Thursday, December 14, 2017

बाबरी मस्जिद ढहाने के बाद पाकिस्तान में तोड़े गए थे 100 मंदिर : पाकिस्‍तानी पत्रकार


December 14, 2017

भारत में हिन्दू बहुसंख्यक हैं और मुसलमान अल्पसंख्यक हैं लेकिन आजतक कभी ऐसा नही हुआ है कि पाकिस्तान या बांग्लादेश आदि मुस्लिम देशों में हिन्दुओं के साथ अत्याचार हुआ तो भारत में  मुस्लिमों के साथ हिन्दुओं ने गलत व्यवहार किया हो, लेकिन यहाँ तो उससे उल्टा दिखाती दे रहा है, भारत में आकर लूटने वाला, हिन्दुओं का कत्लेआम करने वाले बाबर के नाम की मस्जिद 1992 में जब तोड़ दी तो पाकिस्तान में हिन्दुओ के साथ भयंकर अत्याचार हुआ और 100 जितने हिन्दू मन्दिर तोड़ दिये गये।

आज से 25  साल पहले यानि 6 दिसंबर, 1192 को अयोध्या में कार सेवकों ने विवादित बाबरी ढांचे को ढहा दिया था। इस घटना की प्रतिक्रिया में पूरे देश में साम्प्रदायिक दंगे भड़के थे। यहां तक कि बाबरी विध्वंस की आग पड़ोसी देश पाकिस्तान-बांग्लादेश समेत कई देशों में भी भड़की थी। पड़ोसी देश पाकिस्तान में तो इस घटना के विरोधस्वरूप लगभग 100 मंदिरों को या तो गिरा दिया गया या फिर उसे तोड़-फोड़ कर नुकसान पहुंचाया गया।
100 temples were broken in Pakistan after demolition of Babri Masjid: Pakistani journalists
100 temples were broken in Pakistan after demolition of Babri Masjid: Pakistani journalists
पाकिस्तान के फोटो पत्रकार और बीबीसी से जुड़े शिराज हसन ने इन मंदिरों के फोटोज शेयर कर ट्विटर पर दावा किया है, “1992 के बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद पाकिस्तान में करीब 100 मंदिरों को दंगाइयों ने निशाना बनाया था। उन लोगों ने या तो इन मंदिरों को गिरा दिया या फिर उनमें तोड़-फोड़ की थी। इन अधिकांश मंदिरों में 1847 के देश बंटवारे के शरणार्थी रहते थे !”

अपने दूसरे ट्वीट में हसन ने लिखा है, “हमने इन खंडहर मंदिरों में रह रहे कई लोगों से बातचीत की है। इन लोगों ने साल 1992 के उस भयावह मंजर को याद करते हुए कहा कि हमने दंगाइयों से रहम की अपील की थी और कहा था कि यह हमारा आशियाना है, इसे मत तोड़ो लेकिन वो नहीं माने !” हसन ने अपनी बात को बल देने के लिए कुछ मंदिरों की तस्वीर भी शेयर की है। इनमें रावलपिंडी का कृष्ण मंदिर भी है, जिसका ऊपरी गुंबद दंगाइयों ने 1992 में तोड़कर गिरा दिया था।

कृष्ण मंदिर कल्याण दास मंदिर

हसन ने एक अन्य ट्वीट में रावलपिंडी के ही कल्याण दास मंदिर की भी तस्वीर साझा की है, जहां आजकल दृष्टिहीनों का एक सरकारी स्कूल चलता है। स्कूल से जुड़े लोगों ने उन्हें बताया कि दंगाइयों ने यहां भी हमला बोला था लेकिन बहुत निवेदन करने के बाद उसे बचा लिया गया था। यह मंदिर सही सलामत हालत में दिखता है।

बन्सिधर मंदिर सीतलादेवी मंदिर

आपको बता दें कि बाबरी विध्वंस के वक्त केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी और पीवी नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री थे। इस घटना के बाद पाकिस्तान, बांग्लादेश और इरान समेत कई देशों में भारतीय दूतावासों पर हमले भी हुए थे। पाकिस्तान और बांग्लादेश में एंटी हिन्दू दंगे भी भड़के थे। श्रीलंका के तत्कालीन राष्ट्रपति प्रेमदासा का बोधगया दौरा टालना पड़ा था। इरान ने तेल सप्लाय रोकने की धमकी दे डाली थी। स्त्रोत : जनसत्ता

अल्पसंख्यकों को नहीं है धार्मिक आजादी 

अमेरिका द्वारा जारी की गई एक रिपोर्ट में कहा गया है कि, पाकिस्तान में सिख, हिन्दू जैसे अल्पसंख्यक जबरन धर्मांतरण के डर में रहते हैं। रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि, अल्पसंख्यकों को यह चिंता भी है कि, पाकिस्तान सरकार जबरन धर्मांतरण को रोकने के लिए आवश्यक कदम नहीं उठा पाती है।

पाकिस्तान और बांग्लादेश में दिन-रात हिन्दुओं के घर जलाये जा रहे हैं #हिन्दू #महिलाओं की #इज्जत #लूटी जा रही है, #मंदिर, घर, दुकानों को तोड़ा जा रहा है, पुजारियों की हत्या की जा रही है, हिन्दुओ की संपत्ति हड़प ली जाती है, #हिन्दुओं को मारा-पीटा जा रहा है, दिन-रात #हिन्दुओं को पलायन होना पड़ रहा है, यहाँ तक कि हिन्दू मर जाता है तो उसको जला भी नही सकते है, उसपर किसी नेता, मीडिया, संयुक्त राष्ट्र और सेक्युलर लोगों की नजर क्यों नही जाती है?

भारत में तो मुसलमानों को अधिक सुख-सुविधाएं दी जा रही हैं फिर भी कुछ गद्दार, सेक्युलर बोलते हैं  कि भारत में मुसलमान डरे हुए हैं लेकिन आजतक ये नहीं बोला कि पाकिस्तान, बांग्लादेश आदि मुसलमान बाहुल देश में हिन्दुओं पर कितना अत्याचार हो रहा है । नर्क से भी बत्तर जीवन जीना पड़ रहा है ।

एक तरफ पाकिस्तान और बांग्लादेश में हिन्दुओं पर अत्याचार हो रहा है दिन-प्रतिदिन हिन्दू कम हो रहे हैं दूसरी ओर बंगाल, कश्मीर, तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक आदि राज्यों में हिन्दुओं की हत्यायें हो रही हैं उस पर सभी ने चुप्पी क्यों साध ली है?


जो #हिन्दू कार्यकर्ता #हिन्दू #संत इन अत्याचारों के खिलाफ आवाज उठाते हैं उनको जेल भेज दिया जाता है या हत्या करवा दी जाती है ।


ईसाई मिशनरियाँ और #मुस्लिम देश दिन-रात #हिंदुस्तान और पूरी दुनिया से हिन्दुस्तान को मिटाने में लगे हैं अतः हिन्दू #सावधान रहें ।

अभी समय है हिन्दू #एक होकर #हिन्दुओं पर हो रहे प्रहार को रोके तभी हिन्दू बच पायेंगे। हिन्दू होगा तभी सनातन संस्कृति बचेगी ।


अगर #सनातन #संस्कृति नही बचेगी तो दुनिया में इंसानियत ही नही बचेगी क्योंकि #हिन्दू संस्कृति ही ऐसी है जिसने "वसुधैव कुटुम्बकम्" का वाक्य चरितार्थ करके दिखाया है ।

प्राणिमात्र में ईश्वरत्व के दर्शन कर, सर्वोत्वकृष्ट ज्ञान प्राप्त कर जीव में से #शिवत्व को प्रगट करने की क्षमता अगर किसी संस्कृति में है तो वो सनातन हिन्दू #संस्कृति में है ।

हिंदुओं की बहुलता वाले देश #हिंदुस्तान में अगर आज हिन्दू #पीड़ित है तो सिर्फ और सिर्फ हिंदुओं की निष्क्रियता और अपनी महान संस्कृति की ओर विमुखता के #कारण !!

इन सबको देखकर भी #हिन्दू कबतक चुपचाप बैठा रहेगा..???

 जागो हिन्दू!!

Wednesday, December 13, 2017

जायरा के मामले में बड़ा खुलासा, नही हुई छेड़छाड़ी, कानून का हो रहा है भयंकर दुरुपयोग


December 13, 2017

देश में महिला कानून के दुरुपयोग और मीडिया ट्रायल के कारण एक दिन में ही कैसे निदोष व्यक्ति की ज़िंदगी बर्बाद हो जाती है यह एक ताजा मामला सामने आया है । 

यह घटना हर व्यक्ति को सोचने को मजबूर कर देती है कि क्या कानून बचाने के लिए है कि फंसाने के लिए? 

मीडिया में चार दिन से दंगल फ़िल्म में काम करने वाली कश्मीर की अभिनेत्री जायरा वसीम और मुंबई के विकास सचदेवा की खबरें सुर्खियों में हैं ।
Big disclosure in the case of Jaira, not tampered, law is being abused

आपको बता दें कि विकास सचदेवा नाम का एक व्यक्ति विस्तारा एयरलाइंस की फ्लाइट में सफर कर रहा था, उसी फ्लाइट में अभिनेत्री जायरा वसीम भी सफर कर रही थी।

दिल्ली से मुंबई आने वाली फ्लाइट जब मुंबई पहुँची तो वहाँ जायरा वसीम ने इंस्टाग्राम पर एक वीडियो के माध्यम से बताया कि मेरे साथ छेड़छाड़ी हुई है और किसी ने मेरी सहायता नही की ।

उसके बाद उसने पुलिस थाने में एफआईआर दर्ज करवाई, जिसमें पुलिस ने आईपीसी की धारा 354 लगाई है। ये धारा शीलभंग करने के इरादे से हमला करने पर लगाई जाती है और पॉक्सो एक्ट लगाया जो नाबालिग के साथ यौन उत्पीड़न की धारा लगाई जाती है ।

विकास सचदेवा आधी रात को अपने घर पहुँचता है, सुबह उठकर पत्नी के साथ चाय-नाश्ता करता है, थोड़ी देर में घर पर पुलिस आकर गिरफ्तार कर लेती है, विकास और उनकी पत्नी को अभीतक पता नही है कि ऐसा क्यों हो रहा है, पुलिस थाने  जाने पर पता चला कि जायरा वसीम ने उनके ऊपर छेड़छाड़ी का आरोप लगाया है। विकास और उसकी पत्नी को बड़ा धक्का लगा लेकिन करे तो करे क्या ?
कोई उपाय नही था, पत्नी घर पर आ गई और पति को जेल भेज दिया गया।

टीआरपी की भूखी मीडिया ने भी विकास सचदेवा को "दरिंदा" और न जाने किस-किस नाम से खूब बदनाम किया, पूरे देशभर में विकास सचदेवा की बदनामी की गई, कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा ने भी ट्वीट करके सहानभूति जताई, और महिला आयोग एवं सभी सेक्युलर लोगो ने घटना की निंदा की ।

लेकिन वास्तविकता में सच क्या है उसको जानने की कोशिश किसी ने नही की, आइये आपको बताते है सच क्या है?

सहयात्री ने पुलिस में दिया बयान

फ्लाइट में जायरा वसीम के सहयात्री ने पुलिस को बताया कि वो उसी क्लाम में था जिसमें जायरा और विकास सफर कर रहे थे। सचदेवा प्लेन में आते ही सो गए। इस दौरान सोते वक्त आरोपी ने अपने पैर आर्मरेस्ट पर रख दिए। उन्हें नहीं लगता उन्होंने छेड़छाड़ की। उनकी गलती सिर्फ इतनी थी कि उन्होंने अपने पैर आर्मरेस्ट पर रखे। इसके अलावा उन्होंने कोई गलत व्यवहार नहीं किया। सचदेवा के इस व्यवहार पर जब जायरा चिल्लाने लगी तो उन्होंने माफी भी मांगी थी। विकास और सहयात्री एक दूसरे को नहीं जानते पर दोनों के बयान मेल खाते हैं।

दूसरी ओर से विस्तारा एयरलाइंस के अफसरों ने भी  बताया कि विकास प्लेन में पूरे समय सो रहा था।

विकास ने बताया गलती से टच हो गया पैर

विकास सचदेवा का कहना है कि उसने यह जानबूझकर नहीं किया, दिल्ली में अपने मामा की अंत्येष्टि में गया था पिछले 24 घण्टे से सोया नही था इसलिए वह काफी थका था और फ्लाइट में आते ही सो गया, सोते वक्त गलती से उसका पैर जायरा से टच हो गया। बाद में विकास ने माफी भी मांगी । विकास तो को पहले यह पता भी नही था कि सामने कोई महिला बैठी है, और वो भी एक अभिनेत्री है ।

आपने सच जाना जिससे आपको पता चला होगा कि एक निर्दोष व्यक्ति को एक दिन में मीडिया ट्रायल चलाकर कैसे बदनाम किया जाता है, लड़की ने महिला कानून का कैसे दुरुपयोग करके एक झूठा आरोप लगाकर बदनाम करवाया ।

क्या मीडिया सचदेवा की इज्ज़त वापिस लौटा पायेगी?
लड़कीं अगर दोषी निकली तो क्या कानून उसको सजा देगा ?

महिलाओं के लिए बने कानून महिलाओं के लिए ही घातक बन रहे हैं ।

निर्भया कांड के बाद महिलाओं की सुरक्षा के लिये बलात्कार निरोधक में सख्ती बनाकर कानून बने है पर कुछ लड़कियों द्वारा उस कानून का धुरन्धर दुरुपयोग किया जा रहा है, जब एक लड़की किसी निर्दोष पुरूष पर झूठा आरोप लगाती है और उस पुरुष को जेल भेज दिया जाता है, पर उसके साथ उसकी माँ-बहन-पत्नी-बेटी सभी जुड़े होते है, उनके लिए वो ही पुरूष आधार होता है, लेकिन जेल में जाने के बाद माँ-बहन-पत्नी-बेटी सब अनाथ हो जाते है । उसको घर का पालन पोषण करना भी मुश्किल हो जाता है और समाज में बदनामी होती है वो अलग ।

विकास सचदेवा का केस था नही बनाया गया है, ऐसे कई केस है जिसमें लड़कियां झूठा केस कर देती है और मीडिया उसको खूब बदनाम करती है, उससे उसकी समाज में जो बदनामी हुई है और समय, पैसा, इज्जत सब कुछ गया है वो वापिस कौन लोटा पायेगा?

ऐसे कई उदाहरण है जिमसें खास करके हिन्दू समाज को बदनाम करने के लिए साधु-संतों को फंसाया गया हो और बाद में निर्दोष बरी हुए हो, जैसे कि गुजरात द्वारका के केशवानंदजी महाराज, दक्षिण भारत के स्वामी नित्यानंद, बैंगलोर मठ के शंकराचार्य राघवेश्वर भारती जिनके ऊपर बलात्कार का केस लगाया, मीडिया ने खूब बदनामी की और बाद में निर्दोष बरी किया।

इसी प्रकार का मामला सामने  है हिन्दू धर्म गुरु आसारामजी बापू का, उनके केस में न्यायालय में अधिवक्ता सज्जनराज सुराणा जी ने किये कई सनसनीखेज़ खुलासे ।

- FIR करवाई गई घटना के 5 दिन बाद ।
- रजिस्टर के कई पन्ने संदिग्घ तरीके से फाड़ें गए ।
- FIR 2 दिन बाद न्यायालय में पेश की गई ।
- अलग-अलग सर्टिफिकेट में पाई गई लड़की की अलग-अलग उम्र ।
- FIR लिखते समय की गई वीडियो रिकॉर्डिंग गायब कर दी गई ।
- FIR और FIR की कार्बन कॉपी में अंतर पाया गया ।
- मेडिकल में नहीं मिला एक खरोंच का भी निशान ।

क्या ये कहीं न कहीं बापू आसारामजी को फंसाने की साजिश नहीं..??



बलात्कार कानून की आड़ में महिलाएं आम नागरिक से लेकर सुप्रसिद्ध हस्तियों, संत-महापुरुषों को भी #ब्लैकमेल कर झूठे बलात्कार आरोप लगाकर जेल में डलवा रही हैं । कानून का दुरुपयोग करने पर वास्तविकता में जो महिला पीड़ित होती है उसको न्याय भी नही मिला पाता है ।

अभी हाल ही में न्यायाधीश राजेन्द्र सिंह ने बताया कि दलालों द्वारा प्रतिवर्ष काफी संख्या में बालिकाओं तथा महिलाओं द्वारा दुष्कर्म के प्रकरण दर्ज कराए जाते हैंं। जिसमे 90 प्रतिशत झूठे मामले निकलते हैं ।


सरकार और न्यायालय को मीडिया पर लगाम लगानी होगी जो झूठी कहानियां बनाकर व्यक्ति को बदनाम करते है और बलात्कार निरोधक #कानूनों की खामियों को दूर करना होगा। तभी समाज के साथ न्याय हो पायेगा अन्यथा एक के बाद एक निर्दोष सजा भुगतने के लिए मजबूर होते रहेंगे ।

Tuesday, December 12, 2017

न्यायालय में बापू आसारामजी के केस को लेकर एक और बड़ा खुलासा, पॉक्सो एक्ट लगा गलत


December 12, 2017

जोधपुर: चार साल चार महीने से जोधपुर जेल में बंद हिन्दू धर्मगुरु आसारामजी बापू प्रकरण की सुनवाई न्यायालय में अब अंतिम चरण पर पहुंच चुकी है। सभी गवाह के बयान पूरे हो चुके हैं, अब दोनों पक्षों के बीच अंतिम बहस शुरू हो चुकी है। 

अनुसूचित जाति जनजाति के विशिष्ट न्यायालय के न्यायाधीश मधुसूदन शर्मा की अदालत में बचाव पक्ष की ओर से एक से एक ऐसे खुलासे हो रहे जिससे लगता है कि बापू आसारामजी को षडयंत्र के तहस फंसाया गया है।
big disclosure case of Bapu Asaramji in the court, Pocso act was wrong
अदालत में अधिवक्ता सज्जनराज सुराणा ने अंतिम बहस के दौरान खुलासा किया कि जांच अधिकारी चंचल मिश्रा ने कई मुख्य बयानों को छुपा दिया, सही बयानों को न्यायालय में पेश ही नही किया गया, जिससे साफ पता चलता है कि जांच अधिकारी की नीयत साफ नही है।
 
लड़की की उम्र सर्टिफिकेट अलग-अलग

अधिवक्ता सुराणा ने बहस के दौरान सर्वोच्च न्यायालय व राजस्थान उच्च न्यायलय के कई दृष्टांत देकर दलील दी कि जीवन बीमा सर्टिफकेट किसी भी व्यक्ति की उम्र से सम्बन्धित विवाद में पर्याप्त कानूनी मजबूत सबूत है। 

सुराणाजी ने बताया कि तथाकथित आरोप लगाने वाली लड़की की माता की ओर से पूर्व में करवाए गए लड़की के जीवन बीमा बांड में जन्म दिनांक एक जुलाई 1994 दर्ज है। इस लिहाज से तथाकथित घटना के दिन 15 अगस्त 2013 को लड़की की उम्र बीस साल के करीब थी। ऐसे में बापू आसारामजी के खिलाफ लगाए गए पॉक्सो एक्ट का कोई वजूद नहीं रह जाता।

उन्होंने दलील दी कि उम्र के सम्बन्ध में विवाद होने पर लड़की के अभिभावक के भी बयान होने चाहिए, परंतु अभियोजन ने बयान नहीं करवाए । शैक्षणिक सर्टिफिकेट और अन्य दस्तावेज में आयु में फर्क हो तो भी सक्षम अधिकारी से जांच करवानी चाहिए। अभियोजन ने यह जांच भी नहीं करवाई। 

आपको बता दें कि बापू आसारामजी के खिलाफ शाहजहांपुर (उत्तर प्रदेश) की एक लड़की ने छेड़छाड़ी का आरोप लगाया है और उसकी उम्र 18 साल से कम बताकर बापू आशारामजी पर पॉक्सो एक्ट लगाया गया है ।

पॉक्सो एक्ट क्या है?

18 साल से कम उम्र की किसी लड़की ने अगर किसी पुरुष के खिलाफ पुलिस में FIR करा दी कि मेरे साथ छेड़खानी की है या घूर के देख रहा था या स्पर्श किया है तो पुलिस उस पुरूष को बिना कोई भी पूछताछ किये गिरफ्तार कर लेगी । उसके बाद उसको जमानत भी नही मिल सकती और अब उस लड़की को कुछ नही करना उस पुरुष को साबित करना है कि वो निर्दोष है और अगर पुरूष अपनी निर्दोषता साबित नही कर पाये तो उसको सजा सुना दी जायेगी ।

कानून का भयंकर दुरुपयोग

जबसे एक तरफा कानून बना है केवल महिलाओं की सुरक्षा के लिए तबसे पुरुषों की मुश्किलें और भी बढ़ गई हैं ।

कुछ संस्कारहीन मनचली लड़कियाँ महिला सुरक्षा कानून का धुरन्धर दुरूपयोग कर रही हैं ।

किसी भी पुरुष के साथ बदला लेने की भावना, पैसा निकलवाने अथवा पुरुष को बदनाम करने के लिए पुरुष पर झूठा आरोप लगा देती हैं ।

अभी हाल ही में न्यायाधीश राजेन्द्र सिंह ने बताया कि दलालों द्वारा प्रतिवर्ष काफी संख्या में बालिकाओं तथा महिलाओं द्वारा दुष्कर्म के प्रकरण दर्ज कराए जाते हैंं। जिसमे 90 प्रतिशत झूठे मामले होते हैं ।


गौरतलब है कि हिन्दू संत आसारामजी बापू केस में अदालत में अधिवक्ता सज्जनराज सुराणा ने और भी किये कई सनसनीखेज़ खुलासे किये है।


1- FIR करवाई गई घटना के 5 दिन बाद ।

2- रजिस्टर के कई पन्ने संदिग्घ तरीके से फाड़ें गए ।

3- FIR 2 दिन बाद न्यायालय में पेश की गई ।

4- अलग-अलग सर्टिफिकेट में पाई गई लड़की की अलग-अलग उम्र ।

5- FIR लिखते समय की गई वीडियो रिकॉर्डिंग गायब कर दी गई ।

6- FIR और FIR की कार्बन कॉपी में अंतर पाया गया ।

7- मेडिकल में नहीं मिला एक खरोंच का भी निशान, मेडिकल में क्लीनचिट मिल चुकी है।

8- कॉल डिटल्स से पता चला है कि जिस समय घटना बता रही है उस समय तो वे अपने मित्र से बात कर रही थी और पूरी रात उस लड़के से मैसेज से बात कर रही थी ।


9 - लड़की की माँ दिल्ली में ही गिरफ्तार करवाना चाहती थी।

10- लड़की और उसके मां-बाप ने जो भूत-प्रेत की छाया बताने की घटना बताई है वो कल्पना करके झूठी बनाई गई है।

अधिवक्ता सुराणा ने और भी कई खुलासे किये है जिससे साफ पता चलता है कि बापू आशारामजी को षडयंत्र के तहत फंसाया गया है।

Monday, December 11, 2017

अमेरिकी पत्रकार ने बंगाल को लेकर ऐसे खुलासे किये हैं जिसे सुनकर खिसक जायेगी पैरों तले जमीन


December 11, 2017

कभी भारतीय संस्कृति का प्रतीक माना जाने वाले बंगाल की दशा आज क्या हो चुकी है, ये बात तो किसी से छिपी नहीं है । हिन्दुओं के खिलाफ साम्प्रदायिक दंगे तो पिछले काफी वक़्त से होना शुरू हो चुके हैं और अब तो हालात ये हो चुके हैं कि त्यौहार मनाने तक पर रोक लगाई जानी शुरू हो गयी है। मगर बंगाल पर मशहूर अमेरिकी पत्रकार जेनेट लेवी ने अब जो लेख लिखा है और उसमें जो खुलासे किये हैं, उन्हें देख आपके पैरों तले जमीन खिसक जायेगी ।
The American journalist has made such disclosures about Bengal that will be lost after hearing the land under feet
जेनेट लेवी ने अपने एक लेख में दावा किया है कि कश्मीर के बाद बंगाल में जल्द ही गृहयुद्ध शुरू होने वाला है, जिसमें बड़े पैमाने पर हिन्दुओं का कत्लेआम करके मुगलिस्तान नाम से एक अलग देश की मांग की जायेगी, यानि भारत का एक और विभाजन होगा और वो भी तलवार के दम पर और बंगाल की वोट बैंक की भूखी ममता बनर्जी की सहमति से होगा सब कुछ ।

जेनेट लेवी ने अपने लेख में इस दावे के पक्ष में कई तथ्य पेश किए हैं । उन्होंने लिखा है कि “बंटवारे के वक्त भारत के हिस्से वाले पश्चिमी बंगाल में मुसलमानों की आबादी 12 फीसदी से कुछ ज्यादा थी, जबकि पाकिस्तान के हिस्से में गए पूर्वी बंगाल में हिंदुओं की आबादी 30 फीसदी थी । आज पश्चिम बंगाल में मुसलमानों की जनसंख्या बढ़कर 27 फीसदी हो चुकी है । कुछ जिलों में तो ये 63 फीसदी तक हो गई है । वहीं दूसरी ओर बांग्लादेश में हिंदू 30 फीसदी से घटकर केवल 8 फीसदी ही बचे हैं ।"

बता दें कि जेनेट ने ये लेख ‘अमेरिकन थिंकर’ मैगजीन में लिखा है । http://www.americanthinker.com/articles/2015/02/the_muslim_takeover_of_west_bengal.html

ये लेख एक चेतावनी के तौर पर उन देशों के लिए लिखा गया है, जो मुस्लिम शरणार्थियों के लिए अपने दरवाजे खोल रहे हैं । जेनेट लेवी ने बेहद सनसनीखेज दावा करते हुए लिखा है कि किसी भी समाज में मुस्लिमों की 27 फीसदी आबादी काफी है कि वो उस जगह को अलग इस्लामी देश बनाने की मांग शुरू कर दे ।

उन्होंने दावा किया है कि मुस्लिम संगठित होकर रहते हैं और 27 फीसदी आबादी होते ही इस्लामिक क़ानून शरिया की मांग करते हुए अलग देश बनाने तक की मांग करने लगते हैं । पश्चिम बंगाल का उदाहरण देते हुए उन्होंने लिखा है कि ममता बनर्जी के लगातार हर चुनाव जीतने का कारण वहां के मुस्लिम ही हैं । बदले में ममता मुस्लिमों को खुश करने वाली नीतियां बनाती है ।

जल्द ही बंगाल में एक अलग इस्लामिक देश बनाने की मांग उठने जा रही है और इसमें कोई संदेह नहीं कि सत्ता की भूखी ममता इसे मान भी जाए । उन्होंने अपने इस दावे के लिए तथ्य पेश करते हुए लिखा कि ममता ने सऊदी अरब से फंड पाने वाले 10 हजार से ज्यादा मदरसों को मान्यता देकर वहां की डिग्री को सरकारी नौकरी के काबिल बना दिया है । सऊदी से पैसा आता है और उन मदरसों में मजहबी कट्टरता की शिक्षा दी जाती है ।

गैर मजहबी लोगों से नफरत करना सिखाया जाता है । उन्होंने लिखा कि ममता ने मस्जिदों के इमामों के लिए तरह-तरह के वजीफे भी घोषित किए हैं, मगर हिन्दुओं के लिए ऐसे कोई वजीफे नहीं घोषित किये गए । इसके अलावा उन्होंने लिखा कि ममता ने तो बंगाल में बाकायदा एक इस्लामिक शहर बसाने का प्रोजेक्ट भी शुरू किया है ।

पूरे बंगाल में मुस्लिम मेडिकल, टेक्निकल और नर्सिंग स्कूल खोले जा रहे हैं, जिनमें मुस्लिम छात्रों को सस्ती शिक्षा मिलेगी । इसके अलावा कई ऐसे अस्पताल बन रहे हैं, जिनमें सिर्फ मुसलमानों का इलाज होगा । मुसलमान नौजवानों को मुफ्त साइकिल से लेकर लैपटॉप तक बांटने की स्कीमें चल रही हैं । इस बात का पूरा ख्याल रखा जा रहा है कि लैपटॉप केवल मुस्लिम लड़कों को ही मिले, मुस्लिम लड़कियों को नहीं ।

जेनेट लेवी ने लिखा है कि बंगाल में बेहद गरीबी में जी रहे लाखों हिंदू परिवारों को ऐसी किसी योजना का फायदा नहीं दिया जाता । जेनेट लेवी ने दुनिया भर की ऐसी कई मिसालें दी हैं, जहां मुस्लिम आबादी बढ़ने के साथ ही आतंकवाद, धार्मिक कट्टरता और अपराध के मामले बढ़ने लगे ।

आबादी बढ़ने के साथ ऐसी जगहों पर पहले अलग शरिया क़ानून की मांग की जाती है और फिर आखिर में ये अलग देश की मांग तक पहुंच जाती है । जेनेट ने अपने लेख में इस समस्या के लिए इस्लाम को ही जिम्मेदार ठहरा दिया है । उन्होंने लिखा है कि कुरान में यह संदेश खुलकर दिया गया है कि दुनिया भर में इस्लामिक राज स्थापित हो ।

जेनेट ने लिखा है कि हर जगह इस्लाम जबरन धर्म-परिवर्तन या गैर-मुसलमानों की हत्याएं करवाकर फैला है । अपने लेख में बंगाल के हालातों के बारे में उन्होंने लिखा है । बंगाल में हुए दंगों का जिक्र करते हुए उन्होंने लिखा है कि 2007 में कोलकाता में बांग्लादेशी लेखिका तस्लीमा नसरीन के खिलाफ दंगे भड़क उठे थे । ये पहली कोशिश थी जिसमें बंगाल में मुस्लिम संगठनों ने इस्लामी ईशनिंदा (ब्लासफैमी) कानून की मांग शुरू कर दी थी ।

1993 में तस्लीमा नसरीन ने बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे अत्याचारों और उनको जबरन मुसलमान बनाने के मुद्दे पर किताब ‘लज्जा’ लिखी थी । किताब लिखने के बाद उन्हें कट्टरपंथियों के डर से बांग्लादेश छोड़ना पड़ा था । वो कोलकाता में ये सोच कर बस गयी थी कि वहां वो सुरक्षित रहेंगी क्योंकि भारत तो एक धर्मनिरपेक्ष देश है और वहां विचारों को रखने की स्वतंत्रता भी है ।

मगर हैरानी की बात है कि धर्म निरपेक्ष देश भारत में भी मुस्लिमों ने तस्लीमा नसरीन को नफरत की नजर से देखा। भारत में उनका गला काटने तक के फतवे जारी किए गए । देश के अलग-अलग शहरों में कई बार उन पर हमले भी हुए । मगर वोटबैंक के भूखी वामपंथी और तृणमूल की सरकारों ने कभी उनका साथ नहीं दिया । क्योंकि ऐसा करने पर मुस्लिम नाराज हो जाते और वोटबैंक चला जाता ।

जेनेट लेवी ने आगे लिखा है कि 2013 में पहली बार बंगाल के कुछ कट्टरपंथी मौलानाओं ने अलग ‘मुगलिस्तान’ की मांग शुरू कर दी । इसी साल बंगाल में हुए दंगों में सैकड़ों हिंदुओं के घर और दुकानें लूट लिए गए और कई मंदिरों को भी तोड़ दिया गया। इन दंगों में सरकार द्वारा पुलिस को आदेश दिये गए कि वो दंगाइयों के खिलाफ कुछ ना करें ।

ममता को डर था कि मुसलमानों को रोका गया तो वो नाराज हो जाएंगे और वोट नहीं देंगे ।लेख में बताया गया है कि केवल दंगे ही नहीं बल्कि हिन्दुओं को भगाने के लिए जिन जिलों में मुसलमानों की संख्या ज्यादा है, वहां के मुसलमान हिंदू कारोबारियों का बायकॉट करते हैं । मालदा, मुर्शिदाबाद और उत्तरी दिनाजपुर जिलों में मुसलमान हिंदुओं की दुकानों से सामान तक नहीं खरीदते ।

यही वजह है कि वहां से बड़ी संख्या में हिंदुओं का पलायन होना शुरू हो चुका है । कश्मीरी पंडितों की ही तरह यहाँ भी हिन्दुओं को अपने घरों और कारोबार छोड़कर दूसरी जगहों पर जाना पड़ रहा है । ये वो जिले हैं जहां हिंदू अल्पसंख्यक हो चुके हैं ।

इसके आगे जेनेट ने लिखा है कि ममता ने अब बाकायदा आतंकवाद समर्थकों को संसद में भेजना तक शुरू कर दिया है। जून 2014 में ममता बनर्जी ने अहमद हसन इमरान नाम के एक कुख्यात जिहादी को अपनी पार्टी के टिकट पर राज्यसभा सांसद बनाकर भेजा । हसन इमरान प्रतिबंधित आतंकी संगठन सिमी का सह-संस्थापक रहा है ।

हसन इमरान पर आरोप है कि उसने शारदा चिटफंड घोटाले का पैसा बांग्लादेश के जिहादी संगठन जमात-ए-इस्लामी तक पहुंचाया, ताकि वो बांग्लादेश में दंगे भड़का सके । हसन इमरान के खिलाफ एनआईए और सीबीआई की जांच भी चल रही है ।

लोकल इंटेलिजेंस यूनिट (एलआईयू) की रिपोर्ट के मुताबिक कई दंगों और आतंकवादियों को शरण देने में हसन का हाथ रहा है । उसके पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई से रिश्ते होने के आरोप लगते रहे हैं । जेनेट के मुताबिक़ बंगाल का भारत से विभाजन करने की मांग अब जल्द ही उठने लगेगी । इस लेख के जरिये जेनेट ने उन पश्चिमी देशों को चेतावनी दी है, जो मुस्लिम शरणार्थियों को अपने यहाँ बसा रहे हैं, कि जल्द ही उन्हें भी इन सबका सामना करना पडेगा ।

अभी भी वक्त है #हिन्दुस्तानी #सावधान हो जाये तो #हिन्दुस्तान को कोई खंडित नही कर सकता अगर थोड़ा भी चूक किया तो आने वाली पीढ़ी को बहुत #भुगतान करना पड़ेगा ।

Sunday, December 10, 2017

सुरेश चव्हाणके ने प्रूफ सहित बताया, भारतीय मीडिया हिन्दू विरोधी क्यों है?


December 10, 2017
www.azaadbharat.org
सुदर्शन न्यूज़ के मुख्य संपादक सुरेश चव्हाणके ने बताया कि हिंदुत्ववादी मीडिया का परिचय देने से हिंदुस्तान के कई पत्रकारों को बड़ी मिर्ची लगती है। हम हिंदू भी हिंदू ही सेक्युलरिस्ट होता है। हिंदुस्तान में करीब 732 चैनल है, और उसमें अब इसको आप योगानुयोग कहे या कुछ भी कहे न्यूज चैनलों की संख्या 420 है। और केवल यही नहीं है रावण का मंदिर जिस नोएडा में है वहीं पर सारे चैनलों का हेड क्वार्टर है, तो आप ऐसेे मीडिया से क्या अपेक्षा कर सकते हैं..!!

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गांधी जी ने हरिजन अखबार शुरू किया था भारत में आने के बाद, जब भारत में नहीं थे तो दक्षिण अफ्रीका में भी उन्होंने भारत ओपिनियन नाम का अखबार चलाया था जो 3 भाषा में चलता था हिंदी इंग्लिश और मलयालम। भगत सिंह, लोकमान्य तिलक सावरकर आदि तमाम कोई भी नाम ले लीजिए, किसी भी क्रांतिकारी का नाम लेंगे तो आपको पता चलेगा कि वो पत्रकार था। 
आजादी के आंदोलन में हिंदुस्तान को जगाने में पत्रकारिता का बहुत बड़ा योगदान रहा है इस कारण हिंदुस्तान में पत्रकारों के प्रति एक आस्था है एक विश्वास है, इसलिए जनता को ऐसा लगता है कि जो भी TV वाला बोलेगा, दिखायेगा वो सच है, पेपर वाला जो छापेगा वो सच है, इस विश्वास का गलत फायदा विदेशी शक्तियों ने उठाया।
दुनिया में 100 से ज्यादा देश ऐसे हैं जिनमें विदेशी चैनलों को अनुमति नहीं है। करीब इतने ही देशों से ज्यादा ऐसे देश है जिन देशों में मीडिया में एक भी रुपया विदेशी निवेश अलाउड नहीं है, लेकिन हमारे यहां पर धीरे धीरे-धीरे पॉलिटिकल लॉबिंग में हमारी सरकारें वीक (कमजोर) होती गयी और देश में नॉन न्यूज चैनल और न्यूज चैनल ये दो कैटेगरी हिंदुस्तान में हो गई।
कैसे हैं? मैं प्रूफ के साथ इस बात को आप के सामने रखता हूं।
हिंदुस्तान को इसलिए बतानी है क्योंकि हिंदुस्तान मीडिया पर आंख बंद करके भरोसा करता है और इसलिए हमको उसको समझाना है कि तू जो भी देख रहा है वो सच ही होगा ऐसा नहीं है, बल्कि गलत होने की संभावना ज्यादा है और इसलिए हमको ये समझना चाहिए, विदेशों और भारत में फर्क क्या है? पैसा कैसे आता है?
जैसे भारत में तिरुपति देवस्थान है उसके पास अतिरिक्त जब पैसा हो जाता है तब बैंक में रख सकता है FD कर सकता है शिर्डी साईं बाबा संस्था है सिद्धिविनायक है इनके पास जब पैसा अतिरिक्त होता है तो FD कर सकते हैं,लेकिन यही बात यूरोप अमेरिका जैसे देशों में जो चैरिटी ऑर्गनाइजेशन होती है उनके पास अगर अतिरिक्त पैसा हो जाए तो वो बैंकों के सिवा आगे बढ़कर शेयर मार्केट में भी लगा सकती हैं और जो कैथोलिक चर्च जैसा अपना चर्च है, जो इस्लामिक बड़े-बड़े आर्गेनाईजेशन हैं, उन लोगों ने ऐसा पैसा शेयर मार्केट में लगाया है। अब चैरिटी आर्गेनाईजेशन शेयर मार्केट में लगाए तो बहुत बड़ी चिंता का विषय नहीं है लेकिन चिंता तब ज्यादा होती है जब यह पैसा मीडिया फंड में ही लगता है। क्यों लगता है? क्योंकि मीडिया के द्वारा उनको एक माहौल बनाना होता है । विदेश में खासकर के पश्चिमी देशों में क्रिश्चियन देशों में धर्म और वहां का व्यवसाय एक दूसरे को पूरक काम करता है।
जो आज भारत में भी हम एक सोशल रिस्पांसिबिलिटी के तौर पर एक फंड जो आजकल सब दे रहे हैं वहां पर भी यह फंड बहुत पहले से है, वो सब चर्च को जाता है। और फिर चर्च उसके लिए और वो चर्च के लिए एक दूसरे का पूरक माहौल बनाता है और माहौल कैसा बनता है, तो मानो की कोई अमेरिकन कंपनी भारत में आ रही है, और अमेरिकन चर्च को यहां पर धर्म का प्रचार करना है और उसको अपने यहां पर प्रोडक्ट का प्रचार करना है। तो यहां पर एक मीडिया हाउस चाहिए तो उस मीडिया हाउस में वो पैसा लगता है क्योंकि धार्मिक संस्था भारत की डायरेक्ट मीडिया में पैसा नहीं लगा सकती तो किसी फंड के द्वारा उसमें आता है।

उसमें भी लिमिट होने के कारण बाकी का जो पैसा है वो पैसा जो एडवर्टाइजमेंट दिया जाता है। कोई भी फिल्म लीजिए और कोई भी TV सीरियल लीजिए, आपको ये ध्यान में आएगा कि उसमें सेक्युलरिज्म परोसा जाएगा। उसके बाद उसको शांतिप्रिय समाज के लोगों को अच्छा दिखाया जाएगा। और प्रयास करके कोई हिंदू इमेज का व्यक्ति और आजकल तो बड़ा आसान है एक पटका डाल दो गले में टीका लगा दो तो समझ में आता है कि ये कोई हिंदूवादी एक्टिविस्ट होगा,उसको बदनाम किया जाता है।
जमीन पर ऐसा चित्र है क्या?? ऐसा चित्र है क्या?? उल्टा चित्र है। लेकिन ये चित्र TV सीरियल में दिखाया जाता है जानबूझकर। कई लोग  Tv सीरियल जरूर देखते होंगे, नहीं तो आप Google पर जाकर टाइप करिए,आपको ज्यादातर जो लड़का लड़की के प्रेम प्रकरण दिखाई देंगे उसमें अगर दो धर्म के लोग है तो लड़का मुसलमान होगा।और फिल्म ले लीजिए तमाम नाम लिए जा सकते है, कई में तो पाकिस्तानी दिखाए जाते हैं जानबूझकर। क्यों ??  ये सबकुछ फंडेड होता है आप लोगों को ये भी हिंदुस्तान को समझाने की आवश्यकता है। 
ये सबकुछ आप भी अपनी जगह पर कर सकते हैं, क्योंकि मीडिया का स्वरूप आने वाले दिनों में और बदलने वाला है, अब जैसे जैसे सोशल मीडिया हालांकि बहुत कम प्रतिशत है लेकिन सोशल मीडिया एटलिस्ट कहीं ना कहीं डूबते हुए व्यक्ति को पानी के ऊपर हाथ निकालने का तो कम से कम चांस देता है। अपनी आवाज़ , विसुअल वॉर ऑब्सर्वे का तो काम कम से कम कर सकता है जो वो कर रहा है, उसको भी आपको बढ़ाना चाहिए। साथ साथ में लोकल केबल टीवी चैनल ये कंसेप्ट अभी आजकल बढ़ रही है लेकिन लोग उसको नहीं ले रहे आप कोई और ले चर्च किया मिशनरी की एक्टिविटीज इसमें ज्यादा होती है तो आप लोग शुरू करते हैं उसको बहुत ज्यादा कमर्शियल बाइबल नहीं बनाया जा सकता लेकिन उसका लॉसेस भी बहुत कम है और आजकल FM का क्रेज भी तुलना में काफी बड़ा है ।
आपने सुरेश चव्हाणके की बात को पढ़ा, जिसमे आप समज गये होंगे की मीडिया में ईसाई व मुस्लिम धर्म-संस्थाएं भारत में अपने धर्म का प्रचार करने के लिए अपना पैसा विदेश से आने वाली कम्पनियों में लगाती हैं । वही विदेशी कम्पनियां मीडिया में पैसा लगाकर हिन्दू विरोधी एवं उनके धर्म को अच्छा दिखाने वाली खबरें दिखाती हैं।

Saturday, December 9, 2017

मंदिरों को लेकर एक गोरे विदेशी ने जो कुछ लिखा है, वह हिन्दुओं की आँखें खोलने वाला है


December 9, 2017

The Hindu Religious and Charitable Endowment Act, 1951 राज्य सरकारों तथा नेताओं को यह अधिकार देता है कि वह हजारों हिन्दू मंदिरों पर अधिकार कर सकते हैं तथा उनपर एवं उनकी सम्पत्ति पर पूरा नियंत्रण रख सकते हैं। कहा गया है कि वे मंदिरों की सम्पत्ति को बेच सकते हैं और उन पैसों का मनचाहा इस्तेमाल कर सकते हैं।

“प्रत्येक मन्दिर पर एक IAS मुखिया बनकर बैठा हुआ है । पर किसी भी मस्जिद या चर्च पर नहीं ।”
What a white foreigner wrote about the temples

यह आरोप किसी मंदिर के पदाधिकारी ने नहीं, बल्कि एक विदेशी लेखक , #Stephen_Knapp ने अपनी किताब (Crimes Against India and the Need to Protect Ancient Vedic Tradition) में लगाया है, जो अमेरिका से छपी है। इसे पढ़ने पर आप चौंक जाएंगे।

नोट करनेवाली बात है कि जिन भक्त राजाओं ने ये मन्दिर बनवाए उनमें से किसी ने भी उन मन्दिरों पर कोई अधिकार नहीं जताया। कईयों ने तो अपना नाम तक नहीं छोड़ा है। मन्दिरों और उनके धन पर नियंत्रण की तो बात ही छोड़िये, इन राजाओं ने भूमि तथा अन्य संपत्तियों को इन मन्दिरों के नाम कर दिया, जिनमें इनके आभूषण भी शामिल हैं। उन्होंने मंदिरों की सिर्फ सहायता की, उनपर किसी प्रकार का दावा नहीं ठोका और होना भी यही चाहिये।


आज की सरकारों ने कोई भी बड़ा मन्दिर नहीं बनवाया (कुछ एक को छोड़कर) उनका इनमें से किसी भी मन्दिर - उनके धन, प्रशासन अथवा पूजा पद्धति पर कोई अधिकार नहीं है। इन मंदिरों का धन सिर्फ इन मन्दिरों के प्रशासन, उनके रखरखाव, पारिश्रमिक, उनसे जुड़ी आधारभूत संरचनाओं तथा सुविधाओं पर खर्च होना चाहिये तथा जो बच जाये अन्य गौण मन्दिरों, खासकर पुराने मन्दिरों की मुरम्मत पर खर्च होना चाहिये।


परंतु , एक Temple Endowment Act के तहत, आंध्रप्रदेश में 43000 मंदिर सरकार के नियंत्रण में आ गए हैं और इन मंदिरों का सिर्फ 18% राजस्व इन मंदिरों को लौटाया गया है, शेष 82% को अज्ञात कार्यों में लगाया गया है।
यहाँ तक कि विश्व प्रसिद्ध तिरुमाला तिरुपति मंदिर को भी नहीं बख्शा गया । Knapp के अनुसार, इस मंदिर में प्रतिवर्ष 3100 करोड़ से भी अधिक रूपये जमा होते हैं और राज्य सरकार ने इस आरोप का खण्डन नहीं किया है कि इस राशि का 85% राजकोष में जमा हो जाता है और इसमें से अधिकतर उन मदों में व्यय होता है जो हिन्दू समुदाय से संबद्ध नहीं हैं।

एक और आरोप जो लगाया गया है वो ये कि आंध्र सरकार ने कम से कम 10 मंदिरों को गोल्फ कोर्स बनाने के लिये तोड़ने की अनुमति दी है। Knapp लिखते हैं, कल्पना कीजिये अगर 10 मस्जिद तोड़ दिये जाते तो कितना बवेला मचता?
ऐसी आशंका है कि कर्नाटक में जो लगभग 2 लाख मंदिरों से 79 करोड़ वसूले गए, उनमें से मंदिरों को सिर्फ 7 करोड़ मिले , मुस्लिम मदरसों और हज सब्सिडी में 59 करोड़ दिये गए और चर्चों को लगभग 13 करोड़ दिये गए।

Knapp लिखते हैं कि इसके कारण 2 लाख मंदिरों में से 25% यानि लगभग 50,000 मंदिर संसाधनों के अभाव में कर्नाटक में बंद कर दिये जाएंगे और उनके अनुसार सरकार के इस कृत्य के लिये सिर्फ हिंदुओं की लापरवाही और सहिष्णुता ही जिम्मेदार है।

Knapp फिर केरल का उल्लेख करते हैं जहाँ वो कहते हैं, गुरुवयूर मंदिर के फण्ड को दूसरी सरकारी योजनाओं में लगा दिया गया है जिससे 45 हिन्दू मंदिरों का विकास रुक गया है। #अयप्पा_मन्दिर की भूमि पर कब्ज़ा कर लिया गया है तथा चर्च, विस्तृत वन क्षेत्र को -सबरीमाला के निकट हजारों एकड़ भूमि को अतिक्रमण से दबाकर बैठी है।
केरल की कम्युनिस्ट राज्य सरकार एक अध्यादेश पारित करना चाहती है ताकि वह Travancore & Cochin Autonomous Devaswam Boards (TCDBs) को समाप्त कर दे तथा 1800 हिन्दू मंदिरों पर उनके सीमित स्वतंत्र अधिकारों को हथिया ले। अगर लेखक का कहना सही है, तो महाराष्ट्र सरकार भी राज्य में 450,000 मन्दिरों पर कब्ज़ा करना चाहती है जो राज्य के दिवालियेपन को हटाने के लिये विशाल राजस्व जुटाएंगे।

और इससे भी बढ़कर, Knapp कहते हैं कि उड़ीसा में राज्य सरकार #जगन्नाथ_मन्दिर की 70,000 एकड़ से भी अधिक दान में मिली भूमि को बेचना चाहती है, जिसकी राशि से इसके अपने ही मन्दिर कुप्रबंधन से उपजे वित्तीय घाटे को पूरा किया जाएगा।

Knapp के अनुसार, इन बातों की जानकारी इसलिये नहीं हो पाती क्योंकि भारतीय मीडिया, खासकर इंग्लिश टेलीविज़न और प्रेस, हिन्दू विरोधी हैं और हिन्दू समुदाय को प्रभावित करनेवाली किसी भी बात को न तो कवरेज देना चाहती हैं, और न ही उनसे कोई सहानुभूति रखती हैं। अतः, सरकार के सभी हिन्दू विरोधी कार्य बिना किसी का ध्यान खींचे चलते रहते हैं।

संभव है कि कुछ लोगों ने पैसे कमाने के लिये मन्दिर खड़े कर लिये हों। पर सरकार को भला इससे क्या सरोकार होना चाहिये? सारी आमदनी को हड़प लेने की बजाय, सरकार मंदिरों को फण्ड के प्रति जवाबदेह बनाने के लिये कमेटियों की स्थापना कर सकती है -- ताकि उस धन का सिर्फ मन्दिर के उद्देश्य से समुचित उपयोग हो सके।
Knapp का कहना है कि: स्वतंत्र लोकतान्त्रिक देशों में कहीं भी धार्मिक संस्थाओं को सरकार द्वारा नियंत्रित नहीं किया जाता और देश के लोगों को धार्मिक स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जाता।
पर भारत में ये हो रहा है। सरकारी अधिकारियों ने हिन्दू मंदिरों का नियंत्रण अपने हाथों में ले रखा है, क्योंकि उन्हें इसमें पैसों की गंध लगती है, वे हिंदुओं की लापरवाही से परिचित हैं, वे जानते हैं कि हिन्दू हद दर्जे के सहिष्णु और धैर्यवान हैं, वे ये भी जानते हैं कि सड़कों पर प्रदर्शन करना , संपत्ति का नुकसान करना, धमकी, लूट, हत्या, ये सब हिंदुओं के खून में नहीं है ।

हिन्दू चुपचाप बैठे अपनी संस्कृति की हत्या देख रहे हैं। उन्हें अपने विचार स्पष्ट और बुलंद आवाज में व्यक्त करने चाहिये। समय आ गया है कि कोई सरकार से कहे कि सभी तथ्यों को सामने रखे ताकि जनता को पता चले कि उसकी पीठ पीछे क्या हो रहा है। पीटर को लूटकर पॉल का पेट भरना धर्मनिरपेक्षता नहीं है और मंदिर लूटने के लिये नहीं हैं।

हम तो समझ रहे थे कि महमूद गजनवी मर चुका है, पर कहाँ ?
आज भी मन्दिर तोड़े जा रहे हैं और उसमें आने वाला दान को हड़प लिया जा रहा है।

मस्जिद और चर्च की तरह मन्दिरों को भी फ्री कर देना चाहिए जिससे हिन्दू धर्म के लोगो की आस्था पर प्रहार न हो।

Friday, December 8, 2017

RTI में खुलासा: सरकारी किताब में भगत सिंह-राजगुरु-सुखदेव को बताया गया ‘आतंकी, नहीं मिला शहीद का दर्जा

December 8, 2017

अंग्रेजों ने जब भारत गुलामी की जंजीर से जकड़ लिया था, उस समय भारतवासियों पर भयंकर अत्याचार हो रहे थे, देशवासियों को गुलाम बनाकर रखा हुआ था । बहु-बेटियों की इज्ज़त लूटी जा रही थी और भारत की संपत्ति लूटकर अपने देश इंग्लैंड में ले जा रहे थे , भारतीय संस्कृति को खत्म कर रहे थे,भारतवासी डर के मारे कोई आवाज नही उठा पा रहे थे , उस समय कुछ साहसी वीर बहादुर जवानों ने उनके खिलाफ आवाज उठाई उसमें भगत सिंह-राजगुरु-सुखदेव भी थे , जिन्होंने भारत को अंग्रेजों को गुलामी से दूर करने के लिए अपनी जवानी में प्राणों का बलिदान दे दिया । लेकिन हमारा दुर्भाग्य है कि आजतक उन वीरों को उचित सम्मान नही दे पाये, यहाँ तक कि शहीदी का भी दर्जा नही दे पाये और ऊपर से  सरकारी साहित्य में आतंकी बताया जा रहा है ।
 RTI: Bhagat Singh-Rajguru-Sukhdev was told in official book 'Terrorist

भारत एकमेव एेसा देश है जहां देश के लिए अपने ‘प्राण’ देनेवाले क्रांतिकारियों को ‘आतंकी’ कहा जाता है आैर देश के सैनिकों की तथा नागरीकों की ‘प्राण लेनेवालों’ के जनाजे में सम्मिलित होकर उन्हे ‘शहीद’ का दर्जा दिया जाता है !

स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को भारत सरकार ने अभी तक हुतात्मा का दर्जा नहीं दिया है, एक आरटीआई में इस बात का खुलासा हुआ है। यह आरटीआई इंडियन काउंसिल ऑफ हिस्टोरिकल रिसर्च (ICHR) में दाखिल की गई थी। आरटीआई से यह बात भी सामने आई है कि, आईसीएचआर की ओर से नवंबर में रिलीज की गई किताब में भगत सिंह और बाकी दो हुतात्माआें को कट्टर युवा और आतंकी करार दिया गया है।

आपको बता दें कि आईसीएचआर मानव संसाधन विकास मंत्रालय के अंतर्गत आने वाला संगठन है। आईसीएचआर का चेयरमैन भारत सरकार की ओर से नियुक्त किया जाता है। अंग्रेजी वेबसाइट टाइम्स नाउ की रिपोर्ट में यह जानकारी सामने आई है। आरटीआई में यह भी पता चला है कि पिछली सरकारें लगातार इन तीनों क्रांतिकारियों की शहादत को नजरअंदाज करती आई हैं। ये वे हुतात्मा हैं, जिन्होंने कई पीढ़ियों को प्रेरणा दी है। आरटीआई के जरिए जम्मू के एक्टिविस्ट रोहित चौधरी ने पूछा था कि क्या तीनों हुतात्माों को हुतात्मा का दर्जा दिया गया है?

बता दें कि ऐसा पहली बार नहीं है, जब भगत सिंह आतंकी बताने पर विवाद हुआ हो। पिछले साल दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) के इतिहास के पाठ्यक्रम में शामिल एक किताब, जिसमें भगत सिंह को क्रांतिकारी-आतंकवादी (रिवाल्यूशनरी टेररिस्ट) करार दिया गया था, के हिंदी अनुवाद की बिक्री और वितरण को रोकने का फैसला किया गया था। बिपन चंद्रा, मृदुला मुखर्जी, आदित्य मुखर्जी, सुचेता महाजन और केएन पणिकर की ओर से लिखी गई और डीयू की ओर से प्रकाशित किताब ‘भारत का स्वतंत्रता संघर्ष’ के बिक्री और वितरण को रोक दिया गया था।

अंग्रेजी में ‘इंडियाज स्ट्रगल फॉर इंडिपेंडेंस’ नाम की यह किताब पिछले दो दशकों से भी ज्यादा समय से डीयू के पाठ्यक्रम का हिस्सा रही है। इस किताब के २०वें अध्याय में भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, सूर्य सेन और अन्य को क्रांतिकारी ‘रिवाल्यूशनरी टेररिस्ट’ बताया गया है। इस किताब में चटगांव आंदोलन को भी आतंकवादी कृत्य कहा गया है, जबकि ब्रिटिश पुलिस अधिकारी जॉन सैंडर्स की हत्या को भी आतंकवादी कृत्य करार दिया गया है। इस किताब का हिंदी संस्करण भारत का स्वतंत्रता संघर्ष 1990 में डीयू के हिंदी माध्यम कार्यान्वयन निदेशालय की ओर से प्रकाशित किया गया था।
स्त्रोत: हिन्दूजागृति

भारतीय शिक्षा में देश के लुटेरे आक्रमणकारियों मुगलों और अंग्रेजो को महान बताया जा रहा है वहीं दूसरी ओर देश की आजादी के लिए उनके खिलाफ लड़कर अपने प्राणों की आहुति दे दी, ऐसे वीरों को आतंकी बता रहे है, हमारे देश के लुटेरों से लड़ना भी अपराध हो गया है?

एक तरफ तो अंग्रेजो के चाटूकार नेहरू आदि को सम्मान देकर अरबो-खबरों की सम्पत्ति इक्कठी कर ली गई दूसरी ओर देश के लिए अपनी जवानी का बलिदान देने वाले वीर जवानों के परिवार आज भी रोटी के लिए मोहताज है, गरीबी से गुजर रहे हैं उनके परिवार को न समाज में उचित स्थान मिला और न ही उन बलिदान देने वाले वीरों को देश से सम्मान मिला।

आज शिक्षा प्रणाली को बदलने की अत्यंत आवश्यकता है कि जो देश के लुटेरे थे उन मुगलों और अंग्रेजों की महिमा मंडन वाला इतिहास किताबों से हटाकर देश के वीर क्रांतिकारी भगत सिंह-राजगुरु-सुखदेव, चन्द्र शेखर आज़ाद, वीर शिवाजी, महाराणा प्रताप, महारानी लक्ष्मीबाई आदि का इतिहास पढ़ाया जाना चाहिए और शिक्षा अंग्रेजी में नही देश की राष्ट्रभाषा हिंदी में होनी चाहिए और वैदिक गुरुकुल के अनुसार होनी चाहिए । इस पर सरकार को ध्यान देने की अत्यंत आवश्यक है क्योंकि बच्चे महान तभी बनेंगे जब उनको बचपन से ही सही दिशा देने वाली शिक्षा दी जाएगी ।