जा कपि बढ़ि लाग अकास।।"


🚩अर्थात :- जब हनुमान जी ने लंका को अग्नि के हवाले कर दिया तो, उस समय भगवान की ही प्रेरणा से उनचासों पवन चलने लगे । हनुमान जी अट्टहास करके गर्जे और आकार बढ़ाकर आकाश मार्ग से जाने लगे।


🚩उनचास मरुत का क्या अर्थ है ?

यह तुलसी दास जी ने भी नहीं लिखा। जब समय निकालकर 49 प्रकार की वायु के बारे में जानकारी खोजी । तुलसीदासजी के वायु ज्ञान पर सुखद आश्चर्य हुआ, जिससे शायद आधुनिक मौसम विज्ञान भी अनभिज्ञ है ।

        

🚩यह जानकर आश्चर्य होगा कि वेदों में वायु की 7 शाखाओं के बारे में विस्तार से वर्णन मिलता है। अधिकतर लोग यही समझते हैं कि वायु तो एक ही प्रकार की होती है, लेकिन उसका रूप बदलता रहता है, जैसे कि ठंडी वायु, गर्म वायु और समवायु, लेकिन ऐसा नहीं है। 


🚩जल के भीतर जो वायु है उसका शास्त्रों में अलग नाम दिया गया है और आकाश में स्थित जो वायु है उसका नाम अलग है। अंतरिक्ष में जो वायु है उसका नाम अलग और पाताल में स्थित वायु का नाम अलग है। नाम अलग होने का मतलब यह कि उसका गुण और व्यवहार भी अलग ही होता है। इस तरह वेदों में 7 प्रकार की वायु का वर्णन मिलता है।


🚩ये 7 प्रकार हैं- 1. प्रवह, 2. आवह, 3. उद्वह, 4. संवह, 5. विवह, 6. परिवह और 7. परावह।

 

🚩1. प्रवह :- पृथ्वी को लांघकर मेघमंडलपर्यंत जो वायु स्थित है, उसका नाम प्रवह है। इस प्रवह के भी प्रकार हैं। यह वायु अत्यंत शक्तिमान है और वही बादलों को इधर-उधर उड़ाकर ले जाती है। धूप तथा गर्मी से उत्पन्न होने वाले मेघों को यह प्रवह वायु ही समुद्र जल से परिपूर्ण करती है जिससे ये मेघ काली घटा के रूप में परिणित हो जाते हैं और अतिशय वर्षा करने वाले होते हैं। 

 

🚩2. आवह :- आवह सूर्यमंडल में बंधी हुई है। उसी के द्वारा ध्रुव से आबद्ध होकर सूर्यमंडल घुमाया जाता है।

 

🚩3. उद्वह :- वायु की तीसरी शाखा का नाम उद्वह है, जो चन्द्रलोक में प्रतिष्ठित है। इसी के द्वारा ध्रुव से संबद्ध होकर यह चन्द्र मंडल घुमाया जाता है। 

 

🚩4. संवह :- वायु की चौथी शाखा का नाम संवह है, जो नक्षत्र मंडल में स्थित है। उसी के द्वारा ध्रुव से आबद्ध होकर संपूर्ण नक्षत्र मंडल घूमता रहता है।

 

🚩5. विवह :- पांचवीं शाखा का नाम विवह है और यह ग्रह मंडल में स्थित है। उसके ही द्वारा यह ग्रह चक्र ध्रुव से संबद्ध होकर घूमता रहता है। 

 

🚩6.परिवह :- वायु की छठी शाखा का नाम परिवह है, जो सप्तर्षिमंडल में स्थित है। इसी के द्वारा ध्रुव से संबद्ध हो सप्तर्षि आकाश में भ्रमण करते हैं।

 

🚩7. परावह :- वायु के सातवें स्कंध का नाम परावह है, जो ध्रुव में आबद्ध है। इसी के द्वारा ध्रुव चक्र तथा अन्यान्य मंडल एक स्थान पर स्थापित रहते हैं।

 

🚩इन सातों वायु के सात-सात गण (संचालन करने वाले) हैं , जो निम्न जगह में विचरण करते हैं-


 🚩ब्रह्मलोक, इंद्रलोक, अंतरिक्ष, भूलोक की पूर्व दिशा, भूलोक की पश्चिम दिशा, भूलोक की उत्तर दिशा और भूलोक कि दक्षिण दिशा। इस तरह  7x7=49, कुल 49 मरुत हो जाते हैं , जो आदि भौतिक देव रूप में विचरण करते रहते हैं।

  

🚩 कितना अद्भुत ज्ञान !!

हम अक्सर रामायण, भगवद् गीता पढ़ तो लेते हैं , परंतु उसका चिन्तन-मनन जो कि बहुत महत्वपूर्ण है , विरले ही कोई कोई करता है।

हमारे वेदों शास्त्रों में लिखी छोटी से छोटी बातों का भी गहन अध्ययन करने पर अनेक गूढ़ एवं ज्ञानवर्धक रहस्यों का ज्ञान निश्चित रूप से प्राप्त होता है ।


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Monday, June 26, 2023

इतना समझ लिया तो कभी आपकी बेटी लव जिहाद में नही फसेगी.....

26 June 2023

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🚩हिन्दू समाज के साथ 1200 वर्षों से मजहब के नाम पर अत्याचार होता आया है। सबसे खेदजनक बात यह है कि कोई इस अत्याचार के बारे में हिन्दुओं को बताये तो हिन्दू खुद ही उसे ही गंभीरता से नहीं लेते क्यूंकि उन्हें सेकुलरता के नशे में रहने की आदत पड़ गई है। रही सही कसर हमारे पाठ्यक्रम ने पूरी कर दी जिसमें अकबर महान, टीपू सुलतान देशभक्त आदि पढ़ा पढ़ा इस्लामिक शासकों के अत्याचारों को छुपा दिया गया। अब भी कुछ बचा था तो संविधान में ऐसी धारा डाल दी गई। जिसके अनुसार सार्वजनिक मंच अथवा मीडिया में इस्लामिक अत्याचारों पर विचार करना धार्मिक भावनाओं को भड़काने जैसा करार दिया गया। इस सुनियोजित षड़यंत्र का परिणाम यह हुआ कि हिन्दू समाज अपना सत्य इतिहास ही भूल गया।


🚩ऐसी हज़ारों दास्तानों में से एक है सिरोंज के महेश्वरी समाज की दास्तान। सिरोंज यह स्थान विदिशा से 50 मील की दूरी पर एक तहसील है। मध्यकाल में इस स्थान का विशेष महत्व था। कई इमारतें व उनसे जुड़ी ऐतिहासिक घटनाएँ इस बात का प्रमाण है। सिरोंज के दक्षिण में स्थित पहाड़ी पर एक प्राचीन मंदिर है। इसे उषा का मंदिर कहा जाता है। इसी नाम के कारण कुछ लोग इसे बाणासुर की राजधानी श्रोणित नगर के नाम से जानते थे। संभवतः यही शब्द बिगड़कर कालांतर में "सिरोंज' हो गया। नगर के बीच में पहले एक बड़ी हवेली हुआ करती थी, जो अब ध्वस्त हो चुकी है, इसे रावजी की हवेली के नाम से जाना जाता है। इसका निर्माण संभवतः मराठा- आधिपत्य के बाद ही हुआ होगा। ऐसी मान्यता है कि यह मल्हाराव होल्कर के प्रतिनिधि का आवास था।


🚩200 साल पहले सिरोंज टोंक के एक नवाब के आधिपत्य में था। एक बार नवाब ने इस क्षेत्र का दौरा किया। उसी रात की यहाँ के माहेश्वरी सेठ की पुत्री का विवाह था। संयोग से रास्ते में डोली में से पुत्री की कीमती चप्पल गिर गई। किसी व्यक्ति ने उसे नवाब के खेमे तक पहुँचा दिया। नवाब को यह भी कहा गया कि चप्पल से भी अधिक सुंदर इसको पहनने वाली है। यह जानने के बाद नवाब द्वारा सेठ की पुत्री की माँग की गई। यह समाचार सुनते ही माहेश्वरी समाज में खलबली मच गई। बेटी देने का तो प्रश्न ही नहीं उठता था। अब किया क्या जाये? माहेश्वरी समाज के प्रतिनिधियों ने कूटनीति से काम किया। नवाब को यह सूचना दे दिया गया कि प्रातः होते ही डोला दे दिया जाएगा। इससे नवाब प्रसन्न हो गया। इधर माहेश्वरियों ने रातों- रात पुत्री सहित शहर से पलायन कर दिया तथा। उनके पूरे समाज में यह निर्णय लिया गया कि कोई भी माहेश्वरी समाज में न तो इस स्थान का पानी पिएगा, न ही निवास करेगा। एक रात में अपने स्थान को उजाड़ कर महेश्वरी समाज के लोग दूसरे राज्य चले गए। मगर अपनी इज्जत, अपनी अस्मिता से कोई समझौता नहीं किया। आज भी एक परम्परा माहेश्वरी समाज में अविरल चल रही है। आज भी माहेश्वरी समाज का कोई भी व्यक्ति सिरोंज जाता है। तो वहाँ का न पानी पीता है और न ही रात को कभी रुकता हैं। यह त्याग वह अपने पूर्वजों द्वारा लिए गए संकल्प को निभाने एवं मुसलमानों के अत्याचार के विरोध को प्रदर्शित करने के लिए करता हैं।


🚩दरअसल मुस्लिम शासकों में हिंदुओं की लड़कियों को उठाने, उन्हें अपनी हवस बनाने, अपने हरम में भरने की होड़ थी। उनके इस व्यसन के चलते हिन्दू प्रजा सदा आशंकित और भयभीत रहती थी। ध्यान दीजिये किस प्रकार हिन्दू समाज ने अपना देश, धन, सम्पति आदि सब त्याग कर दर दर की ठोकरें खाना स्वीकार किया। मगर अपने धर्म से कोई समझौता नहीं किया। अगर ऐसी शिक्षा, ऐसे त्याग और ऐसे प्रेरणादायक इतिहास को हिन्दू समाज आज अपनी लड़कियों को दूध में घुटी के रूप में दे। तो कोई हिन्दू लड़की कभी लव जिहाद का शिकार न बने।


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लव जिहाद में नही फसेगी कभी आपकी बेटी इतना समझ लिया तो

 इतना समझ लिया तो कभी आपकी बेटी लव जिहाद में नही फसेगी.....

26 June 2023

🚩हिन्दू समाज के साथ 1200 वर्षों से मजहब के नाम पर अत्याचार होता आया है। सबसे खेदजनक बात यह है कि कोई इस अत्याचार के बारे में हिन्दुओं को बताये तो हिन्दू खुद ही उसे ही गंभीरता से नहीं लेते क्यूंकि उन्हें सेकुलरता के नशे में रहने की आदत पड़ गई है। रही सही कसर हमारे पाठ्यक्रम ने पूरी कर दी जिसमें अकबर महान, टीपू सुलतान देशभक्त आदि पढ़ा पढ़ा इस्लामिक शासकों के अत्याचारों को छुपा दिया गया। अब भी कुछ बचा था तो संविधान में ऐसी धारा डाल दी गई। जिसके अनुसार सार्वजनिक मंच अथवा मीडिया में इस्लामिक अत्याचारों पर विचार करना धार्मिक भावनाओं को भड़काने जैसा करार दिया गया। इस सुनियोजित षड़यंत्र का परिणाम यह हुआ कि हिन्दू समाज अपना सत्य इतिहास ही भूल गया।

🚩ऐसी हज़ारों दास्तानों में से एक है सिरोंज के महेश्वरी समाज की दास्तान। सिरोंज यह स्थान विदिशा से 50 मील की दूरी पर एक तहसील है। मध्यकाल में इस स्थान का विशेष महत्व था। कई इमारतें व उनसे जुड़ी ऐतिहासिक घटनाएँ इस बात का प्रमाण है। सिरोंज के दक्षिण में स्थित पहाड़ी पर एक प्राचीन मंदिर है। इसे उषा का मंदिर कहा जाता है। इसी नाम के कारण कुछ लोग इसे बाणासुर की राजधानी श्रोणित नगर के नाम से जानते थे। संभवतः यही शब्द बिगड़कर कालांतर में "सिरोंज' हो गया। नगर के बीच में पहले एक बड़ी हवेली हुआ करती थी, जो अब ध्वस्त हो चुकी है, इसे रावजी की हवेली के नाम से जाना जाता है। इसका निर्माण संभवतः मराठा- आधिपत्य के बाद ही हुआ होगा। ऐसी मान्यता है कि यह मल्हाराव होल्कर के प्रतिनिधि का आवास था।




🚩200 साल पहले सिरोंज टोंक के एक नवाब के आधिपत्य में था। एक बार नवाब ने इस क्षेत्र का दौरा किया। उसी रात की यहाँ के माहेश्वरी सेठ की पुत्री का विवाह था। संयोग से रास्ते में डोली में से पुत्री की कीमती चप्पल गिर गई। किसी व्यक्ति ने उसे नवाब के खेमे तक पहुँचा दिया। नवाब को यह भी कहा गया कि चप्पल से भी अधिक सुंदर इसको पहनने वाली है। यह जानने के बाद नवाब द्वारा सेठ की पुत्री की माँग की गई। यह समाचार सुनते ही माहेश्वरी समाज में खलबली मच गई। बेटी देने का तो प्रश्न ही नहीं उठता था। अब किया क्या जाये? माहेश्वरी समाज के प्रतिनिधियों ने कूटनीति से काम किया। नवाब को यह सूचना दे दिया गया कि प्रातः होते ही डोला दे दिया जाएगा। इससे नवाब प्रसन्न हो गया। इधर माहेश्वरियों ने रातों- रात पुत्री सहित शहर से पलायन कर दिया तथा। उनके पूरे समाज में यह निर्णय लिया गया कि कोई भी माहेश्वरी समाज में न तो इस स्थान का पानी पिएगा, न ही निवास करेगा। एक रात में अपने स्थान को उजाड़ कर महेश्वरी समाज के लोग दूसरे राज्य चले गए। मगर अपनी इज्जत, अपनी अस्मिता से कोई समझौता नहीं किया। आज भी एक परम्परा माहेश्वरी समाज में अविरल चल रही है। आज भी माहेश्वरी समाज का कोई भी व्यक्ति सिरोंज जाता है। तो वहाँ का न पानी पीता है और न ही रात को कभी रुकता हैं। यह त्याग वह अपने पूर्वजों द्वारा लिए गए संकल्प को निभाने एवं मुसलमानों के अत्याचार के विरोध को प्रदर्शित करने के लिए करता हैं।


🚩दरअसल मुस्लिम शासकों में हिंदुओं की लड़कियों को उठाने, उन्हें अपनी हवस बनाने, अपने हरम में भरने की होड़ थी। उनके इस व्यसन के चलते हिन्दू प्रजा सदा आशंकित और भयभीत रहती थी। ध्यान दीजिये किस प्रकार हिन्दू समाज ने अपना देश, धन, सम्पति आदि सब त्याग कर दर दर की ठोकरें खाना स्वीकार किया। मगर अपने धर्म से कोई समझौता नहीं किया। अगर ऐसी शिक्षा, ऐसे त्याग और ऐसे प्रेरणादायक इतिहास को हिन्दू समाज आज अपनी लड़कियों को दूध में घुटी के रूप में दे। तो कोई हिन्दू लड़की कभी लव जिहाद का शिकार न बने।


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Sunday, June 25, 2023

अब बच्चें बनेंगे होनहार क्यूँकि पढ़ेगे सही इतिहास सुन्दर बदलाव...

 अब बच्चें बनेंगे होनहार क्यूँकि पढ़ेंगे सही इतिहास...

यूपी बोर्ड सिलेबस में हुआ बड़ा प्रभावी और सुन्दर बदलाव...




24 June 2023

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🚩हिन्दुस्थान में अनेकों शूरवीर, बुद्धिमान और साहसी महापुरुष पैदा हुए , जिन्होंने हवाई जहाज से लेकर परमाणु तक की खोजें की , मानव से महेश्वर बनाने की युक्तियां दीं । गृहस्थियों को भी स्वस्थ्य, सुखी और सम्मानित जीवन जीने की कला सिखाने के साथ-साथ ईश्वर प्राप्ति ही मानव जीवन का एकमात्र उद्देश्य है यह बताया ।


🚩पर दुर्भाग्य की बात यह है , कि भारत के इतिहास में उन सनातनी महापुरुषों को आजतक कहीं स्थान नहीं दिया गया था । इसके विपरीत क्रूर, लुटेरे, बलात्कारी मुगलों और भारत को गुलामी की ज़जीरों में जकड़ने वाले अंग्रेजों का ही इतिहास पढ़ाया जाता रहा है । 


🚩अब खुशी की बात है , कि उत्तर प्रदेश सरकार ने बच्चों के सिलेबस में बड़ा बदलवा करने का निर्णय लिया है । अब हमारे बच्चों को सही इतिहास पढ़ाया जाएगा । जिससे भारत के बच्चे अपने देश की महिमा और अपने पूर्वजों की महानता से अवगत होंगे और निश्चित रूप से होनहार बनेंगे । ज़ाहिर है अपना गौरवशाली इतिहास पढ़ने और जानने के बाद बच्चे विदेशी संस्कृति के आकर्षण और विधर्मियों की कूटनीतिक चालों में कदापि नहीं फंसेंगे...

भारत फिर से विश्वगुरु पद पर आसीन हो यही संतों का संकल्प रहा है और उत्तर प्रदेश सरकार का यह निर्णय उसी ओर बढ़ता हुआ एक ठोस कदम है ।


🚩उत्तर प्रदेश सरकार का सही निर्णय 


🚩उत्तर प्रदेश सरकार ने यूपी बोर्ड के सिलेबस में बड़ा बदलाव किया है। कक्षा 9-12 के छात्रों को अब विद्यालयों में नियमित और अनिवार्य रूप से देश की 50 महान हस्तियों की जीवनगाथा पढ़ाई जाएगी। इसमें महर्षि पतंजलि से लेकर श्रीमद् आद्यशंकराचार्य, महावीर , गुरुनानक देव, छत्रपति शिवाजी महाराज, मंगल पांडेय, बिरसा मुंडा, रानी लक्ष्मीबाई, चन्द्रशेखर आजाद, वीर सावरकर, सरदार वल्लभ भाई पटेल और ए.पी.जे. अब्दुल कलाम आदि तक के नाम शामिल हैं।


🚩मीडिया रिपोर्ट के अनुसार... इन तमाम हस्तियों की जीवनी को नैतिक शिक्षा, शारीरिक शिक्षा और योग के विषयों में शामिल किया जाएगा। ये विषय सभी छात्रों के लिए अनिवार्य होंगे। यही नहीं, छात्रों के लिए इन विषयों में पास होना भी जरूरी होगा। हालाँकि बोर्ड परीक्षा यानी 10वीं और 12वीं के छात्रों की मार्कशीट में इन विषयों के नंबर नहीं जोड़े जाएँगे। ग़ौरतलब है, जुलाई 2023 से स्कूल खुलने के बाद नए सिलेबस के तहत पढ़ाई होगी।


🚩बता दें कि , इन 50 हस्तियों के नामों की सूची पहले ही सरकार को भेजी जा चुकी थी। सरकार की मंजूरी के बाद अब ये हस्तियाँ सिलेबस का भी हिस्सा होंगी। यूपी बोर्ड के 27 हजार से अधिक सरकारी तथा सरकार द्वारा सहायता प्राप्त और गैर सहायता प्राप्त स्कूलों में पढ़ने वाले कक्षा 9-12 तक के 1 करोड़ से अधिक छात्र इन महापुरुषों की जीवनी पढ़ेंगे।


🚩किस कक्षा में क्या पढ़ेंगे छात्र


🚩यूपी बोर्ड की कक्षा 9 के छात्र गौतम बुद्ध, छत्रपति शिवाजी महाराज, चंद्रशेखर आजाद, बिरसा मुंडा, बेगम हजरत महल, वीर कुंवर सिंह, ईश्वर चंद्र विद्यासागर, ज्योतिबा फुले, विनायक दामोदर सावरकर (वीर सावरकर), विनोबा भावे, श्रीनिवास रामानुजन और जगदीश चंद्र बसु की जीवन गाथा पढ़ेंगे।


🚩वहीं कक्षा 10 के सिलेबस में स्वामी विवेकानंद, मंगल पांडे, रोशन सिंह, सुखदेव, खुदी राम बोस, लोकमान्य बालगंगाधर तिलक, गोपाल कृष्ण गोखले, मोहन दास करमचंद गाँधी की जीवनी को जोड़ा गया है।


🚩कक्षा 11वीं के छात्रों के लिए महर्षि पतंजलि, सुश्रुत, महावीर जैन, राम प्रसाद बिस्मिल, भगत सिंह, भीमराव अंबेडकर, सरदार वल्लभभाई पटेल, पंडित दीन दयाल उपाध्याय, महामना मदन मोहन मालवीय, अरविंद घोष, राजा राम मोहन रॉय, सरोजिनी नायडू, नाना साहिब और डॉ होमी जहाँगीर भाभा को सिलेबस में शामिल किया गया।


🚩इसके अलावा, कक्षा 12वीं के सिलेबस में श्रीमद् आद्यशंकराचार्य जी , गुरु नानक देव जी , श्री रामकृष्ण परमहंस, गणेश शंकर विद्यार्थी जी , श्री राजगुरु, रवींद्रनाथ टैगोर जी , लाल बहादुर शास्त्री जी , महारानी लक्ष्मी बाई, महाराणा प्रताप जी , बंकिम चंद्र चटर्जी,  डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम , रामानुजाचार्य, पाणिनी, आर्यभट्ट और सी.वी. रमन की जीवन गाथा शामिल की गई।


🚩साल 2022 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने अपने संकल्प पत्र में पाठ्यक्रम में बदलाव करने का वादा किया था। साथ ही कहा था , कि चन्द्रशेखर आजाद, रामकृष्ण परमहंस समेत अन्य महापुरुषों की जीवनी को सिलेबस में शामिल किया जाएगा। इस वादे को पूरा करते हुए योगी आदित्यनाथ सरकार ने यूपी बोर्ड के सिलेबस में बदलाव किया है।


🚩भारत का इतिहास – हैरान करने वाली बातें🚩कुछ बुद्धिजीवियों का मानना है, कि भारत की सभ्यता कुछ 8000 साल पुरानी है। लेकिन सत्य यह है , कि भारतीय संस्कृति सनातन संस्कृति है । और इससे भी खास बात यह है कि , इतनी पुरानी सभ्यता आजतक अपना वजूद सुदृढ बनाए हुए है , तो निसंदेह इसमें जरूर कुछ खास बात है और वह खासियत है हमारे महान पूर्वज ( साधु-संत, ऋषि-मुनि और वीर,साहसी महान हस्तियां )


🚩सनातनी सभ्यता ने विश्व का मार्गदर्शन किया है । हमारे शास्त्रों से ही विश्व ने चलना सीखा है । भारत माता के वेद अपौरुषेय और सनातन हैं और पूरे विश्व ने इन्हीं वेदों का किसी न किसी रूप में अनुसरण किया ही है । विज्ञान हो या फिर ब्रह्माण्डीय ज्ञान, तकनीक हो या फिर धर्म, सभी बातें आपको भारत माता के इतिहास में सबसे पहले मिल जायेंगी ।


🚩विज्ञान की बात करें , तो अत्यंत उत्कृष्ट वायुयानों और जलयानों का वर्णन रामायण व महाभारत में मिलता है । परमाणु अस्त्र-शस्त्रों का भी वर्णन हमारे शास्त्रों में मिलता है । परंतु निराशाजनक बात यह थी , कि हमारे बच्चों को स्कूल की किताबों में अबतक भारत माता को गरीब और अनपढ़ बताया जाता था । भारत माता का झूठा इतिहास ही हमसब स्कूलों की किताबों में आजतक  पढ़ते आए हैं ।



🚩अबतक के भारत का इतिहास – यानि की...वामपंथियों द्वारा रचा गया झूठा इतिहास


🚩भारत को इतिहास में वामपंथियों ने सांपों-सपेरों और नट-जादूगरों का देश बताया है । परंतु असल में भारत माता का सच्चा इतिहास चाणक्य, मनु और कौटिल्य पर आधारित है । यहां सपेरों का इतिहास नहीं बल्कि मंगल, सूरज और चांद तारों की हैरान करनेवाली रहस्यमयी बातें बताई गयी हैं । भारत ने ही ‘शुन्य’ का आविष्कार किया है । सौर-ऊर्जा की बातें हजारों सालों पहले भारत में ही बताई गयी हैं ।


🚩उत्तर प्रदेश सरकार की ही भाँति आज आवश्यकता है , कि सम्पूर्ण भारत के बच्चों को विद्यालयों में हमारे देश का सही इतिहास पढ़ाया जाए...

ताकि हमारे आज के नौनिहाल और आनेवाली पीढ़ियां अपने भारतीय होने का गर्व अनुभव कर सकें...

यदि ऐसा हुआ तो वह दिन दूर नहीं जब भारत एक बार फिर से विश्वगुरु पद पर आसीन होगा ।



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गाँव की आबादी 5000 पर हिंदू एक भी नहीं....

25 June 2023

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🚩इस्लामिक जगत पूरे विश्व में अन्य समुदायों की तुलना में 150% ज्यादा प्रजनन कर रहा है। यह हम नहीं, दुनिया के सबसे ‘लिबरल’ देश अमेरिका का fact-tank प्यू रिसर्च सेंटर कह रहा है। अपनी इस रिपोर्ट में उसने चेतावनी दी है कि जहाँ दुनिया के बाकी बड़े मज़हब महज 11% (स्थानीय उपासना पद्धतियाँ) से लेकर 34-35% (ईसाई और हिंदुत्व) तक की दर से बढ़ रहे हैं, और बौद्ध मतावलंबी तो 0.3% से घट रहे हैं, वहीं इस्लाम 73% से ज्यादा तेजी से बढ़ रहा है- वह भी ज्यादा बच्चे पैदा करके। दुनिया की जरूरतों के लिए वैसे ही कम पड़ रहे संसाधनों के बीच यह खबर अत्यंत निराशाजनक है।


🚩नेपाल बॉर्डर पर बुरी हालत


🚩गाँव का नाम बिचपटा। आबादी 3500 के करीब। पर इनमें कोई भी हिंदू नहीं है। गाँव का नाम रामगढ़। 550 के करीब वोटर। इनमें 500 से अधिक मुस्लिम हैं। ये गाँव उत्तर प्रदेश से सटे नेपाल बाॅर्डर के करीब हैं। लखीमपुर के चंदन चौकी से बिचपटा करीब एक किलोमीटर दूर है। इसी गाँव से सटा हुआ है रामगढ़। नेपाल की सीमा से सटे इलाकों में हुए डेमोग्राफी चेंज को आप इन गाँवों में आकर समझ सकते हैं। महसूस कर सकते हैं।


🚩ये केवल दो गाँवों तक ही सीमित नहीं है। बहराइच में बाॅर्डर का आखिरी गाँव सीतापुरवा है। यहाँ भी सिर्फ मुस्लिम आबादी है। कोई हिंदू परिवार इस गाँव में नहीं रहता। श्रावस्ती में बाॅर्डर से लगा गाँव है- भरथा रोशनपुरवा। करीब 5 हजार की आबाद वाला ये गाँव नो मेंस लैंड में भी आबाद है। एक छोर भारत में तो दूसरा छोर नेपाल में। बाॅर्डर बताने वाले पिलर तक नजर नहीं आते। नो मेंस लैंड उस भूमि को कहते हैं जिसे दो देशों की सीमाओं के बीच छोड़ दिया जाता है। इस जमीन पर किसी देश का अधिकार नहीं होता। इसमें पिलर या बाड़ लगाकर देश अपनी सीमा का निर्धारण कर लेते हैं।


🚩दैनिक भास्कर के रिपोर्टर रवि श्रीवास्तव नेपाल बाॅर्डर से लगे यूपी के लखीमपुर, बहराइच और श्रावस्ती जिलों के इन गाँवों की पड़ताल की है। वे जानना चाहते थे कि बाॅर्डर के इलाकों में डेमोग्राफी चेंज को लेकर किए जा रहे दावे कितने सही हैं। यूपी सरकार बिना मान्यता के चल रहे मदरसों पर कार्रवाई की तैयारी कर रही है। इन इलाकों के मदरसों की वास्तविक स्थिति क्या है। इस दौरान उन्होंने वह सब कुछ पाया जिन तथ्यों से ऑपइंडिया ने बीते साल अपने सिलसिलेवार ग्राउंड रिपोर्ट में आपको परिचित कराया था।


🚩रवि श्रीवास्तव ने अपनी रिपोर्ट में विस्तार से इन गाँवों की आबादी, मस्जिद-मदरसे, यहाँ रहने वाले लोगों की स्थिति के बारे में बताया है। उन्होंने पाया कि ज्यादा बच्चे पैदा करना और दामाद कल्चर डेमोग्राफी चेंज के मुख्य कारणों में से हैं। चंदन चौकी के शौकत ने उन्हें बताया, “निकाह के बाद बेटियों के शौहर यहीं आकर बसने लगे। कहाँ से आकर बसे ये नहीं पता पर उन्हें घर दामाद कहा जाता है।” रामगढ़ के पूर्व प्रधान मोहम्मद उमर के हवाले दैनिक भास्कर ने कहा है, “एक परिवार में कई बच्चे होने से आबादी लगातार बढ़ रही है। हमने होश सँभाला तब यहाँ 24 से 25 परिवार थे। हमारे तीन बेटे हैं। अभी ताे एक ही परिवार में हैं। लेकिन मेरे बाद अलग होकर तीन परिवार बन जाएँगे। गाँव में कुछ लोग बाहर से आए हैं। उन्हें घर दामाद कहते हैं।”


🚩ऑपइंडिया ने अपनी पड़ताल के पाया था कि बाॅर्डर इलाकों में घरों और दुकानों पर इस्लामी झंडों का लहराना सामान्य है। बलरामपुर जिले में बॉर्डर के 15 किलोमीटर के दायरे में 150 मदरसे चल रहे थे। मस्जिदों की संख्या 200 से अधिक थी। बलरामपुर जिले के ग्राम पंचायत अहलादडीह के ग्राम प्रधान हरीश चंद्र शर्मा ने बताया था कि 10 किमी के दायरे में 20 गाँव मुस्लिम बहुल हैं। डेमोग्राफी चेंज के कारण हिन्दू दब कर त्योहार मनाते हैं।


🚩हिंदुओं के लिए ये चेतावनी है अगर नहीं संभले तो क्या हाल होगा इन आंकड़ों से देख सकते हैं, हर हिंदू को कम से कम 4 बच्चे तो पैदा करना चाहिए नहीं तो आगे जाकर अस्तित्व बचाना ही मुश्किल हो जायेगा।


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Friday, June 23, 2023

नारी तू है महान : रानी दुर्गावती ने देश व सनातन धर्म रक्षार्थ लड़े गए 52 युद्धों में से 51 युद्ध में विजय प्राप्त की

23 June 2023

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🚩हिंदुस्तान में जब-जब भी महान और वीरांगना नारियों की वीरगाथा का जिक्र होता है,तो सबसे पहला नाम वीरांगना रानी दुर्गावती का आता है। रानी दुर्गावती वह वीर और साहसी महिला थी, जो राज्य और प्रजा की रक्षा के लिए मुगलों से युद्ध करते करते वीरगति को प्राप्त हो गई । वे बहुत ही बहादुर और साहसी महिला थीं। जिन्होंने अपने पति की मृत्यु के बाद न केवल उनका राज्य संभाला बल्कि राज्य की रक्षा के लिए कई लड़ाईयां भी लड़ी। रानी दुर्गावती ने 52 युद्धों में से 51 युद्ध में विजय प्राप्त की थी।


🚩गढ़मंडला की वीर तेजस्वी रानी दुर्गावती का नाम इतिहास के पन्नों पर स्वर्णिम अक्षरों में लिखा गया है । क्योंकि पति की मृत्यु के पश्चात भी रानी दुर्गावती ने अपने राज्य को बहुत ही अच्छे से संभाला था। इतना ही नहीं रानी दुर्गावती ने मुगल शासक अकबर के आगे कभी भी घुटने नहीं टेके थे। इस वीर महिला योद्धा ने तीन बार मुगल सेना को हराया और अपने अंतिम समय में मुगलों के सामने घुटने टेकने के जगह इन्होंने अपनी कटार से ही अपने जीवन का अन्त कर प्राण त्याग दिए । उनके इस वीरतापूर्ण बलिदान के कारण लोगों के हृदय में उनके प्रति सम्मान अमिट हो गया है।


🚩भारत में शूरवीर, बुद्धिमान और साहसी कई वीरांगनाएँ पैदा हुई । जिनके नाम से ही मुगल सल्तनत काँपने लगती थी पर दुर्भाग्य की बात यह है कि भारत के इतिहास में उनको कहीं स्थान नहीं दिया गया इसके विपरीत क्रूर, लुटेरे, बलात्कारी मुगलों व अंग्रेजो का इतिहास पढ़ाया जाता है । आज अगर सही इतिहास पढ़ाया जाए तो हमारी भावी पीढ़ी पश्चिमी संस्कृति की तरफ मुड़कर भी नही देखेगी इतना महान इतिहास है अपना।

 

🚩भारत की नारियों में अथाह सामर्थ्य है, अथाह शक्ति है। प्रत्येक नारी भारतीय संस्कृति के बताये हुए मार्ग के अनुसार अपनी छुपी हुई शक्ति को जाग्रत करके अवश्य महान बन सकती है ।


🚩 विडम्बना यह है कि आज स्वतन्त्रता और फैशन के नाम पर नारियों का शोषण किया जा रहा है। आज की पीढ़ी को ज्ञात ही नहीं कि , नारी अबला नहीं बल्कि सबला है। भारत की महान नारियों में से एक अद्भुत और अदम्य साहस सम्पंन नारी रत्न थीं , महारानी दुर्गावती देवी ।

 

🚩रानी दुर्गावती का जन्म 10 जून, 1525 को तथा हिंदु कालगणनानुसार आषाढ शुक्ल द्वितीया को चंदेल राजा कीर्ति सिंह की पुत्री के रूप में रानी कमलावती के गर्भ से हुआ । वे बाल्यावस्था से ही शूर, बुद्धिमान और साहसी थीं । उन्होंने युद्धकला का प्रशिक्षण भी बचपन से ही लिया । प्रचाप (बंदूक)   भाला, तलवार और धनुष-बाण चलाने में वह प्रवीण थी । गोंड राज्य के शिल्पकार राजा संग्राम सिंह बहुत शूरवीर तथा पराक्रमी थे । उनके सुपुत्र वीर दलपति सिंह का विवाह रानी दुर्गावती के साथ वर्ष 1542 में हुआ । वर्ष 1541 में राजा संग्राम सिंह का निधन होने से राज्य का कार्यभार वीरदलपति सिंह ही देखते थे । रानी का वैवाहिक जीवन 7-8 वर्ष अच्छे से चला और इसी कालावधि में उन्हें एक सुपुत्र भी हुआ , जिसका नाम उन्होंने वीरनारायण सिंह रखा ।

 

🚩रानी दुर्गावती ने राजवंश की बागडोर थाम ली

 

🚩राजा दलपित सिंह की मृत्यु लगभग 1550 ईसवी सदी में हुई । उस समय वीर नारायण की आयु बहुत छोटी होने के कारण, रानी दुर्गावती ने गोंड राज्य की बागडोर (लगाम) अपने हाथों में थाम ली । अधर कायस्थ एवं मन ठाकुर, इन दो मंत्रियों ने सफलतापूर्वक तथा प्रभावी रूप से राज्य का प्रशासन चलाने में रानी की मदद की । रानी ने सिंगौरगढ से अपनी राजधानी चौरागढ स्थानांतरित की । सातपुडा पर्वत से घिरे इस दुर्ग का (किले का) रणनीति की दृष्टि से बडा महत्त्व था।

 

🚩कहा जाता है , कि इस कालावधि में व्यापार बडा फूला-फला । प्रजा संपन्न एवं समृद्ध थी । अपने पति के पूर्वजों की तरह रानी ने भी राज्य की सीमा बढाई तथा बडी कुशलता, उदारता एवं साहस के साथ गोंडवन का राजनैतिक एकीकरण प्रस्थापित किया ।


🚩राज्य के 23000 गांवों में से 12000 गांवों का व्यवस्थापन उनकी सरकार करती थी । अच्छी तरह से सुसज्जित सेना में 20,000 घुडसवार तथा 1000 हाथीदल के साध बडी संख्या में पैदल सेना भी अंतर्भूत थी । रानी दुर्गावती में सौंदर्य एवं उदारता , धैर्य एवं बुद्धिमत्ता का सुंदर संगम था । अपनी प्रजा के सुख के लिए उन्होंने राज्य में कई काम करवाए तथा अपनी प्रजा का हृदय जीत लिया ।


🚩जबलपुर के निकट ‘रानीताल’ नाम का भव्य जलाशय बनवाया । उनकी पहल से प्रेरित होकर उनके अनुयायियों ने चेरीताल का निर्माण किया तथा अधर कायस्थ ने जबलपुर से तीन मील की दूरी पर अधरताल का निर्माण किया । रानी ने अपने राज्य में अध्ययन को भी बढ़ावा दिया ।


🚩शक्तिशाली राजाओं को भी युद्ध में हराया...🚩राजा दलपति सिंह के निधन के उपरांत कुछ शत्रुओं की कुदृष्टि इस समृद्धशाली राज्य पर पड़ी । मालवा के मांडलिक राजा बाजबहादुर ने विचार किया, हम एक दिन में गोंडवाना अपने अधिकार में लेंगे । उसने बडी आशा से गोंडवाना पर आक्रमण किया; परंतु रानी ने उसे पराजित किया । उसका कारण था रानी का संगठन चातुर्य । रानी दुर्गावती द्वारा बाजबहादुर जैसे शक्तिशाली राजा को युद्ध में हराने से उनकी कीर्ति सुदूर फैल गई । सम्राट अकबर के कानों तक जब बात पहुंची , तो वह चकित हो गया । रानी का साहस और पराक्रम देख उनके प्रति आदर व्यक्त करने के लिए अपनी राजसभा के विद्वान 'गोमहापात्र तथा नरहरिमहापात्र’ को रानी की राजसभा में भेज दिया । रानी ने भी उन्हें आदर तथा पुरस्कार देकर सम्मानित किया ।


🚩अकबर ने वीर नारायण सिंह को राज्य का शासक मानकर स्वीकार किया । इस प्रकार से शक्तिशाली राज्य से मित्रता बढने लगी । रानी तलवार की अपेक्षा बंदूक का प्रयोग अधिक करती थी । बंदूक से लक्ष साधने में वह अधिक दक्ष थी । ‘एक गोली एक बली’, ऐसी उनकी आखेट की पद्धति थी । रानी दुर्गावती राज्यकार्य संभालने में बहुत चतुर, पराक्रमी और दूरदर्शी थी।

 

🚩अकबर का सेनानी तीन बार रानी से पराजित

 

🚩अकबर ने वर्ष 1563 में आसफ खान नामक बलशाली सेनानी को गोंडवाना पर आक्रमण करने भेज दिया । यह समाचार मिलते ही रानी ने अपनी व्यूहरचना आरंभ कर दी । सर्वप्रथम अपने विश्वसनीय दूतों द्वारा अपने मांडलिक राजाओं तथा सेनानायकों को सावधान हो जाने की सूचनाएं भेज दीं । अपनी सेना की कुछ टुकडियों को घने जंगल में छिपा रखा और शेष को अपने साथ लेकर रानी निकल पडी । रानी ने सैनिकों को मार्गदर्शन किया । एक पर्वत की तलहटी पर आसफ खान और रानी दुर्गावती का सामना हुआ । बडे आवेश से युद्ध हुआ । मुगल सेना विशाल थी । उसमें बंदूकधारी सैनिक अधिक थे । इस कारण रानी के सैनिक मरने लगे; परंतु इतने में जंगल में छिपी सेना ने अचानक धनुष-बाण से आक्रमण कर, बाणों की वर्षा की । इससे मुगल सेना को भारी क्षति पहुंची और रानी दुर्गावती ने आसफ खान को पराजित किया । आसफ खान ने एक वर्ष की अवधि में 3 बार आक्रमण किया और तीनों ही बार वह पराजित हुआ।

 

🚩स्वतंत्रता के लिए आत्मबलिदान

 

🚩अंत में वर्ष 1564 में आसफखान ने सिंगारगढ पर घेरा डाला; परंतु रानी वहां से भागने में सफल हुई । यह समाचार पाते ही आसफ खान ने रानी का पीछा किया । पुनः युद्ध आरंभ हो गया । दोनो ओर से सैनिकों को भारी क्षति पहुंची । रानी प्राणों पर खेलकर युद्ध कर रही थीं । इतने में रानी के पुत्र वीरनारायण सिंह के अत्यंत घायल होने का समाचार सुनकर सेना में भगदड मच गई । सैनिक भागने लगे ।


🚩रानी के पास केवल 300 सैनिक थे । उन्हीं सैनिकों के साथ रानी स्वयं घायल होनेपर भी आसफ खान से शौर्य से लड रही थी । उसकी अवस्था और परिस्थिति देखकर सैनिकों ने उसे सुरक्षित स्थान पर चलने की विनती की; परंतु रानी ने कहा, ‘‘मैं युद्ध भूमि छोडकर नहीं जाऊंगी, इस युद्ध में मुझे विजय अथवा मृत्यु में से एक चाहिए ।”


🚩अंतमें घायल तथा थकी हुई अवस्था में उसने एक सैनिक को पास बुलाकर कहा, “अब हमसे तलवार घुमाना असंभव है; परंतु हमारे शरीर का नख भी शत्रु के हाथ न लगे, यही हमारी अंतिम इच्छा है । इसलिए आप भाले से हमें मार दीजिए । हमें वीरमृत्यु चाहिए और वह आप हमें दीजिए।" परंतु सैनिक यह साहस न कर सका, तो रानी ने स्वयं ही अपनी तलवार गले पर चला दी।

 

🚩वह दिन था 24 जून 1564 का । इस प्रकार युद्ध भूमि पर गोंडवाना की स्वतंत्रता के लिए अंतिम क्षण तक वो झूझती रहीं । गोंडवाना पर वर्ष 1549 से 1564 अर्थात् 15 वर्ष तक रानी दुर्गावती का अधिराज्य था, जो मुगलों ने नष्ट किया । इस प्रकार महान पराक्रमी रानी दुर्गावती की नश्वर देह का तो अंत हुआ पर उनकी महानता सदैव स्मरणीय और अनुकरणीय रहेगी । इस महान वीरांगना को हमारा कोटिशः नमन💐🙏 !


🚩आज की भारतीय नारियाँ इन आदर्श नारियों से प्रेरणा लेकर आगे बढ़ें, ऐसी हमारे देश में शिक्षा दीक्षा की रूपरेखा होनी चाहिए ।

भारत की नारियां अपने बच्चों में सदाचार, संयम आदि उत्तम संस्कारों का सिंचन करें तो वह दिन दूर नहीं,जब पूरे विश्व में सनातन धर्म की दिव्य पताका पुनः लहरायेगी।


🚩भारत की नारियों आपमें बहुत महानता छुपी है । आप चाहे तो शिवाजी, महाराणा प्रताप, गुरु गोविंद सिंह जैसे महान पुत्रों को जन्म देकर अपनी कोख को पावन कर सकती हैं। आप पाश्चात्य संस्कृति अपनाकर अपने को दिन-हीन नहीं बनाना।बल्कि ऋषि-मुनियों के बनाए नियमों को पालन कर लाभ लेना एंव परिवार को भी स्वस्थ, सुखी और सम्मानित जीवन की ओर अग्रसर करना । किन्हीं ब्रह्मवेत्ता सद्गुरु की शरण लेना एवं भगवद्गीता का ज्ञान पचाकर अपने को महान बनाना।


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