Wednesday, July 5, 2023

ऐसा किसी भी देश में न्याय नही होगा जो भारत में हो रहा है..

5 July 2023

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🚩तथाकथित बुद्धिजीवियों के एक बहुत बड़े वर्ग से सुनने को मिलता है कि “कानून अपना काम कर रहा है”, “कानून सबके लिए समान है” , लेकिन वास्तव में क्या कानून सबके लिए एक है कि नहीं या क़ानून के कुछ रखवालें केवल समान बोलतें ही हैं कि उसका पालन भी करते हैं या नहीं, यह आपको जानना चाहिए।


🚩गुजरात हाईकोर्ट ने प्रोपेगंडा एक्टिविस्ट तीस्ता सीतलवाड़ की जमानत याचिका रद्द करते हुए उन्हें तुरंत आत्मसमर्पण करने का आदेश सुनाया। हालाँकि, उसी दिन शाम को इसी मामले पर सुप्रीम कोर्ट बैठी और मामले को बड़े बेंच को हस्तानांतरित कर दिया। रात को फिर सुनवाई हुई और तीस्ता सीतलवाड़ को एक सप्ताह की राहत प्रदान कर दी गई। अब सुप्रीम ने इसकी अवधि भी बढ़ा दी है। अगली सुनवाई 19 जुलाई 2023 को होगी। उन पर आरोप है कि उन्होंने 2002 में हुए गुजरात दंगों में निर्दोषों को फँसाने के लिए साजिश रची और जानबूझकर झूठे सबूत पेश करवाए।


🚩127 पन्नों के आदेश में जस्टिस निर्जर देसाई ने कहा कि अगर तीस्ता सीतलवाड़ को बेल दे दी जाती है तो इससे सांप्रदायिक ध्रुवीकरण बढ़ेगा और सामुदायिक वैमनस्य और गहरा होगा।


🚩गुजरात के तत्कालीन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत कई भाजपा नेताओं और अधिकारियों को फँसाने की साजिश तीस्ता सीतलवाड़ ने रची थी। गुजरात उच्च न्यायालय ने स्पष्ट कहा कि तीस्ता सीतलवाड़ ने पीड़ितों और और गवाहों का अपने फायदे के लिए सीढ़ी की तरह इस्तेमाल किया। हाईकोर्ट ने ये भी पाया कि एक समुदाय विशेष की भावनाओं का इस्तेमाल कर के तीस्ता सीतलवाड़ ने पैसे जुटाए और इन पैसों का इस्तेमाल पीड़ितों के लिए नहीं किया। तीस्ता सीतलवाड़ ने कभी न्याय और शांति के लिए काम नहीं किया। इसमें रईस खान नामक एक व्यक्ति ने उनका सहयोग किया। तीस्ता ने एक BBC पत्रकार के साथ मिल कर पीड़ितों के कानों में ज़हर भरा।


🚩समान कानून की बात करने वाले न्यायलय के कुछ लोग जब एक लड़की षड्यंत्र के तहत 87 वर्षीय हिंदू संत आशाराम बापू 10 साल से 1 दिन भी जमानत नही दी जबकि उनके केस में ट्रायल 5 साल तक चला था, ट्रायल के समय भी उनको जमानत नही जबकि बीच मे उनके बहन-भांजे आदि की मौत भी हुई और उनकी धर्मपत्नी और उनकी स्वयं तबियत खराब भी हुई फिर हुई जमानत नही दी गई।

 

🚩बापू आशारामजी धर्मान्तरण को रोक रहे थे, उन्होंने ऐसा एक अभियान चलाया था, करोड़ों लोगों को सनातन धर्म की महिमा बताई, लाखों हिंदुओं की घर वापसी करवाई, आदिवासी क्षेत्रों में जाकर उनको घर व जीवनोपयोगी सामग्री दी, पैसे दिए इसके कारण धर्मान्तरण का धंधा कम होने लगा जिसके कारण उनको जेल में जाना पड़ा और न्यायालय ने 1 दिन भी जमानत नही दी, अगर बापू आशारामजी धर्मान्तरण रोकने का गुनाह नही करते तो वे भी आज बाहर होते।


🚩कानून को देखो नेता राहूल गांधी, सोनिय गांधी, अभिनेता सलमान खान, पत्रकार तरुण तेजपाल, टुकड़े टुकड़े गैंग के कन्हैया कुमार, उमर खालिद दिल्ली दंगा भड़काने में मुख्य साजिशकर्ता सफूरा जरगर, कोरोना फैलाने वाले मौलाना साद को तुंरत जमानत हासिल हो जाती है लेकिन धर्मान्तरण पर रोक लगाने वाले दारा सिंह 22 साल से ओडिशा की जेल में बंद हैं। 87 वर्षीय हिंदू संत आशारामजी बापू 10 साल से जेल में बंद है जबकि उनको षडयंत्र तहत फसाने के कई प्रमाण भी हैं फिर भी उनको आज तक जमानत हासिल नही हुई क्या हिंदुस्तान में हिंदू हित की बात करना भी अपराध हो गया है?

 

🚩आपको बता दें कि जिस केस में हिंदू संत आशारामजी बापू को सेशन कोर्ट ने सजा सुनाई है लेकिन जब उनके केस पढ़ते है तो उसमें साफ है कि जिस समय आरोप लगाने वाली लड़की ने तथाकथित घटना बताई है उससे तो साफ होता है कि वे उस समय अपने मित्र से फोन पर बात कर थी उसकी कॉल डिटेल भी है और आशारामजी बापू एक कार्यक्रम में थे वहां पर 50-60 लोग भी मौजूद थे उन्होंने भी गवाही दी है और मेडिकल रिपोर्ट में भी लड़की को एक खरोच तक नही आई है  और एफआईआर में भी बलात्कार का कोई उल्लेख नही है केवल छेड़छाड़ का आरोप है। फिर भी सजा देना कितना बड़ा साजिस होगी?

 

🚩आपको ये भी बता दें कि बापू आशारामजी आश्रम में एक फेक्स भी आया था उसमें उन्होंने साफ लिखा था कि 50 करोड़ दो नही तो लड़की के केस में जेल जाने के लिए तैयार रहो।

https://twitter.com/SanganiUday/status/1053870700585377792?s=19

 

🚩बता दें कि स्वामी विवेकानंद जी के 100 साल बाद शिकागो में विश्व धर्मपरिषद में भारत का नेतृत्व हिंदू संत आसाराम बापू ने किया था। बच्चों को भारतीय संस्कृति के दिव्य संस्कार देने के लिए देश मे 17000 बाल संस्कार खोल दिये थे, वेलेंटाइन डे की जगह मातृ-पितृ पूजन शुरू करवाया, क्रिसमस की जगह तुलसी पूजन  शुरू करवाया, वैदिक गुरुकुल खोलें, करोड़ो लोगों को व्यसनमुक्त किया, ऐसे अनेक भारतीय संस्कृति के उत्थान के कार्य किये हैं जो विस्तारसे नहीं बता पा रहे हैं। इसके कारण आज वे जेल में हैं और जमानत हासिल नही हो रही है अब हिन्दू समाज को जागरूक होकर उनकी रिहाई करवानी चाहिए।


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Tuesday, July 4, 2023

नेताजी ने क्यों और कैसे की आजाद हिंद सेना की स्थापना ?

4 July 2023

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🚩भारत का सबसे श्रद्धेय स्वतंत्रता सेनानी माने जाने वाले सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 को हुआ था। उन्होंने आजाद हिंद फौज के नाम से पहला भारतीय सशस्त्र बल बनाया था। उनके प्रसिद्ध नारे 'तुम मुझे खून दो, मैं तूम्हें आजादी दूंगा' ने स्वतंत्रता के लिए संघर्ष कर रहे उन तमाम भारतीयों के दिल में देशभक्ति पैदा कर दी थी। आज भी ये शब्द भारतीयों को प्रेरणा देते हैं।


🚩सुभाष चंद्र बोस देश के उन महानायकों में से एक हैं और हमेशा रहेंगे, जिन्होंने आजादी की लड़ाई के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया। सुभाष चंद्र बोस के संघर्षों और देश सेवा के जज्बे के कारण ही महात्मा गांधी ने उन्हें देशभक्तों का देशभक्त कहा था। महानायक सुभाष चंद्र बोस को 'आजादी का सिपाही' के रूप में देखा जाता है।


🚩अंग्रेजों को परास्त करने के लिए भारत की स्वतंत्रता संग्राम की अंतिम लडाई का नेतृत्व नियती ने नेताजी के हाथों सौंपा था । नेताजी ने यह पवित्र कार्य असीम साहस एवं तन, मन, धन तथा प्राण का त्याग करने में तत्पर रहने वाले हिंदी सैनिकों की ‘आजाद हिंद सेना’ संगठन द्वारा पूर्ण किया ।


🚩भारत की स्वतंत्रता संग्राम में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले आजाद हिंद सेना का 5 जुलाई 1943 को गठन हुआ था । आजाद हिंद सेना के संस्थापक नेताजी सुभाषचंद्र बोस थे ।


🚩ब्रिटिश सेना के हिंदी सैनिकों का नेताजी ने बनाया संगठन


🚩अंग्रेजों की स्थान बद्धता से भाग जाने पर नेताजी ने फरवरी 1943 तक जर्मनी में ही वास्तव्य किया । वे जर्मन सर्वसत्ताधीश हिटलर से अनेक बार मिले और उसे हिंदुस्थान की स्वतंत्रता के लिए सहायता का आवाहन भी किया ।


🚩दूसरे महायुद्ध में विजय की ओर मार्गक्रमण करने वाले हिटलर ने नेताजी को सर्व सहकार्य देना स्वीकार किया । उस अनुसार उन्होंने जर्मनी की शरण में आए अंग्रेजों की सेना के हिंदी सैनिकों का प्रबोधन करके उनका संगठन बनाया । नेताजी के वहां के भाषणों से हिंदी सैनिक देशप्रेम में भाव विभोर होकर स्वतंत्रता के लिए प्रतिज्ञाबद्ध हो जाते थे ।


🚩आजाद हिंदी सेना की स्थापना और ‘चलो दिल्ली’का नारा


🚩पूर्व एशियाई देशों में जर्मनी का मित्रराष्ट्र जापान की सेना ब्रिटिश सेना को धूल चटा रही थी । उनके पास भी शरण आए हुए, ब्रिटिश सैना के हिंदी सैनिक थे । नेताजी के मार्गदर्शनानुसार वहां पहले से ही रहने वाले रास बिहारी बोसने हिंदी सेना का संगठन किया ।


🚩इस हिंदी सेना से मिलने नेताजी 90 दिन पनडुब्बी से यात्रा करते समय मृत्यु से जूझते जुलाई वर्ष 1943 में जापान की राजधानी टोकियो पहुंचे। रास बिहारी बोस जी ने इस सेना का नेतृत्व नेताजी के हाथों सौंप दिया । 5 जुलाई 1943 को सिंगापुर में नेताजी ने ‘आजाद हिंद सेना’की स्थापना की ।


🚩उस समय सहस्रों सैनिकों के सामने ऐतिहासिक भाषण करते हुए वे बोले, ‘‘सैनिक मित्रों ! आपकी युद्ध घोषणा एक ही रहे ! चलो दिल्ली ! आपमें से कितने लोग इस स्वतंत्रता युद्ध में जीवित रहेंगे, यह तो मैं नहीं जानता,परन्तु मैं इतना अवश्य जानता हूं कि अंतिम विजय अपनी ही है। इसलिए उठो और अपने अपने शस्त्रास्त्र लेकर सुसज्ज हो जाओ । हमारे भारत में आपसे पहले ही क्रांतिकारियो ने हमारे लिए मार्ग बना रखा है और वही मार्ग हमें दिल्ली तक ले जाएगा । ….चलो दिल्ली ।”


🚩भारत के अस्थायी शासन की प्रमुख सेना सहस्रों सशस्त्र हिंदी सैनिकों की सेना सिद्ध होने पर और पूर्व एशियाई देशों की लाखों हिंदी जनता का भारतीय स्वतंत्रता को समर्थन मिलने पर नेताजी ने 21 अक्टूबर 1943 को स्वतंत्र हिंदुस्थान का दूसरा अस्थायी शासन स्थापित किया । इस अस्थायी शासन को जापान, जर्मनी, चीन, इटली, ब्रह्मदेश आदि देशों ने उनकी मान्यता घोषित की ।


🚩इस अस्थायी शासन का आजाद हिंद सेना, यह प्रमुख सेना बन गई ! आजाद हिंद सेना में सर्व जाति-जनजाति, अलग-अलग प्रांत, भाषाओं के सैनिक थे । सेना में एकात्मता की भावना थी । ‘कदम कदम बढाए जा’, इस गीत से समरस होकर नेताजी ने तथा उनकी सेना ने आजाद हिंदुस्थान का स्वप्न साकार करने के लिए विजय यात्रा आरंभ की ।


🚩‘रानी ऑफ झांसी रेजिमेंट’की स्थापना नेताजी ने झांसी की रानी रेजिमेंट के पदचिन्हों पर महिलाओं के लिए ‘रानी ऑफ झांसी रेजिमेंट’की स्थापना की । पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर महिलाओं को भी सैनिक प्रशिक्षण लेना चाहिए, इस भूमिका पर वे दृढ रहे । नेताजी कहते, हिंदुस्थान में 1857 के स्वतंत्रता युद्ध में लडनेवाली झांसी की रानी का आदर्श सामने रखकर महिलाओं को भी स्वतंत्रता संग्राम में अपना सक्रिय योगदान देना चाहिए ।


🚩आजाद हिंद सेना द्वारा धक्का🚩आजाद हिंद सेना का ब्रिटिश सत्ता के विरोध में सैनिकी आक्रमण आरंभ होते ही जापान का सत्ताधीश जनरल टोजो ने इंग्लैंड से जीते हुए अंदमान एवं निकोबार ये दो द्वीप आजाद हिंद सेना के हाथों सौंप दिए । 29 दिसंबर 1943 को स्वतंत्र हिंदुस्थान के प्रमुख होने के नाते नेताजी अंदमान गए और अपना स्वतंत्र ध्वज वहां लहराकर सेल्युलर कारागृह में दंड भोग चुके क्रांतिकारियो कों आदरांजली समर्पित की । जनवरी 1944 में नेताजी ने अपनी सशस्त्र सेना ब्रह्मदेश में स्थलांतरित की ।


🚩19 मार्च 1944 के ऐतिहासिक दिन आजाद हिंद सेना ने भारत की भूमि पर कदम रखा । इंफाल, कोहिमा आदि स्थानों पर इस सेना ने ब्रिटिश सेना पर विजय प्राप्त की । इस विजयनिमित्त 22 सितंबर 1944 को किए हुए भाषण में नेताजी ने गर्जना की कि, ‘‘अपनी मातृभूमि स्वतंत्रता की मांग कर रही है ! इसलिए मैं आज आपसे आपका रक्त मांग रहा हूं । केवल रक्त से ही हमें स्वतंत्रता मिलेगी । तुम मुझे अपना रक्त दो । मैं तुमको स्वतंत्रता दूंगा !” (‘‘दिल्ली के लाल किले पर तिरंगा लहराने के लिए तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हे आजादी दूंगा”) यह भाषण इतिहास में अजर अमर हुआ । उनके इन हृदय झकझोर देनेवाले उद्गारों से उपस्थित हिंदी युवाओं का मन रोमांचित हुआ और उन्होंने अपने रक्त से प्रतिज्ञा लिखी ।


🚩‘चलो दिल्ली’का स्वप्न अधूरा; परंतु ब्रिटिशों को झटका


🚩मार्च 1945 से दोस्त राष्ट्रों के सामने जापान की पराजय होने लगी । 7 मई 1945 को जर्मनी ने बिना किसी शर्त के शरणागति स्वीकार ली, जापान ने 15 अगस्त को शरणागति की अधिकृत घोषणा की । जापान-जर्मनी के इस अनपेक्षित पराजय से नेताजी की सर्व आकांक्षाएं धूमिल हो गइं । ऐसे में अगले रणक्षेत्र की ओर अर्थात् सयाम जाते समय 18 अगस्त 1945 को फार्मोसा द्वीप पर उनका बॉम्बर विमान गिरकर उनका हदयद्रावक अंत हुआ ।


🚩आजाद हिंद सेना दिल्ली तक नहीं पहुंच पाई; परंतु उस सेना ने जो प्रचंड आवाहन् बलाढ्य ब्रिटिश साम्राज्य के सामने खडा किया, इतिहास में वैसा अन्य उदाहरण नहीं । इससे ब्रिटिश सत्ता को भयंकर झटका लगा । हिंदी सैनिकों के विद्रोह से आगे चलकर भारत की सत्ता अपने अधिकार में रखना बहुत ही कठिन होगा, इसकी आशंका अंग्रेजों को आई । चतुर और धूर्त अंग्रेज शासन ने भावी संकट ताड लिया । उन्होंने निर्णय लिया कि पराजित होकर जाने से अच्छा है हम स्वयं ही देश छोडकर चले जाएं । तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री ने अपनी स्वीकृति दे दी।


🚩ब्रिटिश भयभीत हो गए और नेहरू भी झुके


🚩स्वतंत्रता के लिए सर्वस्व अर्पण करने वाली नेताजी की आजाद हिंद सेना को संपूर्ण भारत वासियों का उत्स्फूर्त समर्थन प्राप्त था । नेताजी ने ब्रिटिश-भारत पर सशस्त्र आक्रमण करने की घोषणा की, तब पंडित नेहरू ने उनका विरोध किया; परंतु नेताजी की एकाएक मृत्यु के उपरांत आजाद हिंद सेना के सेनाधिकारियों पर अभियोग चलते ही, संपूर्ण देश से सेना की ओर से लोकमत प्रकट हुआ ।


🚩सेना की यह लोकप्रियता देखकर अंत में नेहरू को झुकना पडा, इतना ही नहीं उन्होंने स्वयं सेना के अधिकारियों का अधिवक्तापत्र (वकीलपत्र) लिया । अंततः आरोप लगाए गए सेना के 3 सेनाधिकारी सैनिक न्यायालय के सामने दोषी ठहराए गए; परंतु उनका दंड क्षमा कर दिया; क्योंकि अंग्रेज सत्ताधीशों की ध्यान में आया कि, नेताजी के सहयोगियों को दंड दिया, तो 90 वर्षों में लोक क्षोभ उफन कर आएगा । आजाद हिंद सेना के सैनिकों की निस्वार्थ देश सेवा से ही स्वतंत्रता की आकांक्षा कोट्यवधी देशवासियों के मन में निर्माण हुई ।


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Monday, July 3, 2023

हिन्दू मैरिज एक्ट 1955

3 July 2023

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🚩300 सालों की राजशाही में अंग्रेजो ने देखा था , कि जिस देश के पुरुष अपनी नारियों की रक्षा के लिए अपने शीश कटवाने से भी नहीं हिचकते और जिस देश की नारी अपने पुरुष की आन-बान और शान के लिए खुद को अग्नि की लपटों में भी स्वाहा करने से नहीं डरतीं , उन सनातन धर्मी पुरुष और स्त्रियों के इस प्यार, बलिदान और त्याग के चलते भारत देश को कोई तोड़ नहीं पायेगा ।

🚩अंग्रेज समझ गये थे , कि भारतीय परिवार और समाज इसी प्रकार अक्षुण्ण रहेंगे और सनातन फलता फूलता रहेगा। अपने आराध्य शिव शंकर को अर्धनारीश्वर रूप में पूजने वाले और पति-पत्नी के जोड़े को शिव-पार्वती स्वरुप में निहारने वाले इस समाज में स्त्री-पुरुष के बीच नफरत की बड़ी खाई पैदा किए बिना , भारत को तोड़ना और सनातन धर्म को नष्ट करना संभव नहीं था।


🚩अंग्रेज समझ गये थे , कि सनातनधर्म को नष्ट करना है तो भारत की स्त्रियों और पुरुषों के बीच अहंकार और नफरत की दरार खीचनी ही होगी और इनको चारित्रिक पतन की खाई में धकेलना ही होगा।


🚩अंग्रेजो को पश्चाताप हो रहा था अपनी ही 300 वर्ष पुरानी नीति पर।


🚩उनको पश्चाताप था कि 300 साल पहले ही भारत को अपना गुलाम बनाने के बाद उन्होंने भारतीय हिन्दुओं को क्यूँ उनके "धर्मशास्त्र" कहे जाने वाले मनुस्मृति, नारदस्मृति, विष्णु स्मृति, याज्ञवलक्य स्मृति, प्रसारा स्मृति, अपस्थाम्बा के धर्मसूत्र, गौतम के धर्मसूत्र, गुरु वशिष्ठ के धर्मसूत्र, कल्पसूत्रों, वेदों और वेदांगों के आधार पर अपने परिवार, समाज और वैवाहिक संबंधों की स्थापना करने देने का अधिकार यथावत रहने दिया ! क्यूँ उसको उसी समय छिन्न-छिन्न नहीं कर दिया !


🚩शायद पाठकों को यहाँ बताना उचित होगा , कि भारत में अपना वर्चस्व स्थापित करने के बाद अंग्रेजों के सामने यह एक बड़ा प्रश्न आया था , कि भारतीय सनातनियों के समाज का सञ्चालन कैसे हो ? भारत के मुस्लिम समाज का सञ्चालन कैसे हो ? इनकी परिवार व्यवस्था कैसे तय की जाये और न्याय व्यवस्था कैसी हो?  सही मायनों में तो इन व्यवस्थाओं में अंग्रेज इंटरेस्टेड थे ही नहीं...। उनको तो बस व्यापार करना था और अधिक से अधिक पैसा कमाना था । फिर भी समाज को चलाना भी तो था ही, कोर्ट कचहरी बनाकर अपने जज बैठाने तो थे ।



🚩तो उस वक्त उन्होंने सोचा , कि जो जैसा है वैसे ही रहने दिया जाए और इस कार्य में ज्यादा माथा पच्ची और टाइम वेस्ट न किया जाए। इसलिए उन्होंने पुरातन सनातनी समाज एवं पारिवारिक व्यवस्थाओं को ज्यों का त्यों चलने दिया था। भारतीय सनातनी समाज के आधार "धर्मशास्त्र" में दी गयी व्यवस्थाओं को कानून मानकर अंग्रेजों ने उनको "हिन्दू लॉ" का नाम दिया और और मुसलमानों के लिए मुस्लिम तानाशाह औरंगजेब के समय में लिखे गये "फतवा-ए-आलमगीरी" को मुसलमानों के समाज का कानून मानकर "मुस्लिम पर्सनल लॉ" का नाम दिया गया और इन कानूनों को भारत में लागू कर दिया गया।


🚩यहाँ उल्लेखनीय है , कि पुरातन सनातनी सामाजिक व्यवस्था को तो नेहरु के #हिन्दू_मैरिज_एक्ट ने समाप्त कर दिया । किन्तु मुसलमानों के लिए वही "फतवा-ए-आलमगीरी" का शैतानी "#मुस्लिम_पर्सनल_लॉ" देश में आज तक लागू है।


🚩इस जहर बुझे हुए "फतवा-ए-आलमगीरी" और इसकी व्यवस्थाओं और धारणाओं पर चर्चा किसी अन्य लेख में विस्तार से करूँगा, किन्तु यहाँ यह समझ लेना आवश्यक है , कि यही वह "फतवा-ए-आलमगीरी" था , जिसके अनुसार सच्चे मुसलामान के लिए गुलाम और काफ़िर औरतों (जो युद्ध में हार गये सनातनी हिन्दुओं की औरते ही होती थी) के साथ बलात्कार करना एक धार्मिक कृत्य कहा गया था (जिसका जिक्र आज भी कुछ मुस्लिम मुल्ले मौलवी अपने फतवों में यदा कदा करते रहते हैं) |


🚩तो कहने का तात्पर्य है , कि अंग्रेजों के लगभग तीस सौ साल की राजशाही के दौरान पुरातन भारतीय सामाजिक व्यवस्था 'हिन्दू लॉ' अर्थात "धर्मशास्त्रों" की अवधारणाओं और व्यवस्थाओं के अनुसार ही चलती रही थी किन्तु 1941 आते आते अंग्रेज समझ गये थे , कि अगर हिन्दुस्तान को सही मायने में पंगु बनाना है , तो अंतिम प्रहार इसी पुरातन सनातनी पारिवारिक व्यवस्था पर करना होगा । हानि हिन्दुओं के "धर्मशास्त्र" की करनी होगी, तभी सनातन धर्म की वास्तविक हानि हो सकेगी और भारत का मजबूत समाज सदा के लिए पंगु बन सकेगा...।


🚩अंग्रेज समझ गये थे , कि इन सनातनी हिन्दुओं के ऊँचे चरित्र का मूल कारण इसके धर्मशास्त्र में वर्णित "आचार", "विचार" और "प्रायश्चित" जैसे महान तत्वों का हिन्दुओं के दैनिक जीवन में समावेश था।


🚩अंग्रेजो का अगला कदम इसी आचार, विचार और प्रायश्चित की भावना पर प्रहार करके इसको नष्ट करना था। #हिन्दुओं_की_वैवाहिक_व्यवस्थाओं_को_छिन्न_भिन्न करना था। सनातन के स्त्री और पुरुष के अर्धनारीश्वर रूप को सदा के लिए हिन्दुओं के दिलो-दिमाग से मिटाकर के नष्ट कर देना था।

🚩फिर क्या था अंग्रेजो की योजना का चौथा और अंतिम चरण...

"सनातनी धर्मशास्त्र सम्मत पारिवारिक व्यवस्था का पूर्ण विनाश" प्रारंभ हो गया।


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Sunday, July 2, 2023

गुरुपूर्णिमा कब से शुरू हुई ? मनुष्यों के लिए गुरु पूर्णिमा क्यों महत्वपूर्ण है ? जानिए........

*2 July 2023*

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*🚩भारतीय संस्कृति में सद्गुरु का बड़ा ऊँचा स्थान है । भगवान स्वयं भी अवतार लेते हैं तो गुरु की शरण जाते हैं । भगवान श्रीकृष्ण गुरु सांदीपनि जी के आश्रम में सेवा तथा विद्या अभ्यास करते थे । भगवान श्रीराम गुरु वसिष्ठजी के चरणों में बैठकर सत्संग सुनते थे । ऐसे महापुरुषों के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए तथा उनकी शिक्षाओं का स्मरण करके उसे अपने जीवन मे लाने के लिए इस पवित्र पर्व ‘गुरुपूर्णिमा’ को मनाया जाता है ।*


*🚩भारत में अनादिकाल से आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरुपूर्णिमा पर्व के रूप में मनाया जाता रहा है। गुरुपूर्णिमा का त्यौहार सभी के लिए है । भौतिक सुख-सुविधाओं  के साथ-साथ ईश्वरीय आनंद, शांति और ज्ञान प्रदान करने वाले महाभारत, ब्रह्मसूत्र, श्रीमद्भागवत आदि महान ग्रंथों के रचयिता महापुरुष भगवान वेदव्यासजी का मानव सदैव ऋणी रहेगा ।*


*🚩भगवान वेदव्यास ने वेदों का संकलन किया, 18 पुराणों और उपपुराणों की रचना की । ऋषियों के बिखरे अनुभवों को समाजभोग्य बना कर व्यवस्थित किया । पंचम वेद ‘महाभारत’ की रचना आषाढी पूर्णिमा के दिन पूर्ण की और विश्व के सुप्रसिद्ध और प्रथम आर्ष ग्रंथ ब्रह्मसूत्र का लेखन इसी दिन आरंभ किया । तब देवताओं ने वेदव्यासजी का पूजन किया । तभी से व्यासपूर्णिमा मनायी जा रही है । इस दिन जो शिष्य ब्रह्मवेत्ता सदगुरु के श्रीचरणों में पहुँचकर संयम-श्रद्धा-भक्ति से उनका पूजन करता है उसे वर्षभर के पर्व मनाने का फल मिलता है ।*


*🚩आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को गुरुपूर्णिमा एवं व्यासपूर्णिमा कहते हैं । गुरुपूर्णिमा गुरुपूजन का दिन है । गुरुपूर्णिमा का एक अनोखा महत्त्व भी है । अन्य दिनों की तुलना में इस तिथि पर गुरुतत्त्व सहस्र गुना कार्यरत रहता है । इसलिए इस दिन किसी भी व्यक्ति द्वारा जो कुछ भी अपनी साधना के रूप में किया जाता है, उसका फल भी उसे सहस्र गुना अधिक प्राप्त होता है । इस साल 3 जुलाई को गुरुपूर्णिमा का पर्व है।*


*🚩गुरु का महत्त्व-*


*🚩गुरुदेव वे हैं, जो साधना बताते हैं, साधना करवाते हैं एवं आनंद की अनुभूति प्रदान करते हैं । गुरु का ध्यान सिर्फ़ शिष्य के भौतिक सुख की ओर नहीं, अपितु उसकी आध्यात्मिक उन्नति पर विशेष रूप से होता है । गुरु ही शिष्य को साधना करने के लिए प्रेरित करते हैं, चरण दर चरण साधना करवाते हैं, साधना में उत्पन्न होनेवाली बाधाओं को दूर करते हैं, साधना में टिकाए रखते हैं एवं पूर्णत्व की ओर ले जाते हैं । गुरु के संकल्प के बिना आत्म लाभ कर पाना असंभव है । इसके विपरीत गुरु की प्राप्ति हो जाए, तो यह उतना ही सुलभ हो जाता है । श्री गुरुगीतामें ‘गुरु’ संज्ञा की उत्पत्ति का वर्णन इस प्रकार किया गया है-*


*गुकारश्चान्धकारो हि रुकारस्तेज उच्यते ।*

*अज्ञानग्रासकं ब्रह्म गुरुरेव न संशयः ।।*

                *– श्री गुरुगीता अध्याय 1. श्लोक 33.*


*🚩अर्थ ::*

*‘गु’ शब्द का अर्थ है अंधकार ( अज्ञान ) एवं ‘रु’ शब्द का अर्थ है  प्रकाश ( ज्ञान )।अज्ञान को नष्ट करने वाला जो ब्रह्मरूप प्रकाश है वह गुरु हैं, इसमें कोई संशय नहीं है ।*


*इससे ज्ञात होगा कि साधकके जीवनमें गुरुका महत्त्व अनन्य है । इसलिए ब्रह्मनिष्ठ गुरु की प्राप्ति ही साधक का प्रथम ध्येय होता है । गुरुप्राप्ति से ही ईश्वरप्राप्ति होती है अथवा यूं कहें कि गुरुप्राप्ति होना ही ईश्वरप्राप्ति है, ईश्वरप्राप्ति अर्थात मोक्षप्राप्ति- मोक्षप्राप्ति अर्थात निरंतर आनंदावस्था । गुरु हमें इस अवस्था तक पहुंचाते हैं । शिष्य को जीवन-मुक्त करने वाले गुरुके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए गुरुपूर्णिमा मनाई जाती है ।*


*🚩गुरुपूर्णिमा का अध्यात्मिक ( शास्त्रीय ) महत्त्व-*


*🚩इस दिन गुरुस्मरण करने पर शीघ्र आध्यात्मिक उन्नति होने में सहायता होती है । इस दिन गुरु का तारक चैतन्य वायुमंडल में कार्यरत रहता है । गुरुपूजन करनेवाले जीव को इस चैतन्य का लाभ मिलता है । गुरुपूर्णिमा को व्यासपूर्णिमा भी कहते हैं। गुरुपूर्णिमा पर सर्वप्रथम व्यासपूजन किया जाता है ।*


*🚩शास्त्र वचन है – व्यासोच्छिष्टम् जगत् सर्वंम् । इसका अर्थ है, विश्व का ऐसा कोई विषय नहीं, जो महर्षि व्यासजी का उच्छिष्ट ( जूठन ) नहीं है अर्थात कोई भी विषय महर्षि व्यासजी द्वारा अनछुआ नहीं है । महर्षि व्यासजी ने चारों वेदों का वर्गीकरण किया । उन्होंने अठारह पुराण,उप-पुराण और महाभारत इत्यादि ग्रंथों की रचना की । महर्षि व्यासजी के कारण ही समस्त ज्ञान हमतक पहुंच पाया । इसीलिए महर्षि व्यासजी को ‘आदिगुरु’ भी कहा जाता है । ऐसी मान्यता है , कि उन्हीं से गुरु-परंपरा आरंभ हुई । आद्यशंकराचार्यजी को भी महर्षि व्यासजी का अवतार मानते हैं ।*


*🚩गुरुपूजन का पर्व-*

*🚩गुरुपूर्णिमा अर्थात् गुरु के पूजन का पर्व ।*

*गुरुपूर्णिमा के दिन छत्रपति शिवाजी भी अपने गुरु का विधि-विधान से पूजन करते थे।*


*🚩वर्तमान में सब लोग अगर गुरु को नहलाने लग जायें, तिलक करने लग जायें, हार पहनाने लग जायें तो यह संभव नहीं है। लेकिन षोडशोपचार की पूजा से भी अधिक फल देने वाली मानस पूजा करने से तो भाई ! स्वयं गुरु भी नही रोक सकते। मानस पूजा का अधिकार तो सबके पास है।*



*🚩”गुरुपूर्णिमा के पावन पर्व पर मन-ही-मन हम अपने गुरुदेव की पूजा करते हैं…. मन-ही-मन गुरुदेव को कलश भर-भरकर गंगाजल से स्नान कराते हैं…. मन-ही-मन उनके श्रीचरणों को पखारते हैं…. परब्रह्म परमात्मस्वरूप श्रीसद्गुरुदेव को वस्त्र पहनाते हैं…. सुगंधित चंदन का तिलक करते है…. सुगंधित गुलाब और मोगरे की माला पहनाते हैं…. मनभावन सात्विक प्रसाद का भोग लगाते हैं…. मन-ही-मन धूप-दीप से गुरु की आरती करते हैं….”*


*🚩इस प्रकार हर शिष्य मन-ही-मन अपने दिव्य भावों के अनुसार अपने सद्गुरुदेव का पूजन करके गुरुपूर्णिमा का पावन पर्व मना सकता है। करोड़ों जन्मों के माता-पिता, मित्र-सम्बंधी जो न दे सके, सद्गुरुदेव वह हँसते-हँसते दे डालते हैं।*


*🚩सत्शिष्य की प्रार्थना*


*🚩’हे गुरुपूर्णिमा ! हे व्यासपूर्णिमा ! तू कृपा करना…. गुरुदेव के साथ मेरी श्रद्धा की डोर कभी टूटने न पाये…. मैं प्रार्थना करता हूँ गुरुवर ! आपके श्रीचरणों में मेरी श्रद्धा बनी रहे…..*


*🚩आजकल के विद्यार्थी बडे़-बडे़ प्रमाणपत्रों के पीछे पड़ते हैं लेकिन प्राचीन काल में विद्यार्थी संयम-सदाचार का व्रत-नियम पाल कर वर्षों तक गुरु के सान्निध्य में रहकर बहुमुखी विद्या अर्जित करते थे। भगवान श्रीराम वर्षों तक गुरुवर वशिष्ठजी के आश्रम में रहे थे। वर्त्तमान का विद्यार्थी अपनी पहचान बड़ी-बड़ी डिग्रियों से देता है, जबकि पहले के शिष्यों में पहचान की महत्ता वह किसका शिष्य है इससे होती थी। आजकल तो संसार का कचरा खोपडी़ में भरने की आदत हो गयी है। यह कचरा ही मान्यताएँ, कृत्रिमता तथा राग-द्वेषादि बढा़ता है और अंत में ये मान्यताएँ ही दुःख में बढा़वा करती हैं। अतः मनुष्य को चाहिये कि वह सदैव जागृत रहकर सत्पुरुषों के सत्संग, सान्निध्य में रहकर परम तत्त्व परमात्मा को पाने का परम पुरुषार्थ करता रहे।*


*🚩संत गुलाबराव महाराजजी से किसी पश्चिमी व्यक्ति ने पूछा, ‘भारत की ऐसी कौन सी विशेषता है, जो न्यूनतम शब्दों में बताई जा सकती है ?’ तब महाराजजी ने कहा, ‘गुरु-शिष्य परंपरा’ ।*

*इससे हमें इस परंपराका महत्त्व समझ में आता है । ऐसी परंपरा के दर्शन करवाने वाला पर्व, युगों-युगों से मनाया जाने वाला पर्व है  गुरुपूर्णिमा ! हमारे जीवन में गुरुका क्या स्थान है, गुरुपूर्णिमा हमें इसका स्पष्ट पाठ पढ़ाती है ।*


*🚩आज भारत देश में महान संतों पर आघात किया जा रहा है, अत्याचार किया जा रहा है, जिन संतों ने हमेशा देश का मंगल चाहा है । जो भारत का उज्जवल भविष्य देखना चाहते हैं..... आज उन्ही संतों को टारगेट किया जा रहा है ।*

*भारत में थोड़ी बहुत जो सुख-शांति, चैन- अमन और सुसंस्कार बचे हुए हैं वो सब हमारे संतजनों के कारण ही हैं और संतों, गुरुओं को चाहने और मानने वाले शिष्यों के कारण ही हैं ।*


*🚩लेकिन उन्ही संतों पर षड़यंत्र करके भारतवासियों की श्रद्धा के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है ।*


*”🚩भारतवासियों को ही गुमराह करके संतों के प्रति भारतवासियों की आस्था को तोड़ा जा रहा है ।”*

*अतः देशविरोधी तत्वों से सावधान रहें ।*


*ओम् श्री गुरुभ्यो नमः💐 🙏*


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Saturday, July 1, 2023

हाइकोर्ट : कुरान पर गलत तथ्यों के साथ एक छोटी सी डॉक्यूमेंट्री बनाओ और देखो क्या होता हैं

1 July 2023

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🚩बॉलीवुड में एक खास धड़ा इसी पर काम कर रहा है, उन्हें पक्का यकीन है कि वो अगर हिंदू संस्कृति पर सवाल उठाएँगे तो ज़ाहिर है लिबरल सनातन समाज उन्हें कठघरे में नहीं खड़ा करेगा, जबकि मुस्लिम समुदाय कार्टून/कैरिकेचर बनने पर ही बवाल खड़े कर देता है। यही वजह है कि कुछ फिल्मों में हिंदू धर्म के प्रति पक्षपाती रवैया देखा गया।


🚩इलाहाबाद हाईकोर्ट ने केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण (I&B) मंत्रालय और ‘केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (CBFC)’ को नोटिस जारी करते हुए ‘आदिपुरुष’ फिल्म को लेकर जवाब माँगा है। फिल्म के आपत्तिजनक दृश्यों और डायलॉग्स को लेकर 2 PIL दायर की गई है, जिस पर दोनों संस्थाओं को उच्च न्यायालय ने एफिडेविट दायर करने के लिए कहा है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि सेंसर बोर्ड द्वारा इस फिल्म को सर्टिफाई करना एक बड़ा ब्लंडर था और इसने बड़ी संख्या में लोगों की भावनाएँ आहत की हैं।



🚩जस्टिस राजेश सिंह चौहान और जस्टिस श्रीप्रकाश सिंह ने इस मामले पर सुनवाई करते हुए फिल्म निर्माताओं की मानसिकता पर सवाल उठाया और कहा कि कुरान या बाइबिल जैसे पवित्र ग्रंथों को ऐसे नहीं छुआ जाना चाहिए और न ही उनसे छेड़छाड़ किया जाना चाहिए। उच्च न्यायालय ने माना कि ‘आदिपुरुष’ में जिस तरह से रामायण के किरदारों को दिखाया गया है, स्वाभाविक है कि लोगों की भावनाएँ आहत हुई होंगी। जजों ने कहा कि दिन प्रतिदिन ऐसी घटनाएँ बढ़ती ही जा रही हैं।


🚩हाईकोर्ट ने कहा कि हाल के दिनों में ऐसी कई फ़िल्में आई हैं जिनमें हिन्दू देवी-देवताओं का मजाक बनाया गया। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पूछा कि अगर हमने अभी अपना मुँह बंद कर लिया तो पता है क्या होगा? जजों ने एक फिल्म के दृश्य को याद किया, जिसमें भगवान शिव को त्रिशूल लेकर दौड़ते हुए दिखाया गया था और उनका मजाक बनाया गया था। कोर्ट ने पूछा कि अब ये सब दिखाया जाएगा? साथ ही कहा कि जब फ़िल्में कारोबार करती हैं तो निर्माता कमाते हैं।


🚩इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा, “मान लीजिए कभी आपने कुरान पर कोई छोटी सी डॉक्यूमेंट्री बना दी, जिसमें आपने कुछ गलत दिखा दिया। तब देखिए क्या-क्या होता है। ये स्पष्ट करना ज़रूरी है कि ये किसी एक धर्म के बारे में नहीं है। संयोग से ये मामला रामायण से जुड़ा हुआ है, न्यायपालिका तो हर धर्म का है। किसी भी धर्म को खराब तरीके से नहीं दिखाया जाना चाहिए। मुख्य चिंता ये है कि कानून व्यवस्था को बनाए रखा जाना चाहिए।”


🚩इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ये टिप्पणियाँ की हैं, लेकिन फ़िलहाल कोई निर्णय नहीं सुनाया है। जजों ने कहा कि ये चीजें मीडिया में भी आ जाएँगी। हाईकोर्ट ने पूछा कि जैसा फिल्म में दिखाया गया है, धार्मिक किरदारों को कोई ऐसा सोच सकता है? खासकर जिस तरह के कपड़े इन किरदारों को पहनाया गया है, उस पर भी हाईकोर्ट ने सवाल उठाए। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि भगवान राम, लक्ष्मण या माँ सीता का सम्मान करने वाले कभी इस फिल्म को नहीं देख सकते।


🚩ये पहली बार नहीं है,कि बॉलीवुड ने हिंदू विरोधी फिल्म कला या यह कहूँ की कलंक के नाम पर पेश की है। पिछले वर्ष ही तांडव नाम की कुप्रस्तुति की गई थी। इस फिल्म में सैफ अली खान था और इस पर बहुत बहस हुई थी। आज से कुछ वर्षो पहले आमिर खान की फिल्म पीके (PK) ने भी हिंदू समाज के गुरु की नकारात्मक छवि दिखाई थी। इसी पीके (PK) फिल्म में शिवजी के रूप का उपहास किया गया था, कहीं उन्हें मोबाइल फ़ोन पर बात करते भी दिखाया गया, सिर्फ हिंदू रीति रिवाजों का मजाक उड़ाया गया। अन्य कई फिल्में हैं, जो की लव जिहाद और हिंदू फोबिया को नॉर्मलाइज करती हैं।


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Friday, June 30, 2023

कैमरा के सामने हत्या फिर भी कन्हैया लाल और उमेश कोल्हे के हत्यारों को साल भर बाद भी सजा नहीं

30 June 2023

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🚩कन्हैया लाल तेली की हत्या को 1 वर्ष पूरे हो चुके हैं। अब तक हत्यारों को सज़ा नहीं हो पाई है। फिर जिन्होंने हत्यारों को पनाह दी या उन्हें संसाधन दिए, उन्हें सज़ा की बात तो भूल ही जाइए। हम उस देश में रहते हैं, जहाँ एक ऐसे व्यक्ति को सज़ा देने में 4 साल लग गए। जो आतंकी 166 लोगों का खून बहाने में शामिल था, वो 4 साल तक भारत के जेल में बैठ कर अपनी मनपसंद किताबें पढ़ता रहा और मुँहमाँगे भोजन का आनंद उठाता रहा।


🚩ठीक इसी तरह, कन्हैया लाल के हत्यारों को सज़ा अब तक नहीं मिल पाई है। बेटा नंगे पाँव है तो क्या हुआ, अस्थियाँ अब तक विसर्जन की बाट जोह रही हैं तो क्या हुआ, विधवा पत्नी दिन भर अपने पति की सिलाई मशीन को निहारती रहती है तो क्या हुआ, पुलिसकर्मियों की मर्जी के बिना परिजन चाय पीने तक बाहर नहीं जा सकते तो क्या हुआ, उदयपुर के मालदास स्ट्रीट बाजार का पूरा धंधा ही मंदा पड़ गया तो क्या हुआ, अपराधियों को अब तक सज़ा नहीं मिल पाई।


🚩कैमरे पर हत्या, वीडियो में लहराए हथियार, अब तक सज़ा नहीं


🚩कैमरे पर पूरे देश ने देखा कि कैसे कन्हैया लाल तेली का गला काटा गया। पूरे देश ने ये भी देखा कि कैसे हत्यारों ने हँसते हुए वीडियो बनाया और हथियार लहरा कर अपने कारनामे पर गौरव का इजहार किया। कैमरे में सब कुछ कैद होने के बावजूद अब तक हत्यारों को सज़ा न मिलना क्या ऐसे तत्वों को प्रोत्साहित नहीं करता? कैमरे के सामने ‘सर तन से जुदा’ करने वाले भी जब जेल में ऐश करते रहेंगे, तो क्या इससे उनकी कट्टर विचारधारा से प्रेरित होने वालों की संख्या नहीं बढ़ेगी?


🚩इस घटना में तीसरा किरदार था निजाम का। निजाम पड़ोसी था कन्हैया लाल तेली का। नूपुर शर्मा का समर्थन करने के कारण उसने कन्हैया लाल पर FIR दर्ज करा दी थी। इसके बाद कॉन्ग्रेस शासित राजस्थान की पुलिस ने कन्हैया लाल तेली को जेल में बंद कर दिया। जेल से निकलने के बाद पुलिस ने दोनों में तथाकथित सुलह करवाई। इसी निजाम ने कन्हैया लाल की रेकी की और हत्यारों को उनके बारे में सूचित किया।


🚩उमेश कोल्हे के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था। राजस्थान के उदयपुर की तरह ही महाराष्ट्र के अमरावती में भी ‘सर तन से जुदा’ की घटना हुई थी। केमिस्ट उमेश कोल्हे की हत्या करने वालों में उनका 16 वर्षों का दोस्त युसूफ खान का मुख्य हाथ था। युसूफ ने उमेश कोल्हे का पोस्ट इस्लामी कट्टरपंथियों के व्हाट्सएप्प ग्रुप में फॉरवर्ड कर दिया। इसका सीधा अर्थ है कि वो आपके पड़ोसी हों या दोस्त, उनके मजहब की कट्टरता का उनके लिए पहला स्थान है।


🚩व्यवस्था की सुस्ती तो हमने देख ली, अब व्यवस्था की सुषुप्तावस्था का उदाहरण देख लीजिए। मोहम्मद जुबैर – ये एक कुख्यात नाम है। वही AltNews वाला मोहम्मद जुबैर, जिसका दिन भर का काम ही है इस्लामी कट्टरपंथियों और पाकिस्तान का बचाव करना। उसका काम है कि लोगों को बताना कि तुमने क्रॉप्ड वीडियो शेयर किया है, तुमने बातों को ठीक से नहीं समझा, तुमने वीडियो के बाद या पहले वाला हिस्सा नहीं देखा, तुमने पुराना वीडियो शेयर किया।


🚩इस ‘डिजिटल जिहादी’ की हिम्मत तो देखिए कि जब नूपुर शर्मा ने पूरा वीडियो डालने की चुनौती दी, तब ये जोकर वाले इमोजी लगा कर उन्हें चिढ़ाता रहा। जब नूपुर शर्मा हत्या की धमकियों को लेकर अपनी पीड़ा व्यक्त कर रही थीं, तब ये खुद को पत्रकार बताते हुए उन्हें चिढ़ा रहा था। उन्हें ‘गुस्ताख़-ए-रसूल’ बताए जाने वाले ट्वीट्स को आगे बढ़ाता रहा। वो नूपुर शर्मा की बर्बादी की व्यवस्था कर के इसी के नाम पर अपने फॉलोवर्स से AltNews के लिए पैसे जुटाता रहा।


🚩‘डिजिटल जिहादी’ मोहम्मद जुबैर, जिसने शेयर किया क्रॉप्ड वीडियो


🚩जबकि सच्चाई ये है कि मोहम्मद जुबैर वही व्यक्ति है जिसने नूपुर शर्मा का एडिटेड वीडियो शेयर किया था। एक डिबेट में उन्होंने इस्लामी पुस्तक से उद्धरण भर दिया था, अपनी तरफ से कुछ नहीं कहा था। क्यों उद्धरण दिया था? क्योंकि सामने ‘मुस्लिम स्कॉलर’ बना कर मीडिया चैनल द्वारा बैठाया गया तस्लीम रहमानी बार-बार भगवान शिव का अपमान कर रहा था। काशी विश्वनाथ विध्वंस का मजाक बना रहा था। शिवलिंग पर पाँव धोने वाले अपने मजहब के साथियों का साथ दे रहा था।


🚩नूपुर शर्मा ने जवाब में सिर्फ बताया कि उसके मजहब की एक किताब में क्या लिखा हुआ है। ‘डिजिटल जिहादी’ मोहम्मद जुबैर ने नूपुर शर्मा का क्रॉप्ड वीडियो शेयर किया, फिर अपने गिरोह के साथ मिल कर क़तर जैसे इस्लामी मुल्कों को टैग करने लगा। देश भर में एक महिला के खिलाफ ‘सर तन से जुदा’ गिरोह नारेबाजी करते हुए सड़कों पर उतरा। कन्हैया लाल तेली और उमेश कोल्हे की हत्या कर दी गई। और नूपुर शर्मा? उन्हें घर में कैद होने को मजबूर होना पड़ा।

🚩इस प्रकरण के बाद से फिर नूपुर शर्मा को किसी डिबेट में नहीं देखा गया, किसी सार्वजनिक कार्यक्रम में नहीं देखा गया और न ही उनका राजनीतिक करियर आगे बढ़ पाया। नूपुर शर्मा का जीवन अब भी खतरे में है। और तस्लीम रहमानी? वो इस घटना के बाद भी बेधड़क टीवी डिबेट्स में बुलाया जाता रहा। उसका रवैया वैसा ही रहा। इस्लामी कट्टरपंथ वाला प्रोपेगंडा फैलाने में उसने कहीं कोई कमी नहीं की। उसके लिए जीवन और आसान हो गया।


🚩पिछले 1 वर्ष में नूपुर शर्मा और तस्लीम रहमानी के जीवन का जो अंतर है न, वही मोहम्मद जुबैर जैसे ‘डिजिटल जिहादियों’ की सफलता है। कन्हैया लाल तेली और उमेश कोल्हे के परिवार की आज जो दुर्दशा है न, वही मोहम्मद जुबैर जैसे ‘डिजिटल जिहादियों’ का सुकून है। कन्हैया लाल तेली और उमेश कोल्हे के हत्यारों को तक सज़ा नहीं मिली है न, वही मोहम्मद जुबैर जैसे ‘डिजिटल जिहादियों’ का उत्साहवर्धन है। इस पूरे प्रकरण को जन्म देने वाला मोहम्मद जुबैर एक ‘डिजिटल जिहादी’ है।


🚩तस्लीम रहमानी आज ईद-बकरीद दोगुनी ख़ुशी से मना रहा है, नूपुर शर्मा के लिए होली-दीवाली सब उदास रहा। तस्लीम रहमानी अबकी बकरीद पर भी इस्लामी कट्टरपंथियों का बचाव करता हुआ घूम रहा है, नूपुर शर्मा के लिए अगली दीवाली पर त्योहार की बधाई या शुभकामना सन्देश देना भी आफत है। एक तस्लीम रहमानी ऐसी कई नूपुर शर्माओं के जीवन को तबाह करने की क्षमता रखता है, क्योंकि उसके साथ एक ‘डिजिटल जिहादी’ है।


🚩आज कन्हैया लाल तेली एक पोटली में बंद हैं, मोहम्मद जुबैर ‘डिजिटल जिहाद’ में दोगुने जोश के साथ लगा हुआ है। व्यवस्था की सुषुप्तावस्था देखिए कि जब जम्मू कश्मीर में एक मस्जिद से ‘सर तन से जुदा’ के नारे लगे, तब इस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई और इस्लामी कट्टरपंथियों को इसे वास्तविकता में तब्दील करने में समय नहीं लगा। जब मुस्लिम भीड़ जम्मू के डोडा के भद्रवाह स्थित मस्जिद में इकट्ठी होकर कह रही थी कि अजान या नमाज का विरोध करने वालों को मार डाला जाएगा, उस समय क्या कार्रवाई हुई?


🚩कहीं मस्जिद में नारे, कहीं पुतला टाँगा: सोई रही व्यवस्था


🚩उस मस्जिद में इकट्ठी हुई भीड़ ने जब नारा लगाया कि नूपुर शर्मा का सिर कहीं और फेंका हुआ मिलेगा और धड़ कहीं और, तब उनमें से कितनों को पकड़ कर जेल की सलाखों के पीछे डाला गया? जब वो ललकार रहे थे कि ‘गाय का पेशाब पीने वालों की हैसियत क्या है’, तब कानून ने उन्हें इसके लिए एक बार फटकार तक भी लगाई? अरे, वहाँ मौजूद लोग तो उलटा कह रहे थे कि प्रशासन उनका साथ देता है, आशा है आगे भी ऐसे ही साथ देता रहेगा।


🚩जब कर्नाटक के बेलगावी में नूपुर शर्मा के पुतले को फाँसी के फंदे पर टाँग दिया गया, तब कितने लोगों ने इसके खिलाफ आवाज उठाई? हत्या की धमकियों और रिहर्सल पर अगर व्यवस्था चुप रहेगी तो हत्या को कैसे रोका जा सकता है? एक महिला का पुतला बना कर लोगों में खौफ पैदा करने के लिए बीच सड़क पर टाँग दिया जाता है, कहीं कोई हलचल नहीं होती। यही कारण है कि एक के बाद एक हत्याएँ होती हैं और हत्यारों का कोई कुछ नहीं बिगाड़ पाता।


🚩जले पर नमक छिड़कते हुए सुप्रीम कोर्ट के जज टिप्पणी करते हैं कि नूपुर शर्मा के कारण पूरे देश में आग लगी हुई है और उन्हें राहत देने से इनकार कर देते हैं। सोचिए, इससे उन आतंकियों का मनोबल कितना बढ़ा होगा। न्यायपालिका ने कभी मोहम्मद जुबैर से पूछा कि उसने एडिटेड वीडियो क्यों शेयर किया? भारत के आंतरिक मामले में बाह्य हस्तक्षेप की माँग क्यों की? तस्लीम रहमानी ने क्या बोला था, ये क्यों छिपाया? नूपुर शर्मा ने जो कहा था, वो सच में किताब में लिखा है या नहीं?


🚩‘डिजिटल जिहादी’ ने इसका फैक्ट-चेक करने की जहमत नहीं उठाई, क्योंकि ये उनके एजेंडे में था ही नहीं। लेकिन, न्यायपालिका कहाँ थी? नूपुर शर्मा को डाँटने-फटकारने वाली ये न्यायपालिका आज तक कैमरे के सामने हत्या करने वालों को सज़ा नहीं दे पाई, तो भविष्य में भला इनसे हम क्या उम्मीद रखें। मोहम्मद जुबैर द्वारा क्रॉप्ड वीडियो शेयर किया जाना, जम्मू के मस्जिद में नारा लगना और नूपुर शर्मा का पुतला टाँगा जाना – ये हत्याएँ तो तभी हो गई थीं क्योंकि ऐसा करने वालों को व्यवस्था की सुषुप्तावस्था पर पूरा यकीन था।


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Thursday, June 29, 2023

होली-दीवाली पर ‘ज्ञान’, बकरीद पर निरीह पशुओं को काटने वाले ‘मोहब्बत की दुकान’.....

29 June 2023

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🚩मुंबई के मीरा रोड पर मोहसिन खान के सोसायटी में बकरा लाने पर हुआ विवाद बकरीद से पहले खूब तूल पकड़ा। इस बीच दिल की तसल्ली के लिए जानवर के कितने टुकड़े काटकर बकरीद पर खाएँगे इसका एक नया ट्रेंड भी इस दिन सोशल मीडिया पर देखने को मिला। खुद को पत्रकार बताने वाली काविश अजीज ने सोशल मीडिया पर उस समय अपनी भड़ास निकाली जब एक अन्य पत्रकार सिर्फ ये अपील कर रहे थे कि मजहब के नाम पर जानवरों को न काटा जाए।


🚩काविश ने इतनी सी बात पर एक भारी भरकम बकरे के साथ अपनी तस्वीर डाली और लिखा, “ये ट्विटर है तुम्हारे बाप का बगीचा नहीं जो कुछ भी लिख कर चले जाओगे और सुनो बकरा हमारा, त्योहार हमारा, कुर्बानी देंगे, कीमा कलेजी, कबाब, बिरयानी खाएँगे हम, मगर जलेगी तुम्हारी….”


🚩अब कोई शाकाहारी व्यक्ति इस पोस्ट को अचानक पढ़े तो शायद उसे ऐसी भाषा पढ़ते ही उलटी हो या फिर पत्रकार से ही हमेशा के लिए घिन्न हो जाए… क्योंकि इस पोस्ट को देखकर यही पता नहीं चल रहा कि बकरा दिखाकर त्योहार मनाने की बात हो रही है या त्योहार के नाम पर जो उसका कत्ल किया जाना है उसकी उत्सुकता जाहिर हो रही है। 


🚩ऐसा पोस्ट लिखने वाली पत्रकार अच्छे से जानती होंगी कि उन्होंने लिखा क्या है। उन्हें पता है कुर्बानी का अर्थ कोई केक कटिंग जैसा नहीं है। उसमें बाकायदा एक जीव का गला रेतकर उसकी खाल को नोचा जाता है। उसके माँस के धारदार चाकू से टुकड़े होते हैं, उसमें जो खून लगा होता है उसे धो-पोंछकर ही वो कीमा कलेजी, कबाब, बिरयानी बनता है जिसे खाने के लिए काविश की लार टपक रही है।


🚩काविश मानती हैं कि उनका ये जवाब सिर्फ हेटर्स के लिए है जिसे देकर उनके दिल को सुकून मिल रहा है। वो मजहब के नाम पर इतना अंधी हो गईं हैं कि वो ये नहीं समझ पा रहीं सामने वाला उनसे क्या अपील कर रहा है। अभय प्रताप सिंह ने सिर्फ इतना ही तो लिखा – बकरीद आने वाली है। खून बहाया जाएगा, बेजुबान काटे जाएँगे। हमें ये सब बंद करना होगा। मजहब के नाम पर जानवरों का कत्लेआम सही नहीं है। आओ बकरों को बचाएँ… बकरा फ्री ईद मनाएँ…केक का बकरा काटकर ईको फ्रेंडली ईद मनाएँ।


🚩बताइए इस पूरे पोस्ट में गलत क्या है। क्या इससे पहले दिवाली-होली पर आपने ऐसी चिंताएँ नहीं देखीं। होली पर जब कहा जाता है कि सैंकड़ो लीटर पानी बर्बाद होगा, दिवाली पर तर्क दिया जाता है कि प्रदूषण बढ़ेगा तब क्या कोई आपको बकरीद पर ये नहीं समझा सकता कि ये एक हिंसात्मक प्रक्रिया है और त्योहार के नाम पर इसे बढ़ावा देना गलत है। इस अपील को मानने की बजाय उसपर ढिठाई दिखाई जा रही है कि हम खाएँगे जो मन हो कर लो।


🚩बकरीद पर कुर्बानी न देने की अपील सिर्फ इसलिए है ताकि त्योहार के नाम पर सालों से चली आ रही हिंसात्मक प्रक्रिया पर विराम लगे और समाज में सकारात्मक संदेश जाए कि बिन हिंसा भी त्योहार मनते हैं उसके लिए जीव हत्या जरूरी नहीं।


🚩लेकिन, पत्रकार काविश अकेली नहीं हैं जिन्हें ये सुनकर गुस्सा आता है कि वो आखिर क्यों कोई उन लोगों से ये कह रहा है कि त्योहार पर बकरा न काटें जाए। इस लिस्ट में आरजे सायमा बहुत पुराना नाम हैं। वह हर साल जब एक अभियान को चलता देखती हैं कि कैसे बकरा काटने से मना किया जा रहा है तो उन्हें दुख होता है। एक बार उन्होंने इस अपील को बेहद शर्मनाक बताया था।


🚩उन्होंने कहा था, ”ये बहुत शर्मनाक है कि आप एक समुदाय को उनका त्योहार शांति, खुशी और उल्लास के साथ मनाने देना नहीं चाहते। मैं इसको कोई तूल नहीं देती। ये मजाक तुम पर नहीं है। तुम ही मजाक हो।”


🚩आज वो सायमा राहुल गाँधी के ईद मुबारक पर लिख रही हैं कि मोहब्बत की दुकान आबाद रहे। ईद के मौके पर मोहब्बत की दुकान कौन सी है ये समझना मुश्किल है। क्या ये वो दुकानें हैं जहाँ बेजुबान पशुओं को काटा जाता है और अगर कोई ऐसा करने से रोके तो उसे असहिष्णु कह दिया जाता है कि एक समुदाय को उसका त्योहार मनाने से मना कर रहे हैं। अगर नहीं, तो फिर आरजे सायमा को उन लोगों से दिक्कत क्यों होती रही है जो बकरीद पर कुर्बानी न देने की अपील करते हैं।


🚩बीते समय में जाइए और याद करिए कि मुस्लिमों के कौन से त्योहार को कभी मनाने से रोका गया है! सिर्फ एक बकरीद ऐसा त्योहार है जिसे कोई मनाने से मना नहीं कर रहा सिर्फ उसका तरीका बदलने को कह रहा है।


🚩सोचिए, मोहसिन को सोसायटी में बकरा नहीं लाने दिया गया तो उसपर इतना हंगामा हो गया। लेकिन आपको नहीं लगता ये सब अनुमति के साथ होना चाहिए। हो सकता है बकरे की कुर्बानी आपके लिए एक सामान्य प्रक्रिया हो लेकिन किसी के लिए ये झकझोरने वाले दृश्य भी हो सकते हैं। हो सकता है मोहसिन उसकी कुर्बानी सोसायटी से बाहर देता लेकिन कुर्बानी के उद्देश्य से उसे घर पर लाना क्या किसी को प्रभावित नहीं कर सकता?

🚩सोसायटी में कितने लोग रहते हैं, किस धर्म के हैं, कुर्बानी के लिए उनकी अनुमति है या नहीं ये सब मैटर करता है। मोहब्बत की दुकान आबाद तभी नहीं रहेगी जब बकरे का खून बहेगा और वो गोश्त बनकर घर-घर बँटेगा। मोब्बत की दुकान तब भी आबाद रह सकती है जब आर्थिक, सामाजिक और शैक्षणिक रूप से मजबूत कौम के लोग के सालों से चली आ रही हिंसात्मक प्रक्रिया को बदलें या उसे बदलने का प्रयास करें। - जयन्ती मिश्रा


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