Tuesday, March 5, 2024

दयानन्द सरस्वती कोन थे ? कैसे बने महर्षि?

06 March 2024

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🚩स्वामी दयानंद सरस्वती का असली नाम मूलशंकर था और उनका प्रारम्भिक जीवन बहुत आराम से बीता। आगे चलकर एक पण्डित बनने के लिए वे संस्कृत, वेद शास्त्रों व अन्य धार्मिक पुस्तकों के अध्ययन में लग गए।


🚩उनके जीवन में ऐसी बहुत सी घटनाएं हुईं, जिन्होंने उन्हें हिन्दूधर्म की पारम्परिक मान्यताओं और ईश्वर के बारे में गंभीर प्रश्न पूछने के लिए विवश कर दिया।


🚩अपनी छोटी बहन और चाचा की हैजे के कारण हुई मृत्यु से वे जीवन-मरण के अर्थ पर गहराई से सोचने लगे और ऐसे प्रश्न करने लगे जिससे उनके माता पिता चिन्तित रहने लगे। तब उनके माता-पिता ने उनका विवाह किशोरावस्था के प्रारम्भ में ही करने का निर्णय किया ( 19वीं सदी के आर्यावर्त (भारत) में यह आम प्रथा थी)। लेकिन बालक मूलशंकर ने निश्चय किया कि विवाह उनके लिए नहीं बना है और वे सन् 1846 में सत्य की खोज मे निकल पड़े।


🚩महर्षि दयानन्द के हृदय में आदर्शवाद की उच्च भावना, यथार्थवादी मार्ग अपनाने की सहज प्रवृत्ति, मातृभूमि की नियति को नई दिशा देने का अदम्य उत्साह, धार्मिक-सामाजिक-आर्थिक व राजनैतिक दृष्टि से युगानुकूल चिन्तन करने की तीव्र इच्छा तथा आर्यावर्तीय (भारतीय) जनता में गौरवमय अतीत के प्रति निष्ठा जगाने की भावना थी। उन्होंने किसी के विरोध तथा निन्दा करने की परवाह किये बिना आर्यावर्त (भारत) के हिन्दू समाज का कायाकल्प करना अपना ध्येय बना लिया था।


🚩फाल्गुन कृष्ण संवत् सन् 1895 में शिवरात्रि के दिन उनके जीवन में नया मोड़ आया। उन्हें नया बोध हुआ। वे घर से निकल पड़े और यात्रा करते हुए वह गुरु विरजानन्दके पास पहुंचे। गुरुवर ने उन्हें पाणिनी व्याकरण, पातंजल-योगसूत्र तथा वेद-वेदांग का अध्ययन कराया। तथा गुरु दक्षिणा में उन्होंने मांगा- विद्या को सफल कर दिखाओ, परोपकार करो, सत्य शास्त्रों का उद्धार करो, मत मतांतरों की अविद्या को मिटाओ, वेद के प्रकाश से इस अज्ञान रूपी अंधकार को दूर करो, वैदिक धर्म का आलोक सर्वत्र विकीर्ण करो। यही तुम्हारी गुरुदक्षिणा है और आशीर्वाद दिया कि ईश्वर तुम्हारे पुरुषार्थ को सफल करे। उन्होंने अंतिम शिक्षा दी -मनुष्यकृत ग्रंथों में ईश्वर और ऋषियों की निंदा है, ऋषिकृत ग्रंथों में नहीं । वेद प्रमाण हैं। इस कसौटी को हाथ से न छोड़ना।


🚩महर्षि दयानन्द ने अनेक स्थानों की यात्रा की। उन्होंने हरिद्वार में कुंभ के अवसर पर पाखण्ड खण्डिनी पताका फहराई। तथा अनेक शास्त्रार्थ किए। वे कलकत्ता में बाबू केशवचन्द्र सेन तथा देवेन्द्र नाथ ठाकुर के संपर्क में आए। तथा आर्यभाषा (हिन्दी) में बोलना व लिखना प्रारंभ किया। ॐ को आर्य समाज में ईश्वर का सर्वोत्तम और उपयुक्त नाम माना जाता है।


🚩महर्षि दयानन्द जी ने चैत्र शुक्ल प्रतिपदा 8 ( सन् 1875 ) को गिरगांव मुम्बई में आर्यसमाज की स्थापना की। आर्यसमाज के नियम और सिद्धांत प्राणिमात्र के कल्याण के लिए हैं संसार का उपकार करना इस समाज का मुख्य उद्देश्य है, अर्थात् शारीरिक, आत्मिक और सामाजिक उन्नति करना।


🚩वेदों को छोड़ कर कोई अन्य धर्मग्रन्थ प्रमाण नहीं है – इस सत्य का प्रचार करने के लिए स्वामी जी ने सारे देश का दौरा करना प्रारंभ किया और जहां-जहां वे गये प्राचीन परंपरा के पंडित और विद्वान उनसे हार मानते गये। संस्कृत भाषा का उन्हें अगाध ज्ञान था। संस्कृत में वे धाराप्रवाह बोलते थे। साथ ही वे प्रचंड तार्किक थे।


🚩उन्होंने ईसाई और मुस्लिम धर्मग्रन्थों का भली-भांति अध्ययन-मन्थन किया था। अतएव अकेले ही उन्होंने तीन-तीन मोर्चों पर संघर्ष आरंभ कर दिया। दो मोर्चे तो ईसाईयत और इस्लाम के थे किंतु तीसरा मोर्चा हिन्दू पंडितों का था, जिनसे जूझने में स्वामी जी को अनेक अपमान, कलंक और कष्ट झेलने पड़े।


🚩स्वामी दयानन्द ने बुद्धिवाद की जो मशाल जलायी थी, उसका कोई जवाब नहीं था। वे जो कुछ कहते थे उसका उत्तर न तो मुसलमान दे सकते थे, न ईसाई, न हिन्दू पण्डित और विद्वान। स्वामी जी प्रचलित धर्मों में व्याप्त बुराइयों का कड़ा खण्डन करते थे । अपने महाग्रंथ “सत्यार्थ प्रकाश” में स्वामीजी ने सभी मतों में व्याप्त बुराइयों का खण्डन किया है। उनके समकालीन सुधारकों से अलग, स्वामीजी का मत शिक्षित वर्ग तक ही सीमित नहीं था अपितु आर्य समाज ने आर्यावर्त (भारत) के साधारण जनमानस को भी अपनी ओर आकर्षित किया।


🚩सन् 1872 में स्वामी जी कलकत्ता पधारे। वहां देवेन्द्रनाथ ठाकुर और केशवचन्द्र सेन ने उनका बड़ा सत्कार किया। कहते हैं क़ि कलकत्ते में ही केशवचन्द्र सेन ने स्वामी जी को यह सलाह दी कि यदि आप संस्कृत छोड़ कर आर्यभाषा (हिन्दी) में बोलना आरम्भ करें, तो देश का असीम उपकार हो सकता है। तभी से स्वामी जी के व्याख्यानों की भाषा आर्यभाषा (हिन्दी) हो गयी और आर्यभाषी (हिन्दी) प्रान्तों में उन्हे अगणित अनुयायी मिलने लगे। कलकत्ते से स्वामी जी मुम्बई पधारे और वहीं 10 अप्रैल 1875 को उन्होने ‘आर्य समाज’ की स्थापना की।


🚩महर्षि दयानन्द ने तत्कालीन समाज में व्याप्त सामाजिक कुरीतियों तथा अन्धविश्वासों और रूढिवादिता जैसी बुराइयों को दूर करने के लिए, निर्भय होकर उन पर आक्रमण किया। वे ‘संन्यासी योद्धा’ कहलाए। उन्होंने जन्मना जाति का विरोध किया तथा कर्म के आधार वेदानुकूल वर्ण-निर्धारण की बात कही। वे दलितोद्धार के पक्षधर थे। उन्होंने स्त्रियों की शिक्षा के लिए प्रबल आन्दोलन चलाया। उन्होंने बाल विवाह तथा सती प्रथा का निषेध किया और विधवा विवाह का समर्थन किया। उन्होंने ईश्वर को सृष्टि का निमित्त कारण तथा प्रकृति को अनादि तथा शाश्वत माना। वे तैत्रवाद के समर्थक थे। उनके दार्शनिक विचार वेदानुकूल थे। उन्होंने यह भी माना कि जीव कर्म करने में स्वतन्त्र हैं तथा फल भोगने में परतन्त्र हैं।


🚩महर्षि दयानन्द सभी धर्मानुयायियों को एक मंच पर लाकर एकता स्थापित करने के लिए प्रयत्नशील थे। उनके अमर ग्रंथ सत्यार्थ प्रकाश, संस्कार विधि और ऋग्वेदादि भाष्य भूमिका में उनके मौलिक विचार सुस्पष्ट रूप में प्राप्य हैं। वे योगी थे तथा प्राणायाम पर उनका विशेष बल था। वे सामाजिक पुनर्गठन में सभी वर्णों तथा स्त्रियों की भागीदारी के पक्षधर थे। राष्ट्रीय जागरण की दिशा में उन्होंने सामाजिक क्रान्ति तथा आध्यात्मिक पुनरुत्थान के मार्ग को अपनाया। उनकी शिक्षा सम्बन्धी धारणाओं में प्रदर्शित दूरदर्शिता, देशभक्ति तथा व्यवहारिकता पूर्णतया प्रासंगिक तथा युगानुकूल है।


🚩महर्षि दयानन्द समाज सुधारक तथा धार्मिक पुनर्जागरण के प्रवर्तक तो थे ही, वे प्रचण्ड राष्ट्रवादी तथा राजनैतिक आदर्शवादी भी थे। उन्होंने राज्याध्यक्ष तथा शासन की विभिन्न परिषदों एवं समितियों के लिए आवश्यक योग्यताओं को भी गिनाया है। उन्होंने न्याय की व्यवस्था ऋषि प्रणीत ग्रन्थों के आधार पर किए जाने का पक्ष लिया। उनके विचार आज भी प्रशंसनीय है।


🚩स्वामी दयानन्द सरस्वती को सामान्यत: केवल आर्य समाज के संस्थापक तथा समाज-सुधारक के रूप में ही जाना जाता है। राष्ट्रीय स्वतन्त्रता के लिए किये गए प्रयत्नों में उनकी उल्लेखनीय भूमिका की जानकारी बहुत कम लोगों को है। वस्तुस्थिति यह है कि पराधीन आर्यावर्त (भारत) में यह कहने का साहस सम्भवत: सर्वप्रथम स्वामी दयानन्द सरस्वती ने ही किया था कि “आर्यावर्त (भारत), आर्यावर्तीयों (भारतीयों) का है”। हमारे प्रथम स्वतन्त्रता समर, सन्1857 की क्रान्ति की सम्पूर्ण योजना भी स्वामी जी के नेतृत्व में ही तैयार की गई थी और वही उसके प्रमुख सूत्रधार भी थे। वे अपने प्रवचनों में श्रोताओं को प्राय: राष्ट्रीयता का उपदेश देते और देश के लिए मर मिटने की भावना भरते थे।


🚩स्वामी जी ने जब हरिद्वार की एक पहाड़ी के एकान्त स्थान पर अपना डेरा जमाया तब वहीं उनकी मुलाकात पांच ऐसे व्यक्तियों से हुई जो आगे चलकर सन् 1857 की क्रान्ति के कर्णधार बने।ये पांच व्यक्ति थे नाना साहेब, अजीमुल्ला खां, बाला साहब, तात्या टोपे तथा बाबू कुंवर सिंह।


🚩विचार विमर्श तथा योजना-निर्धारण के उपरान्त स्वामी जी तो हरिद्वार में ही रुक गए तथा अन्य पांचो राष्ट्रीय नेता योजना को यथार्थ रूप देने के लिए अपने-अपने स्थानों पर चले गए। उनके जाने के बाद स्वामी जी ने अपने कुछ विश्वस्त साधु संन्यासियों से सम्पर्क स्थापित किया और उनका एक गुप्त संगठन बनाया। इस संगठन का मुख्यालय इन्द्रप्रस्थ (दिल्ली) में महरौली स्थित योगमाया मन्दिर में बनाया गया। इस मुख्यालय ने स्वाधीनता समर में उल्लेखनीय भूमिका निभायी। स्वामी जी के नेतृत्व में साधुओं ने भी सम्पूर्ण देश में क्रान्ति का अलख जगाया। वे क्रान्तिकारियों के सन्देश एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुँचाते तथा उन्हें प्रोत्साहित करते और आवश्यकता पड़ने पर स्वयं भी हथियार उठाकर अंग्रेजों से संघर्ष करते। सन् 1857 की क्रान्ति की सम्पूर्ण अवधि में राष्ट्रीय नेता, स्वामी दयानन्द सरस्वती के निरन्तर सम्पर्क में रहे।


🚩स्वतन्त्रता-संघर्ष की असफलता पर भी स्वामी जी निराश नहीं थे। उन्हें तो इस बात का पहले से ही आभास था कि केवल एक बार प्रयत्न करने से ही स्वतन्त्रता प्राप्त नहीं हो सकती। इसके लिए तो संघर्ष की लम्बी प्रक्रिया चलानी होगी। हरिद्वार में ही 1855 की बैठक में बाबू कुंवर सिंह ने जब अपने इस संघर्ष में सफलता की संभावना के बारे में स्वामी जी से पूछा तो उनका बेबाक उत्तर था “स्वतन्त्रता संघर्ष कभी असफल नहीं होता। भारत धीरे-धीरे एक सौ वर्ष में परतन्त्र बना है। अब इसको स्वतन्त्र होने में भी एक सौ वर्ष लग जायेंगे। इस स्वतन्त्रता प्राप्ति में बहुत से अनमोल प्राणों की आहुतियां डाली जाएँगी।”


🚩स्वामी जी की यह भविष्यवाणी कितनी सही निकली, इसे बाद की घटनाओं ने प्रमाणित कर दिया।स्वतन्त्रता-संघर्ष की असफलता के बाद जब तात्या टोपे, नाना साहब तथा अन्य राष्ट्रीय नेता स्वामी जी से मिले तो उन्हें भी उन्होंने निराश न होने तथा उचित समय की प्रतीक्षा करने की ही सलाह दी।


🚩सन 1857 की क्रान्ति के दो वर्ष बाद स्वामी जी ने स्वामी विरजानन्द को अपना गुरु बनाया और उनसे दीक्षा ली। स्वामी विरजानन्द के आश्रम में रहकर उन्होंने वेदों का अध्ययन किया, उन पर चिन्तन किया और उसके बाद अपने गुरु के निर्देशानुसार वे वैदिक ज्ञान के प्रचार-प्रसार में जुट गए। इसी उद्देश्य की प्राप्ति के लिए उन्होंने आर्य समाज की भी स्थापना की और उसके माध्यम से समाज-सुधार के अनेक कार्य किए। छुआछूत, सती प्रथा, बाल विवाह, नर बलि, धार्मिक संकीर्णता तथा अन्धविश्वासों के विरुद्ध उन्होंने जमकर प्रचार किया और विधवा विवाह, धार्मिक उदारता तथा आपसी भाईचारे का उन्होंने समर्थन किया। इन सबके साथ स्वामी जी लोगों में देशभक्ति की भावना भरने से भी कभी नहीं चूकते थे।


🚩प्रारम्भ में अनेक व्यक्तियों ने स्वामी जी के समाज सुधार के कार्यों में विभिन्न प्रकार के विघ्न डाले और उनका विरोध किया। धीरे-धीरे उनके तर्क लोगों की समझ में आने लगे और विरोध कम हुआ। उनकी लोकप्रियता निरन्तर बढ़ने लगी। इससे अंग्रेज अधिकारियों के मन में यह इच्छा उठी कि अगर इन्हें अपनी सरकार के पक्ष में कर लिया जाए तो सहज ही उनके माध्यम से जनसाधारण में अंग्रेजों को लोकप्रिय बनाया जा सकता है। इससे पूर्व अंग्रेज अधिकारी इसी प्रकार से अन्य धर्मोपदेशकों तथा धर्माधिकारियों को विभिन्न प्रकार के प्रलोभन देकर अपनी ओर कर चुके थे। पर स्वामी जी ने गवर्नर जनरल को ऐसे तीखे उत्तर दिए जिसकी आशा नहीं थी उनको। इसके उपरान्त अंगेजों ने गुप्तचर विभाग द्वारा स्वामी जी और उनकी संस्था आर्य-समाज पर गहरी दृष्टि रखी। उनकी प्रत्येक गतिविधि और उनके द्वारा बोले गए प्रत्येक शब्द का रिकार्ड रखा जाने लगा। आम जनता पर उनके प्रभाव से अंगेजों को अहसास होने लगा कि यह बागी फकीर और आर्यसमाज किसी भी दिन हमारे लिए खतरा बन सकते हैं। इसलिए स्वामी जी को समाप्त करने के लिए भी तरह-तरह के षड़यंत्र रचे जाने लगे।


🚩स्वामी जी की मृत्यु जिन परिस्थितियों में हुई, उससे भी यही आभास मिलता है कि उसमें निश्चित ही अग्रेजी सरकार का कोई षड़यंत्र था। स्वामी जी की मृत्यु 30 अक्टूबर 1883 को दीपावली के दिन सन्ध्या के समय उन्हीं के सेवक जगन्नाथ द्वारा उनके दूध में पिसा हुआ काँच देने से हुई। अपनी गलती का एहसास होने पर उनके सेवक ने स्वामी जी के सामने अपना अपराध स्वीकार किया और उसके लिए क्षमा मांगी। उदार-हृदय स्वामी जी ने उसे राह-खर्च और जीवन-यापन के लिए पाँच सौ रुपए देकर वहां से विदा कर दिया ताकि पुलिस उसे परेशान न करे। बाद में जब स्वामी जी को जोधपुर के अस्पताल में भर्ती करवाया गया तो वहां सम्बन्धित चिकित्सक भी शक के दायरे में रहा। उस पर आरोप था कि वह औषधि के नाम पर स्वामी जी को हल्का विष पिलाता रहा। बाद में जब स्वामी जी की तबियत बहुत खराब होने लगी तो उन्हें अजमेर के अस्पताल में लाया गया। मगर तब तक काफी विलम्ब हो चुका था। स्वामी जी को बचाया नहीं जा सका।


🚩स्वधर्म, स्वभाषा, स्वराष्ट्र, स्वसंस्कृति और स्वदेशोन्नति के अग्रदूत स्वामी दयानन्द जी का शरीर सन् 1883 को दीपावली के दिन पंचतत्व में विलीन हो गया और वे अपने पीछे छोड़ गए एक सिद्धान्त, कृण्वन्तो विश्वमार्यम् – अर्थात सारे संसार को श्रेष्ठ मानव बनाओ।


🚩उनके अन्तिम शब्द थे – “प्रभु! तूने अच्छी लीला की। आपकी इच्छा पूर्ण हो।”


🚩स्वामी दयानंद सरस्वती जैसे महापुरुषों के कारण ही आज राष्ट्र व संस्कृती जीवित है इसके कारण आज मानव सुखी सम्मानित जीवन जी रहा है और मोक्ष तक की यात्रा कर पाता है। लेकिन मनुष्य का दुर्भाग्य यह है की उनके हक की लड़ाई जिन महापुरुषों ने लड़ी उनको ही साजिश के तहत भयंकर प्रताड़ित किए गए जैसे की स्वामी दयानंद सरस्वती जो को जहर देकर प्राण लिए, सुभाष चंद्र बोस, राजीव दीक्षित जी, लाल बहादुर शास्त्री जैसे महापुरुषों को भी प्राण ले लिए और वर्तमान में जिन महापुरुषों ने लाखों हिंदुओं की घर वापसी करवाई, करोड़ों लोगों में सनातन धर्म की लो जगाई, करोड़ों लोगों को नशा छुड़वाया, ईसाई मिशनरियों और विदेशी कंपनियों की दुकानें बंद करवाई, सरकार की गलत नीतियों का पुरजोश विरोध किया, गलत कानूनों का विरोध किया, कत्लखाने जाति हजारों गायों को बचाकर गौशाओं खोली, वैदिक गुरुकुल खोले, बच्चों, युवाओं ओर महिलाओं के उत्थान के लिए कार्य किए और गरीबों और आदिवासियों को जीवानुपयोगी सामग्री, मकान और सनातन धर्म का ज्ञान दिया अर्थात प्राणिमात्र उत्थान के कार्य किए उन हिंदू संत आशारामजी बापू को आज 11 साल से जूठे केस में जेल में रखा है यह देश के लिए बड़े दुर्भाग्यपूर्ण बात है।


🚩समाज के अच्छे व्यक्तियों को संगठित होकर हिन्दू साधु संतों पर हो रहे अत्याचार को रोकने के लिए आगे आना चाहिए।


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Monday, March 4, 2024

फ्रिज का ठंडा पानी पीने से नुकसान और मटके के पानी से फायदे होते हैं?

05 March 2024

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🚩सर्जन का कहना है कि धूप और पसीने में आकर अगर हम फ्रिज का पानी एक दम से पी लेते हैं तो कई बार बुखार, गले में दर्द जैसी बीमारियां हमें घेर लेती हैं. वहीं घड़े का पानी पीने से इस तरह की बीमारियों के होने का खतरा न के बराबर हो जाता है.


🚩भीषण गर्मी में जब प्यास लगती है तो हम घर में फ्रिज खोलते हैं और ठंडा-ठंडा पानी पी लेते हैं। उस समय तो वह ठंडा पानी बहुत राहत देता है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह शरीर के लिए कितना घातक है? वहीं इसी जगह फ्रिज के ठंडे पानी की बजाए जब आप मटके का पानी पीते हैं तो आपको इसके फायदे मिलते हैं।


🚩बढ़ता है स्ट्रा चर्बी युक्त वजन

खाने के तुरंत बाद फ्रिज का पानी पीने से डाइजेशन प्रोसेस धीमा हो जाता है। इसका असर हमारे मेटाबॉलिज्म पर पड़ता है, जिससे बॉडी में फैट जमा होता है। फ्रिज का पानी पीने से बॉडी में फैट जमा होता है, जिससे स्ट्रा चर्बी युक्त वजन बढ़ता है।


🚩डाइजेशन पर असर


🚩ज्यादा ठंडा पानी पीने से नसों में कसावट आ जाती है। जिस तरह गर्म पानी से चेहरा धोने पर सारे पोर्स ओपन होते हैं जबकि ठंडे पानी से बंद हो जाते हैं। उसी तरह ठंडा पानी पीने से नसें और पेट कस जाता है। जिसका असर सीधे डाइजेशन की प्रोसेस पर पड़ता है। इसलिए जरूरत से ज्यादा ठंडा पानी कुछ पल की राहत देने से ज्यादा नुकसान करता है।


🚩हार्ट रेट पर असर

एक मेडिकल रिसर्च में दावा किया गया है कि फ्रिज से निकला बहुत ठंडा पानी सीधे दिल की धड़कनों पर असर डालता है। रिसर्च के मुताबिक ठंडे पानी से दिल की धड़कन घट या बढ़ सकती है।


🚩फेफड़ों पर पड़ता है असर

लगातार फ्रिज का पानी पीने से टॉन्सिल की समस्या होती है। इससे फेफड़े और पाचन पर असर पड़ता है। इसलिए फ्रिज का ठंडा पानी पीने की बजाय नॉर्मल या फिर घड़े का पानी पीना चाहिए।


🚩सिरदर्द का कारण

ज्यादा ठंडा पानी सिरदर्द का कारण भी बन सकता है। खासतौर से अगर आप बर्फ की तरह ठंडा या बर्फ जमा पानी बार बार पीते हैं तो इसका असर नसों पर पड़ता है। नसें ठंडी होने का मैसेज दिमाग पर जाता है जिसका नतीजा तेज सिरदर्द हो सकता है।


🚩गला खराब

हमारा शरीर ठंडे पानी के लिए जल्दी से अभयस्त नहीं हो पाता है। इसलिए फ्रिज का पानी पीने से गला खराब होने की शिकायत होती है। इसी के साथ सर्दी जुकाम भी हो जाता है।


🚩मटके का पानी है फायदेमंद


🚩जानकारों की मानें तो मटके का पानी विटामिन बी और सी का समृद्ध स्रोत होता है, जो शरीर की इम्यूनिटी को बढ़ाता है. साथ ही दिमाग और पाचन तंत्र के लिए फायदेमंद होता है। इससे शरीर की कई बीमारियां भी दूर होती हैं। वहीं RO पानी को फिल्टर करने के दौरान उससे जरूरी पोषक तत्वों को भी खत्म कर देता है, जबकि मटका नैचुरल फिल्टर के रूप में काम करता है। मटके का पानी आयरन की कमी दूर करने में भी सक्षम होता है।


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Sunday, March 3, 2024

पर्सनल लॉ और समान नागरिकता संहिता नही होने देश में कितनी परेशानियां होती हैं???

04  March 2024

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🚩1. मुस्लिम पर्सनल लॉ में बहु-विवाह करने की छूट है लेकिन अन्य धर्मो में 'एक पति-एक पत्नी' का नियम बहुत कड़ाई से लागू है। बाझपन या नपुंसकता जैसा उचित कारण होने पर भी हिंदू ईसाई पारसी के लिए दूसरा विवाह अपराध है और IPC की धारा 494 में 7 वर्ष की सजा का प्रावधान है इसीलिए कई लोग दूसरा विवाह करने के लिए मुस्लिम धर्म अपना लेते हैं। भारत जैसे सेक्युलर देश में चार निकाह जायज है जबकि इस्लामिक देश पाकिस्तान में पहली बीवी की इजाजत के बिना शौहर दूसरा निकाह नहीं कर सकता हैं। 'एक पति - एक पत्नी' किसी भी प्रकार से धार्मिक या मजहबी विषय नहीं है बल्कि "सिविल राइट, ह्यूमन राइट और राइट टू डिग्निटी" का मामला है इसलिए यह जेंडर न्यूट्रल और रिलिजन न्यूट्रल होना चाहिए।


🚩2. विवाह की न्यूनतम उम्र सबके लिए समान नहीं है। मुस्लिम लड़कियों की वयस्कता की उम्र निर्धारित नहीं है और माहवारी शुरू होने पर लड़की को निकाह योग्य मान लिया जाता है इसलिए 9 वर्ष की उम्र में लड़कियों का निकाह कर दिया जाता है जबकि अन्य धर्मो मे लड़कियों की विवाह की न्यूनतम उम्र 18 वर्ष और लड़कों की विवाह की न्यूनतम उम्र 21 वर्ष है। विश्व स्वास्थ्य संगठन कई बार कह चुका कि 20 वर्ष से पहले लड़की शारीरिक और मानसिक रूप से परिपक्व नहीं होती है और 20 वर्ष से पहले गर्भधारण करना जच्चा-बच्चा दोनों के लिए अत्यधिक हानिकारक है, लड़का हो या लड़की, 21 वर्ष से पहले दोनों ही मानसिक रूप से परिपक्व नहीं होते हैं, 21 वर्ष से पहले तो बच्चे ग्रेजुएशन भी नहीं कर पाते हैं और 21 वर्ष से पहले बच्चे आर्थिक रूप से भी आत्मनिर्भर भी नहीं होते हैं इसलिए विवाह की न्यूनतम उम्र सबके लिए एक समान 21 वर्ष करना नितांत आवश्यक है। 'विवाह की न्यूनतम उम्र' किसी भी तरह से धार्मिक या मजहबी विषय नहीं है बल्कि सिविल राइट और ह्यूमन राइट का मामला है इसलिए यह भी जेंडर न्यूट्रल और रिलिजन न्यूट्रल होना चाहिए।


🚩3. तीन तलाक अवैध घोषित होने के बावजूद अन्य प्रकार के मौखिक तलाक (तलाक-ए-हसन एवं तलाक-ए-अहसन) आज भी मान्य है और इसमें भी तलाक का आधार बताने की बाध्यता नहीं है और केवल 3 महीने प्रतीक्षा करना है जबकि अन्य धर्मों में केवल न्यायालय के माध्यम से ही विवाह-विच्छेद हो सकता है। हिंदू ईसाई पारसी दंपति आपसी सहमति से भी मौखिक विवाह-विच्छेद की सुविधा से वंचित है। मुसलमानों में प्रचलित तलाक का न्यायपालिका के प्रति जवाबदेही नहीं होने के कारण मुस्लिम बेटियों को हमेशा भय के वातावरण में रहना पड़ता है। तुर्की जैसे मुस्लिम बाहुल्य देश में भी किसी तरह का मौखिक तलाक मान्य नहीं है इसलिए तलाक का आधार भी जेंडर न्यूट्रल रिलिजन न्यूट्रल और सबके लिए यूनिफार्म होना चाहिए।


🚩4. मुस्लिम कानून में मौखिक वसीयत एवं दान मान्य है लेकिन अन्य धर्मों में केवल पंजीकृत वसीयत एवं दान ही मान्य है। मुस्लिम कानून मे एक-तिहाई से अधिक संपत्ति का वसीयत नहीं किया जा सकता है जबकि अन्य धर्मों में शत-प्रतिशत संपत्ति का वसीयत किया जा सकता है। वसीयत और दान किसी भी तरह से धार्मिक या मजहबी विषय नहीं है बल्कि सिविल राइट और ह्यूमन राइट का मामला है इसलिए यह भी जेंडर न्यूट्रल रिलिजन न्यूट्रल और सबके लिए यूनिफार्म होना चाहिए।


🚩5. मुस्लिम कानून में 'उत्तराधिकार' की व्यवस्था अत्यधिक जटिल है, पैतृक संपत्ति में पुत्र एवं पुत्रियों के मध्य अत्यधिक भेदभाव है, अन्य धर्मों में भी विवाहोपरान्त अर्जित संपत्ति में पत्नी के अधिकार अपरिभाषित हैं और उत्तराधिकार के कानून बहुत जटिल है, विवाह के बाद पुत्रियों के पैतृक संपत्ति में अधिकार सुरक्षित रखने की व्यवस्था नहीं है और विवाहोपरान्त अर्जित संपत्ति में पत्नी के अधिकार अपरिभाषित हैं।  'उत्तराधिकार' किसी भी तरह से धार्मिक या मजहबी विषय नहीं है बल्कि सिविल राइट और ह्यूमन राइट का मामला है इसलिए यह भी जेंडर न्यूट्रल रिलिजन न्यूट्रल और सबके लिए यूनिफार्म होना चाहिए।


🚩6. विवाह विच्छेद (तलाक) का आधार भी सबके लिए एक समान नहीं है। व्याभिचार के आधार पर मुस्लिम अपनी बीबी को तलाक दे सकता है लेकिन बीवी अपने शौहर को तलाक नहीं दे सकती है। हिंदू पारसी और ईसाई धर्म में तो व्याभिचार तलाक का ग्राउंड ही नहीं है। कोढ़ जैसी लाइलाज बीमारी  के आधार पर हिंदू और ईसाई धर्म में तलाक हो सकता है लेकिन पारसी और मुस्लिम धर्म में नहीं। कम उम्र में विवाह के आधार पर हिंदू धर्म में विवाह विच्छेद हो सकता है लेकिन पारसी ईसाई मुस्लिम में यह संभव नहीं है।  'विवाह विच्छेद' किसी भी तरह से धार्मिक या मजहबी विषय नहीं है बल्कि सिविल राइट और ह्यूमन राइट का मामला है इसलिए यह भी पूर्णतः जेंडर न्यूट्रल रिलिजन न्यूट्रल और सबके लिए यूनिफार्म होना चाहिए।


🚩7.   गोद लेने और भरण-पोषण करने का नियम भी हिंदू मुस्लिम पारसी ईसाई के लिए अलग-अलग है। मुस्लिम महिला गोद नहीं ले सकती है और अन्य धर्मों में भी पुरुष प्रधानता के साथ गोद लेने की व्यवस्था लागू है. 'गोद लेने का अधिकार' किसी भी तरह से धार्मिक या मजहबी विषय नहीं है बल्कि सिविल राइट और ह्यूमन राइट का मामला है इसलिए यह भी पूर्णतः जेंडर न्यूट्रल रिलिजन न्यूट्रल और सबके लिए यूनिफार्म होना चाहिए।


🚩8. विवाह-विच्छेद के बाद हिंदू बेटियों को तो गुजारा-भत्ता मिलता है लेकिन तलाक के बाद मुस्लिम बेटियों को गुजारा भत्ता नहीं मिलता है। गुजारा-भत्ता किसी भी तरह से धार्मिक या मजहबी विषय नहीं है बल्कि सिविल राइट और ह्यूमन राइट का मामला है इसलिए यह भी पूर्णतः जेंडर न्यूट्रल रिलिजन न्यूट्रल और सबके लिए यूनिफार्म होना चाहिए। "भारतीय दंड संहिता" की तर्ज पर सभी नागरिकों के लिए एक समग्र समावेशी  और एकीकृत "भारतीय नागरिक संहिता" लागू होने से विवाह विच्छेद के बाद सभी बहन बेटियों को गुजारा भत्ता मिलेगा, चाहे वह हिंदू हो या मुसलमान, पारसी हो या ईसाई और धर्म जाति क्षेत्र लिंग आधारित विसंगति समाप्त होगी. 


🚩9. पैतृक संपत्ति में पुत्र-पुत्री तथा बेटा-बहू को समान अधिकार प्राप्त नहीं है और धर्म क्षेत्र और लिंग आधारित विसंगतियां है। विरासत और संपत्ति का अधिकार किसी भी तरह से धार्मिक या मजहबी विषय नहीं बल्कि सिविल राइट और ह्यूमन राइट का मामला है इसलिए यह भी पूर्णतः जेंडर न्यूट्रल रिलिजन न्यूट्रल और सबके लिए यूनिफार्म होना चाहिए।  "भारतीय दंड संहिता" की तर्ज पर सभी नागरिकों के लिए एक समग्र समावेशी  और एकीकृत "भारतीय नागरिक संहिता" लागू होने से धर्म क्षेत्र लिंग आधारित विसंगतियां समाप्त होगी और विरासत तथा संपत्ति का अधिकार सबके लिए एक समान होगा चाहे वह हिंदू हो या मुसलमान, पारसी हो या ईसाई ।

  

🚩10.  पर्सनल लॉ लागू होने के कारण विवाह-विच्छेद की स्थिति में विवाहोपरांत अर्जित संपत्ति में पति-पत्नी को समान अधिकार नहीं है जबकि यह किसी भी तरह से धार्मिक या मजहबी विषय नहीं बल्कि सिविल राइट और ह्यूमन राइट का मामला है इसलिए यह भी पूर्णतः जेंडर न्यूट्रल रिलिजन न्यूट्रल और सबके लिए यूनिफार्म होना चाहिए। "भारतीय दंड संहिता" की तर्ज पर सभी नागरिकों के लिए एक समग्र समावेशी और एकीकृत "भारतीय नागरिक संहिता" लागू होने से धर्म क्षेत्र लिंग आधारित विसंगतियां समाप्त होगी और  विवाहोपरांत अर्जित संपत्ति का अधिकार सबके लिए एक समान होगा चाहे वह हिंदू हो या मुसलमान, पारसी हो या ईसाई .


🚩11. अलग-अलग धर्मों के लिए अलग-अलग पर्सनल लॉ लागू होने के कारण मुकदमों की सुनवाई में अत्यधिक समय लगता है। भारतीय दंड संहिता की तरह सभी नागरिकों के लिए राष्ट्रीय स्तर पर एक समग्र समावेशी एवं एकीकृत भारतीय नागरिक संहिता लागू होने से न्यायालय का बहुमूल्य समय बचेगा. 


🚩12. अलग-अलग संप्रदाय के लिए लागू अलग-अलग ब्रिटिश कानूनों से नागरिकों के मन में हीन भावना व्याप्त है। भारतीय दंड संहिता की तर्ज पर देश के सभी नागरिकों के लिए एक समग्र समावेशी और एकीकृत "भारतीय नागरिक संहिता" लागू होने से समाज को सैकड़ों जटिल, बेकार और पुराने कानूनों ही नहीं बल्कि हीन भावना से भी मुक्ति मिलेगी।


🚩13. अलग-अलग पर्सनल लॉ लागू होने के कारण अलगाववादी मानसिकता बढ़ रही है और हम एक अखण्ड राष्ट्र के निर्माण की दिशा में त्वरित गति से आगे नहीं बढ़ पा रहे हैं। भारतीय दंड संहिता की तरह सभी नागरिकों के लिए राष्ट्रीय स्तर पर एक समग्र समावेशी एवं एकीकृत भारतीय नागरिक संहिता लागू एक भारत श्रेष्ठ भारत का सपना साकार होगा।  


🚩14. हिंदू मैरिज एक्ट में तो महिला-पुरुष को लगभग एक समान अधिकार प्राप्त है लेकिन मुस्लिम और पारसी पर्सनल लॉ में बेटियों के अधिकारों में अत्यधिक भेदभाव है। भारतीय दंड संहिता की तरह सभी नागरिकों के लिए राष्ट्रीय स्तर पर एक समग्र समावेशी एवं एकीकृत भारतीय नागरिक संहिता का सबसे ज्यादा फायदा मुस्लिम और पारसी बेटियों को मिलेगा क्योंकि उन्हें पुरुषों के बराबर नहीं माना जाता है।


🚩15. अलग-अलग पर्सनल लॉ के कारण रूढ़िवाद कट्टरवाद सम्प्रदायवाद क्षेत्रवाद भाषावाद बढ़ रहा है। देश के सभी नागरिकों के लिए एक समग्र और एकीकृत "भारतीय नागरिक संहिता" लागू होने से रूढ़िवाद कट्टरवाद सम्प्रदायवाद क्षेत्रवाद भाषावाद ही समाप्त नहीं होगा बल्कि वैज्ञानिक और तार्किक सोच भी विकसित होगी.


🚩माननीय प्रधानमंत्री जी,

आर्टिकल 14 के अनुसार देश के सभी नागरिक एक समान हैं, आर्टिकल 15 जाति धर्म भाषा क्षेत्र और जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव का निषेध करता है, आर्टिकल 16 सबको समान अवसर उपलब्ध कराता है, आर्टिकल 19 देश मे कहीं पर भी जाकर पढ़ने रहने बसने रोजगार करने का अधिकार देता और आर्टिकल 21 सबको सम्मान पूर्वक जीवन जीने का अधिकार देता है। आर्टिकल 25 धर्म पालन का अधिकार देता है अधर्म का नहीं, रीतियों को पालन करने का अधिकार देता है कुरीतियों का नहीं, प्रथाओं को पालन करने का अधिकार देता है कुप्रथाओं का नहीं। देश के सभी नागरिकों के लिए एक समग्र समावेशी और एकीकृत "भारतीय नागरिक संहिता" लागू होने से आर्टिकल 25 के अंतर्गत प्राप्त मूलभूत धार्मिक अधिकार जैसे पूजा, नमाज या प्रार्थना करने, व्रत या रोजा रखने तथा मंदिर, मस्जिद, चर्च, गुरुद्वारा का प्रबंधन करने या धार्मिक स्कूल खोलने, धार्मिक शिक्षा का प्रचार प्रसार करने या विवाह-निकाह की कोई भी पद्धति अपनाने या मृत्यु पश्चात अंतिम संस्कार के लिए कोई भी तरीका अपनाने में किसी भी तरह का हस्तक्षेप नहीं होगा।


🚩विवाह की न्यूनतम उम्र, विवाह विच्छेद (तलाक) का आधार, गुजारा भत्ता, गोद लेने का नियम, विरासत का नियम और संपत्ति का अधिकार सहित उपरोक्त सभी विषय सिविल राइट और ह्यूमन राइट से सम्बन्धित हैं जिनका न तो मजहब से किसी तरह का संबंध है और न तो इन्हें धार्मिक या मजहबी व्यवहार कहा जा सकता है लेकिन आजादी के 75 साल बाद भी धर्म या मजहब के नाम पर महिला-पुरुष में भेदभाव जारी है। हमारे संविधान निर्माताओं ने अनुच्छेद 44 के माध्यम से 'समान नागरिक संहिता' की कल्पना किया था ताकि सबको समान अधिकार और समान अवसर मिले और देश की एकता अखंडता मजबूत हो लेकिन वोट बैंक राजनीति के कारण 'समान नागरिक संहिता या भारतीय नागरिक संहिता' का एक ड्राफ्ट भी नहीं बनाया गया। जिस दिन 'भारतीय नागरिक संहिता' का एक ड्राफ्ट बनाकर सार्वजनिक कर दिया जाएगा और आम जनता विशेषकर बहन बेटियों को इसके लाभ के बारे में पता चल जाएगा, उस दिन कोई भी इसका विरोध नहीं करेगा. सच तो यह है कि जो लोग समान नागरिक संहिता के बारे में कुछ नहीं जानते हैं वे ही इसका विरोध कर रहे हैं।


🚩आर्टिकल 37 में स्पष्ट रूप से लिखा है कि नीति निर्देशक सिद्धांतों को लागू करना सरकार की फंडामेंटल ड्यूटी है। जिस प्रकार संविधान का पालन करना सभी नागरिकों की फंडामेंटल ड्यूटी है उसी प्रकार संविधान को शत प्रतिशत लागू करना सरकार की फंडामेंटल ड्यूटी है। किसी भी सेक्युलर देश में धार्मिक आधार पर अलग-अलग कानून नहीं होता है लेकिन हमारे यहाँ आज भी हिंदू मैरिज एक्ट, पारसी मैरिज एक्ट और ईसाई मैरिज एक्ट लागू है, जब तक भारतीय नागरिक संहिता लागू नहीं होगी तब तक भारत को सेक्युलर कहना सेक्युलर शब्द को गाली देना है। यदि गोवा के सभी नागरिकों के लिए एक 'समान नागरिक संहिता' लागू हो सकती है तो देश के सभी नागरिकों के लिए एक 'भारतीय नागरिक संहिता' क्यों नहीं लागू हो सकती है ?


🚩माननीय प्रधानमंत्री जी,

जाति धर्म भाषा क्षेत्र और लिंग आधारित अलग-अलग कानून 1947 के विभाजन की बुझ चुकी आग में सुलगते हुए धुएं की तरह हैं जो विस्फोटक होकर देश की एकता को कभी भी खण्डित कर सकते हैं इसलिए इन्हें समाप्त कर एक 'भारतीय नागरिक संहिता' लागू करना न केवल धर्मनिरपेक्षता को बनाए रखने के लिए बल्कि देश की एकता-अखंडता को अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए भी अति आवश्यक है। दुर्भाग्य से 'भारतीय नागरिक संहिता' को हमेशा तुष्टीकरण के चश्मे से देखा जाता रहा है। जब तक भारतीय नागरिक संहिता का ड्राफ्ट प्रकाशित नहीं होगा तब तक केवल हवा में ही चर्चा होगी और समान नागरिक संहिता के बारे में सब लोग अपने अपने तरीके से व्याख्या करेंगे और भ्रम फैलाएंगे इसलिए विकसित देशों में लागू "समान नागरिक संहिता" और गोवा में लागू "गोवा नागरिक संहिता" का अध्ययन करने और "भारतीय नागरिक संहिता" का ड्राफ्ट बनाने के लिए तत्काल एक ज्यूडिशियल कमीशन या एक्सपर्ट कमेटी बनाना चाहिए।  -  एडवोकेट अश्विनी उपाध्याय


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Saturday, March 2, 2024

भारत का अहिन्दूकरण कैसे हो रहा है, उसके रोकने का उपाय क्या हैं ?

03 March 2024

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🚩आज पुरे भारत में दलित जाति के हिन्दूओं को जोर शोर से ईसाई बनाया जा रहा रहा है। टीवी हिन्दू सो रहा है। प्रायः हिन्दू समझता है कि मत/ मजहब बदलने से कुछ अंतर नहीं पड़ता। सच तो यह है कि धर्मांतरण आगे चल कर राष्ट्रान्तरण में बदल जाता है। जो भी मुस्लिम बन जाता है उसकी तीसरी पीढ़ी अपनी जड़ें मक्का मदीना से जोडती है।जो ईसाई बन जाता है उसकी तीसरी पीढ़ी अपने को वेटिकन के अधिक निकट पाती है।भारत में जहाँ भी हिन्दू कंम है उन्ही राज्यों में अधिक अशांति है। जैसे कश्मीर और मिजोरम।


🚩यह समस्या कितनी जटिल है इसका जन सामान्य को अनुमान नहीं है।

पाठको ने संभवतः मुहम्मद अली जिन्नाह (पाकिस्तान निर्माता) और मुहम्मद इकबाल (पाकिस्तान के वैचारिक जनक) का नाम सुना होगा। इनके पूर्वज भी हिन्दू से मुस्लिम बने थे। परन्तु इन्होने भारत विभाजन में कितनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई यह सभी जानते हैं। इसी तरह पण्डित नीलकंठ शास्त्री का उदाहरण है। ये महाराष्ट्रिय ब्राह्मण थे। संस्कृत के विद्वान थे व इन्होने महाभारत पर नीलकंठी टीका भी लिखी है। एक घटना से प्रभावित होकर ये ईसाई बन गए। उसके बाद इन्होने अनेक हिन्दूओं को ईसाई बनाया। यद्यपि आर्यसमाज के प्रभाव के कारण ये पंजाब में अधिक सफल नहीं हुए परन्तु संयुक्त प्रान्त ( जिसमे मुखयतः आज का उत्तरप्रदेश है. ) इन्होने बड़ी सफलता पाई।


चूक कहाँ हुई -


🚩एक समय था जब अनेक स्थानों पर मुस्लिम दुबारा हिन्दू बनना चाहते थे।


🚩 हमारे अंदर जाति का मिथ्याभिमान आवश्यकता से अधिक है। मेवात में एकबार यही प्रश्न उठा था। मुस्लिम नेता ने कहा कि हमारी बेटियां सुन्दर हैं उन्हें हिन्दू ले लेंगे।परन्तु हमें अपनी बेटी कौन हिन्दू देगा। उस समय वहां हजारों की संख्या में हिन्दू उपस्थित थे, परन्तु एक भी खड़ा नहीं हुआ।उस घटना को लगभग 50 साल हो चुके हैं। मेवात में हिन्दूओं की सैंकड़ों बेटियां लव जेहाद का शिकार हो कर मुस्लिम बन चुकी हैं।अब यह समस्या लाइलाज बन चुकी है क्योंकि 1980 के बाद आए पेट्रोडालर ने बाजी ही पलट दी है। सऊदी पैसा आने के बाद उत्तरप्रदेश से सैंकड़ों इमाम मेवात की मस्जिदों में आए और इनकी विचारधारा ही बदल दी।


🚩स्वामी श्रद्धानन्द जी अपनी पुस्तक हिन्दू संगठन में लिखते हैं--


🚩राजपूताना ( आज का राजस्थान) से कुछ युवक मेरे पास आए और मुझे सन्यासी समझ कर प्रणाम किया। मैंने उन्हें हिन्दू समझा। उन्होंने अपने सिर पर टोपी उतार कर चोटी भी दिखाई ।मैंने उन्हें शुद्धि की आवश्यकता के बारे में बताया। तभी कोई आया और उसने मुझे बताया कि ये युवक मुस्लिम हैं।उसके बाद मैंने सोचा इनकी कैसी शुद्धि? इन्होने तो अत्यन्त कठिन परिस्थिति में भी अपना धर्म नहीं छोड़ा। प्रायश्चित तो हिन्दू समाज को करना चाहिए जिन्होंने अपने भाइयों को अलग कर दिया।


🚩श्री एम मुजीब ने अपनी पुस्तक ‘दी इडियन मुस्लिम‘ में कई उदाहरण देते हुये  विस्तार से बताया है कि धर्म बदलने के बाबजूद मुसलमानों ने अपनी परंपराओं और रीति-रिवाजों में हिंदू तहजीब को अपनाये रखा। उन्होंनें लिखा है-

‘ करनाल में 1865 तक बहुत से मुस्लिम किसान अपने पुराने गांवों के देवताओं की पूजा करते थे और साथ ही मुसलमान होने के कारण कलमा भी पढ़ते थे। इसी तरह अलवर और भरतपुर के मेव और मीना मुसलमान तो हो गये थे पर उनके नाम पूर्णरुपेण हिंदू होते थे और अपने नाम के साथ वो खान लगाते थे। ये लोग दीपावली, दुर्गापूजा, जन्माष्टमी तो मनाते ही थे,साथ ही कुएं की खुदाई के वक्त एक चबूतरे पर हनुमान की पूजा करते थे। मेव भी हिंदुओं की तरह अपने गोत्र में शादी नहीं करते। मीना जाति वाले मुस्लिम भैरो (शिव) तथा हनुमान की पूजा करते थे और (क्षत्रिय हिंदुओं की तरह) कटार से शपथ लेते थे।

बूंदी राज्य में रहने वाले परिहार मीना गाय और सूअर दोनों के गोश्त से परहेज करते थे। रतलाम से लगभग 50 मील दूर जाओरा क्षेत्र में कृषक मुसलमान शादी के समय हिंदू रीति-रिवाज को मानतें है।

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🚩हरियाणा के कुरुक्षेत्र के निकट एक गाँव में मिशनरियों की चंगाई सभा होने जा रही थी।आर्य समाज से जुड़े कुछ अत्यन्त उत्साही युवकों ने उसे रोकने के लिए सिर धड़ की बाजी लगा दी। संस्थाओं ने कोई साथ नहीं दिया। गाँव में पंचायत हुई। ये आर्य समाजी युवक ईसाई मिशनरी का विरोध कर रहे थे। बाकी सभी हिन्दू कह रहे कि तुम आर्यसमाजियों के साथ पता नहीं क्या समस्या है। जिसे ईसाई बनना है बने। यह उसका निजी मामला है।हमे चुप रहना चाहिए। ईश्वर कृपा से इन युवकों का परिश्रम सफल हुआ और गाँव में चंगाई सभा का कार्यक्रम नहीं हो पाया।


🚩ध्यान रखें – आपका घर, गाँव जिला और प्रान्त यहीं रहेगा। भारत यहीं रहेगा। परन्तु आज से 100 साल बाद यहाँ कौन रहेगा इसका निर्णय हमें करना है। हम नहीं रहेंगे परन्तु यहाँ पर गौरक्षक रहेंगे या गौभक्षक?  प्रार्थना करने वाले रहेंगे या नमाज करने वाले? वेटिकन वाले रहेंगे या मक्का वाले या काशी वाले ? यह हमारे आज के निर्णय पर निर्भर होगा।


🚩एक स्वतन्त्रता से पहले और बाद में, जहाँ मुस्लिम वर्चस्व रहा है वहाँ पर बलपूर्वक, हिंसा द्वारा, तलवार के जोर से हिन्दूओं को मुसलमान बनाया गया और आज भी बनाया जा रहा है |


🚩दूसरा स्वतन्त्रता के बाद देश में प्रलोभन देकर, झूठे प्रचार, चमत्कार दिखाकर बड़ी संख्या में हिन्दूओं को धर्मान्तरित किया गया, आज भी धर्मान्तरित किया जा रहा है |


🚩तीसरा इन दोनों परिस्थितियों में जहाँ धर्मान्तरण करने वाले दोषी है, वहाँ हिन्दूओं के द्वारा जन्म से जातिपाति मानना, ऊँचनीच, अस्पृश्यता आदि के लिये हिन्दू समाज उत्तरदायी है |

घर वापसी का विरोध करने वालों को घर वापसी की कमियों का ही पता नहीं है या वे केवल हिन्दू विरोधी होने का गौरव प्राप्त करना चाहते हैं। जहाँ बलपूर्वक हिंसा या भय से धर्म परिवर्तन हुआ है, वहाँ घर वापसी की बात ठीक लगती है | जहाँ धर्मान्तरण में हिन्दू समाज की विचारधारा उत्तरदायी है, वहाँ घर वापसी के लिए हिन्दू समाज को स्वयं में सुधार लाना होगा, वास्तविकता तो यह है कि हिन्दू जिस हिन्दूत्व पर गर्व करता है वही उसके विनाश का कारण है, आज भी हिन्दू की पहचान उसकी किसी सामाजिक समानता से नहीं होती,हिन्दू की यदि पहचान है तो उसकी जाति से है फिर किसी ईसाई या मुसलमान की घर वापसी करेंगे तो ब्राह्मण को तो ब्राह्मण बनायेंगे और ठाकुर या जाट रहा तो उसे ठाकुर या जाट बना देंगे, यदि वह दलित रहा तो उसे घर वापसी में दलित ही बनाना पड़ेगा | यदि घर वापसी पर उसे दलित ही बनना पड़ा तो इस खण्डहर में उसे लौटने में लौटने वाले का क्या आकर्षण होगा | ईसाई या मुसलमान बने व्यक्ति को उसका समाज धर्म में, जन्मगत ऊँच-नीच, छूआछूत का अपमान नहीं ढ़ोना पड़ता |


🚩आर्य समाज और स्वामी दयानंद के शुद्धि की चर्चा करते हुए इन हिन्दूवादीयों का गला सूखता है परन्तु उदाहरण हमारे सामनें है जहाँ आर्य समाज के प्रयास सार्थक हुए हैं | उत्तर भारत में जो जाट मुसलमान हो गये उन्हें मूल जाट कहा जाता है तथा जो राजपूत मुसलमान हुए उन्हें रांघड़ राजपूत कहते हैं | उत्तरप्रदेश में एक गाँव है जिनावा गुलियान, इस गाँव में मूले जाट रहते थे, आर्यसमाज ने सम्मेलन करके उन्हें शुद्ध कर हिन्दू समाज में मिलाने का प्रयास किया | उस समय सबसे बड़ी बाधा यही सामने आई, मुसलमानोॉ ने कहा हम हिन्दू तो बन जायेंगे परन्तु हमें कौन हिन्दू है जो अपनी लड़की देगा | उस समय आर्य नेता बूढ़पुर के निवासी श्री लज्जाराम के सुपुत्र पूर्ण चन्द जी जो बाद में स्वामी पूर्णानंद के नाम से प्रसिद्ध हुए उन्होने सभा में खड़े होकर घोषणा की सबसे पहले वे अपनी लड़की का विवाह लड़के से करने को तैयार है, बस फिर क्या था ? सारा गाँव हिन्दू हो गया, आज सारा गाँव हिन्दू है | इन्ही परिवारों के सदस्य भी रहे हैं इन्हीं परिवारों के सदस्य श्री सत्येन्द्र सोलंकी उत्तर प्रदेश विधान सभा के सदस्य भी रहे है | यही उपाय है धर्मान्तरण रोकने का और घर वापसी को सफल बनाने का |

स्वामी श्रद्धानंद जी ने शुद्धि का सबसे बड़ा आन्दोलन चलाया, उन्होंने शुद्धि सम्मेलन कर बड़े-बड़े हिन्दू नेताओं की उपस्थिति में अस्सी हजार मूले जाटों की शुद्धि की थी | इस शुद्धि की शिकायत 1923-24में आगरा में हुए कांग्रेस अधिवेशन में मौलाना अली बंधुओं ने उस समय के मोती लाल नेहरू से की थी, तब मोती लाल नेहरू ने अली बंधुओं को उत्तर दिया-अली भाई ये आर्यसमाजी कब से शुद्धि का कार्य कर रहे हैं ? तब स्वामी दयानंद का स्वर्गवास हुए 40 वर्ष हो गये थे | अली भाई ने कहा लगभग 40 वर्ष से तब मोती लाल नेहरू ने अलीबंधु से कहा- मौलना जमीन का मोरूसी (स्वामित्व) बारह वर्ष में हो जाती है इसलिये तुम्हारी शिकायत का कोई मुल्य नहीं है, अलीबंधुओं ने यह शिकायत गाँधी जी से भी कही थी | 


🚩गाँधी जी ने स्वामी श्रद्धानंद जी को बुलाकर उन्हें कहा- आप शुद्धि का काम छोड़ दें | इससे मुसलमान भाईयों को दु:ख होता है तब स्वामी जी ने उत्तर दिया- यदि मुसलमान तबलीग का छोड़ दें तो मैं भी शुद्धि के कार्य बंद कर दूंगा | तब अलिबंधुओं ने कहा हमारे लिए यह धार्मिक आदेश है, अत: इस धर्मान्तरण के कार्य को हम बंद नहीं कर सकते | तब श्रद्धानंद जी ने कहा फिर मैं शुद्घि का काम कैसे बंद कर सकता हूँ |

हरियाणा के मुस्लिम बहुल मेवात क्षेत्र में आर्य समाज के स्वामी समर्पणानंद जी ने मुस्लिम नेताओं के सामने हिन्दू बनने का प्रस्ताव रखा था, इसके उत्तर में उस समय के मुस्लिम नेता खुर्शिद अहमद, जो स्वयं धोती कुर्ता पहनते थे और पगड़ी बांधते थे- ने स्वामी दी के प्रस्ताव के उत्तर में कहा था, बाबा जी हिन्दू लोग हमारी लड़कियाँ तो ले लेंगे, हमारी लड़कियाँ सुन्दर होती हैं परन्तु हमारे लड़कों को आपके लोग लड़की देंगे ? यह प्रस्ताव कार्यान्वित नहीं हो सका |


🚩वर्तमान परिस्थिति में घर वापसी को सफल बनाने का एक ही उपाय है, "घर वापसी", शुद्धि, परावर्तन अनेक नामों से हम लोग एक प्राचीन संस्कार से आज परिचित है। प्राचीन काल में अनार्यों को आर्य बनाने की प्रक्रिया को शुद्धि कहा जाता था। इस प्रक्रिया में आत्मचरित को पवित्र करना शुद्ध कहलाता था। आज विधर्मी जैसे मुस्लिम अथवा ईसाई हो चूके हमारे भाइयों को पुन: वैदिक सनातन धर्म में प्रविष्ट करने को “शुद्ध” करना कहा जाता है।


🚩 28 दिसंबर 2014 के Midday अख़बार में मुंबई के रहने वाले संस्कृत विद्वान श्री गुलाम दस्तगीर जी का बयान छपा कि हिन्दू धर्मग्रंथों में शुद्धि का विधान नहीं है। हम इस लेख के माध्यम से गुलाम साहिब जी की इस भ्रान्ति का निवारण करना चाहते हैं की शुद्धि का विधान न केवल प्राचीन हैं अपितु इसका वैदिक ग्रंथों में अनेक स्थलों पर वर्णन मिलता हैं जिससे न केवल उनकी भ्रान्ति दूर हो सके अपितु उनके निकष्ट सज्जन भी इस भ्रान्ति का शिकार न हो।

वेदों में "शुद्धि" का सन्देश


🚩1. हे विद्वानों! जो गिरे हुए है उनको फिर से उठाओ। जिन्होंने पाप किया है अथवा जिनका जीवन मैला हो गया है उनको फिर से जीवन दो या "शुद्ध" करो।ऋग्वेद 10/137/1


🚩2. हे इन्द्र! शत्रुओं के निवारणार्थ हमें शक्ति दीजिये जो हिंसारहित एवं कल्याणकारक है। जिससे तुम दासों (अनार्यों) को आर्य अर्थात श्रेष्ठ बनाते हो, जो मनुष्य की वृद्धि का हेतु है।ऋग्वेद 6/22/10


🚩3. परमेश्वर के नाम को आगे बढ़ाते हुए सब संसार को आर्य अर्थात श्रेष्ठ बनाओ। ऋग्वेद 9/63/5

श्रोत्र-सूत्र ग्रंथों में शुद्धि का विधान


🚩1. भ्रष्ट द्विजों की संतान को शुद्ध कर यज्ञोपवीत दे देना चाहिये। आपस्तम्भ 1/1/1


🚩2. प्रायश्चित से प्रायश्चित्कर्ता शुद्ध होकर अपने असली वर्ण को प्राप्त करता है। आपस्तम्भ 1/1/2


🚩3. उपद्रव, व्याधि, मुसीबत आदि में शरीर की रक्षार्थ जो विधर्मी बने वह शांति होने पर शुद्ध होने के लिए प्रायश्चित कर ले। पराशर स्मृति 7/41


🚩4. देश में उपद्रव आदि के काल में जिनका यज्ञोपवीत उतारा गया वह मास भर दुग्ध पान का व्रत करे, गोपालन करे और पुन: यज्ञोपवीत धारण करे। हारीत स्मृति


🚩5. जिनको मलेच्छों ने बलपूर्वक गोहत्या, मांसभक्षण आदि नीचकर्म किये हो वह वर्णानुसार कृच्छ व्रत कर शुद्ध हो जाये। देवल स्मृति श्लोक 9-11


🚩6. गोवध आदि समतुल्य पातकियों की शुद्धि चान्द्रायण आदि व्रतों से होती हैं। याज्ञवल्क्य स्मृति प्र -5


🚩भविष्य पुराण में शुद्धि का वर्णन


🚩1.कण्व ऋषि द्वारा मलेच्छों की शुद्धि का वर्णन। भविष्य पुराण प्रतिसर्ग खंड 4 अध्याय 21 श्लोक 17-21


🚩2. अग्निवंश के राजाओं द्वारा बौद्धों की शुद्धि का वर्णन। भविष्य पुराण प्रतिसर्ग खंड 4 अध्याय 21 श्लोक 31-35


🚩3. कृष्ण चैतन्य के सेवक,रामानंद के शिष्य, निम्बादित्य, विष्णु स्वामी द्वारा मलेच्छों की शुद्धि का वर्णन। भविष्य पुराण प्रतिसर्ग खंड 4 अध्याय 21 श्लोक 48-59

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🚩इतिहास में शुद्धि के प्रमाण


🚩1. कश्मीर के राजा द्वारा ब्राह्मणों के सहयोग से लिखवाया गया ग्रन्थ रणबीर सागर में शुद्धि का समर्थन इन शब्दों में किया गया है की सभी ब्राह्य जातियाँ प्रायश्चित कर शुद्ध हो सकती है। रणबीर सागर प्रायश्चित प्रा 12


🚩2. इतिहास में शंकराचार्य एवं कुमारिलभट्ट द्वारा बुद्धों की शुद्धि।


🚩3. इतिहास में हुण, काम्बोज आदि जातियाँ शुद्ध होकर आर्य हुई।


🚩4. शिवाजी द्वारा नेताजी पालकर जैसे सरदारों को इस्लाम से वैदिक धर्म में दोबारा से शुद्ध कर लिया गया।



🚩5. इस प्रकार के अनेक उदाहरण प्राचीन ग्रंथों एवं इतिहास से दिए जा सकते है।

जिससे यह सिद्ध होता है कि प्राचीन काल में शुद्धि का विधान हमारे देश में प्रचलित था।


🚩 आधुनिक भारत में शुद्धि के प्राचीन संस्कार को पुनर्जीवित करने का और खोये हुए भाइयों को वापिस से स्वधर्मी बनाने का सबसे प्रथम एवं क्रांतिकारी प्रयास स्वामी दयानंद द्वारा किया गया जिसके लिए समस्त हिन्दू समाज का उनका आभारी होना चाहिए।


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Friday, March 1, 2024

हल्द्वानी की ‘जोशी विहार’ में मुस्लिमों के बसते ही बदली डेमोग्राफी

02 March 2024

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🚩सरकारी जमीन पर कब्जों, पुलिस पर हमले को लेकर कुख्यात उत्तराखंड के हल्द्वानी का जोशी विहार कॉलोनी हिंदुओं के पलायन को लेकर चर्चा में है। यह कॉलोनी उसी बनभूलपुरा के पास का इलाका, जहाँ पिछले दिनों अतिक्रमण हटाने गई पुलिस और नगर निगम की टीम पर इस्लामी कट्टरपंथियों ने हमला किया था।


🚩दैनिक जागरण की एक रिपोर्ट बताती है कि जोशी विहार कॉलोनी से पिछले 6 साल में करीब 60 हिंदू परिवार पलायन कर चुके हैं। अब तीन हिंदू परिवार ही बचे हैं। इन्होंने भी अपने घरों का सौदा कर लिया है और अगले महीने इस कॉलोनी को छोड़ जाएँगे।


🚩रिपोर्ट के अनुसार इस कॉलोनी की डेमोग्राफी मुस्लिमों के बसने के बाद तेजी से बदली है। रामपुर, पीलीभीत और स्वार जैसी जगहों से आकर मुस्लिम यहाँ बसे हैं। हिंदुओं के पलायन की खबर सामने आने के बाद जिला प्रशासन ने डेमोग्राफी चेंज के कारणों की पड़ताल का भरोसा दिलाया है।


🚩दैनिक जागरण द्वारा सोमवार (26 फरवरी 2024) को प्रकाशित की गई रिपोर्ट में बताया गया है कि जोशी विहार साल 1954 में अल्मोड़ा से आए रामदत्त व देवीदत्त जोशी नाम के 2 भाइयों ने कई एकड़ जमीन खरीद कर बसाया था। बाद में दोनों भाई 5-5 बेटों के पिता बने। कालांतर में सभी बेटों में जमीनों का बँटवारा हुआ। बाद में इन्हीं में से कुछ ने जमीनें बाहरी लोगों को बेच दी।


🚩बताया गया है कि 6 साल पहले रामपुर से आ कर मलिक नाम के एक व्यक्ति ने जोशी कॉलोनी में मकान खरीदा। इसके बाद यहाँ मुस्लिम आबादी और उनके परिवारों की संख्या लगातार बढ़ती चली गई। कथित तौर पर शुरुआत में जमीन लालच में बेची गई। तब भूस्वामियों को 1 लाख रुपए की जमीन के 1 करोड़ रुपए तक मिले। बाद में गंदगी और मुस्लिम बहुलता होने की वजह से कई हिन्दू औने-पौने कीमत पर अपनी जमीन और मकान बेचने लगे। ऑपइंडिया से बात करते हुए हल्द्वानी के बजरंग दल पदाधिकारी जोगिंदर राणा उर्फ़ जोगी ने भी इसकी पुष्टि की है।


🚩फिलहाल जोशी विहार कॉलोनी में मुस्लिमों के लगभग 150 मकान हैं। पूर्व ग्राम प्रधान मनोज मठपाल के मुताबिक इस समय जोशी कॉलोनी में जमीनों का रेट 4500 रुपए स्क्वायर फ़ीट चल रहा है। जोशी कॉलोनी बसाने वाले रामदत्त के ही वंशज देवेंद्र जोशी ने दैनिक जागरण को बताया कि जब बरसात में नाला उफान मारता है तो उनके घरों में गंदगी और माँस बह कर आ जाता है। घर बेचने को मजबूरी बताते हुए देवेंद्र जोशी ने बताया कि वे खुद अपना पुश्तैनी मकान 50 लाख रुपए में बेच चुके हैं।


🚩देवेंद्र जोशी ने इलाके में डेमोग्राफी बदलाव के लिए उन कथित जरूरतमंदों को जिम्मेदार बताया, जिन्हें उनके परदादा ने कभी जमीन सस्ते दामों में दे दी थी। देवेंद्र का आरोप है कि इन्हीं लोगो ने बाद में कुछ फायदे के लिए बहरी लोगों को ऊँचे दामों में जमीनें बेच दीं। साल 2018 में जोशी कॉलोनी नगर निगम में आ गई। पहले यहाँ ग्राम प्रधान मनोज मठपाल हुआ करते थे। बाद में यहीं से रईस अहमद भी पार्षद बने। मुस्लिमों की अधिकतर आबादी रामपुर, मुरादाबाद और बिजनौर आदि जिलों की बताई जा रही है। अब जोशी कॉलोनी के आगे ‘रज़ा गेट न्यू फ्रेंड्स कॉलोनी’ का बोर्ड लग चुका है।


🚩पहले इस कॉलोनी में जोशी, साहू, गुप्ता और नैनवाल परिवार रहते थे। फ़िलहाल अब यहाँ जोशी परिवार के महज 3 घर बचे हैं। डेमोग्राफी बदलाव की इन खबरों का नैनीताल जिले के प्रशासनिक अधिकारियों ने भी संज्ञान लिया है। SDM परितोष जोशी ने जागरण को बताया कि वो स्थानीय लोगों से बातचीत करेंगे और आबादी असंतुलन की जाँच करवाएँगे। वहीं नैनीताल जिले के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक प्रह्लाद मीणा ने कहा कि जोशी कॉलोनी में रहने वाले लोगों का वेरफिकेशन करवाया जाएगा। एसएसपी ने पूरे जिले में सत्यापन अभियान जारी होने की भी जानकारी दी।


🚩हिंदू हर जगह से भागता ही जा रहा है, पाकिस्तान, बंगलादेश, अफगानिस्तान से भागकर भारत मे आ रहा है पर भारत मे भी 8 राज्यों में हिंदू अल्पसंख्यक बन चुके हैं और उत्तरप्रदेश में भी कई इलाकों से ऐसी खबर आ रही है कि हिंदू पलायन कर रहे है, एक तरफ ईसाई मिशनरियां हिंदुओं का पुरजोर से धर्मांतरण करवा रहे है दूसरी तरफ लव जिहाद, लैंड जिहाद और बलजबरी से कुछ मुसलमान हिन्दुओं को भगा रहे है। अब हिंदू भाग-भाग कर कहाँ तक जाएगा?


🚩सबसे पहले तो हिंदुओं को चाहिए कि जाति-पाती छोड़कर एक हो जाये दूसरा की हर हिंदू कमसे कम 4 बच्चें पैदा करें और कही भी किसी भी हिंदु पर अत्याचार या षडयंत्र हो रहा हो तो सभीहिंदू तन-मन-धन से उसको सहयोग करें जिससे किसी की भी हिम्मत न चले कोई हिंदू को परेशान करने की, अपने धर्म या धर्मगुरुओं पर एवं हिंदुनिष्ठ नेताओं पर भी जो षड्यंत्र हो रहे है उसको रोकने के लिए भी एक होकर मुहतोड़ जवाब देना चाहिए तभी हिंदुओं का अस्तित्व बचेगा नही तो फिर हर जगह से भागता ही रहेगा और कही भागने की जगह नही मिलेगी।


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Thursday, February 29, 2024

मौलाना और उसके भाई ने 8 साल की बच्ची से किया रेप , मिडिया में कोई खबर नहीं

01 March 2024

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🚩दुनियाभर में मौलवी और पादरी बच्चों का यौन शोषण करते हैं। सेक्युलर, बुद्धिजीवी और मीडिया हिन्दू धर्म के पवित्र मंदिर, आश्रमों व साधु-संतों पर षड्यंत्र के तहत कोई झूठा आरोप भी लगा दे तो खूब बदनाम करते हैं, परंतु मौलवी और ईसाई पादरियों के दुष्कर्मों पर चुप रहते हैं। क्या इसके लिए उन्हें फंडिंग मिलती है ?


🚩आपको बता दे कि उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में मदरसा में पढ़ाने वाले एक मौलाना द्वारा अपनी छात्रा से रेप करने का मामला सामने आया है। पीड़िता की उम्र महज 8 वर्ष है। मौलाना आब्दीन के बच्ची की माँ से भी अवैध संबंध बताए जा रहे है। दावा है कि पीड़िता की माँ को भी अपनी बेटी के साथ हो रहे दुष्कर्म की जानकारी थी। इस मामले में पीड़िता के अब्बा ने मौलाना और उसके भाई के खिलाफ शिकायत की है।


🚩इस मामले में पुलिस ने सोमवार (19 फरवरी 2024) को केस दर्ज करके मौलाना आब्दीन और बच्ची की माँ को गिरफ्तार कर लिया। वहीं, आब्दीन का भाई अरशद फरार है, जिसकी तलाश की जा रही है। आरोपितों के खिलाफ पुलिस ने पॉक्सो एक्ट के साथ-साथ भारतीय दंड संहिता (IPC) की विभिन्न धाराओं में FIR दर्ज कर किया है।

https://twitter.com/lkopolice/status/1760192891698151520?t=OY8RlPVhrzAiQ1YKbASXNw&s=19


🚩मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, यह घटना लखनऊ के मलिहाबाद थाना क्षेत्र का है। शिकायतकर्ता बच्ची का अब्बा है, जो इसी थाना क्षेत्र का निवासी है। शिकायतकर्ता ओमान में नौकरी करता है। वह एक बार में 5 माह के लिए ओमान जाता है। इस बार जाने से पहले उसने अपनी बेटी का एडमिशन अपने घर से थोड़ी ही दूर स्थित न्यू हैदरगंज क्षेत्र में बने इस्लामिया शम्सुल उलूम मदरसे में करवा दिया था।


🚩पीड़िता के पिता का आरोप है कि इस मदरसे में मौलाना आब्दीन बच्चों को दीनी (इस्लाम की) तालीम देता था। कुछ समय बाद मौलाना बच्ची के घर भी आने-जाने लगा। कुछ समय बाद मौलाना आब्दीन ने उनकी बीवी को अपने प्रेमजाल में फँसा लिया। थोड़े दिन बाद शिकायतकर्ता की बीवी मौलाना के ही साथ रहने लगी। बाद में महिला ने अपनी बेटी को मदरसे के हॉस्टल में शिफ्ट कर दिया।


🚩यहाँ पर मौलाना ने 8 साल की इस बच्ची के साथ कई बार बलात्कार किया। जब बच्ची अपनी माँ को ये सारी बातें बताती थी तो वह उलटे उसकी पिटाई कर देती थी। शिकायतकर्ता का तो यहाँ तक आरोप है कि उसकी बीवी ही अपनी बेटी को मौलाना के पास भेजा करती थी। काफी समय बाद जब शिकायतकर्ता ओमान से लौटा तो बेटी ने उसे सारी बात बताई।


🚩इसके बाद पीड़िता के अब्बा ने पुलिस में तहरीर दी और मौलाना आब्दीन के साथ उसके भाई अरशद को भी घिनौने कृत्य में शामिल बताया। शिकायतकर्ता ने अपनी बीवी पर भी रेप में मौलाना का साथ देने का आरोप लगाया है। इसके साथ ही बच्ची के पिता को जान से मारने की धमकी देने वाले मौलाना के अन्य भाइयों अलीम, शलीम, शमीम, हमीम और शाद को भी पुलिस ने आरोपित बनाया है।


🚩जब भी किसी पवित्र हिंदू साधु-संत पर साजिश के तहत कोई झूठा आरोप लगता है तो इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया 24 घण्टे उनके खिलाफ झूठी कहानियां बनाकर खबरे चलाती रहती है। लिबरल भी जोरों से चिल्लाने लगते हैं और हिंदू धर्म पर गलत टिप्पणियां करने लगते हैं और सबसे बड़ी बात तो यह है कि इल्जाम लगते ही न्यूज चालू हो जाती है, अनेक झूठी कहानियां बन जाती हैं। इससे तो यह सिद्ध होता है कि मीडिया को इस बात का पहले ही पता होता है कि कौन से हिन्दू साधु-संत पर कौन सा इल्जाम लगने वाला है और उनके खिलाफ किस तरीके से झूठी कहानियां बनाकर खबरें चलानी हैं ? लगता है यह सब पहले से ही तय कर लिया जाता होगा।


🚩वहीं दूसरी ओर किसी मौलवी या ईसाई पादरी पर आरोप सिद्ध हो जाये, तभी भी न मीडिया खबर दिखाती है और ना ही सेक्युलर कुछ बोलते हैं। इससे साफ होता है कि ये गैंग केवल हिंदुत्व के खिलाफ है।


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Wednesday, February 28, 2024

मैक्डोनाल्ट्स के बर्गर खाते है तो हो जाए सावधान, कमिश्नर ने किया लाइसेंस रद्द

29 February 2024

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🚩इंटरनेशनल फास्ट फूड ब्रांड मैक्डोनाल्ट्स के खिलाफ महाराष्ट्र में बड़ी कार्रवाई हुई है। जाँच में पाया गया है कि ये कंपनी चीज (Cheese) के नाम पर ग्राहकों को धोखा दे रही थी और चीज की जगह ग्राहकों को सस्ते रिफाइंड से बना ‘सब्सिट्यूट’ परोस रही थी, जो स्वास्थ्य के लिए खतरनाक साबित हो सकता है। महाराष्ट्र में फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एफडीए) ने मैक्डोनाल्ड्स के लाइसेंस को रद्द कर दिया।


🚩टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, बर्गर और नगेट्स में असली चीज की जगह पर नकली चीज का इस्तेमाल करने के मामले में एफडीए ने इंटरनेशनल फास्ट-फूड कंपनी मैक्डोनाल्ड्स को निशाने पर लिया, जिसके बाद कंपनी ने अहमदनगर के अपने आउटलेट में अब मीनू से चीज शब्द ही हटा दिया है। इस मामले में एफडीए ने अहमदनगर के केडगाँव ब्राँच पर छापेमारी की थी। इस छापेमारी में नकली चीज का इस्तेमाल होते हुए मिला, जिसमें चीज की जगह पर उसके विकल्प (सब्सिट्यूट) का इस्तेमाल होता मिला।


🚩एफडीए के कमिश्नर अभिमन्यु काले ने बताया कि मैक्डोनाल्ड्स जो काम कर रहा है, उसका लोगों पर बुरा असर पड़ता है। क्योंकि लोग चीज समझकर जो कुछ भी खा रहे हैं, वो सस्ते रिफाइंड तेल से बनाया जाने वाला सब्सिट्यूट है। इसके इस्तेमाल से एलर्जी, शुगर जैसी समस्याओं से जूझ रहे लोगों को परेशानी हो सकती है। यही नहीं, मैक्डोनाल्ड्स ने अपने ‘चीज एनॉलॉग’ में भी चीज के सब्सिट्यूट के बारे में कोई जानकारी नहीं दी थी, बल्कि वो ‘चीज नगेट्स’ ‘चीजी डिप’ और ‘चीज बर्गर’ बेच तो रही थी, लेकिन ये नहीं बता रही थी कि इसमें फर्जी चीज का इस्तेमाल किया जा रहा है।



🚩मैक्डोनाल्ड्स के खिलाफ हुई कार्रवाई की 


🚩इस जाँच की शुरुआत बीते साल अक्टूबर से हुई थी, जहाँ केडगाँव ब्रांड में कंपनी कम से कम 8 उत्पादों में चीज का इस्तेमाल करती है, लेकिन चीज की जगह वो उसके सब्सिट्यूट का इस्तेमाल करती है।


🚩उन्होंने बताया कि मैक्डोनाल्ड्स चीज़ी नगेट्स, मैकचीज़ वेज बर्गर, मैकचीज़ नॉन-वेज बर्गर, कॉर्न और चीज़बर्गर, चीज़ी इटालियन वेज और ब्लूबेरी चीज़केक में पनीर के इस्तेमाल की बात कहती है, जो कि झूठ है, क्योंकि कंपनी चीज का इस्तेमाल करती ही नहीं। ऐसे में एफडीए ने उस ब्राँच को नोटिस जारी किया था। इस मामले में मैक्डोनाल्ड्स ने जो जवाब दिया, वो संतोषजनक नहीं था। ऐसे में उस ब्राँच का लाइसेंस ही रद्द कर दिया गया।


🚩इस मामले के बाद एफडीए के कमिश्नर ने एक निर्देश जारी किया है, जिसमें सभी रेस्टोरेंट को ये बताना अनिवार्य होगा कि वो किस तरह से चीज की जगह उसका सब्सिट्यूट इस्तेमाल कर रहे हैं। यही नहीं, इस जानकारी में वसा और प्रोटीन से जुड़ी जानकारी भी देनी होगी।


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