Wednesday, June 28, 2017

जोगी ममलानाथ : हुकूमत के नशे में आकर आसारामजी बापू पर जो कहर ढहा रहे हैं वे अब जल्दी भुगतेगें

जोगी ममलानाथ : हुकूमत के नशे में आकर आसारामजी बापू पर जो कहर ढहा रहे हैं वे अब जल्दी भुगतेगें

जून 28, 2017
jogi mamlanath asaram bapu ji

अलवर के नजिक नाथ सम्प्रदाय के सुप्रसिद्ध सिद्ध स्थान #भरथरी नाथ आश्रम के संत #ममलनाथ ने संत #आसारामजी बापू का नाम सुनते ही कहा - संत आसारामजी बापू तो सिद्धों के भी सिद्ध हैं । #आसारामजी बापू पर इस समय जितना #अत्याचार किया जा रहा है , भारत के सभी संत-महात्मा उसे देख रहें हैं। अत्याचारियों को इसका फल इसी जीवन में और यहीं इसी भारत भूमि पर भुगतना पड़ेगा । बापूजी तो गुरु #गोरखनाथ की तरह अमर हैं । उनका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता ।

#रावण जैसे #शक्तिशाली राजा का नाश भी #संतों को #सताने से हुआ था । रावण के तो लाख पुत्र और सवा लाख नाती थे । फिर भी उसके कुल में कोई दीया बाती करनेवाला नहीं बचा था ।

यह भारत भूमि है । #हिन्दू धर्म को नष्ट करने के लिए यहाँ बड़े बड़े बलवान अत्याचारी बाहर से भी आये पर हिन्दू धर्म को नष्ट नहीं कर पाए । हिन्दू धर्म सत है सत का कभी नाश हो ही नहीं सकता ।

#सिकंदर जैसे दुनिया को जीतनेवाले ने भी इस देश में आकर संतों के आगे #माथा #झुकाया था । हुकूमत के नशे में आकर आसारामजी बापू जैसे संत पर कहर तो ढह रहा है, पर मैं गुरु के आदेश से आपको कह रहा हूँ, पंडित जी, आप और हम अपनी इन्ही आँखों से इनको भुगतते हुए भी जल्दी देखेंगे । ना ही इनकी हुकूमत रहनेवाली है ना ही इनका कुल खानदान ।

संदर्भ : आदर्श पंचायती राज - हिन्दी मासिक पत्रिका) जून -2017, पृष्ठ-6

गौरतलब है कि बापू #आसारामजी #बिना अपराध सिद्ध हुए #4 साल से जोधपुर जेल में बंद हैं और उनकी रिहाई के लिए #सुब्रमण्यम स्वामी, सुरेश चव्हाणके, टी राजा सिंह, संजय राऊत, डीजी वंजारा जी आदि कई हिंदुत्वनिष्ठ हस्तियों के साथ-साथ सोशल मीडिया पर ट्रेंड्स के द्वारा व ग्राउंड लेवल पर भी उनके समर्थन में हजारों रैलियां, धरने, #प्रधानमंत्री व #राष्ट्रपति के नाम से कलेक्टर को ज्ञापन देना, संत सम्मेलन आदि होते आ रहे हैं ।

आपको बता दें कि अभीतक जमानत नही मिलने पर 70 वर्ष तक हिमालय में तपस्या करने वाले 100 वर्ष से अधिक उम्र वाले बोरिया बाबा जिनकी श्रीमति इंदिरा गांधी से लेकर वर्तमान राष्ट्रपति #प्रणब मुखर्जी तक से भी वार्तालाप होती रही है उन्होंने प्रधानमंत्री को एक खत लिखा था और बताया था कि "मोदी जी मेरा आपसे कहना है कि जिस राजा के राज में संत सताए जाए तथा संत महात्मा भयभीत होकर रहें, तो उस राजा का भविष्य कतई उज्जवल नहीं है । इसलिए मेरी तो आपको सलाह है कि संत आशारामजी बापू एक निर्दोष संत हैं । आप सम्मान के साथ उनकी आजादी का जल्दी से जल्दी प्रबंध कर दें ।"

फिलहाल बापू आसारामजी को #कानून से अभी तक कोई #राहत नही मिली है इसलिए कई #साधु-संत उनकी #रिहाई की मांग कर रहे हैं ।

बापू आसारामजी के #देश-विदेश के करोड़ो अनुयायियों ने और कई हिन्दू संगठनों ने उनके लिए धरने दिए, रैलियां निकाली, ज्ञापन दिए लेकिन उनको अभीतक कोई राहत मिली नही है ।

अब देखते हैं कि बिना सबूत 4 साल से जेल में बंद बापू आसारामजी की रिहाई के लिए अनेक #हिन्दू संगठन, हिन्दुत्वनिष्ठों और उनके करोड़ो भक्तों की #आवाज प्रधानमंत्री #नरेंद्र_मोदी सुनकर कोई ठोस कदम उठाते हैं या ..???

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Tuesday, June 27, 2017

देश पर अंग्रेजों द्वारा लादा गया झूठा लोकतंत्र हटाना ही पड़ेगा : श्री. रमेश शिंदे

देश पर अंग्रेजों द्वारा लादा गया झूठा लोकतंत्र हटाना ही पड़ेगा : श्री. रमेश शिंदे

जून 27, 2017 

अखिल भारतीय हिन्दू अधिवेशन में हिन्दू #जनजागृति समिति के #राष्ट्रीय प्रवक्ता श्री. रमेश शिंदेजी ने हिन्दू राष्ट्र स्थापना पर बोलते समय कहा कि लोकतंत्र की गत 70 वर्षों की #कालावधि में वाम विचारधारा के लोग यह भूल गए हैं कि, ब्रिटिश और मुगलों के भारत में आने से पहले भारत एक समर्थ हिन्दू राष्ट्र ही था ।
ramesh shindhe
 

उस समय विश्‍व के निराश्रित #पारसी, ज्यू, इराणी लोगों को #आश्रय देनेवाला केवल #भारत ही था ।

अब हमारा विकास दर 6 प्रतिशत से 9 प्रतिशत पर गया, तो भी आनंद व्यक्त किया जाता है; परंतु विदेशी अभ्यासक एंगर्स #मेडिसन ने लिखा है कि, उस समय भारत का #विकासदर 34 प्रतिशत था ।

🚩हमें हिन्दू राष्ट्र स्थापना के लिए अलग ब्लू प्रिंट बनाने की क्या आवश्यकता है ? 
भारत में #मुसलमान #आक्रमणकारी एवं #अंग्रेज आने से पूर्व भारत एक समर्थ #हिन्दू #राष्ट्र था । हमारे पास कौटिल्य का अर्थशास्त्र था, स्थापत्यशास्त्र, नृत्यशास्त्र आदि सबकुछ समृद्ध था । हम तो इस देश पर अंग्रेजों द्वारा लादा गया झूठा #लोकतंत्र हटाने की ब्लू प्रिंट तैयार कर रहे हैं ।

रमेश जी ने बताया कि जिस प्रकार रामायण होने से पहले ही ऋषि वाल्मीकि ने उसे लिखकर रखा था, उसी प्रकार द्रष्टा संत परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने वर्ष 1998 में ही भारत में 2023 में #हिन्दूराष्ट्र आएगा, ऐसा लिखा है । उसके लिए अभी जनमानस तैयार हो रहे हैं । यह देश की विविध घटनाआें से सुस्पष्ट हुआ है । अब इस अधिवेशन में आए हिन्दू धर्माभिमानी यह विषय जनमानस पर अंकित करेंगे ।

हिन्दू राष्ट्र में किसी का #तुष्टिकरण नहीं होगा । सबको समान अधिकार होंगे ।


आतंकवाद रोकने हेतु ‘पनून #कश्मीर’ का निर्माण आवश्यक..

हिन्दू अधिवेशन में ‘यूथ फॉर पनून काश्मीर’ के उपाध्यक्ष श्री. राहुल #राजदान ने कहा कि कट्टरपंथियों ने अफगानिस्तान लिया, पाक लिया अब वे कश्मीर से हिंदुओं को निकालना चाहते हैं तथा देहली में आना चाहते हैं । यह जिहादी #आतंकवाद रोकने के लिए केंद्रशासित प्रदेश के रूप में ‘पनून कश्मीर’ का निर्माण आवश्यक है ।

🚩उन्होंने आगे कहा कि कश्मीर घाटी से वर्ष 1990 में साढे-चार लाख कश्मीरी #हिन्दुआें को निकाल दिया गया । कश्मीर के उस समय के और वर्तमान के कट्टरपंथियों की मनःस्थिति में बहुत अंतर दिखाई देता है ।

'कश्मीरी #हिन्दुआें को देश के हिन्दू साथ देंगे’, ऐसा डर उस समय के कट्टरपंथियों कोे था । अब यह डर नहीं रहा ।

ऐसा बताया जाता था कि पहले के #कट्टरपंथियों के नेता राजनीतिक अन्याय के कारण हाथ में पिस्तुल लेतेे थे; परंतु अभी के नेता ‘कश्मीर की लड़ाई’ यह ‘इस्लाम की लड़ाई है’ ऐसा खुलकर बताते हैं । इतना ही नहीं कश्मीर की समस्या को ‘#राजनीतिक समस्या’ समझनेवाले अलगाववादियों को भी मारने की धमकियां दी जाती हैं ।

🚩कश्मीर में केवल सेना के नियंत्रण में जो मंदिर हैं, वहीं शेष हैं । वहां #कट्टरपंथियों की कट्टरता बढ़ी है । वहां की कश्मीरी भाषा नष्ट कर ‘उर्दू’ भाषा की जड़ें जमाई जा रही हैं ।

🚩 #कश्मीर में यदि किसी चीज में परिवर्तन नहीं हुआ है, तो वह है सरकार का दृष्टिकोण !

🚩वहां की सरकार पहले के समान कट्टरपंथियों के साथ है । इस स्थिति को बदलने के लिए ‘पनून कश्मीर’के निर्माण की आवश्यकता है ।

आपको बता दें कि सनातन संस्था के अथाह प्रयास से अखिल भारतीय हिन्दू अधिवेशन में देश-भर के 150 #हिन्दू #संगठन इकट्ठे हुए थर जो हिन्दू राष्ट्र घोषित करने की मांग कर रहे हैं ।

अब देखते हैं कि हिन्दुत्वादी कहलाने वाली #सरकार द्वारा उनको कितना समर्थन मिलता है..???

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Monday, June 26, 2017

देववाणी संस्कृत से आई है मुसलमानों की 'नमाज

देववाणी संस्कृत से आई है मुसलमानों की 'नमाज 

जून 26,2017

संसार की समस्त प्राचीनतम भाषाओं में संस्कृत का सर्वोच्च स्थान है। विश्व-साहित्य की प्रथम पुस्तक ऋग्वेद संस्कृत में ही रची गई है। संपूर्ण भारतीय संस्कृति, परंपरा और महत्वपूर्ण राज इसमें निहित हैं । अमरभाषा या देववाणी संस्कृत को जाने बिना भारतीय संस्कृति की महत्ता को जाना नहीं जा सकता। 
namaaz

संस्कृत भाषा से ही सभी भाषाओं की उत्पत्ति हुई है। दूसरे शब्दों में इसे भाषाओं की माँ माना गया है। 

प्राचीन काल से ही जनमानस से लेकर साहित्य की भाषा रही संस्कृत, कालांतर में करीब-करीब सुस्ता कर बैठ गई, जिसका एक मुख्य कारण है कि इसका समाज में महत्व न समझकर केवल पूजाघर में ही स्थापित कर दिया गया।

देववाणी संस्कृत भाषा तो जिस संस्कृति और परिवेश में जाती है, उसे अपना कुछ न कुछ देकर ही आती है।

वैदिक संस्कृत जिस बेलागपन से समाज के क्रिया-कलापों को परिभाषित करती थी उतने ही अपनेपन के साथ दूरदराज के समाजों में भी उसका उठना बैठना था। जिस जगह विचरती उस स्थान का नामकरण कर देती।
दजला और फरात के भूभाग से गुजरी तो उस स्थान का नामकरण ही कर दिया । हरे भरे खुशहाल शहर को 'भगवान प्रदत्त' कह डाला। संस्कृत का भगः शब्द फारसी अवेस्ता में "बग" हो गया और दत्त हो गया "दाद" और बन गया बगदाद।

अफगान का अश्वक से नाता

इसी प्रकार संस्कृत का "अश्वक" प्राकृत में बदला "आवगन" और फारसी में पल्टी मारकर "अफगान" हो गया और साथ में स्थान का प्रत्यय "स्तान" में बदलकर मिला दिया और बना दिया हिंद का पड़ोसी अफगानिस्तान -यानी निपुण घुड़सवारों की निवास-स्थली।

स्थान ही नहीं, संस्कृत तो किसी के भी पूजाघरों में जाने से नहीं कतराती क्योंकि वह तो यह मानती है कि ईश्वर का एक नाम अक्षर भी तो है। अ-क्षर यानी जिसका क्षरण न होता हो।

इस्लाम की पूजा पद्धति का नाम यूँ तो कुरान में सलात है लेकिन मुसलमान इसे नमाज के नाम से जानते और अदा भी करते हैं। नमाज शब्द संस्कृत धातु नमस् से बना है।

इसका पहला उपयोग ऋगवेद में हुआ है और अर्थ होता है- आदर और भक्ति में झुक जाना। श्रीमद्भगवद्गीता के ग्यारहवें अध्याय के इस श्लोक को देखें - नमो नमस्तेऽस्तु सहस्रकृत्वः पुनश्च भूयोऽपि नमो नमस्ते।

इस संस्कृत शब्द नमस् की यात्रा भारत से होती हुई ईरान पहुंची जहाँ प्राचीन फारसी अवेस्ता उसे नमाज पुकारने लगी और आखिरकार तुर्की, आजरबैजान, तुर्केमानिस्तान, किर्गिस्तान, उज्बेकिस्तान, ताजिकिस्तान, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, भारत, बांग्लादेश, बर्मा, इंडोनेशिया और मलेशिया के मुसलामानों के दिलों में घर कर गई।

देववाणी संस्कृत ने पछुवा हवा बनकर पश्चिम का ही रुख नहीं किया बल्कि यह पुरवाई बनकर भी बही ।  चीनियों को "मौन" शब्द देकर उनके अंतस को भी "छू" गई।

चीनी भाषा में ध्यानमग्न खामोशी को मौन कहा जाता है और स्पर्श को छू कहकर पुकारा जाता है।
 
देश-विदेश के कई बड़े विद्वान संस्कृत के अनुपम और विपुल साहित्य को देखकर चकित रह गए हैं। कई विशेषज्ञों ने वैज्ञानिक रीति से इसका अध्ययन किया और गहरी गवेषणा की है। समस्त भारतीय भाषाओं को जोड़ने वाली कड़ी यदि कोई भाषा है तो वह संस्कृत ही है।

स्वामी #विवेकानंदजी के शब्द हैं : ‘#संस्कृत शब्दों की ध्वनिमात्र से इस जाति को शक्ति, बल और प्रतिष्ठा प्राप्त होती है ।'

#संस्कृत-ज्ञान से प्रभावित #विलियम_थियॉडोर का कहना है कि ‘#भारत तथा संसार का उद्धार और सुरक्षा #संस्कृत-ज्ञान के द्वारा ही संभव है ।'


संस्कृत की भाषा विशिष्टता को समझकर Saint James Independent school नामक लन्दन के बीच बनी एक पाठशाला ने अपने जूनियर डिविजन में इसकी शिक्षा को अनिवार्य बना दिया है। 


#Oxford_University के डॉक्टर जोसफ अनुसार संस्कृत विश्व की सर्वाधिक पूर्ण, परिमार्जित एवं तर्कसंगत भाषा है। यह एकमात्र ऐसी भाषा है जिसका नाम उसे बोलने वालों के नाम पर आधारित नहीं है। वरन संस्कृत शब्द का अर्थ ही है "पूर्ण भाषा"। 

न्यूजीलैंड के शहर #अॉकलैंड के माउंट इडेन क्षेत्र में स्थित इस पाठशाला में संस्कृत भाषा ही पढ़ाई जाती है वहाँ के प्रिंसिपल पीटर क्राम्पटन कहते हैं कि, दुनियाँ की कोई भी भाषा सीखने के लिए #संस्कृत भाषा आधार का काम करती है। 

संस्कृत का अध्ययन मनुष्य को सूक्ष्म विचारशक्ति प्रदान करता है । मन स्वाभाविक ही अंतर्मुख होने लगता है । इसका अध्ययन मौलिक चिंतन को जन्म देता है । #संस्कृत भाषा के पहले की कोई अन्य भाषा, संस्कृत वर्णमाला के पहले की कोई अन्य वर्णमाला देखने-सुनने में नहीं आती । इसका व्याकरण भी अद्भुत है । ऐसा सर्वांगपूर्ण व्याकरण जगत की किसी भी अन्य भाषा में देखने में नहीं आता । यह संसार भर की भाषाओं में #प्राचीनतम और समृद्धतम है ।

आज #आवश्यकता है संस्कृत के विभिन्न आयामों पर फिर से नवीन ढंग से अनुसन्धान करने की, इसके प्रति जनमानस में जागृति लाने की; क्योंकि संस्कृत हमारी संस्कृति का प्रतीक है। संस्कृति की रक्षा एवं विकास के लिए संस्कृत को महत्त्व प्रदान करना आवश्यक है। इस विरासत को हमें पुनः शिरोधार्य करना होगा तभी इसका विकास एवं उत्थान संभव है।

भारतीय संस्कृति की सुरक्षा, चरित्रवान नागरिकों के निर्माण, प्राचीन ज्ञान-विज्ञान की प्राप्ति एवं विश्वशांति हेतु संस्कृत का अध्ययन अवश्य होना चाहिए ।

अमेरिका के  नेता राजन झेद ने कहा है कि, संस्कृत को सही स्थान दिलाने की आवश्यकता है। एक ओर तो सम्पूर्ण विश्व में संस्कृत भाषा का महत्व बढ़ रहा है, वहीं दूसरी ओर भारत में संस्कृत भाषा के विस्तार हेतु ठोस कदम नहीं उठाए जा रहे हैं जिसके कारण भारत में ही संस्कृत का #विस्तार नहीं हो पा रहा है और संस्कृत भाषा के महत्व से लोग #अज्ञात हैं ।

अब केन्द्र सरकार व राज्य सरकारों को सभी स्कूलों, कॉलेजों में संस्कृत भाषा को अनिवार्य करना चाहिए जिससे बच्चों की बुद्धिशक्ति के विकास के साथ साथ बच्चे सुसंस्कारी बने और सर्वागीण विकास हो ।


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Sunday, June 25, 2017

हिंदी पर करें गर्व, अंग्रेजी के पीछे दौड़ना दुर्भाग्यपूर्ण: वेंकैया नायडू

हिंदी पर करें गर्व, अंग्रेजी के पीछे दौड़ना दुर्भाग्यपूर्ण: वेंकैया नायडू

जून,25, 2017

शनिवार को केंद्रीय शहरी विकास मंत्री वेंकैया नायडू अहमदाबाद के साबरमती गांधी आश्रम में गांधीजी के जीवन के 100 अलग-अलग प्रसंगों पर बनी पुस्तक का लोकार्पण करने पहुंचे थे । यह किताब #गांधी के जीवन पर लिखी गई । किताब अंग्रेजी में होने के बाद, उन्होंने कहा कि हमारी देश में जिस तरह से लोग अंग्रेजी भाषा के पीछे दौड़ रहे हैं, वो बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। उन्होंने कहा कि हमारी मातृभाषा हमारी पहचान है,  हमें इस पर गर्व होना चाहिए।

🚩 #वेंकैया_नायडू ने आज की शिक्षा प्रणाली और उसमें इस्तेमाल होती अंग्रेजी भाषा पर भी कई सवाल खड़े किए । उन्होंने कहा कि हमारे देश में #शिक्षा में #मातृभाषा और #राष्ट्रभाषा पर महत्व देना चाहिए। जिस तरह से अभिभावक अग्रेंजी भाषा को लेकर बच्चों पर जोर डालते हैं वो ठीक नहीं है।
hindi national language

🚩 उन्होंने अपने राजनीतिक संघर्ष के बारे में बात करते हुए कहा कि, वो नेल्लूर में #हिंदी विरोधी अभियान में जुड़ें थे और मातृभाषा के लिये हिंदी भाषा के बोर्ड पर कालिक पोती थी। हांलाकि जब वो 1993 में भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय #महामंत्री बने तब पता चला कि कालिक हिन्दी पर नहीं बल्कि उन्होंने अपने सर पर लगाई थी ।


🚩अंग्रेजी भाषा के #मूल शब्द लगभग 10,000 हैं, जबकि हिन्दी के मूल# शब्दों की संख्या 2,50,000 से भी अधिक है। #संसार की #उन्नत भाषाओं में हिंदी सबसे अधिक व्यवस्थित #भाषा है। 

🚩#हिंदी दुनिया की सबसे #अधिक# बोली जाने वाली भाषा है । लेकिन अभी तक हम इसे संयुक्त राष्ट्र संघ की भाषा नहीं बना पाए।

🚩हिंदी दुनिया की #सर्वाधिक तीव्रता से प्रसारित हो रही भाषाओं में से #एक है । वह सच्चे अर्थों में #विश्व भाषा बनने की #पूर्ण अधिकारी है । हिंदी का #शब्दकोष बहुत विशाल #है और एक-एक भाव को व्यक्त करने के लिए सैकड़ों #शब्द हैं जो अंग्रेजी भाषा में नही है । 

🚩हिन्दी लिखने के लिये प्रयुक्त #देवनागरी लिपि #अत्यन्त वैज्ञानिक है । हिन्दी को #संस्कृत शब्दसंपदा एवं नवीन #शब्द-रचना-सामर्थ्य विरासत में मिली है। 

🚩आज उन# मैकाले की वजह से ही हमने अपनी मानसिक गुलामी बना ली है कि अंग्रेजी के बिना हमारा काम चल नहीं सकता । हमें हिंदी भाषा का महत्व समझकर उपयोग करना चाहिए ।

🚩#मदन मोहन मालवीयजी ने 1898 में सर एंटोनी #मैकडोनेल के सम्मुख हिंदी भाषा की प्रमुखता को बताते हुए, कचहरियों में हिन्दी भाषा को प्रवेश दिलाया ।

🚩#लोकमान्य तिलकजी #ने हिन्दी भाषा को खूब प्रोत्साहित किया । 

वे कहते थे : ‘‘ अंग्रेजी शिक्षा देने के लिए बच्चों को सात-आठ वर्ष तक अंग्रेजी पढ़नी पड़ती है । जीवन के ये आठ वर्ष कम नहीं होते । ऐसी स्थिति विश्व के किसी और देश में नहीं है । ऐसी #शिक्षा-प्रणाली किसी भी #सभ्य देश में नहीं पायी जाती ।’’ जिस प्रकार बूँद-बूँद से घड़ा भरता है, उसी प्रकार #समाज में कोई भी बड़ा परिवर्तन लाना हो #तो किसी-न-किसी को तो पहला कदम उठाना ही पड़ता है और फिर धीरे-धीरे एक कारवा बन जाता है व उसके पीछे-पीछे पूरा #समाज चल पड़ता है । 

🚩हमें भी अपनी राष्ट्रभाषा को उसका खोया हुआ# सम्मान और गौरव# दिलाने के लिए व्यक्तिगत स्तर से पहल चालू करनी चाहिए ।

 🚩एक-एक मति के मेल से ही बहुमति और फिर सर्वजनमति बनती है । हमें अपने #दैनिक जीवन# में से अंग्रेजी को तिलांजलि देकर विशुद्ध रूप से मातृभाषा अथवा #हिन्दी का प्रयोग# करना चाहिए । 

🚩#राष्ट्रीय अभियानों, राष्ट्रीय नीतियों व अंतराष्ट्रीय आदान-प्रदान हेतु अंग्रेजी नहीं #राष्ट्रभाषा हिन्दी ही साधन# बननी चाहिए ।

🚩 जब कमाल पाशा #अरब देश में तुर्की भाषा को लागू करने के लिए अधिकारियों की कुछ दिन की मोहलत  ठुकराकर रातों रात परिवर्तन कर सकते हैं तो हमारे लिए क्या यह असम्भव है  ?  

🚩आज सारे संसार की आशादृष्टि भारत पर टिकी है । हिन्दी की संस्कृति केवल देशीय नहीं सार्वलौकिक है क्योंकि #अनेक राष्ट्र ऐसे हैं जिनकी भाषा हिन्दी के उतनी करीब है जितनी भारत के अनेक राज्यों की भी नहीं है । इसलिए हिन्दी की संस्कृति को #विश्व को अपना #अंशदान करना है ।

🚩#राष्ट्रभाषा राष्ट्र का गौरव है# । इसे अपनाना और इसकी अभिवृद्धि करना हमारा राष्ट्रीय कर्तव्य है । यह राष्ट्र की एकता और अखंडता की नींव है । आओ, इसे सुदृढ़ बनाकर राष्ट्ररूपी भवन की सुरक्षा करें । 


🚩स्वभाषा की महत्ता बताते हुए #हिन्दू संत  आसारामजी बापू कहते हैं : ‘‘मैं तो जापानियों को #धन्यवाद दूँगा । वे अमेरिका में जाते हैं तो वहाँ भी अपनी मातृभाषा में ही बातें करते हैं । ...और हम भारतवासी!
#भारत में रहते हैं फिर भी अपनी हिन्दी, गुजराती, मराठी आदि भाषाओं में अंग्रेजी के शब्द बोलने लगते हैं । आदत जो पड़ गयी है ! आजादी मिले 70 वर्ष से भी अधिक समय हो गया, बाहरी गुलामी की जंजीर तो छूटी लेकिन भीतरी गुलामी, दिमागी गुलामी अभी तक नहीं गयी ।’’ 

🚩#अंग्रेजी भाषा के #दुष्परिणाम

🚩#विदेशी शासन #के अनेक दोषों में देश के नौजवानों पर डाला गया #विदेशी भाषा के #माध्यम का घातक बोझ इतिहास में एक सबसे बड़ा दोष माना जायेगा। इस माध्यम ने राष्ट्र की शक्ति हर ली है, विद्यार्थियों की आयु घटा दी है, उन्हें आम जनता से दूर कर दिया है और शिक्षण को बिना कारण खर्चीला बना दिया है। अगर यह प्रक्रिया अब भी जारी रही तो वह राष्ट्र की आत्मा को नष्ट कर देगी। इसलिए शिक्षित भारतीय जितनी जल्दी विदेशी माध्यम के भयंकर वशीकरण से बाहर निकल जायें उतना ही उनको और #जनता को लाभ होगा।


🚩अपनी मातृभाषा की गरिमा को पहचानें । अपने बच्चों को अंग्रेजी#(कन्वेंट स्कूलो) में शिक्षा दिलाकर उनके विकास को# अवरुद्ध न करें । उन्हें मातृभाषा(गुरुकुलों) में पढ़ने की स्वतंत्रता देकर उनके चहुमुखी #विकास में सहभागी बनें ।

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