Saturday, May 13, 2017

करोड़ो जनता पर हो रहे अन्याय को रोकने हेतु पत्र

करोड़ो जनता पर हो रहे अन्याय को रोकने हेतु पत्र

13 मई 2017 

जन जागरण मंच एवं हिन्दू मुस्लिम एकता मंच ने 8 मई को जंतर-मंतर पर विशाल सत्याग्रह किया एवं बाद में उनके द्वारा सभी देशों के सभी पंथों के प्रसिद्ध धर्मगुरुओं, संतों ,महात्माओं , गणमान्य  व्यक्तियों एवं  भारत में स्थित सभी देशों के राजदूतों को एक पत्र जारी कर प्रेषित किया जा रहा है  I



इस पत्र को UNO कार्यालय, मानवाधिकार आयोग, भारत के राष्ट्रपति,प्रधानमंत्री को ज्ञापन दिया जा रहा है I


विषय –विश्व मानवता के प्रतिनिधि संतों और करोड़ो जनता पर हो रहे अन्याय को रोकने हेतु पत्र


आदरणीय महोदय जी,                                                                                                                                                 अंतर्राष्ट्रीय षड़यंत्र और स्वार्थी धर्म विमुख राजनीतिक प्रतिस्पर्धा के कारण आज विश्व मानवता के कल्याण में रात दिन लगे हुए विशेष वर्ग के लोगों के साथ अन्याय हो रहा है । भारत के विश्व प्रसिद्ध संत के मामले में,आज इस सबसे बड़े एतिहासिक अन्याय के विरोध में 3 -4 वर्षों से करोड़ो जनता न्याय के लिए धरने प्रदर्शन रैलियाँ आयोजित कर रही है। यह मानव सभ्यता के पतन और विनाश का सूचक है । भारत के ये विश्व प्रसिद्ध मार्गदर्शक  संत विश्व कल्याण विश्व बंधुत्व के सिद्धांतों के सबसे बड़े प्रचारक है उनके करोड़ो अनुयायी है।                                                                                                                       


पिछले 10 -15 वर्षो में संयुक्त राष्ट्र संघ UNO अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को वैश्विक समस्याओं पर गंभीर आलोचनाओं का शिकार होना, सम्पूर्ण मानवता के हित में निष्पक्षता के साथ कार्य नहीं करने के कारण और अनेक गंभीर वैश्विक समस्याओं में विफलता के कारण और अनावश्यक आर्थिक खर्च के कारण अनेक देशों में हिंसक प्रदर्शन जनता द्वारा किये गए हैं ।


पिछले 17 वर्षों से युवाओं की आत्महत्या विश्व की सबसे बड़ी समस्या बन गयी है । इंटरपोल रिपोर्ट सन् 2008 के अनुसार विकसित देशों में भारत की अपेक्षा प्रति एक लाख जनसंख्या पर पुलिस हजार गुना और अपराध लाख गुना अधिक है । आत्मघाती हमलों में पाकिस्तान व इराक सबसे आगे है ।


दो अंतर्राष्ट्रीय महाशक्तियों के वर्चस्व में पिछले 7 -8 वर्षों में लीबिया ,सीरिया ,मिश्र देशों में लाखों निर्दोष मासूम जनता मार दी गयी है,लाखों जनता शिविरों में नारकीय जीवन जी रही है ,बड़े –बड़े शहर कब्रिस्तान खण्डर बन गए हैं ।


वैदिक ज्ञान अनुसार धर्मनिष्ठ मनुष्य सद्गति पाते हैं, शान्ति को प्राप्त होते हैं किन्तु धर्मविमुख मनुष्य लम्बी आयु वाले भूत, प्रेत, पिशाच, डाकिनी, शाकिनी बन कर भूख प्यास से तड़पने पर मजबूर होते हैं वे वातावरण में अशान्ति बढ़ाते हैं ,उन्हें केवल मल - मूत्र पान करने का अधिकार होता है वे अगला जन्म लेने के लिए लाचार है । संतुलन के लिए विज्ञानमयी प्रकृति का न्यायकारी नियम है ।


भारत में पिछले 7-8 वर्षो में इन्ही अंतर्राष्ट्रीय षड़यंत्रकारी शक्तियों को विफल करके देशभक्त हिन्दू संगठनों ने देशद्रोहियों को अच्छा सबक सिखाया ।


भ्रष्टाचार,सामाजिक क्रान्ति के नाम पर धर्म विमुख इन देशद्रोहियों की धुन पर पूरे भारत की जनता आँख बंद करके नाच रही थी।


कुछ अंतर्राष्ट्रीय राजनेता ,हिन्दू जनता और भारत के मामले में दोहरे  मापदंड अपना कर सम्पूर्ण मानवता का विनाश करने के लिए तत्पर है । संतो की शरण में भारत में अनगिणत शासक हो गए जिनके अखण्ड राज्य में युगों- युगों तक देवता दुःख और अधर्म खोज नहीं पाए ,निराश होकर लौट गए ।


पिछले 3-4 वर्षों में राजनीति के प्रभाव में संत आशारामजी बापू के सत्संग के अभाव  में भारत की राजधानी दिल्ली में बलात्कार तीन गुना बढ़ गए और छेड़खानी की घटनाए छह गुना बढ़ गयी है ।


संयुक्त राष्ट्र संघ UNO ,Unicef की सन् 2004 की रिपोर्ट के अनुसार विकसित राष्ट्रों के किशोर और किशोरियाँ मानसिक रोगों और यौन रोगों से ग्रस्त हैं उनके सुधार कार्यक्रमों और अस्पतालों पर सरकार बहुत बड़ा बजट करोड़ो अरबों रुपयाँ खर्च करती है । विकसित राष्ट्र आर्थिक संकट से ग्रस्त है समस्याएं और विकराल हो रही है । 

संत आशारामजी बापू की प्रेरणा से अनेक संस्थाएं इन  समस्याओं से निपटने वाली बड़ी संस्था के रूप में उपयोगी सिद्ध हो रही हैं,ये बिना चन्दा मांगे बिना गुरु दक्षिणा लिए सामाजिक कार्य कर रहे हैं । सम्पूर्ण मानवता के कल्याण और विश्व बंधुत्व के दैवी कार्यो को 
www.mppd.org पर देख सकते हैं ।



संत पशुता और मनुष्यता में अंतर सिखाते हैं । ज्ञान और अज्ञान में अंतर सिखाते हैं । मनुष्य जीवन का एकमात्र लक्ष्य ईश्वर प्राप्ति है । इस हेतु सेवा कार्य करवाते हैं । इनके करोड़ो अनुयायी गरीब आदिवासी क्षेत्रों में भण्डारे करते हैं । व्यापक रूप से व्यसन मुक्ति अभियान ,गर्भ पात विरोधी अभियान ,नि:शुल्क चिकित्सा शिविर ,बाढ़ ,भूकम्प आपदा शिविर आदि आयोजित करते है ।


मानव सभ्यता को बचाने हेतु संयुक्त राष्ट्र संघ अपने सभी उपक्रमों में शिक्षा कार्यक्रमों में संत श्री आशारामजी बापू आश्रम से प्रकाशित Bal Sanskar बाल संस्कार पुस्तकों को एवम दिव्य प्रेरणा प्रकाश divine inspiration,the secret of eternal energy पुस्तकें लागू करने की कृपा करें ।


संत आशारामजी बापू को सुरक्षा प्रदान कर उनके सत्संग आयोजन की बाधाओं को दूर करें । स्वयं संज्ञान लेकर सक्षम अधिकारी इस हेतु शीघ्रातिशीघ्र कार्यवाही करेंगे ऐसी हमें अपेक्षा है। 

कई बुद्धिजीवी ,वैज्ञानिक ,डाक्टर ,ओरा विशेषज्ञ संत आशारामजी बापू के दैवी कार्यो से आश्चर्यचकित हैं। करोड़ो लोगो के अनुभव है ।
संत आशारामजी बापू के करोड़ों करोड़ों अनुयायी संत  आशारामजी बापू की सुरक्षा और उनके सत्संग कार्यक्रम की मांग कर रहे हैं,जेल से उनकी सम्मानपूर्वक रिहाई की मांग कर रहे हैं ।



संत आशारामजी बापू निर्दोष हैं उन्हें राजनीतिक षड़यंत्र करके फँसाया गया है । विश्व प्रसिद्ध संत आशारामजी बापू 3 वर्ष 6 माह से भारत की जोधपुर जेल में बंद है । उन पर नाबालिग लड़की के साथ बलात्कार का आरोप लगा है । पीड़ित लड़की की मेडिकल रिपोर्ट में लड़की कुवांरी पाई गयी है ,खरोच या छेड़खानी के कोई निशान शरीर पर नहीं पाए गए हैं। संत आशारामजी बापू की उम्र 81 वर्ष की है , जमानत उनका अधिकार है लेकिन उन्हें उनके अधिकारों से वंचित किया गया है ।


संत आशारामजी बापू पर पोक्सो धारा लगाई गयी है जबकि पीड़ित पक्ष की लड़की की उम्र प्राथमिक विद्यालय के अनुसार बालिग है । पीड़ित लड़की की मेडिकल रिपोर्ट ,विद्यालय की जन्म तिथि प्रतिलिपि संलग्न है । 

धन्यवाद।                                                                



आपका आभारी, बम बम ठाकुर ,
दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष, जन जागरण मंच एवं हिन्दू मुस्लिम एकता मंच


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Friday, May 12, 2017

मीडिया ने छुपाई खबर : 300 लोगों का ईसाई मिशनरियां करवा रही थी धर्मपरिवर्तन

मीडिया ने छुपाई खबर : 300 लोगों का ईसाई मिशनरियां करवा रही थी धर्मपरिवर्तन

12 मई 2017

ईसाई मिशनरियां प्रलोभन देकर भोले-भाले हिन्दुओं का धर्मपरिवर्तन करवा लेते हैं लेकिन जब उनको वास्तविकता पता चलती है कि दुनिया में हिन्दू धर्म ही सर्वश्रेष्ठ है तो वो पश्चाताप करके घरवापसी करते हैं । आज ईसाई मिशनरियां देश मे खुलेआम धर्म परिवर्तन करवा रहे है पर उनके विरुद्ध क्यों मौन है भारत की मीडिया ??

Media-hidden-news-300-Christian-missionaries-were-doing-Dharmapirvantan

सिर्फ अपना नाम बदल लेने से , सिर्फ अपना आराध्य बदल लेने से कोई कुछ भी करे वो पाप और बीमारी से कैसे बच सकता है? 


ये थ्योरी फिलहाल समझ के बाहर की बात है पर ऐसा कर के भोले भाले ग्रामीणों को धर्म त्यागने पर मजबूर किया जा रहा है,वो भी बिना किसी डर के ।

मामला है गुरुवार का उत्तर प्रदेश के मऊ जिले में जहाँ दक्षिण टोला थाने के गाँव सलेम पुर में अचानक ही सूचना मिली कि ईसाई मिशनरी से जुड़े कुछ लोग लगभग 300 लोगों को विभिन्न प्रलोभन आदि देकर हिन्दू धर्म त्याग करवा अपना पंथ अपनाने के लिए पहुंचे हैं ।


विश्व हिन्दू परिषद् के लिए ये खबर बहुत अप्रत्याशित थी और वो सीधे वहां पहुंच गए जहाँ हिन्दुओं का धर्म-परिवर्तन करवाया जा रहा था ।  


मौके पर भीड़ लगी मिली और धर्मांतरण के प्रमाण भी थे । वहां लोगों को बताया जा रहा था कि ईसा मसीह की शरण में आने से सारे दुःख दूर होते हैं और हर बीमारी खत्म हो जाती है और भी उसके अलावा बहुत कुछ समझाया जा रहा था । 


विश्व हिन्दू परिषद् के वहां पहुंचने की सूचना पुलिस को मिली तो हड़कंप मच गया । तत्काल किसी अनहोनी की घटना को रोकने के लिए मौके पर पुलिस बल पंहुचा और धर्मांतरण करा रहे 6 मिशनरी प्रतिनिधियों को गिरफ्तार करके थाने ले आये जहाँ उन से गहन पूछताछ की गई ।


विश्व हिन्दू परिषद् आक्रोशित हो उठी थी जिसके बाद पुलिस ने उनसे तहरीर देने की बात कही । तत्पश्चात विश्व हिन्दू परिषद् के शैलेन्द्र सिंह की दी गयी तहरीर पर मुकदमा पंजीकृत कर के कार्यवाही शुरू कर दी गई।  


मामले की गंभीरता बढ़ते देख कर जिलाधिकारी ने भी विषय का संज्ञान लिया और अधीनस्थ SDM को तत्काल कार्यवाही के निर्देश जारी किये । SDM ने पूरे प्रकरण की बारीकी देखना शुरू कर दिया है और दोषियों के खिलाफ कठोर कार्यवाही करने का आश्वासन दिया है । धर्म त्यागने के लिए उन्हें भी लाइन में बैठाया गया था जिनकी उम्र अभी इतनी कम है कि वो अपना नाम भी ठीक से बता नहीं पा रहे थे ।


इतनी बड़ी खबर है लेकिन किसी मीडिया ने नहीं दिखाई, केवल एकमात्र राष्ट्रवादी चैनल सुदर्शन न्यूज चैनल ने ही इसका पर्दाफाश किया ।


सरकार बदलने और नोटबन्दी के बाद आज भी ईसाई मिशनरियां हिन्दुओं का धड़ल्ले से धर्म परिवर्तन करवा रही हैं, कब रोक लगेगी?

हिन्दू गलती से किसी अन्य धर्म में चला गया और उस हिन्दू को घरवापसी करवाते है तो मीडिया खूब हल्ला करने लगती है लेकिन जब हिंदुओं का खुल्ले आम धर्मपरिवर्तन करवाया जा रहा है वहाँ पर क्यों चुप्पी साधी है मीडिया ने ??

क्या मीडिया को वेटिकन सिटी से फंड मिल रहा है? जिससे वो उनके खिलाफ नहीं बोलती !!


ईसाई मिशनरियां द्वारा हमारे देश में खुल्ले आम भोली-भाली जनता को नौकरी, पैसा, दवाई की लालच देकर धर्म परिवर्तन करवाया जा रहा है। उनका उद्देश्य है कि हिन्दुस्तान को फिर से गुलाम बनाया जाये । इसलिए वो दिन-रात धर्मपरिवर्तन करवाने में लगे हैं उनको वेटिकन सिटी से पैसा मिलता है धर्मपरिवर्तन करवाने का ।

जो पादरी छोटे बच्चों के साथ कुकर्म करते हैं, बच्चियों के साथ बलात्कर करते हैं, गौ-मांस खाते हैं, मदिरापान करते हैं, वो दूसरों को कैसे पाप से मुक्त कर सकते हैं ?
 जो खुद पापकर्म में लिप्त हैं ।

अतः देश की भोली-भाली जनता को सतर्क रहने की जरूरत है ऐसे धर्म में जाना अच्छा नही है जो खुद ही पतित हो ।

मीडिया केवल हिन्दू धर्म के साधु-संतों को ही बदनाम करती है लेकिन कुकर्मी पादरियों या मौलवी के लिए एक शब्द भी नही बोलती है इससे सिद्ध होता है कि वेटिकन सिटी और मुस्लिम देश से इनकी फंडिंग होती है जिससे उनके खिलाफ नही बोलकर पवित्र साधु-संतों के ऊपर कीचड़ उछालती है ।


वेटिकन सिटी का दुनिया भर में खरबों में बिजनेस चलता है, उनका एक ही उद्देश्य है कि भारत में भी धर्मपरिवर्तन के जरिये लोगों को गुमराह करके ईसाई धर्म को बढ़ावा देकर देश को गुलाम बनाया जाये।
अतः कुकर्म करने वाले पादरियों और उनके फंड से चलने वाली मीडिया से सावधान रहें ।

सरकार और न्यायालय को भी धर्मपरिवर्तन करने वालों के खिलाफ कड़क कानून बनाना चाहिए और बिकाऊ मीडिया पर लगाम कसनी चाहिए ।

Thursday, May 11, 2017

क्रांतिकारी बालकृष्ण चापेकर बलिदान दिवस 12 मई

क्रांतिकारी बालकृष्ण चापेकर बलिदान दिवस 12 मई

 आज समाज का दुर्भाग्य है कि हमारी दिव्य संस्कृति का हंसी-मजाक उड़ाने वाले #अभिनेताओं और #अभिनेत्रियों
का बर्थडे तो याद रहता है पर देश की रक्षा के लिए अपने प्राणों का #बलिदान देने वाले वीर क्रन्तिकारियों की जयंती और बलिदान दिवस का पता तक नहीं होता ।
दामोदर, बालकृष्ण और वासुदेव चापेकर

अगर वे देश को #गुलामी की जंजीरों से मुक्त कराने के लिये अपने प्राणों की बलि नही देते तो आज हम घरों में चैन से नही बैठे होते,आज भी हम गुलाम ही होते ।

आइये जानते है वीर बहादुर बालकृष्ण चापेकर और उनके भाइयों के जीवनकाल का इतिहास...

 #चापेकर बंधु #दामोदर हरि चापेकर, #बालकृष्ण हरि चापेकर तथा वासुदेव हरि चापेकर को संयुक्त रूप से कहा जाता हैं। ये तीनों भाई #लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के सम्पर्क में थे। तीनों भाई तिलक जी को गुरुवत्‌ सम्मान देते थे। पुणे के तत्कालीन जिलाधिकारी #वाल्टर #चार्ल्स रैण्ड ने प्लेग समिति के प्रमुख के रूप में पुणे में भारतीयों पर बहुत अत्याचार किए। इसकी बालगंगाधर तिलक एवं आगरकर जी ने भारी आलोचना की जिससे उन्हें जेल में डाल दिया गया। दामोदर हरि चाफेकर ने 22 जून 1897 को रैंड को गोली मारकर हत्या कर दी।

परिचय

चाफेकर बंधु महाराष्ट्र के पुणे के पास चिंचवड़ नामक गाँव के निवासी थे। 22 जून 1897 को रैंड को मौत के घाट उतार कर भारत की आजादी की लड़ाई में प्रथम क्रांतिकारी धमाका करने वाले वीर दामोदर पंत चाफेकर का जन्म 24 जून 1869 को पुणे के ग्राम चिंचवड़ में प्रसिद्ध कीर्तनकार हरिपंत चाफेकर के ज्येष्ठ पुत्र के रूप में हुआ था। उनके दो छोटे भाई क्रमशः बालकृष्ण चाफेकर एवं वसुदेव चाफेकर थे। बचपन से ही सैनिक बनने की इच्छा दामोदर पंत के मन में थी, विरासत में कीर्तनकार का यश-ज्ञान मिला ही था। महर्षि पटवर्धन एवं लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक उनके आदर्श थे।

तिलक जी की प्रेरणा से उन्होंने युवकों का एक संगठन व्यायाम मंडल तैयार किया। ब्रितानिया हुकूमत के प्रति उनके मन में बाल्यकाल से ही तिरस्कार का भाव था। दामोदर पंत ने ही बंबई में रानी विक्टोरिया के पुतले पर तारकोल पोत कर, गले में जूतों की माला पहना कर अपना रोष प्रकट किया था। 1894 से चाफेकर बंधुओं ने पूणे में प्रति वर्ष शिवाजी एवं गणपति समारोह का आयोजन प्रारंभ कर दिया था। इन समारोहों में चाफेकर बंधु शिवाजी श्लोक एवं गणपति श्लोक का पाठ करते थे। 

शिवाजी श्लोक के अनुसार - भांड की तरह शिवाजी की कहानी दोहराने मात्र से स्वाधीनता प्राप्त नहीं की जा सकती । आवश्यकता इस बात की है कि शिवाजी और बाजी की तरह तेजी के साथ काम किए जाएं । आज हर भले आदमी को तलवार और ढाल पकड़नी चाहिए, यह जानते हुए कि हमें राष्ट्रीय संग्राम में जीवन का जोखिम उठाना होगा ।  हम धरती पर उन दुश्मनों का खून बहा देंगे, जो हमारे धर्म का विनाश कर रहे हैं। हम तो मारकर मर जाएंगे, लेकिन तुम औरतों की तरह सिर्फ कहानियां सुनते रहोगे । 
गणपति श्लोक में धर्म और गाय की रक्षा के लिए कहा गया कि- उफ! ये अंग्रेज कसाइयों की तरह गाय और बछड़ों को मार रहे हैं, उन्हें इस संकट से मुक्त कराओ। मरो, लेकिन अंग्रेजों को मारकर। नपुंसक होकर धरती पर बोझ न बनो। इस देश को हिंदुस्तान कहा जाता है, अंग्रेज भला किस तरह यहां राज कर सकते हैं ???

कार्य

सन्‌ 1897 में पुणे नगर प्लेग जैसी भयंकर बीमारी से पीड़ित था। इस रोग की भयावहता से भारतीय जनमानस अंजान था। ब्रितानिया हुकूमत ने पहले तो प्लेग फैलने की परवाह नहीं की, बाद में प्लेग के निवारण के नाम पर अधिकारियों को विशेष अधिकार सौंप दिए। पुणे में डब्ल्यू सी रैंड ने जनता पर जुल्म ढाना शुरू कर दिया । प्लेग निवारण के नाम पर घर से पुरुषों की बेदखली, स्त्रियों से बलात्कार और घर के सामानों की चोरी जैसे काम गोरे सिपाहियों ने जमकर किए। जो जनता के लिए रैंड प्लेग से भी भयावह हो गये ।
 वाल्टर चार्ल्स रैण्ड तथा आयर्स्ट-ये दोनों अंग्रेज अधिकारी जूते पहनकर ही हिन्दुआें के पूजाघरों में घुस जाते थे। प्लेग पीड़ितों की सहायता की जगह लोगों को प्रताड़ित करना ही अपना अधिकार समझते थे। 

इसी अत्याचार-अन्याय के सन्दर्भ में एक दिन तिलक जी ने चाफेकर बन्धुओं से कहा, "शिवाजी ने अपने समय में अत्याचार का विरोध किया था, किन्तु इस समय अंग्रेजों के अत्याचार के विरोध में तुम लोग क्या कर रहे हो?' तिलक जी की हृदय भेदी वाणी व रैंडशाही की चपेट में आए भारतीयों के बहते आंसुओं, कलांत चेहरों ने चाफेकर बंधुओं को विचलित कर दिया। 
इसके बाद इन तीनों भाइयों ने क्रान्ति का मार्ग अपना लिया। संकल्प लिया कि इन दोनों अंग्रेज अधिकारियों को छोड़ेंगे नहीं। 

संयोगवश वह अवसर भी आया, जब 22 जून 1897 को पुणे के "गवर्नमेन्ट हाउस' में महारानी विक्टोरिया की षष्ठिपूर्ति के अवसर पर राज्यारोहण की हीरक जयन्ती मनायी जाने वाली थी। इसमें वाल्टर चार्ल्स रैण्ड और आयर्स्ट भी शामिल हुए। दामोदर हरि चापेकर और उनके भाई बालकृष्ण हरि चापेकर भी एक दोस्त विनायक रानडे के साथ वहां पहुंच गए और इन दोनों अंग्रेज अधिकारियों के निकलने की प्रतीक्षा करने लगे। रात 12 बजकर 10 मिनट पर रैण्ड और आयर्स्ट निकले और अपनी-अपनी बग्घी पर सवार होकर चल पड़े। योजना के अनुसार दामोदर हरि चापेकर रैण्ड की बग्घी के पीछे चढ़ गया और उसे #गोली मार दी, उधर बालकृष्ण हरि चापेकर ने भी आर्यस्ट पर गोली चला दी। आयर्स्ट तो तुरन्त मर गया, किन्तु रैण्ड तीन दिन बाद अस्पताल में चल बसा। पुणे की उत्पीड़ित जनता चाफेकर-बन्धुओं की जय-जयकार कर उठी। 

इस तरह चाफेकर बंधुओं ने जनइच्छा को अपने पौरुष एवं साहस से पूरा करके भय और आतंक की बदौलत शासन कर रहे अंग्रेजों के दिलोदिमाग में खौफ भर दिया।


गुप्तचर अधीक्षक ब्रुइन ने घोषणा की कि इन फरार लोगों को गिरफ्तार कराने वाले को 20 हजार रुपए का पुरस्कार दिया जाएगा। चाफेकर बन्धुओं के क्लब में ही दो द्रविड़ बन्धु थे- गणेश शंकर द्रविड़ और रामचन्द्र द्रविड़। इन दोनों ने पुरस्कार के लोभ में आकर अधीक्षक ब्रुइन को चाफेकर बन्धुओं का सुराग दे दिया। इसके बाद दामोदर हरि चापेकर पकड़ लिए गए, पर बालकृष्ण हरि चापेकर पुलिस के हाथ न लगे। सत्र न्यायाधीश ने दामोदर हरि चापेकर को फांसी की सजा दी और उन्होंने मन्द मुस्कान के साथ यह सजा स्वीकार करली ।


कारागृह में तिलक जी ने उनसे भेंट की और उन्हें "गीता' प्रदान की। 18 अप्रैल 1898 को प्रात: वही "गीता' पढ़ते हुए दामोदर हरि चाफेकर फांसीघर पहुंचे और फांसी के तख्ते पर लटक गए। उस क्षण भी वह "गीता' उनके हाथों में थी। इनका जन्म 25 जून 1869 को पुणे जिले के चिन्यकड़ नामक स्थान पर हुआ था। 

ब्रितानिया हुकूमत इनके पीछे पड़ गई थी । बालकृष्ण चाफेकर को जब यह पता चला कि उसको गिरफ्तार न कर पाने से पुलिस उसके सगे-सम्बंधियों को सता रही है तो वह स्वयं पुलिस थाने में उपस्थित हो गए।

अनन्तर तीसरे भाई वासुदेव चापेकर ने अपने साथी #महादेव गोविन्द विनायक रानडे को साथ लेकर उन गद्दार द्रविड़-बन्धुओं को जा घेरा और उन्हें गोली मार दी। वह 8 फरवरी 1899 की रात थी। अनन्तर वासुदेव चाफेकर को 8 मई को और बालकृष्ण चापेकर को 12 मई 1899 को यरवदा कारागृह में फांसी दे दी गई। 
 इनके साथी क्रांतिवीर महादेव गोविन्द विनायक रानडे को 10 मई 1899 को यरवदा कारागृह में ही फांसी दी गई।

तिलक जी द्वारा प्रवर्तित "शिवाजी महोत्सव' तथा "#गणपति-महोत्सव' ने इन चारों युवकों को देश के लिए कुछ कर गुजरने हेतु क्रांति-पथ का पथिक बनाया था। उन्होंने #ब्रिटिश राज के आततायी व अत्याचारी अंग्रेज अधिकारियों को बता दिया कि हम अंग्रेजों को अपने देश का शासक कभी नहीं स्वीकार करते और हम तुम्हें गोली मारना अपना धर्म समझते हैं।

इस प्रकार अपने जीवन-दान के लिए उन्होंने देश या समाज से कभी कोई प्रतिदान की चाह नहीं रखी। वे महान #बलिदानी कभी यह कल्पना नहीं कर सकते थे कि यह देश ऐसे #गद्दारों से भर जाएगा, जो भारतमाता की वन्दना करने से भी इनकार करेंगे।


दामोदर पंत चापेकर ने स्पष्ट रूप से लिखा था कि क्या किसी भी इतिहास प्रसिद्ध व्यक्ति ने कभी नेशनल कांफ्रेस कर या भाषण देकर दुनिया को संगठित करने की #कोशिश की है? 
इसका उत्तर अवश्य ही "नहीं" में मिलेगा। 


सख्त अफसोस की बात है कि वर्तमान समय के हमारे शिक्षित लोगों में यह समझने की भी अक्ल नहीं कि किसी भी देश की भलाई तभी होती है, जब करोड़ों गुणवान लोग अपनी जिंदगी की परवाह न करके युद्ध क्षेत्र में मौत का सामना करते हैं । अन्याय के खिलाफ हरसंभव तरीके से प्रतिकार करने की शिक्षा हमें अपने इस महान #योद्धाओं से मिलती है। चाफेकर बंधुओं द्वारा रैंड की हत्या रूपी किया गया पहला धमाका #अंग्रेजों के प्रति उनकी गहरी नफरत का नतीजा था ।

आज भी हम मानसिक रूप से तो अंगेजों के ही गुलाम हैं और जब तक हम खुद इन गुलामी की जंजीरों को नहीं तोड़ेंगे तबतक हमें स्वन्तंत्रता दिलाने के लिए अपने जीवन की परवाह न करने वाले वीर #शहीदों को सच्ची #श्रद्धांजलि नहीं मिलेगी !!

इस देश को तोड़ने,हमारी #संस्कृति की जडें खोखली करने कभी मुगल तो कभी अंग्रेज आये और अब मिशनरियां लगी हैं हमें फिर से गुलामी की जंजीरें पहनाने में । अब समय आ चुका है कि जब #हिंदुओं को आपसी मनमुटाव भूलकर एक हो जाना चाहिए नहीं तो फिर से गुलामी का जीवन जीने के लिए तैयार रहें ।

जागो हिन्दू !!!




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Wednesday, May 10, 2017

जेल में बंद शंकराचार्य अमृतानन्द की चिट्ठी पढ़कर हिन्दुस्तानियों का खून खोल उठेगा

जेल में बंद शंकराचार्य अमृतानन्द की चिट्ठी पढ़कर हिन्दुस्तानियों का खून खोल उठेगा ।

भारत की जनता जानती है कि हिन्दूओं को बदनाम करने के लिए #तत्कालीन सरकार ने "भगवा आतंकवाद" के नाम से कई #हिंदुत्वनिष्ठों को झूठे आरोपों में फंसाया था और उनको #अमानवीय प्रताड़नायें भी दी ।
Shankaracharya Amritananda

आपने मालेगांव ब्लास्ट में साध्वी प्रज्ञा, स्वामी असीमानन्द, कर्नल #पुरोहित का नाम तो खूब सुना ही होगा लेकिन तत्कालीन सरकार के इशारे पर #ATS ने एक ऐसा नाम छुपाया और उन्हें इतनी भयंकर प्रताड़नायें दी जिससे आज भी अधिकतर #हिन्दुस्तान की जनता अनभिज्ञ है ।


जैसे साध्वी प्रज्ञा ने जेल से चिट्ठी लिखी थी ऐसे ही जेल में बंद पीओके (कश्मीर) शारदा पीठ के शंकराचार्य #अमृतानंद देव तीर्थ ने भी #चिट्ठी लिखी थी लेकिन जनता तक पहुँच नही पाई ।

आइये आज हम उस #षड्यंत्र का खुलासा करते हुए उनकी चिट्ठी आपके सामने रखते हैं । जिसे पढ़कर आपका खून खोल उठेगा ।

पढ़िये पूरी चिट्ठी..

शंकराचार्य अमृतानंद देव तीर्थ जी ने लिखा कि "भारत दुनिया का चौथा सबसे अधिक #आबादी वाला एकमात्र हिंदू राष्ट्र है, फिर भी एक विभाजित भारत, धर्मनिरपेक्षता के वजन तले दबा हुआ है, एक #हिंदू राष्ट्र होने के बाद भी दोषी महसूस करता है। पिछले 1200 सालों से, अपनी #एकजुट ताकत से अनजान, इस समाज में सच्चाई की बात करने के लिए साहस का #अभाव है और इतिहास के सबक से बचने में काफी अनुभव है, बहुत अपमान और #आक्रामकता से पीड़ित, अब अपनी पहचान के लिए खोज कर रहा है। "

इस संम्बध में, मैं हिंदू समाज की पहचान और #विश्वास का प्रतीक हूँ, वर्तमान परिस्थितियों में जगद्गुरु शंकराचार्य, अनंतश्री बिभुशित स्वामी #अमृतानंद देव तीर्थ (जन्म से सुधाकर धर), शंकराचार्य, श्री शारदा सर्वज्ञ पीठ, जम्मू कश्मीर (पीओके), #हिन्दू समाज के बेकार, उदासीन, अविश्वास और #आस्थाहीन नेतृत्व पर नाखुश होकर यह पत्र लिख रहा हूँ ।

क्योंकि, मुंबई #आतंकवाद विरोधी दस्ते (एटीएस) के माध्यम से, हिंदू समाज #गुमराह किया जा रहा है और मेरे प्रति क्रूर और #अमानवीय अत्याचारों जैसे  - मेरा असली नाम हटाकर दयानंद पांडेय किया जो कि एक फर्जी नाम है, जो कभी मेरा नाम नही था वो #जबरदस्ती रखवाया इसी नाम की पहचान का प्रचार करने से लेकर, मुझे स्वयं घोषित संत , महंत या पुजारी कहने तक रोका गया और मुझे कुछ #अपराधों के आयोग को स्वीकार करने के लिए #जबरदस्ती मजबूर किया गया ।


1] "मेरे भगवा वस्त्रों को हटा दिया गया और तीन दिनों के लिए #वातानुकूलित कमरे में गीला रखा गया और बिजली के भयंकर #झटके दिए गए थे।"

2] "मेरे निजी पूजा के लिए इस्तेमाल किये गए श्री यंत्र और #धार्मिक पुस्तकें (जपजी साहिब सहित) को नाले में फेंक दिया गया ।"

3] "तीन पुरुषों ने मेरे पैरों पर खड़े होकर मेरे पैरों के तलवों पर मुझे #बेल्ट के साथ मारा,जब तक मैं बेहोश ना हुआ तब-तक मारते रहे ।"

4] "मांस मेरे #मुंह में धकेल दिया गया था और मुझे बताया गया था कि यह #गौ -मांस (बीफ) था।"

5] "मुझे कुछ लिपियों को पढ़ने के लिए मजबूर किया गया था, और फिर मेरी आवाज #डब की गई, और #ऑडियो-वीडियो टेप का उत्पादन किया गया।"


6]  “मुझे धमकी दी गई कि हिन्दू समाज में मुझे बदनाम करने के लिए , मेरी #अश्लील सीडी बनाई जाएगी [यानी, कंप्यूटर सिमुलेशन द्वारा]”

"ये केवल कुछ उदाहरण हैं। मैं उनकी #हिरासत में 17 दिनों तक था, और आप इस बारे में कल्पना कर सकते हैं कि उन्होंने मेरे साथ क्या-क्या किया होगा !"

"यदि एटीएस के पास मेरे खिलाफ कोई #सबूत है, तो उन्हें मेरे खिलाफ #फर्जी प्रमाण बनाने की आवश्यकता क्यों थी? 

एटीएस ने कहा, 'यहाँ हम तुम्हें मार देंगे, बाहर #मुसलमान तुम्हें मार देंगे; तुम्हें किसी भी हालत में मरना है,  तो अपने #अपराधों को स्वीकार करो '। 

उन्होंने मुझे सवालों के जवाब रटवाए, और फिर एक #नारको विश्लेषण किया '. 
'इन परिस्थितियों में, मुझे उम्मीद है कि #हिंदू समाज इस पत्र को पढ़ेगा । और अपने #धर्माचार्यों के सत्य के प्रमाण के रूप में स्वीकार करेगा।'

"यहां उल्लेख करना उचित होगा कि #शंकराचार्य परंपरा  की मूल और प्राचीन सीट, श्री शारदा सर्वज्ञ पीठ,  ग्राम शारदी, तालुका अत्तुमकम, जिला नीलम, विभाजित भारत के उत्तरी राज्य #जम्मू कश्मीर के पाकिस्तान द्वारा जब्त 48% इलाकों में निहित है।”

पाकिस्तानी जब्ती के कारण ना केवल इस सीट को खोना पड़ा, बल्कि पिछले 60 वर्षों में, उस क्षेत्र के #लाखों हिंदुओं ने अपने मानव अधिकारों को खो दिया है, बुनियादी नागरिक सुविधाओं से #वंचित रखा है, और वे सामाजिक या सरकारी सहायता के बिना दर दर की #ठोकरें खा रहे हैं  ।"

"पाक-कब्जे वाले #कश्मीर को वापस लेने के तीन प्रस्तावों में धूल जमा हो रही है । #धर्मनिरपेक्ष सरकारों के इस दृष्टिकोण को इस्लामी राष्ट्र और #इस्लामी नेतृत्व जानते हैं । जिसके परिणामस्वरूप उत्पीड़न की नीति का पालन किया जा रहा है, और भारत में, इस्लामिक परिवर्तन पाकिस्तान और अन्य इस्लामिक देशों के #समर्थक हो रहे हैं। 

नतीजा यह है कि 18-20 साल पहले, लाखों हिंदुओं को #कश्मीर छोड़ने के लिए मजबूर किया गया; उन्होंने देश के अन्य #हिंदू राज्यों में शरण पायी । लेकिन आज, सात तटीय राज्यों में, हिंदू 10% से कम के अल्पसंख्यक हैं।  अगर दूसरे राज्यों में भी #हिंदुओं की इसी प्रकार की उड़ान हो जाती है,तो वे शरण कहाँ लेगे?”


"इस भय-ग्रस्त समाज के प्रमुख विचारकों, काशी विद्वत परिषद, दंडी सन्यासी सेवा समिति, काशी के #विश्वास-प्रेमी और प्रतिष्ठित व्यक्तियों ने हाथ मिलाकर एक सार्वजनिक समारोह का आयोजन किया और फिर से श्री #शारदा सर्वज्ञ पीठ की लुप्त शंकराचार्य परंपरा को पुन: स्थापित किया ।" 

पीओके के हिंदुओं के उत्पीड़न और उड़ान को रोकना, पीओके के निवासी हिंदुओं के कष्टों को साझा करना और उन्हें न्याय और उनके #अधिकार प्राप्त करने में सहायता करना, #कश्मीरी पंडितों को घाटी में वापस करने के लिए प्रोत्साहित करना, और पीओके को पुनः प्राप्त करने के लिए तीन #संसदीय प्रस्तावों की सरकार को याद दिलाना, यह एक चुनौती थी। 

"इस प्रकार, 16 मई 2003 को, मुझे शंकराचार्य नियुक्त किया गया और मुझे इन  जिम्मेदारियों का #उत्तरदायित्व दिया गया। तब से आज तक, सभी प्रकार के खतरों और खतरों से निपटते हुए,  मैं अपनी जिम्मेदारी पूरी कर रहा हूँ । इस पर एक विशेष #रिपोर्ट आरएसएस मुखपत्र, आयोजक की 17 फरवरी 2008 संस्करण में पढ़ी जा सकती है। "

"धर्म के आधार पर विभाजित भारत का जम्मू क्षेत्र, स्वतंत्रता के समय से, #धर्मनिरपेक्षता की कसौटी बन गया है। वहां शंकराचार्य की नियुक्ति आधिकारिक धर्मनिरपेक्षता का #पर्दाफाश कर सकती है। इस डर से प्रेरित, तत्कालीन केंद्रीय और राज्य सरकारों ने अभिनव भारत कार्यक्रमों का इस्तेमाल करने की मांग की है और कश्मीर शंकराचार्य के रूप में मेरी आधिकारिक क्षमता में, साक्ष्यों को बनाने और मुझे अपमानित करने के लिए #एटीएस का इस्तेमाल किया

"इसलिए, हिंदू समाज के माध्यम से, मैं #आत्महत्या करने की अनुमति लेने के लिए सम्मानित राष्ट्रपति और सम्मानित #न्यायपालिका से अपील करता हूं, क्योंकि इस तरह के #अपमान के बाद मैं हर-दूसरे क्षण धीमे मौत मर रहा हूँ। । और, उन घटनाओं की वजह से, जिनका  मुझे सामना करना पड़ा था, जिसे मैं समाज के सामने आने वाले भारी खतरों के संकेत के रूप में लेता हूँ, मुझे उम्मीद है कि #हिंदू समाज और उसके नेतृत्व करने वाले सतर्क और #जाग्रत होंगे ।"

स्वामी अमृतानन्द देव तीर्थ जी के उपरोक्त पत्र से स्पष्ट है कि #हिंदुओं के दमन के लिए तत्कालीन सरकार ने खूब प्रयास किये लेकिन वे सफल नही हो पाई और उनको जनता ने #उखाड़कर फेंक दिया लेकिन अभी वर्तमान सरकार का भी हिंदुओं के प्रति #उदासीन चेहरा देखकर हिंदुत्व #खतरे में ही लग रहा है ।

आज भी सालों से बिना सबूत हिंदुत्वनिष्ठ शंकराचार्य अमृतानन्द, कर्नल पुरोहित, संत #आसारामजी बापू, धनंजय देसाई आदि जेल में बन्द हैं ।
जब इनकी #रिहाई होगी और वो फिर से बाहर आकर जनता में जागृति लायेगें तभी #हिन्दू संस्कृति टिक पाएगी अन्यथा राष्ट्रविरोधी ताकतों से हिन्दू #संस्कृति खतरे में है ।

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Tuesday, May 9, 2017

बांग्लादेश प्रधानमंत्री का खुलासा : मक्का में हिन्दू मंत्रों के उच्चारण की आती है ध्वनि

बांग्लादेश प्रधानमंत्री का खुलासा : मक्का में हिन्दू मंत्रों के उच्चारण की आती है ध्वनि

'काबा' अरब का प्राचीन #मन्दिर है। जो मक्का शहर में है। विक्रम की प्रथम शताब्दी के आरम्भ में रोमक इतिहास #लेखक 'द्यौद्रस् सलस्' लिखता है - यहाँ इस देश में एक मन्दिर है, जो अरबों का अत्यन्त #पूजनीय है। इस कथन से इस बात को बल मिलता है कि काबा और भगवान शिव का कोई न कोई प्राचीन जुड़ाव जरूर है। पूरा विश्‍व आज काबा के सच को जानने को #उत्सुक है किन्‍तु वर्तमान परिदृश्‍य में काबा में #गैर-इस्‍लामिक या कहे कि गैर मुस्लिम का जाना प्रतिबंधित है इस कारण काबा के अंदर क्या है और इसके पीछे के सच का खुलासा आज तक नहीं हो पाया है।

sacred sound from kaba

दुनियाँ में इस्लामिक #आतंक सबसे ज्यादा है । दुनियाँ का लगभग हर देश इस आतंक से #ग्रस्त है, हर कोई इस्लामिक आतंक से लड़ रहा है। इस इस्लामिक आतंक का बस एक #मक्सद है इस्लाम का प्रचार करना । इस्लाम के आकाओं के अनुसार इस्लाम दुनियाँ में सबसे पुराना है । 

मुसलमान कहते हैं कुरान परमात्मा की वाणी है जो #अनादि काल से चली आ रही है । लेकिन ये बात बिल्कुल आधारहीन है इसका कोई तर्क नहीं है । क्योंकि मुस्लिम धर्म की स्थापना पैगंबर मोहम्मद ने 1400 साल पहले की थी और हमारे ग्रंथो के अनुसार पृथ्वी पर सबसे पहले #हिन्दू धर्म (सनातन धर्म) की छाया के सिद्धांत ही प्रतीत होते है जिसे कई देशों ने भी माना है । 

मुसलमानों के तौर तरीके, रीति-रिवाज आदि हिन्दुओं जैसे ही हैं । हिन्दुओं से ही सीख लेकर इन्होनें अपने हिसाब से इन्हें ढाल लिया है। जिसके सबूत कई जगहों पर मिलते रहे हैं और कई लोगों ने इसकी #पुष्टि भी की है । 

अब बांग्लादेश की #प्रधानमंत्री शेख हसीना ने खुद स्वीकारा है कि, सऊदी अरब के मक्का में मुस्लिमों का जो मजहबी स्थल है, जिसे काबा के नाम से भी जानते हैं उसमें से हिन्दू #मंत्रों की आवाज आती है । शेख हसीना ने बांग्लादेश की एक बड़ी #न्यूज एजेंसी को दिए गए बयान में कहा कि मक्का से अलग अलग मन्त्रों की आवाज आती है जैसे "ॐ" इत्यादि । इस बात की पुष्टि न्यूज एजेंसी ने भी की है । 


मक्का मदीना का सच

मुसलमानों के सबसे बड़े तीर्थ मक्का #मक्केश्वर महादेव का मंदिर था। वहाँ काले पत्थर का विशाल #शिवलिंग था जो खंडित अवस्था में अब भी वहाँ है। हज के समय संगे अस्वद (संग अर्थात् पत्थर, अस्वद अर्थात् अश्वेत यानी काला) कहकर मुसलमान उसे ही #पूजते और चूमते हैं। 


इस सम्‍बन्‍ध में #प्रख्‍यात प्रसिद्ध इतिहासकार स्व. पी.एन.ओक ने अपनी पुस्तक ‘वैदिक विश्व राष्ट्र का इतिहास’ में समझाया है कि मक्का और उस इलाके में इस्लाम के आने से पहले #मूर्ति पूजा होती थी। हिंदू देवी-देवताओं के मंदिर थे, गहन #रिसर्च के बाद उन्होंने यह भी दावा किया कि काबा में भगवान शिव का #ज्योतिर्लिंग है। पैगंबर मोहम्मद ने हमला कर मक्का की मूर्तियां #तोड़ी थी। यूनान और भारत में बहुतायत में मूर्ति पूजा की जाती रही है, पूर्व में इन दोनों ही देशों की #सभ्यताओं का दूरस्थ इलाकों पर प्रभाव था। ऐसे में दोनों ही इलाकों के कुछ विद्वान काबा में #मूर्ति पूजा होने का तर्क देते हैं। हज करने वाले लोग काबा के पूर्वी कोने पर जड़े हुए एक काले पत्थर के दर्शन को पवित्र मानते हैं जो कि हिन्‍दूओं का #पवित्र शिवलिंग है। वास्‍तव में इस्लाम से पहले मिडल-ईस्ट में #पीगन जनजाति रहती थी और वह हिंदू रीति-रिवाज को ही मानती थी।


एक प्रसिद्ध मान्‍यता के अनुसार काबा में “पवित्र गंगा” है। जिसका निर्माण #महापंडित रावण ने किया था, रावण शिव भक्त था वह शिव के साथ गंगा और चन्द्रमा के ‍महत्व को समझता था और यह जानता था कि क‍भी #शिव को गंगा से अलग नहीं किया जा सकता। जहाँ भी शिव होंगे, पवित्र गंगा की अवधारणा निश्चित ही मौजूद होती है। काबा के पास भी एक पवित्र #झरना पाया जाता है, इसका पानी भी पवित्र माना जाता है। इस्लामिक काल से पहले भी इसे पवित्र (आबे जम-जम) ही माना जाता था। रावण की तपस्‍या से प्रसन्‍न होकर भगवान शिव ने रावण को एक #शिवलिंग प्रदान किया जिसे लंका में स्‍थापित करने को कहा और बाद में  जब रावण आकाश मार्ग से लंका की ओर जाता है पर रास्ते में कुछ ऐसे हालात बनते हैं कि रावण को शिवलिंग #धरती पर ही रखना पड़ता है। वह दोबारा शिवलिंग को उठाने की कोशिश करता है पर खूब प्रयत्न करने पर भी लिंग उस स्थान से हिलता नहीं। #वेंकटेश पण्डित के अनुसार यह स्थान वर्तमान में सऊदी अरब के मक्का नामक स्थान पर स्थित है। सऊदी अरब के पास ही यमन नामक राज्य भी है जहाँ #श्री कृष्ण ने कालयवन नामक राक्षस का विनाश किया था। जिसका जिक्र #श्रीमद्भगवत पुराण में भी आता है।

पहले राजा भोज ने मक्का में जाकर वहां स्थित #प्रसिद्ध शिवलिंग मक्केश्वर महादेव का पूजन किया था, इसका वर्णन भविष्य-पुराण में निम्न प्रकार है :-

"नृपश्चैवमहादेवं मरुस्थल निवासिनं !

गंगाजलैश्च संस्नाप्य पंचगव्य समन्विते :

चंद्नादीभीराम्भ्यचर्य तुष्टाव मनसा हरम !

इतिश्रुत्वा स्वयं देव: शब्दमाह नृपाय तं!

गन्तव्यम भोज राजेन महाकालेश्वर स्थले !! "


इस्लाम नींव इस आधार पर रखी गई कि दूसरों के धर्म का #अनादर करों और उनको #नेस्‍तानाबूत और पवित्र स्थलों को खंडित कर वहाँ मस्जिद और मकबरे का निर्माण किया  जाए। इस काम में बाधा डालने वाले जो लोग भी सामने आये उन लोगों को #मौत के घाट उतार दिया जाये। भले ही वे लोग मुस्लिमों को परेशान न करते हो। 

1400 साल पहले मुहम्‍मद साहब और #मुसलमानों के हमले से मक्‍का और मदीना के आस पास का पूरा इतिहास बदल दिया गया। इस्लाम एक #तलवार पे बना धर्म था है और रहेगा। पी.एन.ओक ने सिद्ध कर दिया है मक्केश्वर शिवलिंग ही हजे अस्वद है। मुसलमानों के सबसे बड़े तीर्थ मक्का #मक्केश्वर महादेव का मंदिर था। वहां काले पत्थर का विशाल शिवलिंग था जो #खंडित अवस्था में अब भी वहां है। हज के समय संगे अस्वद (संग अर्थात पत्थर, अस्वद अर्थात अश्वेत यानी काला) कहकर मुसलमान उसे ही #पूजते और चूमते हैं। 

द्वारिका शारदा पीठाधीश्वर शंकराचार्य जी का मानना है कि #मक्का में मक्केश्वर महादेव #मंदिर है। मुहम्मद साहब भी शैव थे, इसलिए वे मक्केश्वर महादेव को मानते थे। एक बार वहां लोगों ने बुद्ध की मूर्ति लगा दी थी, वह इसके बहुत विरोधी थे। अरब में मुहम्मद पैगम्बर से पूर्व #शिवलिंग को 'लात' कहा जाता था। मक्का के कावा में जिस काले पत्थर की उपासना की जाती रही है, भविष्य पुराण में उसका उल्लेख #मक्केश्वर के रूप में हुआ है। इस्लाम के प्रसार से पहले #इजराइल और अन्य #यहूदियों द्वारा इसकी पूजा किए जाने के स्पष्ट प्रमाण मिले हैं। 

इराक और सीरिया में #सुबी नाम से एक जाति थी यही #साबिईन है। इन साबिईन को अरब के लोग #बहुदेववादी मानते थे। कहते हैं कि साबिईन अर्थात नूह की कौम। माना जाता है कि भारतीय मूल के लोग बहुत बड़ी संख्या में यमन में आबाद थे, जहां आज भी श्याम और हिन्द नामक किले #मौजूद हैं। विद्वानों के अनुसार सऊदी अरब के मक्का में जो काबा है, वहां कभी प्राचीनकाल में 'मुक्तेश्वर' नामक एक शिवलिंग था जिसे बाद में 'मक्केश्‍वर' कहा जाने लगा।


अरब के मक्का नामक स्थान पर स्थित है 'मक्केश्वर लिंग' (मक्केश्वर महादेव)

मक्का के गेट पर साफ-साफ लिखा था कि #काफिरों का अंदर जाना गैर-कानूनी है। कहा जा रहा है अब इस बोर्ड को उतार दिया गया है और लिख दिया है #नॉन-मुस्लिम्स का अंदर जाना मना है। इसका मतलब है कि ईसाई, जैनी या बौद्ध धर्म को भी #मानने वाले इसके अंदर नहीं जा सकते हैं।

मक्का मदीना के शिवलिंग का रहस्य क्‍या है ? इसे इस्‍लाम पंथियों द्वारा सदा से छिपाया जा रहा है। 

मुसलमानों के पैगम्‍बर मुहम्‍मद ने मदीना से मक्का के शांतिप्रिय #मूर्तिपूजकों पर हमला किया और जबरदस्‍त नरसंहार किया। मक्‍का का मदीना का अपना अलग अस्तित्व था किन्‍तु मुहम्‍मद साहब के हमले के बाद मक्‍का मदीना को एक साथ जोड़कर देखा जाने लगा। जबकि मक्‍का के लोग जो कि शिव के उपासक माने जाते हैं। मुहम्‍मद की टोली ने मक्‍का में स्‍थापित कर वहां पर स्थापित की हुई 360 में से 359 मूर्तियाँ #नष्ट कर दी और सिर्फ काला पत्थर #सुरक्षित रखा जिसको आज भी मुस्‍लिमों द्वारा पूजा जाता है। 

उसके अलावा अल-उज्जा, अल-लात और मनात नाम की #तीन देवियों के मंदिरों को नष्ट करने का आदेश भी मुहम्मद ने दिया और आज उन मंदिरों का नामों निशान नही है (हिशम इब्न अल-कलबी, 25-26)। इतिहास में यह किसी हिन्दू मंदिर पर सबसे पहला इस्लामिक आतंकवादी हमला था। उस काले पत्थर की तरफ आज भी मुस्लिम #श्रद्धालु अपना शीश झुकाते हैं । किसी #हिंदू पूजा के दौरान बिना सिला हुआ वस्त्र या धोती पहनते हैं, उसी तरह हज के दौरान भी बिना सिला हुआ सफेद सूती कपड़ा ही पहना जाता है।

जिस प्रकार हिंदुओं की मान्यता होती है कि गंगा का पानी #शुद्ध होता है ठीक उसी प्रकार मुस्लिम भी #आबे जम-जम के पानी को पाक मानते हैं। जिस तरह हिंदू #गंगा स्नान के बाद इसके पानी को भरकर अपने घर लाते हैं ठीक उसी प्रकार मुस्लिम भी मक्का के #आबे जम-जम का पानी भर कर अपने घर ले जाते हैं। ये भी एक समानता है कि गंगा को मुस्लिम भी पाक मानते हैं और इसकी अराधना किसी न किसी रूप में जरूर करते हैं।

तो पाठक समझ गए होंगे कि #हिन्दू धर्म ही सनातन धर्म है जो सृष्टि की उत्पत्ति करने के समय से है और बाद में अनेक धर्म, महजब, पंथ बने है अतः हिंदुओं को अपने #सनातन धर्म पर #गर्व करना चाहिए और उसके खिलाफ जो भी #षड्यंत्र हो रहे है उसके खिलाफ आवाज उठानी चाहिए।

जय हिन्द!!

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Monday, May 8, 2017

रेप का झूठा आरोप लगाना पड़ा महँगा, युवती को 7 साल की सजा और लगाया जुर्माना

रेप का झूठा आरोप लगाना पड़ा महँगा, युवती को 7 साल की सजा और लगाया जुर्माना

8 मई 2017

‘बलात्कार शब्द सुनते ही न चाह कर भी बरबस इस ओर #ध्यान खिच जाता है । वैसे तो वर्तमान समाज में बहुत सारी समस्याएँ फैली हुई हैं लेकिन #दामिनी कांड के बाद देश में बलात्कार की शिकायतों (कम्प्लेंट्स) में हुई वृद्धि #चौंकाने वाली है । यह सोचने का विषय है कि #बलात्कार की शिकायतों में अचानक इतना इजाफा क्यों हो गया है ? क्या नये कानून बनने के बाद #नारियों में जागरूकता आयी है या इसका कारण कुछ और है ? इसका गलत फायदा उठाकर कहीं निर्दोषों को #फंसाया तो नहीं जा रहा है ? 
New Trend Of Fake Rape Cases

ऐसा ही एक रोहतक का मामला सामने आया है..

दुष्कर्म का #झूठा केस दर्ज करवाना एक युवती को महंगा पड़ गया। अदालत ने युवती को ही #दोषी करार देते हुए सात साल की सजा व 10 हजार रुपये का #जुर्माना भी लगाया। वहीं मामले में अदालत ने दुष्कर्म के आरोपियों को बेगुनाह बताकर #बरी कर दिया।

जानकारी के अनुसार इंदिरा कॉलोनी (रोहतक -हरियाणा) निवासी एक युवती ने जून 2015 में कॉलोनी के ही #संजय के खिलाफ दुष्कर्म का केस दर्ज कराया था। संजय के परिवार के आठ सदस्यों पर साजिश रचने के #आरोप में नामजद किया गया था। अदालत में आरोपी पक्ष की तरफ से दुष्कर्म के मामले में ऐसे #सबूत पेश किए गए जिसमें युवती झूठी साबित हो गई। 

अदालत ने सबूतों के आधार पर #दुष्कर्म के सभी आरोपियों को वर्ष 2015 में बरी कर दिया। इसी दिन संजय ने अदालत में युवती के खिलाफ #मानहानि का केस चलाने की अपील की। अदालत ने इसे मंजूर करते हुए मानहानि का #केस चला दिया। 

इस मामले की बृहस्पतिवार को सुनवाई हुई, जिसमें युवती को #दोषी ठहराया गया। अतिरिक्त जिला एवं सत्र #न्यायाधीश मीनाक्षी वाईके बहल ने युवती को सात साल की #सजा सुनाई। दोषी को 10 हजार रुपये जुर्माना भी भरना होगा, अन्यथा छह माह की अतिरिक्त #सजा काटनी होगी।

फैशन बन गया है बलात्कार का आरोप लगाना 

रेप सम्बन्धी नये कानूनों के परिणाम, मीडिया की भूमिका, राजनैतिकों द्वारा  इसके इस्तेमाल आदि विभिन्न विषयों पर #वास्तविकता को जनता के समक्ष रखते हुए #शिवसेना के मुखपत्र ‘सामना के सम्पादकीय में लिखा गया है : (बालिग, नाबालिग द्वारा ) छेडखानी और बलात्कार का आरोप लगाकर सनसनी पैदा करना अब फैशन हो गया है क्या ? 

ऐसा सवाल लोगों के #मन में उठने लगा है । ‘छेडखानी, ‘बलात्कार जैसे आरोप लगाकर #सनसनी फैलाने के मामले बढ़ने लगे हैं । ऐसे मामलों में सच बाहर आने के पूर्व ही उस संदेहास्पद अभियुक्त की ‘मीडिया ट्रायल के नाम पर जो भरपूर बदनामी चलती है, वह बहुत ही #घिनौनी है । 

टीवी #चैनलों के लोग ‘वारदात, ‘सनसनी जैसे आपराधिक #कार्यक्रमों में बलात्कार का ‘आँखों देखा हाल दिखाकर ऐसा #दर्शाते हैं कि उन्होंने जैसे अपनी खुली आँखों से बलात्कार देखा हो । संदेहास्पद बलात्कार के मामलों को छौंक-बघारकर पाठक तथा दर्शकों तक #परोसा जाता है । 

चरित्रहनन तथा बदनामी, राजनीति में एक बहुत बडा #हथियार बन गया है । कानून #महिलाओं के साथ है लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि ऐसे कानून का कोई गलत इस्तेमाल कर किसी को भी #तख्त पर चढ़ाये । बलात्कार बहुत ही #घिनौंना और गम्भीर मामला है । कोई भी महिला यह कलंक क्षणभर भी #बर्दाश्त नहीं कर सकती । लेकिन इन दिनों बलात्कार का आरोप तथा शिकायत (तथाकथित) घटना घटित होने के छः-छः महीने और दो-दो, बारह-बारह साल के बाद दाखिल की जाती है । (संत आशारामजी बापू व उनके बेटे #नारायण साँईजी पर तो दो महिलाओं को मोहरा बनाकर 12 व 11 साल पहले #बलात्कार हुआ ऐसी कल्पित, झूठी कहानी बना के मामला #दर्ज करवाया गया है । 

कुछ समय पहले मुंबई #पुलिस दल के एक बहादुर अधिकारी #अरुण बोरुडे पर भी ऐसा ही आरोप लगाया गया और उन्होंने #आत्महत्या कर ली । जाँच के बाद बोरुडे #निर्दोष साबित हुए । बलात्कार का आरोप यह बडों के खिलाफ विरोध का एक #हथियार बन गया है । छेडखानी, बलात्कार यह अमानवीय है लेकिन इस तरह के गलत आरोप लगाकर स्त्रीत्व का #बेजा इस्तेमाल करना भी समस्त महिला समुदाय को कलंकित कर रहा है ।


इसका समाधान कौन करेगा ? 

दिल्ली, फास्ट ट्रैक कोर्ट के #न्यायाधीश श्रीमती निवेदिता शर्मा ने भी कहा कि ‘‘इन दिनों बलात्कार या यौन-शोषण के झूठे #मुकद्दमे दर्ज कराने का ट्रेंड बढ़ता जा रहा है, जो चिंताजनक है । इस तरह के चलन को #रोकना बेहद जरूरी है ।

आम नागरिक से लेकर #प्रसिद्ध हस्तियों तक सभी के लिए असुरक्षिता का माहौल क्यों पैदा हो रहा है ? महिलाओं के साथ-साथ पुरुष भी अपने को #असुरक्षित महसूस क्यों कर रहे हैं ? संयुक्त परिवार क्यों टूट रहे हैं ? इसे जानने के लिए विभिन्न न्यायाधीशों, न्यायविदों, अधिवक्ताओं, #सामाजिक संगठनों के प्रमुखों एवं अन्य मान्यवरों ने प्रत्यक्ष अनुभव किया है । 

यह किसी #व्यक्ति-विशेष की नहीं बल्कि एक #सामाजिक समस्या है । इससे समाज के सभी वर्ग #प्रभावित हो रहे हैं । इस समस्या के समाधान के लिए सबको #प्रयास करना होगा । नहीं तो हो सकता है कि कल आप भी इसके #चंगुल में आ जायें । 

अतः सावधान !

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Sunday, May 7, 2017

लंदन व न्यूजीलैंड के शिक्षकों ने स्वीकारा, संस्कृत पढ़ने से बच्चे बनते हैं महान

लंदन व न्यूजीलैंड के शिक्षकों ने स्वीकारा, संस्कृत पढ़ने से बच्चे बनते हैं महान
7 मई 2017
sanskrit

‘देववाणी संस्कृत’ की महानता !

आज अपनी #मातृभूमि पर उपेक्षा का दंश झेल रही ‘संस्कृत’ विश्व में एक #सम्माननीय भाषा और सीखने के महत्वपूर्ण पड़ाव का दर्जा प्राप्त कर रही है। जहां भारत के सार्वजनिक #पाठशालाओं में फ्रेंच, जर्मन और अन्य विदेशी भाषा सीखने पर जोर दिया जा रहा है वहीं विश्व की बहुत सी पाठशालाएं, ‘संस्कृत’ को पाठ्यक्रम का हिस्सा बना रहे हैं !

ऑकलैंड (न्यूजीलैंड) : प्राचीन काल से ही संस्कृत भाषा भारत की सभ्यता और #संस्कृति का सबसे मुख्य भाग रही है। फिर भी आज हमारे देश में संस्कृत को पाठशाली शिक्षा में अनिवार्य करने की बात कहने पर इसका विरोध शुरू हो जाता है। हम भारतवासियों ने अपने देश की #गौरवमयी संस्कृत भाषा को महत्व नही दिया। आज हमारे देश के विद्यालयों में संस्कृत बहुत कम पढ़ाई और सिखाई जाती है। किंतु आज अपनी #मातृभूमि पर उपेक्षा का दंश झेल रही संस्कृत विश्व में एक सम्माननीय भाषा और सीखने के महत्वपूर्ण पड़ाव का दर्जा हासिल कर रही है। जहाँ भारत के तमाम पब्लिक पाठशालों में फ्रेंच, जर्मन और अन्य विदेशी भाषा सीखने पर जोर दिया जा रहा है वहीं #विश्व की बहुत सी पाठशालाएं संस्कृत को पाठ्यक्रम का हिस्सा बना रहे हैं।

न्यूजीलैंड की एक पाठशाला में संसार की विशेषतः भारत की इस महान भाषा को सम्मान मिल रहा है। #न्यूजीलैंड के इस पाठशाला में बच्चों को अंग्रेजी सिखाने के लिए संस्कृत पढाई जा रही है। फिकिनो नामक इस पाठशाला का कहना है कि, संस्कृत से बच्चों में सीखने की क्षमता बहुत बढ जाती है। न्यूजीलैंड के शहर #अॉकलैंड के माउंट इडेन क्षेत्र में स्थित इस पाठशाला में लड़के और लड़कियां दोनों को शिक्षा दी जाती है। 16 वर्ष तक की आयु तक यहाँ बच्चों को शिक्षा दी जाती है ।
इस पाठशाला का कहना है कि, इसकी पढ़ाई मानव मूल्यों, मानवता और आदर्शों पर आधारित है। अमेरिका के #हिंदू नेता राजन झेद ने पाठ्यक्रम में संस्कृत को सम्मिलित करने पर #फिकिनो की प्रशंसा की है। फिकिनो में अत्याधुनिक साउंड सिस्टम लगाया गया है। जिससे बच्चों को कुछ भी सीखने में आसानी रहती है। पाठशाला के #प्रिंसिपल पीटर क्राम्पटन कहते हैं कि, 1997 में स्थापित इस पाठशाला में नए तरह के विषय रखे गए हैं। जैसे दिमाग के लिए भोजन, शरीर के लिए भोजन, अध्यात्म के लिए भोजन।

इस पाठशाला में अंग्रेजी, इतिहास, गणित और प्रकृति के विषयों की भी पढ़ाई कराई जाती है। पीटर क्राम्पटन कहते हैं कि संस्कृत ही एक मात्र ऐसी भाषा है जो #व्याकरण और उच्चारण के लिए सबसे श्रेष्ठ है। उनके अनुसार संस्कृत के जरिए बच्चों में अच्छी अंग्रेजी #सीखने का आधार मिल जाता है। संस्कृत से बच्चों में अच्छी अंग्रेजी #बोलने, समझने की क्षमता विकसित होती है।

पीटर क्राम्पटन कहते हैं कि, दुनियाँ की कोई भी भाषा सीखने के लिए #संस्कृत भाषा आधार का काम करती है। इस पाठशाला के बच्चे भी #संस्कृत पढकर बहुत खुश हैं। इस पाठशाला में दो चरणों में शिक्षा दी जाती है। पहले चरण में दस वर्ष की आयु तक के बच्चे और दूसरे चरण 16 वर्ष की आयु वाले बच्चों को शिक्षा दी जाती है। इस पाठशाला में बच्चों को दाखिला दिलाने वाले हर अभिभावक का यह #प्रश्न अवश्य होता है कि, आप संस्कृत क्यों पढ़ाते हैं? हम उन्हें बताते हैं कि यह भाषा श्रेष्ठ है। विश्व की महानतम रचनाएं इसी भाषा में लिखी गई हैं।

अमेरिका के #हिंदू नेता राजन झेद ने कहा है कि, संस्कृत को सही स्थान दिलाने की आवश्यकता है। एक ओर तो सम्पूर्ण विश्व में संस्कृत भाषा का महत्व बढ रहा है, वहीं दूसरी ओर भारत में संस्कृत भाषा के विस्तार हेतु ठोस कदम नहीं उठाए जा रहे हैं जिसके कारण भारत में ही संस्कृत का #विस्तार नहीं हो पा रहा है और संस्कृत भाषा के महत्व से लोग #अज्ञात हैं । हिंदू धर्म के अलावा बौद्ध और जैन धर्म के तमाम ग्रंथ संस्कृत में लिखे गए हैं।

स्त्रोत : हिन्दू जन जागृति

संस्कृत भाषा की विशेषताएँ

(1) संस्कृत, विश्व की सबसे #पुरानी पुस्तक (वेद) की भाषा है। इसलिये इसे विश्व की प्रथम भाषा मानने में कहीं किसी संशय की संभावना नहीं है।

(2) इसकी सुस्पष्ट व्याकरण और वर्णमाला की #वैज्ञानिकता के कारण सर्वश्रेष्ठता भी स्वयं सिद्ध है।

(3) सर्वाधिक महत्वपूर्ण साहित्य की धनी होने से इसकी महत्ता भी #निर्विवाद है।

(4) इसे देवभाषा माना जाता है।

(5) संस्कृत केवल स्वविकसित भाषा नहीं बल्कि #संस्कारित भाषा भी है अतः इसका नाम संस्कृत है। 
केवल संस्कृत ही एकमात्र ऐसी भाषा है जिसका नामकरण उसके बोलने वालों के नाम पर नहीं किया गया है। संस्कृत को संस्कारित करने वाले भी कोई साधारण भाषाविद् नहीं बल्कि महर्षि #पाणिनि, महर्षि #कात्यायन और योगशास्त्र के प्रणेता महर्षि #पतंजलि हैं। 
इन तीनों महर्षियों ने बड़ी ही कुशलता से योग की क्रियाओं को भाषा में समाविष्ट किया है। यही इस भाषा का रहस्य है।

(6) शब्द-रूप - विश्व की सभी भाषाओं में एक शब्द का एक या कुछ ही रूप होते हैं, जबकि संस्कृत में प्रत्येक शब्द के 27 रूप होते हैं।

(7) द्विवचन - सभी भाषाओं में एकवचन और बहुवचन होते हैं जबकि संस्कृत में #द्विवचन अतिरिक्त होता है।

(8) सन्धि - संस्कृत भाषा की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता है सन्धि। संस्कृत में जब दो अक्षर निकट आते हैं तो वहाँ #सन्धि होने से स्वरूप और उच्चारण बदल जाता है।

(9) इसे कम्प्यूटर और कृत्रिम #बुद्धि के लिये सबसे उपयुक्त भाषा माना जाता है।

(10) शोध से ऐसा पाया गया है कि संस्कृत #पढ़ने से स्मरण शक्ति बढ़ती है।

(11) संस्कृत वाक्यों में शब्दों को किसी भी क्रम में रखा जा सकता है। इससे अर्थ का #अनर्थ होने की बहुत कम या कोई भी #सम्भावना नहीं होती। 
ऐसा इसलिये होता है क्योंकि सभी शब्द विभक्ति और वचन के अनुसार होते हैं और क्रम बदलने पर भी सही अर्थ सुरक्षित रहता है। जैसे - अहं गृहं गच्छामि या गच्छामि गृहं अहम् दोनो ही ठीक हैं।

(12) संस्कृत विश्व की सर्वाधिक 'पूर्ण' (perfect) एवं #तर्कसम्मत भाषा है।

(13) संस्कृत ही एक मात्र साधन है जो क्रमश: अंगुलियों एवं जीभ को #लचीला बनाते हैं। इसके अध्ययन करने वाले छात्रों को गणित, विज्ञान एवं अन्य भाषाएँ ग्रहण करने में सहायता मिलती है।

(14) संस्कृत भाषा में साहित्य की रचना कम से कम छह हजार वर्षों से निरन्तर होती आ रही है। इसके कई लाख ग्रन्थों के पठन-पाठन और #चिन्तन में भारतवर्ष के हजारों पुश्त तक के करोड़ों #सर्वोत्तम मस्तिष्क दिन-रात लगे रहे हैं और आज भी लगे हुए हैं।
 पता नहीं कि संसार के किसी देश में इतने काल तक, इतनी दूरी तक व्याप्त, इतने #उत्तम मस्तिष्क में विचरण करने वाली कोई भाषा है या नहीं। शायद नहीं है। दीर्घ कालखण्ड के बाद भी असंख्य प्राकृतिक तथा मानवीय #आपदाओं (वैदेशिक आक्रमणों) को झेलते हुए आज भी 3 करोड़ से अधिक संस्कृत #पाण्डुलिपियाँ विद्यमान हैं। यह संख्या ग्रीक और लैटिन की पाण्डुलिपियों की सम्मिलित संख्या से भी 100 गुना अधिक है। 
निःसंदेह ही यह सम्पदा छापाखाने के #आविष्कार के पहले किसी भी संस्कृति द्वारा सृजित सबसे बड़ी सांस्कृतिक विरासत है।

(15) संस्कृत केवल एक मात्र भाषा नहीं है अपितु संस्कृत एक विचार है। संस्कृत एक संस्कृति है एक #संस्कार है संस्कृत में विश्व का कल्याण है, शांति है, सहयोग है, वसुधैव कुटुम्बकम् की #भावना है।


अब केन्द्र सरकार व राज्य सरकारों को सभी स्कूलों, कॉलेजों में संस्कृत भाषा को अनिवार्य करना चाहिए जिससे बच्चों की बुद्धिशक्ति का विकास के साथ साथ बच्चे सुसंस्कारी बने ।

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